परवरिश- भाग 2: मानसी और सुजाता में से किसकी सही थी परवरिश

आखिर दीदी ने अक्षत का रिश्ता तय कर ही दिया. अक्षत के विवाह की तैयारियां होने लगीं. विवाह हुआ, सुंदर, सलोनी सी बहू घर आई तो सभी खुश थे कि आखिर दीदी ने अपने बच्चों की लाइफ सेटल कर ही दी.

मेरा राहुल, अक्षत से डेढ़ साल ही छोटा है. उस के नौकरी पर लगते ही मैं ने भी शादी के लिए उस के दिमाग के पेंच कसने शुरू कर दिए, ‘अभी कैसे शादी कर सकता हूं मम्मी…पैसे भी तो चाहिए, इतने कम में कैसे गुजारा होगा.’ उस का जवाब सुन कर  मैं हतप्रभ रह गई. आखिर प्रतिष्ठित कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत मेरे बेटे के पास गृहस्थी बसाने के लिए पैसे कब होंगे?

नौकरी पर लग जाने के बाद भी मेरे बेटे व मुझ में किसी न किसी बात पर ठन ही जाती. जब घर आता तब आने के कुछ दिन तक और जाने के कुछ दिन पहले तक हमारे बीच में कुछ ठीक रहता. बाकी दिन किसी न किसी कारण से हम मांबेटे के बीच अनबन चलती रहती. शादी के लिए हां बोलने में भी उस ने मुझे बहुत परेशान किया.

उस के पापा ने एक दिन उसे खूब जोर की डांट लगा दी, ‘राहुल, यदि तुम अभी शादी के लिए हां नहीं बोलोगे तो तुम्हारी शादी करने की हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं, तब तुम खुद ही कर लेना…बच्चों की शादी करना मातापिता की जिम्मेदारी है और हम तुम्हारी शादी कर के अपनी जिम्मेदारी से फारिग होना चाहते हैं.’

तब जा कर उस ने मौन स्वीकृति दी और रहस्योद्घाटन किया कि उसे एक लड़की पसंद है और वह उसी से शादी करेगा. उस के रहस्योद्घाटन से बचीखुची आशा भी टूट गई. ऐसे लगा जैसे बेटे ने हम से मांबाप होने का हक भी छीन लिया. मैं ने कुछ समय तक बेटे से बात भी नहीं की. किसी तरह मौन रह कर मैं अपने दुख पीती रही और खुद को आने वाली परिस्थितियों के लिए तैयार करती रही.

दीदी की बहू को देखती तो दिल में एक हूक सी उठती. काश, राहुल ने भी लड़की ढूंढ़ने का काम मुझ पर छोड़ा होता. छांट कर खानदानी बहू ढूंढ़ती. आखिर रिश्तेदारी भी कोई चीज होती है. संबंधी भी तो अच्छे होने चाहिए. मातापिता अच्छे होते हैं तभी तो लड़की में अच्छे संस्कार आते हैं.

लेकिन जब राहुल से कहा तो तुरंत  जवाब मिल गया, ‘ये पुराने जमाने की घिसीपिटी बातें मत करो मुझ से. जिस लड़की से हम थोड़ी देर के लिए मिलते हैं उस के बारे में हम क्या जानते हैं और जिस को मैं ने पसंद किया है उसे मैं पिछले 4 साल से जानता हूं. नियोनिका अच्छी लड़की है मां और वैसे भी, परिवार और बीवी में संतुलन रखने का काम तो लड़के का है, और वह मुझे अच्छी तरह से आता है.’

दिल किया कि कहूं, तू तो मां और अपने बीच ही संतुलन नहीं रख पाया, कितनी लड़ाई करता है. अब बीवी और परिवार के बीच तू क्या संतुलन रखेगा? फिर भी उस तुनकमिजाज लड़के से ऐसी गंभीर बात सुन कर कुछ अच्छा सा लगा.

उधर, बहू के आने के बाद दीदी व्यस्त हो गईं. उन के उत्साह की कोई सीमा नहीं थी. हम सभी खुश थे. जीजाजी के जाने के बाद उदासी व गम में डूबी दीदी को जिंदगी जीने का खूबसूरत बहाना मिल गया था. लेकिन कुछ समय बाद ही उन का उत्साह कुछ कम होने लगा. फोन पर भी उन की बातें गमगीन होने लगीं. उत्साह की जगह चुप्पी व उच्छ्वासों ने ले ली. मैं बहू के बारे में कोई बात करती तो अकसर टाल जातीं. जिस बेटे की तारीफ करते दीदी की जबान नहीं थकती थी, उस के बारे में बात करने पर दीदी अकसर टाल जातीं.

मुझे कारण समझ में नहीं आ रहा था. बेटा तो दीदी का हमेशा से ही आज्ञाकारी था. बहू भी ठीक ही लगती थी. मिलना ही कितना होता था उस से. फिर भी जितना देखा चुलबुली सी लगी थी. पता नहीं दीदी को क्या दुख खाए जा रहा है. जीजाजी के जाने का दुख तो खैर अपनी जगह पर है ही. पर 2 साल हो गए हैं उन को गए हुए. दीदी कभी इतनी गमगीन नहीं दिखीं.

इन से कहा तो बोले, ‘तुम दीदी को उन के हाल पर छोड़ दो, उन का अब एक परिवार है, तुम बेकार बात में अपनी टांग मत अड़ाओ. दीदी को हमेशा अपनी मर्जी की आदत रही है. अब बहू आ गई है, बेटेबहू की अपनी जिंदगी है, हो सकता है अब उन्हें अकेलापन महसूस हो रहा हो?’

हो सकता है यही कारण हो. मैं ने अपने मन को समझा लिया, हो सकता है बहू के आने से थोड़ाबहुत अनदेखा महसूस कर रही हों. मेरे बेटे ने तो लड़की पसंद कर ही ली थी, ना की गुंजाइश ही कहां थी. मैं भी अपना मन पक्का कर शादी की तैयारियों में जुट गई. शादी की तैयारी करतेकरते उदासी का स्थान आखिर उत्साह ने ले ही लिया, मैं भी भूल गई कि बेटा अपनी मर्जी से ब्याह कर रहा है.

शादी में दीदी भी परिवार सहित आईं. दीदी की बहू में अब नई बहू का सा छुईमुईपन नहीं था. आखिर वह भी अब 1 साल के बेटे की मां बन चुकी थी. अक्षत भी पहले की तरह मां की हां में हां मिलाते नहीं दिखा, बल्कि मां से बातबात पर टोकाटाकी करता व तिरस्कार करता सा दिखा. मुझे आश्चर्य व दुख हुआ, जब बेटा ही मां से इस भाषा में बात करता है, मां की कमियां गिनाता रहता है तो बहू से क्या उम्मीद कर सकते हैं.

मुझे अपनी भी चिंता हो आई. मेरा बेटा तो हमेशा लड़ाई में ही बात करता है. अब बहू के सामने भी ऐसे ही बोलेगा तो दूसरी जाति की वह अनजानी लड़की, जिस का मैं ने इस घर में आने का विरोध भी किया था, मेरी क्या इज्जत करेगी? सासससुर को क्या मानेगी?

खैर, विवाह संपन्न हुआ और मेरे बेटेबहू हनीमून पर चले गए. दीदी 1-2 दिन रुकना भी चाह रही थीं पर अक्षत बिलकुल नहीं माना, शायद उस को अपने 1 साल के बच्चे की देखभाल की चिंता थी. मैं ने भी बहुत कहा पर अक्षत का रवैया तो हमारे प्रति भी पराया सा हो गया था.

‘दीदी, राहुल और नियोनिका हनीमून से लौट आएं तब मैं आऊंगी इस बार आप के पास…’

‘अच्छा…’ दीदी खास उत्साहित नहीं दिखीं. मेरे कुछ दिन शादी के बाद के कार्य निबटाने में बीत गए. लगभग 10 दिन बाद राहुल और नियोनिका वापस आ गए. घर आ कर भी वे अत्यधिक व्यस्त थे. आएदिन कोई न कोई उन को डिनर और लंच पर बुला लेता. उस के बाद थोडे़ दिन के लिए नियोनिका मायके चली गई और राहुल को भी मैं ने ठेलठाल कर उस के साथ भेज दिया. यही सही समय था. मैं ने इन को मुश्किल से मनाया और 2-4 दिन के लिए दीदी के पास चली गई.

अक्षत और उस की पत्नी ने मुझे खास तवज्जो नहीं दी. लगता था जैसे पहले वाला अक्षत कहीं खो गया है. दीदी अलबत्ता खुश हो गईं. इस बार मैं ने दीदी को पकड़ ही लिया.

‘दीदी, मुझे सच बताओ…क्या गम खाए जा रहा है आप को, आधी भी नहीं रह गई हो. चेहरा तो देखो अपना,’ मैं बोली.

‘कुछ नहीं…’ दीदी की आंखें भर आईं.

‘कुछ तो है, दीदी, मुझे भी नहीं बताओगी तो किसे बताओगी?’ दीदी चुप आंसू पोंछती  रहीं. मैं उन का हाथ सहलाने लगी, ‘बोलो न, दीदी.’

‘पता नहीं सुजाता, अक्षत को क्या हो गया है. बातबात पर मुझे टोकता है, मुझ पर चिल्लाता है. यों तो बात ही नहीं करता और जब बात करता है तो कड़वा ही बोलता है. बहू तो तीखी है ही, पलट कर जवाब देना उस का स्वभाव ही है…पर अक्षत भी हमेशा उस का साथ देता है. उसे मुझ में कमियां दिखाई देती हैं. कैसे दिन बिताऊं इन दोनों के साथ? मेरे सामने जोर से भी न हंसने वाला मेरा बेटा, जिस ने कभी मुझ से अलग जाने की हिम्मत नहीं की थी, आज मुझ पर अपनी बीवी के सामने इतनी जोर से चिल्लाता है कि सहन नहीं होता,’ दीदी फफकफफक कर रोने लगीं.

‘पर ऐसा क्यों करता है अक्षत?’

‘पता नहीं, पुरानीपुरानी बातें याद करकर के मुझ पर दहाड़ता रहता है. पढ़ने वाले बच्चों पर तो बंधन सभी लगाते हैं सुजाता, मैं ने क्या गलत किया?’

परवरिश- भाग 1: मानसी और सुजाता में से किसकी सही थी परवरिश

मानसी दीदी की चिट्ठी मिलते ही मैं एक ही सांस में पूरी चिट्ठी पढ़ गई. चिट्ठी पढ़ कर दो बूंद आंसू मेरे गालों पर लुढ़क गए. मानसी दीदी के हिस्से में भी कभी सुख नहीं रहा. कुछ दुख उन्हें उन के हिस्से के मिले, कुछ कर्मों से और कुछ स्वभाव से. इन तीनों में से कुछ भी यदि उन का ठीक होता तो शायद उन्हें इतने दुख नहीं भुगतने पड़ते. दीदी के बारे में सोचती मैं अतीत में खो सी गई.

हम दोनों बहनें मातापिता की लाड़ली थीं. पिता ने हमें ही बेटा मान हमारे लालनपालन व शिक्षादीक्षा में कोई कमी नहीं रखी. दीदी सुंदरता में मां पर व स्वभाव से पापा पर गई थीं. वह दबंग व उग्र स्वभाव की थीं. वह दूसरे के अनुसार ढलने के बजाय दूसरे को अपने अनुसार ढालने में विश्वास रखती थीं. परिस्थितियों के अनुसार ढलने के बजाय परिस्थितियों को अपने अनुसार ढाल लेती थीं. यह उन का स्वभाव भी था और इस की उन में क्षमता भी थी.

इस के विपरीत मेरा स्वभाव मां पर व शक्लसूरत पापा पर गई थी. मैं देखने में ठीकठाक थी. शालीन व लुभावना सा व्यक्तित्व था. हर एक के साथ समझौता करने वाला लगभग शांत स्वभाव था. जब तक बहुत परेशानी न हो तब तक मैं खुश ही रहती थी. हर तरह की परिस्थिति के साथ समझौता करना जानती थी. मेरे स्वभाव में दबंगता तो नहीं थी पर मैं दब्बू स्वभाव की भी नहीं थी.

दीदी का दबंग स्वभाव सब को अपनी मुट्ठी में रखना चाहता. जो करे उन की मन की करे. जो उन को ठीक लगे वह करे. विवाह के बाद भी पति व बच्चों पर उन का ही शासन रहा. यहां तक कि सासससुर ने भी उन की ही सुनी. किसी की क्या मजाल कि कोई उन की इच्छा के विपरीत घर में कुछ कर दे.

‘दीदी, इतना मत दबाया करो सब को, बच्चों पर इतनी अधिक बंदिश रखना ठीक नहीं है…’ मैं अकसर दीदी को समझाने का प्रयास करती.

‘तू अपनी समझ अपने पास रख…जैसे तू ने खुल्ला छोड़ा हुआ है बच्चों को…मेरे दोनों बच्चे, मजाल है मेरे सामने जोर से हंस भी दें…कितने आज्ञाकारी बच्चे हैं…मेरे ही नियंत्रण का फल है…वरना इन के पापा तो इन को बिगाड़ कर रख देते,’ दीदी बडे़ गर्व से कहतीं.

‘दीदी, आप के बच्चे आज्ञाकारी नहीं बल्कि डरते हैं आप से. आज्ञा प्यार से मानें बच्चे, तब तो ठीक लेकिन यदि वे डर कर मानें, तो जिस दिन वे आत्मनिर्भर हो जाएंगे आप की सुनेंगे भी नहीं,’ मैं दलील देती तो दीदी मुझे जोर से झिड़क देतीं.

दीदी के इस दबंग रूप को अगर सकारात्मक पहलू से देखा जाए तो पूरी गृहस्थी का भार उन के ही कंधों पर था. जीजाजी अकसर बीमार रहते थे. उन्हें दिल की बीमारी थी. किसी तरह वह नौकरी कर लेते थे बस, बाकी समस्याएं दीदी के जिम्मे थीं.

दीदी हिम्मत वाली थीं. हर मुश्किल का सामना वह किसी तरह कर लेती थीं. इसीलिए जीजाजी बीमार होने के बावजूद थोड़ा जी गए, लेकिन बीमार दिल के साथ आखिर वह कितने दिन जी पाते. एक दिन परिवार को आधाअधूरा छोड़ वह इस दुनिया से कूच कर गए. दीदी की हिम्मत ने परिवार की पतवार फिर से चलानी शुरू कर दी. उन्होंने बेटी की पढ़ाई छुड़वा कर उस के लिए लड़का देखना शुरू कर दिया.

‘दीदी, आमना पढ़ने में तेज है, उस की इतनी जल्दी शादी क्यों कर रही हो…उसे पढ़ने दो,’ मैं बोली.

‘तू अपनी गृहस्थी के बारे में सोच, सुजाता. मेरी बेटी मेरी जिम्मेदारी है,’ उन्होंने मुझे दोटूक जवाब दे दिया. दीदी न किसी की सुनती थीं, न किसी की मानती थीं. आमना भी बहुत रोई, गिड़गिड़ाई, बेटे ने भी बहुत कहा पर दीदी ने बी.काम. खत्म करते ही उस का विवाह कर दिया.

अपनी सफलता पर दीदी बहुत खुश थीं कि उन्होंने अकेले होते हुए भी बेटी का विवाह कर दिया और बेटी ने चूं भी नहीं की. आमना को खुश देख कर मैं ने भी अपने दिल को समझा लिया. हालांकि उस के सपनों की कोंपलों को झुलसते हुए मैं ने साफ महसूस किया था.

दीदी कभीकभी बच्चों के साथ हमारे घर रहने आ जाती थीं. उन का बेटा अक्षत इतना आज्ञाकारी था कि उन दिनों मुझे अपना राहुल कुछ ज्यादा ही बिगड़ा हुआ और उद्दंड दिखाई देता. उन दोनों मांबेटे में मैंने कभी बहस होते नहीं देखी. मांबेटे के बीच झगड़ा तो दूर की बात थी, जबकि मेरे और मेरे बेटे के बीच बिना कारण हमेशा ठनी ही रहती. मेरे बेटे को मुझ में कमी ही कमी दिखाई देती.

दीदी अकसर मुझे टोकतीं, ‘तू राहुल पर थोड़ी सख्ती रखा कर सुजाता, अभी से ऐसा लड़ता है तुझ से तो बड़ा हो कर क्या करेगा? तेरी जगह पर मैं होती तो थप्पड़ लगा देती.’

‘इतने बड़े बच्चे थप्पड़ से कहां काबू होते हैं, दीदी…किशोरावस्था से गुजर रहे हैं बच्चे इस समय, थोड़ीबहुत समस्याएं तो होती ही हैं उन के साथ इस दौर में,’ मैं दीदी से बात करते हुए बीच का रास्ता अपनाती.

‘नहीं, जैसे हम तो इस दौर से कभी गुजरे ही नहीं थे,’ दीदी तुनक कर कहतीं. मैं कैसे कहती कि मैं ने तो मां के साथ झगड़ा नहीं भी किया होगा पर तुम तो हमेशा झगड़ती थीं.

दीदी के बेटे अक्षत ने इंजीनियरिंग के बाद एम.बी.ए. किया और प्रतिष्ठित कंपनी में उसे जौब मिल गई. दीदी बहुत खुश थीं. उन को देख कर हम सभी खुश थे. अक्षत को देख कर दिल खुश हो जाता. अक्षत खूबसूरत, स्मार्ट, आज्ञाकारी, नम्र स्वभाव का प्रतिष्ठित कंपनी में कार्यरत युवक था. उसे देख कर कोई भी रश्क कर सकता था. एक से एक लड़कियों के रिश्ते उस के लिए आते. दीदी खुद ही सब जगह बात करतीं.

दीदी से कई बार कहा भी मैं ने, ‘दीदी हर किसी पर अंधा भरोसा मत किया करो…जिस ने भी रिश्ता बताया, आप सोचती हो अक्षत पसंद कर ले…बस, हां बोल दे.’

‘तो और क्या देखना है, सबकुछ तो बायोडाटा में लिखा रहता है. शक्ल अक्षत देख ही लेता है, मैं अधिक प्रपंच में नहीं पड़ती.’

आखिर दीदी ने अक्षत का रिश्ता तय कर ही दिया. अक्षत के विवाह की तैयारियां होने लगीं. विवाह हुआ, सुंदर, सलोनी सी बहू घर आई तो सभी खुश थे कि आखिर दीदी ने अपने बच्चों की लाइफ सेटल कर ही दी.

मेरा राहुल, अक्षत से डेढ़ साल ही छोटा है. उस के नौकरी पर लगते ही मैं ने भी शादी के लिए उस के दिमाग के पेंच कसने शुरू कर दिए, ‘अभी कैसे शादी कर सकता हूं मम्मी…पैसे भी तो चाहिए, इतने कम में कैसे गुजारा होगा.’ उस का जवाब सुन कर  मैं हतप्रभ रह गई. आखिर प्रतिष्ठित कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत मेरे बेटे के पास गृहस्थी बसाने के लिए पैसे कब होंगे?

भाभी- भाग 3: क्या अपना फर्ज निभा पाया गौरव?

आप के भैया के लाख मना करने पर भी मैं ने आप को ऐबी बना दिया है… आप के पतन की दोषी मैं ही हूं…आप कहीं नहीं जाएंगे, जाना ही होगा तो मैं जाऊंगी,’’ कह कर उन्होंने अटैची से मेरे कपड़े निकाल कर हैंगर में डाल अलमारी में लटका दिए और पुस्तकें मेज पर लगा दीं.

‘‘किस अधिकार से आप मुझे रोक रही हैं?’’ मैं ने पूछा.

‘‘अधिकार की बात मत कीजिए, मैं नहीं जानती कि अधिकार किसे कहते हैं, बस आप कहीं नहीं जाएंगे, कह दिया सो कह दिया, कोई मेरी बात टाले, मुझे बरदाश्त नहीं.’’

‘‘सौमित्र और राघव की हुक्मउदूली तो आप बरदाश्त कर लेंगी,’’ सुनते ही उन्होंने मेरे मुंह पर तड़ातड़ चांटे बरसाने शुरू कर दिए. बदहवास सी सौमित्र… राघव… सौमित्र… राघव…चीखे जा रही थीं और मेरे मुंह पर थप्पड़ पर थप्पड़ मारे जा रही थीं. मैं हाथ पीछे बांधे मूर्तिवत खड़ा थप्पड़ खाता रहा और फिर मैं ने उन की कोली भर ली और उन के मुंह को दोनों हथेलियों के बीच ले कर उन से आंखें मिलाते हुए कहा, ‘‘मां, मुझे माफ कर दे, मैं ने तो कभी की सिगरेट पीनी छोड़ दी है. देखो, ये रहे सारे रुपए,’’ और मैं ने अपने बैड के नीचे रखे सौसौ के नोटों की ओर इशारा किया. फिर फफकफफक कर रो पड़ा.

उन्होंने मुझे कस कर अपनी छाती से लगा लिया. कुछ देर वे यों ही खड़ी रहीं, फिर साड़ी के पल्लू से अपने आंसू पोंछते हुए बोलीं, ‘‘ठीक है, मैं एक बार फिर विश्वास कर लेती हूं,’’ कह कर वे जाने लगीं.

मैंने उन का हाथ पकड़ कर उन्हें रोका और बोला, ‘‘भाभी मां, मैं वादा करता हूं कि अब कोई गलती नहीं करूंगा.’’

‘‘ठीक है, ठीक है,’’ कह कर वे चली गईं.

‘‘और यह उसी का फल है बेला कि मैं आज इस रूप में तुम्हारे सामने हूं.’’

बेला बोली, ‘‘खैर छोडि़ए, अब सुधरे हुए हैं तो क्या हुआ, हैं तो आप ऐक्सऐबी,’’ और मुसकराते हुए जातेजाते कह गई, ‘‘आप आज ही चले जाइए भाभी से मिलने.’’

‘‘तुम भी चलो.’’

‘‘नहीं, शायद वे तुम से कोई प्राइवेट बात करना चाहती हों, मेरी उपस्थिति शायद उन्हें अच्छी न लगे. आप अकेले ही जाइए.’’

‘‘ठीक है, मैं अकेला ही जाता हूं, ड्राइवर को आज छुट्टी दे दो.’’

बेला बोली, ‘‘उसे भी साथ ले जाते तो क्या बुराई थी? कोई साथ में हो तो अच्छा है.’’

‘‘अरी, यह रहा आगरा, दोढाई घंटे का ही तो सफर है.’’

थोड़ी देर बाद तैयार हो कर मैं आगरा के लिए निकल पड़ा और 3 बजे आगरा पहुंच गया. कोठी के गेट में घुसते ही देखा कि भाभी सामने ही लौन में कुरसी पर बैठी हैं.

मुझे देखते ही वे खिल उठीं, ‘‘आ गए गौरव.’’

‘‘हां भाभी,’’ कहते हुए मैं ने उन्हें प्रणाम किया.

‘‘अकेले ही चले आए हो, बेला को भी ले आते.’’

मैं ने कहा, ‘‘उसे कुछ जरूरी काम था.

मैं जल्दी में चला आया इसलिए कि ऐसी क्या बात है, जो आप ने बुलाया है और कारण भी नहीं बताया. सब ठीक तो है?’’

‘‘हां, यहां सब ठीकठाक है, कोई खास बात नहीं है.’’

‘‘बात तो कुछ जरूर है भाभी, वरना आप इतनी जल्दी फोन छोड़ने वाली कहां थीं? बताइए क्या बात है?’’

‘‘अरे दम तो ले, चायपानी पी, फिर बैठ कर आराम से बातें करेंगे,’’ कह कर भाभी ने नौकर को आवाज लगाई, ‘‘अरे रामू.’’

रामू भागता हुआ आया और बोला, ‘‘कहिए बीबीजी.’’

‘‘जा, 2 कप चाय बना ला.’’

चाय पीतेपीते कुछ देर बाद मैं ने पूछा, ‘‘कैसी हो भाभी?’’

‘‘यों तो सब ठीकठाक है गौरव, पर यहां अब मन नहीं लगता, मुझे अपने साथ दिल्ली ले चल.’’

‘‘इस में क्या मुझे किसी की आज्ञा लेनी होगी? जब चाहिए चलिए,’’ मैं ने कहा.

‘‘हां आज्ञा लेनी होगी, बेला की,’’

वे बोलीं.

‘‘कैसी बात करती हो भाभी, आप को साथ ले चलने के लिए बेला की आज्ञा? बेला कौन होती है आज्ञा देने वाली? नहीं भाभी नहीं, अपने इस बेटे पर तुम्हारा कितना अधिकार है, यह भी मुझे ही बताना पड़ेगा? पर बताओ तो सही कि बात क्या है? सौमित्र, राघव, दोनों बहुएं क्या नाराज चल रहे हैं? किसी ने कुछ कहा है आप से?’’

‘‘मुझे कुछ कहने की हिम्मत कौन करेगा? नहीं, ऐसी कोई बात नहीं, बस मन नहीं लगता. अब मेरा दम घुटता है यहां,’’ कह कर वे कुछ उदास सी हो गईं.

‘‘भाभी, साफसाफ बताओ न? कुछ बात तो जरूर है.’’

‘‘समझो तो बहुत कुछ है, न समझो तो कुछ भी नहीं. बस यों समझ ले, बहूबेटों के रंगढंग मुझे अच्छे नहीं लगते. मुझे लगता है कि ये बहुएं तुम्हारे भैया की इज्जत खाक में मिलाने पर तुली हुई हैं. इन की चालढाल, इन का रंगढंग, इन का लाइफस्टाइल मुझे बिलकुल पसंद नहीं.’’

मुझे इस के अतिरिक्त कोई और कारण नहीं दिखाई दे रहा था, भाभी की परेशानी का. मैं पहले ही जानता था, हो न हो वही सासबहू का, मांबेटे का पारंपरिक तनाव है.

थोड़ी देर बाद भाभी फिर बोलीं, ‘‘गौरव, अब सहन नहीं होती मुझ से बहुओं की यह चालढाल… सौमित्र और राघव तो जोरू के पक्के गुलाम बन गए हैं… दब्बू कहीं के, उन के ही रंग में रंग गए हैं, जन्म से जवानी तक चढ़ा हुआ मां का रंग इतना कच्चा पड़ गया कि बहुओं के आते ही उतर गया? अरे, मैं तो इन से बड़े खानदान की थी, पढ़ीलिखी भी इन से कम नहीं हूं, इन से हर बात में आगे हूं. चलो और कुछ न सही, इन की सास तो हूं, यह सब कुछ मेरा ही तो है, फिर भी…’’ कह कर भाभी चुप हो गईं.

मैं ने कहा, ‘‘भाभी, मैं समझ तो रहा हूं, पर यह भी जानता हूं भाभी, मेरे कहे को उपदेश मत समझना, यह भी मत समझना कि मैं तुम्हें बोझ समझ कर टालना चाहता हूं, मैं मानता हूं भाभी कि तुम प्रसन्न नहीं हो, परेशान हो, पर क्या तुम सुख खोजने का अपना दृष्टिकोण नहीं बदल सकतीं?’’

‘‘मतलब?’’

‘‘मतलब यह भाभी कि सुख तो हमारे चारों ओर बिखरा पड़ा है, उसे बीनने और संजो कर रखने का ढंग बदल दो तो तुम्हारी झोली में सुख ही सुख होगा. स्पष्ट कहूं, कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम्हारी रुचि बेटेबहुओं के दोष ढूंढ़ने तक ही सीमित हो गई हो, अच्छाई देखने की इच्छा ही नहीं हो?’’

‘‘अरे, तू तो मुझे उपदेश ही देने बैठ गया,’’ इतना ही कह पाई थीं कि मैं बोल उठा, ‘‘देखो भाभी, मुझे तुम से यह आशा कदापि नहीं है कि तुम अपने गौरव को उपदेश झाड़ने वाला समझोगी. मैं ने कभी तुम से कुछ नहीं छिपाया, अपने मन की बात सदा ही साफसाफ करता रहा हूं, आज भी मैं तुम से उसी रूप में अपने मन की बात कह रहा हूं. जरूरी तो नहीं कि मेरे मन में आई हर बात सही हो, मैं गलत भी हो सकता हूं, बिना किसी लागलपेट के मैं ने अपने मन की बात आप से कह दी, आप प्लीज अन्यथा न लें.’’

इस पर वे बोलीं, ‘‘तू बता गौरव, बहुएं जींस पहन कर बाहर निकलें, यह गलत नहीं तो और क्या है?’’

मैं ने कहा, ‘‘बड़े भैया की बड़ी बेटी एम.ए.कर रही है, कालेज जींस पहन कर जाती है या नहीं?’’

‘‘जाती तो है, पर वह तो बेटी है.’’

‘‘बस, यही तो गड़बड़ है भाभी, बहुएं क्या तुम्हारी बेटियां नहीं?’’

‘‘जो कुछ भी हो, पर बेटीबहू में अंतर तो रहता ही है, बहुएं बड़ेबूढ़ों का इतना भी लिहाज न करें कि उन्हें देख कर तिनके की ओट जितना परदा कर लें?’’

‘‘और बेटी भले ही नौजवान लड़कों के साथ बेलिहाज घूमती फिरे?’’ मैं ने कहा, ‘‘यह तो भाभी एक कोल्डवार है, न जाने कब से जारी है, इस का अंत होता नजर नहीं आता. सास, मां नहीं बन सकती और बहू, बेटी. इस में मैं आप को दोषी नहीं ठहराता, कदाचित आप ठीक कह रही हैं,’’ मैं ने मन ही मन सोचा कि कहीं मैं यह भाभी के डर से तो नहीं कह गया. पर मैं डर जरूर रहा था कि कहीं वे मेरी बात को अन्यथा न ले लें.

वही हुआ, वे बोलीं, ‘‘अरे, तू तो वाकई मुझे उपदेश झाड़ने लगा. लगता है अब तू बड़ा हो गया है, मुझे उपदेश देने लगा.’’

‘‘वही हुआ न भाभी, जिस का मुझे अंदेशा था. निश्छल बात मैं ने आप से कही तो आप बुरा मान गईं, सौरी. सोचता हूं आप ठीक कहती हैं- एक दिन में ही बेटा, मां का न हो कर बहू का हो जाए, तो गलत तो है ही,’’ और मैं चुप हो गया.

अजीब दास्तान- भाग 1: क्या हुआ था वासन और लीना के साथ

कुछ महीनों से लीना महसूस कर रही थी कि उस का पति वासन कुछ बदल सा गया है. पहले, हफ्ते में 2 दिन टूर करता था पर अब हफ्ते में 5 दिन बाहर रहता था.

पूछने पर बोलता कि तुम और बच्चे इतना आरामदायक जीवन जी रहे हो, उस के लिए मु झे अधिक काम करना पड़ रहा है. लीना उसे सच मान लेती क्योंकि उसे वासन पर पूरा विश्वास था. टूर से जब वासन वापस आता तो बच्चों के लिए ढेरों उपहार और उस के लिए 2-4 सुंदरसुंदर साडि़यां लाता. उपहार देते समय वासन अपना मनपसंद वाक्य बोलना न भूलता, ‘आई लव माई फैमिली’. ऐसे में वासन पर शक करने की कोई गुुंजाइश ही नहीं थी.

पर आज जब मंगला ने कालेज से वापस घर आ कर पूछा, ‘‘आजकल डैडी का कोई और घर भी है क्या? मेरी एक सहेली ने मु झे आज बताया कि मेरे डैडी कोडमबक्कम में रहते हैं. मैं उस सहेली से लड़ बैठी पर वह अपनी बात की इतनी पक्की थी कि मैं चुप हो गई. अब मैं आप से पूछ रही हूं कि क्या यह सच है?’’

मंगला की इन बातों ने लीना को  झक झोर दिया. लीना तो जैसे नींद से जागी हो. लीना के मन में वासन को ले कर कहीं न कहीं ऐसी बात थी पर वह वासन की प्यारभरी बातों में भूल जाती थी. लेकिन आज यह शक सच में बदलता नजर आ रहा था. वह बोली, ‘‘डैडी घर आएंगे तभी सच का पता चलेगा.’’

‘‘मां, इस से पहले ही हम सचाई का पता लगा सकते हैं. उस सहेली का पता मु झे मालूम है. हम वहां चलते हैं,’’ और दोनों मांबेटी कोडमबक्कम जाने के लिए निकल पड़ीं.

वहां जा कर उस बिल्ंिडग में रहने वाले लोगों के नाम वहां लगे बोर्ड पर पढ़े. वासन का नाम वहां नहीं था. वे लौट आईं.

5 दिन बाद जब वासन वापस आया तो परिवार वालों के लिए ढेरों तोहफे लाया. लीना घर में अकेली थी. बच्चे कालेज गए हुए थे. लीना ने आते ही उसे सामने बिठाया और बोली, ‘‘हम लोगों को कब तक गिफ्ट दे कर बहलाओगे? अब मैं सचाई जानना चाहती हूं.’’

‘‘कौन सी सचाई?’’

‘‘अब भी भोले बन रहे हो तुम. क्या जानते नहीं हो कि मैं क्या पूछ रही हूं?’’

‘‘हां, मैं सेल्वी के साथ रहता हूं. हम ने अलग फ्लैट लिया हुआ है. पर यह भी सच है कि मेरा परिवार तो यही है. आई लव माई फैमिली.’’

इतना सुनते ही लीना स्तब्ध रह गई. वह सपने में भी नहीं सोच सकती थी कि वासन सेल्वी के साथ रह रहा है.

सेल्वी उन के सब से करीबी दोस्त राजन की पत्नी

थी. वह भी सेल्वी को बहुत अच्छी तरह से जानती थी.

लीना जानती थी कि राजन और सेल्वी के बीच बहुत  झगड़े होते थे. दोनों की शादी घर वालों ने जबरदस्ती करवाई थी. सेल्वी अपने ही मामा के साथ शादी नहीं करना चाहती थी पर उस की नानी, जो बहुत पैसे वाली थी, अपनी बेटी की बेटी को ही बहू बनाना चाहती थी. उन की जाति में मामा ही पहला उम्मीदवार होता है. बड़ों की जोरजबरदस्ती से विवाह तो हो गया था पर विवाह के बाद सेल्वी का जीवन नारकीय हो गया था. सेल्वी राजन को पति के रूप में कभी स्वीकार नहीं कर पाई. ऐसे में वासन और लीना ही दोनों के  झगड़े निबटाते थे. इस दौरान वे दोनों कब करीब आ गए, पता ही नहीं चला.

सेल्वी के पति राजन को खबर थी पर वह अपने गम में शराबी बन चुका था. दिनरात शराब पी कर धुत पड़ा रहता था. ऐसे में वासन और सेल्वी ने एक नया आशियाना बना लिया था. दोनों ने एकसाथ रहना शुरू कर दिया था. पिछले 7 महीने से दोनों एकसाथ एक ही फ्लैट में रह रहे थे और वासन अधिक समय सेल्वी के साथ ही गुजारता था. घर में टूर का बहाना बनाना बहुत आसान था. पर आज जब रहस्य खुल ही गया था तो वासन बोला, ‘‘हां, मैं सेल्वी के साथ रहता हूं. उसे मेरी जरूरत है. वह बहुत दुखी है पर मैं ने तुम्हें और बच्चों को तो किसी भी बात की कमी नहीं होने दी है.’’

‘‘पर अब यह सब नहीं चलेगा. तुम्हें आज ही फैसला लेना होगा कि तुम सेल्वी के साथ रहना चाहते हो या हमारे साथ,’’ लीना क्रोध में बोली.

‘‘एक बार फिर सोच लो.’’

‘‘सोच लिया, मु झे अपने बच्चों का भविष्य देखना है. तुम्हारी इस जीवनशैली का जवान होते बच्चों पर क्या असर पड़ेगा? मैं यह सहन नहीं कर सकती.’’

‘‘तो ठीक है, मैं चला जाता हूं,’’ और वासन अपनी अटैची उठा कर घर से बाहर निकल गया.

लीना जोर से चिल्लाई, ‘‘अब कभी वापस मत लौटना, तुम्हारे लिए यहां जगह नहीं है.’’

वासन के जाने के बाद लीना चुप बैठ गई. उस ने स्वयं को कभी भी इतना असहाय नहीं पाया था. वासन को शराब की लत तो बहुत पहले से थी. उस लत को वह किसी प्रकार सहन करती थी. वासन का आधी रात के बाद नशे की हालत में घर लौटना उस ने अपनी आदत में शामिल कर लिया था. पर बच्चों के लिए वह सांताक्लौज जैसा था जो उन्हें उपहारों से लादता रहता था. बच्चों को इस के अलावा वासन से कुछ भी प्राप्त नहीं होता था. उस के पास समय नहीं था बच्चों से बात करने का या उन की कोई समस्या सुल झाने का. वह तो यह भी नहीं जानता था कि बच्चे कौन से कालेज में जाते हैं और क्या पढ़ते हैं. पैसा दे कर ही उस की जिम्मेदारी पूरी हो जाती थी.

ऐसी परिस्थितियों को  झेलते झेलते लीना भी कठोर बन गई थी. वह अब बातबात में रोने वाली लीना नहीं थी. उस ने वासन की इस प्रतिक्रिया को भी सहज रूप से स्वीकार कर लिया था. उस ने मन में निश्चय किया था कि वह वासन को फिर कभी इस घर में वापस नहीं आने देगी. जिस आदमी ने इतनी आसानी से रिश्ता तोड़ लिया हो, ऐसे आदमी के लिए वह न रोएगी और न  झुकेगी.

मंगला और शुभम ने जब डैडी के लिए पूछा तो लीना ने बिना कुछ भी छिपाए सबकुछ बता दिया. वह बोली, ‘‘अब तुम्हारे डैडी यहां कभी नहीं आएंगे. अब वे अलग घर में सेल्वी आंटी के साथ रहते हैं, अब तुम लोग भी उन का नाम इस घर में मेरे सामने कभी नहीं लोगे. उन के बिना हम अच्छी तरह से जीएंगे. तुम लोग अपनी पढ़ाई करो और मेरा सपना पूरा करो. मंगला को डाक्टर बनना है और शुभम को इंजीनियर बनना है.’’

मां की आवाज की दृढ़ता को सुन कर दोनों बच्चे चुप हो गए थे. वे जानते थे कि मां जो भी बोल रही हैं वह ठीक है. अब उन्हें पीछे मुड़ कर नहीं देखना है और मेहनत कर के मां के सपने को पूरा करना है.

एक हफ्ते के अंदर ही वासन वापस आया था. उसे दरवाजे पर देख कर लीना ने उसे अंदर आने को नहीं कहा. वह ही बोला, ‘‘बस, 1 मिनट के लिए तुम से बात करनी है, मैं नहीं चाहता कि तुम्हें किसी प्रकार की कोई तकलीफ हो या बच्चों की पढ़ाई में कोई कमी आए,’’ इतना कह कर उस ने अपनी प्रौपर्टी के सारे कागजात लीना को सौंप दिए, उस ने अपनी सारी प्रौपर्टी लीना और बच्चों के नाम कर दी थी.

अनमोल उपहार- भाग 3: सरस्वती के साथ क्या हुआ

गायत्री ने कहा, ‘मन के बुरे नहीं हैं. न ही आप के प्रति गलत धारणा रखते हैं. पर बचपन से जो बातें कूटकूट कर उन के दिमाग में भर दी गई हैं उन का असर धीरेधीरे ही खत्म होगा न? बूआ का प्रभाव उन के मन पर बचपन से हावी रहा है. आज उन्हें इस बात का एहसास है कि उन्होंने आप का दिल दुखाया है.’

गायत्री के मुंह से यह सुन कर सरस्वती का चेहरा एक अनोखी आभा से चमक उठा था.

गायत्री की गोदभराई के दिन घर सारे नातेरिश्तेदारों से भरा हुआ था. गहनों और बनारसी साड़ी में सजी गायत्री बहुत सुंदर लग रही थी.

‘चलो, बहू, अपना आंचल फैलाओ. मैं तुम्हारी गोद भर दूं,’ बूआ ने मिठाई और फलों से भरा थाल संभालते हुए कहा.

‘रुकिए, बूआजी, बुरा मत मानिएगा. पर मेरी गोद सब से पहले अम्मां ही भरेंगी.’

‘यह तुम क्या कह रही हो, बहू? ये काम सुहागन औरतों को ही शोभा देता है और तुम्हारी सास तो…’ पड़ोस की विमला चाची ने टोका, तो कमला बूआ जोर से बोलीं, ‘रहने दो बहन, 4 अक्षर पढ़ कर आज की बहुएं ज्यादा बुद्धिमान हो गई हैं. अब शास्त्र व पुराण की बातें कौन मानता है?’

‘जो शास्त्र व पुराण यह सिखाते हों कि एक स्त्री की अस्मिता कुछ भी नहीं और एक विधवा स्त्री मिट्टी के ढेले से ज्यादा अहमियत नहीं रखती, मैं ऐसे शास्त्रों और पुराणों को नहीं मानती. आइए, अम्मांजी, मेरी गोद भरिए.’

गायत्री का आत्मविश्वास से भरा स्वर कमरे में गूंज उठा. सरस्वती जैसे नींद से जागी. मन में एक अनजाना भय फिर दस्तक देने लगा.

‘नहीं बहू, बूआ ठीक कहती हैं,’ उस का कमजोर स्वर उभरा.

‘आइए, अम्मां, मेरी गोद पहले आप भरेंगी फिर कोई और.’

बहू की गोद भरते हुए सरस्वती की आंखें मानो पहाड़ से फूटते झरने का पर्याय बन गई थीं. रोमरोम से बहू के लिए आसीस का एहसास फूट रहा था.

निर्धारित समय पर विपुल का जन्म हुआ तो सरस्वती उसे गोद में समेट अतीत के सारे दुखों को भूल गई. विपुल में नन्हे विश्वनाथ की छवि देख कर वह प्रसन्नता से फूली नहीं समाती थी.

अपने बेटे के लिए जोजो अरमान संजोए थे, वह सारे अरमान पोते के लालनपालन में फलनेफूलने लगे. फिर 2 साल के बाद नेहा गायत्री की गोद में आ गई. सरस्वती की झोली खुशियों की असीम सौगात से भर उठी थी. गायत्री जैसी बहू पा कर वह निहाल हो उठी थी. विश्वनाथ और उस के बीच में तनी अदृश्य दीवार गायत्री के प्रयास से टूटने लगी थी. बेटे और मां के बीच का संकोच मिटने लगा था.

अब विश्वनाथ खुल कर मां के बनाए खाने की प्रशंसा करता. कभीकभी मनुहारपूर्वक कोई पकवान बनाने की जिद भी कर बैठता, तो सरस्वती की आंखें गायत्री को स्नेह से निहार, बरस पड़तीं. कौन से पुण्य किए थे जो ऐसी सुघड़ बहू मिली. अगर इस ने मेरा साथ नहीं दिया होता तो गांव के उसी अकेले कमरे में बेहद कष्टमय बुढ़ापा गुजारने पर मैं विवश हो जाती.

समय अपनी गति से बीतता रहा. 3 वर्ष पहले कमला बूआ की मृत्यु हो गई. विपुल ने इसी साल मैट्रिक की परीक्षा दी थी. और नेहा 8वीं कक्षा की होनहार छात्रा थी. दोनों बच्चों के प्राण तो बस, अपनी दादी में ही बसते थे.

गायत्री ने उन का दामन जमाने भर की खुशियों से भर दिया था और वही गायत्री इस तरह, अचानक उन्हें छोड़ गई? उन की सोच को एक झटका सा लगा.

‘‘दादीमां, दवा ले लीजिए,’’ पोती नेहा की आवाज से वह वर्तमान में लौटीं. उठने की कोशिश की पर बेहोशी की गर्त में समाती चली गईं.

नेहा की चीख सुन कर सब कमरे में भागे चले आए. विपुल दौड़ कर डाक्टर को बुला लाया. मां के सिरहाने बैठे विश्वनाथ की आंखें रहरह कर भीग उठती थीं.

‘‘इन्हें बहुत गहरा सदमा पहुंचा है, विश्वनाथ बाबू. इस उम्र में ऐसे सदमे से उबरना बहुत मुश्किल होता है. मैं कुछ दवाएं दे रहा हूं. देखिए, क्या होता है?’’

डाक्टर ने कहा तो विपुल और नेहा जोरजोर से रोने लगे.

‘‘दादीमां, तुम हमें छोड़ कर नहीं जा सकतीं. मां तुम्हारे ही भरोसे हमें छोड़ कर गई हैं,’’ नेहा के रुदन से सब की आंखें नम हो गई थीं.

4 दिन तक दादीमां नीम बेहोशी की हालत में पड़ी रहीं. 5वें दिन सुबह अचानक उन्हें होश आया. आंखें खोलीं और करवट बदलने का प्रयास किया तो हाथ किसी के सिर को छू गया. दादीमां ने चौंक कर देखा. उन के पलंग की पाटी से सिर टिकाए उन का बेटा गहरी नींद में सो रहा था. कुरसी पर अधलेटे विश्वनाथ का सिर मां के पैरों के पास था.

तभी नेहा कमरे में आ गई. दादी की आंखें खुली देख वह खुशी से चीख पड़ी, ‘‘पापा, दादीमां को होश आ गया.’’ विश्वनाथ चौंक कर उठ बैठे.

बेटे से नजर मिलते ही दादीमां का दिल फिर से धकधक करने लगा. मन की पीड़ा अधरों से फूट पड़ी.

‘‘मैं सच में आभागी हूं, बेटा. मनहूस हूं, तभी तो सोने जैसी बहू सामने से चली गई और मुझे देख, मैं फिर भी जिंदा बच गई. मेरे जैसे मनहूस लोगों को तो मौत भी नहीं आती.’’

‘‘नहीं मां, ऐसा मत कहो. तुम ऐसा कहोगी तो गायत्री की आत्मा को तकलीफ होगी. कोई इनसान मनहूस नहीं होता. मनहूस तो होती हैं वे रूढि़यां, सड़ीगली परंपराएं और शास्त्रपुराणों की थोथी अवधारणाएं जो स्त्री और पुरुष में भेद पैदा कर समाज में विष का पौधा बोती हैं. अब मुझे ही देख लो, गायत्री की मृत्यु के बाद किसी ने मुझे अभागा या बेचारा नहीं कहा.

‘‘अगर गायत्री की जगह मेरी मृत्यु हुई होती तो समाज उसे अभागी और बेचारी कह कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री समझ लेता.’’

दादीमां आंखें फाड़े अपने बेटे का यह नया रूप देख रही थीं. गायत्री जैसे पारस के स्पर्श से उन के बेटे की सोच भी कुंदन हो उठी थी.

विश्वनाथ अपनी रौ में कहे जा रहा था, ‘‘मुझे माफ कर दो, मां. बचपन से ही मैं तुम्हारा प्यार पाने में असमर्थ रहा. अब तुम्हें हमारे लिए जीना होगा. मेरे लिए, विपुल के लिए और नेहा के लिए.’’

‘‘बेटा, आज मैं बहुत खुश हूं. अब अगर मौत भी आ जाए तो कोई गम नहीं.’’

‘‘नहीं मां, अभी तुम्हें बहुत से काम करने हैं. विपुल और नेहा को बड़ा करना है, उन की शादियां करनी हैं और मुझे वह सारा प्यार देना है जिस से मैं वंचित रहा हूं,’’ विश्वनाथ बच्चे की तरह मां की गोद में सिर रख कर बोला.

सरस्वती देवी के कानों में बहू के कहे शब्द गूंज उठे थे. ‘मां, जिस दिन आप का बेटा आप को वापस लौटा दूंगी, उस दिन आप के मन की मुराद पूरी होगी. आप के प्रति उन का पछतावे से भरा एहसास जल्दी ही असीम स्नेह और आदर में बदल जाएगा, देखिएगा.’

सरस्वती देवी ने स्नेह से बेटे को अपने अंक में समेट लिया. बहू द्वारा दिए गए इस अनमोल उपहार ने उन की शेष जिंदगी को प्राणवान कर दिया था.

मीत मेरे- भाग 1

एकदम सामने से करीब आ रही कार को देख कर गौरव ने घबराहट में कार बाईं ओर मोड़ दी. किर्र की आवाज के साथ कार किनारे खड़े पेड़ से टकरा कर रुक गई. सामने वाली कार के चालक ने ब्रेक लगा कर अपनी कार रोक ली. कार को किनारे पार्क कर के कार चालक पेड़ से टकराई कार के यात्रियों की ओर आया और बोला, ‘‘आर यू ओके गाइज?’’ उन के सामने एक 29-30 वर्ष का अमेरिकी युवक खड़ा था.

‘‘जी…’’ गौरव इतना ही कह सका.

संयोग से गौरव और नेहा को ज्यादा चोट नहीं आई थी, पर स्टीयरिंग व्हील से टकराने के कारण गौरव के माथे से खून निकल रहा था. दहशत की वजह से नेहा सुन्न सी हो रही थी.

‘‘क्या मरने के लिए घर से निकले थे? अपनी लेन का भी ध्यान नहीं रहा. गलत लेन में आने पर कितना जुर्माना देना होगा, जानते हो न?’’

‘‘सौरी, माफ कीजिए, मैं कुछ परेशान था, इसलिए लेन का ध्यान नहीं रहा,’’ कार से उतर कर गौरव ने अपनी गलती मानी.

‘‘परेशान होने का मतलब यह तो नहीं कि किसी दूसरे को मुश्किल में डाल दो. अगर मेरी कार की टक्कर से तुम्हें कुछ हो जाता तो…’’ अचानक युवक की दृष्टि गौरव के माथे से निकलते खून पर पड़ी.

‘‘अरे, तुम्हारे माथे पर तो चोट लगी है, चलो, तुम्हें हास्पिटल ले चलता हूं,’’ अमेरिकी युवक ने अब हमदर्दी से कहा.

‘‘नहीं, नहीं, इस की जरूरत नहीं है. मामूली सी चोट है, घर में फर्स्ट एड का सामान है. चोट पर दवा लगा लेंगे,’’ गौरव ने संकोच से कहा.

‘‘नहीं, सिर पर लगी चोट को मामूली नहीं समझना चाहिए. यहां पास ही हास्पिटल है, वहीं चलते हैं.’’

‘‘हम हास्पिटल नहीं जा सकते,’’ गौरव की आवाज में उदासी थी.

‘‘क्यों, क्या प्रौब्लम है?’’

‘‘हमारे पास मैडिकल इंश्योरैंस नहीं है,’’ मायूसी से गौरव ने बताया.

‘‘क्या… बिना मैडिकल इंश्योरैंस के तुम अमेरिका में कैसे मैनेज कर सकते हो? यहां कब से रह रहे हो?’’

‘‘बस, 4 महीने पहले यहां आए थे. सब कुछ ठीक चल रहा था, पर एक वीक पहले मेरी जौब चली गई. जौब के साथ मेरा मैडिकल इंश्योरैंस भी खत्म हो गया.’’

‘‘ओह समझा. इकोनोमिक क्राइसिस के कारण न जाने कितनों की जौब चली गई. एनीहाऊ, मैं एक डाक्टर को जानता हूं, वे तुम्हारी हैल्प कर देंगे.’’

‘‘थैंक्स, पर मेरी कार तो शायद स्टार्ट ही न हो सके,’’ कार की दयनीय स्थिति पर गौरव ने नजर डाली.

‘‘ओह, यस. ऐसा करो, तुम दोनों मेरी कार में चलो, तुम्हारी कार ठीक होने पर घर पहुंचा दी जाएगी,’’ युवक ने अपने मोबाइल

से किसी मैकेनिक को निर्देश दे कर गौरव की तरफ उस के घर का पता बताने के लिए अपना फोन बढ़ा दिया.

‘‘आप को तकलीफ होगी,’’ गौरव ने संकोच से कहा.

‘‘तुम्हारे साथ इतनी ब्यूटीफुल यंग वाइफ है. उस के साथ तुम्हें सड़क पर तो नहीं छोड़ा जा सकता. हां, अपना परिचय देना तो भूल ही गया, मैं हैरीसन, पर सब हैरी ही पुकारते हैं,’’ अपना नाम बता कर हैरी ने अपना हाथ आगे बढ़ाया.

‘‘मैं गौरव और यह मेरी वाइफ, नेहा,’’ हैरी से हाथ मिलाते हुए गौरव ने कहा.

हैरी के साथ उस की कार में दोनों डाक्टर के पास पहुंचे. डाक्टर हैरी का अच्छा मित्र था. कुछ ही शब्दों में हैरी ने उन की समस्या बता कर उन की हैल्प के लिए रिक्वैस्ट की.

‘‘नो प्रौब्लम, आइए, आप की चोट एग्जामिन कर लूं.’’

गौरव के माथे की चोट एग्जामिन कर के डाक्टर ने नर्स को इंस्ट्रक्शन दे कर कहा, ‘‘डोंट वरी, मामूली चोट है. नर्स अभी ड्रेसिंग कर देगी. 2-3 दिन में ठीक हो जाएगी.’’

‘‘थैंक्स डाक्टर,’’ गौरव ने सम्मान में धन्यवाद दिया.

‘‘वेलकम, हैरी मेरे नेबर ही नहीं, मेरे बहुत अच्छे दोस्त भी हैं, एनीथिंग फौर हिम,’’ मुसकराते हुए डाक्टर ने कहा.

डाक्टर से विदा ले तीनों हास्पिटल से बाहर आए. गौरव ने हैरी से कहा, ‘‘हम आप के बहुत आभारी हैं. अब हम चलते हैं.’’

‘‘कैसे जाओगे, पैदल? तुम्हारी कार तो रोड की साइड पर पड़ी है?’’ हैरी के चेहरे पर मुसकान थी.

‘‘हम कोई बस या टैक्सी ले लेंगे, आप को बहुत थैंक्स.’’

‘‘आज संडे है. मेरे पास पूरा दिन खाली है, यहीं पास ही मेरा घर है. मेरे खयाल से तुम दोनों को कौफी की सख्त जरूरत है.

1-1 कप कौफी के बाद तुम्हें घर छोड़ दूंगा.’’

‘‘नहीं मिस्टर हैरीसन, अब आप को और ज्यादा तकलीफ नहीं दे सकते. हम मैनेज कर लेंगे,’’ संकोच से नेहा ने कहा.

‘‘इट्स माई प्लैजर, नेहा. हां, तुम्हें नेहा पुकारा, बुरा तो नहीं लगा? अमेरिका में तो बच्चे भी मांबाप को उन के नाम से पुकारते हैं. हम अमेरिकी फ्रैंक होते हैं. अगर कुछ बुरा लगे तो साफसाफ कह देते हैं. आई होप यू डौंट माइंड. एक बात और, मुझे मिस्टर हैरीसन न कह कर सिर्फ हैरी कहना ही ठीक है. यहां इस तरह की फार्मैलिटी नहीं चलती.’’

‘‘ठीक है, हम आप को हैरी ही पुकारेंगे,’’ नेहा हंस पड़ी.

कार हैरी के घर में प्रविष्ट हो रही थी. गेट के अंदर आते ही दोनों ओर सुंदर फूलों की क्यारियों को देख कर नेहा मुग्ध हो गई. सामने हैरी का बड़ा सा घर था. घर में सोफे पर बैठी नेहा ने चारों ओर नजर दौड़ाई, सब कुछ कितना सुव्यवस्थित था.

‘‘आप का गार्डन तो बहुत सुंदर है. इतने रंगों के गुलाब देखना एक सुखद अनुभव है.’’

‘‘म्यूजिक और गार्डनिंग, मेरे यही 2 शौक हैं या यों कहो, इन्हीं के सहारे जिंदगी का मजा उठाता हूं,’’ बात कहते हुए हैरी हंस दिया.

‘‘अरे वाह, नेहा को भी म्यूजिक से प्यार है. इस ने इंडियन म्यूजिक में एम.ए. की डिग्री ली है, गौरव ने कहा.’’

‘‘वाउ, ग्रेट. गौरव, यू आर ए लकी गाई. तुम्हारी वाइफ म्यूजीशियन है, तुम जब चाहो अपने मनपसंद गीत सुन सकते हो,’’ हैरी की आंखों में प्रशंसा थी.

‘‘सौरी, मुझे संगीत से कोई लगाव नहीं है,’’ गौरव के सपाट जवाब से नेहा का चेहरा उतर गया.

सच ही तो कहा था गौरव ने, शादी के बाद से आज तक उस ने कभी भी नेहा से कोई गीत सुनाने का अनुरोध नहीं किया था. गौरव के रिश्तेदार और मित्र उस की मीठी आवाज में गाए गए गीतों की जी खोल कर प्रशंसा करते, पर गौरव हमेशा उदासीन ही रहा.

‘‘अगर कोशिश करो तो म्यूजिक का आनंद जरूर उठा सकते हो. नेहा, शायद तुम हमारे म्यूजिक को भी पसंद करो,’’ हैरी ने टीवी औन कर दिया.

टीवी पर पाश्चात्य संगीत आ रहा था. हैरी सामने किचन में कौफी बनाने गया.

हैरी कौफी बनाते देख नेहा उठ आई. बोली, ‘‘लाइए, कौफी मैं बनाती हूं. मेरे रहते आप कौफी बनाएं, यह ठीक नहीं.’’

‘‘ओह नो. तुम हमारी गैस्ट हो. वैसे तो हमारे यहां गैस्ट और होस्ट दोनों मिल कर काम करते हैं, पर आज पहली बार घर आई हो, इसलिए बस, म्यूजिक ऐंजौय करो. अगली बार कौफी तुम बनाना,’’ हैरी ने परिहास किया.

‘‘एक बात बताएं, भारत में किचन का काम पुरुष कम ही करते हैं. यह काम हम स्त्रियों के ही जिम्मे है. इन्हें तो अपनी चाय तक बनानी नहीं आती,’’ मुसकराती नेहा ने गौरव की ओर देखा.

 

‘‘कोई बात नहीं, अभी तो आप लोग यहां आए हैं, कुछ ही दिनों में आप के हसबैंड यहां की लाइफस्टाइल अपना लेंगे और आप के हर काम में मदद देंगे. अमेरिका में पति और पत्नी दोनों घर के कामों में बराबर साथ देते हैं. मैं और मेरी वाइफ दोनों कामकाजी हैं, पर घर के कामों में हम साथी हैं. हम दोनों को बराबर की आजादी भी है. आज वह मूवी देखने गई है वरना आप उस से भी मिल लेतीं.’’

‘‘शायद इसीलिए यहां रहने के बाद भारतीय स्त्रियां भी अपने देश वापस नहीं जाना चाहतीं,’’ मुसकराती नेहा ने कहा.

नेहा को याद आया, उस की चचेरी बहन भारत लौटने को तैयार नहीं है, जबकि उस के पति वापसी के लिए बेचैन हैं.

‘‘इस का मतलब इंडिया में पतियों को बहुत आराम होता है. सोचता हूं, मुझे किसी इंडियन लड़की से मैरिज करनी चाहिए थी. आराम से अपना गिटार बजाता और चैन से रहता,’’ हैरी के साथ नेहा भी हंस पड़ी.

‘‘यह सच नहीं है, आजकल वर्किंग लेडीज के पति भी घर के कामों में मदद करते हैं. हां, जो औरतें काम नहीं करतीं वे किचन में काम नहीं करेंगी तो फिर क्या करेंगी?’’ गौरव की आवाज की रुखाई साफ थी.

‘‘ओ.के., लैट्स फौरगेट दिस इशू. कौफी तैयार है. हां, ब्लैक कौफी या मिल्क?’’

‘‘चलिए, इतना काम तो मैं कर ही

सकती हूं,’’ कह अपने और गौरव के लिए कौफी में दूध और चीनी डाल कर हैरी से मिल्क के लिए पूछा.

‘‘मैं ब्लैक कौफी विदाउट शुगर लेता हूं.’’

कौफी के मग थमाते हैरी ने कहा, ‘‘हां, अब परिचय हो जाए. तुम्हारी क्वालिफिकेशन क्या है, गौरव? इंजीनियर लगते हो.’’

‘‘जी नहीं, मैं ने मार्केटिंग में एम.बी.ए. किया है. यहां जौब मिलने की वजह से इंडिया की अच्छीभली जौब छोड़ आया. यह कब सोचा था कि यहां इकोनोमिक क्राइसिस आ जाएगा. समझ में नहीं आ रहा है, क्या करूं,’’ परेशानी उस के चेहरे पर स्पष्ट थी.

‘‘अब समझ में आ रहा है, इसी परेशानी की वजह से तुम अपनी लेन से गलत लेन में आ गए थे. तुम्हारी प्रौब्लम तो सीरियस है. इन दिनों जौब मिलना आसान नहीं है. बिना जौब के मैडिकल इंश्योरैंस भी नहीं रहता. इलाज इतना महंगा होता है कि अपने पैसों से इलाज कराना संभव नहीं होता. कोई डाक्टर भी इंश्योरैंस के बिना केस नहीं लेता,’’ कहते हुए हैरी सोच में पड़ गया.

‘‘मैं सोचता हूं, हम इंडिया वापस चले जाएं, लेकिन मुझे मेरे मांबाप ने बड़ी उम्मीदों से भेजा था, उन्हें क्या जवाब दूंगा? लोग तो यही सोचेंगे, मैं नाकामयाब रहा.’’

‘‘मुझे कुछ टाइम दो, मेरा एक म्यूजिक स्कूल है. मेरे स्टूडेंट्स के कुछ पेरैंट्स इंडस्ट्रियलिस्ट हैं. उन से बात कर के देखूंगा, शायद कहीं चांस मिल जाए.’’

‘‘आप की बहुत मेहरबानी होगी. अब हमें इजाजत दीजिए. आज के लिए बहुत थैंक्स,’’ गौरव की आवाज में उत्साह छलक आया.

‘‘चलो, तुम्हें घर छोड़ दूं. कार ठीक होने में कुछ देर लगेगी. कार को मैकेनिक घर पहुंचा देगा.’’

गौरव के अपार्टमैंट के सामने कार रोक हैरी ने विदा मांगी, पर नेहा अनुरोध कर बैठी, ‘‘आज आप की वाइफ तो देर से वापस आएंगी. आइए, आज हमारे घर लंच लीजिए. हमारा इंडियन फूड आप के अमेरिकी फूड से अलग होता है. शायद आप को पसंद आए. वैसे भी खाना तो आप को ही तैयार करना होगा.’’

‘‘नहीं, आज नहीं, फिर कभी. जब आप लोग इन्वाइट करेंगे, हम जरूर आएंगे. बिना इन्विटेशन अचानक लंच या डिनर पर अमेरिकी कहीं नहीं जाते. कहीं जाने के लिए पहले से टाइम और डेट तय रहती है. डौंट वरी, वी विल मीट अगेन. थैंक्स फौर दि इन्विटेशन,’’ और कुछ कहने का अवसर दिए बिना हैरी कार स्टार्ट कर चला गया.

अपार्टमैंट का लौक खुलने की आवाज सुनते ही पास वाले अपार्टमैंट में रहने वाली मंगला रामास्वामी बाहर आ गईं.

 

‘‘अइअइयो, नेहा, तुम लोग कहां रह गया जी, हम को बहुत फिकर होने लगा. वो तुम्हारा कार कहां है, यह अंगरेज तुम को इधर कैसे लाया?’’

‘‘हमारी कार खराब हो गई, हैरी ने हमें लिफ्ट दी,’’ नेहा ने संक्षेप में बात बता दी.

‘‘ऐसा… पर ये गोरा लोग किसी की हैल्प नहीं करने का जी. ठीक से बात भी नहीं करने का, पर तुम को कैसे हैल्प किया,’’ मंगला ने एक भरपूर नजर नेहा के सुंदर चेहरे पर डाली.

‘‘सब इनसान एक से नहीं होते, मंगला बहन. चलूं, खाना बनाना है.’’

‘‘तुम अभी थक कर आया है, हमारे घर सांभरराइस तैयार है. अभी लाने का, नेहा,’’ मंगला ने प्यार से कहा.

‘‘नहीं मंगला बहन, आप तकलीफ न करें,’’ मंगला को और कुछ कहने का अवसर न दे कर नेहा अपार्टमैंट के भीतर चली गई.

2 महीने पहले मंगला, श्रीधर रामास्वामी की पत्नी बन कर चेन्नई से अमेरिका आई थीं. श्रीधर कंप्यूटर ठीक करने का काम करते थे. मंगला 10वीं कक्षा पास सीधीसादी गृहिणी थीं. अपने सीमित ज्ञान और टूटीफूटी अंगरेजी के कारण वे पास में रहने वाली अमेरिकी औरतों से बात करने में हिचकती थीं. एक नेहा ही थी, जो उन के साथ स्नेहपूर्ण व्यवहार रखती थी. जब से मंगला को पता चला, नेहा को इडलीडोसा पसंद है, तब से जब भी वह इडलीडोसा बनातीं, नेहा को जरूर देतीं. नेहा भी मंगला को उन की पसंद वाली खस्ता कचौडि़यां भेजना नहीं भूलती थी. विदेशी धरती ने दोनों को एक सूत्र में बांध दिया था.

पिछले कुछ दिनों से मंगला का परिचय अन्य दक्षिण भारतीय परिवारों से हो गया था. मंगला पाककला में दक्ष थीं. वे ड्राइव नहीं कर पाती थीं, पर दक्षिण भारतीय व्यंजन बनाने की कला में निपुण होने के कारण उन के समाज के समारोहों में कोई न कोई उन्हें अपनी कार से सम्मानपूर्वक ले जाता. समारोहों में कुछ खास बनाने का दायित्व लेने के कारण उन का सम्मान बढ़ गया था. अकसर दक्षिण भारतीय परिवारों की पार्टियों में भी उन का सहयोग लिया जाता. अपनों के बीच मंगला चेन्नई को जैसे भूल सी जाती.

पहली बार एक परिवार में भोजन बनाने के बाद जब गृहस्वामिनी ने उन के हाथ में

50 डालर दिए तो मंगला चौंक गईं, ‘‘यह क्या? मैं कोई खाना बनाने वाली नहीं हूं.’’

‘‘ऐसा क्यों सोचती हो, मंगला. अमेरिका में कोई भी इनसान किसी का काम मुफ्त में नहीं करता, न ही कोई काम छोटा समझा जाता है. हमारे घर जो सफाई करने वाली आती है, हम उसे भी इज्जत देते हैं. कभीकभी तो घर के बुजुर्ग अपने ग्रैंड चिल्ड्रन की देखभाल के लिए भी पैसे लेते हैं. इसे अपनी मेहनत का पहला इनाम समझ कर रख लो. यह हिंदुस्तान नहीं, अमेरिका है,’’ गृहस्वामिनी ने प्यार से समझाया.

हिचकती मंगला ने पैसे रख तो लिए पर मन में संकोच था. नेहा ने भी मंगला को उत्साहित किया. उस ने मंगला से कहा कि यह उन की मेहनत का फल है, किसी का दिया हुआ दान नहीं. गौरव के बौस के यहां एक अच्छे परिवार की महिला खाना बनाने का काम करती है. अपनी छोटीमोटी जरूरतें तो इन पैसों से पूरी की ही जा सकती हैं.

अब मंगला को कुछ आय होने लगी थी, चेहरा भी आत्मविश्वासपूर्ण हो चला था. उन्हें देख नेहा के मन में भी आता कि वह भी कोई काम कर पाती, पर गौरव का वेतन दोनों के लिए बहुत था, इसलिए उस ने इस बारे में अधिक नहीं सोचा.

‘‘अमेरिका में हर पार्टी, त्योहार यानी शनिवार या इतवार को आयोजित किए जाते हैं,’’ नेहा ने गौरव से कहा, ‘‘इस शनिवार को हैरी दंपती को डिनर पर बुलाना चाहिए, उस मुश्किल के समय अगर हैरी ने हमारी मदद न की होती तो हम क्या करते.’’

‘‘यह तो ठीक है, पर अभी मैं किसी को डिनर देने के मूड में नहीं हूं, मेरी जौब नहीं है, जमापूंजी खत्म होती जा रही है,’’ अनमने से गौरव ने जवाब दिया.

‘‘हैरी ने हम पर बहुत एहसान किया है वरना हम पुलिस के चक्कर में आ सकते थे. उन के उपकार के बदले हमें धन्यवाद के रूप में डिनर तो देना ही चाहिए. तुम मायूस क्यों होते हो? हो सकता है, हैरी की मदद से तुम्हें कोई जौब मिल जाए.’’

‘‘अरे, उस की आशा करना बेकार है, आजकल स्थिति बहुत खराब है. हां, उस की मदद में कोई स्वार्थ नहीं था, चलो मैं फोन करता हूं.’’

अजीब दास्तान- भाग 2: क्या हुआ था वासन और लीना के साथ

उस के जाने के बाद लीना ने सारे कागज देखे, 1 एकड़ जमीन और 3 फ्लैट वासन ने परिवार के नाम कर दिए थे. उस ने फौरन अपने एक एडवोकेट चाचा को फोन मिलाया और सब बताया. चाचाजी ने सलाह दी कि वासन को फोन कर के कोर्ट में बुलाओ और विधिवत सारे कागज लो. लीना ने ऐसा ही किया.

दूसरे दिन वासन को कोर्ट में आने को कहा. लीना के कहे अनुसार ठीक समय पर वासन वहां पर हाजिर था. जज के सामने विधिवत सारी प्रौपर्टी लीना और बच्चों की हो गई.

जज ने वासन से पूछा, ‘‘तुम ने अपने लिए कुछ नहीं रखा?’’

वासन बोला, ‘‘मैं बहुत अच्छा कमाता हूं. मैं और प्रौपर्टी बना लूंगा. लीना को तो बच्चों को पढ़ाना है और उन के विवाह भी करने हैं, इसलिए उसे सब चीज की जरूरत है. ‘आई लव माई फैमिली’.’’ वही डायलौग उस ने कोर्ट में भी दोहरा दिया था. उस से यह पूछने वाला कोई नहीं था कि फैमिली को प्यार करते हो तो उन्हें क्यों छोड़ा?

जीवन अपनी रफ्तार से चलने लगा. धीरेधीरे सब रिश्तेदारों और दोस्तों को भी पता लग गया कि वासन अब दूसरी औरत के साथ रहता है पर लीना के साथ तलाक नहीं हुआ है. लोग आ कर लीना को बताने की कोशिश करते कि उन्होंने वासन को एक औरत के साथ देखा पर लीना सभी को चुप करा देती कि उसे वासन के बारे में कुछ भी नहीं सुनना है. उस ने वासन का अध्याय ही अपनी जीवनरूपी पुस्तक से फाड़ कर फेंक दिया था.

7 साल बीत गए. मंगला अब डाक्टर बन चुकी थी और आस्ट्रेलिया में प्रैक्टिस कर रही थी जबकि शुभम इंजीनियर बन अमेरिका में रह रहा था. लीना ने अपना कैटरिंग का काम सफलतापूर्वक चलाया हुआ था. दोनों बच्चों के विवाह में वासन को निमंत्रणकार्ड भेजा गया और वह आया भी. बेटी की शादी में तो उस ने पूरा खर्चा उठाया और कन्यादान भी किया. पर लीना ने पलट कर कभी वासन की खोजखबर नहीं ली. वह आत्मसम्मान से भरी हुई थी.

तब, एक दिन फिर वासन ने दरवाजे की घंटी बजाई. लीना ने दरवाजा खोला तो वासन को खड़े पाया. वह स्वयं ही बोला, ‘‘अंदर आने को नहीं कहोगी?’’

‘‘हां, आ जाओ.’’

अंदर आ कर वासन आराम से सोफे पर बैठ गया था.

चारों ओर नजर दौड़ा कर कमरे का मुआयना किया और फिर लीना की ओर देख कर बोला, ‘‘सिर्फ बाल सफेद हुए हैं पर तुम वैसी ही दिखती हो.’’

‘‘काम की बात करो, क्यों आए हो?’’

‘‘मु झे शुभम का फोन नंबर और पता चाहिए. मैं अगले हफ्ते स्पेन जा रहा हूं. वहां से अमेरिका जाऊंगा. उस से मिलने का मन कर रहा है. सुना है उस का बेटा बहुत तेज है.’’

लीना ने फोन नंबर और पता दे दिया. वह उठ कर चला गया. लीना ने तुरंत शुभम को फोन मिलाया और बोली, ‘‘तुम्हारे डैडी आए थे और तुम्हारा फोन नंबर व पता ले गए हैं.’’

‘‘आने दो उन्हें, मैं उन्हें दिखा दूंगा कि उन के बिना भी मैं यहां तक पहुंच सकता हूं. आप चिंता मत करो, मैं उन्हें ठीक से देख लूंगा.’’

वासन फोन कर के शुभम के घर पहुंच गया था, आदतन उपहारों से लदा हुआ. शुभम की पत्नी और उस के बेटे के लिए ढेर सारे उपहार, बहू के लिए हीरे के टौप्स और पोते के लिए महंगे खिलौने. वासन से बातों में कोई भी नहीं जीत सकता था. वह बातें करने में माहिर था. उस ने बहू आभा से बातें कीं और पोते आशु के साथ खूब खेला. जब आभा ने खाना बना कर खिलाया तो उस की तारीफ के पुल बांध दिए. आशु को बहुत प्यार किया. वह 3 दिन उन के घर में रहा और सब के दिलों में अपनी जगह बना कर ही निकला. शुभम भी पिता से प्रभावित हुए बिना नहीं रहा. उस ने मां को फोन किया, ‘‘डैडी जैसे आज हैं वैसे पहले क्यों नहीं थे?’’

‘‘बेटा, अब तुम बड़े हो गए हो. अच्छेबुरे की पहचान कर सकते हो. तुम जैसा चाहो वैसा संबंध अपने डैडी के साथ रख सकते हो. मैं बीच में नहीं आऊंगी.’’

अमेरिका से लौट कर वासन फिर से लीना के घर गया. वह बोला, ‘‘बहुतबहुत धन्यवाद. मु झे अपनी बहू और पोता बहुत अच्छे लगे. शुभम को भी तुम ने अच्छे संस्कार दिए हैं. वह भी मेरे साथ बहुत अच्छी तरह पेश आया. मैं तो डरतेडरते गया था कि कहीं तुम ने मेरे प्रति उस के मन में जहर न भर दिया हो.’’

‘‘मैं ने कभी भी कोई बात बच्चों के साथ नहीं की, मु झ में इतनी दूरदर्शिता तो थी कि मैं भविष्य के लिए तुम्हारी राह मुश्किल न करूं.’’

‘‘लीना, तुम बहुत अच्छी हो, जब मैं ने जाना चाहा तब भी तुम ने कोई हंगामा खड़ा नहीं किया था.’’

‘‘हंगामा खड़ा कर के मु झे क्या मिलता? केवल जगहंसाई, तुम्हें तो जाना ही था, सब के सामने कमजोर बनना मु झे पसंद नहीं. मु झे अपने बच्चों के लिए मजबूत रहने की जरूरत थी.’’

‘‘सच में तुम बहुत अच्छी हो. अब भी तुम ने नहीं पूछा कि क्या मैं अकेला हूं या कोई और भी साथ में है.’’

‘‘मु झे अब तुम से कोई संबंध नहीं रखना है, तुम किसी के साथ रहो या अकेले, मु झे फर्क नहीं पड़ता है.’’

‘‘जिस दिन मैं ने सेल्वी को बताया कि मैं ने सारी प्रौपर्टी तुम्हारे नाम कर दी है उसी दिन से उस ने  झगड़ा करना शुरू कर दिया था. वह उस फ्लैट को, जिस में हम रह रहे थे, अपने नाम करवाना चाहती थी पर जिस दिन उसे यह पता चला कि उस फ्लैट में भी मैं ने तुम्हारा नाम साथ में रखा है, उस दिन तो उस का असली रूप सामने आ गया. अब वह मेरे साथ नहीं रहना चाहती. इस बीच, राजन ने भी तलाक के पेपर भेज दिए थे. उसे दोनों तरफ से ही अपनी नैया डूबती नजर आई, इसलिए वह फिर राजन के पास लौट गई थी. आखिर, वह उस का मामा भी था.’’

इतना कह कर वासन खामोश हो गया था. उस के चेहरे पर गंभीरता आ गई थी पर पर्सनैलिटी में अभी भी स्मार्टनैस बाकी थी. उस का पहनावा, बोलना, चलना बहुत प्रभावशाली था. इन्हीं सब को देख कर तो लीना ने उस से विवाह किया था.

विवाह के बाद ही लीना जान पाई थी कि सब बाहर का दिखावा है. वह एक नंबर का शराबी और चेनस्मोकर था. लीना को शराब और सिगरेट की गंध से भी नफरत थी. उसे शादी के बाद अपनी पहली रात याद आई जब भोर होने पर शराब और सिगरेट की गंध से भभकता हुआ वासन कमरे में आया था. उस के चेहरे के भावों को देख कर बोला था, ‘मेरे पास से बदबू आ रही हो तो बाहर जा कर सो जाओ. यह मेरा कमरा है.’ इतना कहतेकहते वह बिस्तर पर गिर कर सो चुका था. लीना की सारी भावनाएं तहसनहस हो चुकी थीं. उस के बाद तो यह रोजमर्रा की बात हो गई थी. उस ने अपने घर जा कर अपने मांबाबा को यह सब कभी नहीं बताया. वह अपने बूढ़े मांबाबा को दुखी नहीं करना चाहती थी. उस ने यह बात बाहर भी किसी को नहीं बताई. उस में आत्मसम्मान की भावना बहुत अधिक थी. वह औरों की सहानुभूति का पात्र नहीं बनना चाहती थी. उसे अपनी समस्या से खुद ही लड़ना था.

एक और करवाचौथ- भाग 3

पहले श्यामली का माथा ठनका. आखिर स्त्री की छठी इंद्री ऐसी शक्ति है जो उस पर पड़ी परपुरुष की निगाह की भाषा भी पढ़ लेती है और अपने पति की परस्त्री की तरफ पड़ी निगाहों की भाषा भी. शुभांगी व मानव का नैनमटक्का उस की निगाह में धीरेधीरे खटकने लगा पर बोलने के लिए कुछ था ही नहीं. उधर वरुण तो बीवी को अपने व परिवार की लंबी उम्र व सलामती के लिए व्रतउपवासों व ऐसे ही मौकों पर दोनों परिवारों के सामूहिक पर्व मनाने का इंतजार करते देख फूला न समाता और सोचता कि शुभांगी अब उसे कितना प्यार करने लगी है. उस की हर बात मानती है. सास भी अब कुछ खुश रहने लगी थी.

सालभर बीततेबीतते करवाचौथ फिर आ गई. श्यामली और वरुण इस बार बहुत खुश थे, क्योंकि इस बार तो शुभांगी व मानव भी करवाचौथ पूरे मन से मनाएंगे. इसलिए दोनों परिवारों का शाम को सामूहिक आयोजन होना तय हुआ था. उन दोनों की बातों में महीनाभर पहले से ही इस की झलक मिलने लगी थी. इसलिए दोनों का घमासान शुरू हो गया था.

मगर शुभांगी व मानव मन ही मन चिड़चिड़ा रहे थे. करवाचौथ वाले दिन महिलाएं भले ही आपस में मिल कर अपनी पूजा निबटा लें पर उन्हें रहना तो अपनेअपने साथी के साथ ही पड़ेगा. उन की बेचैनी व दिल्लगी अब सीमा पार करने लगी थी. एकदूसरे के बिना अब जिंदगी बेनूर लग रही थी.

आखिर दिल के हाथों मजबूर हो कर दोनों ने अब अपना रिश्ता जगजाहिर करने की ठान ली. समाज व परिवार को ठोकर मारते हुए दोनों ने करवाचौथ वाले दिन औफिस से ही भागने की योजना बना ली. सामूहिक करवाचौथ का आयोजन शुभांगी के घर पर होना तय हुआ था.

करवाचौथ वाले दिन दोनों घरों के लोगों में उत्साह का माहौल था. पर सुबह औफिस गए शुभांगी व मानव रात तक घर ही नहीं पहुंचे. चांद निकल कर चमक कर, पूजा करवा कर सुस्ताने भी लगा पर शुभांगी व मानव नदारद थे. श्यामली का मेकअप मलिन पड़ गया था और वरुण का इंतजार भी फीका पड़ गया था.

दोनों अपने फोन घर छोड़ गए थे और मजे की बात यह कि वरुण यह कह कर कि

कार में कुछ खराबी आ रही है, कार न ले जा कर टैक्सी से औफिस चला गया था. इसलिए सब का इंतजार गहराती रात के साथ चिंता में बदलने लगा था. आखिर चिंतित हो कर श्यामली के पापा व वरुण की मां ने पुलिस में रिपोर्ट लिखवा दी. हालांकि श्यामली व वरुण इतनी जल्दी नहीं करना चाह रहे थे. पता नहीं क्यों दोनों का माथा ठनक रहा था.

उधर प्रेमरोग से ग्रस्त शुभांगी व मानव, लैपटौप बैग में 2-4 कपड़े व जरूरी सामान डाल कर औफिस से हाफ डे कर के घर से भाग कर तो आ गए थे पर शहर के आखिरी कोने में स्थित होटल के कमरे में तब से सिर झुकाए बैठे दोनों विचारों में गुम थे कि अच्छा किया या बुरा.

वैवाहिक जीवन में सबकुछ ठीक चलते हुए प्रेम की पींगे बढ़ा लेना अलग बात है, पर इस तरह परिवार व बच्चे छोड़ कर प्रेमी के साथ घर छोड़ कर भाग जाना सरल नहीं है. दोनों को प्यार पर अब नैतिकता भारी पड़ती महसूस हो रही थी.

सामाजिक, पारिवारिक मानमर्यादा को ठोकर मारना इतना भी आसान नहीं लग रहा था अब. आने वाली जिंदगी के बारे में सोच रहे थे. भावावेश में लिए गए इस निर्णय से भविष्य में आने वाली कठिनाइयों से निबटना दुष्कर कार्य था. यह कोई 3 घंटे की फिल्म नहीं थी. दोनों की नौकरी थी, 10-10 साल की शादियां थी, बच्चे थे. बिना तलाक के वे शादी कर नहीं सकते और तलाक लेना क्या इतना आसान है? सालों खप जाएंगे. ऊपर से बच्चों का क्या भविष्य होगा, यह भी चिंता थी. दोनों ऊहापोह में बैठे, नैतिक दुविधा में उलझे थे. एकदूसरे के लिए भागे हुए वे अब एकदूसरे की तरफ भी नहीं देख पा रहे थे. एकदूसरे का साथ पाने का खयाली तिलिस्म भी फीका पड़ गया था.

उधर पुलिस में रिपोर्ट हो जाने पर पुलिस छानबीन में लग गई. फोन क्योंकि दोनों घर छोड़ गए थे. इसलिए उन की लोकेशन ढूंढ़ना आसान नहीं था. औफिस कर्मियों से भी कुछ पता नहीं चला. औफिस में भी सबकुछ सामान्य रहा था और दोनों हाफ डे कर के अपनेअपने घर निकल गए. हां, मानव आज कार छोड़ कर टैक्सी से औफिस यह कह कर गया था कि उसे बौस के साथ किसी क्लाइंट से मिलने जाना है. शुभांगी तो वैसे भी पब्लिक ट्रांसपोर्ट से ही आतीजाती थी. पुलिस ने भी कुछ घंटे इधरउधर माथापच्ची की, हवा में तीर चलाए. सारे अस्पताल, सड़कें भी छान मारीं. कुछ क्षेत्रों के थानों में भी फोन किया कि कहीं कोई दुर्घटना इत्यादि की सूचना तो नहीं दर्ज हुई. फिर वापस आ गई.

उधर सिर झुकाए बैठे शुभांगी व मानव समझ नहीं पा रहे थे कि आगे कि रूपरेखा क्या होगी.

‘‘अब?’’ एकाएक शुभांगी ने चेहरा उठाया.

‘‘अब…अब क्या?’’ मानव के चेहरे पर भी कुछ हताशा, कुछ दुविधा वाले भाव थे.

‘‘क्या हम ने ठीक किया मानव? क्या सचमुच एकदूसरे को पा कर जीवन सुंदर, सुगम, सरल व चमदार हो जाएगा, जैसा हम चाहते हैं?’’

‘‘शायद नहीं,’’ मानव लाचारी से बोला, ‘‘इतना आसान नहीं है, बहुत सारे बैरिकेड्स हैं, जिन्हें हटाते जिंदगी की चमक फीकी पड़ जाएगी. ऊपर से कुछ गलत कर देने की मानसिक यंत्रणा से भी हम शायद कभी नहीं निकल पाएंगे.’’

‘‘हूं,’’ शुभांगी भी गहरे विचारों में डूबी हुई बोली, ‘‘और हमारे बच्चे? उन का क्या होगा? मेरे बच्चे मां के बिना कैसे रहेंगे और तुम्हारे बच्चे बिना आर्थिक संबल के कैसे पलेंगे? सबकुछ छिन्नभिन्न हो जाएगा.’’

‘‘सही कह रही हो शुभांगी. शायद मनुष्य की फितरत है, अप्राप्त फल पाने की… सबकुछ था न हमारे पास… पर हमारे विचार हमारे साथियों से मेल नहीं खाते थे और हम उन के विचारों के साथ घुटन महसूस करते थे. लेकिन वे हमारे लिए बुरे तो नहीं थे… विचारों की समानता हमें करीब ले आई. पर स्त्रीपुरुष के बीच में दोस्ती अकसर प्रेम का ही रूप क्यों ले बैठती है? क्या यह रिश्ता स्वस्थ नहीं रह सकता था? जैसे श्यामली और वरुण का था. वे दोनों भी तो एक ही वैचारिक धरातल पर विचरण करते हैं. तो क्या वे भाग गए एकदूसरे के साथ?’’ मानव स्थिति का सही विश्लेषण कर मन की दुविधा को शब्द देता हुआ बोला.

‘‘हां मानव, सही कह रहे हो. हमें अपनेअपने साथी में थोड़ाबहुत बदलाव लाने की कोशिश करनी चाहिए थी. पूरी तरह तो कोई नहीं बदल सकता. न हम, न वे पर बस सभी सरलता से जिंदगी को ले पाते, इतनी कोशिश तो की जा सकती थी.’’

‘‘हूं… तुम भी वरुण की जोरजबरदस्ती से घबरा गई और मैं भी हर समय श्यामली की सात्विक व अंधविश्वासी विचारधारा से तंग आ गया… मुझे एक आधुनिक विचारधारा वाली पत्नी चाहिए थी… वह मुझे तुम में दिखाई दी पर इस का मतलब यह तो नहीं कि विवाह को सूली पर टांग दिया जाए. इस के अलावा तो कोई शिकायत नहीं थी मुझे श्यामली से… मैं भी कोशिश कर सकता था धीरेधीरे उसे अपने विचार समझाने की पर मैं उस से हमेशा चिढ़ जाता था और दूर भागता रहता था.’’

‘‘हूं,’’ शुभांगी एक लंबी सांस भर कर गहरी सोच में डूब गई.

‘‘फिर, अब क्या करें?’’ थोड़ी देर बाद मानव बोला, ‘‘घर पर तो हम दोनों के गायब होने से हड़कंप मच गया होगा… सभी समझ गए होंगे अब तक तो… श्यामली को तो पहले ही शक हो रहा था.’’

एक और करवाचौथ- भाग 2

श्यामली फिर उखड़ गई. वह किचन में चाय बनाने चली गई. मानव को अफसोस हुआ कि वह चुप नहीं रह पाता है. श्यामली के इन विश्वासों पर व्यंग्य किए बिना जैसे उस का खाना ही नहीं पचता. उस का मूठ ठीक करने के लिए उस ने जेब से लिफाफा निकाला और उसे देने चला गया.

काफी इंतजार के बाद चांद निकला और श्यामली ने छलनी से चांद व अपने

पिया को निहारा, पैर छुए. मानव ने पानी पिला कर उस का व्रत खुलवाया. बच्चे वीडियो बनाने में मस्त थे. मानव को लग रहा था वह किसी शौर्ट फिल्म में ऐक्टिंग कर रहा है.

उधर शुभांगी जब घर पहुंची तो उस का पति वरुण उस से पहले ही घर पहुंच गया था, ‘‘बहुत देर कर दी तुम ने आज?’’

‘‘देर कहां? रोज वाले टाइम से ही तो आई हूं,’’ थकी, भूखी शुभांगी बोली.

‘‘मैं ने सोचा था. आज करवाचौथ है, तुम जल्दी आओगी,’’ वरुण ऐसे बोला जैसे जल्दी न आ कर उस ने करवाचौथ व पति दोनों का अपमान किया है.

‘‘हां, पर करवाचौथ पर हाफ डे नहीं होता है न औफिस में… मेरी समझ से सरकारी व गैरसरकारी सभी संस्थानों में करवाचौथ के दिन पूरी छुट्टी हो जानी चाहिए… आखिर देश के पुरुषों की सलामती की बात है…’’ शुभांगी थकी हुई थी और भूखी भी, इसलिए चिढ़ कर बोली, ‘‘अब हम महिलाएं आज के दिन अपने लिए तो कुछ करती नहीं हैं… बल्कि मैं तो कहती हूं हरतालिका तीज, वट सावित्री व्रत, नवरात्रे वगैरह जितने भी व्रतउपवास, पूजा वगैरह महिलाएं अपने बच्चों, पति, घरपरिवार की सलामती के लिए करती हैं… इन दिन राष्ट्रीय छुट्टी घोषित हो जानी चाहिए. आखिर परिवार सलामत रहेंगे… परिवार में बच्चे, पुरुष सलामत रहेंगे. तभी तो देश सलामत रहेगा. तो एक तरह से यह सिर्फ महिलाओं की नहीं, देश की समस्या है. सरकार को इस समस्या के विषय में विचार करना चाहिए,’’ चिढ़ी हुई शुभांगी गंभीरता से बोल कर बैडरूम में चली गई.

वरुण वहीं बैठा रह गया. शुभांगी की सास अपनी कुसंस्कारी बहू को घृणा से देख रही थी, जिसे अपने सुहाग की लंबी उम्र की जरा भी चिंता नहीं थी.

बैडरूम में जा कर शुभांगी थोड़ी देर खिन्न हो कर बैठी रही, फिर किसी तरह मूड ठीक किया. फ्रैश हुई. ‘अब जब सुबह से भूखी रह ही गई है तो शेष औपचारिकताएं भी निभा ही ले,’ सोच कपड़े बदल कर वह बाहर आ गई. उसे देख सास ने मुंह बिचका लिया, एक दिन भी ठीक से तैयार नहीं हो सकती?’’

‘‘कुछ अच्छा सा पहन लेती,’’ वरुण उस का मूड ठीक देख कर बोला.

‘‘ठीक मतलब? अच्छा ही तो पहना है वरुण. अभी औफिस से थक कर आई हूं. सुबह भी तुम्हारी जिद्द से कार्टून बन कर गई थी… मुझे नहीं पसंद यह चमकदमक… क्या यही पहन कर बताना पड़ेगा कि मैं तुम से प्यार करती हूं.’’ शुभांगी का मूड फिर उखड़ने लगा.

तभी बच्चे भागते आ गए, ‘‘मम्मी, चांद निकल गया… चांद निकल गया…’’

शुभांगी ने अपनी थाली उठाई और सब छत पर चले गए. वरुण अपनी आरती उतरवाते ऐसे खुश हो रहा था जैसे बस आज ही भांवरें पड़ने वाली हों.

मानव की पत्नी श्यामली व शुभांगी का पति वरुण दोनों परले दर्जे के दकियानूसी, रीतिरिवाजों के प्रति कट्टर, व्रतउपवास, कर्मकांड को मानने वाले और मानव व शुभांगी ठीक उस के विपरीत. मानव जितना श्यामली को बदलने की कोशिश करता, श्यामली उसे उतना ही संस्कृति व परंपरा का पाठ पढ़ाती. उधर शुभांगी यदि वरुण को कुछ समझाने की कोशिश करती तो दोनों मांबेटा अपनी इस कुसंस्कारी बहू व बीवी के लिए अपने को कोसते.

फलस्वरूप शुभांगी व मानव को अपनेअपने घर में न चाहते हुए भी सुखशांति व मानमर्यादा के लिए कई बातों में अपनेअपने जीवनसाथियों का साथ देना पड़ता. वे दोनों जो कुछ अपने घर में बेमन से करते, औफिस में एकदूसरे को बहुत मन से बताते और बता कर अपने मन की भड़ास निकालते. वे एकदूसरे के करीब आते जा रहे हैं, यह समझते हुए भी वे समझना नहीं चाह रहे थे.

समान विचारधारा और एकदूसरे से अपने दिल की बात करने की स्वतंत्रता होने का भरोसा उन्हें एकदूसरे के मन में गहरे बैठा रहा था. अब दोनों का काफी समय साथ बीतने लगा था. दोनों ने अपनेअपने घर में शिकायतें करना लगभग बंद कर दिया. उन की मानसिक, भावनात्मक, वैचारिक जरूरतें पूरी हो रही थीं. उधर दोनों के साथी समझ रहे थे कि उन्होंने दोनों को सुधार दिया.

श्यामली मानव में आए परिवर्तन को लक्ष्य ही नहीं कर पा रही थी. मानव अब उस की बात मान कर आराम से जान छुड़ा लेता. वह पारंपरिक भारतीय स्त्री की तरह अपनी मान्यताओं व विश्वासों में उलझी सालभर में आने वाले अपने तमाम रिचुअल्स में डूबी रहती और मानव के लिए यह और भी अच्छा हो गया था कि श्यामली अपनेआप में मस्त रहे और उस से अधिक पूछताछ न करे. उसे भी वह जो कुछ करने को कहती, वह चुपचाप कर देता था.

यही हाल कमोवश वरुण का भी था. उस ने भी यह सोचने की जहमत नहीं उठाई कि हर व्रतउपवास, पूजापाठ पर उखड़ने वाली शुभांगी इतनी सरलता से हर बात कैसे मानने लगी है. इसे वह अपनी जीत समझने में लगा था. शुभांगी उस के मन का कर के, उसे उस की खुशियों के साथ छोड़ कर अपनी खुशी के साथ मस्त थी.

शुभांगी और मानव का अब यह हाल हो गया था कि वे अब एकदूसरे के बिना रह ही नहीं पा रहे थे. औफिस के बाद भी अकसर दोनों मिलना चाहते. इस के लिए दोनों ने अच्छा हल यह निकाला कि दोनों परिवारों की मित्रता करा दी जाए और इस तरह एकदूसरे के घर में उन का आनाजाना शुरू हो गया. श्यामली और वरुण जहां हमेशा अपनी सात्विक चर्चा में लीन रहते, मानव व शुभांगी की नजरें उन से बच कर अपने जादुई संसार की संरचना को अलग ही आकार देती रहतीं.

मगर शुभांगी व मानव के बीच क्या पक रहा है और कितना पक गया है, इस से वे दोनों अनजान थे. उन के अब लगभग सभी तीजत्योहार, व्रतउपवास, साथ ही मनने लगे थे. एकदूसरे का साथ मिल जाने के कारण शुभांगी व मानव को भी अब ऐसे अवसरों का बेसब्री से इंतजार रहता. कहा जाता है कि इश्क व जंग में सब जायज है पर जब पानी सिर से गुजरने लगता है तो कहा यह भी जाता है कि ‘इश्क व मुश्क छिपाए नहीं छिपता.’

मीत मेरे- भाग 3

धड़कते दिल के साथ नेहा हैरी के म्यूजिक स्कूल पहुंची. गौरव उसे पहुंचा कर चला गया. स्कूल की भव्य इमारत देख कर यह सहज ही अनुमान हो गया कि स्कूल बहुत अच्छा चल रहा है. हैरी के रूम में पहुंची नेहा का हैरी ने खड़े हो कर स्वागत किया. नेहा से हाथ मिलाते हुए हैरी का चेहरा चमक रहा था, ‘‘वेलकम. इट्स ए प्लेजर टु हैव यू विद अस.’’

‘‘थैंक्स,’’ कहती नेहा ने अपना हाथ खींच लिया.

‘‘ओह,’’ हैरी को जैसे अपनी भूल ज्ञात हो गई.

नेहा का अन्य अमेरिकी टीचरों से परिचय कराते हुए हैरी ने गर्व से कहा, ‘‘अब हम म्यूजिक के माध्यम से इंडियन कम्युनिटी के और ज्यादा नजदीक आ सकेंगे.’’

पास खड़ी नेहा से उस ने कहा, ‘‘हमारे पास आलरेडी 10 ऐप्लिकेशंस आ चुकी हैं.

1 घंटे बाद तुम्हारे स्टूडेंट्स आने वाले हैं. आर यू रेडी टु स्टार्ट योर क्लास?’’

‘‘जी,’’ नेहा के चेहरे पर हलकी मुसकान थी.

नेहा की म्यूजिक क्लास में 7 लड़कियां और 3 लड़के थे. सब के नाम पूछ कर नेहा ने समझाया, ‘‘मुझे खुशी है कि तुम सब को इंडियन म्यूजिक अच्छा लगता है. अगर तुम मन लगा कर अभ्यास करोगे तो जल्दी ही हिंदी गीत गा सकोगे.’’

‘‘मैम, असल में मुझे तो आप के म्यूजिक में कोई इंटरैस्ट नहीं है, पर मौम कहती हैं, इसलिए आना पड़ा,’’ एक लड़की ने कुछ उद्दंडता से कहा.

उस के सपाट जवाब से एक पल को नेहा चौंक सी गई, फिर उसे याद आया, वह भी तो नई टीचर को ऐसे ही परेशान करती थी. नहीं, उसे हार नहीं माननी है.

उस ने प्यार से कहा, ‘‘मुझे इंडियन और वैस्टर्न म्यूजिक दोनों अच्छे लगते हैं. दोनों में मिठास होती है. देखो, उस में डो रे मी फा सो ला… की सरगम है तो इंडियन म्यूजिक की सरगम में सा रे गा मा पा… है. अगर हिंदुस्तानी संगीत नहीं सीख पाओगी तो मैं तुम्हें वैस्टर्न संगीत की क्लास में खुद भेज दूंगी, पर कोशिश कर के देखो, तुम्हारा गला बहुत मधुर है. तुम इंडियन म्यूजिक सीख कर अच्छी गायिका बन सकती हो.’’

‘‘सच मैम, तब तो मैं जरूर ट्राई करूंगी.’’

अचानक एक लड़की ने कहा, ‘‘मैम, आप जींस क्यों नहीं पहनतीं? यू.एस.ए. में वर्क पर जाने के लिए प्रौपर ड्रैस पहननी होती है.’’

‘‘तुम्हें मेरी साड़ी अच्छी नहीं लगती? देखो, इस में कितने सुंदर रंगों वाला डिजाइन बना है. साड़ी हमारी इंडिया की ड्रैस है.’’

‘‘आई लाइक योर ड्रैस,’’ एक लड़के ने प्रशंसा में कहा.

‘‘थैंक यू. कल मैं सलवारसूट पहन कर आऊंगी. वह ड्रैस जींस से मिलती है. हमारे देश में अलगअलग जगहों का अलगअलग पहनावा होता है. चलो, बहुत बातें हो गईं, अब काम की बातें करें. आज हम सरगम से शुरू करते हैं.’’

नेहा ने अपनी मीठी आवाज में सरगम शुरू की तो सब मंत्रमुग्ध रह गए. सरगम दोहराते वे संकुचित थे, पर नेहा के प्रोत्साहन पर उन्होंने प्रयास शुरू किया. थोड़ी देर में माहौल बदल गया, सब सरगम दोहराते खुश थे.

क्लास के बाद नेहा को विदा करते हुए हैरी ने कहा, ‘‘इतनी मीठी आवाज के साथ इंडियन ब्यूटी तुम में साकार है, नेहा. आई कैन से गौरव इज ए लकी चैप.’’

हैरी की बात पर नेहा सोच में पड़ गई, क्या गौरव भी ऐसा ही महसूस करता है? शादी के बाद से आज तक उस ने कभी नेहा के संगीत या रूप की प्रशंसा में शायद ही कभी कुछ कहा हो. उस की उदासीनता को नेहा ने उस का स्वभाव मान अपने मन को समझा लिया था.

घर आई नेहा बेहद उत्साहित थी. उस ने गौरव से कहा, ‘‘संगीत सिखाना उतना कठिन नहीं जितना मैं सोच रही थी, गौरव. स्टूडेंट्स अगर रुचि लेने लगें तो काम और भी आसान हो जाएगा.’’

‘‘चलो, तुम्हारा शौक पूरा हो गया. तुम्हें मुझ से शिकायत थी, मैं ने कभी तुम्हारे संगीत ज्ञान को जानने की कोशिश नहीं की. सच कहूं तो संगीत से मेरा कोई लगाव नहीं है. चलो, बधाई,’’ होंठ भींच, गौरव ने बधाई दी.

नेहा को एक कड़वा सच याद हो आया, शादी के बाद दबी फुसफुसाहटों ने उसे जता दिया था, गौरव के साथ उस की शादी उस के घर से आए भारी दहेज के कारण हुई थी, वरना उस का मन तो कहीं और बंधा था. गौरव उस लड़की की गायकी पर फिदा था, पर उस लड़की की गरीबी के कारण गौरव के माता पिता ने संबंध स्वीकार नहीं किया. अपनी 3 अनब्याही बहनों के विवाह की समस्या ने गौरव को नेहा से विवाह करने को विवश कर दिया. उस के रिटायर्ड पिता कैसे बेटियों के विवाह निबटाते?

विवाह की पहली रात नेहा ने जानना चाहा था, ‘‘सुना है, आप किसी और को चाहते थे?’’

‘‘एक बात याद रखो, मेरे अतीत को कुरेदने की कोशिश न करने में ही सुख है. मुझे भी तुम्हारे अतीत से कुछ लेनादेना नहीं है. जिंदगी शांति से काटना चाहता हूं, बस. तुम से इतने सहयोग की उम्मीद रखता हूं, इसी में हमारी भलाई है. अगर तुम ऐसा न कर सकीं तो अशांति के लिए तुम जिम्मेदार होगी. तुम पढ़ीलिखी, समझदार लड़की हो, निर्णय तुम्हारे हाथ में है.’’

नेहा चुप रह गई, पर विवाह के बाद एक प्रेमी पति पाने के उस के सपने चूरचूर हो गए. नेहा के मीठे गीतों ने सब की प्रशंसा पाई, पर गौरव उदासीन ही रहा. नेहा के प्रति पति का कर्तव्य गौरव उसी तटस्थता से निभाता रहा.

नेहा ने उस की उदासीनता को अपनी नियति मान कर जीवन जीना शुरू किया था. अचानक अमेरिका से मिले नौकरी के प्रस्ताव ने नेहा को उत्साहित कर दिया. नए परिवेश में शायद पुरानी यादें धूमिल हो जाएं और वह गौरव को पूरी तरह से पा सके.

अमेरिका में नए काम के उत्साह के साथ अच्छा वेतन मिलने से गौरव भी सामान्य हो चला था, पर अचानक जौब चली जाने से गौरव फिर उदास हो गया था.

नेहा के विचार में उन की उस परेशानी में नेहा को जौब मिलना एक वरदान ही था. गौरव की कुंठा वह समझ रही थी, पर उस का सोचना था, शांत रह कर अच्छे समय की प्रतीक्षा करने में ही समझदारी है.

दूसरे दिन स्कूल पहुंची नेहा को रोक कर हैरी ने कहा, ‘‘तुम्हारी क्लास में एक नया स्टूडेंट आना चाहता है, एडमिट करोगी?’’ परिहास हैरी के चेहरे पर स्पष्ट था.

‘‘यह तुम्हारा स्कूल है, तुम्हें डिसाइड करना है,’’ नेहा ने कहा.

‘‘तुम्हारा नया स्टूडेंट मैं हूं, नेहा. मैं ने इंडियन म्यूजिक हमेशा सीखना चाहा, पर कोई गुरु नहीं मिला. मुझे सिखाओगी? विश्वास रखो, मैं एक अच्छा स्टूडेंट साबित होऊंगा.’’

‘‘बच्चों के साथ तुम सीख सकोगे, हैरी? वे हंसेंगे नहीं?’’

‘‘नहीं, मेरी क्लास लेने के लिए तुम्हें अपने समय से 1 घंटा पहले आना होगा. स्कूल के समय तो मैं अपनी गिटार क्लासेस लेता हूं. मेरी क्लास के लिए तुम्हें अलग से ऐक्स्ट्रा पैसे मिलेंगे. वैसे कोई जबरदस्ती नहीं है, तुम मेरी रिक्वैस्ट पर सोच लो.’’

‘‘ठीक है, मैं जल्दी आ सकती हूं. अच्छा स्टूडेंट भी मुश्किल से मिलता है, हैरी, पर क्या तुम सचमुच सीरियस हो?’’

‘‘इस में तुम्हें शक क्यों है, नेहा? मेरे पास भीमसेन जोशी और जगजीत सिंह की सीडीज हैं. कभी फुरसत में हम दोनों साथसाथ उन गीतों और गजलों का आनंद लेंगे.’’

‘‘सच? मेरे पास भी कुछ अच्छे म्यूजीशियंस की सीडीज हैं, तुम्हें दूंगी. मैं नहीं जानती थी, तुम्हें इंडियन म्यूजिक से प्यार है.’’

‘‘मेरे ग्रैंड फादर इंडिया में काफी टाइम तक रहे थे. उन से इंडिया की बहुत तारीफ सुनी थी. वे इंडिया को दिल से चाहते थे. उन के पास इंडियन गीतों के रेकार्ड थे. मुझे भी वे गीत बहुत अच्छे लगते थे. तब से इंडियन म्यूजिक सीखना चाहता था.’’

‘‘तुम जैसे संगीतप्रेमी को संगीत सिखाने में मुझे खुशी होगी, हैरी.’’

‘‘थैंक्स, नेहा. मैं कल अपनी नई क्लास का वेट करूंगा.’’

हैरी को संगीत सिखाना आसान था, उसे स्वर का ज्ञान था, पर हिंदी का उच्चारण ठीक कराती नेहा अकसर हंस पड़ती. बच्चों जैसा भोला मुंह बना हैरी ‘सौरी’ कह क्षमा मांग लेता. कभीकभी गीत गाती नेहा को हैरी मुग्ध देखता रह जाता और गीत की पंक्ति भूल जाता. नेहा नाराज होती, ‘‘तुम ध्यान से क्यों नहीं सुनते, हैरी?’’

‘‘एक्सक्यूज मी. असल में तुम्हारा चेहरा जैसे खुद गीत बन गया था, मैं भूल गया कि तुम गा रही हो, बस, और कुछ याद नहीं रहा,’’ हैरी ने सचाई से कहा.

‘‘गीत में जो भाव होते हैं वे चेहरे पर तो आ ही सकते हैं, पर इस का मतलब यह नहीं कि तुम गीत की जगह चेहरा देखो.’’

सचाई यह थी कि हैरी की उस बात ने नेहा को गुदगुदा दिया. ऐसी बात सुनने का उसे अभ्यास नहीं था.

‘‘ओ.के., टीचरजी, अब मिस्टेक नहीं होगी.’’

दोनों की सम्मिलित हंसी से संगीत कक्ष गूंज उठा. अकसर नेहा की क्लास में हैरी अपने गिटार के साथ आ जाता और स्टूडेंट्स के गीतों के साथ अपना गिटार बजा, उन की खुशी बढ़ा देता. नेहा का समय अच्छा बीत रहा था. हैरी की बातें और उस का गिटार नेहा को अच्छा लगता. स्कूल में नेहा अपने घर की समस्याएं भूल जाती, लगता मानो वक्त पंख लगा कर उड़ जाता. घर में गौरव की मायूसी उसे उदास कर देती. काश, गौरव को कोई जौब मिल जाती.

हर ओर से मायूस गौरव ने एक छोटी सी स्टार्टअप कंपनी में सहायक मार्केटिंग मैनेजर की जौब कर ली. कंपनी को अपने काम को बढ़ाने के लिए अमेरिका के कई शहरों में सैंटर्स खोलने थे. पहले तो वह उन केंद्रों में दौरे पर जाया करता था, पर एक नया सैंटर खोलने के लिए उसे 2 महीनों के लिए अपने शहर से बहुत दूर जाने के आदेश मिले. गौरव परेशान हो उठा, पर नेहा ने समझाया, ‘‘परेशान क्यों होते हो, हो सकता है तुम्हारे अच्छे काम से खुश हो कर तुम्हें इसी कंपनी में प्रमोशन मिल जाए. तुम्हें सफलता जरूर मिलेगी.’’

‘‘तुम अकेली कैसे मैनेज करोगी?’’

‘‘क्यों, यहां इंडिया से न जाने कितनी लड़कियां अकेले पढ़ने या जौब के लिए आती हैं. मेरे पास तो एक जौब भी है यानी मैं एक वर्किंग वुमन हूं, जनाब. मेरी मदद के लिए यहां मंगला और हैरी भी तो हैं,’’ नेहा ने मजाक कर गौरव को हंसाना चाहा.

‘‘फिर भी अचानक मुश्किल के समय 911 काल करना मत भूलना. फोन पाते ही पुलिस तुरंत मदद के लिए आ जाती है.’’

‘‘जानती हूं, गौरव. तुम मेरी चिंता छोड़, अपनी पैकिंग कर डालो. मैं मदद करती हूं.’’ गौरव को विदा करती नेहा ने कब सोचा था कि उस के जाते ही सचमुच मुश्किल आ जाएगी. सीढ़ी से उतरती नेहा का अचानक पांव फिसल गया. पांव में इतना जबरदस्त दर्द था कि एक कदम चलना असंभव लग रहा था. मंगला अपने काम पर जा चुकी थी. किसी तरह अपने को घसीट नेहा कमरे में पहुंच सकी. फोन मिलते ही हैरी पहुंच गया.

हास्पिटल में एक्सरे से पता लगा, एड़ी के पास हड्डी चटक गई थी. नेहा के पैर पर प्लास्टर लगा दिया गया, चलनेफिरने के लिए बैसाखी का सहारा लेना जरूरी हो गया.

‘‘मैं अब स्कूल नहीं आ सकूंगी, हैरी. सोचती हूं, गौरव को खबर कर दूं.’’

‘‘बिलकुल नहीं, पहली बात तो तुम्हारी छुट्टी ग्रांट नहीं करूंगा. यह अमेरिका है, मैडम. यहां पूरी तरह से इन्वैलिड लोग भी काम करते हैं. इतनी मामूली तकलीफ के लिए स्कूल सफर नहीं कर सकता. दूसरी बात, गौरव को इन्फार्म नहीं करना है. अभी उस ने नई जौब ली है, पहले असाइन्मैंट पर गया है, उस का छुट्टी लेना क्या ठीक होगा?’’ हैरी ने समझाने के अंदाज में कहा.

‘‘तुम्हीं बताओ, मैं कैसे मैनेज करूंगी?’’ नेहा की बड़ीबड़ी आंखों में आंसू आ गए.

‘‘मुझ पर यकीन नहीं है, नेहा? मैं तुम्हारे साथ हूं. तुम्हें संभालना मेरी रिसपौंसिबिलिटी है,’’ प्यार से नेहा के आंसू पोंछ, हैरी ने कहा.

‘‘नहीं, तुम्हें अपना घर और स्कूल दोनों देखने हैं. एलिजाबेथ को तुम्हारा टाइम चाहिए. मैं तुम्हें तकलीफ नहीं दे सकती, हैरी.’’

‘‘ओह, मैं बताना ही भूल गया, एलिजाबेथ अपनी बेटी के साथ समर कैंप के लिए 1 महीने के लिए कनाडा गई है. तुम्हारी सेवा के लिए मैं पूरी तरह फ्री हूं. ऐनी अदर प्रौब्लम?’’ हैरी हंस रहा था. हैरी की बात पर नेहा अपना दर्द भूल कर हंस पड़ी.

‘‘यह हुई न बात, इसी बात पर कौफी बनाता हूं. हां, लंच में क्या लोगी, मुझे इंडियन कुकिंग नहीं आती. मेरी कुकिंग तुम्हें पसंद नहीं आएगी,’’ हैरी परेशान था.

‘‘अभी तो फ्रिज में काफी खाना रखा है. वैसे अब यहां इंडियन स्टोर्स में भी पकापकाया खाने का सारा सामान पैक्ड मिलता है. तरहतरह की तैयार सब्जियों के साथ बढि़या नान, रोटी, परांठे, चाट सब कुछ मिलता है. तुम ने सेवा का फैसला किया है तो लिस्ट दे दूंगी, सामान लाना होगा. वैसे भी मेरे हाथ सहीसलामत हैं, आराम से चेयर पर बैठ कर खाना बना सकती हूं और तुम्हें खिला भी सकती हूं,’’ नेहा भी मजाक कर बैठी.

‘‘इंपौसिबिल, इस हाल में तुम कोई काम नहीं करोगी. आई एम ऐट योर सर्विस मैम,’’ हैरी ने झुक कर आदाब किया.

नेहा के साथ कौफी पी कर हैरी ने नेहा के साथ लंच भी लिया. दूसरे दिन अपने साथ स्कूल ले जाने को कह, हैरी ने विदा ली. बैसाखी के साथ दरवाजे तक आई नेहा को देख मंगला चौंक गई. वह अपनी 1 बजे तक की ड्यूटी कर के वापस आई थी.

‘‘रामा रामा, यह क्या होने का, नेहा, कैसे हुआ?’’

नेहा से पूरी बात सुन कर मंगला बोली, ‘‘तुम फिक्कर नहीं करने का. हम काम से छुट्टी लेने का. इधर गौरवजी भी नहीं, हम तुम को हैल्प करेगा, नेहा.’’

‘‘थैंक्यू, मंगला बहन. अमेरिका में काम से बेकार छुट्टी लेना ठीक नहीं, मैं भी तो काम पर जाऊंगी. अगर जरूरत हुई तो मैं आप की हैल्प जरूर लूंगी.’’

‘‘ठीक है, पर तुम को खाना नहीं बनाने का, हम खाना देगा.’’

‘‘अभी फ्रिज में खाने का बहुत सामान है, संडे को अगर आप का इडली बनाने का प्रोग्राम हुआ तो जरूर दीजिएगा. आप जैसी इडली कोई नहीं बना सकता.’’

‘‘जरूर बनाएगा. उधर होटल में भी सब ऐसा ही कहता है,’’ मंगला खुश हो गई.

दूसरी सुबह नेहा स्कूल जाने को तैयार थी. हैरी ठीक कहता है, जहां तक हो सके तकलीफ में भी काम करने की हिम्मत रखनी चाहिए. खुद नेहा ने यहां ऐसे व्यक्तियों को काम करते देखा है, जिन के हाथपांव बेकार हैं, पर व्हीलचेयर और अन्य इलैक्ट्रोनिक उपकरणों की सहायता से सामान्य व्यक्तियों की तरह काम करते हैं.

इस देश में विकलांगता अभिशाप नहीं है. विकलांगों पर सरकार की ओर से हर संभव सुविधा और सहायता उपलब्ध कराई जाती है. ठीक समय पर हैरी की कार की आवाज ने नेहा के विचारों की शृंखला तोड़ दी. हैरी के सहारे नेहा आसानी से सीढि़यां उतर कर कार में बैठ गई.

अब हैरी का रोज का नियम हो गया, सुबह नेहा को स्कूल ले जाता और शाम को उस के साथ कौफी पीता. कभीकभी नेहा के अनुरोध पर डिनर भी लेना पड़ता. कोई अच्छी सी गजल या गीत सुनते हुए दोनों को साथ समय बिताते अच्छा लगता. कभीकभी हैरी अपने हाथों से कुकिंग कर के नेहा को चमत्कृत कर देता.

‘‘वाह, तुम तो बहुत अच्छे कुक हो, हैरी. तुम्हें तो गिटारिस्ट नहीं, किसी होटल का शैफ होना चाहिए,’’ नेहा परिहास करती.

‘‘तब तो इस शैफ को इनाम मिलना चाहिए, नहीं, क्या कहते हैं, बख्शीश दो,’’ नेहा से संगीत सीखने के साथसाथ वह हिंदी बोलना भी सीख रहा था.

‘‘तुम्हें इनाम तो जरूर मिलना चाहिए. तुम्हारी वजह से आज हम यहां रह रहे हैं. गौरव जब भी फोन करता है तुम्हारा हाल पूछता है. तुम्हें थैंक्स देता है.’’

‘‘गौरव का काम कैसा चल रहा है, तुम्हें तो बहुत मिस करता होगा. अगर वह cजान जाए उस की ऐबसेंस में मैं तुम्हारी कंपनी एंजौय कर रहा हूं तो वह शायद काम छोड़ कर वापस आ जाए. ऐसी वाइफ को छोड़ कर दूर रहना पौसिबिल नहीं होता,’’ हैरी की मुग्ध दृष्टि अपने पर गड़ी पा कर नेहा संकुचित हो गई.

‘‘ऐसी कोई बात नहीं है. गौरव बहुत प्रैक्टिकल इनसान हैं, भावुक तो शायद मैं

बहुत हूं. वैसे उस का मन इस नए काम में नहीं लग रहा है. पता नहीं वह इस काम को कंटीन्यू करेगा या नहीं?’’ नेहा ने अपना भय प्रकट किया.

‘‘इस इकोनोमिक क्राइसिस के समय जौब छोड़ना मिस्टेक होगी. आई होप वह ऐसा न करे,’’ हैरी ने सलाह दी.

‘‘मैं उस तक तुम्हारी सलाह पहुंचा दूंगी. तुम ने हमारी बहुत मदद की है, हैरी.’’

‘‘चलो, इस टौपिक को यहीं छोड़ते हैं, आज एक प्रेम गीत सुनने का मन चाह रहा है. देखो, मैं इसलिए अपना गिटार भी लाया हूं. मेरा गिटार तुम्हारे गीत का साथ देगा.’’

‘‘प्रेम गीत? क्या एलिजाबेथ की याद आ रही है?’’ नेहा के चेहरे पर शरारत थी.

‘‘जरूरी तो नहीं प्रेम गीत के साथ वाइफ की याद आए. प्रेम तो एक ऐसा भाव है, कभी भी जाग जाए. अब प्लीज, गीत गाना शुरू करो, नेहा. इट्स माई रिक्वैस्ट,’’ हैरी गंभीर था.

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