कर डालिए जिंदगी का मोबाइल रीचार्ज

आज की भागमभाग वाली जिंदगी में इंसान सबकुछ होते हुए भी कभीकभी नितांत अकेलापन महसूस करता है. चिंता, अवसाद व तनाव से घिर कर वह अनेक प्रकार की बीमारियों से जकड़ा जा रहा है. हर समय मोबाइल पर बतियाना या एसएमएस करना दिनचर्या का अभिन्न अंग बनता जा रहा है. ऐसे में यदि मोबाइल के सिमकार्ड की वैलिडिटी खत्म हो जाए तो व्यक्ति खुद को असहाय व सब से कटा हुआ महसूस करता है. सिमकार्ड से कई गुना अधिक जीवन का मोल है, इसलिए जिंदगी की वैलिडिटी की चिंता ज्यादा जरूरी है. जिंदगी की वैलिडिटी बढ़ती रहे, इस के लिए हमें स्वयं ही कुछ प्रयास करने पड़ेंगे. मसलन :

गमों को कहें अलविदा

समाजसुधारक दयानंद का कहना है कि इंसान खुद ही अपनी जिंदगी के सुखदुख का जिम्मेदार होता है तो क्यों न हर समय गमों या दुख के समय को याद करने के बजाय सुख वाले समय को याद करें. इस से मनोबल बढ़ेगा, मन हलका रहेगा. यदि कोई समस्या आए भी तो उस का उचित हल ढूंढ़ें, न कि उस से चिंतित हो कर मन को गमगीन बना लें. यदि मन हमेशा पिछली बातों, दुखों या गमों से घिरा रहेगा तो वह आने वाली खुशियों का स्वागत नहीं कर पाएगा. सो, कंप्यूटर की भाषा में गमों को सदैव डिलीट करते चलें और खुशियों को सेव. यदि अच्छा समय सदैव नहीं रहता तो बुरा समय भी बीत जाएगा.

दोस्ती को डाउनलोड करें

दोस्ती ऐसा अचूक मंत्र है जिस से समस्याएं कभीकभी चुटकी बजाते हल हो जाती हैं. सो, ऐसे दोस्तों की संख्या बढ़ाएं जो सुखदुख में आप के भागीदार बन सकें. दोस्ती से प्यार बढ़ता है तो जीवन में बहार बनी रहती है. प्यार, उत्साह, उमंग तीनों ही प्रवृत्तियां दोस्ती में ही पनपती हैं. शुष्क व नीरस जीवन भारी लगने लगता है. सो, अच्छे व सच्चे मित्रों की संख्या बढ़ाएं, जो सही माने में आप के हितैषी हों.

रिश्तों को रीचार्ज करते रहें

रिश्ता चाहे दोस्ती का हो या पारिवारिक, उस को प्यार से सींचना होता है. यदि रिश्तों में स्वार्थभाव हो तो उन के चरमराने में देर नहीं लगती. इसलिए समयसमय पर अपने रिश्तों को रीचार्ज करते रहें ताकि मन में आई दूरियां व गलतफहमियां दूर होती रहें. रिश्तों में यह उम्मीद कतई न करें कि दूसरा ही पहल करे. स्वयं भी पहल करें. प्यार को सीमित करने से घुटन होने लगती है.

भाषा पर नियंत्रण रखें

बातचीत करते समय शब्दों का प्रयोग सोचसम?ा कर करें. हो सके तो मीठे वचन बोलें. रहीम ने क्या खूब कहा है-

रहिमन मीठे वचन ते

सुख उपजत चहुं ओर

वशीकरण एक मंत्र है

तज दे वचन कठोर.

कहा भी गया है कि तलवार का घाव भर जाता है, शब्दों का नहीं. कड़वी बात भी यदि शालीनता से बोली जाए तो बुरी नहीं लगती. सो, वाणी में सदैव शीतलता व मधुरता बनाए रखें. आप का मन भी खुश रहेगा व सुनने वाले पर भी अच्छा प्रभाव पड़ेगा.

कबीरदास ने कहा भी है-

ऐसी बानी बोलिए मन का आपा खोय,

औरन को शीतल करे आपहुं शीतल होय.

मीठी व मधुर भाषा में बात करने से बिगड़े काम भी कभीकभी आसानी से बन जाते हैं.

मुसकराहट को करें इनबौक्स

हंसनेमुसकराने की क्रिया इंसान के ही पास है तो क्यों न मुसकराने की आदत डालें. यदि आप मुसकराते हैं तो सामने वाला भी प्रत्युत्तर में मुसकराएगा. परंतु रोते हुए या मायूस चेहरे से सभी दूर भागते हैं, कोई उस का साथ नहीं देता. सभी को मुसकराता चेहरा ही अच्छा लगता है तो क्यों न हंसने व दूसरों को हंसाने की आदत अपनाएं.

नफरत व दुश्मनी को करें इरेज

जहां तक हो सके किसी के लिए भी मन में नफरत व दुश्मनी की भावना न पनपने दें. इस भावना से दूसरे का कम, आप का मन ज्यादा दूषित होगा. मन विकारग्रस्त होगा तो नकारात्मकता आएगी, जिस से आप का तन भी प्रभावित होगा. आप की कार्यक्षमता पर भी विपरीत प्रभाव पड़ेगा और फिर नफरत से नफरत को कभी मिटाया नहीं जा सकता. उस को मिटाने के लिए प्यार के शस्त्र की जरूरत पड़ती है. अगर किसी से दोस्ती नहीं रख सकते तो कबीर की राह पर चल कर किसी से दुश्मनी भी न रखें-

कबीरा खड़ा बाजार में मांगे सब की खैर

न काहू से दोस्ती न काहू से बैर.

प्यार की करें इनकमिंग

अपने मन में प्यार की भावना विकसित करें, फिर देखें कैसे आप का तनमन प्रफुल्लित रहता है और फिर, प्यार की भाषा तो हर कोई सम?ाता है.

कबीरदास के शब्दों में-

पोथी पढ़पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय

ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय.

गुस्से या क्रोध को रखें होल्ड

प्लूटार्क ने कहा है, ‘क्रोध सम?ादारी को घर से बाहर निकाल कर अंदर से दरवाजा लौक कर लेता है.’ क्रोध में मनुष्य सोचनेसम?ाने की शक्ति खो देता है. जिस किसी पर क्रोध आए, उस के सामने से हट जाएं, किसी काम में लग जाएं या एक गिलास पानी पिएं. क्रोध को होल्ड करने के लिए जेफरसन ने कहा है, ‘यदि आप क्रोध में हैं तो बोलने से पूर्व 10 तक गिनें. यदि अत्यधिक क्रोधित हैं तो 100 तक गिनें. साथ ही, अपने मन में यह संकल्प दोहराएं कि मु?ो शांत रहना है, क्रोध नहीं करना है. निश्चित तौर से आप को चमत्कारी परिणाम देखने को मिलेंगे.’ सेनेका ने कहा है, ‘क्रोध की सर्वोत्तम औषधि है विलंब.’

महत्त्वाकांक्षी बनें

सुखी व संतुलित जीवन जीने के लिए अपने जीवन में छोटेछोटे लक्ष्य तय करें, फिर इन लक्ष्यों को पूरा करने के लिए महत्त्वाकांक्षी बनें. एक बार जो भी मन में ठान लें, उसे पूरा करने में जीजान से जुट जाएं. फिर चाहे अपना खुद का घर खरीदना हो या कार. जरूरत है प्रबल इच्छा की. यह प्रबल इच्छा ही महत्त्वाकांक्षा बन जाती है. हां, महत्त्वाकांक्षी बनने से पहले समय व परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए अपना आकलन अवश्य कर लें. परिस्थिति एवं योग्यता के विपरीत महत्त्वाकांक्षा रखने वाला मनुष्य हमेशा दुखी रहता है तो कर ही डालिए जल्दी से अपनी जिंदगी का मोबाइल रीचार्ज.

परिवर्तनों को कहें वैलकम

परिवर्तन प्रकृति का नियम है. यदि परिवर्तन न हों तो जिंदगी नीरस हो जाएगी. परिवर्तनों के अनुरूप चलने वाले व्यक्ति जीवन में दुखी नहीं रहते. जो इंसान परिवर्तनों को खुशीखुशी स्वीकार कर लेता है, वह कई प्रकार के सुखों को अपने साथ जोड़ लेता है. परिवर्तन को स्वीकारने वाला व्यक्ति जिंदगी की दौड़ में अपेक्षाकृत अधिक आगे बढ़ता है.

व्हाइट गोल्ड और डायमंड के ये है फायदे

गहनों की अगर बात की जाए, तो हमारा ध्यान सोने, चांदी, हीरे, मोती और अन्य आर्टिफिशियल गहनों की ओर जाता है. उस में भी कुछ शौकीन लोगों का रुझान सोने और हीरों के गहने की ओर ज्यादा होता है. लेकिन सिर्फ सोने की अगर बात करें, तो चमचमाता सुनहरा पीला रंग आंखों के आगे आता है. जबकि मजेदार बात यह है कि सिर्फ सोने के गहनों की ही चाहत रखने वालों को मार्केट में सफेद सोना भी मिलता है.

जी हां, चमचमाते पीले सोने जैसे ही सफेद सोने के गहने भी आप को मार्केट में आसानी से मिल जाएंगे. सफेद सोना चांदी, निकल, पैलेडियम, प्लैटिनम, मैगनीज और रेडियम धातुओं के मिश्रण से बनाया जाता है और इन धातुओं के मिश्रण से पीले सोने का रंग सफेद नजर आने लगता है.

आइए जानते हैं कि सफेद सोने की कौनकौन सी चीजें बाजार में उपलब्ध हैं और हम कैसे उन का इस्तेमाल कर सकते हैं.

– आप सफेद कपड़ों पर सफेद सोने की डिजाइनर, प्लेन या हीरेजडि़त चूडि़यां और अंगूठी, चेन व डिजाइनर पेंडैंट पहन सकती हैं.

– सफेद सोने का नैकलैस, मंगलसूत्र, बिछुए, बाजूबंद और ब्रेसलेट भी आप बनवा सकती हैं.

– सोने के पीले और सफेद रंग के कौंबिनेशन वाले गहने भी मिल जाएंगे.

– आजकल तो व्हाइट गोल्ड प्लेटेड कार भी मार्केट में है.

– कुछ साइकिल निर्माताओं ने तो व्हाइट गोल्ड प्लेटेड और पीले व सफेद गोल्ड के कौंबिनेशन वाली गोल्ड प्लेटेड साइकिल भी बनाई है.

– कुछ शौकीनों ने तो जूते और चप्पलों पर भी व्हाइट गोल्ड का इस्तेमाल किया है.

– आप अगर व्हाइट गोल्ड की शौकीन हैं, तो आप व्हाइट गोल्ड की घड़ी भी इस्तेमाल कर सकती हैं.

– आजकल तो व्हाइट गोल्ड कवर और बौर्डर वाले मोबाइल फोन भी उपलब्ध हैं.

– सफेद सोने के साथ चमचमाते सफेद हीरे भी आप फैशन के रूप में इस्तेमाल कर सकती हैं. यानी गहनों का सोना तो सफेद होगा ही, उस में जड़ा हीरा भी सफेद होगा.

– हीरे के गहनों में अंगूठी, कान के टौप्स, नैकलैस व चूडि़यों आदि की बहुत ज्यादा मांग होती है.

– घडि़यां भी हीरों से डिजाइन की जाती हैं.

– कुछ शौकीन लोग कपड़ों पर भी सफेद सोने के बारीक तार और हीरों की ऐंब्रौयडरी कराते हैं.

– व्हाइट गोल्ड की चेन, नैकलैस और मंगलसूत्र में भी आप हीरेजडि़त पेंडैंट इस्तेमाल कर सकती हैं.

– सफेद सोने की हीरेजडि़त पायल भी आप पहन सकती हैं.

ब्यूटी प्रोडक्ट्स में इस्तेमाल

ये तो हुई बाहरी सुंदरता बढ़ाने वाले गहनों की बात, लेकिन पीले सोने की तरह ही सफेद सोने और हीरे का भी ब्यूटी प्रोडक्ट्स में इस्तेमाल किया जाता है. आइए जानते हैं उन प्रोडक्ट्स में खूबियां कैसी होती हैं:

– सफेद सोना या हीरामिश्रित ब्यूटी प्रोडक्ट्स के इस्तेमाल से त्वचा का रक्तसंचार बढ़ता है, जिस से त्वचा तरोताजा और चमकदार नजर आने लगती है.

– सफेद सोना और हीरामिश्रित क्रीम और मौइश्चराइजर लगाने से त्वचा की गुणवत्ता में सुधार आता है और त्वचा की इम्यूनिटी बढ़ती है.

सफेद सोने का फेशियल यानी व्हाइट गोल्ड

फेशियल और हीरे का फेशियल करने से त्वचा की रोगप्रतिरोधक शक्ति बढ़ती है और त्वचा का बेजान व निस्तेज होना व कालापन दूर होता है. साथ ही रूखी, रफ और खराब त्वचा स्वस्थ होती है.

व्हाइट गोल्ड पैक और डायमंड पैक से मुंहासों और त्वचा के दाग दूर होते हैं, त्वचा में कसाव आता है और त्वचा पर आ गई महीन रेखाएं दूर होती हैं. त्वचा लोचदार और नम नजर आती है. ऐसा त्वचा का रूखापन दूर होने से होता है.

व्हाइट गोल्ड और डायमंड पैक से त्वचा पर स्थित ब्लैकहैड्स और व्हाइटहैड्स दूर होते हैं और त्वचा निखरीनिखरी, चमकदार और तरोताजा नजर आती है.

व्हाइट गोल्ड और डायमंड के ब्यूटी प्रोडक्ट्स ये हैं:

– डायमंड ऐंड व्हाइट गोल्ड पील औफ मास्क.

– बी बी क्रीम.

– नेलपौलिश.

– शैंपू.

– क्रीम, मौइश्चराइजर.

– स्किन स्क्रबर.

– डायमंड ग्लोइंग फेसपैक.

आप इन में से किसी भी ब्यूटी प्रोडक्ट का इस्तेमाल कर अपनी त्वचा की सुंदरता में निखार ला सकती हैं.

डिजाइनिंग का तरीका

– हीराजडि़त पेन में पेन के ऊपरी हिस्से पर हीरे का डिजाइनर टौप होता है.

– मोबाइल फोन के चारों ओर व्हाइट गोल्ड प्लेटेड बौर्डर होता है और उस पर हीरे जड़े होते हैं.

– व्हाइट गोल्ड और हीरे की घडि़यों में घड़ी व्हाइट गोल्ड की बनी होती है, जिस में 1 से 12 तक के अंकों की जगह हीरे जड़े होते हैं.

डायमंड फेशियल

इस के लिए सब से पहले डायमंड रिहाइड्रेटिंग क्लींजर लगा कर कौटन से त्वचा पोंछ लें. इस से त्वचा पर स्थित मृत त्वचा निकल जाती है. फिर उचित मात्रा में डायमंड मसाज जैल ले कर 20 मिनट तक चेहरे की मसाज करें. फिर डायमंड ग्लोइंग मास्क की मोटी परत चेहरे पर लगाएं और 10-15 मिनट सूखने दें. फिर साफ पानी से चेहरा धो दें. उस के बाद उचित मात्रा में बौडी केयर 24 कैरेट डायमंड स्किन सीरम त्वचा पर लगाएं और कुछ मिनट बाद चेहरा पोंछ दें.

आप यह उपाय घर में कर सकती हैं, लेकिन इस में लगने वाले प्रोडक्ट्स को देखते हुए इस के लिए सौंदर्य विशेषज्ञ के पास जाना ही ज्यादा फायदेमंद साबित होगा.

वुडन फ्लोरिंग : हर कदम का हमकदम

फ्लोरिंग आप के घर को ओवरआल लुक देती है. इन दिनों वुडन फ्लोरिंग ज्यादा चलन में है. यह डिफरैंट पैटर्न में मार्केट में उपलब्ध है. यदि आप अपने घर को अलग लुक देना चाहती हैं, तो वुडन फ्लोरिंग करवाएं.

कर्वड डिजाइन

इस पैटर्न में लकड़ी पर डिजाइनर नक्काशी होती है, जो बेहद खूबसूरत कला है. यह फ्लोरिंग लंबे समय तक आप के घर की शोभा बढ़ाएगी. इस लकड़ी का रंग सूरज की रोशनी में और भी रोशन हो जाता है.

परक्युट पैटर्न

फ्लोरिंग का यह पैटर्न आप के रूम को एक नया और वार्म लुक देगा. बौक्स डिजाइंड यह पैटर्न चैस बोर्ड की तरह लाइट और ब्राइट कलर कौंबिनेशन में होता है.

हीरिंगबोन पैटर्न

यह पैटर्न जिगजैग डिजाइन में मिलेगा. यह घर को एक रैंडम लुक देता है. लकड़ी का क्रीमिश कलर दीवारों के कलर पर भी खूब फबता है.

पेरिमीटर बौर्डर पैटर्न

यह पैटर्न आप के फ्लोर के बौर्डर को आउटलाइन करता है. इस से कमरे को फौर्मल लुक मिलता है. अगर बिना डिजाइन की फ्लोरिंग चाहती हैं, तो इस वुडन पैटर्न का इस्तेमाल कर सकती हैं.

लगाने में आसान

आजकल वुडन फ्लोरिंग ट्रैंड में है. ज्यादातर लोग इसे पसंद कर रहे हैं. अहम बात यह है कि वुडन फ्लोरिंग अपनी इंसुलेटिंग क्षमता के कारण लंबे समय तक खराब नहीं होती. इस की सब से खास बात यह है कि इसे मात्र 3-4 घंटों में ही लगाया जा सकता है, क्योंकि तख्तों को एकदूसरे के साथ एक विशेष बौंडिंग के साथ जोड़ते हुए इंटरलौक किया जाता है. इसे लगाना आसान है. इसे लगाने या लौक करने के लिए ‘टंग ऐंड गू्रव’ तकनीक या किसी चिपकाने वाले पदार्थ अथवा कीलों का प्रयोग करते हैं.

जब बजट हो कम

अगर आप को लगता है कि रियल वुडन फ्लोरिंग आप के बजट में फिट नहीं बैठती, तो इस बात को ले कर अफसोस करने की जरूरत नहीं है कि आप अपने घर को खूबसूरत लुक नहीं दे पाएंगी. आधुनिक तकनीक की वजह से आज बाजार में ऐसी फ्लोरिंग उपलब्ध हैं, जो वुडन न होने के बावजूद उस जैसी लगती हैं. इसे लगा कर आप कम खर्च में हार्डवुड जैसा ऐलिगैंट लुक डैकोर में ला पाएंगी.

बेहतर विकल्प

विनायल प्लैंक फ्लोरिंग, पौली विनायल क्लोराइड (पीवीसी) से बनी होती है, जो बहुत उच्च क्वालिटी का प्लास्टिक होता है, जिस के पीछे चिपकाने वाला पदार्थ लगा कर फ्लोर पर चिपका दिया जाता है. देखने में बिलकुल हार्डवुड जैसी लगने के साथसाथ यह वाटरपू्रफ भी होती है और इस पर दीमक भी नहीं लगती. जो लोग केवल लिविंग या बैडरूम में ही नहीं, बल्कि अपने बाथरूम को भी वुडन टच देना चाहते हैं, उन के लिए यह बेहतर विकल्प है.

देखभाल

फर्श पर जमी धूलमिट्टी को साफ और सूखे कपड़े से ही पोंछें. हर 5-6 साल के अंतराल पर फर्श को पौलिश कराएं. अगर कमरे के फर्श पर धूप आती है, तो वहां परदे का इस्तेमाल करें, क्योंकि धूप से लकड़ी का रंग फीका पड़ सकता है. फर्श पर पानी इकट्ठा न रहने दें, क्योंकि इस से लकड़ी खराब हो सकती है.

क्या करें

– सभी फर्नीचर जो उस कमरे में हों उन के नुकीले सिरों के नीचे कौटनबौल या फर्नीचर पैड लगा दें.

– दरवाजे पर डोरमेट का उपयोग करें व इन की नियमित सफाई जरूरी है.

– वैक्यूम क्लीनर का उपयोग सौफ्ट ब्रश के साथ करें.

– अगर घर पर पेट्स हों, तो यह ध्यान रखें कि वे नाखूनों से फ्लोरिंग को न खुरचें.

– सही गुणवत्ता वाले फ्लोरिंग क्लीनर का उपयोग करें.

– फ्लोर की सफाई के लिए हमेशा अच्छे पैड का उपयोग करें.

क्या न करें

– भारी व ऊंची हील की सैंडिल, जूतों का उपयोग कम से कम करें.

– अमोनिया या अन्य किसी ऐसिड के प्रयोग से बचें.

– पानी का उपयोग फ्लोरिंग को धोने में न करें.

– भारी फर्नीचर को फ्लोरिंग पर घसीटें नहीं.

शिशु की मालिश कैसे करें

बच्चे के शरीर की मसाज यानी मालिश उस के लिए बेहद फायदेमंद होती है. मसाज जहां एक ओर बच्चे के विकास में मदद करती है, वहीं दूसरी ओर मां और बच्चे को भावनात्मक रूप से भी जोड़ती है.

अध्ययनों से पता चला है कि मसाज करने से बच्चा सहज हो जाता है, उस का रोना कम हो जाता है और वह चैन की नींद सोता है. इतना ही नहीं कब्ज और पेट दर्द की शिकायत भी मसाज से दूर हो जाती है. इस से बच्चे में बीमारियों से लड़ने की क्षमता भी पैदा होती है.

कब शुरू करें बेबी मसाज

1 महीने की उम्र से बच्चे की मालिश शुरू की जा सकती है. इस समय तक अंबिलिकल कौर्ड गिर जाती है, नाभि सूख चुकी होती है. जन्म की तुलना में त्वचा भी कुछ संवेदनशील हो जाती है. त्वचा में कसावट आने लगती है. इस उम्र में बच्चा स्पर्श के लिए बेहतर प्रतिक्रिया देता है.

बौडी मसाज के फायदे

मसाज के कई प्राकृतिक फायदे हैं:

– बच्चे का मानसिक और शारीरिक विकास होता है.

– बच्चे की पेशियों को आराम मिलता है.

– बच्चा अच्छी और गहरी नींद सोता है.

– उस का नर्वस सिस्टम विकसित होता है.

– अगर बच्चा कमजोर है तो उस के जीवन की गुणवत्ता में सुधार होता है.

– सर्कुलेटरी सिस्टम का बेहतर विकास होता है.

कैसे करें मसाज

मसाज करते समय ध्यान रखें कि कमरे में गरमाहट हो, बच्चा शांत हो और आप भी रिलैक्स रहें. ऐसा मसाज औयल चुनें जो खासतौर पर बच्चों की मसाज के लिए बनाया गया हो.  बिना खुशबू वाले प्राकृतिक तेल का इस्तेमाल बेहतर होगा. जब बच्चा सो कर उठे या फिर नहाने के बाद उस की मसाज की जाए तो बेहतर होगा. 10 से 30 मिनट तक उस की मसाज कर सकती हैं.

सिर्फ मसाज करना ही काफी नहीं होता, बच्चे को मसाज तभी अच्छी लगेगी, जब इस का तरीका सही हो. जानिए, मसाज के तरीके को:

पहला चरण

अनुमति लेना: अनुमति लेने का अर्थ है कि आप को बच्चे की मसाज तब नहीं करनी चाहिए जब वह न चाहे. जब उसे मसाज करवाना अच्छा लगे, तभी उस की मालिश करें. हथेली में थोड़ा तेल ले कर इसे बच्चे के पेट पर और कानों के पीछे रगड़ें. इस के बाद बच्चे का व्यवहार देखें. अगर वह रोता है या परेशान होता है, तो समझ जाएं कि यह मसाज करने का सही समय नहीं है. यदि आप महसूस कर रही हैं कि उसे मसाज अच्छी लग रही है, तो आप मसाज कर सकती ं हैं. शुरुआत में बच्चा मसाज से असहज महसूस करता है, लेकिन धीरेधीरे उसे मसाज में मजा आने लगता है.

दूसरा चरण

टांगों की मालिश करें: मसाज की शुरुआत बच्चे की टांगों से करें. हथेली पर तेल की कुछ बूंदें ले कर बच्चे के तलवों से शुरुआत करें. अपने अंगूठे की मदद से उस की एड़ी से उंगलियों की तरफ बढ़ें. धीरेधीरे अंगूठे को गोलगोल घुमाते हुए दोनों तलवों पर मसाज करें. पैरों की उंगलियों को न खींचें जैसे वयस्कों की मसाज में आमतौर पर किया जाता है. इस के बजाय हलके हाथों से मसाज करें.

अब एक टांग को उठाएं और हलके हाथ से टखने से कूल्हे की ओर मालिश करें. अगर बच्चा रिलैक्स और शांत है तो दोनों टांगों की मसाज एकसाथ करें. इस के बाद दोनों हाथों से कूल्हों को हलकेहलके दबाएं जैसे आप टौवेल निचोड़ती हैं.

तीसरा चरण

हाथों और बाजुओं की मालिश: टांगों के बाद बाजुओं की मालिश उसी तरह करनी चाहिए जैसे आप ने टांगों की मसाज की. बच्चे के हाथ पकड़ें और हथेलियों पर गोलगोल घुमाते हुए मसाज करें. उंगलियों की भी भीतर से बाहर की ओर मसाज करें. इस के बाद कलाइयों को ऐसे रगड़ें जैसे चूडि़यां पहनाई जाती हैं.

इस के बाद हलके हाथ से बाजुओं के निचले हिस्से और फिर ऊपरी हिस्से पर मालिश करें. पूरी बाजू की मसाज उसी तरह करें जैसे आप टौवेल निचोड़ती हैं.

चौथा चरण

छाती और कंधों की मसाज: बाएं और दाएं कंधे से छाती की ओर हाथ चलाते हुए मालिश करें. आप हाथों को पीछे से कंधे की ओर भी ले जा सकती हैं. इस के बाद दोनों हाथों को छाती के बीच में रखें और बाहर की तरफ मसाज करें.

अब स्टर्नम के निचले हिस्से, छाती की हड्डी से बाहर की ओर मसाज करें. इस दौरान आप के स्ट्रोक ऐसे हों जैसे आप हार्ट की शेप बना रही हैं.

5वां चरण

पेट की मालिश: छाती के बाद पेट की मालिश करनी चाहिए. ध्यान रखें कि बच्चे के शरीर का यह हिस्सा बहुत नाजुक होता है, इसलिए आप को दबाव बहुत कम रखना चाहिए. पेट के ऊपरी हिस्से से शुरुआत करें. अपनी हथेली को छाती की हड्डी के नीचे रखें और

पेट पर नाभि के चारों ओर गोलगोल घुमाते हुए मसाज करें. इस दौरान हाथों का दबाव बहुत हलका होना चाहिए.

घड़ी की सुई की दिशा में हाथों को गोलगोल घुमाएं (नाभि के चारों ओर) छोटे बच्चों की नाभि बहुत संवेदनशील होती है, क्योंकि हाल ही में उन की अंबिलिकल कौर्ड गिरी होती है, इसलिए इस हिस्से पर मालिश करते समय बहुत सावधानी बरतनी चाहिए.

छठा चरण

चेहरे और सिर की मालिश: छोटे बच्चों के चेहरे और सिर की मालिश करना बहुत मुश्किल होता है, क्योंकि बच्चे बहुत ज्यादा हिलते हैं. अपनी उंगली को बच्चे के माथे के बीच में रखें और बाहर की ओर मालिश करें. इसी तरह ठुड्डी से ऊपर तथा बाहर की ओर उंगलियों को गोलगोल घुमाते हुए मालिश करें. इन स्ट्रोक्स को कई बार दोहराएं.

चेहरे के बाद सिर की मालिश ठीक उसी तरह करें जैसे शैंपू करते समय उंगलियों को घुमाती हैं. उंगलियों के छोरों से हलका दबाव डालें. बच्चे की खोपड़ी बहुत नाजुक होती है, इसलिए दबाव बहुत ज्यादा न हो.

7वां चरण

पीठ की मालिश: सब से अंत में पीठ की मालिश करें. बच्चे को पेट के बल लिटा दें. इस दौरान उस के हाथ आप की तरफ हों.

पीठ के ऊपरी हिस्से पर उंगलियां रखें और घड़ी की सुई की दिशा में हलके हाथों से घुमाते हुए नितंबों तक आएं. यह प्रक्रिया कम से कम 8 से 10 बार दोहराएं.

अपनी पहली 2 उंगलियों को रीढ़ की तरफ रख कर नितंबों तक आएं. इन स्ट्रोक्स को कई बार दोहराएं. उंगलियों को रीढ़ की हड्डी पर न रखें. इस के बजाय साइड में रख कर नीचे की तरफ मसाज करें.

कंधे की मसाज करने के लिए हाथों को कंधों पर गोलगोल घुमाएं. हलके हाथों से पीठ के निचले हिस्से और नितंबों की मालिश भी करें. इसी स्ट्रोक के साथ मसाज खत्म करें.

मसाज के बाद टिशू पेपर से बच्चे के शरीर से अतिरिक्त तेल पोंछ लें. मसाज के लिए एक समय रखें. इस से बच्चे की दिनचर्या बन जाएगी और वह मालिश के दौरान ज्यादा सहज रहेगा.

– डा. आशु साहनी, जेपी हौस्पिटल, नोएडा  

Winter Special: बुनाई करते समय ध्यान रखें ये 7 टिप्स

मौसम की फिज़ा में अब ठंडक घुलने लगी है  कुछ समय पूर्व तक इस मौसम में महिलाओं के हाथ में ऊन और सलाइयां ही दिखतीं थीं. आजकल भले ही हाथ से बने स्वेटरों की अपेक्षा रेडीमेड स्वेटर का चलन अधिक है परन्तु स्वेटर बुनने की शौकीन महिलाओं के हाथ आज भी खुद को बुनाई करने से रोक नहीं पाते. रेडीमेड की अपेक्षा हाथ से बने स्वेटर अधिक गर्म और सुंदर होते हैं साथ ही इनमें जो अपनत्व और प्यार का भाव होता है वह रेडीमेड स्वेटर में कदापि नहीं मिलता परन्तु कई बार स्वेटर बनाने के बाद ढीला पड़ जाता है अथवा फिट नहीं हो पाता या फिर धुलने के बाद रोएं छोड़ देता है. इन्हीं छोटी छोटी समस्याओं से मुक्ति के लिए आज हम आपको स्वेटर बनाने के लिए कुछ टिप्स बता रहे हैं-

1. ऊन

लोकल या सस्ती ऊन की अपेक्षा स्वेटर बनाने के लिए सदैव वर्धमान या ओसवाल कम्पनी की 3 प्लाई की उत्तम क्वालिटी की ऊन ही  खरीदें. यदि आप छोटे बच्चों के लिए स्वेटर बना रही हैं तो सामान्य की अपेक्षा छोटे बच्चों के लिए विशेष रूप से बनाई जाने वाली बिना रोएं की बेबी वूल का ही प्रयोग करें.

2. सलाई

ऊन के साथ साथ सलाई भी अच्छी क्वालिटी की होना अत्यंत आवश्यक है. सस्ती सलाई अक्सर ऊन पर अपना रंग छोड़ देती है जिससे कई बार स्वेटर का वास्तविक रंग ही खराब हो जाता है. मोटी ऊन के लिए 5-6 नम्बर की मोटी और पतली ऊन के लिए 10-12 नम्बर की पतली सलाई लेना उपयुक्त रहता है

3. फंदे

मोटी प्लाई की ऊन में कम फंदे और पतली ऊन में अधिक फंदे डालें. फंदे दोहरी ऊन से टाइट करके डालें, फंदे ढीले रहने पर स्वेटर बॉर्डर से ढीला हो जाने की संभावना रहती है.

4. बॉर्डर

आम तौर पर एक उल्टा और एक सीधे फंदे से बॉर्डर बनाया जाता है. यदि आप स्वेटर 10 न की सलाई से बना रहीं हैं तो बॉर्डर 2 न अधिक अर्थात 12 न की सलाई से बनाएं इससे स्वेटर की नीचे और बाहों से फिटिंग सही रहती है.

5. बुनाई

आप स्वेटर में जो भी डिजाइन डालना चाहतीं हैं उसे पहले एक नमूने में डालकर देख लें ताकि स्वेटर बनाते समय आपको कोई कन्फ्यूजन न रहे. छोटे बच्चों के स्वेटर में बहुत बड़ी और दो रंगों की डिजाइन की अपेक्षा सेल्फ  में ही डिजाइन डालें क्योंकि 2-3 रंग की डिजाइन में स्वेटर के उल्टी तरफ  ऊन निकली रहती है जो बच्चों के हाथ में उलझ जाती है. हर हाथ की बुनाई में फर्क होता है इसलिए स्वेटर को एक ही हाथ से बुनना चाहिए. हल्के रंग के स्वेटर को बुनते समय बॉल्स को एक पॉलीथिन में डालकर रखें इससे स्वेटर गन्दा नहीं होगा.

6. गला

आमतौर पर स्वेटरों में वी, गोल, चौकोर और कॉलर वाले गले बनाये जाते हैं. गोल गले को बाजार में गोल गले के लिए विशेष रूप से बनाई जाने वाली  चार सलाइयों से ही बनाएं और बंद करते समय फंदों को सुई की मदद से बंद करें. छोटे बच्चों के लिए किसी विशेष गले का स्वेटर बनाने के स्थान पर सामने से खुला स्वेटर बनाएं जिससे उन्हें पहनाने में आसानी रहे.

7. सिलाई

पूरा स्वेटर बन जाने के बाद स्वेटर की सिलाई की जाती है. सिलाई स्वेटर के रंग की ऊन से ही करें. यदि ऊन बिल्कुल ही समाप्त हो गयी है तो आप सेम रंग के धागे का भी प्रयोग कर सकतीं हैं.  सिलाई करते समय सभी गांठो को सुई की मदद से स्वेटर के पीछे की तरफ कर दें साथ ही ऊन के लंबे धागों को भी आसानी से काट दे.

Festive Special: फैस्टिवल के रंग वुडन क्राफ्ट के संग

अवंतिका की समझ में नहीं आ रहा था कि इस बार फैस्टिव सीजन में फ्रैंड्स के बीच आइकोनिक होस्टर कैसे बने? इस के लिए उसे अनूठे उपहार भी चुनने थे ताकि फ्रैंड्स सर्कल में उस का इंप्रैशन बना रहे. उस ने कई सारे गिफ्ट कौर्नर्स, इंपोरियम, आर्ट ऐंड क्राफ्ट सैंटर्स के चक्कर काटे पर कुछ ढंग का नहीं सूझा.

एक दिन इस संबंध में बात करने पर अवंतिका की फ्रैंड आयशा ने सुझाया, ‘‘इस बार वुडन आइटम्स ट्राई क्यों नहीं करती? लुक में भी मस्त और ट्रैंड में भी फर्स्ट और फिर देने वाले पर इंप्रैशन बने वह अलग से.’’

अवंतिका को आयशा का यह आइडिया एकदम परफैक्ट लगा. अत: उस ने फटाफट पास के ही वुडन क्राफ्ट इंपोरियम में जा कर फैस्टिव सीजन के लिए खूब सारी खरीदारी की. अब वह संतुष्ट भी थी और खुश भी.

इस बार आप भी पीछे न रहें. वुडन आर्ट ऐंड क्राफ्ट शोपीस का चलन आजकल तेजी से बढ़ रहा है. ये न केवल लुक में यूनीक हैं, बल्कि बजट में भी आसानी से आ जाते हैं. हर बार वही कांच, क्रिस्टल या मैटल के उपहार देने के बजाय इस बार कुछ डिफरैंट ट्राई करें. यकीनन आप के दोस्तों को आप का यह गिफ्ट हैंपर भाएगा. बाजार में वुडन क्राफ्ट की ढेरों वैराइटी मौजूद है, जिस में आप को अपनी चौइश का बहुत कुछ मिल जाएगा. महंगे व उबाऊ गिफ्ट्स को आज वुडन क्राफ्ट बखूबी रिप्लेस कर रहा है.

क्या चुनें?

वुडन आर्ट शोपीसों की एक वाइड रेंज बाजार में मौजद है, लेकिन कहीं से भी न खरीदें. किसी विश्वसनीय इंपोरियम से ही खरीदें. गूगल पर सर्च कर ऐसे किसी इंपोरियम या आर्ट गैलरी का पता कर सकती हैं.

अगर किसी फीमेल फ्रैंड को गिफ्ट करना है, तो आजकल वुडन ज्वैलरी बौक्स, रिंग कैबिनेट, वुडन वैनिटी बौक्स, बैंगल्स बौक्स आदि काफी चलन में हैं. अपनी फ्रैंड की चौइस व जरूरत के हिसाब से इन में से कुछ भी चुन सकती हैं.

अगर बात मेल फ्रैंड को गिफ्ट करने की हो तो वुडन पैन स्डैंड, वुडन पियानो, वुडन टी कोस्टर, वुडन टेबल वाच, वुडन कैलेंडर, कार्ड होल्डर, वुडन क्लौक आदि चुन सकती हैं. ये अलग-अलग शेप्स व डिजाइनों में मार्केट में उपलब्ध हैं. इन में

प्लेन मीनाकारी व कट वर्क के औप्शन भी मौजूद हैं.

इन बातों का रखें ध्यान

– वुडन शोपीसों की अपर पौलिश जरूर चैक करें. ओल्ड व रिजैक्टेड पीसों की पौलिश उड़ चुकी होती है. कई बार शौपर इन की रीपैकिंग कर देते हैं. शोपीस लेते वक्त आउटर लेयर पौलिशिंग जरूर चैक कर लें.

– रफ वुडन सरफेश, क्रैक्स व कट की समस्या आम है, इसलिए आइटम लेते वक्त क्रैक्स व टियरनैस की भीतरबाहर से अच्छी तरह जांच कर लें.

– स्मौल साइज वाले ज्यादातर शोपीसों को गोंद या फैविकौल से चिपका कर आकार दिया जाता है. पुराना हो जाने के कारण कई बार जोड़ खिसकने लगते हैं और उन के बीच गैप आ जाता है. ऐसे में इन गैपों की जांच जरूर कर लें. कोशिश करें कि स्क्रू, पेच से जोड़ी गई आइटम्स ही लें. वे टिकाऊ होती हैं.

– सस्ते दाम पर आकर्षित न हों, अगर क्वालिटी अच्छी है तो प्राइस से समझौता न करें.

जानें सिल्क से जुड़ी ये खास बातें

सिल्क एक ऐसा सदाबहार फैब्रिक है, जो न सिर्फ महिलाओं की पहली पसंद है बल्कि पुरुषों में भी इस का आकर्षण कम नहीं है. सिल्क जैसी गरिमा, लावण्य और खूबसूरती किसी और कपड़े में नहीं है. प्राकृतिक एवं पर्यावरण मित्र होने के कारण यह अन्य कृत्रिम कपड़ों से बेहतर है.

एक समय था जब सिल्क केवल रईसों की ही पहुंच में था, पर 1990 के शुरुआती दौर में सैंडवाश्ड सिल्क के आगमन ने इसे मध्यवर्गीय लोगों तक पहुंचा दिया. सिल्क के क्षेत्र में कई प्रयोग भी किए गए और इसे कौटन, लिनेन, ऊन और यहां तक कि पोलिस्टर के साथ भी मिक्स किया गया. इस प्रकार बने कृत्रिम फैब्रिक्स को लोकप्रियता भी मिली.

क्या है सिल्क

सिल्क यानी रेशम रेशमकीट द्वारा निर्मित कोसों के तंतुओं से तैयार होता है. प्राकृतिक चमकदमक, रंगाई के लिए अनुकूल, हलका, जाड़े में गरमी तथा ग्रीष्म में ठंडक पहुंचाना, उत्कृष्ट वस्त्र विन्यास आदि इस के कुछ विशेष गुण हैं.

रेशमकीटों से रेशम प्राप्त करना एक बेहद लंबी व जटिल प्रक्रिया है. रेशम कीट एक विशेष किस्म के कागज पर अंडे देते हैं. उन अंडों में से निकलने वाले कीड़ों को ताजा शहतूत की पत्तियां खिला कर पाला जाता है. लगभग 35 दिनों बाद ये कीड़े अपने चारों तरफ एक खोल बनाना शुरू करते हैं. जब खोल पूरी तरह बन जाता है तो कीड़ा इसी में बंद हो जाता है. फिर इन कीड़ों को मार कर ऊपरी खोल से रेशम प्राप्त किया जाता है.

1 किलो ग्राम सिल्क बनाने के लिए 3,000 रेशमकीटों द्वारा लगभग 104 किलोग्राम शहतूत की पत्तियां खाना आवश्यक है.

रेशम की किस्में

हर रेशम शहतूत भोजी रेशमकीटों से उत्पन्न नहीं होता. गैर शहतूती रेशम की भी व्यापक श्रेणी है. कुछ प्रमुख किस्म के रेशम हैं शहतूत, तसर, एरी तथा मूंगा. शहतूत रेशम हलका तथा बेहद मुलायम होता है तथा बाजार में उपलब्ध रेशम के अधिकांश उत्पाद इसी से तैयार किए जाते हैं, वहीं तसर, एरी तथा मूंगा वन्य रेशम की श्रेणी में आते हैं.

फैशनेबल बनाए सिल्क

भारत के लगभग हर प्रदेश में सिल्क पर बुनाई करने वाले कारीगर उपलब्ध हैं. कांचीवरम, वाराणसी, मैसूर धर्मावरम आदि भारत के पारंपरिक रेशम बुनाई केंद्र हैं तथा इन स्थानों पर बनने वाली साडि़यां अपनी उत्कृष्ट कारीगरी के लिए विख्यात हैं. पुरुषों में भी सिल्क की शर्ट, टाई व स्कार्फ का खासा क्रेज है. एक सिंपल से सूट के साथ पहनी गई सिल्क की टाई व शर्ट व्यक्तित्व में चार चांद लगा देती है.

आजकल घर की साजसज्जा में भी सिल्क का बेहद फैशन है. सिल्क के परदे, कुशन कवर, बेडे कवर, बेड शीट्स, टौप कवर, टेबल क्लाथ विभिन्न डिजाइनों व कीमतों में उपलब्ध हैं.

सिल्क की देखभाल

सिल्क की धुलाई के लिए कठोर जल व डिटरजेंट  का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. इसे ड्राईक्लीन कराना ही सब से अच्छा विकल्प है, पर रा सिल्क, चाइना सिल्क, इंडिया सिल्क, पोंगी, शांतुंग, तसर आदि को घर पर ही धोया जा सकता है. धुलाई के बाद कपड़े को एक टौवल में लपेट दें ताकि इस में से अतिरिक्त नमी निकल जाए. सिल्क को हमेशा छाया में ही सुखाएं. अंतिम धुलाई के लिए ठंडे पानी में सिट्रिक या एसिटिक अम्ल की कुछ बूंदें मिलाएं. प्रेस करते समय प्रेस का तापमान सिल्क पर सेट कर लें तथा प्रेस करने से पहले इस पर पानी न छिड़कें, वरना कपड़ों पर पानी के धब्बे आ जाएंगे. यदि कपड़ा गीला है तो उसे उलटा कर के प्रेस करें.

स्टोरेज

सिल्क के वस्त्रों को कौटन के कपड़े में लपेट कर रखें तो ये ज्यादा समय तक टिकेंगे. इन्हें कभी भी प्लास्टिक की थैली या बक्से में न रखें. इस से ये पीले पड़ जाएंगे या फिर इन में कीड़े लग जाएंगे. थोड़ेथोड़े समय बाद इन की तह खोल कर उलटीपलटती रहें. सिल्क वस्त्रों के बीच में सिलिका की पुडि़या रखें और लकड़ी से सीधे संपर्क में भी न रखें. यदि आप ने काफी समय तक सिल्क के वस्त्र नहीं पहने हैं तो उन्हें हवा में फैला दें और हलके हाथों से ब्रश मार दें.सिल्क चूंकि अन्य वस्त्रों के मुकाबले महंगा होता है. अत: इसे हमेशा किसी अच्छी व विश्वसनीय दुकान से ही खरीदें. इस की शुद्धता हेतु सिल्क मार्क का ध्यान रखें.

हर रंग कुछ कहता है

रंगों ने हमारी सोच, भावनाओं और बौद्धिकता को विकसित करने में अहम भूमिका निभाई है. अत्यधिक आकर्षक, आसानी से नजर आने वाले और विविधता भरे रंगों में कुछ खास प्रकार की ऊर्जा उत्सर्जित करने की ताकत होती है. ये रंग हमारे दिलोदिमाग को प्रभावित कर सकते हैं. यदि इन्हें सही अनुपात में शामिल किया जाए, तो कुछ खास तरह के रंग और उन के मिश्रित रूप काफी जीवंतता ला सकते हैं.

सजावट की अलगअलग चीजों जैसे पेंटिंग, लैंप, फूलदान, वालपेपर, फूल, पौधे, लाइट, कलाकृतियां, मूर्तियां, फर्नीचर आदि को शामिल कर के विभिन्न रंगों को शामिल किया जा सकता है. इस के साथ ही घर की खूबसूरती को बढ़ाने वाले सजावटी सामान, मोमबत्तियों से ले कर सौफ्ट फर्निशिंग जैसे परदे, ड्रैप, साजोसामान, कुशन, ट्यूब पिलो, बैड और बाथरूम लिनेन, डाइनिंग टेबल सैट, मैट और रनर से भी रंगों को जोड़ा जा सकता है. साथ ही किचन वेयर जैसे सर्व वेयर, क्रौकरी, बेक वेयर, मग, ट्रे आदि भी रंगों को शामिल करने का अच्छा तरीका हो सकते हैं. पूरी दुनिया कला के बेहतरीन नमूनों से भरी है, जिन्हें घर में सजा कर उसे बहुआयामी, सुंदर और आकर्षक बनाया जा सकता है.

ट्रैंडी शेड्स, पैटर्न और प्रिंट में उपलब्ध ये इंटीरियर फैब्रिक वेयर घर की सजावट में बहुत बड़ा बदलाव ला सकते हैं और वह भी किफायती दाम में और बिना ज्यादा देखभाल के.

कला के रंग थोड़े पेचीदा होते हैं, इसलिए सही चीज का और सही मात्रा में चुनाव करें. ऐक्सपर्ट की राय भी ली जा सकती है. रंग को समझना कि उस के लिए क्या सही और क्या गलत है, उस की ऊर्जा और उस का प्रभाव क्या है, ये सारी चीजें एक नया बालगेम हैं. ये रंग आप के व्यक्तित्व को समझने में मदद करेंगे.

लाल

यह गतिशीलता, उत्साह और दृढ़संकल्प का रंग है. यह रंग बहुत ही तेज है और आधुनिक संदर्भों में इस का अर्थ शक्तिशाली और प्रभावी हो गया है. यह रंग तानाशाही, तुरंत क्रोधित हो जाने वाले और निडर होने का प्रतीक है. लाल रंग जितना सुंदर होता है इसे पसंद करने वाले भी उतने ही उत्साही, आत्मविश्वासी और मुखर होते हैं.

नीला

यह रंग विश्वास, ईमानदारी, निष्ठा, सुव्यवस्था, शांति और धैर्य का प्रतीक है. जिन लोगों को नीला रंग पसंद आता है, वे दयालु, आशावादी, अनुमानित, अकेले और माफ न करने वाले होते हैं.

हरा

जिन लोगों को हरा रंग पसंद आता है उन में दिल और दिमाग का सही संतुलन होता है. वे प्रकृति प्रेमी, संवेदनशील, अनुकरणीय, व्यवहारकुशल, परिवार के लिए समर्पित होते हैं.

पीला

पीला भी सकारात्मकता और नकारात्मकता का मिश्रित रंग होता है. यह रंग आशावादी, उत्साह, बुद्धिमत्ता और तार्किकता को दर्शाता है. साथ ही यह व्यक्ति को विश्लेषी, डरपोक और अहंकारी बनाता है.

सफेद

यह पूर्णता का रंग है, जो प्रेरणा और गहराई प्रदान करता है. स्वतंत्रता और पवित्रता का प्रतीक माना जाने वाला यह रंग एकता, सद्भाव, समानता और पूर्णता प्रदान करता है.

बैगनी

जो लोग बैगनी रंग पसंद करते हैं वे सौम्य, उत्साही और करिश्माई व्यक्तित्व वाले होते हैं. वे दूसरों पर निर्भर रहने वाले होते हैं, इसलिए रोजमर्रा की जिम्मेदारियों को लेने से बचते हैं. ये लोगों को आसानी से पहचान लेते हैं. इन्हें सत्ता पसंद आती है.

धूसर

यह सब से अधिक ग्लैमरस रंग है, जो निराशाजनक होने के बावजूद सुंदर है, बोरिंग हो कर भी परिपक्व है, उदासीन होने पर भी क्लासिक है. यह शेड स्थिरता एवं शालीन तरंगों के साथ गरिमामयी महिमा का वर्णन करता है. यह अनिश्चितता और अलगाव को भी दर्शाता है.

भूरा

इस रंग को पसंद करने वाले गंभीर, जमीन से जुड़े होने के बावजूद भव्यता की झलक देते हैं. ये लोग सहज, सरल, निर्भर होने के बावजूद कई बार कंजूस और भौतिकवादी होते हैं.

काला

दृढ़, सीमित, सुंदर, आकर्षक और ठंडक देने वाला काला रंग काफी गहरा होता है, जिसे कई लोग अशुभ करार दे सकते हैं. यह रंग रहस्य, नकारात्मकता, निराशा और रूढिवादिता को दर्शाता है.

नारंगी

अत्यंत चटकीला रंग नारंगी मुखर और रोमांच चाहने वालों का रंग है. आशावादी, खुशमिजाज, सहृदयी और स्वीकार्य होने के साथसाथ यह रंग सतही, असामाजिक और उन लोगों का प्रतीक है, जो अत्यधिक अहंकारी होते हैं.

अच्छा इंटीरियर मुनाफे का सौदा

मिठाई की दुकान से ले कर परचून की दुकान तक का इंटीरियर अब पहले से काफी बेहतर होने लगा है. जिन दुकानों में पहले इंटीरियर पर बिलकुल ध्यान नहीं दिया जाता था वहां भी अब मौडर्न स्टाइल का इंटीरियर होने लगा है. कपड़ों की शौप्स पहले से बदल गई हैं. फर्श हो या छत अब हर जगह का इंटीरियर अलग दिखने लगा है. सैलून के नाम पर पहले केवल महिलाओं के ब्यूटीपार्लर ही सजेधजे नजर आते थे पर अब पुरुषों के सैलूनों में भी इंटीरियर डिजाइन होने लगा है. सोशल मीडिया के जमाने में लोग जहां जाते है वहां के फोटो अपडेट करने की कोशिश करते हैं. अच्छा इंटीरियर मुफ्त में प्रचार का भी काम करता है.

इस बदलाव के क्या कारण हैं? यह जानने के लिए हम ने लखनऊ की रहने वाली मशहूर इंटीरियर डिजाइनर और और्किटैक्ट अनीता श्रीवास्तव से बात की:

शौप्स का मैनेजमैंट अच्छा हो जाता है

अनीता श्रीवास्तव कहती हैं, ‘‘सुंदर और सुव्यवस्थित माहौल हर किसी को पसंद आता है. ऐसा माहौल मन पर सुंदर छाप छोड़ता है. पहले शौप्स में सामान इधरउधर फैला होता था, जिस की वजह से गंदगी दिखती थी, सफाई करना मुश्किल हो जाता था. चूहे और कीडे़मकोडे़ सामान को नुकसान पहुंचाते थे. लाइटिंग की सही व्यवस्था नहीं होती थी. बिजली के उल?ो तारों से दुकानों में दुर्घटना हो जाती थी.

शौर्ट सर्किट से आग लग जाती थी. काम करने वालों को सही तरह से बैठने या खडे़ होने की जगह नहीं मिलती थी. हवा और रोशनी नहीं मिलती थी. अब इंटीरियर डिजाइनर शौप्स की जरूरत और वहां आने वाले कस्टमर की सुविधा को देखते हुए शौप्स को अच्छे से डिजाइन करते हैं. इस से काम करने वाले को सुविधा और कस्टमर को देखने में अच्छा लगता है.’’

बिजली का डिजाइनर सामान

इंटीरियर डिजाइनिंग में पहले बिजली का प्रयोग जरूरत के लिए होता था. आज के दौर में बिजली का ऐसा सामान आ गया है जो जरूरत के साथसाथ सुंदर भी लगता है. जहां जिस तरह की हवा और रोशनी की जरूरत होती है वहां उस का उपयोग किया जाने लगा है. बिजली के ऐसे उपकरण आ गए हैं जो कम वोल्टेज पर चलते हैं. इस से बिजली की बचत होने लगी है. हवा के लिए पंखे के साथसाथ एसी का प्रयोग होने लगा है. पीने का साफ पानी भी बिजली के प्रयोग से मिलता है.

इस का उपाय भी सही जगह होने लगा है. कम और ज्यादा रोशनी का प्रयोग जरूरत के हिसाब से हो इंटीरियर डिजाइन करते समय इस बात का खयाल रखा जाता है. बिजली चली जाए तो इनवर्टर, सोलर ऐनर्जी या जनरेटर का प्रयोग कैसे कमज्यादा हो इस का प्रबंध भी पहले से किया जाने लगा है.

अर्श से फर्श तक सब बदल गया

अनीता श्रीवास्तव कहती हैं, ‘‘आज इंटीरियर के लिए बहुत अच्छाअच्छा मैटीरियल मिलने लगा है, जो सस्ता भी है और अच्छी तरह तैयार हो जाता है, साथ ही हलका भी होता है. भले ही यह लकड़ी जैसा मजबूत और टिकाऊ न हो पर आज इंजीनियरवुड और प्लाई का उपयोग इंटीरियर में होने लगा है. सस्ता होने के कारण इसे जल्दी बदला जा सकता है.

‘‘कैमिकल का प्रयोग होने से दीमक नहीं लगती है. इंटीरियर में पेपर कार्डबोर्ड का प्रयोग होने लगा है. महंगी टाइल्स की जगह आकर्षक फ्लोरिंग मिलने लगी है. यह मैचिंग और मनचाहे रंग व डिजाइन की होने लगी है. फर्श से ले कर छत तक को नए रंगरूप में बदला जा सकता है.’’

बजट इंटीरियर

इंटीरियर डिजाइनर पहले डिजाइन तैयार कर लेता है उस के बाद वह बजट के अनुसार मैटीरियल चुनता है. डिजाइन का अब थ्रीडी फौर्मेट बन जाता है, जिस से पूरा इंटीरियर कैसा लगेगा यह पहले ही पता चल जाता है. जो अच्छा नहीं लगता उस को बदला जा सकता है. इंटीरियर में कुछ ऐसा शामिल किया जाता है जो पूरे इंटीरियर को हाईलाइट करता है. जैसे म्यूरल आर्ट का प्रयोग बढ़ गया है. ग्रीन माहौल दिखाने का प्रयास रहता है. स्पेस रहता है तो माहौल बेहतर होता है. लोग कंफर्टेबल फील करते हैं.

कार्यक्षमता को बढ़ाता है

इंटीरियर की उपयोगिता इसलिए बढ़ रही क्योंकि यह देखने वाले का आकर्षित करती है. कस्टमर यहां आने में कंफर्टेबल फील करता है. यहां काम करने वालों को जब साफ हवा, पानी, खुशनुमा माहौल मिलता है तो उन की कार्यक्षमता बढ़ती है.

जब लत बन जाएं गैजेट्स

गैजेट्स का गुलाम होना ठीक नहीं क्योंकि अगर आप इन के गुलाम हो गए तो इन के खराब होने पर आप एक दिन भी इन के बिना नहीं बिता पाएंगे और आप को इन के बिना जिंदगी नीरस व अधूरीअधूरी सी लगने लगेगी. इसलिए आज तक आप ने जो किया सो किया, लेकिन अब अपनी जिंदगी में गैजेट्स को उतनी ही अहमियत दें, जितनी देने की जरूरत है. भूल कर भी खुद को इन का गुलाम न बनने दें.

आइए, जानते हैं कैसे इन से दूरी बनाएं:

आज किसी को फोन नहीं करेंगे

हर समय बस मोबाइल से चिपके रहने से हमारी आदत पूरी तरह बिगड़ गई है. बस जरा सा खाली समय मिला नहीं कि फोन में कभी गूगल पर कुछ देखने लग जाते हैं, तो कभी सोशल मीडिया पर फोन से अपने फोटोज अपलोड करते हैं, तो कभी दूसरों की डाली गईं पोस्ट्स में इतना इंटरैस्ट दिखाने लगते हैं जैसे इस से जरूरी और कोई काम ही नहीं है.

ऐसे में आप मन में ठान लें कि हर हफ्ते संडे को हम अपने मोबाइल से किसी को भी फोन नहीं करेंगे और न ही इस का इस्तेमाल सैल्फी लेने, फोटो अपलोड करने में करेंगे. जब तक बहुत जरूरी न होगा, हम आज के दिन फोन को हाथ नहीं लगाएंगे. अगर आप मन में ऐसा संकल्प ले लेंगे और 1-2 महीनों तक इस पर अमल भी करेंगे तो आप आराम से गैजेट्स से दूरी बना पाएंगे.

आज पूरा दिन टीवी से छुट्टी

आज रिलैक्स डे है, आज औफिस की छुट्टी है, आज कोई काम नहीं है तो इस का मतलब यह नहीं कि आप आज पूरा दिन बस टीवी पर ही नजरें गड़ाए बैठे रहें. आप का ब्रेकफास्ट, लंच, डिनर सब टीवी के सामने ही हो रहा है और टीवी के सामने बैठेबैठे कब सुबह से शाम हो गई पता ही नहीं चला.

ऐसा आप के साथ ही नहीं बल्कि अधिकांश लोगों के साथ होता है कि फ्री टाइम का मतलब वाचिंग टीवी और फुल डे फ्री का मतलब तो फुल डे टीवी के साथ टाइम स्पैंड होता है. घर के बाकी लोग चाहे कुछ भी कहते रहें, लेकिन आप को टीवी से फुरसत मिले तब न.

अगर आप के साथ भी ऐसा ही है तो हफ्ते में 1 दिन या 15 दिन में एक दिन टीवी से ब्रेक जरूर लें.

आज गाड़ी की छुट्टी

चाहे पास की मार्केट जाना हो या फिर 2 गलियां छोड़ कर फ्रैंड से मिलने, हर काम के लिए हम गाड़ी का इस्तेमाल करते हैं, जिस से जहां हमारी चलने की आदत छूटती जा रही है, वहीं हम खुद के खर्चों को भी बढ़ाते जा रहे हैं. ऐसे में अगर आप खुद को गाड़ी के ही सहारे नहीं चलाना चाहते या फिर खुद के खर्चों को जानबूझ कर नहीं बढ़ाना चाहते तो हफ्ते में 1 दिन बिना गाड़ी घर के व खुद से जुड़े काम करें. इस से एक तो आप की गाड़ी पर से निर्भरता खत्म होगी और दूसरा आप अपने कामों के लिए खुद के शरीर को चलाना सीखेंगे.

आज औनलाइन सामान नहीं मंगवाएंगे

आज डेली नीड्स के हर सामान के लिए हम औनलाइन स्टोर्स पर निर्भर हो गए हैं. कोई सामान खत्म हुआ नहीं कि झट से और्डर कर के मंगवा लिया, जिस से न तो हम ग्रोसरी पर होने वाले खर्च को कंट्रोल कर पाते हैं और दूसरे हमारी आदत भी खराब होती जाती है. औनलाइन सामान मंगवाने पर हम दुकानदार से अब सामान के लिए मोलभाव भी नहीं कर पा रहे हैं. यहां तक कि कुछ खाने का मन किया तो झट से और्डर कर के मंगवा लेते हैं. लेकिन जान लें कि ये औनलाइन स्टोर्स हमें घर बैठे कुछ ही मिनटों में सामान देने के कारण हमें आलसी बना रहे हैं.

ऐसे में अगर आप को अपनी इस लत को छोड़ना है तो आप हफ्ते में एक दिन औनलाइन कोई भी सामान नहीं मंगवाने का संकल्प लें. उस दिन यदि आप को किसी सामान की जरूरत पड़ी तो आप दुकान पर जाएं. दुकानदार से आप मोलभाव कर के सामान लें, जो बजट को कंट्रोल करने का तो काम करेगा ही, साथ ही आप उस दिन सिर्फ जरूरी चीजें ही लाएंगे, जो बचत के साथसाथ आप की औनलाइन और्डर करने की हैबिट को भी बदलने का काम करेगा.

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