प्रश्नचिह्न- भाग 1: निविदा ने पिता को कैसे समझाया

निविदा को चंडीगढ़ के मशहूर गर्ल्स कालेज में प्रवेश मिल गया था. उस की खुशी का ठिकाना न था. उज्ज्वल भविष्य की एक उम्मीद तो पक्की हो ही गईर् थी, पर सब से बड़ी बात यह थी कि वह अपने घर से भाग जाना चाहती थी. घुटन होती थी उसे यहां रहने में. नफरत हो गई थी उसे पिता की दबंगता व मम्मी की भीरुता से.

निविदा उठ कर अपनी स्टडी टेबल पर बैठ गई. मन में पिता के रौद्र रूप का कुछ ऐसा डर बैठा कि वह अपनी सहेलियों के पिताओं से भी डरने लगी. कोई उस से ऊंची आवाज में कुछ पूछ लेता तो उस के मुंह से शब्द नहीं निकल पाते. ऐसी स्थिति उस के साथ अकसर आती.

उस की सहेलियां अकसर उस का मजाक उड़ातीं, ‘‘कब तक बच्ची बनी रहेगी?’’

मम्मी का कभी सिर फूटा होता, कभी गालों पर थप्पड़ों के निशान होते, तो कभी पीठ पर नील पड़े होते. मम्मी को तो लंबे समय तक नाराज रहने या बोलचाल बंद रखने का भी अधिकार नहीं था. पापा से अधिक मुंह फुला कर बात करना भी उन्हें भारी पड़ जाता. वे और पिट जातीं. अगर पिटतीं नहीं तो खाने की थाली फिंकती या घर की कोई अन्य चीज टूटती. घर का वातावरण हमेशा तनावपूर्ण बना रहता. उस में सांस लेना दूभर हो जाता.

बचपन की याद आते ही निविदा का मन कड़वाहट से भर गया. उसे याद आया कि

क्लास में टीचर अचानक खड़ा कर के कोई

प्रश्न पूछते तो उत्तर आते हुए भी वह बता नहीं पाती थी और अगर टीचर ने डांट दिया तो उस की बोलती अगले कई दिनों के लिए बंद हो

जाती थी. वह चाहते हुए भी बातचीत शुरू नहीं कर पाती थी.

निविदा की ऐसी कई स्थितियां देख कर प्रिंसिपल जबतब उस की मम्मी को बुला लेती थीं पर मम्मी बेचारी भी क्या करतीं. वे इतनी परेशान हो गईं कि उस का स्कूल बदलने का सोचने लगीं. तब मम्मी की एक फ्रैंड ने उसे किसी मनोचिकित्सक को दिखाने की सलाह दी. मम्मी पिता से छिप कर उसे मनोचिकित्सक के पास ले गईं.

डाक्टर ने सबकुछ विस्तार से जानना चाहा तो मम्मी ने सबकुछ बता दिया.

पूरी बात सुन कर डाक्टर ने कहा, ‘‘मैं दवा तो दूंगा, लेकिन सब से पहला इलाज तो आप दोनों पतिपत्नी के हाथों में है. इस तरह लड़ते पतिपत्नी, एक कोने में खड़े बच्चों को बिलकुल भूल जाते हैं कि उन के कोमल मन पर इस का कितना खतरनाक असर पड़ता है.

‘‘आज की आप लोगों की  गलतियां आप की बेटी को मानसिक रूप से उम्रभर के लिए पंगु बना देंगी. वह अपना आत्मविश्वास खो देगी. मानसिक रूप से बीमार हो जाएगी.’’

‘‘आप ही बताएं, क्या करूं डाक्टर?’’

‘‘मेरे खयाल से बच्ची के भविष्य के लिए आप को अपने पति से अलग हो जाना चाहिए.’’

‘‘यह कैसे होगा डाक्टर… बच्ची का भविष्य बनाने के लिए पैसा भी तो चाहिए? मायके से भी कोई सहारा नहीं है मुझे,’’ मम्मी हताश हो कर बोलीं तो डाक्टर हार कर चुप हो गए.

डाक्टर से दवा लिखवा कर मम्मी उसे घर ले आई थीं. उस के बाद मम्मी उस का अतिरिक्त खयाल रखने लगी थीं.

बड़ी होतेहोते निविदा समझने लगी थी कि उसे अतिरिक्त भावनात्मक सुरक्षा देने में मम्मी भी किस कशमकश व अंतर्द्वंद्व के दौर से गुजरती थीं.

एक तरफ गुस्से से दहाड़ता पति, दूसरी तरफ कांपती बेटी… मम्मी को खुद को कितना जोड़ना पड़ता था उसे टूटने से बचाने के लिए.

मम्मी बस उसे उठतेबैठते पढ़ाई पर ध्यान लगाने के लिए समझातीं, कुछ बड़ा करने के लिए प्रेरित करतीं, ‘‘देख बेटा, बहुत कुछ हासिल कर सकती है तू अपनी शिक्षा के बल पर… अपने पैरों पर खड़ा होना और वह भी इतनी मजबूती से कि कोई तुझे धक्का न दे सके… बस तू पढ़ाई में अपना तनमन लगा दे.’’

और निविदा ने खुद को किताबों में डुबो दिया. जबजब घर की स्थिति कटुपूर्ण होती, वह अपने कमरे का दरवाजा बंद कर देती, क्योंकि पिता का विरोध करने की उस में हिम्मत नहीं थी. ‘पिता का मजबूती से विरोध करने के लिए उसे मजबूती से अपने पैरों पर खड़ा होना पड़ेगा,’ इसी सोच ने उसे किताबी कीड़ा बना दिया.

12वीं कक्षा में उस ने 97% मार्क्स लिए. मम्मी काफी खुश हुईं. पापा ने भी बहुत शाबाशी दी. बेटी की प्रगति से वे खुश तो होते थे पर वे उस का खो क्या रहे हैं, यह नहीं समझते थे.

लड़कियों के मामले में उस के पिता आज भी दकियानूसी विचारों के थे. लड़कों से दोस्ती, खुली या छोटी पोषाक पहनना, बातचीत में खुलापन, बड़ों से हर विषय पर बातचीत, लड़की का मुंह उठा कर कुछ भी जोर से बोल देना, देर तक सहेली के घर रुकना, उन की नजरों में आज के जमाने में भी संस्कारहीन रवैया था. ऐसे ही बहुत से कारण थे जिन से वह इस बंदीगृह से भाग कर खुली हवा में सांस लेना चाहती थी.

आखिर उस का प्रवेश चंडीगढ़ के एक कालेज में हो गया. लेकिन उस की मुश्किलें यहां भी कम नहीं हुईं. पीजी होस्टल में उसे रूममेट के नाम पर जिस लड़की का साथ मिला, वह उस से बिलकुल उलट थी. मालिनी अति आत्मविश्वासी, बिंदास, टौमबौय टाइप की, पढ़ने में औसत, एक हाकी प्लेयर थी जिस का प्रवेश इस कालेज में स्पोर्ट्स कोटे से हुआ था.

निविदा ने कमरे में पहले अपना सामान रखा, बाद में मालिनी आई थी. 5 फुट 7 इंच लंबी पैंटशर्ट पहने, बौय कट हेयर और लड़कों जैसे बेबाक हावभाव व बातचीत देख कर निविदा पहले ही दिन घबरा गई कि कहां फंस गई… यह तो पढ़ने भी नहीं देगी. उस ने अपना कमरा बदलवाने की कोशिश भी की पर सफल न हो सकी.

‘‘क्या बात है कमरा बदलवाने गईर् थी? मुझ से डर लगता है… खा जाऊंगी क्या?’’

‘‘न… नहीं तो…’’ निविदा उस की बेबाक बात से सूखे पत्ते सी कांप गई.

‘‘तो फिर?’’ वह एक पैर कुरसी पर रखती हुई बोली.

‘‘नहीं, बस मैं तो ऐसे ही…’’

‘‘क्या कमरा बदलना है?’’ वह उस के कंधे पर हाथ रखते हुए, देख लेने वाले अंदाज में बोली, ‘‘तो बदलवा देती हूं.’’

‘‘न… नहीं तो…’’

‘‘ठीक है तो फिर फिक्र मत कर…’’ वह कंधा थपथपाते हुए बोली, ‘‘अब चल जरा मेरा सामान खोल और मेरी अलमारी में लगा दे..’’

‘‘मैं?’’

‘‘हां तो और कौन? पिघल जाएगी क्या

मेरा सामान लगाने में?’’ वह धमकाने वाले अंदाज में बोली.

निविदा आगे कुछ नहीं बोली. चुपचाप मालिनी का सामान निकाल कर अलमारी में लगाने लगी. कमरा छोड़ कर जाए भी तो कहां. यहां होस्टल में यह दबंग लड़की उसे रहने नहीं देगी और घर जाना नहीं चाहती.

मालिनी का बिस्तर ठीक करना, कपड़े धोना, प्रैस करना, मतलब कि उस के सभी जरूरी कार्य करना उस की दिनचर्या में शामिल होने लगा. तिस पर भी मालिनी उसे चैन से रहने दे तब तो. कभी वह कमरे में दोस्तों का जमघट लगा लेती, कभी फोन पर जोरजोर से बातें करती, कभी मोबाइल पर गाने सुनती. और कुछ नहीं तो जबरदस्ती उस से फालतू की बातें करती. वह तभी चैन से पढ़ पाती जब मालिनी कहीं खेलने गई होती.

विद्रोह- भाग 1: क्या राकेश को हुआ गलती का एहसास

सीमा को अपने मातापिता के घर में रहते हुए करीब 15 दिन हो चुके थे. इस दौरान उस का अपने पति राकेश से किसी भी तरीके का कोई संपर्क नहीं रहा था. उस शाम राकेश को अचानक घर आया देख कर वह हैरान हो गई.

‘‘बेटी, आपसी मनमुटाव को ज्यादा लंबा खींचना खतरनाक साबित हो जाता है. राकेश के साथ समझदारी से बातें करना,’’ अपनी मां की इस सलाह पर कोई प्रतिक्रिया जाहिर किए बिना सीमा ड्राइंगरूम में राकेश के सामने पहुंच गई.

‘‘तुम्हें मेरे साथ घर चलना पडे़गा, सीमा,’’ राकेश ने बिना कोई भूमिका बांधे सख्त लहजे में कहा.

‘‘तुम्हारा घर मैं छोड़ आई हूं,’’ सीमा ने भी रूखे अंदाज में अपना फैसला उसे सुना दिया.

‘‘क्या हमेशा के लिए?’’ राकेश ने उत्तेजित हो कर सवाल किया.

‘‘ऐसा ही समझ लो,’’ सीमा ने विद्रोही स्वर में जवाब दिया.

‘‘बेकार की बात मत करो. मेरी सहनशक्ति का तार टूट गया तो पछताओगी,’’ राकेश भड़क उठा.

‘‘मुझे डरानेधमकाने का अब कोई फायदा नहीं है,’’ सीमा ने निडर हो कर कहा, ‘‘अगर तुम्हें और कोई बात नहीं कहनी है तो मैं अपने कमरे में जा रही हूं.’’

राकेश ने अपनी पत्नी को अचरज भरी निगाहों से देखा.  उन की शादी को करीब 12 साल  हो चुके थे. इस दौरान उस ने कभी सपने में भी कल्पना नहीं की थी कि सीमा ऐसे विद्रोही अंदाज में उस से पेश आएगी.

उठ कर खड़ी होने को तैयार सीमा को हाथ के इशारे से राकेश ने बैठने को कहा और फिर  बताया कि कल सुबह मयंक और शिक्षा होस्टल से 10 दिनों की छुट्टियां बिताने घर पहुंच रहे हैं.

कुछ देर सोच में डूबी रहने के बाद सीमा ने व्याकुल स्वर में कहा, ‘‘उन दोनों को यहां मेरे पास छोड़ जाना.’’

‘‘तुम्हें पता है कि तुम क्या बकवास कर रही हो. वह दोनों यहां नहीं आएंगे,’’ राकेश गुस्से से फट पड़ा.

‘‘फिर जैसी तुम्हारी मर्जी, मैं बच्चों से कहीं बाहर मिल लिया करूंगी,’’ सीमा ने थके से अंदाज में राकेश का फैसला स्वीकार कर लिया.

‘‘यह कैसी मूर्खता भरी बात मुंह से निकाल रही हो. तुम्हारे बच्चे 4 महीने बाद घर लौट रहे हैं और तुम उन के साथ घर रहने नहीं आओगी. तुम्हारा यह फैसला सुन कर मुझे अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा है.’’

‘‘अपने बच्चों के साथ कौन मां नहीं रहना चाहेगी,’’ सीमा का अचानक गला भर आया, ‘‘मैं अपने फैसले से मजबूर हूं. मुझे उस घर में लौटना ही नहीं है.’’

‘‘हम अपने झगडे़ बाद में निबटा लेंगे, सीमा. फिलहाल तो बच्चों के मन की सुखशांति के लिए घर चलो. तुम्हें घर में न पाने का सदमा वे दोनों कैसे बरदाश्त करेंगे? अब वे दोनों बहुत छोटे बच्चे नहीं रहे हैं. मयंक 10 साल का और शिखा 8 साल की हो रही है. उन दोनों को बेकार ही मानसिक कष्ट पहुंचाने का फायदा क्या होगा?’’ राकेश ने चिढे़ से अंदाज में उसे समझाने का प्रयास किया.

‘‘एक दिन तो बच्चों को यह पता लगेगा ही कि हम दोनों अलग हो रहे हैं. यह कड़वी सचाई उन्हें इस बार ही पता लग जाने दो,’’ उदास सीमा अपनी जिद पर अड़ी रही.

‘‘ऐसा हुआ ही क्या है हमारे बीच, जो तुम यों अलग होने की बकवास कर रही हो?’’ राकेश फिर गुस्से से भर गया.

‘‘मुझे इस बारे में तुम से अब कोई बहस नहीं करनी है.’’

‘‘इस वक्त सहयोग करो मेरे साथ, सीमा.’’

सीमा ने कोई जवाब नहीं दिया. वह सिर झुकाए सोच में डूबी रही.

राकेश ने अंदर जा कर अपने सासससुर को सारा मामला समझाया. मयंक और शिखा की खुशियों की खातिर वह अपनी नाराजगी व शिकायतें भुला कर राकेश की तरफ  हो गए.

सीमा पर ससुराल वापस लौटने के लिए अब अपने मातापिता का दबाव भी पड़ा. अपने बच्चों से मिलने के लिए उस का मन पहले ही तड़प रहा था. अंतत: उस ने एक शर्त के साथ राकेश की बात मान ली.

‘‘मैं तुम्हारे साथ बच्चों की मां के रूप में लौट रही हूं, पत्नी के रूप में नहीं. पतिपत्नी के टूटे रिश्ते को फिर से जोड़ने का कोई प्रयास न करने की तुम कसम खाओ, तो ही मैं वापस लौटूंगी,’’ बडे़ गंभीर हो कर सीमा ने अपनी शर्त राकेश को बता दी.

अपमान का घूंट पीते हुए राकेश को मजबूरन अपनी पत्नी की बात माननी पड़ी.

‘‘बच्चे कल आ रहे हैं, तो मैं भी कल सुबह घर पहुंच जाऊंगी,’’ अपना निर्णय सुना कर सीमा ड्राइंगरूम से उठ कर अपने कमरे में चली आई.

सीमा के व्यक्तित्व में नजर आ रहे जबरदस्त बदलाव ने उस के मातापिता व पति को ही नहीं, बल्कि उसे खुद को भी अचंभित कर दिया था.

उस रात सीमा की आंखों से नींद दूर भाग गई थी. पलंग पर करवटें बदलते हुए वह अपनी विवाहित जिंदगी की यादों में खो गई. उसे वे घटनाएं व परिस्थितियां रहरह कर याद आ रही थीं जो अंतत: राकेश व उस के दिलों के बीच गहरी खाई पैदा करने का कारण बनी थीं.

उस शाम आफिस से देर से लौटे राकेश की कमीज के पिछले हिस्से में लिपस्टिक से बना होंठों का निशान सीमा ने देखा. अपने पति को उस ने कभी बेवफा और चरित्रहीन नहीं समझा था. सचाई जानने को वह उस के पीछे पड़ गई तो राकेश अचानक गुस्से से फट पड़ा था.

‘हां, मेरी जिंदगी में एक दूसरी लड़की है,’ सीमा के दिल को गहरा जख्म देते हुए उस ने चिल्ला कर कबूल किया, ‘उस की खूबसूरती, उस का यौवन और उस का साथ मुझे वह मस्ती भरा सुख देते हैं जो तुम से मुझे कभी नहीं मिला. मैं तुम्हें छोड़ सकता हूं, उसे नहीं.’

‘मेरे सारे गुण…मेरी सेवा और समर्पण को नकार कर क्या तुम एक चरित्रहीन लड़की के लिए मुझे छोड़ने की धमकी दे रहे हो?’ राकेश के आखिरी वाक्य ने सीमा को जबरदस्त मानसिक आघात पहुंचाया था.

‘उस लड़की के लिए न कोई अपशब्द कभी मेरे सामने निकालना और न उसे छोड़ने की बात करना. तुम अपनी घरगृहस्थी और बच्चों में खुश रहो और मुझे भी खुशी से जीने दो,’ कहते हुए बड़ी बेरुखी दिखाता राकेश बाथरूम में घुस गया था.

वह रात सीमा ने ड्राइंगरूम में पडे़ दीवान पर आंसू बहाते हुए काटी थी. उस के दिलोदिमाग में विद्रोह के बीज को इन्हीं आंसुओं ने अंकुरित होने की ताकत दी थी.

उस रात सीमा ने अपने दब्बूपन व कायरता को याद कर के भी आंसू बहाए थे.

परवरिश- भाग 3: मानसी और सुजाता में से किसकी सही थी परवरिश

अक्षत का आचरण समझ में नहीं आ रहा था. बहू आखिर कितनी भी खराब क्यों न हो, तब भी क्या अक्षत का उसे समझाना जरूरी नहीं. और कम से कम अगर उस की बीवी पर नहीं चलती तो वह अपना व्यवहार तो ठीक रख सकता है मां के साथ? दीदी जो कुछ बातें बता रही थीं, लग रहा था जैसे मेरा किशोरावस्था का राहुल मेरे सामने आ खड़ा है. तब दीदी कहती थीं, ‘मैं तेरी जगह होती तो थप्पड़ लगा देती.’ क्या अब अक्षत को थप्पड़ लगा सकती हैं दीदी? क्या बहू को चुप करवा सकती हैं?

दीदी की समस्या अपनों से थी जिस में मैं कुछ नहीं कर सकती थी. अक्षत मेरी सुनने वाला भी नहीं था. फिर भी मैं ने एक बार अक्षत से बात करने की सोची. मैं   2-4 दिन वहां रही. मेरे सामने सबकुछ ठीक ही रहा. लेकिन छोटीछोटी बातों में भी मैं ने बहुत कुछ महसूस कर लिया. कच्चे पड़ते रिश्तों के धागों की तिड़कन, रिश्तों में आता ठंडापन, बहुत कुछ.

एक दिन मैं ने अक्षत को मौका देख कर पास बुलाया, ‘कुछ कहना चाहती हूं अक्षत तुम से.’

‘कहिए, मौसी…’ अक्षत ने बिना किसी लागलपेट के नितांत लापरवाही से कहा.

‘कुछ निजी सवाल करूंगी…बुरा तो नहीं मानोगे?’ मैं अंदर से थोड़ा घबरा भी रही थी कि कहीं ऐसा न हो कि होम करते हाथ जल जाएं.

‘क्या…’ अक्षत की प्रश्न भरी नजरें मेरे चेहरे पर टिक गईं. मेरी समझ में नहीं आया, कहां से बात शुरू करूं, ‘क्या कुछ ठीक नहीं चल रहा है घर में?’ मेरे मुंह से फिसल गया.

‘क्या ठीक नहीं चल रहा है…’ अक्षत की त्यौरियां चढ़ गईं.

‘अपनी मां को नहीं जानते, अक्षत, दीदी अपने जीवन की कमियों के बारे में बात भी करती हैं कभी, वह तो हमेशा ही अपनेआप को संपूर्ण दिखाना चाहती हैं.’

‘हां, चाहे उस के लिए घर वालों को कितनी भी घुटन क्यों न हो?’

‘कैसी बात करते हो अक्षत…तुम अपनी मां के बारे में बात कर रहे हो…’

‘जानता हूं, मौसी…जीवन भर मां सब पर हुक्म चलाती रहीं…अब मां चाहती हैं कि बहूबेटे की गृहस्थी भी उन के अनुसार ही चले, बहू को भी वह वैसे ही अंकुश में रखें जैसे हम सब को रखती थीं…उन की किसी के साथ बन ही नहीं सकती,’ अक्षत गुस्से में बोला.

‘अक्षत, क्या मैं दीदी को नहीं जानती, कितना संघर्ष किया है उन्होेंने जीवन में, सभी नातेरिश्ते भी निभाए, तुम्हारे पापा को भी देखा, तुम्हें उन के संघर्ष  को समझना चाहिए. यह नहीं कि बीवी ने कुछ बोला और तुम ने आंख मूंद कर विश्वास कर लिया,’ मैं हिम्मत कर के कह गई.

‘मैं इस बारे में अधिक बहस नहीं करना चाहता, मौसी, और मैं आंख मूंद कर क्यों विश्वास करूंगा? क्या मैं मां का स्वभाव नहीं जानता…’ कह कर अक्षत उठ गया.

अक्षत चला गया लेकिन मेरे दिल में एक सूनापन छोड़ गया. अक्षत का व्यवहार देख कर मैं ने राहुल और नियोनिका की तरफ से अपना मन और भी मजबूत कर लिया. कैसा बदल जाता है बेटा शादी के बाद…और मेरा बेटा तो पहले से ही बदला बदलाया है. बस, अंतर इतना है कि दीदी के साथ जीजाजी का साथ नहीं है.

‘दीदी, कुछ दिन मेरे पास रहने आ जाओ…’ मैं ने आते समय दीदी को गले लगा कर सांत्वना दी. उन के घाव पर तो मरहम भी काम नहीं कर रहा था, क्योंकि घाव अपनों ने दिए थे. परायों का मरहम क्या काम करता.

घर पहुंची तो 2 दिन घर ठीकठाक करने में लग गए. अगले दिन राहुल व नियोनिका वापस लौट आए. मैं अनायास ही राहुल के व्यवहार में अक्षत को ढूंढ़ने लग गई, लेकिन अभी तो राहुल ही बदला हुआ नजर आ रहा था. पता नहीं कितने दिन का है यह बदलाव.

मुझ से हर बात पर लड़ने और विद्रोह करने वाला राहुल, बीवी के सामने अचानक इतना आज्ञाकारी कैसे हो गया. राहुल मुझ से और अपने पापा से प्यार और इज्जत से बात करता. नियोनिका नई लड़की थी, जैसा राहुल को देखती वैसा ही करती.

मैं शाम की चाय बना रही थी. राहुल और नियोनिका लान में बैठे थे. तब तक उस के पापा लान में चले गए. एक कुर्सी खाली पड़ी थी फिर भी राहुल ने उठ कर पापा की तरफ अपनी कुर्सी बढ़ा दी. मैं अंदर से देख रही थी. चाय की ट्रे ले कर मैं बाहर आ गई. राहुल की ही तरह नियोनिका ने भी उठ कर मेरी तरफ अपनी कुर्सी बढ़ा दी. राहुल ने उठ कर मेरे हाथ से चाय की ट्रे ले ली.

कहीं अंदर तक मन भीग गया. बात बड़ी छोटी सी थी पर अपने राहुल से इस तरह के व्यवहार की उम्मीद नहीं की थी. नौकरी के बाद उस में थोड़ाबहुत बदलाव आया तो था लेकिन विवाह के बाद? दीदी कहती हैं, अक्षत अब वह अक्षत नहीं रहा और इधर राहुल भी वह राहुल नहीं रहा है. बदलाव तो दोनों में आया पर एकदूसरे के विपरीत, ऐसा क्यों? तभी राहुल मुझे कंधों से पकड़ कर बिठाता हुआ बोला.

‘बहुत कर लिया मम्मी, आप ने काम…अब अपनी जिम्मेदारी नियोनिका को दो और आप तो बस, इस की मदद करो. और बैठ कर राज करो. पापा के साथ ज्यादा वक्त बिताओ, घूमने जाओ. एक समय होता है जब मातापिता बच्चों के लिए करते हैं…फिर एक समय आता है जब बच्चे मातापिता के लिए करते हैं. आप दोनों ने बहुत किया, अब हमारा समय है,’ मैं अपलक राहुल का चेहरा देखती रह गई.

राहुल ने मुझे कुर्सी पर बिठा दिया. नियोनिका ने अपने पापा और मुझे चाय का कप पकड़ा दिया. सभी बातें करते हुए चाय पी रहे थे और मैं अपनेआप में गुम सोच रही थी कि किशोरावस्था में आवश्यकता से अधिक नियंत्रण ने शायद अक्षत की आक्रामकता को, गुस्से को, मातापिता के अनुशासन के प्रति उस उम्र के स्वाभाविक विद्रोह को बाहर नहीं निकलने दिया, यहां तक कि जीजाजी भी दीदी से दबते रहे. अक्षत को दीदी से शिकायत भी हुई तो उस ने अपने अंदर दबा ली. चिंगारी अंदर दबी रही और बहू की शिकायतों ने उसे शोलों में बदल दिया और किशोरावस्था की उन मासूम सी शिकायतों को इतना कठोर रूप दे दिया.

कितना कहती थी मैं दीदी से तब कि बच्चों पर आवश्यकता से अधिक नियंत्रण ठीक नहीं है. बंधन और अनुशासन में फर्क होता है पर दीदी किसी की कहां सुनती थीं. बचपन बुनियाद है और किशोरावस्था दीवारें, जिस पर युवावस्था की छत पड़ती है और शेष जीवन जिस में इनसान हंसता या रोता है. यही कारण था शायद अक्षत के आज के इस व्यवहार का, जबकि राहुल ने उस उम्र की सारी भड़ास उसी उम्र में निकाल दी, जिस से उस के दिलोदिमाग में मातापिता के लिए कोई ग्रंथि नहीं पनपने पाई बल्कि उस ने मातापिता के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझा और शायद कहीं पर अपनी गलतियों को भी.

‘‘मम्मी, क्या सोच रही हैं…’’ राहुल ने मुझे हिलाया तो मेरी तंद्रा टूटी. मैं अतीत से निकल कर वर्तमान में आ गई, ‘‘चलिए, हम सब रात का शो देखते हैं… और बाहर ही डिनर करेंगे,’’ नियोनिका को सब का एकसाथ जाना पसंद हो न हो पर राहुल ने यह बात पूरे आत्मविश्वास से कही. मैं ने खुशी से उस का गाल थपथपा दिया.

‘‘अरे, हम तो अपने जमाने में खूब गए पिक्चर देखने…अब तुम्हारा समय है…जाओ…मैं भी तो देखूं, कितने प्यारे लगते हैं मेरे बच्चे साथसाथ चलते हुए,’’ कह कर मैं ने उन दोनों को जबरन उठा दिया. हमारे बच्चे कार में बैठ रहे थे और हम दोनों उन को ममता भरी निगाहों से निहार रहे थे.

‘‘अपना राहुल कितना बदल गया है, है न?’’ मैं इन के पास खिंच आई.

‘‘हां…’’ यह मेरा गाल थपक कर बोले, ‘‘मैं तो तुम से पहले ही कहता था कि तुम किशोरावस्था में उस का व्यवहार देख कर भविष्य की बात मत सोचो. हमारा पालनपोषण का तरीका, हमारे दिए संस्कार उस के भविष्य के व्यक्तित्व का निर्माण करेंगे. अब देखो, राहुल का अपना आत्मविश्वास ही है जिस से वह अपने तरीके से व्यवहार करता है. वह किसी दबाव में न आ कर स्वाभाविक तरीके से रहता है.

मातापिता की इज्जत करता है, इसीलिए नियोनिका को कुछ समझाना नहीं पड़ता. राहुल उस से कोई जबरदस्ती नहीं करता, लेकिन जैसा वह करता है वैसा ही नियोनिका भी करने की कोशिश करती है, वरना जब तुम्हारा बेटा ही तुम्हें आदर नहीं देगा, तुम्हारे वजूद को महत्त्व नहीं देगा तो बहू से कैसे उम्मीद कर सकते हैं. और इस की बुनियाद बहुत पहले किशोरावस्था में ही पड़ चुकी होती है. यदि उस उम्र में मातापिता की बच्चों के साथ संवाद- हीनता की स्थिति रहती है तो वही स्थिति बाद में विकट हो जाती है.’’ यह बोले तो इन की बात का विश्वास मुझे अंदर ही अंदर हो रहा था.

मीत मेरे- भाग 2

हैरी ने गौरव का इन्विटेशन खुशीखुशी स्वीकार कर लिया. नेहा ने बड़ी मेहनत से स्पैशल इंडियन डिशेज तैयार कीं, मटरपनीर, मलाई कोफ्ता, भरवां भिंडी, दहीबड़े के साथ पूरियां और कचौडि़यां बनाईं. मेवा डाल कर चावल की खीर भी तैयार कर डाली.

हैरी दंपती ने ठीक 6 बजे कालबैल बजाई. दरवाजा खोल गौरव ने स्वागत किया. ‘‘गुड ईवनिंग, हमारे घर में आप का स्वागत है.’’

‘‘नमस्ते…’’ कुछ अटकते हुए मिसेज हैरी ने हिंदी में अभिवादन कर गौरव को विस्मित कर दिया.

‘‘अरे, आप हिंदी बोल सकती हैं?’’ पीछे से आई नेहा ने आश्चर्य से कहा.

‘‘हां, मेरा स्कूल में थोड़ा इंडियन स्टूडैंट्स हैं, वो सिखाया है.’’

‘‘यह तो बहुत अच्छी बात है, आइए, अंदर चलें,’’ नेहा की आंखों में प्रशंसा थी. सब के बैठने पर गौरव ने कुछ संकोच से कहा, ‘‘हमारा यह छोटा सा अपार्टमैंट है.’’

‘‘ओह, यह तो सुंदर घर है. अभी तुम्हारा स्ट्रगल पीरियड है. इस्टैब्लिश होने के बाद बड़ा घर लोगे,’’ हैरी ने गौरव को बढ़ावा दिया.

‘‘आप लोग क्या लेना पसंद करेंगे? सौरी, हमारे पास ड्रिंक का लिमिटेड स्टाक है, मैं ड्रिंक कम करता हूं.’’

‘‘अरे, नेहा की कंपनी में तो सौफ्ट ड्रिंक में भी सुरूर आ जाएगा, पर पहले इंट्रोडक्शन तो हो जाए, यह मेरी स्वीटहार्ट एलिजाबेथ, यानी क्वीन औफ माई हार्ट और डार्लिंग, यह गौरव और उस की चार्मिंग वाइफ नेहा,’’ हंसते हुए हैरी ने नेहा को देखा.

‘‘यू नो, हैरी ऐसा ही है, हर टाइम हंसता है.’’

‘‘हंसना तो बहुत अच्छी बात है. हंसने वाले इनसान हमेशा यंग दिखते हैं. देखो न, हैरी कितने यंग दिखते हैं,’’ गौरव ने नेहा से कहा.

‘‘यह तो असल में भी यंग मैन ही है, मैं इस से 7 साल बड़ी हूं. क्यों हैरी, ठीक कह रही हूं न?’’ एलिजाबेथ के चेहरे पर मुसकान थी.

एलिजाबेथ की बात सुन कर नेहा ने सोचा, ‘अपनी उम्र के बारे में इतनी सचाई से ऐसी बात स्वीकार करने के लिए साहस होना चाहिए. भारत में पत्नी का उम्र में बड़ा होना कोई सामान्य बात नहीं मानी जाती. वैसे भी वहां लड़कियां अकसर अपनी सही उम्र कम ही बताती हैं. कभीकभी मातापिता भी 1-2 साल कम कर के ही बताते हैं.’

‘‘अरे, तुम्हारी उम्र कुछ भी हो, मेरे लिए तो तुम स्वीट सिक्सटीन ही हो,’’ हैरी हंस रहा था.

‘‘हैरी सब को ऐसे ही प्यार करता है, तुम दोनों का तो फैन हो गया है. तुम को लाइक किया, इसलिए यहां आया है, नहीं तो इसे अपने गिटार और म्यूजिक के अलावा कुछ नहीं चाहिए,’’ एलिजाबेथ ने मुसकरा कर हैरी को देखा.

‘‘यह तो हैरी का बड़प्पन है. कोई और होता तो…’’

‘‘तो वह भी वही करता,’’ गौरव की बात काट कर हैरी ने कहा.

‘‘आई विश, आज टीना भी हमारे साथ आई होती,’’ एलिजाबेथ ने कहा.

‘‘टीना कौन?’’ नेहा ने पूछा.

‘‘एलिजाबेथ का पहले हसबैंड से डिवोर्स हो गया. टीना एलिजाबेथ के पहले हसबैंड से एलिजाबेथ की बेटी है, वह अपने फादर के साथ रहती है. वीकैंड में हमारे पास आती है. आज वह अपनी ग्रैनी (नानी) के पास गई हुई है वरना हम उसे भी साथ लाते.’’

‘‘क्या टीना के फादर उसे आप के पास आसानी से आने देते हैं?’’ अनजाने में नेहा पूछ बैठी.

‘‘हां, इस में क्या प्रौब्लम होगी? टीना हमारी भी तो बेटी हुई, आखिर एलिजाबेथ उस की मदर है. एलिजाबेथ का पहला हसबैंड मेरा अच्छा दोस्त है, हम सब मिल कर पार्टी करते हैं,’’ नेहा के सवाल पर हैरी विस्मत था.

‘‘माफ कीजिए, असल में भारत में पतिपत्नी के अलग होते समय बच्चों के बंटवारे को ले कर झगड़े उठ खड़े होते हैं इसीलिए मैं सवाल कर बैठी.’’

नेहा को याद हो आया, उस की कजिन गीता को अपने दुश्चरित्र पति से तलाक लेते समय 5 वर्ष के राहुल को कस्टडी में लेने के लिए कितने पापड़ बेलने पड़े थे.

ऐसा नहीं कि उस के पति को बेटे से बहुत  प्यार था, पर पुरुष का अहं और गीता को तड़पाना उस का मकसद था. अकसर कानूनी अड़चनें भी मां के विरुद्ध फैसला देने को विवश होती हैं.

‘‘अमेरिका में दूसरी शादी के लिए मर्द या औरत को बराबरी का अधिकार है. जब दोनों को महसूस होता है, वे साथ नहीं रह सकते तो आपसी समझौते से अलग हो जाते हैं. तलाक से बच्चों पर ज्यादा असर नहीं पड़ता. यहां तलाक सामान्य बात है. बच्चे भी इसे आसानी से स्वीकार करते हैं. हो सकता है, इंडिया में हमारी मैरिज को बेमेल कहा जाए, पर यहां यह कोई नई बात नहीं है,’’ हैरी ने गंभीरता से कहा.

‘‘हां, पहले तो इंडिया में बच्चे वाली विधवा या परित्यक्ता स्त्री का विवाह मुश्किल होता था, पर आजकल समाज बदल रहा है. मीडिया के कारण लोगों में तेजी से चेतना आ रही है. हमारा समाज उदार होता जा रहा है,’’ जानकारी देते हुए गौरव को मीडिया पर आने वाली कई घटनाएं याद हो आईं, जब पीडि़त स्त्री को न्याय दिलाने के लिए मीडिया आगे आया था.

कोल्ड ड्रिंक देती नेहा ने कहा, ‘‘इफ यू डौंट माइंड, एक बात पूछ सकती हूं?’’

‘‘जरूर, हमें खुशी होगी. आप क्या जानना चाहती हैं?’’

‘‘आप दोनों की मुलाकात कैसे हुई थी?’’

‘‘एलिजाबेथ अपने स्कूल के बच्चों के साथ एक कोरस गीत के आर्केस्ट्रा के लिए मदद लेने हमारे म्यूजिक स्कूल आई थी. मजे की बात यह थी कि एलिजाबेथ को म्यूजिक

की एबीसीडी भी नहीं आती. कोरस गीत के साथ जब मेरी आर्केस्ट्रा टीम ने साथ दिया तो लोगों की तालियां देर तक हाल में गूंजती रहीं. उस दिन के बाद से हर म्यूजिक प्रोग्राम के लिए यह मेरी मदद लेने आने लगी. बस, पहले हम दोनों दोस्त थे, बाद में हसबैंडवाइफ,’’ बात खत्म करता हुआ हैरी, एलिजाबेथ को देख कर मुसकरा दिया.

‘‘लेकिन अब तो मैं काफी कुछ समझती हूं न, हैरी?’’

‘‘हां, अब तुम गलत नोटेशन पर हंस लेती हो. वैसे तुम्हारी जानकारी के लिए बता दूं, नेहा ने इंडियन क्लासिकल म्यूजिक में मास्टर्स की डिग्री ली है.’’

‘‘वाऊ, दैट्स ग्रेट. हैरी, तुम अपने स्कूल में इंडियन क्लासिकल म्यूजिक की क्लासेज क्यों नहीं शुरू कर लेते? मैं ऐसे बहुत से इंडियन पेरैंट्स को जानती हूं, जो अपने बच्चों को इंडियन म्यूजिक सिखाना चाहते हैं,’’ एलिजाबेथ ने सुझाव दिया.

‘‘ओह यस, गुड आइडिया. नेहा, क्या तुम मेरे स्कूल में म्यूजिक टीचर की जौब लेना चाहोगी?’’ हैरी ने पूछा.

‘‘जी, मैं ने संगीत सीखा है, पर किसी को सिखाया नहीं है,’’ संकोच से नेहा ने कहा.

‘‘वह कोई प्रौब्लम नहीं है. एक बार सिखाना शुरू करोगी तो बहुत आसान लगेगा,’’ एलिजाबेथ ने उत्साहित किया.

‘‘मैं सोचती हूं, पहले गौरव को कोई जौब मिल जाए फिर…’’

‘‘गौरव के के लिए भी कोशिश की जाएगी. वह क्वालिफाइड है. उसे जरूर अच्छी जौब मिल जाएगी. जौब लेने से तुम्हें सैलरी के साथ मैडिकल इंश्योरेंस भी मिलेगा. अभी तुम लोग जो प्रौब्लम फेस कर रहे हो, उस से छुटकारा पाना जरूरी है. बी प्रैक्टिकल नेहा.’’

‘‘तुम्हें कोई औब्जेक्शन तो नहीं है, गौरव?’’ गौरव को चुप देख एलिजाबेथ ने पूछा.

‘‘नहीं, अगर नेहा की इच्छा है तो काम करे,’’ विक्षुब्ध हो कर गौरव ने कहा.

‘‘ठीक है, तुम दोनों सोच लो. मेरा औफर रहेगा. हां, नेहा को जौब पर रखने के लिए कुछ फौरमैलिटीज पूरी करनी होंगी. नेहा को आसानी से वर्कपरमिट मिल जाएगा, उस के साथ जौब करने की परमिशन हो जाएगी.’’

छोटी सी डाइनिंग टेबल पर डिनर सजा देख, एलिजाबेथ चौंक गई, प्रशंसा में बोली, ‘‘माई गौड, लगता है मैरिज पार्टी की तैयारी है. इतनी मेहनत क्यों की, नेहा? हम तो सिर्फ 2 ही गेस्ट हैं या कोई और भी आने वाला है?’’

‘‘यह तो कुछ नहीं है. हमारे देश में अतिथि को देवता यानी गौड कहा जाता है. उन के सत्कार में जो भी किया जाए कम है. आज आप हमारे गैस्ट यानी अतिथि हैं,’’ हंसते हुए गौरव ने बताया.

एलिजाबेथ और हैरी को खाना बहुत पसंद आया. एलिजाबेथ हर डिश की रैसिपी पूछ रही थी. हैरी ने उसे चिढ़ाया, ‘‘माई डियर, अपनी कुकिंग बेकिंग तक ही रहने दो. यह मजेदार स्पाइसी फूड बनाना तुम्हारे बस का नहीं. नेहा, तुम्हें हमारे घर में बेक्ड केक, पाई या टिन में पैक्ड खाना ही मिलेगा.’’

‘‘हैरी ठीक कहता है, हमारी कुकिंग बिलकुल अलग किस्म की होती है. शायद तुम्हें हमारा खाना उबला हुआ लगेगा,’’ एलिजाबेथ ने सचाई से कहा.

‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. हर देश और जगह का खानपान अलग होता है. हमारे देश में तो अलगअलग स्टेट्स का खाना अलग तरह का होता है. हमारी नेबर मंगलाजी साउथ की हैं, उन की और हमारी नौर्थ इंडियन डिशेज अलग होती हैं, पर हम दोनों एकदूसरे की डिशेज खूब ऐंजौय करते हैं,’’ मुसकराती नेहा ने कहा.

स्वीट डिश के रूप में मेवा पड़ी खीर ने तो उन्हें मुग्ध ही कर दिया.

‘‘व्हाट ए लवली स्वीट डिश. मजा आ गया,’’ डिनर खत्म होने पर हैरी और एलिजाबेथ को अपनी प्लेटें धोने के लिए जाने की कोशिश करते देख नेहा ने रोक दिया, ‘‘नहीं, प्लीज आप ऐसा न करें. हमारे यहां गैस्ट से यह काम अपेक्षित नहीं है. यह उन का अपमान माना जाता है.’’

‘‘पर अमेरिका में मेजबान पर सारा काम छोड़ कर नहीं जाया जाता. मेहमान अपनी डिशेज खुद धो कर डिशवाशर में लगाते हैं. इस तरह से मेजबान का काम भी हलका हो जाता है,’’ हैरी ने बताया.

‘‘हो सकता है, अगर हम यहां रहने लगें तो यहां की लाइफस्टाइल अपना लें, पर अभी तो हमारे संस्कार भारतीय ही हैं. हमें क्षमा करें,’’ नेहा ने उन के हाथों से प्लेटें ले कर सिंक में रख दीं.

उन के जाने के बाद गौरव चुपचाप लेट गया. डिशवाशर में बरतन लगाती नेहा सोचने लगी, ‘यह अच्छा देश है, इस देश में हर छोटे से छोटे अपार्टमैंट में भी मूल सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती हैं. डिशवाशर, कपड़े धोने, सुखाने के लिए वाशिंग मशीन और ड्रायर, माइक्रोवेव और फ्रिज के रहने से

सारा काम कितना आसान हो जाता है.’

काम खत्म कर, कमरे में आ कर गौरव को लेटा देख नेहा ने खुशी से कहा, ‘‘क्या थक गए? वैसे आज की शाम बड़ी अच्छी बीती. दोनों पतिपत्नी कितने अच्छे हैं. एलिजाबेथ को हमारा बनाया खाना बहुत पसंद आया.’’

‘‘हां, तुम्हारे लिए तो जौब का औफर भी आ गया. तुम्हारी शाम तो अच्छी होनी ही थी,’’ कुछ तल्खी से गौरव ने कहा.

‘‘अरे, मैं कौन सी नौकरी करने जा रही हूं. उन्होंने कहा और मैं ने सुन लिया,’’ गौरव की आवाज की तल्खी नेहा पहचान गई थी.

‘‘सोचता हूं, हम इंडिया वापस क्यों न चलें. यहां का जो हाल देख रहा हूं, उस में अच्छी जौब का मिलना कठिन ही होगा.’’

‘‘इंडिया की अपनी जौब भी तो छोड़ कर आए हो.’’

‘‘तो क्या दूसरी जौब नहीं मिलेगी,

वहां के हालात यहां के मुकाबले में बहुत अच्छे हैं.’’

‘‘वह बात यहां भी तो संभव हो सकती है. तुम्हारे पास ऊंची डिग्री है, काम का अनुभव भी है, तुम्हें जरूर कोई अच्छी जौब मिल जाएगी. हिम्मत रखो. इंडिया में सारा सामान बेच कर घर खाली कर आए हैं.

वहां जा कर फिर से गृहस्थी जमाना भी तो इतना आसान नहीं होगा. लोग क्या हमारी हंसी नहीं उड़ाएंगे?’’

नेहा की बात में दम था. अमेरिका से जौब का औफर मिलने पर गौरव फूला न समाया था. आफिस में कितनी शान से कहा था, ‘‘इस दोटके की नौकरी में क्या रखा है? अमेरिका में जो सैलरी मिलेगी, उस से 1-2 साल में यहां एक शानदार बंगला बनवा लूंगा.’’

असल में आज नेहा के जौब औफर ने उसे विक्षुब्ध कर दिया. पत्नी नौकरी करे और पति घर में निकम्मा बैठा रहे, भारतीय पति की मानसिकता इसे सहज ही स्वीकार नहीं कर सकती. अभी तो परदेश से ठीक से परिचय भी नहीं हुआ था कि नौकरी चली जाने से असहायता की स्थिति बन गई. उस की अपेक्षा नेहा प्रसन्न लग रही थी. किसी तरह करवटें बदलते रात कट गई.

सुबहसुबह कालबैल सुन कर नेहा चौंक गई. दरवाजा खोलने पर मंगला खड़ी दिखीं.

‘‘अरे मंगला बहन, सब खैरियत तो है?’’

‘‘अइअइयो, अम्मा, बोत खुशी की बात है, नेहा. अम को काम मिलने का जी. ये लो, तुम्हारे लिए मैसूर पाक लाया है,’’ खुशी से मंगला का चेहरा चमक रहा था.

‘‘वाह, यह तो बहुत अच्छी खबर है. काम कहां मिला है?’’

‘‘वो जो पंजाबी होटल है ना, उस के मालिक ने बुलाया, मेरे को बोला कि

‘पुत्तर, तुसी बोत अच्छा इडलीडोसा बनाता, हमारे होटल में काम करो तो पैसा और नाम दोनों मिलेगा.’ मेरे को सुबह 8 से 1 बजे तक और शाम को 4 से 8 तक काम करने का जी.’’

‘‘तुम्हारे हसबैंड मान गए? मेरा मतलब अब तुम्हें काफी टाइम बाहर रहना होगा?’’

‘‘काए को नहीं मानेगा, हमारे पैसे से उस का भी तो फायदा होने का कि नईं? हम इंडिया जास्ती पैसा भेज सकने का,’’ मंगला के चेहरे पर आशा का उल्लास था.

‘‘हां, यह बात तो सच है, पर सब मर्द ऐसा नहीं सोचते.’’

‘‘क्या बोलता, नेहा, अमेरिका में हम देखा, सारी औरतें काम करने का,’’ अचानक पीछे खड़े गौरव पर निगाह पड़ते ही नेहा चुप हो गई. निश्चय ही उस ने नेहा की बात सुन ली थी.

 

‘‘बंधाई, हो मंगला बहन. मिस्टर रामास्वामी को भी कांग्रेचुलेट कीजिएगा.’’

‘‘थैंक्यू, अब हम को जाने का. आज से ही ड्यूटी करने का. रामास्वामी वेट करता जी,’’ उत्साहित मंगला चली गई.

‘‘हैरी का औफर स्वीकार कर लो, नेहा,’’ चाय पीते हुए गौरव ने कहा.

‘‘क्या?’’ नेहा चौंक गई.

‘‘हां, सोचता हूं, कम से कम कुछ समय के लिए तो समस्या से छुटकारा मिल ही जाएगा. बाद में जब मुझे जौब मिल जाएगी तब तुम आराम करना,’’ गौरव मुसकराया.

‘‘सच कहो, यह बात दिल से कह रहे हो, पर क्या मैं संगीत सिखा पाऊंगी?’’

‘‘क्यों नहीं, आखिर तुम ने संगीत में एम.ए. किया है. यहां तो सा रे गा मा से शुरू करना है. आज ही हैरी को तुम्हारी ऐक्सैप्टैंस भेज देता हूं,’’ गौरव ने उत्साहित किया.

‘‘तुम्हें परेशानी नहीं होगी?’’ नेहा ने गौरव का मन जानना चाहा.

‘‘कैसी परेशानी? दिन भर आराम से पैर फैला कर सोऊंगा. अभी तक काम की वजह से 8 की जगह 10-11 घंटे काम करना पड़ता था.’’

‘‘तुम घर पर रहोगे, मैं काम पर जाऊंगी तो लोग क्या कहेंगे?’’ नेहा शंकित थी.

‘‘हम भारत में नहीं हैं, जहां लोग अपने से ज्यादा दूसरों पर नजर रखते हैं. इतने दिनों में एक बात समझ गया हूं, इस देश में कोई किसी के बारे में नहीं सोचता. सब अपने काम से काम रखते हैं. हां, सामने पड़ने वाले अजनबी को भी हायहैलो जरूर करते हैं,’’ गौरव ने अपने 4 महीनों का अनुभव बताया.

‘‘थैंक्स, गौरव,’’ नेहा के चेहरे पर खुशी झलक आई.

एक घंटे में हैरी का फोन आ गया.

‘‘गुड, नेहा ने जौब करने का फैसला लिया है. मैं कल नेहा का वेट करूंगा,’’ हैरी की आवाज में खुशी स्पष्ट थी.

थोड़ी सी जमीं थोड़ा आसमां: क्या थी कविता की कहानी

family story in hindi

फैन: क्या था शीला बूआ की नाराजगी का कारण

करीब 8 महीने पहले शीला बूआ का अपने भतीजे राजीव की शादी के अवसर पर सप्ताह भर के लिए कानपुर से दिल्ली आना हुआ था. उस के बाद अब वे 1 महीने के लिए अपने छोटे भाई शंकर के घर रहने आई थीं.

राजीव की बहू मानसी अपने कमरे से निकल कर जब उत्साहित अंदाज में भागती सी उन के पास आई तब उस ने जींस और टौप पहना हुआ था. बूआ के माथे में पड़े बल देख कर शंकर, उन की पत्नी सुमित्रा और राजीव तीनों समझ गए कि नई बहू का पहनावा उन्हें पसंद नहीं आया. बूआजी की नाराजगी से अनजान मानसी ने पहले उन के पैर छुए और फिर बड़े जोश के साथ गले लगते हुए बोली, ‘‘मैं ने मम्मी से आप की पसंद की चाय बनानी सीख ली है. आप के लिए चाय मैं ही बनाया करूंगी, बूआजी.’’

‘‘तुम्हारे शरीर से पसीने की बदबू आ रही है,’’ उस की बात से खुश होने के बजाय बूआ ने नाक सिकोड़ कर उसे परे कर दिया.

‘‘आप के आने से पहले मैं व्यायाम कर रही थी. जब आप की आवाज सुनी तो मुझ से रुका नहीं गया और भागती हुई मिलने चली आई. मेरे नहाते ही पसीने की बदबू गायब हो जाएगी.’’

‘‘क्या तुम अभी तक नहाई नहीं हो?’’ बूआ ने दीवार पर लगी घड़ी की तरफ देखा, जिस में 11 बज रहे थे.

‘‘आज रविवार है, बूआजी.’’

‘‘उस से क्या हुआ?’’

‘‘रविवार का मतलब है सब कुछ आराम से करने का दिन.’’

‘‘अच्छे घर की बहुओं की तरह तुम्हें रोज सूरज निकलने से पहले नहा लेना चाहिए,’’ बूआ ने तीखे स्वर में उसे डांट दिया.

‘‘आप के हुक्म को मान कर मैं संडे को भी जल्दी नहा लिया करूंगी. अब मैं आप के लिए चाय बना कर लाऊं?’’ बूआ की डांट का बुरा न मान मानसी मुसकराती हुई बोली.

‘‘हां, ले आओ बहू,’’ सुमित्रा ने अपनी बहू को बूआजी के सामने से हटाने की खातिर जवाब दिया, पर उन की यह तरकीब सफल नहीं हुई.

बूआ ने सुमित्रा से ही नाराजगी से घूरते हुए पूछा, ‘‘कहीं तुम ने भी बिना नहाए रसोई में घुस कर काम करने की आदत अपनी पढ़ीलिखी बहू से तो नहीं सीख ली है?’’

‘‘बिलकुल नहीं, दीदी. चाय मैं ही बना कर लाती हूं,’’ सुमित्रा अपनी जान बचाने को रसोई की तरफ चल पड़ीं.

‘‘और मैं आप से ढेर सारी बातें करने को फटाफट नहा कर आती हूं,’’ मानसी झुक कर बूआजी के गले लगी और फिर तुरंत अपने कमरे की तरफ भाग गई.

‘‘यह तो साफ दिख रहा है कि बहू अपने घर से कोई अदबकायदा सीख कर नहीं आई है, पर तुम तो उसे इज्जतदार घर की बहू की तरह ढंग से रहना सिखाओ… इसे इतना ज्यादा सिर चढ़ा कर सब रिश्तेदारों के बीच में अपना मजाक उड़वाने का इंतजाम न करो,’’ इस तरह की बातें करते हुए बूआ चाय आने तक शंकर और राजीव की क्लास लेती रहीं.

दोनों उन की सारी बातें खामोशी से सुनते रहे. बूआजी के सामने उलटा बोलने या उन के कहे को टालने की हिम्मत किसी में नहीं थी.

‘‘दीदी, अब आप ही उसे काबिल और समझदार बना कर जाना. मैं बाजार हो कर आता हूं,’’ चाय का कप बूआ के हाथ में आते ही शंकर अपनी जान बचा कर घर से निकल गए.

राजीव बूआजी की अटैची को उठा कर उसे गैस्टरूम में रखने के बहाने से वहां से खिसक लिया. बेचारी सुमित्रा अपनी ननद का लंबा लैक्चर सुनने के लिए तैयार हो उन के सामने सिर झुका कर बैठ गईं. उसी दिन शाम को ड्राइंगरूम में एकसाथ चाय पीते हुए राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारी में हुए घोटालों पर चर्चा हो रही थी.

‘‘जरा धीरे हंसाबोला कर, बहू,’’ मानसी को गुस्से से टोकने के बाद बूआजी ने शंकरजी की तरफ मुड़ कर चुभते लहजे में पूछा, ‘‘तू ससुर है या बहू का देवर? अब जरा गंभीर हो कर घर में रहना सीख.’’

किसी के कुछ कहने से पहले ही मानसी बोल पड़ी, ‘‘ये तो सचमुच मेरे दोस्त ससुरजी हैं, बूआजी. हमारे बीच…’’

मानसी अपनी बात पूरी नहीं कर सकी, क्योंकि उस की बात सुन कर अपनी हंसी रोकने के चक्कर में शंकर का खांसतेखांसते दम फूल गया.

‘‘बड़ों के सामने इतना ज्यादा बोलना तुम्हें शोभा नहीं देता है, बहू. तुम बड़ों का शर्मलिहाज करना सीखो,’’ सब को मुसकराते देख बूआ को तेज गुस्सा आया और उन्होंने मानसी को इतनी जोर से डांटा कि घर के हर सदस्य के चेहरे पर तनाव झलक उठा.

‘‘जी, बूआजी,’’ मानसी ने पल भर को अपने मुंह पर उंगली रखी और फिर फौरन उसे हटा कर बूआजी को चहकते हुए बताने लगी, ‘‘यह सारा कुसूर मेरे पापा का है. आप जब उन से मिलें, तो उन्हें जरूर डांटना. उन्होंने मुझे बचपन से ही किसी भी विषय पर अपने साथ खुल कर चर्चा करने की छूट दे रखी थी. अब मैं यहां पापा के साथ बातें करतेकरते जोश में भूल जाती हूं कि ये तो मेरे ससुरजी हैं. मुझे इन के सामने खामोश रहना चाहिए.’’

‘‘शंकर, तू इसे गलत व्यवहार करते देख कर डांटताटोकता क्यों नहीं है?’’

‘‘दीदी, मैं अब से टोका करूंगा,’’ शंकरजी के लिए अभी भी अपनी हंसी रोकना मुश्किल हो रहा था.

‘‘और मैं अपने को सुधारने का वादा करती हूं, पापा,’’ मानसी ने यों गरदन झुका ली मानों बहुत बड़ा जुर्म करते पकड़ी गई हो. यह देख सब की हंसी छूट गई.

‘‘तुम सब का तो इस जोकर लड़की ने दिमाग खराब कर दिया है,’’ बूआजी को अपनी हंसी रोकना मुश्किल लगा तो वे बड़बड़ाती हुईं अपने कमरे में चली गईं.

बूआजी के आने से घर का माहौल अजीब सा हो गया था. वे मानसी की कमियां गिनाते हुए नहीं थकती थीं. जब और कोई उन की ‘हां’ में ‘हां’ नहीं मिलाता तो वे नाराज सी नजर आतीं घर में घूमतीं.

‘‘तुम लोगों ने इसे जरूरत से ज्यादा सिर चढ़ा रखा है,’’ यह डायलौग वे दिन भर में न जाने कितनी दफा कहती थीं.

बूआ के आने के करीब 10 दिन बाद सुमित्रा के नैनीताल वाले चाचाजी का देहांत हो गया. शंकरजी और सुमित्रा को राजीव कार से नैनीताल ले गया. वे तीनों अगले दिन शाम तक लौटने वाले थे.

उन के जाने के बाद बूआजी पड़ोस में रहने वाली अपनी सहेली आरती के साथ शाम को बाजार घूमने निकल गईं वहां दोनों ने जम कर चाट खाई. बदपरहेजी का नतीजा यह हुआ कि रात के 9 बजतेबजते बूआजी की तबीयत खराब होनी शुरू हो गई. उन्हें उलटियां शुरू हो गईं. बाद में जब दस्त भी शुरू हो गए तो उन्हें बहुत कमजोरी महसूस होने लगी. मानसी कालोनी के बाहर से तिपहिया स्कूटर ले कर आई और उन्हें डाक्टर को दिखाने चल दी.डाक्टर के वेटिंगरूम में इंतजार कर रहे मरीजों की काफी भीड़ थी पर वह बूआजी को ले कर सीध डाक्टर साहब के कक्ष में घुस गई. कंपाउंडर ने जब उन्हें रोकने की कोशिश की तो मानसी ने उसे डांटते हुए कहा, ‘‘जो उलटीदस्त कर कर के मरा जा  रहा है, उस मरीज को इंतजार करने को कहना गलत है. डाक्टर साहब पहले इस सीरियस मरीज को ही देखेंगे.’’

डाक्टर भी बूआजी को लाइन के बिना पहले देखने की उस की प्रार्थना को टाल नहीं सके. उन्होंने बूआजी की जांच करने के बाद दवा लिख दी. घर आ कर बूआजी को पहली खुराक लेने के कुछ देर बाद से आराम मिलना शुरू हो गया. मानसी पूरे जोश के साथ उन की तीमारदारी में जुट गई. उस ने बूआ से पूछ कर मूंग की दाल की खिचड़ी बनाई. बूआजी का कुछ खाने का मन नहीं कर रहा था पर मानसी ने सामने बैठ कर उन्हें प्यार से कुछ चम्मच खिचड़ी खिला ही दी. बूआजी को 2 घंटे बाद दर्द बढ़ने लगा तो उन्होंने घबरा कर मानसी से पूछा, ‘‘अगर रात को मुझे ले कर डाक्टर के यहां जाना पड़ा तो किसे बुलाएगी?’’

‘‘मैं हूं न, बूआजी. आप किसी बात की फिक्र न करो,’’ मानसी ने बूआजी के माथे का चुंबन ले कर इतने आत्मविश्वास से कहा कि बूआजी की सारी टैंशन दूर हो गई.

रात को नैनीताल से फोन आया तो मानसी ने अपने ससुरजी को भी आश्वस्त कर दिया, ‘‘चिंता की कोई बात नहीं है. मैं सब संभाल लूंगी.’’ रात में जब भी बूआजी की आंख खुली उन्होंने मानसी को जागता पाया. वह हर बार उन्हें नमकचीनी के घोल के कुछ घूंट पिला कर ही मानती. करीब 12 बजे जब उन का बुखार बढ़ने लगा तो मानसी ने काफी देर तक उन के माथे पर गीली पट्टियां रखीं. बुखार कम हुआ तो बूआजी की कुछ देर को आंख लग गई. फिर अचानक रात में उन्हें इतनी जोर से उलटी हुई कि वे अपने कपड़े व पलंग की चादर को खराब होने से नहीं बचा पाईं.

‘‘अब चिंता की कोई बात नहीं. इस बार पेट में बची बाकी चाट भी बाहर आ गई है. देखना, अब आप की तबीयत सुधरती चली जाएगी, बूआजी.’’

मानसी की बात सुन कर कष्ट भुगत रहीं बूआजी मुसकराने से खुद को रोक नहीं पाईं. मानसी ने उन के कपड़े उतरवाए. तौलिया गीला कर के पूरा बदन साफ किया. बाद में पलंग की चादर बदली. फिर उन्हें नए कपड़े पहनाने के बाद उन का सिर इतने अच्छे तरीके से दबाया कि बूआजी को 15 मिनट में गहरी नींद आ गई. सुबह 7 बजे के करीब बूआजी की नींद खुली तो उन्होंने मानसी को पलंग के पास कुरसी पर बेसुध सा सोते पाया. उन्होंने उस के सिर पर प्यार से हाथ रखा तो उस ने फौरन चौंक कर आंखें खोल दीं. बूआजी ने कोमल स्वर में मानसी से कहा, ‘‘बहू, अब तू अपने कमरे में जा कर आराम से सो जा.’’

‘‘अब आप की तबीयत कैसी है?’’ मानसी की आंखों में चिंता के भाव झलक उठे.

‘‘बहुत अच्छा महसूस कर रही हूं. आखिरी उलटी करने के बाद बहुत चैन मिला था.’’

‘‘मैं नहा कर आप के लिए चाय बनाती हूं.’’

‘‘अरे, नहीं. तुम आराम करो. मैं खुद बना लूंगी.’’

‘‘तब तो आप के हाथ की बनी चाय मैं भी पीऊंगी,’’ मानसी छोटी बच्ची की तरह तालियां बजा कर खुश हुई तो बूआजी भी खुल कर मुसकरा उठीं.

दोनों ने साथ चाय पी. फिर रात भर की थकी मानसी बूआ की बगल में सो गई. मानसी 12 बजे के करीब उठी तब तक बूआजी ने रोटीसब्जी बना दी थी. साथसाथ लंच करते हुए दोनों के बीच खूब गपशप चलती रही. शाम को शंकर, सुमित्रा और राजीव लौट आए. बूआजी को स्वस्थ देख कर उन सब की आंखों में राहत के भाव उभरे. बूआजी ने मानसी को अपनी छाती से लगा कर उस की खुले दिल से तारीफ की, ‘‘अब मेरी समझ में आ गया है कि क्यों तुम सब इस बातूनी लड़की के फैन हो. यह सचमुच हीरा है हीरा. कल रात क्या डांटा था इस ने कंपाउंडर को… इस ने ऐसी फर्राटेदार अंगरेजी बोली कि डाक्टर साहब की भी मुझे लाइन के बगैर देखने से इनकार करने की हिम्मत नहीं हुई.

‘‘सारी रात जाग कर इस ने मेरी देखभाल की है. तुम सब कल्पना भी नहीं कर सकते कि नमकचीनी का घोल पीने से इनकार करने पर कितनी जोर से यह मुझे डांट देती थी. इस हिम्मती लड़की ने कल रात न खुद का हौसला खोया और न मुझे खोने दिया.

‘‘घर के काम करना तो यह बातूनी लड़की देरसवेर सीख ही जाएगी पर इस के जैसी चुलबुली, हंसमुख और करुणा से भरा दिल रखने वाली बहू बहुत मुश्किल से मिलती है. राजीव, तू ने अपने लिए बहुत अच्छी लड़की चुनी है.’’

भावुकता का शिकार बनी बूआजी ने जब प्यार से राजीव और मानसी का माथा चूमा तो उन की आंखों में आंसू छलक उठे. अब बूआ के सामने मानसी को कोई कुछ नहीं कह सकता था, क्योंकि घर के बाकी लोगों की तरह अब वे भी सोने का दिल रखने वाली मानसी की जबरदस्त प्रशंसक बन गई थीं.

विधवा विदुर- भाग 2: किस कशमकश में थी दीप्ति

देविका ने सोचना शुरू किया. दिल और दिमाग में एक द्वंद्व चल रहा था पर दिमाग पर दिल हावी हो गया और देविका ने प्यार को चुना. पापा ने उन दोनों की तरफ देखते हुए कहा कि आज से उन लोगों का देविका से कोई वास्ता नहीं रह गया है और वे दोनों इसी समय उन के घर से निकल जाएं.

कोई रास्ता न देख कर देविका और रजनीश ने आर्य समाज मंदिर में शादी कर ली. रजनीश की पोस्टिंग गाजियाबाद के बैंक में थी, इसलिए बैंक के पास के ही एक महल्ले में 2 कमरों का मकान किराए पर ले लिया. उन के मकान के पास एक दीप्ति नाम की विधवा औरत अपने 4 साल के इकलौते बेटे शान के साथ रहती थी. उन के पति पुलिस में थे और एक दंगे के दौरान शहीद हो गए थे.

दीप्ति और देविका की मुलाकात अकसर मौर्निंग वाक के दौरान होती. देविका बड़े अच्छे सलीके से पेश आती थी दीप्ति से और फिर दोनों दोस्त बन गईं.

देविका और रजनीश दोनो के घर वालों ने उन से अपना नाता तोड़ रखा था जिस की खलिश उन दोनों के मन में हमेशा बनी रहती थी. देविका का शोधकार्य पूरा हो चुका था और उस ने विश्वविद्यालय में प्रवक्ता की नौकरी के लिए आवेदन भी कर दिया था.

कुछ दिनों के बाद देविका का इंटरव्यू हुआ और उसे नौकरी पर रख लिया गया.

दोनों की शादी को 3 साल पूरे होने को आए थे कि देविका गर्भवती हो गई, हालांकि वह अभी बच्चा नहीं चाहती थी फिर भी दोनों ने पहले बच्चे को जन्म देने का फैसला कर लिया.

समय आने पर देविका ने एक सुंदर सी बेटी को जन्म दिया. उस का नाम परी रखा. रजनीश और देविका बहुत खुश थे.

इस खुशी में रजनीश ने अपने घर वालों को भी शामिल करना चाहा तो उस ने घर फोन मिलाया पर किसी ने फोन नहीं उठाया. जब परी 5 साल की हुई तो उसी समय देश में कोरोना की दूसरी लहर आई और देविका को लील गई.

परी अनाथ हो गई थी. परिवार वाले पहले ही अपनी जिम्मेदारियों से पीछा छुड़ा चुके थे. कहना गलत नहीं होगा कि देविका के जाने से केवल परी ही नहीं बल्कि रजनीश भी अनाथ हो गया था.

एक तो देविका का गम, ऊपर से छोटी बच्ची को संभालना, उस के खानेपीने का ध्यान रखना, उस के कपड़े बदलना उस की हर छोटीबड़ी चीज को संभालना. मातृत्व कितना दुख देने वाला कार्य है यह रजनीश को अच्छी तरह से पता चल गया था.

‘वर्क फ्रौम होम’ भला कब तक चलता. बाहर की जिंदगी में सबकुछ तो नौर्मल हो गया था पर नौर्मल नहीं हुई थी तो रजनीश और परी की जिंदगी.

बच्ची की कई चीजों और जरूरतों को रजनीश बड़े अच्छे से मैनेज कर रहा था पर असली परेशानी तब आई जब उसे परी को छोड़ कर औफिस के लिए जाने का समय आया. आखिर किसके सहारे छोड़े वह परी को.

कौन उस की देखभाल करेगा. सोचता नौकरी ही छोड़ दे. यही तो आखिरी रास्ता बचा है उस के पास.

किसी ने राय दी कि क्रेच में छोड़ दो तो किसी ने बताया कि बोर्डिंग में डाल दो. बोर्डिंग स्कूल वाली बात रजनीश की सम झ में आ गई. बोर्डिंग में डाल देने से परी का ध्यान भी सही से रखा जाएगा और फिर हर महीने खुद रजनीश ही मुलाकात करने चला जाया करेगा.

रजनीश ने मन ही मन सोच लिया कि वह जल्द ही परी को बोर्डिंग में दाखिल करा आएगा और इस बाबत स्कूलों की उस ने जानकारी भी लेनी शुरू कर दी.

‘‘मैं आप से कुछ कहना चाहती हूं रजनीशजी,’’ एक महिला का स्वर सुन कर रजनीश चौंक गया. मुड़ कर देखा तो दीप्ति अपने बच्चे शान को ले कर खड़ी थी, ‘‘भला बोर्डिंग में परी का एडमिशन कराने से आप की समस्याएं खत्म हो जाएंगी? आप अपनी जिम्मेदारियों से भाग क्यों रहे हैं.’’

दीप्ति की बात सुन कर थोड़ा खीज सा गया रजनीश और फिर उस ने कहा कि तो वह क्या करे? इस बच्ची को कहां ले जाए? नौकरी छोड़ कर बेबीसिटिंग करेगा तो भूखे मरने की नौबत आ जाएगी.

‘‘आप परी को औफिस जाते समय मेरे घर छोड़ दिया करो और आते समय ले जाया करो. मेरा और मेरे बेटे का मन भी इसके साथ लगा रहेगा और फिर मांबाबूजी भी परी को देख कर खुश होंगे,’’ देविका के प्रति प्रेम दीप्ति के मन से छलक रहा था.

बात थोड़ी अजीब सी जरूर लगी कि कैसे दीप्ति ध्यान रख पाएगी किसी और की बच्ची का. क्यों करेगी वह इतना सब? पर रजनीश की मजबूरी भी थी और यह प्रस्ताव भी अच्छा था. कुछ सोचविचार के बाद उस ने हामी भर दी और वह परी को दीप्ति के पास छोड़ कर औफिस जाने लगा.

बच्ची को एक मां की तरह ध्यान रखने वाली आंटी मिल गई थी, दीप्ति के बूढ़े सासससुर जब अपने पोते और परी को साथ खेलते देखते तो उन्हें बड़ी खुशी मिलती.

औफिस से आते ही रजनीश परी को लेने सीधा दीप्ति के घर चला जाता, जहां पर परी को दीप्ति के बेटे के साथ खेलते देख कर उसे भी बड़ा सुकून मिलता.

दीप्ति के सासससुर रजनीश का दर्द सम झते थे और अकसर शाम की चाय के लिए अपने साथ बैठा लेते थे और कभीकभी खाने पर भी बुला लेते थे. हालांकि इस तरह से दीप्ति के घर पर परी को छोड़ कर जाना और खुद का आनाजाना रजनीश को थोड़ा अजीब तो लगता था पर उस के सामने मजबूरी थी.

विधवा दीप्ति अपनी मर्यादा जानती थी, इसलिए वह रजनीश से अधिक बात नहीं करती और अगर परी के संदर्भ में उसे कुछ कहना भी होता तो वह अपने सासससुर की उपस्थिति में ही रजनीश से बात करती.

‘‘आग और फूस एक पास रखे हों और चिनगारी न भड़के यह तो संभव है पर एक

जवान विधवा और एक विधुर को इस प्रकार से एकदूसरे की मदद करते हुए देख कर भी बातें न बनें यह संभव नही है, सब से पहले दीप्ति की सास से महल्ले की एक औरत ने कहा, ‘‘देखो तुम्हारी बहू बच्ची का खयाल रख रही है यह तो अच्छी बात है पर कहीं उस विधुर का खयाल भी न रखने लगे. सम झा देना अपनी बहू को.’’

विद्रोह- भाग 2: क्या राकेश को हुआ गलती का एहसास

राकेश शादी के बाद से ही उसे अपमानित कर नीचा दिखाता आया था. घर व बाहर वालों के सामने बेइज्जत कर उस का मजाक उड़ाने का वह कोई मौका शायद ही चूकता था.

सीमा के सुंदर नैननक्श की तारीफ नहीं बल्कि उस के सांवले रंग का रोना वह अकसर जानपहचान वालों के सामने रोता.

घर की देखभाल में जरा सी कमी रह जाती तो उसे सीमा को डांटनेडपटने का मौका मिल जाता. उस का कोई काम मन मुताबिक न होता तो वह उसे बेइज्जत जरूर करता.

बच्चों के बडे़ होने के साथ सीमा की जिम्मेदारियां भी बढ़ी थीं. 2 साल पहले सास के निधन के बाद तो वह बिलकुल अकेली पड़ गई थी. उन के न रहने से सीमा का सब से बड़ा सहारा टूट गया था.

राकेश के गुस्से से बच्चे डरेसहमे से रहते. उस के गलत व्यवहार को देख सारे रिश्तेदार, परिचित और दोस्त उसे एक स्वार्थी, ईर्ष्यालु व गुस्सैल इनसान बताते.

सीमा मन ही मन कभीकभी बहुत दुखी व परेशान हो जाती पर कभी किसी बाहरी व्यक्ति के मुंह से राकेश की बुराई सुनना उसे स्वीकार न था.

‘वह दिल के बहुत अच्छे हैं…मुझे बहुत प्यार करते हैं और बच्चों में तो उन की जान बसती है. मैं बहुत खुश हूं उन के साथ,’ सीमा सब से यह कहती भी थी और अपने मन की गहराइयों में इस विश्वास की जड़ें खुद भी मजबूत करती रहती थी.

घर में डरेसहमे से रह रहे मयंक व शिखा के व्यक्तित्व के समुचित विकास को ध्यान में रखते हुए वह उन्हें पिछले साल होस्टल में डालने को तैयार हो गई थी.

उन की पढ़ाई व घर का ज्यादातर खर्चा वह अपनी तनख्वाह से चलाती थी. राकेश करीब 1 साल से घरखर्च के लिए ज्यादा रुपए नहीं देता था. यह सीमा को उस रात ही समझ में आया कि वह जरूर अपनी प्रेमिका पर जरूरत से ज्यादा खर्चा करने के कारण घर की जिम्मेदारियों से हाथ खींचने लगा है.

अगले दिन वह आफिस नहीं गई थी. घर छोड़ कर मायके जाने की सूचना उस ने राकेश को उस के आफिस जाने से पहले दे दी थी.

‘तुम जब चाहे लौट सकती हो. मैं तुम्हें कभी लेने नहीं आऊंगा, यह ध्यान रखना,’ उसे समझानेमनाने के बजाय उस ने उलटे धमकी दे डाली थी.

‘मैं इस घर में कभी नहीं लौटूंगी,’ सीमा ने अपना निर्णय उसे बताया तो राकेश मखौल उड़ाने वाले अंदाज में हंस कर घर से बाहर चला गया था.

राकेश चाहेगा तो वह उसे तलाक दे देगी, पर उस के पास अब कभी नहीं लौटेगी, सीमा की इस विद्रोही जिद को उस के मातापिता लाख कोशिश कर के  भी तोड़ नहीं पाए थे.

लेकिन एक मां अपने बच्चों के मन की सुखशांति व खुशियों की खातिर अपने बेवफा पति के घर लौटने को तैयार हो गई थी.

सीमा को अगले दिन उस के मातापिता राकेश के पास ले गए. उस ने वहां पहुंचते ही पहले घर की साफसफाई की और फिर रसोई संभाल ली. अपने बेटाबेटी के लिए वह उन की मनपसंद चीजें बडे़ जोश के साथ बनाने के काम में जल्दी ही व्यस्त हो गई थी.

राकेश और उस के बीच नाममात्र की बातें हुईं. दोनों बच्चों को स्टेशन से ले कर राकेश जब 11 बजे के करीब घर लौटा, तब घर भर में एकदम से रौनक आ गई. मयंक और शिखा के साथ खेलते, हंसतेबोलते और घूमतेफिरते सीमा के लिए समय पंख लगा कर उड़ चला. दोनों बच्चे अपने स्कूल व दोस्तों की बातें करते न थकते. उन के हंसतेमुसकराते चेहरों को देख कर सीमा फूली न समाती.

जब कभी सीमा अकेली होती तो उदास मन से यह जरूर सोचती कि अपने कलेजे के टुकड़ों को कैसे बताऊंगी कि मैं ने उन के पापा को छोड़ कर अलग रहने का फैसला कर लिया है. उन हालात को यह मासूम कैसे समझेंगे जिन के कारण मुझे इतना कठोर फैसला करना पड़ा है.

वह रात को बच्चों के साथ उन के कमरे में सोती. दिन भर की थकान इतनी होती कि लेटते ही गहरी नींद आ जाती और मन को परेशान या दुखी करने वाली बातें सोचने का समय ही नहीं मिलता.

राकेश इन तीनों की उपस्थिति में अधिकतर चुप रह कर इन की बातें सुनता. उस में आए बदलाव को सब से पहले मयंक ने पकड़ा.

‘‘मम्मी, पापा बहुत बदलेबदले लग रहे हैं इस बार,’’ मयंक ने घर आने के तीसरे दिन दोपहर में सीमा के सामने अपनी बात कही.

‘‘वह कैसे?’’ सीमा की आंखों में उत्सुकता के भाव जागे.

‘‘वह पहले की तरह हमें हर बात पर डांटतेधमकाते नहीं हैं.’’

‘‘और मम्मी आप से भी लड़ना बंद कर दिया है पापा ने,’’ शिखा ने भी अपनी राय बताई.

‘‘मुझे तो इस बार पापा बहुत अच्छे लग रहे हैं.’’

‘‘मुझे भी बहुत प्यारे लग रहे हैं,’’ शिखा ने भी भाई के सुर में सुर मिलाया.

अपने बच्चों की बातें सुन कर सीमा मुसकराई भी और उस की आंखों में आंसू भी छलक आए. राकेश की बेवफाई को याद कर उस के दिल में एक बार नाराजगी, दुख व अफसोस से मिश्रित पीड़ा की तेज लहर उठी. जल्दी ही मन को संयत कर वह बच्चों के साथ विषय बदल कर इधरउधर की बातें करने लगी.

उस दिन शाम को राकेश बैडमिंटन खेलने के 4 रैकिट और शटलकौक खरीद लाया. दोनों बच्चे खुशी से उछल पड़े. उन की जिद के आगे झुकते हुए सीमा को भी उन तीनों के साथ बैडमिंटन खेलना पड़ा. यह शायद पहला अवसर था जब राकेश के साथ उस ने किसी गतिविधि में सहज व सामान्य हो कर हिस्सा लिया था.

उस रात सीमा बच्चों के कमरे में सोने के लिए जाने लगी तो राकेश ने उसे रोकने के लिए उस का हाथ पकड़ लिया था.

‘‘नो,’’ गुस्से और नफरत से भरा सिर्फ यह एक शब्द सीमा ने मुंह से निकाला तो राकेश की इस मामले में कुछ और कहने या करने की हिम्मत ही नहीं हुई.

बच्चों का मन रखने के लिए सीमा राकेश के साथ उस के दोस्तों के घर चायनाश्ते व खाने पर गई.

राकेश के सभी दोस्तों व उन की पत्नियों ने सीमा के सामने उस के पति के अंदर आए बदलाव पर कोई न कोई अनुकूल टिप्पणी जरूर की थी. उन के हिसाब से राकेश अब ज्यादा शांत, हंसमुख व सज्जन इनसान हो गया है.

सीमा ने भी उस में ये सब परिवर्तन महसूस किए थे, पर उस से अलग रहने के निर्णय पर वह पूर्ववत कायम रही.

भाभी- भाग 2: क्या अपना फर्ज निभा पाया गौरव?

थोड़ी देर में वह फिर आ कर मेरे पास बैठ गई, बोली, ‘‘गौरव, तुम आज ही चले जाओ, पता नहीं भाभी किस मुसीबत में हैं.’’

मैं ने कहा, ‘‘हां बेला, यदि मैं ने उन की आज्ञा नहीं मानी तो मैं स्वयं को क्षमा नहीं कर पाऊंगा.’’

‘‘इतने बड़े भक्त हो भाभी के?’’

‘‘हां, बेला. मेरे लिए वे भाभी ही नहीं, मेरी मां भी हैं, उन का मुझ पर बहुत कर्ज है, बस यों समझ ले, भाभी न होतीं तो मैं आज जो हूं वह न होता, एक आवारा होता और फिर तुम जैसी इतनी सुंदर, इतनी कुशल पत्नी मुझे कहां मिलतीं.’’

‘‘हांहां, बटरिंग छोड़ो, हमेशा भाभी, भाभी की रट लगाए रहते हो.’’

‘‘अरे, मैं बेला, बेला भी तो रटता हूं, पर तुम्हारे सामने नहीं,’’ कह कर मैं मुसकराया.

‘‘दूसरों के सामने बेला ही बेला रहता है मेरी जबान पर, मेरे सारे फ्रैंड्स से पूछ कर तो देखो,’’ कह कर मैं चुप हो गया और सोचने लगा कि हो सकता है कि वहां भाभी का मन न लग रहा हो, टैलीफोन पर रहरह कर भाभी का असंतोष झलकता रहता है, बेटेबहुओं से वे प्रसन्न नहीं. ऐसे में मुझे क्या करना चाहिए? क्या भाभी को यहां ले आऊं? यहां ले आया तो क्या बेला निभा पाएगी उन से? बेला को निभाना चाहिए, उन्होंने मुझे इतना प्यार दिया है, मुझ जैसे आवारा को एक सफल आदमी बनाया है.

वह घटना रहरह कर मेरी आंखों के सामने घूमती रहती है जब मैं बी.एससी. फाइनल में था. मेरी बुद्धि प्रखर थी, परीक्षा में सदा फर्स्ट आता था, पर कुछ साथियों की सोहबत में पड़ कर मैं सिगरेट पीने लगा था. पैसों की कमी कभी भाभी ने होने नहीं दी. एक दिन…

‘‘भाभी…ओ भाभी.’’

‘‘क्या बात है?’’

‘‘जल्दी से एक सौ का नोट निकालो, जल्दी करो, नहीं तो भैया आ जाएंगे.’’

‘‘डरता है भैया से?’’

‘‘हां, उन से डर लगता है.’’

‘‘और मुझ से नहीं?’’ कह कर वे मुसकराईं.

‘‘अरे, तुम से क्या डरना? भाभी मां से भी कोई डरता है?’’ कह कर मैं ने उन की कोली भर ली और उन का एक चुंबन ले लिया.

वे मुसकरा कर गुस्सा दिखाती हुई बोलीं, ‘‘हट बेशर्म कहीं का… बचपना नहीं गया अब तक.’’

‘‘मेरा बचपना चला गया तो तुम बूढ़ी न हो जाओगी, फिर कौन बेटा मां को चूमता है, अच्छा है, यों ही बच्चा बना रहूं.’’

उन्होंने मुझे सीने से लगा लिया और मेरे सिर पर हाथ फेरती हुई बोलीं, ‘‘चल हट, ले 100 रुपए का नोट.’’

एक दिन भाभी ने आवाज लगाई, ‘‘गौरव, मशीन लगा रही हूं कपड़े हों तो दे दो.’’

मैं ने अपनी कमीज, पैंट, बनियान उन्हें दे दिए. जब वे कपड़े मशीन में डालती थीं तो पैंट, कमीजों की जेबें देख लिया करती थीं. वे मेरी कमीज की जेब में हाथ डालते हुए बड़बड़ाईं, ‘यह भी नहीं होता इस से कि अपनी जेबें देख लिया करे, देख यह क्या है?’

जेब में सिगरेट का पैकेट था. उसे देख कर वे वहीं माथा पकड़ कर बैठ गईं, गौरव और सिगरेट. वे चिल्लाईं, ‘‘गौरव.’’

‘‘हां, भाभी?’’

‘‘यह क्या है?’’ मुझे पैकेट दिखाते हुए वे लगभग चीखीं.

‘‘यह, यह…’’ और मैं चुप.

‘‘बोलता क्यों नहीं, क्या है यह?’’ कह कर मेरे मुंह पर एक जोर का तमाचा मारा और फिर फफकफफक कर रो पड़ीं.

काफी देर बाद वे चुप हुईं, अपने आंसू पोंछते हुए कुछ सोचती सी मुझ से बोलीं, ‘‘गौरव, सौरी, मैं ने तुम्हें थप्पड़ मारा… अब कभी नहीं मारूंगी. मारने का मेरा हक खत्म हुआ.’’

थोड़ी देर मौन रह कर वे पुन: बोलीं, ‘‘अपने भैया से मत कहना, मैं तुम्हारे हाथ जोड़ती हूं,’’ उन्होंने हाथ जोड़ते हुए मेरी ओर कातर नजरों से देखा.

मैं काठ की मूर्ति बना खड़ा रहा. बहुत कुछ बोलना चाहता था, पर मुंह से शब्द नहीं फूटे अपनी सफाई में… मैं कुछ कह भी नहीं सकता था, क्योंकि वह सब झूठ होता, मैं ने सिगरेट पीनी शुरू कर दी थी. बस, इतना ही कह पाया था, ‘‘सौरी भाभी मां.’’

भाभी ने मुझ से बोलचाल बंद कर दी. दिन में 2 बार ही वे मुझे आवाज लगाती थीं, ‘‘गौरव नाश्ता तैयार है, गौरव खाना तैयार है, गौरव कपड़े हों तो दे दो.’’

भाभी मेरे कमरे में आतीं और मेरी मेज पर 100 रुपए का नोट रखते हुए कहतीं, ‘‘और जरूरत हो तो बोल देना.’’

एक दिन मैं ने कहा, ‘‘जब आप मुझ से कोई संबंध ही नहीं रखना चाहतीं तो रुपए क्यों देती हैं?’’

‘‘इसलिए कि एक ऐब के साथ तुम दूसरे ऐब के शिकार न हो जाओ, चोरी न करने लगो. सिगरेट की तलब बुझाने के लिए तुम्हें पैसों की जरूरत पड़ेगी, पैसे न मिलने पर तुम चोरी करने लगोगे और मैं नहीं चाहती कि तुम चोर भी बन जाओ.’’

‘‘आप की बला से, मैं चोर बनूं या डाकू.’’

इस पर वे बोलीं, ‘‘सिर्फ इंसानियत के नाते मैं नहीं चाहती कि कोई भी नवयुवक किसी ऐब का शिकार हो कर अपनी प्रतिभा को कुंठित करे, तुम मेरे लिए एक इंसान से अधिक कुछ नहीं,’’ कह कर वे चली गईं.

मैं काफी परेशान रहा. फिर सिगरेट न पीने का संकल्प कर लिया. भाभी का स्वास्थ्य दिन ब दिन गिरता जा रहा था. वे पीली पड़ती जा रही थीं, हर समय उदास रहती थीं, जैसे उन के भीतर एक झंझावात चल रहा हो. भैया ने भी कई बार कहा था कि सुमित्रा, क्या तबीयत खराब है? वे हंस कर टाल जाती थीं. उन की बनावटी हंसी से मैं दहल उठता था. एक दिन वे मेरे कमरे में आईं. मेज पर 100 का नोट रखते हुए बोलीं, ‘‘और चाहिए तो बोल देना.’’

जैसे ही वे बाहर जाने को हुईं, मैं ने उन का हाथ पकड़ा और कहा, ‘‘भाभी.’’

उन्होंने झटके से हाथ खींच लिया, बोलीं, ‘‘मत कहो मुझे भाभी, उसे मरे तो काफी दिन हो गए.’’

‘‘माफ नहीं करोगी?’’

‘‘माफ तो अपनों को किया जाता है, गैरों को कैसी माफी? रोजाना इतने जुर्म होते हैं, क्या सभी को माफी देने का ठेका मैं ने ले रखा है? मैं कोई जज हूं, जो अपराधी की अपील को सुन कर उसे माफ कर दूं?’’

‘‘क्या सौमित्र के साथ भी ऐसा ही बरताव करतीं?’’

‘‘अरे, उस से तो यही कहती कि घर से बाहर हो जाओ.’’

‘‘फिर मुझे क्यों नहीं कहा?’’

‘‘तुम मेरे पेट के जाए जो नहीं.’’

‘‘ठीक, यही मैं सुनना चाहता था, मैं तुम्हारा दिखावे का बेटा था, मतलब सगे और पराए में अंतर बना ही रहता है. मैं पराया हूं,

मैं ने भूल की जो आप को अपना समझा. ठीक है, अब मेरा आप का वास्तव में कोई रिश्ता नहीं, अब के बाद आप मेरी सूरत नहीं देखेंगी… गुड बाय,’’ कह कर मैं किताब के पन्ने पलटपलट कर पढ़ने का बहाना करने लगा.

मैं आत्मग्लानि के भंवर में फंसा था, अपराध तो मुझ से हुआ था, इतना बड़ा विश्वासघात? मेरी आंखों से आंसू टपकने लगे, मैं ने निर्णय किया कि मैं घर छोड़ कर चला जाऊंगा,

जब मांबाप ही नहीं रहे तो भैयाभाभी पर कैसा अधिकार?

अगले दिन भैया दफ्तर चले गए तो मैं ने अपनी पुस्तकें, कुछ कपड़े अटैची में रखे और घर छोड़ कर निकल जाने को तैयार हुआ. भाभी ने देख लिया था कि मैं अटैची लगा रहा हूं. वे कमरे में आईं, ‘‘यह क्या हो रहा है? कहीं जाने की तैयारी है?’’

‘‘हां, आप का घर छोड़ कर जा रहा हूं.’’

‘‘घर आप का भी है, मेरा ही नहीं. इस के आधे के मालिक हैं आप, आप घर छोड़ कर क्यों जाएंगे, घर छोड़ कर तो मुझे जाना चाहिए, क्योंकि असली कसूरवार तो मैं हूं.

भाभी- भाग 1: क्या अपना फर्ज निभा पाया गौरव?

आज सुबहसुबह ही भाभी का फोन आया कि जरूरी बात करनी है, जल्दी आ जाओ और फोन काट दिया. मैं ने चाय का प्याला मेज पर रख दिया और अखबार एक ओर रख कर सोचने लगा कि कोई बात जरूर है, जो भाभी ने एक ही बात कह कर फोन काट दिया. लगता है, भाभी परेशान हैं… सोचतेसोचते मैं अपनी युवावस्था में पहुंच गया जब मैं बी.एससी. का छात्र था.

‘‘अरे, चाय ठंडी हो गई है… क्या सोच रहे हैं?’’ बेला ने आवाज लगाई, तो मैं जैसे सोते से जाग उठा और बोला, ‘‘अरे, ध्यान ही नहीं रहा.’’ मैं ने चाय का प्याला उठाया. चाय वाकई ठंडी हो गई थी. मैं ने कहा, ‘‘पी लूंगा, कोई खास ठंडी नहीं हुई है.’’

‘‘ऐसे कैसे पी लोगे? मैं अभी दूसरी चाय बना लाती हूं,’’ बेला ने मेरे हाथ से चाय का प्याला पकड़ा और फिर ‘न जाने बैठेबैठे क्या सोचते रहते हैं,’ कहती हुई चली गई.

मैं ने अखबार उठा कर पढ़ना शुरू किया ही था कि बेला चाय ले कर आ गई, ‘‘लो, चाय पी लो पहले वरना फिर ठंडी हो जाएगी,’’ कह कर वह खड़ी हो गई.

मैं ने कहा, ‘‘पी लेता हूं भई, अब तुम खड़ी क्यों हो, जाओ अपने काम निबटा लो.’’

‘‘नहीं, पहले चाय पी लो… मैं ऐसे ही खड़ी रहूंगी.’’

‘‘मैं कोई बच्चा हूं?’’

‘‘हां… कुछ भी ध्यान नहीं रहता, न जाने कहां खोए रहते हैं. बताइए न, क्या बात है?’’ कह कर बेला मेरे बराबर वाली कुरसी पर बैठ गई.

मैं ने चाय का घूंट भरा और बोला, ‘‘देखो बेला, कुछ समस्याएं व्यक्ति की पारिवारिक हो कर भी कभीकभी निजी बन जाती हैं. बस, समझ लो कि यह मेरी निजी समस्या है, इसे मुझे ही हल करना है.’’

‘‘अब तुम्हारी कोई भी समस्या निजी नहीं हो सकती, कहीं न कहीं वह मुझ से जुड़ी होगी. अत: मिलजुल कर ही हमें उसे सुलझाना है… अच्छा, बताओ क्या बात है?’’

मैं ने चाय का खाली प्याला मेज पर रख दिया और बोला, ‘‘सुबह ही भाभी का फोन आया था कि कोई जरूरी बात करनी है, ‘जल्दी आ जाओ’ कह कर उन्होंने फोन काट दिया. काफी दिनों से मैं महसूस कर रहा हूं कि भाभी परेशान हैं. लगता है, बेटेबहुओं के साथ कुछ खटपट चल रही है. जब से भैया गए हैं, वे अकेली हो गई हैं… अपने मन की बात किस से करें?’’

‘‘क्यों, बेटेबहुएं उन के अपने नहीं हैं? मंजरी उन की अपनी नहीं है? क्यों नहीं बांट सकतीं वे अपनी परेशानियों को अपने बच्चों के साथ?’’ बेला ने कहा.

‘‘अरे, मंजरी तो अब दूसरे घर की हो गई है. रह गए सौमित्र और राघव, वे दोनों अपने व्यापार और गृहस्थी में मशगूल हैं. तीनों बच्चों में कोई ऐसा नहीं, जिस से भाभी अपने मन की बात कह सकें.’’

‘‘आप हैं न उन की समस्याओं के समाधानकर्ता?’’ बेला ने कहा.

‘‘मैं…हां, मैं हो सकता हूं. मुझे वे अपना मानती हैं, सौमित्र और राघव के साथ वे मुझे अपना तीसरा बेटा मानती हैं. वे बेटों से अकसर कहा करती थीं कि नालायको, तुम बुढ़ापे में हमारे सुखदुख में काम नहीं आओगे. गौरव मेरा तीसरा बेटा है, उस के होते मुझे तुम्हारी सहायता की जरूरत नहीं.’’ कह कर मैं चुप हो गया.

बेला बोली, ‘‘ठीक है, अगर आप कुछ कर सकते हैं तो जरूर करिए… मैं समझती हूं कि उन्हें कोई आर्थिक परेशानी तो नहीं होनी चाहिए. भैया काफी रुपया, बड़ी कोठी, जायदाद छोड़ कर गए हैं. हमारे पास तो उन से आधा भी नहीं. वही पारंपरिक सासबहू या बेटों की समस्या होगी, मुझे तो इस के अलावा कुछ नजर नहीं आता.’’

‘‘लगता तो मुझे भी ऐसा ही है. भाभी बड़े घर की हैं, उन्होंने सदा हुक्म चलाया है, भैया और अपने बच्चों पर ही नहीं, मुझ पर भी. अब जमाना बदल गया है, उन की हुक्मउदूली हो रही होगी, जो उन्हें बरदाश्त नहीं हो रही होगी,’’ कह कर मैं ने बेला की ओर देखा.

‘‘ऐसा करो तुम आज ही चले जाओ… भाभी से मिल कर देखो कि क्या बात है और उसे किस प्रकार सुलझाया जा सकता है,’’ कह कर बेला चली गई.

कालेज के दिनों की मेरी स्मृतियां मेरी आंखों के सामने रहरह कर घूमने लगीं…

‘‘भाभी, ओ भाभी… सुनती हो…’’

‘‘आज तुम बहुत सुंदर लग रही हो, यही न?’’ कह कर भाभी ने मेरा वाक्य पूरा किया.

‘‘भाभी, सच्चीमुच्ची, आज तुम बहुत सुंदर लग रही हो.’’

‘‘तो?’’

‘‘तो कुछ नहीं, बस लग रही हो, मन करता है तुम्हारी कोली भर लूं और तुम्हारी पप्पी ले लूं. भाभी प्लीज, एक पप्पी…’’

‘‘जरूर,’’ कह कर वे आगे बढ़ीं और ‘‘ले पप्पी,’’ कह कर मेरी कमर पर प्यार से धौल जमा दी, ‘‘कैसी लगी?’’

इस पर मैं ने कहा, ‘‘बहुत मीठी.’’

वे चली गईं.

ठीक है, ले कर ही रहूंगा पप्पी, मैं ने उन्हें पीछे से सुनाया. उन से पैसे झटकने का मेरा यह अपना अंदाज था. एक दिन मैं ने उन से कहा, ‘‘भाभी, आज तो गजब ढहा रही हो, बड़ी सुंदर लग रही हो.’’

‘‘बिना किसी बात के ही मैं सुंदर लग रही हूं?’’

‘‘हां भाभी, बिना किसी बात के.’’

‘‘थैंक्स.’’

मैं बोला, ‘‘भाभी, बस थैंक्स और कुछ नहीं?’’

‘‘और क्या… बोलो, लग रही हूं सुंदर? बिना बात तो मैं सुंदर लगती नहीं, मैं ने तो पूछा था, बता क्या बात है, क्यों लग रही हूं

मैं आज सुंदर? तू ने नहीं बताया तो क्या मैं थैंक्स भी नहीं देती?’’ कह कर वे मुसकाईं

और बोलीं, ‘‘अच्छा बता, आज कितने रुपए चाहिए?’’

‘‘चलो, आप जिद कर रही हैं तो बस 1 नोट.’’

भाभी ने झट 5 रुपए का नोट मेरी ओर बढ़ाया.

मैं ने कहा, ‘‘मैं बैरा हूं क्या? फिर 5 रुपए तो आजकल उन्हें भी टिप नहीं दी जाती. मेरी औकात 5 रुपए?’’

‘‘अरे, तो बोल न कितने की औकात है तेरी, 10, 20, 50 कितने की?’’

‘‘50 से आगे गिनती नहीं आती क्या?’’

भाभी ने 100 रुपए का नोट मेरी ओर बढ़ाया और फिर मेरे मुंह पर हलकी सी चपत लगाई और मुसकरा कर चली गईं.

भैया यह सब देख रहे थे. उन्होंने भाभी से कहा, ‘‘देखो सुमित्रा, तुम गौरव को बिगाड़ रही हो, उस से यह भी नहीं पूछतीं कि किसलिए चाहिए, तुझे रुपए?’’

‘‘अरे बच्चा है, अपने सौमित्र और राघव भी तो ऐसे ही जिद करते हैं, गौरव को रुपए दे देती हूं तो क्या हुआ?’’

‘‘इस तरह रुपए दे कर तुम सौमित्र और राघव को भी बिगाड़ोगी तो मैं बरदाश्त नहीं करूंगा. मानता हूं तुम गौरव को बेटे जैसा मानती हो, पर इस तरह बच्चे बिगड़ जाते हैं.’’

उस दिन भाभी का मूड खराब हो गया. वे भैया से बोलीं, ‘‘मेरी अजीब मुश्किल है. गौरव पर सख्ती बरतती हूं तो अजीब सी उथलपुथल मच उठती है दिल में, ढील देती हूं तो तुम्हें अच्छा नहीं लगता. सोच नहीं पाती हूं कि मुझे क्या करना चाहिए.’’

भाभी जब बैठी हुई होती थीं तो मैं अकसर पीछे से जाता और उन के गले में दोनों बांहें डाल कर उन की पीठ पर झूल जाया करता था.

वे कह उठती थीं, ‘‘हट रे, मेरी जान निकालेगा क्या?’’

मैं कहता, ‘‘क्या भैया से भारी हूं?’’

‘‘तो क्या उन्हें अपनी पीठ पर बैठाती हूं?’’

‘‘पीठ पर नहीं, सिर पर तो बैठाती हो.’’

वे बोलीं, ‘‘अरे, सिर पर तो मैं ने तुझे चढ़ा रखा है. तेरे भैया यही शिकायत करते हैं कि मैं ने तुझे सिर पर चढ़ाया हुआ है, उसे बिगाड़ कर छोड़ेगी.’’

‘‘उन्होंने कभी मेरे मजाक का बुरा नहीं माना. जब तक तुम नहीं आई थीं बेला, भाभी के साथ जिंदगी हंसीमजाक में कटती थी.’’

‘‘फिर रोतेझींकते कटने लगी जिंदगी मेरे साथ, यही कहना चाहते हो न?’’ बेला तुरंत बोली.

मैं ने कहा, ‘‘ऐसा तो मैं नहीं सोचता, लेकिन इतना सुखी, इतना दुविधारहित जीवन मैं ने फिर कभी नहीं देखा, न किसी की फिक्र न फाका. मां तो बचपन में ही मर गई थीं और जब भैया की शादी हुई तो मैं ज्यादा छोटा नहीं था, 10वीं कक्षा में पढ़ता था. मां मुझे बहुत याद आती थीं. लेकिन भाभी के प्यार ने मां की याद भुला दी. मेरे हर सुखदुख की साथी बनीं भाभी.’’

तभी बेला चौंक पड़ी, ‘‘अरे दूध?’’ कह कर रसोई की ओर भागी.

मैं जोर से चिल्लाया, ‘‘अरे, क्या हुआ?’’

‘‘होना क्या था, सारा दूध उबल कर बह गया तुम्हारे भाभीपुराण के चक्कर में.’’

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें