वार पर वार- भाग 2: नमिता की हिम्मत देख क्यों चौंक गया भूषण राज

नमिता किस मुसीबत में फंस गई थी? क्या करे, क्या न करे? वह रातदिन सोचती रहती. जब से भूषण राज ने उस की पीठ को सहलाना शुरू किया था और उस के गालों को उंगलियों के बीच फंसा कर कभी धीरे से तो कभी जोर से चिकोटी काट लेता था, तब से वह और ज्यादा डरने लगी थी.

भूषण राज जब इस तरह की हरकतें करता तो नमिता अपने शरीर को मेज पर टिका देती कि कहीं उस के हाथ उस गोलाइयों को न लपक लें. वह हर मुमकिन कोशिश करती कि भूषण राज उस के साथ कोई गलत हरकत न करने पाए, पर शिकारी भेडि़ए के पंजे अकसर उस के कोमल बदन को खरोंच देते.

एक दिन तो हद हो गई. भूषण राज ने उस के दोनों गालों पर हाथ फिराते हुए आगे की तरफ से ठोढ़ी और गरदन को सहलाना शुरू कर दिया, फिर धीरेधीरे हाथों को आगे बढ़ाते हुए उस के गालों की तरफ झुक आया. जब उस की गरम सांसें नमिता के बाएं गाल से टकराईं तो वह चौंकी, झटके से बाईं तरफ मुड़ी तो भूषण राज का मुंह सीधे उस के होंठों से जा लगा.

उस ने भूखे भेडि़ए की तरह नमिता के दोनों होंठ अपने मुंह में भर लिए. इसी हड़बड़ी में उस के हाथ नमिता की छाती को मसलने लगे. पलभर के लिए वह हैरान सी रह गई. जब उस की समझ में आया तो उस ने झटका दे कर अपनेआप को छुड़ाया और धक्का दे कर उसे पीछे किया.

भूषण राज पीछे हटते हुए मेज से टकराया और गिरतेगिरते बचा.

नमिता कमरे से बाहर जा चुकी थी. अपनी सांसें काबू करने में उसे बहुत देर लगी. उस की आंखों के सामने अंधेरा सा छा गया था. उस का दिल और दिमाग दोनों सुन्न से हो गए थे. कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे?

उधर भूषण राज अपनी सांसों को काबू में करते हुए मन ही मन खुश हो रहा था कि एक मंजिल उस ने हासिल कर ली थी, अब आखिरी मंजिल हासिल करने में कितनी देर लग सकती थी.

नमिता के पास अब 2 ही रास्ते बचे थे. या तो वह नौकरी छोड़ देती या भूषण राज के साथ समझौता कर उस के साथ नाजायज रिश्ता बना लेती. पहला रास्ता आसान नहीं था और दूसरा रास्ता अपनाने से न केवल बदनामी होती, बल्कि उस की जिंदगी भी तबाह हो सकती थी.

भूषण राज उस का ही नहीं, पूरे औफिस का बौस था. नमिता को अब जब भी बौस उसे अपने कमरे में बुलाता, जानबूझ कर देरी से जाती. बारबार कहने के बावजूद भी नमिता कुरसी पर नहीं बैठती, बल्कि खड़ी ही रहती, ताकि जैसे ही बौस अपनी कुरसी से उठ कर खड़ा हो और उस की तरफ बढ़े, वह दरवाजे की तरफ सरक जाए.

भूषण राज चालाक भेडि़या था. उस ने अपना पैतरा बदला. अब वह नमिता को किसी सैक्शन से कोई फाइल ले कर आने के लिए कहता. वह फाइल को ले कर आती तो कहता, ‘‘देखो, इस में एक लैटर लगा होगा… पिछले महीने हम ने मुंबई औफिस से कुछ जानकारी मांगी थी. उस का जवाब अभी तक नहीं आया है. एक रिमाइंडर बना कर लाओ… बना लोगी?’’ वह थोड़ी तेज आवाज में कहता, जैसे धमकी दे रहा हो.

नमिता जानती थी कि भूषण राज जानबूझ कर उसे तंग करने के लिए यह काम सौंप रहा था, ताकि काम न कर पाने के चलते वह उसे डांटडपट सके.

‘‘मैं कर लूंगी सर,’’ कहते हुए वह बाहर निकल गई.

भूषण राज अपनी कुटिल मुसकान के साथ मन ही मन सोच रहा था, ‘कहां तक उड़ोगी मुझ से? पंख काट कर रख दूंगा.’

नमिता ने सब्र से काम लिया. वह संबंधित अनुभाग के अधीक्षक के पास गई और अपनी समस्या बताई. कार्यालय अधीक्षक समझदार था. उस ने नमिता का रिमाइंडर तैयार करा दिया. वह खुशी खुशी फाइल के साथ रिमाइंडर ले कर भूषण राज के चैंबर में घुसी. वह किसी फाइल पर झुका हुआ था, चश्मा नाक पर लटका कर उस ने आंखें उठाईं और त्योरियां चढ़ा कर पूछा, ‘‘तो रिमाइंडर बन गया?’’

‘‘जी सर, देख लीजिए,’’ नमिता आत्मविश्वास से बोली. उस की अंगरेजी और टाइपिंग दोनों अच्छी थीं. भूषण राज ने सरसरी तौर पर लैटर को देखा और घुड़क कर बोला, ‘‘तो ऐसे बनाया जाता है रिमाइंडर? तुम्हें कोई अक्ल भी है.

‘‘यह देखो, यह फिगर गलत है. यह कौलम तो बिलकुल सही नहीं बना है. इस का प्रेजेंटेशन ठीक नहीं है… और यह कौन से फौंट में टाइप किया है… जाओ, दोबारा से बना कर लाओ, वरना समझ लो, अभी प्रोबेशन में हो.

‘‘मन लगा कर काम करो, वरना जिंदगीभर इसी ग्रेड में पड़ी रहोगी. कभी प्रमोशन नहीं मिलेगा.’’

नमिता कुछ देर तो सहमी खड़ी रही. उस की समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि ड्राफ्ट में क्या गलती थी. वह तकरीबन रोंआसी हो गई. 2 साल तक भूषण राज ने भले ही उस से एक पैसे का काम नहीं लिया था, पर बातें बहुत मीठी की थीं. अब अचानक उस के बरताव में आए इस बदलाव से नमिता हैरान थी.

अब यह रोज का नियम बन गया था. भूषण राज नमिता को रोज कोई न कोई मुश्किल काम बता देता. वह सही ढंग से काम कर भी देती, तब भी उस के काम में नुक्स निकालता, जोरजोर से सब के सामने उसे डांटता, उस को जलील करता.

‘‘तो यह है तुम्हारी परेशानी की वजह,’’ प्रीति ने लंबी सांस ले कर कहा, ‘‘समस्या बड़ी है… तो क्या सोचा है तुम ने? क्या तुम समझती हो कि इस तरह की लड़ाई से तुम खुद को बचा पाओगी? नामुमकिन है… मैं ने इस दफ्तर में तकरीबन 10 साल गुजारे हैं. मैं उस की एकएक हरकत से वाकिफ हूं.

‘‘मैं जब यहां आई थी, तब शादीशुदा थी. वह केवल कुंआरी लड़कियों पर नजर डालता है. 10 सालों में मैं ने बहुतकुछ देखा है… कितनी लड़कियों को मैं ने यहीं पर हालात से समझौता करते हुए देखा है, कितनी तो जबरदस्ती उस की हवस का शिकार हुई हैं.’’

‘‘मेरे लिए यह अच्छी नौकरी और इज्जत दोनों ही जरूरी हैं. मैं दोनों में से किसी को खोना नहीं चाहती. नौकरी जाने से मेरे मांबाप, भाई और बहन की जिंदगी पर असर पड़ेगा. इज्जत खो दी, तो फिर मेरे जीने का क्या मकसद…’’ नमिता की आवाज में हताशा टपक रही थी.

प्रीति ने उस के हाथ को थामते हुए कहा, ‘‘इस तरह निराश होने से काम नहीं चलेगा. क्या तुम किसी लड़के को प्यार करती हो?’’

नमिता ने चौंकती नजरों से प्रीति को देखा. उस के इस अचानक किए गए सवाल का मतलब वह नहीं समझी, फिर सिर झुका कर बोली, ‘‘उस हद तक नहीं कि उस से शादी कर लूं. कालेज में इस तरह के प्यार हो जाते हैं, जिन का कोई गंभीर मतलब नहीं होता. बस, एकदूसरे के प्रति खिंचाव होता है. ऐसा ही पहले कुछ था… 2 लड़कों के साथ, पर अब नहीं, लेकिन आप ने क्यों पूछा?’’

‘‘यही कि शिद्दत से किसी को प्यार करने वाली लड़की के कदम जल्दी किसी और राह पर नहीं चलते. मैं ऐसा समझ रही थी, शायद तुम अपने प्यार की खातिर भूषण राज के मनमुताबिक नरमदिल नहीं हो पा रही हो, वरना रुपएपैसे के साथसाथ जवानी का मजा कौन लड़की नहीं उठाना चाहती.’’

नमिता के सीने पर जैसे किसी ने घूंसा मार दिया हो. वह कराहते हुए बोली, ‘‘तो क्या मैं भूषण राज के नीचे लेट जाती?

क्या किसी को प्यार न करने वाली लड़की इज्जतदार नहीं होती?’

प्रीति आगे बोली, ‘‘अगर तुम्हारी नौकरी बनी रहेगी तो सारी सुखसुविधाएं तुम्हारे कदमों में बिछी रहेंगी. तुम्हारी सारी समस्याओं का समाधान हो जाएगा. अच्छे घर में शादी हो जाएगी. और क्या चाहिए तुम्हें?’’

वार पर वार- भाग 1: नमिता की हिम्मत देख क्यों चौंक गया भूषण राज

नमिता एक हंसमुख और खुशमिजाज लड़की थी. उस के चेहरे की मासूमियत किसी का भी मन मोह लेती थी. उस के गुलाबी होंठ हमेशा मीठी मुसकराहट के दरिया में छोटी नाव की तरह हिचकोले खाते रहते थे. आंखों की पुतलियां सितारों की तरह नाचती रहती थीं. उस के चेहरे और बातों में ऐसा खिंचाव था, जो देखने वाले को बरबस अपनी तरफ खींच लेता था.

पर पिछले कुछ दिनों से नमिता के चेहरे की चमक धुंधली पड़ती जा रही थी. होंठों की मुसकराहट सिकुड़ कर मुरझाए फूल की तरह सिमट गई थी. आंखों की पुतलियों ने नाचना बंद कर दिया था. आंखों के नीचे काले घेरे पड़ने लगे थे.

नमिता समझ नहीं पा रही थी कि वह अपनी जिंदगी की कौन सी बेशकीमती चीज खोती जा रही थी. सबकुछ हाथ से फिसलता जा रहा था.

नमिता के दुख की वजह क्या थी, यह वह किसी को बता नहीं पा रही थी… लोग पहले कानाफूसी में उस के बारे में बात करते रहे, फिर खुल कर बोलने लगे.

सीधे उसी से पूछते, ‘क्या हुआ है नमिता तुम्हारे साथ जो तुम ग्रहण लगे चांद की तरह चमक खोती जा रही हो?’

नमिता पूछने वाले की तरफ देखती भी नहीं थी, सिर झुका कर एक फीकी मुसकराहट के साथ बस इतना कहती थी, ‘नहीं, कुछ नहीं…’ शब्द जैसे उस का साथ छोड़ देते थे.

इस तरह के हालात कब तक चल सकते थे? नमिता किसकिस से मुंह छिपाती? अनजान लोगों से नजरें चुरा सकती थी, पर अपने घरपरिवार, परिचितों और औफिस के साथियों की निगाहों से कब तक बच सकती थी? उन की बातों का कब तक जवाब नहीं देती?

आखिर टूट ही गई एक दिन… सब के सामने नहीं… औफिस की एक साथी थी प्रीति. उम्र में उस से कुछ साल बड़ी.

एक दिन एकांत में जब उन्होंने नमिता से प्यार भरी आवाज में भरोसा देते हुए पूछा तो नमिता रोने लगी. सब्र का बांध टूट चुका था.

फालतू का पानी बह जाने के बाद जब नमिता ठीक हुई तो उस ने धीरेधीरे अपनी परेशानी की वजह को बयान कर दिया, जिसे सुन कर प्रीति हैरान रह गई थी.

नमिता स्टेनोग्राफर थी और औफिस हैड भूषण राज के साथ जुड़ी थी. भूषण राज अधेड़ उम्र का सुखी परिवार वाला शख्स था. औफिस में उस की अपनी पर्सनल असिस्टैंट थी, पर डिक्टेशन और टाइपिंग का काम वह नमिता से ही कराता था. काम कम कराता था, सामने बिठा कर बातें ज्यादा करता था. वह उसे मुसकराती नजरों से देखा करता था.

पहले नमिता भी मुसकराती थी और उस की बातों का जवाब भी देती थी, पर धीरेधीरे नमिता की समझ में आ गया कि भूषण राज की नजरों का मतलब कुछ दूसरा था, इसलिए वह सावधान हो गई.

जब वह कोई बेहूदा बात कहता तो वह अंदर से डर कर सिमट जाती, पर बाहर से अपनेआप को संभाले रहती कि सूने कमरे में कोई अनहोनी न हो जाए.

नमिता यह तो नहीं जानती थी कि भूषण राज के तहत काम करते हुए वह कितनी महफूज है या वह जिंदगी का कौन सा सुख उसे देगा या उस के घरपरिवार के लिए क्या करेगा, पर वह इतना जरूर जानती थी कि केंद्र सरकार के औफिस की यह पक्की नौकरी उस के लिए बहुत जरूरी थी. उस का 3 साल का प्रोबेशन था. 2 साल पूरे हो चुके थे. एक साल बाद उसे कन्फर्मेशन लैटर मिल जाएगा, तब उस की पक्की नौकरी हो जाएगी.

नमिता मिडिल क्लास परिवार की लड़की थी. मांबाप के अलावा घर में एक छोटा भाई और बहन थी. पापा एक प्राइवेट फर्म में अकाउंटैंट थे. सीमित आमदनी के बावजूद उन्होेंने नमिता को ऊंची पढ़ाई कराई थी.

घर में बड़ी होने के नाते नमिता अपने मांबाप की आंखों का तारा तो थी ही, साथ ही साथ उम्मीद का चिराग भी कि पढ़ाई पूरी करते ही कोई नौकरी मिल जाएगी तो घर की हालत में थोड़ा सुधार आ जाएगा. छोटे भाईबहन की पढ़ाई अच्छे ढंग से चलती रहेगी.

नमिता ने अपने मांबाप को निराश नहीं किया. बीए में दाखिला लेने के साथसाथ वह एक प्राइवेट इंस्टीट्यूट से शौर्टहैंड का कोर्स भी पूरा करती रही.

जैसे ही वह कोर्स पूरा हुआ, उस ने एसएससी का इम्तिहान दिया और आज अपनी मेहनत की बदौलत वह सरकारी नौकरी कर रही थी.

नमिता की चुप्पी ने भूषण राज की हिम्मत बढ़ा दी. उस ने और ज्यादा चारा फेंका, ‘‘अगर तुम चाहोगी तो तुम्हारे भाईबहन पढ़लिख कर अच्छी सर्विस में आ जाएंगे. मैं उन्हें आगे बढ़ने में मदद करूंगा.’’

नमिता ने अपनी निगाहें उठाईं और भूषण राज के लाललाल फूले गालों वाले चेहरे पर टिका दीं. उस की आंखों में दुनिया का सारा प्यार नमिता के लिए उमड़ रहा था. पर इस प्यार में उसे भूषण राज के खतरनाक इरादों का भी पता चल रहा था.

‘‘तुम चिंता मत करो. मैं तुम्हारे भाईबहन को गाइड करूंगा कि उन्हें प्रोफैशनल कोर्स करना चाहिए या सामान्य कोर्स कर के प्रतियोगी परीक्षा के जरीए लोक सेवा में आना चाहिए. मैं ने कई लोगों को गाइड किया है और आज कई लड़के ऊंची सरकारी नौकरी में हैं.’’

पर नमिता गुमसुम सी बैठी रही, उठ कर भाग नहीं सकती थी. न तो वह उसे खुल कर मना कर सकती थी, न अपने मन का दर्द किसी से कह सकती थी.

जब नमिता ने कोई जवाब नहीं दिया तो वह बोला, ‘‘अच्छा, तुम बोर हो रही होगी… एक काम करो, चलो, एक डीओ का डिक्टेशन ही ले लो.’’

नमिता जब तक अपना पैड और कलम संभालती, वह अपनी कुरसी से उठ कर खड़ा हो गया और मेज की दाहिनी तरफ आ गया और कुछ सोचने का बहाना करते हुए नमिता की कुरसी के बाएं सिरे पर आ कर खड़ा हो गया. फिर दाहिनी तरफ नमिता के बाएं कंधे पर तकरीबन झुकते हुए बोला, ‘‘हां लिखो… माई डियर…’’ फिर एक पल की चुप्पी के बाद, ‘‘नहीं, यह छोड़ो. लिखो डियर श्री…’’ फिर भूषण राज की सूई तकरीबन अटक गई और वह ‘माई डियर’ या ‘डियर श्री’ से आगे नहीं बढ़ पाया.

यह शायद नमिता की खूबसूरती या उस के बदन का कमाल था कि पलभर में ही उस की सांसें फूलने लगीं और वह नमिता की चिकनी पीठ को लालसा भरी निगाहों से ताकते हुए लंबीलंबी सांसें लेने लगा. जब वह ज्यादा बेकाबू हो गया तो कसमसाते हुए नमिता के सिर पर हाथ रख कर बोला, ‘‘हां, क्या लिखा?’’

नमिता के शरीर में एक लिजलिजी लहर समा गई.

मजबूरी इनसान को हद से ज्यादा सब्र वाला बना देती है. नमिता के साथ भी यही हो रहा था. वह अपने बौस की ज्यादतियों का शिकार हो रही थी, पर उस का विरोध नहीं कर पा रही थी. न शब्दों से, न हरकतों से…

नतीजा यह हुआ कि भूषण राज के हाथ अब नमिता के सिर से होते हुए उस की गरदन को गुदगुदाने लगे थे और कभीकभी उस के गालों तक पहुंच जाते थे. फिर कई बार उस की पीठ को सहलाते, जैसे कुछ ढूंढ़ने की कोशिश कर रहे हों. उस की ब्रा के ऊपर हाथ रोक कर उस के हुक को टटोलते हुए ऊपर से ही खोलने की कोशिश करते, पर नमिता कुछ इस तरह सिकुड़ जाती कि वह अपनी कोशिश में नाकाम हो कर कुरसी पर जा कर बैठ जाता और कहता, ‘‘निम्मी…’’ आजकल वह प्यार से उसे निम्मी कहने लगा था, ‘‘तुम कुछ हैल्प क्यों नहीं करती? तुम समझ रही हो न… मैं क्या कहना चाहता हूं?’’

पर नमिता झटके से उठ कर खड़ी हो जाती और बाहर निकल जाती.

वार पर वार- भाग 3: नमिता की हिम्मत देख क्यों चौंक गया भूषण राज

नमिता की समझ में नहीं आया कि वह अपनी नौकरी कैसे बचा सकती थी? लेकिन पूछा नहीं… प्रीति खुद ही बताने लगी, ‘‘तुम नौकरी छोड़ दोगी तो दूसरी नौकरी जल्दी कहां मिलेगी? वह भी सरकारी नौकरी… प्राइवेट नौकरी भले ही मिल जाए.

‘‘पर, हर जगह एक ही से हालात हैं नमिता. इनसानरूपी मगरमच्छ हर जगह मुंह खोले जवान लड़कियों को निगलने के लिए तैयार रहते हैं. समझौता कर लो. किसी को पता भी नहीं चलेगा. सुख तुम्हारी झोली में भर जाएंगे और नौकरी भी बची रहेगी.’’

नमिता का शक सच में बदल गया. कई बार उसे लगता था कि प्रीति उसे किसी न किसी जाल में फंसाएगी… वह बौस भूषण राज की दलाल थी.

उस ने प्रीति को गौर से देखा, तो वह हलके से मुसकराई. प्रीति बोली, ‘‘तुम अपने मन में कोई शक मत पालो. उससे तुम्हारी समस्या का समाधान नहीं होगा.

तुम मुझे भले ही बुरा समझो, पर इस में तुम्हारी ही भलाई है. सोचो, खूबसूरती और जवानी का क्या इस्तेमाल…?’’

नमिता अच्छी तरह समझ गई थी कि इस दुनिया में मर्द ही नहीं, बल्कि औरतें भी एकदूसरे की दुश्मन होती हैं. औरतें कब नागिन बन कर किसी को डस लें, पता ही नहीं चलता. उस ने एक कठोर फैसला किया.

प्रीति अभी तक नमिता के दिमाग की सफाई करने में जुटी हुई थी, ‘‘औरत और मर्द के संबंध में किसी का कुछ नहीं बिगड़ता, पर सुख दोनों को मिलता है… तुम ठीक से समझ रही हो न? जा कर एक बार बौस से माफी मांग लो. वे जैसा कहें, कर दो.’’

अब नमिता को किसी और प्रवचन की जरूरत नहीं थी. वह झटके से उठी और धीरेधीरे कदमों से बौस भूषण राज के चैंबर में चली गई. आज न तो उस के मन में डर था, न वह कांप रही थी. उस की आंखें भी झुकी हुई नहीं थीं. वह भूषण राज की आंखों में आंखें डाल कर देख रही थी.

पहले तो भूषण राज चौंका, फिर कुरसी से उठ कर बोला, ‘‘आओआओ, निम्मी. कैसी हो?’’ उस के मुंह से लार टपकने लगी थी.

‘‘मैं ठीक हूं सर…’’ नमिता ने सपाट लहजे में कहा, ‘‘मैं आप से माफी मांगने आई हूं, उस सब के लिए, जो अभी

तक हुआ है और उस सब के लिए, जो अभी तक नहीं हुआ, पर कभी भी हो सकता है.’’

नमिता का अंदाज ऐसा था, जैसे वह कह रही हो, ‘भूषण साहब, मैं आप को देखने आई हूं कि कितने खूंख्वार भेडि़ए हैं आप. किसी तरह आप औरत के शरीर को खाते हैं, नोंच कर या पूरा… चलिए दिखाइए अपनी ताकत.’

भेडि़ए की खुशी का ठिकाना न रहा. शिकार अपनेआप उस के जाल में फंस गया था. वह अपनी जगह से उठा और इस तरह अंगड़ाई ली, जैसे वह अच्छी तरह जानता था कि अब शिकार उस के पंजे से बच कर कहीं नहीं जा सकता. उसे अपनी चालों पर पूरा भरोसा था. वह धीरेधीरे मुसकराते हुए आगे बढ़ रहा था.

भेड़ को डर नहीं लग रहा था. वह सीधे तन कर खड़ी थी. भेडि़या नजदीक आ गया था, वह फिर भी नहीं डरी.

भेडि़या थोड़ा सहमा… इस भेड़ को आज क्या हो गया. वह उस के भयानक मुंह के तीखे दांतों और नुकीले पंजों से भी नहीं डर रही थी.

भेडि़या भेड़ को जिंदा निगलने की जल्दबाजी में था. भेड़ अगर तन कर खड़ी रही, उस से डर कर भागी नहीं, तो फिर शिकार करने का फायदा क्या?

भेडि़ए ने अपने नुकीले पंजे भेड़ के कंधे पर रखे और दर्दनाक हालत तक उस के नरम गोश्त में चुभाया, पर भेडि़ए को भेड़ के कंधे पत्थर के लगे. उस ने अपना चेहरा भेड़ के खूबसूरत लपलपाते चेहरे की तरफ बढ़ाया तो उसे लगा जैसे वह एक आग का गोला निगल रहा हो.

नमिता ने बालों को मादक झटका दे कर और छातियों को हलका उभार देते हुए कहा, ‘‘शाम को 7 बजे घर पर आइएगा. घर पर और कोई नहीं है. बस, मैं, आप और पूरी रात.’’

भूषण राज भौचक्का रह गया, पर उस का विवेक तो मर चुका था. वह समझ नहीं सकता था कि ऐसी लड़की जो इतने दिन से उस के हर प्रस्ताव को ठुकरा रही थी, अचानक कैसे बदल गई.

भूषण राज ने दिन कैसे बिताया, यह बताना आसान नहीं, पर नमिता आधे दिन की छुट्टी ले कर यह कह कर चली गई थी कि घर को ठीक करना है.

शाम 6 बजे से ही भूषण राज को बेचैनी होने लगी थी. फिर भी उस ने

7 बजाए. औफिस में नहाया, कपड़ों की 1-2 जोड़ी वह हमेशा अपनी दराज में रखता था. पत्नी को कहा कि देर रात तक मीटिंग चलेगी, वह सो जाए.

शबाब मिल रहा था तो शराब भी होनी चाहिए. 2 बोतलें खरीदीं. शायद नमिता भी पी ले तो रात पूरी मस्त

हो जाए.

भूषण राज नमिता के बताए पते पर पहुंचा तो थोड़ा मन खट्टा हुआ. बेहद मिडिल क्लास इलाका था. छोटे मैले मकानों में एक संकरे जीने पर चढ़ कर पुराने से दरवाजे को खटखटाया.

दरवाजा नमिता ने ही खोला था. वह पूरी तरह सजीधजी थी. बढि़या मेकअप. पोशाक जो उस के बदन को ढक कम रही थी, दिखा ज्यादा रही थी. घर में खुशबू फैली थी. रोशनी केवल मोमबत्तियों की थी या 2 टेबल लैंपों की.

नमिता ने उसे बांहों में जकड़ लिया. इसी का तो इंतजार वह महीनों से कर रहा था.

‘‘आज तो बड़े स्मार्ट लग रहे हो सर,’’ कहते हुए वह उसे सोफे पर ले गई. सामने मेज पर खाने का सामान और कई गिलास थे. शायद नमिता जान गई थी, भूषण राज क्या चीज है. उस ने उस के हाथ से बोतलें लीं और कहा कि लाइए, इन्हें मैं फ्रिज में रख दूं.

‘यह कबूतरी तो खुद ही शिकारी के तीर तेज कर रही है…’ भूषण राज ने सोचा. उसे अपने पर गर्व हुआ. है ही वह ताकतवर. कौन चिडि़या है जो उस के जाल से निकल सकती है.

नमिता ने सोफे पर बैठा कर कहा, ‘‘सर, आप कपड़े तो उतारिए, मैं अभी आई.’’

भूषण राज तो सब सावधानियां छोड़ कर कपड़े उतारने लगा और सोफे पर आराम से पसर गया. फिर तसल्ली से खाना ठूंसा? नमिता शायद नहा रही थी.

‘आज तो मजा आ जाएगा… ऐसा सुख तो उसे कभी न मिला था.’

तभी दरवाजे पर खटखट हुई. भूषण राज ने सोचा, ‘कौन हो सकता है इस समय? नमिता ने तो कहा था कि वह अकेली है?’

बिना कपड़ों के किसी के घर में आ जाने पर क्या हो सकता है, वह जान सकता था. पर इस से पहले कि वह कुछ कहता, नमिता दूसरे कमरे से तकरीबन भागती हुई आई और दरवाजा खोल डाला.

बाहर पूरा स्टाफ खड़ा था. कुछ लोग कैमरे भी लिए थे.

‘हैप्पी बर्थडे नमिता’ की आवाज गूंजी और 10-15 लोग कमरे में

घुस गए.

भूषण राज फटीफटी आंखों से देख रहा था. उस ने अपने कपड़े उठाने चाहे थे कि नमिता ने झपट कर छीन लिए.

उस के बाद बहुतकुछ हुआ. बहुत सारे फोटो ले लिए गए. भूषण राज की पत्नी को बुला लिया गया. नमिता को ट्रांसफर करने का आदेश पास हो गया. छोटे से घर में हंगामा हो गया. नमिता के घर वाले भी उसी समय पहुंच गए थे.

अब नमिता शान से काम कर रही थी उसी दफ्तर में. भूषण राज ने इस्तीफा दे दिया था और वह शहर बदल कर जा चुका था.

नमिता की हिम्मत और आंखों की अनोखी चमक ने भूषण राज के सारे हौसलों को मात कर दिया. उस को अपने जाल में फंसाने के लिए भूषण राज ने न जाने कितने जतन किए थे, पर अब वह उस के फंदे में आ कर फंस गया था.

सोच से आगे: आखिर कौन था हत्यारा

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दहशत: क्या सामने आया चोरी का सच

सोच से आगे- भाग 3: आखिर कौन था हत्यारा

मुझे अचानक याद आया तो मैं ने कहा, ‘‘आप को सिगार पिए काफी देर हो चुकी है. आप सिगार पी लीजिए.’’

वह मुसकरा कर बोला, ‘‘ओ हां, लेकिन आप के सामने?’’

‘‘कोई बात नहीं, आप को इजाजत है. आप पी लीजिए.’’ उस ने अपनी जेब से सिगार का एक पैकेट निकाला. मैं ने देखा वह वही सिगार का ब्रांड था, जिस का टुकड़ा डा. समर के कमरे से मिला था.

मैं ने इकबाल से कहा, ‘‘आप एक इज्जतदार आदमी हैं और मुझे उम्मीद है कि आप झूठ नहीं बोलेंगे. आप यह बताइए कि हत्या वाली रात 9 बजे से रात 3 बजे तक आप कहां थे?’’

‘‘ओह यह बात है. उस रात मैं 10 बजे से 12 बजे तक समर के पास रहा. फिर अपनी कार से लौट गया.’’

‘‘आप दोनों में तो अनबन थी फिर आप उस के पास कैसे गए?’’

‘‘बात यह है सर, मुझे उस से बहुत मोहब्बत थी. मैं न चाह कर भी उस के क्वार्टर पर चला गया. मैं ने दरवाजा थपथपाया, तो उस ने दरवाजा खोला और हंस कर मेरा स्वागत किया. उस ने मुझे चाय भी पिलाई. मैं ने उस से माफी मांगनी चाही तो वह उखड़ गई. बोली कि मैं ने आप को इसलिए अंदर नहीं बुलाया बल्कि मैं चाहती हूं कि आप मुझे तलाक दे दें.

‘‘उस की बात से मुझे दुख तो बहुत हुआ लेकिन मैं बिना कुछ कहे ही वहां से चला आया. इस के बाद मैं अपने एक मित्र के पास चला गया. अभी मेरा वहां से आने का इरादा नहीं था लेकिन कल अचानक मैनेजर का फोन गया और उस ने मुझे यहां के हालात बताए तो तुरंत आ गया.’’

 

मुझे इकबाल की बात पर यकीन होने लगा था. मैं ने उस से आखिरी सवाल यह किया कि उस ने अपनी मां और बहन को यह  क्यों बताया कि मिल घाटे में चल रही है, जबकि ऐसा कुछ नहीं था.

‘‘सर, कभीकभी इंसान पर ऐसा समय आता है कि वह अपने आप से भी झूठ बोलता है. मैं ने मां और बहन से जानबूझ कर झूठ बोला था. अगर मैं उन से यह कहता कि मैं समर के कारण परेशान हूं तो मुझे उन की ओर से और भी कुछ बुरा सुनने को मिलता. हां, मुझे एक शक और है.’’ वह बोला.

‘‘कौन सा शक?’’ मैं ने पूछा.

‘‘एक साल पहले मैं ने परवेज नाम के युवक को मिल से मैदा चुराने के आरोप में नौकरी से निकाल दिया था. वह यह काम बहुत सालों से कर रहा था, लेकिन बाद में पकड़ा गया था.’’

मैं ने इकबाल से परवेज का हुलिया पूछा तो उस ने जो बताया, सुन कर मैं उछल पड़ा. यह तो वही युवक था, जिस की मुझे तलाश थी. मैं ने उस से पूछा, ‘‘कैसा शक?’’

उस ने बताया कि मैं ने उस रात अस्पताल में परवेज को देखा था और उसी रात समर की हत्या हो गई. मैं ने परवेज का पता पूछ कर इकबाल को जाने दिया.

इकबाल के जाने के बाद मैं ने एएसआई को बुला कर कहा कि 2 सिपाहियों को ले जा कर वह परवेज को पकड़ लाएं. 2 घंटे बाद वे आए और बताया कि वह घर पर नहीं है.

मैं ने चारों ओर मुखबिरों का जाल बिछा दिया. अगले दिन शाम के समय एक मुखबिर ने हमें बताया कि परवेज को कुछ दोस्तों के साथ साबराबाद गांव के बाहर एक डेरे पर देखा गया है. मैं ने एएसआई के नेतृत्व में एक पुलिस टीम रात में ही परवेज को पकड़ने के लिए साबराबाद गांव के डेरे पर भेज दी.

ऐसा लगा कि उन्हें छापामार पार्टी का पहले से ही पता लग गया था इसलिए सारे लोग वहां से भाग गए. केवल शराब के नशे में धुत परवेज हाथ लगा. उसे थाने ला कर हवालात में बंद कर दिया गया. सर्दियों का मौसम था, हवालात का ठंडा फर्श उस का दिमाग ठंडा करने के लिए काफी था.

अगले दिन परवेज को मेरे सामने लाया गया. एएसआई असलम ने बताया कि इस ने बिना छतरोल के ही अपना अपराध स्वीकार कर लिया है. काम इतनी जल्दी हो गया कि हमें इस का रिमांड लेने की भी जरूरत नहीं पड़ी.

इस हत्या के पीछे की जो कहानी थी, वह यह थी कि परवेज के दिमाग में बहुत पहले से एक लावा पक रहा था जो हत्या की रात फट गया. परवेज की कहानी कुछ इस तरह थी कि उस की मां के मरने के बाद पिता ने दूसरी शादी कर ली.

सौतेली मां ने उस के साथ गंदा व्यवहार किया. पिता ने भी उस की ओर ध्यान नहीं दिया. वह बुरी संगत में पड़ गया और शादे नाम के एक व्यक्ति के डेरे पर जाना शुरू कर दिया.

शादे के डेरे पर ऐसे ही जवान लड़के आते थे, जिन्हें परिवार का प्यार न मिला हो. शादे अपराधी प्रवृत्ति का एक धूर्त व्यक्ति था. उस ने परवेज को चोरियों के काम पर लगा दिया. परवेज का समय शादे के डेरे पर ही गुजरता था.

परवेज अपने एक रिश्तेदार की बेटी से प्रेम करता था, वह लड़की भी उसे चाहती थी. दोनों चोरीछिपे मिलते थे. फिर एक दिन लड़की के मांबाप को उन के प्रेम प्रसंग का पता चला तो लड़की वालों ने उस का रिश्ता दूसरी जगह कर के उस की शादी भी कर दी.

परवेज के लिए यह बहुत बड़ा दुख था. अब वह अधिकतर शादे के डेरे पर रहने लगा. कुछ समय बाद उस की प्रेमिका गर्भवती हो गई और वह बच्चे की डिलिवरी के लिए अस्पताल गई, जिस का औपरेशन डा. समर ने ही किया था. उस औपरेशन के दौरान उस की प्रेमिका की मौत हो गई.

परवेज को यह यकीन हो गया था कि प्रेमिका की मौत डा. समर की लापरवाही से हुई है. उसे डा. समर के इकबाल के संबंधों का भी पता था, इसलिए उस ने समर की हत्या करने का फैसला कर लिया. इस से उस के 2 निशाने पूरे हो जाते.

एक ओर तो उस की प्रेमिका की मौत का बदला पूरा हो जाता. दूसरी ओर वह इकबाल को भी सबक सिखाना चाहता था, क्योंकि उस ने उसे चोरी के इलजाम में नौकरी से निकाला था.

परवेज की कहानी सुनने के बाद केस बिलकुल साफ था. मैं ने उस का इकबालिया बयान लिया. फिर उसे गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. इस केस की जांच मैं ने ही पूरी की.

केस अदालत में चला. गवाहों आदि के बयान हुए. बचाव में परवेज की तरफ से कोई नहीं आया. सेशन कोर्ट ने सबूतों को देखते हुए उसे फांसी की सजा सुनाई. सजा के खिलाफ कोई अपील नहीं हुई लिहाजा उसे फांसी पर लटका दिया गया. यहां यह बात बता दूं कि परवेज को थाने की हवालात से फरार कराने वाला शादे ही था.

सोच से आगे- भाग 2: आखिर कौन था हत्यारा

अगली सुबह पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी आ गई. रिपोर्ट के मुताबिक डा. समर की मौत रात 2 और 3 बजे के बीच हुई थी और हत्या के समय मरने वाली ने अपने बचाव में पूरा जोर लगाया था, जिस से उन की 2 अंगुलियां भी घायल हो गई थीं. अंगुली में 3-4 घाव थे.

मैं ने लाश को अस्पताल के स्टाफ के हवाले कर दिया. अब उस का अंतिम संस्कार तो डा. शमशाद को ही करना था, क्योंकि डा. समर के आगेपीछे कोई नहीं था.

एक बात पर मुझे हैरानी थी कि उन का पति इकबाल अभी तक नहीं आया था. उस की अपनी पत्नी से अनबन जरूर थी, लेकिन ऐसे समय तो उसे आना ही चाहिए था. मैं ने कांस्टेबल मंजूर को इकबाल को थाने बुलाने के लिए कहा.

कुछ देर बाद आ कर उस ने बताया कि इकबाल न तो फ्लोर मिल में है और न ही अपने घर. उस की कोठी मिल के पास ही थी, जिस में वह अपनी मां और बहन के साथ रह रहा था. बहन का पति अरब में नौकरी करने गया हुआ था.

मैं 2 सिपाहियों को ले कर उस की कोठी पर पहुंच गया. उस समय हम पुलिस वर्दी में नहीं थे. मैं ने नौकर को अपना परिचय दिया तो उस ने हमें तुरंत अंदर बुला लिया. इतनी बड़ी कोठी में इकबाल की मां जिन की उम्र 60 के लगभग थी और करीब 40 साल की बहन ही रहती थीं.

मैं ने कोठी में मौजूद बूढ़ी महिला से कहा, ‘‘आप लोगों में से कोई भी डा. समर की लाश नहीं लेने आया.’’

उस बूढ़ी महिला ने जवाब दिया, ‘‘साहब, जब वह हम से नाता तोड़ कर चली गई तो फिर गंदले पानी में हाथ डालने से क्या फायदा.’’

‘‘क्या आप के बेटे ने उसे तलाक दे दिया था?’’

‘‘मैं ने तो उसे कई बार कहा, लेकिन वह टालमटोल कर देता था.’’

मैं ने इकबाल की छोटी बहन से पूछा, ‘‘बीबी, तुम्हारा भाई कहां है?’’

‘‘क्या आप भाईजान पर शक कर रहे हैं?’’ उस ने पूछा.

मैं ने गुस्से से कहा, ‘‘मैं जो पूछ रहा हूं, तुम केवल उस का ही जवाब दो.’’

‘‘वह कतर गए हैं.’’ उस ने बताया.

‘‘इतनी जल्दी जाने की क्या जरूरत थी?’’ मैं ने उस से पूछा.

इस सवाल पर तो वह नहीं बोली पर उस की मां ने जवाब दिया, ‘‘वह तो कई दिनों से जाने के लिए कह रहा था लेकिन उसे मिल के कामों से फुरसत ही नहीं मिल रही थी.’’

मैं ने भांप लिया था कि मांबेटी दोनों झूठ बोल रही हैं. कोई न कोई गड़बड़ जरूर है जो ये झूठ का सहारा ले रही हैं. मैं ने उन से कहा, ‘‘देखो, मुझे सचसच बता दो. मैं आप की इज्जत का खयाल कर के यहां वर्दी में नहीं आया. मैं चाहता तो आप को थाने में भी बुला सकता था.’’

उस की मां ने अपनी बेटी को चुप रहने के लिए कहा और बोली, ‘‘साहब, बात यह है कि वह कुछ दिनों से परेशान था. वजह यह कि मिल की 2 मशीनें खराब हो गई थीं और मिल में रखे कुछ गेहूं भी काले पड़ गए थे. वह कोई बात बताता नहीं था.’’

मैं ने उन से 2-3 बातें और पूछीं और वहां से लौटते समय उन से कह दिया कि इकबाल जब भी घर आए तो उसे थाने भेज देना. थाने लौटने के बाद मैं ने एएसआई असलम को पूरी जानकारी देते हुए पूछा कि अब क्या करना चाहिए. उस ने कहा, ‘‘सर, हमें एक चक्कर मिल का भी लगा लेना चाहिए.’’

मैं ने कहा, ‘‘तुम ने मेरे मुंह की बात छीन ली. ऐसा करो तुम वहां जा कर पूरी स्थिति की जानकारी लो और मुझे कल तक रिपोर्ट जरूर करो.’’

अगले दिन एएसआई असलम ने कहा, ‘‘सर, मामला बिलकुल उलटा है. मिल तो बहुत फायदे में चल रही है. न कोई मशीन खराब है और न ही वहां गेहूं खराब हुआ है.’’

मैं सोचने लगा कि जब ऐसी बात है तो मांबेटी ने झूठ क्यों बोला. कहीं ऐसा तो नहीं कि इकबाल ने ही अपनी मां और बहन से झूठ बोला हो. मैं ने एएसआई से कह कर मिल के जनरल मैनेजर को थाने बुला लिया.

2 घंटे बाद जनरल मैनेजर मेरे सामने बैठे थे. मैं ने उन से कहा, ‘‘आप को यह तो मालूम होगा कि मैं ने आप को यहां किसलिए बुलाया है?’’

‘‘जी, मैं समझ गया कि आप इकबाल साहब के बारे में पता करेंगे.’’ उस ने कहा.

‘‘वह कहां गए हैं?’’ मैं ने पूछा.

‘‘सर, इस बार तो वह मुझे भी चकमा दे गए, पता नहीं कहां चले गए.’’ उस ने कहा.

‘‘आजकल वह परेशान क्यों थे?’’ मैं ने अगला सवाल किया.

‘‘यह तो मुझे भी नहीं पता लेकिन लगता है कि वह अपनी पत्नी के बारे में ज्यादा चिंतित थे.’’ वह बोला.

‘‘लेकिन उन की मां और बहन ने तो उन की पत्नी का जीना हराम कर दिया था, इसलिए वह दुखी हो कर घर से चली गई थी. हो सकता है, मांबेटी ने उस की हत्या करवा दी हो.’’ मैं ने कुरेदा.

‘‘नहीं सर, उन में ऐसा करने की हिम्मत नहीं है.’’ उस ने कहा.

‘‘जैसे ही इकबाल के बारे में कुछ पता लगे तो हमें सूचना देना.’’ कह कर मैं ने जनरल मैनेजर को थाने से भेज दिया.

इस के अगले दिन इकबाल थाने आ गया. वह 30-32 साल का सुंदर जवान युवक था. उस के चेहरे पर परेशानी साफ दिखाई दे रही थी. उस ने आते ही कहा, ‘‘सर, मैं ने सुना है कि समर की हत्या हो गई. किस ने की है उस की हत्या? क्या आप ने हत्यारे का पता लगा लिया?’’ आते ही उस ने कई सवाल किए.

मैं ने उस की आंखां में देखते हुए कहा, ‘‘पहले आप यह बताइए कि अचानक कहां गायब हो गए थे?’’

उस ने कहा, ‘‘यह एक लंबी कहानी है. मुझे लगता है, आप मुझे समर का हत्यारा समझ रहे हैं?’’

‘‘आप ठीक समझ रहे हैं, जब कोई पास का संबंधी या रिश्तेदार अचानक गायब हो जाए तो शक उसी पर जाता है. आप अपनी कहानी सुनाओ, हम यहां कहानी सुनने के लिए ही बैठे हैं.’’

इस के बाद उस ने अपनी कहानी सुनानी शुरू की, ‘‘साहब, मुझे समर से प्रेम हो गया था. मैं ने उस से शादी की और घर ले आया. लेकिन मेरी मां और बहन को वह एक आंख नहीं सुहाई. वह उसे टौर्चर करती रहती थीं. खासतौर पर उस का अस्पताल जाना उन्हें बिलकुल पसंद नहीं था. वे दोनों रातदिन मेरे कान भरती रहती थीं और कहती थीं कि मैं उसे तलाक दे दूं.’’

‘‘आप भी तो उस पर शक करते थे कि वह डा. आतिफ में दिलचस्पी लेती है.’’ मैं ने बीच में ही टोका.

‘‘आप को यह बात किस ने बताई?’’ वह बोला.

‘‘किसी ने भी बताई हो, आप अपनी बात कहो.’’

‘‘नहीं सर, बात दरअसल ऐसी है कि मेरी मां और बहन ने मेरा इतना दिमाग खराब कर दिया था कि मैं भी उस पर शक करने लगा. वह मेरे व्यवहार से तंग आ कर अस्पताल के क्वार्टर में रहने लगी. मुझे अगर यह पता होता कि…’’ उस ने कहा.

सोच से आगे- भाग 1: आखिर कौन था हत्यारा

एक दिन मैं थाने में बैठा था कि एक व्यापारी एक लड़के को पकड़ कर लाया और बोला, ‘‘सर, यह लड़का चोरियां करता है. आज मैं ने इसे रंगेहाथों पकड़ा है.’’

व्यापारी के जाने के बाद मैं ने लड़के की ओर देखा. सर्दियों का मौसम था, वह जो कोट पहने हुए था, उस से लगता था कि वह गरीब घर का है. उस की उमर भी यही कोई 20 बरस रही होगी. मैं ने उस से पूछा कि क्या वह वास्तव में चोर है?

उस ने कहा, ‘‘सर, मैं वास्तव में चोर हूं और दुकानों से सामान चुराता हूं. वजह यह है कि मेरी रीढ़ की हड्डी में दर्द रहता है, जिस से मैं कोई काम नहीं कर सकता.’’

उस की बात सुन कर मैं ने उस से कहा, ‘‘ओए चोर की औलाद, तूने तमाम विकलांगों को सड़क पर सामान बेचते हुए देखा होगा. तू भी ये काम कर सकता है.’’

उस की बातों से मुझे लगा कि वह किसी अच्छे गुरु का चेला है, जिस ने उसे पाठ पढ़ा रखा है. मैं ने हवलदार को बुला कर कहा, ‘‘इसे अभी लौकअप में बंद कर दो, सुबह को इस से पूछताछ होगी.’’

फिर मैं ने उस से कहा, ‘‘अच्छी तरह सोच ले, झूठ बोला तो तेरी हड्डियों का चूरमा बना दूंगा.’’

अगले दिन जब मैं थाने आया तो पता लगा कि वह चोर लौकअप से फरार हो गया है. मेरा गुस्सा आसमान छूने लगा. मैं ने रात की ड्यूटी वाले कांस्टेबलों को बुला कर पूछा, ‘‘बताओ, उसे किस ने फरार कराया है.’’

सब ने यही कहा कि हमें पता नहीं है. अलबत्ता जाहिद नाम के एक कांस्टेबल ने कहा, ‘‘सर, लौकअप का दरवाजा टूटा मिला है. इस से तो यही लगता है कि वह दरवाजा तोड़ कर भाग गया.’’

मैं ने सब कांस्टेबलों को जाने दिया और उसी को पकड़ लिया. उस से जब कड़ाई से बात की तो उस ने कहा कि सर रात को एक व्यक्ति आया था, जो बहुत धनी लगता था. उस ने 10 हजार रुपए दिए और उसे छुड़ा ले गया.

मेरे कमरे में एएसआई असलम भी बैठे थे. उन्होंने उस पर चिल्लाते हुए कहा, ‘‘तुम ने यह कैसे समझ लिया कि तुम इतना बड़ा अपराध कर के बच जाओगे.’’

‘‘सर, बात यह है कि जो व्यक्ति रात को यहां आया था, उस ने मुझ से कहा था कि तुम्हारा कुछ नहीं बिगड़ेगा, उस की पहुंच ऊपर तक है.’’ जाहिद ने बताया.

मैं ने थाने में आने वाले व्यक्ति का हुलिया और पता पूछ कर नोट कर लिया और यह जानकारी मैं ने अपने उच्चाधिकारियों को भी दे दी. जिस के बाद कांस्टेबल जाहिद को निलंबित कर दिया गया.

इस घटना के छठे दिन सूचना मिली कि हमारे थाने के पास एक प्राइवेट अस्पताल की लेडी डाक्टर समर की किसी ने छुरा घोंप कर हत्या कर दी है. डा. समर इकबाल की पत्नी थीं, पतिपत्नी दोनों में अनबन रहती थी और वह अस्पताल के ही एक क्वार्टर में रह रही थीं.

सूचना मिलने पर मैं 2 सिपाहियों को साथ ले कर उस के क्वार्टर पर पहुंच गया. वह 2 कमरों का क्वार्टर था. एक कमरे में एक बैड पर उस की लाश पड़ी थी. लाश को देख कर लगा कि हत्या किसी ऐसे आदमी ने की है, जो उस से बहुत नफरत करता था. 2 घाव दिल के पास थे, एक पीठ की ओर था और 2 अंगुलियां भी घायल थीं.

साफसाफ ऐसा लग रहा था कि हत्या के समय लेडी डाक्टर ने अपने आप को बचाने की भरपूर कोशिश की थी. कमरे के बाहर अस्पताल के डाक्टर और नर्सिंग स्टाफ इकट्ठा था. मैं ने आवश्यक काररवाई कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. वहां मौजूद स्टाफ से मैं ने अलगअलग पूछताछ की. लेडी डाक्टर शमशाद और डा. आतिफ मुझे काम के लगे. उन दोनों को कमरे में बिठा कर उन से कुछ सवाल किए. ऐसा लग रहा था जैसे डा. समर की हत्या का उन दोनों को बहुत दुख था.

मैं ने डा. शमशाद से पूछा कि क्या डा. समर इस कमरे में अकेली रहती थीं? उन्होंने बताया, ‘‘नहीं, वह मेरे साथ रहती थीं.’’

‘‘क्या रात भी आप उन के साथ थीं?’’ मैं ने पूछा.

‘‘नहीं, रात मैं उन के साथ नहीं थी क्योंकि कल एक एक्सीडेंट का केस आ गया था. मैं और डा. आतिफ उस के औपरेशन में सुबह तक व्यस्त थे.’’ उन्होंने बताया.

‘‘इस का मतलब है कि डा. समर मरने वाली रात को बिलकुल अकेली थीं.’’ मैं ने पूछा.

‘‘हां, अकसर ऐसा होता है कि इमरजेंसी में हम दोनों में से एक की ड्यूटी रात की लग जाती है.’’ डा. शमशाद ने कहा.

मैं ने उस सर्जन से पूछा कि आप के विचार में इन की हत्या किस ने की होगी? वह कहने लगीं कि कुछ कहा नहीं जा सकता. मुझे बड़ी हैरानी है कि इतनी शरीफ जो सब के काम आती हों, उन की हत्या इतनी क्रूरता से कौन कर सकता है.

‘‘अच्छा, यह बताइए, इन का पति इकबाल करता क्या है?’’ मैं ने उन से अगला सवाल किया.

‘‘सर इकबाल एक फ्लोर मिल का मालिक है. एक दिन वह हमारे अस्पताल में रोगी बन कर आया था. डा. समर ने उस का इलाज किया. उसी बीच दोनों में प्रेम प्रसंग हो गया और बात शादी तक पहुंच गई.’’

डा. शमशाद ने वहां पर मौजूद डा. आतिफ की ओर देखते हुए कहा, ‘‘इकबाल को यह शक था कि उस की पत्नी डा. आतिफ में रुचि ले रही है.’’

मैं ने 2-3 बातें पूछ कर कमरे को दोबारा ध्यान से देखना शुरू किया. कमरे में मेज पर चाय के 2 खाली कप और पानी के 2 खाली गिलास रखे हुए थे. मैं ने डा. शमशाद से उन के बारे में पूछा तो उन्हें भी कप देख कर हैरानी हुई. मैं ने और ध्यान से देखा तो ऐशट्रे में सिगार का बुझा एक टुकड़ा भी मिला. इस का मतलब था कि रात में वहां कोई मर्द भी था, जो हत्या करने आया होगा. यह बात तय थी कि मरने वाली उस आदमी को जानती थी.

कमरे को सील करने से पहले मैं ने कांस्टेबल से सिगार के टुकड़े को सुरक्षित रखने के लिए कहा. मैं ने एएसआई को बुला कर कहा कि तुम उस फरार आदमी का पता करो और एक परचा उस की ओर बढ़ाते हुए कहा कि इस में जो हुलिया लिखा है, उस का स्कैच भी बनवाओ.

लिवइन रिलेशनशिप- भाग 3: क्यों अकेली पड़ गई कनिका

‘ओह मां, जब भी घर आती हूं आप यह शादीशादी की रट लगानी शुरू कर देती हो. आगे से मैं आना बंद कर दूंगी. मु झे नहीं करनी शादी. शादी, बच्चे, ससुराल, मायका, मैं ये सब मैनेज नहीं कर सकती. मैं जैसी हूं वैसी ही रहूंगी. मैं बस कमाओ, खाओ, पिओ और मौज करो में यकीन करती हूं और शायद मैं इसी के लिए बनी भी हूं.’

‘पर बेटा, ऐसा नहीं है, शादीब्याह कोई  झं झट नहीं है. शादी तो प्यार का दूसरा नाम है. एकदूसरे के लिए कुछ कर गुजरने की चाहत होती है. विवाह समाज द्वारा मान्यताप्राप्त है जो आप को एक पार्टनर देता है जिस से एक ओर जहां आप अपनी शारीरिक जरूरतें पूरी करते हो वहीं दुखसुख को बांटते हो और जहां आप अपना सुरक्षित भविष्य प्राप्त करते हो. विवाह करने में ही जीवन का असली सुख है, बेटा,’ मां ने अपना अनुभवयुक्त ज्ञान उसे देने की कोशिश की थी.

‘इन सब दकियानूसी बातों में मु झे यकीन नहीं. यह कहां की तुक है कि एक आदमी को ही पूरी जिंदगी हवाले कर दो.’

मां आगे और भी कुछ बोलना चाहती थीं पर वह उन की बातों को अनसुना कर के कमरे से बाहर चली गई. पहली बार उसे लगा कि वह मां की नजरों का सामना नहीं कर पाई.

सोचतेसोचते कब उस की आंख लग गई, उसे पता ही नहीं चला. दरवाजे की घंटी की आवाज से उस की नींद खुली. दरवाजा खोला तो सामने रोनित खड़ा था. कनिका 2 कप कौफी ले आई. और बोली, ‘‘रोनित, अब हम क्या करेंगे?’’

‘‘हां कनु, मु झे भी सम झ नहीं आ रहा. डाक्टर ने प्रैग्नैंसी के साथसाथ और भी तो कितनी बीमारियां बताईं तुम्हें, डायबिटीज, मोटापा, बीपी आदि. और ये बीमारियां तो पूरी जिंदगी तुम्हारा साथ नहीं छोड़ने वालीं. अब तुम सोच लो, क्या करना है?’’

‘‘क्या करना है, मतलब? जो करना है हम दोनों को करना है,’’ कनिका ने लगभग  झुं झलाते हुए कहा.

‘‘तो क्या करूं, तुम से शादी कर लूं? यह मौजमस्ती तुम ने अपने से की थी. मैं ने तुम्हें फोर्स नहीं किया था. जो तुम मु झ पर अपना गुस्सा निकाल रही हो. जो किया है, अब भुगतो. जिस लड़की ने शादी से पहले ही सबकुछ मु झे सौंपने में तनिक भी संकोच नहीं किया, वह लड़की तो शादी के बाद भी न जाने किसकिस को…’’ कह कर रोनित अपना बैग उठा कर कमरे से बाहर निकल गया. कनिका रोनित के बदले रूप को अचरज से देखती रह गई. निढाल हो कर वह बिस्तर पर गिर गई. उस की आंखों से आंसू बह निकले. तभी फोन की घंटी बजी. उठाया, तो उस की सहेली आयशा थी.

‘‘हैलो कनु, क्या हुआ 2 दिनों से औफिस क्यों नहीं आ रही हो?’’

उस की आवाज सुनते ही कनिका अपनेआप को रोक नहीं सकी और फूटफूट कर रोने लगी. उसे रोता सुन कर आयशा घबरा गई और बोली, ‘‘चल, मैं आधे घंटे में तेरे पास पहुंचती हूं.’’

आधे घंटे में आयशा उस के सामने थी. कनिका के बिखरे बाल, सूजी आंखें और अस्तव्यस्त कपड़े देख कर वह हैरत से बोली, ‘‘क्या हुआ? यह क्या हालत बना रखी है? लग रहा है जैसे महीनों से बीमार है.’’

‘‘आयशा, सब खत्म हो गया. मु झे कुछ सम झ नहीं आ रहा क्या करूं. लग रहा है खुद को ही खत्म कर लूं,’’ कहते हुए कनिका ने रोतेरोते सारी दास्तान आयशा को कह सुनाई.

उस की बातें सुन कर आयशा बोली, ‘‘अच्छा, यह बात है, तभी 2 दिनों से रोनित कुछ अपसैट है और तेरे बारे में पूछने पर भी कुछ नहीं बोला. पर कनु, इस में गलती तो तेरी ही है. मैं ने कितना सम झाया था. पर तु झे तो लिवइन रिलेशनशिप का जनून चढ़ा था. कनु, आजादी और उच्छृंखलता में बहुत बारीक सा अंतर होता है. तू ने तो हमेशा ही आजादी का गलत मतलब निकाल कर मस्ती और ऐयाशी का जीवन जिया है.

‘‘कनु, जिम्मेदारियों से भागना जिंदगी नहीं है. विवाह जिम्मेदारी निभाना नहीं है, बल्कि सम्मानसहित जीवन जीने का नाम है. तू ने चंद जिम्मेदारियों के डर से अपना पूरा जीवन ही दांव पर लगा दिया. अब बता कहां गई तेरी बिंदास और मस्तीभरी जिंदगी और कहां गया लिवइन रिलेशनशिप में साथ देने वाला तेरा वह मस्तीखोर साथी. तेरे साथ दिनरात रहने के बाद भी आज तु झे मुसीबत में छोड़ कर भाग गया न. कनु, कुछ भी हो, अंत में भोगना स्त्री को ही पड़ता है.’’

‘‘आयशा, तू सही कह रही है. आज मु झे इस हालत में छोड़ कर रोनित खुद बड़े आराम से घूम रहा है. फंस तो मैं गई. अब क्या करूं? ऊपर से मु झे ताना दे रहा है कि मैं ने जो किया, अपनी मरजी से किया. ठीक है, मैं ने मरजी से किया, पर क्या इस में रोनित का कोई दोष नहीं?’’ कनिका ने आयशा का हाथ पकड़ कर दर्दभरी नजरों से पूछा.

‘‘कनु, जब हम घर से बाहर आते हैं तो अपनी सुरक्षा की जिम्मेदारी हमारे ऊपर स्वयं होती है. भले ही मर्द कितना भी दोषी क्यों न हो, हमारे भारतीय समाज में दोषी स्त्री को ही माना जाता है. अब तेरे पास इस बच्चे को जन्म देने के अलावा चारा भी क्या है. रोनित ने अपने व्यवहार से जता दिया है कि वह अब तु झे पूछेगा भी नहीं,’’ आयशा ने कहा तो कुछ देर तक शांत रहने के बाद कनिका किसी तरह हिम्मत कर के उठी और हाथमुंह धो कर आयशा से बोली, ‘‘तू सही कह रही है. जो मैं ने किया है उसे भोगना तो मु झे पड़ेगा ही. अब इसे जन्म तो देना ही होगा.’’

कनिका ने अगले दिन से औफिस जाना शुरू कर दिया. इस बीच उस ने कई बार रोनित से संपर्क करने का प्रयास किया, परंतु कोई नतीजा नहीं निकला. बाद में उस के साथियों से पता चला कि उस ने दूसरी कंपनी जौइन कर ली है.

9 माह बाद कनिका ने एक खूबसूरत सी बेटी को जन्म दिया. उसे पालने के साथसाथ उस ने एक एनजीओ भी प्रारंभ किया जो अनाथ बच्चों को शिक्षित करने के साथसाथ स्कूल और कालेज जा कर बालिकाओं को उन के कैरियर बनाने की शिक्षा तो देता ही था, साथ ही, महानगरों में रह कर उन्हें कैसे अपने अस्तित्व की रक्षा करनी है, के प्रति जागरूक भी करता था. वहां वह बालिकाओं को बताती थी कि आजादी का मतलब उच्छृंखलताभरी जिंदगी, अस्तव्यस्त लाइफस्टाइल और ऊलजलूल कपड़े पहनना नहीं, बल्कि अपने विचारों की आजादी है. जिंदगी का असली मजा जीवन में आने वाली चुनौतियों से भागना नहीं, बल्कि उन का सामना करने में है.

पार्ट टाइम जॉब: क्या मनोज का कत्ल हुआ था

दुबलापतला श्याम श्रीवास्तव उर्फ पेपर वाला सवेरेसवेरे रोज की तरह मनोज के कमरे में अखबार देने के लिए दाखिल हुआ. उस ने दरवाजा खोलते ही मनोज की लाश पंखे से लटकी देखी.

इस के बाद अफरातफरी मच गई. कुछ ही समय में एंबुलैंस और पुलिस की गाडि़यों का काफिला, जिस में सीनियर इंस्पैक्टर श्रीप्रकाश, सबइंस्पैक्टर परितेश शर्मा और हवलदार बहादुर सिंह जैसे कई काबिल अफसर शामिल थे, मौका ए वारदात पर पहुंचा.

घर के बाहर लोगों का हुजूम देख कर पुलिस को समझने में देर न लगी कि यही वह जगह है, जहां से उन्हें फोन किया गया था.

पुलिस को देख कर भीड़ एक ओर हट कर खड़ी हो गई. फोन करने वाले श्याम से जब पूछताछ की गई, तो उस ने बताया कि वह शुरू से ही हर रोज मनोज के कमरे में अखबार डालने आता है, पर आज जैसे ही उस ने अखबार देने के लिए दरवाजा खोला, वैसे ही सामने उसे मनोज पंखे से फांसी पर लटका हुआ मिला.

सीनियर इंस्पैक्टर श्रीप्रकाश को अखबार वाले श्याम का बयान थोड़ा खटका. इतने में ही आसपास रह रहे छात्रों से सूचना मिली कि मनोज का पूरा नाम मनोज दास है और अभी कुछ ही महीनों पहले वह कोलकाता से दिल्ली पढ़ने के लिए आया था और आते ही इस स्टूडैंट हब में कमरा किराए पर ले कर रहना शुरू कर दिया था. उस के साथ यहां और कोई नहीं आया था.

मनोज के पिताजी ही उसे शुरू में यहां कमरा किराए पर दिलवा कर गए थे. मनोज यहीं पर अपनी कोचिंग किया करता था.

मनोज की लाश को फौरन जांच के लिए फौरैंसिक लैब भेज दिया गया और उस के कमरे के सामान की छानबीन शुरू कर दी गई.

साइबर ऐक्सपर्ट की मदद से मनोज की कौल हिस्ट्री निकाल ली गई. उन के पिता का नंबर तलाश कर उन्हें सूचना भिजवा दी गई.

पर, एक नंबर था, जिस से मनोज दिन में कई बार बातें किया करता. उस नंबर को ट्रेस करने के बाद सिर्फ  इतना ही मालूम हुआ कि वह नंबर दिल्ली का ही है. इस से ज्यादा पता लगाना मुश्किल था, क्योंकि वह नंबर बिना किसी आइडैंटिटी के खरीदा  गया था.

कमरे की छानबीन से कुछ खास सुबूत तो हाथ न लगा, पर एक बात अभी भी इंस्पैक्टर श्रीप्रकाश के मन में किसी सवाल की तरह घूमे जा रही थी और वह थी अखबार वाले श्याम का बयान, क्योंकि अमूमन अखबार वाला अखबार बालकनी में फेंक देता है या दरवाजे के नीचे से सरका देता?है. उसे इतनी फुरसत कहां होती है, जो सब के हाथ में अखबार पकड़ाए और क्या मनोज ने दरवाजा खोल कर खुदकुशी की थी?

सीनियर इंस्पैक्टर श्रीप्रकाश ने हवलदार को इस श्याम अखबार वाले पर नजर रखने को कहा और साथ ही, खबरियों को भी इस की जानकारी निकलवाने का आदेश दिया.

उधर अगले ही दिन की फ्लाइट से मनोज के मातापिता दिल्ली पहुंचे और थाने जा कर अपना परिचय दिया. अपने बेटे की चादर से ढकी लाश देख कर मनोज के मातापिता का रोरो कर बुरा हाल हो गया.

पुलिस ने मनोज के मातापिता को दिलासा दी और पूछताछ के लिए सीनियर इंस्पैक्टर श्रीप्रकाश के पास ले आए.

मनोज के पिता पुरुषोत्तम दास और माता संगीता दास ने बताया कि मनोज बचपन से ही पढ़ाईलिखाई में काफी होशियार था, जिस के चलते उन्होंने उसे पढ़ने के लिए दिल्ली भेजा था.

इंस्पैक्टर श्रीप्रकाश ने मनोज से मिलतेजुलते और कई सवाल पूछे और फिर उन के बेटे की लाश उन्हें सौंप दी.

अभी मनोज के मातापिता को लाश के साथ विदा किया ही गया था कि एक खबरी से खबर मिली, जिस में उस ने बताया, ‘‘साहब, श्याम का असली रोजगार अखबार बेचना नहीं है. इस के अलावा वह और भी कई गैरकानूनी धंधों में शामिल है, पर पूरी तरह से नहीं.’’

हवलदार बहादुर सिंह ने भी यही बताया, ‘‘श्याम का पिछले कई सालों से छोटीमोटी चोरीचकारी और छीनाझपटी के लिए थानों में नाम आता रहा है, पर इस का नाम ऐसे किसी संगीन मामले में नहीं पाया गया है.’’

सीनियर इंस्पैक्टर श्रीप्रकाश के इशारे पर आधी रात को ही श्याम को घर से उठवा कर थाने में बुलवा लिया गया. शुरुआत में किसी भी सवाल का सही जवाब न मिलने पर श्याम को रिमांड में लेने को कहा गया, जिस से डर कर उस ने तोते की तरह सबकुछ सच उगलना शुरू कर दिया.

बात कुछ महीने पहले की है. श्याम छोटामोटा जेबकतरा था, पर इस काम में आगे जातेजाते उस की मुलाकात कई गैरकानूनी धंधे करने वाले गिरोह से हुई. उन्हीं में से एक था विकी छावरा उर्फ ‘सिकंदर’ जिस का काम बड़ेबड़े रईसजादों के लिए ड्रग्स और लड़कियों की तस्करी करना था. इस काम के लिए उसे दलाल की जरूरत थी.

श्याम भी जानता था कि बड़े कामों में पैसा भी बड़ा है, ऊपर से खुद का भी अलग ही रोब होता है महल्ले वालों में. उस ने धीरेधीरे सिकंदर के करीब  आना शुरू कर दिया और देखते ही देखते उस का खास और भरोसेमंद आदमी बन गया.

श्याम का काम ड्रग्स सप्लाई करने के लिए लड़के तलाशना था और किसी भी तरह उन्हें अपने साथ काम करने के लिए मजबूर करना था, जिस के चलते उस ने अखबार बेचने का काम शुरू कर दिया, जिस से घर से दूर यहां पढ़ने आए छात्रों से बातचीत कर उन के नजदीक आया जाए और नएनए लड़के तैयार किए जाएं.

तकरीबन 5 महीने पहले मनोज भी यहां पढ़ने के लिए आया था. यों तो सभी अपने साथियों के साथ रहा करते थे, पर मनोज अकेला था, जिस से  श्याम का काम कुछ हद तक आसान हो गया था.

कुछ दिनों की दोस्ती में बातों ही बातों में श्याम को पता लगा कि मनोज माली तंगी झेल रहा है, जिस के लिए उसे छोटेमोटे पार्टटाइम जौब की

तलाश है.

श्याम ने भी लगे हाथ अपना पत्ता फेंक दिया और कहा, ‘देख मनोज, तुझे पार्टटाइम जौब चाहिए, तो मैं दिलवा सकता हूं. बस डिलीवरी का काम है. पैसा भी किसी फुलटाइम जौब से कम नहीं मिलेगा.’

‘भैया, फिर तो मैं तैयार हूं,’ मनोज ने कहा.

‘अरे, जहां का पता दिया जाए, वहां पर एक छोटी सी थैली पहुंचानी है,’ श्याम ने झूठी हंसी हंसते हुए कहा.

मनोज काम करने के लिए तैयार हो गया. उसे लिफाफे में कुछ दिया जाता और साथ ही एक परची पर पता भी लिख कर दे दिया जाता.

मनोज वह छोटी सी थैली पैंट की जेब में डाल कर उसे दिए गए पते पर छोड़ आता, जिस के बदले में उसे अच्छीखासी रकम नकद मिल जाती.

ऐसे ही कुछ महीनों तक यह सिलसिला चलता रहा. एक दिन मनोज के जेहन में आया कि आखिर छोटी सी थैली में ऐसी क्या कीमती चीज है, जिस के लोग इतने रुपए दे देते हैं.

उस ने थैली को खोल कर देखा. उस के अंदर सफेद चूर्ण सा दिखने वाला कोई पदार्थ था.

मनोज पढ़ालिखा था. उसे शक हो गया कि कहीं यह उसी चीज की थैली तो नहीं, जिस के बारे में उस ने कई फिल्मों में देखा है. उस का शक तब और भी पक्का हुआ, जब उस ने उस सफेद चूर्ण से दिखने वाले पाउडर को सूंघ कर देखा और एहसास हुआ कि उस से इतने दिनों से एक गैरकानूनी काम करवाया जा रहा है.

उस ने तुरंत श्याम को फोन कर धमकी दी कि वह सुबह होते ही उस का भांड़ा फोड़ देगा और उस के खिलाफ केस करेगा.

इधर, श्याम ने यह सारा माजरा सिकंदर को फोन कर के बताया. सिकंदर एक शातिर मुजरिम था. उसे ऐसे हालात से भी मुनाफा कमाना खूब अच्छी तरह से आता था.

उस ने कुछ गुरगे भेज कर मनोज को अपने पास बुलवाया और खूब मीठीमीठी बातों से आदरसत्कार किया.

मनोज नहीं जानता था कि श्याम के भी ऊपर कोई है, जो इन चीजों का मास्टरमाइंड है. सिकंदर की दबंगई देख कर उस का भी दिल सहम गया. उसे महसूस हुआ कि वह ज्यादा पैसा कमाने के चक्कर में कैसे लोगों के चक्कर में फंस चुका है.

सिकंदर ने मीठी जबान में कहा, ‘अरे, क्या है भाई. पढ़ेलिखे हो, समझदार हो, यह पुलिस की धमकी देते हुए अच्छे लगते हो क्या? अच्छा, यह लो, इसे ले जाओ अपने साथ और मजे करो.’

सिकंदर ने अपने बगल में खड़ी एक खूबसूरत लड़की को पकड़ मनोज की ओर धकेल दिया. उस लड़की को देख मनोज का भी दिल बहक सा गया और वह सिकंदर के दिए हुए तोहफे को मना नहीं कर सका.

मनोज उसे अपने घर ले आया. उस लड़की ने मौका पा कर मनोज को बेहोश कर दिया और बाहर हाथ में रस्सी लिए उस लड़की के इशारे ओर देख रहे श्याम और सिकंदर को जैसे ही कमरे के अंदर से उस लड़की का फोन आया, वे दोनों चुपचाप मनोज को रस्सी के सहारे पंखे से लटका कर अपनेअपने ठिकाने पर लौट गए.

अगले दिन योजना के मुताबिक श्याम अनजान आदमी की तरह मनोज के कमरे में अखबार देने गया और खुद शक के घेरे से बाहर निकलने के लिए सामने से पुलिस को फोन कर दिया.

इतना बताने के बाद ही हवलदार बहादुर सिंह फौरैंसिक रिपोर्ट ले कर हाजिर हुआ, जिस में साफसाफ  लिखा था, ‘मौत बेहोशी की हालत में हुई है’.

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