ऐडवांस लैप्रोस्कोपिक सर्जरी महिलाओं के लिए वरदान

पिछले कुछ वर्षों में स्त्रीरोग से जुड़े मामलों में लैप्रोस्कोपिक सर्जरी काफी प्रभावशाली साबित हुई है. इन मिनिमली इनवेसिव प्रक्रियाओं में स्त्रीरोग से जुड़े मामलों में बीमारी का पता लगाने और इलाज करने के लिए छोटे कट लगाए जाते हैं और स्पैशलाइज्ड उपकरणों का इस्तेमाल किया जाता है. लैप्रोस्कोपी सर्जरी ने गाइनोकोलौजी के क्षेत्र में क्रांति ला दी है जिस से मरीज की रिकवरी कम वक्त में हो जाती है, निशान कम आते हैं और बेहतर परिणाम आते हैं.गुरुग्राम के सीके बिरला हौस्पिटल में ओब्स्टेट्रिक्स ऐंड गाइनोकोलौजी विभाग की डाइरैक्टर डाक्टर अंजलि कुमार ने इस विषय पर विस्तार से जानकारी दी.

  1. लैप्रोस्कोपिक हिस्टरेक्टोमी

परंपरागत रूप से हिस्टरेक्टोमी (सर्जरी के जरीए यूटरस निकालना) पेट में चीरे के माध्यम से की जाती थी, जिस में मरीज की रिकवरी में लंबा समय लग जाता था. हालांकि लैप्रोस्कोपिक हिस्टरेक्टोमी एक मिनिमली इनवेसिव प्रक्रिया है जिस के चलते मरीज की रिकवरी तुरंत होती है, औपरेशन के बाद दर्द कम होता है और निशान भी बहुत कम होते हैं.

रोबोटिक असिस्टेड लैप्रोस्कोपिक हिस्टरेक्टोमी जैसी ऐडवांस तकनीक से इलाज को और मजबूती मिली है.इस में जटिल शारीरिक संरचनाओं को भी डाक्टर ज्यादा आसानी से नैविगेट कर लेते हैं और औपरेशन में इस से काफी मदद मिलती है. जिन महिलाओं को यूटरिन फाइब्रौयड, ऐंडोमिट्रिओसिस या पीरियड्स के दौरान ज्यादा ब्लीडिंग होती है उन के लिए यह प्रक्रिया काफी कारगर है.

2. ऐंडोमिट्रिओसिस

ऐंडोमिट्रिओसिस में यूटरस के बाहर ऐंडोमिट्रियल टिशू बढ़ जाते हैं. ये गंभीर पैल्विक पेन और बां?ापन के कारण बन सकते हैं. ऐंडोमिट्रिओसिस घावों के लिए लैप्रोस्कोपिक प्रक्रिया एक बहुत ही स्टैंडर्ड ट्रीटमैंट मैथड बन गया है. इस में डाक्टर ऐंडोमिट्रिओसिस इंप्लांट्स को विजुलाइज करने, उन का मैप बनाने और ठीक से हटाने के लिए लैप्रोस्कोपिक उपकरणों का उपयोग करते हैं, जिस से मरीजों को लंबे समय तक राहत मिलती है.

इस मिनिमली इनवेसिव प्रक्रिया से न केवल लक्षण कम होते हैं, बल्कि प्रजनन क्षमता भी प्रिजर्व होती है. महिलाओं को इस का काफी लाभ मिलता है.

3. ओवेरियन सिस्टेक्टोमी

ओवेरियन अल्सर, तरल पदार्थ से भरी थैली जो अंडाशय पर बनती है में दर्द, हारमोनल असंतुलन और फर्टिलिटी संबंधी परेशानियां होने का डर रहता है. लैप्रोस्कोपिक सिस्टेक्टोमी की मदद से डाक्टर अल्सर को हटाते हैं और स्वस्थ ओवेरियन टिशू को संरक्षित करते हैं. इस से ओवेरियन फंक्शन बेहतर होता है और फर्टिलिटी भी सुधरती है.इंट्राऔपरेटिव अल्ट्रासाउंड और फ्लोरेसैंस इमेजिंग जैसी ऐडवांस तकनीक से अल्सर की सटीक पहचान की जाती है और फिर उसे हटाया जाता है. इस प्रक्रिया में जोखिम कम रहता है. ओपन सर्जरी की तुलना में लैप्रोस्कोपिक सिस्टेक्टोमी के बाद दर्द कम होता है, मरीज को अस्पताल में कम वक्त रहना पड़ता है और वह रोजमर्रा के काम भी जल्दी करने लग जाता है.

4. मायोमेक्टोमी

यूटेरिन फाइब्रौयड के कारण पीरियड्स में बहुत ज्यादा ब्लीडिंग होती है, पेल्विक पेन होता है और प्रजनन संबंधी परेशानियां भी हो जाती हैं. मायोमेक्टोमी में गर्भाशय को संरक्षित करते हुए फाइब्रौयड को सर्जरी के जरीए हटाया जाता है. जो महिलाएं गर्भधारण करना चाहती हैं उन के लिए यह एक बेहतर उपाय है. लैप्रोस्कोपिक मायोमेक्टोमी पारंपरिक ओपन सर्जरी से ज्यादा पौपुलर है क्योंकि इस में छोटे चीरे लगाए जाते हैं, ब्लड लौस कम होता है और मरीज की रिकवरी भी तेजी से होती है.

5. रोबोटिक

असिस्टेड लैप्रोस्कोपिक मायोमेक्टोमी से सर्जरी काफी सटीक हुई है और इस के परिणामस्वरूप बेहतर प्रजनन रिजल्ट आते हैं.

6. ट्यूबल रिवर्सल

जिन महिलाओं की ट्यूबल लिगेशन (सर्जिकल नसबंदी) होती है, उन के लिए ट्यूबल रिवर्सल सर्जरी प्रजनन क्षमता को बहाल करने का अवसर प्रदान करती है. लैप्रोस्कोपिक ट्यूबल रीनास्टोमोसिस में फैलोपियन ट्यूबों को फिर से जोड़ा जाता है, जिस से प्राकृतिक गर्भधारण की संभावनाएं बढ़ती हैं.मिनिमली इनवेसिव सर्जरी से निशान कम आते हैं और औपरेशन के बाद मरीज को कम परेशानी होती है जिस से महिलाओं को अपनी रूटीन की गतिविधियों में जल्दी लौटने में मदद मिलती है. लैप्रोस्कोपिक तकनीक, माइक्रोसर्जिकल स्किल्स से साथ जुड़ी होती है जिस से ट्यूबल रिवर्सल सर्जरी की सफलता दर और परिणामों में काफी सुधार होता है.

ऐडवांस गाइनोकोलौजी लैप्रोस्कोपिक सर्जरी के आने से प्रजनन आयु के दौरान स्त्रीरोग संबंधी तमाम परेशानियों को ठीक करने के मामलों में क्रांति आई है. मिनिमली इनवेसिव प्रक्रियाएं जैसेकि लैप्रोस्कोपिक हिस्टरेक्टोमी, ऐंडोमिट्रिओसिस ऐक्साइशन, ओवेरियन सिस्टेक्टोमी, मायोमेक्टोमी और ट्यूबल रिवर्सल से मरीजों को ओपन सर्जरी की तुलना में काफी लाभ पहुंचा है.तेजी से रिकवरी, कम निशान और बेहतर प्रजनन रिजल्ट के चलते लैप्रोस्कोपिक सर्जरी से स्त्रीरोगों से पीडि़त महिलाओं के लिए आशा की किरण मिली है. तकनीक भी लगातार बढ़ रही है, जिस से यह उम्मीद की जा रही है कि लैप्रोस्कोपिक तकनीक आगे और भी विकसित होगी जिस से और बेहतर रिजल्ट प्राप्त होंगेऔर महिलाओं की रिप्रोडक्टिव हैल्थ में सुधार आएगा.

दबे पांव दस्तक देता है मोटापा

स्त्रियों में ओबेसिटी यानी मोटापा आज सब से बड़ी समस्याओं में से एक है, जिस से हर तीसरी महिला परेशान है. डब्ल्यूएचओ ने मोटापे को स्वास्थ्य के 10 प्रमुख जोखिमों में से एक बताया है. विश्व में 23 फीसदी से अधिक महिलाएं मोटापे की शिकार हैं. भारत तो ‘ग्लोबल ओबैसिटी इंडैक्स’ में तीसरे स्थान पर है.

महामारी का रूप ले चुका है मोटापा

देश में ओबैसिटी 21वीं सदी की मौन महामारी (साइलैंट एपिडेमिक) का रूप लेती जा रही है. भारत में मोटापे की समस्या आज चीन और अमेरिका के आंकड़ों को भी पार कर चुकी है.

मोटापे के मुख्य कारण

खानेपीने की गलत आदतें, ऐक्सरसाइज की कमी, नींद पूरी न होना और तनाव आदि मोटापे के मुख्य कारणों में शामिल हैं. कुछ महिलाओं में सिंड्रोमिक और वंशानुगत ओबैसिटी भी देखने को मिलती है.

मोटापे के दुष्प्रभाव

डायबिटीज, हाई ब्लजड प्रैशर, डिसलिपिडीमिया, औस्टियो आर्थ्राइटिस, पित्त की थैली में पथरी, श्वसन समस्याएं, प्रजनन संबंधी समस्याएं आदि मोटापे से हार्ट अटैक, स्ट्रोक और कई प्रकार के कैंसर (ब्रैस्ट, ओवरी, यूटरस, पैंक्रियाज) तथा किडनी से संबंधित रोगों की संभावना तक बढ़ जाती है. किशोरवय में अत्यधिक मोटापा अवसाद का कारण भी बन सकता है.

सामान्य लक्षण

छोटेछोटे काम करने में सांस फूलना तथा पसीना आना, शरीर के विभिन्न भागों में वसा या चरबी का जमना आदि. इस के अलावा कई बार मानसिक और मनोवैज्ञानिक लक्षण जैसे आत्मसम्मान और आत्मविश्वास की कमी इत्यादि देखे जा सकते हैं.

मोटापे का निदान

  •  बीएमआई की गणना.
  •  कमर की परिधि को मापना.
  • लिपिड प्रोफाइल.
  • लिवर फंक्शन टैस्ट.
  • फास्टिंग ग्लूकोस.
  • थायराइड टैस्ट.

बचाव के 10 कारगर उपाय

  •  संतुलित आहार का सेवन करें.
  • कम वसा वाले खाद्यपदार्थों का उपयोग करें.
  • रोजाना सुबह जल्दी उठ कर सैर पर जाएं.
  • नियमित रूप से दिन में कम से कम 30 मिनट तक ऐरोबिक व्यायाम करें.
  • रात को सोने से 2 घंटे पहले ही डिनर ले लें.
  • जंक/फास्ट फूड का सेवन करने से बचें.
  • मैदा, चावल और चीनी का प्रयोग कम ही करें.
  • वसा के हार्ट फ्रैंडली स्रोतों जैसे जैतून, कैनोला औयल, अखरोट के तेल का इस्तेमाल करें. बिंज ईटिंग अर्थात् एकसाथ अत्यधिक खाना न खाएं, बल्कि थोड़ीथोड़ी देर में सुपाच्य एवं हलके भोजन करें.
  • न्यूनतम 8 घंटे की पर्याप्त नींद लें. प्रैगनैंसी व प्रसव पश्चात भी कुछ महिलाओं को मोटापे की समस्या का सामना करना पड़ता है. नवजात को पर्याप्त मात्रा में स्तनपान के माध्यम से इस मुश्किल से छुटकारा पाया जा सकता है.

नवीनतम उपचार

अगर किसी महिला का वजन बहुत अधिक है तथा आहार में सुधार करने, नियमित व्यायाम एवं मोटापा कम करने वाली दवाओं के सेवन के बाद भी उस का वजन कम न हो तो वह डाक्टर से संपर्क कर वजन घटाने वाली शल्यक्रिया अर्थात बैरिएट्रिक सर्जरी का सहारा ले सकती है. यह पद्धति बहुत अधिक मोटे लोगों के लिए वरदान साबित होती है.

पीरियड्स में अब नो टैंशन

पीरियड्स के दिन किसी भी महिला के लिए आसान नहीं होते हैं. कामकाजी महिलाओं के लिए तो ये और भी मुश्किल होते हैं क्योंकि उन्हें पूरा दिन औफिस और घर का काम करना होता है. ऐसे में वे पीरियड के दर्द को भूल कर किस तरह काम कर सकती हैं, आइए जानते हैं:

  1. कौटन अंडरवियर

इस में कौटन अंडरविअर बैस्ट चौइस होती है. यह कंफर्ट के साथसाथ स्किन इरिटेशन को दूर रखने में में भी मदद करती है. फिटिंग और कवरेज एरिया भी अच्छा होता है, जो पैड को सही जगह पर रखने में हैल्प करता है. इसके दिनों शरीर में सूजन आ सकती है. इसलिए इन दिनों कौटन बेस्ड और नौनवायर्ड ब्रा ही पहनें.

2. ढीले और कंफर्टेबल कपड़े

पीरियड्स के दिनों में महिलाएं ढीले और कंफर्टेबल कपड़े पहनें. इन दिनों डार्क कलर के ही कपड़े पहनें और टाइट कपड़ों को अवौइड करें.

3. हाइजीन है मस्ट

पीरियड्स के दिनों में हाइजीन का खास खयाल रखें. वाशरूम का इस्तेमाल करने या पैड बदलने के बाद हाथों को हैंडवाश से जरूर धोएं. प्राइवेट पार्ट को साफ करते वक्त ध्यान रखें कि उसे आगे से पीछे की ओर ही धोएं. मैंस्ट्रुएशन के दौरान अगर साफसफाई का ध्यान न रखा जाए तो महिलाओं को कई बीमारियां हो सकती हैं. इन में से एक है रीप्रोडक्टिव ट्रैक्ट इन्फैक्शन. इस की वजह से कई बार महिलाएं मां नहीं बन पाती हैं.

4. पीरियड्स प्रोडक्ट

पीरियड्स के दिनों में महिलाएं सैनिटरी पैड (जैविक, कौटन), टैंपोन, मैंस्ट्रुअल कप और पीरियड पैंटी का इस्तेमाल करती हैं.

पीरियड्स के प्रोडक्ट आप के पीरियड्स को आरामदायक बना सकते हैं. आप का पीरियड प्रोडक्ट आप के ब्लड फ्लो के हिसाब से होना चाहिए. जब ब्लड फ्लो ज्यादा हो तो ओवरनाइट पीरियड सैनिटरी पैड या पीरियड पैंटी का इस्तेमाल करें. जब ब्लड फ्लो कम हो या पीरियड का आखिरी दिन हो तो पैंटी लाइनर्स का इस्तेमाल किया जा सकता है.

5. पीरियड पेन रिलीफ प्रोडक्ट

ऐसे बहुत से तरीके हैं जिन से पीरियड क्रैंप्स में रिलीफ पाया जा सकता है. आजकल मार्केट में पेन रिलीफ पैचिस छाए हुए हैं.

पीरियड पैचिस नैचुरली तरीके से दर्द से राहत दिलाने में हैल्प करते हैं. इन में मैंथोल और नीलगिरी का तेल शामिल होता है, जो दर्द और पीरियड्स में होने वाली परेशानियों को कम करने में सहायक होता है.

इस के अलावा आप हिटिंग पैड का भी यूज कर सकती हैं. पानी की बोतल में गरम पानी भर कर भी अपने पेट और उस के आसपास की सिंकाई की जा सकती है. इस के अलावा पीरियड पेन रिलीफ रोलऔन का भी इस्तेमाल किया जा सकता है.

6. बौडी स्ट्रैचिंग

अगर आप वर्किंग वूमन हैं और पीरियड्स में हैं तो अपनेआप को ऐक्टिव रखने के लिए बीचबीच में बौडी स्ट्रैच कर सकती हैं. इसे करने से बौडी रिलैक्स होती है. पीरियड्स के दौरान किसी भी तरह का वर्कआउट करने से ऐंडोर्फिन नाम का हारमोन रिलीज होता है, जो दर्द से राहत दिलाता है.

7. योग है दर्दनिवारक

योग से पीरियड्स के दौरान होने वाले दर्द से राहत मिलती है. योग से एकाग्रता बनी रहती है और मन भी शांत रहता है. इस से काम करने में आसानी होती है.

8. वाक का लें सहारा

पीरियड्स में दर्द से छुटकारा पाने के लिए बीचबीच में वोक कर सकती हैं. इस से आप का मूड ठीक रहेगा और आप अपने काम पर फोकस कर पाएंगी.

9. ढेर सारा पानी पीएं

पानी पीना हैल्थ के लिए बहुत ही लाभदायक है. लेकिन पीरियड्स में यह और भी ज्यादा हैल्थफुल हो जाता है. वर्किंग वूमन अपनी पानी की बोतल को टेबल पर भर कर रखें और थोड़ीथोड़ी देर में पानी पीती रहें. पूरे दिन में कम से कम 2 लिटर पानी जरूर पीएं. पानी पीने से आप खुद को डिहाइड्रेट होने से बचा सकती हैं.

10. डार्क चौकलेट ही खाएं

चौकलेट हर किसी की पहली पसंद होती है, लेकिन पीरियड्स के दौरान लड़कियों को चौकलेट खाना बहुत भाता है. अगर आप को भी पीरियड्स के दौरान चौकलेट खाने की क्रेविंग होती है तो आप डार्क चौकलेट ही खाएं. यह आप के पीरियड के दर्द को कम करने में हैल्प करेगी.

11. कैफीन युक्त ड्रिंक्स को कहें बायबाय

पीरियड्स के दौरान कौफी या कैफीन युक्त ड्रिंक्स पीने पर पेट फूलने की दिक्क्त हो सकती है, जिस से आप की प्रौब्लम बढ़ेगी.

कैफीन के अलावा कोल्ड ड्रिंक्स या सोडा वाली ड्रिंक्स का सेवन भी न करें. इस दौरान वे चीजें खाएं जिन में पानी की मात्रा ज्यादा होती है जैसे तरबूज, खीरा. क्रैंप्स को कम करने के लिए बिना कैफीन वाली चाय या ग्रीन टी पी जा सकती है.

12. पीरियड्स एप्स का करें इस्तेमाल

पीरियड ऐप्स से महिलाओं को पीरियड डेट याद रखने का झंझट नहीं लेना पड़ता. बिजी लाइफस्टाइल में कई बार महिलाएं अपनी पीरियड डेट भूल जाती हैं. इस का खमियाजा उन्हें अनसेफ सैक्स और अनवांटेड प्रैगनैंसी जैसी प्रौब्लम्स के रूप में भुगतना पड़ता है. लेकिन अब मार्केंट में ढेरों ऐसे ऐप्स मौजूद हैं जो उन की पीरियड प्रौब्लम को सौल्व कर सकते हैं जैसे पीरियड ट्रैकर, फ्लो, ग्लो, क्लू और पिंक पैड. ये ऐप्स महिलाओं के लिए काफी हैल्पफुल हैं.

13. मैंटल हैल्थ का रखें ध्यान

पीरियड्स के दिनों में महिलाओं का मूड स्विंग होता रहता है. इस में उदास होना, बिना बात के गुस्सा होना, चिड़चिड़ापन आम बात है. ऐसा हारमोनल बदलाव की वजह से होता है. अपने बदलते मूड को कंट्रोल करने की कोशिश करें ताकि इस से आप के काम पर कोई साइड इफैक्ट न पड़े और आप अपना काम बिना किसी मैंटल स्ट्रैस के कर पाएं. मैंटल हैल्थ को मैनेज करने के लिए आप सौफ्ट सौंग भी सुन सकती हैं.

इन तरीकों के अलावा कुछ बातों का ध्यान रख कर आप पीरियड के दिनों में अपने काम को आसानी से कर सकती हैं जैसे नैगेटिव लोगों से दूरी, क्रैंप्स से ध्यान हटा कर काम पर ध्यान लगाना, पीरियड के दौरान खुश रहना.

Monsoon Special: बरसात में होने वाले फ्लू से बचने के उपाय खोज रही हैं आप?

गर्मी का मौसम लगभग जा चुका है और अब तो मौसम मिनट-मिनट में बदलने भी लगा है. हम जुलाई के महीने में कदम रख चुके हैं, तो जाहिर सी बात है कि आप मौनसून की पहली बारिश का भी बड़े मन से इंतजार कर रही होगीं. कहीं कहीं तो लोग इसका आनंद ले चुके हैं.लेकिन इस दौरान आपको अपनी सेहत को ले कर थोड़ा चौकन्‍ना भी रहना होगा क्‍योंकि इस मौसम में ठंड और फ्लू बड़ी तेजी के साथ फैलते हैं. बरसात के मौसम के साथ फ्लू का भी साथ में आना कोई नई बात नहीं है.

फ्लू एक अच्‍छे खासे इंसान को भी बिस्‍तर पर ला कर पटक देती है. इसलिये आपको कुछ जरुरी सावधानियां रखनी चाहिये. यहां पर हम ने कुछ आसान से नुस्‍खे दिये हुए हैं, जिसे आजमा कर आप बरसात के मौसम में होने वाले फ्लू से खुद को और अपने परिवार को बचा सकती हैं.

1. हाथों को धोएं

हाथों को खाना खाने से पहले जरुर धोना चाहिये. अगर आप किसी जगह पर साबुन का प्रयोग नहीं कर पा रहे हैं, तो सेनिटाइजर का प्रयोग करें.

2. अपने मुंह को बाहर हमेशा ढंक कर रखें

चाहे आपका दोस्‍त बीमार हो या फिर आप खुद, अपने चेहरे को रुमाल से या किसी कपड़े से ढंक कर रखें. इससे बीमारी एक दूसरे तक नहीं पहुंचेगी.

3. ठंडे खाद्य पदार्थ ना खाएं

इन दिनों आइस क्रीम, गोला, कोल्‍ड ड्रिंक या फिर कोई अन्‍या ठंडा खाद्य पदार्थ का सेवन ना करें. इस मौसम में वाइरल इंफेक्‍शन तुरंत फैलता है.

4. स्‍वस्‍थ भोजन खाएं

यदि आप इन दिनों स्‍वस्‍थ भोजन खाएंगी जिसमें हरी सब्‍जियां, प्रोटीन युक्‍त आहार, ताजे फल और साबुत अनाज शामिल रहेगा, तो आपका इम्‍यून सिस्‍टम और ज्‍यादा मजबूत बनेगा. इससे आप बुखार, कम और अन्‍य इंफेक्‍शन से डट कर मुकाबला कर सकते हैं.

5. खूब पानी पियें

पानी एक सस्‍ता इलाज है जिससे आप फ्लू से बच सकती हैं. रिसर्च से पता चला है कि जो लोग लगभग 3 गिलास पानी पीते हैं उन्‍हें दर्द भरे गले और नाक जाम होने की शिकायत उन लोगों की तुलना में ज्‍यादा होती है जो दिनभर में 8 गिलास पानी पीते हैं.

6. गरम चाय पियें

बरसात के समय आपको कम से कम एक कप चाय जरुर पीनी चाहिये. अच्‍छा होगा कि आप चाय में अदरक और इलायची भी डाल लें तो. पर चाय के आदि मत बनियेगा. यह एक प्राकृतिक एंटीबायोटिक का काम करती है.

7. तनाव से दूर रहें

तनाव लेने से स्‍वास्‍थ्‍य को हानि पहुंच सकती है. इससे आपको फ्लू और भी तेजी से जकड़ लेगा. स्‍ट्रेस लेने से इम्‍यून सिस्‍टम कमजोर होने लगता है और आपके ठीक होने के चांस कम हो सकते हैं.

8. धूम्रपान छोडें

स्‍मोकिंग करने से तो वैसे भी कई समस्‍याएं हो जाती हैं. लेकिन इससे खास कर के सांस संबन्‍धि समस्‍या जैसे ब्रोंकाइटिस होने की समस्‍या सबसे ज्‍यादा रहती है. यह इम्‍यून सिस्‍टम को भी कमजोर बना देता है.

कहीं आप भी ज्यादा नट्स तो नहीं खाते

दिल को स्वस्थ्य बनाए रखने के लिए आहार में नट्स को शामिल करना लाभदायक हो सकता है. नट्स में अनसैचुरेटेड फैटी एसिड के साथ साथ अन्य विटामिन और मिनरल होते हैं. ये बेहद आकर्षक एवं लोकप्रिय स्नैक के तौर पर इस्तेमाल किए जाते हैं, क्योंकि बहुत ज्यादा महंगे नहीं होते हैं, इन्हें रखना सुविधाजनक होता है, और इन्हें चलते फिरते कहीं भी खाया जा सकता है.

लेकिन कुछ नट्स में ज्यादा कैलोरी होती है, जो नुकसानदायक है. इसलिए इनकी मात्रा का ध्यान रखना बेहद जरूरी है.

मनप्रीत कालरा- आहार विशेषज्ञ और रिबूटगुट प्राइवेट लिमिटेड के संस्थापक बता रही हैं कि किस तरह के नट्स आपके दिल के लिए नुकसानदायक हैं?

नट्स में ज्यादा ऊर्जा होती है, क्योंकि इनमें ज्यादा मात्रा में वसा शामिल है. सैचुरेटेड बसा की मात्रा ब्राजीलियाई नट्स, कैश्यू और मैकाडेमिया नट्स में ज्यादा होती है. इन्हें कम मात्रा में खाएं, क्योंकि इनका ज्यादा सेवन करने से कॉलेस्टेरॉल स्तर बढ़ सकता है.

ड्राई-रोस्टेड, साल्टेड, फ्लेवर वाले, या हनी-रोस्टेड नट्स का सेवन नहीं करना चाहिए, क्योंकि इनमें ज्यादा नमक और कभी अधिक कभी चीनी शामिल हो सकती है. यदि आप किसी पार्टी में हैं तो याद रखें कि साल्टेड नट्स खाने से आपका कॉलेस्टेरॉल लेवल बढ़ सकता है, जो आपके दिल को नुकसान पहुंचा सकता है.

यदि आप नमक और चीनी जैसे अस्वस्थ तत्वों से दूर बने रहकर और नट्स की उचित मात्रा का ध्यान रखकर नट्स लेते हैं तो ये आपके नाश्ते के साथ पोषक स्नैक हो साबित हो सकते हैं.

एक हेल्दी नाश्ते में कितने नट्स होने चाहिए?

नट्स वसायुक्त होते हैं. भले ही इनमें अच्छी वसा ज्यादा हो, लेकिन इनके सेवन से कैलोरी की मात्रा बढ़ सकती है. इसलिए, कम मात्रा में नट्स का सेवन करने की सलाह दी जाती है.

वयस्कों को संतुलित आहार के तौर पर हर सप्ताह 5-6 बार गैर नमक वाले बादाम खाने चाहिए. बच्चों के लिए यह मात्रा उनकी उम्र के हिसाब से अलग हो सकती है. फ्रायड नट्स से परहेज करें और इसके बजाय कच्चे या ड्राई-रोस्टेड पर ध्यान दें. मुट्ठीभर साबुत नट्स या 2 चम्मच नट बटर एक सर्विंग में शामिल करें.

आपको किस तरह के नट्स खाने चाहिए?

ऐसा माना गया है कि कई तरह के नट्स फायदेमंद होते हैं. लेकिन कुछ में ज्यादा पोषक तत्व होते हैं जो अन्य के मुकाबले दिल के लिए अच्छे होते हैं. उदाहरण के लिए, अखरोट ओमेगा-3 फैटी एसिड का अच्छा स्रोत है. बादाम, मैकाडेमिया नट्स, पेकॉन और हेजलनट्स भी दिल के लिए अच्छे माने जाते हैं.

संभव हो तो गैर नमक वाले या गैर-मीठे नट्स का चयन करें. नमक या चीनी मिले हुए नट्स आपके दिल को मिलने वाले लाभ नहीं दे सकते हैं.

नट्स से किसी का स्वास्थ्य कैसे प्रभावित हो सकता है?

नट्स न सिर्फ पोषक होते हैं बल्कि बेहद टेस्टी और अनेक गुणों से भरपूर भी होते हैं. इन्हें कई तरह से आपके आहार में शामिल किया जा सकता है. अपने फूड का जायका सुधारने के लिए केक, डेजर्ज या सूदी में नट्स शामिल करें. हालांकि ज्यादातर लोगों को अत्यधिक मात्रा में नट्स सेवन का स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव का पता नहीं होता है. यदि हम ज्यादा मात्रा में नट्स का सेवन करते हैं तो क्या हो सकता है, इस बारे में नीचे जानकारी दी जा रही हैः

  1. जब आप वजन घटाने की कोशिश कर रहे हों तो नट्स अच्छे स्नैक हैं. लेकिन इनका ज्यादा सेवन करने से वजन बढ़ सकता है. इसकी वजह यह है कि नट्स में कैलोरी ज्यादा होती है और निर्धारित मात्रा से ज्यादा सेवन करने से वजन घटाने की आपकी कोशिश प्रभावित हो सकती है और आखिरकार आपके दिल को भी नुकसान पहुंच सकता है.
  2. ज्यादा नट्स खाने के बाद सामान्य तौर पर पेट फूलने और गैस बनने जैसी समस्या होने लगती है. आप इसकी वजह इनमें पाए जाने वाले केमिकल को मान सकते हैं. ज्यादातर नट्स में फाइटेट्स और टैनिन जैसे पदार्थ शामिल होते हैं जिन्हें आसानी से पचाना हमारे पेट के लिए मुश्किल होता है. इसके अलावा, नट्स में कई तरह की वसा होती है जो डायरिया जैसी समस्या बढ़ा सकती है.
  3. कुछ नट्स के अत्यधिक सेवन से फूड पॉइजनिंग हो सकती है. ब्राजीलियाई नट्स, बादाम और जायफल का अत्यधिक सेवन सावधानी के साथ किया जाना चाहिए, क्योंकि इनके नकारात्मक प्रभाव होते हैं. बादाम में हाइड्रोसायनिक एसिड होता है जो सांस लेने में समस्या और दम घुटने का कारण बन सकता है, लेकिन अधिक मात्रा में ब्राजीलियाई नट्स खाने से सेलेनियम की मात्रा भी बढ़ सकती है.

मां बनने पर सैक्स से दूरी क्यों

सुमन को लग रहा था कि उस की जिंदगी अब खत्म हो चुकी है. जिस आदमी से शादी करने के लिए उस ने अपने पूरे खानदान से लड़ाई मोल ली, जिस के लिए उस ने अपना शानदार कैरियर छोड़ दिया. अपना शहर छोड़ दिया, आज किसी और के साथ जिस्मानी संबंध बनाए बैठा है.

इस खुलासे ने सुमन को तोड़ कर रख दिया. अपनी दोस्त तसनीम से फोन पर अपना दुख सुना कर सुमन बहुत रोई. तसनीम सुमन की बचपन की दोस्त है. दोनों एकदूसरे से तमाम बातें शेयर करती हैं. सुमन और जगदीश ने जब परिवार वालों की मरजी के खिलाफ कोर्ट मैरिज की, तब भी गवाह के तौर पर तसनीम साथ खड़ी थी और जब सुमन ने उसे बताया कि जगदीश के संबंध किसी दूसरी औरत से हैं तो वह सहसा यकीन नहीं कर पाई.

एक बच्चे का बाप बनने के बाद जगदीश सुमन को धोखा कैसे दे सकता है? वह तो सुमन से बहुत प्यार करता है और अपने बच्चे पर तो जान छिड़कता है.

तसनीम ने सुमन से डिटेल में पूरी बात जाननी चाही तो सुमन ने बताया कि जगदीश के औफिस बैग की चोर पौकेट में उसे कंडोम का पैकेट मिला है, जबकि उन दोनों के बीच शादी के बाद कभी इस का इस्तेमाल नहीं हुआ.

दरअसल, सुमन को सब्जी वाले को खुले पैसे देने थे और उस के पास खुले पैसे नहीं थे. सुमन ने यह सोच कर जगदीश का बैग खंगाला कि किसी पौकेट से चेंज मिल जाए तो उस के हाथ कंडोम का पैकेट लग गया, जिसे देख कर उस के होश उड़ गए.

सुमन ने जगदीश के सामने वह पैकेट रख कर जवाब मांगा तो वह घबरा गया. उस के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं. एकाएक चोरी पकड़े जाने से जगदीश हड़बड़ा उठा और तेजी घर से बाहर निकल गया. देर रात जब लौटा तो सुमन उस पर फट पड़ी. बात बहुत बढ़ गई तो जगदीश ने भी उस से कह दिया कि जब घर में खाना न मिले तो आदमी कहीं तो भूख शांत करेगा.

आखिर सुमन के सामने बात पूरी तरह साफ हो गई कि जगदीश का किसी अन्य औरत से संबंध है. कई दिन से दोनों के बीच बातचीत बंद है. रिश्ते में दरार पड़ गई है. जगदीश अपने 6 माह के बच्चे से भी अब उस तरह नहीं खेलता जैसे पहले खेलता था. सुमन जब रोरो के थक गई तब उस ने अपना दर्द तसनीम को बताया.

गलती किस की

तसनीम और उस के पति हारून ने जगदीश को अपने घर बुला कर बात की तो जो वजह सामने आई उस में सुमन की गलती ज्यादा लगी. दरअसल, प्रैगनैंट होने के बाद से ले कर डिलिवरी तक सुमन और जगदीश अपने होने वाले बच्चे को ले कर बहुत खुश और उत्साहित थे. दोनों ने उस के लिए खूब शौपिंग भी की थी. पूरी प्रैगनैंसी में जगदीश ने सुमन का भरपूर खयाल रखा.

इस बीच जगदीश ने कभी सुमन से सहवास की मांग नहीं की. मगर बच्चे के 6 महीने का होने के बाद भी सुमन पति से दूर ही रहती है. कभी थकान का बहाना तो कभी बच्चे की देखभाल का. वह जगदीश के साथ संबंध बनाने को तैयार ही नहीं है. आखिर जगदीश अपनी इच्छाओं को कब तक मारता. वह तंग आ कर एक सैक्स वर्कर के घर जाने लगा. इन्फैक्शन वगैरह से बचने के लिए उस ने कंडोम रखना शुरू कर दिया.

जब तसनीम ने सुमन से उस की सैक्स लाइफ के बारे में पूछा तो वह बोली, ‘‘बेबी होने के बाद मेरा मन ही नहीं होता. अजीब वितृष्णा सी हो गई है. एक तो बच्चा सारी रात जगाता है. फिर दिन में घर का काम और बच्चे का काम उसे इतना थका देता है कि मुझे ऊपर से सैक्स बहुत बो?ा दिखाई देता है.’’

तसनीम ने जब जगदीश की जरूरत उसे सम?ाई तो सुमन को भी इस बात का एहसास हुआ कि गलती उस की भी है. डेढ़ साल से ऊपर हो गया मगर एक बिस्तर पर होते हुए भी दोनों एकदूसरे से कितनी दूर हो गए हैं.

अनेक कारण हैं

सुमन जैसी कहानी कई महिलाओं की है. बच्चा होने के बाद बहुत सारी महिलाओं से सैक्स ड्राइव मंद पड़ जाती है. वैसे तो डाक्टर्स गर्भावस्था के दौरान भी सैक्स से नहीं रोकते हैं जब तक महिला को कोई मैडिकल परेशानी न हो. नौर्मल डिलिवरी के 2 महीने बाद स्त्री का शरीर सहवास के लिए तैयार हो जाता है, मगर अनेक महिलाएं बच्चा होने के बाद सैक्स से दूर हो जाती हैं और उन के पति अपनी शारीरिक जरूरत पूरी करने के लिए बाहर भटकने लगते हैं.

आखिर बच्चा होने के बाद औरत सैक्स के लिए उस तरह क्यों तैयार नहीं हो पाती है जैसे पहले होती थी. इस के अनेक कारण हैं. गाइनोकोलौजिस्ट डा. नीना बहल कहती हैं, ‘‘डिलिवरी के बाद औरत के शरीर में बहुत बदलाव आते हैं. नौर्मल डिलिवरी हो या सिजेरियन, मां के शरीर में खून और ताकत की काफी क्षति होती है. फिर इस समय महिलाओं को हारमोनल बदलाव के कारण डिप्रैशन भी महसूस होता है. इस की वजह से नई मांओं में सैक्स ड्राइव कम हो जाती है. आमतौर पर यह देखने को मिलता है कि शिशु को जन्म देने के बाद अधिकतर महिलाओं की सैक्स में इच्छा बिलकुल नहीं होती है.

जिन के 1-2 बच्चे हो चुके होते हैं वे जिंदगी की दूसरी जरूरतों जैसे बच्चों की परवरिश, उन की पढ़ाई, उन्हें स्कूल से लाना ले जाना, उन के खाने, कपड़े का ध्यान रखना आदि में ज्यादा इन्वौल्व हो जाती हैं क्योंकि उन के पति इन कामों में उन की कोई मदद नहीं करते हैं. वे सोचते हैं कि बच्चा पैदा करने और पालने की जिम्मेदारी सिर्फ पत्नी की है. ऐसे में पत्नी पति को वक्त नहीं दे पाती है.’’

शारीरिक बदलाव और समय की कमी के अलावा भी कई कारण हैं जो महिलाओं में सैक्स के प्रति अरुचि पैदा करते हैं जैसे:

  1. थकान

दिनभर और रात में भी बारबार जाग कर शिशु की देखभाल में लगे रहने की वजह से अकसर मांओं को हर वक्त शारीरिक और मानसिक थकान बनी रहती है. डिलिवरी के बाद महिलाएं अपनी जिंदगी में बाकी चीजों पर ध्यान नहीं देती हैं और सारा समय अपने नवजात की देखभाल में लगी रहती हैं. इस से मांओं की यौनइच्छा में कमी आती है. पति को यह बात सम?ानी चाहिए कि उस की पत्नी ही सिर्फ मां नहीं बनी है बल्कि वह भी बाप बना है तो बच्चे के प्रति उस की भी कुछ जिम्मेदारी बनती है. अगर बच्चे की थोड़ी देर पति भी देखभाल कर ले तो पत्नी को रिलैक्स होने के लिए कुछ समय मिल जाएगा.

2. डिप्रैशन

कई महिलाएं डिलिवरी के बाद डिप्रैशन का शिकार हो जाती हैं. प्रसव के बाद स्ट्रैस, ऐंग्जाइटी और थकान सब मिल कर महिला के मानसिक स्वास्थ्य पर असर डालते हैं. इस से महिला की यौनइच्छा में कमी आती है. डिलिवरी के बाद शरीर में आए बदलावों, हारमोन, शिशु की जिम्मेदारी और पति के साथ रिश्ते में थोड़ी दूरी आने की वजह से मानसिक स्ट्रैस तो बढ़ ही जाता है, कभीकभी यह गहरे अवसाद का रूप भी ले लेता है. इस का सीधा असर सैक्स लाइफ पर पड़ता है. औरत में सैक्स की इच्छा तभी होती है जब उस का मन हलका और उमंग से भरा हो, शरीर में ऊर्जा महसूस हो और अपने पति से उसे प्रेम हो.

3. हारमोनल बदलाव और ब्रैस्ट फीडिंग

डिलिवरी के बाद हारमोनल लैवल में बहुत बड़ा बदलाव आता है. ऐस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरौन जैसे हारमोन तेजी से गिरते हैं जिस से नैचुरल लूब्रिकेशन की प्रक्रिया में गड़बड़ी होती है. इस से महिलाओं की यौनइच्छा में कमी आती है. ब्रैस्ट फीडिंग कराने वाली माताओं की यौनइच्छा में कमी आना आम बात है. ब्रैस्ट फीडिंग ऐस्ट्रोजन हारमोन बनाने को प्रभावित करता है और इस से महिलाओं में सैक्स के प्रति अरुचि पैदा होती है.

4. मोटापे की चिंता

प्रैगनैंसी के दौरान हर महिला का कम या ज्यादा वजन बढ़ता ही है. शरीर और लुक में आए इस बदलाव को देख कर अकसर महिलाएं टैंशन में रहती हैं. ऐसे मोठे थुलथुल शरीर को पति के सामने खोलने में उन्हें हिचकिचाहट होती है. वे इस चिंता में रहती हैं कि किस तरह जल्दी से जल्दी बढ़े वजन को घटा कर पहले जैसी शेप में आ जाएं. बढ़े वजन के कारण उन के मन में असुरक्षा और बौडी इमेज को ले कर चिंता घर कर लेती है. इस तरह के स्ट्रैस में होने पर भी सैक्स की इच्छा में कमी आती है.

अपनी सैक्स ड्राइव कम होने के संबंध में आप किसी ऐक्सपर्ट या फिर किसी सहेली की सलाह ले सकती हैं. इस बात का ध्यान रखें कि शिशु को जन्म देना एक खास एहसास है और इस के बाद आने वाले बदलावों में कोई बुरी बात नहीं है इसलिए अपने वेट या किसी और बौडी चेंज को ले कर चिंता करने की जरूरत नहीं है.

5. एकदूसरे को समझें

अगर महिलाएं खुद पर थोड़ा ध्यान दें, तो वे अपनी सैक्स लाइफ को फिर से पहले की तरह ऐंजौय कर सकती हैं. हारमोनल चेंज के कारण उत्पन्न अवसाद के लिए डाक्टर की सलाह पर दवा ली जा सकती है ताकि बदलाव पर कंट्रोल हो सके. इस के अलावा अपने पार्टनर से बात कर अपनी फीलिंग्स के बारे में बताएं. बच्चे की देखभाल में पति की भी मदद लें. पति को एहसास अवश्य कराएं कि बच्चे को पालना उनकी भी जिम्मेदारी है.

रात में बच्चे के रोने पर हर बार आप ही जागें यह जरूरी नहीं. आप का पार्टनर भी उठ कर बच्चे को सुला सकता है. इस से पति को आप की थकान का एहसास भी हो सकेगा.

इस तरह मिलजुल कर बच्चे की देखभाल करने से दोनों के बीच निकटता आएगी. आप एकदूसरे की फीलिंग्स से भी रूबरू होंगे और आप की सैक्स लाइफ पुन: पटरी पर लौट आएगी.

मेरे पेरेंट्स को कैंसर है, क्या कैंसर होने से मैं हाई रिस्क कैटेगरी में आती हूं?

सवाल

मेरी मां को लिवर कैंसर और पिता को प्रोस्टेट कैंसर है. मैं अपने स्वास्थ्य को ले कर बहुत चिंतित हूं. क्या मातापिता दोनों को कैंसर होने से मैं हाई रिस्क कैटेगरी में आती हूं?

जवाब

यह सही है कि आनुवंशिक कारण कैंसर के लिए एक प्रमुख रिस्क फैक्टर्स में से एक है, लेकिन परिवार में जब 3 पीढि़यों तक कैंसर के मामले लगातार होते हैं तब उसे आनुवंशिक या हेरिडिटरी माना जाता है. आप के मातापिता दोनों को कैंसर है, इस से आप को घबराने की जरूरत नहीं है. उन में आपस में कोई रक्त संबंध नहीं है क्योंकि वे अलगअलग परिवारों से आते हैं इसलिए इसे आनुवंशिकता से संबंधित नहीं माना जा सकता है.

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डाक्टर मुझे कीमोथेरैपी के बाद स्टेरौयड भी दे रहे हैं. मैं ने पढ़ा है कि स्टेरौयड का सेवन नहीं करना चाहिए. क्या यह सेहत के लिए नुकसानदायक होता है?

अगर आप के डाक्टर आप को कीमोथेरैपी के साथ स्टेरौयड्स दे रहे हैं तो आप को जरूर लेना चाहिए. ये कीमोथेरैपी के साइड इफैक्ट्स से बचने के लिए दिए जाते हैं. कई बार तो ये कीमोथेरैपी का ही हिस्सा होते हैं. ऐसे में इन्हें लेने से कोई दिक्कत नहीं होती. इसलिए डाक्टर द्वारा सु?ाई सभी दवाइयां नियत समय पर और निर्धारित मात्रा में जरूर लें.

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मेरी उम्र 54 साल है. 5 साल पहले मेनोपौज हो गया था, लेकिन कभीकभी वैजाइना से ब्लीडिंग होती है. कोई खतरे की बात तो नहीं?

जवाब

मेनोपौज के बाद वैजाइना से ब्लीडिंग होना बिलकुल सामान्य नहीं है. ब्लीडिंग चाहे मेनोपौज के बाद हो या महावारी के बीच अथवा शारीरिक संबंध बनाने के बाद, महिलाओं को इसे गंभीरता से लेना चाहिए. यह सर्वाइकल कैंसर का संकेत हो सकता है. आप तुरंत किसी डाक्टर को दिखाएं, जरूरी जांचें कराएं और उपचार शुरू करें.

-डा. देनी गुप्ता

सीनियर कंसल्टैंटमैडिकल औंकोलौजीधर्मशिला नारायणा सुपर स्पैश्यलिटी हौस्पिटलदिल्ली   

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Monsoon Special: बारिश के साइड इफैक्ट्स

मानसून की रिमझिम बारिश लोगों को चिलचिलाती गरमी से तो राहत दिलाती है, मगर यह भी सच है कि इस मौसम में सिर्फ बड़ेबुजुर्गों को ही नहीं, युवाओं, महिलाओं और बच्चों को भी तरहतरह की बीमारियों का सामना करना पड़ता है. इस मौसम में लगातार बारिश होती रहती है, जिस से हर जगह पानी, कीचड़, गंदगी देखने को मिलती है. इस से जीवाणुओं और विषाणुओं को पनपने का भरपूर मौका मिलता है. मक्खीमच्छर इसी मौसम में सब से ज्यादा पनपते हैं. इस मौसम में पाचनतंत्र भी कमजोर हो जाता है, जिस से शरीर का इम्यून सिस्टम गड़बड़ा जाता है. शरीर की रोगाणुओं और विषाणुओं से लड़ने की ताकत कम हो जाती है और संक्रामक रोगों के होने का खतरा बढ़ जाता है. इसलिए जरूरी है कि इस मौसम में अपने स्वास्थ्य पर तो ध्यान दे हीं, परिवार के सदस्यों को भी रोगों से बचने के उपाय बताएं.

बीमारियां कैसीकैसी

गंदा पानी संक्रामक रोगों के फैलने का बहुत बड़ा कारण है. जगहजगह गंदे पानी के जमाव की वजह से कीटपतंगों व मक्खीमच्छरों के पनपने की आशंका होती है. मच्छरों के काटने से मलेरिया तथा डेंगू फैलता है. बारिश के दिनों में पानी के तेज बहाव के कारण पानी के पाइप लीक करने लगते हैं और कई जगह टूट भी जाते हैं, जिस की वजह से बारिश या फिर सीवेज का पानी वाटर सप्लाई के पानी में मिल कर उसे प्रदूषित कर देता है. इस से कौलरा, टायफाइड, डायरिया, हैपेटाइटिस जैसी बीमारियों के होने की आशंका बढ़ जाती है. मौसम के तापमान में अचानक गिरावट आ जाने तथा सर्द हवाओं की वजह से खांसीजुकाम, निमोनिया, टौंसिलाइटिस, त्वचा संबंधी रोग, आंखों का रोग जैसे कंजंक्टिवाइटिस के होने की भी आशंका बनी रहती है. इस मौसम में हृदय, फेफड़ों, गुरदों, मस्तिष्क संबंधी बीमारियां तथा पीलिया होने की आशंका भी ज्यादा होती है. समय रहते ध्यान न देने से कई बार मरीज की मौत भी हो जाती है.

समय पर कराएं इलाज

मानसून में मच्छरों से मलेरिया, डेंगू जैसी जानलेवा बीमारियां ज्यादा होती हैं. इन के प्रति थोड़ी सी भी लापरवाही से परिणाम घातक हो सकता है. डेंगू काफी खतरनाक रोग होता है. यह बड़ेबूढ़ों के साथ बच्चों को भी संक्रमित करता है, इसलिए इस की थोड़ी सी भी शंका हो यानी मरीज को तेज बुखार, उलटियां, कमजोरी, सिरदर्द होने लगे तो तुरंत इलाज कराएं. गंदे पानी की वजह से पाचनतंत्र की बीमारियां भी आम बात है. इन में टायफाइड, डायरिया, डिसेंट्री के साथसाथ कालरा तक के होने की संभावना होती है. उलटियां, दस्त, बुखार, कमजोरी महसूस होने पर तुरंत इलाज कराएं. अत्यधिक उलटियां या दस्त होने पर मरीज के शरीर में पानी की कमी हो जाती है. ऐसी स्थिति में समय पर अस्पताल न ले जाने पर मरीज के मरने तक की संभावना रहती है. यदि कोई डायबिटीज, हार्टअटैक तथा उच्च रक्तचाप जैसी बीमारियों से ग्रस्त हो तो उसे भी इस मौसम में विशेषतौर पर सावधानी बरतनी चाहिए. डायबिटीज के मरीजों को नंगे पांव चलने से बचना चाहिए. गंदे पानी तथा कीचड़ से सने पैरों से संक्रमण की संभावना बढ़ जाती है. नंगे पांव चलने की वजह से लैप्टोस्पाइरोसिस नामक संक्रमण हो सकता है.

यदि इस मौसम में बच्चों को सर्दी, खांसी या बुखार होने लगे, तो तुरंत अस्पताल ले जाना चाहिए. बहुत छोटे बच्चों को मौसम बदलने की वजह से खासकर श्वसनतंत्र की बीमारियां, जैसे निमोनिया होने की प्रबल संभावना होती है. इस का भी इलाज समय से कराना जरूरी होता है.

बेहतर है बचाव

कहते हैं इलाज से बेहतर है बचाव. इसलिए इन दिनों यदि भावी मुसीबतों से बचाव के लिए तैयारी कर लें, तो मानसून के दौरान होने वाली समस्याओं से तो नजात पा लेंगे, मानसून की बारिश का भी भरपूर आनंद उठा सकेंगे. इस दौरान क्याक्या सावधानियां बरतनी चाहिए. आइए जानें- 

मच्छरों से बचाव : बारिश के दिनों में मच्छरों का प्रजनन बड़ी तेजी से होता है. बारिश के ठहरे पानी में ये तेजी से पनपते हैं. इस दौरान घर तथा बाहर जगहजगह नालियों, गड्ढों, कूलरों, पुराने बरतनों और ड्रमों में पानी जमा रहता है, जहां इन की संख्या में बेतहाशा वृद्धि होती है. इन के काटने से मलेरिया जैसी घातक बीमारी के होने की संभावना होती है. अत: इन से बचाव के लिए हर तरह की एहतियात बरतनी चाहिए. मानसून से पहले ही घर की नालियों की सफाई करवा दें. यदि कहीं गड्ढा है, तो उसे मिट्टी से भरवा दें ताकि बारिश का पानी जमा न हो पाए. मार्केट में मलेरिया से बचाव के लिए दवाएं मिलती हैं, जिन का पहले से सेवन कर लेने से इस की संभावना नहीं रहती. रात को मच्छरदानी लगा कर सोएं. कई लोग मच्छरदानी की जगह मस्क्यूटो क्वायल लगा कर सोते हैं, जिस का निरंतर प्रयोग हानिकारक हो सकता है. इस के धुएं में पाए जाने वाले रसायन शरीर के लिए हानिकारक होते हैं. शाम को घर में नीम की सूखी पत्तियों का धुआं करें. मच्छरों को भगाने के लिए यह अचूक घरेलू उपाय है. मच्छरों को पनपने से रोकने के लिए नालियां, गड्ढों तथा आसपास जमे पानी में मिट्टी का तेल या फिनाइल का छिड़काव करें. यदि आप घूमने जा रहे हैं, तो मस्क्यूटो रेवेलेंट ट्यूब रखना न भूलें. बच्चों को भी रात को सोते समय उन के हाथपैरों, बांहों आदि खुली जगहों पर इसे लगाएं.

डाइट का रखें ध्यान : मानसून में प्रदूषित पेयजल से होने वाली बीमारियों से बचा जा सकता है. हमेशा उबला या फिल्टर्ड पानी ही पिएं. बाहर का पानी, जूस या कच्चे भोज्यपदार्थों का सेवन करने से परहेज करें खासकर सड़क के किनारे खड़े ठेले वालों से चाट, पकौड़े, समोसे न तो खुद खाएं और न ही अपने बच्चों को खाने को दें.

डाक्टरों का मानना है कि फिल्टर्ड वाटर को भी उबाल कर पिएं. केवल फिल्टर कर देने से सारे विषाणु या जीवाणु नहीं मरते हैं. प्रदूषित पानी से टायफाइड, पीलिया, डायरिया, डिसेंट्री, कौलरा के साथसाथ पाचनतंत्र की कई दूसरी बीमारियां भी होती हैं. इन से बचने के लिए खुला खाना खाने और बिना पैकिंग वाला दूषित पानी पीने से बचना चाहिए. खाना बनाने के लिए भी फिल्टर्ड पानी का प्रयोग करें या पानी को खौला कर ठंडा कर लें. गरम पानी पीने से खाना अच्छी तरह पचता है. बाहर के खुले भोज्यपदार्थों पर मक्खियां भिनभिनाती हैं, उन्हें न खाएं. कच्ची सब्जियां खाने से बचें. बारिश के गंदे पानी में चलने से भी तरहतरह की बीमारियां होती हैं, क्योंकि इस से सीवेज वाटर में पाए जाने वाले कीटाणु या जीवाणु शरीर के सीधे संपर्क में आ जाते हैं, जो रोग का कारण बनते हैं. अत: बच्चों को गंदे पानी में चलने या खेलने से रोकें. उन्हें मौसम के अनुरूप ड्रैस पहनाएं ताकि सर्दीखांसी से बचाव हो सके. इस मौसम में बच्चों को गमबूट पहनने के लिए दें और घर लौटने के बाद यदि कपड़े भीगे हों तो उन्हें तुरंत बदल दें. भीगे कपड़ों से सर्दीखांसी होने की संभावना रहती है. बाल गीले हों तो साफ तथा सूखे तौलिए से अच्छी तरह पोंछ दें. एयरकंडीशंड कमरों में गीले कपड़ों में न जाने दें. पैर गीले या गंदे हों तो उन्हें साफ पानी में धोने तथा सूखे तौलिए से पोंछ लेने की हिदायत दें.

मानसून में पाचनतंत्र से संबंधित 2 तरह की बातें देखने को मिलती हैं. पहली, भोजन को पचाने की गति धीमी हो जाती है, जिस कारण सारे खाद्यपदार्थ आसानी से नहीं पचते. फलस्वरूप शरीर की रोग प्रतिरोधी क्षमता कम हो जाती है. दूसरी बात यह है कि इस दौरान बैक्टीरिया तथा वायरस ज्यादा सक्रिय हो जाते हैं. इसलिए खानपान में यदि पर्याप्त हाइजीन मेंटेन नहीं करेंगे तथा सही खाना नहीं खाएंगे तो संक्रमण की प्रबल संभावना रहेगी. इस मौसम में यह समस्या सामने आती है कि क्या खाएं, क्या नहीं. अत: इस मौसम में कच्ची सब्जियों के सेवन से बचें. फलों से भी परहेज करें, क्योंकि फलों तथा सब्जियों में नमी की वजह से तरहतरह के बैक्टीरिया तथा वायरस पनपते हैं. अत: इन की जगह अंकुरित तथा पूरी तरह से पकी सब्जियां ही खाएं. मांस से भी परहेज करें, क्योंकि गरिष्ठ भोजन आसानी से नहीं पचता. यदि आप नानवेज नहीं छोड़ना चाहते तो ताजा ही खाएं. मछली इस मौसम में न खाएं, क्योंकि इस समय मार्केट में ताजा मछलियां कम मिलती हैं.

अपनी डाइट में सूप, गाय का दूध तथा नारियलपानी की मात्रा को बढ़ा दें. इस से शरीर की रोगाणुओं से लड़ने की क्षमता बढ़ती है. ज्यादा तेल, घी तथा मसालेदार खाने से भी बचें. पानी में शहद तथा नीबू की थोड़ी मात्रा डाल कर सेवन करें. इस से इम्यून सिस्टम सुदृढ़ होता है.

खानपान के नियम

खाने में नमक का प्रयोग कम से कम करें, क्योंकि इस से गैस तो बनती ही है, शरीर में पानी का जमाव भी होता है.

अत्यधिक तले भोज्यपदार्थों से परहेज करें, क्योंकि इस मौसम में पाचन क्षमता कमजोर होती है.

मक्का, बाजरा के आटे में अत्यधिक पोषक तत्त्व होते हैं, इसलिए इस आटे का सेवन करें. ऐसे खाद्यपदार्थ जिन में पानी की मात्रा ज्यादा होती है, जैसे करी आदि, को न लें.

सलाद से परहेज करें.

खट्टे भोज्यपदार्थों से बचें.

बाजार के रायते, पनीर का सेवन न करें.

मानसून में करेलों, मेथी के सेवन से संक्रमण से बचाव होता है. इन्हें डाइट में शामिल करें.

कुछ अतिरिक्त सावधानियां

घर को अंदर तथा बाहर से हमेशा साफ तथा सूखा रखें.

घर के आंगन में या बाहर आसपास बारिश के पानी को जमा न होने दें.

शरीर को ढक कर रखें. कम तापमान होने पर संक्रमण की संभावना होती है.

एसी वाले कमरे में भीगे केश तथा भीगे कपड़े पहन कर न जाएं.

पैर गीले हों तो सुखा लें. उन्हें गीला मत छोड़ें.

फल तथा सब्जियों को साफ पानी से धोएं.

खूब पानी पिएं ताकि शरीर में पानी की कमी न होने पाए.

बच्चों को कीचड़, बारिश के गंदे पानी में न खेलने दें.

बांझपन के भावनात्‍मक और मनोवैज्ञानिक दबाव: इनके साथ तालमेल बैठाने और सपोर्ट के संसाधन

आज के समाज में बांझपन (इंफर्टिलिटी) तेजी से चिंता का विषय बनता जा रहा है. विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन के एक आकलन के मुताबिक, भारत में बांझपन की समस्‍या 3.9% से 16.8% तक है. बांझपन (इंफर्टिलिटी) की बढ़ती वजह आज के दौर लोगों की दबाव से भरपूर जीवनशैली और स्‍वास्‍थ्‍यवर्धक आदतों से दूर होने को माना जा रहा है. आधुनिक युग में पुरुषों और औरतों पर वर्क-लाइफ संतुलन बनाने का काफी दबाव है, उस पर अल्‍कोहल और कैफीन का अत्‍यधिक मात्रा में सेवन, तथा बढ़ता धूम्रपान भी इंफर्टिलिटी का कारण बन रहा है.

डॉ राम्या मिश्रा, वरिष्ठ सलाहकार- फर्टिलिटी और आईवीएफ, अपोलो फर्टिलिटी (लाजपत नगर) का कहना है

बेशक, बांझपन (इंफर्टिलिटी) कोई रोग नहीं है लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि इसकी वजह से प्रभावित व्‍यक्ति की भावनात्‍मक और मनोवैज्ञानिक सेहत पर असर पड़ता है. इसके कारण कई प्रकार के मनोवैज्ञानिक-भावनात्‍मक विकार या साइड इफेक्‍ट्स जैसे कि तनाव, अवसाद, नाउम्‍मीदी, अपरोधबोध, झुंझलाहट, चिंता और जीवन में किसी लायक न होने जैसा भाव पैदा होता है.

एनसीबीआई के मुताबिक, बांझपन (इंफर्टिलिटी) से जूझ रहे लोग कई बार दु:ख, अफसोस, अकेलेपन जैसी समस्‍याओं के अलावा मानसिक रूप से काफी परेशान भी महसूस करते हैं. इंफर्टिलिटी से गुज़र रहे व्‍यक्ति की सेहत इन तमाम कारणों से काफी प्रभावित हो सकती है, लेकिन इनसे निपटने और सांत्‍वना देने के लिए कई उपाय और सपोर्ट सिस्‍टम्‍स भी हैं, जो मददगार साबित हो सकते हैं.

  1. इंफर्टिलिटी का भावनात्‍मक तथा मनोवैज्ञानिक प्रभाव

हालांकि बांझपन (इंफर्टिलिटी) कोई जीवनघाती समस्‍या नहीं है, लेकिन इसे कपल्‍स के जीवन में तनावपूर्ण स्थिति के रूप में देखा जाता है। चूंकि हमारे समाज में, वैवाहिक जीवन में बच्‍चों का होना काफी महत्‍वपूर्ण घटना मानी जाती है, ऐसे में बांझपन के चलते तनाव की स्थिति काफी बढ़ सकती है. गर्भधारण नहीं कर पाने के चलते कपल्‍स अपरोध बोध, पश्‍चाताप, निराशा, दुख, चिंता और झुंझलाहट जैसी भावनाओं के ज्‍वार से जूझते हैं. उस पर उन्‍हें समाज के दबाव भी झेलने पड़ते हैं, जो उनकी पहले से तनाव की स्थिति को और बढ़ाता है तथा उनके आत्‍म-सम्‍मान की भावना भी घटाता है। इसका परिणाम यह होता है कि वे अपने खुद के महत्‍व को लेकर सवाल करने लगते हैं.

हालांकि बांझपन (इंफर्टिलिटी) की समस्‍या से पुरुष और महिलाएं दोनों ही जूझ सकते हैं, लेकिन अक्‍सर समाज में महिलाओं को ही इसके लिए जिम्‍मेदार ठहराया जाता है. विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन का कहना है कि बांझपन झेल रहे कपल्‍स की जिंदगी पर समाज का नकारात्‍मक असर पड़ता है, खासतौर से महिलाओं को इसका दबाव ज्‍यादा सहना पड़ता है और वे कई बार हिंसा, तलाक, सामाजिक तौर पर बेइज्‍़ज़ती, भावनात्‍मक दबाव, निराशा, चिंता तथा आत्‍म-सम्‍मान में कमी जैसी समस्‍याओं को सहने को मजबूर होती हैं.

बांझपन (इंफर्टिलिटी) की वजह से पैदा होने वाला निराशा का भाव आपको अवसाद के गर्त में डुबो सकता है जहां से वापसी या आत्‍म-सम्‍मान वापस प्राप्‍त करना काफी चुनौतीपूर्ण भी हो सकता है. लेकिन इससे निपटने के कई उपाय हैं और कई तरह के सपोर्ट भी उपलब्‍ध हैं जो कपल्‍स को बांझपन के दबावों से मुक्‍त रखने में मददगार साबित हो सकते हैं.

2. समस्‍या के साथ तालमेल बैठाने और सपोर्ट समाधान

1.सैल्‍फ-केयर

इसमें कोई शक नहीं कि खुद की देखभाल (सैल्‍फ केयर) सबसे बेहतरीन तरीका होता है अपना ख्‍याल रखने का. अपना मनपसंद मील बनाएं, सुकूनदायक संगीत को सुनें, सैर पर जाएं, रिलैक्सिंग स्‍नान करें और अच्‍छी नींद लें. अपने लिए कुछ समय निकालें और अपना ख्‍याल करें.

2. किसी नई हॉबी को अपनाएं

इंफर्टिलिटी से जूझते हुए बेशक, अपनी भावनाओं को समझना और संभावना काफी अहम् होता है, लेकिन लगातार उनके बारे में सोचते रहते से आप तनाव बढ़ाते हैं और एंग्‍ज़ाइटी भी लगातार बढ़ती रहती है. इसलिए यह जरूरी है कि आप अपने लिए कुछ समय निकालें, अपनी मनपसंद हॉबी को समय दें. कुछ ऐसा करें जिससे आपको सहजता हो और आप खुद को रिलैक्‍स महसूस करें, जैसे कि कुकिंग क्‍लास, म्‍युज़‍िक लैसन या पेंटिंग क्‍लास आदि से जुड़ें.

3. एक्‍सपर्ट की सहायता लें

अगर आपको लगता है कि आपके हालात बेकाबू हो रहे हैं, तो बेहतर होगा कि आप किसी हैल्‍थ प्रोफेशनल की मदद लें जो आपको सही तरीके से अपनी भावनाओं को नियंत्रित करने के उपायों के बारे में बता सकते हैं और आपको खुद को सकारात्‍मक बनाने की दिशा भी दिखा सकते हैं. सच तो यह है कि किसी फर्टिलिटी स्‍पेश्‍यलिस्‍ट से परामर्श लेना सही फैसला हो सकता है, जो आपको कुछ अन्‍य तरीकों से गर्भधारण के बारे में जानकारी दे सकते हैं.

4. क्‍या करें कि सब ठीक रहे

आज के समय में बांझपन (इंफर्टिलिटी) की समस्‍या काफी व्‍यापक हो चली है जिसका लोगों के भावनात्‍मक तथा मनोवैज्ञानिक स्‍वास्‍थ्‍य पर विपरीत असर पड़ता है. इसका नकारात्‍मक असर तनाव, स्‍वभाव में चिडचिड़ापन, नाउम्‍मीदी का भाव, अपरोधबोध, निराशा और एंग्‍जाइटी बढ़ाता है. जब आप खुद को व्‍यस्‍त रखने के लिए किसी नई हॉबी को अपनाते हैं, सैल्‍फ-केयर पर ध्‍यान देते हैं और अपने हालात से निपटने के लिए प्रोफेशनल मार्गदर्शन लेते हैं, तभी आपको इस पूरे हालात के बारे में सकारात्‍मक परिप्रेक्ष्‍य दिखायी देता है.

मौनसून का मिलेट्स से क्या है रिश्ता

आजकल स्वास्थ्य को ले कर लोगों में जागरूकता बढ़ी है. नियमित वर्कआउट करना उन की दिनचर्या में शामिल हो चुका है, लेकिन उन की डाइट में जागरूकता की बहुत कमी है क्योंकि आज के युवा जंक फूड पर अधिक रहने लगे हैं. उन्हें घर का बना खाना पसंद नहीं. ऐसे में बहुत कम उम्र में उन्हें मोटापा, कोलैस्ट्रौल, ब्लडप्रैशर आदि कई बीमारियां घेर लेती हैं, जिन से निकल पाना उन के लिए मुश्किल होता है.

ऐसे में आज डाइटीशियन हर व्यक्ति को मिलेट्स को दैनिक जीवन में शामिल करने की सलाह बारबार दे रहे हैं. मिलेट्स यानी मोटा अनाज. यह 2 तरह का होता है- मोटा दाना और छोटा दाना. मिलेट्स की कैटेगरी में बाजरा, रागी, बैरी, झंझगोरा, कुटकी, चना और जौ आदि आते हैं.

जागरूकता है जरूरी

इस बारे में क्लीनिकल डाइटीशियन हेतल व्यास कहती है कि मिलेट्स इम्यूनिटी बूस्टर का काम करता है. 2023 को सरकार ने ‘मिलेट्स ईयर’ घोषित किया है ताकि लोगों में मिलेट्स के प्रति जागरूकता बढे़. मिलेट्स में कैल्सियम, आयरन, जिंक, फास्फोरस, मैग्नीशियम, पोटैशियम, फाइबर, विटामिन बी-6 मौजूद होते हैं.

ऐसिडिटी की समस्या में मिलेट्स फायदेमंद साबित हो सकता है. इस में विटामिन बी-3 होता है, जो शरीर के मैटाबोलिज्म को बैलेंस रखता है. मिलेट्स में कौंप्लैक्स कार्बोहाइड्रेट रहता है, इसलिए फाइबर की मात्रा अधिक होती है. यह ग्लूटेन फ्री होता है. इस से वजन कम होता है. कुछ लोग ग्लूटेन सैंसिटिव होते हैं. इस से उन का वजन बढ़ जाता है. मिलेट्स में इन सब की मात्रा न होने की वजह से डाइजेशन शक्ति बढ़ती है.

मौनसून में अधिक उपयोगी

मौनसून में पूरा मौसम बदल जाता है. बच्चों से ले कर वयस्कों सभी को कोल्ड, कफ, डायरिया आदि हो जाता है. इस मौसम ने रोगप्रतिरोधक क्षमता में कमी आ जाती है, साथ ही पीने का पानी बदल जाता है. बारिश की वजह से उस समय लोगों की चटपटा खाने की इच्छा होती है. इस से पेट खराब हो जाता है. इस मौसम में मिलेट्स से बना भोजन अधिक लेना चाहिए क्योंकि यह हलका होने के साथसाथ पच भी जल्दी जाता है.

नाचनी की रोटी, पोरिज, ड्राईफू्रट के साथ उस के लड्डू आदि सभी चीजें इस मौसम में खाई जा सकती हैं. अगर मौनसून में बाहर का खाना खाते हैं तो कब्ज की शिकायत हो जाती है और पेट फूल जाता है. ऐसे में नाचनी, ज्वार, बाजरा आदि से बना भोजन अच्छा होता है. नाचनी को रेनी सीजन का बैस्ट भोजन माना जाता है.

वेट लौस का है मंत्र

हेतल कहती है कि वेट लौस का भी यही मंत्र है, अगर कोई व्यक्ति गेहूं की 4 रोटियां खाता है, तो वह ज्वार या बाजरा की 2 रोटी ही खा सकेगा. इस के अलावा रागी में कैल्सियम होता है. इस से ऐसिडिटी नहीं होती. हजम करना भी आसान होता है. डाइजेशन सिस्टम पर किसी प्रकार का प्रैशर नहीं होता. छोटे मिलेट्स जैसे कंगनी, कोदो, चीना, सांवा और कुटकी आते हैं. ये छोटे अवश्य हैं, लेकिन इन के फाइबर कंटैंट बहुत अधिक हैं. कुछ

फायदे मिलेट्स के निम्न हैं:

  •  मिलेट्स ब्लड सिर्कुलेशन को बढ़ाता है. इसे नियमित भोजन में शामिल करना अच्छा होता है, जिस से इम्यूनिटी बढ़ती है.
  • वजन कम करने में सहायक होता है क्योंकि मिलेट्स के सेवन से पेट भरा हुआ महसूस होता है, जिस से भूख कम लगती है.
  • मिलेट्स में ऐंटीऐजिंग के गुण होने की वजह से त्वचा पर काले धब्बे, डलनैस, पिंपल्स और ?ार्रियों में कमी आती है.
  • पाचनशक्ति को बढ़ाने में सहायक होने की वजह अधिक फाइबर का होना.
  • डायबिटीज को कम करने में सहायक होने की वजह ग्लूटेन फ्री होना.
  • कुछ अध्ययनों में पाया गया है कि मिलेट्स में मौजूद मैग्नीशियम पीरियड्स क्रैंप्स से राहत देता है.
  • कैल्सियम अधिक होने की वजह से हड्डियां मजबूत होती हैं.
  • मिलेट्स में मैग्नीशियम बहुत अच्छी मात्रा में पाया जाता है, जो हार्ट अटैक से शरीर का बचाव करने में सहायक होता है क्योंकि यह मांसपेशियों को आराम दे कर ब्लड को निरंतर चलने में सहायता करता है.
  • मिलेट्स में ऐंटीऔक्सीडैंट्स शरीर में मौजूद सभी कैंसर कोशिकाओं पर नजर रखते हैं. इस से कैंसर का खतरा कम होता है.
  • बौडी डिटौक्स करने में सहायक होता है.

कैसे करें सेवन

हेतल कहती है कि दूध में नाचनी या ज्वार के आटे को डाल कर सुबह का नाश्ता यानी पोरिज बना सकते हैं. इस के लिए नाचनी के आटे को धीमी आंच पर थोड़ा घी डाल कर सेंक लें. उस में दूध या छाछ मिला कर ठंडा या गरम पोरिज ले सकते हैं. उस के ऊपर थोड़ा ड्राईफ्रूट डाल देने से वह और अधिक स्वादिष्ठ बन जाता है. दिन में 2 बार नाचनी, ज्वार, बाजरा की रोटी खाई जा सकती है.

मधुमेह के रोगी सांवा की रोटी चावल के स्थान पर खाते हैं. नाचनी के डोसे और इडली भी बनाई जा सकती है. खाने में हमेशा उस की मात्रा पर अधिक ध्यान देना पड़ता है. फाइबर अधिक होने से कम मात्रा में खाने से ही पेट भरा हुआ लगता है.

आज के यूथ को जंक फूड के अलावा कुछ और खिलाना मुश्किल होता है. ऐसे में नाचनी, ज्वार, बाजरा को गेहूं में मिला कर आटा बनाया जा सकता है. इस से बनी रोटी फायदेमंद होती है. इस के अलावा मखना, राजगिरा के मीठे लड्डू आदि सभी बच्चे आसानी से खा लेते हैं.

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