परिंदे को उड़ जाने दो : भाग-3

शीना ट्रिप के लिए निकल गई. बस में शीना मीताली के साथ ही बैठी थी. ट्रिप उदयपुर जा रही थी और सफर लंबा था. बस दिल्ली से निकली तो सभी गाने गाते हुए यहां से वहां बस में घूम रहे थे, इसी बीच अक्षत शीना के बगल में आ कर बैठ गया. शीना और अक्षत कभी ज्यादा बात कर ही नहीं पाए थे तो अब भी उन के पास कुछ खास था नहीं कहने के लिए. अक्षत ने शीना से पूछा कि क्या यह उस की पहली ट्रिप है जिस पर शीना ने बताया कि वह शूट्स के लिए बाहर जाती है मम्मी के साथ, लेकिन दोस्तों के साथ यह पहली बार है. दोनों में इसी तरह की बातें होने लगीं.

“तुम ने फ्रैंड्स शो  देखा क्या ?” शीना ने अक्षत से पूछा.

“नहीं, मैं शोज कम देखता हूं.”

“अरे, थोड़ा बहुत तो देख सकते हो, कितनी अच्छी चीजें हैं दुनिया में.”

“और पढ़ाई कौन करेगा?” अक्षत ने पूछा.

“वो साथसाथ हो जाएगी न,” शीना ने बच्चों जैसी आवाज में कहा.

अक्षत शीना को देख हंसने लगा.

“इस में हंस क्या रहे हो, मजाक उड़ा रहे हो मेरा?” शीना ने मुंह बनाते हुए कहा.

“नहीं, सोच रहा हूं कि तुम्हें इंग्लिश औनर्स की जगह थिएटर औनर्स जैसा कुछ करना चाहिए था, और उस में भी बस बच्चों का रोल.”

“कुछ भी. बड़ी हूं में ठीक है न,” शीना बोली.

“बड़ी हूं मैं ठीक है न,” अक्षत ने दोहराया.

“मेरी नकल मत करो.”

“मेरी नकल मत करो,” अक्षत ने फिर शीना की मिमिक्री की.

“तुम न पिटोगे अब,” शीना ने बनावटी गुस्से से कहा.

“तुम न पिटोगे अब,” अक्षत के कहते ही शीना ने उसे हलके से धक्का दिया तो अक्षत हंसने लगा, उसे देख शीना मुट्ठी बना गालों पर हाथ रख कर बैठ गई.

“अच्छा सौरी,” अक्षत ने शीना के हाथों को हिलाते हुए कहा.

पूरे रास्ते शीना और अक्षत बातें करते हुए ही गए थे. उदयपुर पहुंचने पर अक्षत और शीना साथसाथ ही घूम रहे थे. शीना को बातें करते हुए इतना कम्फर्टेबल कभी किसी और के साथ नहीं लगा था. अगले दिन साइट सीन करने जाने पर शीना अपनी तस्वीरें खिंचाने में व्यस्त थी लेकिन अक्षत सब से काफी दूर जा कर एक चबूतरे पर बैठा हुआ था. शीना ने उसे देखा तो उस की तरफ जाने लगी.

“ओ शीना मैडम, अभी आप का फोटोशूट शुरु भी नहीं हुआ है, कहां जा रही हो?”

“अरे, मैं अक्षत को भी बुला लाती हूं.”

“उसे फोटो न खींचना पसंद है न ही खिंचवाना, वो नहीं आएगा.”

“आई मैं अभी,” कहते हुए शीना अक्षत की तरफ बढ़ गई.

अक्षत ने शीना को आते हुए देखा तो हाथ से इशारा करते हुए पास बैठने के लिए कहा और शीना के बैठने की जगह से मिट्टी हटाने लगा.

“कहां खोये हुए हो, चलो न पिक्चर्स क्लिक करते हैं,” शीना ने चहकते हुए कहा.

“मेरा मन नहीं है. तुम जाओ.”

“तुम नहीं जा रहे तो मैं भी नहीं जा रही,” शीना ने कहा और मुस्कराने लगी. उसे देख अक्षत के चेहरे पर भी हलकी मुस्कराहट आ गई.

शीना अक्षत के चेहरे को देखने लगी तो अक्षत ने ‘क्या हुआ’ के भाव में आंखें ऊंचीनीची कीं.

“तुम्हें न मोडलिंग करनी चाहिए, हैंडसम हो तुम.”

“नहीं, मैं प्रोफेसर बनने में ही खुश हूं,” अक्षत ने कहा.

“प्रोफेसर बन कर क्या करोगे?”

“बच्चों को पढ़ाऊंगा और समझाऊंगा कि खूबसूरती ही सब नहीं होती.”

“तुम मुझे ताना दे रहे हो?” शीना ने गंभीरता से पूछा.

“नहीं, पर मुझे कभीकभी लगता है तुम अपने चेहरे में, अपनी बौडी में इतनी खोयी हुई हो कि तुम्हें और कुछ नहीं दिखता. तुम किसी के साथ समय नहीं बिताती, बातें नहीं करती, इंग्लिश ओनर्स में होते हुए किताबी लड़की नहीं हो तुम, ऊपर से नीचे तक ब्रांड्स में लदालद हो, किसी के प्यार में नहीं पड़तीं, बचपन से ही काम कर रही हो और बस यही तुम्हारे दिमाग में है.”

“तुम मुझे जानते ही कितना हो?” शीना के चेहरे पर भावुकता थी.

“जानना चाहता हूं,” अक्षत ने शीना की आंखों में देखते हुए कहा.

“जानने के लिए कुछ है ही नहीं.”

“मुझे लगता है बहुत कुछ है.”

“मुझे बचपन से सिखाया गया है कि आंखें हमेशा जीत पर टिकी होनी चाहिए, सुंदर दिखने के लिए प्रोडक्ट्स लगाओ, मेकअप करो, कम खाओ और एकसरसाइज ज्यादा करो, सीधे चलो, कैटवौक करो, सभी को देख कर मुस्कराओ, कैमरा देखो और पोज करो. किसी दोस्त से ही ज्यादा घुलनेमिलने नहीं दिया गया तो बौयफ्रेंड तो दूर की बात है. और तुम्हें भी लगता है मैं खोखली हूं, है न?” शीना ने अक्षत से पूछा.

“नहीं, मुझे ऐसा नहीं लगता. वैसे, तुम अपनी मम्मी से इतना डरती क्यों हो?”

“पता नहीं. वे हमेशा से मेरे लिए दौड़भाग करती रही हैं, उन्हें खुश करना ही चाहा है मैं ने हमेशा बस. डरती हूं क्योंकि मेरा उन के बिना है ही कौन. पापा के पैसे देते रहने को प्यार और समय कह सकते हैं तो वह भी था मेरे पास. पर पैसो को प्यार और समय मान लेने से वह प्यार और समय बन नहीं जाता न. तो मम्मी से झगड़ कर क्या ही करूंगी.”

“अपने पैरों पर खड़ी हो सकती हो, आखिर जिंदगी तुम्हारी है अपनी खुशी के लिए नहीं जियोगे तो किस के लिए जियोगी. तुम्हारे अंदर जो मासूमियत है वह इस इंडस्ट्री में खत्म हो जाएगी और तुम अपने मन की नहीं सुनोगी तो डिप्रेशन और तनाव से हट कर कुछ हाथ नहीं लगेगा. अभी खोखली नहीं हो पर क्या पता हो जाओ,” अक्षत की बात सुन शीना सोच में पड़ गई थी.

शाम ढलने लगी और सभी को अब होटल की तरफ लौटना था. शीना और अक्षत भी चलने के लिए उठे. अक्षत ने शीना को हाथ पकड़ कर रोका और पौकेट से फोन निकाल लिया. “साथ में एक पिक्चर तो ले ही सकते हैं,” अक्षत ने कहा तो शीना चहक उठी.

होटल के रूम में बैठ शीना अक्षत और अपनी फोटो को देखदेख कर ही खुश हो रही थी. मीताली भी रूम में थी.

“तू अक्षत को पसंद करती है, है न?” मीताली के पूछने पर शीना ने आंखें बड़ी करते हुए कहा, “नहीं तो.”

“झूठ मत बोल, मुझे सब पता है. मुझे लगता है अक्षत को भी तू पसंद है.”

“सच?” शीना ने अपनी खुशी छिपाते हुए कहा.

“हां, आज सुबह ब्रेकफास्ट टेबल पर वो तुझे ही देखे जा रहा था बारबार, तू ने नोटिस नहीं किया.”

मीताली की बातें सुन शीना बेहद खुश हो गई थी. रात में डिनर के बाद सभी नीचे स्विमिंग पूल के पास बैठे थे. अक्षत भी वहीं था. शीना उस के पास जा कर बैठी तो सभी लड़के शीना को देखने लगे. सब उस के कायल पहले से थे. अक्षत ने शीना से कहा कि उस ने आने में देर कर दी क्योंकि वह वापस जा रहा है.

“क्या करोगे जा कर?” शीना पूछने लगी.

“यहां बैठने का मन नहीं है मेरा,” अक्षत ने बताया.

“मुझे तुम से कुछ बात करनी थी.”

“बोलो.”

“यहां नहीं, अंदर चलें?”

“ओके,” अक्षत ने कहा और वे दोनों शीना के रूम की तरफ बढ़ गए.

शीना, मीताली और नैना का एक ही रूम था, लेकिन इस वक्त न रूम में मीताली थी और न नैना. अक्षत और नैना रूम में बैठे तो शीना अपनी बात कहने के लिए हिम्मत जुटाने लगी और उस की झिझक अक्षत को भी दिख रही थी.

“अगर तुम मुझे प्रपोज करने वाली हो तो मेरा जवाब हां है,” अक्षत ने मजाक करते हुए कहा.

“तुम्हें कैसे पता,” शीना का मुंह खुला का खुला रह गया.

“तुम मुझे प्रपोज करने वाली हो?”

अक्षत अब हैरानी से कहने लगा.

“तुम्हें किस ने बताया?”

“तुम ने.”

“कब?”

“अभी.”

“हें? ओहह शिट,” शीना को अपनी बेवकूफी का एहसास हुआ तो उस ने अपने माथे पर हथेली दे मारी.

“आई लाइक यू,” आखिर अक्षत ने पहल करते हुए कहा.

“सच?”

“हां.”

“आई लाइक यू टू,” शीना का चेहरा लाल हो गया.

आगे पढ़ें- अक्षत ने शीना का हाथ पकड़ा और उसे किस…

फर्क: इरा की कामयाबी सफलता थी या किसी का एहसान

इरा की स्कूल में नियुक्ति इसी शर्त पर हुई थी कि वह बच्चों को नाटक की तैयारी करवाएगी क्योंकि उसे नाटकों में काम करने का अनुभव था. इसीलिए अकसर उसे स्कूल में 2 घंटे रुकना पड़ता था.

इरा के पति पवन को कामकाजी पत्नी चाहिए थी जो उन की जिम्मेदारियां बांट सके. इरा शादी के बाद नौकरी कर अपना हर दायित्व निभाने लगी.

वह स्कूल में हरिशंकर परसाई की एक व्यंग्य रचना ‘मातादीन इंस्पेक्टर चांद पर’ का नाट्य रूपांतर कर बच्चों को उस की रिहर्सल करा रही थी. प्रधानाचार्य ने मुख्य पात्र के लिए 10वीं कक्षा के एक विद्यार्थी मुकुल का नाम सुझाया क्योंकि वह शहर के बड़े उद्योगपति का बेटा था और उस के सहारे पिता को खुश कर स्कूल अनुदान में खासी रकम पा सकता था.

मुकुल में प्रतिभा भी थी. इंस्पेक्टर मातादीन का अभिनय वह कुशलता से करने लगा था. उसी नाटक के पूर्वाभ्यास में इरा को घर जाने में देर हो जाती है. वह घर जाने के लिए स्टाप पर खड़ी थी कि तभी एक कार रुकती है. उस में मुकुल अपने पिता के साथ था. उस के पिता शरदजी को देख इरा चहक उठती है. शरदजी बताते हैं कि जब मुकुल ने नाटक के बारे में बताया तो मैं समझ गया था कि ‘इरा मैम’ तुम ही होंगी.

इरा उन के साथ गाड़ी में बैठ जाती है. तभी उसे याद आता है कि आज उस के बेटे का जन्मदिन है और उस के लिए तोहफा लेना है. शरदजी को पता चलता है तो वह आलीशान शापिंग कांप्लेक्स की तरफ गाड़ी घुमा देते हैं. वह इरा को कंप्यूटर गेम दिलवाने पर उतारू हो जाते हैं. इरा बेचैन थी क्योंकि पर्स में इतने रुपए नहीं थे. अब आगे…

3ह्म्द्मड्डस्र द्यह्य 1द्म3ह्य्न्न्न

एक महंगा केक और फूलों का बुके आदि तमाम चीजें शरदजी गाड़ी में रखवाते चले गए. वह अवाक् और मौन रह गई.

शरदजी को घर में भीतर आने को कहना जरूरी लगा. बेटे सहित शरदजी भीतर आए तो अपने घर की हालत देख सहम ही गई इरा. कुर्सियों पर पड़े गंदे,  मुचड़े, पहने हुए वस्त्र हटाते हुए उस ने उन्हें बैठने को कहा तो जैसे वे सब समझ गए हों, ‘‘रहने दो, इरा… फिर किसी दिन आएंगे… जरा अपने बेटे को बुलाइए… उस से हाथ मिला लूं तब चलूं. मुझे देर हो रही है, जरूरी काम से जाना है.’’

इरा ने सुदेश और पति को आवाज दी. वे अपने कमरे में थे. दोनों बाहर निकल आए तो जैसे इरा शरम से गड़ गई हो. घर में एक अजनबी को बच्चे के साथ आया देख पवन भी अचकचा गए और सुदेश भी सहम सा गया पर उपहार में आई ढेरों चीजें देख उस की आंखें चमकने लगीं… स्नेह से शरदजी ने सुदेश के सिर पर हाथ फेरा. उसे आशीर्वाद दिया, उस से हाथ मिला उसे जन्मदिन की बधाई दी और बेटे मुकुल के साथ जाने लगे तो सकुचाई इरा उन्हें चाय तक के लिए रोकने का साहस नहीं बटोर पाई.

पवन से हाथ मिला कर शरदजी जब घर से बेटे मुकुल के साथ बाहर निकले तो उन्हें बाहर तक छोड़ने न केवल इरा ही गई, बल्कि पवन और सुदेश भी गए.

उन्होंने पवन से हाथ मिलाया और गाड़ी में बैठने से पहले अपना कार्ड दे कर बोले, ‘‘इरा, कभी पवनजी को ले कर आओ न हमारे झोंपड़े पर… तुम से बहुत सी बातें करनी हैं. अरसे बाद मिली हो भई, ऐसे थोड़े छोड़ देंगे तुम्हें… और फिर तुम तो मेरे बेटे की कैरियर निर्माता हो… तुम्हें अपना बेटा सौंप कर मैं सचमुच बहुत आश्वस्तहूं.’’

पवन और सुदेश के साथ घर वापस लौटती इरा एकदम चुप और खामोश थी. उस के भीतर एक तीव्र क्रोध दबे हुए ज्वालामुखी की तरह भभक रहा था पर किसी तरह वह अपने गुस्से पर काबू रखे रही. इस वक्त कुछ भी कहने का मतलब था, महाभारत छिड़ जाना. सुदेश के जन्मदिन को वह ठीक से मना लेना चाहती थी.

सुदेश के जन्मदिन का आयोजन देर रात तक चलता रहा था. इतना खुश सुदेश पहले शायद ही कभी हुआ हो. इरा भी उस की खुशी में पूरी तरह डूब कर खुश हो गई.

बिस्तर पर जब वह पवन के साथ आई तो बहुत संतुष्ट थी. पवन भी संतुष्ट थे, ‘‘अरसे बाद अपना सुदेश आज इतना खुश दिखाई दिया.’’

‘‘पर खानेपीने की चीजें मंगाने में काफी पैसा खर्च हो गया,’’ न चाहते हुए भी कह बैठी इरा.

‘‘घर वालों के ही खानेपीने पर तो खर्च हुआ है. कोई बाहर वालों पर तो हुआ नहीं. पैसा तो फिर कमा लिया जाएगा… खुशियां हमें कबकब मिलती हैं,’’ पवन अभी तक उस आयोजन में डूबे हुए थे.

‘‘सोया जाए… मुझे सुबह फिर जल्दी उठना है. सुदेश का कल अंगरेजी का टेस्ट है और मैं अंगरेजी की टीचर हूं अपने स्कूल में. मेरा बेटा ही इस विषय में पिछड़ जाए, यह मैं कैसे बरदाश्त कर सकती हूं? सुबह जल्दी उठ कर उस का पूरा कोर्स दोहरवाऊंगी…’’

‘‘आजकल की यह पढ़ाई भी हमारे बच्चों की जान लिए ले रही है,’’ पवन के चेहरे पर से प्रसन्नता गायब होने लगी, ‘‘हमारे जमाने में यह जानमारू प्रतियोगिता नहीं थी.’’

‘‘अब तो 90 प्रतिशत अंक, अंक नहीं माने जाते जनाब… मांबाप 99 और 100 प्रतिशत अंकों के लिए बच्चों पर इतना दबाव बनाते हैं कि बच्चों का स्वास्थ्य तक चौपट हुआ जा रहा है. क्यों दबा रहे हैं हम अपने बच्चों को… कभीकभी मैं भी बच्चों को पढ़ाती हुई इन सवालों पर सोचती हूं…’’

‘‘शायद इसलिए कि हम बच्चों के भविष्य को ले कर बेहद डरे हुए हैं, आशंकित हैं कि पता नहीं उन्हें जिंदगी में कुछ मिलेगा या नहीं… कहीं पांव टिकाने को जगह न मिली तो वे इस समाज में सम्मान के साथ जिएंगे कैसे?’’ पवन बोले, ‘‘हमारे जमाने में शायद यह गलाकाट प्रतियोगिता नहीं थी पर आजकल जब नौकरियां मिल नहीं रहीं, निजी कामधंधों में बड़ी पूंजी का खेल रह गया है. मामूली पैसे से अब कोई काम शुरू नहीं किया जा सकता, ऐसे में दो रोटियां कमाना बहुत टेढ़ी खीर हो गया है, तब बच्चों के कैरियर को ले कर सावधान हो जाने को मांबाप विवश हो गए हैं… अच्छे से अच्छा स्कूल, ज्यादा से ज्यादा सुविधाएं, साधन, अच्छे से अच्छा ट्यूटर, ज्यादा से ज्यादा अंक, ज्यादा से ज्यादा कुशलता और दक्षता… दूसरा कोई बच्चा हमारे बच्चे से आगे न निकल पाए, यह भयानक प्रत्याशा… नतीजा तुम्हारे सामने है जो तुम कह रही हो…’’

‘‘मैं तो समझती थी कि तुम इन सब मसलों पर कुछ न सोचते होंगे, न समझते होंगे… पर आज पता चला कि तुम्हारी भी वही चिंताएं हैं जो मेरी हैं. जान कर सचमुच अच्छा लग रहा है, पवन,’’ कुछ अधिक ही प्यार उमड़ आया इरा के भीतर और उस ने पवन को एक गरमागरम चुंबन दे डाला.

पवन ने भी उसे बांहों में भर, एक बार प्यार से थपथपाया, ‘‘आदमी को तुम इतना मूर्ख क्यों मानती हो? अरे भई, हम भी इसी धरती के प्राणी हैं.’’

‘‘यह नाटक मैं ठीक से करा ले जाऊं और शरदजी को उन के बेटे के माध्यम से प्रसन्न कर पाऊं तो शायद उस एहसान से मुक्त हो सकूं जो उन्होंने मुझ पर किए हैं. जानते हो पवन, शरदजी ने अपने निर्देशन में मुझे 3 नाटकों में नायिका बनाया था. बहुत आलोचना हुई थी उन की पर उन्होंने किसी की परवा नहीं की थी. अगर तब उन्होंने मुझे उतना महत्त्व न दिया होता, मेरी प्रतिभा को न निखारा होता तो शायद मैं नाटकों की इतनी प्रसिद्ध नायिका न बनी होती. न ही यह नौकरी आज मुझे मिलती. यह सब शरदजी की ही कृपा से संभव हुआ.’’

नाटक उम्मीद से कहीं अधिक सफल रहा. मुकुल ने इंस्पेक्टर मातादीन के रूप में वह समां बांधा कि पूरा हाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा. स्कूल प्रबंधक और प्रधानाचार्या अपनेआप को रोक नहीं सके और दोनों उठ कर इरा के पास मंच के पीछे आए, ‘‘इरा, तुम तो कमाल की टीचर हो भई.’’

मुकुल के पिता शरदजी तो अपने बेटे की अभिनय क्षमता और इरा के कुशल निर्देशन से इतने प्रसन्न हुए कि उन्होंने वहीं, मंच पर आ कर स्कूल के लिए एक वातानुकूलित कंप्यूटर कक्ष और 10 कंप्यूटर अत्यंत उच्च श्रेणी के देने की घोषणा कर प्रबंधक और प्रधानाचार्या के मन की मुराद ही पूरी कर दी.

जब वे आयोजन के बाद चायनाश्ते पर अन्य अतिथियों के साथ प्रबंधक के पास बैठे तो न जाने उन के कान में क्या कहते रहे. इरा ने 1-2 बार उन की ओर देखा भी पर वे उन से ही बातें करते रहे. बाद में इरा को धन्यवाद दे वे जातेजाते पवन और सुदेश की तरफ देख हाथ हिला कर बोले, ‘‘इरा…मुझे अभी तक उम्मीद है कि किसी दिन तुम आने के लिए मुझे दफ्तर में फोन करोगी…’’

‘‘1-2 दिन में ही तकलीफ दूंगी, सर, आप को,’’ इरा उत्साह से बोली थी.

‘‘जो आदमी खुश हो कर लाखों रुपए का दान स्कूल को दे सकता है, उस से हम बहुत लाभ उठा सकते हैं, इरा… और वह आदमी तुम से बहुत खुश और प्रभावित भी है,’’ अपना मंतव्य आखिर पवन ने घर लौटते वक्त रास्ते में प्रकट कर ही दिया.

परंतु इरा चुप रही. कुछ बोली नहीं. किसी तरह पुन: पवन ने ही फिर कहा, ‘‘क्या सोच रही हो? कब चलें हम लोग शरदजी के घर?’’

‘‘पवन, तुम्हारे सोचने और मेरे सोचने के ढंग में बहुत फर्क है,’’ कहते हुए बहुत नरम थी इरा की आवाज.

‘‘सोच के फर्क को गोली मारो, इरा. हमें अपने मतलब पर ध्यान देना चाहिए, अगर हम किसी से अपना कोई मतलब आसानी से निकाल सकते हैं तो इस में हमारे सोच को और हमारी हिचक व संकोच को आड़े नहीं आना चाहिए,’’ पवन की सूई वहीं अटकी हुई थी, ‘‘तुम अपने घरपरिवार की स्थितियों से भली प्रकार परिचित हो, अपने ऊपर कितनी जिम्मेदारियां हैं, यह भी तुम अच्छी तरह जानती हो. इसलिए हमें निसंकोच अपने लिए कुछ हासिल करने का प्रयास करना चाहिए.’’

‘‘मैं तुम्हें और सुदेश को ले कर उन के बंगले पर जरूर जाऊंगी, पर एक शर्त पर… तुम इस तरह की कोई घटिया बात वहां नहीं करोगे. शरदजी के साथ मैं ने नाटकों में काम किया है, मैं उन्हें बहुत अच्छी तरह जानती हूं. वह इस तरह से सोचने वाले व्यक्ति नहीं हैं. बहुत समझदार और संवेदनशील व्यक्ति हैं. उन से पहली बार ही उन के घर जा कर कुछ मांगना मुझे उन की नजरों में बहुत छोटा बना देगा, पवन. मैं ऐसा हरगिज नहीं कर सकती.’’

दूसरे दिन इरा जब स्कूल में पहुंची तो प्रधानाचार्या ने उसे अपने दफ्तर में बुलाया, ‘‘हमारी कमेटी ने तय किया है कि यह पत्र तुम्हें दिया जाए,’’ कह कर एक पत्र इरा की तरफ बढ़ा दिया.

एक सांस में उस पत्र को धड़कते दिल से पढ़ गई इरा. चेहरा लाल हो गया, ‘‘थैंक्स, मेम…’’ अपनी आंतरिक प्रसन्नता को वह मुश्किल से वश में रख पाई. उसे प्रवक्ता का पद दिया गया था और स्कूल की सांस्कृतिक गतिविधियों की स्वतंत्र प्रभारी बनाई गई थी. साथ ही उस के बेटे सुदेश को स्कूल में दाखिला देना स्वीकार किया गया था और उस की इंटर तक फीस नहीं लगेगी, इस का पक्का आश्वासन कमेटी ने दिया था.

शाम को जब घर आ उस ने वह पत्र पवन, ससुरजी व घर के अन्य सदस्यों को पढ़वाया तो जैसे किसी को विश्वास ही न आया हो. एकदम जश्न जैसा माहौल हो गया, सुदेश देर तक समझ नहीं पाया कि सब इतने खुश क्यों हो गए हैं.

इरा ने नजदीकी पब्लिक फोन से शरदजी को दफ्तर में फोन किया, ‘‘आप को हार्दिक धन्यवाद देने आप के बंगले पर आज आना चाहती हूं, सर. अनुमतिहै?’’

सुन कर जोर से हंस पड़े शरदजी, ‘‘नाटक वालों से नाटक करोगी, इरा?’’

‘‘नाटक नहीं, सर. सचमुच मैं बहुत खुश हूं. आप के इस उपकार को कभी नहीं भूलूंगी,’’ वह एक सांस में कह गई, ‘‘कितने बजे तक घर पहुंचेंगे आप?’’

‘‘मेरा ड्राइवर तुम्हें लगभग 9 बजे घर से लिवा लाएगा… और हां, सुदेश व पवनजी भी साथ आएंगे,’’ उन्होंने फोन रख दिया था.

अपनी इरा मैम को अपने घर पर पाकर मुकुल बेहद खुश था. देर तक अपनी चीजें उन्हें दिखाता रहा. अगले नाटकों में भी इरा मैम उसे रखें, इस का वादा कराता रहा.

पूरे समय पवन कसमसाते रहे कि किसी तरह इरा मतलब की बात कहे शरदजी से. शरदजी जैसे बड़े आदमी के लिए यह सब करना मामूली सी बात है, पर इरा थी कि अपने विश्वविद्यालय के उन दिनों के किए नाटकों के बारे में ही उन से हंसहंस कर बातें करती रही.

जब वे लोग वापस चलने को उठे तो शरदजी ने अपने ड्राइवर से कहा, ‘‘साहब लोगों को इन के घर छोड़ कर आओ…’’ फिर बड़े प्रेम से उन्होंने पवन से हाथ मिलाया और उन की जेब में एक पत्र रखते हुए बोले, ‘‘घर जा कर देखना इसे.’’

रास्ते भर पवन का दिल धड़कता रहा, माथे पर पसीना आता रहा. पता नहीं, पत्र में क्या हो. जब घर आ कर पत्र पढ़ा तो अवाक् रह गए पवन… उन की नियुक्ति शरदजी ने अपने दफ्तर में एक अच्छे पद पर की थी.

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तेरे जाने के बाद- भाग 3 क्या माया की आंखों से उठा प्यार का पर्दा

हमें तुम सिर्फ और सिर्फ बेवकूफ नजर आते थे. पूरे 9 महीने हां, पूरे 9 महीने तक कमल का बच्चा मेरे पेट में रहा. 9 महीने बाद हम एक बेटे के मांबाप बन गए. तुम मुझ से प्रैग्नैंसी के दौरान दूर रहे लेकिन कमल उस पीरियड में भी डाक्टरी सुझाव से संबंध बनाता रहा. तुम पिता बन कर बहुत खुश हुए थे और हम अपने प्यार को मंजिल पर पहुंचा कर खुश थे. तुम न्यू बौर्न बेबी का नाम एम अल्फाबेट से रखना चाहते थे लेकिन कमल का मन था प्रेम नाम रखने का. मैं ने भी कमल की हां में हां मिलाते हुए प्रेम नाम पर मुहर लगा दी. तुम प्रेम से बेपनाह प्रेम करने लगे.

तुम्हारे लिए प्रेम ही सबकुछ हो गया था. प्रेम के नाम से जागना, प्रेम के नाम से सोना. सबकुछ प्रेम पर ही अटक गया था तुम्हारा. और मैं लापरवाहों की तरह बस कमल और कमल करती रहती. पर मामला वहीं रुक जाता तो अच्छा होता शायद. अब कमल का हक मुझ पर बढ़ने लगा था. मैं पूरी तरह से कमल की हो गई थी. प्रेम के भविष्य को ले कर मैं तुम से कभी कोईर् चर्चा करना पसंद नहीं करती. कमल जो कहता वही मुझे सही लगता. रात में हम साथसाथ जरूर सोते पर मैं तुम्हें छूने तक न देना चाहती थी. मुझे घृणा होती थी तुम से. मेरी शारीरिक जरूरतें कमल दिन में पूरा कर दिया करता था. तुम्हारी जरूरत महज रुपएपैसों को ले कर रह गई थी.

मेरा बस चलता तो मैं तुम्हें अपने साथ भी न रखती, लेकिन कमल हर बार मुझे मना लेता था. उस की नजर में तुम्हारे जैसा बेवकूफ शायद कोई नहीं था. हम तुम्हारा शोषण करते रहे और तुम शोषित होते रहे. लेकिन अब केवल तुम्हारे शोषित होने या मेरे त्रियाचरित्र का खेल खेलने तक बात न रह गईर् थी. कमल की इच्छाएं बढ़ने लगी थीं. वह अपनी म्यूजिक कंपनी लौंच करना चाहता था. जिस में मुझे वह डांसर लौंच करता, म्यूजिक वीडियों में. मैं पूरी तरह से उस के समर्थन में खड़ी थी. मुझे अपने अधूरे सपने सच होने की संभावनाएं पूरी होती लगीं. मैं जागते हुए सपने देखने लगी. पर एक सचाई यह भी थी कि कमल को इस सपने को पूरा करने के लिए बहुत बड़ी रकम की आवश्यकता थी जिस का जुगाड़ कमल चाह कर भी करने में असमर्थ था.

मार्केट में उस की छवि ऐसी थी कि कोई 2 रुपए तक उधार न दे. हमारा सपना पूरा करने का एक मात्र रास्ता घर को बेच कर रुपए जुटाने पर आ अटका. कमल मेरा माइंड पूरी तरह वाश कर चुका था. चूंकि फ्लैट मेरे नाम से तुम ने लिया था, इसलिए कानूनी तौर पर तुम्हारा कोई इंटरफेयर वैलिड नहीं था. तुम ने बहुत ही मेहनत से फ्लैट लिया था. मेरी मनमानी पर पहली बार तुम ने आपत्ति की थी. तुम्हें मंजूर न था फ्लैट का बिकना. पर मैं ने तुम्हारी एक न चलने दी. मुझे तुम्हें तुम्हारी औकात दिखाने में भी वक्त न लगा. आवेश में मैं तुम्हें नामर्द तक कह गई थी. और प्रेम के जन्म की भी सारी सचाई खोल कर रख दी थी. तुम ठगे से सुनते रह गए थे.

मैं बोलती जा रही थी और तुम भावविहीन, विस्मित हो चुपचाप घर से निकल गए थे जो आज तक लौट कर नहीं आए. तुम्हारे जाते ही मैं ने फ्लैट बेच दिया. हम अब पूरी तरह से स्वतंत्र थे. हमारे सपने सच होने वाले हैं, मैं तो बस यही सोचती रह गई और कमल धीरेधीरे मुझ से पैसे लेता चला गया. कभी किसी स्टार सिंगर के संग मीटिंग के नाम पर तो कभी औफिस सैटलमैंट के नाम पर.

कभी म्यूजिक डायरैक्टर के हाफ पेमैंट का बहाना बनाता तो कभी वीडियो डायरैक्टर, कैमरामैन, स्पौट बौय को देने के नाम पर. वह पैसे मांगता रहा और मैं पैसे देती रही. दिल्ली के कई शूटिंग स्पौट पर भी ले कर जाता था. मैं तो मुग्ध हो जाया करती थी. कैमरे की फ्लैश लाइट में खो जाया करती थी मैं. सीन, लाइट, कैमरा सुनते ही मेरे अंदर झुरझुरी सी होने लगती. कमल के झूठे लाइवशो का सिलसिला अधिक दिन न चल सका. मेरे पैसे खत्म होने लग गए. कमल की मांगें बढ़ती ही गईं.

फ्लैट बिक चुका था. अकाउंट खाली हो चुका था. अब उस की नजर मेरे गहनों पर थी. लगभग गहने भी उस ने बिकवा दिए. मैं रुपएरुपए को तरसने लग गई. मेरी जरूरतें मुंह खोले मुझे चिढ़ाने लगीं. मैं बरबाद हो चुकी थी. कमल मुझ से दूर होने लगा था. मैं गृहस्थी चलाने में भी असमर्थ हो गई थी. कमल को अब मेरा फोन भी वाहियात लगने लगा था. मेरा रूप ढलने लगा था. मेरा शृंगार अपनी रंगत खो चुका था. जिस के गले में मैं ने ही बूंदबूंद कर के जहर डाला था, एक दिन तो दम तोड़ना ही था. आखिर मैं गलत ही तो कर रही थी. और गलत कामों का नतीजा तो मुझे भुगतना ही था.

मैं अब कमल से आरपार का फैसला कर लेना चाहती थी. अंतिम बार जब मैं उस से मिली तो उस ने साफसाफ शब्दों में कह दिया, ‘तुझ जैसी बाजारू औरत के लिए अपना समय बरबाद नहीं करता कमल. तुम से बढि़या तो वेश्याएं होती हैं, जो पैसों के लिए गैर मर्दों के संग सोया करती हैं. कम से कम किसी को धोखा तो नहीं देतीं. तू जब अपने बाप की, अपने पति की नहीं हुई तो मेरी कैसे हो सकती है?’

मैं अपने प्यार की दुहाई देती रही पर कमल पर कोई असर नहीं हुआ. उस ने आगे स्पष्ट किया, ‘तू न तो मेरी जिंदगी की पहली औरत है और न ही आखिरी.’ मैं फिर भी गिड़गिड़ाती रही पर उस पर कोई असर नहीं हुआ. मैं रूप, जवानी, धनदौलत सब लुटा चुकी थी. कमल अपनी मर्दानगी साबित करने के लिए मुझे मां तक बना चुका था. उस के जीवन में कोई और आ चुकी थी. नई चिडि़या को फांसने के लिए पुरानी का घरौंदा उजाड़ चुका था.

कमल की हकीकत मेरे सामने थी. मैं चुप नहीं रह सकती थी. मैं होश खो रही थी. मेरी आंखों में गुस्सा उबल रहा था. मैं उस का मर्डर कर देना चाहती थी. मैं आवेश में आ कर कमल पर चाकू फेंक मारने लगी. वह बच निकला. मुझे गालियां देते वहां से भागते हुए चला गया. उस के हाथ पर चाकू के निशान पड़ गए थे. उस ने हाफमर्डर का केस दर्ज कर दिया. असीम ने मुझे सचेत करते हुए पुलिस के आने से पहले गुड़गांव छोड़ भाग जाने की सलाह दी. असीम ने ही आगरा में मेरे और अभिलाषा के रहने का प्रबंध कर दिया. लेकिन साथ ही असीम मोहित के परिवार को भी इस घटना की सूचना दे चुका था.

तुम्हारी मां और बहन हमारे भागने से पहले ही आ कर मेरे हाथों से प्रेम को छीन कर ले गईं. मैं आगरा चली आई. कुछ दिनों बाद असीम ने आगरा आ कर अपने पैसों से मेरे लिए एक ब्यूटीपार्लर खुलवा दिया. तब से आज तक मैं आगरा की ही हो कर रह गई. रातभर मेरे दिलोदिमाग में मेरी पूरी जिंदगी नाचती रही. मैं पछतावे की अग्नि में जले जा रही हूं. मुझे ग्लानि हो रही है खुद पर. सुबह उठते ही सब से पहले शादी का पहला कार्ड मैं तुम्हारे परिवार को बाईपोस्ट भेजने कूरियर औफिस के लिए चल दी. शायद एक बार अपने बेटे को देखने की लालसा जाग्रत हो उठी थी.

कूरियर करवा कर मैं वापस घर आ कर तुम्हारी और प्रेम की फोटो को ले कर बैठ गई. मेरी आंखों से आंसू अपनेआप बहने लगे. मैं तुम्हारे फोटो पर गिरे अपने आंसू की बूंदों को अपने आंचल से पोंछने लगी. पता ही नहीं चला कब कमबख्त आंसू आंखों से ढुलक कर तुम्हारे फोटो पर आ गिरा था. मैं तुम्हारे फोटो से कहने लगी, ‘पहले मैं रोती थी तो तुम या कभी कमल अपना कंधा दे कर चुप करवा दिया करते थे. लेकिन अब मैं नहीं रोती. रोने का दिल भी होता तो भी मैं नहीं रोती. कोई सांत्वना के 2 शब्द बोल कर चुप करवाने वाला जो नहीं है. अब अगर रोती हूं तो उपहास का पात्र बन जाती हूं.’ तुम फिर से जवाब तलब करने आ जाते हो,

‘तुम कमल को अपना लो. अब तो मैं भी नहीं हूं तुम्हारे जीवन में. तुम्हें कमल को अपनाने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए.’ ‘दिक्कत तो कुछ नहीं है लेकिन तुम भूल रहे हो शायद कि मैं आज भी तुम्हारी पत्नी हूं. एक परित्यक्ता ही सही पर तलाकशुदा नहीं हूं. और फिर मैं वही गलती दोबारा कैसे दोहरा सकती हूं.’ ‘क्या तुम भी गलती कर सकती हो?’ ‘तुम्हारे वाक्य में कटाक्ष है. लेकिन फिर भी मैं प्रतिउत्तर दूंगी… हां, मैं गलती कैसे कर सकती हूं.

आज से 10 साल पूर्व वाली माया होती तो शायद यही उत्तर देती. लेकिन आज वाली माया जान चुकी है खुद को. खुद के परिवेश को, इस समाज को, सामाजिक आहर्ता को. वक्त सबकुछ सिखा देता है. मैं भी सीख चुकी हूं.’ ‘काश कि तुम पहले समझ जाती.’ ‘काश…’ ‘तुम में दिक्कत क्या है, तुम जानती हो? तुम किसी को अपने आगे कुछ समझती ही नहीं. तुम्हें तुम्हारी दुनिया सब से ज्यादा प्यारी लगती. तुम इस दुनिया को भी अपने अनुसार चलाना चाहती हो, लेकिन ऐसा नहीं होता. वास्तविकता का धरातल कुछ और ही है, जिसे तुम ने कभी समझने की कोशिश ही नहीं की.’ ‘तभी तो आज भुगत रही हूं.’

 

संदेह के बादल: अपने ही बुने जाल में क्यों उलझती जा रही थी सुरभि

परिंदे को उड़ जाने दो : भाग-2

शीना ने अपनी दोस्त मीताली को भी मैसेज कर यह खबर दे दी थी कि अब वह कल से कालेज आएगी.

आज कालेज जाने के लिए शीना चहकते हुए उठी थी. चेहरे पर टोनर , मोइश्चराइजर, पाउडर, लाइनर, आईशैडो, मसकारा, लिपस्टिक और गालों पर ब्लश लगा वह कालेज जाने के लिए तैयार थी.

कालेज के गेट से कार अंदर ले जाने लगी तो उस के शरीर में उमंग दौड़ गई. कार पार्क कर वह मीताली को कौल करने लगी. मीताली क्लास में ही थी तो शीना भी क्लास की तरफ बढ़ गई. वह लिफ्ट की तरफ जा रही थी तो हर कोई उसे ऊपर से नीचे देखने लगा. लंबे घने बाल, सुंदर नैननक्श, स्टायलिश कपड़े और ब्रांडेड बैग. आमतौर पर कालेज के बच्चे बेफिक्र घूमने वालों में से होते हैं, लेकिन शीना सब से अलग दिख रही थी. वह क्लास में गई तो सभी उसे एकटक देखने लगे. उस ने दूसरे डेस्क पर मीताली को देखा और उस के पास जा कर बैठ गई.

“तू तो आते ही सब की नजर में चढ़ गई, सही है सही है,” मीताली बोली.

“अब सुंदर लड़की को देखने से लोग खुद को नहीं रोक पा रहे तो मेरी क्या गलती,” कह कर शीना हंसने लगी.

क्लास में इतिहास के टीचर आए तो सभी तन कर बैठ गए. शीना को देख कर सर ने कहा, “तुम पहली बार आई हो यहां?” सर यूपी के रहने वाले थे तो उन का बोलने का लहजा सुन सभी हंसने लगते थे क्योंकि वह सुनाई कुछ इस तरह दिया था- तुम्म पेहली बार आई… हो… यहां.

“येस सर,” शीना ने झेंपते हुए कहा.

“ऐसा क्या काम करती हो जो क्लास नहीं आ पाती. तुम बच्चों का बस यही है, मांबाप के भी पैसे खर्च कराते हो और कालेज की सीट भी खराब करते हो,” सर पूरी क्लास को सुनाते हुए कहने लगे. लगभग पूरी क्लास ही शीना का मजाक उड़ता देख चहक रही थी.

“तेरा तो बड़ा अच्छा वेलकम कर दिया सर ने,” मीताली शीना पर हंसते हुए बोली.

सर क्लास से गए तो एकएक कर कोई न कोई किसी न किसी बहाने से शीना को हायहैलो करने आता रहा. मीताली के दोस्त तो कायदे से शीना के दोस्त भी थे. शीना और मीताली बचपन से एक ही स्कूल में पढ़े थे इसलिए दोनों ने एक ही कालेज में एडमिशन भी लिया था.

लड़को के लिए तो शीना से आंख हटाना मुशकिल था. मीताली के तीन और दोस्त थे जो अब शीना के दोस्त भी बन गए थे (कायदे से), नैना, सुधीर और अक्षत.

नैना और सुधीर तो शीना के आगे पीछे होने लगे थे लेकिन अक्षत का शीना पर कुछ खास ध्यान नहीं गया था. वह अपनी किताबों और अपनी गर्लफ्रेंड विभा के साथ ही घूमता फिरता था.

शीना के लिए चीजें धीरेधीरे सामान्य होने लगी थीं. लेकिन, वह कालेज से सीधा डांस और सिंगिंग क्लास के लिए निकल जाया करती थी. जब भी घूमने की बात होती तो कहती ये क्लास है, वो क्लास है, घर पर काम है या मम्मी डाटेंगी. वैसे भी शीना की मम्मी उस के कालेज जाने से खुश नहीं थीं.

कालेज में शीना अपने ग्रुप के साथ गुट बना कर बैठी थी, मीताली, सुधीर, नैना और अक्षत के साथ. बातोंबातों में सभी को पता लगा कि अक्षत और विभा का ब्रेकअप हो गया है, नैना और सुधीर ने यूपीएससी की कोचिंग जौइन कर ली है, मीताली को टीचर्स पसंद करने लगे हैं और शीना को कई लड़के अप्रोच करने लगे हैं.

“शीना, तू किसी को डेट क्यों नहीं करती, हाय हैलो से आगे तो बढ़?” नैना ने कहा.

“कोई पसंद भी तो आना चाहिए,” शीना ने जवाब दिया.

“तुझे या तेरी मम्मी को,” मीताली ने चुटकी ली.

“क्या मतलब,” सुधीर ने पूछा.

“इस की मम्मी लड़कों को इस के आगे भटकने कहां देती हैं. स्कूल में इस के बौयफ्रेंड पीयूष का मैसेज देख कर प्रिन्सिपल को बता दिया था और ट्यूशन में जो लड़का मिला था, क्या नाम था उस का…हां, मयंक, उसे तो जो फटकार लगाई थी सब के सामने बेचारा आज तक पछताता होगा,” मीताली ने बताया.

यह सुन सब शीना पर हंसने लगे. कोई कहता कि वह भरी जवानी में मम्मी के आतंक से डेटिंग का मजा मिस कर रही है तो किसी ने कहा कि उसे कालेज में तो बौयफ्रेंड बना ही लेना चाहिए. आखिर में शीना को सब ने समझाया कि मम्मी को कुछ पता नहीं चलेगा अब जो मन आए कर ले.

शीना से हट कर सब अक्षत से उस के ब्रेकअप के बारे में पूछने लगे. शीना ने भी सवाल किया, “तुम विभा के साथ क्यों थे, मेरा मतलब तुम तो काफी स्मार्ट हो, दिखने में भी उस से चार ही हो, फिर रिलेशनशिप में कैसे?”

अक्षत ने हैरानी से पूछा, “तुम शक्ल से दोस्ती करती हो या इंसान से?”

“क्या मतलब,” शीना ने कहा.

“इंसान की पहचान उस की शक्ल से कही ज्यादा होती है, तुम्हारी शायद तुम्हारी शक्ल के अलावा और कुछ न हो पर बाकी सब का यह हाल नहीं है,” अक्षत ने गंभीरता से कहा.

“अक्षत यह क्या कह रहे हो,” मीताली ने अक्षत को घूरते हुए कहा.

“मेरी क्लास है मैं जा रहा हूं,” कहता हुआ अक्षत वहां से निकल गया.

शीना के लिए यह बेज्जती अप्रत्याशित थी. उसे लगा उस ने सचमुच बेवकूफी भरी बात की है, सो उठ कर चली गई. शाम को शीना हमेशा की तरह सब से पहले घर के लिए निकल रही थी तो उसे गेट के पास अक्षत मिला. अक्षत ने उसे देखा और कहा, “वो…. मुझे इस तरह बात नहीं करनी चाहिए थी, सौरी.”

“कोई बात नहीं, मैं ने लापरवाही से कुछ भी कह दिया था, मुझे नहीं कहना चाहिए था.”

“तुम्हें सुंदरता को समझना चाहिए, चेहरे से सुंदर होना ही सबकुछ नहीं होता. मैं तुम्हें इंसल्ट नहीं कर रहा तो ओफेंड मत होना, पर जो है सो है. मैं किताबों में मस्त रहने वाला इंसान हूं खूबसूरत चेहरे के ऊपर खूबसूरत दिमाग को महत्व देता हूं, शायद तुम्हें अपने पहले वाले प्रश्न का जवाब मिल गया है. चलता हूं.”

“अक्षत, सौरी,” शीना ने कहा तो अक्षत मुस्कराते हुए वहां से चला गया.

शीना एक दिन योंही व्हाट्सऐप पर सब की प्रोफाइल पिक्चर देख रही थी कि उस की नजर अक्षत की डीपी पर गई. शांत स्वभाव का अक्षत तस्वीर में सुंदर लग रहा था. शीना की नजर उस पर ही टिक गई. अक्षत की बड़ीबड़ी आंखें, घने बाल, निचले होंठ पर तिल और हल्की मुस्कराहट शीना को अच्छी लगी थी. लेकिन, अक्षत शीना को भाव ही कहां देता था जो वह उस के बारे में सोचे.

मम्मीपापा शीना को ले कर आज भी  लड़ रहे थे. ऐसा भी तो नहीं था कि वह उन दोनों में से किसी से कुछ कह सके. वैसे भी उसे बचपन से ही इन झगड़ों को सुनने की आदत थी. उस ने फोन साइड टेबल पर रखा और सो गई.

ट्रिप का दिन नजदीक आ गया था. ट्रिप पर जाने का मतलब था 5 दिन तक घर और घर के सारे ड्रामे से दूर, किसी क्लास का कोई झंझट नहीं और न मम्मी की बातें.

ट्रिप पर जाने वाले दिन ही सुबह शोभा ने शीना को सख्त हिदायत दी थी कि वह सब से दूर रहे और सिर्फ मीताली के साथ ही घूमेफिरे. किसी लड़के के साथ ज्यादा भटकने की जरूरत नहीं है वरना उस का कालेज जाना बंद कर दिया जाएगा. शीना कभी समझ नहीं पाई कि आखिर उस की मम्मी को उस के लड़कों से दोस्ती करने पर इतनी परेशानी क्या है, आखिर इतनी मौडर्न होने के बाद भी उस का कोई बौयफ्रेंड नहीं है. शीना को समझ नहीं आता कि यह मम्मी की उस को ले कर चिंता है या क्या.

 

चिराग कहां रोशनी कहां : भाग 2

‘‘मैं भी मजबूर हूं, इहा.’’

‘‘भाड़ में जाए तुम्हारी मर्दानगी और मजबूरी,’’ बोल कर इहा ने गुस्से में फोन काट दिया.

फिर उस ने मम्मी से कहा, ‘‘मम्मी, मैं किसी तरह से मैडिकल इमरजैंसी के तहत अबौर्शन की कोशिश करती हूं.’’

उस की मम्मी ने कहा, ‘‘बेटा, हमारा समाज अबौर्शन की इजाजत नहीं देता है. यह अपराध है, मैं ऐसा नहीं करने दूंगी.’’

‘‘तब क्या करें? मु झे हैदराबाद के अस्पताल से जौब औफर भी मिला है. मु झे 6 महीने बाद नौकरी जौइन करनी है.’’

‘‘तुम उन से और 3-4 महीने की मोहलत ले लो. तुम कोवलम के निकट अपनी बड़ी मौसी के पास चली जाओगी. वे भी रिटायर्ड नर्स हैं. वे जैसा कहें करना.’’

इहा कोवलम चली गई. उस की मौसी ने भी उसे अबौर्शन की अनुमति नहीं दी. उस ने इहा की मां से बात कर उसे कोवलम में रोक लिया. उन्होंने इहा से कहा, ‘‘तुम घबराओ मत. बस, तुम्हें जौइनिंग की एक्सटैंशन मिल जाए, उस के बाद धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा.’’

2 सप्ताह बाद इहा को जौइनिंग की एक्सटैंशन मिल गई. अब 6 महीने के बजाय उसे 9 महीने बाद जौइन करना था. दरअसल, उसे 6 महीने की ट्रेनिंग लेनी थी तो अस्पताल ने उसे अगले बैच के लोगों के साथ ट्रेनिंग लेने की अनुमति दी. उस ने मौसी को जब यह खबर दी तो उन्होंने कहा, ‘‘तू बच्चे को जन्म देगी और मैं उसे पालने में तेरी पूरी मदद करूंगी.’’

‘‘और जमाना उसे नाजायज बच्चा कह कर सारी उम्र ताने मारेगा.’’

‘‘हो सकता है तेरे बच्चे को ऐसी स्थिति का सामना न करना पड़े.’’

‘‘वह कैसे संभव है?’’

‘‘वक्त के साथ सब ठीक हो जाएगा. बस, तू हिम्मत न हार. मेरे जेठ का बेटा जेम्स दुबई में नौकरी कर रहा है. एक पैथोलौजिकल लैब में अच्छी पोस्ट पर है. शादी के 6 महीने के अंदर ही उस की पत्नी की वहीं कार ऐक्सिडैंट में मौत हो गई थी. हम लोग उस के लिए एक लड़की ढूंढ़ रहे हैं?’’ मौसी बोलीं.

‘‘और वह मेरे बेटे को स्वीकार करेगा? मु झे अब मर्दों पर भरोसा नहीं है,’’ इहा ने कहा.

‘‘सभी मर्द एक से नहीं होते हैं और सुन, तू जहां तक सोचती है तेरी मौसी उस से चार कदम आगे की सोचती है. मैं ने उस से तेरी चर्चा कर रखी है. उसे तेरे बारे में सब बता भी दिया है.’’

‘‘और वह मु झे बच्चे के साथ स्वीकार करेगा? मु झे तो शक है.’’

‘‘वह हंस कर स्वीकार करेगा, इतनी अच्छी लड़की उसे कहां मिलने वाली है. वह भी तो विधुर है, उस का भी एक वीक पौइंट है.’’

इहा के प्रसव का समय नजदीक आ रहा था. इसी बीच एक बार धरम इहा की मम्मी से मिलने गया और बोला, ‘‘आंटी, इहा कैसी है और आजकल कहां है?’’

‘‘तुम ने शादी कर ली न, अब उसे भूल जाओ. उस की शादी हो गई है और वह खुश है. तुम तो बुजदिल निकले. जीवनसाथी की सही पहचान तभी होती है जब वह जीवन की अग्निपरीक्षा से गुजरता है.’’

‘‘सौरी आंटी, मैं ने कभी भी इहा को धोखा नहीं देना चाहा है. वैसे मैं ने अभी तक शादी नहीं की है. खैर, खुशी की बात है कि उस की शादी हो गई है, वह जहां रहे, खुश रहे. वैसे उस का बच्चा?’’

‘‘उसे मैडिकल इमरजैंसी हुई और अबौर्शन कराना पड़ा था.’’

‘‘ओह, सौरी. मेरे कारण उसे बहुत दुख हुआ.’’

धरम चला गया. इहा की मम्मी ने उस से दो  झूठ बोले. इहा की शादी के बारे में और अबौर्शन के बारे. उन्होंने एक तीसरा  झूठ इहा के पापा से कहा था इहा और जेम्स के बारे में. जेम्स इंडिया आया था तब दोनों में प्यार हो गया था और दोनों की सगाई भी हो गई है. इस बात के लिए उन्होंने अपनी बड़ी बहन इहा की मौसी को भी विश्वास में ले लिया था. इस बात से आश्वत हो कर दोनों से एक भूल हो गई. इसलिए उन दोनों की शादी जल्द करनी है और आजकल जेम्स भी इंडिया आया हुआ है.

इहा के पापा ने कहा, ‘‘मेरा पासपोर्ट तो कंपनी के पास जमा है और 2 महीनों से मु झे पगार नहीं मिली है. कंपनी बोल रही है कि अब तो जल्द ही मेरा कौंट्रैक्ट खत्म होने वाला है. एक ही साथ फाइनल कर देंगे. तुम लोग इहा और जेम्स की शादी करा दो. मेरा प्यार कहना.’’

इहा की मां और मौसी दोनों ने मिल कर  झूठ का सहारा तो लिया था, पर यह सिर्फ इसलिए कि इहा अपने जीवन में आए भूचाल का सामना कर सके. और इस  झूठ से किसी का बुरा भी नहीं हो रहा था.

इहा ने एक बच्चे को जन्म दिया. जेम्स भी दुबई से आया था. उस ने बेटे का नाम डैनी रखा. इहा, उस की मम्मी, मौसी और जेम्स सभी खुश थे. 2 महीने बाद इहा के पापा भी कुवैत से लौट आए. पूरा परिवार जश्न मना रहा था.

इहा की ट्रेनिंग शुरू होने वाली थी. अब उस के सामने समस्या थी डैनी की परवरिश की. डैनी इतना छोटा था कि उसे मां की जरूरत थी. उसी समय इहा को खबर मिली कि ट्रेनिंग के लिए उसे त्रिवेंद्रम के ही एक अस्पताल में रिपोर्ट करना है. इस खबर से सभी को राहत मिली. कोवलम त्रिवेंद्रम के निकट ही है, इहा को कोई परेशानी नहीं होगी और उस की ट्रेनिंग खत्म होतेहोते डैनी भी कुछ बड़ा हो जाएगा. फिर तो मौसी और मां मिल कर उस की देखभाल कर लेंगी.

इधर धरम को चेन्नई में दवा बनाने वाली कंपनी में नौकरी मिली. उस की मां ठीक हो चली थी, अब वे वौकर के सहारे आराम से चल लेती थीं. डाक्टर ने कहा कि अपनी थेरैपी जारी रखें तो एक महीने के अंदर ही वे स्वयं अपने पैरों पर चल सकेंगी. जब से धरम इहा के घर से लौटा था उस की मां उसे जल्द ही शादी करने पर जोर दे रही थीं. उन्होंने एक लड़की भी देख रखी थी. लड़की सुंदर भी थी और अपनी बिरादरी की थी. उन्हें तो इहा की शादी के बारे में सुन कर बहुत संतोष हुआ क्योंकि धरम उस के लिए उदास रहने लगा था. एक दिन वे बोलीं, ‘‘बेटे, अब तो उस लड़की की शादी भी हो गई है, वह अपने परिवार में खुश है. अब तुम्हें उस को ले कर चिंतित होने की कोई जरूरत नहीं है और अब अपनी गृहस्थी बसाने की सोच. मु झे भी तो दादी बनने का शौक है. आखिर शादी तो करनी है तु झे एक न एक दिन.’’

कुछ माह बाद धरम की शादी अपनी जाति की एक लड़की सुधा से हुई. वह अपनी पत्नी और मां के साथ चेन्नई में रहने लगा था. सुधा उस समय एमए कर रही थी. दोनों ने मिल कर फैसला लिया कि जब तक सुधा की पढ़ाई समाप्त नहीं होती वह मां नहीं बनेगी. 2 साल के बाद सुधा ने एमए किया. फिर उस ने बीएड करना चाहा तो धरम ने कोई एतराज नहीं किया. पर उस की मां बोलीं, ‘‘जिंदगीभर पढ़ती ही रहेगी तो मैं दादी कब बनूंगी?’’

‘‘मां, घबराओ नहीं, उस के लिए अभी बहुत समय है.’’

सुधा बीएड करने के बाद एक स्कूल में टीचर बनी. कुछ समय बाद जब दोनों बच्चे के लिए तैयार हुए तो सुधा का लगातार 2 बार मिसकैरिज हुआ और वह मां न बन सकी. इस बीच 2 साल और बीत गए.

एक दिन सुधा और धरम दोनों डाक्टर से मिलने गए तो डाक्टर ने कहा, ‘‘आप दोनों के कुछ टैस्ट करने होंगे.’’

‘‘मेरे टैस्ट की कोई जरूरत नहीं है. सुधा के लिए जो भी टैस्ट्स जरूरी हों, आप करा लें,’’ धरम ने कहा.

‘‘खराबी दोनों में से किसी को भी हो सकती है या फिर दोनों को भी. आप इतने विश्वास के साथ कैसे कह सकते हैं?’’ डाक्टर बोला.

‘‘आप पहले सुधा के सभी टैस्ट्स कर लें. बाद में जरूरी हुआ तो मैं भी करा लूंगा.’’

सुधा ने कहा, ‘‘एक साथ दोनों के टैस्ट्स हो जाएं तो बेहतर है. कहीं आप के टैस्ट्स की जरूरत हुई और तब बेवजह हम समय बरबाद कर देंगे.’’

‘‘मैं ने कहा न. जरूरत पड़ने पर मैं बाद में करा लूंगा.’’

आगे पढ़ें- सुधा को धरम की यह दलील अच्छी नहीं…

Mother’s Day 2024- अधूरी मां- भाग 1: क्या खुश थी संविधा

संविधा की जिद के आगे सात्विक ने हार जरूर मान ली थी, लेकिन उम्मीद नहीं छोड़ी थी. उसे पूरा विश्वास था कि संविधा की मां यानी उस की सास संविधा को समझाएंगी तो वह जरूर मान जाएगी.

यही उम्मीद लगा कर उस ने सारी बात अपनी सास रमा देवी को बता दी थी. इस के बाद रविवार को जब संविधा मां से मिलने आई तो रमा देवी ने उसे पास बैठा कर सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘संविधा बेटा, यह मैं क्या सुन रही हूं?’’

‘‘आप ने क्या सुना मम्मी?’’ संविधा ने हैरानी से पूछा.

‘‘यही कि तू गर्भपात कराना चाहती है.’’

‘‘मम्मी, आप को कैसे पता चला कि मैं गर्भवती हूं और गर्भपात कराना चाहती हूं? लगता है यह बात आप को सात्विक ने बताई है. उन के पेट में भी कोई बात नहीं पचती.’’

‘‘बेटा सात्विक ने बता कर कुछ गलत तो नहीं किया. वह जो कह रहा है, ठीक ही कह रहा है. बेटा, मां बनना औरत के लिए बड़े गर्व की बात होती है. तुम्हारे लिए तो यह गर्व की बात है कि तुम्हें यह मौका मिल रहा है और तुम हो कि गर्भ नष्ट कराने की बात कर रही हो.’’

‘‘मम्मी, जीवन में बच्चा पैदा करना ही गर्व की बात नहीं होती है. अभी तो मुझे बहुत कुछ करना है. हमारा नयानया कारोबार है. इसे जमाना ही नहीं, बल्कि और आगे बढ़ाना है. बच्चा पैदा करने से पहले उस के भविष्य के लिए बहुत कुछ करना है. बच्चा तो बाद में भी हो जाएगा. अभी बच्चा होता है तो उस की वजह से कम से कम 2 साल मुझे घर में रहना होगा. मैं औफिस नहीं जा पाऊंगी. आप को पता नहीं, मैं कितना काम करती हूं. मेरा काम कौन करेगा? मैं अभी रुकना नहीं चाहती.’’

‘‘धीरज रखो बेटा. तुम्हारा कारोबार चल निकला है. जो कमाई हो रही है, वह कम नहीं  है. बच्चे के जन्म के बाद तुम औफिस नहीं जाओगी तो काम रुकने वाला नहीं है. सात्विक है, मैनेजर है, बाकी का स्टाफ काम देख लेगा. यह तुम्हारे मन का भ्रम है कि तुम्हारी वजह से काम का नुकसान होगा. बच्चा थोड़ा बड़ा हो जाएगा तो तुम उसे मेरे पास छोड़ कर औफिस जा सकती हो, इसलिए बच्चा होने दो. गर्भपात कराने की जरूरत नहीं है. तुम्हारे सासससुर होते तो मुझे ये सब कहने की जरूरत न पड़ती. वे तुम्हें ऐसा न करने देते.’’

‘‘लेकिन मम्मी…’’

‘‘देखो बेटा, यह तुम्हारी संतान है. तुम बड़ी और समझदार हो. तुम्हारे पापा के गुजर जाने के बाद मैं ने तुम भाईबहन को कभी किसी काम के लिए रोकाटोका नहीं, अपनी इच्छा तुम पर नहीं थोपी, तुम दोनों को अपने हिसाब से जीने की स्वतंत्रता दी.’’

‘‘मम्मी, हम ने उस का दुरुपयोग भी तो नहीं किया.’’

‘‘हां, दुरुपयोग तो नहीं किया, लेकिन अगर तुम लोग कोई गलत काम करते हो तो उस के बारे में समझाना मेरा फर्ज बनता है न? बाकी अंतिम निर्णय तो तुम लोगों को ही करना है. अब अपने भैयाभाभी को ही देख लो, एक बच्चे के लिए तरस रहे हैं. कितना परेशान हैं दोनों. अनाथाश्रम से बच्चा गोद लेना चाहते हैं, पर राजन की सास इस के लिए राजी नहीं हैं. वैसे तो वे राजन को बहुत मानती हैं, उस की हर बात का सम्मान करती हैं, लेकिन जब भी अनाथाश्रम से बच्चा गोद लेने की बात चलती है, सुधाजी साफ मना कर देती हैं. मां के कहने पर ऋता ने 2 बार टैस्टट्यूब बेबी के लिए भी कोशिश की, लेकिन सब बेकार गया. पैसा है, इसलिए वह कुछ भी कर सकती है. तुम्हें तो बिना कुछ किए मां बनने का मौका मिल रहा है, फिर भी तुम यह मौका गंवा रही हो.’’

‘‘मम्मी, तुम कुछ भी कहो, अभी मुझे बच्चा नहीं चाहिए. यह सात्विक के पेट में कोई बात पचती नहीं. मैं ने मना किया था, फिर भी उन्होंने यह बात आप को बता ही दी. उन से यह बात बताने के बजाय चुपचाप गर्भपात करा लिया होता तो ये सब न होता,’’ कह संविधा रसोई की ओर बढ़ गई.

करीब 10 साल पहले रमादेवी के पति अवधेश की अचानक मौत हो गई. वे सरकारी नौकरी में थे, इसलिए बच्चों को पालने में रमादेवी को कोई परेशानी नहीं हुई. उन्हें 1 बेटा था और

1 बेटी. बेटा राजन उस समय 12 साल का था तो बेटी संविधा 2 साल की. बच्चों की ठीक से देखभाल हो सके, इसीलिए रमादेवी ने पति के स्थान पर मिलने वाली नौकरी ठुकरा दी थी.

पैंशन से ही उन्होंने बच्चों को पढ़ालिखा कर लायक बनाया. बच्चे समझदार हुए तो अपने निर्णय खुद ही लेने लगे. रमा देवी ने कभी रोकाटोका नहीं. इसलिए बच्चों को अपने निर्णय खुद लेने की आदत सी पड़ गई. हां, रमादेवी इतना जरूर करती थीं कि वे हर काम का अच्छा और बुरा यानी दोनों पहलू बता कर निर्णय उन पर छोड़ देती थीं.

बेटा राजन बचपन से ही सीधा, सरल और संतोषी स्वभाव का था, जबकि संविधा

महत्त्वाकांक्षी और जिद्दी स्वभाव की थी. ऐसी लाडली होने की वजह से हो गई थी. लेकिन पढ़ाई में दोनों बहुत होशियार थे. शायद इसीलिए मां और भाई संविधा की जिद को चला रहे थे. पढ़ाई के दौरान ही राजन को ऋता से प्यार हो गया तो रमा देवी ने ऋता से उस की शादी कर दी.

ऋता ने अपनी ओर से राजन के सामने प्रेम का प्रस्ताव रखा था. शायद राजन का स्वभाव उसे पसंद आ गया था. ऋता के पिता बहुत बड़े कारोबारी थे. नोएडा में उन की 3 फैक्टरियां थीं. वह मांबाप की इकलौती संतान थी. उसे किसी चीज की कमी तो थी नहीं. बस, एक अच्छे जीवनसाथी की जरूरत थी.

राजन उस की जातिबिरादरी का पढ़ालिखा संस्कारी लड़का था. इसलिए घर वालों ने भी ऐतराज नहीं किया और ऋता की शादी राजन से कर दी. शादी के बाद राजन ससुराल में रहने लगा. लेकिन औफिस जाते और घर लौटते समय वह मां से मिलने जरूर जाता था. हर रविवार को ऋता भी राजन के साथ सास से मिलने आती थी. इस तरह रमा देवी बेटे की ओर से निश्चिंत हो गई थीं.

भाई की तरह संविधा ने भी सात्विक से प्रेमविवाह किया. सात्विक पहले नौकरी करता था. उसे 6 अंकों में वेतन मिलता था. उसे भी किसी चीज की कमी नहीं थी. थ्री बैडरूम का फ्लैट था, गाड़ी थी. पिता काफी पैसा और प्रौपर्टी छोड़ गए थे. वे सरकारी अफसर थे. कुछ समय पहले ही उन की मौत हुई थी. उन की मौत के 6 महीने बाद ही सात्विक की मां की भी मौत हो गई थी. उस के बाद संविधा और सात्विक ही रह गए थे. सात्विक का कोई भाईबहन नहीं था.

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