दिल्ली के मध्यवर्गीय परिवार में जन्मी दीपिका सिंह को घर के आर्थिक हालात के चलते बीच में पढ़ाई छोड़ कर मातापिता की मदद के लिए नौकरी करते हुए पत्राचार से पढ़ाई पूरी करनी पड़ी. उन्होंने एक तरफ एमबीए की पढ़ाई पूरी की, तो दूसरी तरफ इवेंट का काम व थिएटर वगैरह करती रहीं. अंतत: उन्हें 2011 में टीवी सीरियल ‘दिया और बाती हम’ में अभिनय करने का अवसर मिला. पूरे 5 वर्ष तक यह सीरियल प्रसारित होता रहा. इस की शूटिंग के दौरान ही इसी सीरियल के निर्देशक रोहित राज गोयल से 2 मई, 2014 को विवाह रचा लिया.
शादी के बाद भी दीपिका सिंह अपने मातापिता की मदद करने के लिए तैयार रहती हैं. उस के बाद मई, 2017 में वे एक बेटे की मां भी बन गईं. 2018 में उन्होंने एक वैब सीरीज ‘द रीयल सोलमेट’ की. फिर 2019 में सीरियल ‘कवच’ में अभिनय किया और अब वह अपने पति रोहित राज गोयल के ही निर्देशन में एक संदेश देने वाली फिल्म ‘टीटू अंबानी’ में मौसमी का किरदार निभाया है, जिस की सोच यह है कि शादी के बाद भी लड़की को अपने मातापिता की मदद करनी चाहिए. यह फिल्म 8 जुलाई को सिनेमाघरों में पहुंच चुकी है. प्रस्तुत हैं, दीपिका सिंह से हुई बातचीत के अंश:
जब आप अभिनय में कैरियर बनाना चाहती थीं, तो फिर एमबीए करने की क्यों जरूरत महसूस की?
वास्तव में मैं एक इवेंट कंपनी में काम कर रही थी. इसी वजह से एक फैशन शो में हम गए थे, जहां एक लड़की के न आने से मुझे उस का हिस्सा बनना पड़ा और मैं विजेता भी बन गई. उस के बाद कुछ न कुछ काम मिलता गया और मैं करती रही. मैं ने दिल्ली में ही रहते हुए थिएटर भी किया और फिर सीरियल ‘दीया और बाती हम’ में अभिनय करने का अवसर मिला.
तो यह माना जाए कि आप को बिना संघर्ष किए ही सीरियल ‘दीया और बाती हम’ का हिस्सा बनने का अवसर मिल गया था?
इस संसार में बिना संघर्ष किए कुछ नहीं मिलता पर औडिशन देने के बाद 1 माह के अंदर ही मेरा चयन संध्या राठी के किरदार के लिए हो गया. मैं इसे अपनी डैस्टिनी मानती हूं पर पहले मैं ने दिल्ली में इस सीरियल के लिए औडिशन दिया था. फिर मुंबई आ कर 1 माह तक औडिशन व लुक टैस्ट वगैरह होते रहे.
‘दिया और बाती हम’ के समय औडिशन की जो प्रक्रिया थी और अब औडिशन की जैसी प्रक्रिया है उस में कितना अंतर आ गया है?
कोई बदलाव नहीं आया. बाद में मैं ने ‘कवच’ के लिए भी औडिशन दिया था. पहले लोग जानते नहीं थे, अब लोग जानते हैं, इसलिए फर्क आ गया है क्योंकि किरदार के अनुरूप चेहरा होने पर ही चयन होता है.
अब लोग जानते हैं तो जब किरदार के अनुरूप मैं नजर आती हूं, तभी बुलाते हैं. पहले हम लाइन में लग कर हर औडिशन देते थे. अब लोग मेरे चेहरे व मेरी प्रतिभा से वाकिफ हैं, तो उपयुक्त किरदार के लिए ही बुलावा आता है. अब लाइन में लग कर औडिशन देने की जरूरत नहीं पड़ती. तब मुझे लोगों को बताना पड़ता था कि मैं अभिनय कर सकती हूं. पहले भी मेरे अंदर टैलेंट था, मगर तब आत्मविश्वास की कमी थी. अब आत्मविश्वास भी बढ़ चुका है. फिर भी औडिशन हमेशा टफ होते हैं.
औडिशन में रिजैक्शन को किस तरह से लेती रहीं?
मजे से. जिंदगी में स्वीकार्यता कम मिलती है, रिजैक्शन ज्यादा मिलते हैं. इसलिए मैं कभी निराश नहीं होती. मैं हमेशा मान लेती थी कि औडिशन अच्छा नहीं हुआ होगा, इसलिए रिजैक्शन आया.
सीरियल ‘दिया और बाती हम’ व इस के संध्या राठी के किरदार को जबरदस्त सफलता मिली. आप को स्टारडम मिला. पर फिर इसे आप भुना नहीं पाईं? कहां गड़बड़ी हुई?
गड़बड़ी कहीं नहीं हुई. मैं ने बहुत मेहनत की थी, तब जा कर वह स्टारडम मिला. देखिए, डैस्टिनी आप को एक दरवाजे पर ला कर खड़ा कर देती है. उस के बाद आप की कठिन मेहनत, आप का इंटैशन, आप की विलिंग पावर ही काम आती है. इसी आधार पर आप खुद को टिकाए रख पाते हैं. पर मुझे जो स्टारडम मिला, उसे मैं सिर्फ डैस्टिनी नहीं कहूंगी बल्कि मेरी कठिन मेहनत व लगन से मिला.
2016 के बाद कोई बड़ा सीरियल नहीं किया?
जी हां, मैं अपनी निजी जिंदगी में आगे बढ़ रही थी. मैं ने विवाह रचाया. मेरा परिवार बना. पारिवारिक जीवन को ऐंजौय कर रही थी. मेरे परिवार का हर सदस्य बहुत ही ज्यादा सहयोगी है. इसलिए वहां से मुझे मेरे काम पर रुकावट डालने के बजाय हमेशा बढ़ावा ही मिला. पर मैं खुद को अपने दर्शकों के प्रति जिम्मेदार मानती हूं. ‘दीया और बाती हम’ के बाद मुझे बेहतरीन व चुनौतीपूर्ण पटकथा नहीं मिली. जब भी अच्छी पटकथा मिली, मैं ने की.
फिल्म ‘टीटू अंबानी’ में क्या खास बात पसंद आई कि आप ने इसे करना चाहा?
इस की कई वजहें रहीं. इस में कई बड़ेबड़े कलाकार हैं. इस की पटकथा व कहानी जबरदस्त है. इस के संवाद हर किसी को मोह लेने वाले हैं. गीत भी अच्छे हैं. जब मैं ने पटकथा पढ़ी, तो जिस तरह से इस कहानी में एक अच्छा संदेश पिरोया गया है, उस ने मुझे फिल्म को करने के लिए उकसाया. यह फिल्म हंसते व गुदगुदाते हुए अपनी बात कह जाती है. इस में मैं ही एकमात्र टीवी की कलाकार है, बाकी सभी तो फिल्मों से जुड़े कलाकार हैं.
मुझे तो मौसमी का किरदार जीवंत करना था. फिल्म के निर्देशक रोहित को बहुत कुछ पता था. सभी सह कलाकार काफी सपोर्टिब रहे. बीच में कोविड के बढ़ने से हमें शूटिंग में जरूर कुछ तकलीफें हुईं. यह फिल्म महज नारीप्रधान फिल्म नहीं है. इस में एक लड़के यानी टीटू का अपना संघर्ष है. टीटू के भी अपने सपने व महत्त्वाकांक्षाएं हैं तो मौसमी के भी अपने सपने व महत्त्वाकांक्षाएं हैं.
अपने मौसमी के किरदार को ले कर क्या कहेंगी?
मौसमी बहुत ही ज्यादा जिम्मेदार लड़की है. वह अपनी जिम्मेदारियों को गंभीरता से निभाती है. मौसमी अपने मातापिता की इकलौटी बेटी है, तो वह उन के प्रति अपने कर्तव्य व जिम्मेदारी का पूरी तरह से निर्वाह करती है. उस की सोच यह है कि जिस तरह लड़के से उस की शादी के बाद नहीं पूछा जाता कि वह अपने मातापिता की सेवा क्यों कर रहा है, उसी तरह उस से यानी लड़की से भी न पूछा जाए. मौसमी चाहती है कि वह अपने मातापिता की मदद करे और उन के मातापिता को डिग्नीफाइड रूप में देखा जाए. इस में टीटू किस तरह से मौसमी की मदद करता है या नहीं करता है, यह तो फिल्म देखने पर ही पता चलेगा.
समाज काफी बदला है. नारी स्वतंत्रता व नारी उत्थान को ले कर पिछले कुछ वर्षों में बहुत कुछ कहा गया. इस का समाज में क्या असर पड़ा और यह मुद्दा आप की फिल्म ‘टीटू अंबानी’ में किस तरह से है?
समाज में काफी बदलाव हुआ है. अभी भी मेरी राय में मानवीय रिश्तों में भी समानता होनी चाहिए. अब लगभग हर दूसरे परिवार में नारी कामकाजी है. पहले ऐसा नहीं था. पहले औरत की जिम्मेदारी घर में खाना पकाना, बच्चे पैदा करना और उन्हें पालना ही होती थी. जब बच्चे 8-10 साल की उम्र के हो जाएं, तब उन्हें अपने शौक को पूरा करने या काम करने की छूट मिलती थी. लेकिन उस उम्र में कामकाजी महिला के लिए पुन: वापसी करना मुश्किल हो जाता था. अब औरतें बराबरी पर चल रही हैं.
जब आप ने ‘दिया और बाती हम’ से कैरियर शुरू किया था, उस वक्त टीवी के कलाकारों को फिल्मों में काम नहीं मिल पाता था. पर अब ऐसा नही है. ऐसे में आप खुद को कहां पाती हैं?
मुझे प्राइम टाइम 9 बजे के सीरियल में अभिनय करने का मौका मिल गया था. वह भी लीड किरदार मिला था, जिस की मैं ने उम्मीद भी नहीं की थी. मैं तो सोचती थी कि मुझे बहन वगैरह के किरदार मिलेंगे पर लीड किरदार मिला. मैं ने इस सीरियल में अपने बालों में सफेदी पोत कर भी किरदार निभाया. मेरे लिए अभिनय करना अमेजिंग होता है. मैं अभिनेत्री इसीलिए बनी कि एक ही जिंदगी में कई अलगअलग जिंदगियां जीने का अवसर मिलेगा. मुझे अभिनय से प्यार है. जब तक सीरियल का प्रसारण शुरू नहीं हुआ, तब तक तो मुझे यकीन ही नहीं हो रहा था कि मैं लीड किरदार निभा रही हूं. तो मेरा सोचने का नजरिया अलग है.
लेकिन तब से अब तक टीवी व फिल्म इंडस्ट्री में काफी बड़ा बदलाव आ चुका है. इस बदलाव में अहम भूमिका ओटीटी ने निभाई है. आज यह बंदिश नहीं रही कि टीवी कर रहे हैं, तो फिल्म या वैब सीरीज नहीं कर पाएंगे. अब तो दिग्गज सुपर स्टार भी ओटीटी व टीवी पर आ रहे हैं. अब सिर्फ नाम का फर्क रह गया अन्यथा टीवी, ओटीटी व फिल्म सब एक ही हैं. मैं भी फिल्म का हिस्सा बन चुकी हूं. अब कलाकार को टाइप कास्ट नहीं किया जाता. दर्शक के लिए कलाकार सिर्फ कलाकार है.
दीपिका सिंह के कई रूप हैं. आप औरत, मां, पत्नी, बहू और अभिनेत्री हैं. किसे कितना समय देती हैं?
जिस वक्त जिसे जरूरत होती है, उसे उतना समय देने का प्रयास करती हूं. अपनी तरफ से पूरा तालमेल बैठाने का प्रयास करती हूं. सब से ज्यादा समय मैं खुद को देती हूं. मेरी ससुराल में सभी कोऔपरेटिव हैं, इसलिए सबकुछ आसानी से मैनेज हो जाता है.