प्रश्नचिह्न- भाग 3: निविदा ने पिता को कैसे समझाया

घर पहुंचे निविदा को 2-3 दिन ही हुए थे कि एक दिन शाम को बिना किसी पूर्व सूचना के मालिनी उस के घर पहुंच गई.

‘‘कौन हो तुम?’’ एक अजनबी लड़की को दरवाजे पर बैग और अटैची के साथ खड़े देख कर मालिनी के पापा ने पूछा.

‘‘नमस्ते अंकल… नमस्ते आंटी… मैं मालिनी हूं… निविदा की बैस्ट फ्रैंड और उस की रूममेट.’’

इसी बीच निविदा बाहर आ गई. मालिनी को देख कर बुरी तरह चौंक गई, ‘‘मालिनी तू?’’

‘‘तू मुझ से बोल कर आई थी कि मम्मीपापा के साथ साउथ घूमने जाना है पर मैं समझ गई थी तू झूठ बोल रही है. इसलिए आ गई,’’ मालिनी बेबाकी से बोली.

उस की बोलचाल, चालढाल, उस के व्यक्तित्व से लग रहा था जैसे घर में तूफान आ गया है. उस की हरकतें देख कर निविदा व उस की मम्मी सुलेखा अपनेआप में सिमट रही थीं और निविदा के पापा उस संस्कारहीन लड़की को आश्चर्य से त्योरियां चढ़ाए देख रहे थे.

‘‘मालिनी तू क्यों… मेरा मतलब तू कैसे आ गई?’’ सकपकाई सी निविदा बोली.

‘‘अरे, ऐसे क्यों घबरा रही है… तेरे साथ छुट्टियां बिताने आई हूं…’’ वह उस की पीठ पर हाथ मारती हुई बोली, ‘‘चल, मेरा सामान अंदर रख और बाथरूम स्लीपर ले कर आ… आंटीजी, कुछ खानेपीने का इंतजाम कर दीजिए. बहुत भूख लगी है.’’

सुलेखा किचन में घुस गईं. निविदा उस का सामान अंदर रख बाथरूम स्लीपर उठा लाई. मालिनी ने आराम से जूते खोल स्लीपर पहन कहा, ‘‘जा मेरे जूते भी कमरे में रख. मेरी अटैची से तौलिया निकाल लाना.’’ निविदा के तौलिया लाने पर मालिनी वाशरूम में घुस गई.

निविदा के पापा को निविदा के साथ उस का नौकरों जैसा व्यवहार अखर गया. सुलेखा पकौड़े बना लाईं.

मालिनी फ्रैश हो कर टेबल पर आ गई. पूछा, ‘‘क्या बनाया आंटी? वाह पकौड़े… तू भी खा निविदा. क्या स्वादिष्ठ पकौड़े बनाए हैं आंटी… इस निविदा को भी सिखा दीजिए… कभीकभी पीजी होस्टल के रूम में ऐसे ही पकौड़े बना कर खिला दिया करना.’’

‘‘निविदा तुम्हारी नौकरानी है न,’’ एकाएक निविदा के पापा बुदबुदाए.

‘‘अंकल कुछ कहा आप ने?’’

मगर उन्होंने कोईर् जवाब नहीं दिया. रात को मालिनी कमरे में निविदा से अपने व्यवहार के लिए माफी मांग रही थी.

‘‘पर तू ऐसा कर क्यों रही है… मेरे पापा के मन में मेरी बैस्ट फ्रैंड की इमेज खराब हो जाएगी.’’

‘‘तू देखती जा कि मैं क्या करती हूं.’’

दूसरे दिन नाश्ते की टेबल पर सब चुपचाप नाश्ता कर रहे थे. लेकिन मालिनी का घमासान जारी था. वह निविदा को किसी न किसी चीज के लिए किचन में दौड़ा रही थी.

‘‘अच्छा, वह अखबार भी उठा कर देना तो जरा निविदा,’’ वह इतमीनान से टोस्ट के ऊपर आमलेट रख कर खाते हुए बोली.

निविदा ने अखबार ला कर उसे दे दिया. फ्रंट पेज पर समाचार समलैंगिक संबंधों पर कोर्ट की मुहर लगने को ले कर था.

‘‘तुझे पता है निविदा, समलैंगिकता क्या होती है?’’ एकाएक मालिनी बोली.

निविदा के पापा के हाथ से टोस्ट छूटतेछूटते बचा. उन्होंने गुस्से से भरी नजरों से निविदा की तरफ देखा. निविदा को काटो तो खून नहीं.

‘‘चुप मालिनी बाद में बात करेंगे,’’ वह किसी तरह बोली.

‘‘अरे बाद में क्या… देख न अंदर क्या समाचार छपा है… एक पिता ने अपनी तीनों बेटियों से रेप किया… कितने वहशी होते हैं ये पुरुष… अपनी शारीरिक क्षमता पर बहुत घमंड है इन्हें… औरत को कमजोर समझते हैं… औरत इन के लिए एक शरीर मात्र है… 2 टांगों के बीच कुदरत ने इन्हें जो दिया है न उस के बल पर दुनिया रौंदने चले हैं… न रिश्ता देखते हैं, न उम्र… न समय देखते हैं न परिस्थिति… हर तरह से औरत का इस्तेमाल करना, फायदा उठाना शगल है इन का… बीवी के रूप में भी औरत का शोषण करते हैं. कमजोर मानसिकता के खुद होते हैं और मारतेपीटते, सताते बीवियों को हैं… मेरा पति ऐसा करेगा तो हाथपैर तोड़ कर रख दूंगी…’’

निविदा और सुलेखा सन्न बैठी रह गईं. पापा के सामने मालिनी की ऐसी बेबाकी से निविदा की टांगें कांपने लगीं. हाथ से दूध का गिलास छूट गया. गिलास तो फूटा ही, नाश्ते की प्लेट भी नीचे गिर कर टूट गई.

‘‘निविदा,’’ पापा की कु्रद्ध दहाड़ गूंजी, ‘‘तमीज नहीं है तुम्हें… इसीलिए भेजा है तुम्हें घर से बाहर पढ़ने कि तुम समय देखो न जगह… कुछ भी डिसकस करने लग जाओ.’’

निविदा को लगा कि पापा का गुस्सा आज या तो उस की मम्मी को हलाल करेगा या फिर उसे.

लेकिन मालिनी इतमीनान से बोली, ‘‘यह क्या निविदा… दूध पीती बच्ची है क्या अभी… चीजें गिराती रहती है… और तू कांप क्यों रही है… हर वक्त कांपती रहती है, क्लास में… कालेज में टीचर्स के सामने, लड़कियों के सामने. मैं सोचती थी तू वहीं कांपती है. डरपोक कहीं की. अंकल इसे किसी मनोचिकित्सक को दिखाइए… मानसिक रूप से बीमार है आप की बेटी.’’

निविदा के पापा गुस्से में नाश्ता पटक कर बाहर चले गए. निविदा खुद को संयत नहीं कर पा रही थी. मालिनी के सामने तो पापा ने किसी तरह खुद को नियंत्रित कर लिया पर इस का खमियाजा उसे बाद में भुगतना पड़ेगा.

पापा के जाने के बाद मालिनी निविदा को खींच कर कमरे में ले गई और छाती से चिपका लिया, ‘‘डर मत निविदा, तेरा डर ही तेरा दुश्मन है. अकसर हमारे अंदर के डर का दूसरे फायदा उठाते हैं. तेरे घर का वातावरण और तेरे पापा के व्यवहार, क्रोध व ज्यादतियों ने तेरे अंदर डर भर दिया है और मैं तेरा यह डर दूर कर के रहूंगी.’’

निविदा देर तक मालिनी के कंधे पर सिर रख कर रोती रही. उस के पापा इस कुसंस्कारी, दिशाहीन, वाचाल लड़की को जितना अपनी नजरों से दूर रखना चाहते, वह उतना ही उन के आसपास मंडराती. निविदा मन ही मन कामना कर रही थी कि मालिनी के रहते हुए घर में कोई अप्रिय स्थिति न खड़ी हो… कहीं पापा मम्मी की धुनाई कर के अपना गुस्सा न निकाल दें या फिर मालिनी को ही कुछ उलटासीधा बोल दें.

मालिनी को आए 1 हफ्ता होने वाला था. एक दिन एकाएक निविदा के

फोन पर किसी लड़के के दोस्ताना मैसेज आने लगे. वह कोई गलत बात तो नहीं करता पर उस के प्रोफाइल फोटो पर बड़े प्यारे कमैंट करता. उसे दोस्त बनाने को उत्सुक दिखता.

निविदा बहुत परेशान हो रही थी कि न जाने कौन लड़का है. प्रोफाइल पिक्चर देखी तो काफी आकर्षक लगा. फिर मालिनी से अपनी परेशानी कही, ‘‘पता नहीं इस के पास मेरा नंबर कहां से आ गया… कहीं पापा को पता चल गया तो…’’

‘‘अरे, तू इतना डरती क्यों है? कोई ऐसीवैसी बात तो नहीं लिख रहा न… इस उम्र में दोस्ती, थोड़ीबहुत ऐसी हलकीफुलकी बातें जायज हैं. लड़केलड़की की दोस्ती कोई बुरी बात नहीं. जब तक कुछ बुरा नहीं कह रहा चुप रह.’’

यह सुन कर निविदा नहाने चली गई.

मालिनी ने निविदा का मोबाइल उठा कर चुपचाप लौबी में अखबार पढ़ते उस के पापा के सामने टेबल पर रख दिया. मैसेज लगातार आ रहे थे. लगातार बजती मैसेज टोन से परेशान उस के पापा ने निविदा का मोबाइल उठाया और चैक करने लगे. किसी लड़के के मैसेज निविदा के मोबाइल पर और वे भी ऐसे दिलकश अंदाज में, साथ ही उस ने अपने कई फोटो भी भेजे थे. उन्हें समझ नहीं आया कि पहले मोबाइल पटकें या निविदा को या फिर मालिनी को घर से निकालें… बस बहुत हो गई बाहर रह कर पढ़ाई.

‘‘निविदा… सुलेखा…’’ वे बहुत जोर से चिल्लाए.

कागज का रिश्ता- भाग 3: क्या परिवार का शक दूर हुआ

‘‘ऐसा मत कहिए. मोहन सिर्फ मेरा पत्र मित्र है और कुछ नहीं. मेरे मन में आप के प्रति गहरी निष्ठा है. आप मुझ पर शक कर रहे हैं,’’ कहते हुए विभा की आंखों से आंसुओं की धारा बहने लगी.

‘‘तुम चाहे अब अपनी कितनी भी सफाई क्यों न दो लेकिन मैं यह नहीं मान सकता कि मोहन तुम्हारा केवल पत्र मित्र है. कौन पति यह सहन कर सकता है कि उस की पत्नी को कोई पराया मर्द प्रेमपत्र भेजता रहे,’’ मुकेश का स्वर अब नफरत में बदलने लगा था.

‘‘आप पत्र पढ़ कर देख लीजिए, यह कोई प्रेमपत्र नहीं है,’’ विभा ने जल्दी से मोहन का पत्र दराज से निकाल कर मुकेश के आगे रखते हुए कहा.

‘‘यह पत्र अब तुम अपने भविष्य के लिए संभाल कर रखो,’’ मुकेश ने मोहन का पत्र विभा के मुंह पर फेंकते हुए कहा.

‘‘तुम जानते नहीं हो मुकेश, मेरी दोस्ती सिर्फ कागज के पत्रों तक ही सीमित है. मेरा मोहन से ऐसावैसा कोई संबंध नहीं है. अब मैं तुम्हें कैसे समझाऊं?’’ विभा अब सचमुच रोने लगी थी.

‘‘तुम मुझे क्या समझाओगी? शादी के बाद भी तुम्हारी आंखों में मोहन का रूप बसता रहा. तुम्हारे हृदय में उस के लिए हिलोरें उठती हैं. मैं इतना बुद्धू नहीं हूं, समझीं,’’ मुकेश पलंग से उठ कर सोफे पर जा लेटा.

विभा देर तक सुबकती रही.

अगली सुबह मुकेश कुछ जल्दी ही उठ गया. जब तक विभा अपनी आंखों को मलते हुए उठी तब तक तो वह जाने के लिए तैयार भी हो चुका था. विभा ने आश्चर्य से घड़ी की तरफ देखा, 8 बज रहे थे. विभा घबरा कर जल्दी से रसोई में पहुंची. वह मुकेश के लिए नाश्ता बना कर लाई, परंतु वह जा चुका था.

विभा मुकेश को दूर तक जाते हुए देखती रही, नाश्ते की प्लेट अब तक उस के हाथों में थी.

‘‘क्या हुआ, बहू?’’ दरवाजे के बाहर खड़ी उस की सास ने भीतर आते हुए पूछा.

‘‘कुछ नहीं, मांजी,’’ विभा ने सास से आंसू छिपाते हुए कहा.

‘‘मुकेश क्या नाश्ता नहीं कर के गया?’’ उन्होंने विभा के हाथ में प्लेट देख कर पूछा.

‘‘जल्दी में चले गए,’’ कहते हुए विभा रसोई की तरफ मुड़ गई.

‘‘ऐसी भी क्या जल्दी कि आदमी घर से भूखा ही चला जाए. मैं देख रही हूं, तुम दोनों में कई दिनों से कुछ तनाव चल रहा है. बात बढ़ने से पहले ही निबटा लेनी चाहिए, बहू. इसी में समझदारी है.’’

शाम को मुकेश दफ्तर से लौटा तो मां ने उसे अपने समीप बैठाते हुए कहा, ‘‘मुकेश, आजकल इतनी देर से क्यों लौटता है?’’

‘‘मां, दफ्तर में आजकल काम कुछ ज्यादा ही रहता है.’’

‘‘आजकल तू उदास भी रहता है.’’

‘‘नहींनहीं, मां,’’ मुकेश ने बनावटी हंसी हंसते हुए कहा.

‘‘आज कोई पुरानी फिल्म डीवीडी पर लगाना,’’ मां ने हंसते हुए कहा.

‘‘अच्छा,’’ कहते हुए मुकेश उठ कर अपने कमरे में चला गया.

दिनभर के थके और भूख से बेहाल हुए मुकेश ने जैसे ही कमरे की बत्ती जलाई, उसे अपने बिस्तर पर शादी का अलबम नजर आया. कपड़े उतारने को बढ़े हाथ अनायास ही अलबम की तरफ बढ़ गए. वह अलबम देखने बैठ गया. हंसीठिठोली, मानमनुहार, रिश्तेदारों की चुहलभरी बातें एक बार फिर मन में ताजा हो उठीं. तभी विभा ने चाय का प्याला आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘‘लीजिए.’’

मुकेश का गुस्सा अभी भी नाक पर चढ़ा था, पर उस ने पत्नी के हाथ से चाय का प्याला ले लिया. विभा फिर रसोईघर में चली गई.

मुकेश जब तक हाथमुंह धो कर बाथरूम से निकला, परिवार रात के खाने के लिए मेज पर बैठ चुका था. विमला देवी ने बेटे को पुकारा, ‘‘मुकेश, आओ बेटे, सभी तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं.’’

कुरसी पर बैठते हुए मुकेश सामान्य होने का प्रयत्न कर रहा था, पर उस का रूखापन छिपाए नहीं छिप रहा था. सभी भोजन करने लगे तो विमला देवी बोलीं, ‘‘आज मुकेश जल्दीजल्दी में नाश्ता छोड़ गया तो विभा ने भी पूरे दिन कुछ नहीं खाया.’’

‘‘पतिव्रता स्त्रियों की तरह,’’ राकेश ने शरारत से हंसते हुए कहा.

विमला देवी भी मुसकराती रहीं, पर मुकेश चुपचाप खाना खाता रहा. गरम रोटियां सब की थालियों में परोसते हुए विभा ने यह तो जान लिया था कि मुकेश बारबार उस को आंख के कोने से देख रहा है, जैसे कुछ कहना चाहता हो, पर शब्द न मिल रहे हों.

रात में बिस्तर पर बैठते हुए विभा बोली, ‘‘देखिए, मेरे दिल में कोई ऐसीवैसी बात नहीं है. हां, आज तक मैं अपने बरसों पुराने पत्र मित्रों के पत्रों को सहज रूप में ही लेती रही. मेरे समझने में यह भूल अवश्य हुई कि मैं ने कभी गंभीरता से इस विषय पर सोचा नहीं…’’

मुकेश चुपचाप दूसरी तरफ निगाहें फेरे बैठा रहा. विभा ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा, ‘‘आज दिनभर मैं ने इस विषय पर गहराई से सोचा. मेरी एक साधारण सी भूल के कारण मेरा भविष्य एक खतरनाक मोड़ पर आ खड़ा हुआ है. हम दोनों की सुखी गृहस्थी अलगाव की तरफ मुड़ गई है. मैं आज ही आप के सामने इन कागज के रिश्तों को खत्म किए देती हूं.’’

यह कहते हुए विभा ने बरसों से संजोया हुआ बधाई कार्डों व पत्रों का पुलिंदा चिंदीचिंदी कर के फाड़ दिया और मुकेश का हाथ अपने हाथ में लेते हुए धीरे से कहा, ‘‘मैं आप को बहुत प्यार करती हूं. मैं सिर्फ आप की हूं.’’

शक के कारण अपनत्व की धुंधली पड़ती छाया मुकेश की पलकों को गीला कर के उजली रोशनी दे गई. वह पत्नी के हाथ को दोनों हाथों में दबाते हुए बोला, ‘‘मुझे अब तुम से कोई शिकायत नहीं है, विभा. अच्छा हुआ जो तुम्हें अपनी गलती का एहसास समय रहते ही हो गया.’’

‘‘जो कुछ हम ने कहासुना, उसे भूल जाओ,’’ विभा ने पति के समीप आते हुए कहा.

‘‘मुझे गुस्सा तुम्हारी लापरवाही ने दिलाया. एक के बाद एक तुम्हारे पत्र आते चले गए और मेरी स्थिति अपने परिवार में गिरती चली गई. जरा सोचो, अगर घर के बुजुर्ग इन पत्रों को गलत नजरिए से देखने लगते तो परिवार में तुम्हारी क्या इज्जत रह जाती?’’ मुकेश ने धीमे स्वर में कहा.

विभा कुछ नहीं बोली. मुकेश ने अपनी बात जारी रखते हुए आगे कहा, ‘‘उस शाम जब राकेश ने तुम्हारा वह पत्र मेरे हाथों में दिया था तो तुम नहीं जानतीं, वह कैसी विचित्र निगाहों से तुम्हें ताक रहा था. वह लांछित दृष्टि मैं बरदाश्त नहीं कर सकता, विभा. हम ऐसा कोई काम करें ही क्यों जिस में हमारे साथसाथ दूसरों का भी सुखचैन खत्म हो जाए?’’

‘‘आप ठीक कह रहे हैं,’’ विभा ने इस बार मुकेश की आंखों में देखते हुए कहा. उस ने मन ही मन अपने पति का धन्यवाद किया. जिस तरह मुकेश ने भविष्य में होने वाली बदनामी से विभा को बचाया, यह सोच कर वह आत्मविभोर हो उठी. फिर लाइट बंद कर सुखद भविष्य की कल्पना में खो गई.

प्रश्नचिह्न- भाग 4: निविदा ने पिता को कैसे समझाया

सुलेखा किचन से गिरतीपड़ती बाहर निकल आईं. अपने कमरे में बैठी निविदा को अपने पापा की इतनी ऊंची दहाड़ का कारण समझ नहीं आया पर मालिनी को सब समझ आ रहा था. वह अपना सामान पैक कर चुकी थी. आज वह निर्णय ले चुकी थी कि नाटक से परदा उठाना है.

‘‘जा तेरे पापा बुला रहे हैं,’’ मालिनी बोली.

‘‘पर क्यों… इतना गुस्सा?’’ निविदा डर के कारण थरथर कांप रही थी, ‘‘तूने फिर कुछ कर दिया क्या?’’

‘‘कुछ नहीं किया मैं ने… तू जा तो सही,’’ उस ने निविदा को कमरे से बाहर धकेल दिया.

‘‘जी पापा,’’ निविदा हकलाते हुए बोली.

‘‘कौन है यह?’’

‘‘क… कौन?’’

‘‘यह लड़का. इसीलिए भेजा है तुझे चंडीगढ़ कि तू लड़कों के साथ गुलछर्रे उड़ाए? ऐसी बिगड़ैल, संस्कारहीन आवारा लड़कियों के साथ दोस्ती करे?’’

‘‘कौन लड़का पापा? मुझे नहीं पता आप किस की बात कर रहे?’’ पर फिर

पापा के हाथ अपना मोबाइल देख कर निविदा का सिर चकरा गया.

‘‘बुला अपनी उस सहेली को बाहर. बहुत हो गई बाहर रह कर पढ़ाई. अब तू यहीं रह कर पढ़ेगी. तेरी मम्मी के उलटेसीधे अरमान हैं ये. यहां कालेज नहीं हैं क्या?’’

पापा का गुस्सा देख कर निविदा थरथर कांप रही थी. सबकुछ समझ गई थी…

मालिनी ने उस का भविष्य खत्म कर दिया…

‘‘मैं इस लड़के की अभी पुलिस में रिपोर्ट करता हूं,’’ निविदा के पापा बोले.

‘‘ऐसा क्यों कर रहे हैं आप? पहले निविदा को आराम से बैठा कर पूछ तो लीजिए कि कौन है यह,’’ सुलेखा बोलीं.

‘‘तू चुप रह. तेरी सह पर ही बिगड़ी है,’’ एकाएक निविदा के पापा का एक झन्नाटेदार थप्पड़ सुलेखा के गाल पर पड़ गया.

अब तक मालिनी भी लौबी में आ चुकी थी. वह बोली, ‘‘यह क्या कर रहे हैं अंकल आप… शर्म आनी चाहिए आप को.’’

‘‘तुम चुप रहो. मेरे परिवार के बीच में बोलने का तुम्हें कोई हक नहीं है. मेरी बेटी को बिगाड़ कर रख दिया है तुम ने. नौकर बना कर रखा है इसे इतने दिनों से,’’ निविदा के पापा भी उतने ही गुस्से में चिल्लाए.

‘‘नीचे सुर में बात कीजिए अंकल मुझ से. निविदा की तरह दहाड़ सुनने की

आदत नहीं है मुझे,’’ मालिनी तैश में बोली, ‘‘अभी आप मुझे संस्कारहीन कह रहे थे. आप में कौन से संस्कार हैं. निविदा को मैं ने नहीं बिगाड़ा है, बल्कि मैं तो उसे मजबूत बनाना चाहती हूं. बिगाड़ा तो आप ने है उस का भविष्य. कभी सोचा है जिस बेटी के मनमस्तिष्क में इतना डर भर दिया है, जो अपने ही घर में हर कदम पर हारती रहती है वह घर से बाहर की दुनिया से कैसे जीतेगी? आज मेरा उस से नौकरों जैसा व्यवहार आप को चुभ रहा है, लेकिन आप ने उसे जितना आत्महीन व डरपोक बना दिया है, कल जमाना दबाएगा उसे.

‘‘विवाह के बाद आप जैसा ही कोई पुरुष उस का फायदा उठाएगा. कैसे लड़ेगी निविदा? अपने जीवन की छोटी सी भी कठिनाई से, परेशानी से… हर जगह आप खुद तो नहीं खड़े रहेंगे न उस के साथ. आंटी का जीवन नर्क बना दिया आप ने. आप की पत्नी हैं ये. क्या कुसूर है इन का? शरीर पर पड़ी आप की मार, इन के मनमस्तिष्क को उस से भी ज्यादा घायल कर देती होगी? बेटी के सामने और कर गई होगी… आज बेटी की सहेली के सामने. अगर इतना ही जोर से आंटी मार दे आप को इस समय तो कैसा लगेगा आप को?

‘‘सिर्फ पुरुष हैं. शारीरिक ताकत है. इस ताकत पर कूद रहे हैं आप? घर का माहौल इतना दमघोटू बना रखा है आप ने. मैं 2 ही दिनों में उकता गईर्. ये दोनों जिंदगी कैसे बिता रही होंगी? किसी विषय पर बात नहीं कर सकती निविदा आप के सामने. कहां जाए वह किसी विषय पर बात करने? इकलौती बेटी. पहले भरेपूरे परिवार होते थे अंकल, आजकल 1-2 बच्चे, मातापिता ही सरपरस्त, मातापिता ही दोस्त. अगर मातापिता दोस्त नहीं बनेंगे तो बच्चे बाहर भटकेंगे… इतनी अकल 20 साल की उम्र में मुझे भी है, फिर आप को क्यों नहीं है… सैक्स, समलैंगिकता, लिव इन रिलेशन, लड़कों से दोस्ती… क्या है इन बातों में ऐसा, जो आप से बात नहीं कर सकती निविदा? किसी लड़के से दोस्ती कोई गुनाह क्यों है आप की नजरों में? कौन सी सदी में जी रहे हैं आप?

‘‘और मुझे क्या निकालेंगे आप घर से. मैं खुद यहां रहना नहीं चाहती पर निविदा को समेट लीजिए अंकल, हर जगह मालिनी नहीं मिलेगी इसे… यहां पर तो मैं इस के साथ ऐक्टिंग कर रही थी… पर कालेज में जब मुझे यह पहली बार मिली थी तब ऐक्टिंग नहीं की थी मैं ने. इसे मिलने वाला हर इंसान मालिनी नहीं होगा, जो इस की असलियत जान कर गलत फायदा न उठाए और जिस लड़के के मैसेज निविदा के लिए आ रहे हैं वह मेरा भाई है. मैं ने ही कहा था उसे. स्वस्थ दोस्ती कोई गुनाह नहीं होती. अब नहीं आएंगे मैसेज… इतना मत दबाइए निविदा को कि उबरने में उस की पूरी जिंदगी खप जाए.

‘‘कमजोर पुरुष हैं आप… जिस बात का समाधान नहीं सूझा, आप ने आंटी को पीट कर निकाला और आप की मारपीट व झगड़े ने निविदा को मानसिक रोगी बना दिया था. आंटी ने छिपछिप कर इस का इलाज कराया… ऐसा न हो आप की ये हरकतें से फिर मानसिक रोगी बना दें और इस बार शायद हमेशा के लिए…’’ कहतेकहते मालिनी की आंखों में आंसू आ गए. कंठ अवरुद्ध हो गया. उस ने निविदा को एक बार गले लगाया और फिर भरी आंखों से एक प्रश्नचिह्न मालिनी के पापा की तरफ उछालती हुए अपना बैग कंधे पर डाल अटैची ड्रैग करती हुए बाहर निकल गई. रोती हुई निविदा अपने कमरे में चली गई.

निविदा के पापा हारे हुए खिलाड़ी की तरह अपनी जगह खड़़े रह गए. सुलेखा भी एक घृणित नजर उन पर डालती हुईं निविदा के पीछे चली गईं. मालिनी वह सब कह गई थी जो वे दोनों वर्षों से कहना चाहती थीं.

निविदा के पापा काफी देर हताश से वैसे ही खड़े रहे. इतने कड़े और स्पष्ट शब्दों में उन्हें आईना कोई नहीं दिखा पाया था. फिर अचानक उन की आंखों से आंसू निकले कि सचमुच बड़ी गलती कर गए जीवन में. उन की फूल सी बच्ची मनोचिकित्सक के चक्कर काट चुकी है नन्ही सी उम्र में और उन्हें पता ही नहीं. मालिनी उन के सामने एक प्रश्नचिह्न टांग गई थी. वे उठे और मालिनी के कमरे की तरफ चल दिए… जो कुछ बचा था उसे समेटने के लिए… मालिनी के प्रश्नचिह्न का जवाब लिखने के लिए.

तालमेल- भाग 3: आखिर अभिनव में क्या थी कमी

‘‘सौरी शेखर, तुम्हें डिस्टर्ब किया.’’

‘‘अरे ऋतु… माफ करना तुम्हें रिसीव करने नहीं आ सका,’’ उस ने आवाज पहचान कर कहा.

‘‘मैं तुम्हारी दुविधा समझ रही हूं शेखर इसीलिए मैं ने तुम्हें लतिका और राशि के घर पहुंचने से पहले फोन किया है. मेरा तुम से अकेले में मिलना बहुत जरूरी है. प्रणव के औफिस जाने के बाद मैं तुम्हें फोन करूंगी.’’

ऋतु ने रिसीवर रखा ही था कि बाहर गाड़ी के रुकने की आवाज आई. शेखर बाहर आ गया.

‘‘सास कैसी लगी राशि?’’

‘‘बहुत थकी हुई और कुछ हद तक डरी हुई,’’ राशि हंसी, ‘‘प्रणव बता रहा था कि उन्होंने पहली बार इतना लंबा सफर अकेले किया है, महज मुझे देखने के लिए.’’

‘‘मगर थकान और घबराहट की वजह से ठीक से देख भी नहीं सकीं,’’ शेखर हंसा.

‘‘बहुत अच्छी तरह से देखा पापा और मम्मी से फोन नंबर भी लिया कि सुबह आप का धन्यवाद करेंगी कि आप ने उन के बेटे को मेरे लिए पसंद किया है,’’ राशि इतराई.

‘‘ज्यादा न इतरा,’’ लतिका बोली, ‘‘उस का बेटा तुम से इक्कीस ही होगा उन्नीस नहीं.’’

‘‘यह उन्नीसइक्कीस का चक्कर छोड़ कर सो जाओ अब,’’ शेखर बोला.

मगर वह खुद सो नहीं सका. यही सोचता रहा कि क्यों मिलना चाह रही है ऋतु उस से?

अगले दिन ऋतु ने प्रणव के औफिस जाते ही शेखर को फोन कर के अपने घर बुला लिया. ऋतु को देखते ही शेखर को लगा कि प्रणव ने सिर्फ कदकाठी और चेहरे की लंबाई बाप की ली है अन्य नैननक्श तो ऋतु के ही हैं यानी वह शतप्रतिशत प्रणव की मां है. अपनी गलती का सही सुबूत मिलते ही वह ग्लानि और अपराधबोध से ग्रस्त हो गया.

‘‘मेरा यकीन करो शेखर, मैं ने प्रणव को भारत आने से बहुत रोका, लेकिन वह नहीं माना और भारत आ गया. वह भी इसी शहर में और उसी कंपनी में माल बेचने जिस में तुम्हारी बेटी काम करती है. इस सब से तुम्हें जो तकलीफ पहुंची है उस का अंदाजा मुझे है और उसी की क्षमायाचना के लिए मैं ने तुम्हें यहां…’’

‘‘तुम ने अभी कहा ही क्या है ऋतु जिस की तुम क्षमा मांग रही हो,’’ शेखर बीच में ही बोला, ‘‘तुम जो भी चाहे कहो, क्योंकि तुम्हारी व्यथा जो तुम ने मेरी गलत रिपोर्ट जानने के बाद झेली…’’

‘‘कौन सी गलत रिपोर्ट?’’ ऋतु ने हैरानी से पूछा.

‘‘वही जो प्रणव के रूप में मेरा मुंह चिढ़ा रही है और मुझे मजबूर कर रही है कि मैं अपने पेशे से संन्यास ले लूं. अगर अपने दोस्त की ही सही जांच नहीं कर सका तो गैरों की क्या करूंगा?’’

‘‘ओह, अब समझी,’’ ऋतु ने उसांस ले कर कहा, ‘‘यानी तुम और मैं दोनों ही अलगअलग अपराध भावना से ग्रस्त हैं. उस से मुक्त होने के लिए तो सब विस्तार से बताना होगा.’’

‘‘तुम्हें याद है शेखर, जब मैं रिपोर्ट लेने आई थी तो मैं ने बताया था कि प्रभव पहुंचने वाला है. उस के आने के बाद जो चखचख होनी थी वह हुई. मांजी ने दोनों भाइयों की तुलना करते हुए कहा कि अभिनव तो ब्याहता के साथ भी संयम से रह रहा है और प्रभव को परायी लड़की के साथ भी ऊंचनीच का खयाल नहीं है. इस पर प्रभव बड़ी बेशर्मी से हंसा कि लगता है अभिनव के हिस्से का लिबिडो भी मुझे ही मिल गया है. यह बात एक बार फिर मुझे कहीं गहरे कचोट गई. उस रात मुझे नींद नहीं आई. प्रभव भी वहां बेचैनी से टहल रहा था. जाहिर है वह भी तनावग्रस्त था क्योंकि मांबाबू जी ने उस की समस्या सुनने से पहले ही उसे कोसना शुरू कर दिया था.

‘‘परसों तक अगर रेशमा के भाई को शादी की तारीख नहीं बताई तो उन लोगों के लोकल कौंटैक्ट हम सब की जिंदगी दुश्वार कर देंगे… और वैसे भी जब मुझे शादी करनी ही रेशमा से है तो क्यों न सब की रजामंदी और हंसीखुशी से करूं. लेकिन मां और बाबूजी कुछ सुनने को ही तैयार नहीं हैं,’’ प्रभव ने हताश स्वर में कहा.

‘‘मैं ने प्रभव से कहा कि वह भी तो अपनी बात शांति से समझाने के बजाय चिल्लाने लगता है तब उस ने जवाब दिया कि जब भी वह तनाव में होता है सिवा चिल्लाने के और कुछ नहीं कर सकता और उस का तनाव दूर होता है सैक्स करने से. उस के बाद प्रभव ने सैक्स पर भाषण ही दे डाला. उस के अनुसार सैक्स भी जीवन में उतना ही आवश्यक है जितना खानापीना या बाथरूम जाना.

‘‘कह नहीं सकती प्रभव के तर्क से प्रभावित हो कर या अभिनव को नपुंसक होने के दंश से बचाने के लिए मैं ने उस रात स्वयं को प्रभव को सौंप दिया. अगली सुबह प्रभव वाकई शांत हो गया और उस ने बड़े धैर्य से मांबाबूजी को स्थिति से समझौता करने को मना लिया.

‘‘रेशमा अधिक छुट्टियां लेना नहीं चाहती थी और शादी की तारीख तय होने पर ही आने वाली थी. लेकिन अचानक उस का ब्लडप्रैशर इतना बढ़ गया कि डाक्टर ने उस के सामान्य होने तक रेशमा को सफर करने से रोक दिया. इस से पहले कि रेशमा सफर करने लायक होती मेरे गर्भवती होने की पुष्टि हो गई.

‘‘अभिनव बेहद खुश हुआ. किसी को कुछ शक होने का सवाल ही नहीं था, क्योंकि उस रिपोर्ट के बारे में तो सिवा मेरे व तुम्हारे किसी को पता ही नहीं था. बस मुझे यह फिक्र थी कि तुम से सचाई कैसे छिपाऊंगी, इसलिए मैं ने हालात का फायदा उठाया.

‘‘मैं ने प्रभव को उकसाया कि बजाय रेशमा को यहां बुलाने के हम सभी क्यों न वहां जा कर उस की शादी करवा दें. यों भी अभिनव और मेरे जाने की औपचारिकता तो पूरी हो ही चुकी थी और अपने बच्चे को अमेरिका की नागरिकता दिलवाने की दुहाई दे कर मैं अभिनव को तुम्हारे लौटने से पहले ही वहां ले गई. वहां जा कर मांबाबूजी को बहुत अच्छा लगा और मैं ने उन्हें हमेशा वहीं रहने को मना लिया.

‘‘उस के बाद मैं बेफिक्र हो गई थी. मगर प्रणव ने यहां आ कर मेरे पैरों तले से जमीन खिसका दी. पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव या अभिनव को सचाई का कड़वा एहसास न होने देने का दर्प, मैं कह नहीं सकती कि हकीकत क्या है पर उस रात मेरे और प्रभव के बीच जो भी हुआ था उस की मुझे कोई ग्लानि नहीं है. लेकिन यह सोच कर कि तुम खासकर लतिका इस सचाई को कतई स्वीकार नहीं करेगी और इस से पहले कि तुम बेटे या बाप से कोई पूछताछ करो मैं ने तुम से मिल कर तुम्हें सब साफसाफ बताना बेहतर समझा.’’

‘‘तुम्हारे जीवट की दाद देता हूं ऋतु. एक बार हिम्मत कर के तुम ने अभिनव को डिप्रैशन से बचाया था और इस बार हिम्मत कर के मेरा नर्वस ब्रेकडाउन होने से रोका है. लतिका को इस बारे में कुछ मालूम नहीं है. उसे कह दिया था कि बेटी परायी हो जाएगी यह सोच कर व्यग्र हूं. असलियत सिर्फ तुम्हें और मुझे मालूम है और आज के बाद हम भी कभी इस का जिक्र नहीं करेंगे.’’

‘‘यानी तुम ने मुझे माफ कर दिया?’’

‘‘माफ करने से अगर तुम्हारा मतलब यह है ऋतु कि तुम ने जो कुछ किया उसे मैं ने सही मान लिया है तो समाज के मूल्यों या मान्यताओं को बदलने या उन का मूल्यांकन करने का मुझे कोई अधिकार नहीं है, न ही अभिनव को असलियत बता कर उस की बसीबसाई दुनिया उजाड़ने का हक,’’ शेखर ने सपाट स्वर में कहा, ‘‘तुम ने उस समय जो कुछ किया था वह महज हालात के दबाव में किया था. आज अभिनव के सुखचैन और बच्चों की खुशी की खातिर उसे चुपचाप स्वीकार कर लेना मेरा महज गलत और सही के बीच तालमेल बैठाने का प्रयास है.’’

तालमेल- भाग 2: आखिर अभिनव में क्या थी कमी

ऋतु उस का धन्यवाद कर के चली गई. उस के बाद फिर उस से कभी मुलाकात नहीं हुई. लौटने पर पता चला कि प्रभव के साथ पहले तो अभिनव व ऋतु और फिर मांबाप भी अमेरिका चले गए हैं.

शेखर ने सोचा कि प्रभव की भावी गर्भवती बहू को यहां बुला कर शादी करवाने के बजाय सब ने वहीं जा कर शादी करवाना बेहतर समझा होगा.

‘‘घर आ गया शेखर,’’ लतिका की आवाज पर उस का ध्यान टूटा. गाड़ी से उतरते ही राशि आ कर उस से लिपट गई.

‘‘पापा, आप के लिए टब में क्लोन डाल कर गरम पानी भर दिया है ताकि जल्दी से आप की थकान उतर जाए,’’ राशि ने कहा.

‘‘पापा की थकान तो आप को देखते ही उतर जाती है,’’ शेखर हंसा.

तभी बाहर गाड़ी रुकने की आवाज आई.

‘‘लगता है प्रणव आ गया,’’ कह कर राशि बाहर भागी. शेखर भी उस के पीछेपीछे गया.

प्रणव को देख कर उसे लगा जैसे कालेज के दिनों के अभिनव या प्रभव में से कोई उस के सामने खड़ा हो. शेखर उस से बड़ी खुशी से मिला और सब का हालचाल पूछा.

‘‘प्रभव अंकल और रेशमा आंटी तो अलबामा, अमेरिका में हैं और मम्मीपापा कनाडा के वैनकूवर में.’’

‘‘कब से?’’

‘‘मेरे जन्म के कुछ ही महीनों बाद चले गए थे. मैं ने तो होश ही वहीं संभाला,’’ प्रणव ने बताया.

‘ऋतु समझदार है उस ने बच्चे को असली मांबाप से दूर रखना ही बेहतर समझा होगा,’ शेखर ने सोचा.

‘‘तुम्हारे मम्मीपापा कब तक आएंगे?’’

‘‘आप लोगों के बारे में सुनते ही मम्मी तो यहां आने को छटपटाने लगी हैं, लेकिन पापा को तो बिजनैस और घर वगैरह बेचने को समय चाहिए, इसलिए मम्मी अगले हफ्ते अकेली ही आ रही हैं.’’

‘‘बहुत खूब… मजा रहेगा फिर तो,’’ लतिका बोली.

‘‘हां आंटी, मगर उस से पहले मुझे यह पता चल जाए कि अंकल ने मुझे पसंद कर लिया तो अच्छा रहेगा,’’ प्रणव धीरे सेबोला.

‘‘वह तुम अभी पूछ लो न शेखर से,’’ लतिका ने कहा.

‘‘कहिए अंकल, क्या आप ने मुझे पसंद कर लिया?’’ प्रणव ने धीमी आवाज में पूछा.

शेखर चौंक पड़ा कि प्रणव की आंखों में वही याचना है, जो रिपोर्ट छिपाने को कहते हुए ऋतु की आंखों में थी. कैसे भूल सकता था शेखर उन आंखों को… और वही आंखें आज प्रणव के चेहरे पर थीं यानी प्रणव ऋतु का ही बेटा था. मगर यह कैसे मुमकिन हुआ?

‘‘कहिए न अंकल?’’ प्रणव ने मनुहार किया.

‘‘तुम्हें यह गलतफहमी कैसे हो गई कि मैं तुम्हें पसंद नहीं करूंगा?’’ शेखर हंसा.

‘‘मेरी बेटी की पसंद ही मेरी पसंद है और फिर तुम्हें नकारने की कोई वजह भी नहीं है.’’

प्रणव ने राहत की सांस ली. फिर बोला, ‘‘मम्मी ने तो मुझे डरा ही दिया था कि आप मानेंगे नहीं.’’

‘‘प्रणव, तुम चाहो तो मेरी रजामंदी सैलिबे्रट करने के लिए राशि को कहीं डिनर पर ले जा सकते हो, क्योंकि मैं तो आज रात कुछ खाना नहीं चाह रहा और फिलहाल तो टब में लेटने जा रहा हूं,’’ शेखर मुसकराया.

‘‘घंटे भर के लिए,’’ लतिका ने कहा, ‘‘मगर वह खुशखबरी तो सुनाओ जो तुम एअरपोर्ट पर सुनाने वाले थे.’’

‘‘वह तो मैं मजाक कर रहा था,’’ कह कर शेखर अपने कमरे में चला गया.

वाकई अब तो वह बात मजाक ही बन गई थी. पैथोलौजी में उस की विशिष्ट उपलब्धियों के कारण ही उसे विजिटिंग प्रोफैसर बनने का मौका मिल रहा था और आज वही उपलब्धियां प्रणव के रूप में उस के मुंह पर तमाचे मार रही थीं. अभिनव के वीर्य की जांच उस ने स्वयं एक बार नहीं कई बार की थी. अगर एक मित्र की जांच में उस से भूल हो सकती है तो अन्य लोगों की जांच में न जाने कितनी खामियां रहती होंगी?

शेखर फिर बाहर आया. राशि अपने कमरे में तैयार हो रही थी और प्रणव लतिका के साथ बैठा था.

‘‘मैं ने प्रभव के बालबच्चों के बारे में तो पूछा ही नहीं प्रणव. कितने बच्चे हैं उस के?’’

‘‘1 लड़की और 1 लड़का अंकल. तान्या मुझ से कुछ महीने बड़ी है और गौरव कुछ साल छोटा. लेकिन हम दोनों में बहुत दोस्ती है. गौरव की पढ़ाई खत्म होने वाली है. इसलिए मैं उस के लिए कोई अच्छी नौकरी ढूंढ़ रहा हूं, क्योंकि प्रभव अंकल की तरह उस की भी बिजनैस में कोई दिलचस्पी नहीं है.’’

‘‘और तुम्हें अपने पापा की तरह नौकरी पसंद नहीं है,’’ लतिका बोली.

‘‘ऐसी बात नहीं है आंटी, अमेरिका में तो मैं भी नौकरी ही करता था और यहां मेरी कंपनी ने मुझे मार्केट सर्वे के लिए भेजा था. यहां आ कर मुझे बहुत अच्छा लगा तो मैं ने सोचा कि कोई और एजेंट नियुक्त करने के बजाय मैं खुद ही क्यों न एजेंसी ले लूं, क्योंकि जो काम मैं नौकरी में करता हूं यानी कंपनी के प्रोडक्ट्स की बिक्री वही एजेंसी लेने पर करूंगा.’’

‘‘फैसला तो वाकई बहुत सही है. तुम्हारी उम्र कितनी होगी बरखुरदार यानी डेट औफ बर्थ क्या है?’’ शेखर ने बड़ी सफाई से प्रणव की जन्मतिथि पूछ ली.

राशि तैयार हो कर आ गई तो प्रणव जाने के लिए उठ खड़ा हुआ. शेखर आ कर टब में लेट गया. यह तो पक्का हो गया था कि शादी से पहले रेशमा के गर्भ में आई बच्ची तान्या है और जन्मतिथि के मुताबिक प्रणव ऋतु और अभिनव का बेटा है, जो उस की जांच के बाद पैदा हुआ है. उस की बारबार की जांच बिलकुल गलत थी, उसे ऋतु के सामने यह हार तो स्वीकार करनी ही होगी, यह सोच कर वह बेचैन था और कोशिश के बावजूद भी लतिका से वह अपनी बेचैनी छिपा नहीं सका.

‘‘जिस उत्साह से तुम आए थे शेखर वह तो बिलकुल गायब ही हो गया, ऐसा क्यों?’’ लतिका उस से बोली.

‘‘तुम भी कमाल करती हो लतिका. बेटी परायी हो रही है यह सुन कर किसे दुख नहीं होगा?’’ शेखर ने बड़ी कुशलता से बात छिपाई.

लतिका की भी आंखें भर आईं, ‘‘बेटी तो होती ही पराया धन है लेकिन दुखी होने से कैसे चलेगा? बेटी की शादी नहीं करनी?’’

‘‘बड़ी शान से करेंगे. फिलहाल और सब कुछ भूल कर शादी की तैयारी ही करते हैं.’’

शेखर के उत्साह से लतिका आश्वस्त हो गई.

तालमेल- भाग 1: आखिर अभिनव में क्या थी कमी

विमान से उतरने के बाद भी डाक्टर शेखर को लग रहा था कि वह अभी भी हवा में उड़ रहा है. लगे भी क्यों न. एक तो करीब 3 महीनों बाद घर लौटने की खुशी, फिर इस दौरान विदेश में मिला मानसम्मान और चलते समय विश्वविख्यात लंदन के किंग्स मैडिकल कालेज में हर वर्ष कुछ महीनों के लिए बतौर विजिटिंग प्रोफैसर आने का अनुबंध. यह खबर सुन कर लतिका तो खुश होगी ही, राशि भी खुशी से नाचने लगेगी. मगर बाहर खड़े लोगों में उसे सिर्फ लतिका ही नजर आई. उस ने बेचैनी से चारों ओर देखा.

‘‘राशि को ढूंढ़ रहे हो न शेखर? मगर मैं उसे जानबूझ कर नहीं लाई, क्योंकि मुझे अकेले में तुम्हें एक खुशखबरी सुनानी है,’’ लतिका चहकी.

‘‘मैं भी तो राशि को खुशखबरी सुनाने को ही ढूंढ़ रहा हूं. खैर जहां इतना इंतजार किया है कुछ देर और सही… तब तक तुम्हारी खबर सुन लेते हैं.’’

‘‘गाड़ी में बैठने के बाद.’’

‘‘वहां ड्राइवर की मौजूदगी में अकेलापन कहां रहेगा?’’ शेखर शरारत से हंसा.

‘‘मैं ड्राइवर को भी नहीं लाई,’’ लतिका ने ट्रौली पार्किंग की ओर मोड़ते हुए कहा.

‘‘मैं समझ गया तुम्हारी इतनी पोशीदा खुशखबरी क्या है,’’ शेखर ने गाड़ी में बैठते ही उसे अपनी ओर खींचते हुए कहा, ‘‘तुम मां बनने वाली हो.’’

‘‘घर पहुंचने तक तो सब्र करो… वैसे तुम्हारा अंदाजा सही है. मैं फिर मां बनने वाली हूं और इस मां को सास भी कहते हैं.’’

‘‘यानी तुम ने मेरी गैरमौजूदगी का फायदा उठा कर मेरी हार्ड कोर प्रोफैशनल बेटी का शादी करने को ब्रेन वाश कर ही दिया.’’

‘‘मैं ने तो बस उसे इतना आश्वासन दिया है कि जिसे उस ने मन में बसाया है उसे तुम सिरआंखों पर बैठाओगे, क्योंकि प्रणव तुम्हारे अभिन्न मित्र अभिनव का बेटा है.’’

‘‘अभिनव का बेटा? मैं नहीं मान सकता,’’ शेखर ने अविश्वास से कहा.

‘‘देख कर मान जाओगे. मजे की बात यह है शेखर कि जिस बच्चे के गर्भ में आते ही उसे अमेरिका का नागरिक बनाने के लिए ऋतु और अभिनव अमेरिका चले गए थे, उसी प्रणव को भारत इतना पसंद आया कि वह यहां से वापस ही नहीं जाना चाहता. उस ने यहीं एक अमेरिकन कंप्यूटर कंपनी की एजेंसी ले ली है. अब अभिनव और ऋतु भी हमेशा के लिए भारत लौट रहे हैं.’’

‘‘प्रणव की उम्र क्या होगी?’’

‘‘अपनी राशि से तो बड़ा ही है, क्योंकि वह तो मेरे गर्भ में तुम्हारे विदेश से लौटने के बाद आई और अभिनव व ऋतु तो तुम्हारे विदेश जाते ही चले गए थे. ऋतु उस समय गर्भवती थी.’’

‘‘तुम्हें कैसे पता कि ऋतु उस समय गर्भवती थी? तुम तो तब नई दुलहन थीं, ऋतु तुम्हें यह सब बताए इतनी घनिष्ठता तो तुम्हारी उस से नहीं थी?’’

‘‘लेकिन अम्मांजी की उस की सास से तो थी. जब उन से उन्हें यह पता चला कि ऋतु गर्भवती है तो मैं ने भी जाना.’’

‘‘अच्छा,’’ कह कर शेखर ने सीट से सिर टिका कर आंखें बंद कर लीं. अतीत चलचित्र की भांति उस की आंखों के सामने तैरने लगा…

पड़ोस में रहने वाले जुड़वां भाइयों प्रभव और अभिनव से उस की बहुत दोस्ती थी, खासकर अभिनव से. शेखर की सहपाठिन ऋतु से अभिनव को प्रेम था और उस से मिलने वह अकसर शेखर के साथ कालेज जाता था. अभिनव से शादी करने के चक्कर में ऋतु ने डाक्टरी की पढ़ाई पूरी नहीं की थी. अभिनव ने भी पिता के साथ उन के होटल में बैठना शुरू कर दिया था. लेकिन प्रभव की व्यापार में दिलचस्पी नहीं थी अत: वह अमेरिका चला गया.

एक दिन ऋतु और अभिनव शेखर के डायग्नोस्टिक सैंटर गए. अभिनव बोला, ‘‘यार अपनी शादी को 3-4 साल हो गए, लेकिन अभी तक कोई बच्चा नहीं हुआ. तू सब टैस्ट वगैरह कर के देख कि सब ठीक तो है न.’’

शेखर ने दोनों के सभी जरूरी टैस्ट किए. रिपोर्ट लेने ऋतु अकेली आई थी. पहले तो शेखर थोड़ा हिचकिचाया, लेकिन ऋतु की परिपक्वता देखते हुए उस ने सच बताना ही बेहतर समझा. बोला, ‘‘तुम मां बनने के लिए पूरी तरह सक्षम हो ऋतु, लेकिन अभिनव कभी बाप नहीं बन सकेगा.’’

ऋतु कुछ पलों के लिए हैरान रह गई. फिर संयत हो कर पूछा, ‘‘इलाज के बाद भी नहीं?’’

शेखर ने मायूसी से कहा, ‘‘उस के शरीर में वीर्य के शुक्राणु बनाने का स्रोत नहीं है… जुड़वां बच्चों में कभीकभी ऐसी कमी रह जाती है… एक ही इलाज है कि तुम लोग बच्चा गोद ले लो.’’

‘‘यह बाद में सोचेंगे शेखर. फिलहाल तो यह बात अभि से छिपाने में तुम्हें मेरी मदद करनी होगी. करोगे न?’’ ऋतु ने पूछा.

‘‘जरूर ऋतु, लेकिन एक न एक दिन तो बताना पड़ेगा ही.’’

‘‘अभी नहीं प्रभव के जाने के बाद.’’

‘‘प्रभव आया हुआ है?’’

‘‘आ रहा है, अभिनव को उसे लेने एअरपोर्ट जाना था इसीलिए रिपोर्ट लेने नहीं आ सका.’’

‘‘प्रभव तुम्हें और अभिनव को साथ ले जाने को आ रहा है न?’’ शेखर ने पूछा.

‘‘हां, मगर फिलहाल उस के आने की वजह कुछ और है,’’ ऋतु ने उसांस ले कर कहा, ‘‘प्रभव का वहां किसी सिक्ख लड़की से अफेयर है और अब वह उस के बच्चे की मां बनने वाली है. लड़की के घर वाले इसी शहर में रहते हैं और अड़े हुए हैं कि तुम अपने घर वालों की मौजूदगी में बाकायदा रेशमा से शादी करो वरना हम तुम्हारे सारे खानदान को तबाह कर देंगे. मांबाबूजी डर कर या प्रभव के जिद्दी स्वभाव के कारण शादी के लिए तो मना नहीं कर रहे, लेकिन यह सोच कर बौखलाए हुए हैं कि 3-4 महीने की गर्भवती दुलहन के बारे में रिश्तेदारों से क्या कहेंगे. मांजी ने तो यहां तक कह डाला कि ब्याहे के तो कुछ हुआ नहीं और कुंआरा बाप बन रहा है. यह बात अभि को चुभ गई और वह फौरन तुम्हारे पास टैस्ट करवाने आ गया. इस समय यह रिपोर्ट उसे बुरी तरह आहत कर देगी. घर में वैसे ही बहुत तनाव है तो प्रभव के आते ही और भी ज्वलंत हो जाएगा. शेखर, क्या तुम अभि से यह नहीं कह सकते कि उस की रिपोर्ट कहीं खो गई है?’’

‘‘कह दूंगा सीमन कम था इसलिए बराबर जांच नहीं हो सकी. वैसे तो सब ठीक ही लग रहा है, फिर भी दोबारा जांच करना चाहूंगा. प्रभव के आने के चक्कर में आज तो वह आने से रहा और कल मैं एक खास कोर्स करने के लिए यूरोप जा रहा हूं.’’

ऋतु उस का धन्यवाद कर के चली गई. उस के बाद फिर उस से कभी मुलाकात नहीं हुई. लौटने पर पता चला कि प्रभव के साथ पहले तो अभिनव व ऋतु और फिर मांबाप भी अमेरिका चले गए हैं.

शेखर ने सोचा कि प्रभव की भावी गर्भवती बहू को यहां बुला कर शादी करवाने के बजाय सब ने वहीं जा कर शादी करवाना बेहतर समझा होगा.

‘‘घर आ गया शेखर,’’ लतिका की आवाज पर उस का ध्यान टूटा. गाड़ी से उतरते ही राशि आ कर उस से लिपट गई.

‘‘पापा, आप के लिए टब में क्लोन डाल कर गरम पानी भर दिया है ताकि जल्दी से आप की थकान उतर जाए,’’ राशि ने कहा.

‘‘पापा की थकान तो आप को देखते ही उतर जाती है,’’ शेखर हंसा.

तभी बाहर गाड़ी रुकने की आवाज आई.

‘‘लगता है प्रणव आ गया,’’ कह कर राशि बाहर भागी. शेखर भी उस के पीछेपीछे गया.

विद्रोह- भाग 3: क्या राकेश को हुआ गलती का एहसास

राकेश ने दोनों बच्चों को कपड़ों व अन्य जरूरी सामान की ढेर सारी खरीदारी खुशीखुशी करा कर उन का मन और ज्यादा जीत लिया.

बच्चों को उन के वापस होस्टल लौटने में जब 4 दिन रह गए तब सीमा ने राकेश से कहा, ‘‘मेरी सप्ताह भर की छुट्टियां अब खत्म हो जाएंगी. बाकी 4 दिन बच्चे नानानानी के पास रहें, तो बेहतर होगा.’’

‘‘बच्चे वहां जाएंगे, तो मैं उन से कम मिल पाऊंगा,’’ राकेश का स्वर एकाएक उदास हो गया.

‘‘बच्चों को कभी मुझ से और कभी तुम से दूर रहने की आदत पड़ ही जानी चाहिए,’’ सीमा ने भावहीन लहजे में जवाब दिया.

राकेश कुछ प्रतिक्रिया जाहिर करना चाहता था, पर अंतत: धीमी आवाज में उस ने इतना भर कहा, ‘‘तुम अपने घर बच्चों के साथ चली जाओ. उन का सामान भी ले जाना. वे वहीं से वापस चले जाएंगे.’’

नानानानी के घर मयंक और शिखा की खूब खातिर हुई. वे दोनों वहां बहुत खुश थे, पर अपने पापा को वे काफी याद करते रहे. राकेश उन के बहुत जोर देने पर भी रात को साथ में नहीं रुके, यह बात दोनों को अच्छी नहीं लगी थी.

अपने मातापिता के पूछने पर सीमा ने एक बार फिर राकेश से हमेशा के लिए अलग रहने का अपना फैसला दोहरा दिया.

‘‘राकेश ने अगर अपने बारे में तुम्हें सब बताने की मूर्खता नहीं की होती, तब भी तो तुम उस के साथ रह रही होंती. तुम्हें संबंध तोड़ने के बजाय उसे उस औरत से दूर करने का प्रयास करना चाहिए,’’ सीमा की मां ने उसे समझाना चाहा.

‘‘मां, मैं ने राकेश की कई गलतियों, कमियों व दुर्व्यवहार से हमेशा समझौता किया, पर वह सब मैं पत्नी के कर्तव्यों के अंतर्गत करती थी. उन की जिंदगी में दूसरी औरत आ जाने के बाद मुझ पर अच्छी बीवी के कर्तव्यों को निभाते रहने के लिए दबाव न डालें. मुझे राकेश के साथ नहीं रहना है,’’ सीमा ने कठोर लहजे में अपना फैसला सुना दिया था.

अगले दिन बच्चे अपने पापा का इंतजार करते रहे पर वह उन से मिलने नहीं आए. इस कारण वे दोनों बहुत परेशान और उदास से सोए थे. सीमा को राकेश की ऐसी बेरुखी व लापरवाही पर बहुत गुस्सा आया था.

उस ने अगले दिन आफिस से राकेश को फोन किया और क्रोधित स्वर में शिकायत की, ‘‘बच्चों को यों परेशान करने का तुम्हें कोई अधिकार नहीं है. कल उन से मिलने क्यों नहीं आए?’’

‘‘एक जरूरी काम में व्यस्त था,’’ राकेश का गंभीर स्वर सीमा के कानों में पहुंचा.

‘‘मैं सब समझती हूं तुम्हारे जरूरी काम को. अपनी रखैलों से मिलने की खातिर अपने बच्चों का दिल दुखाना ठीक नहीं है. आज तो आओगे न?’’

‘‘अपनी रखैल से मिलने सचमुच आज मुझे नहीं जाना है, इसलिए बंदा तुम सब से मिलने जरूर हाजिर होगा,’’ राकेश की हंसी सीमा को बहुत बुरी लगी, तो उस ने जलभुन कर फोन काट दिया.

राकेश शाम को सब से मशहूर दुकान की रसमलाई ले कर आया. यह सीमा की सब से ज्यादा पसंदीदा मिठाई थी. वह नाराजगी की परवा न कर उस के साथ हंसीमजाक व छेड़छाड़ करने लगा. बच्चों की उपस्थिति के कारण वह उसे डांटडपट नहीं सकी.

राकेश दोनों बच्चों को बाजार घुमा कर लाया. फिर सब ने एकसाथ खाना खाया. सीमा को छोड़ कर सभी का मूड बहुत अच्छा बना रहा.

बच्चों को सोने के लिए भेजने के बाद वह राकेश से उलझने को तैयार थी पर उस ने पहले से हाथ जोड़ कर उस से मुसकराते हुए कहा, ‘‘अपने अंदर के ज्वालामुखी को कुछ देर और शांत रख कर जरा मेरी बात सुन लो, डियर.’’

‘‘डोंट काल मी डियर,’’ सीमा चिढ़ उठी.

‘‘यहां बैठो, प्लीज,’’ राकेश ने बडे़ अधिकार से सीमा को अपनी बगल में बिठा लिया तो वह ऐसी हैरान हुई कि गुस्सा करना ही भूल गई.

‘‘मैं ने कल पुरानी नौकरी छोड़ कर आज से नई नौकरी शुरू कर दी है. कल शाम मैं ने अपनी ‘रखैल’ से पूरी तरह से संबंध तोड़ लिया है और अपने अतीत के गलत व्यवहार के लिए मैं तुम से माफी मांगता हूं,’’ राकेश का स्वर भावुक था, उस ने एक बार फिर सीमा के सामने हाथ जोड़ दिए.

‘‘मुझे तुम्हारे ऊपर अब कभी विश्वास नहीं होगा. इसलिए इस विषय पर बातें कर के न खुद परेशान हो न मुझे तंग करो,’’ न चाहते हुए भी सीमा का गला भर आया.

‘‘अपने दिल की बात मुझे कह लेने दो, सीमा, सब तुम्हारी प्रशंसा करते हैं, पर मैं ने सदा तुम में कमियां ढूंढ़ कर तुम्हें गिराने व नीचा दिखाने की कोशिश की, क्योंकि शुरू से ही मैं हीनभावना का शिकार बन गया था. तुम हर काम में कुशल थीं और मुझ से ज्यादा कमाती भी थीं.

‘‘मैं सचमुच एक घमंडी, बददिमाग और स्वार्थी इनसान था जो तुम्हें डरा कर अपने को बेहतर दिखाने की कोशिश करता रहा.

‘‘फिर तुम ने मेरी चरित्रहीनता के कारण मुझ से दूर होने का फैसला किया. पहले मैं ने तुम्हारी धमकी को गंभीरता से नहीं लिया, क्योंकि तुम कभी मेरे खिलाफ विद्रोह करोगी, ऐसा मैं ने सपने में भी नहीं सोचा था.

‘‘पिछले दिनों मैं ने तुम्हारी आंखों में अपने लिए जो नाराजगी व नफरत देखी, उस ने मुझे जबरदस्त सदमा पहुंचाया. सीमा, मेरी घरगृहस्थी उजड़ने की कगार पर पहुंच चुकी है, इस सचाई को सामने देख कर मेरे पांव तले की जमीन खिसक गई.

‘‘मुझे तब एहसास हुआ कि मैं न अच्छा पति रहा हूं, न पिता. पर अब मैं बदल गया हूं. गलत राह पर मैं अब कभी नहीं चलूंगा, यह वादा दिल से कर रहा हूं. मुझे अकेला मत छोड़ो. एक अच्छा पति, पिता व इनसान बनने में मेरी मदद करो.

‘‘तुम मां होने के साथसाथ मुझ से कहीं ज्यादा समझदार व सुघड़ स्त्री हो. औरतें घर की रीढ़ होती हैं. मेरे पास लौट कर हमारी घरगृहस्थी को उजड़ने से बचा लो, प्लीज,’’ यों प्रार्थना करते हुए राकेश का गला भर आया.

‘‘मैं सोच कर जवाब दूंगी,’’ राकेश के आंसू न देखने व अपने आंसू उस की नजरों से छिपाने की खातिर सीमा ड्राइंगरूम से उठ कर बच्चों के पास चली गई.

अपने बच्चों के मायूस, सोते चेहरों को देख कर वह रो पड़ी. उस के आंसू खूब बहे और इन आंसुओं के साथ ही उस के दिल में राकेश के प्रति नाराजगी, शिकायत व गुस्से के सारे भाव बह गए.

कुछ देर बाद राकेश उस से कमरे में विदा लेने आया.

‘‘आप रात को यहीं रुक जाओ कल बच्चों को जाना है,’’ सीमा ने धीमे, कोमल स्वर में उसे निमंत्रण दिया.

राकेश ने सीमा की आंखों में झांका, उन में अपने लिए प्रेम के भाव पढ़ कर उस का चेहरा खिल उठा. उस ने बांहें फैलाईं तो लजाती सीमा उस की छाती से लग गई.

विधवा विदुर- भाग 1: किस कशमकश में थी दीप्ति

लखनऊ विश्वविद्यालय का सभागार आज खचाखच भरा हुआ था. सभी छात्र समय से पहले ही पहुंच गए थे. नगर के सम्मानित व्यक्तियों को भी आमंत्रित किया गया था. यह मौका था वादविवाद प्रतियोगिता के फाइनल का.

विश्वविद्यालय में एमएससी कर रहे एक छात्र रजनीश और शोध कार्य कर रही छात्रा देविका फाइनल में पहुचे थे और बहस का विषय था ‘तकनीक के समय में पुस्तकों की उपयोगिता.’

रजनीश ने तकनीक का पक्ष लिया और बोलना शुरू किया, उस ने तकनीक की महत्त्वता बताई और अनेक तर्क दिए जैसे रजनीश ने बताया कि आज जब हमारे पास कंप्यूटर है, लैपटौप है और  तीव्र गति से  हर परिणाम दिखाने वाला इंटरनैट है तो भला हम किताबों के भरोसे क्यों रहें.

आज इंटरनैट पर सिर्फं एक बटन दबाते ही दुनिया भर की जानकारी उपलब्ध हो सकती है तो  हम किताबें ढोने में समय क्यों गंवाएं, पुरातनपंथी क्यों बनें और क्यों न तकनीक को अपनाएं.

इस के बाद भी रजनीश ने तकनीक की बढ़ाई करते हुए बहुत सारे तर्क दिए जो लगभग अकाट्य थे. लोगों ने खूब तालियां बजा कर रजनीश का उत्साहवर्धन किया.

बारी देविका की आई तो वह बोली, ‘‘मेरे दोस्त ने काफी कुछ कह दिया है पर फिर भी मैं इतना कहूंगी कि तकनीक जरूरी है पर इस का मतलब यह नहीं कि हम पुस्तकों के महत्त्व को नकार ही दें. आखिरकार हमारे ज्ञान का स्रोत तो पुस्तकें ही हैं. जिस तरह से पौधा हमेशा ऊपर की ओर  जाता है पर उस की जड़ें नीचे की ओर बढ़ती हैं और जड़ें जितना नीचे जाती हैं वह पौधा उतना ही मजबूत पेड़ बन जाता है. इस के बाद देविका ने भी लोगों को एक के बाद एक तथ्य बताए जो यह सिद्ध करते थे कि इंटरनैट के इस युग में भी पुस्तकें को पढ़ना जरूरी है.

जूरी के सदस्यों के सामने ऊहापोह की स्थिति आ गई थी क्योंकि दोनों वक्ताओं ने इतना अच्छा बोला था कि उन की सम झ में ही नहीं आ रहा था कि वे प्रतियोगिता का विजेता किसे घोषित करें. काफी देर चली डिस्कसन के बाद जब परिणाम बताने की बारी आई तो जूरी ने दोनों को ही संयुक्त रूप से विजेता घोषित कर दिया.

कुछ दिनों तक पूरे विश्वविद्यालय में इस प्रतियोगिता की खूब चर्चा होती रही.

एक दिन रजनीश टैगोर लाइब्रेरी में बैठा नोट्स बनाने में लगा था तभी वहां देविका आई. दोनों की निगाहें आपस में टकराईं और एक मुसकराहट का आदानप्रदान भी हुआ.

सामने की टेबल पर देविका को भी कुछ जरूरी नोट्स लेने थे. उन्हें बना लेने के बाद देविका बाहर निकल गई. रजनीश भी पीछेपीछे आया और देविका को आवाज दी, ‘‘अरे मैडम हमें भी साथ ले लो.’’

‘‘आज पता चला कि तकनीक का हवाला देने वाले लोग भी किताबों का सहारा लेते हैं,’’  देविका ने मुसकराते हुए कहा तो बदले में रजनीश ने उसे बताया कि असल में तो किताबों का शौकीन वह भी है पर वादविवाद प्रतियोगिता में रखे गए उस के विचार मात्र प्रतियोगिता जीतने के लिहाज से बोले गए थे. उन विचारों से वह इत्तफाक ही रखे यह कोई जरूरी तो नहीं.

दोनों बात करतेकरते कैंपस में बनी कैंटीन तक आ गए थे. रजनीश ने देविका को चाय का औफर दिया जिसे उस ने बड़ी सहजता से मना कर दिया और वहां से चल दी.

उसे जाते देख कर बिना रोमांचित हुए बिना नहीं रह सका रजनीश. लगभग हर दूसरे दिन दोनों का आमनासामना हो ही जाता. दोनों एकदूसरे की पढ़ाई में मदद करने के साथासाथ तमाम मुद्दों पर बातें भी करते.

देविका को कई बार यह भी लगता कि जिस तरह के जीवनसाथी का सपना उस ने अपने जीवन के लिए मन में सजा रखा है रजनीश में वे सारी खूबियां हैं और कुछ ऐसा ही विचार रजनीश भी देविका के लिए मन में रखता था. दोनों ने एकदूसरे के सामने यह बात प्रकट भी कर दी और कई महीनों के साथ के बाद आखिर वह समय भी आया जब रजनीश और देविका ने एकदूसरे से शादी का वादा कर लिया. पर अगले ही दिन से कई दिनों तक देविका को रजनीश दिखाई नहीं दिया. उस का मोबाइल भी बंद आ रहा था.

देविका परेशान हो उठी. रजनीश के दोस्तों से भी पूछा पर किसी ने कुछ ठोस बात नहीं बताई. देविका को लगने लगा कि हो न हो रजनीश के साथ या उस के परिवार में कोई हादसा हो गया है पर कुछ भी पता कर पाना उस के बस में नहीं था.

कुछ हफ्तों बाद जब शाम को थकीहारी देविका अपने घर पहुची तो सामने का दृश्य देख कर खुशी से चौंक गई. सामने के कमरे में रजनीश बैठा था और देविका के मांबाप से बातें करने में व्यस्त था. देविका को देख कर उस के चेहरे पर एक मुसकराहट दौड़ गई. देविका ने पापा के चेहरे की तरफ देखा. वे कुछ तनाव में लग रहे थे. रजनीश पापा को बता रहा था कि उसे बैंक में एक क्लर्क की नौकरी मिल गई है, जौब का प्रोफाइल थोड़ा लो जरूर है पर अपने घर की जरूरतों की वजह से उसे नौकरी की जरूरत थी, इसलिए जौइन कर ली.

देविका सीधे किचन में चली गई,थोडी देर बाद वहां मां भी आ गईं और बोलीं, ‘‘यह सब तुम ने हमें पहले क्यों नहीं बताया?’’

‘‘पर क्या मां?’’

‘‘यही कि तुम दोनों एकदूसरे को पसंद करते हो और शादी करना चाहते हो.’’

‘‘हां मां, पर सही समय आने पर मैं आप को बताती ही.’’

‘‘हां, पर अब ये सब हमें बताने की कोई जरूरत नहीं है. तेरे पापा अपने से नीची जाति वाले से कभी तेरी शादी नहीं करेंगे, ‘‘मां के

स्वर में कड़वाहट थी. न जाने कहां खोई हुई थी देविका आज तक. रजनीश से कब उसे प्यार हो गया था यह तो इसे पता भी नहीं चला था और प्यार करतेकरते वह भूल बैठी थी कि इस समाज में शादी के लिए समान जातियों का भी होना जरूरी है. हां, समाज में विजातीय शादियां भी होती हैं पर समाज उन जोड़ों को भला कहां अपना पाता है?

खिड़की से देविका ने रजनीश की तरफ नजर डाली, उस के चेहरे की उदासी देख कर वह सब सम झ गई थी. बचपन से पापा को आदर्श माना था, उन्होंने भी देविका को बड़े नाजों से पाला था और दबाव में भी हमेशा सही फैसला ही लेना सिखाया था.

तभी पापा की आवाज गूंजी. उन्होंने देविका को बुलाया और उस से बिना किसी भूमिका बांधे परिवार या प्यार में से एक को चुन लेने को कहा. उस दिन से पहले ऐसी अजीब हालत में नही फंसी थी देविका.

लड़का चाहिए: सुरेंद्र क्या अपने दिल की बात कह पाया

यह सुरेंद्र का दुर्भाग्य था या सौभाग्य, क्या कहें. वह उस संयुक्त परिवार के बच्चों में सब से आखिरी और 8वें नंबर पर आता था. अब वह 21 साल का ग्रैजुएट हो चुका था व छोटामोटा कामधंधा भी करने लगा था. देखनेदिखाने में औसत से कुछ ऊपर ही था. उस के विवाह के लिए नए प्रस्ताव भी आने लगे थे. यहां तक तो उस के भाग्य में कोई दोष नहीं था परंतु उस के सभी बड़े भाइयों के यहां कुल 17 लड़कियां हो चुकी थीं और अब किसी के यहां लड़का होने की उम्मीद नहीं थी. इसी कारण वंश को आगे बढ़ाने की सारी जिम्मेदारी सुरेंद्र पर टिकी हुई थी.

अब तक घरपरिवार और चेहरेमोहरे को देखने वाले इस परिवार ने दूसरी बातों का सहारा लेना भी शुरू कर दिया, जैसे जन्मपत्रिका मिलाना, परिवार में हुए बच्चों का इतिहास जानना आदि. पत्रिका मिलान करते समय पंडितों को इस बात पर विशेष ध्यान देने को कहा जाता कि पत्रिका में पुत्र उत्पन्न करने संबंधी योग, नक्षत्र भी हैं या नहीं.

एक पंडित से पत्रिका मिलवाने के बाद दूसरे पंडित की सैकंड ओपिनियन भी जरूर ली जाती. पंडित लोग भी मौका देख कर भारीभरकम फीस वसूल करते.

कई लड़कियां तो सुरेंद्र को अच्छी भी लगीं किंतु पंडितों की भविष्यवाणी के आधार पर रिजैक्ट कर दी गईं. एक जगह तो अच्छाखासा विवाद भी हो गया जब एक लड़की ज्योतिष के सभी परीक्षणों में सफल भी हुई, लेकिन स्त्री स्वतंत्रता की पक्षधर उस लड़की को यह सबकुछ बेहद असहज व स्त्रियों के प्रति अपमानजनक लगा.

सुरेंद्र से एकांत में मुलाकात के समय उस ने सुरेंद्र से कहा कि जब आप के परिवार में 17 कन्याओं ने जन्म लिया है तो मुझे आप के घर के पुरुषों के प्रति संदेह है कि उन में लड़का पैदा करने की क्षमता भी है या नहीं. मेरे साथ शादी करने से पहले आप को इस बात का मैडिकल प्रमाणपत्र देना होगा कि आप पुत्र उत्पन्न करने की क्षमता रखते हैं.

जब यह बात रिश्तेदारों और जानपहचान वालों को पता चली तो कई लोग बिन मांगे सुझाव और सलाहों के साथ हाजिर हो गए. किसी ने कहा कि ऐसी लड़की का चयन करना जिस की मां को पहली संतान के रूप में पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई हो. किसी की सलाह थी, कमर से जितने अधिक नीचे बाल होंगे, लड़का होने की संभावना उतनी ही अधिक होगी. एक सलाह यह भी थी कि पुत्र उत्पन्न करने में वे लड़कियां ज्यादा सफल होती हैं जो चलते समय अपना बायां पैर पहले बाहर रखती हैं.

यदि लड़की की नानी ने भी पहली संतान के रूप में लड़के को जन्म दिया हो, संभावनाएं शतप्रतिशत हो जाती हैं.

इसी तरह की और भी न जाने क्याक्या सलाहें मिलती रहीं.

सुरेंद्र का परिवार सभी सलाहों पर हर मुमकिन अमल करने का प्रयास भी इस तरह से कर रहा था मानो यदि अब एक लड़की और हो गई तो वह उस की परवरिश करने में असमर्थ रहेगा. अब तो टोनेटोटके के बावजूद पैदा हुई सब से छोटी लड़की के पुराने कपड़ों को भी घर से हटा दिया गया था क्योंकि इस तरह के पुराने कपड़ों को रखना पनौती माना जाता है.

सुझावों को ध्यान में रख कर सुरेंद्र के लिए लड़कियां देखी जाती रहीं, और किसी न किसी आधार पर अस्वीकृत भी की जाती रहीं. इसी तरह 2 बरस बीत गए और कुछ रिजैक्टेड लड़कियों ने अपनी शादी के बाद अपनी पहली संतान के रूप में लड़कों को जन्म भी दे दिया.

आखिरकार, परिवार की मेहनत रंग लाई और कड़ी खोजबीन के बाद इस तरह की लड़की को खोजने में सफल हो ही गया. खोजी गई लड़की के बाल कमर से लगभग डेढ़ फुट तक नीचे जाते थे. मतलब, एक विश्वसनीय सुरक्षित लंबाई थी बालों की.

लड़की की मां, नानी, यहां तक कि परनानी ने भी पहली संतान के रूप में लड़के को ही जन्म दिया था. यानी यहां दोहरा सुरक्षाकवच मौजूद था. सोने पर सुहागा यह कि लड़की चलते समय बायां पैर ही पहले निकालती थी.

अब तो तीनसौ प्रतिशत संभावनाएं थीं कि यह लड़की, लड़का पैदा करने में पूरी तरह सक्षम है. परंतु जो बात सब से महत्त्वपूर्ण थी वह यह कि सुरेंद्र को यह लड़की पसंद नहीं थी क्योंकि लड़की रंगरूप के मामले में औसत भारतीय लड़कियों से भी नीचे थी.

उस से भी बड़ी बात यह थी कि लड़की मुश्किल से 3 प्रयासों के बाद इंटर की परीक्षा पास कर पाई थी. सभी चीजें तो एक लड़की में नहीं मिल सकती न, ‘वंश तो लड़कों से चलता हैं न कि लड़की की पढ़ाईलिखाई या रंगरूप से’ ये बातें सुरेंद्र को समझा कर किसी ने उस की एक न सुनी.

इस तरह सभी भौतिक परीक्षाओं में पास होने के बाद लड़की की जन्मकुंडली पंडितजी को दिखाई गई. पंडितजी भी एक ही जजमान की कुंडली बारबार देख कर त्रस्त हो चुके थे. वे भी चाहते थे जैसे भी हो, इस बार कुंडली मिला ही दूंगा चाहे कोई पूजा ही क्यों न करवानी पड़े.

उन के अनुसार भी, कुंडली का मिलान भी श्रेष्ठ ही था. किंतु एक हिदायत उन्होंने भी दे दी कि लड़का होने की संभावनाएं तब ही बलवती होंगी जब संतान शादी के एक वर्ष के भीतर गोद में आ जाए.

आखिरकार सुरेंद्र की अनिच्छा के बावजूद शादी धूमधाम से हो गई. लड़की ने इंटर की परीक्षा जरूर 3 प्रयासों में पास की थी लेकिन वह इतना तो जानती ही थी कि इतनी जल्दी मातृत्व का बोझ उठाना ठीक नहीं होगा. उस ने टीवी और फिल्मों के जरिए यह जान लिया था कि शादी के शुरुआती वर्ष पतिपत्नी को एकदूसरे को समझने के लिए बहुत अहम होते हैं. ऐसे में कुछ वर्ष बच्चा नहीं होना चाहिए.

सुरेंद्र की पत्नी को पहले ही दिन से वीआईपी ट्रीटमैंट दिया जा रहा था. उसे तरहतरह के प्रलोभन दिए जा रहे थे.

सुरेंद्र पर भी दबाव डाला जा रहा था और पंडितजी की हिदायतों की समयसमय पर याद करवाई जा रही थी.

2 माह बाद आखिर वह दिन भी आ ही गया जिस का सारे परिवार को इंतजार था. सुरेंद्र की पत्नी गर्भवती हो चुकी थी. मतलब, हर नजरिए से इस परिवार को पुत्र के रूप में वारिस मिलने की संभावनाएं बहुत अधिक हो गई थीं. किसी ने सलाह दी कि यदि इस में कुछ चिकित्सकीय सहायता भी ले ली जाए तो असफलता की संभावनाएं नहीं रहेंगी.

एलोपैथिक के डाक्टरों ने तो इस प्रकार की कोई भी औषधि देने से इनकार कर दिया. तब एक परिचित की सहायता से एक प्रसिद्ध आयुर्वेदिक वैद्यजी को दिखाया गया. वे इस शर्त पर दवा देने को तैयार हुए कि बच्चे के लिए सोनोग्राफी नहीं करवाई जाएगी.

परिवार वालों ने वैद्यजी की बातों को माना और वैद्यजी की बताई गई दवाई पूर्णिमा को खिला भी दी गई.

समयसमय एलोपैथी के डाक्टर को दिखा कर बच्चे की शारीरिक प्रगति पर ध्यान दिया जाता रहा. लेकिन वैद्यजी की सलाह के अनुसार सोनोग्राफी की अनुमति नहीं दी गई. डाक्टर अपने अनुभवों के आधार पर उपचारित करते रहे. परिवार वाले भी सुरेंद्र की पत्नी की हर इच्छा को आदेश मान कर पालन करते रहे.

सुरेंद्र की पत्नी अपनेआप को किसी वीआईवी से कम नहीं समझ रही थी. विवाह के 11 महीनों के बाद आखिर वह दिन भी आ ही गया जिस का सभी को इंतजार था. सुरेंद्र की पत्नी को अस्पताल में भरती करवा दिया गया. घर पर पूजापाठहवन आदि का इंतजाम किया गया. पूरे घर में लड़का होेने की अग्रिम खुशी में उत्सव जैसा माहौल हो गया.

आखिर वह समय भी आ गया

जब परिणाम घोषित हुआ. परिणाम पिछले 17 परिणामों से अलग नहीं था.

सुरेंद्र की पत्नी ने एक स्वस्थ और सुंदर कन्या को जन्म दिया. इस घड़ी में सुरेंद्र का परिवार तो कुछ कहने की स्थिति में नहीं था परंतु बाहर के लोग तो कह ही रहे थे, कुछ हंसी में और कुछ संवेदना में. कुछ लोग तो यह सलाह देने के लिए आ रहे थे कि दूसरी संतान पुत्र कैसे हो, इस के कुछ नुस्खे उन के पास मौजूद हैं.

किंतु, गुस्से से भरा सुरेंद्र पहले की सलाह देने वालों को ढूंढ़ रहा है. आप भी तो उन में से एक नहीं है न. यदि हैं, तो बच कर रहिए.

दुल्हन बनने से पहले: रत्ना की सूनी निगाहें क्यों दीवार ताकने लगीं

ढोलक की थाप पर बन्नाबन्नी गाती सहेलियों और पड़ोस की भाभियों का स्वर छोटे से घर को खूब गुलजार कर रहा था. रत्ना हलदी से रंगी पीली साड़ी में लिपटी बैठी अपनी सहेलियों के मधुर संगीत का आनंद ले रही थी. बन्नाबन्नी के संगीत का यह सिलसिला 2 घंटे से लगातार चल रहा था.

बीचबीच में सहेलियों और भाभियों के बीच रसिक कटाक्ष, हासपरिहास और चुहलबाजी के साथ स्वांग भी चलने लगता तो अम्मा आ कर टोक जातीं, ‘‘अरी लड़कियो, तुम लोग बन्नाबन्नी गातेगाते यह ‘सोहर’ के सासबहू के झगड़े क्यों अलापने लगीं?’’

थोड़ीबहुत सफाई दे कर वे फिर बन्नाबन्नी गाने लगतीं. अम्मा रत्ना को उन के बीच से उठा कर ‘कोहबर’ में ले गईं. बाहर बरामदे में उठते संगीत का स्वर कोहबर में बैठी रत्ना को अंदर तक गुदगुदा गया :

‘‘मेरी रुनकझुनक लाड़ो खेले गुडि़या

बाबा ऐसा वर खोजो

बीए पास किया हो,

बीए पास किया हो.

विलायत जाने वाला हो,

विलायत जाने वाला…’’

उस का वर भी तो विलायत में रहने वाला है. जी चाहा कि वह भी सहेलियों के बीच जा बैठे.

उस का भावी पति अमेरिका में इंजीनियर है. यह सोचसोच कर ही जबतब रत्ना का मन खुशी से भर उठता था. कोहबर में बैठेबठे वह कुछ देर के लिए विदेशी पति से मिलने वाली सुखसुविधाओं की कल्पना में खो गई. वह बारबार सोच रही थी कि वह कैसे अपने खूबसूरत पति के साथ अमेरिका घूमेगी, सुखसमृद्धि से सुसंपन्न बंगले में रहेगी और अपनी मोटरगाड़ी में घूमेगी. वहां हर प्रकार के सुख के साधन कदमकदम पर बिछे होंगे.

एकाएक उसे अपने मातापिता की उस प्रसन्नता की भी याद आई जो उसे सुखी देख कर उन्हें प्राप्त होगी. उस प्रसन्नता के आगे तो उसे अपने सुख के सपने बड़े सतही और ओछे नजर आने लगे.

वह सोचने लगी, ‘अम्मा और पिताजी बेटियों से उबर जाएंगे. दीदी की शादी से ही उन की आधी कमर टूट गई थी. घर के खर्चों में भारी कटौती करनी पड़ी थी. कई तरह के कर्जे भरतेभरते दोनों तनमन से रिक्त हो गए थे. रत्ना के नाम से जमा रकम भी बहुत कम थी. उस में वे हाथ भी नहीं लगाते कि कब देखते ही देखते रत्ना भी ब्याहयोग्य हो जाएगी और वे कहीं के नहीं रहेंगे.’

लेकिन रत्ना की शादी के लिए उन्हें कोई कर्ज नहीं लेना पड़ा. आनंद के परिवार वालों ने दहेज के लिए सख्त मना कर दिया था. अमेरिका में उसे किसी बात की कमी न थी.

रत्ना ने कोहबर की दीवारों पर नजर दौड़ा कर देखा, जगहजगह से प्लास्टर उखड़ा था. छत की सफेदी पपड़ी बनबन कर कई जगह से झड़ गई थी. दीदी की शादी के बाद घर में सफेदी तो दूर, मरम्मत जैसे जरूरी काम तक नहीं हो पाए थे. भंडारघर की चौखट दीवार छोड़ने लगी थी. रसोई के फर्श में जगहजगह गड्ढे बन गए थे. छत की मुंडेर कई जगह से टूट कर गिरने लगी थी.

कोहबर में बैठी रत्ना सोचने लगी, ‘अम्मापिताजी के दुख के दिन समाप्त होने वाले हैं. अब तो पिताजी के सिर्फ 40-50 हजार रुपए ही खर्च होंगे. बाकी जो 40-50 हजार रुपए और बचेंगे उन से वे पूरे घर की मरम्मत करा सकेंगे. अब पैसा जोड़ना ही किस के लिए है? मुन्ना की पढ़ाई का खर्च तो वे अपने वेतन से ही चला लेंगे.

‘जब सारी दीवार के उधड़े प्लास्टर की मरम्मत हो जाएगी और ऊपर से पुताई भी, तो दीवार कितनी सुंदर लगेगी. फर्श के भी सारे गड्ढे भर कर चिकने हो जाएंगे. मां को घर में पोंछा लगाने में आसानी होगी. फर्श की दरारों में फंसे गेहूं के दाने, बाल के गुच्छे, आलपीन वगैरह चाकू से कुरेदकुरेद कर नहीं निकालने पड़ेंगे…’

यही सब सोचसोच कर रत्ना पुलकित हो रही थी.

रत्ना के भावी पति का नाम आनंद था. आनंद के प्रति कृतज्ञता ने रत्ना के रोमरोम में प्यार और समर्पण भर दिया. बिना भांवर फिरे ही रत्ना आनंद की हो गई.

तभी बाहर के शोरगुल से उस के विचारों को झटका लगा और वह खयालों के आसमान से उतर कर वास्तविकता के धरातल पर आ गई.

‘‘कोई आया है.’’

‘‘बड़ी मौसी आई हैं.’’

‘‘दीदी आई हैं.’’

इन सम्मिलित शोरशराबे से रत्ना समझ गई कि पटना वाली मौसी आई हैं.

बहुत हंसोड़, खूब गप्पी और एकदम मुंहफट, घर अब शादी के घर जैसा लगेगा. कभी हलवाइयों के पास जा कर वे जल्दी करने का शोर मचाएंगी, घीतेल बरबाद नहीं करने की चेतावनी देंगी, तो कभी भंडार से सामान भिजवाने की गुहार लगाएंगी. इसी बीच ढोलक के पास बैठ कर बूआ लोगों को दोचार गाली भी गाती जाएंगी.

मां को धीरे से कभी किसी से सचेत कर जाएंगी तो कभी कुछ सलाह दे जाएंगी. दहेज का सामान देखने बैठेंगी तो छूटाबढ़ा कुछ याद भी दिला देंगी. बुलंद आवाज से खूब रौनक लगाएंगी. यह सब सोचतेसोचते रत्ना का धैर्य जाता रहा. वह जल्दीजल्दी कोहबर की लोकरीति खत्म कर बाहर आ गई.

रत्ना ने देखा कि मौसी का सामान अंदर रखा जा चुका था. मौसी भी अंदर आ तो गई थीं पर यह क्या? कैसा सपाट चेहरा लिए खड़ी हैं? शादी के घर में आने की जैसे कोई ललक ही न हो. कहां तो बिना वजह इस उम्र में भी चहकती रहती हैं और कहां चहकने के माहौल में जैसे उन्हें सांप सूंघ गया हो.

मां ने बेचैनी भरे स्वर में पूछा, ‘‘क्या बात है दीदी, क्या बहुत थक गई हो?’’

‘‘हूं, पहले पानी पिलाओ. फिर इन गानेबजाने वालियों को विदा करो तो बताऊं क्या बात है?’’ मौसी ने समय नष्ट किए बिना ही इतना कुछ कह दिया.

मां ने जैसे अनिष्ट को भांप लिया हो, फिर भी साहस कर आशंकित हो कर पूछा, ‘‘क्या हुआ, दीदी? गानाबजाना क्यों बंद करा दूं? यह तो गलत होगा. जल्दी कहो, दीदी, क्या बात है?’’

‘‘बैठो सुमित्रा, बताती हूं. अब समय बहुत कम है, इसलिए तुरंत निर्णय ले लो. हिम्मत से काम लो और अपनी रत्ना को बचा लो,’’ मौसी ने बैठेबैठे ही मां की दोनों हथेलियां अपनी मुट्ठी में दबा लीं.

‘‘जल्दी बताओ दीदी, कहना क्या चाहती हो?’’ घबराहट में जैसे मां के शब्द ही सूख गए. चेहरा ऐसा लग रहा था जैसे दिल का दौरा पड़ गया हो. मौसी भी घबरा गईं लेकिन समय की कमी देखते हुए उन्हें बात जल्दी से जल्दी कहनी थी वरना कोई और बुरा हादसा हो जाता. अभी तो ये अपनी बात कह कर सुमित्रा को संभाल भी लेंगी और जो सदमा देने जा रही थीं, उसे साथ रह कर बांट भी लेंगी.

‘‘सुनो सुमित्रा, जिस आनंद को तुम रत्ना का पल्लू से बांध रही हो वह पहले से ही शादीशुदा है.’’

सुमित्रा की भौंहें तन गईं, ‘‘क्या कह रही हो, दीदी? जिस ने यह शादी तय कराई है वह क्या इस बात को छिपा कर रखेगा?’’

‘‘हां सुमित्रा, शांत हो जाओ और धीरज धरो, या तो उस ने बात छिपाई होगी या लड़के वालों ने उस से बात छिपाई होगी. मैं तो कल ही आ जाती, लेकिन इस बात की सचाई का पता लगाने के लिए कल आरा चली गई थी. वहां मुझे दिनभर रुकना पड़ा, नहीं तो कल पहुंच जाती तो बात संभालने के लिए तुम लोगों को भी समय मिल जाता. खैर, अभी भी बिगड़ा कुछ नहीं है. किसी तरह समय रहते सबकुछ तय कर ही लेना है.’’

रत्ना के पैर थरथराने लगे. लगा कि वह गिर पड़ेगी. मौसी ने इशारे से रत्ना को पास बुलाया और हाथ पकड़ कर बगल में बिठा लिया.

‘‘दुखी मत हो बेटी, संयोग अच्छा है. समय रहते सचाई का पता चल गया और तुम्हारी जिंदगी बरबाद होने से बच गई.’’

मौसी के दिलासा दिलाने के बावजूद रत्ना को आंसू रोकना मुिश्कल हो रहा था.

रत्ना के पिता ने अधीर हो कर पूछा, ‘‘आप को कैसे पता चला कि आनंद शादीशुदा है?’’

समय की कमी देखते हुए मौसी ने जल्दीजल्दी बताया, ‘‘पटना में रत्ना के मौसा के दफ्तर में विष्णुदेवजी काम करते हैं. मैं यहां आने से ठीक एक दिन पहले उन के घर गई थी. उन्हें मैं ने बताया कि मैं अपनी बहन की लड़की की शादी में गया जा रही हूं. फिर उन्हें मैं ने बातोंबातों में आनंद के परिवार के बारे में भी बताया. बीच में ही उन की पत्नी उठ कर अंदर चली गईं. आईं तो एक एलबम लेती आईं. उस में एक जोड़े का फोटो लगा था, दिखा कर बोलीं, ‘यही आनंद तो नहीं है?’ फोटो देख कर मैं तो जैसे आकाश से गिर पड़ी. वह उसी आनंद का फोटो था. तुम ने मुझे देखने के लिए जो भेजी थी, वैसी आनंद की एक और फोटो उस एलबम में लगी थी. फिर जब सारे परिवार की बात चली तो शक की बिलकुल गुंजाइश ही नहीं रह गई, क्योंकि तुम ने तो सब विस्तार से लिख ही भेजा था.’’

रत्ना की मां आगे सुनने का धैर्य नहीं जुटा पाईं. वे अपनी बहन की हथेली पकड़ेपकड़े ही रोने लगीं, ‘‘हाय, अब क्या होगा? बरात लौटाने से तो पूरी बिरादरी में ही नाक कट जाएगी.’’

अब तक रत्ना भी जी कड़ा कर संयत हो गई थी. दुख और क्षोभ की जगह क्रोध और आवेश ने ले ली थी, ‘‘नाक क्यों कटेगी मां? नाक कटाने वाला काम हम लोगों ने किया है या उन्होंने?’’ रत्ना के पिता ने सांस भर कर कहा, ‘‘ये सारे इंतजाम व्यर्थ हो गए. अब तक का सारा खर्च पानी में…’’ बीच में ही उन का भी गला भरभराने लगा तो वे भी चुप हो गए.

इस समय पूरे घर का संबल जैसे रत्ना की बड़ी मौसी ही हो गईं, ‘‘क्यों दिल छोटा कर रहे हो तुम लोग? समय रहते बच्ची की जिंदगी बरबाद होने से बच गई. क्या इस से बढ़ कर खर्च का अफसोस है? यह सोचो कि अगर शादी हो जाती तो रत्ना कहीं की न रहती. तुम लोग धीरज से काम लो, मैं सब संभाल लूंगी. अभी कुछ बिगड़ा भी नहीं है, और समय भी है. मैं जा कर सब से पहले शामियाने वाले और सजावट वालों को विदा करती हूं. फिर इन लड़कियों और पड़ोसिनों को संभाल लूंगी. जो सामान बना नहीं है वह सब वापस हो जाएगा और जो पक गया है उसे हलवाइयों से कह कर होटलों में खपाने का इंतजाम करवाती हूं.’’

फिर तो मौसी ने सबकुछ बड़ी तत्परता से संभाल लिया. मांपिताजी और रत्ना तीनों को तो जैसे काठ मार गया हो. हमेशा चहकने वाला मुन्ना भी वहीं चुपचाप मां के पास बैठ गया. बाकी सगेसंबंधी समय की नाजुकता समझते हुए चुपचाप इधरउधर कमरों में खिसक लिए. सब तरफ धीमेधीमे खुसुरफुसुर में बात जानने की उत्सुकता थी पर स्थिति की नाजुकता को देखते हुए मुंह खोल कर कोई कुछ पूछ नहीं रहा था. सभी शांति से मौसी के आने के इंतजार में थे.

एकडेढ़ घंटे में सब मामला सुलझा कर, एकदो नजदीकी रिश्तेदारों को हर अलगअलग विभाग को निबटाने की जिम्मेदारी दे कर, मौसी अंदर आईं. अब इस थकान में उन्हें एक कप चाय की जरूरत महसूस हुई. महाराजिन से सब के लिए चाय भिजवाने का आदेश जारी करते हुए मां से बोलीं, ‘‘सुमित्रा, तुम जरा भी निराश मत हो. मैं रत्ना के लिए बढि़या से बढि़या लड़का ला कर खड़ा कर दूंगी. और वह भी जल्दी ही. जिस आनंद की तुम ने इतनी तारीफ लिख कर भेजी थी, वह दोदो शादियां रचाए बैठा है. विष्णुदेव के बड़े भैया की आरा में फोटोग्राफी की बहुत बड़ी दुकान है. उन्हीं की लड़की से शादी हुई थी उस धोखेबाज आनंद की. विष्णुजी के भैया ने खूब धूमधाम से अपनी बेटी की शादी की थी. लड़की भी बेहद खुश थी. एक हफ्ते ससुराल रह कर आई तो आनंद की खूब तारीफ की. आनंद 15 दिन रह कर अमेरिका चला गया. बहुत दिन तक आनंद के मातापिता कहते रहे कि बहू का वीजा बना नहीं है, बन जाएगा तो चली जाएगी. वैसे बहू को वे लोग भी प्यार से ही रखते थे.

‘‘लेकिन 3-4 माह बाद ही आनंद ने अपनी बीवी को पत्र लिखा कि ‘मुझे बारबार बुलवाने के लिए पत्र लिख कर तंग मत करो. मैं तुम्हें अंधेरे में रख कर परेशान नहीं करूंगा. मैं तुम्हें अमेरिका नहीं बुला सकता क्योंकि यहां मेरी पत्नी है जो 3 साल से मेरा साथ अच्छी तरह निभा रही है.

‘‘‘मेरे मांबाप को एक हिंदुस्तानी बहू की जरूरत थी, सो तुम से शादी कर मैं ने उन्हें बहू दे दी. मेरा काम खत्म हुआ. अब तुम उन की बहू बन कर उन्हें खुश रखो. वे भी तुम्हें प्यार से रखेंगे. मैं भी हिंदुस्तान आने पर जहां तक संभव होगा, तुम्हें प्यार और सम्मान दूंगा लेकिन अमेरिका आने की जिद मत करना. वह मेरे लिए संभव नहीं होगा.’

‘‘इस के बाद विष्णुजी के भैयाभाभी बेटी को हमेशा के लिए ससुराल से लिवा लाए. तलाक का नोटिस भिजवा दिया. हालांकि आनंद के मातापिता ने बहुत दबाव डाला कि बहू को छोड़ दें. वे कह रहे थे, ‘इसी की सहायता से हम लोग आनंद को हिंदुस्तान लाने में सफल होंगे. आनंद हम लोगों को बहुत प्यार करता है. देरसवेर उसे अमेरिकी बीवी को ही छोड़ना पड़ेगा.’ लेकिन विष्णुदेव के भैयाभाभी नहीं माने और समधी को इस धोखे के लिए खरीखोटी सुनाईं. तलाक भी जल्दी ही मिल गया. लेकिन जरा उन लोगों की धृष्टता तो देखो, इतना सबकुछ हो जाने के बाद भी हिंदुस्तानी बहू लाने का चाव गया नहीं है. फिर लड़के को देखो, वह कैसे दोबारा फिर सेहरा बांधने को तैयार हो गया.’’

किसी दूसरे के घर की यह घटना होती तो मौसी बड़ी रसिकता से आनंद के परिवार के साथसाथ उस से जुड़ने वाले बेबस परिवार को भी अपने परिहास की परिधि में लपेटने से नहीं चूकतीं. पर यहां मामला अपनी सगी बहन का था और इस संकट में उन का अवलंबन भी वही थीं. इसलिए वे पूरी संजीदगी के साथ स्थिति को विस्फोटक होने से बचाए हुए थीं.

‘‘मौसी, लड़के की अक्ल पर क्या परदा पड़ा है जो वह मांबाप के इस बेहूदा खेल में दोबारा शामिल हो रहा है?’’ अभी तक रत्ना जिसे मन ही मन महान समझ रही थी, उस के प्रति उस का तनमन वितृष्णा और घृणा से भर उठा.

‘‘अरी बेटी, अनदेखे लड़की वालों के घर से उसे क्या सहानुभूति होगी? हिंदुस्तान आने पर मांबाप फिर हिंदुस्तानी बहू की रट लगा देते होंगे, अपने अकेलेपन की दुहाई देते होंगे. रातदिन के अनुरोध को टालना उस के बस की बात नहीं रहती होगी.’’

‘‘सुना है, अभी भी वह मांबाप का बड़ा आदर करता है और उन से डरता भी है. अमेरिका जा कर वह जरा भी नहीं बदला है. बस, अमेरिका वाली ही उस के दिल का रोग हो गई है, जो सुना है कि हिंदुस्तान नहीं आना चाहती. हिंदुस्तान में मांबाप के साथ शांति से एकदो महीने गुजर जाएं और मौजमस्ती के लिए एक पत्नी भी मिल जाए, इस से बढि़या क्या होगा. शायद इसीलिए वह दोबारा शादी करने के लिए राजी हो गया होगा.’’

सबकुछ सुन कर रत्ना के मातापिता मोहन व सुमित्रा तो वहीं तख्त पर निढाल से पड़ गए. सुमित्रा की आंखों से अविरल आंसू बह रहे थे. रत्ना के पास भी अब उपयुक्त शब्द नहीं थे जो वह मां को चुप कराती. उस के तो हृदय में स्वयं एक मर्मांतक शूल सा उठ रहा था. सारे रिश्तेदार चुपचाप अपनेअपने कमरों में जा कर तय करने लगे कि जल्द से जल्द किस गाड़ी से वापस लौटा जाए? किसी ने भी मोहन और सुमित्रा पर आर्थिक और मानसिक बोझ बढ़ाना उचित नहीं समझा.

रत्ना के ताऊजी ने पुलिस कार्यवाही करने की सलाह दी. लेकिन मोहनजी ने भीगे और टूटे स्वर में कहा, ‘‘अब यह सब करने से हमें क्या फायदा होगा? उलटे मुझे ही शारीरिक, मानसिक और आर्थिक कष्ट होगा. उत्साह का काम होता तो शरीर भी सहर्ष साथ देता और पैसे की भी चिंता नहीं होती.’’

अपने मनोभावों को पूरी तरह व्यक्त करने की शक्ति भी मोहनजी में नहीं रह गई थी. इसलिए यही तय किया गया कि बरातियों को अपमानित कर के ही उसे दंडित किया जाए.

किया भी यही गया. बराती संख्या में बहुत कम थे. स्वागत तो दूर, उन्हें बैठने तक को नहीं कहा गया. चारों तरफ से व्यंग्यबाण बरसाए जा रहे थे. आनंद के पिता हर तरह से सफाई देने की कोशिश में थे, किंतु कोई कुछ सुनने को तैयार नहीं था. बरात में आए एकदो बुजुर्गों ने भी सुलह करने का परामर्श देना चाहा तो कन्या पक्ष वालों ने उन्हें भी बुरी तरह से लताड़ा.

रिश्तेदारों की निगाहों से बच कर रत्ना चुपचाप अकेली कोहबर में आ गई. बाहर उठता शोर रत्ना के कानों में सांपबिच्छू के दंश सा कष्ट दे रहा था. हालात ने उसे आशक्त, असमर्थ और जड़ बना दिया था. कांपते हाथों से धीरेधीरे वह विवाह के लिए पहनी जाने वाली पीली साड़ी उतारने लगी. दो चुन्नट खोलतेखोलते जैसे शक्ति क्षीण होने लगी. पास पड़ी पीढ़ी पर निढाल सी बैठ गई. रत्ना की सूनी निगाहें दीवार ताकने लगीं, ‘अब इन दीवारों पर प्लास्टर नहीं होगा, पुताई…’ आगे सोचने की भी सामर्थ्य जवाब दे गई और वह जोरजोर से हिचकियां भरने लगी.

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