Serial Story: का से कहूं (भाग-3)

जब मोहना के घरवाले लौट गए तो मोहना ने दरवाजे की ओट से रानी ओर किशोरजी बातें सुनीं.

‘‘मैं ने सोचा था कि शादी के बाद विलास ठीक हो जाएगा… सभी हो जाते हैं. पर ये तो अब तक वहीं अटका हुआ है,’’ किशोरजी कह रहे थे.

‘‘हां, मुझे भी कहां लगा था कि बहू इस का मन नहीं बदल पाएगी,’’ रानी भी हां में हां मिला रही थीं.

मोहना को अब यह बात बिलकुल स्पष्ट हो चुकी थी कि जो करना है उसे ही करना पड़ेगा. विलास एक बहुत अच्छा पति है, सुलझा हुआ, संवेदनशील और प्यार करने वाला किंतु जीवन में शारीरिक सामीप्य की जो खाई थी, क्या मोहना उस के साथ अपना पूरा जीवन काट सकेगी? अब इस प्रश्न का उत्तर उसे स्वयं ही देना था. बात थी भी इतनी कि किस से कहती वह?

घर पर त्योहार मनाने का सब से बड़ा फायदा जो मोहना को हुआ वह यह रहा कि अब उस ने

अपने जीवन की बागडोर अपने हाथों में लेने का निर्णय कर लिया. वापस मुंबई लौट कर मोहना ने विलास के आगे एक छोटी सी ट्रिप पर चलने का प्रस्ताव रखा. कई बार जो बातें रोजमर्रा के माहौल में नहीं हो पातीं वह पर्यटन स्थलों पर फ्रैश मूड में बहुत अच्छे से हो जाती हैं. इसी सोच से मोहना ने ये बात कही जो विलास ने सहर्ष स्वीकार कर ली.

आने वाले वीकैंड पर दोनों ने पंचगनी का ट्रिप बनाया. जहां मुंबई का तापमान हमेशा एकसा रहता है वहीं पंचगनी की हलकी ठंड से लिपटी शामें विलास और मोहना के लिए एक अच्छा बदलाव थीं. शौल ओढ़े, बोनफायर के आसपास बैठे दोनों ने अपने रिजार्ट में एक अच्छा दिन बिताया. अगले दिन दोनों ने यहां के प्रसिद्ध पर्यटक स्थलों को देखने का मन बनाया. आर्थर सीट की ऊंचाई से कोइना वैली का अद्भुत नजारा देखा, एल्फिंस्टन पौइंट पर पहुंच कर दोनों ने गरमगरम मैगी खाई और मसाला छास पी, टेबल लैंड का विशाल क्षेत्र उन्होंने घुड़सवारी कर पूरा किया और वेणा लेक में बोटिंग कर एक यादगार दिन बिताया.

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‘‘यहां की प्रसिद्ध स्ट्राबेरी तो ले लो. रूम में चल कर खाएंगे,’’ मोहना ने कहा.

‘‘सिर्फ स्ट्राबेरी?’’ मैं तो यहां की स्ट्राबेरी वाइन भी लेने वाला हूं,’’ हंस कर विलास ने कहा.

दोनों काफी खुश थे. यही सही मौका है, आज ही विलास से अपने दिल की बात करनी होगी, मोहना ने सोच रखा था. रूम में पहुंच कर दोनों ने वाइन ले चीयर्स किया. मोहना का गंभीर चेहरा देख विलास ने कारण जानना चाहा, ‘‘क्या घर की याद आ रही है?’’

‘‘नहीं… लेकिन एक अत्यंत गंभीर विषय पर बात करनी है तुम से… सोच नहीं पा रही कैसे कहूं…’’ मोहना की हिचकिचाहट देख विलास को बात का अंदेशा होने लगा. आखिर अपनी कमी किसे पता नहीं होती. उस ने बात को आगे न बढ़ाते हुए दूसरी बात शुरू करनी चाही, ‘‘मोहना, छोड़ो ये गंभीर बातें. आज का दिन कितना अच्छा बीता, अब मूड मत औफ करो.’’

‘‘विलास, तुम क्या चाहते हो कि मैं केवल ऊपर से हंसती रहूं या अंदर से भी खुश रहूं?’’ मोहना आज इस विषय पर बात करने की ठान चुकी थी. आखिर कब तक इस रिश्ते को यों अधूरा सा जीती रहेगी वह, ‘‘प्लीज मुझे बताओ कि आखिर बात क्या है. मैं असली कारण जानना चाहती हूं. आखिर हम जीवनसाथी हैं, सारी उम्र हमें एकदूसरे का साथ निभाना है, चाहे सुख हो या दुख, चाहे तकलीफ हो या आनंद. अगर हम ही अपने दिलों की परतें हटा कर एकदूसरे से अपने मन की बात नहीं कह सकते तो फिर कैसा रिश्ता है यह? मैं तुम्हें अपना सब कुछ मान चुकी हूं और मैं जानती हूं कि तुम भी मुझ से प्यार करते हो. ये रिश्ता केवल सतही नहीं अपितु हम दोनों के दिलों को एक सूत्र में बांधता है. क्या तुम मुझ से अपने मन की व्यथा नहीं कह सकते? क्या रोकता है तुम्हें? क्या मैं तुम्हें पसंद नहीं? क्या तुम्हारा प्यार मेरी गलतफहमी है या फिर केवल परिवार के लिए लिया गया एक फैसला?’’ मोहना कहती चली गई. आज उस ने स्वयं को रोका नहीं. जो पीड़ा उस के मन में आज तक मरोड़ रही थी, उस ने आज उसे विलास के सामने उघाड़ कर रख दिया.

मोहना की आंतरिक तकलीफ ने विलास को भी विचलित कर दिया. उस ने सोचा न था कि ऊपर से हमेशा हंसती रहने वाली मोहना हृदय की गहराइयों में इतनी व्यथित होगी. किंतु अपने दिल की असलियत बयान करने से वह अभी भी हिचकिचा रहा था, ‘‘क्या बताऊं, मोहना… ऐसी कोई बात नहीं है. बस, यों ही कभी कुछ तो कभी कुछ कारणों की वजह से… तुम व्यर्थ ही इतना परेशान हो रही हो.’’

‘‘ठीक है. जैसा तुम चाहो. यदि तुम मुझे अपनी संगिनी नहीं मानते तो कोई बात नहीं. पर यदि कल को मेरे कदम बहक जाएं तो प्लीज मुझे दोष मत देना. तब यह न सोचना कि मैं चरित्रहीन निकली. मैं ने सब से पहले तुम्हारे आगे अपने मन की बात कही. एक लड़की होते हुए भी मैं ने ऐसे कठिन विषय पर बात करने की पहल की. पर अगर तुम मुझ से परदा रखना चाहते हो, तो हमारी शादीशुदा जिंदगी में आगे जो कुछ भी होगा उस के जिम्मेदार तुम ही रहोगे, मेरी यह बात याद रखना,’’ आज मोहना काफी अडिग थी.

नींद आंखों से कोसों दूर भटकती रही और सारी रात विलास, मोहना द्वारा कही बातों पर विचार करता रहा. सच ही तो कह रही है वह. आखिर वह जीवनसंगिनी है, यदि विलास उस के आगे अपना मन नहीं खोल सकता तो फिर किस से कहेगा? पौ फटने के समय जब आकाश में लालिमा छाई, तब विलास के मस्तिष्क में भी रोशनी होने लगी. उस ने सोच लिया कि आज वह मोहना को सब कुछ बता देगा.

‘‘नाश्ते के लिए चलें?’’ नहा कर आई मोहना ने पूछा.

‘‘हां, संक्षिप्त सा उत्तर दे विलास उस के साथ चल दिया. गहरी सोच में था वह. आखिर आज वह अपने अंदर दबी उलझनों की गांठों को खोलने की कोशिश करने वाला था.

नाश्ते के बाद आज कुछ शौपिंग का प्रोग्राम था. लेकिन विलास के कहने पर पहले दोनों ने केट्स पौइंट जाने का निश्चय किया. पहाड़ की ऊंचाई पर पहुंच कर विलास ने एक एकांत कोना तलाशा और मोहना से वहां बैठने का आग्रह किया, ‘‘तुम जानना चाहती हो न कि मैं क्यों तुम्हारे पास नहीं आता? आज मैं तुम्हें अपने अतीत का वह राज बताने जा रहा हूं जिसे मैं कभी भी कुरेदना नहीं चाहता. लेकिन अगर आज नहीं कहा तो शायद फिर कभी कह न सकूंगा…’’

‘‘विलास, तुम बेझिझक मुझ से अपनी बात कह सकते हो. तुम जो भी कहोगे, वह केवल हम दोनों के बीच रहेगा,’’ मोहना की बात से विलास आश्वस्त हो गया. उस ने 1 गिलास पानी पिया. कुछ सोच कर उस ने आगे बात कहनी शुरू की…

जब विलास केवल 12 वर्ष का था तब उस के साथ एक हादसा गुजरा था. उस के मौसाजी

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जोकि उसी शहर नौकरी करने आए थे. उस के घर में रहने आए. अगले कुछ महीनों जब तक उस की मौसीजी की नौकरी का तबादला  उसी शहर में न हो जाता, उन्हें इसी के घर में रहना था. एक बार मौसीजी आ जाए, तब ये अपना घर ले लेंगे, ऐसा विचार था. सब कुछ अच्छे ढंग से व्यवस्थित हो गया. किशोरजी अपनी दुकान संभालते, रानी घर संभालतीं, मौसाजी अपने दफ्तर जाते और विलास अपने स्कूल. सब की मुलाकात अकसर रात को खाने की मेज पर हुआ करती. ऐसे ही करीब 20 दिन बीत गए.

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Serial Story: का से कहूं (भाग-1)

रानीऔर किशोरजी के इकलौते बेटे की शादी थी. पूरे घर में रौनक ही रौनक थी. कहीं कोई कसर नहीं छोड़ी थी. दुलहनिया भी इसी शहर के एक नामी घर से लाए थे. जैसे इन का अपना सुनार का व्यवसाय था जो पूरे शहर में प्रसिद्ध था वैसे ही दुलहन के घरवालों का भी गोटेकारी का बड़ा काम था और उन की दुकानें शहर में कई जगहों पर थीं. उन का पूरा परिवार एक संयुक्त परिवार के रूप में एक ही कोठी में रहता था. चाचाताऊ में इतना एका था कि विलास के रिश्ते के लिए हां करने से पहले भी मोहना ने अपने ताऊजी को बताया था. तभी तो रानी को मेहना भा गई थी. उन का मानना था कि एकल परिवार की लड़कियां सासससुर से निभा नहीं सकतीं. संयुक्त परिवार की लड़की आएगी तो हिलमिल कर रहेगी.

डोली तो अलसुबह ही आंगन में उतर चुकी थी, दूल्हादुलहन को अलग कमरों में बिठा कर थोड़ी देर सुस्ताने का मौका भी दिया गया था. गीतों से वातावरण गुंजायमान था. फिर खेल होने थे सो सब औरतें उसी तैयारी में व्यस्त थीं. खूब हंसीखुशी के बीच खेल हुए. मोहना और विलास ने बहुत संयम से भाग लिया. न कोई छीनाझपटी और न कोई खींचतानी. मोहना खुश थी कि उस की पसंद सही निकल रही है वरना उस के बड़े भैया की शादी में भाभी के हाथों में उन के अपने नाखून गड़ कर लहूलुहान हो गए थे पर उन्होंने भैया को बंद मुट्ठी नहीं खोलने दी थी. ऐसे खेलों का क्या फायदा जो शादी के माहौल में नएनवेले जोड़े के मन में प्रतियोगियों जैसी भावना भर दें.

शाम ढलने को थी. सभी भाइयोंदोस्तों ने विलास का कमरा सुसज्जित कर दिया था. रात्री भोजन के पश्चात मोहना को सुहाग कक्ष में ले जा कर बैठा दिया गया. हंसतीखिलखिलाती बहनें कुछ ही देर में विलास को भी वहां छोड़ गईं.

‘‘अरे आप इतने भारी कपड़ों में सांस कैसे ले पा रही हो? वाई डोंट यू चेंज,’’ विलास ने कमरे में आते ही कहा, ‘‘मैं भी बहुत थक गया हूं. मैं भी चेंज कर लेता हूं.’’

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मोहना एक बार फिर खुशी से लाल हो गई. कितना समझने वाला साथी मिला है उसे. वो उठ कर बाथरूम में चेंज कर के आई तब तक विलास भी चेंज कर के बिस्तर पर लेट चुका था. ‘गुड नाईट’, मुसकरा कर कह विलास ने कमरे की लाइट बुझा दी. थोड़ी ही देर में पिछले कई दिनों से चल रही रस्मों की थकान और सुबह से उकड़ू बैठी मोहना को नींद ने घेर लिया.

सुबह दोनों फ्रैश उठे. एकदूसरे को देख कर मुसकराए. विलास बोला, ‘‘कुछ दिनों की बात है, मोहना, यहां तो रीतिरिवाज खत्म नहीं होंगे पर हम दोनों जब मुंबई चले जाएंगे तब लाइफ सैटल होने लगेगी.’’ विलास अपने पिता का कारोबार न संभाल कर मुंबई में नौकरी करता था. शादी के कुछ दिनों बाद दोनों का मुंबई चले जाने का कार्यक्रम तय था. पर उस से पहले विलास और मोहना को हनीमून पर जाना था. शादी का दूसरा दिन हनीमून की पैकिंग में गया और तीसरे दिन दोनों ऊटी के लिए रवाना हो गए. ऊटी का नैसर्गिक सौंदर्य देख दोनों प्रसन्नचित्त थे. रिजौर्ट भी चुनिंदा था. विलास के मातापिता की तरफ से ये उन की शादी का गिफ्ट था.

‘‘यहां का सूर्योदय बहुत फेमस है तो कल सुबह जल्दी उठ कर चलेंगे सन पौइंट. चलो अब सो जाते हैं,’’ कह विलास ने कमरे की लाइट बंद कर दी. आज मोहना को थोड़ा अजीब लगा. नई विवाहिता पत्नी बगल में लेटी है और विलास जल्दी सोने की बात कर रहा है, वह भी हनीमून पर. घर पर उसे लगा था कि समय की कमी, थकान, आसपास परिवार वालों की मौजूदगी आदि के कारण वो उस के निकट नहीं आया पर यहां अकेले में? यहां क्यों विलास को सोने की जल्दी है? पर फिर अगले ही पल उस ने अपने विचारों को झटका, कह तो रहा है कि सुबह जल्दी निकलना है और फिर कितना तो खयाल रखता है वह मोहना का. सारे रास्ते उस के आराम और खानेपीने के बारे में पूछता रहा. कुछ ज्यादा ही सोच रही है वह शायद.

अगला दिन अच्छा व्यतीत हुआ. दोनों ने काफी कुछ घूमा. देर शाम थक कर

दोनों कमरे में लौटे, ‘‘मोहना, प्लीज क्या तुम मेरी पीठ पर ये बाम लगा दोगी? मेरी पीठ में काफी दर्द है कुछ दिनों से,’’ विलास ने मोहना को बाम की एक शीशी देते हुए कहा.

‘‘हां, क्यों नहीं. इस में प्लीज कहने की क्या बात है. लाओ, मैं बाम लगा देती हूं,’’ वो बाम लगाते हुए सोचने लगी, ‘‘अगर तुम्हारी पीठ में दर्द है तो कल कमरे में ही रेस्ट करते हैं, कहीं घूमने नहीं निकलते.’’

‘‘नहीं, नहीं, सुबह तक आराम आ जाना चाहिए और फिर इतनी दूर तक आए हैं तो कमरे में रहने तो नहीं,’’ विलास ने कहा.

अगले 2 दिनों में दोनों ने ऊटी शहर के पर्यटक आकर्षणों को देखा. बोटैनिकल गार्डन, रोज गार्डन, सैंट स्टीफन चर्च आदि घूम कर दोनों ने शहर का पूरा लुत्फ उठाया. होम मेड चौकलेट भी खरीदीं और यहां की सुप्रसिद्ध चाय भी. सभी घरवालों के लिए कुछ न कुछ तोहफे भी लिए. आज वापसी की बारी थी. मोहना जरा सी उदास भी थी और नहीं भी. जब उस का कुंवारा दिल पति प्रेम के सानिध्य में डूबने की इच्छा जताता, वह उसे समझा लेती कि पतिपत्नी का रिश्ता एक हफ्ते का नहीं अपितु पूरे जीवन भर का होता है. जिस सामीप्य के लिए वह तरस रही है, वह उसे मिल ही जाएगा. तो फिर आज के खुशहाल क्षण क्यों गंवाए?

घर लौटने पर रानी और किशोरजी बेहद खुश हुए. अब तक सारे रिश्तेदार लौट चुके थे. घर अपने वास्तविक रूप में लौट चुका था. आज मोहना ने अपनी पहली रसोई बनाई जिस में रानी ने उस की पूरी सहायता की. शगुन के रूप में किशोर जी ने उसे सोने के कंगन दिए. इतना प्यार, इतना दुलार पा कर मोहना अपने भाग्य पर इठलाने लगी थी.

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कुछ दिन वहां रह कर मोहना और विलास मुंबई के लिए रवाना हो गए. सब कुछ बहुत अच्छा था, एकदम आदर्श स्थिति… बस कमी थी तो केवल शारीरिक सामीप्य की. विलास अब तक मोहना के निकट नहीं आया था. पर वह बेचारा भी क्या करे, पीठ में दर्द जो कायम था, सोच मोहना अपना मन संभाल रही थी.

आगे पढ़ें- अकेले में विलास उस से बिलकुल…

Serial Story: का से कहूं (भाग-2)

मुंबई पहुंच कर नए घर को व्यवस्थित करने का जिम्मा विलास ने मोहना को दिया, ‘‘अब से इस घर की सारी जिम्मेदारी तुम्हारी. चाहे जैसे सजाओ, चाहे जैसे रखो. हम तो आप के हुक्म के गुलाम हैं,’’ विलास का यह रूप, लच्छेदार बातें मोहना पहली बार सुन रही थी. अच्छा लगा उसे कि अकेले में विलास उस से बिलकुल खुल चुका था. विलास ने अपना औफिस वापस जौइन कर लिया और मोहना घर की साजसज्जा में व्यस्त रहने लगी. दिन में जितने फोन मोहना के मायके से आते, उतनी ही बार रानी भी उस से बात करती रहतीं. उसे अकेलापन बिलकुल नहीं महसूस हो रहा था. लेकिन विलास अकसर रातों को बहुत ही देर से घर लौटता, ‘‘आजकल काफी काम है. शादी के लिए छुट्टियां लीं तो बहुत काम पेंडिंग हो गया है,’’ वह कहता. घर की एक चाबी उसी के पास रहती तो देर रात लौट कर वह मोहना की नींद खराब नहीं करता, बल्कि अपनी चाबी से घर में घुस कर चुपचाप बिस्तर के एक कोने में सो जाता. मोहना सुबह पूछती तो पता चलता कि रात कितनी देर से लौटा था.

जब जिंदगी पटरी पर दौड़ने लगी तो मोहना सारा दिन घर में अकेले बोर होने लगी. विलास के कहने पर उस ने लोकल ट्रेन में चलना सीखा और अवसरों की नगरी मुंबई में 2 शिफ्टों में सुबहशाम की 2 नौकरियां ले लीं. अब मोहना खुद भी व्यस्त रहने लगी. शुरू में उसे यह व्यस्तता बहुत अच्छी लगी. लोकल ट्रेन में चलने का अपना ही नशा होता है. आप सारी भीड़ का एक हिस्सा हैं, आप उन के साथ उन की रफ्तार से कदम से कदम मिला कर चल रहे हैं और एकएक मिनट की कीमत समझ रहे हैं. मोहना भी इस जिंदगी का मजा लेने लगी. उस के कुछ नए दोस्त भी बने. प्रियंवदा उस की अच्छी सहेली बन गई जो उसे अकसर लोकल ट्रेन में मिला करती. उस का औफिस भी उसी रास्ते पर था. प्रियंवदा की शादी को एक साल हुआ था और मोहना की शादी को अभी केवल 2 महीने बीते थे.

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‘‘दूसरी शिफ्ट की क्या जरूरत है, मोहना, रात को घर लौटते समय देर नहीं हो जाती?’’ एक दिन प्रियंवदा ने पूछा.

‘‘हां, करीब 10 बज जाते हैं पर विलास काफी देर से घर लौटते हैं तो मुझे कोई प्रौब्लम नहीं होती.’’

‘‘तभी मैं कहूं्… मेरे पति तो मुझे जरा सी देर भी अकेला नहीं छोड़ते. यहां तक कि किचन का काम निबटाने में भी अगर टाइम लग जाए तो शोर मचाने लगते हैं,’’ कह प्रियंवदा शरमा कर हंसने लगी, ‘‘तुम्हारी शादी तो और भी नई है. रात को ऐनर्जी कहां से लाती हो.’’

मोहना के मन में आया कि अपनी सहेली को असली बात बता दे पर फिर नई दोस्ती होने के कारण चुप रह गई. किंतु अब उस के मन की टीस बढ़ने लगी. हर किसी के बैडरूम के किस्से और मजाक सुन कर उस के मन में अपनी जिंदगी की रिक्तता और भी गहराने लगी थी. खैर, जिंदगी तो अपनी रफ्तार से भागती रहती है. यों ही 6 महीने गुजर गए. आज फिर मोहना ने शुरुआत करने के बारे में सोचा… उसे याद आया कि जब पिछले महीने उस ने विलास के करीब सरक कर अपना हाथ उस की छाती पर रखा था तो कैसे विलास ने बेरुखी से कहा था, ‘‘क्या कर रही हो?’’

‘‘कुछ नहीं,’’ सकुचा कर रह गई थी वह. पर फिर भी उस ने हाथ नहीं हटाया था. धीरे से विलास की बांहों में जब वह आ गई तो उस ने विलास के गाल को चूमा था. विलास असहज हो गया और बोला, ‘‘मोहना, आजकल औफिस में बहुत स्ट्रैस चल रहा है. इस कारण मुझे सिरदर्द भी है. तुम्हें बुरा न लगे तो मैं करवट लेना चाहता हूं,’’ और विलास मोहना की तरफ पीठ फेर कर सो गया था. न जाने कितनी और देर तक मोहना जागी रही थी. सोती भी कैसे, नींद जो पलकों में आने से इंकार कर रही थी. इन बीते दिनों में जब कभी उस ने हिम्मत कर के शुरुआत की तब विलास की तरफ से केवल बेरुखी हाथ लगी. कभी कहता आज बहुत थका हुआ हूं, तो कभी खराब तबीयत का बहाना.

आज फिर मोहना ने कोशिश करने की सोची. उस ने एक बहाना बनाया, ‘‘मेरी पीठ में

आजकल बहुत ड्राईनैस हो रही है, मौसम बदल रहा है न, शायद इसलिए. पर मेरा हाथ पूरी पीठ तक नहीं पहुंच पा रहा. क्या तुम मेरी पीठ पर क्रीम लगा दोगे?’’ कहते हुए मोहना ने अपनी पीठ पर क्रीम लगाने की फरमाइश की और उस की ओर अपनी नंगी पीठ ले कर बैठ गई. स्पर्श में बड़ी ताकत होती है. उसे उम्मीद थी कि क्रीम लगाते हुए शायद विलास का मन उसे बांहों में लेने को हो जाए. विलास ने क्रीम तो लगा दी लेकिन काम पूरा करते ही नजर फेर ली.

वैसे मोहना को विलास से और कोई शिकायत न थी. वह उस का पूरा खयाल रखता. जब कभी वह लेट हो जाता तो डिनर भी बना कर रखता. नाश्ता बनाने में, घर को व्यवस्थित रखने में उस की पूरी सहायता करता. मोहना को लगता जैसे विलास उस से प्यार तो करता है पर कुछ है जो उसे रोक रहा है.

अगले महीने से त्योहार शुरू होने वाले थे. चूंकि ये उन का पहला त्योहार था इसलिए दोनों ने घरवालों के साथ ही त्योहार मनाने का कार्यक्रम बनाया. विलास व मोहना कुछ दिनों के लिए अपने शहर लौटे.

उस शाम मोहना के घरवाले विलास के घर डिनर पर आमंत्रित थे. बातचीत का सिलसिला चल रहा था.

‘‘और बच्चों हमें गुड न्यूज कब सुना रहे हो?’’ विलास की बुआ जो इसी शहर में रहती हैं, भी आई हुई थीं.

‘‘उस के लिए तो इन दोनों को समय से घर आना पड़ेगा, बहनजी,’’ मोहना की मां ने जवाब दिया, ‘‘ये दोनों तो 10 बजे के बाद ही घर में घुसते हैं. मैं ने तो टोका भी मोहना को कि 2-2 शिफ्टों में नौकरी करने की क्या जरूरत?’’

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वह आगे कुछ कहतीं इस से पहले ही किशोरजी बोल पड़े, ‘‘अच्छा ही है न, देर से आएगी, थकी होगी तो बैडरूम में कोई डिमांड भी नहीं करेगी.’’ उन की यह बात जहां सभी को अटपटी लगी वहीं मोना को समझते देर न लगी कि किशोरजी स्थिति से अवगत हैं और उन्होंने फिर भी जानबूझ कर ये रिश्ता करवाया. उस का मन किशोर जी के प्रति घृणा से भर गया. तभी रानी भी बोल पड़ी, ‘‘बच्चे समझदार हैं, जो करना होगा खुद कर लेंगे, हमें कुछ भी बोलने की क्या जरूरत है भला,’’ ओह, तो इस का मतलब रानी भी सब जानती हैं.

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Serial Story: का से कहूं (भाग-4)

उस दिन भी रोज की तरह सब काम यथावत हो रहे थे. विलास की स्कूल बस नहीं आई तो मौसाजी ने उसे स्कूल छोड़ने का प्रस्ताव रखा, ‘‘यह अच्छा हो जाएगा, तुम तो जाते भी उसी तरफ हो,’’ कह किशारेजी आश्वस्त हो गए. लेकिन मौसाजी की नीयत में भारी खोट था. उन्होंने रास्ते में एक फ्लाईओवर के नीचे कोने में गाड़ी रोक ली. फिर उन्होंने विलास के साथ जबरदस्ती की. बेचारे विलास ने बहुत छूटने की कोशिश की पर विफल रहा.

एक बलिष्ठ आदमी के आगे छोटे बच्चे का क्या जोर. इस दुर्घटना ने उस के आत्मविश्वास को बुरी तरह छलनी कर दिया. ऊपर से उसे धमकी भी दी गई कि अगर मुंह खोला तो घर में कोई भी उस की बात का विश्वास नहीं करेगा. मां, अपनी बहन का साथ निभाएगी और पिता से ऐसी गंदी बात वह कह कैसे सकता है. विलास का बालमन घायल हो गया. लेकिन बेदर्दी मौसा को शर्म न आई. उस आदमी ने इस घटना को एक सिलसिला ही बना लिया. अब वह अकसर विलास को स्कूल छोड़ने की पेशकश करने लगा.

मातापिता सोचते कि बच्चा आराम से कार में चला जाएगा और मान लेते. विलास कितना भी मना करता, कभीकभी स्कूल न जाने के लिए बीमार होने का नाटक भी करता पर रानी और किशोरजी उस की एक न सुनते. सोचते अन्य बच्चों की तरह स्कूल न जाने के बहाने बना रहा है. मौसा ने उस के साथ दुष्कर्म करना जारी रखा. विलास अंदर से टूटता जा रहा था. कहे तो किस से कहे? इस कारण पढ़ाई में उस का मन न लगता जिस से स्कूल में उस के नंबर भी गिरने लगे.

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‘‘मम्मीपापा को काउंसलर ने स्कूल बुलाया तो उन्होंने बताया कि मैं अकसर स्कूल न जाने का बहाने बनाता हूं. बातोंबातों में यह बात सामने आई कि मौसाजी मुझे आराम से कार में छोड़ते हैं और मैं फिर भी नानुकुर करता हूं. शायद काउंसलर टीचर को कुछ संदेह हुआ. अगले दिन से उन्होंने अकेले में मेरी काउंसलिंग शुरू कर दी. अब तक इन हादसों को करीब 2 महीने गुजर चुके थे. टीचर के बारबार कुरेदने से मेरे अंदर की घबराहट बाहर आने लगी और एक दिन मैं ने उन्हें सब कुछ बता दिया. उस दिन मैं इतना रोया, इतना रोया कि टीचर भी मेरे साथ रो पड़ी थीं. फिर उन्होंने ही मेरे घर में बताया,’’ कह विलास चुप हो गया.

मोहना सुन्न बैठी थी. उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि विलास के मुंह से वह ऐसी कोई बात सुनेगी. आज उसे समझ आ गया कि विलास का उस के पास न आना और न ही उसे पास आने देने के पीछे क्या कारण है. विलास मनोरूप से घायल है, खास कर संबंध बनाने को ले कर. मोहना, विलास का दर्द समझ सकती थी. आखिर वह उस की जीवनसंगिनी है, विलास ने उसे अपना समझ कर उस से अपना वह दर्द बांटा है जिसे वह कई सालों से अपने मन के किसी कोने में दबाए हुए था.

ऊपर से सब कुछ सही लगता है पर कितनी बार मन के अंदर की परतें रिस रही होती हैं. हम कितनी बार ऐसी खबरें पढ़तेसुनते हैं लेकिन इन का कितना गहरा असर होता होगा बाल मन पर, यह कितनी बार सोचते हैं हम? शायद कभी नहीं. कारण है कि हमारा अपना कोई इन खबरों का हिस्सा नहीं होता न. मोहना को भी आज पहली बार इस वेदना का अंदाजा हुआ था. एक पीडि़त के कथन के बाद वह समझी थी कि यौन शोषण जीवन पर एक काला धब्बा है. तो क्या इस की छाप अमिट है? क्या विलास या इस के जैसे बचपन में हुए हादसों के शिकार अन्य लोग उबर नहीं सकते? मोहना गहरी सोच में पड़ गई.

उस रात मोहना ने विलास का हाथ नहीं छोड़ा. शायद वह बिना बोले ही कहना चाहती थी कि वह उस की तकलीफ में उस के साथ है. आज विलास ने भी अपना हाथ छुड़ाने की चेष्टा नहीं की. अगली सुबह दोनों मुंबई के लिए रवाना हो गए. इस छोटी सी ट्रिप का काफी बड़ा फायदा हुआ था. कम से कम बात की असलियत तो सामने आई. अब मोहना ने ठान लिया कि वह विलास को मानसिक रूप से भी स्वस्थ कर के रहेगी. उस ने इस विषय पर काफी पढ़ना आरंभ कर दिया. जो ज्ञान, जो बात जहां से पता चल सकती थी, उस ने जानना शुरू कर दिया.

काफी कुछ पढ़ने से उसे यह पता चला कि यह एक जटिल मनोदशा होती है जो बड़े होने पर आहत मन में ट्रौमा के रूप में रहती है और यही हो रहा था विलास के साथ. कुछ महीनों के शोषण ने उस की पूरी जिंदगी पर गलत छाप छोड़ दी. मोहना ने पढ़ा कि ऐसी स्थिति से बाहर निकलने में काउंसलिंग काफी सहायक होती है. पहले उस ने एक अच्छी काउंसलर के बारे में पता लगाया. उन से मिली. उन की बातों से उसे आश्वासन मिला कि वह विलास की मदद अवश्य कर सकेंगी. हां, इस में कुछ महीनों का समय लग सकता है. मोहना को अब विलास को काउंसलिंग के लिए तैयार करना था.

‘‘तुम ने कहा था कि यह बात केवल हम दोनों के बीच रहेगी… फिर यह काउंसलिंग? यह गलत है मोहना, तुम ने मेरा विश्वास तोड़ा है,’’ मोहना की बात सुन कर विलास तैश में आ गया.

‘‘नहीं विलास, मैं तुम्हारा विश्वास जीतना चाहती हूं. मुझे ऐसा क्यों लगता है कि तुम किसी पापी के पाप की सजा खुद को देते आ रहे हो. तुम क्यों घुट कर जी रहे हो. आज जमाना खुल कर जीने का है. क्या तुम अपने आसपास नहीं देखते कि लोग स्वयं अपना जीवनसाथी चुन रहे हैं, यहां तक कि समलैंगिक साथी चुनने की आजादी भी मिल गई है. लोग शोषण के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं, रेप विक्टिम्स खुल कर सामने आ रहे हैं, मातापिता बच्चों के साथ हुए दुर्व्यवहार पर गुहार लगा रहे हैं,’’ मोहना पूरी कोशिश कर रही थी. ‘‘ऐसे में तुम बरसों पुरानी दुर्घटना की चादर अपने ऊपर से उतार फेंकने को तैयार नहीं हो. क्यों? क्या डर है तुम्हें? एक बार अपने भय का सामना तो करो. एक बार कोशिश तो करो. मैं वादा करती हूं कि अगर तुम्हें काउंसलिंग पसंद नहीं आई या तुम्हारी तकलीफ बढ़ी तो मैं तुम्हारा साथ दूंगी और एक बार फिर कहती हूं कि यह बात हम दोनों के बीच ही रहेगी.’’

मोहना के मनाने पर विलास काउंसलिंग के कुद सैशंस लेने को तैयार हो गया और पहले कुछ सैशंस में ही विलास ने अनुभव किया कि अपने अंदर जो पीड़ा, जो दर्द, घृणा व छटपटाहट उस ने दबा रखी थी, उस का पहाड़ रेत की तरह ढहने लगा है. धीरेधीरे विलास अपनी मनोचिकित्सक से खुलता गया. जितना उस ने अपनी भावनाएं बांटी, उस की वेदना उतनी ही घटती गई. कुछ महीनों में विलास अपने अंदर एक नयापन, स्फूर्ति और उल्लास अनुभव करने लगा.

कुछ महीनों में काउंसलिंग की अवधि समाप्त हो गई. विलास ने अब अपने भूत को पूरी तरह त्याग दिया. वह खुशी से वर्तमान में जीने लगा. मोहना तो खुश थी ही, क्योंकि उसे सही अर्थों में अपना पति मिल गया. एक और कारण था दोनों की खुशी का उन्हें एकदूसरे में सच्चा हमसफर जो मिल गया था.

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घोंसले के पंछी

घोंसले के पंछी-भाग 3: ऋचा से क्यों पूछे जा रहे थे सवाल

अंकिता सोचने लगी पर उस के मन में दुविधा और शंका के बादल मंडरा रहे थे. बताए या न बताए. मम्मी उस के मन की बात जान गई हैं. कहां तक छिपाएगी? नहीं बताएगी तो उस पर प्रतिबंध लगेंगे. उस ने आगे आने वाली मुसीबतों के बारे में सोचा. उसे लगा कि मां जब इतने प्यार और सहानुभूति से पूछ रही हैं, तो उन को सब कुछ बता देना ही उचित होगा.

अंकिता खुल गई और धीरेधीरे उस ने मम्मी को सारी बातें बता दीं. गनीमत थी कि अभी तक अंकिता ने अपना कौमार्य बचा कर रखा था. लड़के ने कोशिश बहुत की थी, परंतु वह उस के साथ होटल जाने को तैयार नहीं हुई. डर गई थी, इसलिए बच गई. मम्मी ने इतमीनान की गहरी सांस ली और बेटी को सांत्वना दी कि वह सब कुछ ठीक कर देंगी. अगर लड़का तथा उस के घर वाले राजी हुए तो इसी साल उस की शादी कर देंगे.

अंकिता ने बताया था कि वह अपने साथ पढ़ने वाले एक लड़के के साथ प्यार करती है. उस के घरपरिवार के बारे में वह बहुत कम जानती है. वे दोनों बस प्यार के सुनहरे सपने देख रहे हैं. बिना पंखों के हवा में उड़ रहे थे. भविष्य के बारे में अनजान थे. प्रेम की परिणति क्या होगी, इस के बारे में सोचा तक नहीं था. वे बस एकदूसरे के प्रति आसक्त थे. यह शारीरिक आकर्षण था, जिस के कारण लड़कियां अवांछित विपदाओं का शिकार होती हैं.

ऋचा ने आदित्य को सब कुछ बताया. मामला सचमुच गंभीर था. अंकिता अभी नासमझ थी. उस के विचारों में परिपक्वता नहीं थी. उस की उम्र अभी 20 साल थी. वह लड़का भी इतनी ही उम्र का होगा. दोनों का कोई भविष्य नहीं था. वे दोनों बरबादी की तरफ बढ़ रहे थे. उन्हें संभालना होगा.

स्थिति गंभीर थी. ऋचा और आदित्य का चिंतित होना स्वाभाविक था. परंतु ऋचा और आदित्य को कुछ नहीं करना पड़ा. मामला अपनेआप सुलझ गया. संयोग उन का साथ दे रहा था. समय रहते अंकिता को अक्ल आ गई थी. उस की मम्मी की बातों का उस पर ठीक असर हुआ था.

अंकिता ने जब शिवम को बताया कि उस की मम्मी को उस के प्रेम के बारे में सब पता चल गया है तो वह घबरा गया.‘‘इस में घबराने की क्या बात है? मम्मी ने तुम्हारे डैडी का फोन नंबर व पता मांगा है. वह तुम्हारे घर वालों से हमारी शादी की बात करना चाहती हैं.’’

‘‘अरे मर गए, क्या तुम्हारे पापा को भी पता है?’’ उस के माथे पर पसीने की बूंदें छलक आईं.‘‘जरूर पता होगा. मम्मी ने बताया होगा उन को. परंतु तुम इतना परेशान क्यों हो रहे हो? हम एकदूसरे से प्रेम करते हैं, शादी करने में क्या हरज है? कभी न कभी करते ही, कल के बजाय आज सही,’’ अंकिता बहुत धैर्य से यह सब कह रही थी.

‘‘अरे, तुम नहीं समझतीं. यह कोई शादी की उम्र है. मेरे डैडी जूतों से मेरी खोपड़ी गंजी कर देंगे. शादी तो दूर की बात है,’’ वह हाथ मलते हुए बोला.‘‘अच्छा,’’ अंकिता की अक्ल ठिकाने आ रही थी. वह समझने का प्रयास कर रही थी. बोली, ‘‘तुम मुझ से प्रेम कर सकते हो तो शादी क्यों नहीं. प्रेम मांबाप से पूछ कर तो किया नहीं था. अगर वे हमारी शादी के लिए तैयार नहीं होते, तो शादी भी उन से बिना पूछे कर लो. आखिर हम बालिग हैं.’’

‘‘क्या बकवास कर रही हो, शादी कैसे कर सकते हैं?’’ वह झल्ला कर बोला, ‘‘अभी तो हम पढ़ रहे हैं. मांबाप से पूछे बगैर हम इतना बड़ा कदम कैसे उठा सकते हैं?’’‘‘अच्छा, मांबाप से पूछे बगैर तुम जवान कुंआरी लड़की को बरगला सकते हो. उस को झूठे प्रेमजाल में फंसा सकते हो. शादी का झांसा दे कर उस की इज्जत लूट सकते हो. यह सब करने के लिए तुम बालिग हो परंतु शादी करने के लिए नहीं,’’ वह रोंआसी हो गई.

उसे मम्मी की बातें याद आ गईं. सच कहा था उन्होंने कि इस उम्र में लड़कियां अकसर बहक जाती हैं. लड़के उन को बरगला कर, झूठे सपनों की दुनिया में ले जा कर उन की इज्जत से खिलवाड़ करते हैं. शिवम भी तो उस के साथ यही कर रहा था. समय रहते उस की मम्मी ने उसे सचेत कर दिया था. वह बच गई. अगर थोड़ी देर होती तो एक न एक दिन शिवम उस की इज्जत जरूर लूट लेता. कहां तक अपने को बचाती. वह तो उस के लिए पागल थी.

शिवम इधरउधर ताक रहा था. अंकिता ने एक प्रयास और किया, ‘‘तुम अपने घर का पता और फोन नंबर दो. तुम्हारे मम्मीडैडी से पूछ तो लें कि वे इस रिश्ते के लिए राजी हैं या नहीं.’’‘‘क्या शादीशादी की रट लगा रखी है,’’ वह दांत पीस कर बोला, ‘‘हम कालेज में पढ़ने के लिए आए हैं, शादी करने के लिए नहीं.’’

‘‘नहीं, प्यार करने के लिए…’’ अंकिता ने उस की नकल की. वह भी दांत पीस कर बोली, ‘‘तो चलो, नाचेगाएं और खुशियां मनाएं,’’ अब उस की आवाज में तल्खी आ गई थी, ‘‘कमीने कहीं के, तुम्हारे जैसे लड़कों की वजह से ही न जाने कितनी लड़कियां अपनी इज्जत बरबाद करती हैं. मैं ही

बेवकूफ थी, जो तुम्हारे फंदे में फंस गई. थू है तुम पर.. भाड़ में जाओ. सब कुछ खत्म हो गया. अब कभी मेरे सामने मत पड़ना. गैरत हो तो अपना काला मुंह ले कर मेरे सामने से चले जाओ.’’उस दिन शाम को अंकिता जल्दी घर पहुंच गई. बहुत दिनों बाद ऐसा हुआ था. ऋचा और आदित्य ने भेदभरी नजरों से एकदूसरे की तरफ देखा. अंकिता चुपचाप अपने कमरे में चली गई थी. आदित्य ने ऋचा को इशारा किया. वह पीछेपीछे अंकिता के कमरे में पहुंची. आदित्य भी बाहर आ कर खड़े हो गए थे.

‘‘आज बहुत जल्दी आ गईं बेटी,’’ ऋचा अंकिता से पूछ रही थी.‘‘हां मम्मी, आज मैं अपने मन का बोझ उतार कर आई हूं. बहुत हलका महसूस कर रही हूं,’’ फिर उस ने एकएक बात मम्मी को बता दी.

मम्मी ने उसे गले से लगा लिया. उसे पुचकारते हुए बोलीं, ‘‘बेटी, मुझे तुम पर गर्व है. तुम्हारी जैसी बेटी हर मांबाप को मिले.’’‘‘मम्मी यह सब आप की समझदारी की वजह से हुआ है. समय रहते आप ने

मुझे संभाल लिया. मैं आप की बात समझ गई और पतन के गर्त में जाने से बच गई. आप थोड़ा सी देर और करतीं तो मेरी बरबादी हो चुकी होती. मैं आप से वादा करती हूं कि मन लगा कर पढ़ाई करूंगी. आप की नसीहत और मार्गदर्शन से एक अच्छी बेटी बन कर दिखाऊंगी.’’

‘‘हां बेटी, तुम्हारे सिवा हमारा और कौन है? तुम चली जातीं तो हमारे जीवन में क्या बचता?’’‘‘मम्मी, ऐसा क्यों कह रही हैं? मैं आप के साथ हूं और भैयाभाभी भी तो हैं.’’ऋचा ने अफसोस से कहा, ‘‘वे अब हमारे कहां रहे? हम ने एकदूसरे को नहीं समझा और वे हम से दूर हो गए.’’

‘‘ऐसा नहीं है मम्मी, वे पहले भी हमारे थे और आज भी हमारे हैं.’’ ‘‘ये क्या कह रही हो तुम?’’‘‘मम्मी, मैं आप को राज की बात बताती हूं. भैया और भाभी से मैं रोज बात करती हूं. भाभी खुद फोन करती हैं. मैं ने उन्हें देखा नहीं है परंतु वे बातें बहुत प्यारी करती हैं. वे हम सब को देखना चाहती हैं. भैया तो एक दिन भी बिना मुझ से बात किए नहीं रह सकते. वे और भाभी यहां आना चाहते हैं लेकिन डैडी से डरते हैं, इसीलिए नहीं आते. मम्मी, आप एक बार…सिर्फ एक बार उन से कह दो कि आप ने उन्हें माफ किया, वे दौड़ते हुए आएंगे.’’

‘‘सच…’’ ऋचा ने उसे अपने सीने से लगा लिया, ‘‘बेटी, आज तू ने मुझे दोगुनी खुशी दी है,’’ वह खुशी से विह्वल हुई जा रही थी.‘‘हां, मम्मी, आप उन्हें फोन तो करो,’’ अंकिता चहक रही थी, ‘‘मैं भाभी से मिलना चाहती हूं.’’

‘‘अभी करती हूं. पहले उन को बता दूं. सुन कर वे भी खुशी से पागल हो जाएंगे. हम लोगों ने न जाने कितनी बार उन को बुलाने के बारे में सोचा. बस हठधर्मिता में पड़े रहे. बेटे के सामने झुकना नहीं चाहते थे परंतु आज हम बेटे के लिए और उस की खुशी के लिए छोटे बन जाएंगे. उसे फोन करेंगे.’’

वह बाहर जाने के लिए मुड़ी. कमरे के बाहर खड़े आदित्य अपनी आंखों से आंसू पोंछ रहे थे. आज उन्हें खोई हुई खुशी मिल रही थी. बेटी भी वापस अंधेरी गलियों में भटकने से बच गई थी. वह सहीसलामत घर लौट आई थी. बेटा भी मिल गया था. आज उन की हठधर्मिता टूट गई थी. उन्हें अपनी गलती का एहसास हो चुका था.

ऋचा ने आदित्य को बाहर खड़े देखा. वे समझ गईं कि अब कुछ कहने की जरूरत नहीं थी. वे सब सुन चुके थे. उन के पास जा कर भरे गले से बोली, ‘‘चलिए, बेटे को फोन कर दें और बहू के स्वागत की तैयारी

करें. आज हमें दोगुनी खुशी मिल रही है.ऐसा लग रहा है, जैसे घोंसले के पंछी वापस आ गए हैं. अब हमारा आशियाना वीरान नहीं रहेगा.’’ ‘‘हां, ऋचा,’’ आदित्य ने उसे बांहों के घेरे में लेते हुए कहा, ‘‘घोंसले के पंछी घोंसले में ही रहते हैं, डाल पर नहीं. प्रतीक को वापस आना ही था. हमारी बगिया के फूल यों ही हंसतेमुसकराते रहें. उन की सुगंध चारों ओर फैले और वे अपनी महक से सब के जीवन को गुलजार कर दे.

घोंसले के पंछी-भाग 2: ऋचा से क्यों पूछे जा रहे थे सवाल

‘‘मम्मी, आप समझने की कोशिश कीजिए. बच्चे ही मांबाप का सपना होते हैं. अगर मैं खुश हूं तो आप के सपने साकार हो जाएंगे, वरना सब बेकार है.’’

‘‘बेकार तो वैसे भी सब कुछ हो चुका है. मैं बंसलजी को क्या मुंह दिखाऊंगा?’’ आदित्य ने पहली बार मुंह खोला, ‘‘उन के साथसाथ सारे नातेरिश्तेदार हैं. वे भी अलगथलग पड़ जाएंगे.’’

‘‘कोई किसी से अलग नहीं होता. आप धूमधाम से शादी आयोजित करें. रिश्तेदार 2 दिन बातें बनाएंगे, फिर भूल जाएंगे. प्रेमविवाह अब असामान्य नहीं रहे,’’ प्रतीक ने बहुत धैर्य से अपनी बात कही.

‘‘बेटे, तुम नहीं समझोगे. हम वैश्य हैं और हमारे समाज ने इस मामले में आधुनिकता की चादर नहीं ओढ़ी है. कितने लोग तुम्हारे लिए भागदौड़ कर रहे हैं. अपनी बेटी का विवाह तुम्हारे साथ करना चाहते हैं. जिस दिन पता चलेगा कि तुम ने गैर जाति की लड़की से शादी कर ली है, वे हमें समाज से बहिष्कृत कर देंगे. तुम्हारी छोटी बहन की शादी में तमाम अड़चनें आएंगी.’’

‘‘उस का भी प्रेमविवाह कर देना,’’ प्रतीक ने सहजता से कह दिया. परंतु आदित्य और ऋचा के लिए यह सब इतना सहज नहीं था.

‘‘बेटे, एक बार तुम अपने निर्णय पर पुनर्विचार करो. शायद तुम्हारा निश्चय डगमगा जाए. हम उस से सुंदर लड़की तुम्हारे लिए ढूंढ़ कर लाएंगे.’’

प्रतीक हंसा, ‘‘मम्मी, यह मेरा आज का फैसला नहीं है. पिछले 3 सालों से हम दोनों का यही फैसला है. अब यह बदलने वाला नहीं. आप अपने बारे में बताएं. आप हमारी शादी करवाएंगे या हम स्वयं कर लें.’’

किसी ने प्रतीक की बात का जवाब नहीं दिया. वे अचंभित, भौचक और ठगे से बैठे थे. वे सभ्य समाज के लोग थे. लड़ाईझगड़ा कर नहीं सकते थे. बातों के माध्यम से मामले को सुलझाने की कोशिश की परंतु वे दोनों न तो प्रतीक को मना पाए, न प्रतीक के निर्णय से सहमत हो पाए. प्रतीक अगले दिन बेंगलूरु चला गया. बाद में पता चला, उस ने न्यायालय के माध्यम से अपनी प्रेमिका से शादी कर ली थी.

वे दोनों जानते थे कि प्रतीक ने भले अपनी मरजी से शादी की थी. परंतु वह उन के मन से दूर नहीं हुआ था. बस उन का अपना हठ था. उस हठ के चलते अभी तक बेटे से संपर्क नहीं किया था. बेटे ने पहले एकदो बार फोन किया था. आदित्य और ऋचा ने उस से बात की थी, हालचाल भी पूछा परंतु उस को दिल्ली आने के लिए कभी नहीं कहा. फिर बेटे ने उन को फोन करना बंद कर दिया.

अब शायद वह हठ टूटने वाला था. अंकिता के साथ वह पहले वाली गलती नहीं दोहराना चाहते थे.

आदित्य ने शांत भाव से कहा, ‘‘ऋचा, हमें बहुत समझदारी से काम लेना होगा. लड़की का मामला है. प्रेम के मामले में लड़कियां बहुत नासमझी और भावुकता से काम लेती हैं. अगर उन्हें लगता है कि मांबाप उन के प्रेम का विरोध कर रहे हैं, तो बहुत गलत कदम उठा लेती हैं. या तो वे घर से भाग जाती हैं या आत्महत्या कर लेती हैं. हमें ध्यान रखना है कि अंकिता ऐसा कोई कदम न उठा ले.’’

ऋचा बेचैन हो गई, ‘‘क्या करें हम?’’

‘‘कुछ करने की आवश्यकता नहीं है, बस उस से बात करो. उस की सारी बातें ध्यान से सुनो. उस के मन को समझने का प्रयास करो. शायद हम उस की मदद कर सकें. अगर वह समझ गई तो बहकने से बच जाएगी. उस के पैर गलत रास्ते पर नहीं पड़ेंगे. ये रास्ते बहुत चिकने होते हैं. फिसलने में देर नहीं लगती.’’

‘‘ठीक है,’’ ऋचा ने आश्वस्त हो कर कहा.

ऋचा ने देर नहीं की. जल्दी ही मौका निकाला. अंकिता से बात की. वह अपने कमरे में थी. ऋचा ने कमरे में घुसते ही पूछा, ‘‘बेटा, क्या कर रही हो?’’

अंकिता हड़बड़ा कर खड़ी हो गई. वह बिस्तर पर लेटी मोबाइल पर किसी से बातें कर रही थी. अंकिता के चेहरे के भाव बता रहे थे, जैसे वह चोरी करते हुए पकड़ी गई थी. ऋचा सब समझ गई, परंतु उस ने धैर्य से कहा, ‘‘बेटा, तुम्हारी पढ़ाई कैसी चल रही है?’’

अंकिता बी.ए. के दूसरे साल में थी.

‘‘ठीकठाक चल रही है,’’ अंकिता ने अपने को संभालते हुए कहा. उस की आंखें फर्श की तरफ थीं.

वह मां की तरफ देखने का साहस नहीं जुटा पा रही थी.

अंकिता जिन मनोभावों से गुजर रही थी, ऋचा समझ सकती थी. उस ने बेटी को पलंग पर बैठाते हुए कहा, ‘‘बैठो और मेरी बात ध्यान से सुनो.’’

वह भी बेटी के साथ पलंग पर एक किनारे बैठ गई. उसे लग रहा था किसी लागलपेट की जरूरत नहीं, मुझे सीधे मुद्दे पर आना होगा.

अंकिता का हृदय तेजी से धड़क रहा था. पता नहीं क्या होने वाला था? मम्मी क्या कहेंगी उस से? उस की कुछ समझ में नहीं आ रहा था परंतु उस के मन में अपराधबोध था. मम्मी ने उसे फोन करते हुए देख लिया था.

ऋचा ने सीधे वार किया, ‘‘बेटी, मैं तुम्हारी मनोदशा समझ रही हूं. मैं तुम्हारी मां हूं. इस उम्र में सब को प्रेम होता है,’’ प्रेम शब्द पर ऋचा ने अधिक जोर दिया, ‘‘तुम्हारे साथ कुछ नया नहीं हो रहा है. परंतु बेटी, इस उम्र में लड़कियां अकसर बहक जाती हैं. लड़के उन को बरगला कर, झूठे सपनों की दुनिया में ले जा कर उन की इज्जत से खिलवाड़ करते हैं. बाद में लड़कियों के पास बदनामी के सिवा कुछ नहीं बचता. वे बदनामी का दाग ले कर जीती हैं और मन ही मन घुलती रहती हैं.’’

अंकिता का दिल और जोर से धड़क उठा.

‘‘बेटी, अगर तुम्हारे साथ ऐसा कुछ हो रहा है, तो हमें बताओ. हम नहीं चाहते तुम्हारे कदम गलत रास्ते पर पड़ें. तुम नासमझी में कुछ ऐसा न कर बैठो, जो तुम्हारी बदनामी का सबब बने. अभी तुम्हारी पढ़ाई की उम्र है लेकिन यदि तुम्हारे साथ प्रेम जैसा कोई चक्कर है, तो हम शादी के बारे में भी सोच सकते हैं. तुम खुल कर बताओ, क्या वह लड़का तुम्हारे साथ शादी करना चाहता है? वह तुम को ले कर गंभीर है या बस खिलवाड़ करना चाहता है.’’

घोंसले के पंछी- भाग 1: ऋचा से क्यों पूछे जा रहे थे सवाल

आदित्य गुमसुम से खड़े थे. पत्नी की बात पर उन्हें विश्वास नहीं हुआ. वे शब्दों पर जोर देते हुए बोले, ‘‘क्या तुम सच कह रही हो ऋचा?’’

‘‘पहले मुझे विश्वास नहीं था लेकिन मैं एक नारी हूं, जिस उम्र से अंकिता गुजर रही है उस उम्र से मैं भी गुजर चुकी हूं. उस के रंगढंग देख कर मैं समझ गई हूं कि दाल में कुछ काला है.’’

आदित्य की आंखों में एक सवाल था, ‘वह कैसे?’

ऋचा उन की आंखों की भाषा समझ गई. बोली, ‘‘सुबह घर से जल्दी निकलती है, शाम को देर से घर आती है. पूछने पर बताया कि टाइपिंग क्लास जौइन कर ली है. इस की उसे जरूरत नहीं है. उस ने इस बारे में हम

से पूछा भी नहीं था. घर में भी अकेले रहना पसंद करती है, गुमसुम सी रहती है. जब देखो, अपना मोबाइल लिए कमरे में बंद रहती है.’’

‘‘उस से बात की?’’

‘‘अभी नहीं, पहले आप को बताना उचित समझा. लड़की का मामला है. जल्दबाजी में मामला बिगड़ सकता है. एक लड़का हम खो चुके हैं, अब लड़की को खो देने का मतलब है पूरे संसार को खो देना.’’

आदित्य विचारों के समुद्र में गोता लगाने लगे. यह कैसी हवा चली है. बच्चे अपने मांबाप के साए से दूर होते जा रहे हैं. वयस्क होते ही प्यार की डगर पर चल पड़ते हैं, फिर मांबाप की मरजी के बगैर शादी कर लेते हैं. जैसे चिडि़या का बच्चा पंख निकलते ही अपने जन्मदाता से दूर चला जाता है, अपने घोंसले में कभी लौट कर नहीं आता, उसी प्रकार आज की पीढ़ी के लड़के तथा लड़कियां युवा होने से पहले ही प्यार के संसार में डूब जाते हैं. अपनी मरजी से शादी करते हैं और अपना घर बसा कर मांबाप से दूर चले जाते हैं.

आदित्य और ऋचा के एकलौते पुत्र ने भी यही किया था. आज वे दोनों अपने बेटे से दूर थे और बेटा उन की खोजखबर नहीं लेता था. इस में गलती किस की थी? आदित्य की, उन की पत्नी की या उन के बेटे की कहना मुश्किल था.

आदित्य ने पहले ध्यान नहीं दिया था, इस के बारे में सोचा तक नहीं था परंतु आज जब उन की एकलौती बेटी भी किसी के प्यार में रंग चुकी है, किसी के सपनों में खोई है, तो वे विगत और आगत का विश्लेषण करने पर विवश हैं.

प्रतीक एम.बी.ए. कर चुका था. बेंगलूरु की एक बड़ी कंपनी में मैनेजर था. एम.बी.ए. करते समय ही उस का एक लड़की से प्रेम हुआ था. तब तक उस ने घर में बताया नहीं था. नौकरी मिलते ही मांबाप को अपने प्रेम से अवगत कराया. आदित्य और ऋचा को अच्छा नहीं लगा. वह उन का एकलौता बेटा था. उन के अपने सपने थे. हालांकि वे आधुनिक थे, नए जमाने के चलन से भी वाकिफ थे परंतु भारतीय मानसिकता बड़ी जटिल होती है.

हम पढ़लिख कर आधुनिक बनने का ढोंग करते हैं, नए जमाने की हर चीज अपना लेते हैं, परंतु हमारी मानसिकता कभी नहीं बदलती. हमारे बच्चे किसी के प्रेम में पड़ें, वे प्रेमविवाह करना चाहें, हम इसे बरदाश्त नहीं कर पाते. अपनी जवानी में हम भी वही करते हैं या करना चाहते हैं परंतु हमारे बच्चे जब वही सब करने लगते हैं, तो सहन नहीं कर पाते हैं. उस का विरोध करते हैं.

प्रतीक उन का एकलौता बेटा था. वे धूमधाम से उस की शादी करना चाहते थे. वे उसे कामधेनु गाय समझते थे. उस की शादी में अच्छा दहेज मिलता. इसी उम्मीद में अपने एक रिश्तेदार से उस की शादी की बात भी कर रखी थी. मामला एक तरह से पक्का था. मांबाप यहीं पर गलती कर जाते हैं. अपने जवान बच्चों के बारे में अपनी मरजी से निर्णय ले लेते हैं. उन को इस से अवगत नहीं कराते. बच्चों की भावनाओं का उन्हें खयाल नहीं रहता. वे अपने बच्चों को एक जड़ वस्तु समझते हैं, जो बिना चूंचपड़ किए उन की हर बात मान लेंगे. परंतु जब बच्चे समझदार हो जाते हैं तब वे अपने जीवन के बारे में वे खुद निर्णय लेना पसंद करते हैं. वे अपना जीवन अपने तौर पर जीना चाहते हैं.

जब प्रतीक ने अपने प्यार के बारे में उन्हें बताया तो उन के कान खड़े हुए. चौंकना लाजिमी था. बेटे पर वे अपना अधिकार समझते थे. आदित्य और ऋचा ने पहले एकदूसरे की तरफ देखा, फिर प्रतीक की तरफ. वह एक हफ्ते की छुट्टी ले कर आया था. मांबाप से अपनी शादी के बारे में बात करने के लिए. प्रेम उस ने अवश्य किया था परंतु वह उन की सहमति से शादी करना चाहता था. अगर वे मान जाते तो ठीक था, अगर नहीं तब भी उस ने तय कर रखा था कि अपनी पसंद की लड़की से ही शादी करेगा. जिस को प्यार किया था, उसे धोखा नहीं देगा. मांबाप माने या न मानें.

ऋचा ने ही बात का सिरा पकड़ा था, ‘‘परंतु बेटे, हम ने तो तुम्हारी शादी के बारे में कुछ और ही सोच रखा है.’’

‘‘अब वह बेकार है. मैं ने अपनी पसंद की लड़की देख ली है. वह मेरे अनुरूप है.

हम दोनों ने एकसाथ एम.बी.ए. किया था. अब साथ ही नौकरी भी कर रहे हैं, साथ ही जीवन व्यतीत करेंगे.’’

‘‘परंतु हमारे सपने…’’ ऋचा ने प्रतिवाद करने की कोशिश की परंतु प्रतीक की दृढ़ता के सामने वह कमजोर पड़ गईं. ऋचा की आवाज में कोई दम नहीं था. उसे लगा, वह हार जाएगी.

बेचारी-भाग 1: मधु किसके बारे में सोचकर परेशान थी

बेचारी कामना, ‘बेचारी’ शब्द सुनसुन कर उस का मन भर गया था. कभीकभी तो वह गुस्से और क्षोभ से रो भी पड़ती थी लेकिन अनायास ही अरुण द्वारा उस के साथ विवाह प्रस्ताव रखे जाने पर बेचारी कहने वालों के मुंह बंद हो गए.

‘बेचारी कामना’, जैसे ही कामना वाशबेसिन की ओर गई, मधु बनावटी दुख भरे स्वर में बोली. दोपहर के भोजन के लिए समीर, विनय, अरुण, राधा आदि भी वहीं बैठे थे.

‘‘क्यों, क्या हुआ?’’ समीर, विनय या अरुण में से किस ने प्रश्न किया, कामना यह अंदाजा नहीं लगा पाई. मधु सोच रही थी कि उस का स्वर कामना तक नहीं पहुंच रहा था या यह जानबूझ कर ही उसे सुनाना चाहती थी.

‘‘आज फिर वर पक्ष वाले उसे देखने आ रहे हैं,’’ मधु ने बताया.

‘‘तो इस में ‘बेचारी’ वाली क्या बात है?’’ प्रश्न फिर पूछा गया.

‘‘तुम नहीं समझोगे. 2 छोटे भाई और 2 छोटी बहनें और हैं. कामना के पिता पिछले 4 वर्षों से बिस्तर पर हैं…यही अकेली कमाने वाली है.’’

‘‘फिर यह वर पक्ष का झंझट क्यों?’’

‘‘मित्र और संबंधी कटाक्ष करते हैं तो इस की मां को बुरा लगता है. उन का मुंह बंद करने के लिए यह तामझाम किया जाता है.

‘‘इन की तमाम शर्तों के बावजूद यदि लड़के वाले ‘हां’ कर दें तो?’’

‘‘तो ये लोग मना कर देंगे कि लड़की को लड़का पसंद नहीं है,’’ मधु उपहास भरे स्वर में बोली.

‘‘उफ्फ बेचारी,’’ एक स्वर उभरा.

‘‘ऐसे मातापिता भी होते हैं?’’ दूसरा स्वर सुनाई दिया.

कामना और अधिक न सुन सकी. आंखों में भर आए आंसू पोंछने के लिए मुंह धोया. तरोताजा हुई और पुन: उसी कक्ष में जा बैठी. उसे देखते ही उस की चर्चा को पूर्णविराम लग गया.

कामना सोचने लगी कि इन सब को अपने संबंध में चर्चा करने का अवसर भी तो उस ने ही दिया था. यदि उस के मन की कटुता मधु के सामने बह न निकली होती तो उसे कैसे पता चलता. मधु को दोष देने से भी क्या लाभ? जब वह स्वयं बात अपने तक सीमित न रख सकी तो मधु से ही ऐसी आशा क्यों?

भोजन का समय समाप्त होते ही कामना अपने स्थान पर जा बैठी. पर कार्य निबटाते हुए भी मन का अनमना भाव वैसे  ही बना रहा.

कामना बस की प्रतीक्षा कर रही थी कि अचानक परिचित स्वर सुनाई दिया, ‘‘आज आप के बारे में जान कर दुख हुआ.’’

चौंक कर वह पलटी तो देखा, अरुण खड़ा था.

‘‘जी?’’ कामना ने क्रोध भरी नजरों से अरुण की ओर देखा.

‘‘मधु बता रही थी कि आप के पिताजी बहुत बीमार हैं, इसलिए घर का सारा भार आप के ही कंधों पर है,’’ अरुण बोला.

‘‘जी, हां,’’ कामना ने नजरें झुका लीं.

‘‘क्या बीमारी है आप के पिताजी को?’’

‘‘पक्षाघात.’’

‘‘अरे…’’ अरुण ने सहानुभूति दिखाई तो कामना का मन हुआ कि धरती फट जाए और वह उस में समा जाए.

‘‘क्या कहा डाक्टर ने?’’ कामना अपने ही विचारों में खोई थी कि अरुण ने फिर पूछा.

‘‘जी…यही कि अपना दुखड़ा कभी किसी के सामने नहीं रोना चाहिए, नहीं तो व्यक्ति उपहास का पात्र बन जाता है,’’ कामना गुस्से से बोली.

‘‘शायद आप को बुरा लगा… विश्वास कीजिए, आप को चोट पहुंचाने का मेरा कोई इरादा नहीं था. कभीकभी दुख बांट लेने से मन हलका हो जाता है,’’ कहता हुआ अरुण अपनी बस को आते देख कर उस ओर बढ़ गया.

कामना घर पहुंची तो पड़ोस की रम्मो चाची बैठी हुई थीं.

‘‘अब तुम से क्या छिपाना, रम्मो. कामना की बात कहीं बन जाए तो हम भी बेफिक्र हो जाएं. फिर रचना का भी तो सोचना है,’’ कामना की मां उसे और रम्मो चाची को चाय का प्याला पकड़ाते हुए बोलीं.

‘‘समय आने पर सब ठीक हो जाएगा. यों व्यर्थ ही परेशान नहीं होते, सुमन,’’ रम्मो चाची बोलीं.

‘‘घबराऊं नहीं तो क्या करूं? न जाने क्यों, कहीं बात ही नहीं बनती. लोग कहते हैं कि हम कमाऊ बेटी का विवाह नहीं करना चाहते.’’

‘‘क्या कह रही हो, सुमन. कौन कह रहा था? हम क्या जानते नहीं कि तुम कामना के लिए कितनी परेशान रहती हो…आखिर उस की मां हो,’’ रम्मो चाची बोलीं.

‘‘वही नुक्कड़ वाली सरोज सब से कहती घूमती है कि हम कामना का विवाह इसलिए नहीं करना चाहते कि उस के विवाह के बाद हमारे घर का खर्च कैसे चलेगा और लोग भी तरहतरह की बातें बनाते हैं. इस बार कामना का विवाह तय हो जाए तो बातें बनाने वालों को भी मुंहतोड़ जवाब मिल जाए.’’

कहने को तो सुमन कह गईं, किंतु बात की सचाई से उन का स्वर स्वयं ही कांप गया.

‘‘यों जी छोटा नहीं करते, सुमन. सब ठीक हो जाएगा.’’

तभी कामना का छोटा भाई आ गया और रम्मो चाची उठ कर चली गईं.

सुमन कुछ देर तक तो पुत्र द्वारा लाई गई मिठाई, नमकीन आदि संभालती रहीं कि तभी उन का ध्यान गुमसुम कामना की ओर गया, ‘‘क्या है, कामना? स्वप्न देख रही हो क्या? सामने रखी चाय भी ठंडी हो गई.’’

‘‘स्वप्न नहीं, यथार्थ देख रही हूं, मां. वह कड़वा यथार्थ जो न चाहने पर भी बारबार मेरे सम्मुख आ खड़ा होता है,’’ कामना दार्शनिक अंदाज में बोली.

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