सुरक्षा कवच है मां का दूध

मां का दूध शुरुआत से ही इम्यूनिटी को बूस्ट करने वाली ऐंटीबौडीज से भरपूर होता है. कोलोस्ट्रम, जो ब्रैस्ट मिल्क की पहली स्टेज कहा जाता है, ऐंटीबौडीज से भरा होता है. यह गाढ़ा व पीले रंग का होने के साथसाथ प्रौटीन, फैट सोलुबल विटामिंस, मिनरल्स व इम्मुनोग्लोबुलिंस में रिच होता है. यह बच्चे की नाक, गले व डाइजेशन सिस्टम पर प्रोटैक्टिव लेयर बनाने का काम करता है, जिसे अपने बच्चे की इम्यूनिटी को बूस्ट करने के लिए जरूर देना चाहिए.

फौर्मूला मिल्क में ब्रैस्ट मिल्क की तरह पर्यावरण विशिष्ट ऐंटीबौडीज नहीं होती हैं और न ही इस में शिशु की नाक, गले व आंतों के मार्ग को ढकने के लिए ऐंटीबौडीज यानी फौर्मूला मिल्क बेबी को कोई खास प्रोटैक्शन देने का काम नहीं करता है. इसलिए शिशु के लिए मां का दूध ही है सब से उत्तम व हैल्दी.

वर्ल्ड ब्रैस्ट फीडिंग वीक

वर्ल्ड ब्रैस्ट फीडिंग वीक दुनियाभर में 1 से 7 अगस्त तक मनाया जाता है, जिस का उद्देश्य ब्रैस्ट फीडिंग के प्रति मां व परिवार में जागरूकता पैदा करना होता है. साथ ही मां के पहले गाढ़े दूध के प्रति भ्रांतियों को भी दूर किया जाता है. इस में बताया जाता है कि जन्म के पहले घंटे से ही शिशु को मां का दूध दिया जाना चाहिए क्योंकि यह बच्चे के लिए संपूर्ण आहार होता है.

मां को दूध पिलाने में उस के परिवार, डाक्टर, नर्स को भी अहम योगदान देना चाहिए क्योंकि ब्रैस्ट फीड न सिर्फ बच्चे को बल्कि मां को भी बीमारियों से बचाने में मदद करता है. रिसर्च के अनुसार अब ब्रैस्ट फीडिंग के प्रति महिलाएं भी इस के महत्त्व को समझते हुए जागरूक हो रही हैं.

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ब्रैस्ट मिल्क के और भी हैं फायदे

वजन को बढ़ाने में मददगार ब्रैस्ट मिल्क हैल्दी वेट को प्रोमोट करने के साथसाथ मोटापे के खतरे को भी कम कर देता है. अनेक रिसर्च में यह साबित हुआ है कि फौर्मूला मिल्क पीने वाले शिशुओं की तुलना में ब्रैस्ट फीड करने वाले शिशुओं में मोटापे का खतरा 15 से 30% कम हो जाता है. यह विभिन्न गट बैक्टीरिया के विकास के कारण होता है.

स्तनपान करने वाले शिशुओं में बड़ी मात्रा में गट बैक्टीरिया देखे जाते हैं, जो फैट स्टोरेज को प्रभावित करने का काम करते हैं. साथ ही ब्रेस्ट फीड करने वाले शिशुओं में लैप्टिन की मात्रा बहुत अधिक होती है. यह ऐसा प्रमुख हारमोन होता है, जो भूख व वसा के भंडारण को नियंत्रित करने का काम करता है.

ज्यादा स्मार्ट

हम जितनी हैल्दी व न्यूट्रिशन से भरपूर डाइट लेते हैं, तो उस से हमारे संपूर्ण विकास में मदद मिलने के साथसाथ हमारा माइंड भी ज्यादा तेज व ऐक्टिव बनता है. ठीक यही बात ब्रैस्ट मिल्क के संदर्भ में भी लागू होती है.

जिन भी शिशुओं को शुरुआती 6 महीने भरपूर स्तनपान करवाया जाता है उन बच्चों का मस्तिष्क विकास बहुत तेजी से होता है. उन की उम्र के साथसाथ सोचनेसमझने की क्षमता का भी तेजी से विकास होता है क्योंकि ब्रैस्ट मिल्क में पाए जाने वाले न्यूट्रिएंट्स जैसे डोकोसा इनोस ऐसिड, आराछिडोनिक ऐसिड, ओमेगा 3 व 6 फैटी एसिड्स शिशु के मस्तिष्क विकास में मदद करते हैं. इस से बच्चे की लर्निंग ऐबिलिटी में भी सुधार होता है. ऐसे बच्चों का आईक्यू लैवल भी अच्छाखासा देखा गया है.

बीमारियों से प्रोटैक्शन

जब बच्चा इस दुनिया में आता है तो पेरैंट्स उसे हर तरह से सुरक्षा देने का काम करते हैं ताकि उन का बच्चा बीमारियों से बचा रहे. लेकिन इस दिशा में शिशु के लिए मां के दूध से बढ़ कर कुछ नहीं हो सकता. अगर शुरुआती 6 महीने आप के शिशु ने ब्रैस्ट फीड कर लिया, फिर आप को बारबार उस के लिए डाक्टर के चक्कर काटने नहीं पड़ेंगे क्योंकि मां का परिपक्व इम्यून सिस्टम कीटनियों के प्रति ऐंटीबौडीज बनाता है, जो ब्रैस्ट मिल्क के जरीए शिशु के शरीर में प्रवेश कर के बीमारियों से बचाता है.

इम्युनोग्लोब्यूलिन ए, जो ऐंटीबौडी रक्त प्रोटीन होता है. बच्चे की अपरिपक्व आंतों की परत को कवर करता है, जिस से कीटाणुओं व जर्म्स को बाहर निकलने में मदद मिलती है. इस कारण वह रैस्पिरेटरी इन्फैक्शन, कान में इन्फैक्शन, एलर्जी, आंतों में इंफैक्शन, पेट में इंफैक्शन आदि से बचा रहता है.

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लोअर रेट आफ इन्फैंट मोर्टैलिटी

अगर बात करे इन्फैंट मोर्टैलिटी की तो ये दुनिया में बहुत बड़ी चिंता का विषय है. अकसर इस का कारण होता है लो बर्थ वेट, श्वसन संबंधित दिक्कत, फ्लू, डायरिया, निमोनिया, मलेरिया, ब्लड में इन्फैक्शन, इन्फैक्शन आदि. लेकिन देखने में आया है कि जो मांएं अपने बच्चे को भरपूर स्तनपान करवाती हैं, उन के बच्चे का वजन बढ़ने के साथसाथ इम्यूनिटी भी धीरेधीरे मजबूत होने से वे आसानी से किसी भी तरह के संक्रमण के संपर्क में नहीं आते हैं व उस का मुकाबला करने में सक्षम हो जाते हैं. इस से ऐसे बच्चों में मृत्यु दर कम देखने को मिलती है यानी ब्रैस्ट मिल्क से बेबी को स्पैशल केयर दे कर उस की जान बचाई जा सकती है.

मौम के लिए भी मददगार

बेबी को ही नहीं बल्कि ब्रैस्ट फीडिंग से मौम को भी ढेरों फायदे मिलते हैं. इस से ऐक्स्ट्रा कैलोरीज बर्न होने से मौम को अपने बढ़े हुए वेट को मैनेज करने में आसानी होती है. यह औक्सीटौक्सिन हारमोन को रिलीज करता है, जो यूटरस को अपने साइज में लाने व ब्लीडिंग को कम करने में मददगार होता है. साथ ही यह ब्रैस्ट, ओवेरियन कैंसर, डायबिटीज, दिल से संबंधित बीमारी के खतरे को कम करने का काम करता है. इसलिए ब्रैस्ट फीडिंग से बेबी के साथसाथ खुद की हैल्थ का भी रखें खयाल.

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क्यों जरूरी है मैंस्ट्रुअल हाइजीन

आप को जान कर हैरानी होगी कि भारत के सभी राज्यों में से सिर्फ 2 राज्य, गुजरात और मेघालय में ही 65% महिलाएं पीरियड प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करती हैं, जबकि बाकी राज्यों में यह आंकड़ा काफी कम है. आधुनिकता और सूचनाओं के तमाम विकल्पों के बावजूद देश की तीनचौथाई से अधिक महिलाएं सैनिटरी नैपकिन का इस्तेमाल नहीं करतीं और आज भी पीरियड्स के दौरान पुराने तौरतरीके अपनाती हैं, जिस का प्रमुख कारण अधिकांश लड़कियां व महिलाएं इस विषय पर बात करना भी शर्म की बात समझती हैं.

इस के कारण न सिर्फ संक्रमण का डर बना रहता है, बल्कि बांझपन व कैंसर का भी काफी खतरा रहता है. इसलिए जरूरत है जागरूकता की ताकि पीरियड्स के दौरान महिलाएं पीरियड प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल कर के खुद के हाइजीन का ध्यान रख सकें.

पीरियड्स के दौरान जब महिलाएं कपड़े का सब से ज्यादा इस्तेमाल करती हैं तो उस से योनि में इन्फैक्शन होने के चांसेज काफी ज्यादा हो जाते हैं, जिस का सीधा संबंध सर्वाइकल कैंसर से जुड़ा हुआ है. भारत में हर साल हजारों महिलाओं की यूटरस व सर्वाइकल कैंसर से मृत्यु हो जाती है.

इस में ज्यादा संख्या रूरल एरिया की महिलाओं की है, जो पीरियड्स के दौरान हाइजीन का जरा भी ध्यान नहीं रखती हैं. ये कैंसर सीधे तौर पर महिलाओं के जननांग से जुड़ा कैंसर होता है, जो सर्विक्स की कोशिकाओं को प्रभावित कर के कैंसर का कारण बनता है.

सस्ते नैपकिन खरीदना बड़ी समस्या

सभी जानते हैं कि महिलाएं अपने परिवार को प्राथमिकता देती हैं. फिर चाहे उन के खानपान की बात हो या फिर उन की हैल्थ की, इस चक्कर में वे खुद को पूरी तरह से इग्नोर कर देती हैं, जिस कारण उन में ढेरों कमियां रहने के साथसाथ पैसा बचाने के चक्कर में सस्ते नैपकिन या फिर घर में रखे कपड़े का ही इस्तेमाल कर लेती हैं. भले ही आप को ये नैपकिन कम दाम पर मिल जाते हैं, लेकिन इन में ब्लीचिंग सहित अनेक खतरनाक कैमिकल्स का इस्तेमाल होने के कारण ये ओवेरियन कैंसर के साथसाथ बांझपन का भी कारण बनते हैं.

अधिकांश महिलाएं नौनऔर्गेनिक सैनिटरी पैड्स का इस्तेमाल करती हैं, जिस में एक पैड में 4 प्लास्टिक बैग जितनी प्लास्टिक होती है, जिस से आप अनुमान लगा सकते हैं कि ये महिलाओं की सेहत के लिए कितने हानिकारक होते हैं.

कैसे रखें हाइजीन का ध्यान

पैड्स का इस्तेमाल करने में न करें कंजूसी: अगर आप हर माह आने वाले पीरियड्स में कपड़े का इस्तेमाल कर रही हैं तो सावधान हो जाएं. क्योंकि इस में ढेरों जीवाणु होने के कारण ये आप की रिप्रोडक्टिव हैल्थ को खराब कर सकते हैं. इसलिए पीरियड्स के दौरान हमेशा अच्छे यानी और्गेनिक पैड्स का ही इस्तेमाल करना चाहिए क्योंकि ये नैचुरल होने के साथसाथ इन की सोखने की क्षमता भी काफी अच्छी होती है. साथ ही ये नैचुरल चीजों से बने होने के कारण यूरिन इनफैक्शन, कैंसर होने के चांसेज काफी कम हो जाते हैं. ये ज्यादा कंफर्टेबल होने के कारण वैजाइना की हैल्थ के लिए भी काफी होते हैं.

आप को इस बात का भी ध्यान रखना बहुत

जरूरी है कि चाहे आप के पीरियड्स का फ्लो ज्यादा न भी हो, तब भी हर 2-3 घंटे में पैडस बदलती रहें ताकि किसी भी तरह के इन्फैक्शन के चांसेज न रहें.

डेली बाथ लें: पीरियड्स के दौरान महिलाओं के शरीर में तरहतरह के बदलाव आते हैं. कभी पेट दर्द की समस्या तो कभी कमर दर्द की समस्या. ऐसे में कई बार लड़कियां व महिलाएं पीरियड्स के दौरान डेली बाथ लेना पूरी तरह से अवौइड कर देती हैं, जो योनि में इन्फैक्शन का कारण बन सकता है. ऐसे में खुद के हाइजीन का ध्यान रखते हुए इस दौरान डेली नहाने की आदत डालें ताकि खुद को इन्फैक्शन से बचा सकें.

टैंपून्स भी बैस्ट औप्शन: आप को अगर हैवी फ्लो आता है या फिर आप बारबार पैड्स बदलने के झंझट से बचना चाहती हैं तो टैंपून्स काफी सेफ व बैस्ट औप्शन है. इसे बस आराम से वैजाइना के अंदर इंसर्ट करने की जरूरत होगी. यह इजी टू यूज के साथसाथ काफी आरामदायक भी होता है. बस इस बात का ध्यान रखें कि 8 घंटे से ज्यादा एक टैंपून का इस्तेमाल न करें वरना यह इन्फैक्शन का कारण बन सकता है.

कौटन पैंटी पहनें: इन दिनों के लिए आप की पैंटी कौटन की व साफसुथरी होनी चाहिए क्योंकि अगर आप एक ही गंदी पैंटी को रोजाना इस्तेमाल करेंगी, तो इस से संक्रमण का खतरा काफी बढ़ जाता है, इसलिए अगर आप कौटन की पैंटी का इस्तेमाल करेंगी, तो यह कंफर्टेबल होने के साथसाथ स्किन फ्रैंडली भी होगी.

इन 6 तरीकों में नींद हो सकती है आपकी सुपर पावर

आज के इतने व्यस्त और थका देने वाले शेड्यूल में हम एक चीज को सबसे हल्के में लेते हैं और वह है हमारी नींद. हाल ही में हुई एक स्टडी के मुताबिक भारतीय लोग दुनिया के स्लीप डेप्रिव्ड लोगों की श्रेणी में दूसरे नंबर पर आते हैं. इसमें पहले नंबर पर जापान है. मॉडर्न दुनिया में अब नींद को एक जरूरत ही नहीं माना जा रहा है. नींद पूरी करना काफी ज्यादा जरूरी होता है और इससे हमारा शरीर और दिमाग रिचार्ज होता है. नींद पूरी करने से आप पूरे दिन के लिए रिफ्रेश महसूस करते हैं.

चूंकि नींद शरीर का एक काफी जरूरी फंक्शन है, अगर इसे पूरा नहीं किया गया तो हमारे दिन की एनर्जी पर प्रभाव पड़ सकता है. इससे इमोशनल बैलेंस, प्रोडक्टिविटी और यहां तक कि हमारा वजन भी प्रभावित हो सकता है. एक व्यक्ति को रोजाना 7 से 9 घंटों की नींद जरूर पूरी करनी चाहिए.

कोरोना के साथ साथ अन्य चुनौतियों के साथ लोग अब अपने रूटीन को नॉर्मल बनाने की ओर जा रहे हैं. स्ट्रेस मुक्त रहने के लिए और चैन की नींद सोने के लिए आप काफी कुछ कर सकते हैं. स्लीपX न्यू एज मैट्रेस ब्रांड, शीला फोम के अनुसार इसके लिए आपको सोने का एक प्रॉपर वातावरण चाहिए होता है जो आपकी सारी आराम की जरूरतों को पूरा कर पाए. निम्न टिप्स की मदद से आप चैन की नींद सो सकते हैं.

1. नियमित रूप से एक्सरसाइज करें :

अगर रोजाना ब्रिस्क वॉक करते हैं तो मसल्स टोन होने में मदद मिलती है और रात में थोड़ा शांत भी महसूस होता है. जो लोग रोजाना एक्सरसाइज करते हैं वह रात में शांति से सो पाते हैं और अगले दिन भी उन्हे एनर्जेटिक महसूस होता है. मेटाबॉलिक बेनिफिट्स के साथ साथ एक्सरसाइज इमसोमनिया के लक्षणों से राहत दिलाने में लाभदायक है और इससे आपके सोने का समय भी बढ़ सकता है. सोने से पहले 3 से 4 घंटे पहले ही एक्सरसाइज करें. इसके बाद एक्सरसाइज करने से रात में सोने में दिक्कत हो सकती है. एक्सरसाइज करने से स्लीप अपनिया जैसे डिसऑर्डर के लक्षणों से भी राहत पाई जा सकती है.

2. सही गद्दे को चुनें :

अगर गद्दा कंफर्टेबल होगा तो आपको सोने के समय जिस आराम की जरूरत होती है वह शरीर को मिल जाता है. यह शरीर को सोते समय सही पोस्चर में और सही स्पाइनल अलाइनमेंट रखने में मदद करता है. एक बढ़िया गद्दा वही होता है जो आपकी स्किन को सोते समय सही रख सके. इससे आपको अगले दिन भी पूरी एनर्जी महसूस होगी. गद्दा ज्यादा गर्म भी नहीं होना चाहिए और आपके बजट में भी फिट बैठना चाहिए. अगर गद्दा अच्छा नहीं होगा तो अगले दिन आपके पूरे शरीर में दर्द हो सकता है जिससे आप इरिटेट महसूस कर सकते हैं.

3. लाइट कम कर दें :

आपका शरीर एक प्राकृतिक क्लॉक का काम करता है. यह क्लॉक आपके दिमाग, शरीर और हार्मोन्स को प्रभावित कर सकते हैं. यह क्लॉक ही आपको दिन के दौरान जागते रहने और रात के समय सोने में मदद करती है. रात को सोने से एक से दो घंटे पहले आपको ब्लू स्क्रीन से दूरी बना लेनी चाहिए. फोन या टीवी से निकलने वाली रोशनी आपकी नींद को प्रभावित कर सकती है.

4. अपने सोने के वातावरण पर भी ध्यान दें :

सोने के वातावरण में आवाज, रूम का तापमान और आपके कमरे का ओवर ऑल वातावरण शामिल होता है. अगर यह माहौल अच्छा होगा तो आपका शरीर दिमाग तक यह संकेत भेजेगा कि अब सोने का समय हो गया है और अब चिंता मुक्त हो कर सो जाना चाहिए. इसलिए सोते समय यह जरूरी होता है कि सारी आवाज को बंद किया जाए और कमरे के तापमान को नॉर्मल रखा जाए. सोते समय कमरे की अधिकतर लाइट भी बंद कर देनी चाहिए.

5. पूरे दिन की डाइट का भी ध्यान रखें :

आपके खाने और पीने का ढंग भी आपकी नींद को प्रभावित करता है. अपने खाने पीने का ढंग पर ध्यान रखने के कारण आप खुद को हेल्दी रख सकते हैं और इससे आपको रात में सोने में भी मदद मिल सकती है. अपनी डाइट को फल और सब्जियों से भरपूर रखें. ड्रिंकिंग में शराब, निकोटिन और कैफ़ीन का सेवन ज्यादा मात्रा में न करें. अगर सोने से पहले कैफ़ीन का सेवन कर लिया जाए तो इसके बाद सोने में दिक्कत आती है और 12 घंटे तक सोया नहीं जाता है. अगर सोने के समय शराब पीते हैं तो इससे नींद आने में तो मदद मिल सकती है लेकिन बाद में नींद खराब हो सकती है.

6. शरीर के जागने और सोने के ढंग का ख्याल रखें :

अच्छी नींद आने का सबसे बढ़िया तरीका है अपने सोने और जागने के समय का ध्यान रखना. अगर आप अपने सोने और जागने के समय का एक शेड्यूल बना लेते हैं तो आपको काफी रिफ्रेश महसूस होता है और एनर्जी भी महसूस होती है. ऐसा तब होता है जब आप रोजाना एक ही समय पर सोते हैं और एक ही समय पर जागते हैं. इसलिए अपने जागने और सोने का खासकर वीकेंड के समय जरूर ध्यान रखें. अगर दिन में सोते हैं तो 15 से 20 मिनट के लिए ही झपकी ले. अगर इससे ज्यादा सोते हैं तो रात में नींद कम आ सकती है और सोते समय बीच में आंख भी खुल सकती हैं.

Holi 2024: इन बातों का रखें ख्याल, होली होगी और भी मजेदार

होली उमंग, उल्लास, उधम-कूद, भाग दौड़ का त्योहार है. मस्ती के इस मौके पर हमारी एक छोटी सी लापरवाही से किसी का बड़ा नुकसान हो सकता है. ऐसे में हम आपको कुछ खास बाते बताने वाले हैं, जिनको ध्यान में रख कर आप बेहतर ढंग से होली का लुत्फ उठा सकती हैं.

शुगर पर रखें काबू

इस बात का ख्याल रखना खासा जरूरी है. खास कर के जो लोग शुगर के मरीज हैं. त्योहारों में तेल और शक्कर से बने हुए पकवानो की भरमार होती है. डायबिटीज के मरीजों के लिए तेल और चीनी, दोनों ही नुकसानदायक होते हैं. मौज मस्ती में इन पकवानो का अधिक सेवन बाद में आपके लिए परेशानी का सबब बन सकते हैं. इस लिए जरूरी है कि आप अपने खानपान पर अत्धिक ध्यान रखें और संयामित हो कर कुछ भी खाएं.

आंखों का रखें ख्याल

होली में खेले जाने वाले रंग रसायन से मिल कर बने होते हैं. अगर ये आंख में चले जाएं तो तेज जलन और कौर्निया को नुकसान पहुंचा सकते हैं. जो लोग लेंस लगात हैं, वो रंग खेलते वक्त अपने लेंस उतार लें. ऐसा ना करना उनकी आंखों के लिए खतरनाक हो सकता है.

दिल का रखें ध्यान

दिल की बीमारी झेल रहे लोगों को मिठाइयों, तेल के पकवानो से दूरी बनानी चाहिए. होली पर बनने वाले पकवान उनकी सेहत के लिए हानिकारक हो सकते हैं. भारी खानपान से बेहतर कुछ हल्का फुल्का खाएं. त्योहार के उत्साह में कुछ भी ऐसा ना करें जिससे दिल पर जोर पड़े या धड़कन तेज हो जाए. अपनी दवाइयों को लेना ना भूलें.

किसी के नाक में ना जाए रंग

होली खेलते हुए हमें इस बात का खास ख्याल रखना चाहिए कि रंग किसी की नाक में ना जाए. ये रंग आर्टिफीशियल होते हैं और तरह तरह के रसायनो से बने होते हैं. ऐसे में अगर रंग नाक में जाएगा तो गंभीर परेशानियां हो सकती हैं.

Holi 2024: फेस्टिवल पर रखें अपनी सेहत का ख्याल, इन टिप्स को करें फॉलो

होली मौज-मस्ती, हर्ष-उल्लास, उधम-कूद, भागा-दौड़ी का त्योहार है. वसंत ऋतु में आने वाले इस पर्व की अलग की रौनक होती है. इस दौरान बनने वाले खास खाने, मिठाइयां, ठंडई, पकवान इसे और अधिक खास बनाते हैं.

अक्सर इस मौज मस्ती में लोग अपने और अपनो का ख्याल रखने से चूक जाते हैं. रंगों की मौज मस्ती में, खाने पीने में बहुत सी ऐसी लापरवाहियां हो जाती हैं जो होली के उमंग को फीका कर देती हैं. ऐसे में हम होली खेलने के दौरान और खानपान के बारे में कुछ खास टिप्स बताएंगे जिनको ध्यान में रख कर आप इस होली को यादगार और मजेदार बना सकती हैं. तो आइए शुरू करें

1. बचें सिंथेटिक रंगों से

होली में सिंथेटिक रंगों से बच कर रहें. इनमें लेड आक्साइड, मरकरी सल्फाइड ब्रोमाइड, कापर सल्फेट आदि भयानक केमिकल मिले होते हैं जो कि आंखों की एलर्जी, त्वचा में खुजली और अंधा तक बना देते हैं. इन रंगों के दूरी बनाने की कोशिश करें.

2. एलर्जी के मरीज रहें सतर्क

बहुत से लोगों को रंगों से एलर्जी होती है. उन्हें खास कर के इन रंगों से दूर रहना चाहिए. इसके अलावा जिन लोगों को त्वचा संबंधित परेशानियां हैं उन्हें भी इससे दूर रहना चाहिए. एक और जरूरी बात, रंग खेलने से पहले शरीर पर नारियल या सरसो का तेल लगा लें. इससे त्वचा पर रंग नहीं चिपकेगा और आप सुरक्षित रहेंगी.

3. अपने चोट-घाव को बचाएं

जिन लोगों को पहले से चोट या घाव लगी हो उन्हें ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है. लंबे समय तक पानी के संपर्क में रहने से चोट के बढ़ने का खतरा होता है. ऐसे में अपने चोट पर एंटीसेप्टिक लगा कर रहें.

4. तेल लगाना ना भूलें

रंग खेलते वक्त बालों में खूब तेल लगा लें और सिर को रुमाल या स्कार्फ से ढंक लें. सिंथेटिक रंग आपकी बालों के लिए हानिकारक होते हैं.

5. भांग पीने से बचें

इस मौके पर कोशिश करें कि आप ज्यादा पानी में भींगे नहीं. इससे आपको बुखार, जुकाम जैसी परेशानियां हो सकती हैं.

6. गुब्बारे वाली होली ना खेलें

गुब्बारे वाली होली ना खेलें. इससे आपकी आंखे चोटिल हो सकती हैं.

महिलाओं की लाइफ में मोटापे का असर

एक स्वस्थ व्यक्ति की अपेक्षा मोटे लोग 25 गुना अधिक सेक्स समस्याओं से जूझते हैं, जिन में इच्छा की कमी, सेक्स के प्रति विरक्ति, सहवास के दौरान संतुष्टि के न होने के अतिरिक्त कई लोगों में तो सेक्स के प्रति एकदम से नफरत तक होने लगती है. उन्हें सेक्स के प्रति कोई रुचि नहीं होती. आधे लोगों को इस बात की शिकायत होती है कि बेडौल और भारी शरीर के कारण उन्हें सेक्स स्थापित करने में परेशानी होती है. इसलिए सेक्स करने में हिचक होती है और वे इस से बचने की कोशिश करते हैं. वैसे मोटे लोग, जो चिकित्सीय सलाह की जरूरत महसूस नहीं करते यानी जिन के लिए मोटापा परेशानी का सबब नहीं बनता है, वे इस तरह की शिकायत नहीं करते. यानी उन का सेक्स जीवन प्रभावित नहीं होता और अपने को संतुष्ट महसूस करते हैं. लेकिन, जिन की सेक्सुअल लाइफ प्रभावित होती है, वे ऐसा महसूस करते हैं कि उन्हें वास्तव में मोटापे के कारण समस्याएं आ रही हैं और इस के लिए इलाज की जरूरत पड़ती है एक सेक्स विशेषज्ञ के शब्दों में, ‘‘ऐसे मरीज आत्मविश्लेषण करते हैं और अपने अंदर तरहतरह की सेक्स समस्याएं महसूस करते हैं. ऐसे लोगों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है.’’

शारीरिक मानसिक परेशानियां

मोटापे का शिकार लोगों का सहवास आनंददायक और पूरी तरह संतुष्टि करने वाला नहीं होता. शरीर में अत्यधिक मात्रा में वसा के जमाव से फिगर के बेडौल होने और भारी हो जाने के कारण कई तरह की परेशानियां होती हैं. पेट के निकल जाने, जांघ, कमर तथा कूल्हों में वसा के जमाव के कारण ऐसे लोग सहजता और सफलतापूर्वक सेक्स स्थपित नहीं कर पाते. ऐसा देखा गया है कि उम्र बढ़ने के बाद यानी 45 से 64 वर्ष की अवस्था के बीच जो लोग मोटापे की गिरफ्त में आते हैं उन में वसा का जमाव कमर के निचले भाग में ज्यादा हो जाता है. फलस्वरूप दैनिक कार्यों के निष्पादन में भी समस्याएं आने लगती हैं. यानी कपड़े पहनने तथा उठनेबैठने और खानेपीने तक में परेशानी होने लगती है. वैसे भी महिलाओं में वसा का जमाव कमर के निचले भाग में और पुरुषों में पेट में ज्यादा होता है, जिस कारण ऐसे पुरुषों का पेट बाहर निकल जाता है. कमर और जांघ में वसा के जमाव के कारण महिलाओं को सामान्य की तुलना में डेढ गुना ज्यादा परेशानी होती है.

महिलाओं में मोटापे के कारण प्रजनन क्षमता तो प्रभावित होती ही है, गर्भावस्था के दौरान कई दूसरी परेशानियों तथा जटिलताओं का भी सामना करना पड़ता है. ऐसी महिलाएं यदि गर्भधारण करती हैं तो बच्चा और जच्चा दोनों को कई तरह की शारीरिक और मानसिक परेशानियां होती हैं. मोटी औरतों के गर्भस्थ शिशु में सामान्य महिलाओं की तुलना में न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट संबंधित जन्मजात बीमारियों के होने की संभावना दोगुनी होती है. इतना ही नहीं, ऐसी महिलाओं को इस की संभावनाओं को रोकने के लिए यदि फोलिक एसिड का सेवन कराया जाता है तो भी इस की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता.

नवजात शिशु भी प्रभावित

ऐसी महिलाओं के नवजात शिशु को नियोनेटल इंटेसिव केयर यूनिट में रखने की जरूरत पड़ती है. इसीलिए, ऐसी महिलाएं जब गर्भधारण करने की इच्छा अपने चिकित्सक के सामने प्रकट करती हैं तो उन्हें इस के खतरों के बारे में उसी तरह से सचेत किया जाता है जिस तरह इस दौरान सिगरेट या शराब पीने से होने वाली हानियों के बारे में बताया जाता है. अत: ऐसी महिलाएं, जो गर्भधारण करती हैं या गर्भधारण करने की इच्छा प्रकट करती हैं, उन्हें नियमित रूप से फोलिक एसिड का सेवन करने तथा सिगरेट और शराब को छोड़ने की सलाह दी जाती है. इतना ही नहीं, इस दौरान संतुलित आहार लेने और नियमित रूप से व्यायाम करने की भी सलाह दी जाती है.

मोटापे की शिकार महिलाओं में बांझपन तथा प्रजनन से संबंधित बीमारियों के साथसाथ उच्च रक्तचाप, गेस्टे्रशनल, डायबिटीज, रक्त न जमने जैसी जटिलताओं की भी प्रबल संभावना होती है. सामान्य महिलाओं की अपेक्षा मोटी महिलाओं में प्रसव के लिए सीजेरियन की ज्यादा जरूरत पड़ती है. इसीलिए गर्भधारण की पहले वजन घटाने की सलाह दी जाती है. ऐसी औरतों में हारमोन से संबंधित परिवर्तन होते हैं जिस से इस्ट्रोजन और प्रोजेस्टरोन नामक हारमोंस का स्राव बाधित हो जाता है, जिस का सीधा प्रभाव सेक्सुअल लाइफ पर पड़ता है. यानी इस परिवर्तन के कारण ऐसी महिलाओं में सेक्स में कमी तथा धीरेधीरे इस के प्रति विरक्ति होने लगती है. इतना ही नहीं, इन हारमोनों के स्राव तथा रक्त में इस के स्तर में परिवर्तन हो जाने के कारण अंडाशय में अंडे के निर्माण की क्रिया भी बाधित हो जाती है और निषेचन नहीं हो पाता है, जिस से आगे चल कर बांझपन जैसी समस्या भी आ घेरती है. इस के साथ मासिकचक्र भी प्रभावित हो जाता है, जिस से मासिक संबंधित तरहतरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जिस में या तो मासिक स्राव होता ही नहीं या फिर काफी बढ़ जाता है. मासिक स्राव ज्यादा होने की स्थिति में कई बार महिलाएं रक्ताल्पता का शिकार हो जाती है.

कई तरह की बीमारियां

पेट में वसा के ज्यादा जमाव होने की स्थिति में सेक्स स्थापित करने में ज्यादा कठिनाई होती है. पेट के बाहर निकल जाने की स्थिति में पेट और छाती को विभाजित करने वाली रचना डायफ्राम पर दबाव पड़ने के कारण ऊपर की ओर खिंच जाता है, जिस का सीधा प्रभाव फेफड़े पर पड़ता है. यानी डायफ्राम के कारण फेफड़े पर दबाव बढ़ जाता है, जिस से सांस लेने में कठिनाई होने लगती है और दम फूलने लगता है. फेफड़े की रक्त नलियों में भी रक्त का दबाव काफी बढ़ जाता है. सहवास के क्रम में शारीरिक क्रियाशीलता तथा हारमोन के स्राव में अधिकता के कारण सांस की गति जब स्वत: बढ़ जाती है तो मोटे लोगों का दम फूलने लगता है और सहवास में व्यवधान उत्पन्न हो जाता है.

मोटे लोगों में दूसरी समस्या आती है हृदय की असामान्य और तेज धड़कन की. शरीर में वसा की अधिकता के कारण रक्त में कोलेस्टरोल की मात्रा काफी बढ़ जाती है. यह कोलेस्टरोल हृदय की धमनियों की भीतरी दीवार में एकत्रित हो कर इन की दीवार को मोटी, संकरी और सख्त बना देता है. ऐसी स्थिति में हृदय की धड़कन तेज और असामान्य हो जाती है. इस के कारण कई बार छाती में दर्द, एंजाइना तथा हृदयाघात की संभावना बनी रहती है. सहवास के दौरान असामान्य धड़कन की वजह से भी परेशानी होती है. मरीज इस बात से भयभीत हो जाता है कि कहीं हार्ट अटैक तो नहीं हो जाएगा. अत: ऐसे लोग हमेशा चिंतित और भयभीत होते हैं. कई बार सेक्स के प्रति विरक्ति और भय भी होने लगता है. तीसरी समस्या, जो आमतौर पर मोटे लोगों में जोड़ों में दर्द और सूजन की देखने को मिलती है. ऐसे लोगों में कमर और घुटनों में दर्द तथा सूजन ज्यादा होती है. इस से सहवास के क्रम में परेशानियों का सामना करना पड़ता है. इस कारण घुटनों को मोड़ने में तकलीफ होती है, जिस से आसन में परेशानी होती है. डायबिटीज, उच्च रक्तचाप और किडनी संबंधी जटिलताओं से पीडि़त मरीजों में सेक्स के प्रति विरक्ति आम बात है. उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करने वाली दवाओं में कई ऐसी दवाएं हैं, जिन का सेवन अधिक समय तक करने पर सेक्स समस्याएं तथा परेशानियां होने लगती हैं. इन में बीटा ब्लाकर प्रमुख है. डायबिटीज की वजह से रक्त में शर्करा की मात्रा बढ़ जाती है. इस का दुष्परिणाम प्रजनन अंगों पर भी पड़ता है. इन में लिंग में कमजोरी, शीघ्रपतन तथा सेक्स के प्रति विरक्ति मुख्य है.

मानसिक तनाव

मोटे लोगों के साथ सेक्स स्थापित करने के प्रति पति या पार्टनर इच्छुक नहीं होते. वैसे लोगों के प्रति विरक्ति तथा वितृष्णा होने लगती है. ऐसे लोगों की यह भी शिकायत होती है कि उस का पति या पत्नी सेक्स के लिए इच्छुक नहीं होते, हमेशा कटेकटे रहते हैं. ऐसे लोगों का दांपत्य जीवन हमेशा तनावभरा होता है. कई बार तो तलाक तक की नौबत आ जाती है  मोटापे के कारण शारीरिक परेशानियां तो होती ही हैं, सेक्स संबंधित कई तरह की परेशानियां भी होती हैं. यदि समय रहते इस ओर ध्यान नहीं दिया गया और इस से बचने के लिए उचित उपाय नहीं किया गया तो आगे चल कर कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है.

क्या कोई ऐसी दवा है, जिससे जौ लाइन में सुधार आ सकता हो?

सवाल-

मेरे जबड़े बहुत अंदर हैं, जिस से चेहरे का संतुलन बिगड़ गया है. क्या कोई ऐसी दवा है जिसे लेने से जौ लाइन में सुधार आ सकता हो?

जवाब-

यह समस्या चेहरे की हड्डियों के ठीक अनुपात में विकसित न होने से खड़ी हुई हो सकती है. अकसर यह स्थिति आनुवंशिक होती है और इसे किसी दवा से नहीं सुधारा जा सकता. यदि आप इस समस्या से बहुत परेशान हैं तो अच्छा होगा कि आप किसी योग्य प्लास्टिक सर्जन से परामर्श लें. कुछ प्लास्टिक सर्जन मग्जोलाफशियल ऐस्थैटिक सर्जरी में विशेषरूप से निपुणता रखते हैं. आप के शहर में कोई ऐसा योग्य सर्जन हो तो उस से कंसल्ट करें और सर्जरी से जौ लाइन में कितना और क्या सुधार हो सकता है, इस पर विचारविमर्श करें. क्याक्या परेशानी हो सकती है, कितना समय लगेगा, क्या खर्च आएगा, इस बाबत ठीक से जान लेने के बाद ही सर्जरी कराने का फैसला लें.

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आप सभी जानते हैं कि ब्रशिंग, फ्लॉसिंग और मुंह में एंटीसेप्टिक सलूशन के साथ मुंह को अच्छे से कुल्ला करना बहुत ही अनिवार्य है. यह करने से मुंह में टारटर यानी कि प्लाक नहीं बनता है.

टार्टर क्या है?

जब आप अच्छे से ब्रश नहीं करते हैं और मुंह का अच्छे से ध्यान नहीं रखते हैं तो मुंह में कुछ प्रकार के बैक्टीरिया उत्पन्न हो जाते हैं, यह बैक्टीरिया जब अपने खाने और खाने के जो प्रोटीन है उससे मिलते हैं तो एक चिपचिपी परत बना देते हैं, उस परत को प्लाक कहते हैं. प्लाक बहुत तरह के बैक्टीरिया से बनता है जो कि अपने दांत की बाहरी परत जो कि इनेमल कहलाती है, उसे खराब करता है और उसमें कैविटी यानी कि कीड़े उतपन्न करता है. तो जब हम इसको हटा देंगे तो मुंह में कैविटी यानी कीड़े नहीं लगेंगे और मसूड़े भी स्वस्थ रहेंगे.
सबसे बड़ी दिक्कत तब आती है जब यह प्लाक आपके दांतों पर हमेशा रहता है और एक बहुत ही कड़क पर में बदल जाता है.
टाटर को हम कैलकुलस भी कहते हैं
जो कि दांत के ऊपर और मसूड़ों के अंदर बन जाती है. यह दांतो को हिला देती है और दातों में झनझनाहट कर देती है.यह परत डेंटल क्लीनिक में एक स्पेशल इंस्ट्रूमेंट से निकाली जा सकती है.

हमारे दांतों और मसूड़ों को किस तरह से प्रभावित करता है यह टारटर?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

पीरियड्स के दिनों में रखें डाइट का ध्यान

पीरियड्स महीने के सब से कठिन दिन होते हैं. इस दौरान शरीर से विषाक्त पदार्थ निकलने की वजह से शरीर में कुछ विटामिनों व मिनरल्स की कमी हो जाती है, जिस की वजह से महिलाओं में कमजोरी, चक्कर आना, पेट व कमर में दर्द, हाथपैरों में झनझनाहट, स्तनों में सूजन, ऐसिडिटी, चेहरे पर मुंहासे व थकान महसूस होने लगती है. कुछ महिलाओं में तनाव, चिड़चिड़ापन व गुस्सा भी आने लगता है. वे बहुत जल्दी भावुक हो जाती हैं. इसे प्रीमैंस्ट्रुअल टैंशन (पीएमटी) कहा जाता है.

टीनएजर्स के लिए पीरियड्स काफी पेनफुल होते हैं. वे दर्द से बचने के लिए कई तरह की दवाओं का सेवन करने लगती हैं, जो नुकसानदायक भी होती हैं. लेकिन खानपान पर ध्यान दे कर यानी डाइट को पीरियड्स फ्रैंडली बना कर उन दिनों को भी आसान बनाया जा सकता है.

न्यूट्रीकेयर प्रोग्राम की सीनियर डाइटिशियन प्रगति कपूर और डाइट ऐंड वैलनैस क्लीनिक की डाइटिशियन सोनिया नारंग बता रही हैं कि उन दिनों के लिए किस तरह की डाइट प्लान करें ताकि आप पीरियड्स में भी रहें हैप्पीहैप्पी.

इन से करें परहेज

– व्हाइट ब्रैड, पास्ता और चीनी खाने से बचें.

– बेक्ड चीजें जैसे- बिस्कुट, केक, फ्रैंच फ्राई खाने से बचें.

– पीरियड्स में कभी खाली पेट न रहें, क्योंकि खाली पेट रहने से और भी ज्यादा चिड़चिड़ाहट होती है.

– कई महिलाओं का मानना है कि सौफ्ट ड्रिंक्स पीने से पेट दर्द कम होता है. यह बिलकुल गलत है.

– ज्यादा नमक व चीनी का सेवन न करें. ये पीरियड्स से पहले और पीरियड्स के बाद दर्द को बढ़ाते हैं.

– कैफीन का सेवन भी न करें.

अगर पीरियड्स आने में कठिनाई हो रही है तो इन चीजों का सेवन करें-

– ज्यादा से ज्यादा चौकलेट खाएं. इस से पीरियड्स में आसानी रहती है और मूड भी सही रहता है.

– पपीता खाएं. इस से भी पीरियड्स में आसानी रहती है.

– अगर पीरियड्स में देरी हो रही है तो गुड़ खाएं.

– थोड़ी देर हौट वाटर बैग से पेट के निचले हिस्से की सिंकाई करें. ऐसा करने से पीरियड्स के दिनों में आराम रहता है.

– यदि सुबह खाली पेट सौंफ का सेवन किया जाए तो इस से भी पीरियड्स सही समय पर और आसानी से होते हैं. सौंफ को रात भर पानी में भिगो कर सुबह खाली पेट खा लीजिए.

यह भी रहे ध्यान

– 1 बार में ही ज्यादा खाने के बजाय थोड़ीथोड़ी मात्रा में 5-6 बार खाना खाएं. इस से आप को ऐनर्जी मिलेगी और आप फिट रहेंगी.

– ज्यादा से ज्यादा पानी पीएं. इस से शरीर में पानी की मात्रा बनी रहती है और शरीर डीहाइड्रेट नहीं होता. अकसर महिलाएं पीरियड्स के दिनों में बारबार बाथरूम जाने के डर से कम पानी पीती हैं, जो गलत है.

– 7-8 घंटे की भरपूर नींद लें.

– अपनी पसंद की चीजों में मन लगाएं और खुश रहें.

अन्य सावधानियां

– पीरियड्स में खानपान के अलावा साफसफाई पर भी ध्यान देना बेहद जरूरी है ताकि किसी तरह का बैक्टीरियल इन्फैक्शन न हो. दिन में कम से कम 3 बार पैड जरूर चेंज करें.

– भारी सामान उठाने से बचें. इस दौरान ज्यादा भागदौड़ करने के बजाय आराम करें.

– पीरियड्स के दौरान लाइट कलर के कपड़े न पहनें, क्योंकि इस दौरान ऐसे कपड़े पहनने से दाग लगने का खतरा बना रहता है.

– पैड कैरी करें. कभीकभी स्ट्रैस और भागदौड़ की वजह से पीरियड्स समय से पहले भी हो जाते हैं. इसलिए हमेशा अपने साथ ऐक्स्ट्रा पैड जरूर कैरी करें.

– अगर दर्द ज्यादा हो तो उसे अनदेखा न करें. जल्द से जल्द डाक्टर से चैकअप कराएं.

डाइट में फाइबर फूड शामिल करना बेहद जरूरी है, क्योंकि यह शरीर में पानी की कमी को पूरा करता है. दलिया, खूबानी, साबूत अनाज, संतरा, खीरा, मकई, गाजर, बादाम, आलूबुखारा आदि खानपान में शामिल करें. ये शरीर में कार्बोहाइड्रेट, मिनिरल्स व विटामिनों की पूर्ति करते हैं.

कैल्सियम युक्त आहार लें. कैल्सियम नर्व सिस्टम को सही रखता है, साथ ही शरीर में रक्तसंचार को भी सुचारु रखता है. एक महिला के शरीर में प्रतिदिन 1,200 एमजी कैल्सियम की पूर्ति होनी चाहिए. महिलाओं को लगता है कि दूध पीने से शरीर में कैल्सियम की मात्रा पूरी हो जाती है. लेकिन सिर्फ दूध पीने से शरीर में कैल्सियम की मात्रा पूरी नहीं होती. एक दिन में 20 कप दूध पीने पर शरीर में 1,200 एमजी कैल्सियम की पूर्ति होती है, पर इतना दूध पीना संभव नहीं. इसलिए डाइट में पनीर, दूध, दही, ब्रोकली, बींस, बादाम, हरी पत्तेदार सब्जियां शामिल करें. ये सभी हड्डियों को मजबूत बनाते हैं और शरीर को ऐनर्जी प्रदान करते हैं.

आयरन का सेवन करें, क्योंकि पीरियड्स के दौरान महिलाओं के शरीर से औसतन 1-2 कप खून निकलता है. खून में आयरन की कमी होने की वजह से सिरदर्द, उलटियां, जी मिचलाना, चक्कर आना जैसी परेशानियां होने लगती हैं. अत: आयरन की पूर्ति के लिए पालक, कद्दू के बीज, बींस, रैड मीट आदि खाने में शामिल करें. ये खून में आयरन की मात्रा बढ़ाते हैं, जिस से ऐनीमिया होने का खतरा कम होता है.

खाने में प्रोटीन लें. प्रोटीन पीरियड्स के दौरान शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है. दाल, दूध, अंडा, बींस, बादाम, पनीर में भरपूर प्रोटीन होता है.

विटामिन लेना न भूलें. ऐसा भोजन करें, जिस में विटामिन सी की मात्रा हो. अत: इस के लिए नीबू, हरीमिर्च, स्प्राउट आदि का सेवन करें. पीएमएस को कम करने के लिए विटामिन ई का सेवन करें. विटामिन बी मूड को सही करता है. यह आलू, केला, दलिया में होता है. अधिकांश लोग आलू व केले को फैटी फूड समझ कर नहीं खाते पर ये इस के अच्छे स्रोत हैं, जो हड्डियों को मजबूत बनाता है. विटामिन सी और जिंक महिलाओं के रीप्रोडक्टिव सिस्टम को अच्छा बनाते हैं. कद्दू के बीजों में जिंक पर्याप्त मात्रा में होता है.

प्रतिदिन 1 छोटा टुकड़ा डार्क चौकलेट जरूर खाएं. चौकलेट शरीर में सिरोटोनिन हारमोन को बढ़ाती है, जिस से मूड सही रहता है.

अपने खाने में मैग्निशियम जरूर शामिल करें. यह आप के खाने में हर दिन 360 एमजी होना चाहिए और पीरियड्स शुरू होने से 3 दिन पहले से लेना शुरू कर दें.

पीरियड्स के दौरान गर्भाशय सिकुड़ जाता है, जिस की वजह से ऐंठन, दर्द होने के साथसाथ चक्कर भी आने लगते हैं. अत: इस दौरान मछली का सेवन करें.

बढ़ रहा है वॉटर बर्थ डिलीवरी का चलन, जानिए इसके कारण और फायदे

जब बात बेबी बर्थ डिलीवरी की होती है, तो अधिकतर दो ऑप्शंस का नाम लिया जाता है पहला नार्मल या वजाइनल बर्थ और दूसरी सी सेक्शन डिलीवरी. लेकिन, आजकल एक और डिलीवरी ऑप्शन भी चर्चित हो रहा है, जिसे वॉटर बर्थ डिलीवरी के नाम से जाना जाता है. दूसरे देशों में यह तकनीक अधिक प्रचलित है. इसमें पानी के अंदर बेबी की डिलीवरी होती है. इस तकनीक के कई फायदे हैं लेकिन इसके कुछ नुकसान भी हो सकते हैं. आइए जानें क्या हैं इसके फायदे और क्या हो सकते हैं इसके नुकसान?

वॉटर बर्थ डिलीवरी के फायदे क्या हैं?

वॉटर बर्थ डिलीवरी का अर्थ है कि गर्भवती महिला के लेबर, डिलीवरी या दोनों का कुछ पार्ट पानी के पूल में कराना. इस डिलीवरी को अस्पताल, बर्थ सेंटर या घर में ही किया जा सकता है. डॉक्टर, नर्स आदि इसमें मदद करते हैं. इस डिलीवरी के कई फायदे हैं, जैसे:

1- आरामदायक-

वॉटर बर्थ डिलीवरी का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इससे फीटल कॉम्प्लीकेशन्स कम होती है. इस प्रोसेस में टेंस नर्वस और मसल्स को आराम मिलने में मदद होती है. यह एक आरामदारक प्रोसेस है.

2- नेचुरल पेन रिलीफ-

वॉटर बर्थ के दौरान गर्म पानी एक नेचुरल पेन रिलीवर का काम करता है. इससे नर्वस को आराम मिलता है और ब्लड प्रेशर लेवल भी सही रहता है.

3- लेबर का समय कम होता है-

स्टडीज यह बताती हैं कि लेबर के फर्स्ट स्टेज के दौरान गर्म पानी में रहने से लेबर का समय कम होता है.

4- कम कॉम्प्लीकेशन्स-

यह बात साबित हुई है कि जो महिलाएं वॉटर में बर्थ को चुनती हैं उन्हें स्ट्रेस कम होता है. यही नहीं, इससे शिशु के जन्म के दौरान चोट लगने का खतरा भी कम होता है.

वॉटर बर्थ डिलीवरी के नुकसान
वॉटर बर्थ डिलीवरी के दौरान कुछ समस्याएं भी हो सकती हैं जो हालांकि दुर्लभ हैं. यह नुकसान इस प्रकार हैं:

-इससे गर्भवती महिला और शिशु को इंफेक्शन हो सकता है.
-शिशु के पानी से बाहर आने से पहले गर्भनाल टूट सकती है.
-शिशु के शरीर का तापमान बहुत अधिक या कम हो सकता है.
-शिशु बर्थ वॉटर में ब्रीद कर सकता है या उसे अन्य समस्याएं हो सकती हैं.

हालांकि, वॉटर बेबी बर्थ बहुत ही सुरक्षित है. लेकिन, इसे अनुभवी एक्सपर्ट्स और डॉक्टर की प्रजेंस में किया जाता है. यही नहीं, अगर किसी को प्रेग्नेंसी में डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर की समस्या है, तो उन्हें इससे बचना चाहिए. प्रीमेच्योर डिलीवरी में भी इसकी सलाह नहीं दी जाती है.

सोशल मीडिया को न होने दें खुद पर हावी, युवाओं में बढ़ रहा है डिप्रेशन और एंग्जायटी

सोशल मीडिया अब सिर्फ युवाओं ही नहीं हर किसी की जिंदगी का हिस्सा बन गया है.  अब युवा इसे अपने करियर के रूप में अपनाने के लिए बड़ी संख्या में आगे आ रहे हैं. सोशल मीडिया पर रातों रात राजा से रंक बनने और एक वीडियो वायरल होने से सेलिब्रिटी बनने की अनगिनत कहानियां युवाओं को और भी ज्यादा अपनी ओर खींच रही हैं.

“आज मुझे एक बहुत अच्छा काम मिला है और इसमें किसी भी क्वालिफिकेशन की जरूरत नहीं”, चहकते हुए राहुल ने अपने दोस्त को बताया तो उसने पूछा,”आखिर मुझे भी तो पता लगे ऐसा क्या काम है?”

इस पर राहुल ने कहा,”  मुझे सोशल मीडिया इनफ्लुएंसर बनना है और मुझे एक वेब साइट के लिए, एक दिन में 1000 फॉलाेअर्स बनाने पर 50 रुपये,  100 लाइक्स के  लिए 5 रुपये और 5 रुपये में 1000 व्यूज तक बढ़ाने होंगे.”,..ये सुनते ही राहुल का दोस्त सिर पकड़ कर बैठ गया.

दरअसल सोशल मीडिया के इस दौर में जेन-जेड के अपने सपने और लक्ष्य हैं. दुनिया को देखने का नजरिया अब वे अनुभव की जगह रील्स, वीडियो और वायरल वीडियो से तय करने लगे हैं. वे अपने आपको नेटिजन बोलना पसंद करते हैं. हर दिन घंटों सोशल मीडिया पर बिताने वाले कुछ युवा अब इसी क्षेत्र में अपना करियर बनाने की राह भी पकड़ रहे हैं. लाइक, कमेंट, शेयर और सब्सक्राइब उनकी सफलता के नए पैमाने हैं. लेकिन दूर से आसान दिखने वाला यह सफर, असल में कई कठिनाइयों और परेशानियों से भरा है. खासतौर पर ट्रोलर्स के ताने और नेगेटिव कमेंट्स युवाओं को परेशान कर सकते हैं. कैसे करें इन परेशानियों का सामना, इस आर्टिकल में जानते हैं.

जिंदगी का हिस्सा है, लेकिन जिंदगी नहीं

सोशल मीडिया अब सिर्फ युवाओं ही नहीं हर किसी की जिंदगी का हिस्सा बन गया है.  अब युवा इसे अपने करियर के रूप में अपनाने के लिए बड़ी संख्या में आगे आ रहे हैं. सोशल मीडिया पर रातों रात राजा से रंक बनने और एक वीडियो वायरल होने से सेलिब्रिटी बनने की अनगिनत कहानियां युवाओं को और भी ज्यादा अपनी ओर खींच रही हैं. हालांकि सफलता की इन कहानियों को बुनने और बुलंदी की ऊंचाइयों तक पहुंचने से पहले कई युवाओं को ट्रोलिंग का शिकार भी होना पड़ता है. सपनों का महल खड़ा करने वालों पर ये किसी बड़े प्रहार सा होता है और कई बार इसके कारण युवा डिप्रेशन और एंग्जायटी का शिकार हो जाते हैं. लेकिन युवाओं को ये समझना होगा कि कोई भी सफर आसान नहीं होता. सोशल मीडिया आपकी जिंदगी का हिस्सा हो सकती है, लेकिन जिंदगी नहीं.

क्या कहते हैं आंकड़े

आंकड़े बताते हैं कि लगभग 22 से 25% ऐसे लोग हैं जो सोशल मीडिया इनफ्लुएंसर बनने के चक्कर में उन प्रोडक्ट्स को खरीद लेते हैं जिनकी जरूरत भी नहीं है. और वह प्रोडक्ट खराब भी निकालते हैं.

अच्छाई-बुराई दोनों है इसका हिस्सा

अगर आप सोशल मीडिया पर एक इन्फ्लुएंसर के रूप में करियर बनाने की सोच रहे हैं तो यह बात आपको गांठ बांध लेनी चाहिए कि कुछ लोग आपकी तारीफ करेंगे तो कुछ बुराई भी करेंगे. ये दोनों ही आपके काम का हिस्सा है. सोशल मीडिया एक सार्वजनिक मंच है और यहां कोई भी अपनी राय रख सकता है. कोशिश करें कि आप इससे प्रभावित न हों. आप अच्छाइयों को अपनाएं और कमियों को दूर करते हुए आगे बढ़ें. इससे आपका काम बेहतर बनेगा.

सिक्के के दूसरे पहलू को देखें

अधिकांश युवा सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर की सक्सेस स्टोरी, शॉपिंग, लाइफस्टाइल, बैंक बैलेंस, ट्रैवलिंग देखकर इंप्रेस होते हैं. और वैसी ही जिंदगी जीने की चाहत में सोशल मीडिया की राह पकड़ते हैं. लेकिन आप सिक्के का दूसरा पहलू भी देखें. इस सफलता के पीछे इन इन्फ्लुएंसर्स की सालों की मेहनत, संघर्ष और सीख है. लगातार कोशिश करने से आपको भी जरूर सफलता मिलेगी.

दूसरे विकल्प हमेशा खुले रखें

माना कि आप सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर के रूप में अपना करियर बनाना चाहते हैं, लेकिन यह कोशिश सफल ही हो, इसकी कोई गारंटी नहीं हो सकती. इसलिए आप अपनी शिक्षा और नॉलेज पर पूरा ध्यान दें. इन दोनों के दम पर आप किसी भी क्षेत्र में सफलता पा सकते हैं. हमेशा कुछ नया सीखने पर फोकस करें.

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