गलतफहमियां जब रिश्तों में जगह बनाने लगें

राधा और अनुज की शादी को 2 वर्ष हो चुके हैं. राधा को अपनी नौकरी की वजह से अकसर बाहर जाना पड़ता है. वीकैंड पर जब वह घर पर होती है, तो कुछ वक्त अकेले, पढ़ते हुए या आराम करते हुए गुजारना चाहती है या फिर घर के छोटेमोटे काम करते हुए समय बीत जाता है.

अनुज जो हफ्ते में 5 दिन उसे मिस करता है, चाहता है कि वह उन 2 दिनों में अधिकतम समय उस के साथ बिताए, दोनों साथ आउटिंग पर जाएं, मगर राधा जो ट्रैवलिंग करतेकरते थक गई होती है, बाहर जाने के नाम से ही भड़क उठती है. यहां तक कि फिल्म देखने या रेस्तरां में खाना खाने जाना भी उसे नागवार गुजरता है.

अनुज को राधा का यह व्यवहार धीरेधीरे चुभने लगा. उसे लगने लगा कि राधा उसे अवौइड कर रही है. वह शायद उस का साथ पसंद नहीं करती है जबकि राधा महसूस करने लगी थी कि अनुज को न तो उस की परवाह है और न ही उस की इच्छाओं की. वह बस अपनी नीड्स को उस पर थोपना चाहता है. इस तरह अपनीअपनी तरह से साथी के बारे में अनुमान लगाने से दोनों के बीच गलतफहमी की दीवार खड़ी होती गई.

अनेक विवाह छोटीछोटी गलतफहमियों को न सुलझाए जाने के कारण टूट जाते हैं. छोटी सी गलतफहमी को बड़ा रूप लेते देर नहीं लगती, इसलिए उसे नजरअंदाज न करें. गलतफहमी जहाज में हुए एक छोटे से छेद की तरह होती है. अगर उसे भरा न जाए तो रिश्ते के डूबने में देर नहीं लगती.

भावनाओं को समझ न पाना

गलतफहमी किसी कांटे की तरह होती है और जब वह आप के रिश्ते में चुभन पैदा करने लगती है तो कभी फूल लगने वाला रिश्ता आप को खरोंचें देने लगता है. जो युगल कभी एकदूसरे पर जान छिड़कता था, एकदूसरे की बांहों में जिसे सुकून मिलता था और जो साथी की खुशी के लिए कुछ भी करने को तैयार रहता था, उसे जब गलतफहमी का नाग डसता है तो रिश्ते की मधुरता और प्यार को नफरत में बदलते देर नहीं लगती. फिर राहें अलगअलग चुनने के सिवा उन के पास कोई विकल्प नहीं बचता.

आमतौर पर गलतफहमी का अर्थ होता है ऐसी स्थिति जब कोई व्यक्ति दूसरे की बात या भावनाओं को समझने में असमर्थ होता है और जब गलतफहमियां बढ़ने लगती हैं, तो वे झगड़े का आकार ले लेती हैं, जिस का अंत कभीकभी बहुत भयावह होता है.

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रिलेशनशिप ऐक्सपर्ट अंजना गौड़ के अनुसार, ‘‘साथी को मेरी परवाह नहीं है या वह सिर्फ अपने बारे में सोचता है, इस तरह की गलतफहमी होना युगल के बीच एक आम बात है. अपने पार्टनर की प्राथमिकताओं और सोच को गलत समझना बहुत आसान है, विशेषकर जब बहुत जल्दी वे नाराज या उदास हो जाते हों और कम्यूनिकेट करने के बारे में केवल सोचते ही रह जाते हों.

‘‘असली दिक्कत यह है कि अपनी तरह से साथी की बात का मतलब निकालना या अपनी बात कहने में ईगो का आड़े आना, धीरेधीरे फूलताफलता रहता है और फिर इतना बड़ा हो जाता है कि गलतफहमी झगड़े का रूप ले लेती है.’’

वजहें क्या हैं

स्वार्थी होना: पतिपत्नी के रिश्ते को मजबूत बनाने और एकदूसरे पर विश्वास करने के लिए जरूरी होता है कि वे एकदूसरे से कुछ न छिपाएं और हर तरह से एकदूसरे की मदद करें. जब आप के साथी को आप की जरूरत हो तो आप वहां मौजूद हों. गलतफहमी तब बीच में आ खड़ी होती है जब आप सैल्फ सैंटर्ड होते हैं. केवल अपने बारे में सोचते हैं. जाहिर है, तब आप का साथी कैसे आप पर विश्वास करेगा कि जरूरत के समय आप उस का साथ देंगे या उस की भावनाओं का मान रखेंगे.

मेरी परवाह नहीं: पति या पत्नी किसी को भी ऐसा महसूस हो सकता है कि उस के साथी को न तो उस की परवाह है और न ही वह उसे प्यार करता है. वास्तविकता तो यह है कि विवाह लविंग और केयरिंग के आधार पर टिका होता है. जब साथी के अंदर इग्नोर किए जाने या गैरजरूरी होने की फीलिंग आने लगती है तो गलतफहमियों की ऊंचीऊंची दीवारें खड़ी होने लगती हैं.

जिम्मेदारियों को निभाने में त्रुटि होना: जब साथी अपनी जिम्मेदारियों को निभाने या उठाने से कतराता है, तो गलतफहमी पैदा होने लगती है. ऐसे में तब मन में सवाल उठने स्वाभाविक होते हैं कि क्या वह मुझे प्यार नहीं करता? क्या उसे मेरा खयाल नहीं है? क्या वह मजबूरन मेरे साथ रह रहा है? गलतफहमी बीच में न आए इस के लिए युगल को अपनीअपनी जिम्मेदारियां खुशीखुशी उठानी चाहिए.

वैवाहिक सलाहकार मानते हैं कि रिश्ता जिंदगी भर कायम रहे, इस के लिए 3 मुख्य जिम्मेदारियां अवश्य निभाएं-अपने साथी से प्यार करना, अपने पार्टनर पर गर्व करना और अपने रिश्ते को बचाना.

काम और कमिटमैंट: आजकल जब औरतों का कार्यक्षेत्र घर तक न रह कर विस्तृत हो गया है और वे हाउसवाइफ की परिधि से निकल आई हैं, तो ऐसे में पति के लिए आवश्यक है कि वह उस के काम और कमिटमैंट को समझे और कद्र करे. बदली हुई परिस्थितियों में पत्नी को पूरा सहयोग दे. रिश्ते में आए इस बदलाव को हैंडल करना पति के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है, क्योंकि यह बात आज के समय में गलतफहमी की सब से बड़ी वजह बनती जा रही है. इस के लिए दोनों को ही एकदूसरे के काम की कमिटमैंट के बारे में डिस्कस कर उस के अनुसार खुद को ढालना होगा.

धोखा: यह सब से आम वजह है. यह तब पैदा होती है जब एक साथी यह मानने लगता है कि उस के साथी का किसी और से संबंध है. ऐसा वह बिना किसी ठोस आधार के भी मान लेता है. हो सकता है कि यह सच भी हो, लेकिन अगर इसे ठीक से संभाला न जाए तो निश्चित तौर पर यह विवाह के टूटने का कारण बन सकता है. अत: आप को जब भी महसूस हो कि आप का साथी किसी उलझन में है और आप को शक भरी नजरों से देख रहा है तो तुरंत सतर्क हो जाएं.

दूसरों का हस्तक्षेप: जब दूसरे लोग चाहे वे आप के ही परिवार के सदस्य हों या मित्र अथवा रिश्तेदार आप की जिंदगी में हस्तक्षेप करने लगते हैं तो गलतफहमियां खड़ी हो जाती हैं. ऐसे लोगों को युगल के बीत झगड़ा करा कर संतोष मिलता है और उन का मतलब पूरा होता है. यह तो सर्वविदित है कि आपसी फूट का फायदा तीसरा व्यक्ति उठाता है. पतिपत्नी का रिश्ता चाहे कितना ही मधुर क्यों न हो, उस में कितना ही प्यार क्यों न हो, पर असहमति या झगड़े तो फिर भी होते हैं और यह अस्वाभाविक भी नहीं है. जब ऐसा हो तो किसी तीसरे को बीच में डालने के बजाय स्वयं उन मुद्दों को सुलझाएं जो आप को परेशान कर रहे हों.

सैक्स को प्राथमिकता दें: सैक्स संबंध शादीशुदा जिंदगी में गलतफहमी की सब से अहम वजह है. पतिपत्नी दोनों ही चाहते हैं कि सैक्स संबंधों को ऐंजौय करें. जब आप दूरियां बनाने लगते हैं, तो शक और गलतफहमी दोनों ही रिश्ते को खोखला करने लगती हैं. आप का साथी आप से खुश नहीं है या आप से दूर रहना पसंद करता है, तो यह रिश्ते में आई सब से बड़ी गलतफहमी बन सकती है.

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शादी करें, न करें, कब करें

युवामन शादी शब्द से मचल उठता है. कहते हैं न, जो शादी करे वह पछताए, जो न करे वह भी पछताए. तकरीबन हरेक सोचता है कि जब पछताना ही है तो क्यों न कर के ही पछताए. ऐसे में कोई शादी करे, तो कब करे, किस उम्र में करे, या कि करे ही न.

शादी करना, न करना, हर किसी का निजी फैसला हो सकता है. भारत में यों तो 18 साल की लड़की और 21 साल के लड़के को कानूनीतौर पर शादी करने का हक है, लेकिन आजकल हर कोई शादी से पहले अपनी जिंदगी को सैटल करना चाहता है. बाल विवाह रोकथाम क़ानून 2006 के तहत, इस से कम उम्र में शादी करना ग़ैरक़ानूनी है, जिस के लिए 2 साल की सज़ा और एक लाख रुपए का जुर्माना हो सकता है. हालांकि, आज की गलाकाट प्रतियोगिता को देखते हुए इस उम्र में शादी करना टेढ़ी खीर दिखता है.

वहीँ, यह बता दें कि सरकार लड़कियों के लिए उम्र की इस सीमा को बढ़ाने पर विचार कर रही है. सांसद जया जेटली की अध्यक्षता में 10 सदस्यों के टास्क फ़ोर्स का गठन किया गया है, जो इस पर अपने सुझाव जल्द ही नीति आयोग को देगी. यह भी जान लें कि दुनिया के ज़्यादातर देशों में लड़के और लड़कियों के लिए शादी की न्यूनतम उम्र 18 साल है.

कैरियर या शादी :

हरेक के सामने शादी करने का सवाल कभी न कभी आता ही है. आजकल की भागती जिंदगी और कैरियर की आपाधापी में यह सवाल और भी अहम हो गया है कि शादी करने की उम्र क्या हो.

शादी करने की सरकारी और कानूनी उम्र के इतर हमारे देश में आमतौर पर 20 से 25 साल की उम्र को शादी करने के लिए सही समझा जाता है. बदलती सोच के मद्देनजर कुछ लोग 25 से 30 साल की उम्र को सही उम्र बताने लगे हैं. वहीँ, 27 साल के बृजेश का कहना है कि अब पैमाना कुछ और हो गया है. वे कहते हैं कि लोग सोचते हैं कि 32 से 35 साल के बीच शादी कर लेंगे. दरअसल, 20 से 30 साल की उम्र में तो इंसान अपने कैरियर को सैट करने में ही लगा रहता है, तब शादी के लिए सोच पाना उस के लिए मुश्किल होता है.

सोचने का तरीका सब का अलग होता है. एक प्राइवेट फर्म में जौब करने वाले सिबेस्टीन का कहना है कि कैरियर की महत्त्वाकांक्षा खत्म नहीं होती. ऐसे में शादी के लिए सही उम्र वही है, जब इंसान मानसिकरूप से उस के लिए तैयार हो. वे कहते हैं, “समाज ने या फिर आप के पेरैंट्स ने शादी के लिए क्या उम्र तय कर रखी है, इस से कोई मतलब नहीं. बात यह है कि जब तक कोई मानसिकरूप से इस के लिए तैयार न हो, शादी नहीं करनी चाहिए.”

अपनी सोच के मुताबिक बिन्देश्वर कुमार, जो एक कालेज में लैक्चरर हैं, ने 34 साल की उम्र में शादी की. अब उन की एक बेटी है और खुशहाल छोटा सा परिवार है लेकिन वे मानते हैं कि देर से शादी करने में कभीकभी वह नहीं मिल पाता जो शायद आप ने सोचा होता है. वे कहते हैं, “कई बार अच्छे विकल्प मिल जाते हैं, तो कई बार ठीकठाक विकल्प भी मिलना मुश्किल हो जाता है. मेरे कई दोस्त हैं, महिला भी और पुरुष भी, जिन्हें अब सही मैच नहीं मिल पा रहा है.

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ज़रूरत नए नज़रिए की :

नई पीढ़ी कुछ भी सोचे, लेकिन भारत इस मामले में थोड़ा अलग है. यहां वक्त से शादी न हो, तो लोग बातें बनाने लग जाते हैं. ऐसे में मातापिता कितनी भी नई सोच के और व्यावहारिक हों, उन्हें आखिरकार रहना तो समाज में ही है. मुंबई में एक मल्टीनैशनल कंपनी में मैनेजर के पद पर काम कर रहे अनीस अहमद कहते हैं, “जब भी औफिस से घर जाते हैं तो लगता है कि कहीं आज फिर शादी को ले कर नई टैंशन न खड़ी हो. इस से घर के सुकून में खलल पड़ता है. साथ ही, मातपिता की सेहत पर असर भी पड़ता है. उन्हें चिंता रहती है कि बच्चों की शादी नहीं हो रही है. गाहेबगाहे उन्हें लोगों की बातें सुनने को मिलती हैं.”  इस तरह शादी लायक उम्र होने के बाद इंसान पर शादी के लिए भावनात्मक रूप से भी काफी दबाव होता है.

औप्शन शादी का : 

देर से शादी करने में आगे कई दिक्कतें आ सकती हैं, खासकर, परिवार बढ़ाने के सिलसिले में कुछ परेशानियां आ सकती हैं. हालांकि, मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि मैडिकल साइंस के विकास के साथ अब ऐसी आशंकाएं बहुत कम हो गई हैं. वैसे, शादी की बहस के बीच आजकल एक और चलन परवान चढ़ रहा है, वह है ‘लिवइन रिलेशनशिप’ का. यानी, शादी से पहले साथसाथ रहना. बृजेश जैसे जवानों का इस चलन में चाहे ज्यादा विश्वास न हो, लेकिन यह उसी माहौल में हो रहा है जिस का वे भी हिस्सा हैं.

बृजेश कहते हैं, “शहरों में ऐसे युवाओं की संख्या बढ़ रही है जिन्हें लिवइन रिलेशनशिप का चलन पसंद आ रहा है. न सिर्फ यह ट्रैंडी है, बल्कि शादी जैसी बाध्यता भी इस में नहीं है. लेकिन, भारतीय समाज में इस की स्वीकार्यता एक बड़ा मुद्दा है.” लिवइन रिलेशन, दरअसल, शादी का एक प्रारूप जैसा है जिस में शादी सा बंधन नहीं बल्कि गठबंधन होता है जिसे कोई पार्टनर जब चाहे तोड़ दे.

एज औफ़ कन्सेंट :

अचानक से किसी के साथ शारीरिक संबंध बन जाने को कैजुअल सैक्स कहा जाता है. ज़ाहिर है इस में दोनों पार्टनरों की सहमति और पसंद होती है. भारत में ‘एज औफ़ कन्सेंट’, यानी यौन संबंध बनाने के लिए सहमति, की उम्र 18 साल है. शादी से पहले यौन संबंध क़ानूनी तो है, लेकिन समाज ने इसे अभी अपनाया नहीं है.

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बहरहाल, शादी की सही उम्र को ले कर जो बात उभर कर सामने आती है, वह यह है कि कैरियर और निजी जिंदगी में एक बैलेंस होना बेहद जरूरी है. हर इंसान अपनी हालत के मुताबिक तय कर सकता है कि उसे शादी करनी है तो करनी कब चाहिए या फिर लिवइन रिलेशन में रहना चाहिए जिस से कोई पार्टनर जब चाहे आज़ाद हो जाए.

कैसे बचाएं गृहस्थी को

लेखिका– सपना मांगलिक

कोई रिश्ता परफैक्ट नहीं होता. दोस्तों की बात अलग है, क्योंकि वे एकसाथ, एक घर में, एक कमरे में, एक माहौल में पारिवारिक जिम्मेदारियों का निर्वाह नहीं करते. मगर पतिपत्नी ऐसा करते हैं और यह मानवीय स्वभाव है कि हम एकजैसी एकरस चीजों और लोगों से जल्दी ऊब जाते हैं. पर परिवार पतिपत्नी की परिपूर्णता के कारण ही बनता है. बच्चों का विकास परिवार में ही संभव है. पतिपत्नी को चाहिए कि दोनों एकदूसरे को समझें, एकदूसरे को परिपूर्ण बनाएं भले ही वे शारीरिक व मानसिक नजरिए से कभी एकदूसरे के समान नहीं हो सकते. स्त्रीपुरुष एकदूसरे को समझ सकते हैं और वे एकदूसरे के पूरक हो सकते हैं, परंतु कभी एकदूसरे जैसे नहीं हो सकते और यह उस अंतर के कारण है, जो उन के प्राकृतिक वजूद में है.

वे दोनों स्वतंत्र व स्वाधीन इनसान हैं और अब वे बड़े हो गए हैं और अब वे पति या पत्नी के रूप में अपनी भूमिका का निर्वाह करते हैं. परिवार बनाने के बाद लड़के और लड़की को शारीरिक व मानसिक शांति मिलती है जिस की छाया में वे आत्मिक एवं आर्थिक उन्नति के लिए अधिक प्रयास कर सकते हैं. इस के लिए परिवार का सफल होना आवश्यक है. जब इनसान संयुक्त रूप से जीवन बिताना आरंभ कर देता है, तो वह अधिक जिम्मेदारी का आभास करता है. वह अपने जीवन को अर्थ व लक्ष्यपूर्ण समझता है. अनैतिक कार्यों से दूर रहने के लिए परिवार आवश्यक है. समाज की सुरक्षा के लिए परिवार आवश्यक है.

पारिवारिक विघटन के कारण

पति और पत्नी की दिनचर्या सालोंसाल एकजैसी रहती है. अत: अहम, झूठा दिखावा, नएपन की तलाश, आर्थिक संपन्नता की ललक जबजब रिश्तों में आने लगती है तो दिलों में दूरियां और ऊब आना स्वाभाविक है. इस बात में कोई संदेह नहीं है कि ज्यादातर परिवारों में जो झगड़े होते हैं, पतिपत्नी के बीच जो तनाव रहता है, बातबात पर दोनों जब एकदूसरे से लड़ते हैं उस का कारण एकदूसरे की शारीरिक, भावनात्मक और मानसिक आवश्यकताओं का पूरा न होना है. दूसरे शब्दों में कहें तो भावनात्मक कमी इन समस्याओं के मूल में है. इस से डरने और परेशान होने की कतई जरूरत नहीं है. जीवन की इस सचाई का सामना करते हुए जीवनशैली, विचार समयसमय पर परिवर्तित कर घर के माहौल को नया एवं हलकाफुलका खुशनुमा बनाया जा सकता है.

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कैसे खिलाएं रखें अपने वैवाहिक जीवन का पुष्प

बिना किसी शर्त के प्यार करना: कहते हैं प्यार में कोई शर्त नहीं होती. इस का मतलब है, जो जैसा है, उसे उसी रूप में प्यार करें. लेकिन यही बात समय बीतने के साथ उसी रिश्ते में दरार का कारण बनती है. प्यार, देखभाल, विश्वास और सम्मान रिश्ते की जरूरत है. कुछ रिश्तों में समय भी देना पड़ता है. किसी के बारे में कोई राय बनाने से पहले खुद को भी तोल लें. कई बार आप अपनी जरूरत के हिसाब से भी रिश्ते बनाती हैं. नाजुक रिश्ते तभी मजबूत बनते हैं जब आप दिल से उन्हें अपनाएंगी और उन्हें खुद को अपनाने देंगी. खुल कर विचारों का आदानप्रदान न करना: किसी भी रिश्ते में विचारों का आदानप्रदान व दूसरे के विचारों को सम्मान देना बेहद जरूरी होता है. जिन रिश्तों में संवाद की कमी होती है, उन में अकसर मतभेद मनभेद में बदल जाते हैं. परिणामस्वरूप रिश्ता धीरेधीरे टूटने के कगार पर पहुंच जाता है.

दूसरे को सम्मान न देना: कुछ महिलाओं और पुरुषों की यह सोच होती है कि यदि कोई हम से प्यार करता है या हमारा जीवनसाथी है तो उसे हमारी हर बात माननी ही होगी. ऐसे लोग सारे निर्णय स्वयं लेना चाहते हैं. वे अपने साथी की बात या विचार को सम्मान नहीं देते हैं. इस स्थिति को भले ही कुछ समय के लिए नजरअंदाज कर दिया जाए, पर ऐसे रिश्ते ताउम्र नहीं टिक पाते. कुछ समय बाद बिखर जाते हैं.

दूसरे पर यकीन करें: मां के घर में भी आप ने अपने बहनभाई, दादादादी और दूसरे रिश्तेदारों के साथ तालमेल बनाया ही होगा. बहनों की भी आपस में लड़ाई होती है और मनमुटाव भी. ऐसा ही मनमुटाव अगर सास या ननद से हो जाए, तो आप दिल पर क्यों ले लेती हैं? आप अपने किसी भी रिश्ते की तुलना एकदूसरे से न करें. सभी रिश्तों पर यकीन करें. आप का यकीन आप को धोखा नहीं देगा. रिश्तों की मजबूती के लिए वक्त चाहिए. आप अगर अपनेआप को नहीं खोलेंगी, तो रिश्ते कभी आप के दिल को नहीं छू पाएंगे.

व्यवहार से जुड़ी परेशानी: कोई भी इनसान ऐसे व्यक्ति के साथ वक्त बिताना पसंद नहीं करता, जो जरूरत से ज्यादा गुस्से वाला हो या अत्यधिक शांत रहने वाला. ऐसे रिश्ते में विचारों, खुशियों व दुखों का आदानप्रदान नहीं हो पाता. परिणामस्वरूप साथी कुंठित महसूस करने लगता है. यह कुंठा कुछ समय बाद असहनीय हो जाती है और रिश्ता टूटने का कारण बन जाती है. खुशनुमा रिश्ते के लिए अपने साथी के साथ अपनी भावनाएं, अपने अनुभव, अपनी सोच जरूर साझा करें.

एकतरफा प्यार करना: जब एक रिश्ते में सोचविचार, आकांक्षा, मूल्यों तथा रहनसहन में कोई तालमेल नहीं होता तो देरसबेर परेशानी आनी तय है. आप को कुछ समय बाद पता चल जाएगा कि आप इस रिश्ते को जितना प्यार दे रही हैं, क्या आप को उतना मिल रहा है? अपनी बात स्पष्ट रूप से रखना भी सीखें. अपनी किसी सहेली या घर वालों की राय लेने से पहले यह भी देख लें कि कहीं आप रिश्ते बनाने या तोड़ने में जल्दबाजी तो नहीं कर रहीं?

रिश्ते में उदासीनता आना: अकसर शादी के कुछ सालों बाद हर रिश्ते में उदासीनता आने लगती है. पैसा, घर और गाड़ी पाने की दौड़ में आप रिश्तों की गरमाहट को भूलने लगती हैं. रिश्तों में एक किस्म की प्रतिद्वंद्विता घर करने लगती है. यह वक्त है रिश्तों की ओवरहौलिंग का. उम्र के इस दौर में आप को भी अपनों का साथ चाहिए. देर नहीं हुई है. आप एक मैसेज कीजिए, फोन घुमाइए और इन सब को इकट्ठा कीजिए. पहले की तरह मनपसंद खाना और गप्पबाजी के साथ अपनेआप को तरोताजा कीजिए. ये वे लोग हैं, जो आप के साथ चलते आए हैं और हमेशा चलेंगे.

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इनसानियत को बाकी रखने के लिए भी परिवार आवश्यक है. अगर संसार का कोई भी इनसान पारिवारिक जीवन का निर्वाह न करे और उस के पास कोई संतान भी न हो तो कुछ वर्षों के बाद पूरी जमीन से इनसान यानी मानव समाज ही समाप्त हो जाएगा. ज्यादातर इनसान यह चाहते हैं कि उन का वंश चले, उन की संतानें हों. अलबत्ता इस बारे में महिलाएं पुरुषों से अधिक इस बात को पसंद करती हैं कि उन का कोई बच्चा हो और उन के अंदर मां बनने की जो भावना है वही उस का मूल कारण है. मातापिता और बच्चों के बीच जो प्रेमपूर्ण संबंध होते हैं वे इनसान के मन को शांति प्रदान करते हैं और यह शांति इनसान को तभी प्राप्त होती है जब वह पारिवारिक जीवन का निर्वाह करता है.

 

कैसे निभाएं जब पत्नी ज्यादा कमाए

पत्नी कमाऊ और पति बेरोजगार ऐसे उदाहरण पहले बहुत कम मिलते थे, मगर पिछले 10-12 सालों में ऐसे उदाहरणों की संख्या बढ़ती जा रही है. ऐसे में आपसी तालमेल बैठाना मुश्किल होता जा रहा है. इसलिए जरूरत इस बात की है कि अब कमाऊ बहू को मानसम्मान और अधिकार देने के साथसाथ उस के साथ तालमेल बैठाने की भी शुरुआत की जाए. पति को भी पत्नी से तालमेल बैठा कर चलना चाहिए तभी गृहस्थी की गाड़ी चल सकेगी. मेरठ की रहने वाली नेहा की शादी उस के ही सहपाठी प्रदीप से हुई. शादी के समय से ही दोनों एकसाथ जौब के लिए कई कंपीटिशनों में एकसाथ बैठ रहे थे. मगर प्रदीप किसी भी कंपीटिशन में कामयाब नहीं हुआ, पर नेहा ने एक कंपीटिशन पास कर लिया. वह सरकारी विभाग में औफिसर नियुक्त हो गई. प्रदीप ने इस के बाद भी कई प्रयास किए पर जौब नहीं मिल सकी. इस के बाद उस ने अपना बिजनैस शुरू किया.

शादी के कुछ साल तक दोनों के बीच तालमेल बना रहा पर फिर धीरधीरे आपस में तनाव रहने लगा. नेहा की जो शानशौकत और रुतबा समाज में था वह प्रदीप को खटकने लगा. वह हीनभावना से ग्रस्त रहने लगा. यही हीनभावना उन के बीच दरार डालने लगी. धीरधीरे उन के बीच संबंध बिगड़ने लगे. नतीजा यह हुआ कि 4 साल में ही शादी टूट गई. सर्विस में गैरबराबरी होने से पतिपत्नी के बीच अलगाव के मामले अधिक बढ़ते जा रहे हैं. पिछले 10 सालों का बदलाव देखें तो पता चलता है कि लड़कों से अधिक लड़कियों ने शिक्षा से ले कर रोजगार तक में अपनी धाक जमाई है. किसी भी परीक्षा के नतीजे देख लें सब से अधिक लड़कियां ही अच्छे नंबरों से पास हो रही हैं.

पहले शादी के बाद लड़कियों को नौकरी छोड़ने के लिए कहा जाता था. सरकारी नौकरियों में बड़ी सुविधाओं के चलते अब शादी के बाद कोई लड़की अपनी सरकारी नौकरी नहीं छोड़ती. अब उन मामलों में तनाव बढ़ रहा है जहां पत्नी अच्छी सरकारी नौकरी कर रही है पर पति किसी प्राइवेट जौब में है.

बड़ी वजह है सामाजिक बदलाव

पहले बहुत कम मामलों में लड़कियां शादी के बाद जौब करती थीं. अब बहुत कम मामलों में लड़कियां शादी के बाद जौब छोड़ती हैं. इस का सब से बड़ा कारण लोगों की सामाजिक सोच का बदलना है. अब शादी के बाद महिला काम करे इसे ले कर किसी तरह का कोई दबाव नहीं होता. शहरों में रहना, बच्चों को पढ़ाना और सामाजिक रहनसहन के साथ तालमेल बैठाना मुश्किल होता जा रहा है. ऐसे में पति ही नहीं उस का पूरा परिवार चाहता है कि पत्नी भी जौब करे. केवल सर्विस के मामले में ही नहीं, बिजनैस के मामले में भी ऐसा ही हो रहा है.

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राहुल प्राइवेट बैंक में काम करता है. उस की सैलरी अच्छी है. बावजूद इस के उस ने अपनी पत्नी को अपनी पसंद का ब्यूटी बिजनैस करने की अनुमति दे दी. राहुल की पत्नी संध्या ने एक ब्यूटीपार्लर की फ्रैंचाइजी ले ली. इस में पैसा तो था ही, साथ ही सामाजिक दायरा भी बढ़ा. अब राहुल से अधिक संध्या को लोग जानने लगे थे. बिजनैस में सफल होने के बाद संध्या की पर्सनैलिटी में भी बहुत बदलाव आ गया. नातेरिश्तेदारी में पहले जो लोग उस के काम का मजाक उड़ाते थे वही अब उस की तारीफ करते नहीं थकते हैं. पति की सैलरी से ज्यादा संध्या अपने यहां काम करने वालों को वेतन देने लगी है. वह कहती है, ‘‘10 साल पहले मैं ने जब इस बिजनैस को शुरू किया था तब घरपरिवार और नातेरिश्तेदार यह सोचते थे कि मैं ने टाइमपास के लिए काम शुरू किया है. कई लोग सोचते थे कि पति के वेतन से मदद ले कर मैं काम कर रही हूं. मगर जब कुछ ही सालों के अंदर मेरे काम की तारीफ होने लगी तो सब को यकीन हो गया.

‘‘अब वही लोग मेरा परिचय देते हुए गर्व से कहते हैं कि मैं उन की बहू हूं. पति भी मजाकमजाक में कह देते हैं कि मेरे से ज्यादा लोग तुम्हें जानते हैं.’’ महिलाएं पहले भी काम करती थीं, पर तब उन के सामने काम करने के अवसर कम थे. उन में खुद पर भरोसा नहीं होता था. समाज का भी पूरा सहयोग नहीं मिलता था. ऐसे में उन में आत्मविश्वास पैदा नहीं होता था. ज्यादातर संयुक्त परिवार होते थे, जिस से महिला की कमाई पर उस का अधिकार कम ही होता था. मगर अब ऐसा नहीं है. यह बचत किया पैसा महिला में आत्मविश्वास पैदा करता है. इस आत्मविश्वास से ही सही माने में महिलाओं का सशक्तीकरण हुआ है. वे अपने फैसले खुद लेने लगी हैं. इस से उन की अलग पहचान बन रही है.

35 साल की रीना बताती है, ‘‘मुझे केकपेस्ट्री बनाने का शौक बचपन से था. जो भी खाता खूब तारीफ करता था. मैं शादी से पहले प्राइवेट जौब करती थी. शादी के बाद वह छूट गई. कुछ सालों के बाद मैं ने दोबारा अपना काम शुरू करने की योजना बनाई. मेरे पति ने कहा कि जौब कर लो पर मैं ने कहा कि नहीं अब केकपेस्ट्री बनाने का काम करूंगी. पति को यह काम अच्छा नहीं लगा. ‘‘मैं ने मेहनत से काम किया और फिर 3 सालों में ही मेरे बनाए केक शहर के लोगों की पहली पसंद बन गए. मेरे पास अब काफी स्टाफ है. मैं शहर में बिजनैस वूमन बन गई हूं. लोग मेरी खूब तारीफ करते हैं. पति को भी अब लगता है कि मेरा फैसला सही था.’’ इन बदलावों को देखते हुए लड़कियों को पढ़ाने के लिए परिवार पूरी मेहनत करने लगे हैं. 12वीं कक्षा के बाद की पढ़ाई के लिए कालेज, नर्सिंग स्कूल, इंजीनियरिंग कालेज सभी कुछ खुलने लगे हैं. जहां पर स्कूल नहीं हैं वहां की लड़कियां पढ़ाई करने दूर के स्कूलों में जाने लगी हैं. कई मांबाप ऐसे भी हैं जो पढ़ाई के लिए मकान तक बेचने या किराए पर देने लगे हैं. बड़े शहरों में चलने वाली कोचिंग संस्थाओं को देखें तो बात समझी जा सकती है. पढ़ाई और नौकरी के जरीए सही माने में महिलाओं का सशक्तीकरण होने लगा है. यह सच है कि बदलाव की बयार धीरेधीरे बढ़ रही है.

पति को करना होगा समझौता एक समय था जब शादी के बाद केवल लड़कियों को समझौता करना होता था. पत्नी घर में चौकाचूल्हा करती थी और पति नौकरी करता था. अब हालात बदल गए हैं. इस तरह के समझौते अब पतियों को करने पड़ रहे हैं. जब पत्नी से दिनभर नौकरी करने के बाद घर में पहले की तरह काम करने की अपेक्षा की जाती है तो वहां विवाद खड़े होने लगते हैं. इन विवादों से बचने के लिए पति को समझौता करना होगा. उसे पत्नी का हाथ बंटाना चाहिए.

जिन परिवारों में ऐसे बदलाव हो रहे हैं वहां हालात अच्छे हैं. जहां पतिपत्नी आपसी विवाद में उलझ रहे हैं वहां मामले झगड़ों में बदल रहे हैं. पतिपत्नी के बीच तनाव बढ़ रहा है. बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली, उत्तर प्रदेश सहित कई प्रदेशों में हाल के कुछ सालों में शिक्षक के रूप में पुरुषों से अधिक महिलाओं को नौकरी मिली है. ऐसे में पति अपनी पत्नी को स्कूल में नौकरी करने जाने के लिए खुद मोटरसाइकिल से छोड़ने जाता है. शहरों में रहने वाली लड़कियां अब सरकारी नौकरी के चक्कर में गावों के स्कूलों में पढ़ाने जा रही हैं. स्कूल का काम खत्म कर के वे शहर वापस आ रही हैं.

पत्नी दोहरी जिम्मेदारी उठाने लगी है. ऐसे में उस का तनाव बढ़ने लगा है. अब अगर पति, परिवार का सहयोग नहीं मिलता तो विवाद बढ़ जाता है. पहले शादी के समय दहेज ही नहीं, शक्लसूरत को ले कर भी सासससुर कई बार नाकभौंहें सिकोड़ते थे. मगर अब ऐसा नहीं है. लड़की सरकारी नौकरी कर रही है, तो उस में लोग समझौता करने लगे हैं. यही नहीं अब लड़की भी ऐसे ही किसी लड़के के साथ शादी नहीं करती. वह भी देखती है कि लड़का उस के लायक है या नहीं.

कई बार तो शादी तय होने के बाद भी लड़की ने अपनी तरफ से शादी तोड़ने का फैसला किया है. समय के इस बदलाव ने समाज और परिवार में लड़की को अपर हैंड के रूप में स्वीकारना शुरू कर दिया है. यहीं से पतिपत्नी के बीच दूरियां बढ़नी शुरू हो जाती हैं. कानपुर में एक पति ने पत्नी की हत्या कर दी. मामला यह था कि पत्नी विधि विभाग में अधिकारी थी और पति साधारण वकील. पति को लगता था कि पत्नी उस के साथ सही तरह से व्यवहार नहीं कर रही. वह खुद को बड़ा अधिकारी समझती है. ऐसे में दोनों के बीच दूरियां बढ़ने लगीं. दोनों ने अलगअलग रहना शुरू कर दिया. फिर परिवार के दबाव में साथ रहने लगे. मगर यह साथ बहुत दिनों तक नहीं चला. ऐसे में दोनों के बीच तनाव बढ़ा और मसला हत्या तक पहुंच गया. पति फिलहाल जेल में है.

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शिक्षा और स्वास्थ्य में बढ़े अवसर

पहले लड़कियों के लिए केवल नर्स और बैंकिंग के क्षेत्र में ही अवसर थे. पिछले 10-12 सालों में लड़कियों के लिए शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी सरकारी नौकरियों के बहुत विकल्प आए हैं. इन में कम पढ़ीलिखी महिलाओं से ले कर अधिक शिक्षित महिलाएं तक शामिल हैं. गांवों में जहां स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करने वाली ‘आशा बहू’ के रूप में नौकरी मिली, वहीं शहरों में नर्स के रूप में काम करने के बहुत अवसर आए. शिक्षा विभाग में शिक्षा मित्र से ले कर सहायक अध्यापक तक के क्षेत्र में महिलाओं को सब से अधिक जौब्स मिलीं.

शादी से पहले प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाने का काम लड़कियां पहले भी करती थीं. कई दूसरी तरह की निजी नौकरियां भी करती थीं. शादी के बाद किसी न किसी वजह को ले कर उन्हें नौकरी छोड़ने के लिए मजबूर किया जाता था. सरकारी विभाग में नौकरी पाने वाली महिलाओं को शादी के बाद भी नौकरी छोड़ने के लिए कोई मजबूर नहीं करता है. सरकारी नौकरी में तबादला एक मुश्किल काम होता है. उत्तर प्रदेश में बहुत सारी लड़कियां इस का शिकार हैं. उन की ससुराल और नौकरी वाली जगह में बहुत दूरी है. ऐसे में वे दोनों जगहों को नहीं संभाल पा रही हैं. बड़े पैमाने पर सरकार पर दबाव पड़ रहा है कि लड़कियों को उन की मनचाही जगह तबादला दिया जाए. कई टीचर्स को तो 50 किलोमीटर से ले कर 150 किलोमीटर तक रोज का सफर तय करना पड़ता है.

सरकारी नौकरी में मिलने वाली सुविधाओं के चलते सरकारी नौकरी वाली बहू का मान बढ़ गया है. जरूरत इस बात की है कि पतिपत्नी के बीच तालमेल बना रहे. पतिपत्नी वैवाहिक जीवन के 2 पहिए हैं. ये साथ चलेंगे तो जीवन की गाड़ी तेजी से दौड़ेगी. अगर इन के बीच कोई फर्क होगा तो जीवन सही नहीं चलेगा.

पत्नी को डांट कर नहीं तर्क से मनाएं

आज यशी बहुत अपसेट थी. उसे मयंक का चिल्लाना नागवार गुजरा था. सुबहसुबह उसे डांट कर मयंक तो चला गया मगर यशी का पूरा दिन बर्बाद हो गया. न तो उसे किसी काम में मन लगा और न ही उस ने किसी के साथ बात की. वह चुपचाप अपने कमरे में बैठी आंसू बहाती रही.

शाम को जब मयंक ऑफिस से लौटा तो यशी की सूजी हुई आंखें उस के दिल का सारा दर्द बयां कर रही थी. यशी की यह हालत देख कर मयंक का दिल भी तड़प उठा. उस ने यशी से बात करनी चाही और उस का हाथ पकड़ कर पास में बिठाया तो वह हाथ झटक कर वहां से चली गई. रात में मयंक ने बुझे मन से खाना खाया. उधर मयंक के मांबाप भी अपने कमरे में कैद रहे.

रात में जब यशी कमरे में आई तो मयंक ने कहा,” यशी बस एक बार मेरी बात तो सुन लो.”

यशी ने एक नजर उस की तरफ देखा और फिर चुपचाप नजरें फेर कर वहीं पास में बैठ गई.

मयंक ने समझाने के अंदाज में कहा,” देखो यशी मैं मानता हूं कि मुझ से गलती हुई है. सुबह जब तुम ने फैशन डिजाइनिंग का कोर्स करने की अपनी इच्छा जाहिर की तो मैं ने साफ मना कर दिया. तुम ने अपना पक्ष रखना चाहा और मैं तुम्हें डांट कर चला गया. यह गलत हुआ. मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था. अब मैं चाहता हूं कि हम इस विषय पर फिर से चर्चा करें. यशी पहले तुम अपनी बात कहो प्लीज.”

” मुझे जो कहना था कह चुकी और उस का जवाब भी मिल गया,” नाराजगी के साथ यशी ने कहा.

“देखो यशी ऐसा नहीं है कि मैं तुम्हें आगे बढ़ते देखना नहीं चाहता या फिर मुझे यह पता नहीं है कि तुम्हें फैशन डिजाइनिंग का कितना शौक है. ”

“फिर तुम ने साफसाफ मना क्यों कर दिया मुझे ?” यशी ने सवाल किया.

” देखो यशी मेरे न कहने की वजह केवल यही है कि अभी कोर्स करने का यह सही समय नहीं है.”

” लेकिन मयंक सही समय कब आएगा ? बाद में तो मैं घरगृहस्थी में और भी फंस जाऊंगी न.” यशी ने पूछा.

” लेकिन यशी तुम यह मत भूलो कि अभी बड़ी भाभी प्रेग्नेंट है और भाभी की अपनी मां भी जिंदा नहीं है. ऐसे में मेरी मां को ही उन्हें संभालने जाना होगा. नए बच्चे के आने पर बहुत सी जिम्मेदारियां बढ़ जाती हैं. भाभी अकेली वह सब संभाल नहीं पाएंगी. इसलिए मम्मी को कुछ महीने उन के यहां रहना पड़ सकता है.”

” हां यह तो मैं ने सोचा नहीं.”

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मयंक ने आगे समझाया,” देखो यशी हम दोनों को भी अब बेबी प्लान करना है. हमारी उम्र इतनी है कि अभी बेबी के आने का सब से अच्छा समय है”

” हाँ वह तो है.” शरमाते हुए यशी ने हामी भरी.

” फिर सोचो यशी अभी तुम्हारे पास कोई नया कोर्स ज्वाइन करने का वक्त कहां है ? भाभी की डिलीवरी के बाद जब मां यहां नहीं रहेंगी तो तुम अकेली सब कुछ कैसे संभालोगी ? तुम अपनी पढ़ाई को उतना समय नहीं दे पाओगी जितना जरूरी है. फिर जब तुम खुद प्रेग्नेंट रहोगी तब भी पढ़ाई के साथ सब कुछ संभालना बहुत मुश्किल होगा.”

” तो क्या मैं यह सपना कभी पूरा नहीं कर पाऊंगी?”

“ऐसा नहीं है यशी. फैशन डिजाइनिंग कोर्स तो कभी भी किया जा सकता है. ऐसा तो है नहीं कि तुम्हारी उम्र निकल जाएगी. चारपांच साल घरगृहस्थी को देने के बाद फिर आराम से कोर्स करना और डिज़ाइनर बन जाना. तब तक बच्चा थोड़ा बड़ा हो जाएगा तो मां उसे आराम से संभाल लेंगी. तब निश्चिंत हो कर तुम यह पढ़ाई कर सकोगी. तब तक घर में रह कर ही अपने हुनर को निखारने का प्रयास करो. नएनए एक्सपेरिमेंट्स करो और डिजाइनर कपड़े तैयार करो. तुम्हारा एक आधार भी बन जाएगा और मन का काम भी कर सकोगी.”

यह सब सुनने के बाद अचानक यशी मयंक के गले लगती हुई बोली,” सॉरी मयंक मैं तुम्हें समझ नहीं पाई. तुम्हारा कहना सही है. मैं ऐसा ही करूंगी.”

अब जरा इस घटना पर गौर करें. मयंक यदि अपनी पत्नी यशी को इस तरह समय रहते समझाता नहीं और तर्क के साथ अपनी बात न रखता तो पतिपत्नी के बीच का तनाव लंबे समय तक यूं ही कायम रहता. धीरेधीरे इस तरह के छोटेछोटे तनाव ही रिश्तों में बड़ी दरारें पैदा करती हैं.

जरूरी है कि पति अपनी पत्नी को डांटने के बजाय तर्क से समझाने का प्रयास करें. इस से पत्नी बात अच्छी तरह समझ भी जाएगी और उसे बुरा भी नहीं लगेगा. घर भी लड़ाई का अखाड़ा बनने से बच जाएगा.

पतियों को ध्यान रखना चाहिए कि किसी भी विषय पर जब पत्नी के साथ आप सहमत नहीं है तो उन्हें दूसरों के आगे डांटने चुप कराने या खुद मुंह फुला लेने से बेहतर है कि ऐसी नौबत ही न आने दें. यदि पत्नी किसी बात पर नाराज हो भी गई है तो झगड़े को लंबा खींचने के बजाय पतिपत्नी आपस में बात करें और तर्क के साथ अपना पक्ष रखें. पत्नी को भी बोलने का मौका दें कुछ इस तरह——-

1. सब से पहले अपनी व्यस्त दिनचर्या में से थोड़ा फ्री समय निकालें. इस वक्त न तो आप का मोबाइल पास में हो और न ही लैपटॉप. केवल आप हों और आप की पत्नी.

2. अब अपनी पत्नी के पास बैठें. डांट कर नहीं बल्कि शांति और प्यार से बातचीत की पहल करें.
जब भी पत्नी को मनाने की शुरुआत करें तो सब से पहले पत्नी को बोलने का मौका दें. शांत दिमाग से उस की पूरी बात सुनें. फिर अपनी बात सामने रखें. बात करते समय पुराने अनुभवों और मजबूत तर्कों का सहारा ले.

3. पत्नी कुछ विरोध करे तो तुरंत उस की बात काट कर अपनी बात थोपें नहीं बल्कि उस की बात गौर से सुने और फिर पुराने अनुभवों की याद दिला कर अपनी बात समझाने का प्रयास करें.

4. हर बात के 2 पक्ष होते हैं. पत्नी के सामने दोनों पक्ष रखें और फिर तर्क से साबित करें कि क्या उचित है.

5. अपना तर्क पुख्ता करने के लिए किसी तीसरे की जरूरत हो तभी तीसरे को बुलाएं. वरना आपस में ही समझदारी से अपने झगड़े सुलझाने का प्रयास करें.

6. इस सारी बातचीत के दौरान अपनी टोन पर खास ध्यान रखें. किसी भी बात पर जोर से न बोले. हमेशा आराम से और प्यार से बात करें.

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7. यदि कभी आप को लगे कि वाकई पत्नी सही है, उस के तर्क भारी पड़ रहे हैं तो पत्नी की बात मानने से हिचकिचाएं नहीं. जरूरी नहीं कि हमेशा आप ही सही हों. कई बार पत्नी भी सही हो सकती है.

याद रखें

आप अपनी पत्नी को जीवनसाथी बना कर लाए हैं. वह आप की अर्धांगिनी है. उस की इज्जत का ख्याल रखना आप का दायित्व है.

आप जिस माहौल में पलेबढ़े हैं उसी अनुरूप किसी चीज को देखने का आप का नजरिया विकसित होगा. मगर आप को अपनी बीवी की सोच और तर्कों को भी तरजीह देनी चाहिए. महिलाएं भी तर्कसंगत बातें कर सकती हैं. उन्हें अपने तर्क रखने का मौका दें.

आप को पत्नी के साथ पूरा जीवन गुजारना है. उसे डिप्रेशन का मरीज न बनाएं. डांटने पर उसे लगेगा कि आप प्यार नहीं करते. इस से तनाव बढ़ेगा. यदि आप उस की भी कुछ बातें मान लेंगे तो आप की सेल्फ रिस्पैक्ट में कोई कमी नहीं आ जाएगी.

बीवी कोई रसोइया नहीं

आज आधुनिक शिक्षा स्त्री एवं पुरुष को एकजैसी योग्यता और हुनर प्रदान करती है. दोनों घर से बाहर काम पर जाते हैं, एकसाथ मिल कर घर चलाते हैं पर जब बात खाना बनाने की होती है तो आमतौर पर किचन में घर की महिला ही खाना बनाती है जबकि खाना बनाना सिर्फ महिलाओं का ही एकाधिकार नहीं है बल्कि एक जरूरत है.

यह महिलाओं के अंदर ममता एवं सेवा की एक अभिव्यक्ति जरूर है और जिस का कोई अन्य विकल्प नहीं, पर यह विडंबना ही है कि आज भी हमारे समाज में एक औरत से ही यह उम्मीद की जाती है कि रसोई में वही खाना बना सकती है और यही उस का दायित्व है.

औरत का काम सिर्फ खाना बनाना नहीं

एक मशहूर कहावत है कि पैर की मोच और छोटी सोच आदमी को आगे नहीं बढ़ने देती. यह किसी पुरुष पर उंगली उठाने की बात नहीं है, बल्कि समाज की उस सोच की बात है जो यह मानती रही है कि आदमी का काम है पैसा कमाना और औरत तो घर का काम करने के लिए ही बनी है.

जमाना काफी बदल गया है पर आज भी इस सोच वाले बहुत हैं. वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो गर्व से कहते हैं कि वे घर के काम में अपनी मां या पत्नी की सहायता करते हैं, लेकिन इस सोच वाले पुरुषों की संख्या बेहद कम है.

‘केवल पत्नी ही किचन के लिए बनी है, पति नहीं’ ऐसी सोच रखने का कारण क्या है और यह भारतीय समाज की ही सोच क्यों बन कर रह गई?

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एक कारण तो यही है कि सदियों से महिलाओं को भारतीय समाज में चारदीवारी के अंदर रहना सिखाया गया है. ऐसा नहीं है कि इस मामले में बदलाव की हवा नहीं चली. कुछ ऐसी महिलाएं भी हैं जो इस गुलामी की मानसिकता से आजाद हो चुकी हैं पर उन की गिनती उंगलियों पर गिनने लायक है.

महिलाओं और किचन के बीच उन के काम, समाज में उन की स्थिति, उन के शौक, उन की रूचि, घर का वातावरण और रीतिरिवाजों से ले कर बाजार तक बहुत कुछ आ जाता है. इन सब के चक्कर में वे खुद को ही भूलने सी लगती हैं.

मशीनी जिंदगी और…

जैसे शुक्रवार शाम से ही अंजलि भी कुछ रिलैक्स करने के मूड में आ गई. बच्चे रिंकी व मोनू और उस के पति विकास आजकल घर से ही औनलाइन काम कर रहे थे. बच्चों की औनलाइन क्लासेज रहतीं पर उस के काम बहुत बढ़ गए थे.

लौकडाउन के चलते कामवाली भी नहीं आ रही थी. सब घर पर ही थे. मगर इधर फरमाइशें कभी खत्म ही न होती थीं.

उस का भी मन हो आया कि वैसे तो तीनों सुबह 8 बजे अपनेअपने काम पर बैठ जाते हैं और वह पूरे सप्ताह ही भागदौड़ में लगी रहती है मगर अब उस का मन भी हो गया कि स्कूल और औफिस की छुट्टी है तो वह भी कुछ आराम करेगी. उसे भी अपने रूटीन में कुछ बदलाव तो लगे. वही मशीनी जिंदगी… कुछ तो छुटकारा मिले.

इतने में विकास और बच्चे भी उस के पास आ कर बैठ गए. बच्चों ने कहा,”मम्मी, देखो अनु ने फोन से अपनी मम्मी की कुकिंग की पिक्स भेजी हैं. उस की मम्मी ने पिज्जा  और कटलैट्स बनाए हैं. आप भी कल जरूर बनाना.‘’

”मैं तो थोड़ा आराम करने की सोच रही हूं, कुकिंग तो चलती ही रहती है. थोड़ा स्किन केयर की सोच रही थी, ब्यूटी पार्लर्स बंद हैं. कल थोड़ी केयर अपनेआप ही करती हूं. मन हो रहा है कुछ खुद पर ध्यान देने का.”

विकास ने कहा ,”अरे छोड़ो, ठीक तो लग रही हो तुम. बस, वीकेंड पर बढ़ियाबढ़िया चीजें बनाओ.”

अंजलि का मन बुझ गया. घर के ढेरों कामों के साथ किसी की कोई सहायता नहीं. बस फरमाइशें. उसे बड़ी कोफ्त हुई. वह चुप रही तो विकास ने कहा,”अरे, इतना बङा मुंह बनाने की बात नहीं है. लो, मेरे फोन में देखो, अनिल की बीवी ने आज क्या बनाया है…”

बच्चे चौंक गए,”पापा, हमें भी दिखाओ…”

विकास ने अपने फोन में उन्हें रसमलाई की फोटो दिखाई तो बच्चों के साथ विकास भी शुरू हो गए,”अब तुम भी कल बना ही लो. बाजार से तो अभी कुछ आ नहीं सकता. अब क्या हम अच्छी चीजें औरों की तरह नहीं खा सकते?”

अंजलि ने कहा,” उस की पत्नी को शौक है कुकिंग का. मुझे तो ज्यादा कुछ बनाना आता भी नहीं.”

”तो क्या हुआ,अंजलि. गूगल है न… यू ट्यूब में देख कर कुछ भी बना सकती हो.”

फिर हमेशा की तरह वही हुआ जो इतने दिनों से होता आ रहा था. वह वीकेंड में भी किचन से निकल नहीं पाई. उस का कोई वीकेंड नहीं, कोई छुट्टी नहीं.

इच्छाओं का दमन न करें

पति और बच्चों के खाने के शौक से वह थक चुकी है. ज्यादा न कहते नहीं बनता. बस फिर अपनी इच्छाएं ही दबानी पड़ती हैं. सोचती ही रह जाती है कि कुछ समय अपने लिए चैन से मिल जाए तो कभी खुद के लिए भी कुछ कर ले. पर इस लौकडाउन में इन तीनों के शौकों ने उसे तोड़ कर रख दिया है.

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मंजू का तो जब से विवाह हुआ वह पति अजय और उस के दोस्तों को खाना खिलाने में ही जीवन के 20 साल खर्च चुकी है.

वह अपना अनुभव कुछ यों बताती है,”शुरूशुरू में मुझे भी अच्छा लगता था कि अजय को मेरा बनाया खाना पसंद है. मुझे भी यह अच्छा लगता कि उस के दोस्त मेरी कुकिंग की तारीफ करते हैं. बच्चे भी अपने दोस्तों को बुला कर खूब पार्टी करते.मैं जोश में सौस, अचार, पापड़ सब घर पर ही बनाती. इस से मेरी खूब तारीफ होती. धीरेधीरे मेरा मन ही कुकिंग से उचटने लगा. जहां मैं कुकिंग की इतनी शौकीन थी, वहीं अब एक समय ऐसा आया कि खाना बनाने का मन ही नहीं करता. सोचती कि क्या खाना ही बनाती रहूंगी जीवन भर?

“फरमाइशें तो रुकने वाली नहीं, क्या अपने किसी भी शौक को समय नहीं दे पाऊंगी? पैंटिंग, म्यूजिक, डांस, रीडिंग आदि सब भूल चुकी थी मैं. अब अजीब सा लगने लगता कि कर क्या रही हूं मैं? अगर कोई मुझ से मेरी उपलब्धि पूछे तो क्या है बताने को? यही कि बस खाना ही बनाया है जीवनभर… यह तो मेरी कम पढ़ीलिखी सासूमां और मां भी करती रही हैं.

“मुझे अचानक कुछ और करने का मन करता रहता. मैं थोड़ी उदास होने लगी.

एक दिन रविवार को बच्चों और पति ने लंबीचौड़ी फरमाइशों की लिस्ट पकड़ाई, तो मेरे मुंह से निकल ही गया कि मैं कोई रसोइया नहीं हूं. मुझे भी तुम लोगों की तरह रविवार को कभी आराम करने का मौका नहीं  मिल सकता?

“मेरी बात पर सब का ध्यान गया तो सब सोचने पर मजबूर हुए. मैं ने फिर कहा कि ऐसा भी कभी हो सकता है कि एक दिन मुझे छुट्टी दो और एकएक कर के खुद कुछ बनाओ. अब तो बच्चे भी बड़े हो गए हैं.‘’

“मैं बड़ी हैरान हुई जब मेरा यह प्रस्ताव मान लिया गया. उस दिन से सब कुछ न कुछ बनाने लगे. कभी मिल कर, कभी अकेले किचन में घुस जाते. फिर मुझे जब सब का सहयोग मिलने लगा तो मैं ने कुछ दिन अपने डांस की खुद प्रैक्टिस की, फिर घर में ही क्लासिकल डांस सिखाने लगी.

इस काम में मुझे बहुत संतोष मिलने लगा. बहुत खुशी होती है कि आखिरकार कुछ क्रिएटिव तो कर रही हूं. अब खाली समय में कुकिंग करना बुरा भी नहीं लग रहा है.”

न भूलें अपनी प्रतिभा

हम में से कई महिलाएं अकसर यह गलती कर देती हैं कि अपने शौक, अपनी रूचि, अपनी प्रतिभा को भूल कर बस परिवार को खुश करने के लिए अपनी जिंदगी का एक बड़ा हिस्सा बिता देती हैं.

परिवार का ध्यान रखना, उन की पसंदनापसंद का ध्यान रखना कोई बुरी या छोटी बात नहीं है. एक स्त्री अपना अस्तित्व भुला कर यह सब करती है, पर आजकल यह भी देखा गया है कि जब बच्चे बड़े हो जाते हैं तो उन्हें यह कहने में जरा भी संकोच नहीं लगता कि मां,आप को क्या पता है, किचन के सिवा आप को कुछ भी तो नहीं आता.

यही हुआ नीरा के साथ, जब उस की बेटी एक दिन कालेज से आई, तो उस से पूछ लिया, “प्रोजैक्ट कैसा चल रहा है, कितना बाकी है?”

बेटी का जवाब था,”मां, आप प्रोजैक्ट रहने दो, खाना बनाओ.”

नीरा कहती हैं,”यह वही बच्चे हैं जिन के लिए मैं ने अपनी नौकरी छोड़ दी थी. आज मुझे इस बात का बहुत दुख है. मैं जिस कुकिंग को अपना टेलैंट समझती रही, वह तो एक आम चीज है, जो कोई भी बना लेता है. अपने पैरों पर खड़े हो कर जो संतोष मिलता है, उस की बात ही अलग होती है.”

आजकल के पति और बच्चे भी इस बात में गर्व महसूस करते हैं जब उन की पत्नी या मां कुछ क्रिएटिव कर रही हों.

25 साल की नेहा का कहना है, ”मम्मी जब गणित की ट्यूशन लेती हैं, तो बड़ा अच्छा लगता है. मेरे दोस्त कहते हैं कि आंटी कितनी इंटैलीजैंट हैं, 12वीं का मैथ्स पढ़ाना आसान नहीं.

“मम्मी जब ज्यादा थकी होती हैं, तो हमलोग खाना बाहर से और्डर कर लेते हैं या उस दिन सभी मिल कर खाना बना लेते हैं.”

सोशल मीडिया पर प्रदर्शन क्यों

सर्वगुण संपन्न होने की उपाधि लेने के लिए अनावश्यक तनाव अपने ऊपर न लें. कुक द्वारा बनाए खाने को भी प्यार से सब को परोस कर घर का माहौल प्यारभरा बनाया जा सकता है.

गुस्से में बनाया हुआ खाना यदि तनावपूर्ण माहौल में खाया जाए तो वह तनमन पर अच्छा प्रभाव नहीं डालता है.

किचन की बात हो और वह भी इस लौकडाउन टाइम में, महिलाओं ने अपनी कुकिंग स्किल्स की सारी की सारी भड़ास जैसे सोशल मीडिया पर ही निकाल दी. कभी अजीब सा लगता है कि यह क्या, कुकिंग ही कर कर के लौकडाउन बिताया जाता रहेगा?

वहीं अंजना को कुकिंग का बहुत शौक है. वह खुद मीठा नहीं खाती फिर भी अपने पति और बच्चों के लिए उसे कुछ बना कर खुशी मिलती है. उस का कहना है कि उस के पति और बेटा मना करते रह जाते हैं कि हमारे लिए मेहनत मत करो, जो खुद खाना हो वही बना लो, पर उसे अच्छा लगता है उन दोनों के लिए बनाना. जब वे दोनों सो रहे होते हैं तो वह चुपचाप उन्हें सरप्राइज देने के लिए कुछ न कुछ बना कर रखती है, जिस से लौकडाउन के समय में कोई बाहर की चीज के लिए न तरसे.

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सपनों को पंख दें

कुकिंग का शौक आप को है तो अलग बात है पर यह नहीं होना चाहिए कि सब अपनी लिस्ट आप को देते रहें और आप को कुकिंग का शौक ही न हो. कुकिंग आप पर लादी नहीं जानी चाहिए. किचन के रास्ते पर जाना आप की पसंद पर होना चाहिए, मजबूरी नहीं.

ऐसा नहीं होना चाहिए कि आप कुछ और क्रिएटिव करना चाहती हैं और आप को उस का मौका ही न मिले. आप को अगर सचमुच कुछ क्रिएटिव करने का मन है तो जरूर करें.

रोजरोज की फरमाइशों से तंग आ चुकी हैं तो अपने परिवार को प्यार से समझाइए कि आप सहयोगी बन कर जीना चाहती हैं, रसोइया बन कर नहीं. आप को और भी कुछ करना है. किचन के बाहर भी आप की एक दुनिया हो सकती है. आप को बस उस का रास्ता खुद बनाना है. आप ही किचन से बाहर नहीं निकलना चाहेंगी तो दूसरा आप के लिए रास्ता नहीं बना सकता, इसलिए कुछ क्रिएटिव करने की कोशिश जरूर करें. घर के कामों में सब से हैल्प लेना कोई शर्म की बात नहीं. अब वह जमाना नहीं है कि घर की हर चीज एक औरत के सिर पर ही टिकी है. सब मिल कर कर सकते हैं ताकि आप अपने सपने को पंख दे सकें.

दूरी न कर दे दूर

अकसर कहा जाता है कि दूरी दिल को निकट लाती है. एकदूसरे को एकदूसरे का महत्त्व पता चलता है. साथ रहते हुए जो बातें महसूस नहीं हो पातीं, वे भी बहुत शिद्दत से महत्त्व के साथ महसूस होती हैं. शादी की शुरुआत में पीहर वालों की दूरी खटकती है, वही धीरेधीरे ससुराल वालों के लिए भी महसूस होने लगती है. पति से दूरी तो खासतौर से खटकती है. एक नवविवाहित जोड़े की पत्नी कहती हैं कि हम अभी हनीमून भी पूरा नहीं कर पाए थे कि पति को विदेश जाना पड़ा. साथ बिताए महज 10 दिन और 3 महीनों की दूरी. दोनों का रोरो कर बुरा हाल. सारे घरपरिवार में पति का मजाक बना. किसी ने उन्हें तुलसीदास कहा तो किसी ने कालिदास. तब औरों के सामने मुंह तक न खोलने वाले पति ने सब से दिलेरी से कहा कि मेरा मजाक उड़ाने का अधिकार उसे ही है जिस ने खुद दिलेरी से जुदाई सही हो. धीरेधीरे सब चुप हो गए. इस जोड़े के पति कहते हैं कि हमें हनीमून के रोमानी दिनों ने ही फर्ज में दक्ष कर दिया. कहां हम मौजमस्ती के लिए घूम रहे थे और कहां साथ ले जाने के लिए सामानों की सूची तैयार कर रहे थे और उन्हें खरीद रहे थे. मैं ने अपनेआप को बहुत अच्छा महसूस किया. पहले दफ्तर के काम के साथ यह काम करता था. तब बहुत दबाव रहता था. मेरा ध्यान अधिकतर कंपनी के काम पर होता था, इसलिए व्यक्तिगत रूप से कुछ न कुछ छूट जाता था. अब कंपनी के काम की तैयारी मैं ने व निजी काम की पूरी तैयारी पत्नी ने की. कुल मिला कर सुखद यात्रा. बाद में सिर्फ उस की कमी थी. लेकिन हम शरीर से दूर थे पर मन से बेहद निकट. इस का श्रेय दूरी को ही है, वरना हम इतनी जल्दी एकदूसरे को नहीं जान पाते. बस कई दंपतियों की तरह लड़तेझगड़ते.

एक और जोड़े के पति कहते हैं कि शादी के चंद महीनों बाद अपनी नौकरी के चलते पत्नी 1 साल के लिए दूर चली गईं. घर में तूफान उठा. सब ने उन्हें नौकरी छोड़ने की सलाह दी. पत्नी भी सहमत थीं पर मैं ने पूरे परिवार को समझाया कि यह मामूली मौका नहीं है. अगर आप उन के लिए कुछ नहीं करेंगे तो उन से उम्मीद पालने का भी किसी को क्या अधिकार है. फिर सब जयपुर से बैंगलुरु आतेजाते रहे. मजे की बात यह है मेरे मांबाप भी पत्नी के साथ रहने लगे. मैं भी 2-3 महीनों में एकाध बार चला जाता था. आज मेरे परिवार के साथ उन का अच्छा तालमेल है. मुझ से ज्यादा लोग उन्हें पूछते हैं.

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खटकती है दूरी

शादी के शुरू में ही नहीं लंबे समय बाद भी दूरी खटकती है. शादी के 20 साल बाद 2 साल के लिए दूर हुई पत्नी कहती हैं कि हम साथ रहने के इतने अभ्यस्त हो गए थे कि सोच भी नहीं सकते थे कि कभी ऐसा मौका भी आएगा. हर काम की व्यवस्था थी. वह बिखर गई. ये बच्चों को पढ़ाते थे. बाजार व बैंक आदि के काम करते थे. मेरे जिम्मे घर था. शुरूशुरू में लगा जैसे मुझ पर पहाड़ टूट पड़ा हो. पर पति ने कई काम औनलाइन करने शुरू किए और बच्चों को भी चैट के माध्यम से अपनी गाइडैंस से जोड़े रखा. हमारा संपर्क बना हुआ था, इसलिए कभी कमी महसूस नहीं हुई. बच्चे इतने जिम्मेदार हो गए कि काफी काम उन्होंने टेकअप कर लिए.

ईमानदार रहना जरूरी

कमला कहती हैं कि उन्हें अमेरिका का वीजा नहीं मिला तो उन के पति अकेले ही वहां गए. इस बीच उन का पुराने प्रेमी से मिलनाजुलना शुरू हो गया. उन के प्रेमी ने उन्हें हवा दी कि अमेरिका में वह कौन सा दूध का धुला बैठा होगा. अचानक शरीर जाग उठा. तन और मन एकदूसरे पर इतने हावी हो सकते हैं, इस का एहसास मुझे अब ज्यादा होने लगा. पति के ईमेल पढ़पढ़ कर उन की बेचैनी व तड़प मुझे बेकार, झूठी व ड्रामा लगने लगी. इस बीच प्रेमी की शादी हो गई. मिलनाजुलना कम हुआ तो मुझे वह स्वार्थी लगने लगा. जब मैं ने उस पर दबाव डाला कि वह भी तो पति के होते हुए उस से मिलती रही है तो उस ने साफ कह दिया कि वह इतना मूर्ख नहीं. अपनी गृहस्थी में कोई आग नहीं लगाना चाहता. वह कोई और विकल्प ढूंढ़ ले तो उसे उस की कमी नहीं लगेगी. जैसे पति की कमी उस ने उस से पूरी की, वैसे ही उस की कमी भी कोई पूरी कर देगा. यह मेरे मन पर करारा चांटा था. मैं सिर्फ टाइमपास, जरूरत और सैक्स औब्जैक्ट थी, यह मुझे अब पता चला. पत्रपत्रिकाओं से मिली गाइडैंस के अनुसार मैं ने इस सदमे का पति से जिक्र नहीं किया पर दंड स्वरूप आजीवन ईमानदार रहने का संकल्प लिया. अपनी गलती के कारण मैं उस पर अमल कर सकी. पति कंपनी बदल कर भारत आ गए. यहां अलगअलग शहर होने पर भी हम महीने में 2 बार मिल सकते थे, जो पहले की तुलना में काफी था.

सकारात्मकता दे सकती है दिशा

ऋतु के पति महीने में 15 दिन टूर पर रहते हैं. उसे शुरू में दूरी खटकती थी, इसलिए उस ने ताश ग्रुप जौइन किया. उस का चसका ऐसा लगा कि पति के साथ होने वाले दिनों में भी वह उन्हें छोड़ कर जाने लगी. इस से तनातनी और आरोपप्रत्यारोप का सिलसिला शुरू हुआ तो गृहस्थी बिखरने लगी. समय रहते परिवार ने काउंसलिंग की तो उस बुरी लत को छोड़ पाई. उस के पिता ने कहा कि वह चाहे तो एमबीए करने की अपनी हसरत पूरी कर ले. दरअसल, अच्छा लड़का मिलने से अचानक आई शादी की नौबत ने उस की यह इच्छा अधूरी छोड़ दी थी. उसे यह अच्छा लगा. अब पति व पढ़ाई दोनों में उस का उम्दा तालमेल है. रेणु ने कंप्यूटर सीखा ताकि वह पति से चैट और मेल द्वारा संपर्क रख सके. वह पहले की तुलना में काफी कम समय ही अपने को खाली या पति से दूर समझती है. वह पत्रपत्रिकाएं पढ़ती है, कुकिंग करती है और नईनई चीजें सीखती है. एकदूसरे से दूर रहने वाले दंपती क्रिएटिविटी के जरीए भी जीवन अच्छा चलाते हैं. कुछ लोग रचनात्मक काम सीख कर, सिखा कर या कोई हुनर सीख कर इस बिछोह और दूरी को पाट सकते हैं.

दूरी चुनौती है

हमसफर से दूरी होने पर अपनेआप को, निजी संबंधों, परिवार तथा सामाजिकता सब को देखनापरखना पड़ता है. इसे सहज चुनौती मान कर स्वीकार किया जाए तो जीवन आसान हो जाता है. हर एक के जीवन में कोई न कोई चुनौती आती जरूर है. उस से भाग कर जीवन जिया नहीं जा सकता. उसे झेल कर व जीत कर जीना बहुत सुखद व संतोषदायक होता है. गरमी के बाद वर्षा सुखद लगती है. भूखप्यास के बाद भोजनपानी कितना स्वादिष्ठ लगता है.

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भटकें नहीं

एकदूसरे से दूर रहना दंपतियों के लिए सब से बड़ी चुनौती है, जिस में कुछ भटक जाते हैं. सैक्स को दूरियों के बावजूद मैनेज किया जा सकता है. मनोचिकित्सक डा. अंजू सक्सेना कहती हैं कि हमारे पास जब ऐसे लोग आते हैं, तो हम उन्हें सब से पहले क्रिएटिव होने की सलाह देते हैं. इस से वे अपनी पहचान बनाना व संतोष पाना सीखते हैं. वैसे हमें लोग खुद ही बताते हैं कि वे क्या करते हैं. हम से वे सिर्फ यह जानना चाहते हैं कि उन का यह तरीका ठीक है या नहीं. कुछ स्त्रियां कहती हैं कि वे खूब थकाने वाले काम या व्यायाम करती हैं, जिस से सैक्स की जरूरत महसूस होने से पहले ही नींद आ जाए. कुछ मास्टरबेशन से काम चलाते हैं. स्वप्न संभोग भी कई दंपतियों का आधार है. अंजू इन तरीकों को ठीक बताती हैं बशर्ते ये उन की अपनी सोच के हों. चोटिल करने वाले तरीके न हों. कुछ लोग अनजान होने से ऐसे साधन इस्तेमाल करते हैं कि सर्जरी की नौबत आ जाती है या जान पर बन आती है. उन से बचना चाहिए. इन दिनों युवा जोड़े फोन पर संभोग या चैटिंग संभोग व एसएमएस का सहारा ले रहे हैं. यह उन्हें सूट करता है तो ठीक है पर लंबे समय तक यह ठीक नहीं. जुदाई तक कामचलाऊ है.

अंजू महावीर हौस्पिटल में काउंसलिंग करती हैं. वहां जागरूकता के तहत एचआईवी से बचने के लिए कृत्रिम लिंग को निरोध पहना कर उसे डेमो करना पड़ता है. तब कई स्त्रियां उस के प्रयोग के बारे में जानना, पूछना चाहती हैं. अंजू कहती हैं कि किसी तीसरे के प्रवेश व भटकने के बजाय इन साधनों द्वारा गृहस्थी बचा कर भी संतोष पाया जा सकता है. एक और मनोवेत्ता कहती हैं कि शरीर की आवश्यकता कम नहीं. उसे दांपत्य जीवन में नकारा नहीं जा सकता. अत: दंपती हर संभव साथ रहने की कोशिश करें. छोटेमोटे त्याग से भी संभव हो तो भी कोई बुराई नहीं है. पैसा महत्त्वपूर्ण है, लेकिन सुखशाति के लिए जब तक मजबूरी न हो दूर न रहें.

सहयोग भी बहुत कारगर

परिवार अगर दूर हो तो भी परिवार और परिजनों का सहयोग लिया जा सकता है. इस के लिए आवश्यक है कि हम भी औरों का सहयोग करें. एक दंपती बच्चों से दूर हैं. बच्चे कोटा में कोचिंग ले रहे हैं. वे प्रतिमाह बच्चों के पास जाते हैं पर हर हफ्ते दादा, नाना, बूआ, मामा आदि में से कोई जा कर बच्चों से मिल आता है. सुधा अपनी ननद के परिवार में रह रही हैं. 6 महीनों ने उन में अद्भुत प्यार पनपा दिया. पति भी पत्नी की सुरक्षा की फिक्र से मुक्त हैं. शुचि कहती हैं कि उन के पति 6 महीने के लिए स्वीडन गए. उन के जाने के 2 महीने बाद उन्हें बेटी हो गई. उन्होंने उन्हें बच्ची के फोटो आदि भेजे. 6 महीने बाद वे आए. तब तक समय कैसे बीत गया पता ही नहीं चला. मुझे क्रैडिट मिला अकेले बच्चे की परवरिश करने का. माधुरी दीक्षित नैने ने भी योजनापूर्वक अमेरिका व मुंबई के बीच अच्छा तालमेल बनाया और 2 बच्चे संभाले. ऐसे कई उदाहरण हमें मिलेंगे लेकिन ऐसी स्थितियों में सिर्फ पति या पत्नी को ही नहीं, बल्कि दोनों को समायोजन करना पड़ता है. फिर अब तो संपर्क के इतने साधन आ गए हैं, जैसे पहले बिलकुल नहीं थे. उन से दूरियों को पाटा जा सकता है. पहले तो पति कमाने बाहर जाते थे तो लौटने तक कोई संपर्क साधन न थे. इस स्थिति से आंका जाए तो आज परिवहन और संप्रेषण के साधनों ने दूरी को दूरी नहीं रहने दिया है.

जब शादीशुदा जिंदगी पर भारी हो दोस्ती

हफ्ते के 5 दिन का बेहद टाइट शेड्यूल, घर और आफिस के बीच की भागमभाग. लेकिन आने वाले वीकेंड को सेलीब्रेट करने का प्रोग्राम बनातेबनाते प्रिया अपनी सारी थकान भूल जाती है. उस के पिछले 2 वीकेंड तो उस के अपने और शिवम के रिश्तेदारों पर ही निछावर हो गए थे. 20 दिन की ऊब के बाद ये दोनों दिन उस ने सिर्फ शिवम के साथ भरपूर एेंजौय करने की प्लानिंग कर ली थी. लेकिन शुक्रवार की शाम जब उस ने अपने प्रोग्राम के बारे में पति को बताया तो उस ने बड़ी आसानी से उस के उत्साह पर घड़ों पानी फेर दिया.

‘‘अरे प्रिया, आज ही आफिस में गौरव का फोन आ गया था. सब दोस्तों ने इस वीकेंड अलीबाग जाने का प्रोग्राम बनाया है. अब इतने दिनों बाद दोस्तों के साथ प्रोग्राम बन रहा था तो मैं मना भी नहीं कर सका.’’ऐसा कोई पहली बार नहीं था. अपने 2 साल के वैवाहिक जीवन में न जाने कितनी बार शिवम ने अपने बचपन की दोस्ती का हवाला दे कर प्रिया की कीमती छुट्टियों का कबाड़ा किया है. जब प्रिया शिकायत करती तो उस का एक ही जवाब होता, ‘‘तुम्हारे साथ तो मैं हमेशा रहता हूं और रहूंगा भी. लेकिन दोस्तों का साथ तो कभीकभी ही मिलता होता है.’’

शिवम के ज्यादातर दोस्त अविवाहित थे, अत: उन का वीकेंड भी किसी बैचलर्स पार्टी की तरह ही सेलीब्रेट होता था. दोस्तों की धमाचौकड़ी में वह भूल ही जाता था कि उस की पत्नी को उस के साथ छुट्टियां बिताने की कितनी जरूरत है.

बहुत से दंपतियों के साथ अकसर ऐसा ही घटता है. कहीं जानबू कर तो कहीं अनजाने में. पतिपत्नी अकसर अपने कीमती समय का एक बड़ा सा हिस्सा अपने दोस्तों पर खर्च कर देते हैं, चाहे वे उन के स्कूल कालेज के दिनों के दोस्त हों अथवा नौकरीबिजनेस से जुड़े सहकर्मी. कुछ महिलाएं भी अपनी सहेलियों के चक्कर में अपने घरपरिवार को हाशिए पर रखती हैं.थोड़े समय के लिए तो यह सब चल सकता है, किंतु इस तरह के रिश्ते जब दांपत्य पर हावी होने लगते हैं तो समस्या बढ़ने लगती है.

यारी है ईमान मेरा…

दोस्त हमारी जिंदगी का अहम हिस्सा होते हैं, इस में कोई शक नहीं. वे जीवनसाथी से कहीं बहुत पहले हमारी जिंदगी में आ चुके होते हैं. इसलिए उन की एक निश्चित और प्रभावशाली भूमिका होती है. हम अपने बहुत सारे सुखदुख उन के साथ शेयर करते हैं. यहां तक कि कई ऐसे संवेदनशील मुद्दे, जो हम अपने जीवनसाथी को भी नहीं बताते, वे अपने दोस्तों के साथ शेयर कर सकते हैं, क्योंकि जीवनसाथी के साथ हमारा रिश्ता एक कमिटमेंट और बंधन के तहत होता है, जबकि दोस्ती में ऐसा कोई नियमकानून नहीं होता, जो हमारे दायरे को सीमित करे. दोस्ती का आकाश बहुत विस्तृत होता है, जहां हम बेलगाम आवारा बादलों की तरह मस्ती कर सकते हैं. फिर भला कौन चाहेगा ऐसी दोस्ती की दुनिया को अलविदा कहना या उन से दूर जाना.

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लेकिन हर रिश्ते की तरह दोस्ती की भी अपनी मर्यादा होती है. उसे अपनी सीमा में ही रहना ठीक होता है. कहीं ऐसा न हो कि आप के दोस्ताना रवैए से आप का जीवनसाथी आहत होने लगे और आप का दांपत्य चरमराने लगे. विशेषकर आज के व्यस्त और भागदौड़ की जीवनशैली में अपने वीकेंड अथवा छुट्टी के दिनों को अपने मित्रों के सुपुर्द कर देना अपने जीवनसाथी की जरूरतों और प्यार का अपमान करना है. अपनी व्यस्त दिनचर्या में यदि आप को अपना कीमती समय दोस्तों को सौंपना बहुत जरूरी है तो उस के लिए अपने जीवनसाथी से अनुमति लेना उस से भी अधिक जरूरी है.

ये दोस्ती…

कुछ पुरुष तथा महिलाएं अपने बचपन के दोस्तों के प्रति बहुत पजेसिव होते हैं तो कुछ अपने आफिस के सहकर्मियों के प्रति. श्वेता अपने स्कूल के दिनों की सहेलियों के प्रति इतनी ज्यादा संवेदनशील है कि अगर किसी सहेली का फोन आ जाए तो शायद पतिबच्चों को भूखा ही आफिस स्कूल जाना पड़े. और यदि कोई सहेली घर पर आ गई तो वह भूल जाएगी कि उस का कोई परिवार भी है.

दूसरी ओर कुछ लोग किसी गेटटूगेदर में अपने आफिस के सहकर्मियों के साथ बातों में ऐसा मशगूल हो जाएंगे कि उन की प्रोफेशनल बातें उन के जीवनसाथी के सिर के ऊपर से निकल रही हैं, इस की उन्हें परवाह नहीं होती.

इस के अलावा आफिस में काम के दौरान अकसर लोगों का विपरीत सेक्स के प्रति आकर्षण और दोस्ती एक अलग गुल खिलाती है. इस तरह का याराना बहुधा पतिपत्नी के बीच अच्छीखासी समस्या खड़ी कर देता है. कहीं देर रात की पार्टी में उन के साथ मौजमस्ती, कहीं आफिशियल टूर. कभी वक्तबेवक्त उन का फोन, एस.एम.एस., ईमेल अथवा रात तक चैटिंग. इस तरह की दोस्ती पर जब दूसरे पक्ष को आब्जेक्शन होता है तो उन का यही कहना होता है कि वे बस, एक अच्छे दोस्त हैं और कुछ नहीं. फिर भी दोनों में से किसी को भी इस ‘सिर्फ दोस्ती’ को पचा पाना आसान नहीं होता.

दोस्ती अपनी जगह है दांपत्य अपनी जगह

यह सच है कि दोस्ती के जज्बे को किसी तरह कम नहीं आंका जा सकता, फिर भी दोस्तों की किसी के दांपत्य में दखलअंदाजी करना अथवा दांपत्य पर उन का हावी होना काफी हद तक नुकसानदायक साबित हो सकता है. शादी से पहले हमारे अच्छेबुरे प्रत्येक क्रियाकलाप की जवाबदेही सिर्फ हमारी होती है. अत: हम अपनी मनमानी कर सकते हैं. किंतु शादी के बाद हमारी प्रत्येक गतिविधि का सीधा प्रभाव हमारे जीवनसाथी पर पड़ता है. अत: उन सारे रिश्तों को, जो हमारे दांपत्य को प्रभावित करते हैं, सीमित कर देना ही बेहतर होगा.

कुछ पति तो चाहते हुए भी अपने पुराने दोस्तों को मना नहीं कर पाते, क्योंकि उन्हें ‘जोरू का गुलाम’ अथवा ‘बीवी के आगे दोस्तों को भूल गए, बेटा’ जैसे कमेंट सुनना अच्छा नहीं लगता. ऐसे पतियों को इस प्रकार के दोस्तों को जवाब देना आना चाहिए, ध्यान रहे ऐसे कमेंट देने वाले अकसर खुद ही जोरू के सताए हुए होते हैं या फिर उन्होंने दांपत्य जीवन की आवश्यकताओं का प्रैक्टिकल अनुभव ही नहीं किया होता.

सांप भी मरे और लाठी भी न टूटे

जरूरत से ज्यादा यारीदोस्ती में बहुत सारी गलतफहमियां भी बढ़ती हैं. साथ ही यह जरूरी तो नहीं कि हमारे अपने दोस्तों को हमारा जीवनसाथी भी खुलेदिल से स्वीकार करे. इस के लिए उन पर अनावश्यक दबाव डालने का परिणाम भी बुरा हो सकता है. अत: इन समस्याओं से बचने के लिए कुछ कारगर उपाय अपनाए जा सकते हैं :

अपने बचपन की दोस्ती को जबरदस्ती अपने जीवनसाथी पर न थोपें.

अगर आप के दोस्त आप के लिए बहुत अहम हों तब भी उन से मिलने अथवा गेटटूगेदर का वह वक्त तय करें, जो आप के साथी को सूट करे.

बेहतर होगा कि जैसे आप ने एकदूसरे को अपनाया है वैसे एकदूसरे के दोस्तों को भी स्वीकार करें. इस से आप के साथी को खुशी होगी.

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जीवनसाथी के दोस्तों के प्रति कोई पूर्वाग्रह न पालें. बेवजह उन पर चिढ़ने के बजाय उन की इच्छाओं पर ध्यान दें.

‘तुम्हारे दोस्त’, ‘तुम्हारी सहेलिया’ के बदले कौमन दोस्ती पर अधिक जोर दें.

अपने बेस्ट फ्रेंड को भी अपनी सीमाएं न लांघने दें. उसे अपने दांपत्य में जरूरत से ज्यादा दखलअंदाजी की छूट न दें.

आफिस के सहकर्मियों की भी सीमाएं तय करें.

अपने दांपत्य की निजी बातें कभी अपने दोस्तों पर जाहिर न करें.

आखिर तुम दिनभर करती क्या हो

मुझे आज से अधिक सुंदर वह कभी न लगी. उस की कुछ भारी काया जो पहले मुझे स्थूल नजर आती थी आज बेहद सुडौल दिखाई दे रही है. बालों का वह बेतरतीब जूड़ा जिस की उलझी लटें अकसर उस के गालों पर ढुलक कर मेरे झल्लाने की वजह बनती थीं आज उन्हें हौले से सुलझाने को जी चाह रहा था. उस का वह सादा लिबास जिस को मैं कभी फूहड़, गंवार की संज्ञा दिया करता था आज सलीकेदार लग रहा था.

मैं अचंभित था अपनी ही सोच पर क्योंकि मेरे दो बच्चों की मां, मेरी वह पत्नी आज मुझे बेहद हसीन लग रही थी. भले ही आप को यह अतिश्योक्ति लगे पर मुझे कहने से गुरेज नहीं कि वह मुझे किसी कवि की कल्पना की खूबसूरत नायिका सी आकर्षक प्रतीत हो रही थी जिस का रूपसौंदर्य बड़ेबड़े ऋषिमुनियों की तपस्या को भंग करने की ताकत रखता था. आज उसे प्रेम करने की अभिलाषा ने मेरे अंतरमन को हुलसा दिया था.

ऐसा नहीं था कि पत्नी के प्रति विचारों ने पहली बार मेरे दिल पर दस्तक दी थी. 12 वर्ष पूर्व जब छरहरी सुंदर देहयष्टि वाली नंदिनी मेरी संगिनी बनी थी तो मैं अपनी किस्मत पर फूला न समाया था. कजिन की शादी में होने वाली भाभी की सांवलीसलोनी बहन के कमर तक लहराते केशों को देखते ही मैं अपनी सुधबुध खो बैठा था और स्वयं ही मां के हाथों उस के घर विवाह प्रस्ताव भिजवा दिया था.

जिंदगी की गाड़ी बड़ी खुशीखुशी चल रही थी कि दोनों बच्चों के जन्म के बाद उस की प्राथमिकताएं जैसे बदलने लगीं. मेरी बजाय अब वह बच्चों को काफी वक्त देने लगी. अपनी ओर से बेपरवाह हो कर अकसर वह घर के कामों में लगी रहती. धीरेधीरे उस के शरीर में आते परिवर्तन ने भी उस के प्रति मेरी विरक्ति को बढ़ा दिया.

मेरे सारे कार्य वह अब भी सुचारु रूप से किया करती. लेकिन मुझे अब उस में वह कशिश दिखाई न देती और मैं उस से चिढ़ाचिढ़ा सा रहता. घरगृहस्थी के कामों से फुर्सत हो जब रात को बिस्तर पर वह मेरा सानिध्य चाहती तो उस के अस्तव्यस्त कपड़ों से आती तेलमसालों की गंध मुझे बेचैन कर देती और मैं उसे बुरी तरह झिड़क देता.

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अब किसी फंक्शन या पार्टी में भी उसे अपने साथ ले जाने से मुझे कोफ्त होती, क्योंकि अपने दोस्तों की फैशनेबल, स्लिमट्रिम व स्मार्ट बीवियों की तुलना में वह मुझे गंवार दिखाई देती जिसे न कपडे़ पहनने की तमीज थी और न ही सजने का सलीका. कभीकभी मैं उस पर झल्ला पड़ता कि दूसरों की बीवियों को देखो कैसे सजसंवर कर कायदे से रहती हैं और एक तुम हो कि तरीके से कभी बाल भी नहीं बनातीं. आखिर घर पर बैठेबैठे दिनभर तुम करती क्या हो?

अगर मुझे मालूम होता कि तुम इतनी आलसी होगी तो तुम से शादी कर मैं अपनी जिंदगी कभी बर्बाद नहीं करता. मेरी झल्लाहट पर उस की आंखों के कटोरे छलकने को हो आते और उस के होंठों पर चुप्पी की मुहर लग जाती. तब मैं गुस्से से पैर पटकता बाहर निकल जाता और यहां वहां बेवजह भटकता देर रात ही घर में दाखिल होता और वह चेहरे पर बगैर कोई शिकन लाए मेरा खाना गरम कर मुझे परोस देती.

ऐसा नहीं कि उस ने मेरे मुताबिक अपने आप को कभी ढालने की कोशिश नहीं की. लेकिन जब भी वह ऐसा कुछ करती मुझे वह और भी गईगुजरी नजर आती. धीरेधीरे मेरे रवैए से दुखी हो कर उस ने अपने आप को बच्चों की परवरिश व घर की जिम्मेदारियों में समेट लिया और उस के साथ ही शादी को मैं अपनी फूटी किस्मत मान अपने भाग्य को कोसता रह गया.

इसी बीच आया कोरोना

इस बीच कोरोना के कहर से पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था चरमरा उठी. आमजन की सुरक्षा के मध्यनजर सरकार द्वारा लौकडाउन की घोषणा कर दी गई. इसे भी नियति का एक कुठाराघात समझ मैं ने दुखी मन से स्वीकार किया, क्योंकि अब 24 घंटे अपनी फूहड़ पत्नी के साथ उस का चेहरा देखते हुए बिताना था. कुछ दिन यों ही गुजर गए. कुछ देर टीवी देख कर और कुछ देर बच्चों के साथ मस्तीमजाक में मैं अपना वक्त बिताता. यारदोस्तों के साथ मोबाइल पर बात कर के भी मेरा थोड़ा समय बीत जाता.

शाम का वक्त मुझे अपनी मां के साथ बिताना अच्छा लगता. पर उन के ऊपर नंदिनी

ने न जाने क्या जादू कर रखा था कि वे हमेशा उस की तारीफों के पुल बांधा करतीं और मैं अनमना हो कर वहां से उठ कर अपने कमरे में आ जाता जहां रात से पहले नंदिनी का प्रवेश न के बराबर होता.

2 दिन से मेरी तबियत ठीक नहीं लग रही थी. हलकी हरारत के साथ शरीर में टूटन थी. हालांकि रात को क्रोसिन लेने से बुखार तो फिलहाल ठीक था पर सिर दर्द से जैसे फटा जा रहा था. रात में अच्छे से नींद न आने के कारण भी शरीर निस्तेज जान पड़ता था.

जैसेतैसे फै्रश हो कर मैं ने चाय पी और थोड़ा सा नाश्ता किया. मेरी तबियत खराब जान नंदिनी मेरे सिरहाने बैठ कर मेरा सिर दबाने लगी. न जाने क्यों अरसे बाद उस के हाथों का स्पर्श मुझे बहुत अच्छा लग रहा था या इतने दिनों से घर पर रहने के कारण शायद उस के प्रति मेरा नजरिया बदल रहा था. कारण कोई भी हो, उस की इस जादुई छुवन ने मेरा सिरदर्द काफी हद तक कम कर दिया और कुछ ही देर में मुझे गहरी नींद आ गई. इस वक्त नंदिनी ने मेरा बहुत ध्यान रखा. इस बीच उस के स्नेहसिक्त सामीप्य ने मुझ में जैसे एक नई शक्ति का संचार कर दिया था. उसे सहज रूप से तल्लीनतापूर्वक घर के काम करते देख मुझे अच्छा लगने लगा था.

खुद से हुआ शर्मिंदा

आज शाम कुछ देर पहले अपने दोस्तों से फोन पर मेरी बात हुई थी. आश्चर्य की बात थी उन में से ज्यादातर अपनी पत्नियों से दुखी थे और जल्द से जल्द लौकडाउन के खत्म होने का इंतजार कर रहे थे. वे बता रहे थे कि किस तरह बाईयों के न आने से उन की पत्नियों ने उन का जीना दूभर कर दिया है. घर के ज्यादातर काम उन्हें थमा कर वे स्वयं टीवी या मोबाइल पर अपना पूरा समय बिताती हैं. न समय पर खाना बनता है और न ही बच्चों पर ध्यान दिया जाता है.

उन से बात करतेकरते अचानक मेरी नजर नंदिनी पर जा टिकी जो मेरी मां और बच्चों के साथ हौल में बैठी राजा, मंत्री, चोर, सिपाही खेल रही थी. कभी राजा बन कर वह सब पर हुकुम चलाती तो कभी चतुर मंत्री बन चोर को झट से पकड़ लेती. कभी सिपाही की पर्ची मिलते ही मुसकरा उठती तो कभी चोर बन कर मंत्री को बरगलाने की पूरी कोशिश करती. उस वक्त सभी के खिलखिलाते चेहरे देख कर मेरे मन को कैसा सुकून मिला, मैं बता नहीं सकता.

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थोड़ी देर बाद बच्चे अपनी दादी से कहानी सुनने में व्यस्त हो गए और मेरी नजर चौके में चाय बनाती अपनी पत्नी पर फिर जा टिकी. आखिर उस की गलती ही क्या थी. अपने आप को भूल कर उस मासूम ने मेरे घरपरिवार और बच्चों को संभाला था. मेरी बीमार मां की तनमन से सेवा की थी. अगर उस वक्त मैं ने थोड़ा भी उस का हौसला बढ़ाया होता तो शायद वह आज अपने प्रति भी जागरूक रहती.

हलके पीले रंग के सलवारकुरते में उसे देख मुझे बचपन के अपने घर के बगीचे का ध्यान हो आया. जिस में बने लौन के चारों किनारों पर मांपापा ने सूरजमुखी के पेड़ लगा रखे थे जिन पर लगे बड़े पीले फूल मुझे खासा आकर्षित करते थे. जिन्हें मैं दिनभर इस उत्सुकता से निहारा कराता था कि वे सूरज के जाने की दिशा में ही अपना मुंह कैसे घुमाए जाते हैं. आज मेरे बावरे नयन भी पत्नी का अनुसरण करते उसे निहारने की कोशिश में लगे थे. सोचते हुए अनायास ही मेरे मुख पर मुसकान आ गई.

सब के साथ चाय पीने की लालसा में मैं बालकनी से उठ कर हौल में चला आया. मेरी चोर नजरें अभी भी उस का पीछा कर रही थीं. आडंबर विहीन उस के सादगी भरे सौंदर्य ने मुझे अभिभूत कर दिया था. मुझे अपने ऊपर तरस आ रहा था कि सालों तक उस की इस अंदरूनी खूबसूरती को मैं कैसे न देख पाया, कैसे अपनी सुलक्षणा पत्नी के गुणों को न पहचाना और जानेअनजाने उस के निश्छल हृदय को अपने व्यंग्यबाणों से पलपल बेधता रहा.

आज उन सभी गलतियों के लिए मन ही मन शर्मिंदा हो उस से क्षमायाचना हेतु मैं उठ खड़ा हुआ आने वाले सभी लम्हों को उस के साथ जीने के लिए. लौकडाउन में मिले फुर्सत के क्षणों ने मुझे मेरी जीवनसंगिनी लौटा दी थी और मैं लौटा देना चाहता था उसे उस के चेहरे की वह मुसकान जो मेरी सच्ची खुशी की परिचायक थी.

मेरे पति खाने-पीने के साथ शराब के शौकीन हो गए हैं?

सवाल-

मेरे पति हाल ही में अधिकारी पद से सेवानिवृत्त हुए हैं. मेरे 2 बच्चे हैं जो शादीशुदा जिंदगी बिता रहे हैं और दूसरे शहर में रहते हैं. पति नौकरी से रिटायर्ड हुए तो सोचा अब बाकी की जिंदगी चैन से बिताएंगे. मगर पति के बदले व्यवहार से हैरान हूं.

दरअसल, पति महीने में 2-4 दिन दूसरे शहर जाते हैं और वहां कौलगर्ल्स के साथ समय बिताते हैं. ये सब मुझे उन के मोबाइल से पता चला है. दूसरी बड़ी परेशानी घर पर आएदिन होने वाली पार्टियां हैं, जिन में खानेपीने के साथ शराब का दौर भी खूब चलता है और पार्टी में साथ देने ननदें भी आ जाती हैं, जो आसपास ही रहती हैं. कभीकभी लगता है कि ये सारी जानकारी अपने बच्चों को दे दूं, पर फिर यह सोच कर नहीं देती कि अपने पिता के इस घिनौने चेहरे को देखने के बाद पिता और बच्चों के आपसी रिश्ते खराब हो जाएंगे. मैं ने पति को कई बार समझाने की कोशिश की पर जवाब यही मिलता है कि सारी उम्र तुम सभी के लिए बिता दी अब बस अपने लिए जीऊंगा. मुझे कोई रास्ता नहीं दिख रहा है कि किस तरह पति को सही रास्ते पर लाऊं. कृपया बताएं मैं क्या करूं?

जवाब-

बढ़ती उम्र के साथ न तो चाहतें कम होती हैं और न ही शारीरिक जरूरतें. यह अच्छा है कि आप के बच्चे अपने पैरों पर खड़े हैं और अच्छी जिंदगी बिता रहे हैं. तब तो आप के पास भी समय होगा कि आप भी खुल कर पुरानी यादों को ताजा करें और पति के साथ अधिक से अधिक समय बिताएं. बेहतर होगा कि आप भी खुद को बुजुर्ग न समझ कर जमाने के साथ चलिए. सजिएसंवरिए, पति के साथ फिल्म देखने, मौल घूमने, शौपिंग आदि करने से आप को भी पति का सामीप्य पसंद आने लगेगा. पति में थोड़ा परिवर्तन आए तो उन्हें प्यार से समझाबुझा सकती हैं. आप अपनी ननदों से भी कह सकती हैं कि उन का घर पर तभी स्वागत किया जाएगा जब शराब आदि बुरी चीजों से वे दूर रहें. बेहतर होगा कि आप भी उन की पार्टी में शामिल रहें, मगर इस शर्त पर कि वहां शराब का दौर नहीं चलेगा. इस सब के बावजूद पति और ननदें सही रास्ते पर आती न दिखें तो आप सख्ती से पेश आ सकती हैं. बात बिगड़ती दिखे तो बच्चों से सारी बात शेयर कर सकती हैं. वैसे, इस उम्र में विवाहित पुरुष अथवा स्त्री दोनों को ही एकदूसरे की जरूरत अधिक होती है, क्योंकि यह उम्र आने तक बच्चे भी सैटल हो कर अपनेअपने परिवार व कैरियर बनाने में व्यस्त हो जाते हैं. पति के साथ अधिक से अधिक रहेंगी तो उन्हें भी आप का साथ भाएगा और संभव है कि वे सही रास्ते पर आ जाएं.

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