Writer- भावना ठाकर ‘भावु’
आज हलकीहलकी बारिश और खुशनुमा मौसम ने अभिनय के मिजाज को रोमांटिक बना दिया. अभिनय ने अपनी पत्नी संगीता की कमर में हाथ डालते हुए ‘टिपटिप बरसा पानी, पानी ने आग लगाई…’ गाना गुनगुनाते थोड़ा रोमांस करना चाहा.
मगर ‘‘हटिए भी… जब देखो आप को बस रोमांस ही सू?ाता है,’’ कह कर नीरस और ठंडे मिजाज वाली संगीता ने अभिनय का हाथ ?ाटक कर उसे खुद से अलग कर दिया. अभिनय आहत होते चुपचाप बैडरूम में चला गया और म्यूजिक सिस्टम पर गुलाम अली खान साहब की गजलें सुनते व्हिस्की का पैग बनाने लगा. एक पैग पीने के पश्चात अभिनय ने आंखें बंद कर लीं और गजल सुनने लगा…
‘‘चुपकेचुपके रातदिन आंसू बहाना याद है, हम को अब तक आशिकी का वो जमाना याद है…’’
गुलाम अली साहब की गहरी आवाज में गजल चल रही हो तो कोई नीरस इंसान ही होगा जिसे जवानी के मस्ती भरे दिन और इश्क का रंगीन जमाना याद न आए. अभिनय को भी वह जमाना याद आ गया जब शीतल के साथ पहली बार लिव इन रिलेशनशिप में रहने लगा था. भरपूर जवानी थी, जोश था और पहलेपहले इश्क का सुरूर था ऊपर से बैंगलुरु की हवाओं में गजब का खुमार था.
अभिनय का मन अतीत की गलियों में आवाजाही करने लगा कि शीतल के साथ बिताया हुआ हर लमहा मु?ो रोमांटिक बना देता था. कहां संगीता ठंडे चूल्हे सी जब प्यार करने जाता हूं तब हटिए कह कर पूरे मूड का सत्यानाश कर देती है. कहां अपने नाम से विपरित मिजाज रखने वाली लबालब उड़ते शोले जैसी शीतल, जो अभिनय के हलके स्पर्श पर धुआंधार बरस पड़ती थी. जब दोनों एकदूसरे में खो जाते थे तो शीतल के अंगअंग में इतना नशा होता था कि उस नशे में मैं पूरी तरह डूब जाता था. शीतल बालों में उंगलियां घुमाती थी और मैं नींद की आगोश में सो जाता था. उस के साथ समय बिताने में हर पल मु?ो एक नया अनुभव होता था और हर बार नया आकर्षण.
शीतल अभिनय का प्यार पा कर कहती, ‘‘अभि, तुम से मु?ो बहुत संतुष्टि मिलती है. ऐसा लगता है जैसे मैं ने स्वर्ग का सुख पा लिया हो. कभी मेरा साथ मत छोड़ना. तुम्हारे बिना मैं जी नहीं पाऊंगी.’’
अभिनय की आंखें भर आईं. सोचने लगा कि शीतल से अलग हो कर अकेला रह कर मैं ने 1-1 पल उसे ही याद कर कर के जीया है. क्या शीतल भी मु?ो याद करती होगी?
अभिनय के खयालों की जंजीरों को तोड़ते पीछे से संगीता ने अनमने लहजे में पूछा, ‘‘खाना लगा दूं या बाद में खाएंगे? मु?ो नींद आ रही है. बाद में खाना है तो खुद परोस लेना,’’ और अभिनय का जवाब सुने बिना ही संगीता सोने के लिए चली गई.
इसी बात से जुड़ा कोई वाकेआ अभिनय को याद आ गया. ‘मु?ो भूल नहीं जाना’ कहने पर शीतल का अपनी कसम दे कर अपने हाथों से खाना खिलाना याद आते ही अभिनय अतीत की गलियों में पहुंच गया…
आईटी इंजीनियरिंग पास करते ही अभिनय को बैंगलुरु में एक अमेरिकन कंपनी में अच्छी जौब मिल गई. एक साल अच्छे से बीत गया. घर से मांपापा बारबार फोन पर जोर डाल कर कहते कि अभि अब तो तू सैटल हो गया है शादी के लिए हां कर दे तो लड़कियां देखना शुरू करें लेकिन अभिनय को फिलहाल बैचलर लाइफ ऐंजौय करनी थी तो हर बार बहाना बना कर टाल देता.
एक दिन कंपनी में शीतल नाम की नई लड़की ने जौइन किया. देखने में हीरोइन की टक्कर की. गोरा रंग, छरहरा बदन, कर्ली हेयर, बादामी आंखें किसी भी लड़के को घायल करने वाले सारी भावभंगिमाओं की मालकिन शीतल
को पाने के सपने औफिस के सारे लड़के देखने लगे. शीतल की नजर में आने के लिए हरकोई पापड़ बेलने लगा. मगर शीतल किसी को भाव नहीं देती. एक अभिनय ऐसा था जो अपने काम से मतलब रखता. उस की शीतल को पाने में
कोई दिलचस्पी नहीं थी. अभिनय शीतल को रिझाने के लिए न कोई हथकंडा अपनाता न बगैर काम के बात करता और अभिनय का यही ऐटिट्यूड शीतल को घायल कर गया.
देखने में अभिनय भी बांका जवान था. 6 फुट लंबा, हलका
डार्क रंग, घुंघराले बाल और फ्रैंच कट दाढ़ी में कहर ढाता कामदेव का रूप
लगता था. शीतल जैसी तेजतर्रार लड़की के
जेहन में बस गया. हर छोटीबड़ी बात के लिए अभिनय की सलाह लेने शीतल जानबू?ा कर
पहुंच जाती.
आहिस्ताआहिस्ता 2 जवां दिल एकदूसरे से आकर्षित होते करीब आने लगे. अब तो औफिस के बाद अभिनय और शीतल कभी मूवी देखने, कभी पिकनिक, कभी शौपिंग तो कभी डिनर के लिए निकल जाते. बैंगलुरु की हर फेमश जगह दोनों प्रेमियों के मिलन की गवाह बन गई.
एक दिन शीतल ने कहा, ‘‘अभि, मु?ो
2 दिन में पीजी छोड़ना होगा क्योंकि जहां में
रहती हूं वह बिल्डिंग रिडैवलपमैंट में जा रही है इसलिए रूम खाली करवा रहे हैं. अब इतने शौर्ट टाइम में कैसे मैनेज होगा. क्या तुम कुछ कर सकते हो?’’
अभिनय ने कहा, ‘‘बुरा न मानो तो एक
बात कहूं?’’
शीतल ने कहा, ‘‘यार… येह औपचरिकता मत करो सीधा बोल दो इतना हक तो मैं तुम्हें दे चुकी हूं.’’
अभिनय ने शीतल का हाथ अपने हाथ में ले कर कहा, ‘‘जब दोनों एक ही मंजिल के मुसाफिर हैं तो क्यों न एक छत के नीचे रैन बसेरा करें. मैं जिस फ्लैट में रहता हूं वह काफी बड़ा है. आ जाओ अपना सारा सामान ले कर मेरे घर में. आजकल हरकोई लिव इन रिलेशनशिप में रहता है. इस से एक बात और भी होगी कि हम दोनों को एकदूसरे को अच्छे से जानने का मौका भी मिल जाएगा और कंपनी भी बनी रहेगी. पर अगर तुम चाहो तो.’’
शीतल खुशी से उछलते हुए बोली, ‘‘अरे नेकी और पूछपूछ, मैं कल ही बोरियाबिस्तर उठा कर आ रही हूं तुम्हारी सियासत पर कब्जा करने.’’
दूसरे दिन संडे था तो दोनों ने मिलकर
सारा सामान सेट कर लिया. दोनों खुश थे. शुरुआत में साथसाथ रहते हुए दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगा. अभिनय शीतल की हर जरूरत पर जान छिड़कता था. अब तो औफिस भी साथसाथ आनाजाना होता. दोनों एकदूसरे का साथ पा कर बेहद खुश थे. दोनों ने अपने आने वाले भविष्य तक की प्लानिंग बना ली. कितना समय लिव इन में रहेंगे, कब शादी करेंगे और कब फैमिली प्लानिंग होगी सब फिक्स हो गया. दोनों को लगने लगा कि अपनीअपनी तलाश पूरी हो गई. जीवनसाथी के रूप में जैसी कल्पना की थी वैसा ही पार्टनर मिल गया. मानसिक तौर पर दोनों ने एकदूसरे को भावी पतिपत्नी के रूप में भी स्वीकार कर लिया. अब दोनों बिंदास एकदूसरे पर हक जताते प्यार करने लगे.
रोज औफिस से आने के बाद शीतल
कौफी बनाती और दोनों बालकनी में बैठ कर आराम से लुत्फ उठाते. आहिस्ताआहिस्ता
2 बिस्तर सिंगल में तबदील हो गए. शीतल की मुसकान पर फिदा होते अभिनय शीतल को कमर से पकड़ कर अपनी ओर खींचता और अपने अंगारे जैसे लब शीतल के लबों पर रख देता. उस स्पर्श की कशिश से उन्मादित हो शीतल जंगली बिल्ली की तरह अभिनय पर प्रेमिल हमला करते लिपट जाती और फिर दोनों एकदूसरे पर मेघ जैसे बरस जाते.
शीतल अभिनय के घुंघराले बालों में उंगलियों को घुमाते अभिनय का चेहरा चूम
लेती उस पर अभिनय शीतल को बांसुरी सा उठा कर तन से लगा लेता. यों दोनों ने प्रिकौशंस के साथ कई बार शारीरिक संबंध की सारी हदें पार कर लीं.
मगर कहते हैं न कि ‘दूर से पर्वत सुहाने’ कभीकभार मिलना हमेशा लुभाता है लेकिन साथ रह कर जब एकदूसरे की कमियां और खूबियां पता चलती है तब असल में प्रेम की सही परख होती है. किसी भी चीज में तुष्टिगुण का नियम लागू होता ही है. इंसान को जो आनंद खाने का पहला निवाला देता है वह तीसरा, चौथा या
10वां नहीं देता. शुरुआत में अभिनय और
शीतल को लगता था कि कुदरत ने दोनों को एकदूसरे के लिए ही बनाया है लेकिन जब जिम्मेदारियां बांटने और घर चलाने की बात
आती है वहां प्यार का वाष्पीकरण हो जाता है. अभिनय और शीतल के रिश्ते में जीवन की जरूरी चीजों पर पैसे खर्च करने से ले कर घर को साफसुथरा रखने जैसी हर छोटीबड़ी बात पर तूतू, मैंमैं होने लगी. कल तक दोनों को अकेले अपनी मनमरजी से जीने की आदत थी और आज एकदूसरे की पसंदनापसंद और तौरतरीकों से सम?ाता करने की नौबत आ गई.
अभिनय टिपीकल बैचलर लाइफ जीने का आदी था इसलिए अपनी चीजें जैसे कपड़े, जूते, टौवेल, लैपटौप लगभग सारी चीजें इधरउधर
फैला कर कहीं भी रख देता. पहलेपहल तो
शीतल खुद प्यार से सब बरदाश्त करते सहज लेती और अभिनय को सुधारने की कोशिश करती. लेकिन जब ये सब रोज का हो गया तो चिड़ने लगी और बहस करतेकरते दोनों के बीच छोटेमोटे ?ागड़े भी होने लगे. उस से विपरीत शीतल को अपनी सारी चीजें सुव्यवस्थित और सहेज कर रखने की आदत थी. उसे हर काम में परफैक्शन चाहिए होता जिस की वजह से दोनों में कभीकभी तनाव पैदा हो जाता.
जैसेतैसे दोनों एकदूसरे के साथ एडजस्ट करते जीने की कोशिश कर रहे थे. ऐसे में चुनाव नजदीक आ रहे थे तो एक दिन कौनसी पार्टी देश के लिए सही है और कौन देश के लिए हानिकर उस पर चर्चा करते दोनों के बीच जंग छिड़ गई. दोनों ही पढ़ेलिखे अपने विचार का समर्थन करते अपनी दलीलों पर डटे रहे. नतीजन वैचारिक असमानता का सब से मजबूत पहलू दोनों के सामने आ गया. दोनों में से कोई भी समाधान के मूड में नहीं था. शीतल का कहना था कि कांग्रेस पार्टी में छोटी उम्र के पढ़ेलिखे नेता आजकल की टैक्नोलौजी को सम?ाते देश को नई दिशा देने में सक्षम हैं. वहां अभिनय का कहना था भाजपा पार्टी के उम्रदराज, शक्तिशाली और अनुभवी नेता ही देश की बागडोर संभालने में काबिल हैं. दोनों एकदूसरे पर अपनी चुनी सरकार को वोट देने के लिए दबाव तक डालने लगे.
तभी इस वाकयुद्ध को अलग ही मोड़ देते हुए शीतल ने कहा, ‘‘देखो अभिनय मैं कोई 18वीं सदी की लड़की नहीं जो मर्द की बातों को पत्थर की लकीर सम?ा कर सिरआंखों पर चढ़ाती रहूंगी और न हर सहीगलत बात में तुम्हारी हां में हां मिलाती रहूंगी. मैं 21वीं सदी की लड़की हूं मेरे अपने स्वतंत्र विचार हैं, अपना अस्तित्व है, अपनी मरजी है. मु?ो दबाने की कोशिश हरगिज मत करना… तुम अपनी सोच अपने पास रखो. मैं
24 साल की बालिग लड़की हूं. संविधान ने मु?ो सरकार चुनने का अधिकार दिया है, तो जाहिर सी बात है मैं अपनी मरजी से देशहित में फैसला ले कर ही अपने नेता को वोट दूंगी. और सुनो, मैं किस की प्रेमिका या बीवी बन सकती हूं गुलाम कतई नहीं. अभी भी सोच लो. मैं अपने रहनसहन में कोई बदलाव नहीं करूंगी, इन्फैक्ट तुम्हें कुछेक मामलों में सुधरना होगा तभी हम भविष्य में साथ रह पाएंगे.’’
शीतल की बातों से अभिनय भड़क गया और ताव में आ कर उस ने भी
बोल दिया, ‘‘सुधरना होगा? मैं किसी के भी लिए अपनेआप को नहीं बदलूंगा ओके और तुम भी सुन लो, मैं भी तुम्हारे जैसी अकड़ू लड़की के साथ जिंदगी नहीं बिता सकता. दुनिया में लड़कियों की कमी नहीं. मु?ो सम?ाने वाली
और मेरे विचारों के साथ तालमेल बैठाने वाली मु?ो भी मिल जाएगी. हर बात पर टोकाटोकी
और बहस करने वाली लड़की के साथ मैं पूरी जिंदगी नहीं बीता सकता. तुम चाहो तो इस रिलेशनशिप से आजाद हो सकती हो. 1 हफ्ते
का समय देता हूं अपना इंतजाम कहीं और
कर लेना.’’
अभिनय का फैसला सुन कर शीतल के दिमाग का पारा चढ़ गया. अभिनय का कौलर पकड़ते शीतल दहाड़ उठी क्या मतलब है तुम्हारा? अभिनय तुम रिश्ते को गुड्डेगुड्डियों
का रोल सम?ाते हो क्या? सुनो अभिनय मैं ने
मन के साथ अपना तन भी तुम्हें सौंपा है और
वह भी एक भरोसे के साथ, तुम तो रिश्ता
तोड़ने पर उतर आए. मेरे तन के साथ खेलते हुए तो मैं परी लगती हूं. आज इतनी सी बात पर छोड़ने पर उतारू हो गए? तुम किसी लड़की के भरोसे के लायक ही नहीं. मानसिक तौर पर नपुंसक हो नपुंसक.’’
नपुंसक शब्द सुनते ही अभिनय को अपने वजूद पर किसी ने तेज धार वाली शमशीर से प्रहार किया हो ऐसा महसूस हुआ. अत: उस ने अपनाआपा खोते हुए शीतल के गाल पर जोर से थप्पड़ जड़ दिया, ‘‘बदतमीज लड़की मैं तुम्हारे तन से खेला हूं तो सैटिस्फाइड तुम भी हुई हो सम?ा और जो होता था हम दोनों की मरजी से होता था, कोई बलात्कार नहीं किया मैं ने.’’
अभिनय ने जो तमाचा मारा वह शीतल के मन पर लगा था. अत: वह यह घरेलू हिंसा कैसे सह लेती. पास ही टेबल पर पड़ा फ्लौवर वाज उठा कर अभिनय के सिर पर दे मारा और यू बिच मु?ा पर हाथ उठाने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई कहते शीतल ने एक पल भी अभिनय के साथ रहना मुनासिब नहीं सम?ा. उसी पल अपना सामान ले कर अपनी फ्रैंड रूही के घर चली गई.
यों एकदूसरे को बेइंतहा प्यार करने वाले 2 प्रेमियों का प्यारा सा रिश्ता तूतू, मैंमैं से आगे बढ़ते हुए असमान विचारधारा की बलि चढ़ गया.
अभिनय को अपनी गलती का एहसास और पश्चात्ताप होने लगा.
आज संगीता के रूखे व्यवहार को कड़वे घूंट की तरह पी जाने वाला अभिनय शीतल के सख्त व्यवहार पर बिफर पड़ता था क्योंकि शीतल पत्नी नहीं प्रेमिका थी जिस का अभिनय पर कोई कानूनी हक तो था नहीं. आज अभिनय सोच रहा है जब संगीता ऐसा व्यवहार करती है तो मन मार कर सह लेता हूं क्योंकि वह बीवी है, न उगल सकता हूं. न निगल सकता हूं इसलिए एक अनमना रिश्ता भी ढो रहा हूं. अगर शीतल की बातों को सम?ा कर, उस के विचारों का सम्मान करते हुए रिश्ते को एक मौका दिया होता तो शायद जिंदगी कुछ और होती. प्यार तो दोनों के बीच बेशुमार था, बस अपनेअपने अहं और स्वतंत्र विचारधारा का सामने वाले की विचारधारा के साथ तालमेल नहीं बैठा पाने की वजह से दोनों ने रिश्ते का गला घोट दिया.
हर रिश्ता स्वतंत्रता चाहता है. सब की अपनी सोच और जिंदगी जीने का तरीका होता है.
क्यों मैं ने शीतल को सम?ा नहीं और शीतल ने क्यों मु?ो अपने सांचे में ढालने की कोशिश की? अगर शीतल अपनी जिंदगी अपने तौरतरीके से जीना चाहती थी तो क्या गलत था और मैं भी अपनी कुछ आदतें बदल लेता तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ता? क्या एकदूसरे को स्पेस दे कर अपनेअपने स्वतंत्र विचारों का पालन करते
जिंदगी नहीं काट सकते थे? सैकड़ों कपल्स असमान विचारधारा के बावजूद एकदूसरे को आजादी देते हुए जिंदगी आसानी से काट लेते हैं. यहां तक कि आपस में बगैर प्रेम के कई जोड़े मांबाप भी बन जाते हैं. फिर मैं और शीतल छोटेछोटे मुद्दों को अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाते क्यों अलग हो गए?
इंसान का स्वभाव ही इंसान का दुश्मन
होता है या शायद वह उम्र ही ऐसी होती है जो ऐसी बातों को सम?ाने के लिए छोटी पड़ती है. आज जब सारी बातें, सारी गलती सम?ा में आ रही है तब चिडि़या चुग गई खेल वाली गत है. काश, मैं ने और शीतल ने उस वक्त सम?ादारी दिखाई होती तो आज यों पश्चात्ताप की आग में जलना नहीं पड़ता.
‘‘वक्त करता जो वफा आप हमारे होते,’’ गुनगुनाते हुए अभिनय नम आंखों से खिड़की
के पास जा कर दूर आकाश में ताकने लगा
जैसे सैकड़ों सितारों के बीच किसी अपने को ढूंढ़ रहा हो.