शारदा मैम: भाग 3-आखिर कार्तिक को किसने ब्लैकमेल किया ?

टेबल पर लग गया था. सभी हंसीमजाक करते हुए खाना खाने में व्यस्त हो गए. खाना खातेखाते ही तय हुआ कि कार्तिक और तनुजा कुछ घंटों के लिए बाहर जाएंगे आपस में बात करने के लिए. खाना खातेखाते कार्तिक ने सोच लिया था कि तनुजा को सबकुछ बता दे या फिर यह रिश्ता टूटे या बचे.

‘‘बेटा कार्तिक, शारदा मैम को भी साथ ले जाओ. शारदा मैम यहां की लोकल है,’’ कार्तिक की मम्मी दीपा बोली,

‘‘क्यों नहीं, मैं गाड़ी निकाल लेती हूं,’’ शारदा मैम बोली.

‘‘हम दोनों बाइक से चले जाएंगे,’’ कार्तिक बोला, ‘‘क्यों परेशान कर रही हो शारदा मैम को.’’

‘‘अरे कैसी परेशानी? चलो आ जाओ,’’ कह कर शारदा मैम बाहर चली गईं.

जब कार्तिक और तनुजा अपार्टमैंट के नीचे पहुंचे, तब तक शारदा मैम ड्राइविंग सीट पर जम गई थीं.

‘‘क्या चक्कर है कार्तिक?’’ तनुजा ने सवाल किया. कार्तिक कुछ कहता उस से पहले ही शारदा मैम चिल्लाई, ‘‘आओ गाड़ी में बैठो.’’

दोनों कार की पिछली सीट पर जा कर बैठ  गए.

‘‘शादी हो रही है तुम दोनों की, शरमाते रहोगे क्या? बोलो कहां चलेंगे?’’ शारदा ने साइड मिरर से कार्तिक को देखा.

‘‘गेट वे औफ इंडिया?’’ शारदा मैम ने पूछा.

‘‘वहीं चलते हैं,’’ कार्तिक बोला.

समंदर की लहरों का शोर लोगों की भीड़, फेरी वालों की आवाजें आ रही थीं.

‘‘चलो आओ भी,’’ शारदा मैम गाड़ी पार्क कर के आ रही थीं. तभी शारदा मैम का मोबाइल बज उठा. वे ऐक्सक्यूज मी कहती हुई थोड़ी दूरी पर चली गईं.

उसी समय तनुजा के मोबाइल पर मैसेज की आवाज आने लगी. तनुजा ने देखा ढेर सारी पिक हैं. अभी लोड नहीं हो पा रही थीं.

‘‘क्या हुआ तनुजा?’’ कार्तिक ने पूछा.

‘‘कुछ नहीं नैट की प्रौब्लम है, कोई अननोन नंबर है,’’ तनुजा ने कहा.

‘‘बताओ तो. अरे यह तो शारदा मैम का नंबर है. सुबह ही तो लिया था उन्होंने तुम से,’’ कार्तिक बोला.

‘‘अरे हां, शायद मैं सेव नहीं कर पाई,’’ तनुजा बोली.

कार्तिक ने तनुजा के हाथ को अपने हाथों में ले लिया. तनुजा को अच्छा लगा, सुकून भरा स्पर्श. दोनो बैंच पर बैठ गए.

‘‘मुंबई कितना सुंदर है,’’ तनुजा ने गेट वे औफ इंडिया को निहारते हुए कहा.

‘‘हां वाकई बहुत सुंदर है,’’ कार्तिक बोला.

इसी बीच तनुजा के मोबाइल में पिक्स लोड हो गई थीं.

‘‘देखें शारदा मैम ने कैसी पिक्स ली हैं,’’ कहते हुए तनुजा ने मोबाइल कार्तिक के सामने कर दिया, ‘‘अरे यह क्या?’’ तनुजा बोली.

‘‘क्या हुआ?’’ कार्तिक घबरा गया.

‘‘तुम खुद ही देख लो,’’ तनुजा बोली.

कार्तिक ने देखा उस के और शारदा मैम की न्यूड पिक्स सब तनुजा के सामने थीं.

‘‘कार्तिक यह क्या है?’’ कह कर वह एकदम चुप हो गई. सामने से शारदा मैम को आते देख लिया था.

‘‘क्या बात है तनुजा? कोई प्रौब्लम?’’ शारदा मैम मुसकराईं.

‘‘अब क्या बचा है यह सब देखने के बाद,’’ तनुजा बोली.

‘‘क्यों? अच्छा, पिक्स जो भेजी तुम्हें.’’

‘‘हां, वही पिक्स, ये सब क्या है?’’ तनुजा की आवाज ऊंची होने लगी थी, ‘‘कार्तिक क्या है ये सब? तुम्हारा संबंध शारदा मैम से है पहले बता देते तो हम मुंबई नहीं आते.’’

कार्तिक की आंखों में आंसू आ गए, वह डर गया. फिर बोला, ‘‘ऐसा कुछ नही है तनुजा. विश्वास करो मेरा.’’

‘‘कार्तिक जो सच है वह बता दो,’’ शारदा मैम बोलीं.

‘‘कार्तिक, शारदा मैम तुम्हारी मां की उम्र की हैं, इन के साथ… अरे, इन के साथ…’’

‘‘तनुजा यह क्या बोल रही हो?’’ शारदा मैम बोली.

‘‘तो फिर ये क्या है सब?’’ तनुजा की आवाज गुस्से से कांप रही थी.

‘‘अरे बाबा, यह तुम को इसलिए बताया ताकि तुम्हें मुंबई का माहौल पता चल जाए,’’ शारदा मैम बोली.

‘‘मतलब?’’ तनुजा समझ नहीं पाई.

‘‘मतलब यहां खुला माहौल है, शादी के बाद तुम को पता चलता कि हमारे सैक्सुअल रिलेशन हैं तो तुम्हें बुरा लगता. इसलिए बता दिया.’’

‘‘ऐसा कुछ नहीं है. प्लीज, मेरा विश्वास करो,’’ कार्तिक रो पड़ा.

‘‘चलो मैं निकलती हूं. आप दोनों टैक्सी या लोकल से आ जाना. कोई काम आ गया है मुझे, दोनों को फ्री छोड़ कर जा रही हूं,  बाय टेक केयर,’’ कह कर मुसकराती हुई शारदा मैम चल गईं.

शारदा मैम सोच रही थीं कि अब तो तनुजा शादी करने से रही. मजा आ गया. अब तक वे थोड़ीबहुत बात कर रहे थे. वह भी नहीं करेंगे. अपनी जीत पर खुश होते हुए वे घर आ गईं.

शारदा को अकेला देख कर कार्तिक की मम्मी और बाबूजी दोनों चौंक गए, ‘‘अरे आप अकेलीं? कार्तिकतनुजा कहां है?’’

‘‘अरे, बहनजी दोनों को थोड़ी देर अकेला भी रहने दो, मैं कहां बीच में रहती कबाब में हड्डी की तरह,’’ शारदा मैम बोलीं. वे सोच रही थीं, आते ही दोनों का रिश्ता टूटना तय है.

कुछ घंटे बाद कार्तिक, तनुजा दोनों एकदूसरे का हाथ थामे घर आ गए.

‘‘आ गए तुम दोनों?’’ दीपा बोली.

‘‘हां मम्मी आ गए हम दोनों,’’ तनुजा मुसकराई.

उस की मुसकराहट देख कर शारदा मैम जल गईं, उन की समझ में कुछ नहीं आया कि दोनों गेटवे औफ इंडिया पर तो झगड़ रहे थे. अब यह क्या हुआ?

‘‘क्या सोचने लगीं शारदा मैम?’’ कार्तिक बोला.

‘‘कुछ नहीं, कुछ नहीं,’’ कह कर शारदा मैम उठ कर जाने लगीं.

‘‘शारदा मैम अभी रुकिए न, थोड़ी देर.’’

‘‘नहीं, मैं चलती हूं, फिर आऊंगी,’’ शारदा मैम बोलीं.

‘‘आएंगी नहीं आप, जाएंगी सीधा जेल,’’ कहते हुए लेडीज पुलिस घर के अंदर आ गई.

पुलिस को देखते ही शारदा मैम घबरा गईं, ‘‘क्यों क्या हुआ? यह पुलिस?’’

‘‘क्या हुआ आप नहीं जानतीं? लेडीज इंस्पैक्टर ने शारदा मैम का हाथ पकड़ा और उसे ले जाने लगीं.

‘‘मगर मैं ने किया क्या है?’’ शारदा मैम एकदम घबरा गईं, डर से कांप उठीं.

‘‘तुम ने कार्तिक का यौन उत्पीड़न किया है, उसे ब्लैकमेल कर रही हो इतने समय से. कार्तिक ने रिपोर्ट लिखवाई है… सुबूत के तौर पर वीडियो दिए हैं.’’

शारदा मैम की शर्म के मारे आंखें नीची हो गईं. वे नजरें ऊंची नहीं कर पाईं.

‘‘शर्म आनी चाहिए तुम्हें,’’ लेडीज इंस्पैक्टर गुस्से से चिल्लाईं.

‘‘मुझे माफ कर दो प्लीज,’’ वे हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाने लगीं.

इंस्पेक्टर बोलीं, ‘‘वीडिओ डिलीट करो और जेल जाने के लिए तैयार रहो.’’

‘‘नहींनहीं प्लीज मुझे माफ कर दो,’’ शारदा मैम बोलीं.

इंस्पैक्टर बोलीं, ‘‘ऐसा करो लिखित में दो कि तुम ने इतने सालों से कार्तिक का यौन उत्पीड़न कर ब्लैकमेल किया है… माफी मांगो.’’

‘‘ठीक है पर फिर मुझे जेल तो नही भेजेंगे?’’ शारदा मैम बोलीं.

‘‘नहीं,’’ इंस्पैक्टर बोलीं.

कार्तिक तुंरत अंदर से एक कागज ले आया. शारदा मैम ने तुरंत ही सब

लिख दिया. फिर इंस्पैक्टर को कागज देती हुई बोलीं, ‘‘प्लीज मुझे गिरफ्तार न करें.’’

‘‘बिलकुल नही करेंगे,’’ इंसेक्टर बोलीं,

‘‘आप खुद अपनी गलती स्वीकारें इसलिए यह खेल खेला गया था. मैं कार्तिक के फ्रैंड की वाइफ हूं.’’

कार्तिक और तनुजा के मम्मीपापा की समझ में कुछ नहीं आ रहा था.

फिर तनुजा ने बताया, ‘‘शारदा मैम ने कार्तिक को घर बुलाया था. किसी काम से

जब आप लोनावाला गए थे. वहां  झूठी धमकी दे कर जबरदस्ती कार्तिक के साथ सैक्सुअल रिलेशन बना लिए थे. उसी वीडियो से ये उसे ब्लैकमेल करती रही. पहला रिश्ता भी इसी ने तुड़वाया था,’’ तनुजा ने संक्षिप्त में समझया.

सब यह सुन कर आश्चर्य में थे कि बेटे की उम्र के लड़के के साथ?

‘‘मम्मी गंदे लोग कहीं भी हो सकते हैं,’’ तनुजा ने आगे बताया, ‘‘जब ये हमें छोड़ कर यहां आ गई थीं तब कार्तिक ने सब बताया और मैं ने विश्वास किया कार्तिक पर. फिर कार्तिक के फ्रैंड से मिल कर यह योजना बनाई.’’

‘‘प्लीज, तनुजा यह विश्वास बनाए रखना,’’ कार्तिक की आंखों में आंसू थे.

‘‘हम पुलिस वाला उपाय नहीं करते तो ये परेशान करती रहतीं. अपनी गलती नहीं मानतीं,’’ तनुजा बोली,

‘‘तनुजा तुम वाकई समझदार निकली. हम तो समझ ही नहीं पाए शारदा मैम को.’’

शारदा मैम शर्म के मारे भाग खड़ी हुईं.

शारदा मैम: भाग 2- आखिर कार्तिक को किसने ब्लैकमेल किया ?

दूसरे दिन कार्तिक सुबह लेट उठा. रात को नींद नहीं आई ठीक से. बाबूजी मौर्निंग वाक पर गए हुए थे. अपार्टमैंट के नजदीक गार्डन था. बाबूजी वहीं जाया करते थे. कभीकभी मां भी चली जाती थी. बाबूजी गार्डन से आए तो कार्तिक नहा कर रैडी हो चुका था. मां नाश्ते की तैयारी कर रही थी. बाबूजी ने आते ही खुशी के मारे कार्तिक को बुलाया.

कार्तिक बोला, ‘‘बाबूजी क्या हुआ बड़े खुश हैं?’’

‘‘हां, बात ही कुछ ऐसी है खुशी की. दीपा तुम भी किचन से बाहर आओ.’’

‘‘क्या हुआ?’’ दीपा किचन से बाहर आतेआते बोली.

‘‘गार्डन में गांव से फोन आया था. अपने पड़ोसी हैं रमेशजी उन की लड़की वाराणसी में रह कर पढ़ाई कर रही है तनुजा. उस के रिश्ते के लिए उन्होंने कहा. अगर तनुजाकार्तिक एकदूसरे को पसंद कर लेते हैं तो दोनों की शादी की जा सकती है,’’ बाबूजी की खुशी साफ चेहरे पर झलक रही थी.

‘‘यह तो बहुत बड़ी शुभ खबर है,’’ दीपा बोली.

‘‘मगर मां पहले भी एक जगह रिश्ता टूट चुका है. फिर टूट जाएगा,’’ कार्तिक टैंशन में था.

‘‘ऐसे कैसे टूट जाएगा? बारबार क्यों टूटेगा,’’ अब बाबूजी भी टैंशन में थे.

‘‘मैं बस बता रहा था कि कहीं यह रिश्ता भी टूट गया तो?’’ कार्तिक बोला.

‘‘ऐसा कुछ नहीं होता है. तुम टैंशन फ्री रहो,’’ मां बोली, ‘‘चलो नाश्ता करो मैं टेबल पर नाश्ता लगाती हूं,’’ मां ने भी खुशी के मारे हलवा भी बना लिया था.

कार्तिक सोच रहा था, इस बार भी शारदा मैम तक बात जाएगी और वह पहले रिश्ते की तरह रिश्ता तुड़वा देगी. पहले भी उस ने ऐसा ही किया था. लड़की वालों को बता दिया था कि कार्तिक आवारा और लफंगा है. शराबी और बिगडैल है. लड़की वालों ने बिना सोचेसमझे रिश्ता तोड़ दिया. शारदा मैम ने उन को यह भी बोला कि एक बार उस से भी जबरदस्ती करने की कोशिश की थी. आप की लड़की की जिंदगी बरबाद हो जाएगी. ये सब बातें उस लड़की ने बताईं जिस के साथ रिश्ता होने वाला था. अपनी जीत पर खुश हुई थी शारदा मैम. देखती हूं शादी कैसे होती है?

‘‘मां,’’ कार्तिक ने दीपा को आवाज लगाई.

‘‘बोल,’’ दीपा बोली.

‘‘मां जब तक बात पक्की नहीं होती है तब तक तुम किसी को मत बोलना प्लीज,’’ कार्तिक बोला.

‘‘अरे, खुशी की खबर है. अपने जो पड़ोसी हैं उन्हें तो बताएंगे न. जब बात पक्की करेंगे तो घर में कुछ लोग होने चाहिए. गांव से अब कोई नहीं आ पाएगा. शादी में आएंगे सब,’’ दीपा ने बताया.

मां को कौन समझए कार्तिक टैंशन में था.

दूसरे ही दिन रमेशजी का फोन आ गया कि वे हफ्तेभर बाद आ रहे हैं. यदि

तनुजाकार्तिक एकदूसरे को पसंद कर लेते हैं तो बात पक्की कर देंगे.

मांबाबूजी खुशी के मारे तैयारी में जुट गए. मां ने अपने पड़ोसियों को न्योता दे दिया, खबर भी कर दी कि हफ्तेभर बाद लड़की वाले बात पक्की करने आ रहे हैं.

‘‘कार्तिक डार्लिंग बात ही पक्की हो रही है शादी नहीं,’’ मां के खबर देने के बाद ही शारदा मैम के मोबाइल से मैसेज आ गया, ‘‘हमारा प्रेम तो अमर है. हम कैसे दूर हो सकते हैं?’

जब कार्तिक ने मैसेज का जवाब नहीं दिया तो सीधी कार्तिक के घर आ गई. दीपा उस से बड़ी प्रभावित थी उन की फराटेदार अंगरेजी से. वे मुंबई की लोकल थी. इसलिए कहीं भी आनाजाना होता तो दीपा शारदा मैम के साथ ही जाती थी.

‘‘कोई हैल्प की जरूरत हो तो बताना प्लीज,’’ शारदा मैम बोली.

‘‘जी जरूर बताएंगे आप को,’’ दीपा बोली.

‘‘कार्तिक बेटा नर्वस क्यों हो?’’ शारदा मैम ने कार्तिक के गालों को सहला दिया.

‘‘बेटा, छि:… छि:… कितनी घटिया औरत है,’’ कार्तिक ने मन में कहा.

आखिरकार वह दिन आ गया जब तनुजा के परिवार वाले आए. बुधवार के दिन वे सवेरे पहुंच गए थे. 4 कमरों का बड़ा फ्लैट था. इसलिए किसी को कोई परेशानी नहीं हुई रुकने की.

तनुजा ने तो कार्तिक को देखते ही फैसला ले लिया कि कार्तिक से शादी के लिए हां कर देगी. लगभग 23 वर्षीय तनुजा देखने में सुंदर थी, साथ ही कार्तिक के मातापिता के स्वभाव से भी परिचित थी. वाराणसी में पड़ोसी थे दोनों, इसलिए तालमेल बैठाने में कोई परेशानी नहीं आएगी.

सफर की थकान के कारण कार्तिक की मां ने नाश्ता तनुजा के परिवार वालों को रूम में ही पहुंचा दिया. तय हुआ कि दोपहर के खाने के पहले बात पक्की करने की रस्म पूरी कर ली जाए. तनुजा के परिवार वालों ने भी तैयारी पूरी कर ली थी मिठाई, ड्राईफ्रूट, कपड़े आदि सब तैयार थे. तनुजा ने पिंक कलर की साड़ी के साथ मोतियों का सैट पहना था. जब वह तैयार हो कर बाहर आई तो कार्तिक देखता रह गया कि कितनी प्यारी लग रही है तनुजा.

‘‘क्या देख रहे हो कार्तिक?’’ तनुजा बोली.

‘‘कुछ नहीं,’’ कह कर कार्तिक भी मुसकरा दिया. पड़ोसी आ गए थे. पड़ोसियों में शारदा मैम भी आ चुकी थीं. भड़कीली साड़ी के साथ गहरा मेकअप किए.

‘‘हाय कार्तिक… कैसे हो बेटे?’’ कहतेकहते उस ने कार्तिक को गले लगाया फिर तनुजा से बोलीं.

‘‘कैसे लग रहे हैं हम दोनों?’’

‘‘मतलब?’’ तनुजा समझ नहीं पाई.

‘‘अरे यार, कार्तिक भी बेटे जैसा है मेरे, मांबेटे की जोड़ी कैसी लग रही है?’’ शारदा मैम बोली.

कार्तिक एकदम से दूर हटा और बोला, ‘‘मैं किचन में देखता हूं, कुछ काम हो मां को.’’

‘‘अरे मैं हूं,’’ शारदा मैम बोली.

‘‘मैं देख लूंगी डियर,’’ कह कर उस ने कार्तिक के गानों को सहला दिया,’’ बड़े प्यारे, हैंडसम लग रहे हो, हमें भूल मत जाना, पुराने दोस्तों को,’’ कहती हुई किचन में चली गई.

तनुजा कुछ समझ नहीं पा रही थी. वह उस के व्यवहार को ले कर चुप रही.

दोनों परिवार खुश थे. कार्तिक ने तनुजा ने रिश्ते के लिए हां कर दी थी. मुंह मीठा कराने के साथ ही शगुन के साथ दोनों परिवार वाले आशीर्वाद देने लगे थे. पड़ोसी भी खुश थे.

‘‘चलो अब लंच की तैयारी की जाए. टेबल पर सजा दिया जाए खाना,’’ कहती हुई दीपा किचन में चली गई. हाथ बंटाने के लिए तनुजा की मम्मी भी किचन में आ गई. पीछेपीछे शारदा मैम भी आ गईं.

दीपा ने कहा, ‘‘शारदा मैम से हमारे अच्छे संबंध हैं.’’

‘‘अच्छा लगा आप से मिल कर,’’ तनुजा की मम्मी बोली.

‘‘रियली,’’ शारदा मैम इतराईं.

‘‘अरे, कार्तिक.’’

‘‘जी मैम,’’ किचन में आता हुआ कार्तिक बोला,

‘‘देखो मुंबई के तौरतरीके सब सिखा देना तनुजा को, रहना यहीं है मुंबई में,’’ शारदा मैम बोली.

‘‘वह खुद ही सीख लेगी, मैम, स्मार्ट है, ऐजुकेटेड है तनूजा.’’

‘‘अच्छाजी, हम से ज्यादा स्मार्ट नहीं,’’ कह कर शारदा मैम ने बाईं आंख दबाई.

तनुजा को अजीब सा लग रहा था.

‘‘तनुजा अपना मोबाइल नंबर दो न प्लीज, अभी जो पिक है वह भेजूंगी,’’ शारदा मैम बोली.

‘‘मैं पिक भेज दूंगा तनुजा को,’’ कार्तिक बोला.

‘‘अरे, तुम कहां आ रहे हो लेडीज में,’’ तुम बाहर जाओ शारदा मैम बोली. फिर तनुजा से मोबाइल नंबर ले लिया.

शारदा मैम: भाग 1- आखिर कार्तिक को किसने ब्लैकमेल किया ?

मुंबई, सपनों की ऊंची उड़ान मुंबई, सपनों का शहर मुंबई, कहते हैं मुंबई शहर में व्यक्ति भूखा उठता है, लेकिन भूखा सोता नहीं है. लाखों युवकयुवतियां आंखों में सपनों के दीप जलाए मुंबई पहुंचते हैं. लेकिन कुछ युवकयुवतियों के सपने पूरे होते हैं और कुछ के सपने दम तोड़ देते हैं. कई मौत को भी गले लगा लेते हैं क्योंकि यथार्थ का धरातल बड़ा कठोर होता है. संघर्ष से घबरा जाते हैं. प्रेम, प्यार, रोमांस संघर्ष और सपनों का गवाह बनता है मुंबई का मरीन ड्राइव. प्रेमियों और संघर्षरत लोगों की मनपसंद जगह मरीन ड्राइव.

आज मरीन ड्राइव की भीड़ में शाम के समय एक युवक बैठा था. सड़क की तरफ पीठ किए समंदर की तरफ चेहरा. समंदर की लहरें किनारों से टकरा कर शोर मचाती हुई वापस समंदर में मिल जाती थीं. कुछ लहरें ज्यादा जोशीली हुईं तो युवक के पैरों को भिगो कर चली जातीं. छोटीछोटी चट्टानों के पीछे छिपे केकड़े रहरह कर ?ांक लेते थे समंदर को, फिर दुबक जाते थे बड़ेबड़े पत्थरों के पीछे.

लगभग 25 वर्ष के उस युवक का नाम कार्तिक था. चेहरे पर चिंता और सोच की परछाईं थी. हवा उस के माथे पर बिखरे बालों को थोड़ा और बिखेर देती थी. चेहरे पर हलकीहलकी

दाढ़ी थी. लंबी नाक, कमान सी खिंची आंखों में तनाव भी झलक रहा था. खिलता हुआ रंग और लंबा कद.

रोशनी से झिलमिल करती गगनचुंबी इमारतें. समंदर का पानी रोशनी में झिलमिल कर रहा था. कार्तिक शायद खयालों में इतना डूबा था कि उसे बज रहे मोबाइल की आवाज भी सुनाई नहीं दे रही थी. मोबाइल की मधुर ध्वनि लगातार शोर कर रही थी. तभी फेरी वाला लड़का जो वहीं घूमघूम कर पौपकौर्न बेच रहा था, वह रुक गया. एक पल रुका फिर कार्तिक के पास जा कर बोला, ‘‘साहब, आप का मोबाइल बज रहा है उठाते क्यों नहीं? मरने के इरादे से बैठे हो क्या?’’

कार्तिक अचानक हड़बड़ा गया. देखा तो सामने फेरी वाला था, ‘‘क्यों

मरने का क्यों सोचूंगा?’’ कार्तिक गुस्से में बोला.

‘‘अरे साहब, कितनी देर से इधर बैठे हैं आप. बहुत से लोग आते हैं मरने को यहां.’’

‘‘तो फिर मोबाइल उठाओ,’’ फेरी वाला बोला और फिर आवाज लगाता हुआ चला गया.

‘‘हां ठीक है,’’ कार्तिक ने मोबाइल उठा लिया, मोबाइल पर शारदा मैम का नाम चमक रहा था, ‘‘डार्लिंग कहां हो?’’

कार्तिक का मन हुआ मोबाइल उठा कर समंदर में फेंक दे और खुद भी समंदर में कूद जाए. फिर बोला, ‘‘बोलिए मैम.’’

‘‘कब तक आओगे? प्यास लगी है.’’

‘‘घंटेभर में आऊंगा,’’ कार्तिक बोला.

‘‘ओके मैं इंतजार करती हूं.’’

कार्तिक ने अपनी बाइक उठाई, मुंबई की लंबीलंबी सड़कों पर बाइक हवा से बातें करने लगी. साथ ही साथ वह सोचता जा रहा था, काश, मेरी बाइक किसी बड़ी गाड़ी से टकरा जाए, मैं मर जाऊं. क्या करूं? खुद ही गाड़ी किसी गाड़ी से भिड़ा देता हूं. तभी अचानक उस के दिमाग ने सवाल किया कि अपनी जान क्यों गंवाना चाहता है? शारदा मैम को निबटा दें.

हां, यही सही है. इन विचारों में डूबतेउतराते उसे भूख महसूस होने लगी. उस ने बाइक को चौपाटी की तरफ मोड़ दिया.

चौपाटी पर तो मेला सा लगा रहता है. उस ने बाइक एक स्टाल पर रोकी और भेलपूरी और कुछ सैंडविच का और्डर दिए. एक ठंडे पानी की बोतल का और्डर दिया. लड़का ठंडे पानी की बोतल ले आया. सब से पहले उस ने पानी की बोतल खोल कर आधी बोतल से खुद का चेहरा धो लिया, फिर आधी बोतल का पानी पी गया. फैला हुआ पानी रेत में समा गया था. तब तक लड़का प्लेटें टेबल पर सजा गया था. उस ने एक थम्सअप भी मंगवाई. फिर स्नैक्स खाने लगा. खातेखाते उस की आंखों के सामने शारदा मैम का चेहरा घूमने लगा कि यहां से जाते ही शारदा मैम की वासना की आग ठंडी करनी पड़ेगी. उसे घिन सी महसूस होने लगी.

‘‘साहब कुछ और लाऊं?’’ लड़के ने पूछा.

‘‘नहींनहीं, अब कुछ नहीं,’’ कह कर कार्तिक ने स्टाल वाले को पैसे दिए और चल दिया.

जब ग्रांट रोड के उस अपार्टमैंट में पहुंचा तो बहुत देर हो चुकी थी. उस ने सोचा शारदा मैम सो गई होगी. थर्ड फ्लोर पर उस का घर था. सैकंड फ्लोर पर शारदा मैम का. उस 7 माले के अपार्टमैंट ‘प्लाजा’ में जीवन जाग रहा था. यों भी मुंबई नहीं सोती.

वह जल्दीजल्दी सीढि़यां चढ़ने लगा थर्ड माले पर जाने के लिए लिफ्ट की क्या जरूरत? सैकंड माला क्रौस करने वाला ही था कि मोबाइल बज उठा, ‘‘कहां पहुंचे डार्लिंग?’’ शारदा मैम की आवाज आई.

मजबूरन फिर वह सैकंड माले पर फ्लैट नंबर 204 के सामने खड़ा था.

‘‘चले आओ दरवाजा खुला है तुम्हारे इंतजार में,’’ शारदा मैम ड्राइंगरूम में ही सोफे पर अधलेटी थी. सामने शराब की बोतल थी. मतलब आधी बोतल पी चुकी है. कार्तिक घबराया.

‘‘सोच क्या रहे हो? आओ, बची हुई शराब तुम्हारा इंतजार कर रही है,’’ शारदा ने अपनी ?ानी नाइटी को थोड़ा ऊंचा किया पैरों की तरफ से.

‘‘मुझे नहीं पीनी शराब,’’ कार्तिक बोला.

‘‘कोई बात नहीं, मत पीयो… आओ मेरी बांहों में,’’ शारदा बेशर्मी से बोली.

‘‘मुझे फ्री करो मैम, तुम्हारे कारण मैं टैंशन में हूं,’’ कार्तिक गिड़गिड़ाया, ‘‘मेरा वीडियो डिलीट करो.’’

‘‘अरे, हो जाएगा डिलीट वीडियो. आओ, ऐंजौय कर लो,’’ कह कर शारदा उसे कंधे से पकड़ कर बैडरूम में घसीट सी ले गई.

लगभग घंटेभर बाद जब कार्तिक अपने घर जाने के लिए सीढि़यां चढ़ रहा था तो शर्म से गड़ा जा रहा था. फ्लैट की कौलबैल पर उंगली रखता तब तक दरवाजा खुल गया था. मां इंतजार कर रही थी.

कार्तिक मां से नजरें बचाता हुआ अपने रूम में चला गया. कार्तिक की मां दीपा बेटे को परेशान देख बोली, ‘‘बेटा बात क्या है क्यों टैंशन में है?’’

‘‘कुछ नहीं मां,’’ कार्तिक बोला.

‘‘देख बेटा, तू रिश्ता टूटने से टैंशन में है. बहुत से रिश्ते आएंगे. रिश्ते तो बनते और बिगड़ते हैं. हो सकता है कहीं दूसरी लड़की का रिश्ता ज्यादा अच्छा हो.’’

हालांकि टैंशन उन को भी था, लेकिन बेटे के सामने जाहिर नहीं करना चाहती थी. महीनाभर पहले कार्तिक के रिश्ते के लिए लड़की वाले आए थे. सब फाइनल हो गया था. कार्तिक ने भी लड़की पसंद कर ली थी, लेकिन लड़की वालों ने अचानक बिना किसी कारण के रिश्ता तोड़ दिया. लेकिन कार्तिक जानता था कि लड़की वाले रिश्ता क्यों तोड़ रहे हैं.

‘‘मां अब मैं सोना चाहता हूं,’’ कार्तिक बोला.

‘‘ठीक है बेटा, लेकिन टैंशन मत रख, जौब जौइन करने वाला है, उसी की चिंता कर,’’ कह कर दीपा अपने रूम में चली गई.

कार्तिक ने दरवाजा बंद किया और सीधा वाशरूम में गया. बहुत देर तक नहाता रहा और रोता रहा, लेकिन आंसू पानी में मिल कर पानी जैसे ही हो गए. नहा कर आया तो थोड़ा सा मन हलका था. कार्तिक बिस्तर पर लेटा तो लगभग सालभर पहले के वे पुराने दिन याद आ गए. संडे का दिन था. मां और बाबूजी सुबह ही लोनावाला के लिए निकले थे.

अगले 2 दिन वहीं रहने वाले थे. उन के एक फैमिली मित्र भी वहां सपरिवार आने वाले थे तो इन 3 दिनों में कार्तिक फ्री था. जौब के लिए कोशिश जारी थी. उसे पता था कि जौब के बाद तो वही रूटीन लाइफ हो जाएगी इसलिए वह 3 दिन अपने दोस्तों के साथ घूमनेफिरने में बिताना चाहता था. वह कुछ साल पहले ही मुंबई आ कर रहने लगे थे. बाबूजी का पुश्तैनी मकान आदि वाराणसी के पास गांव में था. बाबूजी वाराणसी में सरकारी जौब में थे. कार्तिक इकलौता बेटा था. वह मुंबई में रहना चाहता था. जौब के लिए भी वहीं कोशिश कर रहा था. इसलिए बेटे का मन रखने के लिए अपनी नौकरी के रिटायरमैंट के बाद ग्रांट रोड पर उन्होंने एक फ्लैट खरीद लिया था. कभीकभी गांव भी चले जाते थे.

कार्तिक वाशरूम से नहा कर निकला ही था कि सैकंड फ्लोर पर रहने वाली शारदा मैम दरवाजा धकेल कर सीधी घर में घुस गई. भीगेभीगे से कार्तिक को देखती रही. 25 वर्षीय कार्तिक उसे भा गया. वह लगभग 62 वर्षीय महिला थी. पति उस के विदेश में थे बेटे के पास. वे कभीकभी आते थे. सभी उन को शारदा मैम कह कर बुलाते थे तो कार्तिक भी शारदा मैम कहता था.

‘‘जी बोलिए,’’ कार्तिक ने पूछा.

‘‘मम्मी कहां है तुम्हारी?’’ शारदा ने पूछा.

‘‘लोनावाला गए हैं,’’ कार्तिक का जवाब था.

‘‘मेरी किचन में सिलैंडर खत्म हो गया है उसे चेंज करना है,’’ शारदा मैम बोली.

‘‘आप चलिए मैं आता हूं,’’ कार्तिक बोला और फिर थोड़ी देर बाद चेंज करने के बाद शारदा मैम के घर पहुंच गया.

रसोई में जा कर गैस सिलैंडर बदला और हाथ धोने के लिए वाशरूम में गया ही था कि पीछे से शारदा मैम ने उसे पकड़ लिया.

‘‘अरेअरे यह क्या है?’’ कार्तिक बोला.

‘‘क्या होता है यह, नहीं समझते,’’ कह कर शारदा मैम ने उस पर चुंबनों की बरसात शुरू कर दी थी.

‘‘शर्म नहीं आती, आप को,’’ कार्तिक बोला, ‘‘मैं बेटे के बराबर हूं आप के.’’

‘‘कैसी शर्म? अकेली लेडीज समझ कर रेप की कोशिश कर रहे थे,’’ शारदा ने रंग बदला.

‘‘क्या बकवास है?’’ कार्तिक घबराया.

‘‘चलो सैक्स करो मेरे साथ, नहीं तो पुलिस को बुला लूंगी और शोर मचा दूंगी कि तुम ने जबरदस्ती करने की कोशिश की,’’ शारदा मैम बोली.

उस दिन की मजबूरी उस के गले का फंदा बनती चली गई. वह घबरा गया था.

जौब, पुलिस के चक्कर और शारदा के जाल में फंसता चला गया.

किसी से नहीं कहना: भाग 5- उर्वशी के साथ उसके टीचर ने क्या किया?

बैल बजते ही उर्वशी ने दरवाजा खोला और सामने महेश को देख कर ठंडी सांस ली. महेश उस के कंधे पर सिर रख कर रोने लगा.

उर्वशी ने उसे सांत्वना देते हुए पूछा, ‘‘महेश फोन क्यों नहीं उठाया तुम ने? मैं ने तुम्हें कितने फोन किए?’’

‘‘उर्मी मैं बाइक पर था, जब मुझे इस ऐक्सीडैंट का समाचार मिला, यह सुनते ही मेरे हाथ से मोबाइल गिर गया और पीछे से आ रही कार का पहिया उस के ऊपर से निकल गया. मैं होश में नहीं था, घर जा कर मैं ने कार ली और सीधे जबलपुर चला गया. मैं ने अपने मातापिता को खो दिया उर्मी, मैं बहुत अकेला महसूस कर रहा हूं. तुम जल्दीसेजल्दी मेरे जीवन में पूरी तरह से आ जाओ.’’

‘‘हां महेश, यह हमारे लिए बहुत ही दुखभरा समय है. कुछ दिनों बाद पापा के पास जा कर हम फिर से बात करेंगे.’’

‘‘उर्मी मैं चाहता हूं कि पापा के पास पहुंचने से पहले ही पूरी जायदाद तुम्हारे नाम कर दूं.’’

उर्वशी ने मन ही मन खुश होते हुए ऊपरी मन से कहा, ‘‘नहीं महेश उस की जरूरत नहीं है.’’

‘‘उर्मी मैं ने पापा से वादा किया है और उसे पूरा तो करना ही है.’’

1 सप्ताह के अंदर महेश ने अपनी पूरी जायदाद उर्वशी के नाम कर दी.

यह देख कर उर्वशी ने पूछा, ‘‘महेश, तुम इतना प्यार करते हो मुझ से?’’

‘‘हां उर्मी मैं ने तुम्हारा प्यार पाने के लिए, अपनी पत्नी को भी हमेशाहमेशा के लिए छोड़ दिया है. अब हमारे बीच कोई नहीं आ सकता.’’

महेश से यह सब सुन कर उर्वशी को सुकून का ऐसा एहसास हुआ, जिस की चाहत वर्षों से उस के दिल में हलचल मचाए हुए थी.

जायदाद के कागज साथ में ले कर उर्वशी और महेश भोपाल पहुंच गए. उर्वशी के मातापिता ने महेश का बहुत स्वागत किया और उसे सांत्वना दी.

महेश ने कहा, ‘‘पापा, मैं ने अपनी पूरी जायदाद उर्मी के नाम कर दी है.’’

अपनी बेटी की योजना को सफल करने के लिए विवेक ने उन दोनों की शादी की तारीख 20 दिन बाद की तय कर दी.

उर्वशी ने मनहीमन कुदरत से कहा कि यह केवल मेरा बदला मात्र है जो एक नारी को अपने स्वाभिमान की रक्षा करने के लिए मजबूर कर रहा था. मेरी लुटी हुई इज्जत तो मुझे वापस नहीं मिल सकती, किंतु इस पापी को उस पाप की सजा जरूर मिलनी चाहिए, जो इस ने 10 वर्ष की छोटी सी नासमझ बच्ची पर किया था.’’

शादी की तारीख तय होते ही महेश और उर्वशी वापस देवास पहुंच गए.

विवाह के 1 सप्ताहपूर्व उर्वशी ने महेन्श के घर जा कर कहा, ‘‘महेश, मैं तुम से शादी नहीं करना चाहती.’’

‘‘यह क्या कह रही हो उर्मी? अब तो हमारी शादी के लिए सभी तैयार हैं?’’

‘‘शादी? कैसी शादी, तुम ने कभी अपने जीवन के भूतकाल को याद किया है महेश? एक 10 वर्ष की नन्ही बच्ची के साथ कैसे व्यवहार करना चाहिए, कभी सोचा था?’’

‘‘यह क्या कह रही हो तुम? कौन 10 साल की बच्ची?’’

‘‘महेश क्या तुम उस का नाम भूल गए? वही उर्वशी जिसे इंटर स्कूल कंपीटिशन के बहाने उस के मातापिता के विश्वास को तोड़ कर, उस के साथ तुम ने बलात्कार किया था. उस नन्ही बच्ची के जीवन को ऐसी जगह घसीट कर ले आए थे, जहां से वह आज तक बाहर नहीं निकल पाई.

‘‘मैं वही उर्वशी हूं महेश और मैं तुम से प्यार नहीं, बेइंतहा नफरत करती हूं. तुम्हें उस तड़पती हुई, कमजोर बच्ची पर जरा सी भी दया नहीं आई थी. उस का भविष्य कैसा होगा, तुम ने नहीं सोचा, वह रो रही थी और तुम अपनी मनमानी कर रहे थे. किसी से नहीं कहना यही सिखा रहे थे न मुझे. तुम्हें अब कोई नहीं मिलेगा महेश, न मैं और न ही तुम्हारी पत्नी.

‘‘तुम तो अपनी पत्नी के साथ भी वफा नहीं कर पाए. तुम्हारी गलतियों का प्रायश्चित्त तो हो ही नहीं सकता. यह सजा भी तुम्हारे लिए बहुत कम है बाकी सजा तो शायद तुम्हें कुदरत ही दे पाएगी.

‘‘अपनी पत्नी को वापस बुलाने की कोशिश भी मत करना, क्योंकि 10 वर्ष की बच्ची का बलात्कार करने वाले के साथ वह कभी नहीं रहेगी.’’

उर्वशी के मुंह से यह बात सुन कर महेश सकपका गया. काटो तो खून नहीं  उस की ऐसी हालत हो रही थी.

उस के घराए हुए चेहरे को देख कर उर्वशी ने कहा, ‘‘हां महेश मेरे इस षड्यंत्र में मेरे पापामम्मी के अलावा तुम्हारी पत्नी पूजा भी शामिल थी. मैं ने बहुत पहले ही उसे सबकुछ बता दिया था. तुम्हें यह बात पता नहीं चले, इसलिए उस ने वही किया जो मैं ने उसे करने को कहा. अब यह घर मेरा है महेश, तुम यहां से चले जाओ और अपनी शकल मुझे कभी मत दिखाना.’’

उस मकान, उस दौलत से उर्वशी को कोई मतलब नहीं था. वह तो केवल उस के बदले की जीत थी. उस मकान को उर्वशी ने अनाथाश्रम को दे दिया. महेश की पत्नी से मिल कर उसे धन्यवाद कहा और वापस अपने मम्मीपापा के पास चली गई. फिर उर्वशी ने अपनी जिंदगी की एक नई शुरुआत करी. न कोर्ट, न कचहरी, यह थी स्वाभिमान की लड़ाई जो उर्वशी ने जीत कर दिखाई.

किसी से नहीं कहना: भाग 4- उर्वशी के साथ उसके टीचर ने क्या किया?

डिनर के बाद महेश ने उर्मी को उस के घर छोड़ दिया. बिस्तर पर लेट कर उर्वशी अपनी योजना को सफल होता देख खुश हो रही थी, किंतु आगे अब क्या और कैसे करना है, यह उस के समक्ष चुनौतीभरा कठिन प्रश्न था.

दूसरे दिन उर्वशी ने महेश को फोन कर के कहा, ‘‘हैलो महेश मैं 1 सप्ताह के लिए अपने घर जा रही हूं…’’

महेश ने बीच में ही उसे टोकते हुए कहा, ‘‘उर्मी, 1 सप्ताह, मैं कैसे रहूंगा तुम्हारे बिना?’’

‘‘महेश हमेशा साथ रहना है तो यह जुदाई तो सहन करनी ही होगी. मैं हमारी शादी की बात करने जा रही हूं, आखिर मुझे भी तो जल्दी है न.’’

उर्वशी के मुंह से यह बात सुन कर महेश खुश हो गया. उर्वशी अपने घर चली गई, महेश से यह कह कर कि उसे फोन नहीं करना.

1 सप्ताह का कह कर गई उर्वशी 15 दिनों तक भी वापस नहीं आई.

इधर महेश की बेचैनी बढ़ती जा रही थी. उर्वशी यही तो चाहती थी, अभी तक

सबकुछ उस की योजना के मुताबिक ही हो रहा था. 15 दिनों बाद उर्वशी वापस आई और उस ने महेश को फोन लगा कर बोला, ‘‘महेश एक बहुत ही दुखद समाचार ले कर आई हूं, शाम को डिनर पर मिलो तो तुम्हें सब विस्तार से बताऊंगी.’’

शाम को डिनर पर उर्वशी को उदास देख कर महेश ने पूछा, ‘‘क्या हुआ उर्मी? घर पर मना तो नहीं कर दिया न?’’

बहुत ही उदास मन से उर्वशी ने उसे बताया, ‘‘महेश मेरे पापा ने मेरी शादी तय कर दी है.’’

‘‘यह क्या कह रही हो उर्मी? तुम से बिना पूछे वे ऐसा कैसे कर सकते हैं?’’

‘‘मुझे नहीं पता था महेश कि मेरे महल्ले में रहने वाला राकेश बचपन से मुझे प्यार करता है. मैं ने तो कभी उस के साथ बात भी नहीं करी. एक दिन उस ने मेरे पापा से मिल कर कहा मैं आप की बेटी से बहुत प्यार करता हूं और उस से शादी करना चाहता हूं. मैं उस के लिए कुछ भी कर सकता हूं.

‘‘मेरे पापा ने यों ही उस से पूछ लिया कि क्या कर सकते हो तुम उस के लिए?

‘‘राकेश ने कुछ देर सोच कर कहा कि मैं शादी से पहले ही अपना बंगला, सारी दौलत आप की बेटी के नाम कर सकता हूं.

‘‘मेरे पापा चौंक गए और उन्होंने कहा कि यह क्या कह रहे हो? कथनी और करनी में बहुत फर्क है.

‘‘तब महेश उस ने सच में अपना बंगला मेरे नाम पर लिख दिया हालांकि मेरे पापा ने उसे मना भी किया. पापा के मुंह से यह सब सुनने के बाद मैं कुछ कह ही नहीं पाई, क्योंकि मेरे मम्मीपापा दोनों बहुत ही खुश थे.

‘‘मुझे समझते हुए उन्होंने कहा कि उर्मी जो लड़का तुम्हें इतना प्यार करता है, सोचो तुम्हें कितना खुश रखेगा. मैं कुछ नहीं कह पाई महेश.

महेश ने बौखला कर कहा, ‘‘इस में कौन सी बड़ी बात है उर्मी, मैं भी अपनी पूरी दौलत तुम्हारे नाम कर सकता हूं.

प्यार के आगे दौलत की औकात ही क्या और फिर तुम भी तो मेरी ही रहोगी न.’’

अपनी योजना को सफल होता देख उर्वशी ने खुश हो कर कहा, ‘‘मैं जानती हूं महेश, लेकिन राकेश ने तो अपनी सारी दौलत मेरे नाम कर दी है, उसे कैसे मना करें?’’

‘‘उर्वशी तुम चिंता मत करो, मैं तुम्हारे पापा से मिल कर उन्हें समझऊंगा और जो कुछ भी राकेश ने दिया है उसे वापस कर देंगे.’’

इस तरह बातें करते हुए दोनों ने डिनर पूरा किया और फिर महेश ने उर्वशी को घर छोड़ दिया. महेश की पत्नी पूजा को उस के अफेयर के बारे में पता था. इसीलिए उन के घर में रोज झगड़ा होता रहता था.

महेश जैसे ही अपने घर पहुंचा पूजा ने गुस्से में पूछा, ‘‘इतनी देर कहां थे महेश? कोई फोन नहीं, कोई खबर नहीं, आखिर ऐसा क्यों कर रहे हो? तुम्हें क्या लगता है, मुझे कुछ पता नहीं, धोखा देना और गलतियां करना तो तुम्हारी आदत ही है.’’

पूजा बहुत ही स्वाभिमानी लड़की थी. उस ने महेश की इस हरकत के लिए उसे धिक्कारते हुए कहा, ‘‘महेश तुम एकसाथ 2 लड़कियों को धोखा दे रहे हो. कौन है उस से मुझे कोई मतलब नहीं, मुझे मतलब है तुम से और यह धोखा तुम मुझे दे रहे हो. मैं तुम्हारे जैसे घटिया धोखेबाज इंसान के साथ नहीं रह सकती. मैं उन लड़कियों में से नहीं हूं, जो पति को परमेश्वर मान कर इस तरह के अत्याचार घूंघट में रह कर ही सहन कर लेती हैं. यदि तुम्हें मुझ से नहीं किसी और से प्यार है तो मैं तुम्हें आजाद करती हूं. इतने सालों में शायद मेरा प्यार तुम्हें कम पड़ गया. अच्छा ही हुआ हमें अभी तक कोई संतान नहीं हुई वरना शायद मेरे पैरों में बेडि़यां पड़ जातीं.’’

महेश पूजा की बातों का कोई जवाब नहीं दे पाया. उस पर तो अभी केवल उर्मी के प्यार का नशा चढ़ा हुआ था. उर्वशी के मन में चल रहे षड्यंत्र से अनजान महेश उसी के साथ उस के मातापिता के पास गया. वहां पहुंच कर महेश ने उर्मी के पिता के समक्ष अपने प्यार का इजहार किया और शादी का प्रस्ताव रखा.

किंतु उर्वशी के पिता विवेक ने उसे टोकते हुए कहा, ‘‘यह संभव नहीं है, मैं ने उर्मी का रिश्ता तय कर दिया है, वह लड़का राकेश उसे बहुत प्यार करता है. मेरे मना करने के बाद भी उस ने अपनी सारी दौलत इस के नाम कर दी है, मैं उसे कैसे मना कर सकता हूं महेश? ’’

‘‘लेकिन उर्मी तो मुझ से प्यार करती है न अंकल, राकेश से नहीं. यह तो उर्मी के साथ भी अन्याय ही होगा. यदि आप अपनी बेटी को खुश देखना चाहते हैं तो आप वह रिश्ता तोड़ दीजिए, मैं उर्मी से बहुत प्यार करता हूं और उस के बिना जी नहीं पाऊंगा. मैं भी अपनी पूरी दौलत उर्मी के नाम लिखने को तैयार हूं.’’

विवेक अब कुछ नहीं कह पाए और उन्होंने हां कह दी, क्योंकि इस षड्यंत्र में वे शुरू से ही उर्वशी के साथ थे.

महेश बहुत ही जोश में था, वह तुरंत ही वहां से जाने लगा और जातेजाते उस ने उर्मी से कहा, ‘‘उर्मी आई लव यू, तुम्हारे लिए मैं कुछ

भी कर सकता हूं कुछ भी. मैं कल ही अपने वकील को साथ ले कर वापस आऊंगा और अपनी पूरी जायदाद तुम्हारे नाम कर दूंगा. फिर हमें विवाह के बंधन में बंधनेसे कोई भी रोक नहीं पाएगा.’’

1 दिन की कह कर गया महेश 3 दिन तक वापस नहीं आया और न ही उस का कोई फोन आया. इधर उर्वशी और उस के मातापिता बेचैन होने लगे, उन्हें लगने लगा कि महेश कहीं कुछ समझ तो नहीं गया.

उर्वशी बारबार उसे फोन कर रही थी, किंतु उस का फोन स्विच औफ ही आ रहा था. देखतेदेखते पूरा सप्ताह बीत गया, किंतु महेश नहीं आया तब उर्वशी घबरा कर वापस देवास आ गई और महेश से मिलने उस के शोरूम पहुंच गई.

सेल्समैन ने उसे देखते ही कहा, ‘‘उर्मी मैडम महेश सर के मातापिता  की कार दुर्घटना में मृत्यु हो गई है. यह समाचार मिलते ही वह जबलपुर चले गए और उन का मोबाइल भी बंद आ रहा है.’’

इतना सुन कर उर्वशी ने खेद व्यक्त किया और अपने घर चली गई. उस के मन में यह संतोष था कि जैसा वह सोच रही थी वैसा कुछ नहीं है. महेश को कुछ भी पता नहीं चला, उस की योजना असफल नहीं हुई.

1 सप्ताह और बीतने के बाद महेश देवास वापस आया और सब से पहले उर्मी से मिलने उस के घर पहुंच गया.

किसी से नहीं कहना: भाग 3- उर्वशी के साथ उसके टीचर ने क्या किया?

नौकरी जौइन करने का वक्त आ गया और उर्वशी घर में सभी का आशीर्वाद ले कर चली गई.

औफिस जौइन करने के बाद वह उस स्कूल में पहुंची, जहां उस के बचपन की खौफनाक यादें जुड़ी हुईर् थीं. शिक्षिका के पद के लिए आवेदन पत्र देने के बहाने से वह कुछ टीचर्स से मिली और बातों ही बातों में खेलकूद की बातें छेड़ते हुए महेश के विषय में पूछ लिया. तब उसे पता चला कि महेश अब एक बहुत बड़े स्पोर्ट्स शोरूम का मालिक है.

महेश के विषय में यह सुन कर उर्वशी का खून खौल उठा. वह सोचने लगी कि उस की जिंदगी बरबाद करने वाला मौज की जिंदगी जी रहा है, किंतु अपनी उस गलती पर अब उसे अवश्य ही पछताना होगा.

इतना बड़ा जानामाना शोरूम ढूंढ़ने में उर्वशी को समय नहीं लगा. शोरूम के अंदर जैसे ही वह पहुंची उसे सामने ही महेश शान से बैठा हुआ दिखाई दिया. उसे देखते ही वह पहचान गई, वह थोड़ा सहम गई, किंतु तुरंत ही उस ने अपनेआप को संभाल लिया.

एक साधारण सी ड्रैस में बिना मेकअप के भी वह बहुत सुंदर लग रही थी. उर्वशी को देखते ही महेश की आंखें उस पर जा टिकीं. महेश को अनदेखा कर अंदर जा कर उस ने सेल्स मैन से कहा, ‘‘जी बैडमिंटन के रैकेट दिखाइए.’’

‘‘जी मैडम अभी दिखाता हूं.’’

तब तक महेश वहां आ गया और सेल्स मैन से बोला, ‘‘तुम बैंक जा कर चैक जमा कर के आओ, कस्टमर को मैं अटैंड करता हूं.’’

‘‘कहिए मैडम क्या चाहिए आप को?’’

‘‘जी बैडमिंटन के रैकेट दिखाइए,’’ उर्वशी ने जवाब दिया.

‘‘जी जरूर, क्या मैं पूछ सकता हूं, आप किस स्कूल की तरफ से आई हैं?’’

‘‘जी नहीं, मैं किसी भी स्कूल से नहीं आई हूं, मुझे अनाथालय के बच्चों के लिए कुछ सामान चाहिए.’’

‘‘अरे वाह तो समाजसेविका हैं आप.’’

‘‘जी आप ऐसा समझ सकते हैं.’’

‘‘वाह आप बहुत अच्छा काम कर रही हैं, मैं आप को 20% का डिस्काउंट भी दूंगा.’’

‘‘आप बस जल्दी से मेरा सामान पैक करवा दीजिए.’’

अपना सामान ले कर उर्वशी बाहर निकल गई और एक गहरी सांस लेते हुए सोचने लगी कि जिस सुंदरता के पीछे उस का बचपन, हंसनाखेलना इस इंसान ने छीना था, उसी सुंदरता से वह भी उस की सारी खुशियां छीन लेगी.

अब उर्वशी हर 3-4 दिन में महेश के शोरूम पर आने लगी तथा कुछनकुछ खरीद कर वह अनाथालय के बच्चों में बांट दिया करती थी. अपने शोरूम में उर्वशी को देखते ही महेश का चेहरा खिल जाता था.

अब तक 3 महीने बीत चुके थे और उर्वशी उस से बहुत अच्छी तरह बात करने लगी थी. वह जब भी कुछ खरीदने आती महेश तुरंत उसे अटैंड करने स्वयं चला आता.

धीरेधीरे बातचीत का सिलसिला बढ़ने लगा और दोस्ती में बदल गया. उर्वशी ने महेश को अपना नाम उर्मी बताया था. अब तक वे दोनों एकदूसरे का फोन नंबर भी ले चुके थे. महेश महसूस कर रहा था कि उसे उर्मी की तरफ से बराबर लिफ्ट मिल रही है. अत: उस की हिम्मत भी बढ़ रही थी. अब उसे उर्मी का बेसब्री से इंतजार रहता था जिसे उर्वशी समझ रही थी. इसलिए अपनी योजना को आगे बढ़ाते हुए उर्वशी ने शोरूम पर आना बंद कर दिया ताकि महेश की बेचैनी बढ़ती जाए, वह उस का इंतजार करता रहे.

1 सप्ताह तक उस के नहीं आने पर महेश ने उसे फोन कर ही लिया, ‘‘हैलो उर्मी क्या हो गया है. तुम कितने दिनों से शोरूम पर नहीं आई?’’

‘‘मेरी तबीयत थोड़ी खराब है, महेश.’’

‘‘अरे मुझे क्यों नहीं बताया तुम ने? डाक्टर को दिखाया या नहीं? मैं ले कर चलता हूं, तुम अपने घर का पता भेजा, मैं तुरंत आ जाऊंगा.’’

‘‘नहींनहीं महेश उस की जरूरत नहीं है, मैं ने डाक्टर को दिखा लिया है, अब मैं ठीक हूं कल मैं खुद शोरूम पर आऊंगी.’’

‘‘अच्छा ठीक है,’’ महेश ने जवाब दिया.

दूसरे दिन जब उर्वशी शोरूम पर आई, महेश का चेहरा खिल गया और उस ने कहा, ‘‘उर्मी, मैं रोज तुम्हारा रास्ता देख रहा था, तुम ने बहुत इंतजार करवाया… तुम्हें आज मेरे साथ डिनर पर चलना होगा.’’

उर्वशी ने पहले तो मना किया, किंतु महेश के ज्यादा आग्रह करने पर मान गई.

तब महेश ने कहा, ‘‘उर्मी, मैं तुम्हें लेने आ जाऊंगा.’’

बचपन में सुना हुआ यही वाक्य उसे याद आ गया और उस ने महेश से कहा, ‘‘ठीक है मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी.’’

शाम को ठीक 7 बजे महेश उर्वशी को लेने आया. उर्वशी नीचे खड़ी उस का इंतजार कर रही थी और तब उसे बचपन की बीती घटना याद आने लगी.

नीली जींस, हलके गुलाबी रंग के कुरते और खुले हुए बालों में उर्वशी बहुत ही खूबसूरत लग रही थी.

उसे देखते ही महेश ने कहा, ‘‘उर्मी, तुम बहुत ही सुंदर लग रही हो.’’

‘‘थैंक यू महेश, तुम भी बहुत हैंडसम लग रहे हो,’’ ऐसा बोतले हुए उर्वशी कार में बैठ गई और दोनों होटल के लिए निकल गए.

वहां महेश ने पहले से ही टेबल रिजर्व कर रखी थी. यह उन दोनों की साथ में पहली डिनर की शाम थी. डिनर के बाद महेश ने उर्वशी को उस के घर छोड़ दिया.

इस तरह डिनर पर जाना अब दोनों के लिए आम बात हो गई थी. महेश मन ही मन

सच में उर्वशी से प्यार करने लगा था. यदि वह 2 दिन भी नहीं दिखे तो महेश बेचैन हो जाता था. उस का तब किसी काम में मन नहीं लगता था. अब वह अपने प्यार का इजहार करना चाहता था.

अत: एक दिन उस ने उर्वशी से कहा, ‘‘उर्मी आज मैं ने कैंडल लाइट डिनर रखा है, तुम चलोगी न?’’

उर्वशी ने खुशीखुशी बिना संकोच के कहा, ‘‘क्यों नहीं? जरूर चलूंगी.’’

जब दोनों कैंडल लाइट डिनर पर गए, तब महेश ने पहली बार होटल में उर्वशी का हाथ अपने हाथों में ले कर कहा, ‘‘उर्मी, मैं तुम्हें प्यार करने लगा हूं’’

उर्वशी बिलकुल भी चौंकी नहीं और बोली, ‘‘मैं जानती हूं महेश, तुम्हारी आंखों में मुझे मेरे लिए प्यार दिखाई देता है, प्यार तो मैं भी तुम से करने लगी हूं, किंतु तुम्हारी पत्नी? वह भी तो है न? मैं किसी का जीवन बरबाद नहीं करना चाहती.’’

‘‘नहीं उर्मी मैं वैसे भी अपनी पत्नी से अलग होने वाला हूं, हमारे विचार बिलकुल नहीं मिलते. वह भी मेरे साथ नहीं रहना चाहती,’’ महेश ने झठ बोलते हुए सफाई दी.

उर्वशी कुछ देर सोचने के बाद बोली, ‘‘किंतु महेश मैं ने अपने भविष्य का फैसला अपने मम्मीपापा पर छोड़ा है.’’

‘‘हां तो ठीक है न, तुम कहो तो मैं तुम्हारे पापा से बात करने आ सकता हूं. इतना बड़ा शोरूम, बंगला, गाड़ी सब कुछ है मेरे पास, आखिर वे मना क्यों करेंगे?’’

‘‘ठीक है महेश, मैं कुछ ही दिनों में घर जाने वाली हूं, तब मैं पापा से बात करूंगी.’’

उर्वशी के मुंह से प्यार का इकरार सुनने के बाद वह उसे किस करने की कोशिश करने लगा, किंतु उर्वशी ने उसे मना करते हुए कहा, ‘‘नहीं महेश यह सब विवाह के बाद ही अच्छा लगता है, पता नहीं मेरे पापा तुम्हारे साथ विवाह के लिए हां बोलेंगे या नहीं और मैं किसी को भी धोखा नहीं दे सकती. यदि मेरी शादी किसी और के साथ होगी तो यह किस मुझे शर्मिंदा करेगी.’’

अपने आप को संभालते हुए महेश ने कहा, ‘‘हां तुम ठीक कह रही हो उर्मी, मैं बहक गया था पर शादी किसी और से, यह बात तुम सोच भी कैसे सकती हो. हम इतना प्यार करते हैं तो हमारा मिलन तो निश्चित ही है.’

किसी से नहीं कहना: भाग 2- उर्वशी के साथ उसके टीचर ने क्या किया?

अपनी हवस शांत कर लेने के बाद महेश ने कहा, ‘‘उर्वशी, यह बात किसी को भी नहीं बताना, यह बात तुम अगर अपने घर पर बताओगी तो तुम्हारे मम्मीपापा तुम्हें बहुत मारेंगे.’’

महेश ने बारबार प्यार से कह कर उस के दिमाग में यह भर दिया कि यह बात किसी को भी नहीं बतानी है. कमजोर पड़ चुकी उर्वशी खुद से कपड़े भी नहीं पहन पा रही थी, वह लगातार रो रही थी, तब महेश ने खुद ही उसे कपड़े पहना दिए.

उर्वशी के कोमल होंठ नीले पड़ चुके थे, उस की ऐसी हालत देख कर महेश ने उसे समझया, ‘‘उर्वशी, अपने घर जा कर कहना कि रेस के समय तुम बहुत जोर से गिर गई थीं, इसलिए चोट लग गई है.’’

उर्वशी कितनी भी छोटी हो, किंतु वह यह तो समझ ही गई थी कि उस के साथ यह बहुत ही बुरा हुआ है. वहां से निकल कर महेश ने उर्वशी को उस के घर के पास ही छोड़ दिया और खुद तेजी से कार भगा कर चला गया.

उर्वशी किसी तरह से कराहती हुई घर पहुंची और बैल बजाई. विनीता दरवाजा खोलने आई और उर्वशी की ऐसी हालत देख कर उस के मुंह से चीख निकल गई, ‘‘क्या हुआ मेरी बच्ची को?’’

विनीता की चीख सुनते ही विवेक भी वहां आ गया और अपनी बेटी को इस हालत में देख कर वह भी घबरा गया. उर्वशी को विनीता ने गले से लगा लिया, वह जोरजोर से रो रही थी.

विवेक और विनीता हैरान थे, डरे हुए थे, ‘‘क्या हो गया बेटा?’’ वे बारबार पूछ रहे थे, किंतु उर्वशी कुछ भी नहीं बोल रही थी, केवल रोती ही जा रही थी.

आखिरकार उर्वशी ने उन्हें बताया, ‘‘मम्मी, मैं रेस के समय बहुत ज्यादा जोर से गिर गई थी. मुझे बहुत चोट आई है, सब दुख रहा है, मुझे नींद भी आ रही है, मुझे सोने दो मम्मा.’’

‘‘नहीं बेटा चलो पहले मैं तुम्हें नहला देती हूं, कपड़े बदल कर डाक्टर को भी दिखा देते हैं, तुम्हारे होंठों पर कितनी चोट लगी है,’’ कहते हुए उर्वशी का हाथ पकड़ कर विनीता उसे नहलाने ले गई.

उर्वशी को बाथरूम में नहलाते समय उस के कपड़ों पर खून के निशान देख कर विनीता चौंक कर चीख उठी, ‘‘उर्वशी बेटा यह ब्लड कैसे निकला तुम्हें?’’

विनीता घबरा गई और टौवेल में लपेट कर उर्वशी को बाहर ले आई. उस ने विवेक को उर्वशी के कपड़े दिखा कर रोते हुए कहा, ‘‘विवेक, हमारी बच्ची के साथ…’’

विवेक ने बीच में ही उसे रोक कर उर्वशी से पूछा, ‘‘बेटा, तुम्हारे साथ क्या हुआ? किसी ने तुम्हारे साथ गंदी बात की है क्या? किस ने किया, कौन था वह बताओ?’’

उर्वशी ने डरी हुई आवाज में कहा, ‘‘मैं रेस के समय गिर गई थी इसलिए लग गई है पापा.’’

तभी विनीता ने कहा, ‘‘उर्वशी बेटा सच बताओ, गिरने से ऐसी जगह पर चोट नहीं लगती.’’

उर्वशी ने कहा, ‘‘आप मुझे मारोगी न मम्मा.’’

‘‘मैं तुम्हें बिलकुल नहीं मारूंगी बेटा, कोई नहीं मारेगा, सब सचसच बताओ, तुम्हारे साथ क्या हुआ?’’

‘‘मम्मा महेश सर ने कहा था कि यह बात किसी को भी मत बताना वरना वे लोग तुम्हें मारेंगे.’’

विनीता ने बहुत प्यार से पटा कर उस से सारी बात पूछी. उर्वशी ने रोतेरोते सबकुछ बता दिया. मांबाप की तो मानो दुनिया ही लुट गई, अपनी बेटी की ऐसी दुर्दशा पर वे दोनों फूटफूट कर रोने लगे. वे खुद को दोषी समझने लगे कि उन्होंने उस इंसान पर भरोसा ही क्यों किया? उर्वशी के दादादादी भी अपनी पोती की ऐसी हालत देख कर रोने लगे.

तभी विवेक ने कहा, ‘‘विनीता, चलो पुलिस में शिकायत दर्ज करा देते हैं, उस पापी को इस कुकर्म की सजा मिलनी ही चाहिए.’’

किंतु विनीता ने साफ इनकार कर दिया, ‘‘नहीं, विवेक हम मध्यवर्गीय लोग हैं, यदि एक बार हमारी बच्ची के विषय में यह पता चल जाएगा तो समाज में उस का जीना मुश्किल हो जाएगा. लोग उसे अलग नजरों से देखेंगे और जब वह बड़ी होगी तो कौन करेगा इस दाग के साथ उस से शादी?’’

तभी विनीता ने उर्वशी से कहा, ‘‘उर्वशी बेटा यह बात किसी को भी मत बताना, अपने होंठों पर ताला लगा लो और जितनी जल्दी हो सके इसे भूलने की कोशिश करना.’’

विवेक ने जब डाक्टर के पास चलने को कहा तो बदनामी के डर से विनीता ने मना कर दिया और कहा, ‘‘घर पर ही दवा लगा कर ठीक करेंगे.’’

उर्वशी सोचने लगी कि जो बात उसे सर ने कही थी कि किसी को भी नहीं बताना, वही बात मम्मी भी कह रही हैं

अपनी मम्मी की बात मान कर उर्वशी ने अपने होंठों को तो सिल लिया, लेकिन अपने मन का वह क्या करे, जिस से वह घटना निकलती ही नहीं? उस भयानक घटना का खौफ हर समय उस के दिल में साया बन कर मंडराने लगा.

विवेक और विनीता ने मिल कर यह निर्णय लिया कि वे देवास छोड़ कर कहीं और चले जाएंगे ताकि नए माहौल में उर्वशी यह सब भूल जाए. जल्द ही विवेक ने स्कूल जा कर उर्वशी का नाम वहां से कटवा लिया और अपना ट्रांसफर भोपाल करवा लिया. वे देवास छोड़ कर चले गए.

शारीरिक तौर पर उर्वशी धीरेधीरे स्वस्थ हो रही थी, किंतु मानसिक तौर पर वह सदमे में ही थी. भोपाल आ कर उर्वशी को स्कूल में दाखिला मिल गया. पूरा परिवार हर समय उर्वशी को खुश रखने की कोशिश में लगा रहता था. लाख कोशिश के बाद भी उर्वशी के चेहरे पर पहले की तरह मुसकान नहीं आ पा रही थी.

उधर कुछ दिनों तक महेश छुट्टी पर ही रहा. जब उसे विश्वास हो गया कि उस के खिलाफ कहीं कोई शिकायत दर्ज नहीं की गई है तभी उस ने पुन: स्कूल आना शुरू किया. तब उसे पता चला कि उर्वशी ने तो स्कूल छोड़ दिया है और वह लोग कहीं और चले गए हैं. अब महेश अपने द्वारा किए गए पाप के डर से मुक्त हो गया. ऐसे लोग शायद जानते हैं कि बदनामी के डर से पीडि़त लड़की का परिवार चुप्पी साध लेगा.

धीरेधीरे समय व्यतीत हो रहा था, उर्वशी अब बड़ी हो रही थी और बड़े होने के साथ ही वह यह भी समझ चुकी थी कि उस के साथ बलात्कार हुआ था. ‘किसी से भी कुछ नहीं कहना, अपने होंठों पर ताला लगा लो,’ ये शब्द उसे आज भी याद थे जो उसे परेशान कर देते थे, साथ ही उसे अपने पापा के शब्द भी याद थे कि उस पापी को इस कुकर्म की सजा मिलनी ही चाहिए. अभी तक वह अपने साथ हुई जबरदस्ती को भूल नहीं पाई थी.

वक्त के साथसाथ उर्वशी की नफरत भी बढ़ती ही जा रही थी. वह अपने मन में अब तक यह दृढ़ निश्चय कर चुकी थी कि किसी भी कीमत पर उस चरित्रहीन इंसान से बदला लेना ही है. उर्वशी की ऐसी मनोदशा से उस का परिवार अनजान था. वे सब इस भ्रम में थे कि उर्वशी उस घटना को भूल चुकी है, लेकिन नफरत और बदले का ज्वालामुखी जो उर्वशी के अंदर धधक रहा था, उस का शांत होना इतना आसान नहीं था.

धीरेधीरे 12 वर्ष बीत गए अब तक उर्वशी की पढ़ाई पूरी हो चुकी थी. अपने कालेज के कैंपस में चयनित होने के उपरांत नौकरी के लिए उर्वशी ने देवास का चयन किया जहां वह इस खौफनाक घटना का शिकार हुई थी.

उर्वशी का यह निर्णय देख कर विवेक चिंताग्रस्त हो गए और फिर उर्वशी से पूछा, ‘‘बेटा उर्वशी देवास ही क्यों?’’

उर्वशी ने हंसते हुए जवाब दिया, ‘‘पापा वही तो सब से पास है, जब भी मन करेगा आसानी से यहां आप के पास आ सकूंगी.’’

उर्वशी से बात करने के बाद रात में विवेक ने विनीता से कहा, ‘‘उर्वशी ने वही शहर क्यों पसंद किया, उस के पास और भी चौइस थी? मुझे चिंता हो रही है.’’

‘‘नहीं विवेक ऐसी तो कोई बात नहीं है, 12 वर्ष बीत गए हैं, तब वह बहुत छोटी थी, तुम बेकार में चिंता कर रहे हो.’’

किसी से नहीं कहना: भाग 1- उर्वशी के साथ उसके टीचर ने क्या किया?

मध्यवर्ग के विवेक और विनीता अपनी इकलौती बेटी उर्वशी और वृद्ध मातापिता के साथ बहुत ही सुकून के साथ अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे. परिवार छोटा ही था, घर में जरूरत की सभी सुखसुविधाएं उपलब्ध थीं. ज्यादा की लालसा उन के मन में बिलकुल नहीं थी. यदि कोई चाहत थी तो केवल इतनी कि अपनी बेटी को खूब पढ़ालिखा कर बहुत ही अच्छा भविष्य दे पाएं.

उर्वशी भी अपने मातापिता की इस चाह पर खरा उतरने की पूरी कोशिश कर रही थी. 10 वर्ष की उर्वशी पढ़ने में होशियार होने के साथ ही खेलकूद में भी बहुत अच्छी थी और जीत भी हासिल करती थी. वह स्कूल में सभी टीचर्स की चहेती बन गई थी.

विनीता अपनी बेटी की पढ़ाई की तरफ बहुत ध्यान देती थी. उसे रोज पढ़ाना उस की दिनचर्या का सब से महत्त्वपूर्ण कार्य था. विवेक औफिस से आने के बाद उसे खेलने बगीचे में ले जाते थे. रात को अपने दादादादी के साथ कहानियां सुन कर उस के दिन का अंत होता था. इस तरह से उस की इतने अच्छे संस्कारों के बीच परवरिश हो रही थी.

उर्वशी 5वीं कक्षा में थी, वह प्रतिदिन बस से ही स्कूल आतीजाती थी. विनीता रोज उसे बस में बैठाने और लेने आती थी. यदि किसी दिन बस आने में थोड़ी भी देर हो जाए तो विनीता बस के ड्राइवर को फोन लगा देती थी.

बस से उतरते ही उर्वशी अपनी मां को समझती, ‘‘अरे मम्मी कभीकभी किसी बच्चों की मांएं आने में देर कर देती हैं, इसलिए देर हो जाती है. जब तक बच्चों की मांएं नहीं आतीं तब तक छोटे बच्चों को बस से नीचे भी नहीं उतरने देते. आप क्यों चिंता करती हो? हमारी बस में और स्कूल में सब लोग बहुत अच्छे हैं.’’

‘‘अच्छा मेरी मां मैं समझ गई.’’

उर्वशी के स्कूल में हफ्ते में 2 दिन खेलकूद का पीरियड होता था. इस पीरियड का बच्चे बहुत ही बेसब्री से इंतजार करते थे. उर्वशी को भी इंतजार रहता था. वह बहुत तेज दौड़ती थी. खेलकूद के टीचर महेश सर जिन की उम्र लगभग 26-27 वर्ष होगी, हमेशा उर्वशी की तरफ सब से ज्यादा ध्यान देते थे और उस की पीठ थपथपाना, उस की तारीफ करना सर की आदत में शामिल हो चुका था. छोटी उर्वशी भी उन के साथ बहुत घुलमिल गई थी.

महेश की नीयत इस बच्ची के लिए खराब हो चुकी थी. हवस दिनबदिन उस के ऊपर हावी होती जा रही थी. अब वह मौके की तलाश में था कि किस तरह अपनी हवस को शांत करे. चंचल और सुंदर उर्वशी को अपना शिकार बना कर स्वयं कैसे बच निकलना है, यह पूरी योजना एक षड्यंत्र के तहत महेश के मनमस्तिष्क में चल रही थी.

एक दिन उर्वशी को अपने पास बुला कर उस ने कहा, ‘‘उर्वशी बेटा अभी एक इंटर स्कूल कंपीटिशन होने वाला है और तुम तो कितना तेज दौड़ती हो. मैं ने उस के लिए तुम्हारा नाम लिखवा दिया है. अब तुम्हें और ज्यादा प्रैक्टिस करनी होगी. तुम यह बात अपने घर पर बता देना.’’

उर्वशी सर के मुंह से यह सुन कर बहुत खुश हो गई, ‘‘जी सर मैं बहुत मेहनत करूंगी और जीतूंगी भी. मैं आज ही मम्मीपापा को यह बता दूंगी. मेरे घर में सब बहुत खुश हो जाएंगे. सर हमें कब जाना है?’’

‘‘वह मैं तुम्हें बता दूंगा और यह बात अपनी क्लास में अभी किसी को भी मत बताना वरना सब ईर्ष्या करने लगेंगे.’’

‘‘ठीक है सर, मैं किसी को भी नहीं बताऊंगी… हम जीतने के बाद ही सब को बताएंगे.’’

‘‘हां बिलकुल,’’ महेश ने उत्तर दिया.

‘‘उर्वशी लो चौकलेट खाओगी?’’

‘‘नहीं सर मेरी मम्मी ने कहा है, किसी से भी खाने की कोई चीज नहीं लेना.’’

‘‘अरे लेकिन मैं तो तुम्हारा सर हूं, मुझ से लेने के लिए तुम्हारी मम्मी कभी मना नहीं करेंगी. अच्छा बोलो, तुम्हें क्या पसंद है, मैं तुम्हारे लिए वही चीज ले कर आऊंगा?’’

‘‘नहीं सर मुझे कुछ नहीं चाहिए,’’ उर्वशी इतना कह कर वहां से चली गई.

उर्वशी ने अपने घर जा कर जब इंटर स्कूल कंपीटिशन की बात बताई तो घर में सभी लोग बहुत खुश गए.

अब महेश की बेचैनी बढ़ने लगी थी, वह जल्दीसेजल्दी अपनी कामेच्छा पूरी करना चाहता था.

बुधवार को खेलकूद के पीरियड के दौरान महेश ने उर्वशी को बुला कर कहा, ‘‘उर्वशी, शनिवार को कंपीटिशन है. तुम सुबह 9 बजे स्कूल यूनिफौर्म पहन कर तैयार रहना. मेरे साथ2 बच्चे और भी होंगे, जो हमारे साथ ही चलेंगे.’’

‘‘जी सर,’’ कह कर उर्वशी जाने लगी.

तभी महेश ने उस का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘बेटा जीतना है, अपने सर की इच्छा पूरी करोगी न?’’

‘‘जी सर मैं बहुत तेज दौड़ूंगी.’’

उर्वशी ने घर पहुंच कर अपनी मम्मी से कहा, ‘‘मम्मी शनिवार को मेरी रेस है, मुझे यूनिफौर्म पहन कर जाना है, सुबह 9 बजे सर आएंगे और खेलकूद खत्म होने पर सर ही मुझे वापस भी छोड़ देंगे.’’

‘‘ठीक है उर्वशी बेटा, तुम हिम्मत से दौड़ना, डरना नहीं.’’

‘‘हां मम्मी.’’

आज शनिवार का दिन था, सुबह 9 बजे महेश कार में 2 बच्चों को बैठा कर उर्वशी को लेने उस के घर आ गया. उर्वशी के मम्मीपापा उसे नीचे ले कर खड़े महेश का इंतजार कर रहे थे. महेश ने कार में बैठेबैठे ही विवेक और विनीता को गुडमौर्निंग कहा.

वे कुछ पूछते उस से पहले ही महेश ने कहा, ‘‘उर्वशी बेटा जल्दी चलो देर हो रही है.’’

‘‘जी सर,’’ कह कर उर्वशी कार में बैठ गई.

तभी विनीता बोली, ‘‘सर ध्यान रखना उर्वशी का.’’

‘‘जी मैडम, आप चिंता न करें, मैं खुद उर्वशी को वापस छोड़ने भी आ जाऊंगा,’’ कह कर महेश ने कार चला दी.

कुछ दूर जा कर उस ने उन दोनों बच्चों को जो उस की पहचान के थे, उतार दिया.

इन बच्चों को वह यों ही घुमाने के लिए ले आया था ताकि उर्वशी के मातापिता ऐसा समझें कि दूसरे बच्चे भी साथ हैं.

अब कार में महेश और उर्वशी ही थे. उर्वशी ने पूछा, ‘‘सर वे दोनों बच्चे कहां गए?’’

‘‘उर्वशी, पहले कह रहे थे कि हमें भी चलना है खेलकूद देखने पर फिर पता नहीं क्यों कहने लगे हमें नहीं चलना, इसीलिए उन्हें छोड़ दिया.’’

महेश ने कार को काफी तेज रफ्तार से चला कर एक सुनसान रास्ते पर डाल दिया. नन्ही उर्वशी महेश के मन में चल रहे पाप से अनजान थी. इतना सोचनेसमझने की उस में बुद्धि ही नहीं थी. वह तो बाहर की तरफ देख कर खुश हो रही थी. उसे महेश सर पर विश्वास था, इसलिए डर का एहसास नहीं था. कुछ दूर जा कर महेश ने झडि़यों के बीच अपनी कार को रोक दिया.

यह देख उर्वशी ने कहा, ‘‘क्या हो गया सर? यहां तो जंगल जैसा दिख रहा है, हम यहां क्यों आए हैं?’’

‘‘उर्वशी लगता है, कार खराब हो गई है, तुम पीछे की सीट पर बैठ जाओ, मैं कार ठीक करता हूं.’’

उर्वशी बात मान कर पीछे की सीट पर जा कर बैठ गई. महेश इसी मौके की तलाश में था. वह भी जल्दी से पीछे आ कर बैठ गया.

महेश ने कहा, ‘‘उर्वशी, तुम मुझे बहुत प्यारी लगती हो, आओ मेरे पास आओ, मेरी गोदी में आ कर बैठ जाओ.’’

‘‘नहीं सर मुझे गोदी में नहीं बैठना,’’ उर्वशी ने जवाब दिया.

‘‘क्यों उर्वशी, क्या तुम अपने सर से प्यार नहीं करती? आ जाओ, मैं तुम्हें आज एक नया खेल सिखाऊंगा.’’

‘‘नहीं मैं गोदी में नहीं आऊंगी, मेरी मम्मी मना करती हैं.’’

उर्वशी के इनकार करने पर महेश उसे जबरदस्ती अपनी बांहों में भरने लगा.

उर्वशी चिल्लाई, ‘‘सर, मेरी मम्मी मना करती हैं… आप ने मुझे किस क्यों किया?’’

‘‘उर्वशी वह तो तुम्हारी मम्मा गंदे लोगों के लिए बोलती हैं, मैं तो तुम्हारा सर हूं न.’’ इतना कहतेकहते महेश आवेश में आ गया, छोटी सी उर्वशी और कुछ भी न कर सके, इसलिए अपने हाथों से उस के मुंह को बंद कर दिया. 6 फुट के ऊंचे पूरे जवान ने नन्ही सी बच्ची के कमजोर शरीर को अपने आगोश में भर लिया और जी भर कर उस के कमसिन नाजुक शरीर के साथ मनमानी कर अपनी महीनों की हवस को शांत करने लगा. उर्वशी दर्द से कराहती रही, छटपटाती रही, लेकिन कुछ कर नहीं पाई और कुछ कह भी नहीं पाई.

जरा सा मोहत्याग- ऐसा क्या हुआ था नीमा के साथ?

बहुत दिनों से नीमा से बात नहीं हो पा रही थी. जब भी फोन मिलाने की सोचती कोई न कोई काम आ जाता. नीमा मेरी छोटी बहन है और मेरी बहुत प्रिय है.

‘‘मौसी की चिंता न करो मां. वे अच्छीभली होंगी तभी उन का फोन नहीं आया. कोई दुखतकलीफ होती तो रोनाधोना कर ही लेतीं.’’

मानव ने हंस कर बात उड़ा दी तो मुझे जरा रुक कर उस का चेहरा देखना पड़ा. आजकल के बच्चे बड़े समझदार और जागरूक हो गए हैं, यह मैं समझती हूं और यह सत्य मुझे खुशी भी देता है. हमारा बचपन इतना चुस्त कहां था, जो किसी रिश्तेदार को 1-2 मुलाकातों में ही जांचपरख जाते. हम तो आसानी से बुद्धू बन जाते थे और फिर संयुक्त परिवारों में बच्चों का संपर्क ज्यादातर बच्चों के साथ ही रहता था. बड़े सदस्य आपस में क्या मनमुटाव या क्या मेलमिलाप कर के कैसेकैसे गृहस्थी की गाड़ी खींच रहे हैं, हमें पता ही नहीं होता था. आजकल 4 सदस्यों के परिवार में किस के माथे पर कितने बल आए और किस ने किसे कितनी बार आंखें तरेर कर देखा बच्चों को सब समझ में आता है.

‘‘मैं ने कल मौसी को मौल में देखा था. शायद बैंक में जल्दी छुट्टी हो गई होगी. खूब सारी शौपिंग कर के लदीफंदी घूम रही थीं. उन की 2 सहयोगी भी साथ थीं.’’

‘‘तुम से बात हुई क्या?’’

‘‘नहीं. मैं तीसरे माले पर था और मौसी दूसरे माले पर.’’

‘‘कोई और भी तो हो सकती है? तुम ने ऊपर से नीचे कैसे देख लिया?’’

‘‘अरे, अंधा हूं क्या मैं जो ऊपर से नीचे दिखाई न दे? अच्छीखासी हंसतेबतियाते जा रही थीं… और आप जब भी फोन करती हैं रोनाधोना शुरू कर देती हैं कि मर गए, बरबाद हो गए. जो समय सुखी होगा उसे आप से कभी नहीं बांटती और जब जरा सी भी तकलीफ होगी तो उसे रोरो कर आप से कहेंगी. मौसी जैसे इनसान की क्या चिंता करनी… छोड़ो उन की चिंता. उन का फोन नहीं आया तो इस का मतलब है कि वे राजीखुशी ही होंगी.’’

मैं ने अपने बेटे को जरा सा झिड़क दिया और फिर बात टाल दी. मगर सच कहूं तो उस का कहना गलत भी नहीं था. सच ही समझा है उस ने अपनी मौसी को. अपनी जरा सी भी परेशानी पर हायतोबा मचा कर रोनाधोना उसे खूब सुहाता है. लेकिन बड़ी से बड़ी खुशी पचा जाना उस ने पता नहीं कहां से सीख लिया. कहती खुशी जाहिर नहीं करनी चाहिए नजर लग जाती है. किस की नजर लग जाती है? क्या हमारी? हम जो उस के शुभचिंतक हैं, हम जिन्हें अपनी परेशानी सुनासुना कर वह अपना मन हलका करती है, क्या हमारी नजर लगेगी उसे? अंधविश्वासी कहीं की. अभी पिछले हफ्ते ही तो बता रही थी कि मार्च महीने की वजह से हाथ बड़ा तंग है. कुछ रुपए चाहिए. मेरे पास कुछ जमाराशि है, जिसे मैं ने किसी आड़े वक्त के लिए सब से छिपा कर रखा है. उस में से कुछ रुपए उसे देने का मन बना भी लिया था. मैं जानती हूं रुपए शायद ही वापस आएं. यदि आएंगे भी तो किस्तों में और वे भी नीमा को जब सुविधा होगी तब. छोटी बहन है मेरी. मातापिता ने मरने से पहले समझाया था कि छोटी बहन को बेटी समझना. मुझ से 10 साल छोटी है. मैं उस की मां नहीं हूं, फिर भी कभीकभी मां बन कर उस की गलती पर परदा डाल देती हूं, जिस पर मेरे पति भी हंस पड़ते हैं और मेरा बेटा भी.

‘‘तुम बहुत भोली हो शुभा. अपनी बहन से प्यार करो, मगर उसे इतना स्वार्थी मत बनाओ कि उस का ही चरित्र उस के लिए मुश्किल हो जाए. मातापिता को भी अपनी संतान के चरित्रनिर्माण में सख्ती से काम लेना पड़ता है तो क्या वे उस के दुश्मन हो जाते हैं, जो तुम उस की गलती पर उसे राह नहीं दिखातीं?’’

‘‘मैं क्या राह दिखाऊं? पढ़ीलिखी है और बैंक में काम करती है. छोटी बच्ची नहीं है वह जो मैं उसे समझाऊं. सब का अपनाअपना स्वभाव होता है.’’

‘‘सब का अपनाअपना स्वभाव होता है तो फिर रहने दो न उसे उस के स्वभाव के साथ. गलती करती है तो उसे उस की जिम्मेदारी भी लेने दो. तुम तो उसे शह देती हो. यह मुझे बुरा लगता है.’’

मैं मानती हूं कि उमेश का खीजना सही है, मगर क्या करूं? मन का एक कोना बहन के लिए ममत्व से उबर ही नहीं पाता. मैं उसे बच्ची नहीं मानती. फिर भी बच्ची ही समझ कर उस की गलती ढकती रहती हूं. सोचा था क्व10-20 हजार उसे दे दूंगी. कह रही थी कि मार्च महीने में सारी की सारी तनख्वाह इनकम टैक्स में चली गई. घर का खर्च कैसे चलेगा? क्या वह इस सत्य से अवगत नहीं थी कि मार्च महीने में इनकम टैक्स कटता है? उस के लिए तैयारी क्या लोग पहले से नहीं करते हैं? पशुपक्षी भी अपनी जरूरत के लिए जुगाड़ करते हैं. तो क्या बरसात के मौसम के लिए छाते का इंतजाम नीमा के पड़ोसी या मित्र करेंगे? सिर मेरा है तो उस की सुरक्षा का प्रबंध भी मुझे ही करना चाहिए न. मैं हैरान हूं कि उस के पास तो घर खर्च के लिए भी पैसे नहीं थे और मानव ने बताया मौसी मौल में खरीदारी कर रही थीं. सामान से लदीफंदी घूम रही थीं तो शौपिंग के लिए पैसे कहां से आए?

सच कहते हैं उमेश कि कहीं मैं ही तो उसे नहीं बिगाड़ रही. उस के कान मरोड़ उसे उस की गलती का एहसास तो कराना ही चाहिए न. कुछ रिश्ते ऐसे भी होते हैं, जिन के बिना गुजारा नहीं चलता. लेकिन वही हमें तकलीफ भी देते हैं. गले में स्थापित नासूर ऐसा ही तो होता है, जिसे काट कर फेंका नहीं जा सकता. उसी के साथ जीने की हमें आदत डालनी पड़ती है. निभातेनिभाते बस हम ही निभाते चलते जाते हैं और लेने वाले का मुंह सिरसा के मुंह जैसा खुलता ही जाता है.

40 की होने को आई नीमा. कब अपनी गलत आदतें छोड़ेगी? शायद कभी नहीं. मगर उस की वजह से अकसर मेरी अपनी गृहस्थी में कई बार अव्यवस्था आ जाती है. अकसर किसी के पैर पसारने की वजह से अगर मेरी भी चादर छोटी पड़ जाए तो कुसूर मेरा ही है. मैं ने अपनी चादर में उसे पैर पसारने ही क्यों दिए? मातापिता ही हैं जो औलाद के कान मरोड़ कर सही रास्ते पर लाने का दुस्साहस कर सकते हैं. वैसे तो एक उम्र के बाद सब की बुद्धि इतनी परिपक्व हो ही जाती है कि चाहे तो पिता का कहा भी न माने तो पिता कुछ नहीं कर सकता. मगर बच्चे के कान तक हाथ ले जाने का अधिकार उसे अवश्य होता है.

मैं ने शाम को कुछ सोचा और फिर नीमा के घर का रुख कर लिया. फोन कर के बताया नहीं कि मैं आ रही हूं. मानव कोचिंग क्लास जाता हुआ मुझे स्कूटर पर छोड़ता गया. नीमा तब स्तब्ध रह गई जब उस ने अपने फ्लैट का द्वार खोला.

‘‘दीदी, आप?’’

नीमा ने आगेपीछे ऐसे देखा जैसे उम्मीद से भी परे कुछ देख लिया.

‘‘दीदी आप? आप ने फोन भी नहीं किया?’’

‘‘बस सोचा तुझे हैरान कर दूं. अंदर तो आने दे… दरवाजे पर ही खड़ा कर दिया.’’

उसे एक तरफ हटा कर मैं अंदर चली आई. सामने उस का कोई सहयोगी था. मेज पर खानेपीने का सामान सजा था. होटल से मंगाया गया था. जिन डब्बों में आया था उन्हीं में खाया भी जा रहा था. पुरानी आदत है नीमा की, कभी प्लेट में सजा कर सलीके से मेज पर नहीं रखती. समोसेपकौड़े तो लिफाफे में ही पेश कर देती है. पेट में ही जाना है. क्यों बरतन जूठे किए जाएं? मुझे देख वह पुरुष सहसा असहज हो गया. सोचता होगा कैसी बदतमीज है नीमा की बहन एकाएक सिर पर चढ़ आई.

‘‘अपना घर है मेरा… फोन कर के आने की क्या तुक थी भला? बस बैठबैठे मन हुआ तो चली आई. क्यों तुम कहीं जाने वाली थी क्या?’’

मैं ने दोनों का चेहरा पढ़ा. पढ़ लिया मैं ने कुछ अनचाहा घट गया है उन के साथ.

‘‘तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं थी, इसलिए सोचा देख आऊं.’’

‘‘हां, विजय भी हालचाल पूछने ही आए हैं. ये मेरे सहयोगी हैं.’’

मेरे ही प्रश्न ने नीमा को राह दिखा दी. मैं ने तबीयत का पूछा तो उस ने झट से हालचाल पूछने के लिए आए सहयोगी की स्थिति साफ कर दी वरना झट से उसे कोई बहाना नहीं सूझ रहा था. मेरी बहन है नीमा. भला उसी के रंगढंग मैं नहीं पहचानूंगी? बचपन से उस की 1-1 हरकत मैं उस का चेहरा पढ़ कर ही भांप जाती हूं. 10 साल छोटी बहन मेरी बहुत लाडली है. 10 साल तक मेरे मातापिता मात्र एक ही संतान के साथ संतुष्ट थे. मैं ही अकेलेपन की वजह से बीमार रहने लगी थी. मौसी और बूआ सब की 2-2 संतानें थीं और मेरे घर में मैं अकेली. बड़ों में बैठती तो वे मुझे उठा देते कि चलो अंदर जा कर खेलो. क्या खेलो? किस के साथ खेलो? बेजान खिलौने और बेजान किताबें… किसी जानदार की दरकार होने लगी थी मुझे. मैं चिड़ीचिड़ी रहती थी, जिस का इलाज था भाई या बहन.

भाई या बहन आने वाला हुआ तो मातापिता ने मुझे समझाना शुरू कर दिया कि सारी जिम्मेदारी सिर्फ मेरी ही होगी. अपना सुखदुख भूल मैं नीमा के ही सुख में खो गई. 10 साल की उम्र से ही मुझ पर इतनी जिम्मेदारी आ गई कि अपनी हर इच्छा मुझे व्यर्थ लगती. ‘‘तुम उस की मां नहीं हो शुभा… जो उस के मातापिता थे वही तुम्हारे भी थे,’’ उमेश अकसर समझाते हैं मुझे.

अवचेतन में गहरी बैठा दी गई थी मातापिता द्वारा यह भावना कि नीमा उसी के लिए संसार में लाई गई है. मुझे याद है अगर हम सब खाना खा रहे होते और नीमा कपड़े गंदे कर देती तो रोटी छोड़ कर उस के कपड़े मां नहीं मैं बदलती थी. जबकि आज सोचती हूं क्या वह मेरा काम था? क्या यह मातापिता का फर्ज नहीं था? क्या बहन ला कर देना मेरे मातापिता का मुझ पर एहसान था? इतना ज्यादा कर्ज जिसे 40 साल से मैं उतारतेउतारते थक गई हूं और कर्ज है कि खत्म ही नहीं होता है.

‘‘आओ दीदी बैठो न,’’ अनमनी सी बोली नीमा.

मेरी नजर सोफे पर पड़े लिफाफों पर पड़ी. जहां से खरीदे गए थे उन पर उसी मौल का पता था जिस के बारे में मानव ने मुझे बताया था. कुछ खुले परिधान बिखरे पड़े थे आसपास. शायद नीमा उन्हें पहनपहन कर देख रही थी या फिर दिखा रही थी.

छटी इंद्री ने मुझे एक संकेत सा दिया… यह पुरुष नीमा की जिंदगी में क्या स्थान रखता है? क्या इसी को नीमा नए कपड़े पहनपहन कर दिखा रही थी.

‘‘क्या बुखार था तुम्हें? आजकल मौसम बदल रहा है… वायरल हो गया होगा,’’ कह मैं ने कपड़ों को धकेल कर एक तरफ किया.

उसी पल वह पुरुष उठ पड़ा, ‘‘अच्छा, मैं चलता हूं.’’

‘‘अरे बैठिए न… आप अपना खानापीना तो पूरा कीजिए. बैठो नीमा,’’ मेरा स्वर थोड़ा बदल गया होगा, जिस पर दोनों ने मुझे बड़ी गौर से देखा.

उस पुरुष ने कुछ नहीं कहा और फिर चला गया. नीमा भी अनमनी सी लगी मुझे.

‘‘बीमार थी तो यह फास्ट फूड क्यों खा रही हो तुम?’’ डब्बों में पड़े नूडल्स और मंचूरियन पर मेरी नजर पड़ी. उन डब्बों में 1 ही चम्मच रखा था. जाहिर है, दोनों 1 ही चम्मच से खा रहे थे.

‘‘कुछ काम था तुम से इसलिए फोन पर बात नहीं की… मुझे कुछ रुपए चाहिए थे… मानव की कोचिंग क्लास के लिए… तुम्हारी तरफ मेरे कुल मिला कर 40 हजार रुपए बनते हैं. तुम तो जानती हो मार्च का महीना है.’’ नीमा ने मुझे विचित्र सी नजरों से देखा जैसे मुझे पहली बार देख रही हो… चूंकि मैं ने कभी रुपए वापस नहीं मांगे थे, इसलिए उस ने भी कभी वापस करना जरूरी नहीं समझा. मैं बड़ी गौर से नीमा का चेहरा पढ़ रही थी. मैं उस की शाम बरबाद कर चुकी थी और संभवतया नैतिक पतन का सत्य भी मेरी समझ में आ गया था. अफसोस हो रहा है मुझे. एक ही मातापिता की संतान हैं हम दोनों बहनें और चरित्र इतना अलगअलग… एक ही घर की हवा और एक ही बरतन से खाया गया खाना खून में इतना अलगअलग प्रभाव कैसे छोड़ गया.

‘‘मेरे पास पैसे कहां…?’’ नीमा ने जरा सी जबान खोली.

‘‘क्यों? अकेली जान हो तुम. पति और बेटा अलग शहर में रहते हैं… उस पर तुम एक पैसा भी खर्च नहीं करती… कहां जाते हैं सारे पैसे?’’

नीमा अवाक थी. सदा उसी की पक्षधर उस की बहन आज कैसी जबान बोलने लगी. बोलना तो मैं सदा ही चाहती थी, मगर एक आवरण था झीना सा खुशफहमी का कि शायद वक्त रहते नीमा का दिमाग ठीक हो जाए. उस का परिवार और मेरा परिवार तो सदा ही उस के आचरण से नाराज था बस एक मैं ही उस के लिए डूबते को तिनके का सहारा जैसी थी और आज वह सहारा भी मैं ने छीन लिया.

‘‘पाईपाई कर जमा किए हैं मैं ने पैसे… मानव के दाखिले में कितना खर्चा होने वाला है, जानती हो न? मेरी मदद न करो, लेकिन मेरे रुपए लौटा दो. बस उन से मेरा काम हो जाएगा,’’ कह कर मैं उठ गई. काटो तो खून नहीं रहा नीमा में. मेरा व्यवहार भी कभी ऐसा होगा, उस ने सपने में भी नहीं सोचा होगा. उस की हसीन होती शाम का अंजाम ऐसा होगा, यह भी उस की कल्पना से परे था. कुछ उत्तर होता तो देती न. चुपचाप बैठ गई. उस के लिए मैं एक विशालकाय स्तंभ थी जिस की ओट में छिप वह अपने पति के सारे आक्षेप झुठला देती थी.

‘‘देखो न दीदी अजय कुछ समझते ही नहीं हैं…’’

अजय निरीह से रह जाते थे. नीमा की उचितअनुचित मांगों पर. नारी सम्मान की रक्षा पर बोलना तो आजकल फैशन बनता जा रहा है. लेकिन सोचती हूं जहां पुरुष नारी की वजह से पिस रहा है उस पर कोई कानून कोई सभा कब होगी? अपने मोह पर कभी जीत क्यों नहीं पाई मैं. कम से कम गलत को गलत कहना तो मेरा फर्ज था न, उस से परहेज क्यों रखा मैं ने? अफसोस हो रहा था मुझे. दम घुटने लगा मेरा नीमा के घर में… ऐसा लग रहा था कोई नकारात्मक किरण मेरे वजूद को भेद रही है. मातापिता की निशानी अपनी बहन के वजूद से मुझे ऐसी अनुभूति पहले कभी नहीं हुई. सच कहूं तो ऐसा लगता रहा मांपिताजी के रूप में नीमा ही है मेरी सब कुछ और शायद यही अनुभूति मेरा सब से बड़ा दोष रही. कब तक अपना दोष मैं न स्वीकारूं? नीमा की भलाई के लिए ही उस से हाथ खींचना चाहिए मुझे… तभी वह कुछ सही कर पाएगी…

‘‘दीदी बैठो न.’’

‘‘नहीं नीमा… मुझे देर हो रही है… बस इतना ही काम था,’’ कह नीमा का बढ़ा हाथ झटक मैं बाहर चली आई. गले तक आवेग था. रिकशे वाले को मुश्किल से अपना रास्ता समझा पाई. आंसू पोंछ मैं ने मुड़ कर देखा. पीछे कोई नहीं था, जो मुझे रोकता. मुझे खुशी भी हुई जो नीमा पीछे नहीं आई. बैठी सोच रही होगी कि यह दीदी ने कैसी मांग कर दी… पहले के दिए न लौटा पाए न सही कम से कम और तो नहीं मांगेगी न… एक भारी बोझ जैसे उतर गया कंधों पर से… मन और तन दोनों हलके हो गए. खुल कर सांस ली मैं ने कि शायद अब नीमा का कायापलट हो जाए.

Eid Special: ईद का चांद- क्यों डूबा हिना का अस्तित्व

उस दिन रमजान की 29वीं तारीख थी. घर में अजीब सी खुशी और चहलपहल छाई हुई थी. लोगों को उम्मीद थी कि शाम को ईद का चांद जरूर आसमान में दिखाई दे जाएगा. 29 तारीख के चांद की रोजेदारों को कुछ ज्यादा ही खुशी होती है क्योंकि एक रोजा कम हो जाता है. समझ में नहीं आता, जब रोजा न रखने से इतनी खुशी होती है तो लोग रोजे रखते ही क्यों हैं?

बहरहाल, उस दिन घर का हर आदमी किसी न किसी काम में उलझा हुआ था. उन सब के खिलाफ हिना सुबह ही कुरान की तिलावत कर के पिछले बरामदे की आरामकुरसी पर आ कर बैठ गई थी, थकीथकी, निढाल सी. उस के दिलदिमाग सुन्न से थे, न उन में कोई सोच थी, न ही भावना. वह खालीखाली नजरों से शून्य में ताके जा रही थी.

तभी ‘भाभी, भाभी’ पुकारती और उसे ढूंढ़ती हुई उस की ननद नगमा आ पहुंची, ‘‘तौबा भाभी, आप यहां हैं. मैं आप को पूरे घर में तलाश कर आई.’’

‘‘क्यों, कोई खास बात है क्या?’’ हिना ने उदास सी आवाज में पूछा.

‘‘खास बात,’’ नगमा को आश्चर्य हुआ, ‘‘क्या कह रही हैं आप? कल ईद है. कितने काम पड़े हैं. पूरे घर को सजानासंवारना है. फिर बाजार भी तो जाना है खरीदारी के लिए.’’

‘‘नगमा, तुम्हें जो भी करना है नौकरों की मदद से कर लो और अपनी सहेली शहला के साथ खरीदारी के लिए बाजार चली जाना. मुझे यों ही तनहा मेरे हाल पर छोड़ दो, मेरी बहना.’’

‘‘भाभी?’’ नगमा रूठ सी गई.

‘‘तुम मेरी प्यारी ननद हो न,’’ हिना ने उसे फुसलाने की कोशिश की.

‘‘जाइए, हम आप से नहीं बोलते,’’ नगमा रूठ कर चली गई.

हिना सोचने लगी, ‘ईद की कैसी खुशी है नगमा को. कितना जोश है उस में.’

7 साल पहले वह भी तो कुछ ऐसी ही खुशियां मनाया करती थी. तब उस की शादी नहीं हुई थी. ईद पर वह अपनी दोनों शादीशुदा बहनों को बहुत आग्रह से मायके आने को लिखती थी. दोनों बहनोई अपनी लाड़ली साली को नाराज नहीं करना चाहते थे. ईद पर वे सपरिवार जरूर आ जाते थे.

हिना के भाईजान भी ईद की छुट्टी पर घर आ जाते थे. घर में एक हंगामा, एक चहलपहल रहती थी. ईद से पहले ही ईद की खुशियां मिल जाती थीं.

हिना यों तो सभी त्योहारों को बड़ी धूमधाम से मनाती थी मगर ईद की तो बात ही कुछ और होती थी. रमजान की विदाई वाले आखिरी जुम्मे से ही वह अपनी छोटी बहन हुमा के साथ मिल कर घर को संवारना शुरू कर देती थी. फरनीचर की व्यवस्था बदलती. हिना के हाथ लगते ही सबकुछ बदलाबदला और निखरानिखरा सा लगता. ड्राइंगरूम जैसे फिर से सजीव हो उठता. हिना की कोशिश होती कि ईद के रोज घर का ड्राइंगरूम अंगरेजी ढंग से सजा न हो कर, बिलकुल इसलामी अंदाज में संवरा हुआ हो. कमरे से सोफे वगैरह निकाल कर अलगअलग कोने में गद्दे लगाए जाते. उस पर रंगबिरंगे कुशनों की जगह हरेहरे मसनद रखती.

एक तरफ छोटी तिपाई पर चांदी के गुलदान और इत्रदान सजाती. खिड़की के भारीभरकम परदे हटा कर नर्मनर्म रेशमी परदे डालती. अपने हाथों से तैयार किया हुआ बड़ा सा बेंत का फानूस छत से लटकाती.

अम्मी के दहेज के सामान से पीतल का पीकदान निकाला जाता. दूसरी तरफ की छोटी तिपाई पर चांदी की ट्रे में चांदी के वर्क में लिपटे पान के बीड़े और सूखे मेवे रखे जाते.

हिना यों तो अपने कपड़ों के मामले में सादगीपसंद थी, मगर ईद के दिन अपनी पसंद और मिजाज के खिलाफ वह खूब चटकीले रंग के कपड़े पहनती. वह अम्मी के जिद करने पर इस मौके पर जेवर वगैरह भी पहन लेती. इस तरह ईद के दिन हिना बिलकुल नईनवेली दुलहन सी लगती. दोनों बहनोई उसे छेड़ने के लिए उसे ‘छोटी दुलहन, छोटी दुलहन’ कह कर संबोधित करते. वह उन्हें झूठमूठ मारने के लिए दौड़ती और वे किसी शैतान बच्चे की तरह डरेडरे उस से बचते फिरते. पूरा घर हंसी की कलियों और कहकहों के फूलों से गुलजार बन जाता. कितना रंगीन और खुशगवार माहौल होता ईद के दिन उस घर का.

ऐसी ही खुशियों से खिलखिलाती एक ईद के दिन करीम साहब ने अपने दोस्त रशीद की चुलबुली और ठठाती बेटी हिना को देखा तो बस, देखते ही रह गए. उन्हें लगा कि उस नवेली कली को तो उन के आंगन में खिलना चाहिए, महकना चाहिए.

अगले दिन उन की बीवी आसिया अपने बेटे नदीम का पैगाम ले कर हिना के घर जा पहुंची. घर और वर दोनों ही अच्छे थे. हिना के घर में खुशी की लहर दौड़ गई. हिना ने एक पार्टी में नदीम को देखा हुआ था. लंबाचौड़ा गबरू जवान, साथ ही शरीफ और मिलनसार. नदीम उसे पहली ही नजर में भा सा गया था. इसलिए जब आसिया ने उस की मरजी जाननी चाही तो वह सिर्फ मुसकरा कर रह गई.

हिना के मांबाप जल्दी शादी नहीं करना चाहते थे. मगर दूसरे पक्ष ने इतनी जल्दी मचाई कि उन्हें उसी महीने हिना की शादी कर देनी पड़ी.

हिना दुखतकलीफ से दूर प्यार- मुहब्बत भरे माहौल में पलीबढ़ी थी और उस की ससुराल का माहौल भी कुछ ऐसा ही था. सुखसुविधाओं से भरा खातापीता घराना, बिलकुल मांबाप की तरह जान छिड़कने वाले सासससुर, सलमा और नगमा जैसी प्यारीप्यारी चाहने वाली ननदें. सलमा उस की हमउम्र थी. वे दोनों बिलकुल सहेलियों जैसी घुलमिल कर रहती थीं.

उन सब से अच्छा था नदीम, बेहद प्यारा और टूट कर चाहने वाला, हिना की मामूली सी मामूली तकलीफ पर तड़प उठने वाला. हिना को लगता था कि दुनिया की तमाम खुशियां उस के दामन में सिमट आई थीं. उस ने अपनी जिंदगी के जितने सुहाने ख्वाब देखे थे, वे सब के सब पूरे हो रहे थे.

किस तरह 3 महीने गुजर गए, उसे पता ही नहीं चला. हिना अपनी नई जिंदगी से इतनी संतुष्ट थी कि मायके को लगभग भूल सी गई थी. उस बीच वह केवल एक ही बार मायके गई थी, वह भी कुछ घंटों के लिए. मांबाप और भाईबहन के लाख रोकने पर भी वह नहीं रुकी. उसे नदीम के बिना सबकुछ फीकाफीका सा लगता था.

एक दिन हिना बैठी कोई पत्रिका पढ़ रही थी कि नदीम बाहर से ही खुशी से चहकता हुआ घर में दाखिल हुआ. उस के हाथ में एक मोटा सा लिफाफा था.

‘बड़े खुश नजर आ रहे हैं. कुछ हमें भी बताएं?’ हिना ने पूछा.

‘मुबारक हो जानेमन, तुम्हारे घर में आने से बहारें आ गईं. अब तो हर रोज रोजे ईद हैं, और हर शब है शबबरात.’

पति के मुंह से तारीफ सुन कर हिना का चेहरा शर्म से सुर्ख हो गया. वह झेंप कर बोली, ‘मगर बात क्या हुई?’

‘मैं ने कोई साल भर पहले सऊदी अरब की एक बड़ी फर्म में मैनेजर के पद के लिए आवेदन किया था. मुझे नौकरी तो मिल गई थी, मगर कुछ कारणों से वीजा मिलने में बड़ी परेशानी हो रही थी. मैं तो उम्मीद खो चुका था, लेकिन तुम्हारे आने पर अब यह वीजा भी आ गया है.’

‘वीजा आ गया है?’ हिना की आंखें हैरत से फैल गईं. वह समझ नहीं पाई थी कि उसे खुश होना चाहिए या दुखी.

‘हां, हां, वीजा आया है और अगले ही महीने मुझे सऊदी अरब जाना है. सिर्फ 3 साल की तो बात है.’

‘आप 3 साल के लिए मुझे छोड़ कर चले जाएंगे?’ हिना ने पूछा.

‘हां, जाना तो पड़ेगा ही.’

‘मगर क्यों जाना चाहते हैं आप वहां? यहां भी तो आप की अच्छी नौकरी है. किस चीज की कमी है हमारे पास?’

‘कमी? यहां सारी जिंदगी कमा कर भी तुम्हारे लिए न तो कार खरीद सकता हूं और न ही बंगला. सिर्फ 3 साल की तो बात है, फिर सारी जिंदगी ऐश करना.’

‘नहीं चाहिए मुझे कार. हमारे लिए स्कूटर ही काफी है. मुझे बंगला भी नहीं बनवाना है. मेरे लिए यही मकान बंगला है. बस, तुम मेरे पास रहो. मुझे छोड़ कर मत जाओ, नदीम,’ हिना वियोग की कल्पना ही से छटपटा कर सिसकने लगी.

‘पगली,’ नदीम उसे मनाने लगा. और बड़ी मिन्नतखुशामद के बाद आखिर उस ने हिना को राजी कर ही लिया.

हिना ने रोती आंखों और मुसकराते होंठों से नदीम को अलविदा किया.

अब तक दिन कैसे गुजरते थे, हिना को पता ही नहीं चलता था. मगर अब एकएक पल, एकएक सदी जैसा लगता था. ‘उफ, 3 साल, कैसे कटेंगे सदियों जितने लंबे ये दिन,’ हिना सोचसोच कर बौरा जाती थी.

और फिर ईद आ गई, उस की शादीशुदा जिंदगी की पहली ईद. रिवाज के मुताबिक उसे पहली ईद ससुराल में जा कर मनानी पड़ी. मगर न तो वह पहले जैसी उमंग थी, न ही खुशी. सास के आग्रह पर उस ने लाल रंग की बनारसी साड़ी पहनी जरूर. जेवर भी सारे के सारे पहने. मगर दिल था कि बुझा जा रहा था.

हिना बारबार सोचने लगती थी, ‘जब मैं दुलहन नहीं थी तो लोग मुझे ‘दुलहन’ कह कर छेड़ते थे. मगर आज जब मैं सचमुच दुलहन हूं तो कोई भी छेड़ने वाला मेरे पास नहीं. न तो हंसी- मजाक करने वाले बहनोई और न ही वह, दिल्लगी करने वाला दिलबर, जिस की मैं दुलहन हूं.’

कहते हैं वक्त अच्छा कटे या बुरा, जैसेतैसे कट ही जाता है. हिना का भी 3 साल का दौर गुजर गया. उस की शादी के बाद तीसरी ईद आ गई. उस ईद के बाद ही नदीम को आना था. हिना नदीम से मिलने की कल्पना ही से पुलकित हो उठती थी. नदीम का यह वादा था कि वह उसे ईद वाले दिन जरूर याद करेगा, चाहे और दिन याद करे या न करे. अगर ईद के दिन वह खुद नहीं आएगा तो उस का पैगाम जरूर आएगा. ससुराल वालों ने नदीम के जाने के बाद हिना को पहली बार इतना खुश देखा था. उसे खुश देख कर उन की खुशियां भी दोगुनी हो गईं.

ईद के दिन हिना को नदीम के पैगाम का इंतजार था. इंतजार खत्म हुआ, शाम होतेहोते नदीम का तार आ गया. उस में लिखा था :

‘मैं ने आने की सारी तैयारी कर ली थी. मगर फर्म मेरे अच्छे काम से इतनी खुश है कि उस ने दूसरी बार भी मुझे ही चुना. भला ऐसे सुनहरे मौके कहां मिलते हैं. इसे यों ही गंवाना ठीक नहीं है. उम्मीद है तुम मेरे इस फैसले को खुशीखुशी कबूल करोगी. मेरी फर्म यहां से काम खत्म कर के कनाडा जा रही है. छुट्टियां ले कर कनाडा से भारत आने की कोशिश करूंगा. तुम्हें ईद की बहुतबहुत मुबारकबाद.’       -नदीम.

हिना की आंखों में खुशी के जगमगाते चिराग बुझ गए और दुख की गंगायमुना बहने लगी.

नदीम की चिट्ठियां अकसर आती रहती थीं, जिन में वह हिना को मनाता- फुसलाता और दिलासा देता रहता था. एक चिट्ठी में नदीम ने अपने न आने का कारण बताते हुए लिखा था, ‘बेशक मैं छुट््टियां ले कर फर्म के खर्च पर साल में एक बार तो हवाई जहाज से भारत आ सकता हूं. मगर मैं ऐसा नहीं करूंगा. मैं पूरी वफादारी और निष्ठा से काम करूंगा, ताकि फर्म का विश्वासपात्र बना रहूं और ज्यादा से ज्यादा दौलत कमा सकूं. वह दौलत जिस से तुम वे खुशियां भी खरीद सको जो आज तुम्हारी नहीं हैं.’

नदीम के भेजे धन से हिना के ससुर ने नया बंगला खरीद लिया. कार भी आ गई. वे लोग पुराने घर से निकल कर नए बंगले में आ गए. हर साल घर आधुनिक सुखसुविधाओं और सजावट के सामान से भरता चला गया और हिना का दिल खुशियों और अरमानों से खाली होता गया.

वह कार, बंगले आदि को देखती तो उस का मन नफरत से भर उठता. उसे  वे चीजें अपनी सौतन लगतीं. उन्होंने ही तो उस से उस के महबूब शौहर को अलग कर दिया था.

उस दौरान हिना की बड़ी ननद सलमा की शादी तय हो गई थी. सलमा उस घर में थी तो उसे बड़ा सहारा मिलता था. वह उस के दर्द को समझती थी. उसे सांत्वना देती थी और कभीकभी भाई को जल्दी आने के लिए चिट््ठी लिख देती थी.

हिना जानती थी कि उन चिट्ठियों से कुछ नहीं होने वाला था, मगर फिर भी ‘डूबते को तिनके का सहारा’ जैसी थी सलमा उस के लिए.

सलमा की शादी पर भी नदीम नहीं आ सका था. भाई की याद में रोती- कलपती सलमा हिना भाभी से ढेरों दुआएं लेती हुई अपनी ससुराल रुखसत हो गई थी.

शादी के साल भर बाद ही सलमा की गोद में गोलमटोल नन्ही सी बेटी आ गई. हिना को पहली बार अपनी महरूमी का एहसास सताने लगा था. उसे लगा था कि वह एक अधूरी औरत है.

नदीम को गए छठा साल होने वाला था. अगले दिन ईद थी. अभी हिना ने नदीम के ईद वाले पैगाम का इंतजार शुरू भी नहीं किया था कि डाकिया नदीम का पत्र दे गया. हिना ने धड़कते दिल से उस पत्र को खोला और बेसब्री से पढ़ने लगी. जैसेजैसे वह पत्र पढ़ती गई, उस का चेहरा दुख से स्याह होता चला गया. इस बार हिना का साथ उस के आंसुओं ने भी नहीं दिया. अभी वह पत्र पूरा भी नहीं कर पाई थी कि अपनी सहेली शहला के साथ खरीदारी को गई नगमा लौट आई.

हिना ने झट पत्र तह कर के ब्लाउज में छिपा लिया.

‘‘भाभी, भाभी,’’ नगमा बाहर ही से पुकारती हुई खुशी से चहकती आई, ‘‘भाभी, आप अभी तक यहीं बैठी हैं, मैं बाजार से भी घूम आई. देखिए तो क्या- क्या लाई हूं.’’

नगमा एकएक चीज हिना को बड़े शौक से दिखाने लगी.

शाम को 29वां रोजा खोलने का इंतजाम छत पर किया गया. यह हर साल का नियम था, ताकि लोगों को इफतारी (रोजा खोलने के व्यंजन व पेय) छोड़ कर चांद देखने के लिए छत पर न जाना पड़े.

अभी लोगों ने रोजा खोल कर रस के गिलास होंठों से लगाए ही थे कि पश्चिमी क्षितिज की तरफ देखते हुए नगमा खुशी से चीख पड़ी, ‘‘वह देखिए, ईद का चांद निकल आया.’’

सभी खानापीना भूल कर चांद देखने लगे. ईद का चांद रोजरोज कहां नजर आता है. उसे देखने का मौका तो साल में एक बार ही मिलता है.

हिना ने भी दुखते दिल और भीगी आंखों से देखा. पतला और बारीक सा झिलमिल चांद उसे भी नजर आया. चांद देख कर उस के दिल में हूक सी उठी और उस का मन हुआ कि वह फूटफूट कर रो पड़े मगर वह अपने आंसू छिपाने को दौड़ कर छत से नीचे उतर आई और अपने कमरे में बंद हो गई.

उस ने आंखों से छलक आए आंसुओं को पोंछ लिया, फिर उबल आने वाले आंसुओं को जबरदस्ती पीते हुए ब्लाउज से नदीम का खत निकाल लिया और उसे पढ़ने लगी. उस की निगाहें पूरी इबारत से फिसलती हुई इन पंक्तियों पर अटक गईं :

‘‘हिना, असल में शमा सऊदी अरब में ही मुझ से टकरा गई थी. वह वहां डाक्टर की हैसियत से काम कर रही थी. हमारी मुलाकातें बढ़ती गईं. फिर ऐसा कुछ हुआ कि हम शादी पर मजबूर हो गए.

‘‘शमा के कहने पर ही मैं कनाडा आ गया. शमा और उस के मांबाप कनाडा के नागरिक हैं. अब मुझे भी यहां की नागरिकता मिल गई है और मैं शायद ही कभी भारत आऊं. वहां क्या रखा है धूल, गंदगी और गरीबी के सिवा.

‘‘तुम कहोगी तो मैं यहां से तुम्हें तलाकनामा भिजवा दूंगा. अगर तुम तलाक न लेना चाहो, जैसी तुम्हारे खानदान की रिवायत है तो मैं तुम्हें यहां से काफी दौलत भेजता रहूंगा. तुम मेरी पहली बीवी की हैसियत से उस दौलत से…’’

हिना उस से आगे न पढ़ सकी. वह ठंडी सांस ले कर खिड़की के पास आ गई और पश्चिमी क्षितिज पर ईद के चांद को तलाशने लगी. लेकिन वह तो झलक दिखा कर गायब हो चुका था, ठीक नदीम की तरह…

हिना की आंखों में बहुत देर से रुके आंसू दर्द बन कर उबले तो उबलते ही चले गए. इतने कि उन में हिना का अस्तित्व भी डूबता चला गया और उस का हर अरमान, हर सपना दर्द बन कर रह गया.

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