बनारस की चाट, जिसे खाने के बाद आप उसका स्वाद भूल नहीं पाएंगे

बनारस वाराणसी काशी ना जाने कितने नामो से हम पुकारते है, इसे.  बनारस में ना जाने ऐसे क्या है जो टूरिस्टों को काफी आकर्षित कर यहाँ तक खींच ही लाती है.  बनारस में देखने समझने को ना जाने कितने चीजें है.  बनारसी साड़ी, ऐतिहासिक घाट, प्राचीन मंदिर, बनारसी पान, और लस्सी आदि के अलावा यहां के कई ऐसे पकवान और खाने की चीजें भी खूब पसंद की जाती हैं.  बात अगर यहाँ के स्ट्रीट फूड की करें तो चाट के बिना यह लिस्ट अधूरी है.  बनारस में चाट की कई वैरायटी आपको मिल जाएगी, जिसे खाने के बाद आप उसका स्वाद  भूल नहीं पाएंगे.  महिलाओं को गोलगप्पे और चाट काफी पसंद होते हैं, ऐसे में अगर आप बनारस गई हैं तो यहां कि इन मशहूर जगहों पर मिलने वाली चाट को खाना न भूलें.

चाट के अलावा इन जगहों पर मिलने वाली ऐसे कई डिश हैं, जो आपका दिल आसानी से जीत लेंगी.  हालांकि बनारसी लोगों की तरह बनारसी खाने की भी अपनी एक खासियत है, जो लोगों के दिलों में अपनी खास जगह बना लेती हैं.  देसी खाना अगर आपको बेहद पसंद है, तो आप यहां की फेमस डिश को ट्राई कर सकती हैं.  यही नहीं सुबह से लगने वाली भीड़ देख आप खुद भी अंदाजा लगा सकती हैं कि  यहां के लोग खाने के कितने दीवाने हैं.

काशी चाट भंडार

बनारस का सबसे पुराना और फेमस चाट रेस्टोरेंट है काशी चाट भंडार, जो गोदौलिया पर  है.  इस चाट भंडार की  लोकेशन घाट और काशी विश्ननाथ मंदिर के आसपास होने की वजह से यहां हमेशा भीड़ लगी रहती है.  यहां आपको बिना लहसुन और प्याज के चाट या फिर अन्य पकवान परोसे जाते है.   आपको यहां अलग-अलग तरीके की चाट मिलेगी, जिसमें टमाटर चाट, आलू टिक्की, पानी बताशे/ गोलगपा आदि शामिल हैं.  अगर आप बिना लहसुन प्याज के चटपटे पकवानों को टेस्ट करना चाहती हैं तो यहां आकर जरूर  एक्सप्लोर करें.

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राम भंडार

बनारस के ठठेरी बाजार के गली में अगर आप घूम रही हैं तो एक बार राम भंडार के पकवानों का स्वाद जरूर चखे.   हालांकि यहां कि चाट काफी फेमस है,  चाट ही नहीं यहाँ चाट के अलावा भी यहां मिलने वाली कई तरह के  ऐसी पकवान हैं, जिसे देखने के बाद आपके मुंह में पानी आने लगेगा.  चाट के अलावा यहां समोसे, कचौड़ी सब्जी जैसी कई और भी चीजें हैं जो एक बार आपको जरूर ट्राई करनी चाहिए.  खास बात है कि राम भंडार में सभी चीजों को तैयारी देसी घी से की जाती है, जिससे इसका स्वाद दोगुना बढ़ जाता है.  100 रुपये में आप यहां कई फूड आइटम टेस्ट कर सकती हैं.

दीना चाट भंडार

बनारस में दशाश्वमेध घाट बेहद प्रचलित घाट है.  यहां सुबह-सुबह ही लोगों की भीड़ लग जाती है.  सुबह-सुबह गंगा स्नान करने के बाद लोग अपने खाने का इंतजाम भी घाट पर ही करते हैं, लेकिन आप चाट की दीवाने या दीवानी हैं तो दीनानाथ चाट भंडार की चाट को टेस्ट करना न भूलें.  यहां आपको अलग-अलग तरीके की चाट मिल जाएँगी, लेकिन यहाँ सबसे ज्यादा टमाटर चाट खाना पसंद की जाती है, जिसमें मसाले और पालक के अलावा ड्राई टमाटर भी मिक्स होते हैं.  इसके अलावा यहां के गोलगप्पे, आलू टिक्की, और गुलाब जामून भी खूब पसंद किए जाते हैं.

विश्वनाथ चाट भंडार

अगर आप कुल्हड़ में चाट का स्वाद लेना चाहती हैं तो यहां आ सकती हैं.  यहां आपको अलग-अलग वैरायटी में चाट और कई स्ट्रीट फूड मिल जाएंगे.  हालांकि बनारसी समय के पाबंद नहीं होते हैं, ऐसे में वह खाते वक्त पूरा जायका लेना पसंद करते हैं.  कुछ ऐसी ही दीवानगी आपको यहां देखने को मिल जाएगी.  इसलिए अगर आप चाट एक्सप्लोर करना चाहती हैं तो आपके पास अधिक समय होना चाहिए, क्योंकि यहां लगने वाली लाइन से आप परेशान भी हो सकती हैं.

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कचौड़ी गली

अलग-अलग स्ट्रीट फूड से भरपूर है, बनारस की  कचौड़ी गली.  कचौड़ी गली में मिलने वाले कई ऐसे पकवान है, जिसका स्वाद आपका दिल जीत लेंगे.  चाट के अलावा यहां ब्लू लस्सी भी काफी मशहूर है.  अगर आपको अपने डेली रूटीन में किसी एक दिन ऑयली और चटपटा  खाना खाने का मन करे तो कचौड़ी गली जरूर घूम आएं.  कहते है की, बनारसी जिस दिन घर का खाना खाने से बोर हो जाते हैं तो वह ब्रेकफास्ट, लन्च और डिनर तीनों कचौड़ी गली से खाना पसंद करते हैं.  इस गली में चाट और अन्य पकवानों को एक्सप्लोर करने के लिए सुबह-सुबह इस जगह पर जाएं.  आपको बता दें की बनारस की सैर  इस गली को घूमे बिना अधूरी रहेगी.

Travel Special: प्रकृति का अनमोल तोहफा है नेतरहाट

प्राकतिक सौंदर्य एवं खनिज संपदा से परिपूर्ण झारखंड राज्य के लातेहार जिले में समुद्र तल से 3,622 फीट ऊंचाई पर स्थित नेतरहाट का मौसम सालभर खुशनुमा रहता है. इसे प्रकृति का अनमोल तोहफा कहा जाता है, यही वजह है इस अनुपम स्थल को निहारने के लिए पर्यटक यहां खिंचे चले आते हैं. आने वाले पर्यटक प्रकृति के इस खूबसूरत स्थल को ‘नेचर हाट’ भी कहते हैं.

नेतरहाट को ‘छोटा नागपुर की रानी’ भी कहा जाता है. नेतरहाट शब्द की उत्पत्ति के विषय में कहा जाता है कि नेतुर (बांस) और हातु (हाट) मिलकर यह शब्द बना है. प्राचीन समय में यहां बांस का जंगल था, जिस कारण इसका नाम नेतरहाट पड़ गया. नेतरहाट पठार के निकट की पहाड़ियां सात पाट कहलाती हैं. यहां बिरहोर, उरांव और बिरजिया जाति के लोग निवास करते हैं.

रांची से करीब 160 किलोमीटर की दूरी पर स्थित नेतरहाट आने के लिए प्रतिदिन बसें चलती हैं. रांची से आने के दौरान नेतरहाट पहुंचने के 50 किलोमीटर पूर्व से ही पहाड़ियों पर बने टेढ़े-मेढ़े रास्तों पर किसी वाहन की सवारी आपको रोमांचित कर देगी.

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नेतरहाट पहुंचने के लिए घने जंगलों और पहाड़ियों से होकर गुजरना पड़ता है. बनारी गांव से एक सर्पीला रास्ता हमें वहां तक ले जाता है. इन रास्तों से गुजरते हुए कभी-कभी लोग भयभीत भी हो जाते हैं. रास्तेभर बांस, सेमल, पलाश, पइन, साल और अयर के पेड़ आपका स्वागत करते नजर आएंगे तो कचनार फूल की महक आपको तरोताजा करती रहेगी.

नेतरहाट आने वाले पर्यटक यहां के सूर्योदय और सूर्यास्त देखना नहीं भूलते. सूर्योदय के दौरान इंद्रधनुषी छटा को देखकर ऐसा लगता है कि हरी वादियों से एक रक्ताभ

गोला धीरे-धीरे ऊपर उठ रहा है. इस क्षण प्रकृति का कण-कण सप्तरंगी हो जाता है और पर्यटक इस दृश्य को देखकर सहसा कह उठते हैं- अद्भुत!

सूर्यास्त देखने के लिए लोग नेतरहाट से 10 किलोमीटर दूर मैगनोलिया प्वाइंट जाते हैं.

पर्यटक यहां का प्रसिद्ध नेतरहाट आवासीय विद्यालय भी देखने आते हैं. इस विद्यालय की स्थापना इंडियन पब्लिक स्कूल कान्फ्रेंस के संस्थापक सदस्य एफ .जे. पायर्स ने वर्ष 1951 में किया था. यह विद्यालय गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए विख्यात है.

पर्यटक पहाड़ी से उतरती कोयल नदी की बलखाती लहरों के नयनाभिराम दृश्य देखने के लिए कोयल व्यू-प्वांइट पर पहुंचते हैं. नेतरहाट से 35 किलोमीटर दूर शंख नदी पर सदनी जल प्रपात एक महत्वपूर्ण पिकनिक स्थल है तो नेतरहाट से 65 किलोमीटर दूर लोध जलप्रपात भी है.

यदि जंगल-पहाड़ होते हुए पैदल जाएं तो 16 किलोमीटर की दूरी ही तय करनी पड़ती है. वैसे मैगनोलिया प्वाइंट से भी दूर पहाड़ों से गिरती लोधा जलप्रपात के पानी की तीन पतली धाराएं दिखती हैं. यह जलप्रपात 468 फीट की ऊंचाई से गिरती है.

यहां आने वाले पर्यटक ऊपरी घाघरी झरना और निचली घाघरी झरना भी देखना नहीं भूलते. झारखंड का दूसरा सबसे बड़ा जलप्रपात बरहा घाघ भी यहीं है, जो पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है.

यहां तीन से चार दिन रहकर प्रातिक छटा का लुत्फ पूरी तरह उठाया जा सकता है. यहां ठरहने के लिए वन विभाग के रेस्ट हाउस के अलावा विभिन्न श्रेणी के निजी रेस्ट हाउस भी उपलब्ध हैं.

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नेतरहाट आने के लिए रांची से गुमला होते भी एक मार्ग है और डालटनगंज या लातेहार से बेतला नेशनल पार्क और महुआडांड़ होते हुए भी यहां पहुंचा जा सकता है. प्रतिदिन पांच से छह बसें रांची और डालटनगंज से चलती हैं. अगर अपने वाहन से सैर करना चाहें तो कहना ही क्या!

अगर आप गर्मी की लंबी छुट्टी में किसी पर्यटन स्थल की सैर करना चाहते हैं तो नेतरहाट इसके लिए उत्तम स्थान हो सकता है.

बड़े शहरों की सस्ती लेकिन उम्दा मार्केट

जब भी आप कहीं घूमने जाते हैं तो बिना शॉपिंग आपकी ट्रिप अधूरी रहती है. शॉपिंग का असली मजा किसी मॉल में नहीं बल्कि शहर की लोकल और भीड़-भाड़ वाली मार्केट में होता है और यहां चीजें सही दामों पर मिल जाती हैं. यहां आपको शहर के कल्चर के बारे में भी बहुत कुछ पता चलता है. यहां जानिए कुछ बड़े शहरों की सस्ती लेकिन उम्दा मार्केट.

1. कोलाबा कॉजवे मार्केट, मुंबई

इस स्ट्रीट मार्केट में आपको किताबों से लेकर, हैंडीक्रॉफ्ट्स, कपड़ों और फुटवियर्स तक सबकी वैराइटी मिलेगी. यहां की सबसे खास बात है कि यहां ट्रेडिशनल और मार्डन दोनों ही तरह के कपड़ें अवेलेबल होते हैं.

2. सरोजिनी मार्केट, दिल्ली

दिल्ली यूं तो काफी मंहगी जगह है लेकिन यहां स्ट्रीट शॉपिंग काफी सस्ती है. यहां कम बजट के बावजूद आप दिल खोलकर शॉपिंग कर सकते हैं. इंडियन से लेकर वेस्टर्न कपड़े तक मिल जाते हैं.

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3. लाड बाजार, हैदराबाद

हैदराबाद का मोती मशहूर है. हैदराबाद के लाड बाजार पर्ल से लेकर बैंगल, ज्वैलरी और कपड़ों तक की शॉपिंग के लिए जाना जाता है लाड बाजार. शायद ही ऐसी कोई चीज है जो यहां न मिलती हो.

4. जोहरी बाजार, जयपुर

राजस्थान हैंडीक्राफ्ट के लिए जाना जाता. जयपुर के जोहरी बाजार सोने और चांदी की ज्वैलरी के लिए काफी फेमस हैं. इतना ही नहीं यहां के मार्केट में सस्ते दामों पर ज्वैलरी के साथ-साथ महंगी-महंगी साड़ियां और लहंगे भी लोग किराये पर ले जाते हैं.

5. गरियाहाट मार्केट, कोलकाता

कोलकाता की इस मशहूर मार्केट में कपड़े, ज्वैलरी, इलेक्ट्रॉनिक्स, साड़ियों, फर्नीचर सब मौजूद है. यहां सड़क के दोनों ओर दुकानों सजी रहती हैं.

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Travel Special: चलिए बावड़ियों के गांव आभानेरी

आभानेरी राजस्थान का एक प्रसिद्ध गांव है, जिसे बावड़ियों का गांव भी कहा जाता है. यहां विश्व की सबसे बड़ी बावड़ी के साथ कई छोटी-छोटी अन्य बावड़ियां भी हैं. इन बावड़ियों के साथ आभानेरी का हर्षत माता मंदिर भी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है. आभानेरी गांव का नाम आभा नगरी(चमकने वाला शहर) था, लेकिन धीरे-धीरे भाषा की तोड़ मरोड़ से इसका नाम आभानेरी पड़ गया.

आभानेरी के ये दोनों ही आकर्षण के केंद्र वास्तुकला के अद्भुत नमूने हैं. प्राचीन काल में वास्तुविदों और नागरिकों द्वारा जल संरक्षण के लिए बनाई गई इस प्रकार की कई बावड़ियां इस क्षेत्र में मौजूद हैं, जिनमें काफी पानी जमा रहता है और जो क्षेत्र के निवासियों के काम आता है. चांद बावड़ी इन सभी बावड़ियों में सबसे बड़ी और लोकप्रिय है.

विश्व की सबसे बड़ी बावड़ी, चांद बावड़ी

विश्व की सबसे बड़ी बावड़ी चाँद बावड़ी का निर्माण राजा चांद ने 8वीं या 9वीं शताब्दी में कराया था. इसे ‘अंधेरे उजाले की बावड़ी’ भी कहा जाता है. चांदनी रात में यह बावड़ी एकदम सफेद दिखायी देती है. बावड़ी के तह तक पहुंचने के लिए लगभग 1300 सीढ़ियां बनाई गयीं हैं जो एक अद्भुत कला का उदाहरण है. भुलभुल्लैया जैसी बनी इन सीढ़ियों के बारे में कहा जाता है, कि कोई व्यक्ति जिस सीढ़ी से नीचे उतरता है वह वापस कभी उसी सीढ़ी से ऊपर नहीं आ पाता है. यह वर्गाकार बावड़ी चारों ओर स्तंभयुक्त बरामदों से घिरी हुई है.

इस बावड़ी में एक सुंरगनूमा गुफा भी है जो 17 किलोमीटर लंबी है. यह गुफा पास ही स्थित भंडारेज गांव में निकलती है. कहा जाता है कि कई सालों पहले एक बारात इस गुफा के अंदर गयी जो दोबारा कभी वापस नहीं लौटी. कथानुसार कहा जाता है कि इस बावड़ी और इसके पास ही कुछ अन्य बावड़ियों को एक रात में ही बना कर तैयार किया गया था.

बावड़ी की सबसे निचली मंजिल पर बने दो ताखों में स्थित गणेश एवं महिषासुर मर्दिनी की भव्य प्रतिमाएं इसकी खूबसूरती में चार चांद लगा देती है. बावड़ी के एक शिलालेख में राजा चांद का भी उल्लेख किया गया है.

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यह वर्गाकार बावड़ी चारों तरफ से 35 मीटर चौड़ी है. ऊपर से नीचे तक पक्की बनी सीढ़ियों के कारण पानी का स्तर चाहे जो भी हो यहां हमेशा आसानी से पानी भरा जा सकता है. इस बावड़ी के पास ही स्थित हर्षत माता का मंदिर भी लोगों के लिए मुख्य आकर्षण का केंद्र है.

हर्षत माता मंदिर

चांद बावड़ी के पास ही स्थित हर्षत माता का मंदिर पत्थरों पर नक्काशी का एक बेजोड़ नमूना है. इस मंदिर पर कई विदेशी आक्रमण की वजह से यहां की प्रतिमाएं क्षत विक्षत पड़ी हैं. बताया जाता है कि 1021-26 के काल में मोहम्मद गजनवी ने इस मंदिर को तोड़ दिया तथा सभी मूर्तियों को खंडित कर दिया था.

10वीं शताब्दी में निर्मित इस मन्दिर में आज भी प्राचीन काल की वास्तुकला और मूर्तिकला के दर्शन होते हैं. आभानेरी की ये बावड़ियां और मंदिर इस जगह को एक विचित्र और चकित कर देने वाला पर्यटक स्थल बनाती हैं.

यह भी कहा जाता है कि चांद बावड़ी का निर्माण भूतों ने किया है, और जानबूझकर इसे इतनी गहरी और अत्यधिक सीढ़ियों वाली बनाई है कि यदि इसमें एक सिक्का उछाला जाये तो उसे वापस पाना लगभग असंभव है. आभानेरी में चांद बावड़ी और अन्य बावड़ियों के बीचोंबीच एक बड़ा गहरा तालाब है, जो इलाके को गर्मी के दिनों में भी ठण्डा रखता है.

बावड़ियों के इस नगर में वास्तुकला के नमूने और यहां की विशिष्टता देख आप दंग रह जाएंगे.

यहां पहुंचें कैसे?

आभानेरी नगर राजस्थान के दौसा जिले से करीब 33 किलोमीटर की दूरी पर है और जयपुर से लगभग 95 किलोमीटर की दूरी पर. जयपुर और दौसा से कई बसों की सुविधा यहां तक के लिए उपलब्ध हैं.

तो अपने अगले राजस्थान या जयपुर की यात्रा में विश्व की सबसे बड़ी बावड़ी चांद बावड़ी की यात्रा करना ना भूलें, जहां की वास्तुकला आपको अचंभित कर देगी.

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Budget Friendly है इन जगहों पर घूमना

भागती दौड़ती जिन्दगी में कई बार हम खुद को खोने लगते हैं. ऐसे में हमें खुद अपने लिए टाइम नहीं मिलता और न ही हमारे कल्पनायें उड़ान भर पाती हैं. अगर आप भी कुछ दिनों के लिए अपने आप को समय देना चाहते हैं तो आप भी हमारे लिस्ट में से कोई जगह सेलेक्ट करें और निकल जाइए जिन्दगी को एन्जॉय करने. सबसे खास बात ये है कि ये सारे ट्रिप्स आपके बजट में हैं, और आप 5000 रुपए में इन जगहों पर घूमने जा सकते हैं.

1.कसोल, हिमाचल प्रदेश

कसोल हिमाचल में आपको हिप्पी वाली फिलिंग आएगी. यहां आपको खूबसूरत वादियों के बीच गोवा जैसे बार और रेस्त्रां मिलेंगे. ये जगह दिल्ली से दूर है, पर आप केवल 800 रुपए के किराए में यहां पहुंच सकते हैं. ऊंची पहाड़ीयों और घनी वादियां से ज्यादा एक्साइटिंग और क्या होगा?

2. जयपुर, राजस्थान

राजस्थान के इस खूबसूरत शहर तक की यात्रा दिल्ली से बहुत आसान है. आप इस शहर में किसी भी होटल में ओवरनाइट स्टे कर सकते हैं. शहर घूमने के लिए आप किसी गाइड की मदद ले सकते हैं, जो महज 500 रुपए में आपको शहर घूमा देगा. खाने पीने के लिए 500 रुपए, और आपकी जेब में अब भी 2000 रुपए बचेंगे. कोई भी ऐतिहासिक जगह इससे सस्ती नहीं हो सकती.

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3. लैंसडाउन, उत्तराखण्ड

आधुनिकता के इस दौर में भी लैंसडाउन ने अपना खूबसूरती बरकरार रखी है. दिल्ली से यहां पहुंचने के लिए आप कोटद्वार तक की बस ले सकते हैं, यह लैंसडाउन से 50 किमी की दूरी पर है. उसके बाद लोकल बस लेकर शहर घूम सकते हैं, जिसमें 1000 रुपए से अधिक खर्च नहीं होंगे. ठहरने के लिए यहां बहुत से होटल हैं, जिसमें सबसे शानदार होटल भी 1500 से अधिक चार्ज नहीं करेंगे. आपके पास अभी भी 2500 रुपए बचे रहेंगे.

4. तवांग, अरुणाचल प्रदेश

यह खूबसूरत पहाड़ियों से घिरा एक रिलीजियस डेस्टिनेशन है. कमर्शियलाइजेशन से अछूता यह स्थान आपके लिए पॉकेट फ्रेंडली है. यहां आपको प्रकृति का मेजिक देखने को मिलेगा और होट्लस भी अधिक चार्ज नहीं करते.

5. ऋषिकेश,उत्तराखण्ड

ऋषिकेश और वहां कि रिवर राफटिंग के बारे में तो आपने सूना ही होगा. ये शहर आस्था और एडवेंचर दोनों का केन्द्र है. दिल्ली से बस से आसानी से ऋषिकेश पहुंचा जा सकता है. वन-वे बस फेयर 200 से शुरू होकर 1400 तक हो सकते हैं. ऋषिकेश में कई आश्रम हैं जहां आप 150 प्रतिदिन के हिसाब से आराम से रुक सकते हैं.

6. कसौली, हिमाचल प्रदेश

कसौली शिमला के पास एक छोटा सा हिल स्टेशन है. कसौली तक पहुंचने के लिए आप दिल्ली से काल्का तक की ट्रेन लें और फिर कसौली के लिए टैक्सी शेयर कर लें. इसमें अधिक से अधिक 1500 रुपए खर्च होंगे. कसौली में आपको 1000 या उससे भी कम में होटल मिल जायेंगे. इसके बाद घूमने फिरने के लिए भी आपके पास 2500 रुपए बच जायेंगे.

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7. मसूरी, उत्तराखण्ड

मसूरी शहर अपने में प्राकृतिक खूबसूरती के साथ-साथ ब्रिटिश-अधीन भारत का इतिहास भी बताता है. मसूरी तक पहुंचने का सबसे अच्छा रास्ता है एक रोड ट्रिप. इससे आप प्रकृति के सौंदर्य का मजा भी ले पायेंगे. ओवरनाइट स्टे करने के लिए आपको 600 तक अच्छा होटल मिल जाएगा.

8. बिन्सर, उत्तराखण्ड

दिल्ली से 9 घंटे की दूरी पर है बिन्सर. यह जगह अपने वाइल्ड लाइफ के लिए फेमस है. दिल्ली से काठगोदाम के लिए आप ट्रेन से सकते हैं. उसके बाद लोकल बस से आप बिन्सर पहुंच सकते हैं.

Travel Special: रंगीलो राजस्थान का दिल है जोधपुर

शानदार महलों, दुर्ग और मंदिरों के लिए विख्यात रंगीलो राजस्थान के दूसरे बड़े शहर जोधपुर की बात ही निराली है. पूरे शहर में बिखरे वैभवशाली महल, जो न सिर्फ यहां के ऐतिहासिक गौरव को जीवंत करते हैं, बल्कि यहां की हस्तकलाएं, लोक-नृत्य, पहनावे और संगीत शहर की समां को रंगीनियत से भर देते हैं…

जोधपुर के आसपास

जोधपुर से करीब 25 किमी. की दूरी पर गुडा बिश्नोई गांव वाइल्डलाइफ और प्रकृति की सुंदर छटा निहारने के लिए बेहतरीन स्थान है. ओसियन जोधपुर से लगभग 65 किमी.की दूरी पर स्थित एक प्राचीन शहर है. यह जैन शैली के मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है. यहां ऊंट की सवारी कर सकते हैं.

इसके अलावा, मछिया सफारी पार्क, कायलाना लेक भी दर्शनीय स्थल हैं. पाली में सोमनाथ और नौलखा मंदिर शिल्पकला के लिए मशहूर हैं. उर्स के दौरान मीर मस्तान की दरगाह मुख्य आकर्षण होता है.

जोधपुर शहर फोर्ट, पैलेस और मंदिरों के लिए दुनियाभर में मशहूर है, लेकिन एडवेंचर स्पोट्र्स और खाने-पीने के शौकीनों को भी यह शहर खूब आकर्षित करने लगा है.

रंग-बिरंगे परिधान में सजे लोग और उनकी मनमोहक लोक-नृत्य व संगीत इस शहर की समां में चार-चांद लगा देते हैं. यह राजस्थान के बीचोबीच स्थित है, इसलिए इसे राजस्थान का दिल भी कहा जाता है. राठौड़ वंश के प्रमुख राव जोधा ने इस शहर की स्थापना वर्ष 1459 में की थी. उन्हीं के नाम पर इस शहर का नाम जोधपुर है. यह शहर सन सिटी और ब्लू सिटी के नाम से भी मशहूर है. इसे सन सिटी इसलिए कहा जाता है, क्योंकि यहां की धूप काफी चमकीली होती है. वहीं, मेहरानगढ़ किले के आसपास नीले रंग से पेंट घरों के कारण इसे ब्लू सिटी के नाम से भी जाना जाता है.

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उमेद भवन पैलेस

जोधपुर जाने वाले पर्यटकों में उमेद भवन पैलेस के प्रति एक खास आकर्षण होता है. महाराजा उमेद सिंह (1929-1942) ने इसे बनवाया था. दरअसल, यह दुनिया के सबसे बड़े प्राइवेट रेजिडेंस में से एक है. इसमें तकरीबन 347 कमरे हैं.

महल की खासियत है कि इसे बलुआ पत्थरों से जोड़ कर बनाया गया था. इस बेजोड़ महल के वास्तुकार हेनरी वॉन थे. महल का एक हिस्सा हेरिटेज होटल में परिवर्तित कर दिया गया है, जबकि बाकी हिस्से को म्यूजियम का रूप दे दिया गया है, जिसमें राजघराने से जुड़ी वस्तुओं को प्रदर्शित किया गया है.

मेहरानगढ़ किला

जोधपुर जाएं, तो मेहरानगढ़ फोर्ट देखना न भूलें. करीब 150 मीटर ऊंचे टीले पर बना यह किला भारत के सबसे बड़े फोर्ट में से एक है. यहां से जोधपुर शहर का शानदार नजारा दिखाई देता है. इसका निर्माण राव जोधा ने 1459 में करवाया था. यहां पहुंचने के लिए घुमावदार रास्तों और पथरीले टीलों से होकर गुजरना होगा, लेकिन फोर्ट पहुंचने के बाद इसकी भव्यता देखते ही बनती है. इस किले में कई पोल यानी प्रवेशद्वार हैं, जिनमें जयपोल,फतहपोल और लोहपोल प्रमुख हैं.

किले में स्थित महलों को देखने के बाद आपको मेहरानगढ़ की भव्यता का एहसास होगा. उस दौर की राजशाही वस्तुओं व धरोहर भी यहां देखे जा सकते हैं. किले की प्राचीर पर आज भी तोपें रखी हैं. उस काल के अस्त्र-शस्त्र और पहनावे भी यहां देखे जा सकते हैं. यहां फूल महल, झांकी महल भी दर्शनीय हैं. अगर आपको एडवेंचर पसंद है, तो इस किले में जिप-लाइनिंग की व्यवस्था है.

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जसवंत थडा

मेहरानगढ़ किले से कुछ ही दूरी पर जसवंत थडा बेहद खूबसूरत स्मारक है. पहाड़ों से घिरे सफेद संगमरमर की बनी इस स्मारक की नक्काशी देखते ही बनती है. इसके पास ही एक झील है, जो चांदनी रात में स्मारक की खूबसूरती में चार चांद लगा देती है. यह जोधपुर राज परिवार के राठौड़ राजा-महाराजाओं का समाधि स्थल भी है.

मंडोर गार्डन

मारवाड़ के महाराजाओं की पहली राजधानी मंडोर थी. यह जोधपुर से करीब 5 मील की दूरी पर स्थित है. यह पर्यटकों को खूब आकर्षित करता है. यहां के दुर्ग देवल, देवताओं की राल, गार्डन, म्यूजियम, महल, अजीत पोल आदि दर्शनीय स्थल हैं. लाल पत्थर की बनी विशाल इमारतें स्थापत्य कला के बेजोड़ नमूने हैं. यहां एक हॉल ऑफ हीरोज भी है, जहां दीवारों पर देवी-देवताओं की आकृतियां तराशी गई हैं.

बालसमंद झील

फोर्ट और पैलेस के अलावा, बालसमंद झील भी दर्शनीय स्थल है. काफी पर्यटक यहां आते हैं. यह जोधपुर से करीब 5 किलोमीटर की दूरी पर है. इसे 1159 में बालाक राव परिहार ने बनवाया था. यह कृत्रिम झील है. तीन तरफ पहाड़ियों से घिरी यह झील उमेद भवन की खूबसूरती में चार चांद लगाती है.

कैसे और कब जाएं

जोधपुर शहर से 5 किमी. की दूरी पर घरेलू हवाई अड्डा है. यह शहर दिल्ली से साथ-साथ प्रमुख शहरों से सड़क और रेल मार्ग से जुड़ा है. जोधपुर की यात्रा के लिए सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च का महीना माना जाता है. जोधपुर और उसके आसपास के स्थान सुकून से देखने के लिए कम से कम 3-5 दिन का समय जरूर रखें.

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स्वाद और शॉपिंग

जोधपुर पहुंचने के बाद आप लोकल फूड का स्वाद लेना न भूलें. यहां का मिर्च बड़ा, समोसा, मावा कचौड़ी, प्याज की कचौड़ी, दाल-बाटी कोरमा, लाल मानस, गट्टे की सब्जी और मखनिया लस्सी सहित कई व्यंजन फूड लवर्स को लुभाते हैं. अगर बात शॉपिंग की करें, तो क्लॉक टावर के आसपास वाले मार्केट में खरीदारी कर सकते हैं. इसके अलावा, त्रिपोलिया बाजार, मोची बाजार, नई सड़क सोजाती गेट, स्टेशन रोड प्रमुख हैं.

यहां हस्तशिल्प, कपड़े, मसाले, ज्वैलरी, कढ़ाई वाले जूते, चमड़े की वस्तुएं आदि खरीद सकते हैं. यहां के लोग आज भी अपनी सांस्कृतिक विरासत को सहेजे हुए हैं. त्योहार, मेले और उत्सवों में यहां के नृत्य-संगीत समां बांध देते हैं. खासकर घूमर, तेरह थाली कालबेलिया, फायर डांस, कच्ची घोड़ी जैसे नृत्य लोगों को थिरकने पर मजबूर कर देते हैं. इनके पहनावों में भी कई रंग दिखता है.

पुरुष धोती पर एक अलग तरह की कमीज औरचटख रंग की गोल पगड़ी और पैरों में शानदार जूतियां पहनते हैं. महिलाएं रंग-बिरंगे लहंगे के साथ पारंपरिक गहनों से लदी होती हैं. खासतौर पर इनके सिर पर बोरला, गले में हार, हाथों में कड़े या कोहनी से ऊपर हाथी दांत का चूड़ा, पैरों में चांदी का कड़ा या खनकती पायल होती है. खास बात यह है कि यहां के लोग काफी मिलनसार होते हैं.

Travel Special: मौनसून में परफेक्ट हैं ये 5 डेस्टिनेशन

मॉनसून ने दस्तक दे दी है. ऐसे मौसम में प्रकृति की छटा देखने का हर किसी का मन होता है. आपका भी मन होगा कि इस सुहाने मौसम में रिमझिम-रिमझिम करती बारिश की बूंदों का मजा किसी ऐसी जगह पर जाकर लें, जहां कुदरत की सबसे ज्यादा मिठास हो. हम आपको पांच ऐसे मानसून ट्रेवल डेस्टिनेशन बताने जा रहे हैं, जहां जाकर आपको प्रकृति की खूबसूरती में खो जायेंगे.

1. लद्दाख:

प्रकृति ने धरती पर लद्दाख को बेमिसाल खूबसूरती बख्शी है. यहां जाने वाला हर कोई यहां की सुंदर वादियों से यह वादा करके वापस जाता है कि वह दोबारा फिर लद्दाख व लेह आएगा. सिंधु नदी के किनारे बसे लद्दाख की सुंदर झीलें, आसमान को छूती पहाड़ की चोटियां व मनमोहक मठ हर किसी को सम्मोहित करते हैं. मॉनसून के मौसम में इन जगहों का आकर्षण और ज्यादा बढ़ जाता है. अगर आप लद्दाख जाने का प्लान बना रहे हैं तो आपके लिए जून से अक्टूबर का महीना बेस्ट रहेगा.

2. मेघालय:

यदि आपको बारिश की फुहारें पसंद हैं तो आपके लिए मेघालय से अच्छी कोई जगह हो ही नही सकती. लगभग पूरे साल वर्षा होने की वजह से इस जगह को ‘बादलों का निवास स्थान’ भी कहते हैं. पृथ्वी के जहां सबसे ज्यादा नमी है तो वह मेघालय का चेरापुंजी है. जिसके नाम को सुनकर ही कई सैलानी इस खूबसूरत प्रदेश की ओर रुख करते रहे हैं. यहां के पेड़-पौधों व पुराने ब्रिजों पर टपकती बारिश की बूंदें आपका मन मोह लेगी.

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3. द वैली ऑफ फ्लावर नेशनल पार्क (उत्तराखंड):

मॉनसून के मौसम में द वैली ऑफ फ्लावर नेशनल पार्क का परिदृश्य आश्चर्यजनक तरीके से सजीव हो जाता है. ऐसे मौसम में जब आप पार्क के विभिन्न किस्मों के तीन सौ फूल देखेंगे तो आपकी आंखें खुली की खुली रह जाएंगी. यह दृश्य देखकर आपको लगेगा कि पार्क में कोई बड़ा चमकीला कारपेट बिछाया गया है. द वैली ऑफ फ्लावर नेशनल पार्क अप्रैल से अक्टूबर महीने तक खुला रहता है.

4. गोवा:

गोवा भारत का एक ऐसा टूरिस्ट स्पॉट है, जहां बारह महीने हलचल रहती है. यहां के समुद्री बीच और भव्य दृश्य हर तरह के सैलानियों को लुभाते हैं. ऐसे मौसम में यहां के गिरजाघरों की सुंदरता और ज्यादा बढ़ जाती है. अगर आप इस मौसम में गोवा जाने का प्लान बना रहे हैं तो आप वहां के वाइब्रेंट मानसून फेस्टिवल का भी मजा ले सकते हैं.

5. केरल:

नदियों व पर्वत-पहाड़ियों से घिरा हुआ एक अनोखा पर्यटन स्थल केरल हमेशा ही सैलानियों को अपनी और खींचता रहा है. वर्षा ऋतु के समय इस जगह का महत्व और ज्यादा बढ़ जाता है. केरल में मॉनसून सीजन को ड्रीम सीजन के नाम से भी जाना जाता है. आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट के लिए बड़ी संख्या में सैलानी इसी मौसम को चुनते हैं, क्योंकि इस समय बॉडी को उपयुक्त वातावरण मिलता है. ऐसे मौसम में आप वहां जाते हैं तो आपको आकर्षक ऑफर भी मिलेंगे.

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Travel Special: बरसात में देखें बुंदेलखंड का सौंदर्य

अगर आप उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड के प्राकृतिक सौंदर्य और ऐतिहासिक धरोहर को करीब से देखना चाहती हैं तो बुंदेलखंड में पर्यटन का आनंद मॉनसून में लें. बरसात में बुंदेलखंड का सौंदर्य और भी निखर उठता है. बरसात में यहां की नदियां पानी से भर जाती हैं और नदीयों में उठती लहरें बहुत खूबसूरत लगती हैं.

बरसात के दिनों में झांसी का किला, महोबा की वीर भूमि, चित्रकूट, कालिंजर किला, देवगढ़ और बरुवासागर घूमने के लिए अच्छी जगहें हैं.

झांसी का किला

मौनसून पर्यटन की शुरुआत झांसी से ही करें. रानी लक्ष्मीबाई का किला इस शहर की सब से खास घूमने वाली जगह है. 1857 में आजादी की लड़ाई में अंगरेजों ने जिस किले पर गोले बरसाए थे वह आज भी वैसा का वैसा खड़ा है. बंगरा कीपहाड़ियों पर बना यह किला 1610 में राजा वीर सिंह जूदेव द्वारा बनवाया गया था. 18वीं शताब्दी में झांसी और उस के किले पर मराठों का अधिकार हो गया था. मराठों के अंतिम शासक गंगाधर राव थे, जिनकी 1853 में मृत्यु हो गई थी. इस के बाद रानी लक्ष्मीबाई ने शासन की बागडोर संभाली.

झांसी का किला अपनी अद्भुत कला के लिए जाना जाता है. इस किले में ‘कड़क बिजली’ और ‘भवानी शंकर’ नामक 2 तोपें आज भी रानी लक्ष्मीबाई की वीरता का बखान करती नजर आती हैं.

कालिंजर का किला

झांसी के बाद कालिंजर का किला इतिहास की झलक दिखाता है. यह उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में बना है. चंदेल शासकों के द्वारा बनवाया गए इस किले मुगलों को हमेशा चुनौती दी. बड़ी मुश्किल से अकबर ने इसे जीतने में कामयाबी पाई थी. जीत के बाद अकबर ने इसे बीरबल को दे दिया था. उन के बाद यह किला राजा छत्रसाल के अधीन हो गया. यह किला चारों ओर से ऊंची दीवारों से घिरा था.

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आज भी 3 द्वार कामता द्वार, पन्ना द्वार और रीवां द्वार यहां जस के तस खड़े हैं. विंध्य की पहाड़ियों पर 700 फुट की ऊंचाई पर बने इस किले के अंदर शानदार राजा महल और रानी महल बने हैं. किले में ही नीलकंठ मंदिर बना है. इस के अलावा यहां वनखंडेश्वर महादेव मंदिर भी बना है.

कैसे पहुंचे?

रेल के जरीए कालिंजर पहुंचने के लिए अर्तरा रेलवे स्टेशन है, जो झांसी, बांदा इलाहाबाद रेल लाइन पर पडता है.

वायुमार्ग से आने वालों को यहां से 130 किलोमीटर दूर खजुराहो उतरना होगा. सड़क मार्ग से यहां आना हो तो चित्रकूट, बांदा, इलाहाबाद, सतना, छतरपुर और झांसी से बसें मिलती हैं.

महोबा

महोबा की वीर भूमि आपको रोमांच से भर देगी. महोबा का नाम यहां के रहने वाले आल्हा उदल की वीरतापूर्ण कहानियों के लिए मशहूर है. यहां चंदेल राजाओं का शासन था. चंदेल राजाओं के बाद परिहार राजाओं ने यहां शासन किया. आल्हा उदल यहां के प्रमुख लड़ाके थे. बरसात के दिनों में आज भी गांव-गांव में आल्हा उदल की लड़ाइयों के प्रसंग सुने और गाए जाते हैं. आल्हा गाने वाले लोकगायकों को सरकार की तरफ से प्रोत्साहन मिलता है.

गोरखगिरी पर्वत

गोरखगिरी पर्वत एक खूबसूरत पिकनिक स्पौट है. यहां का सूर्य मंदिर भी आपको बहुत अच्छे एक्सपीरियंस देगा. यह राहिला सागर के पश्चिम दिशा में स्थित है. महोबा से 61 किलोमीटर दूर खजुराहो का विश्वप्रसिद्ध मंदिर है. मौनसून पर्यटन के समय गोरखगिरी पर्वत का हराभरा सौंदर्य मन मोह लेता है.

चित्रकूट

चित्रकूट में आपको अद्भुत सुख और शांति का अनुभव होगा. यह उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सीमा पर स्थित है. 38 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में बसा चित्रकूट राम के नाम से मशहूर है. यहां वनवास के समय राम ने लंबा समय गुजारा था. इस कारण यहां उन की याद में आज भी तमाम जगहें बनी हैं.

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कैसे पहुंचे?

इलाहाबाद और खजुराहो यहां के करीबी एअरपोर्ट हैं.

रेलमार्ग से यहां पहुंचने वालों को चित्रकूट धाम स्टेशन उतरना होगा.

चित्रकूट में हनुमानधारा प्रमुख दर्शनीय जगह है. यहां पास ही जानकी कुंड और मंदाकिनी नदी का तट है. इस नदी पर 24 घाट बने हैं. चित्रकूट में उत्तर प्रदेश पर्यटक आवास गृह बना है. रामघाट पर शंकर का मंदिर बना है.

स्थानीय मान्यता है कि इसकी स्थापना राम ने ही की थी. चित्रकूट का सब से बड़ा आकर्षण कामदगिरी पर्वत है. यहां दीनदयाल शोध संस्थान भी है जहां प्राकृतिक चिकित्सा की जाती है. चित्रकूट के आसपास ही गुप्त गोदावरी, वाल्मीकि आश्रम, भरतकूप और शरभंग आश्रम जैसी जगहें भी देखने लायक हैं.

मुंबई के पास इन 6 हनीमून स्पॉट का उठाएं मजा

सालों पहले हनीमून पर जाना किसी नवविवाहित कपल्स के लिए जरुरी नहीं था, लेकिन समय के साथ-साथ इसमें परिवर्तन आया है.कपल्स आज देश-विदेश जाते है, क्योंकि अब ये एक ट्रेंड सा बन गया है. शादी की परम्पराएं पूरी करने के बाद सबसे पहले वे किसी ऐसे सुंदर और सुहाने जगह पर जाना पसंद करते है. जहाँ वे परिवार से दूर कुछ दिन इस नये रिश्ते को जान सकें, ऐसे में एक सही डेस्टिनेशनअगर मिल जाएँ, तो फिर क्या कहने, ताकि शादी-शुदा जोड़े ऐसे कुछ दिन साथ बिताने के अलावा एक रोमांचकारी परिवेश का अनुभव प्राप्त करें. मुंबई के आसपास कई ऐसे क्षेत्र है, जहाँ आप जा सकते है. आइये जाने 6 खूबसूरत हनीमून स्पॉट के बारें में, जहाँ आप अपने प्रियतम के साथ कुछ दिन प्यार भरे बिता सकते है.

1. महाबलेश्वर

हसीन वादियां और खुबसूरत मौसम, जो बिना कुछ कहे ही सबको आकर्षित करती है, ऐसी ही खुबसूरत वादियों से घिरा हुआ है, महाराष्ट्र के सतारा जिले का महाबलेश्वर हिल स्टेशन, जहाँ तापमान पूरे साल खुशनुमा रहता है. 1438 मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस पर्यटन स्थल को महाराष्ट्र के हिल स्टेशन की रानी कहा जाता है. दूर-दूर तक फैली पहाड़ियां और उन पर हरियाली की छटा देखते ही बनती है. मुंबई से 264 किमी दक्षिण-पूर्व और सतारा के पश्चिमोत्तर में सह्याद्री की पहाड़ियों में स्थित इस स्थान की एक झलक पाने के लिए पर्यटक साल भर लालायित रहते है. यहाँ अधिकतर नवविवाहित जोड़ी हनीमून के लिए आते है.

यहाँ देखने के लिए 30 से अधिक स्थल है, जिसे पर्यटक अपने बजट के हिसाब से घूमते है. यहाँ की जंगल, घाटियाँ, झरने और झीलें बहुत सुंदर है, थकान यहाँ आने से ही दूर हो जाते है. इसके अलावा यहाँ की ख़ास जगहें एल्फिस्टन, माजोरी, नाथकोट, बॉम्बे पार्लर, सावित्री पॉइंट, आर्थर पॉइंट, विल्स पॉइंट, हेलेन पॉइंट, लॉकविंग पॉइंट और फोकलेक पॉइंट काफी मशहूर है. महाबलेश्वर जाने पर प्रतापगढ़ का किला देखना बहुत जरूरी है, जो वहां से करीब 24 किलोमीटर की दूरी पर है. इसके अलावा यहाँ की स्ट्राबेरी बहुत प्रसिद्ध है. यहाँ रहने की अच्छी सुविधा है, जिसमें होटल, रिसोर्ट और बंगलो खास है, जिसे बजट के अनुसार बुक किया जा सकता है. यहाँ की रोड बहुत अच्छी बनी है, इसलिए यहाँ पहुँचने के लिए बस या कार की व्यवस्था अच्छी है. इसके अलावा हवाई मार्ग से भी जाया जा सकता है. नजदीकी एयरपोर्ट पुणे है वहां से कार लेकर 131 किलोमीटर की दूरी सड़क मार्ग से तय कर महाबलेश्वर जाया जा सकता है.

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2. पंचगनी

मुंबई से 250 किलोमीटर हरी-भरी, सुंदर वादियाँ और सह्याद्री की 5 पर्वत श्रृंखला से घिरी हुई पंचगनी पठार, फ्लैट टोप्ड ज्वालामुखी द्वारा निर्मित एशिया की दूसरी सबसे बड़ी पठार है. यह स्थान निश्चित रूप से शादी-शुदा जोड़े के लिए यादगार हनीमून स्पॉट है. यह सबसे प्राचीन हिल स्टेशन है. यहाँ प्राकृतिक सुन्दरता के अलावा ट्रेकिंग या हाईकिंग की समुचित व्यवस्था है. पुरानी कलाकृतियों के शौकीन जोड़े को ओल्ड पारसी और ब्रिटिश बंगलो की कारीगरी अच्छे लग सकते है, क्योंकि यहाँ अंग्रेज छुट्टियाँ बिताने आया करते थे. इसके अलावा प्रतापगढ़ फोर्ट, राजपुरी केव्स, वेन्ना लेक, पंचगनी वैक्स म्यूजियम आदि कई स्थान भी देखने लायक है.

यहाँ पर लोग कैम्पिंग का भी आनंद लेते है और रात को आकाश में तारों के समूह को देखना मनोहारी लगता है. पंचगनी में रहने की सुविधा बजट के आधार पर है. यहाँ लक्ज़री होटल्स, अपार्टमेंट्स, कॉटेजेस आदि आसानी से मिल जाते है. यहाँ के रास्ते बहुत अच्छे बने है, इसलिए कार, बस, ट्रेन आदि किसी से भी पंचगनी जाया जा सकता है. यहाँ भी स्ट्राबेरी की खेती की जाती है, इसलिए उससे जुड़े जैम, शर्बत, आइसक्रीम आदि बहुत अच्छी मिल जाती है. यहाँ की निवासियों द्वारा बनाई गयी, वाल हैंगिंग, सजावट की वस्तुएं और चप्पलों को भी पर्यटक खरीद कर ले जाते है.

3. माथेरान

मुंबई से 110 किलोमीटर दूर रायगढ़ जिले में स्थित माथेरान एक छोटा सा हिल स्टेशन है. यहाँ की प्राकृतिक खूबसूरती देखते ही बनती है.यह पश्चिमी घाट की पर्वत श्रृंखला में समुद्र तल से 800 मीटर ऊँचाई पर बसा हिल स्टेशन है.इसे ह्यूग मालेट ने 1850 में इसकी खोज की थी. माथेरान नवविवाहित जोड़े के लिए हनीमून की सबसे अच्छी जगह है.माथेरान में वाहन वर्जित है, इसलिए पैदल या घोड़े की सवारी ही यहाँ का मुख्य साधन है. इसलिए यहाँ की प्रदूषण रहित वातावरण, आकर्षक दृश्य, ठंडी हवा के झोंके, दूर तक फैली हरी-भरी घाटियाँ, उड़ते बादल और खूबसूरत पर्वत श्रृंखला में पहुँचते ही मंत्रमुग्ध हो जाना पड़ता है. मुंबई के आसपास से सभी यहाँ आते है.कोविड को ध्यान में रखते हुए, माथेरान को कोविड फ्री जोन बनाया गया है. यहाँ 95प्रतिशत लोगों ने कोविड की पहली डोज और 25 से 30 प्रतिशत लोगों को दूसरे डोज भी लगा ली है. इसके अलावा भीड़-भाड वाले जगहों पर थोड़ी-थोड़ी देर बाद सेनिटाईज भी किया जाता है.यहाँ रहने की उत्तम व्यवस्था है. यहाँ आने पर 4 से 5 दिन घूमने के लिए काफी होता है.

यहाँ आने के लिए कर्जत या नेरल आने के बाद गाड़ी से दस्तूरी नाका आना पड़ता है. वहां से एक-एक घंटे बाद 90 सीट्स की शटल ट्रेन अमन लॉज तक जाती है, जो सुबह 10 बजे से शुरू होकर शाम के 6 बजे तक 6 ट्रेन्स आती और जाती है. यहाँ देखने योग्य 38 पॉइंट्स और शार्लोट लेक है, जिसमें हनीमून पॉइंट, पैनोरमा पॉइंट, मंकी पॉइंट, लॉर्ड्स पॉइंट, हार्ट पॉइंट आदि है. यहाँ आने से पहले कोविड की गाइडलाइन्स फोलो करना जरुरी है. यहाँ से खरीदने योग्य चप्पल, चमड़े की पर्स, बेल्ट, जैम, चिक्की आदि है.

4. लोनावला

मुंबई से 96 किलोमीटर दूर लोनावला महाराष्ट्र के पूणे में स्थित एक पर्वतीय स्थल है. आज का लोनावला कभी यादव वंश का एक भाग था, मुगलों ने इसकी महत्ता को देखते हुए लम्बे समय तक अपने कब्जे में रखा था. उस समय लौहगढ़ फोर्ट को जीतने में मावला योद्धाओं ने मराठा साम्राज्यऔर पेशवाओं को काफी सहयोग दिया था. सन 1811 में लोनावला पर्वत श्रृंखला की खोज बोम्बे प्रेसीडेंसी के तत्कालीन गवर्नर लार्ड एल्फिन्स्टन ने की थी. इस पर्वत श्रृंखला पर सीरीज ऑफ़ केव्स है, जिसमें कार्ला केव्स, भजा केव्स और बेडसा केव्स प्रमुख है.लोनावला में हनीमून से लेकर फॅमिली वेकेशन, दोस्तों के साथ मस्ती सब किया जा सकता है. यह स्थान मानसून में एकदम खिल उठता है. इसे पश्चिमी घाट में झीलों का स्थान भी कहा जाता है. प्राकृतिक झरने, खूबसूरत घाटियाँ और ठंडी हवा इस क्षेत्र की खूबसूरती को बढाती है. यहाँ का बुशी डैम पिकनिक स्पॉट के तौर पर काफी लोकप्रिय है. इसके अलावा यहाँ देखने लायक लोनावला झील, तिगौती झील,पावना झील, लायंस पॉइंट, ऐतिहासिक किला लौहगढ़, तिकोना किला आदि है. लौहगढ़ किले पर ट्रेकिंग की सुविधा है. यहाँ जाकर रहना काफी सहज है, क्योंकि यहाँ रहने की होटल,रिसोर्ट, बंगलो बजट के अनुसार मिलता है. लोनावला की चिक्की ख़ास प्रसिद्ध है, जो मूंगफली, काजू, बादाम, तिल, पिस्ता, अखरोट आदि से बनाया जाता है. इसके अलावा यहाँ की ब्रिटल कैंडी भी काफी प्रसिद्ध है.

5. खंडाला

महाराष्ट्र के पश्चिमी घाट पर पर्वत श्रृंखला में स्थित खंडाला एक छोटी सी शांत हिल स्टेशन है. यहाँ की खूबसूरत घाटियाँ, आकर्षक पहाड़ियां, घास के मैदान, शांत झीलों, धुएं से भरी झरने हर किसी का मन मोह लेती है. यही वजह है कि हिंदी सिनेमा ‘गुलाम’ में आमिर खान ने ‘आती क्या खंडाला….गाने को यही शूट किया था. यह स्थान मुंबई से 122 किलोमीटर की दूरी पर है. यहाँ ट्रेन,कार या लक्ज़री बस से जाया जा सकता है. यह स्थान नवविवाहित जोड़े के लिए बहुत ही सुंदर स्थल है. खुबसूरत घाटियों के साथ सुंदर कलाकृति की वजह से पर्यटक के आने का आकर्षण रहा है.यहाँ ठहरने की उचित व्यवस्था है, जिसमें हॉलिडे होम, होटल, रिसोर्ट आदि है, इसे आप बजट के अनुसार बुक कर सकते है.

खंडाला में देखने योग्य कई स्पॉट है, मसलन राजमाची पॉइंट, कर्नाला पक्षी अभयारण्य,तुंगा किला,कुणे फॉल्स, खंडाला झील आदि. इसके अलावा बंजी जम्पिंग की भी सुविधा यहाँ पर है. यूथ अपने दोस्तों के साथ यहाँ ट्रेकिंग के लिए भी आते है. बंजी जम्पिंग में 10 साल से अधिक और 35 किलोग्राम से कम वजन के व्यक्ति को कूदने दिया जाता है. यह उन पर्यटकों के लिए खास है, जो साहसिक गतिविधियों को अधिक पसंद  करते है. इसके अलावाकुणे फॉल्स कुने नामक गांव के पास स्थित एक प्राकृतिक झरना है, जो 200 मीटर की ऊँचाई से नीचे गिरता है. यहाँ पर्यटक झरने में स्नान और तैरते हुए इसका आनंद लेते है. खंडाला में जैम और शर्बत की भरमार है, इसके अलावा यहाँ की चिक्की भी खास है. खंडाला घूमने का समय अक्तूबर से मई तक का है, क्योंकि मानसून में कई बार लैंडस्लाइड होने का डर रहता है, लेकिन प्रकृति प्रेमी और नवविवाहित जोड़े मानसून में भी खंडाला जाना पसंद करते है. यहाँ की बड़ा पाव, पारंपरिक महाराष्ट्रियन थाली प्रसिद्ध है.

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6. अलीबाग

महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले की कोंकण क्षेत्र में अरब सागर की समुद्र तट पर बसा एक सुंदर शहर है. यह स्थान तीन तरफ से समुद्र से घिरा हुआ है. व्यस्त जीवन शैली से निकलकर सुकून भरी समय बिताने की यह एक आकर्षक पर्यटन स्थल है. नवविवाहित कपल्स के लिए यहाँ बहुत कुछ है,जहाँ पार्टनर के साथ क्वालिटी समय बिताया जा सकता है. सभी तटों पर नारियल और सुपारी की पेड़ होने की वजह से यह स्थान उष्ण कटिबंधीय समुद्र तट जैसा प्रतीत होता है. यहाँ का मौसम बहुत सुहावना होता है. तापमान 36 डिग्री सेल्सियस होती है.यहाँ की हवा प्रदूषण रहित और ताज़ी है, जिसकी वजह से यहाँ आने वाले व्यक्ति को ये स्थान स्वर्ग के जैसा प्रतीत होता है. यहाँ का कोलाबा किला छत्रपति शिवाजी महाराज द्वारा बनाया गया है. यहाँ पर समुद्र की रेत कही काली तो कही सफ़ेद दिखाई पड़ती है, दूर तक समुद्र ही समुद्र दिखाई पड़ती है, ऐसे में अपने प्यार के साथ समय बिताना भला किसे पसंद नहीं होगा.

यह स्थान मुंबई से 30 किलोमीटर की दूरी पर है, जिसे रेल, बस या समुद्री पथ से जाया जा सकता है. यहाँ दर्शनीय स्थल, जैसेडूबते सूरज को देखना, समुद्र के पानी में मस्ती करना,अलीबाग बीच, किहीम बीच, अक्षई बीच,नागाओन बीच, कनकेश्वर वन, जंजीरा किला आदि कई है. इसके अलावा यहाँ कई गुफाएं भी है, जो प्राचीन कलाकृतियों का अद्भुत संगम की धरोहर है. यहाँ होटल, रिसोर्ट और अपार्टमेंट बजट के अनुसार मिल जाते है. समुद्र तट पर होने की वजह से यहाँ की मछलियाँ खास है. इससे बनी कई डिशेज का आनंद भी यहाँ लिया जा सकता है.

खूबसूरती का खजाना है अंडमान निकोबार

कश्मीर के बारे में कहा जाता है कि अगर धरती पर कहीं स्वर्ग है तो यहीं है, यहीं है, यहीं है. ठीक वैसे ही अगर पूछा जाए कि समुद्र के बीच प्रकृति का स्वर्ग कहां है तो सभी यही कहेंगे कि अंडमान निकोबार द्वीपसमूह में. बंगाल की खाड़ी में म्यांमार के दक्षिणी ओर से एकदम दक्षिण इंडोनेशिया के क्षेत्र तक मोतियों की माला की लडि़यों की तरह फैले हुए हैं अंडमान निकोबार के द्वीपसमूह. उत्तर से दक्षिण तक अंडमान निकोबार की समुद्री तटीय लंबाई 1912 किलोमीटर है और इस का क्षेत्रफल 8249 किलोमीटर है. अंडमान निकोबार द्वीपसमूह 572 छोटेबड़े द्वीपों से मिल कर बना है, जिन में केवल 37 द्वीपों में ही मानव आबादी है. शेष जंगलों से आच्छादित हैं. यहां की जलवायु उष्णकटिबंधीय है. वर्ष भर निम्न तापमान 23 डिग्री सैल्सियस और उच्चतम 30 डिग्री सैल्सियस रहता है. आर्द्रर्ता 70 से 90% और वर्षा लगभग 3200 मिलीमीटर आंकी गई है.

सागर तट पर दूरदूर तक फैली रेत की मखमली चादर, सदाबहार हरियाली ओढ़े दुर्लभ पेड़पौधों से आच्छा दित वन, प्रदूषणरहित प्रकृति, मन को गुदगुदाती हर समय बहती मंदमंद बयार एवं मिलनसार लोग पर्यटकों को आकर्षित करते हैं. अंडमान आने के लिए पर्यटकों को अक्तूबर से मई तक का समय बेहतर रहता है. यहां वर्षा मई से सितंबर और नवंबर से जनवरी तक रहती है. अंडमान समुद्री एवं हवाई मार्ग द्वारा पहुंचा जा सकता है. समुद्री जहाज द्वारा चेन्नई, कोलकाता एवं विशाखापट्टनम से पहुंचा जा सकता है. टिकटों के लिए वहां के शिपिंग कौरपोरेशन के कार्यालय से संपर्क किया जा सकता है. हवाई मार्ग द्वारा दिल्ली, कोलकाता एवं चेन्नई से आया जा सकता है, पोर्टब्लेयर में उतर कर पर्यटकों को प्रशासन के पर्यटन विभाग से संपर्क करना होगा.

खाड़ी के इन द्वीपों को 2 हिस्सों में बांटा जा सकता है- उत्तरी द्वीप शृंखलाएं एवं दक्षिणी द्वीप शृंखलाएं. उत्तरी द्वीप शृंखलाओं में शामिल हैं- उत्तरी अंडमान, मध्य अंडमान एवं दक्षिण अंडमान. इन्हें समुद्री खाडि़यां अलग करती हैं. दक्षिणी द्वीप शृंखलाओं में शामिल हैं- निकोबार के द्वीप समूह जिन में पहले आता है- कार निकोबार. पर्यटकों के लिए यहां पहुंचना दुष्कर है. इस के प्रतिबंधित क्षेत्र होने के कारण सैलानी सरकार से अनुमति लिए बिना यहां नहीं आ सकते. 10 डिग्री चैनल इन दोनों द्वीपशृंखलाओं को अलग करता है. अंडमान की राजधानी पोर्टब्लेयर है. यहीं पर हवाईअड्डा एवं बंदरगाह स्थित है. पोर्टब्लेयर ही अंडमान के व्यापार का केंद्र है. यहां करोड़ों रुपयों का व्यापार होता है. हैवलौक द्वीप का राधानगर सागर तट एशिया में प्रसिद्ध है. उत्तरपूर्व में ही देश का एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी बैरन द्वीप स्थित है.

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एकदम दक्षिण छोर पर स्थित है ग्रेट निकोबार जिस का मुख्यालय कैंपबेल बे है. निकोबार द्वीप शृंखलाओं का प्रशासनिक मुख्यालय निकोबार नामक द्वीप है, जहां प्रशासन के कार्यालय स्थित हैं. 125 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले इस भूखंड में आदिवासी समुदाय वास करता है. यह जगह अपने सागर तटों एवं नरियल के पेड़ों की संपदा के लिए जानी जाती है.

राजधानी पोर्टब्लेयर के दर्शनीय स्थल

राजधानी पोर्टब्लेयर में उतरते ही पर्यटकों को शहर के आसपास के अनेक दर्शनीय स्थल देखने को मिलेंगे. दिशानिर्देश के लिए उन्हें प्रशासन के पर्यटन विभाग से संपर्क करना होगा. इस में सब से प्रमुख है चाथम द्वीप. यह एक छोटा सा टापू है, जो पोर्टब्लेयर से एक पक्के पुल द्वारा जुड़ा हुआ है. इसी द्वीप पर 10 मार्च, 1858 को 1857 के 200 विद्रोही सिपाहियों को लाया गया था. यह एक पुराना बंदरगाह भी है. पहले जहाज यही पर रुकते थे और यहां से छूटते थे. अब जहाजों के आने व ठहरने के लिए चाथम के पश्चिम में नया घाट- हैडो वार्फ बन गया है. चाथम द्वीप पर एशिया की सब से बड़ी सरकारी आरा मिल स्थापित है. लकड़ी के बड़ेबड़े लट्ठों की कटाई यहां देखते ही बनती है, चाथम से एकडेढ़ किलोमीटर की दूरी पर ही है- हैडो मिनी चिडि़याघर. इस का आनंद लेने के बाद अब पर्यटकों को नौसेना द्वारा चलाया जा रहा म्यूजियम समुद्रिका भी जरूर देखना चाहिए. समुद्र के भीतर की रंगीन मछलियां, समुद्री सीपियां एवं कोरेल आप इस संग्रहालय में देख सकते हैं. यहां से लगभग डेढ़ किलोमीटर दूर मिडल पौइंट नामक स्थान पर भारतीय मानव विज्ञान संग्रहालय एक दर्शनीय म्यूजियम है. इसी संग्रहालय में द्वीपों में रह रही 5 आदिम जनजातियों के रहनसहन व जीवनयापन की विस्तृत जानकारी आप को मिल जाएगी. मिडल पौइंट नामक स्थल पर ही यहां के उद्योग विभाग द्वारा संचालित सागरिका म्यूजियम देखने लायक है. इस संग्रहालय में आप को सीपी, बेंत, बांस और लकड़ी की विभिन्न कला के नमूने देखने को मिलेंगे. समुद्री सीपियों से तैयार किए कई तरह के आभूषण एवं घरेलू सजावट का सामान आप यहां से खरीद सकते हैं.

सैल्युलर जेल

पोर्टब्लेयर उतर कर यदि आप ने सैल्युलर जेल नहीं देखा तो कुछ नहीं देखा. यह जेल पोर्टब्लेयर के अबेरदीन बाजार से कुछ ही दूरी पर स्थित है. इस का निर्माण 1886 में शुरू हुआ था और 1906 में बन कर तैयार हुआ. शुरू में इस की 7 भुजाएं थीं और 698 कोठरियां थीं. अब 3 भुजाएं ही रह गई हैं. आजादी के दीवानों को इन कोठरियों में कैद में रखा जाता था. यहीं पर उन्होंने ब्रिटिश सरकार की तरहतरह की यातनाएं सही थीं. अब इसे भारत सरकार ने राष्ट्रीय स्मारक (नैशनल मैमोरियल) घोषित कर दिया है. इसी के प्रांगण में ध्वनि एवं प्रकाश का एक विशेष कार्यक्रम दिखाया जाता है. यह कार्यक्रम इस जेल के इतिहास एवं क्रांतिकारियों के जीवन पर आधारित है. दर्शकों को यह अतीत की एक रोमांचकारी दुनिया में ले जाता है. इस के लिए टिकट खरीदना होता है. सैल्युलर जेल से थोड़ी ही दूरी पर सागर तट से लगा है- मैरिना पार्क, जो नगर का एकमात्र सुंदर पार्क है. यहां शाम को लोगों का मेला लगता है. सागर की ठंडी हवा का यहां आनंद लिया जा सकता है. पोर्टब्लेयर के पास ही एक छोटा सा रास द्वीप है. यहीं पर 1858 से 1941 तक ब्रिटिश सरकार का मुख्यालय था. आज भी यहां उस समय के गिरजाघर, मुख्यायुक्त का बंगला, अस्पताल, बाजार, मंदिर आदि के खंडहर देखने को मिलते हैं. इस द्वीप के लिए अबेरदीन जेटी से बोट की सेवा उपलब्ध है.

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