Serial Story: सरप्राइज गिफ्ट (भाग-3)

09.06.07

सं…जी ने मुझे अपनी लिखी कविताएं दीं. कविताएं…? मुझे हंसी आ रही थी. कविता नहीं बातें थीं वे, जो उन्होंने मेरे लिए लिखी थीं. यानी वे भी मेरे बारे में सोचते हैं? आज डेढ़ साल बाद मुझे एहसास हुआ है. वे भी मुझे बेहद चाहते हैं. ‘मेरी पत्नी सुंदर है, पर रूह, तुम में एक अजीब सी कशिश है, जो किसी में नहीं है. तुम बहुत ही अलग हो.’

हाय. आज उन्होंने यह एहसास दिला दिया कि मैं अपनी पत्नी से कहीं ज्यादा उन्हें भाती हूं. कभीकभी सोचने लगती हूं कि मैं ने इतनी जल्दी शादी क्यों की? थोड़ा इंतजार नहीं कर सकती थी. कभीकभी उन्हें छोड़ने का मन नहीं होता.

06.07.07

संजयजी यह काम भी करते हैं? मैं हैरान हो गई. मुझे वह कागजों का पुलिंदा अहमद खान को देने के लिए होटल भेजा. बाद में मुझे बता रहे हैं कि वे कोई सीक्रेट कागज थे, जो वे स्वयं उसे नहीं दे सकते थे. ऐसा क्या होगा उन में? छोड़ो, संजयजी ने कहा और मैं ने किया, बस, मेरे लिए इतना ही काफी है. सो स्वीट सं…

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09.07.07

क्या बात है, आज सं… ने मुझे लेख लिखने के लिए अपने आफिस के कुछ ऐसे ओरिजिनल पत्र दिखाए. जिन्हें शायद उन्हें किसी को दिखाने भी नहीं चाहिए थे. इतना विश्वास करते हैं वे मुझ पर? हां, वैसे तो उन्होंने मुझे अपना लैपटौप, मोबाइल यहां तक कि अपने केबिन की हर चीज इस्तेमाल करने का हक भी दे रखा है, अपनी पत्नी के सामने भी रोब से ही रहते हैं. अब तो मुझे उन की पत्नी के आने, देखने या खड़े रहने की जरा भी परवाह नहीं होती, बल्कि मुझे लगता है कि मैं ही उन की पत्नी… हाय कितना अच्छा लगता है यह सोचना.

02.08.08

क्या बात है. इस बार भी क्रिसमस से पहले मुझे सरप्राइज गिफ्ट दिया. मुझे बहुत पसंद आया. मेरे लिए एक नया बेड. अ आ… बहुत ही शानदार. मजा आ गया.

09.09.08

आज डाक्टर के पास हो कर आई. उस ने कहा कि मैं… मुझे शर्म आ रही थी. मैं ने संजय को बताया, वह कहने लगे कि अबार्ट करा लो. पैसे मैं दे दूंगा. पता नहीं क्यों, मन नहीं है अबार्ट कराने का. पर क्या कहूंगी लोगों से? पति तो पास में है ही नहीं. कराना तो पड़ेगा ही. मन बहुत दुखी हो रहा है.

21.09.08

आज सं… मेरे पास बैठे रहे पर मेरा मन नहीं हो रहा था बात करने को. मुझे बहुत से ड्राई फ्रूट, फल और पैसे भी दे गए. आज मैं ने मम्मी को पैसे भिजवाए हैं. पूरे 6 महीने के लिए निश्चिंत हो गई मैं. क्या करूं? भावुक हो कर क्या मिलेगा, पैसा भी तो चाहिए. पर लगता है भीतर से कोई जोरजोर से रो रहा है. चुप चुप…

30.10.08

मैं बहुत खुश हूं, मैं ने आज लेटैस्ट डिजाइन की टीशर्ट्स और जींस ली. आज मेरे लगातार 3 लेख अलगअलग अखबारों में छपे हैं. 2 तो संजय की जानपहचान से ही लिए गए इंटरव्यू थे. मेरे संपादक भी मुझ से बहुत ही खुश हैं. एक संपादक ने तो मुझे एक रेगुलर कालम भी दे दिया है. थैंक्यू संजयजी…

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30.05.09

मुझे बहुत ही परेशानी हो रही है. मन बहुत ही खराब हो रहा है. लगता है कि फिर गड़बड़ हो गई है. यही सोच कर डाक्टर के पास गई थी. पर डाक्टर ने कहा कि अभी इंतजार कर लो. कभीकभी लेट भी हो जाते हैं. हे भगवान, कोई गड़बड़ न हो. मैं ने तो इतना ध्यान रखा था फिर कैसे? अंहं… संजयजी का एक पैकेट सुबहसुबह फिर अहमदजी को देने भी तो जाना है. अब सो जाना चाहिए. रात के 2 बजे सो कर सुबह साढ़े 4 बजे फिर कैसे उठ पाऊंगी. पर जाना तो जरूरी है. मन कर रहा है कि पैकेट खोल कर देखूं कि इस में क्या है? पर नहीं, कहीं सं… को पता न चल जाए. ख्वाहमख्वाह का लफड़ा पड़ जाएगा. अपने पास झंझट क्या कम हैं, जो एक झंझट और मोल ले लूं.

04.06.09

क्या करूं? कुछ समझ में नहीं आ रहा. सं… को बताऊं या नहीं. मेरा मन चाहता है कि वह मुझे अपनी बना कर रखें. पर उस ने पहले भी कहा था कि वह मेरे साथ रिश्ता तो रख सकता है पर बच्चे को नहीं अपनाएगा. बताना तो पड़ेगा ही.

15.06.09

मन कर रहा है कि या तो संजय का गला दबा दूं या खुद मर जाऊं. कहता है कि मुझे तुम्हारे बच्चे से कोई लेनादेना नहीं है. पैसा चाहिए तो ले लो. मुझे भी गुस्सा आ रहा है.

एक मन करता है कि उस की पत्नी को सब कुछ बता दूं. पर नहीं, संजय नाराज हो जाएगा फिर… पर मैं इस बार अबार्ट नहीं कराना चाहती. मैं इसे रखना चाहती हूं. मुझे दुनिया की परवाह नहीं है. मैं उस की पत्नी को भी कुछ नहीं बताऊंगी, बस, वह इसे अपना नाम दे दे. तो संजय ने जवाब दिया कि ऐसे तो मेरे नाम का एक स्कूल खुल जाएगा. मैं हक्कीबक्की रह गई. संजय ने ऐसा कहा, मैं विश्वास नहीं कर पा रही.

19.06.09

आज तो संजय ने हद कर दी. उस का व्यवहार एकदम से बदल गया. मुझे सब के सामने बेइज्जत कर दिया. मुझे अपने कमरे के भीतर ही नहीं आने दिया. मैं जबरदस्ती चली गई तो चपरासी से कह कर बाहर निकलवा दिया. इतना अपमान. इतनी जिल्लत. सिर्फ इसलिए कि मैं वह बच्चा अबार्ट नहीं कराना चाहती. वह क्यों नहीं समझ रहा कि मैं उस से प्रेम करती हूं. पर अब पता चला कि वह प्रेम तो उस के मन में ही नहीं. मैं… मेरी इतनी इंसल्ट. क्या इतने दिनों की दोस्ती कोई माने नहीं रखती? पर आज तो मैं उसे धमकी दे ही आई कि तुम्हारी पत्नी को मैं सब कुछ बता दूंगी. तो उस ने भी पलट कर मुझे धमकी दी कि अगर मेरे मुंह से एक शब्द भी निकला तो उस का अंजाम बहुत ही बुरा होगा. क्या कर लेगा संजय? मैं भी देख लूंगी. मैं ने भी कह दिया कि मैं डीएनए टैस्ट करा कर यह साबित कर दूंगी कि बच्चा तुम्हारा ही है.

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18.08.09

क्या करूं, कुछ समझ नहीं आ रहा? यह बच्चा… संजय ने मेरा फोन तक नहीं उठाया. मुझ से इतनी बेइज्जती बरदाश्त नहीं हो रही. मुझे इतना नीचे गिरा दिया उस ने. मुझ से अपना लैपटौप भी वापस मांगा. आज तो हद ही हो गई. मैं 4 घंटे उस के कमरे के बाहर बैठी रही. जब बाहर निकला तो किसी आफिसर के साथ था. मुझे बैठे देख चपरासी को डांटने लगा कि तुम्हें पता है कि मैं बिजी हूं तो लोगों की लाइन क्यों लगवा लेते हो, और मुझे बिना देखे वहां से चला गया. अब मैं चुप नहीं रहूंगी. बहुत हो गया.

आगे पढ़ें- मिताली ने डायरी बंद की. उसे कुछ…

Serial Story: सरप्राइज गिफ्ट (भाग-1)

रूही का ही फोन होगा, यह सोच कर मिताली ने फोन उठा लिया. फोन उठाते ही उस ने हैलो बोलने के लिए जैसे ही मुंह खोला, वहां से बहुत ही घबराई और कांपती हुई आवाज कानों में पड़ी, ‘‘संजयजी, प्लीज, प्लीज, मुझे बचा लो, मैं आप के आगे हाथ जोड़ती हूं, संजयजी. प्लीज, फोन नहीं काटना, संजय. आप की कसम, मैं मितालीजी के पांव पकड़ कर माफी मांग लूंगी. पर प्लीज, मुझे बचा लो… मैं सारी बातें अपने सिर ले लूंगी. मैं तुम्हारे सामने कबूल कर लूंगी कि यह बच्चा भी आप का नहीं है. संजयजी, आप मुझे हर बार सरप्राइज गिफ्ट देते हो. आज अंतिम बार अपनी दया का गिफ्ट दे दो. मैं कभी आप की जिंदगी में नहीं आऊंगी. प्लीज, संजय…’’ मिताली का चेहरा पत्थर सा हो गया.

उस ने अपनेआप को संभाला और बोली, ‘‘हैलो… हैलो… हैलो… कौन बोल रहा है? मुझे आवाज नहीं आ रही. हैलो… हैलो…’’ कहतेकहते मिताली ने अपने पति संजय को देखा, जो बेड पर बैठा शान से बेड टी का आनंद ले रहा था. फोन वहीं से कट हो गया. मिताली ने भी अपनी चाय उठा ली.

वह सोच में पड़ गई, ‘इस का मतलब सुबहसुबह जो 4-5 बार लगातार फोन बज रहे थे वे रूही के ही फोन थे? मुझे तो ऐसा लगा कि रात 3 बजे के करीब भी संजय का मोबाइल बजा था. पर शायद फिर संजय ने उसे म्यूट पर रख दिया था. क्या संजय मुझे यह जताना चाह रहा है कि उस का अब रूही से कोई वास्ता नहीं. पर अचानक ही रूही किस मुसीबत में फंस गई है, जो वह संजय से अपने को बचाने की गुहार लगा रही है. यहां तक कि उस के पेट का बच्चा भी संजय का नहीं है यह कबूल कर लेने को तैयार है? अब फिर यह फोन? उस की आवाज इतनी डरी हुई क्यों थी? अचानक ही आधे दिन में ऐसा क्या हो गया?’

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एक के बाद एक शौक लग रहे थे मिताली को. वह जानबूझ कर संजय को बताना नहीं चाह रही थी कि रूही फोन पर उस से क्या कह रही थी. वह चाहती थी कि जो भी बात है उसे संजय स्वयं उस से कहे. पर संजय तो बेड टी पी कर निश्चिंत हो कर बाथरूम में नहाने चला गया.

संजय नहा कर निकला तो गुनगुना रहा था. नाश्ता करते समय भी संजय ने मिताली से फोन के बारे में कुछ नहीं पूछा, बल्कि गुनगुनाता हुआ नाश्ता करता रहा. उस के चेहरे पर एक अजीब सी शांति भी थी. जैसे ही उस का अर्दली आया, उस ने अपना ब्रीफकेस और खाना उसे पकड़ा कर बाहर भेज दिया और स्वयं गहरी मुसकराहट से मिताली की ओर देखने लगा.

‘‘और…? जानेमन, माई स्वीटहार्ट, रात अच्छी नींद आई न? भई, मुझे भी तो बहुत ही गहरी नींद आई. आनंद आ गया. ऊं…पुं…’’ कहतेकहते जैसे ही अपने होंठ सिकोड़ कर संजय मिताली की तरफ बढ़ा तो मिताली ने उस के होंठों पर अपनी हथेली रख दी, ‘‘प्लीज, अभी मन नहीं है.’’

एक पल के लिए संजय का चेहरा परेशान हुआ पर फिर वह तुरंत ही संभल गया, ‘‘ओके, नो प्रौब्लम. शाम को बात करेंगे. क्रिसमस के लिए अगर कहीं शौपिंग वगैरह करने जाना हो तो फोन कर देना, आई विल बी आलवेज एट युअर सर्विस मैम,’’ और अपनी हमेशा की स्टाइल में मुसकराते हुए ‘फ्लाइंग किस’ उछाल कर बाहर निकल गया.

पर आज उस के इस ‘फ्लाइंग किस’ से मिताली के मन का कोई कोना नहीं हिला.

संजय जातेजाते उसे याद दिला गया था कि क्रिसमस पास में ही है और उसे शौपिंग करनी है. हर क्रिसमस पर संजय उसे खास उस की पसंद का एक सरप्राइज गिफ्ट देता था. वह हमेशा ही क्रिसमस का इंतजार किया करती थी. उस की तो शादी भी क्रिसमस के 3 दिन बाद थी. पर संजय ने शादी से 3 दिन पहले ही गिफ्ट भेज कर सब को चौंका दिया था. वह पहला क्रिसमस कितना रंगीन और चमकीला हो गया था.

शायद यही कारण था कि संजय जरूरत से ज्यादा सामान्य और बहुत ही जल्दी सामान्य होने की कोशिश कर रहा है ताकि घर पर क्रिसमस का माहौल खराब न हो, पर मैं चाह कर भी इस बात को पचा नहीं पा रही हूं कि संजय जैसा बड़ा आफिसर एक घटिया सी दिखने वाली लड़की को इतना सिर चढ़ा देगा कि वह उस के ही मुंह पर थूकने जैसी हरकत कर जाएगी. वह लड़की किसी सरप्राइज गिफ्ट की भी बात कर रही थी यानी कि संजय मेरे अलावा औरों को भी सरप्राइज गिफ्ट बांटता रहता है?

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पहली बार 3 साल पहले संजय के आफिस के कमरे में मिताली ने रूही को बेतकल्लुफ सा बैठे देखा था. तब उसे रूही पर गुस्सा आया था. रूही आधुनिक कपड़ों में लिपटी एक गंदी मैली सी नेपाली गुडि़या लग रही थी. संजय कोई छोटामोटा आफिसर थोड़े ही था कि कोई भी उस के कमरे में कुरसी के साथ कुरसी जोड़ कर बैठ जाए. वह एक आईएएस आफिसर था. उस की भी सरकार के प्रति कुछ जिम्मेदारियां हैं. एक रुतबा है उस का. ऐसे ही किसी को मिलने की भी इजाजत नहीं मिलती संजय से. तो फिर रूही, उस के साथ ऐसे कैसे पसरी हुई सी बैठी है. शायद मेरे अचानक आ जाने की उम्मीद नहीं होगी संजय को. पर संजय तब भी मेरे सामने घबराया नहीं था.

बहुत ही संयत स्वर में उस ने मुझे बैठने को कहा और रूही से मिलवाया था. संजय के ही शब्दों में रूही एक स्वतंत्र पत्रकार है, जो कभीकभी उस के पास इंटरव्यू लेने आती है.

मिताली को रूही का वहां बैठना अच्छा नहीं लगा. इसलिए नहीं कि वह एक लड़की है, बल्कि इसलिए कि वह गंदी सी मैलीकुचैली दिख रही थी. वह संजय के स्टैंडर्ड से बहुत नीचे की थी.

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उस के बाद  तो 1-2 बार संजय ने ही घर पर रूही का जिक्र करते हुए बताया था कि आज रूही फिर किसी इंटरव्यू के सिलसिले में उस के पास आई थी, तो उस ने फलां आफिसर से उसे मिला कर उसे इंटरव्यू की इजाजत दिला दी है. गरीब लड़की है, 2-4 लेख लिख लेती है, उसे पैसे मिल जाते हैं. हमारा क्या जाता है.

कई बार वह यहां तक कहता कि बेचारी कह रही थी कि उस के पति ने उसे छोड़ दिया है. इसीलिए वह नेपाल छोड़ कर अपने बच्चे पालने भारत आई है.

आगदे पढ़ें- परसों ही तो रूही मिताली…

Serial Story: सरप्राइज गिफ्ट (भाग-2)

परसों ही तो रूही मिताली के घर आई थी. दोपहर का समय था और तेज धूप में रूही का यों घर पर आना उसे बहुत ही खटका था. एक तो वैसे ही उसे रूही पसंद नहीं थी. रूही के मुंह खोलते ही मिताली ने कहा था, ‘संजय तो घर पर नहीं है. आप घर पर क्यों आ गईं?’

‘मुझे आप से ही मिलना था,’ रूही की बात सुनते ही मिताली ने उसे ऐसे देखा था जैसे किसी कौकरोच को देख कर उसे झाड़ू से बाहर फेंकने का मन होता है. मिताली अभी सोच रही थी कि वह फिर बोली, ‘मैं आप को यह डायरी देने आई थी, हो सके तो इसे पढ़ लें.’

‘आप की डायरी मैं क्यों पढ़ूं?’ मिताली ने डायरी पकड़ने के लिए हाथ तक आगे नहीं बढ़ाया.

‘आप को ही फायदा होगा. ले लीजिए.’

‘हैं? मुझे? कैसे?’ न चाहते हुए भी मिताली का हाथ डायरी लेने के लिए बढ़ गया.

रूही ने डायरी दी और बोली, ‘आप को पता नहीं, विश्वास हो या न हो, पर मैं बता दूं कि मैं संजय के बच्चे की मां बनने वाली हूं.’

और वह उलटे पांव लौट गई. मिताली हक्कीबक्की उसे देखती रह गई. ऐसा लगा मानो रूही उस के मुंह पर चांटा जड़ कर चली गई थी.

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लुटीपिटी सी मिताली डायरी को ऐसे देखने लगी मानो कोई उस के हाथ में अंगारा रख गया हो. इतनी बड़ी बात वह इतनी आसानी से कह कर चली गई. उस ने मेरे मन में उमड़ रहे भावों को जानने की कोशिश भी नहीं की? क्या रूही के शब्दों की सचाई डायरी में बंद है? जब डायरी खोली तो जगहजगह लेखों का, उस के बच्चों का या उलटेसीधे शेरों की बातें ही दिखीं. खीज कर मिताली ने डायरी बंद कर दी. सब झूठ होगा. जानबूझ कर संजय को नीचा दिखाने के लिए वह बकवास कर गई होगी. शायद उन की आपस में लड़ाई हो गई है और वह संजय के घर में फूट डालना चाहती है. उस समय कुछ ऐसा ही सोचा था मैं ने. पर फिर भी मन के कोने में कहीं शक पैदा हो गया था, जिसे मैं ने संजय के सामने उगल दिया था. तब संजय सकपकाया था, उस ने सफाई पेश की. मिताली भी उस से बहस में उलझ गई थी. पर कोई नतीजा नहीं निकला.

पर आज जिस तरह से रूही कांपती आवाज में रो रही थी, गिड़गिड़ा कर रहम की भीख मांग रही थी, इस से तो यही जाहिर हो रहा है कि संजय ने ही कुछ ऐसा किया है कि वह बहुत बड़ी मुसीबत में फंस गई है.

मिताली का ध्यान फिर डायरी की तरफ चला गया. जरा ध्यान से पढ़ती हूं उसे, शायद मन की परतों में दबी बातों का खुलासा हो जाए. यही सोच कर उस ने डायरी खोली.

शुरुआत में फिर वैसे ही 1-2 बेतुके से शेर लिखे पड़े थे. मिताली ने अनमने ढंग से सारे पन्ने पलट डाले. क्या है इस डायरी में? यह रूही…? मेरा कौन सा फायदा कराने जा रही थी. अंत के पन्ने पलटतेपलटते एक जगह निगाह अटक गई. संजय का नाम? रूही ने अपनी डायरी में संजय का नाम लिखा है. पन्ना पलटा, फिर संजय, 2-4 और पन्ने पलटे, संजय… यहां भी. संजय के नाम की शुरुआत कहां से है? मिताली की उत्सुकता बढ़ गई यह सोच कर उस ने पन्नों को पीछे से पलटना शुरू कर दिया.

25.04.06 – 12 बजे दोपहर

आज एक आईएएस आफिसर संजय सहगल का इंटरव्यू लेने जाना है, मैं ने सोचा था कि कोई बुड्ढा खूसट सा आदमी होगा. जल्दी ही बात समाप्त कर के चली आऊंगी. पर जैसे ही कमरे में घुसी तो आंखें चौंधिया गईं. एक स्मार्ट, डैशिंग पर्सनैलिटी का युवक बैठा था. हां, युवक ही तो लग रहा था. होगा 50 के आसपास, पर 40 से ज्यादा का तो दिख नहीं रहा था. उस ने बहुत ही प्यार से बात की. पता नहीं वह दिल में उतर सा गया है. इंटरव्यू छप जाए तो उसे इंटरव्यू की कापी खुद ही देने जाऊंगी. शायद एक बार और बात करने का मौका मिले.

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14.05.06 – 11.00 बजे सुबह

वाओ. आज तो कमाल ही हो गया. उस ने अखबार के बहाने मेरे पूरे हाथ को ही अपने हाथ में ले लिया और कितनी मासूमियत से सौरी बोल दिया. मुझे पता है यह सब नाटक है. पर मुझे अच्छा लगा. एक झुरझुरी सी हो गई पूरे बदन में. उस ने मुझे बहुत देर तक बैठाए रखा. 2 बार चाय पिलाई. आलतूफालतू बातें कीं. उस ने मुझे कहा कि मुझे कभी भी उस की जरूरत पड़े तो मैं बेझिझक उस के आफिस आ जाऊं.

02.06.06 – 2.00 बजे दोपहर

पता नहीं क्यों उसे देखना अच्छा लगता है. ऐसा लगता है कि मैं कोई सपना देख रही हूं, वह इतना स्मार्ट है कि उस के सामने सब फीके लगते हैं, पर आज उस ने मुझ से कहा कि मैं बहुत खूबसूरत दिख रही हूं. आज उस ने टेबल के नीचे से अपने पांवों को बढ़ा कर, अपने पांवों की उंगलियों से मेरे पांवों को पकड़ा. मुझे शरारत से देखा. ये क्या कर रहे हैं संजयजी, मैं तो पागल हो जाऊंगी. उन की छुअन मुझे अभी तक महसूस हो रही है. नींद ही नहीं आ रही. संजय… संजय… संजयजी…

13.09.06 – 6.00 बजे शाम

आह. ये 2 दिन मैं नहीं भूल पाऊंगी. सं… मेरे साथ 2 दिन तक रहे. सुबहशाम, सुबहशाम बस एक ही काम… आह. ऐसा तो कभी मेरे ‘उस ने’ भी मुझे नहीं दिया. आग, आग और बस, आग… पूरा… जल रहा है. मैं ने मना किया कि मत जाओ. लोगों को तो यही पता है कि मेरे पति आए हैं. तो डर किस बात का है. इस पर सं… बोले कि पर मैं तो केवल घर पर 2 दिन के टूर की बात कह कर आया था. फिर कभी सही…

यह ‘फिर’ कब आएगा? कब? कब आएगा. मेरा बिस्तर से उठने को मन ही नहीं है. मुझे अपने बदन से ही विदेशी परफ्यूम की खुशबू आ रही है. आज उस ने मुझे सरप्राइज गिफ्ट दिया है? थैंक्यू… सं…

14.12.06 – 10.00 बजे रात

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बाप रे… कैसे पैसे खर्च करते हैं संजय…

आईएएस आफिसर जो ठहरे. घर में पैसों की बरसात जो हो रही होगी. थैंक्यू… आज तुम्हारी वजह से मेरे बच्चों की परवरिश हो पाएगी. मां बहुत खुश होगी, पूरे 6 महीने के खानेपीने और बच्चों का खर्च निकल जाएगा. मैं निश्चिंत हूं. पर इस से ज्यादा सं… की दोस्ती से खुश हूं. वह भी मुझे पसंद करता है. मुझे अपनी रूह कहता है. रूह… क्या नाम दिया है, यानी अपनी जान… वाओ. जिंदगी इतनी हसीन भी दिख सकती है, मैं ने कभी सोचा नहीं था. पर अब तो खुशियां मेरे दोनों हाथों में हैं.

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Serial Story: सरप्राइज गिफ्ट (भाग-4)

मिताली ने डायरी बंद की. उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि यह रूही की डायरी है या संजय का काला चिट्ठा. संजय, जो उस का पति है, वह संजय जिस के बारे में वह यह सोचती थी कि उस की पर्सनैलिटी के साथ केवल मुझ जैसी पढ़ीलिखी खूबसूरत लड़की ही मेल खाती है. वह नीचे तो आंख झुकाना जानता ही नहीं. वही आदमी, गली की हर गंदगी को गले लगाता फिरता है? और अगर… रूही ने उस का कहना नहीं माना तो उस ने उस के साथ क्या किया, जो रूही कांपती हुई डरी हुई आवाज में माफी मांग रही थी? संजय की बातों से तो कुछ भी जाहिर नहीं हो रहा था. मुझे भी सालों से सरप्राइज गिफ्ट देता रहा, उधर जाने किसकिस को रूही जैसे सरप्राइज गिफ्ट बांटता रहा है. और क्याक्या लिखा था रूही ने? कोई फाइल अहमदजी को पहुंचाता था? कुछ समझ नहीं आ रहा. संजय क्या कर रहा है? सरप्राइज… यह भी एक सरप्राइज ही तो है.

दिमाग चकराने लगा था. अचानक अक्षत ने आ कर टीवी औन कर दिया. चैनल पर चैनल घुमाने लगा.

‘‘बंद करो टीवी, अगर स्कूल नहीं गए तो इस का मतलब यह नहीं कि टीवी लगा कर देखो.’’

‘‘ममा प्लीज… देखने दो न,’’ अक्षत मिमियाया था. चैनल पर चैनल घुमातेघुमाते आवाज आई. ‘एक बहुत बड़ी खबर दिल्ली से आ रही है कि एक आईएएस आफिसर संजय सहगल ने एक जासूस नेपाली लड़की को पकड़वाया, जो देश के सीक्रेट कागजों को नेपाल पहुंचाने की कोशिश कर रही थी.’

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मिताली के कान खड़े हो गए. उस ने अक्षत के हाथ से रिमोट छीन कर वौल्यूम बढ़ा दिया. खबर चल रही थी.

‘कहा जा रहा है कि यह लड़की एक पत्रकार के रूप में संजय सहगल से मिलती रहती थी. उस के पास से कुछ सीक्रेट कागज भी मिले हैं, जिन का पकड़ा जाना एक बहुत ही बड़ी अचीवमैंट माना जा सकता है. पकड़ी गई लड़की का नाम रूही बताया जाता है. पुलिस ने रूही को हिरासत में ले लिया है और उस से पूछताछ कर रही है. अभी हमारी आईएएस संजय सहगलजी से बात नहीं हो पाई है. हम जल्द ही संजयजी से मुलाकात करेंगे. आप हमारे साथ बने रहिए. मिलते हैं एक छोटे से ब्रेक के बाद.’

‘‘वाओ… ममा, पापा ने जासूस पकड़वाया. ममा, पापा को तो इनाम मिलेगा न? वाओ… ममा, पापा को चैनल वाले इंटरव्यू के लिए ढूंढ़ रहे हैं. मेरी सारे दोस्तों में कितनी शान हो जाएगी. ममा, पापा आफिस पहुंचने वाले ही होंगे न? ममा, देखो न, पापा का आफिस दिखा रहे हैं. कैसे चैनल वाले पापा का इंतजार कर रहे हैं.’’

मिताली के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं. ‘यानी कि जब रात के 3 बजे रूही ही फोन कर रही थी, उसी समय पुलिस ने उसे पकड़ा था? जब मैं ने रूही के आने और उस की कही बातों को संजय से बताया था तो संजय ने यही प्लान बनाया था उसे अपने रास्ते से हटाने का? इसीलिए वह कह रहा था कि अगर रूही ने मुझे कुछ भी बताया तो अंजाम बुरा होगा? मेरा संजय, जिसे मैं पिछले 17 सालों से जानती हूं, उसे मैं कभी जान ही नहीं पाई? संजय इतना ज्यादा खतरनाक इनसान है?’ मिताली का पूरा शरीर सूखे पत्ते की तरह कांपने लगा.

‘एक मासूम लड़की को इस कदर फंसाया कि वह कहीं की नहीं रही? वह आदमी, जो सालों मेरे साथ सोता रहा, मुझे अपने प्यार की दुहाई देता रहा, जिसे मैं अपना सब कुछ मानती रही, वह इस कदर खतरनाक है? दरिंदा है?’ मिताली के रोंगटे खड़े हो गए थे. उस के माथे पर पसीने की बूंदें चमकने लगीं.

टीवी पर संजय की आवाज से मिताली की निगाहें फिर टीवी की तरफ उठ गईं.

‘‘देखिए, देखिए, मैं आप लोगों को अभी कुछ नहीं बता पाऊंगा, क्योंकि जैसे ही मुझे शक हुआ कि यह पत्रकार जासूसी कर रही है, मेरे कमरे से कुछ जरूरी कागजात गायब हुए हैं तो मैं ने फौरन पुलिस को शक की बिना पर इत्तला कर दी, बाकी पुलिस से पूछें कि उन्हें उस लड़की… का नाम है उस का…अं… रूई…’’ लोगों का तेज हंसी का ठहाका गूंजा था.

‘‘सर, रूही…’’ कोई पत्रकार बीच में से बोला.

‘‘एनीवे… जो भी उस का नाम है. आप  पुलिस से ही पूछें कि उस के घर से क्याक्या मिला है.’’

‘‘सर, सुना है आप का लैपटौप भी उस पत्रकार लड़की के घर से मिला है?’’

‘‘हां, मैं ने भी सुना है. डेढ़ साल पहले यह मेरी गाड़ी से चोरी हो गया था. मैं ने इस की रिपोर्ट भी दर्ज कराई थी. प्लीज, आप पुलिस से पूछताछ करें. मैं और कुछ नहीं जानता,’’ मिताली इंटरव्यू के बीच में ही सुनना छोड़, उठ कर दूसरे कमरे में आ गई.

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‘इतना झूठ. इतना धोखा. यह इनसान तो कभी भी, कुछ भी कर सकता है,’ मिताली का पूरा शरीर पत्ते की तरह कांप रहा था. ‘अपनेआप को ईमानदार और देशभक्त साबित करने के लिए संजय यहां तक गिर सकता है? प्रेम, दया, सहानुभूति और परिवार, ये सब बातें इस इनसान के लिए कोई माने नहीं रखतीं? एक तीर से दो वार? अपने सारे कुकर्मों का बोझ रूही के कंधों पर फेंक दिया?’ सोचसोच कर मिताली का सिर फटने लगा.

शाम को संजय बहुत ही अच्छे मूड में घर पहुंचा. अक्षत तो आते ही पिता से लिपट गया था. संजय के हाथ में 2-3 गिफ्ट पैक थे.

‘‘पापा, यू आर ब्रेव. वह पत्रकार कितनी धोखेबाज थी न, पापा. आप ने देखा, कई लेडीज ने कहा कि उसे तो सरेआम जूतेचप्पल मारने चाहिए. आज तो पार्टी होनी चाहिए, पापा.’’

संजय ठहाका मार कर हंसा था. अक्षत भी बहुत खुश था.

‘‘ये गिफ्ट पैक मेरे लिए हैं. इस की क्या जरूरत थी, पापा, आप ने तो हमें क्रिसमस का गिफ्ट तो पहले ही दे दिया है, इस बहादुरी को दिखा कर.’’

‘‘रियली. पर फिर भी हम आप की मम्मी को हर साल सरप्राइज गिफ्ट देते हैं. इसलिए आज कुछ दिन पहले ही ले आए. जानेमन, खोल कर नहीं देखोगी?’’ संजय ने हमेशा की तरह रोमांटिक मूड में कहा.

मिताली मुसकराई तो जरूर, पर मन की कंपन चेहरे से उतरी नहीं. नजरें चुरा कर वह किचन में चली गई.

‘हमेशा औरत ही बेवकूफ क्यों बनती है? यह सरप्राइज गिफ्ट, यह मुसकराहट, यह प्रेम प्रदर्शन के चोंचले’ हम औरतें क्यों फंस जाती हैं इन में? बेवकूफ तो हम दोनों ही बनीं, रूही 3 साल तक बनी और मैं… मैं पूरे 17 सालों से बनती आ रही हूं. पूरे 17 सालों से…? उस के बावजूद भुगतना भी हमें ही पड़ रहा है? क्यों? संजय तो ठहाके लगा रहा है. रूही के साथ क्या बीत रही होगी? एक देशद्रोही और जासूस के साथ क्याक्या हो सकता है? पुलिस उस की पिटाई भी कर सकती है, उसे बिजली के करंट भी लगा सकती है, उस के साथ कुछ भी…’ सोचसोच कर मिताली का सिर फटने लगा. फिर टीवी चलने लगा.

चैनल वाले बारबार संजय की वही क्लिपिंग दिखा रहे थे.

‘‘क्रिसमस की इस बार तुम ने शौपिंग नहीं की? कब चलोगी?’’ संजय ने मिताली से पूछा.

‘‘इस बार मैं आप के लिए ‘सरप्राइज गिफ्ट’ लाई हूं.’’ मिताली की आंखें एकटक संजय को देख रही थी.

संजय ने हैरत से देखा फिर मुसकराया, ‘‘भई वाह, मजा आ गया, लाइए.’’

मिताली ने कागजों का एक पुलिंदा संजय को थमा दिया.

‘‘यह क्या है? मेरे लिए कोई मकान खरीद लिया है क्या? पुलिंदा खोलतेखोलते संजय ने मिताली को देख कर हंसी उड़ाते हुए देखा.

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‘‘डायवोर्स पेपर?’’ संजय की आंखें फट सी गईं.

‘‘हां. मैं तुम्हें और यह घर छोड़ कर जा रही हूं. मैं ने रूही की डायरी की प्रतियां न्यूज चैनल वालों को दे दी हैं,’’ मिताली अपनी अटैची समेटने लगी.

मिताली के दिए 17 सालों के इस इकलौते क्रिसमस सरप्राइज गिफ्ट को पा कर संजय के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उसे टीवी पर हर जगह अपना ही नाम सुनाई देने लगा था.

वर्चस्व का मोह: किसने की आलोक के दादाजी की हत्या?

Serial Story: वर्चस्व का मोह (भाग-4)

किरण के तर्क में दम तो था, लेकिन देव फिलहाल उस से सहमत होने को तैयार नहीं था. उस ने तसवीरों को फिर गौर से देखा. फिर आलोक को फोन कर के बुलाया.

‘‘इन तसवीरों में दूल्हा और तुम्हारे दूसरे सभी दोस्त तो अपने कालेज के साथी ही हैं सिवा एक के जो हर तसवीर में तुम से सट कर खड़ा है,’’ देव ने टिप्पणी की.

‘‘वह मेरा बिजनैस पाटर्नर नकुल है सर. अमेरिका से कंप्यूटर में डिप्लोमा कर के आया है. आप को तो मालूम ही होगा सर, आईबीएम की एजेंसी लेने के लिए कंप्यूटर स्पैशलिस्ट होना अनिवार्य है, इस के अलावा इलैक्ट्रौनिक प्रोडक्ट्स बेचने का अनुभव और एक बड़े एअरकंडीशंड शोरूम का मालिक होना भी. मैं ने और नकुल ने साथ मिल कर ये सब शर्तें पूरी कर के जोनल डिस्ट्रिब्यूटरशिप ली है.’’

‘‘कब से जानते हो नकुल को?’’

‘‘बचपन से सर. हमारे घर में एक बहुत बड़ा जामुन का पेड़ है. हम दोनों अकसर उस पर बैठ कर कुछ बड़ा, कुछ हट कर करने की सोचा करते थे. उस पेड़ की तरह ही विशाल. नकुल तो इसी फिराक में अमेरिका निकल गया. मैं दादाजी के मोह और किरण की मुहब्बत में कहीं नहीं जा सका, मगर नकुल बचपन की दोस्ती और सपने नहीं भूला था. उस ने वापस आ कर मुझ से भी कुछ अलग और बड़ा करवा ही दिया.’’

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‘‘आलोक, इस केस को सुलझाने के लिए हो सकता है कि मुझे इन तसवीरों में मौजूद तुम्हारे सभी दोस्तों से पूछताछ करनी पड़े.’’

‘‘आप जब कहेंगे सब को ले आऊंगा सर, लेकिन उस से पहले अगर आप किरण से पूछताछ करें तो हो सकता है कोई अहम बात पता चल जाए.’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘मालूम नहीं सर, मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कि किरण को कुछ पता है, क्योंकि दादाजी की हत्या के बाद वह पहले वाली किरण नहीं रही है. हमेशा बुझीबुझी सी रहती है.’’

‘‘दादाजी से खास लगाव था उसे?’’

‘‘वह तो सभी को था सर. उन की शख्सीयत ही ऐसी थी.’’

‘‘दादाजी की हत्या की खबर सुनते ही तुम्हारे साथ कितने दोस्त आए थे?’’

‘‘कोई नहीं सर क्योंकि बंटी से यह सुनते ही कि दादाजी बेहोश हो गए हैं, मैं किसी से कुछ कहे बिना फौरन उस के स्कूटर के पीछे बैठ कर आ गया था.’’

‘‘कोई तुम्हारी तलाश में तुम्हारे पीछेपीछे नहीं आया?’’

‘‘नहीं सर,’’ आलोक ने इनकार में सिर हिलाया, ‘‘मुझे अच्छी तरह याद है कि उस रात तो डाक्टर और पुलिस के अलावा हमारे परिवार के साथ सिर्फ किरण के घर वाले ही थे. सुबह होने पर उन लोगों ने औरों को सूचित किया था.’’

अगली दोपहर को किरण के साथ इंस्पैक्टर देव को अपने शोरूम में देख कर आलोक हैरान रह गया, ‘‘खैरियत तो है सर?’’

‘‘फिलहाल तो है,’’ देव ने लापरवाही से कहा, ‘‘तुम ने कहा था कि किरण से पूछताछ करूं सो बातचीत करने को इसे यहां ले आया हूं. तुम्हारे बिजनैस पार्टनर नहीं है?’’

‘‘हैं सर, अपने कैबिन में.’’

‘‘तो चलो उन्हीं के कैबिन में बैठते हैं,’’ देव ने कहा.

आलोक दोनों को बराबर वाले कैबिन में ले गया. नकुल से देव का परिचय करवाया.

‘‘कहिए क्या मंगवांऊ. ठंडा या गरम?’’ नकुल ने औपचारिकता के बाद पूछा.

‘‘वे सब बाद में, अभी तो बस आलोक के दादाजी की हत्या के बारे में कुछ सवालों के जवाब दे दीजिए,’’ देव ने कहा.

नकुल एकदम बौखला गया, ‘‘उस बारे में भला मैं क्या बता सकता हूं? मुझे तो हत्या की सूचना भी किरण से अगली सुबह मिली थी.’’

‘‘यही तो मैं पूछना चाह रहा हूं नकुल कि जब पूरी शाम आप आलोक के साथ थे तो आप ने इसे बंटी के साथ जाते हुए कैसे नहीं देखा?’’

नकुल सकपका गया, लेकिन आलोक बोला, ‘‘असल में सर उस समय कंगना खेला जा रहा था और सब दोस्त एक घेरे में बैठ कर रवि को उत्साहित करने में लगे हुए थे.’’

‘‘बिलकुल. असल में मैं ने सब को रोका ही रवि को कंगने के खेल में जितवाने के लिए था,’’ नकुल तपाक से बोला.

‘‘मगर आप स्वयं तो उस समय वहां नहीं थे…’’

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‘‘क्या बात कर रहे हैं इंस्पैक्टर साहब?’’ नकुल ने उत्तेजित स्वर में देव की बात काटी, ‘‘मैं रवि की बगल में बैठ कर उस की पीठ थपथपा रहा था.’’

‘‘तो फिर आप इस तसवीर में नजर क्यों नहीं आ रहे?’’ देव ने अलबम दिखाया, ‘‘न आप इस तसवीर में हैं और न इस के बाद की तसवीरों में. आप तकलीफ न करिए, मैं ही बता देता हूं कि आप कहां थे?’’

‘‘बाथरूम में था, ज्यादा खानेपीने के बाद जाना ही पड़ता है,’’ नकुल ने चिढ़े स्वर में कहा.

‘‘जी नहीं, उस समय आप दादाजी के कमरे में थे,’’ देव ने शांत स्वर में कहा, ‘‘आप की योजना हो सकती है हत्या कर के फिर मंडप में आने की हो, लेकिन जल्दीजल्दी पेड़ से उतरते हुए आप के कपड़े खराब हो गए थे सो आप ने वापस आना मुनासिब नहीं समझा.’’

‘‘आप जो भी कह रहे हैं उस का कोई सुबूत है आप के पास?’’ नकुल ने चुनौती के स्वर में पूछा.

‘‘अभी लीजिए. जरा पीठ कर के खड़े होने की जहमत उठाएंगे आप और आलोक तुम भी इन के साथ पीठ कर के खड़े हो जाओ,’’

कह देव किरण की ओर मुड़ा, ‘‘इन दोनों को गौर से देखो किरण, प्राय: एक सा ही ढांचा है और अंधेरे में ढीलेढाले कुरते में यह पहचानना मुश्किल था कि पेड़ से कूद कर भागने वाला आलोक था या नकुल.’’

‘‘आप ठीक कहते हैं सर,’’ किरण चिल्लाई, ‘‘मुझे यह खयाल पहले क्यों नहीं आया कि नकुल ने भी आलोक के जैसे ही कपड़े पहने हुए थे और उस के पास तो हत्या करने की आलोक से भी बड़ी वजह थी. उस ने तो आईबीएम की एजेंसी लेने के लिए अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया था सर. वह नौकरी छोड़ कर और अपना ग्रीन कार्ड वापस कर के अमेरिका से वापस आया था…’’

आलोक ने किरण के कंधे पकड़ कर उसे झंझोड़ा, ‘‘यह क्या कह रही हो किरण, तुम ने पहले कभी तो बताया नहीं कि तुम ने किसी को भागते हुए देखा था?’’

‘‘कैसे बताती, उसे शक जो था कि भागने वाले तुम हो. इसीलिए बेचारी शादी टाल रही थी और गुमसुम रहती थी. संयोग से मुझ से मुलाकात हो गई और असलियत सामने आ गई… भागने की बेवकूफी मत करना नकुल, मेरे आदमियों ने तुम्हारा शोरूम घेरा हुआ है. मैं नहीं चाहूंगा कि तुम्हारे स्टाफ के सामने तुम्हें हथकड़ी लगा कर ले जाऊं, इसलिए चुपचाप मेरे साथ चलो, क्योंकि उस रात कमरे के दरवाजों, छत की मुंडेर वगैरह पर से पुलिस ने जो उंगलियों के निशान उठाए थे, वे तुम्हारी उंगलियों के निशानों से मिल ही जाएंगे. वैसे किरण ने वजह तो बता ही दी है, फिर भी मैं चाहूंगा कि तुम चलने से पहले आलोक को बता ही दो कि ऐसा तुम ने क्यों किया?’’ देव ने कहा.

‘‘हां नकुल, तूने तो मुझे भरोसा दिया था कि तू लाभ का पूरा ब्योरा दे कर दादाजी को मना लेगा या एक और शोरूम लेने की व्यवस्था कर लेगा, फिर तूने ऐसा क्यों किया?’’ आलोक ने दुखी स्वर में पूछा.

‘‘और करने को था ही क्या? दादाजी कुछ सुनने या अपने शोरूम का सामान छोटे शोरूम में शिफ्ट करने को तैयार ही नहीं थे और बड़ा शोरूम लेने की मेरी हैसियत नहीं थी. तेरे यह बताने पर कि तूने शोरूम अपने नाम करवा लिया है, मैं अपनी बढि़या नौकरी छोड़ और ग्रीन कार्ड वापस कर के यानी अपने भविष्य को दांव पर लगा यहां आया था. दादाजी यह जाननेसमझने के बाद भी कि कंप्यूटर बेचने में बहुत फायदा होगा, अपने वर्चस्व का मोह त्यागने को तैयार ही नहीं थे. उन की इस जिद के कारण मैं हाथ पर हाथ धर कर तो नहीं बैठ सकता था न?’’ नकुल ने कड़वे स्वर में पूछा.

‘‘अच्छा किया नकुल बता दिया, तुम्हारे लिए इतना तो करवा ही दूंगा कि जेल में तुम्हें एक दिन भी हाथ पर हाथ धर कर बैठना न पड़े,’’ देव की बात पर उस बोझिल वातावरण में भी आलोक और किरण मुसकराए बगैर न रह सके.

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Serial Story: वर्चस्व का मोह (भाग-3)

‘‘वैसा ही रेशमी कुरतापाजामा जैसा आलोक पहने हुए था. पापा ने मेरे छोटे भाई बंटी को फंक्शन हौल से आलोक को लाने भेजा. मेरा खयाल था कि आलोक वहां नहीं होगा, लेकिन बंटी आलोक को ले कर आ गया. गौर से देखने पर भी आलोक के कपड़ों पर पेड़ पर चढ़नेउतरने के निशान नहीं थे. और आलोक भी परिवार के अन्य सदस्यों की तरह ही हैरान था…’’

‘‘फिर तुम्हें यह शक क्यों है कि हत्यारा आलोक ही है?’’ देव ने बीच में पूछा.

‘‘क्योंकि अगले दिन जब पुलिस ने पेड़ के नीचे जूतों के निशान देखे तो वे जोधपुरी जूतियों के थे जिन्हें आलोक उस समय भी पहने हुए था. सही साइज का पता नहीं चल रहा था क्योंकि भागने की वजह से निशान अधूरे थे. आलोक शक के घेरे में आ गया, मगर उस ने अपने बचाव में रवि की शादी की वे तसवीरें दिखाई, जिन में वह उस समय तक रवि के साथ था जब तक बंटी उसे बुलाने नहीं गया था. पुलिस ने भले ही उसे छोड़ दिया हो, लेकिन मुझे लगता है कि वह आलोक ही था. एक तो पेड़ पर से चढ़नेउतरने का रास्ता उसे ही मालूम है, दूसरे दादाजी की मौत से फायदा भी उसे ही हुआ.

‘‘13वीं के तुरंत बाद उस ने एजेंसी लेने की प्रक्रिया शुरू कर दी थी. रहा सवाल तसवीर का, तो खाने और फेरों के दरम्यान तो लगातार तसवीरें कहां खिंचती हैं सर? फोटोग्राफर भी उसी दौरान खाना खाते हैं. फंक्शन हौल घर के पीछे ही तो था. दीवार फांद कर आनेजाने और तकिए से मुंह दबा कर किसी बुजुर्ग को मारने में समय ही कितना लगता है?’’

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‘‘तुम ने इस बारे में आलोक से बात की?’’

‘‘नहीं सर, आज पहली बार आप को बता रही हूं.’’

‘‘तुम ने अपनी सगाई या शादी कैसे टाली?’’

‘‘दादाजी की मृत्यु के तुरंत बाद तो सवाल ही नहीं उठता था. उस के बाद आलोक भी बहुत व्यस्त हो गया था. घर पर आता तो था, मगर पापा से सलाहमशवरा करने और मैं अपनी तरफ से उस से अकेले मिलने की कोशिश ही नहीं करती थी. साल भर बाद जब मां ने सगाई की जल्दी मचाई तो मैं ने उन से साफ कहा कि मुझे शादी से पहले कुछ समय चाहिए. आलोक के घर वाले भी उस की व्यस्तता के चलते अभी शादी करने की जल्दी में नहीं थे सो मेरे घर वाले भी मान गए.’’

‘‘और आलोक से मिलनाजुलना कैसे कम किया?’’

किरण मुसकराई, ‘‘उसे समझा दिया सर कि हमें ज्यादा मिलतेजुलते देख कर मां शादी जल्दी करवा देंगी. चूंकि आलोक भी धंधा जमने के बाद ही शादी करना चाहता था सो मान गया. वैसे भी उसे फुरसत तो थी नहीं, लेकिन अब जब भी फुरसत मिलती है आ जाता है और मां का शादी वाला राग शुरू हो जाता है. अब आप ही बताइए सर, ज

Serial Story: वर्चस्व का मोह (भाग-2)

किरण ने गहरी सांस ली, ‘‘हैं तो यहीं पड़ोस में, लेकिन मुलाकात कम ही होती है…’’

‘‘क्यों? बहुत व्यस्त हो गए हो तुम दोनों या कुछ खटपट हो गई है?’’ देव ने बात काटी.

‘‘इतने व्यस्त भी नहीं हैं और न ही हमारी जानकारी के अनुसार कोई खटपट हुई है. मुझे ही कोई गलतफहमी हो गई है शायद.’’ किरण हिचकिचाते हुए बोली, ‘‘उसी बारे में आप से बात करना चाह रही थी. आप के बारे में अकसर पढ़ती रहती हूं. कई बार आप से मिलना भी चाहा, मगर समझ नहीं आया कैसे मिलूं. सर, मुझे लगता है आलोक ने अपने दादाजी की हत्या की है.’’

देव चौंक पड़ा कि तो यह वजह है शादी न करने की. लेकिन किरण से पूछा, ‘‘शक की वजह?’’

‘‘जिस रात दादाजी की हत्या हुई मुझे लगता है मैं ने आलोक को छत से कूद कर भागते हुए देखा था. लेकिन आलोक का कहना है कि वह उस समय पिछली सड़क पर हो रही अपने दोस्त की शादी के मंडप में था. दादाजी की हत्या की सूचना भी उसे वहीं मिली थी.’’

‘‘लेकिन तुम्हें लगता है कि भागने वाला आलोक ही था?’’

‘‘जी, सर हत्या का कोई मकसद भी सामने नहीं आया. न तो कुछ चोरी हुआ था और न ही दादाजी की किसी से कोई दुश्मनी थी.’’

‘‘हत्या से किसी को व्यक्तिगत लाभ?’’

‘‘सिर्फ आलोक को जो केवल मुझे मालूम है क्योंकि दूसरों की नजरों में तो दादाजी वैसे ही सबकुछ उस के नाम कर चुके थे.’’

‘‘जो तुम्हें मालूम है या जो भी तुम्हारा अंदाजा है, मुझे विस्तार से बताओ किरण. मैं वादा करता हूं मैं जहां तक हो सकेगा तुम्हारी मदद करूंगा?’’

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‘‘मां का कहना था कि मुझे प्रवक्ता की नौकरी न करने दी जाए, क्योंकि  फिर मैं अपने दादाजी के फ्रिज और टीवी के शोरूम में बैठने वाले आलोक से शादी करने को मना कर दूंगी. पापा ने उन्हें समझाया कि आलोक खुद ही फ्रिज और टीवी बेचने के बजाय विदेशी कंप्यूटर की एजेंसी लेना चाह रहा है. इसी सिलसिले में कानूनी सलाह लेने उन के पास आया था. उस में कोई कानूनी अड़चन नहीं है. आलोक को बड़ी आसानी से एजेंसी मिल जाएगी और कंप्यूटर विके्रता से शादी करने में उन की लैक्चरार बेटी को कोई एतराज नहीं होगा.

‘‘मां ने फिर शंका जताई कि दादाजी अपनी बरसों पुरानी चीजों को छोड़ कर कंप्यूटर बेचने से रहे तो पापा ने बताया कि शोरूम तो दादाजी आलोक के नाम कर ही चुके हैं सो वह उस में कुछ भी बेचे, उन्हें क्या फर्क पड़ेगा. मां तो आश्वस्त हो गईं, लेकिन पापा का सोचना गलत था. दादाजी कंप्यूटर की एजेंसी लेने के एकदम खिलाफ थे. वे कंप्यूटर को फ्रिज या टीवी की तरह रोजमर्रा के काम आने वाली और धड़ल्ले से बिकने वाली चीज मानने को तैयार ही नहीं थे.

‘‘दादाजी ने शोरूम जरूर आलोक के नाम कर दिया था, लेकिन उसे चलाते अभी भी वे खुद ही थे, अपनी मनमरजी से. जिस ग्राहक को जितना चाहा उतनी छूट या किश्तों की सुविधा दे दी, कौन सा मौडल या ब्रैंड लेना बेहतर रहेगा, इस पर वे हरेक ग्राहक के साथ घंटों सलाहमशवरा और बहस किया करते थे. कंप्यूटर की एजेंसी लेने से तो उन की अहमियत ही खत्म हो जाती, जिस के लिए वे बिलकुल तैयार नहीं थे. उन्होंने आलोक से साफ कह दिया कि उन के जीतेजी तो उन के शोरूम में जो आज तक बिकता रहा है वही बिकेगा. कुछ दूसरा बेचने के लिए आलोक को उन की मौत का इंतजार करना होगा.

‘‘आलोक ने मुझे यह बात बताते हुए कहा था कि दादाजी के इस अडि़यल रवैए से मेरा कंप्यूटर विक्रेता बनने का सपना कभी पूरा नहीं होगा. मैं दादाजी का शोरूम संभालने को तैयार ही इस लालच में हुआ था कि आईबीएम की एजेंसी लूंगा वरना पापा और अशोक भैया की तरह मैं भी चार्टर्ड अकाउंटैंट बन कर उन के औफिस में बैठा रहूंगा. वैसे अभी भी मैं फ्रिजटीवी बेच कर तो रोटी कमाने से रहा. जब तक मैं अपने कैरियर का चुनाव न कर लूं किरण, मैं सगाईशादी के चक्कर में नहीं पड़ना चाहता.

‘‘मुझे उस की बात सही लगी और मैं ने उसे भरोसा दिलाया कि मैं किसी तरह सगाई टलवा दूंगी. इस से पहले कि मैं कोई बहाना खोज पाती, आलोक फिर आया. वह बहुत सहज लग रहा था. उस ने कहा कि मुझे परेशान होने की जरूरत नहीं है, सब ठीक हो जाएगा. कुछ रोज बाद हमारे सहपाठी रवि की शादी थी. आलोक उस की बारात में मेरे साथ खूब नाचा. खाने के बाद आलोक ने कहा कि रवि के सभी दोस्त उसे मौरल सपोर्ट देने को बिदाई तक रुक रहे हैं सो वह भी रुकेगा. उस ने मुझे भी ठहरने को कहा, मगर मुझे कुछ कापियां जांचनी थीं सो मैं घर वालों के साथ वापस आ गई.

‘‘आलोक के घर में एक जामुन का पेड़ है, जिस की शाखाओं ने हमारी आधी छत को घेरा हुआ है. मैं तब ऊपर छत वाले कमरे में रहती थी. आलोक और दादाजी का कमरा भी उन की छत पर था. दादाजी के सोने के बाद पेड़ की डाल के सहारे आलोक अकसर मेरे कमरे में आया करता था.’’

‘‘आया करता था यानी अब नहीं आता?’’ देव ने बात काटी.

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‘‘क्योंकि दादाजी की हत्या के बाद पापा ने मुझे अकेले ऊपर नहीं रहने दिया. हां, तो मैं बता रही थी कि उस रात पत्तों की आवाज सुन कर मुझे लगा कि आलोक आ गया है. मैं बाहर आई. पत्ते तो हिल रहे थे, लेकिन छत पर कोई नहीं था. मैं ने नीचे से झांक कर देखा तो पेड़ से उतर कोई भागता नजर आया और दादाजी के कमरे से उन के नौकर राजू के चिल्लाने की आवाजें आईं कि देखो दादाजी को क्या हो गया. मैं भाग कर नीचे आई और सब को राजू के चिल्लाने के बारे में बताया. हम लोग आलोक के घर गए. दादाजी के मुंह पर तकिया रख कर किसी ने दम घोंट कर उन की हत्या कर दी थी.

‘‘राजू दादाजी के लिए दूध ले कर ऊपर जा रहा था कि गिलास पर ढक्कन की जगह रखी कटोरी गिर सीढि़यों से झनझनाती हुई नीचे चली गई. शायद उसी की आवाज सुन कर हत्यारा कहीं छिप गया था. सब उस की तलाश करने लगे. मगर मैं ने किसी को नहीं बताया कि मैं ने हत्यारे को पेड़ से उतरते और दीवार फांदते देखा था. क्योंकि मैं ने उस की शक्ल तो नहीं सिर्फ लिबास देखा था.

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Serial Story: वर्चस्व का मोह (भाग-1)

नीना और राजन का गंभीरता से किसी मसले पर सलाहमशवरा करना ठीक वैसा ही हैरान कर देने वाला था जैसे हवा में दीपक का जलना. मगर आज दोनों बातचीत में इतने तल्लीन थे कि उन्हें देव के आने का पता भी नहीं चला.

‘‘इतना सन्नाटा क्यों है भई?’’

दोनों ने सिर उठा कर देखा. दोनों की ही आंखों में परेशानी के साथसाथ मायूसी भी थी.

‘‘खैरियत तो है न?’’ देव ने फिर पूछा.

‘‘हां भैया, घर में तो सब ठीक ही है…’’

‘‘तो फिर गड़बड़ कहां है?’’ देव ने राजन की बात काटी.

‘‘सोनिया की जिंदगी में भैया,’’ नीना बोली, ‘‘और वह भी बिना वजह… समझ नहीं आ रहा कैसे उस की मदद करें.’’

सोनिया नीना की खास सहेली थी और उस की ओर राजन का झुकाव भी देव की पैनी नजरों से छिपा नहीं था.

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‘‘पूरी बात बताओ,’’ देव ने आराम से बैठते हुए कहा, ‘‘हो सकता है मैं कुछ मदद कर सकूं.’’

राजन फड़क उठा…

‘‘सुन नीना, पहले तो सब ठीक ही था, जीजी का इनकार आलोक के दादाजी की हत्या के बाद ही शुरू हुआ है न… तो भैया ठहरे हत्या विशेषज्ञ, जरूर यह मसला भी सुलझा देंगे.’’

नीना ने चिढ़ कर राजन की ओर देखा, ‘‘हत्या से सोनिया बेचारी का क्या लेनादेना? खैर, फिर भी भैया आप सोनिया के लिए कुछ न कुछ सुझाव तो दे ही सकते हैं,’’ नीना बोली, ‘‘आप जानते ही हैं कि सोनिया ने भी राजन के साथ ही आईआईएम अहमदाबाद की प्रवेश परीक्षा दी है और उसे भरोसा है कि वह सफल हो जाएगी. मगर उस के घर वाले चाहते हैं कि परीक्षा का नतीजा आने से पहले ही वह शादी कर ले, फिर अगर उस की ससुराल वाले चाहें तो वह पढ़ाई जारी रख सकती है… पैसे की बात नहीं है भैया, सोनिया के पापा शादी के बाद भी पढ़ाई का पूरा खर्च उठाने को तैयार हैं.’’

‘‘शादी किस से हो रही है?’’ देव ने पूछा.

‘‘अभी तो सोनिया से कहा है कि उसे कोई पसंद है, तो बता दे. वे लोग उस की भी पढ़ाई का खर्चा उठाने को तैयार हैं और अगर उसे कोई पसंद नहीं है, तो वे ढूंढ़ लेंगे.’’

‘‘यानी किसी भी कीमत पर उन्हें सोनिया की शादी करनी है,’’ देव ने फिर नीना की बात काटी, ‘‘मगर क्यों?’’

नीना ने फिर गहरी सांस ली.

‘‘इस की वजह है सोनिया की जीजी किरण का अजीब व्यवहार. किरण की पड़ोस में रहने वाले आलोक से बचपन से दोस्ती थी और दोनों की सगाई की तारीख भी तय हो चुकी थी. लेकिन अचानक किरण ने शादी करने से मना कर दिया. आलोक से ही नहीं किसी से भी. उस का कहना है कि उसे शादी से इनकार नहीं है पर उसे कुछ समय दिया जाए. घर वालों ने 2 साल से ज्यादा समय दिया, मगर किरण अभी भी और समय चाहती है. घर वाले परेशान हो गए हैं. उन का खयाल है कि उन्होंने किरण को नौकरी करने की छूट दे कर गलती की है और यही गलती वे सोनिया के साथ नहीं दोहराना चाहते.’’

‘‘दूध का जला छाछ तो फूंकेगा ही. किरण के व्यवहार की वजह क्या है?’’ देव ने पूछा.

‘‘यही तो वह नहीं बतातीं. वजह पता चल जाए तो सोनिया सब को समझा तो सकती है कि उस के साथ ऐसा कुछ नहीं है. वह पढ़ाई खत्म होने पर शादी कर लेगी पर फिलहाल आईआईएम की पढ़ाई और शादी एकसाथ करना न तो मुमकिन है और न ही मुनासिब.’’

‘‘यह तो है. वह हत्या वाली बात… तुम क्या कह रहे थे राजन?’’

‘‘किरण और आलोक की सगाई से कुछ रोज पहले आलोक के दादाजी की हत्या हो गई थी. हत्या क्यों और किस ने की यह आज तक पता नहीं चल सका,’’ नीना ने बताया, ‘‘लेकिन इस से किरण के इनकार का क्या ताल्लुक?’’

‘‘हो भी सकता है. किरण और आलोक जानेपहचाने से नाम हैं,’’ देव कुछ सोचते हुए बोला, ‘‘ये लोग सुंदर नगर में पासपास की कोठियों में तो नहीं रहते?’’

‘‘जी हां,’’ नीना बोली, ‘‘आप कैसे जानते हैं?’’

‘‘ये दोनों कालेज में मेरे से 2 साल पीछे थे और मेरे निर्देशन में दोनों ने नाटकों में अभिनय भी किया था. हमारे एक नाटक ‘चोट’ का चयन अखिल भारतीय नाटक प्रतियोगिता में होने पर हम सब दूसरे शहरों में उस के मंचन के लिए भी गए थे और तब हमारी अच्छी दोस्ती हो गई थी. मैं ने एक बार जब आलोक से पूछा था कि किरण के साथ शादीवादी करने का इरादा है तो उस ने बड़ी गंभीरता से हां कहा था.’’

‘‘शादी के लिए इनकार आलोक नहीं किरण कर रही है. हालांकि आलोक ने भी अभी शादी की बात नहीं है. काम की व्यस्तता के कारण

2-3 साल पहले उस ने आईबीएम की एजेंसी ली और मार्केट में पैर जमाने के लिए बहुत भागदौड़ कर रहा था. अब धंधा जम गया है और वह शादी कर सकता है. यह सुन कर किरण के घर वाले बेचैन हो गए हैं. भैया, आप क्या आलोक से मिल कर किरण के इनकार की वजह नहीं पूछ सकते?’’ नीना ने पूछा.

‘‘जब इनकार किरण कर रही है तो आलोक से क्यों, किरण से क्यों नहीं? मुझे किरण से मिलवा सकती हो?’’

‘‘हां, जब भी आप कहें. शादी न करने के सिवा उन्हें और किसी बात से इनकार नहीं है,’’ नीना बोली, ‘‘मेरा मतलब है किसी से मिलनेजुलने से उन्हें कोई परहेज नहीं है. क्यों न मैं कल शाम को सोनिया के घर चली जाऊं और आप मुझे लेने वहां आ जाओ.’’

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‘‘ठीक है, मैं औफिस से निकलने से पहले तुम्हें फोन कर दूंगा ताकि तुम किरण से मुलाकात का जुगाड़ भिड़ा सको.’’

अगले दिन जब देव नीना को लेने पहुंचा तो वह किरण और सोनिया के  ड्राइंगरूम में बैठी हुई थी.

‘‘अरे सर, आप?’’ किरण चौंकी.

‘‘आप यहां कैसे वकीलनीजी?’’ देव ने भी उसी अंदाज में कहा, फिर नीना और सोनिया की ओर देख कर बोला, ‘‘मेरे एक नाटक में यह वकील की पत्नी बनी थी तब से मैं इसे वकीलनीजी ही बुलाता हूं. चूंकि मैं नाटक का निर्देशक और सीनियर था सो किरण तो मुझे सर कहेगी ही. लेकिन सोनिया, तुम ने कभी जिक्र ही नहीं किया कि तुम्हारी जीजी अखिल भारतीय नाटक प्रतियोगिता जीत चुकी हैं.’’

‘‘नीना ने भी कभी आप के बारे में कहां बताया? इन लड़कियों को किसी और के बारे में बात करने की फुरसत ही नहीं है,’’ किरण बोली, ‘‘सर, मुझे आप से कुछ सलाह लेनी है. कभी थोड़ा समय निकाल सकेंगे मेरे लिए?’’

‘‘कभी क्यों, अभी निकाल सकता हूं बशर्ते आप 1 कप चाय पिला दें,’’ कह देव मुसकराया.

‘‘चाय पिलाए बगैर तो हम ने आप को वैसे भी नहीं जाने देना था भैया,’’ सोनिया बोली, ‘‘मैं चाय भिजवाती हूं. आप इतमीनान से दीदी के कमरे में बैठ कर बातें कीजिए. मांपापा रोटरी कल्ब की मीटिंग में गए हैं, देर से लौटेंगे.’’

‘‘और बताओ वकीलनीजी, अपने मुंशीजी, मेरा मतलब है आलोक कहां है आजकल?’’ देव ने किरण के कमरे में आ कर पूछा.

आगे पढ़ें- देव चौंक पड़ा कि तो यह वजह है…

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Serial Story: मंजरी की तलाश

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