झूठ पुरुष ही क्यों बोलते हैं

सुरेश ने फोन पर नीलम से कहा कि उसे घर आने में देर होगी और आज रात की पार्टी में नहीं जा सकेगा. नीलम को पहले तो गुस्सा आया, लेकिन फिर सुरेश के काम की व्यस्तता को समझ कर चुप रह गई. वह अपनी सहेली से फोन पर बात कर ही रही थी कि अचानक दरवाजे की घंटी बजी. दरवाजा खोला, तो सामने सुरेश हंसता हुआ खड़ा था क्योंकि उसे पता था कि नीलम गुस्सा होगी.

अब नीलम ने सहेली के साथ बात करना बंद किया और सुरेश को डांटने लगी कि यह कैसा झूठ है, जो मुझे तकलीफ दे? सुरेश ने हंसते हुए जवाब दिया कि मैं तुम्हें सरप्राइज देना चाहता था, इसलिए ऐसा किया. अब नीलम मान गई और दोनों पार्टी में चले गए.

यह मजेदार, छोटा सा झूठ था और सरप्राइज होने की वजह से सब ठीक हो गया, लेकिन ऐसी कई घटनाएं देखी गई हैं, जहां झूठ बोलने की आदत ने सारे रिश्ते खत्म कर दिए.

‘सफेद झूठ,’ ‘झूठ बोले कौआ काटे,’ ‘आमदनी अठन्नी’ आदि कई ऐसी फिल्में हैं, जो झूठ बोलने को ले कर ही कौमेडी के रूप में बनाई गईं और दर्शकों ने इन फिल्मों को पसंद किया क्योंकि ये परदे पर थीं, रियल लाइफ में नहीं. मगर झूठ बोलने की आदत कई बार जीवन के लिए खतरनाक भी हो जाती है और इस झूठ को सच साबित करने में सालों लग जाते हैं.

बारबार झूठ बोलना

यह सही है कि हर धर्म में झूठी बातों का शिकार महिलाएं ही हुई हैं. इन्हें कहने वाले पुरुष ही हैं क्योंकि महिलाएं संवेदनशील होती हैं और इन धर्मगुरुओं की बातों को सहजता से मान लेती हैं. मसलन, बीमार होने पर भी व्रत या उपवास करना, अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए नंगे पांव मीलों चलना आदि सभी निर्देशों को महिलाएं सच्चे मन से पूरा करती हैं.

रिसर्च में भी यह बात सामने आई है कि महिलाएं पुरुषों की तुलना में झूठ कम बोल पाती हैं. असल में अधिकतर महिलाएं पुरुषों से अधिक सैंसिटिव और ईमानदार होती हैं. उन पर लोग आसानी से ट्रस्ट कर सकते हैं. इसलिए उन्हें अधिक झूठ बोलने की जरूरत नहीं पड़ती. जैंडर को ले कर शोध करने पर यह भी पाया गया कि झूठ बोलने से अगर झूठ बोलने वाले को फायदा होता है, तो वह बारबार झूठ बोलता है. पुरुषों के लगातार झूठ बोलने की वजहें 3 हैं. शेम, प्रोटैक्शन ऐंड रैपुटेशन.

क्या कहते हैं मनोवैज्ञानिक

असल में अपना रियल चेहरा छिपाने के लिए लोग झूठ बोलते हैं ताकि दूसरे की भावनाओं को ठेस न पहुंचे. इस के अलावा दूसरों को इंप्रैस करने, उत्तरदायित्व से पल्ला झड़ने, कुकर्मों को छिपाने के लिए सामाजिक पहलुओं से दूर भागने, कनफ्लिक्ट को दूर करने आदि कई कारणों से झूठ बोलते हैं. मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि झूठ बोलना लाइफ की एक कंडीशन है.

मस्तिष्क की ऐक्टिविटी के बारे में बात की जाए तो पता चलता है कि झूठ बोलने से हमारे मस्तिष्क के कुछ पार्ट स्टिम्युलेट भी हो जाते हैं. इन में पहले फ्रंटल लोब यानी मस्तिष्क के सब से आगे के हिस्से में क्षमता सचाई को आसानी से दबाने की होती है और यह झूठ को एक इंटैलेक्चुअल तरीके से रखने की क्षमता रखता है. दूसरा लिंबिक सिस्टम, जो अधिकतर ऐंग्जौइटी की वजह से होता है. इस में झूठ बोलना एक धोखा भी माना जाता है और व्यक्ति कई बार अपराधबोध या स्ट्रैस्ड से ग्रस्त हो कर भी झूठ बोलता है. तीसरा टैंपोरल लोब में व्यक्ति झूठ बोलने के बाद आनंद महसूस करता है. झूठ बोलने पर हमारा ब्रेन सब से अधिक व्यस्त रहता है.

झूठ बोलने का सहारा

इस बारे में काउंसलर राशिदा कपाडि़या कहती हैं कि सर्वे में भी यह स्पष्ट है कि झूठ बोलने की आदत लड़कों को बचपन से ही शुरू हो जाती है और यह झूठ वे अपनी मां से अधिकतर बोलते हैं. इस की वजह यह है कि पुरुष संबंधों में कड़वाहट नहीं चाहते क्योंकि सही बात शायद उन के पार्टनर को पसंद न हो, तर्कवितर्क चल सकता है, इसलिए उसे अवौइड करने के लिए पुरुष झूठ का सहारा लेते हैं. इस के अलावा किसी काम को अवौइड करना या सोशल इवेंट में नहीं जाना, हो तो झूठ बोलते रहते हैं, साथ ही पुरुषों का इगो बड़ा होता है. वे अपनी कमजोरियां दिखाना नहीं चाहते. इस वजह से भी झूठ बोलते हैं.

कई बार किसी दूसरे शौक को पूरा करने के लिए झूठ बोलने का सहारा लिया जाता है, साथ ही यह भी देखा गया है कि पुरुषों को गिल्ट फीलिंग महिलाओं की अपेक्षा कम होती है. महिलाओं में अपराधबोध अधिक होता है. वे झूठ बोल कर अधिक समय तक नहीं रह पातीं और सच बोल देती हैं. पुरुष इमोशनल कम होते हैं और प्रैक्टिकल अधिक सोचते हैं. झूठ बोलना उन के लिए बड़ी बात नहीं होती क्योंकि व्यवसाय या जौब में वे छोटाछोटा झूठ बोलते रहते हैं. पुरुषों का झूठ पकड़ना आसान नहीं होता क्योंकि वे बहुत सफाई से झूठ बोल लेते हैं और महिलाएं भी उस पर आसानी से विश्वास कर लेती हैं.

मैं जिससे प्यार करती हूं वो पिछड़ी जाति का है, घरवालों को शादी के लिए कैसे मनाऊं?

सवाल:

मेरी उम्र 20 साल है और एक कंपनी में काम करती हूं. मैं एक लड़के से प्यार करती हूं. वह भी मुझे बेहद चाहता है. मगर समस्या यह है कि मैं उच्च जाति की हूं और लड़का पिछड़ी जाति का. घर वाले इस रिश्ते के लिए शायद ही तैयार हों. कृपया उचित सलाह दें?

जवाब…

आज के समय में अंतर्जातीय विवाह आम हैं. समाज का बड़ा वर्ग अब संकीर्ण विचारधारा से बाहर निकल कर ऐसे रिश्तों को अपना रहा है. जातिप्रथा, ऊंचनीच आदि सब बेकार की बातें हैं. बेहतर होगा कि आप अपने घर में बातचीत चलाएं और मन की बात घर वालों को खुल कर बताएं. अगर वे नहीं मानते तो कोर्ट मैरिज कर सकती हैं. लड़के की उम्र अगर 21 साल और लड़की की उम्र 18 साल हो तो उन्हें आपसी रजामंदी से शादी करने से कोई नहीं रोक सकता.

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सेक्स के दौरान हार्टअटैक, जानें क्या है सच्चाई…….

सेक्स के कारण दिल का धड़कना बंद हो जाए, यह दुर्लभ होता है. यूएसए टुडे की संवाददाता किम पेंटर का कहना है कि एक बड़ी शोध के अनुसार यह तथ्य सामने आया है कि सेक्स के दौरान या इसके बाद आमतौर पर हृदय गति रुकना बहुत कम अवसरों पर होता है और अगर ऐसा होता भी है तो यह आम तौर पर एक पुरुष के साथ ज्यादा होता है.

1 हजार महिलाओं में से किसी एक को तकलीफ…

शोध में बताया गया है कि एकाएक दिल की धड़कन रुकने के एक सौ मामलों में मात्र एक मामला सेक्स से जुड़ा होता है और एक हजार महिलाओं में से किसी एक को यह तकलीफ होती है. यह अध्ययन अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन की वैज्ञानिक बैठक के दौरान पेश किया गया था. इस अध्ययन को जर्नल ऑफ द अमेरिकन कॉलेज ऑफ कार्डियोलाजी में प्रकाशित किया गया है.

सेक्स से संबंधित खतरा बहुत कम…

सीडार्स-सिनाई हार्ट इंस्टीट्यूट, लॉस एंजिलिस के एक कार्डियोलाजिस्ट और अध्ययन के वरिष्ठ लेखक सुमित चुघ का कहना है कि हृदय रोग से पीड़ित लोग इस बात को लेकर चिंतित रहते हैं कि सेक्स खतरनाक हो सकता है, लेकिन आज हम कह सकते हैं कि इससे संबंधित खतरा बहुत कम है.

इन लोगों को ज्यादा खतरा…

एकाएक हृदयगति रुक जाने का कारण एक इलेक्ट्रिकल गड़बड़ी है जिसके चलते दिल धड़कना बंद हो जाता है. इसके ज्यादातर शिकार मारे जाते हैं लेकिन यह हृदयाघात से अलग स्थिति है क्योंकि इसके अंतर्गत हृदय को रक्त प्रवाह का बहाव रुक जाता है. लेकिन जिन लोगों को पहले भी हृदयाघात हो चुका है या फिर उनको हृदय संबंधी तकलीफें होती हैं, उनको हृदय गति रुकने का खतरा ज्यादा होता है.

आखिर क्या है सैकंड हैंड हसबैंड?

कुछ औरतें शादीशुदा पुरुषों के साथ डेट कर रही हैं और आने वाले समय में उन के विवाह बंधन में बंधने की संभावनाएं हैं. ऐसे  एक विवाह की चर्चा हर बार जोरों पर होती है उन के अपने सर्कल में. सवाल उठता है कि आखिर ऐसा क्यों होता है?

2012 में सैफ ने करीना कपूर से शादी की थी. इस से पहले वे 13 साल तक अमृता से वैवाहित रिश्ते में बंधे रह चुके थे और उन के 2 बच्चे भी थे. बच्चों ने नए पिता को सहज अपना लिया.

मौडलिंग करती करिश्मा ने भी एक बैचलर से प्यार किया और सगाई भी. लेकिन शादी की एक व्यवसाई संजय से, जो तलाकशुदा था. संजय 7 साल तक शादीशुदा रहा फिर अपनी पत्नी से अनबन के कारण तलाकके लिए अदालत पहुंचा.

मान्यता एक पीआर कंपनी में काम करती है. पहले उस की 2 शांदियां हो चुकी थीं, जिन में से एक की कोविड की बीमारी से मौत हो गई थी. पहले पति से उन की एक बेटी है. अब मान्यता के और नए पति के जुड़वां बच्चे हैं.

श्रीदेवी को तो जानते ही होंगे जिन्होंने फिल्म निर्माता बोनी कपूर से जोकि पहले से ही मोना से विवाहित थे और उन के 2 बच्चे भी थे 1996 में विवाह कर लिया था. हालांकि इस से पहले श्रीदेवी और मिथुन चक्रवर्ती की गुपचुप शादी की चर्चा भी बौलीवुड में उड़ी थी. ‘इंग्लिशविंग्लिश’ की सफलता के बाद श्रीदेवी को नए कैरियर से बहुत उम्मीदें थीं पर वे दुबई में बाथटब में मरी पाई गईं.

यकीन के साथ कहा जा सकता है कि अब बढ़ते तलाकों और बेसब्री के कारण औरतों का शादीशुदा या तलाकशुदा मर्दों के साथ शादी करने का सिलसिला बढ़ता जाएगा.

1.क्या कहती हैं मैरिज काउंसलर

एक मैरिज काउंसलर के अनुसार बहुत सी महिलाएं ऐसी हैं जो शादीशुदा पुरुषों से प्यार करने लग जाती हैं, उन के प्रेम में पड़ जाती हैं. फिल्मी दुनिया में तो ऐसे कई उदाहरण हैं जैसेकि हेमामालिनी, जयाप्रदा और श्रीदेवी ऐसे पुरुषों के न सिर्फ प्यार में गिरफ्तार हुईं बल्कि उन्हीं से शादी भी की. क्या अच्छे कुंआरे लड़कों की कमी होती है या फिर कोई और कारण है? ऐसे अफेयर्स महिलाओं को द अदर वूमन या होम ब्रेकर का टैग लगा देते हैं और लोग यहां तक भी कह देते हैं कि सैलिब्रिटीज सैकंड हैंड हसबैंड का दौर चलता है.

यहां कुछ ऐसी वजहें दी जा रही हैं जो बताएंगी कि प्यार, शादी और सैक्स के लिए महिलाएं शादीशुदा मर्द ही क्यों प्रैफर करती हैं?

2.वह एक चैलेंज होता है

एक शादीशुदा पुरुष के साथ विवाह करना एक महिला के लिए दूसरी महिला पर विजय पा लेने की तरह होता है. ऐसे पुरुषों को अपनी ओर आकर्षित कर लेना उस के अनुभव, आत्मविश्वास और क्षमता को और भी बढ़ा देता है. ऐसे पुरुषों को अपना बना लेना इन महिलाओं के लिए एक ट्रौफी पा लेने की भांति होता है. उन्हें पाना असंभव को संभव बनाने जैसा होता है. बहुत सी महिलाएं ऐसी चीजें पाना चाहती हैं जो किसी और महिला से जुड़ी हों या उस के पास हों. शादीशुदा पुरुषों को पाने की एक वजह ऐसी महिलाओं में ईर्ष्या या बदला लेने की प्रवृत्ति के कारण आई हुई हो सकती है.

3.एक शादीशुदा पुरुष के पास हर जवाब होता है

बहुत सी महिलाएं मानती हैं कि बैचलरों की तुलना में शादीशुदा पुरुष उन की भावनात्मक और भौतिक जरूरतों को बेहतर ढंग से समझ पाते हैं. उन के पास सभी सवालों के जवाब मौजूद होते हैं और ऐसी समस्याओं से निबटने और उन से उबरने की कला में वे पहले से ही अनुभवी होते हैं.

4.अवैधानिक फल

समाज ऐसी महिलाओं को सपोर्ट नहीं करता, जो अन्य महिलाओं के पति को छीन लेती हैं. पहले से अनुभवी पुरुषों को पाने की लालसा सामाजिक लिहाज से गलत मानी जाती है, यही बात कुछ महिलाओं को खासतौर से इस ओर आकर्षित करती है. बहुत से ऐसे लोग हैं जिन्हें अपनी प्लेट से कहीं ज्यादा दूसरों की प्लेट का खाना स्वादिष्ठ दिखता है. यह मनुष्य की सामान्य आदत है कि जो उस के पास नहीं होता, उसे वही अच्छा लगता और लुभाता है. शादीशुदा पुरुषों का साथ कुछ महिलाओं के आत्मविश्वास को और भी बढ़ा देता है.

5.कोई रिश्ता नहीं रखने की प्रवृत्ति:

कैरियर केंद्रित महिलाओं के लिए शादीशुदा पुरुष आदर्श महसूस होते हैं, जो उन के साथ सैक्स के लिए तो तैयार हो जाते हैं लेकिन शादी नहीं करना चाहते. जब वे किसी ऐसे को पसंद करती हैं, जो उन का नहीं हो सकता तो ऐसे पुरुषों को उन की पत्नियों के साथ या उस रिश्ते से संघर्ष भी नहीं करना पड़ता. इस तरह दोनों ही के लिए ऐसे रिश्ते से न तो कोई रिस्क रह जाता है और न ही ऐतराज.

6.शादीशुदा पुरुष बिस्तर पर अच्छे होते हैं

बहुत सी महिलाएं मानती हैं कि शादीशुदा पुरुष, जिन्हें सैक्स का काफी अनुभव होता है, वे बैचलर लड़कों के मुकाबले काफी अच्छे होते हैं. ऐसे ही कुछ शादीशुदा पुरुष हैं जिन्हें वे सोच में अपने साथ पाती हैं और महसूस करती हैं कि उन के साथ वे बेहतरीन वक्त गुजार पाएंगी.

7.वाइल्ड अट्रैक्शन

कुछ शादीशुदा पुरुष आकर्षक और चार्मिंग होते हैं जिन्हें देर तक ऐंजौय करना पसंद होता है. बहुत सी महिलाओं के लिए ऐसे पुरुषों से निकलने वाली तरंगोंको रोक पाना परेशानी भरा सबब होता है.

8.योग्य सिंगल पुरुष नहीं चुन पातीं

योग्य सिंगल पुरुष कम ही मिल पाते हैं. इस प्रतियोगिता से पार पाने के लिए वे शादीशुदा पुरुषों का ही चुनाव कर लेती हैं.

9.यह प्यार भी हो सकता है

प्यार किसी से भी हो सकता है. जैसाकि प्यार के बारे में प्रसिद्ध है कि प्यार अंधा होता है और जब कोई प्यार में होता है तो यह माने नहीं रह जाता कि वह शादीशुदा है या सिंगल.

10.मैट कौपीइंग

बहुत सी महिलाएं यह मानती हैं कि यदि किसी पुरुष के साथ या पीछे कोई और महिला है तो वह पुरुष जरूर कुछ न कुछ खास की तलाश में होगा. बस, उन की इस तलाश को पूरा कर के वे खुद को खुशहाल मानने लगते हैं.

11. सैक्स ऐडिक्ट

कुछ महिलाएं सिर्फ सैक्स करना चाहती हैं, चाहे उन के साथ कोई भी क्यों न हो. उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह व्यक्ति सैक्स ऐडिक्ट होगा जबकि वह उन के साथ समर्पित नहीं भी हो सकता है.

बहरहाल, वजह जो भी हो, इतना अवश्य है कि अब राजनीति, बिजनैस में सैकंड हैंड हसबैंड प्रेम दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है और अब बड़े पैमाने पर नजर आने लगा है. अब अखबारों में, मैट्रीमोनियल साइटों, फेसबुक पर सैकड़ों औरतों के बायोडाटा दिख जाएंगे जिन्हें सैकंड हसबैंड से कोई आपत्ति नहीं है.

पुरुषों के अधिक झूठ बोलने के पीछे का राज क्या है, जानिये यहां

सुरेश ने फ़ोन पर नीलम को कहा कि उसे घर आने में देर होगी और आज रात की पार्टी में नहीं जा सकेगा. नीलम को पहले गुस्सा आया, लेकिन सुरेश के काम की व्यस्तता को समझकर चुप रह गई. वह अपनी सहेली से फ़ोन पर बात कर ही रही थी कि अचानक दरवाजे की घंटी बजी, दरवाजा खोला, तो सामने सुरेश हँसता हुआ खड़ा था, क्योंकि उसे पता था कि नीलम गुस्सा होगी. अब नीलम ने सहेली के साथ बात करना बंद किया और सुरेश को डांटने लगी कि ये कैसा झूठ है, जो मुझे तकलीफ दें. सुरेश ने हँसते हुए जवाब दिया कि मैं तुम्हे सरप्राइज देना चाहता था, इसलिए ऐसा किया. अब नीलम मान गई और दोनों पार्टी में चले गए. ये मजेदार, छोटी सी झूठ थी और सरप्राइज होने की वजह से सब ठीक हो गया, लेकिन ऐसी कई घटनाएं देखी गई है, जहाँ झूठ  बोलने की आदत ने सारे रिश्ते ख़त्म कर दिए.

सफ़ेद झूठ…..’, ‘झूठ बोले कौवा काटे…’ आमदनी अठन्नी…..आदि कई ऐसी फिल्में है, जो झूठ बोलने को लेकर ही कॉमेडी के रूप में बनाई गई और दर्शकों ने ऐसी फिल्मों को पसंद किया, क्योंकि ये पर्दे पर थी, रियल लाइफ में नहीं, लेकिन झूठ बोलने की आदत कई बार जीवन के लिए खतरनाक भी हो जाती है और इस झूठ को सच साबित करने में सालों लग जाते है.

ये सही है कि हर धर्म में झूठी बातों का शिकार महिलाएं ही हुई है, इसे कहने वाले पुरुष ही है, क्योंकि महिलाएं संवेदनशील होती है और इन धर्मगुरुओं की बातों को सहजता से मान लेती है, मसलन बीमार होने पर भी व्रत या उपवास करना, अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए नंगे पाँव मीलों चलना आदि सभी निर्देशों को महिलाएं सच्चे मन से पूरा करती है.

रिसर्च में भी ये बात सामने आई है कि महिलाएं पुरुषों की तुलना में झूठ कम बोल पाती है. असल में अधिकतर महिलाएं पुरुषों से अधिक सेंसेटिव और इमानदार होती है, उनपर लोग आसानी से ट्रस्ट कर सकते है. इसलिए उन्हें अधिक झूठ बोलने की जरुरत नहीं पड़ती. जेंडर को लेकर शोध करने पर यह भी पाया गया कि झूठ बोलने से अगर झूठ बोलने वाले को फायदा होता है, तो वह बार-बार झूठ बोलता है. पुरुषों के लगातार झूठ बोलने की वजह 3 है, शेम , प्रोटेक्शन एंड रेपुटेशन.

असल में अपना रियल चेहरा छुपाने के लिए लोग झूठ बोलते है, ताकि दूसरे की भावनाओं को ठेस न पहुंचे. इसके अलावा दूसरों को इम्प्रेस करने, उत्तरदायित्व से पल्ला झाड़ने, कुकर्मों को छिपाने के लिए, सामाजिक पहलूओं से दूर भागने, कनफ्लिक्ट को दूर करने, आदि कई कारणों से बोलते है. मनोवैज्ञानिक मानते है कि झूठ बोलना लाइफ की एक कंडीशन है.

मस्तिष्क की एक्टिविटी के बारें में बात की जाय तो पता चलता है कि झूठ बोलने से हमारे मस्तिष्क की कुछ पार्ट स्टीमुलेट भी हो जाता है. इसमें पहले फ्रंटल लोब यानि जिसकी क्षमता सच्चाई को आसानी से दबाने की होती है और ये झूठ को एक इंटेलेक्चुअल तरीके से रखने की क्षमता रखता है. दूसरा लिम्बिक सिस्टम, जो अधिकतर एंग्जायटी की वजह से होता है, इसमें झूठ बोलना एक धोखा भी माना जाता है और व्यक्ति कई बार अपराधबोध या स्ट्रेस्ड से ग्रसित होकर भी झूठ बोलता है. तीसरा टेम्पोरल लोब में व्यक्ति झूठ बोलने के बाद से एक आनंद महसूस करता है. झूठ बोलने पर हमारा ब्रेन सबसे अधिक व्यस्त रहता है.

इस बारें में काउंसलर राशिदा कपाडिया कहती है कि सर्वे में भी ये स्पष्ट है, झूठ बोलने की आदत लड़कों को बचपन से ही शुरू हो जाती है और ये झूठ वे अपनी माँ से अधिकतर बोलते है. इसकी वजह यह है कि पुरुष संबंधों में कडवाहट नहीं चाहते, क्योंकि सही बात शायद उनके पार्टनर को पसंद न हो, तर्क-वितर्क चल सकता है.

इसलिए उसे अवॉयड करने के लिए पुरुष झूठ का सहारा लेते है. इसके अलावा किसी काम को अवॉयड करना, या सोशल इवेंट में नहीं जाना, हो तो झूठ बोलते रहते है. साथ ही पुरुषों का इगो बड़ा होता है, वे अपनी कमजोरियां दिखाना नहीं चाहते, इस वजह से भी झूठ बोलते है. कई बार किसी दूसरे शौक को पूरा करने के लिए झूठ बोलने का सहारा लिया जाता है. साथ ही यह भी देखा गया है कि पुरुषों को गिल्ट फीलिंग महिलाओं की अपेक्षा कम होती है.

महिलाओं में अपराधबोध अधिक होता है, वे झूठ बोलकर अधिक समय तक नहीं रह पाती और सच बोल देती है. पुरुष इमोशनल कम होते है और प्रैक्टिकल अधिक सोचते है. झूठ बोलना उनके लिए बड़ी बात नहीं होती, क्योंकि व्यवसाय या जॉब में वे छोटी-छोटी झूठ बोलते रहते है. पुरुषों का झूठ पकड़ना आसान नहीं होता, क्योंकि वे बहुत सफाई से झूठ बोल लेते है और  महिलाएं भी उसे आसानी से विश्वास कर लेती है.

जब बीवी करे बेवफाई,तो कैसे डील करें

ऐक्स्ट्रा मैरिटल डेटिंग ऐप ग्लीडेन के अनुसार, भारत में भी अब लोग खुल कर एडल्ट्री के अवसर ढूंढ़ते हुए उन की साइटों पर आते हैं और ऐसी कई साइटें जिन से आप चाहें तो कोई शादीशुदा या गैर शादीशुदा आदमी औरतों से जुड़ सकता है. बेवफाई न पहले कभी कोई अजूबा थी न आज है. ‘साहब बीवी गुलाम’ जैसी फिल्म में जमींदार घराने मे शादी हुई पत्नी पर बेवफाई का शक करते हुए पति ने उसे मार डाला था जबकि खुद वह दूसरी औरतों के पास खुलेआम जा रहा था.

मल्टीनैशनल कंपनी में काम करने वाला नीरज अपनी पत्नी से परेशान है. उसे लगता है कि शादी के 7 साल बाद उस की पत्नी का किसी औफिस अधिकारी से संबंध है. वह उसे पूछने से भी डरता है क्योंकि उसे पूरी तरह से यकीन नहीं. पत्नी उस से अच्छा कमाती है. कई बार वह मोबाइल की फोन की जांच करने या मैसेज चेक करना चाहता था. किया भी पर उसे पता नहीं चल पाया. करीब 2 साल से यह सब चल रहा है. आजकल वह उस से बातबात पर ?ागड़ता है. सोसायटी के लोग इस का मजा उठाते हैं. कानाफूसी करते हैं. बेटी नीरा उन दोनों की लड़ाई?ागड़े से डर कर पास के कमरे से ?ांकती है. कई बार नीरज उसे छोड़ देना चाहता है पर बेटी और पैसे की बात याद कर चुप रहता है. वह अपनी बात अपने परिवार वालों से कह चुका है. परिवार वाले कहते हैं कि उसे ही सोचना है कि वह क्या करे.

ले डूबता है गुस्सा

इस तरह की समस्या शहरों में आम है. यहां पतिपत्नी सभी काम करते हैं क्योंकि यहां फ्लैट खरीदना और आज की जीवनशैली से तालमेल बैठाना बिना दोनों के काम किए संभव नहीं होता. ऐसे में अगर पत्नी पूरे दिन औफिस में बिताती है और किसी से कुछ संबंध बन भी जाए तो पति का इसे सहन करना नामुमकिन हो जाता है. कई पति तो मारपीट करते हैं कुछ अपने पति की हत्या कर देते हैं. बाद में पता चलता है कि बात उतनी गंभीर नहीं थी जितना कि उन्होंने सोचा था. लेकिन आवेश में आ कर गलत काम हो जाने के बाद फिर से उसे वापस तो नहीं लाया जा सकता. कई बार उलटा होता है और बेवफा पत्नी ही पति की हत्या कर देती है.

गंभीर नतीजे

एक रिपोर्ट के अनुसार लखनऊ क्षेत्र में सितंबर, 2022 में पत्नी ने प्रेमी के साथ मिल कर पति को मार डाला. उस की दुर्घटना हुई यह दिखाने के लिए पहले उस की गला घोंट कर हत्या की गई और फिर शव को गाड़ी से रौंद दिया गया. पुलिस ने खोजबीन कर के पत्नी और उस के प्रेमी को पकड़ लिया.

इसी तरह पिछले दिनों गाजियाबाद में पति ने अपनी पत्नी को प्रेमी के साथ देख लिया तो दोनों ने गला दबा कर पति की हत्या कर दी और शव बोरे में रख कर खेत में फेंक दिया. बाद में दोनों शव मिलने पर जांच करने पर पकड़े गए.

नैतिकता को परख लें

ऐसे में जरूरत होती है कि कुछ कदम उठाने के पहले नैतिकता को परख लें. इस विषय पर एक प्रसिद्ध लेखिका कहती हैं कि कुदरत ने महिला को हमेशा जन्म से ऐसे संस्कार दिए हैं कि उसे हमेशा सहना पड़ता है. इतिहास इस बात का गवाह है कि आज से 40 साल पहले तो महिलाएं इसे सहना शब्द कहती नहीं थी. उसे वे फर्ज मानती थी कि पति का किसी महिला के साथ अगर संबंध हो तो यह उन का अधिकार है और औरतें ऐसे पति को सहना फर्ज मानती थीं.

20 साल पहले से औरतों ने इसे सहना माना है. महिलाएं अगर विवाह के बाद किसी पुरुष से संबंध बनाती भी हैं तो ये जरूरी नहीं कि वह केवल दैहिक सुख ही हो. कई बार परिवार से उपेक्षित हो कर महिलाओं को मानसिक सहयोग की जरूरत होती है जो उन्हें पति से नहीं मिल पाता फलस्वरूप वे बाहर जिस किसी से भी अपनी बात शेयर कर पाती है उसे ही हमदर्द मानती है. कई बार कुछ महिलाएं एक पुरुष से संतुष्टि प्राप्त नहीं कर पातीं इसलिए पराए पुरुष का सहारा लेती हैं. मगर इस का अनुपात बहुत कम है. इन्हें वेश्या की संज्ञा नहीं दी जा सकती.

रिश्ते को निभाना जरूरी

आज नैतिकता के माने बदले हैं. अगर कोई स्त्री बाहर किसी पुरुष से संबंध बनाती भी है तो आखिर क्यों? महिलाएं हमेशा से घर परिवार की जिम्मेदारी लेती आई है किसी रिश्ते को वे सहजता से तोड़ना नहीं चाहतीं. अगर किसी पुरुष को अपनी पत्नी पर शक हो तो वे उसे मारपीट गालीगलौच और जगहंसाई किए बिना, कई ऐसी संस्थाएं हैं जो पुरुषों के लिए काम करती हैं उस में जा सकते हैं.

आमतौर पर अगर कोई पुरुष बाहर किसी महिला से संबंध बनाता है तो उस का ठीकरा भी महिला के सिर ही फोड़ा जाता है. लोग कहते हैं कि उस का पति बाहर क्यों जा रहा है? शायद पत्नी में कोई कमी होगी. पति को कभी धोखेबाज की संज्ञा नहीं दी जाती. उस की फितरत पर

परदा डाल दिया जाता है. भारतीय संस्कृति में एक तरफ तो महिला को देवी की संज्ञा दी जाती है जबकि दूसरी तरफ उसे मानवीय हक तक नहीं दिया जाता.

शांति से समाधान सोचें

यह सच है कि पुरुष कईर् बार पति की सहेलियों से प्रेम कर बैठते हैं. अगर कोई आसपास विधवा है तो उस पर डोरे डालते नजर आते हैं. इस में कोई बुराई किसी को नजर नहीं आती. लेकिन यही काम अगर पत्नी करे तो उसे मारपीट और गालीगलौच के साथ घर से निकाल दिया जाता है या फिर उस की हत्या तक कर दी जाती है.

अगर कोई पत्नी किसी से प्रेम करती है तो पति को चाहिए कि वह शांति से बैठ कर उस समस्या का समाधान सोचे. कुछ बातों की परख किसी निर्णय पर पहुंचने से पहले अवश्य करें. यह ध्यान रखें कि अब कोई क्रिमीनल केस नहीं बनता.

2010 तक इंडियन पीनल कोड की धारा 407 के अनुसार किसी विवाहित से प्रेम करने पर पुरुष पर पति क्रिमिनल केस कर सकता था पर अब सुप्रीम कोर्ट ने एक लैंड मार्क जजमैंट में इसे अंसवैधानिक घोषित कर दिया. एडल्ट्री यानी बेवफाई अब सिर्फ मैट्रिमोनियल औफैंस है और इस के आधार पर तलाक लिया जा सकता है.

धर्म से दूर रहें

पत्नी का किसी के साथ प्रेम संबंध हो जाए तो कोई आफत नहीं है. ऐसे कई पुरुष हैं जो पत्नी के अलावा 2-3 महिलाओं से संबंध रखते हैं. मगर उन्हें कोई कुछ नहीं करता. कुछ धर्म में तो अगर आप की हैसियत है तो आप पत्नी के अलावा 2-3 बीवियां भी रख सकते हैं. ये उन्हें इजाजत है.

अगर आप में संयम है तो हो सकता है कि 2-3 दिन बाद वह फिर अपनी गलती सम?ा घर वापस आ जाए. अगर सहन नहीं होता तो तलाक लें. मुद्दा न बनाएं क्योंकि यह हमेशा से चलता रहा है और चलता रहेगा. सत्य को लोग न तो कभी पहचान पाए हैं और न ही पहचान पाएंगे. समाज और धर्म की आड़ में कभी न जाएं. यह सब निरर्थक है.

प्रेम पर भारी तुनकमिजाजी

आजकल कुनबे, परिवार एवं घर सिकुड़ते से जा रहे हैं. जहां पहले यदि बड़े कुनबे की बहू परिवार में आती थी तो उसे अच्छा माना जाता था क्योंकि बड़ा कुनबा इस बात की पहचान होता था कि सभी रिश्तेदारों में आपसी तालमेल अच्छा है. वे सभी एकदूसरे के साथ सुखदुख में खड़े भी होते थे. यह तालमेल बैठाना कोई आसान काम नहीं होता. नाजुक रिश्तों की डोर को मजबूत करने के लिए सभी की पसंदनापसंद का खयाल रखना अति आवश्यक होता है.

यह हर किसी के बस की बात नहीं कि वह डोर की मजबूती को बरकरार रख सके. इस के लिए ईमानदारी, वाणी पर संयम, मन में भेदभाव न होना, स्वार्थ से परे होना, धैर्यवान होना अदि कई गुण बेहद जरूरी है.

कई लोग जराजरा सी बात पर नाराज हो कर बैठ जाते हैं. उन्हें बारबार मनाओ, मनुहार करो तब वे पुन: साधारण व्यवहार करने लगते हैं. लेकिन ऐसे लोगों का कुछ पता ही नहीं चलता कि वे किस बात पर कब नाराज हो जाएं. या तो लोग उन की पदप्रतिष्ठा के कारण उन के सामने  झंक कर व्यवहार करते हैं या फिर रिश्तों को निभाने की मजबूरी. लेकिन लोग उन्हें दिल से कम ही पसंद करते हैं. व्यवहार सही रखें .

ऐसे ही उदाहरण यहां पेश हैं कि कैसे तुनकमिजाजी व्यवहार के कारण रिश्तों में खटास पैदा हो गई:

अमृता का विवाह दिल्ली के सी.ए. विपिन से हुआ. उन के ब्याह में फेरों के समय जब अमृता की चचेरी बहनों ने जूते छिपाई की रस्म के समय अपने होने वाले जीजा के जूते ढूंढ़ने चाहे तो वे नहीं मिले. मालूम हुआ कि जीजा का छोटा भाई जूतों को कमरे में रखने गया है. सालियों ने सोचा कमरे में भला कैसे दाखिल हों. सो अपने भाई को भी इस में शामिल किया और उस से कहा कि तुम कमरे से जूते बाहर ले आओ. जिस कमरे में जीजा का छोटा भाई जूतों के साथ बैठा था वह वहां गया और पूरे कमरे में नजर दौड़ाई.

इसी बीच नींद में ऊंघते जीजा के भाई को लगा कि न जाने कौन कमरे में घुस आया. सो उस ने आव देखा न ताव और वह उस पर टूट पड़ा. इस के बाद दोनों में खूब  झड़प हुई और फेरों के बीच दोनों पक्षों में कहासुनी हो गई. दूल्हा थोड़ा समझदार था जो दोनों पक्षों के बड़ों से माफी मांगता रहा. जैसेतैसे ब्याह संपन्न हुआ.

मगर जब वधू ब्याह कर ससुराल में पहुंची तो वहां भी उस पर तानों की झड़ी लग गई. नखरीले देवर ने यहां आ कर भी खूब तमाशा किया. भाईभाभी दोनों ने खूब माफी मांगी ताकि किसी भी तरह से परिवार में शांति बनी रहे, लेकिन देवर तो नाक चढ़ाए ही रहा.

उस का कहना था कि मेरी इज्जत नहीं की वधू पक्ष ने. उस के बाद देवर जबतब भाभी को ताने देता. सासननद ने भी मन में गांठ बांध ली. हर त्योहार, उत्सव या रोजमर्रा की जिंदगी कुछ न कुछ झगड़ा घर में लगा ही रहता. हार कर बड़े भाईभाभी परिवार से अलग हो गए.

साथी की उपेक्षा क्यों

अमेरिका से आए एक युगल दंपती में पति अपने काम में इतना मशगूल रहता कि पत्नी की तरफ ध्यान ही नहीं. छोटा सा बच्चा भी अपने पिता के पास समय की कमी के चलते सारा दिन मां के साथ ही चिपका रहता. इसी बीच पत्नी सीमा की सोसायटी में एक सहेली राधा बन गई. अच्छी बात यह थी कि दोनों के पतियों का व्यवहार एकसमान था. राधा के पति किसी एअर लाइन में कार्यरत थे और 3 शिफ्टों में काम पर जाया करते. उन का तो कोई फिक्स रूटीन ही नहीं था. सो राधा अपने 2 बच्चों के साथ उन के रूटीन से जैसेतैसे तालमेल बैठा लेती थी.

सीमा और राधा सहेलियां बन कर साथसाथ शौपिंग के लिए जातीं. दोनों के बच्चे भी हमउम्र होने पर साथ खेलते. यदि कभी बारिश हो तो बच्चे किसी एक के घर में ही खेलते. सीमा बहुत व्यवहारकुशल नजर आती थी. लेकिन कई दिनों से उस के व्यवहार में कुछ बदलाव नजर आ रहा था. राधा ने कई बार उस से बदलाव की वजह पूछी. किंतु सीमा कह देती कुछ नहीं हुआ आप को ऐसे ही कुछ महसूस हो रहा है, मैं तो वैसी की वैसी हूं.

कुछ ही दिनों में सीमा के बच्चे का जन्मदिन था और उस ने राधा को फौर्मल निमंत्रण भी न दिया. राधा सोचती रही कि आखिर क्या हुआ? फिर भी उस ने जन्मदिवस के एक दिन पहले सीमा को फोन किया और हंस कर पूछा कि आएं कि न आएं जन्मदिन की पार्टी में? सीमा भी हंस कर हक जता कर बोल दी कि चुपचाप आ जाना. आप को निमंत्रण की जरूरत है क्या?

खुद में बदलाव

हमेशा की तरह राधा समय से कुछ पहले ही सीमा के घर पहुंच गई ताकि वह उस की पार्टी की तैयारी में कुछ मदद करवा सके. जब वह वहां पहुंची तो पाया कि इस बार उन के समूह की अन्य महिलाएं पहले से वहां मौजूद थीं और बड़ी ही पैनी नजरों से राधा को देख रही थीं. ये वही महिलाएं थीं जो सीमा की व्यावहारिक खामियां ढूंढ़ कर राधा के समक्ष रखती थीं और राधा हर बार यह कह कर टाल देती थी कि हर इंसान अलग प्रकृति का होता है.

अब राधा को समझाते देर न लगी कि सीमा के व्यवहार में बदलाव क्यों आया. शायद इन महिलाओं ने सीमा के कान भी भरे हों. राधा ने सीमा को मनाने की बहुत कोशिश की, किंतु सीमा यह स्वीकारती ही नहीं थी कि उस के व्यवहार में कुछ बदलाव है.

अंत में राधा ने कह दिया कि सीमा हम 4 बरस से पक्की सहेलियां हैं. तुम मानो न मानो मैं तुम्हें और तुम्हारे व्यवहार को अच्छी तरह से समझाती हूं. अब राधा ने भी उस की मनुहार करना छोड़ दिया था. कुछ महीने बीते राधा के पति का तबादला हो गया. उस के बाद कभी राधा ने सीमा की सुध भी न ली. राधा से दूरी तो पहले ही बन ही चुकी थी. अब अकसर वह सोसायटी में अकेली नजर आती थी. यह बात राधा को अपनी अन्य सहेलियों से मालूम हुई. शायद धीरेधीरे सभी उस का व्यवहार समझा चुके थे.

खतरनाक अंजाम

ऐसा ही एक केस दिल्ली में आया जहां अखबारों की खबर के अनुसार हिमांशी गांधी के पिता लवेश गांधी ने पुलिस में रिपोर्ट लिखवाई कि उन की बेटी ने अपने मित्रों के साथ मिल कर एक कैफे खोला था. आज उस का पहला दिन था और शाम को करीब 4 बजे उस के मित्र आयूष ने उस की मां को फोन किया और कहा कि हिमांशी और उस के मित्रों में किसी बात को ले कर खूब विवाद हुआ और उस के बाद वह नाराज हो कर कैफे से चली गई. तब से वे उसे बारबार फोन कर रहे हैं, लेकिन हिमांशी फोन नहीं उठा रही है और बाद में उस का फोन अनरीचेबल हो गया.

पुलिस ने उस की छानबीन की और 25 जून को एक महिला का शव यमुना में तैरता मिला. पुलिस ने हिमांशी के परिवार को इस की सूचना दी तो उस के परिवार वालों ने लाश देख कर पुष्टि की कि वह हिमांशी की ही लाश है.

उस के बाद पुलिस ने वहां का सीसी टीवी कैमरा चैक किया, जिस में करीब 3 बजे हिमांशी ब्रिज की रेलिंग पर चढ़ती हुई दिखाई दी. उस के बाद वह रेलिंग के बीच गैप्स में से यमुना में कूद गई और अपनी जान दे दी.

इस तरह के किस्से एवं हादसे यह बताते हैं कि कहीं न कहीं व्यवहार में तुनकमिजाजी का खमियाजा अंतत: स्वयं ही उठाना पड़ता है. किंतु ऐसे व्यवहार वाले लोगों से जुड़े रिश्तेदार एवं मित्र भी कहीं न कहीं इस का नुकसान उठाते हैं. फायदा कम नुकसान ज्यादा हो सकता है तुनकमिजाजी व्यवहार वाले लोग जब तक स्वयं का कुछ नुकसान न हो अपने इस व्यवहार की आड़़ में मजा उड़ाते हों कि सब लोग उन के लिए एक टांग पर खड़े रहें. वे रूठें तो दूसरे उन्हें मनाते रहें या सामने वाला नाराज न हो जाए इस डर से लोग उन की हर बात को मानें. जब तुनकमिजाजी या बारबार की नाराजी से डराधमका कर जिंदगी मजे में चले तो कोई अच्छा व्यवहार क्यों करे भला. तब तो किसी को न कोई डर न ही परवाह, हरकोई अपनी बात रखने की कोशिश तो करेगा ही.

ऊपर से तुनकमिजाजी व्यवहार का फायदा यह कि आप लड़ झगड़ कर हर जगह अपनी चला कर हर अच्छे काम का क्रैडिट भी स्वयं ही ले लेते हैं. सीधासादा व्यवहार रखें तो यह तो होने से रहा. मगर इस तुनकमिजाजी के नुकसान भी तो बहुत हैं. जरूरी नहीं कि आप को बारबार लोग मनाएंगे और मनुहार करेंगे. यदि सज्जन लोग आप के साथ हैं तो निश्चित रूप से आप की शुरुआती तुनकमिजाजी को वे इग्नोर कर आप से अच्छा व्यवहार रखने की कोशिश करते हैं. लेकिन जैसे ही वे समझाते हैं कि आप उन की सज्जनता का फायदा उठाने की कोशिश कर रहे हैं तो वे आप से किनारा भी करने लगते हैं और अंतत: आप स्वयं का नुकसान कर अकेले रह जाते हैं.

Mother’s Day Special: अकेलेपन और असामाजिकता के शिकार सिंगल चाइल्ड

7 साल का आर्यन घर का इकलौता बच्चा है. वह न नहीं सुन सकता. उस की हर जरूरत, हर जिद पूरी करने के लिए मातापिता दोनों में होड़ सी लगी रहती है. उसे आदत ही हो गई है कि हर बात उस की मरजी के मुताबिक हो. हालात ये हैं कि घर का इकलौता दुलारा इस उम्र में भी मातापिता की मरजी के मुताबिक नहीं, बल्कि मातापिता उस की इच्छा के अनुसार काम करने लगे हैं. कई बार ऐसा भी देखने में आता है कि हद से ज्यादा लाड़प्यार और अटैंशन के साथ पले इकलौते बच्चों में कई तरह की समस्याएं जन्म लेने लगती हैं. ‘एक ही बच्चा है’ यह सोच कर पेरैंट्स उस की हर मांग पूरी करते हैं. लेकिन यह आदत आगे चल कर न केवल अभिभावकों के लिए असहनीय हो जाती है बल्कि बच्चे के पूरे व्यक्तित्व को भी प्रभावित करती है.

इसे मंहगाई की मार कहें या बढ़ती जनसंख्या के प्रति आई जागरूकता या वर्किंग मदर्स के अति महत्त्वाकांक्षी होने का नतीजा या अकेले बच्चे को पालने के बोझ से बचने का रास्ता? कारण चाहे जो भी हो, अगर हम अपने सामाजिक परिवेश और बदलते पारिवारिक रिश्तों पर नजर डालें तो एक ही बच्चा करने का फैसला समझौता सा ही लगता है. आज की आपाधापी भरी जिंदगी में ज्यादातर वर्किंग कपल्स एक ही बच्चा चाहते हैं. ये चाहत कई मानों में हमारी सामाजिकता को चुनौती देती सी लगती है. न संयुक्त परिवार और न ही सहोदर का साथ, एक बच्चे के अकेलेपन का यह भावनात्मक पहलू उस के पूरे जीवन को प्रभावित करता है.

खत्म होते रिश्तेनाते

एक बच्चे का चलन हमारी पूरी पारिवारिक संस्था पर प्रश्नचिह्न लगा रहा है. अगर किसी परिवार में इकलौता बेटा या बेटी है तो उस की आने वाली पीढि़यां चाचा, ताऊ और बूआ, मौसी, मामा के रिश्ते से हमेशा के लिए अनजान रहेंगी.  समाजशास्त्री भी मानते हैं कि सिंगल चाइल्ड रखने की यह सोच आगे चल कर पूरे सामाजिक तानेबाने के लिए खतरनाक साबित होगी. पारिवारिक माहौल के बिना वे जीवन के उतारचढ़ाव को नहीं समझ पाते और बड़े होने पर अपने ही अस्तित्व से लड़ाई लड़ते हैं. बच्चों को सभ्य नागरिक बनाने में परिवार का बहुत बड़ा योगदान होता है. संयुक्त परिवारों में 3 पीढि़यों के सदस्यों के बीच बच्चों का जीवन के सामाजिक और नैतिक पक्ष से अच्छी तरह परिचय हो जाता है.

कितने ही पर्वत्योहार हैं जब अकेले बच्चे व्यस्तता से जूझते पेरैंट्स को सवालिया नजरों से देखते हैं. घर में खुशियां बांटने और मन की कहने के लिए हमउम्र भाईबहन का न होना बच्चों को भी अखरता है. इतना ही नहीं, सिंगल चाइल्ड की सोच हमारे समाज में महिलापुरुष के बिगड़ते अनुपात को भी बढ़ावा दे रही है क्योंकि आमतौर पर यह देखने में आता है कि जिन कपल्स का पहला बच्चा बेटा होता है वे दूसरा बच्चा करने की नहीं सोचते. समग्ररूप से यह सोच पूरे समाज में लैंगिक असमानता को जन्म देती  है.

शेयरिंग की आदत न रहना

आजकल महानगरों के एकल परिवारों में एक बच्चे का चलन चल पड़ा है. आमतौर पर ऐसे परिवारों में दोनों अभिभावक कामकाजी होते हैं. नतीजतन बच्चा अपना अधिकतर समय अकेले ही बिताता है. ऐसे माहौल में पलेबढ़े बच्चों में एडजस्टमैंट और शेयरिंग की सोच को पनपने का मौका ही नहीं मिलता. छोटीछोटी बातों में वे उन्मादी हो जाते हैं. अपनी हर चीज को ले कर वे इतने पजेसिव रहते हैं कि न तो किसी के साथ रह सकते हैं और न ही किसी दूसरे की मौजूदगी को सहन कर सकते हैं. वे हर हाल में जीतना चाहते हैं. यहां तक कि खिलौने और खानेपीने का सामान भी किसी के साथ बांट नहीं सकते. ऐसे बच्चे अकसर जिद्दी और शरारती बन जाते हैं.

अकेला बच्चा होने के चलते मातापिता का उन्हें पूरा अटैंशन मिलता है. वर्किंग पेरैंट्स होने के चलते अभिभावक बच्चे को समय नहीं दे पाते. उस की हर जरूरी और गैरजरूरी मांग को पूरा कर के अपने अपराधबोध को कम करने की राह ढूंढ़ते हैं. बच्चे अपने साथ होने वाले ऐसे व्यवहार को अच्छी तरह से समझते हैं जिस के चलते छोटी उम्र में ही वे अपने पेरैंट्स को इमोशनली ब्लैकमेल भी करने लगते हैं. अगर उन की जिद पूरी नहीं होती तो वे कई तरह के हथकंडे अपनाने लगते हैं.

गैजेट्स की लत

इसे समय की मांग कहें या दूसरों से पीछे छूट जाने का डर, अभिभावक अपने इकलौते बच्चों को आधुनिक तकनीक से अपडेट रखने की हर मुमकिन कोशिश करते नजर आते हैं. कामकाजी अभिभावकों को ये गैजेट्स बच्चों को व्यस्त रखने का आसान जरिया लगते हैं. यही वजह है कि अकेले बच्चों की जिंदगी में हमउम्र साथियों और किस्सेकहानी सुनाने वाले बुजुर्गों की जगह टीवी, मोबाइल और लैपटौप जैसे गैजेट्स ने ले ली है. आज के दौर में इन इकलौते बच्चों के पास समय भी है और एकांत भी. बडे़ शहरों में आ बसे कितने ही परिवार हैं जिन में कुल 3 सदस्य हैं. साथ रहने और खेलने को न किसी बड़े का मार्गदर्शन और न ही छोटे का साथ. नतीजतन, वे इन गैजेट्स का इस्तेमाल बेरोकटोक मनमुताबिक ढंग से करते रहते हैं. उन का काफी समय इन टैक्निकल गैजेट्स को एक्सैस करने में ही बीतता है. अकेले बच्चे घंटों इंटरनैट और टीवी से चिपके रहते हैं. धीरेधीरे ये गैजेट्स उन की लत बन जाते हैं और ऐसे बच्चे लोगों से घुलनेमिलने से कतराने लगते हैं.

‘एन इंटरनैशनल चाइल्ड ऐडवोकेसी और्गनाइजेशन’ की एक रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है कि इंटरनैट पर बहुत ज्यादा समय बिताने वाले बच्चों में सामाजिकता खत्म हो जाती है. नतीजतन, उन के शारीरिक और मानसिक संवेदनात्मक विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. इतना ही नहीं, मनोचिकित्सकों ने तो इंटरनैट की लत को मनोदैहिक बीमारी का नाम दिया है. अकेले बच्चों को मिलने वाली मनमानी छूट कई माने में उन्हें जानेअनजाने ऐसी राह पर ले जाती है जो आखिरकार उन्हें कुंठाग्रस्त बना देती है.

समस्याएं और भी हैं

इकलौते बच्चे का व्यवहार और कार्यशैली उन बच्चों से बिलकुल अलग होती है जो अपने हमउम्र साथियों या भाईबहनों के साथ बड़े होते हैं. वर्किंग पेरैंट्स के व्यस्त रहने के कारण ऐसे बच्चे उपेक्षित और कुंठित महसूस करते हैं. कम उम्र में सारी सुखसुविधाएं मिल जाने के कारण ये जीवन की वास्तविकता और जिम्मेदारियों को ठीक से नहीं समझ पाते. ऐसे बच्चे आमतौर पर आत्मकेंद्रित हो जाते हैं. अकेला रहने वाला बच्चा अपनी बातें किसी से नहीं बांट पाता. उसे अपनी भावनाएं शेयर करने की आदत ही नहीं रहती जिस के चलते ऐसे बच्चे बड़े हो कर अंतर्मुखी, चिड़चिड़े और जिद्दी बन जाते हैं और उन का स्वभाव उग्र व आक्रामक हो जाता है.

मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि अकेले पलेबढ़े बच्चे सामाजिक नहीं होते और उन्हें हर समय अटैंशन व डिपैंडैंस की तलाश रहती है. संपन्न और सुविधाजनक परवरिश मिलने के कारण इकलौते बच्चे जिंदगी की हकीकत से दूर ही रहते हैं. लाड़प्यार और सुखसुविधाओं में पलने के कारण वे आलसी और गैरजिम्मेदार बन जाते हैं. छोटेछोटे काम के लिए उन्हें दूसरों पर निर्भर रहने की आदत हो जाती है. आत्मनिर्भरता की कमी के चलते उन के व्यक्तित्व में आत्मविश्वास की भी कमी आ जाती है. एक सर्वे में इस बात का भी खुलासा हुआ है कि अकेले रहने वाले बच्चों की खानपान की आदतें भी बिगड़ जाती हैं. यही वजह है कि अकेले बच्चों में मोटापे जैसी शारीरिक व्याधियां भी घर कर जाती हैं.

Mother’s Day Special: बच्चों की परवरिश बनाएं आसान इन 7 टिप्स से

अकसर कामकाजी महिलाएं अपराधबोध से ग्रस्त रहती हैं. यह अपराधबोध उन्हें इस बात को ले कर होता है कि पता नहीं वे अपने कैरियर की वजह से घर की जिम्मेदारियों का ठीक से निर्वाह कर पाएंगी या नहीं. उस पर यह अपराधबोध तब और बढ़ जाता है जब वे अपने दुधमुंहे बच्चे के हाथ से अपना आंचल छुड़ा कर काम पर जाती हैं. तब उन्हें हर पल अपने बच्चे की चिंता सताती है. एकल परिवारों में जहां पारिवारिक सहयोग की कतई गुंजाइश नहीं होती है, वहां तो नौबत यहां तक आ जाती है कि उन्हें अपने बच्चे या कैरियर में से किसी एक का चुनाव करना पड़ता है और फिर हमारे समाज में बच्चों की परवरिश की जिम्मेदारी मां पर ही होती है इसलिए मां चाहे कितने भी बड़े पद पर आसीन क्यों न हो, चाहे उस की तनख्वाह कितनी भी ज्यादा क्यों न हो समझौता उसे ही करना पड़ता है. ऐसे में होता यह है कि यदि वह अपने बच्चे की परवरिश के बारे में सोच कर अपने कैरियर पर विराम लगाती है, तो उसे अपराधबोध होता है कि उस ने अपने कैरियर के लिए कुछ नहीं किया. यदि वह बच्चे के पालनपोषण के लिए बेबीसिटर (दाई) पर भरोसा करती है, तो इस एहसास से उबरना मुश्किल होता है कि उस ने अपने कैरियर और भविष्य के लिए अपने बच्चे की परवरिश पर ध्यान नहीं दिया. ऐसे में एक कामकाजी महिला करे तो करे क्या?

इस का कोई तयशुदा जवाब नहीं हो सकता ह. इस मामले में हरेक की अपने हालात, इच्छाओं और प्राथमिकताओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है. यों भी मां बनना किसी भी लड़की की जिंदगी का बड़ा बदलाव होता है. कुछ लड़कियां ऐसी भी होती हैं जो किसी भी तरह मैनेज कर अपनी जौब करना चाहती हैं तो कुछ ऐसी भी होती हैं जो किसी भी कीमत पर अपने बच्चे पर ध्यान देना चाहती हैं. वनस्थली विद्यापीठ में ऐसोसिएट प्रोफैसर डा. सुधा मोरवाल कहती हैं, ‘‘मां बनने के बाद मैं ने अपना काम फिर से शुरू किया. चूंकि मुझे पारिवारिक सहयोग मिला था, इसलिए मेरे कैरियर ने फिर से गति पकड़ ली. हालांकि शुरुआती दौर में मुझे थोड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था और बच्चे को अपना पूरा समय न दे पाने का अपराधबोध होता था. पर हां, घर के कामकाज का बोझ मुझ पर कभी भी ज्यादा नहीं पड़ा.’’

डा. सुधा के उलट मीना मिलिंद को अपनी जौब छोड़नी पड़ी, क्योंकि उस के बच्चे को संभालने वाला कोई नहीं था और वह यह भी नहीं चाहती थी कि उसे बच्चे को ले कर कोई गिल्ट हो. मगर काम छोड़ने की कसक भी कम नहीं थी. बच्चे के छोटे होने की वजह से वे अभी तक जौब शुरू नहीं कर पाईं, क्योंकि वे एकल परिवार में रह

Mother’s Day Special: मां बेटी के बीच मनमुटाव के मुद्दे

मांबेटी का रिश्ता दुनिया के खूबसूरत रिश्तों में से एक होता है. बेटी होती है मां की परछाई और इस परछाई पर मां दुनियाभर की खुशियां वार देना चाहती है. एक औरत जब मां बनती है और खासकर बेटी की मां बनती है तो उसे लगता है एक बेटी के रूप में वह अपना जीवन फिर से जी सकेगी. मांबेटी के प्यारभरे रिश्ते में भी कई बार तल्खियां उभर आती हैं. मांबेटी के रिश्ते में तल्खियां विवाह से पहले या विवाह के बाद कभी भी हो सकती हैं.

1 शादी से पहले के मनमुटाव

मां के हिसाब से बेटी का समय पर न उठना, दिनभर मोबाइल में लगे रहना, ऊटपटांग कपड़े पहनना आदि अनेक ऐसे छोटेमोटे विषय हैं जिन पर मांबेटी के बीच आमतौर पर खींचातानी होती रहती है. ऐसा होना हर मांबेटी के बीच आम है. लेकिन कई बार कुछ मसले ऐसे हो जाते हैं जिन के कारण मांबेटी के बीच मनमुटाव इस कदर बढ़ जाता है कि वे एकदूसरे से बात करना भी नहीं पसंद करतीं या फिर बेटी, मां से अलग रहने का भी निर्णय ले लेती है.  मुझे पसंद नहीं तुम्हारा बौयफ्रैंड :  22 वर्षीया सान्या एमबीए की स्टूडैंट है. वह अपने कालेज के एक ऐसे लड़के को पसंद करती है जिसे उस की मां नापसंद करती है. मां नहीं चाहती कि सान्या उस लड़के के साथ कोई भी संपर्क रखे. लेकिन सान्या के दिलोदिमाग पर तो वह लड़का इस कदर छाया हुआ है कि वह मां की कोईर् बात सुनने को ही तैयार नहीं है. आएदिन की इस लड़ाईझगड़े से तंग आ कर सान्या ने अलग फ्लैट ले कर रहना शुरू कर दिया है.

2 नौकरी बन जाए विवाद का विषय: 

28 वर्षीया रिया कौल सैंटर में नौकरी करती है, वह भी नाइट शिफ्ट की. उस की मां को यह जौब बिलकुल पसंद नहीं है क्योंकि इस नौकरी की वजह से रिया के आसपड़ोस वाले उस की मां को तरहतरह की बातें सुनाते रहते हैं.

रिया की मां ने कई बार उस से कहा है कि वह यह नौकरी छोड़ दे लेकिन चूंकि रिया को इस नौकरी से कोई दिक्कत नहीं है, सो, वह छोड़ना नहीं चाहती. इस बात पर दोनों की अकसर बहस होती रहती है. आएदिन की बहस से परेशान हो कर रिया ने अपने औफिस के पास के एक पीजी में रहना शुरू कर दिया है. उसे लगता है कि रोज की किचकिच से यही बेहतर है.  विवाह के बाद बेटी अपनी ससुराल चली जाती है. ऐसे में मांबेटी के बीच प्यार और अपनापन कायम रहना चाहिए लेकिन कुछ मामलों में शादी के बाद भी मांबेटी के बीच का मनमुटाव जारी रहता है. बस, विवाद के कारण बदल जाते हैं.

3 लेनदेन से उपजा मनमुटाव 

विधि की शादी एक संपन्न घर में हुई है. वह जब भी मायके  आती है तो मां से अपेक्षा करती है उसे वही ऐशोआराम, वही सुखसुविधाएं मायके में भी मिलें जो ससुराल में मिलती हैं. लेकिन चूंकि विधि के मायके की आर्थिक स्थिति सामान्य है, सो, उसे वहां वे सुविधाएं नहीं मिल पातीं.  नतीजतन, जब भी विधि मायके आती है, मां से उस की बहस हो जाती है. इस के अलावा विधि को अपनी मां से हमेशा यह शिकायत भी रहती है कि वे उस की ससुराल वालों के स्टेटस के हिसाब से लेनेदेन नहीं करतीं, जिस की वजह से उसे अपनी ससुराल में सब के सामने नीचा देखना पड़ता है. विधि की मां अपनी हैसियत से बढ़ कर विधि की ससुराल वालों को लेनादेना करती है लेकिन विधि कभी संतुष्ट नहीं होती और दोनों के बीच खींचातानी चलती रहती है.

4 संपत्ति विवाद भी है कारण 

पति के गुजर जाने के बाद स्वाति की मां अपने बेटे रोहन के साथ रहती हैं. रोहन ही उन की सारी जरूरतों का ध्यान रखता है और उन की तरफ से सारे सामाजिक लेनदेन करता है. आगे चल कर कोई प्रौपर्टी विवाद न हो, इसलिए स्वाति की मां ने वसीयत में अपनी सारी जमीनजायदाद रोहन के नाम कर दी. स्वाति को जब इस बात का पता चला तो वह अपनी मां से संपत्ति में हिस्से के लिए लड़ने आ गई. उस का कहना था कि जमीनजायदाद  में उसे बराबरी का हिस्सा चाहिए जबकि स्वाति की मां का कहना था कि उस की शादी में जो लेनादेना था, वह उन्होंने कर दिया और वैसे भी, अब रोहन उन की पूरी जिम्मेदारी संभालता है तो वे प्रौपर्टी रोहन के नाम ही करेंगी. इस बात पर गुस्सा हो कर स्वाति ने मां से बोलचाल बंद कर दी और घर आनाजाना भी बंद कर दिया.

5 मां के संबंधों से बेटी को शिकायत

अनन्या के पिताजी को गुजरे 4 वर्ष हो गए हैं. वह अपनी ससुराल में मस्त है. मां कालेज में नौकरी करती हैं. जहां उन के संबंध कालेज के सहकर्मी से हैं. यह बात अनन्या को बिलकुल पसंद नहीं. अनन्या को लगता है पिताजी के चले जाने के बाद मां ने उस पुरुष से संबंध क्यों रखे हैं.  वह कहती है, ‘मां के इन संबंधों से समाज और ससुराल में उस की बदनामी हो रही है.’ जबकि अनन्या की मां का कहना है कि उम्र के इस पड़ाव के अकेलेपन को वह किस तरह दूर करे. अगर ऐसे में कालेज का उक्त सहकर्मी उस की भावनाओं व जरूरतों का ध्यान रखता है तो उस में बुरा क्या है. बस, यही बात मांबेटी के बीच मनमुटाव का कारण बनी हुई है. इस स्थिति में अनन्या को अपनी मां के अकेलेपन की जरूरत को समझना चाहिए और व्यर्थ ही समाज से डर कर मां की खुशियों की राह में रोड़ा नहीं बनना चाहिए. बेटी को मां की जरूरतों से ज्यादा अपनी प्रतिष्ठा की फिक्र है. वह तो मां को बुत बना कर बाहर खड़ा कर देना चाहती है जो आदर्श तो कहलाए पर आंधीपानी और अकेलेपन को रातदिन सहे.

जब दोस्त इंप्रैशन जमाएं

प्रियंका और वाणी अपनी सहेली मुग्धा से काफी दिनों बाद मिली थीं. थोड़ी देर की औपचारिक बातचीत के बाद मुग्धा हमेशा की तरह अपनी चीजों की तारीफ करने लगी.

वह अपने बाल दिखाती हुई बोली, ‘‘यह देखो प्रियंका, मेरा नया हेयरस्टाइल. पिछले संडे ही पार्लर गई थी. साउथ दिल्ली का जो बैस्ट पार्लर है न, वहीं जाती हूं. वहां की स्टाफ तो मेरे बालों की तारीफ करती नहीं थकती. कहती है, ‘हीरोइनों से भी ज्यादा चमकदार और आकर्षक तेरे बाल हैं.’ मैं ने पूछा कि मु?ा पर कौन सा स्टाइल अच्छा लगेगा तो कहने लगी कि तुम्हारे ऊपर तो हर स्टाइल जमेगा. इन बालों को कैसे भी रख लो बेहतरीन ही लगेंगे. बाद में काफी सोचसम?ा कर मैं ने यह स्टाइल करवाया, बिलकुल लेटैस्ट और गौर्जियस.’’

सो, प्रियंका ने उस की तारीफ करते हुए कहा, ‘‘वाकई तुम्हारे बाल बेहद खूबसूरत लग रहे हैं.’’

मुग्धा तब बोली, ‘‘और यह ड्रैस देखी तुम ने? बिलकुल लेटैस्ट स्टाइल की है. जानती हो, कनाडा से मेरे अंकल ले कर आए हैं. वे कह रहे थे कि हमारी बच्ची तो एकदम राजकुमारी लग रही है. जानती है ये अंकल जो हैं न मेरे, हमेशा यही कहते हैं कि तू मिस इंडिया कौन्टैस्ट में जाएगी तो जरूर जीत कर आएगी. एक्चुअली, मैं सुंदर हूं और इंटैलिजैंट भी. मगर क्या करूं समय ही नहीं मिलता किसी कंपीटिशन में पार्टिसिपेट करने का. पढ़ाई में भी तो अव्वल रहना है न.’’

प्रियंका ने उस की हां में हां मिलाते हुए कहा, ‘‘सच यार, तू जितनी खूबसूरत है उतनी ही स्मार्ट भी. तेरे जैसी लड़कियां कहां मिलती हैं. मु?ो प्राउड फील होता है यह सोच कर कि तू मेरी दोस्त है. आई एम ग्रेटफुल टू बी योर फ्रैंड. थैंक यू डियर, ओके बाय.’’ यह  कह कर प्रियंका वाणी के साथ आगे बढ़ गई.

वाणी आंखें तरेरती हुई बोली, ‘‘क्या यार प्रियंका, क्या जरूरत थी उस की तारीफ करने की? वह हर समय अपना इंप्रैशन जमाने की कोशिश में ही लगी रहती है. तू उस की इस आदत को और हवा देती है.’’

‘‘यार, मैं खुद उस की आदत से परेशान हूं. मगर मैं जानती हूं कि जब तक हम उसे एकनौलेज नहीं करेंगे वह इसी तरह अपना इंप्रैशन जमाने की कोशिश करती रहेगी. मैं तो यह जानती हूं कि जो लोग ज्यादा दिखावा करते हैं और अपने स्टेटस या पैसों का रोब ?ाड़ते हैं, असल में वे अपनी इनसिक्योरिटी छिपा रहे होते हैं. उन के अंदर कुछ खालीपन होता है जिसे छिपाने के लिए वे ऐसा करते हैं. हमें ऐसे लोगों से अलग तरह से पेश आना चाहिए. कभीकभी उन की तारीफ कर देनी चाहिए ताकि वे इस भावना से उबर सकें.’’

वाणी प्रियंका का चेहरा देखती रह गई. उसे अब बात सम?ा में आने लगी थी. प्रियंका के इस साइकोलौजिकल अप्रोच से वह भी इत्तफाक रखने लगी थी.

दरअसल कुछ लोगों की आदत होती है कि वे दूसरों के सामने अपनी ?ाठी तारीफ के पुल बांधने लगते हैं. सच हो या नहीं, उन्हें बस अपना इंप्रैशन जमाना होता है. कोई रुपयों का रोब ?ाड़ता है तो कोई अपनी जौब का. कोई अपने हुनर का तो कोई तेज दिमाग का. कुछ लोग नैगेटिव इंप्रैशन जमाते हैं तो कुछ पौजिटिव. कुछ ऐसे भी होते हैं जिन की बातों से अहंकार ?ालकता है. इस तरह के लोगों के साथ समय बिताना या बातें करना काफी अजीब लगता है. जब हमें पता होता है कि उन की बातों में जरा सी भी सचाई नहीं और वे केवल इंप्रैशन जमाने के लिए अपनी तारीफ किए जा रहे हैं तो बहुत कोफ्त होती है.

हमारी जिंदगी में ऐसे रिश्तेदारों, पड़ोसियों और दोस्तों की कमी नहीं होती. दोस्तों की यह आदत हमें खासतौर पर नागवार गुजरती है क्योंकि हम औलरेडी उन्हें बहुत करीब से जानते हैं. ऐसे में सवाल यह उठता है कि जब कोई दोस्त हमें प्यारा हो मगर उस की इंप्रैशन जमाने वाली बातों से इरिटेशन होने लगे तो क्या करें?

सब से पहला उपाय यह है कि ध्यान दें कि क्या आप का दोस्त पौजिटिव इंप्रैशन जमा रहा है या नैगेटिव बातें कह रहा है या फिर उस की बातों में अहंकार दिख रहा है. यदि वह अपनी खूबियों और अपनी चीजों के बारे में बढ़ाचढ़ा कर कह रहा है तो उस पर ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं. उस की बातें एक कान से सुनें और दूसरे से निकाल दें.

इस के विपरीत यदि वह अपने नैगेटिव पहलू को आप के आगे उभारने की कोशिश कर रहा है ताकि आप उस से डर कर रहें तो ऐसे दोस्तों से दूरी बढ़ा लें. तीसरा यदि वह अहंकारपूर्ण शब्दों का प्रयोग कर रहा है और उस की बातों से उस का घमंड ?ालक रहा है तो भी आप को धैर्य रखने की जरूरत है.

समय के साथ ऐसे दोस्तों से दूरी बढ़ा लें जिन की बातों में सचाई कम, अहंकार ज्यादा हो. आप अपने लिए हम्बल, डाउन टु अर्थ और जैनुइन दोस्त चुनें जो आप के प्रति बिलकुल सच्चे हों. आप के दिमाग में यह बात क्लीयर होनी चाहिए कि आप को कैसा दोस्त चाहिए. अपनी पसंद के इंसान के साथ करीबी बढ़ाएं तो आप को एक तरह से संतुष्टि मिलेगी.

इनसिक्योरिटी का डर

वैसे लोग जो एरोगैंस या दिखावे में ज्यादा विश्वास करते हैं और अपने स्टेटस, पैसों या जौब का रोब ?ाड़ते हैं, दरअसल वे अपनी इनसिक्योरिटी छिपा रहे होते हैं. उन के अंदर कुछ ऐसा खालीपन होता है जिसे छिपाने के लिए वे रोब डालने की कोशिश करते हैं. हमें ऐसे लोगों पर दया करनी चाहिए. हमें यह सम?ाने का प्रयास करना चाहिए कि वे अपनी किसी कमी, डर, असुरक्षा या बुरी यादों से बचने के लिए ऐसा कर सकते हैं.

हमें नहीं पता होता कि वह बंदा बचपन से अब तक क्याक्या डील कर रहा है और किन परेशानियों से गुजरा है. वह शो औफ करने की कोशिश क्यों कर रहा है? ऐसा क्या है जो उसे ऐसे इंप्रैशन जमाना पड़ रहा है या दिखावा करना पड़ रहा है? इसलिए जो वह दिखा रहा है उस के लिए उसे ऐप्रिशिएट करें और एकनौलेज करें. फिर देखें, कैसे वह आप का सब से अच्छा और प्यारा दोस्त बन जाता है.

एकनौलेज करें

इस संदर्भ में मानवीय संबंध विशेषज्ञ आश्मीन मुंजाल कहती हैं, ‘‘आप जितना ही किसी बात से चिढ़ते हों, वह बात उतनी ही आप का पीछा करती है. मोर यू रेसिस्ट, मोर इट विल परसिस्ट. द मोमैंट यू एक्सैप्ट, इट विल डिसऐपियर्ड.’’ यही बात इस केस में भी लागू होती है. आप जितना ही चाहेंगे कि आप का दोस्त आप के आगे फालतू की बातें कर के अपना इंप्रैशन जमाने की कोशिश न करे तो यकीन मानिए ऐसा ही होगा. आप उस से पीछा नहीं छुड़ा पाएंगे.

ऐसे में आप उसे अवौयड कर सकते हैं तो कर दें. दरअसल अपनी जिंदगी में कुछ लोगों को तो आप अवौयड कर ही सकते हैं, जैसे पड़ोसी, कलीग्स या सहपाठी. मगर कुछ, रिश्तेदार या करीबी दोस्त को आप अवौयड नहीं कर सकते. इसलिए इन के साथ आप को अलग तरह से पेश आना होगा.

आप कुछ समय तक बिना परेशान हुए उस की बातें सुनें. सिर्फ सुनें ही नहीं, बल्कि जो वह दिखाना या बताना चाह रहा है उस के लिए उसे ऐप्रिशिएट भी करें. उस की बातों को एकनौलेज करें. उसे एहसास दिलाएं कि आप उस से प्रभावित हैं.

खुले दिल से उस की तारीफ करें

अगर आप का दोस्त अपनी सैलरी और एक्स्ट्रा प्रिविलेजेज के बारे में बढ़ाचढ़ा कर बता रहा है तो आप उस की तारीफ करते हुए कहें, ‘‘वाओ, कितना बढि़या है. तुम कितने हार्ड वर्किंग हो. तुम ने बहुत मेहनत कर इतनी तरक्की हासिल की है. सच, कमाल ही कर दिया. हम बहुत थैंकफुल हैं कि तुम्हारे जैसा दोस्त मु?ो मिला.’’

उस से यह सब कहने के बाद उस का रिऐक्शन देखिए. वह आप के प्रति औब्लाइज और थैंकफुल नजर आएगा. उस के चेहरे की सारी हेकड़ी गायब हो जाएगी और वह आप को गले लगाने की कोशिश करेगा. अगर आप ऐसा दोचार बार करेंगे तो यकीन मानिए, वह आप का बहुत रियल और करीबी दोस्त बन जाएगा.

दिल से तारीफ करें

हर इंसान को तारीफ और रिकग्निशन चाहिए. आप के दोस्त को जो प्रशंसा चाहिए, वह उसे दे दीजिए. रैसिस्ट करने के बजाय उसे एक्सैप्ट करें. दिल से एैप्रिशिएट करें. इस से वह शांत हो जाएगा. आप के आगे उस की शोऔफ करने की आदत भी कम हो जाएगी. वह आप के साथ रियल हो जाएगा. उस का एरोगैंस गायब हो जाएगा. आप का उस से एक अलग सा रिश्ता बन जाएगा. वह दूसरों के साथ जैसा था वैसा ही रहेगा, मगर आप के लिए बदल जाएगा.

याद रखें, हर इंसान में कुछ न कुछ अच्छी बात या विशेषता जरूर होती है. आप के दोस्त में सच में जो अच्छाई है उस पर ध्यान दें. अच्छाइयां ढूंढ़नी पड़ती हैं जबकि बुराई तो तुरंत नजर आ जाती है. एकनौलेज करना एक क्रिएटेड एक्ट होता है. आप वैसी चीज को फोकस में ला सकते हैं जिस पर कभी ध्यान जाता ही नहीं है. यानी आप क्रिएट कर सकते हैं. इस के लिए आप को बहुत सी चीजें मिल जाएंगी.

किसी की आंखें सुंदर हैं, किसी की बिंदी, किसी की ड्रैस और किसी का स्टाइल अच्छा लग सकता है. दुनिया में हर इंसान इस बात के लिए तड़प रहा है कि कोई उस की तारीफ करे. इसी तरह आप का दोस्त भी अटैंशन चाहता है तो वह उसे दे दो. ऐक्चुअली, बैस्ट गिफ्ट जो आप किसी को दे सकते हैं वह है रियल और जैनुइन एैप्रिसिएशन. उसे यह एहसास दिलाना कि उस ने यह काम अच्छा किया. इस से उस की कुछ पाने, बनने या प्रूव करने की तड़प को शांति मिलेगी. सच्चे दिल से यदि आप ऐसा कुछ दिनों तक करेंगे तो उस का एरोगैंस गायब हो जाएगा और एक अलग सा मैजिक होगा.

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