Father’s day 2023: पिता और पुत्र के रिश्तों में पनपती दोस्ती

‘‘हाय डैड, क्या हो रहा है? यू आर एंजौइंग लाइफ, गुड. एनीवे डैड, आज मैं फ्रैंड्स के साथ पार्टी कर रहा हूं. रात को देर हो जाएगी. आई होप आप मौम को कन्विंस कर लेंगे,’’ हाथ हिलाता सन्नी घर से निकल गया.

‘‘डौंट वरी सन, आई विल मैनेज ऐवरीथिंग, यू हैव फन,’’ पीछे से डैड ने बेटे से कहा. आज पितापुत्र के रिश्ते के बीच कुछ ऐसा ही खुलापन आ गया है. किसी जमाने में उन के बीच डर की जो अभेद दीवार होती थी वह समय के साथ गिर गई है और उस की जगह ले ली है एक सहजता ने, दोस्ताना व्यवहार ने. पहले मां अकसर पितापुत्र के बीच की कड़ी होती थीं और उन की बातें एकदूसरे तक पहुंचाती थीं, पर अब उन दोनों के बीच संवाद बहुत स्वाभाविक हो गया है. देखा जाए तो वे दोनों अब एक फ्रैंडली रिलेशनशिप मैंटेन करने लगे हैं. 3-4 दशकों पहले नजर डालें तो पता चलता है कि पिता की भूमिका किसी तानाशाह से कम नहीं होती थी. पीढि़यों से ऐसा ही होता चला आ रहा था. तब पिता का हर शब्द सर्वोपरि होता था और उस की बात टालने की हिम्मत किसी में नहीं थी. वह अपने पुत्र की इच्छाअनिच्छा से बेखबर अपनी उम्मीदें और सपने उस को धरोहर की तरह सौंपता था. पिता का सामंतवादी एटीट्यूड कभी बेटे को उस के नजदीक आने ही नहीं देता था. एक डरासहमा सा बचपन जीने के बाद जब बेटा बड़ा होता था तो विद्रोही तेवर अपना लेता था और उस की बगावत मुखर हो जाती थी.

असल में पिता सदा एक हौवा बन बेटे के अधिकारों को छीनता रहा. प्रतिक्रिया करने का उफान मन में उबलने के बावजूद पुत्र अंदर ही अंदर घुटता रहा. जब समय ने करवट बदली और उस की प्रतिक्रिया विरोध के रूप में सामने आई तो पिता सजग हुआ कि कहीं बागडोर और सत्ता बनाए रखने का लालच उन के रिश्ते के बीच ऐसी खाई न बना दे जिसे पाटना ही मुश्किल हो जाए. लेकिन बदलते समय के साथ नींव पड़ी एक ऐसे नए रिश्ते की जिस में भय नहीं था, थी तो केवल स्वीकृति. इस तरह पितापुत्र के बीच दूरियों की दीवारें ढह गईं और अब आपसी संबंधों से एक सोंधी सी महक उठने लगी है, जिस ने उन के रिश्ते को दोस्ती में बदल दिया है.

पितापुत्र संबंधों में एक व्यापक परिवर्तन आया है और यह उचित व स्वस्थ है. पिता के व्यक्तित्व से सामंतवाद थोड़ा कम हुआ है. थोड़ा इसलिए क्योंकि अगर हम गांवों और कसबों में देखें तो वहां आज भी स्थितियों में ज्यादा परिवर्तन नहीं आया है. बस, दमन उतना नहीं रहा है जितना पहले था. आज पिता की हिस्सेदारी है और दोतरफा बातचीत भी होती है जो उपयोगी है. मीडिया ने रिश्तों को जोड़ने में अहम भूमिका निभाई है. टैलीविजन पर प्रदर्शित विज्ञापनों ने पितापुत्री और पितापुत्र दोनों के बीच निकटता का इजाफा किया है. समाजशास्त्री श्यामा सिंह का कहना है कि आज अगर पितापुत्र में विचारों में भेद हैं तो वे सांस्कृतिक भेद हैं. अब मतभेद बहुत तीव्र गति से होते हैं. पहले पीढि़यों का परिवर्तन 20 साल का होता था पर अब वह परिवर्तन 5 साल में हो जाता है. आज के बच्चे समय से पहले मैच्योर हो जाते हैं और अपने निर्णय लेने लगते हैं. जहां पिता इस बात को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं वहां दिक्कतें आ रही हैं. पितापुत्र के रिश्ते में जो पारदर्शिता होनी चाहिए वह अब दिखने लगी है. नतीजतन बेटा अपने पिता के साथ अपनी बातें शेयर करने लगा है.

खत्म हो गई संवादहीनता

आज पितापुत्र संबंधों में जो खुलापन आया है उस से यह रिश्ता मजबूत हुआ है. मनोवैज्ञानिक समीर मल्होत्रा के अनुसार, अगर पिता अपने पुत्र के साथ एक निश्चित दूरी बना कर चलता है तो संवादहीनता उन के बीच सब से पहले कायम होती है. पहले जौइंट फैमिली होती थी और शर्म पिता से पुत्र को दूर रखती थी. बच्चे को जो भी कहना होता था, वह मां के माध्यम से पिता तक पहुंचाता था. लेकिन आज बातचीत का जो पुल उन के बीच बन गया है, उस ने इतना खुलापन भर दिया है कि पितापुत्र साथ बैठ कर डिं्रक्स भी लेने लगे हैं. आज बेटा अपनी गर्लफ्रैंड के बारे में बात करते हुए सकुचाता नहीं है.

करने लगा सपने साकार

महान रूसी उपन्यासकार तुरगेनेव की बैस्ट सेलर किताब ‘फादर ऐंड सन’ पीढि़यों के संघर्ष की महागाथा है. वे लिखते हैं कि पिता हमेशा चाहता है कि पुत्र उस की परछाईं हो, उस के सपनों को पूरा करे. जाहिर है, इस उम्मीद की पूर्ति होने की चाह कभी पुत्र को आजादी नहीं देगी. पिता चाहता है कि उस के आदेशों का पालन हो और उस का पुत्र उस की छाया हो. टकराहट तभी होती है जब पिता अपने सपनों को पुत्र पर लादने की कोशिश करता है. पर आज पिता, पुत्र के सपनों को साकार करने में जुट गया है. प्रख्यात कुच्चिपुड़ी नर्तक जयराम राव कहते हैं कि जमाना बहुत बदल गया है. बच्चों की खुशी किस में है और वे क्या चाहते हैं, इस बात का बहुत ध्यान रखना पड़ता है. यही वजह है कि मैं अपने बेटे की हर बात मानता हूं. मैं अपने पिता से बहुत डरता था, पर आज समय बदल गया है. कोई बात पसंद न आने पर मेरे पिता मुझे मारते थे पर मैं अपने बेटे को मारने की बात सोच भी नहीं सकता. आज वह अपनी दिशा चुनने के लिए स्वतंत्र है. मैं उस के सपने साकार करने में उस का पूरा साथ दूंगा. बहरहाल, अब पितापुत्र के सपने, संघर्ष और सोच अलग नहीं रही है. यह मात्र भ्रम है कि आजादी पुत्र को बिगाड़ देती है. सच तो ?यह है कि यह आजादी उसे संबंधों से और मजबूती से जुड़ने और मजबूती से पिता के विश्वास को थामे रहने के काबिल बनाती है.

Father’s day 2023: मां के बिना पिता बच्चों को कैसे संभाले

4 दिन पहले तक अभिषेक की जिंदगी में सब कुछ बहुत खूबसूरत था. एक प्यारी सी बीवी थी जो हर वक्त उस का ख्याल रखती थी. दो प्यारेप्यारे बच्चे थे जिन की खिलखिलाहट से सारा घर गुंजायमान रहता था. पर 4 दिन के अंदर जिंदगी ने ऐसा खेल खेला कि उस के घर में सब तरफ सूनापन और उदासी पसर गई. उस की पत्नी को अचानक कोविड हुआ और दोतीन दिनों के अंदर ही वह सब को छोड़ कर चली गई.

वह खुद भी कोरोना पॉजिटिव था. कोरोना से पत्नी की मौत की खबर पा कर ज्यादा लोग तो आ ही नहीं सके. वैसे भी कोरोना की वजह से हालात बहुत खराब थे. केवल उस की मां, सासससुर और बहन समेत कुछ करीबी रिश्तेदार मातम मनाने के लिए आए. बाकी सब तो शाम में ही लौट गए मगर उस की मां और बहन रुक गए. अभिषेक ने खुद को आइसोलेट कर लिया. मां बच्चों को संभालने लगी. बहन को भी 4 -5 दिनों में अपने घर जाना पड़ा.

इधर एकडेढ़ महीने रुक कर मां को भी पिताजी के पास लौटना पड़ा. अभिषेक के पिताजी गांव में व्यवसाय करते थे और ज्यादा दिन अकेले नहीं रह सकते थे. मां के जाने के बाद बच्चों की जिम्मेदारी पूरी तरह अभिषेक पर आ गई. वैसे
गनीमत थी कि फिलहाल उस का वर्क फ्रॉम होम चल रहा था. इसलिए उसे बच्चों को अकेले घर में छोड़ कर ऑफिस जाने की टेंशन नहीं थी. मगर ऑफिस का काम तो पूरा करना ही होता था. उस पर छोटे बच्चों को पूरे दिन संभालना भी आसान नहीं होता. कोरोना की वजह से उस ने मेड को भी छुट्टी दी हुई थी.

जाते वक्त मां ने समझाया था कि वह दूसरी शादी कर ले. मगर अभिषेक दूसरी शादी के पक्ष में नहीं था. वह अपने बच्चों की जिंदगी में सौतेली मां को ले कर आना नहीं चाहता था. अभिषेक ने तय किया कि वह बच्चों को अपने बल पर पालेगा.

इस के लिए उस ने कुछ तैयारियां शुरू की. सब से पहले एक टाइम टेबल बनाया. किन चीजों की कब जरूरत पड़ेगी या बाजार से क्या ला कर रखना है जैसी चीजों की लिस्ट बनाई. बच्चों से अपनी मजबूरी डिस्कस की और समझाया कि उन्हें भी पापा के साथ कॉर्पोरेट करना पड़ेगा. यूट्यूब देख कर खाना बनाना सीखा. फिर क्या था कुछ समय में ही अभिषेक की जिंदगी की गाड़ी पटरी पर आ गई. वह अब अपने बच्चों का पिता होने के साथ साथ प्यारदुलार करने वाली मां भी था, बैठा कर पढ़ाने वाली टीचर भी था, घर का कमाऊ सदस्य भी था और पूरा घर संभालने वाली हाउसवाइफ की भूमिका भी निभा रहा था.

हाल ही में की गई एक स्टडी के मुताबिक़ सिंगल पिता की मदद हर कोई करना चाहता है. यहां तक कि दफ्तर में ऐसे पुरुषों को दूसरों के मुकाबले 21% ज्यादा बोनस मिलता है. अकेले पिताओं के साथ शानदार व्यवहार को फादरहुड बोनस कहा गया. ऐसा भी माना जाता है कि सिंगल पिताओं के पास नौकरी के मौके ज्यादा आते हैं. मगर यह नहीं भूलना चाहिए कि अकेले घरपरिवार और बच्चों के साथ ऑफिस की जिम्मेदारियां उठाना एक पुरुष के लिए बिलकुल भी सहज नहीं.

यह सच है कि आज के समय में पुरुष महिलाओं वाले काम करने में पहले की तरह हिचकिचाते नहीं. जरुरत पड़ने पर बच्चों की नैप्पी बदलने से ले कर उन के लिए टिफ़िन तैयार करने का काम भी बखूबी कर लेते हैं. ऐसा वे पत्नी की
तबियत खराब होने या किसी तरह की परेशानी आने पर उस की मदद के लिए करते हैं. पत्नी के निर्देशों के साथ कभीकभार बच्चे को संभाल लेना आसान है. मगर जब बात आती है एक सिंगल फादर के रूप में बच्चों की पूरी परवरिश करने की तो यह डगर आसान नहीं होती.

दरअसल माताओं को हमेशा से ही बच्चों के ज्यादा करीब समझा जाता है. पत्नी की मौत या तलाक लिए जाने के बाद पुरुष को मॉम्स वाले सारे काम करने होते हैं. बहुत सारे ऐसे काम जो महिलाएं सालों से करती आ रही हैं उन्हें जब
पुरुष करते हैं तो दिक्कत आती ही है. ऊपर से पुरुषों वाले काम करने होते हैं वह अलग. ऐसे में वे इस जिम्मेदारी को कठिनाई से संभालते हैं. बच्चों को मां और पिता दोनों का प्यार देने का प्रयास करते हैं. कुछ ऐसे भी हैं जो अपनी इच्छा से शादी नहीं करते और सिंगल फादर बनते हैं. वैसे देखा जाए तो शादी न करने वालों के देखे पत्नी के मर जाने या कहीं चले जाने के बाद बच्चों को संभालना पड़े तो यह ज्यादा कठिन होता है क्यों कि बच्चों को मां की आदत लग चुकी होती है.

सिंगल फादर कैसे बनें परफेक्ट पापा

सब से जरुरी है अनुशासन

पुरुषों को कठोर ह्रदय का माना जाता है. किसी भी परिवार में पिता सख्ती के लिए और मां प्यार और ममता लुटाने के लिए जानी जाती है. लेकिन जब घर में पुरुष को ही महिला का भी काम करना पड़े तो पुरुष यानी सिंगल फादर को
अपने स्वभाव में भी बदलाव लाना पड़ता है. वह बच्चों को शांति और प्यार से संभालना चाहता है.

सख्ती दिखाने पर बच्चे कहीं दूर न हो जाएं यह सोच कर अक्सर वह बच्चों को कई मामलों में छूट दे देता है और अनुशासन की बात भूल जाता है. इस का नतीजा कई दफा सही नहीं निकलता और बच्चे हाथ से निकलने लगते हैं. इसलिए जरुरी है बैलेंस बना कर रखना. बच्चों को कुछ नियम सिखाएं और उन का पालन भी करवाएं. नियम थोड़े फ्लैक्सिबल हों मगर बच्चों में यह डर बिठाना भी जरुरी है कि अनुशासन तोड़ने पर उन्हें सजा मिल सकती है. जैसे आप बच्चों को टिफिन खत्म कर के आने का नियम बनाइए लेकिन रोज पौष्टिक खाने के बजाए कभीकभी उन की पसंद का चटपटा या जंकफूड भी बना दें ताकि ऐसा न हो कि घर के खाने से बोर हो कर बच्चा बाहर की चीज़ें खाना शुरू कर दे और आप के डर से टिफिन का खाना डस्टबिन में फेंकना शुरू कर दे.

मल्टीटास्कर बनें

आप को भी महिलाओं की तरह मल्टीटास्कर बनना होगा. घर और ऑफिस के कामों में बैलेंस बना कर रखना होगा. भले ही आप बिलकुल परफैक्टली हर काम न निबटा सकें मगर इतना तो कर ही सकते हैं कि सब सामान्य रूप से चलता जाए. आप चाहें तो अपने बॉस से भी इस सन्दर्भ में बात कर सकते हैं. उन्हें दिक्कत बताइए और बात कर के अपने लिए टाइम फ्लेक्सिबल करा सकते हैं.

घर के काम जो रात में निबटाए जा सकते हैं उन्हें कर के रखिए. कामकाजी महिलाएं भी ऐसा ही करती हैं. आप सुबह के टिफिन की तैयारी रात में ही कर के रखिए. इसी तरह बच्चों की स्कूल ड्रेस रात में ही एक जगह पूरी तरह से
तैयार कर के और प्रेस कर के रखिए. यानी आप को प्रीप्लानिंग पर ध्यान देना होगा.

टाइम मैनेजमेंट

सिंगल फादर को टाइम मैनेजमेंट का ख्याल रखना पड़ता है. आप के पास समय की कमी काफी कमी होगी क्योंकि एक साथ बहुत सी भूमिकाएं अदा करनी है. जरुरी है कि हर काम का समय निश्चित कीजिए. ऐसा न हो कि केवल काम ही करते रह जाएं, बीच बीच में रिलैक्स के लिए ब्रेक भी लीजिए. सुबह जल्दी उठा जाए तो हर काम करीने से निबट जाता है. ध्यान रखें औरतें घर में सब से पहले इसी वजह से उठती हैं ताकि बाद में हड़बड़ी न करनी पड़े.

कम्युनिकेशन गैप न आने दें

ज्यादातर घरों में बच्चे पिता से डरते हैं और कम बातें करते हैं. अपनी छोटी बड़ी हर बात वे मां से ही शेयर करते हैं. मगर सिंगल फादर के केस में पिता को ही मां की भूमिका भी निभानी होती है. ध्यान रखें कि अब आप पहले
की तरह सिर्फ जरूरत की बात करने की स्थिति में बिल्कुल नहीं हैं. आप को बच्चों के साथ लगातार संवाद बना कर रखना होगा. ऐसे में जरूरी है कि आप भी उन की मां की तरह गुड लिसनर बनें. प्यार और धैर्य के साथ उन की बातें
सुनें और फिर जवाब भी उतने ही खूबसूरत और कंविंसिंग अंदाज में दें ताकि बच्चे हर बात आप से शेयर करना शुरू कर दें. आप को पिता की जगह उन का दोस्त बनना होगा. फिर देखिएगा कैसे आप का बच्चों के साथ रिश्ता परफेक्ट
हो जाएगा.

मदद लेने से हिचकिचाएं नहीं

किसी से मदद लेना शर्म की बात नहीं. आप को तो गर्व होना चाहिए कि आप 2 लोगों की भूमिका अदा कर रहे हैं. ऐसे में यदि कहीं कोई समस्या आती है तो फोन कर के किसी रिश्तेदार से, आस पड़ोस वालों या दोस्तों से भी सही
जानकारी ले सकते हैं.

बच्चों को प्यार से समझाएं

एक पुरुष के लिए अकेले छोटे बच्चों को संभालना आसान नहीं होता. मगर यदि वह धैर्य रखें और बच्चों को अपने छोटेछोटे काम खुद करने की ट्रेनिंग दे तो धीरेधीरे सब मैनेज हो सकता है. बच्चों के साथ बहुत सब्र रखने की जरूरत
पड़ती है. उन्हें जोर जबरदस्ती या डांट फटकार कर कुछ नहीं सिखाया जा सकता. इस के विपरीत यदि उन्हें प्यार से, खेलखेल में चीज़ें सिखाई जाएं तो वे जल्दी अडॉप्ट कर लेते हैं.

कभी आपा न खोएं

आप यदि अकेले बच्चों और घर के साथ ऑफिस का काम नहीं संभाल पा रहे तो हेल्प के लिए मेड रख लें. यदि आप बच्चों की शरारतों से परेशान है या इस बात से दुखी हैं कि वे आप की कोई हेल्प नहीं करते तो भी आपा खो कर
चीखनेचिल्लाने के बजाय प्यार से उन्हें परिस्थितियों से वाकिफ कराएं और समझाएं कि आप उन का सहयोग क्यों और किस तरह चाहते हैं.

बच्चों से भी घर के कामों में मदद लें

बच्चों को पढ़ाई के साथ छोटेमोटे काम करते रहने की आदत डालें. आप उन्हें सब्जी काटने, घर की डस्टिंग करने, पौधों में पानी डालने, कपड़े तह कर के रखने, अपने कपड़े प्रैस करने, अपने जूते या स्कूल बैग साफ़ करने, चाय कॉफी
बनाने जैसे काम करने को कह सकते हैं. इन्हें वे चाव से करेंगे. अगर कोई काम उन्हें नहीं आता तो आप उन को सिखा भी सकते हैं.

बच्चों का टाइम टेबल बनाएं

बच्चों में कम उम्र से ही एक अनुशासन के साथ चलने की आदत डालें. उन के लिए टाइम टेबल बनाएं और उसी अनुसार उन की दिनचर्या फिक्स करें. निचित समय पर उन्हें पढ़ाने बैठाएं. उन की कॉपियां चेक करें. जो
असाइनमेंट्स मिले हैं उन पर चर्चा करें. अगर उन्हें कहीं दिक्कत आ रही है तो वह हिस्सा समझाएं ताकि पढ़ाई में उन की रूचि बनी रहे. बीचबीच में उन्हें खेलने या रिलैक्स होने का मौका भी दें. कभीकभी खुद भी बच्चों के साथ खेलें ताकि आप का बांड अच्छा बन सके.

अपना भी रखिए ख्याल

कहीं ऐसा न हो कि बच्चों का ख्याल रखतेरखते आप अपने प्रति लापरवाह हो जाएं और अपनी सेहत बिगाड़ लें. यह बिलकुल भी मत भूलिए कि आप का ख्याल रखा जाना भी उतना ही जरूरी है.

याद रखिए सब कुछ मैनेज करते हुए अपनी शारीरिक और मानसिक सेहत का ख्याल आप को खुद ही रखना होगा. अगर आप ही ठीक नहीं होंगे तो उन का ख्याल कौन रखेगा? अच्छे पिता बने रहने के लिए आप को खुद को फिट भी रखना होगा. अपने पूरे दिन में काम की भागदौड़ के बीच आप को एक्सरसाइज और फिटनेस के लिए भी एक समय निश्चित करना होगा. अपने खाने में पौष्टिकता और फिटनेस के लिए आवश्यक चीजें शामिल करनी होंगी.

बॉलीवुड के सिंगल फादर्स 

बॉलीवुड में भी कुछ ऐसे पिता भी है जो बच्चों को मां के न होते हुए बखूबी पाल रहे है और कुछ ऐसे भी हैं जिन्होंने अपनी इच्छा से शादी नहीं की और सिंगल फादर बने.

राहुल देव

फिल्म एक्टर राहुल देव की पत्नी रीना ने कैंसर के कारण 2009 में दम तोड़ दिया. इस के बाद राहुल की जिंदगी में अकेलापन घर करने लगा. राहुल ने अपने बेटे के लिए दूसरी शादी नहीं की. राहुल का सिद्धांत नाम का एक बेटा है. राहुल ने सिंगल रहने का फैसला लिया और बच्चे के साथ जीवन जीने लगे. उस वक्त सिद्धांत 10 साल का था और अब 21 साल का हो चुका है.

राहुल बोस

राहुल बोस काफी चर्चित एक्टर रहे हैं और कई बेहतरीन फिल्मों में अभिनय कर चुके हैं. समाज सेवा करने के लिए भी राहुल को लोगों के बीच जाना जाता है. राहुल बोस ने भी शादी नहीं की है बल्कि 6 बच्चों को गोद लिया है. राहुल
ने अंडमान और निकोबार से 6 बच्चों को गोद लिया और उन्हें अकेले पाल रहे हैं. इस के साथ ही वे प्रोफेशनल लाइफ को भी हैंडल कर रहे हैं.

तुषार कपूर

जानेमाने अभिनेता जितेंद्र के बेटे तुषार कपूर भी बगैर शादी के पिता बने हैं. इन की कहानी भी बेहद दिलचस्प है. तुषार कपूर सरोगेसी के जरिए बेटे के पिता बने है. उन के बेटे का नाम लक्ष्य है जिसे वे बहुत प्यार से अकेले पाल रहे हैं.

करण जौहर

सिंगल फादर की लिस्ट में करण जौहर का नाम भी चर्चित है. करण जौहर बॉलीवुड का काफी जाना माना नाम है. एक सफल फिल्म मेकर होने के साथ ही वह एक बेहतर पिता भी हैं. करण जौहर अपनी ख़ुशी से बिना शादी के दो जुड़वां बच्चों के पिता बने हैं. बेटे का नाम यश है और बेटी का नाम रूही है. अपने दोनों बच्चों के साथ ये जम कर मस्ती करते दिखते हैं. तुषार कपूर की तरह ये भी सरोगेसी के जरिए पिता बने हैं.

कमल हासन

कमल हासन का पत्नी सारिका से पहले ही तलाक हो गया था और श्रुति हासन और अक्षरा हासन अपने पापा के साथ बड़ी हुईं.

संजय दत्त

संजय दत्त की पहली पत्नी ऋचा शर्मा की कैंसर से मृत्यु हो गई थी और वो अपनी बेटी त्रिशाला के सिंगल पैरेंट बने. हालांकि कुछ सालों बाद त्रिशाला की कस्टडी उनकी मौसी को मिल गई लेकिन संजय दत्त अपनी तमाम परेशानियों के बाद भी अपनी जिम्मेदारियों को नहीं भूले.

Father’s day 2023: पिता बदल गए हैं तो कोई हैरानी नहीं, बदलते वक्त के साथ ही था बदलना

आइंस्टीन की बिग बैंग थ्योरी को लेकर भले संदेह हो कि ब्रह्मांड निरंतर फ़ैल रहा है या नहीं.लेकिन इस बात को लेकर कोई संदेह नहीं है कि दुनिया हर पल बदल रही है.कारण कुछ भी हो.ऐसे में भले किसी की पहचान हमेशा एक सी कैसे रह सकती है.पिता नाम का,समाज का सबसे महत्वपूर्ण शख्स भी इस बदलाव से अछूता नहीं है तो इसमें किसी आश्चर्य की बात नहीं है.आज जब पिछली सदी के जैसा कुछ नहीं रहा,न खानपान,न पहनावा,शिक्षा,न रोजगार,न संपर्क के साधन तो भला पिता कैसे वैसे के वैसे ही बने रहते,जैसे बीसवीं सदी के मध्यार्ध या उत्तरार्ध में थे.पिता भी बदल गए हैं.क्योंकि अब वो घर में अकेले कमाने वाले शख्स नहीं हैं.क्योंकि अब वो अपने बच्चों से ज्यादा नहीं जानते,ज्यादा स्मार्ट भी नहीं हैं.

यही वजह है कि आज पिता घर की अकेली और निर्णायक आवाज भी नहीं हैं. आज के पिता परिवार की कई आवाजों में से एक हैं और यह भी जरूरी नहीं कि घर में उनकी  आवाज सबसे वजनदार आवाज हो.इसमें कुछ बुरा भी नहीं है और न ही इसके लिए पिताओं के प्रति अतिरिक्त सहानुभूति होनी चाहिए.क्योंकि अकेली निर्णायक आवाज न घर के लिए और न ही समाज के लिए,किसी भी के लिए बहुत अच्छी नहीं होती.अकेली आवाज के हमेशा तानाशाह आवाज में बदल जाने की आशंका रहती है.

बहरहाल पहले के पिता ख़ास होने के भाव से अकड़ में रहते थे, इस कारण वह अपने बच्चों के प्रति अपने प्यार और फिक्रमंदी की भावनाएं भी सार्वजनिक तौरपर प्रदर्शित नहीं कर पाते थे.यहां तक कि पहले पिता सबके सामने अपने बच्चों को अपनी जुबान से प्यार भी नहीं कर पाते थे.वही सामाजिक दबाव, क्या कहेंगे लोग.ढाई-तीन दशक पहले जिनका बचपन गुजरा है,उन्हें मालूम है कि कैसे बचपन में ज्यादातर समय उन्हें अपने पिताओं से नकारात्मक व्यवहार ही मिलता रहा है, लेकिन आज ऐसा नहीं है.आज के पिता बच्चों के साथ किसी हद तक दोस्ताना भाव रखते हैं. आज के पिता में वह दंबगई नहीं है, जो पहले हुआ करती थी? आज के बच्चे अपने पापा  से डरते नहीं है?

क्योंकि तकनीक ने,जीवनशैली ने पारिवारिक ताकत और प्रभाव का विकेंद्रीकरण किया है.पहले की तरह सारी पारिवारिक ताकत और प्रभाव का अब कोई अकेला केंद्र नहीं रहा.इस कारण आज का पिता बदल गया है.यह बदलाव कदम कदम पर दिखता है.आज का पिता घर के काम बिल्कुल न करता या कर पाता हो, ऐसा नहीं है.आज का पिता न सिर्फ घर के कई काम बड़ी सहजता से करता है बल्कि रसोई में भी अब वह अनाड़ी नहीं है.पहले जिन कामों को हम सिर्फ घर की महिलाओं को करते देखते थे, जैसे घर की सफाई, बच्चों को उठाना, स्कूल के लिए तैयार करना, उनके लिए नाश्ता और लंच बनाना आदि, आज ये तमाम काम पिता भी सहजता से करते दिखते हैं.

क्योंकि आज की तारीख में विभिन्न कामों के साथ जुड़ी अनिवार्य लैंगिगकता खत्म हो गई है या धीरे धीरे खत्म हो रही है.हम चाहें तो इसे इस तरह कह सकते हैं कि आज के पिता बहुत कूल हैं, हर काम कर लेते हैं.कई बार तो ऐसा इसलिए भी होता है; क्योंकि पिता एकल पालक होते हैं.आज बहुत नहीं पर काफी पिता ऐसे हैं,जिन्होंने सिंगल पैरेंट के रूप में बच्चा गोद लिया हुआ है.सौतेले पिता भी आज अजूबा नहीं हैं. आज के पिता बड़ी सहजता से अपनी बेटियों के हर काम और हर तरह के संवाद का जरिया बन सकते हैं.हम आमतौर पर ऐसा होने को पश्चिमी संस्कृति का असर मान लेते हैं.लेकिन यह महज पश्चिमी संस्कृति का असर भर नहीं है,यह एक स्वाभाविक बदलाव है.जो दुनिया में हर जगह आधुनिक जीवनशैली और शिक्षा से आया है.

इसके कारण आज के पिता बच्चों के लिए ज्यादा रीचेबल हो गये हैं,बच्चे बड़ी सहजता से उन तक पहुँच रखते हैं,वह पिताओं से हर तरह की बातचीत कर लेते हैं.उनमें एक किस्म का धैर्य आया है.आज के पिता बच्चों के रोल मॉडल हैं या नहीं हैं.ज्यादातर लड़कियां अपने ब्वाॅयफ्रेंड या हसबैंड में पिता की छाया तलाशती हैं.जाहिर है आज का पिता भावनात्मक रूप से ज्यादा सम्पन्न, संयमी, मददगार और केयर करने वाला है.यहां तक कि आज के पिता ने अपने बच्चों और परिवार को अपनी आलोचना की भी भरपूर छूट दी है.नहीं दी तो परिवार द्वारा ले ली गयी है,चाहे उसे पसंद हो या न हो. यही वजह है कि आज परिवार नामक संस्था ज्यादा प्रोग्रेसिव है.

इस सबके पीछे कारण बड़े ठोस हैं.आज का पिता घर का अकेला रोजी रोटी कमाने वाला नहीं रहा.मां भी बड़े पैमाने पर ब्रेड बटर अर्नर है.बच्चे भी पहले के मुकाबले कहीं जल्दी कमाने लगते हैं. इस वजह से घर में अब पिता का पहले के जमाने की तरह का दबदबा नहीं रहा,जब वह परिवार की रोजी रोटी कमाने वाले अकेले शख्स हुआ करते थे.

यूं शुरू हुआ फादर्स डे मनाने का सिलसिला

हर साल जून के तीसरे रविवार को फादर्स डे मनाया जाता है. इसका सबसे पहले विचार एक अमरीकी लड़की सोनोरा स्मार्ट डोड को साल 1909 में आया था.पहला फादर्स डे 19 जून 1910 को वाशिगंटन में मनाया गया. 1966 में अमरीका के राष्ट्रपति लिंडन बेन जॉनसन ने जून के तीसरे रविवार को हर साल फादर्स डे मनाने की औपचारिक घोषणा की. तब से यह न केवल अमरीका में नियमित रूप से मनाया जाता है बल्कि दुनिया के दूसरे देशों में भी इसने धीरे धीरे अपना विस्तार किया है.पिता दिवस के मनाये जाने के इस औपचारिक सिलसिले के बाद से दुनिया में पिता और पितृत्व की भूमिका लगातार चर्चा होती रही है.

रिश्ते: क्या बोलें क्या नहीं

कई बार हम हंसी-मजाक में अपनी शालीनता को भूल जाते है और कुछ गलत बोल जाते हैं और जिन से हम मजाक कर रहे हैं उन को नागवारा गुजरता है और वे हम से रूठ जाते हैं. इस से हमारे संबंधों में दरार पड़ जाती है. अत: मजाक हमेशा शालीनता और अच्छी मानसिकता से किया जाए तो ही अच्छा रहता है.

कई बार देखा गया है कि जो शब्द हम बारबार बोलते हैं वही हमारे मुंह पर आते हैं फिर चाहे वे अच्छे हों या बुरे, इसलिए शब्दों का ध्यान रखें. फिर चाहे वे मजाक में ही क्यों न बोले हों क्योंकि हमारे मुंह से निकला 1-1 शब्द हमारे चरित्र और व्यवहार का परिचय देता है. यदि हम कोई गलत शब्द बोल देते हैं तो लोगों के दिल में घृणा के पात्र बन जाते हैं और यदि हम अच्छे शब्द और प्यार से बोलते हैं तो सब का दिल जीत लेते हैं. इसलिए किसी से भी बातचीत करते समय शब्दों का ध्यान रखें.

जब कर रहे हों आलोचना

यदि हमें किसी की आलोचना करनी हो तो कोशिश करें कि तीखे शब्दों का उपयोग न करें. आलोचना हम सकारात्मक भी कर सकते हैं. इस के लिए कुछ सु झाव प्रस्तुत हैं:

रवि पार्टी में बहुत शराब पी कर आया था और सब से लड़ाई झगड़ा कर रहा था. तभी उस के दोस्त उस को बहुत भलाबुरा कहने लगे, लेकिन दोस्त आलोचना करते समय यह भूल गए कि यहां सभी अपने परिवार के संग आए हैं. तब क्या रवि के साथ ऐसा व्यवहार ठीक है? इस समय आप आलोचना करते समय अपने शब्दों का ध्यान रखें. उस को प्यार से सम झाने की कोशिश करें कि उस की वजह से पार्टी का मजा खराब हो गया क्योंकि आज सभी दोस्त परिवार संग मौजमस्ती करना चाहते थे, लेकिन उस की वजह से ऐसा नहीं कर पाए.

उसे आगे से किसी भी पार्टी में बिना शराब पीए आने को कहें ताकि वह भी अपने दोस्तों के संग पार्टी का मजा ले सके और कुछ यादगार पल बिता सकें. इस से उस की सोच सकारात्मक होगी और अगली बार वह पार्टी में ऐसा व्यवहार नहीं करेगा. इस तरह आलोचना सकारात्मक भी कर सकते हैं.

जब कर रहे हों बच्चों से बात

माता-पिता के द्वारा बच्चों से की गई बातचीत के ढंग का प्रभाव भी उन के ऊपर पड़ता है. कई मातापिता उन को डांटतेमारते समय अपशब्दों और कुछ गालियों का भी उपयोग करते हैं जिन्हें बच्चे भी सीख जाते हैं जिस का उन की मानसिकता पर गहरा असर पड़ता है. कई बार जब बच्चों को गुस्सा आता है तो वे भी इन्हीं शब्दों का उपयोग करते हैं. तब मातापिता को उन का यह व्यवहार नागवारा गुजरता है.

इस के साथ ही इस का प्रभाव हमारी छवि पर भी पड़ता है, इसलिए मातापिता घर से ले कर बाहर तक कुछ भी कहने में सावधानी बरतें क्योंकि बारबार अपशब्दों का उपयोग हमारी आदत में शामिल हो जाता है और फिर ये शब्द हमारे मुंह से अपने आप ही निकल आते हैं. बात कुछ दिनों पहले की है. उस दिन हमारे पड़ोस में रहने वाल 4 साल का रोहन अपने मातापिता से नाराज हो कर हमारे घर आया. पूछने पर उस ने अपनी बात को बताने के लिए कई बार कुछ अपशब्दों और गालियों का उपयोग किया. शायद वह उन शब्दों का मतलब ही नहीं जानता था. वे शब्द उस की रोज की बोलचाल में शामिल हो गए थे, इसलिए उस ने उन्हें बोलने से पहले जरा भी नहीं सोचा. इसलिए हमें बच्चों के सामने इस तरह के शब्दों से परहेज करना चाहिए.

अपमानजनक भाषा का प्रयोग

बड़े अकसर बातोंबातों में या फिर फोन पर किसी व्यक्ति के लिए गलत भाषा का उपयोग कर जाते हैं. उन्हें लगता है कि बच्चों ने नहीं सुना होगा या कई बार हम ध्यान ही नहीं देते कि आसपास बच्चे हैं और वे कुछ भी कह जाते हैं. कई बार बच्चे बड़ों की हर बात को बड़े गौर से सुनते हैं. इसलिए अगर घर में छोटे बच्चे हैं तो बेहद संभल कर बातचीत करें. बच्चों के सामने किसी के लिए अपशब्द या अभद्र भाषा का प्रयोग न करें.

कमियां निकालना

घर से मेहमान के जाने के बाद अकसर परिवार के सदस्य उस व्यक्तिको ले कर बातें करते हुए उस की कमियां निकालते हैं. यही सब बच्चे भी देखते हैं और वे भी उस व्यक्ति के बारे में वैसी ही धारणा बना लेते हैं. बच्चों के मन पर इन सब बातों का गहरा असर पड़ता है और वे भी बड़े हो कर लोगों में कमियां ढूंढ़ने लगते हैं. कई बार तो घर के सदस्य भी एकदूसरे की पीठपीछे बुराई करते नजर आते हैं. अत: मातापिता बच्चों के सामने किसी की पीठपीछे उस की कमियां न निकालें और न ही उस की बुराई करें.

एक-दूसरे का अपमान करना

हर घर में और हर पतिपत्नी के बीच  झगड़ा और नाराजगी आम बात होती है. ऐसे में एकदूसरे का अपमान करना या नीचा दिखाना सही नहीं होता. जब बच्चा ये सब देखता है तो वह उसी के आधार पर आप की इज्जत, आदर और सम्मान करता है. इसलिए जैसी इज्जत, आदर और सम्मान आप बच्चों से चाहते हैं वैसा ही सम्मान दूसरे को दें. अगर किसी बात पर नाराजगी हो तो उसे बंद कमरे में सुल झाएं न कि बच्चों के सामने. इस के अलावा बाकी सदस्य भी बच्चों के सामने एकदूसरे से अच्छी तरह से बातचीत करें. इस से बच्चों में परिवार के प्रति प्रेम बढ़ता है और वे सभी का आदर करते हैं.

जब कर रहे हों दोस्तों से या औफिस में बात

आज रवि बहुत दिनों बाद अपने बचपन के दोस्त श्याम से मिलने उस के औफिस गया और वह अपने उसी अंदाज में मिला जैसे वह बचपन में मिला करता था. कंधे पर हाथ रखे बात करना, बातबात पर मजाक करना, तेजतेज हंसना, टेबल पर रखे सामान को हाथ लगाना, फोन पर तेज आवाज में बात करना आदि. ये सब श्याम और उस के आसपास के सहकर्मियों को बिलकुल नहीं भा रहा था, लेकिन श्याम के पास कोई उपाय भी नहीं था. आखिर वह अपने बचपन के दोस्त को कैसे सब के सामने कुछ कह सकता था, यही बात दोस्तों के साथ होने वाली बातचीत में भी लागू होती है.

तानेबाजी से बचें

कई बार हम मजाक के बहाने दोस्तों से अपने मन में दबी कड़वाहट को कहने की कोशिश करते हैं और अपनी कड़वाहट  को सार्वजनिक रूप से उजागर करते हैं और यदि सामने वाले को बुरा लग जाए तो कह देते हैं कि मैं ने तो मजाक किया था.

कई बार ऐसा होता है कि पार्टी या शादीविवाह के प्रोग्राम में हम अपने उन दोस्तों संग जोकि प्रोफैशनल लाइफ में आप से आगे निकल गए होते हैं और आप वहीं हैं जहां पहले थे तो कई बार मन में जलन और कड़वाहट के भाव आते हैं और तब हम उन के साथ फनी और कूल माहौल बनाने के लिए तानेबाजी भरा मजाक करने लगते हैं. जैसे और भाई बहुतबहुत बधाई. सुना है तुम्हारी प्रमोशन हो गई है, बड़ी गाड़ी ले ली है तो आजकल बहुत बड़े आदमी हो गए हो.

फोन उठाने की भी फुरसत नहीं है, हां अब क्यों मेरा फोन उठाओगे वैगरहवैगरह कह कर दोस्तों के सामने मजाक बनाने लगते हैं. ऐसा करने से हमेशा बचें क्योंकि संभव है कि दोस्त इस चीज से आहत हो कर आप से नाराज हो जाए या संबंध खराब हो जाएं.

स्वभाव, स्थान व समय का ध्यान रखें

दरअसल, समय और जरूरत का ध्यान रख कर कही गई बात से हमारी अहमियत अपनेआप बढ़ जाती है. बोलने की कला और व्यवहारकुशलता के बगैर प्रतिभा काम नहीं आ सकती. शब्दों से हमारा नजरिया  झलकता है. कई बार हमारी बिना सोचेसम झे बोली गई बात सामने वाले को बुरी लग सकती है. तब हो सकता है जब तक आप को अपनी गलती का एहसास हो तब तक बहुत देर हो चुकी हो क्योंकि यह तो हम सभी जानते हैं कि मुंह से निकली बात, आखों से निकले आंसू एवं बाण से निकला तीर वापस नहीं आता है इसलिए हमेशा सोचसम झ कर बोलें.

Mother’s Day Special: बच्चों की परवरिश बनाएं आसान इन 7 टिप्स से

अकसर कामकाजी महिलाएं अपराधबोध से ग्रस्त रहती हैं. यह अपराधबोध उन्हें इस बात को ले कर होता है कि पता नहीं वे अपने कैरियर की वजह से घर की जिम्मेदारियों का ठीक से निर्वाह कर पाएंगी या नहीं. उस पर यह अपराधबोध तब और बढ़ जाता है जब वे अपने दुधमुंहे बच्चे के हाथ से अपना आंचल छुड़ा कर काम पर जाती हैं. तब उन्हें हर पल अपने बच्चे की चिंता सताती है. एकल परिवारों में जहां पारिवारिक सहयोग की कतई गुंजाइश नहीं होती है, वहां तो नौबत यहां तक आ जाती है कि उन्हें अपने बच्चे या कैरियर में से किसी एक का चुनाव करना पड़ता है और फिर हमारे समाज में बच्चों की परवरिश की जिम्मेदारी मां पर ही होती है इसलिए मां चाहे कितने भी बड़े पद पर आसीन क्यों न हो, चाहे उस की तनख्वाह कितनी भी ज्यादा क्यों न हो समझौता उसे ही करना पड़ता है. ऐसे में होता यह है कि यदि वह अपने बच्चे की परवरिश के बारे में सोच कर अपने कैरियर पर विराम लगाती है, तो उसे अपराधबोध होता है कि उस ने अपने कैरियर के लिए कुछ नहीं किया. यदि वह बच्चे के पालनपोषण के लिए बेबीसिटर (दाई) पर भरोसा करती है, तो इस एहसास से उबरना मुश्किल होता है कि उस ने अपने कैरियर और भविष्य के लिए अपने बच्चे की परवरिश पर ध्यान नहीं दिया. ऐसे में एक कामकाजी महिला करे तो करे क्या?

इस का कोई तयशुदा जवाब नहीं हो सकता ह. इस मामले में हरेक की अपने हालात, इच्छाओं और प्राथमिकताओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है. यों भी मां बनना किसी भी लड़की की जिंदगी का बड़ा बदलाव होता है. कुछ लड़कियां ऐसी भी होती हैं जो किसी भी तरह मैनेज कर अपनी जौब करना चाहती हैं तो कुछ ऐसी भी होती हैं जो किसी भी कीमत पर अपने बच्चे पर ध्यान देना चाहती हैं. वनस्थली विद्यापीठ में ऐसोसिएट प्रोफैसर डा. सुधा मोरवाल कहती हैं, ‘‘मां बनने के बाद मैं ने अपना काम फिर से शुरू किया. चूंकि मुझे पारिवारिक सहयोग मिला था, इसलिए मेरे कैरियर ने फिर से गति पकड़ ली. हालांकि शुरुआती दौर में मुझे थोड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था और बच्चे को अपना पूरा समय न दे पाने का अपराधबोध होता था. पर हां, घर के कामकाज का बोझ मुझ पर कभी भी ज्यादा नहीं पड़ा.’’

डा. सुधा के उलट मीना मिलिंद को अपनी जौब छोड़नी पड़ी, क्योंकि उस के बच्चे को संभालने वाला कोई नहीं था और वह यह भी नहीं चाहती थी कि उसे बच्चे को ले कर कोई गिल्ट हो. मगर काम छोड़ने की कसक भी कम नहीं थी. बच्चे के छोटे होने की वजह से वे अभी तक जौब शुरू नहीं कर पाईं, क्योंकि वे एकल परिवार में रह

Mother’s Day Special: माई मौम माई दीवा

‘‘सुबह 5 बजे का अलार्म बजा नहीं कि मम्मी तुरंत उठ खड़ी होतीं. फिर जब वे हमें उठाने लगती हैं तो हम सब हर बार बस 5 मिनट और सोने दो कह कर उन्हें रूम से चले जाने का इशारा कर देते हैं. जब तक हम उठते हैं हमें लंच व ब्रेकफास्ट तैयार मिलता है. तैयार होते भी हम मां से कभी जूते लाने को कहते हैं तो कभी कहते हैं मां प्लीज मेरी ड्रैस प्रैस कर दो. ‘‘हम ही नहीं पापा व घर के अन्य सदस्यों की भी इस तरह की फरमाइशें जारी रहती हैं. मां चेहरे पर मुसकान लिए खुशीखुशी हम सब की फरमाइशें पूरी कर देती हैं, जबकि उन्हें खुद भी औफिस जाना होता है. मगर वे जानती हैं कि खुद के साथसाथ परिवार की सारी चीजों को कैसे मैनेज कर के चलना है.

‘‘घर की सारी जरूरतें पूरी करने के बाद उन्हें अपने औफिस भी जाना होता है. कभीकभी तो मुझे आश्चर्य होता है कि इतने व्यवस्थित तरीके से वे ये सब कैसे मैनेज करती हैं. मैं भी उन से सीख कर उन के जैसा बनना चाहती हूं. सच में मौम सिर्फ एक परफैक्ट वूमन

नहीं, बल्कि मेरी स्ट्रैंथ भी हैं और उन्हीं से मैं आयरन की तरह मजबूत बन जीवन जीने का व्यवस्थित तरीका भी सीख रही हूं,’’ यह कहना है 17 वर्षीया रिया का. फिटनैस से नो कंप्रोमाइज अगर औफिस पहुंचने की जल्दी के चक्कर में हैल्थ को इग्नोर किया तो आगे चल कर दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा, इसलिए सुबह की सैर स्किप करने का तो सवाल ही नहीं उठता, भले ही सुबह आधा घंटा जल्दी क्यों न उठना पड़े.

ऐसा सिर्फ मां अकेले नहीं करतीं, बल्कि इस में परिवार के सभी सदस्यों को भी शामिल करना नहीं भूलती, क्योंकि वे जानती हैं कि फिटनैस सिर्फ उन के लिए ही नहीं, बल्कि सभी के लिए जरूरी है. सभी को समझाती भी हैं कि सुबह की फ्रैश हवा में घूमने से हम खुद को न सिर्फ बीमारियों से दूर रख सकते हैं, बल्कि पूरा दिन फ्रैश महसूस करते हुए चुस्ती से काम भी कर सकते हैं. मां यह बात अच्छी तरह जानती है कि परिवार की सेहत का ध्यान रखने के लिए उस का भी सेहतमंद रहना जरूरी है.

वर्किंग मदर्स खासतौर पर इस बात का खयाल रखती हैं. उन्हें पता है कि उम्र बढ़ने के साथ महिलाओं को शरीर में आयरन, कैल्सियम इत्यादि की कमी से दोचार होना पड़ता है. ऐसे में वे अपनी डाइट के प्रति सजग हैं. चीजों का स्किप करना नहीं सीखा

कहावत है कि मां के पास जादू की छड़ी होती है जिस से वह हर मुश्किल आसान बना देती है. कुनाल ने अपना अनुभव शेयर करते हुए बताया कि मम्मी की औफिस में मीटिंग और उसी दिन स्कूल में हमारी पार्टी होने के कारण मुझे घर से राइस ले जाने थे. मेड को भी उसी दिन छुट्टी करनी थी. पापा ने भी सुबह ही बताया कि आज उन का आलूमटर खाने का मन है. इतने सारे काम. फिर भी मेरी सुपर मौम ने किसी को रूठने नहीं दिया.

घर का कोई काम अधूरा नहीं छोड़ा. फिर टाइम पर औफिस भी पहुंच गईं. ये सब हमें उन के शाम को घर लौटने पर पता चला. तब हमें लगा कि हमें भी अपनी स्वीट मौम के लिए कुछ करना चाहिए. तब मैं ने और पापा ने उन के लिए डिनर तैयार कर के उन्हें सरप्राइज दिया. ऐसा उन्होंने पहली बार नहीं, बल्कि कई बार किया है. मैं उन्हें ऐसा करता देख कर इंस्पायर होता हूं. और उन की तरह बनना चाहता हूं.

खुद को रखती हैं हरदम टिपटौप

मां यह बात भली प्रकार समझती है कि उस की बेटी उसे अपनी स्ट्रैंथ के साथसाथ उसे अपना रोल मौडल भी मानती है. ऐसे में वह अपने अपीयरैंस से समझौता नहीं करती. अपनी मां के पर्सनल केयर रूटीन के बारे में कृति कहती हैं कि मौम हर समय किसी की भी एक आवाज पर हाजिर हो जाती हैं. पूरा दिन घर व औफिस के कामों में लगी रहती हैं. फिर भी खुद को टिपटौप रखती हैं. लेटैस्ट आउटफिट्स को कैरी करना नहीं भूलतीं. भले ही बाहर जाने का टाइम न भी मिले, फिर भी अपनी स्किन की केयर के लिए होममेड चीजें चेहरे पर प्रयोग करती रहती हैं ताकि स्किन हर उम्र में चमकतीदमकती रहे.

वे हमें भी त्वचा को जवां बनाए रखने के लिए ज्यादा से ज्यादा पानी पीने की सलाह देती हैं. सिर्फ सलाह ही नहीं, बल्कि उन्हें जबरदस्ती करवाती भी हैं ताकि हम धीरेधीरे उसे अपने रूटीन में शामिल कर सकें. मैं जब भी अपनी मौम के साथ जाती हूं तो मुझे गर्व महसूस होता है कि ये मेरी मौम हैं. उन की पर्सनैलिटी की हर कोई तारीफ करते नहीं थकता. परिवार की हर बात का खयाल मां को फैमिली की स्ट्रैंथ यों ही नहीं कहते, उस के पास परिवार के एकएक सदस्य की पसंदनापसंद का लेखाजोखा रहता है. कब और किसे क्या चाहिए, वह बिना बताए ही समझ जाती है.

आदर्श अपनी परीक्षा के दिन याद करते हुए बताता है कि पिछले हफ्ते मेरी परीक्षा थी. मैं ने देर रात तक पढ़ाई की. मम्मी को मेरी आदत के बारे में पता था कि मैं जल्दीजल्दी में अपना एडमिट कार्ड ले जाना भूल जाऊंगा, इसलिए उन्होंने पहले ही मेरे बैग में मेरा एडमिट कार्ड रख दिया था. जब परीक्षा केंद्र में मुझे याद आया तो मेरे होश उड़ गए. लेकिन ‘माई मौम इज ग्रेट’ यह सोच जब मैं ने अपना बैग चैक किया तो वह उस में था. यही नहीं जब भी पापा को जरूरी डौक्यूमैंट्स की जरूरत होती है, तो मम्मी ही उन्हें ढूंढ़ कर देती हैं. यानी हम उन के बिना अधूरे हैं.

बच्चों को बनाए वैल बिहैव्ड

मां को बच्चों के साथ समय बिताने का भले ही कम समय मिल पाता है, फिर भी वे अपने बच्चों को पूरी तरह वैल मैनर्ड बनाने की कोशिश करती हैं. किस तरह बड़ों के सामने पेश आते हैं, घर आए मेहमान को कैसे ऐंटरटेन करते हैं, अगर कोई आप के साथ बदतमीजी करता है तो कैसे प्यार से उसे अपनी गलती महसूस करवानी है, पेरैंट्स अगर कुछ कहें तो उलट कर जवाब नहीं देना है, हमेशा सब की मदद के लिए तैयार रहना है वगैरावगैरा सिखाती रहती हैं. मां से बेहतर भला यह बात कौन समझेगा कि बच्चे के लिए उस की पहली पाठशाला उस के मातापिता ही होते हैं. उन के बोलचाल के तरीके और व्यवहार पर पेरैंट्स की ही छाप होगी. मां यह सुनिश्चित करती है कि घर का कोई भी सदस्य बच्चों के सामने अनापशनाप बात या व्यवहार करे.

समझाए पढ़ाई का महत्त्व

मांएं ट्यूशन तक ही बच्चों की पढ़ाई को सीमित नहीं रखतीं, बल्कि खुद भी उन की पढ़ाई पर समय देती हैं ताकि वे उन की वीकनैस व स्ट्रैंथ को पहचान सकें. जहां भी उन्हें उन में कमजोरी नजर आती है उन्हें टीचर की तरह समझाने की कोशिश करती हैं ताकि उन का बच्चा अव्वल आ सके.

बच्चे के उज्जवल भविष्य की नींव रखने में मां की भूमिका को नकारा नहीं सकता. उस के प्रतिदिन के प्रयास का फल बच्चे के काबिल बन जाने पर ही मिलता है.

फैमिली संग क्वालिटी टाइम भी

वे घर में सभी के साथ क्वालिटी टाइम व्यतीत करने में विश्वास रखती हैं ताकि अगर थोड़ा सा समय भी साथ बिताने को मिले तो वह समय उन के लिए पूरे दिन का बैस्ट समय हो और परिवार का कोई भी सदस्य खुद को इग्नोर महसूस न करे. मां की भूमिका परिवार में धागे की तरह होती है जिस से परिवार का हर एक सदस्य मोतियों की तरह पिरोया हुआ रहता है. ऐसे में वह सुनिश्चित करती है कि दिन में भले कुछ समय के लिए ही, मगर परिवार के सभी सदस्य एकसाथ बैठ कर कुछ पल जरूर बताएं.

फंक्शंस भी मिस नहीं करतीं आजकल की व्यस्त जीवनशैली अपनों, नातेरिश्तेदारों से मिलनेजुलने के मौके बहुत कम देती है. मां की जिम्मेदारी यहां और भी बढ़ जाती है क्योंकि जब वह खुद व्यस्त होने का बहाना बना कर गैटटुगैदर मिस करेगी तो बच्चे भी अपनों को जाननेसमझने से वंचित रह जाएंगे.

मां यह सुनिश्चित करती है कि पारिवारिक समारोहों में सपरिवार शामिल हो कर फैमिली बौंडिंग को और मजबूत बनाया जाए. इस बारे में श्रेया कहती है कि मैं थकी हुई हूं या फिर मेरे पास ढेरों काम हैं, कह कर मेरी मौम ने कभी फैमिली फंक्शंस मिस करने का बहाना नहीं बनाया, बल्कि हर फंक्शन अटैंड करती हैं. यही नहीं, घर आए मेहमानों की भी खुशीखुशी आवभगत करती हैं. वे हमें भी यही सिखाती हैं कि रिश्तों, परिवार का महत्त्व समझो, क्योंकि एकजुट परिवार में जो ताकत होती है वह अलगथलग रहने में नहीं.

सिखाती है टाइम मैनेजमैंट समय का सही प्रबंधन

किस तरह करना है, यह तो कोई मां से सीखे. अपना अनुभव शेयर करते हुए राज का कहना है कि मैं अपने पेरैंट्स का सिंगल चाइल्ड हूं, जिस कारण मुझे अपने पेरैंट्स से ऐक्स्ट्रा केयर मिलती है. मेरे मौमडैड दोनों वर्किंग हैं. इस के बावजूद मेरी मौम ने घर में पूरा अनुशासन बना कर रखा है. मैं जब भी कोई गलती करता हूं तो वे मुझे आंखों से इशारा कर अपनी नाराजगी बता देती हैं, जिस से मैं उस काम को दोबारा करने की हिम्मत नहीं जुटा पाता. मेरी मौम चीजों को बहुत अच्छी तरह मैनेज करना जानती हैं. उन्हीं से मैं ने टाइम मैनेजमैंट सीखा है. मैं तो यही कहूंगा कि अब तक मैं ने जो अचीव किया है सिर्फ अपनी मां के कारण.

बोल्ड बनाती है मां

जिस तरह मां हर परिस्थिति का सामना डट कर करती है उसी तरह बच्चों को भी हर हालात से लड़ना सिखाती है. अनुभव बताते हैं कि जब मेरी मां की ऐंजौय करने की उम्र थी तब हमारे पापा का देहांत हो गया. ऐसी स्थिति में मां ने खुद को संभालते हुए हमें कभी पापा की कमी महसूस नहीं होने दी. उन्होंने जौब कर के हमारी हर जरूरत को पूरा किया.

वे हमें भी बोल्ड बनाने की कोशिश करती रहती हैं. वे अंदर से भले ही टूट गई थीं, लेकिन हमारे सामने कभी आंखों से आंसू नहीं आने दिए. उन का संघर्ष और मेहनत देख मेरे मुंह से उन के लिए तारीफ के शब्द निकलने रुकते नहीं हैं. मैं अपनी मौम से बस यही कहूंगा कि आप को दुनिया की हर खुशी देने की कोशिश करूंगा.

सास के कारण मैं परेशान हो गया हूं, मैं क्या करुं?

सवाल-

मेरा 2 वर्ष पूर्व ही विवाह हुआ है. मेरी 45 वर्षीय सास बेहद खूबसूरत है. वह विधवा है और अकेली रहती है. एक दिन मैं किसी काम से ससुराल गया तो वह टीवी पर ब्लू फिल्म देख रही थी. मुझे देख कर शरमा गई, पर फिल्म बंद नहीं की. कनखियों से मुझे देखती रही. धीरेधीरे हम दोनों ही उत्तेजित होने लगे और फिर आलिंगनचुंबन करतेकरते हमबिस्तर हो गए. उस दिन से यह सिलसिला लगातार चल रहा है. मैं डरता भी हूं पर खुद पर नियंत्रण नहीं कर पाता. कहीं मैं संकट में तो नहीं पड़ जाऊंगा?

जवाब-

आप की कुछ समय पहले ही शादी हुई है. घर में जवान पत्नी है बावजूद इस के आप उस की अधेड़ उम्र मां (जो आप के लिए भी मां समान है) से अवैध संबंध बना रहे हैं. सब से हैरतअंगेज तो आप की सास का व्यवहार है, जो अपनी ही बेटी के घर में सेंध लगा रही है. जरा सोचिए, यदि आप की पत्नी को कभी आप के रिश्ते की भनक लग गई तो उस पर क्या गुजरेगी. अवैध संबंध ज्यादा दिनों तक छिपे नहीं रहते. देरसवेर जगजाहिर हो ही जाते हैं. तब आप का दांपत्य जीवन तो तहसनहस होगा ही समाज में बदनामी भी होगी. अत: समय रहते संभल जाएं.

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धोखा देना इंसान की फितरत है फिर चाहे वह धोखा छोटा हो या फिर बड़ा. अकसर इंसान प्यार में धोखा खाता है और प्यार में ही धोखा देता है. लेकिन आजकल शादी के बाद धोखा देने का एक ट्रेंड सा बन गया है. शादी के बाद लोग धोखा कई कारणों से देते हैं. कई बार ये धोखा जानबूझकर दिया जाता है तो कई बाद बदले लेने के लिए. इतना ही नहीं कई बार शादी के बाद धोखा देने का कारण होता है असंतुष्टि. कई बार तलाक का मुख्‍य कारण धोखा ही होता है. लेकिन ये जानना भी जरूरी है कि शादी के बाद धोखा देना कहां तक सही है, शादी के बाद धोखे की स्थिति को कैसे संभालें. क्या करें जब आपका पार्टनर आपको धोखा दे रहा है.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- शादी के बाद धोखा देने के क्या होते हैं कारण

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

जब दोस्त इंप्रैशन जमाएं

प्रियंका और वाणी अपनी सहेली मुग्धा से काफी दिनों बाद मिली थीं. थोड़ी देर की औपचारिक बातचीत के बाद मुग्धा हमेशा की तरह अपनी चीजों की तारीफ करने लगी.

वह अपने बाल दिखाती हुई बोली, ‘‘यह देखो प्रियंका, मेरा नया हेयरस्टाइल. पिछले संडे ही पार्लर गई थी. साउथ दिल्ली का जो बैस्ट पार्लर है न, वहीं जाती हूं. वहां की स्टाफ तो मेरे बालों की तारीफ करती नहीं थकती. कहती है, ‘हीरोइनों से भी ज्यादा चमकदार और आकर्षक तेरे बाल हैं.’ मैं ने पूछा कि मु?ा पर कौन सा स्टाइल अच्छा लगेगा तो कहने लगी कि तुम्हारे ऊपर तो हर स्टाइल जमेगा. इन बालों को कैसे भी रख लो बेहतरीन ही लगेंगे. बाद में काफी सोचसम?ा कर मैं ने यह स्टाइल करवाया, बिलकुल लेटैस्ट और गौर्जियस.’’

सो, प्रियंका ने उस की तारीफ करते हुए कहा, ‘‘वाकई तुम्हारे बाल बेहद खूबसूरत लग रहे हैं.’’

मुग्धा तब बोली, ‘‘और यह ड्रैस देखी तुम ने? बिलकुल लेटैस्ट स्टाइल की है. जानती हो, कनाडा से मेरे अंकल ले कर आए हैं. वे कह रहे थे कि हमारी बच्ची तो एकदम राजकुमारी लग रही है. जानती है ये अंकल जो हैं न मेरे, हमेशा यही कहते हैं कि तू मिस इंडिया कौन्टैस्ट में जाएगी तो जरूर जीत कर आएगी. एक्चुअली, मैं सुंदर हूं और इंटैलिजैंट भी. मगर क्या करूं समय ही नहीं मिलता किसी कंपीटिशन में पार्टिसिपेट करने का. पढ़ाई में भी तो अव्वल रहना है न.’’

प्रियंका ने उस की हां में हां मिलाते हुए कहा, ‘‘सच यार, तू जितनी खूबसूरत है उतनी ही स्मार्ट भी. तेरे जैसी लड़कियां कहां मिलती हैं. मु?ो प्राउड फील होता है यह सोच कर कि तू मेरी दोस्त है. आई एम ग्रेटफुल टू बी योर फ्रैंड. थैंक यू डियर, ओके बाय.’’ यह  कह कर प्रियंका वाणी के साथ आगे बढ़ गई.

वाणी आंखें तरेरती हुई बोली, ‘‘क्या यार प्रियंका, क्या जरूरत थी उस की तारीफ करने की? वह हर समय अपना इंप्रैशन जमाने की कोशिश में ही लगी रहती है. तू उस की इस आदत को और हवा देती है.’’

‘‘यार, मैं खुद उस की आदत से परेशान हूं. मगर मैं जानती हूं कि जब तक हम उसे एकनौलेज नहीं करेंगे वह इसी तरह अपना इंप्रैशन जमाने की कोशिश करती रहेगी. मैं तो यह जानती हूं कि जो लोग ज्यादा दिखावा करते हैं और अपने स्टेटस या पैसों का रोब ?ाड़ते हैं, असल में वे अपनी इनसिक्योरिटी छिपा रहे होते हैं. उन के अंदर कुछ खालीपन होता है जिसे छिपाने के लिए वे ऐसा करते हैं. हमें ऐसे लोगों से अलग तरह से पेश आना चाहिए. कभीकभी उन की तारीफ कर देनी चाहिए ताकि वे इस भावना से उबर सकें.’’

वाणी प्रियंका का चेहरा देखती रह गई. उसे अब बात सम?ा में आने लगी थी. प्रियंका के इस साइकोलौजिकल अप्रोच से वह भी इत्तफाक रखने लगी थी.

दरअसल कुछ लोगों की आदत होती है कि वे दूसरों के सामने अपनी ?ाठी तारीफ के पुल बांधने लगते हैं. सच हो या नहीं, उन्हें बस अपना इंप्रैशन जमाना होता है. कोई रुपयों का रोब ?ाड़ता है तो कोई अपनी जौब का. कोई अपने हुनर का तो कोई तेज दिमाग का. कुछ लोग नैगेटिव इंप्रैशन जमाते हैं तो कुछ पौजिटिव. कुछ ऐसे भी होते हैं जिन की बातों से अहंकार ?ालकता है. इस तरह के लोगों के साथ समय बिताना या बातें करना काफी अजीब लगता है. जब हमें पता होता है कि उन की बातों में जरा सी भी सचाई नहीं और वे केवल इंप्रैशन जमाने के लिए अपनी तारीफ किए जा रहे हैं तो बहुत कोफ्त होती है.

हमारी जिंदगी में ऐसे रिश्तेदारों, पड़ोसियों और दोस्तों की कमी नहीं होती. दोस्तों की यह आदत हमें खासतौर पर नागवार गुजरती है क्योंकि हम औलरेडी उन्हें बहुत करीब से जानते हैं. ऐसे में सवाल यह उठता है कि जब कोई दोस्त हमें प्यारा हो मगर उस की इंप्रैशन जमाने वाली बातों से इरिटेशन होने लगे तो क्या करें?

सब से पहला उपाय यह है कि ध्यान दें कि क्या आप का दोस्त पौजिटिव इंप्रैशन जमा रहा है या नैगेटिव बातें कह रहा है या फिर उस की बातों में अहंकार दिख रहा है. यदि वह अपनी खूबियों और अपनी चीजों के बारे में बढ़ाचढ़ा कर कह रहा है तो उस पर ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं. उस की बातें एक कान से सुनें और दूसरे से निकाल दें.

इस के विपरीत यदि वह अपने नैगेटिव पहलू को आप के आगे उभारने की कोशिश कर रहा है ताकि आप उस से डर कर रहें तो ऐसे दोस्तों से दूरी बढ़ा लें. तीसरा यदि वह अहंकारपूर्ण शब्दों का प्रयोग कर रहा है और उस की बातों से उस का घमंड ?ालक रहा है तो भी आप को धैर्य रखने की जरूरत है.

समय के साथ ऐसे दोस्तों से दूरी बढ़ा लें जिन की बातों में सचाई कम, अहंकार ज्यादा हो. आप अपने लिए हम्बल, डाउन टु अर्थ और जैनुइन दोस्त चुनें जो आप के प्रति बिलकुल सच्चे हों. आप के दिमाग में यह बात क्लीयर होनी चाहिए कि आप को कैसा दोस्त चाहिए. अपनी पसंद के इंसान के साथ करीबी बढ़ाएं तो आप को एक तरह से संतुष्टि मिलेगी.

इनसिक्योरिटी का डर

वैसे लोग जो एरोगैंस या दिखावे में ज्यादा विश्वास करते हैं और अपने स्टेटस, पैसों या जौब का रोब ?ाड़ते हैं, दरअसल वे अपनी इनसिक्योरिटी छिपा रहे होते हैं. उन के अंदर कुछ ऐसा खालीपन होता है जिसे छिपाने के लिए वे रोब डालने की कोशिश करते हैं. हमें ऐसे लोगों पर दया करनी चाहिए. हमें यह सम?ाने का प्रयास करना चाहिए कि वे अपनी किसी कमी, डर, असुरक्षा या बुरी यादों से बचने के लिए ऐसा कर सकते हैं.

हमें नहीं पता होता कि वह बंदा बचपन से अब तक क्याक्या डील कर रहा है और किन परेशानियों से गुजरा है. वह शो औफ करने की कोशिश क्यों कर रहा है? ऐसा क्या है जो उसे ऐसे इंप्रैशन जमाना पड़ रहा है या दिखावा करना पड़ रहा है? इसलिए जो वह दिखा रहा है उस के लिए उसे ऐप्रिशिएट करें और एकनौलेज करें. फिर देखें, कैसे वह आप का सब से अच्छा और प्यारा दोस्त बन जाता है.

एकनौलेज करें

इस संदर्भ में मानवीय संबंध विशेषज्ञ आश्मीन मुंजाल कहती हैं, ‘‘आप जितना ही किसी बात से चिढ़ते हों, वह बात उतनी ही आप का पीछा करती है. मोर यू रेसिस्ट, मोर इट विल परसिस्ट. द मोमैंट यू एक्सैप्ट, इट विल डिसऐपियर्ड.’’ यही बात इस केस में भी लागू होती है. आप जितना ही चाहेंगे कि आप का दोस्त आप के आगे फालतू की बातें कर के अपना इंप्रैशन जमाने की कोशिश न करे तो यकीन मानिए ऐसा ही होगा. आप उस से पीछा नहीं छुड़ा पाएंगे.

ऐसे में आप उसे अवौयड कर सकते हैं तो कर दें. दरअसल अपनी जिंदगी में कुछ लोगों को तो आप अवौयड कर ही सकते हैं, जैसे पड़ोसी, कलीग्स या सहपाठी. मगर कुछ, रिश्तेदार या करीबी दोस्त को आप अवौयड नहीं कर सकते. इसलिए इन के साथ आप को अलग तरह से पेश आना होगा.

आप कुछ समय तक बिना परेशान हुए उस की बातें सुनें. सिर्फ सुनें ही नहीं, बल्कि जो वह दिखाना या बताना चाह रहा है उस के लिए उसे ऐप्रिशिएट भी करें. उस की बातों को एकनौलेज करें. उसे एहसास दिलाएं कि आप उस से प्रभावित हैं.

खुले दिल से उस की तारीफ करें

अगर आप का दोस्त अपनी सैलरी और एक्स्ट्रा प्रिविलेजेज के बारे में बढ़ाचढ़ा कर बता रहा है तो आप उस की तारीफ करते हुए कहें, ‘‘वाओ, कितना बढि़या है. तुम कितने हार्ड वर्किंग हो. तुम ने बहुत मेहनत कर इतनी तरक्की हासिल की है. सच, कमाल ही कर दिया. हम बहुत थैंकफुल हैं कि तुम्हारे जैसा दोस्त मु?ो मिला.’’

उस से यह सब कहने के बाद उस का रिऐक्शन देखिए. वह आप के प्रति औब्लाइज और थैंकफुल नजर आएगा. उस के चेहरे की सारी हेकड़ी गायब हो जाएगी और वह आप को गले लगाने की कोशिश करेगा. अगर आप ऐसा दोचार बार करेंगे तो यकीन मानिए, वह आप का बहुत रियल और करीबी दोस्त बन जाएगा.

दिल से तारीफ करें

हर इंसान को तारीफ और रिकग्निशन चाहिए. आप के दोस्त को जो प्रशंसा चाहिए, वह उसे दे दीजिए. रैसिस्ट करने के बजाय उसे एक्सैप्ट करें. दिल से एैप्रिशिएट करें. इस से वह शांत हो जाएगा. आप के आगे उस की शोऔफ करने की आदत भी कम हो जाएगी. वह आप के साथ रियल हो जाएगा. उस का एरोगैंस गायब हो जाएगा. आप का उस से एक अलग सा रिश्ता बन जाएगा. वह दूसरों के साथ जैसा था वैसा ही रहेगा, मगर आप के लिए बदल जाएगा.

याद रखें, हर इंसान में कुछ न कुछ अच्छी बात या विशेषता जरूर होती है. आप के दोस्त में सच में जो अच्छाई है उस पर ध्यान दें. अच्छाइयां ढूंढ़नी पड़ती हैं जबकि बुराई तो तुरंत नजर आ जाती है. एकनौलेज करना एक क्रिएटेड एक्ट होता है. आप वैसी चीज को फोकस में ला सकते हैं जिस पर कभी ध्यान जाता ही नहीं है. यानी आप क्रिएट कर सकते हैं. इस के लिए आप को बहुत सी चीजें मिल जाएंगी.

किसी की आंखें सुंदर हैं, किसी की बिंदी, किसी की ड्रैस और किसी का स्टाइल अच्छा लग सकता है. दुनिया में हर इंसान इस बात के लिए तड़प रहा है कि कोई उस की तारीफ करे. इसी तरह आप का दोस्त भी अटैंशन चाहता है तो वह उसे दे दो. ऐक्चुअली, बैस्ट गिफ्ट जो आप किसी को दे सकते हैं वह है रियल और जैनुइन एैप्रिसिएशन. उसे यह एहसास दिलाना कि उस ने यह काम अच्छा किया. इस से उस की कुछ पाने, बनने या प्रूव करने की तड़प को शांति मिलेगी. सच्चे दिल से यदि आप ऐसा कुछ दिनों तक करेंगे तो उस का एरोगैंस गायब हो जाएगा और एक अलग सा मैजिक होगा.

जानें क्यों होते हैं इमोशनल अफेयर्स

कहते हैं इंसान के विचार समुद्र की लहरों की तरह हरदम मचलने को तैयार रहते हैं, वहीं उस की भावनाओं की कोई थाह नहीं होती और यही भावनाएं हमें अपनों से जोड़े रखती हैं. भावनात्मक रिश्ता सीधा दिल से जा कर जुड़ता है. जरूरी नहीं कि भावनात्मक रिश्ता सिर्फ अपनों से ही जोड़ा जाए बल्कि यह कभी भी किसी के भी साथ जुड़ सकता है.

कई भावनात्मक रिश्ते ऐसे होते हैं, जिन का कोई नाम नहीं होता. इन में एकदूसरे के प्रति प्रेम, अपनेपन का भाव होता तो है लेकिन जरूरी नहीं कि इन के बीच शारीरिक आकर्षण भी हो. इसे हम दिल का रिश्ता कहते हैं. इस में उम्र का कोई बंधन नहीं होता है.

पाकिस्तानी राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के 24 वर्षीय बेटे बिलावल भुट्टो और पाकिस्तान की 35 वर्षीय विदेश मंत्री हिना रब्बानी खार के बीच कुछ ऐसा ही रिश्ता देखने को मिला, जिस में उम्र का कोई बंधन नहीं दिखा.

क्यों होता है इमोशनल अफेयर

आज के तनाव भरे माहौल में लोग सुकून के पल तलाशते हैं. खासकर विवाहित पुरुष चाहते हैं कि घर पहुंच कर पत्नी उन की बातों को सुने व समझे, लेकिन घर के कामों व औफिस के बीच उलझी पत्नी, जब ऐसा नहीं कर पाती तो पति वह सुख बाहर तलाशने लगता है. अधिकतर देखा गया है कि कुछ विवाहित लोग अपने साथी को भावनात्मक लगाव प्रदान नहीं कर पाते या अपनी व्यस्तता के कारण अपने साथी को जरूरी समय नहीं दे पाते. ऐसे में उन के साथी का ध्यान अपने दोस्तों या सहकर्मियों की तरफ जाता है और वह अपना अधिक समय उन के साथ बिताने लगता है.

अगर इन दोस्तों या सहकर्मियों के बीच उसे ऐसा व्यक्ति मिल जाए, जो उस के रोते मन को भरने में सफल रहे तो उस व्यक्ति से रिश्ता बनने में ज्यादा समय नहीं लगता, क्योंकि आजकल अधिकतर लोग अकेलेपनके दौर से गुजर रहे हैं.

इस बारे में बालाजी ऐक्शन मैडिकल इंस्टिट्यूट की मनोवैज्ञानिक शिल्पी का कहना है, ‘‘आजकल समय की कमी के कारण अपने साथी से इमोशनल सपोर्ट न मिल पाना एक आम बात है. उसे जहां इमोशनल सपोर्ट मिलता है, वह उस तरफ आकर्षित होता चला जाता है. आजकल शारीरिक जरूरतें और सुंदरता प्राथमिकता नहीं हैं, क्योंकि हर रोज इंसान की जरूरतें बदल रही हैं. आज सब को अपने स्तर का साथी चाहिए, जिस के साथ वह अपने विचारों का आदानप्रदान कर सके.

‘‘यह मानव स्वभाव है कि खाना, पीना, सैक्स, सेफ्टी मिले तो हम सेफ महसूस करते हैं. समझसमझ की बात है आजकल लोगों का नजरिया बदल रहा है. युवावस्था में बच्चों को ऐक्सपोजर मिल रहा है और फिर कहते हैं न ‘दिल तो बच्चा है जी’ वह कभी भी किसी पर भी आ सकता है.’’

शिल्पी कहती हैं, ‘‘अगर आप के स्तर का साथी आप को नहीं मिला है, तो इस का मतलब यह नहीं कि आप उसे छोड़ दें या दूसरी तरफ मुड़ जाएं. आप को जरूरत है समझदारी दिखाने की. आप समझदारी दिखा कर रिश्ते को संभाल भी सकते हैं. जहां तक हो सके रिश्ते को संभालने की कोशिश करें.

‘‘किसी से इमोशनल रिश्ता जोड़ने से पहले सोचिए, समझिए. क्या वास्तव में इमोशनल रिश्ता है या सिर्फ टाइम स्पैंड करने के लिए एक साथी की जरूरत है. यह भी सोचिए कि यह इमोशनल रिश्ता कितने समय तक चलेगा. अगर आप किसी के साथ खुश रहते हैं, तो आप में हैप्पी हारमोंस आते हैं जो आप के जीवन में त्वरित बदलाव लाते हैं.‘‘

भावनात्मक लगाव निंदनीय नहीं है

कुछ लोग इमोशनल अफेयर्स में कोई बुराई नहीं मानते, क्योंकि उन्हें ऐसा महसूस होता है कि यह सिर्फ एक भावनात्मक जुड़ाव है. इसलिए इस का वैवाहिक जीवन पर कोई असर नहीं पड़ेगा. भावनाएं हमारे व्यक्तित्व का अभिन्न अंग हैं. दिमाग के 2 मुख्य हिस्से होते हैं. एक तार्किक होता है, जो चीजों को तर्क के हिसाब से देखता है और दूसरा भावनात्मक, जिस का तर्क से दूरदूर तक कोई रिश्ता नहीं है. जब भी किसी से कोई नया रिश्ता जुड़ता है, तो वह भावनात्मक रूप से ही जुड़ता है.

किसी भी व्यक्ति के साथ भावनात्मक लगाव पहले से ही निर्धारित नहीं होता, न ही इस का कोई अंदाजा लगाया जा सकता है कि कोई कब, कहां, किस के साथ भावनात्मक रूप से जुड़ जाए और यह  लगाव इतना गहरा हो जाए कि व्यक्ति स्वयं को सुरक्षित महसूस करने लगे.

भावनात्मक लगाव ही व्यक्ति का मनोबल बढ़ाता है. उन्हें आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं, जिस से व्यक्ति के जीवन में उत्साह बना रहता है और यही उत्साह सुकून दिलाता है. ऐसे रिश्ते को गलत नजरिए से न देखते हुए एक भावनात्मक रिश्ते की शुरुआत कह सकते हैं, जिस में एक ऐसा दोस्त जिस के साथ वह अपने सुखदुख बांट सके, जो उस की परेशानियों में उस का भरपूर साथ दे. कदमकदम पर अच्छेबुरे का ज्ञान कराए.

अपने जीवन में उपेक्षा झेल रहे व्यक्ति का बाहर किसी दोस्त के साथ एक स्वस्थ संबंध बनाना गलत नहीं है. अगर उस नए संबंध के कारण वह खुशी के चार पल बिता ले, तो इस में कुछ बुराई नहीं है.

भावनात्मक जुड़ाव में असुरक्षा

किसी भी व्यक्ति का अकेला होना भावनात्मक असुरक्षा का सब से बड़ा लक्षण होता है. जब कोई अपनों के बीच रहते हुए भी अकेलापन महसूस करे, तो उस में असुरक्षा की भावना पनपने लगती है. इस के कई कारण हैं

– कई बार व्यक्ति बिना वजह ही छोटीछोटी बातों पर गुस्सा हो जाता है या चिड़चिड़ा हो जाता है, जिस से भावनात्मक रिश्ते प्रभावित होते हैं.

– भावनात्मक असुरक्षा में व्यक्ति केयरलैस हो जाता है और अपने साथी की कोई परवा नहीं करता.

– उपेक्षा झेल रहा साथी तनाव के दौर से गुजरता है. उस का किसी काम में मन नहीं लगता.

– कई बार ऐसा होता है कि उन के संबंधों में दरार आ जाती है, जब एक साथी सही तरीके से प्रतिक्रिया नहीं करता तो दूसरा साथी भावनात्मक रूप से परेशान हो जाता है.

– कुछ लोग जब भावनात्मक रूप से किसी अन्य व्यक्ति से जुड़ जाते हैं, तब उन्हें कुछ खोने या अपने साथी से दूर होने का डर सताता है.

गहरे होते हैं भावनात्मक धोखे

भावनात्मक धोखे सैक्सुअल धोखे से कहीं ज्यादा खतरनाक हो सकते हैं, क्योंकि इस में व्यक्ति पूरी तरह से दिल से जुड़ा होता है. जब यह टूटता है, तो व्यक्ति अवसाद की स्थिति में पहुंच जाता है.

भावनात्मक शोषण से बचने के लिए जरूरी है मानसिक, भावनात्मक और व्यावहारिक तैयारी से स्वयं को मजबूत बनाया जाए.

जानें सिंगल रहने के 10 फायदे

सक्सैसफुल कैरियर वूमन आजकल सिंगल रहना पसंद कर रही हैं. उन के फ्यूचर प्लान में शादी शब्द के लिए जैसे कोई स्थान ही नहीं रह गया है. लड़कियां अपनी सक्सैस, पावर, पैसा और आजादी को खुल कर ऐंजौय कर रही हैं. बेशक युवतियों में लेट मैरिज या नो मैरिज वाले सिंड्रोम से समाज या परिवार पर पड़ने वाले नकारात्मक असर को ले कर मातापिता, समाजशास्त्री, मनोवैज्ञानिक व डाक्टर चिंतित हैं, लेकिन युवतियां खुश हैं. वाकई बड़े फायदे हैं सिंगल रहने के. यकीन न हो तो आगे पढ़ लीजिए:

1. कैरियर में ऊंचा मुकाम

अपनी रिलेशनशिप को बरकरार रखने के लिए काफी प्रयास, ऊर्जा व समय खर्च करने की जरूरत होती है. जाहिर सी बात है कि अगर आप सिंगल हैं तो आप को ये सब करने की जरूरत नहीं है और आप अपनी सारी ऐनर्जी, समय, अटैंशन, काबिलीयत को अपने प्रोफैशन, कैरियर पर फोकस करती हैं, जिस से आप की प्रोडक्टिविटी बढ़ती है. साथ ही, आप लेट नाइट मीटिंग, बिजनैस डिनर और औफिशियल टूर के लिए भी हमेशा तत्पर रहती हैं. अपनी कंपनी, औफिस के लिए भी पूरी तरह समर्पित रहती हैं. तो जाहिर सी बात है कि आप के लिए प्रमोशन की राह आसान हो जाती है.

2. जो चाहें वह करें

चूंकि आप को हर पल यह नहीं सोचना पड़ता कि आप का पार्टनर क्या पसंद करता है और क्या नहीं, आप बड़ी आसानी से वह सब कर सकती हैं, जो आप करना चाहती हैं. जिंदगी के हर पल को जी भर कर जी सकती हैं और वह भी बिना किसी अपराधबोध के. जैसे आप कालेज गर्ल की तरह अपने गर्ल गैंग को घर बुला कर पाजामा पार्टी कर सकती हैं, अपनी मरजी से ड्रैसअप हो सकती हैं, अपने पेरैंट्स, रिलेटिव्स को अपने घर अपने साथ रख सकती हैं. इस मेरी मरजी वाले टौनिक से आप ज्यादा खुश, रिलैक्स रहेंगी और यह सब जानते ही हैं कि एक खुश, संतुष्ट व्यक्ति ही औरों की दुनिया में खुशियां बिखेर सकता है.

3. फिट, यंग व खूबसूरत

आप अपने आप पर ज्यादा ध्यान देती हैं. आप का खयाल रखने वाला दूसरा कोई नहीं होने से अपनी डाइट, हैल्थ, ब्यूटी ऐंड बौडी केयर सब आप की जिम्मेदारी हो जाती है और आज कैरियर गर्ल के लिए फिट, ग्लैमरस व प्रेजैंटेबल बने रहना जरूरी भी है व फायदेमंद भी. इसीलिए सिंगल गर्ल अन्य के मुकाबले लंबे समय तक न सिर्फ यंग नजर आती है, बल्कि बौडी भी शेप में रखती है और प्रभावशाली व्यक्तित्व की मालकिन होती है.

4. पूरी तरह से इंडीपैंडैंट

किसी रिलेशनशिप में न होने का मतलब है कि आप को अपनी जिंदगी के हर क्षेत्र में आत्मनिर्भर होने की जरूरत है. आप को पैंपर करने के लिए, डेली रूटीन को आसान बनाने के लिए किसी मर्द का कुशन न होने से आप की सीखने की क्षमता बढ़ती जाती है. हालात का मुकाबला आप अन्य महिलाओं से बेहतर करती हैं. यह आत्मनिर्भरता आप का आत्मविश्वास भी बढ़ाती है.

5. हर चुनौती स्वीकारती हैं

सिंगलहुड आप को मानसिक रूप से मजबूत बनाती है. दिनबदिन आप यह सीखती हैं कि स्ट्रैसफुल सिचुएशन में और अचानक आ पड़ी मुसीबत का सामना कैसे करना है. अलगअलग शख्सीयत, मिजाज वाले व्यक्तियों व कौंप्लैक्स पर्सनैलिटी वाले लोगों से आप को कैसे डील करना है, बिना उन के ईगो को ठेस पहुंचाए, यह आप बेहतर समझती हैं. और जबजब आप यह करने में कामयाब होती हैं तबतब आप अलौकिक खुशी और संतुष्टि पाती हैं.

6. ब्यूटी स्लीप भरपूर

आप के पास भरपूर मी टाइम होता है, जिस के लिए विवाहित महिलाएं तरसती हैं. आप अपने डेली रूटीन, स्लीपिंग रूटीन अपनी बौडी, वर्क और जरूरत के मुताबिक सैट कर सकती हैं, साथ ही पार्टनर का रुठनामनाना, बच्चों व ससुराल की चिंता भी आप के सिर पर नहीं होती है. इसी वजह से आप के लिए हर रोज प्रौपर, स्ट्रैसफ्री ब्यूटी स्लीप को प्राप्त करना आसान हो जाता है. रातभर की अच्छी नींद न सिर्फ आप की खूबसूरती, फिजिकलमैंटल हैल्थ के लिए बेहद आवश्यक होती है, बल्कि इस से आप का दिमाग भी सक्रिय होता है और आप की कार्यक्षमता, एकाग्रता, स्किल में इजाफा होता है.

7. खुद का लाइफस्टाइल

आप किसी और के प्रति जवाबदेह नहीं हैं, इस वजह से आप के पास काफी समय, ऊर्जा और रिर्सोसेज होते हैं कि आप हैल्दी रूटीन फौलो कर सकें. अपने लाइफस्टाइल, ईटिंग हैबिट्स, ऐक्सरसाइज शैड्यल में बदलाव ला सकती हैं और अपनी लाइफ को बोरिंग होने से बचा सकती हैं.

8. मनी रिलेटेड इश्यू कम

आज के वर्किंग कपल के बीच मेरा पैसा, तेरा पैसा यानी मनी को ले कर होने वाले वादविवाद काफी स्ट्रैस पैदा करते हैं. खासतौर पर पत्नियां अपने पैसे का क्या करती हैं या उन को क्या करना चाहिए, यह अकसर पति तय करते देखे जाते हैं. लेकिन सिंगल होने का मतलब है कि आप को अपनी मनी को कहां, किस तरह से खर्च करना है, किस पर करना है या कितनी सेव करनी है, इन सब बातों को ले कर किसी को जवाब नहीं देना है. आप का पैसा पूरी तरह आप का है. आप शौपिंग करें, स्पा जाएं या इन्वैस्ट करें, आप की मरजी. यही फाइनैंशियल इंडीपैडैंस और फाइनैंशियल सिक्युरिटी आप को मजबूत बनाती है, आप का कौन्फिडैंस बढ़ाती है और सच्चे अर्थों में आप को मर्द के बराबर ला खड़ा करती है.

9. अलग पहचान बना सकती हैं

कैरियर में सैट होने के बाद अपनी हौबी को पुनर्जीवित कर सकती हैं, जो वक्त या पैसे की कमी के चलते अधूरी रह गई थी. जौब से लौटने के बाद बचे वक्त में थिएटर, स्क्रिप्ट राइटिंग, क्ले पेंटिंग या संगीत के प्रति अपने पैशन को नई दिशा दे सकती हैं. अपनी खुद की एक अलग पहचान बना सकती हैं. किसी भी तरह का रचनात्मक कार्य, क्रिएटिविटी आप के दिलदिमाग को सुकून पहुंचाएगी.

10. जब चाहें हौलिडे पर जाएं

सिंगल होने का एक और बड़ा फायदा यह है कि आप अपनी मरजी, मूड और पसंद के मुताबिक हौलिडे प्लान कर सकती हैं. वह डैस्टिनेशन चुन सकती हैं जहां जाना आप की हमेशा ख्वाहिश रही है. पार्टनर की मरजी के हिसाब से कंप्रोमाइज करना, अपना मन मारना, जोकि अमूमन महिलाएं करती हैं, ये सब आप को नहीं करना पड़ेगा. चाहें तो बर्फीली पहाडि़यों की ऊंचीऊंची चोटियों को निहारें या फिर समंदर किनारे रेत पर नंगे पैर चलें, आप ताजा दम हो कर सकारात्मक ऊर्जा में सराबोर हो कर ही घर लौटेंगी.

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