चावल एक ऐसा अनाज है जो भारतीय भोजन में बहुतायत से खाया जाता है. मालवा, और दक्षिण भारत जैसे प्रान्तों में तो चावल ही प्रमुख भोजन के रूप में खाया जाता है. चावल से खीर, इडली, डोसा, पुलाव और खिचड़ी जैसे अनेकों व्यंजन बनाये जाते हैं. आमतौर पर यह रंग में सफेद होता है परन्तु आजकल ब्राउन राइस का चलन भी जोरों पर है जो केमिकल रहित और रंग में भूरा होता है. चावल में कार्बोहाइड्रेट, विटामिन बी, मैगनीज, फॉस्फोरस, आयरन और फैटी एसिड पाए जाते हैं. यद्यपि भूरे चावल की अपेक्षा सफेद चावल की पौष्टिकता कुछ कम होती है परन्तु अधिकांशतया भारतीय भोजन में सफेद चावल का ही प्रयोग किया जाता है.
चावल जल्दी पचने वाला भोजन है इसलिए गर्मियों में इसका सेवन लाभदायक होता है. आज हम आपको चावल की एक रेसिपी बता रहे हैं जो गर्मियों में खाने के लिए बहुत उत्तम है. इसमें सब्जियां और दही के प्रयोग करने से इसकी पौष्टिकता भी दोगुनी हो जाती है. इसे आप फ्रिज में रखकर ठंडा भी खा सकतीं हैं साथ ही यह जल्दी खराब भी नहीं होती अतः आप सफर पर जाते समय भी एयरटाइट जार में भरकर ले जा सकतीं हैं. तो आइए देखते हैं कि इसे कैसे बनाया जाता है-
कर्ड वेज राइस
सामग्री
चावल 1 कटोरी
दही डेढ़ कटोरी
पानी 1/2 कटोरी
नमक 1/2 टीस्पून
घी 1 टीस्पून
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तेजपात पत्ता 2
बड़ी इलायची 2
सामग्री फ्राई करने के लिए
घी 2 टेबलस्पून
जीरा 1/4 टीस्पून
लम्बा कटा प्याज 1
लम्बी कटी शिमला मिर्च 1
लम्बी कटी बीन्स 1/4 कप
लम्बी कटी गाजर 1/4 कप
मूंगफली दाना 1 टेबलस्पून
खड़ी लाल मिर्च 2
राई 1/4 टीस्पून
मीठा नीम 1 टीस्पून
बीच से कटी हरी मिर्च 2
नमक 1/4 टीस्पून
बारीक कटा हरा धनिया 1/4 टीस्पून
विधि
चावलों को धोकर आधे घण्टे के लिए रख दें. दही और पानी को एकसाथ फेंट लें. फेंटे दही में चावल, नमक, तेजपात पत्ता, इलायची और घी डालकर तेज आंच पर प्रेशर कुकर में एक सीटी लेकर पका लें. गैस से उतारकर प्रेशर निकाल दें. अब एक पैन में घी गरम करके मीठा नीम, साबुत लाल व कटी हरी मिर्च, जीरा व राई तड़काकर प्याज व सभी सब्जियां सॉते करें. उबले चावल व भुनी मूंगफली दाना डालकर चलाएं. हरा धनिया डालकर सर्व करें. ध्यान रखे कि चावलों को दही और पानी से बनी छाछ में ही पकाना है.
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कोविड -19 महामारी ने प्रत्येक माता-पिता को, बच्चों को उचित शिक्षा प्रदान करने के लिए वैकल्पिक रास्ते तलाशने के लिए मजबूर किया है. ऐसे हालातों में घर पर रहकर ही बच्चों को सही शिक्षा उपलब्ध कराना ही एकमात्र विकल्प रह गया है. इस परिदृश्य में एक मां ही है जो बच्चे के शुरूआती और बाद के जीवन में बतौर शिक्षक की भूमिका निभाने में महत्वपूर्ण भागीदारी कर सकती है. इसका एक कारण यह भी है कि ज्यादातर यह देखा जाता है कि मां अपने बच्चों की शिक्षा के अच्छे और चुनौतीपूर्ण पहलुओं को समझने के लिए हमेशा तत्पर रहती है.
बच्चे के जन्म लेने के साथ ही माँ उसकी देखभाल करना शुरू कर देती है, जिससे उन्हें बच्चों की भविष्य में सीखने की शैली को पहचानने में मदद मिलती है. इसी बात को ध्यान में रखते हुए यहां हम घरेलू शिक्षा में मां की भूमिका को निम्न बिंदुओं के माध्यम से देखने जा रहे हैं.
1. एक शेड्यूल बनाएं और उसका पालन करें-
सभी युवा माताएं अपने बच्चों के साथ मिलकर उन सभी चीजों की सूची बनाएं, जिन्हें वे अगले कुछ हफ्तों तक करना चाहते हैं. अंत में, माँ और बच्चे के पास टाइम—टेबल तैयार होगा, जो शारीरिक गतिविधि, स्क्रीन समय, बोर्ड गेम, भरपूर नींद, मनोरंजन और परिवार के साथ अंतर्संबंधों से भरा होगा. घरेलू शिक्षा के लिए यह चुनौतीपूर्ण है, जिसे एक मां और बच्चे द्वारा मिलकर पूरा किया जाना होता है. ऐसे में एक गार्डनर की ‘थ्योरी ऑफ मल्टीपल इंटेलिजेंस’ को ध्यान में रखा जाना बेहद जरूरी है, जो बच्चों की बुद्धिमत्ता को आगे बढ़ाने में सहायक सिद्ध होती है. इस सिद्धांत में बताया गया है कि मानव बुद्धि का प्रयोग कई तरह से होता है, जैसे संगीत, अंतर्व्यैक्तिक, स्थानिक—दृश्य, भाषाई ज्ञान आदि.
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2. पर्याप्त गतिविधियाँ करें-
माताएँ अपने बच्चों को ऐसी गतिविधियों में शामिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, जो उन्हें सीखने और उनके मानसिक—शारीरिक विकास में महत्वपूर्ण सहयोग प्रदान करती है. सारे दिन के दौरान ऐसी गातिविधियां संचालित होना आवश्यक हैं, जो बच्चा स्वयं कर सके, क्योंकि माताओं को भी स्वयं के काम के लिए या कुछ आराम हेतु समय निकालना जरूरी होता है. यह जरूरी नहीं कि बिल्कुल टाइम—टेबल के अनुसार ही कार्यों को किया जाए. यदि किसी भी समय माँ को गतिविधियों में नीरसता का एहसास हो, या लगे बच्चा ठीक से सीख नहीं रहा है तो गतिविधियों को सरसता और बच्चे की रूचि के अनुसार बदला भी जा सकता है. सबसे ज्यादा जरूरी यह है कि दैनिक गतिविधियां ऐसी हो कि बच्चा और मां सीखने के साथ ही गतिविधियों का पर्याप्त रूप से आनंद भी ले सकें.
3. बच्चे के स्क्रीन टाइम को संतुलित करें-
आज की सबसे बड़ी वास्तविकता यह है कि हमारे बच्चों का पूरा जीवन ऑनलाइन हो गया है. हम टेलीविजन, लैपटॉप, फोन या टैबलेट आदि से घिरे हुए हैं, हम इनसे कहीं दूर नहीं जा सकते. लेकिन हम तकनीकी मोह को कम कर सकते हैं. यदि हम ऐसा कर लेते हैं तो हम देखेंगे कि स्वत: ही बच्चों का स्क्रीन टाइम संतुलित होने लगा है.
4. बच्चों को दोस्त बनाने में मदद करें-
बच्चों का अकेलापन दूर करने में माताओं की भूमिका महत्वपूर्ण होती है. इसलिए जरूरी है कि माताएं बच्चों को नये दोस्त बनाने में मदद करें. ऐसा तब संभव हो पाता है जब बच्चे को हॉबी क्लासेस, आर्ट क्लासेस और एक्टिविटी क्लब जैसी गतिविधियों में शामिल किया जाता है. इससे उसे दोस्त बनाने के लिए प्रोत्साहन प्राप्त होता है.
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5. बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को समझना-
बच्चे अक्सर अपने माता—पिता से ही सीखते हैं. किस तरह उनके माता—पिता विविध परिस्थितियों में व्यवहार करते हैं. यह बच्चों पर बहुत असर करता है. आनलाइन कक्षाओं के दौरान बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को समझना माता—पिता के लिए कठिन होता है. इसलिए यह आवश्यक है कि माता—पिता अपने बच्चे को उसकी भावनाएं व्यक्त करने के लिए प्रोत्साहित करें. ऐसा बच्चो में उनकी रूचि के प्रति प्रोत्साहित करके और डीप ब्रीदिंग, मेडिटेशन का कौशल सिखाकर किया जा सकता है.
डॉ. पल्लवी राव चतुर्वेदी ,’गेट—सेट—पैरेंट विद पल्लवी’ की संस्थापक ,अर्ली चाइल्डहुड एसोसिएशन की उपाध्यक्ष से बातचीत पर आधारित..
अगर आप आम के शौकीन हैं तो घर पर शेक या स्मूदी बनाने की बजाय आम की खीर ट्राय करें. ये रेसिपी हेल्दी के साथ-साथ टेस्टी रेसिपी है.
सामग्री
– पका आम (½ कप बारीक कटा हुआ)
– छोटा चावल ( ¼ कप भिगोकर लिया हुआ)
– चीनी (½ कप)
– इलायची पाउडर ( ¼ छोटी चम्मच)
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– काजू ( 8 से 10)
– बादाम ( 8 से 10)
– फूल क्रीम दूध (1 लीटर)
– पका आम (1 कप पल्प)
बनाने की विधि
– किसी बड़े बर्तन में दूध उबालने के लिए गैस पर रख दीजिए. इसी बीच, काजू को थोड़ा मोटा-मोटा और बादाम को पतला-पतला काटकर तैयार कर लें.
– दूध में उबाल आने पर गैस धीमा कर दीजिए और दूध में चावल डाल दीजिए.
– इन्हें थोड़ी-थोड़ी देर में चलाते हुए पका लें.
– दूध के अच्छे से गाढ़ा हो जाने, चावल दूध में पक जाने पर इसमें थोड़े से कटे हुए काजू और बादाम डाल कर मिक्स कर दें.
– और खीर को चलाते हुए 4-5 मिनिट पकने दीजिए.
– खीर के अच्छे से गाढी़ होने और चावल भी दूध में अच्छे से पक कर एकसार होने पर इसमें चीनी और इलायची पाउडर डालकर मिक्स कर दें.
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– खीर को एकदम धीमी आंच पर 1-2 मिनिट और पका लें. बाद में, गैस बंद कर दें.
– खीर को गैस पर से उतार कर जाली स्टैंड पर रख दीजिए और खीर को थोड़ा ठंडा होने दीजिए.
– खीर के थोड़ा ठंडा हो जाने पर इसमें आम का पल्प डालकर मिला दें.
– साथ ही बारीक कटे हुए आम के टुकड़े भी डाल कर मिक्स कर दीजिए.
– आम की खीर को प्लेट में निकाल लें. इसके ऊपर से काजू-बादाम और आम के टुकड़े डाल कर सजाएं.
मां को सब से अधिक परेशानी इस बात की थी कि परदेश में उन्हें हंसनेबोलने के लिए कोई संगीसाथी नहीं मिल पाता था, और अकेले कहीं जा कर किसी से अपना परिचय भी नहीं बढ़ा सकती थीं. शिकागो जैसे बड़े शहर में भारतीयों की कोई कमी तो नहीं थी, पर सुनील दंपती लोगों से कम ही मिलाजुला करते थे.
कभीकभी मां को वे मंदिर ले जाते थे. उन्हें वहां पूरा माहौल भारत का सा मिलता था. उस परिसर में घूमती हुई किसी भी बुजुर्ग स्त्री को देखते ही वे देर तक उन से बातें करने के लिए आतुर हो जातीं. वे चाहती थीं कि वे वहां बराबर जाया करें, पर यह भी कर सकना सुनील या उस की पत्नी के लिए संभव नहीं था. अपनी व्यस्तता के बीच तथा अपनी रुचि के प्रतिकूल सुनील के लिए सप्ताहदोसप्ताह में एक बार से अधिक मंदिर जाना संभव नहीं था और वह भी थोड़े समय के लिए.
कुछ ही समय में सुनील की मां को लगा कि अमेरिका में रहना भारी पड़ रहा है. उन्हें अपने उस घर की याद बहुत तेजी से व्यथित कर जाती जो कभी उन का एकदम अपना था, अपने पति का बनवाया हुआ. वे भूलती नहीं थीं कि अपने घर को बनवाने में उन्होंने खुद भी कितना परिश्रम किया था, निगरानी की थी और दुख झेले थे. और यह भी कि जब वह दोमंजिला मकान बन कर तैयार हो गया था तो उन्हें कितना अधिक गर्व हुआ था.
आज यदि उन के पति जीवित होते तो कहीं और किसी के साथ रहने या अमेरिका आने के चक्कर में उन्हें अपने उस घर को बेचना नहीं पड़ता. उन के हाथों से उन का एकमात्र जीवनाधार जाता रहा था. उन के मन में जबतब अपने उस घर को फिर से देखने और अपनी पुरानी यादों को फिर से जीने की लालसा तेज हो जाती.
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पर अमेरिका आने के बाद तो फिर से भारत जाने और अपने घर को देखने का कोई अवसर ही आता नहीं दिखता था. न तो सुनील को और न ही उस की पत्नी को भारत से कोई लगाव रह गया था या भारत में टूटते अपने सामाजिक संबंधों को फिर से जोड़ने की लालसा. तब सुनील की मां को लगता कि भारत ही नहीं छूटा, उन का सारा अतीत पीछे छूट गया था, सारा जीवन बिछुड़ गया था. यह बेचैनी उन को जबतब हृदय में शूल की तरह चुभा करती. उन्हें लगता कि वे अपनी छायामात्र बन कर रह गई हैं और जीतेजी किसी कुएं में ढकेल दी गई हैं. ऐसी हालत में उन का अमेरिका में रहना जेल में रहने से कम न था.
मां के मन में अतीत के प्रति यह लगाव सुनील को जबतब चिंतित करता. वह जानता था कि उन का यह भाव अतीत के प्रति नहीं, अपने अधिकार के न रहने के प्रति है. मकान को बेच कर जो भी पैसा आया था, जिस का मूल्य अमेरिकी डौलर में बहुत ही कम था, फिर भी उसे वे अपने पुराने चमड़े के बौक्स में इस तरह रखती थीं जैसे वह बहुत बड़ी पूंजी हो और जिसे वे अपने किसी भी बड़े काम के लिए निकाल सकती थीं. कम से कम भारत जाने के लिए वे कई बार कह चुकी थीं कि उन के पास अपना पैसा है, उन्हें बस किसी का साथ चाहिए था.
सुनील देखता था कि वे किस प्रकार घर का काम करने, विशेषकर खाना बनाने के लिए आगे बढ़ा करती थीं पर सुनील की पत्नी उन्हें ऐसा नहीं करने दे सकती थी. कहीं कुछ दुर्घटना घट जाती तो लेने के देने पड़ जाते. बिना इंश्योरैंस के सैकड़ों डौलर बैठेबिठाए फुंक जाते. तब भी, जबतब मां की अपनी विशेषज्ञता जोर पकड़ लेती और वे बहू से कह बैठतीं, यह ऐसे थोड़े बनता है, यह तो इस तरह बनता है. साफ था कि उस की पत्नी को उन से सीख लेने की कोई जरूरत नहीं रह गई थी.
सुनील की मां के लिए अमेरिका छोड़ना हर प्रकार सुखकर हो, ऐसी भी बात नहीं थी. अपने बेटे की नजदीकी ही नहीं, बल्कि सारी मुसीबतों के बावजूद उस की आंखों में चमकता अपनी मां के प्रति प्यार आंखों के बूढ़ी होने के बाद भी उन्हें साफ दिख जाता था. दूसरी ओर अमेरिका में रहने का दुख भी कम नहीं था. उन का जीवन अपने ही पर भार बन कर रह गया था.
अब जहां वे जा रही थीं वहां से पारिवारिक संबंध या स्नेह संबंध तो नाममात्र का था, यह तो एक व्यापारिक संबंध स्थापित होने जा रहा था. ऐसी स्थिति में शिवानी से महीनों तक उन का किसी प्रकार का स्नेहसंबंध नहीं हो पाया. जो केवल पैसे के लिए उन्हें रख रही हो उस से स्नेहसंबंध क्या?
उन का यह बरताव उन की अपनी और अपने बेटे की गौरवगाथा में ही नहीं, बल्कि दिनप्रतिदिन की सामान्य बातचीत में भी जाहिर हो जाता था. उस में मेरातेरा का भाव भरा होता था. यह एसी मेरे बेटे का है, यह फ्रिज मेरा है, यह आया मेरे बेटे के पैसे से रखी गई है, इसलिए मेरा काम पहले करेगी, इत्यादि.
शिवानी को यह सब सिर झुका कर स्वीकार करना पड़ता, कुछ नानी की उम्र का लिहाज कर के, कुछ अपनी दयनीय स्थिति को याद कर के और कुछ इस भार को स्वीकार करने की गलती का एहसास कर के.
मोबाइल की घंटी रात के 2 बजे फिर बज उठी. यह भी समय है फोन करने का? लेकिन होश आया, फोन जरूर मां की बीमारी की गंभीरता के कारण किया गया होगा. सुनील को डर लगा. फोन उठाना ही पड़ा. उधर से आवाज आई, ‘‘अंकल, नानी तो अपना होश खो बैठी हैं.’’
‘‘क्या मतलब, होश खो बैठी हैं? डाक्टर को बुलाया’’ सुनील ने चिंता जताई.
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‘‘डाक्टर ने कहा कि आखिरी वक्त आ गया है, अब कुछ नहीं होगा.’’
सुनील को लगा कि शिवानी अब उसे रांची आने को कहेगी, ‘‘शिवानी, तुम्हीं कुछ उपाय करो वहां. हमारा आना तो नहीं हो सकता. इतनी जल्दी वीजा मिलना, फिर हवाईजहाज का टिकट मिलना दोनों मुश्किल होगा.’’
‘‘हां अंकल, मैं समझती हूं. आप कैसे आ सकते हैं?’’ सुनील को लगा जैसे व्यंग्य का एक करारा तमाचा उस के मुंह पर पड़ा हो.
‘‘किसी दूसरे डाक्टर को भी बुला लो.’’
‘‘अंकल, अब कोई भी डाक्टर क्या करेगा?’’
‘‘पैसे हैं न काफी?’’
‘‘आप ने अभी तो पैसे भेजे थे. उस में सब हो जाएगा.’’
शिवानी की आवाज कांप रही थी, शायद वह रो रही थी. दोनों ओर से सांकेतिक भाषा का ही प्रयोग हो रहा था. कोई भी उस भयंकर शब्द को मुंह में लाना नहीं चाहता था. मोबाइल अचानक बंद हो गया. शायद कट गया था.
3 घंटे के बाद मोबाइल की घंटी बजी. सुनील बारबार के आघातों से बच कर एकबारगी ही अंतिम परिणाम सुनना चाहता था.
शिवानी थी, ‘‘अंकल, जान निकल नहीं रही है. शायद वे किसी को याद कर रही हैं या किसी को अंतिम क्षण में देखना चाहती हैं.’’
सुनील को जैसे पसीना आ गया, ‘‘शिवानी, पानी के घूंट डालो उन के मुंह में.’’
‘‘अंकल, मुंह में पानी नहीं जा रहा.’’ और वह सुबकती रही. फोन बंद हो गया.
सुबह होने से पहले घंटी फिर बजी. सुनील बेफिक्र हो गया कि इस बार वह जिस समाचार की प्रतीक्षा कर रहा था वही मिलेगा. अब किसी और अपराधबोध का सामना करने की चिंता उसे नहीं थी. उस ने बेफिक्री की सांस लेते हुए फोन उठाया और दूसरी तरफ से आवाज आई, ‘‘अंकल, नानीजी को मुक्ति मिल गई.’’ सुनील के कानों में शब्द गूंजने लगे, बोलना चाहता था लेकिन होंठ जैसे सिल गए थे.
नींबू की चटनी बहुत फायदेमंद होती है. इससे पेट और त्वचा की समस्याएं भी दूर होती है. नींबू की चटनी से विटामिन सी मिलता है. आप इसका नियमित रूप से भी सेवन कर सकती हैं. इसके सेवन से आपको ताजगी का एहसास होगा. आइए जानते हैं, नींबू की चटनी की रेसिपी.
हमें चाहिए
– जीरा (1 चम्मच)
– हींग (आधा चुटकी)
– काला नमक (दो चुटकी)
– नींबू (चार)
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– नमक (स्वादानुसार)
– लाल मिर्च (आधा चम्मच)
– शक्कर (आवश्यकतानुसार)
बनाने का तरीका
– नींबू के बीज निकालकर छोटे-छोटे टुकड़ों में काट लीजिए.
– अब इन टुकड़ों को मिक्सर के जार में डालें और इसमें सारी सामग्री डालकर पीस लें.
– नींबू की चटनी तैयार है.
– इस चटनी को आप खाने के साथ खा सकती हैं.
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वैसे वह रिटायर हो चुका था. यह नहीं कि इस बीच वह भारत गया ही नहीं. हर वर्ष वह भारत जाता रहा था किंतु कभी ऐसा जुगाड़ नहीं बन पाया कि वह मां से मिलने जाने की जहमत उठाता. कभी अपने काम से तो कभी पत्नी को भारतभ्रमण कराने के चलते. किंतु रांची जाने में जितनी तकलीफ उठानी पड़ती थी, उस के लिए वह समय ही नहीं निकाल पाता था. मां को या शिवानी को पता भी नहीं चल पाता कि वह इस बीच कभी भारत आया भी है.
अमेरिका से फोन करकर वह यह बताता रहता कि अभी वह बहुत व्यस्त है, छुट्टी मिलते ही मां से मिलने जरूर आएगा. और मन को हलका करने के लिए वह कुछ अधिक डौलर भेज देता केवल मां के ही लिए नहीं, शिवानी के बच्चों के लिए या खुद शिवानी और उस के पति के लिए भी. तब शिवानी संक्षेप में अपना आभार प्रकट करते हुए फोन पर कह देती कि वह उस की व्यस्तता को समझ सकती है. पता नहीं शिवानी के उस कथन में उसे क्या मिलता कि वह उस में आभार कम और व्यंग्य अधिक पाता था.
सुनील के अमेरिका जाने के बाद से उस की मां उस की बहन यानी अपनी बेटी सुषमा के पास वर्षों रहीं. सुनील के पिता पहले ही मर चुके थे. इस बीच सुनील अमेरिका में खुद को व्यवस्थित करने में लगा रहा. संघर्ष का समय खत्म हो जाने के बाद उस ने मां को अमेरिका नहीं बुलाया.
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बहन तथा बहनोई ने बारबार लिखा कि आप मां को अपने साथ ले जाइए पर सुनील इस के लिए कभी तैयार नहीं हुआ. उस के सामने 2 मुख्य बहाने थे, एक तो यह कि मां का वहां के समाज में मन नहीं लगेगा जैसा कि वहां अन्य बुजुर्ग व रिटायर्ड लोगों के साथ होता है और दूसरे, वहां इन की दवा या इलाज के लिए कोई मदद नहीं मिल सकती. हालांकि वह इस बात को दबा गया कि इस बीच वह उन के भारत रहतेरहते भी उन्हें ग्रीनकार्ड दिला सकता था और अमेरिका पहुंचने पर उन्हें सरकारी मदद भी मिल सकती थी.
एक बार जब वह सुषमा की बीमारी पर भारत आया तो बहन ने ही रोरो कर बताया कि मां के व्यवहार से उन के पति ही नहीं, उस के बच्चे भी तंग रहते हैं. अपनी बात यदि वह बेटी होने के कारण छोड़ भी दे तो भी वह उन लोगों की खातिर मां को अपने साथ नहीं रख सकती. दूसरी ओर मां का यह दृढ़ निश्चय था कि जब तक सुषमा ठीक नहीं हो जाती तब तक वे उसे छोड़ नहीं सकतीं.
सुनील ने अपने स्वार्थवश मां की हां में हां मिलाई. सुषमा कैंसर से पीडि़त थी. कभी भी उस का बुलावा आ सकता था. सुनील को उस स्थिति के लिए अपने को तैयार करना था.
सुषमा की मृत्यु पर सुनील भारत नहीं आ सका पर उस ने मां को जरूर अमेरिका बुलवा लिया अपने किसी संबंधी के साथ. अमेरिका में मां को सबकुछ बहुत बदलाबदला सा लगा. उन की निर्भरता बहुत बढ़ गई. बिना गाड़ी के कहीं जाया नहीं जा सकता था और गाड़ी उन का बेटा यानी सुनील चलाता था या बहू. घर में बंद, कोई सामाजिक प्राणी नहीं. बेटे को अपने काम के अलावा इधरउधर आनेजाने व काम करने की व्यस्तता लगी रहती थी. बहू पर घर के काम की जिम्मेदारी अधिक थी. यहां कोई कामवाली तो आती नहीं थी, घर की सफाई से ले कर बाहर के भी काम बहू संभालती थी.
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मां के लिए परेशानी की बात यह थी कि सुनील को कभीकभी घर के काम में अपनी पत्नी की सहायता करनी पड़ती थी. घर का मर्द घर में इस तरह काम करे, घर की सफाई करे, बरतन मांजे, कपड़े धोए, यह सब देख कर मां के जन्मजन्मांतर के संस्कार को चोट पहुंचती थी. सुनील के बारबार यह समझाने पर भी कि यहां अमेरिका में दाईनौकर की प्रथा नहीं है, और यहां सभी घरों में पतिपत्नी मिल कर घर के काम करते हैं, मां संतुष्ट नहीं होतीं.
मां को यही लगता कि उन की बहू ही उन के बेटे से रोज काम लिया करती है. सभी कामों में वे खुद हाथ बंटाना चाहतीं ताकि बेटे को वह सब नहीं करना पड़े, पर 85 साल की उम्र में उन पर कुछ छोड़ा नहीं जा सकता था. कहीं भूल से उन्हें चोट न लग जाए, घर में आग न लग जाए, वे गिर न पड़ें, इन आशंकाओं के मारे कोई उन्हें घर का काम नहीं करने देता था.
सुनील अपनी मां का इलाज करवाने में समर्थ नहीं था.
अमेरिका में कितने लोग सारा का सारा पैसा अपनी गांठ से लगा कर इलाज करवा सकते थे? मां ऐसी बातें सुन कर इस तरह चुप्पी साध लेती थीं जैसे उन्हें ये बातें तर्क या बहाना मात्र लगती हों. उन की आंखों में अविश्वास इस तरह तीखा हो कर छलक उठता था जिसे झेल न सकने के कारण, अपनी बात सही होने के बावजूद सुनील दूसरी तरफ देखने लग जाता था. उन की आंखें जैसे बोल पड़तीं कि क्या ऐसा कभी हो सकता है कि कोई सरकार अपने ही नागरिक की बूढ़ी मां के लिए कोई प्रबंध न करे. भारत जैसे गरीब देश में तो ऐसा होता ही नहीं, फिर अमेरिका जैसे संपन्न देश में ऐसा कैसे हो सकता था?
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सुनील के मन में वर्षों तक मां के लिए जो उपेक्षा भाव बना रहा था या उन्हें वह जो अपने पास अमेरिका बुलाने से कतराता रहा था शायद इस कारण ही उस में एक ऐसा अपराधबोध समा गया था कि वह अपनी सही बात भी उन से नहीं मनवा सकता था. कभीकभी वे रोंआसी हो कर यहां तक कह बैठती थीं कि दूसरे बच्चों का पेट काटकाट कर भी उन्होंने उसे डबल एमए कराया था और सुनील यह बिना कहे ही समझ जाता था कि वास्तव में वे कह रही हैं कि उस का बदला वह अब तक उन की उपेक्षा कर के देता रहा है जबकि उस की पाईपाई पर उन का हक पहले है और सब से ज्यादा है.
सुनील के सामने उन दिनों के वे दृश्य उभर आते जब वह कालेज की छुट्टियों में घर लौटता था और अपने मातापिता के साथ भाईबहनों को भी वह रूखासूखा खाना बिना किसी सब्जीतरकारी के खाते देखता था.
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वर्तमान कोरोना काल में हम सभी को हैल्दी डाइट अपने खानपान में शामिल करने की सलाह दी जा रही है. इसके अतिरिक्त आजकल लॉक डाउन भी चल रहा है जिससे बाहर से कुछ भी मंगाना सम्भव नहीं है. आज हम आपको घर में उपलब्ध सामग्री से ही एक ऐसी रेसिपी बनाना बता रहे हैं जिसमें एंटीऑक्सीडेंट, विटामिन्स, केल्शियम और प्रोटीन तो भरपूर मात्रा में है ही साथ ही इसे घर के सभी सदस्य स्वाद लेकर खाएंगे भी. पनीर की उपलब्धता न होने पर आप घर के दूध को नीबू के रस से फाड़कर प्रयोग कर सकतीं हैं. बच्चों को पौष्टिक चीजें खिलाना काफी मुश्किल होता है परन्तु इसका मैगी फ्लेवर बच्चों को बहुत पसंद आएगा. तो आइए जानते हैं कि इसे कैसे बनाते हैं-
कितने लोगों के लिए 6
बनने में लगने वाला समय 30 मिनट
मील टाइप वेज
सामग्री
मैदा 1 कप
गेहूं का आटा 1/2 कप
पनीर 250 ग्राम
बारीक कटा प्याज 1
बारीक कटी शिमला मिर्च 2
शेजवान सॉस 1 टीस्पून
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मैगी मसाला 1 टेबलस्पून
अमचूर पाउडर 1/2 टीस्पून
भुना जीरा पाउडर 1/4 टीस्पून
काला नमक 1/4 टीस्पून
काली मिर्च 1/4 टीस्पून
तेल 1 टेबलस्पून
विधि
मैदा और गेहूं को पानी की सहायता से रोटी जैसा गूंथकर आधे घण्टे के लिए ढककर रख दें. पनीर, प्याज और शिमला मिर्च को बारीक बारीक काट लें. 1/2 टीस्पून गर्म तेल में प्याज सॉते करके शिमला मिर्च और नमक डालकर ढक दें. 3-4 मिनट बाद खोलकर पनीर डाल कर चलाएं. अब मैगी मसाला, शेजवान सॉस तथा अन्य सभी मसाले डालकर खोलकर ही 3-4 मिनट रोस्ट करें ताकि पानी सूख जाए. गैस बंद करके ठंडा होने दें. मैदा में से रोटी के जैसी छोटी लोई लेकर पतली रोटी बेलकर तवे पर हल्की सी दोनों तरफ से सेंक लें. इसी प्रकार सारी रोटियां तैयार करें. अब 1 टेबलस्पून पानी में 1 टीस्पून मैदा डालकर चलाएं. तैयार रोटी के एक साइड में एक टेबलस्पून पनीर का मिश्रण रखकर चारों तरफ मैदा का घोल लगाएं. अब रोटी में भरावन को रोल करके उंगलियों से दबाकर चिपका दें. साइड से भी चिपका दें. इसी प्रकार सारे रैप तैयार करें. इन पर ब्रश से दोनों तरफ चिकनाई लगाएं और गर्म तवे पर एकदम धीमी आंच पर दोनों तरफ से सुनहरा होने तक सेंकें. बटर पेपर पर निकालकर टोमेटो सॉस के साथ सर्व करें.
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बौलीवुड में फिट रहने का ट्रैंड एक्ट्रैस शिल्पा शेट्टी कुंद्रा (Shilpa Shetty Kundra) से शुरू हुआ है. शिल्पा शेट्टी (Shilpa Shetty Kundra) दो बच्चों की मां हैं बावजूद इसके वह जितना अपनी बौडी को शेप में रखती हैं, उतनी ही फैशन के लिए ट्रैंड में बनी रहती है. चाहे घर के लिए हो, औफिस के लिए हो या शादी के लिए फैशन की जरूरत हर किसी को पड़ती है. ये आपके लुक को स्टाइलिश और ट्रैंडी बनाता है. वहीं अगर इंडियन लुक को ही वेस्टर्न लुक दे दिया जाए तो वह आपके लुक पर चार चांद लग जाएगा. जिसमें आपकी मदद शिल्पा शेट्टी (Shilpa Shetty Kundra) के ये फैशन टिप्स करेंगे. आइए आपको बताते हैं शिल्पा शेट्टी के मौर्टर्न और इंडियन लुक के कौम्बिनेशन…
1. शिल्पा का साड़ी का मौर्डर्न लुक करें ट्राई
अगर आप भी इंडियन लेकिन मौर्डर्न लुक ट्राई करना चाहती हैं, तो शिल्पा शेट्टी का ये लुक आपके लिए परफेक्ट रहेगा. औफ शोल्डर ब्लाउज विद अटैच रेड साड़ी आपके लुक को हौट और ट्रैंडी बना देगा.
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2. शिल्पा की तरह लहंगे को दें नया लुक
अगर आप किसी शादी का हिस्सा बनने जा रहीं हैं और लहंगा पहनने वाली हैं तो शिल्पा के इस लहंगे को देखकर अपने लहंगे को नया लुक देने की कोशिश करें. ये आपके लुक को सिंपल रखने के साथ ट्रैंडी भी बनाएगा.
3. शिल्पा की पिंक रफ्फल साड़ी भी करें ट्राई
साड़ी पहनना हर किसी को पसंद है, लेकिन साड़ी का कलर, पैटर्न कैसा हो उसका ध्यान रखना भी जरूरी है. इसमें शिल्पा शेट्टी का ये लुक आपकी मदद करेगा. सिंपल पिंक रफ्फल साड़ी के साथ फुल स्लीव ब्लाउज आपके लुक को ब्यूटीफुल बनाएगा.
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4. शिल्पा का पिंक गाउन भी है वेडिंग के लिए परफेक्ट
शादी या किसी पार्टी में जवान दिखना हर किसी की चाहत होती है. जिसके लिए आप मेकअप के साथ-साथ डिफरेंट कलर के कपड़े पहनना पसंद करती हैं. आप चाहें तो शिल्पा का ये पिंक गाउन किसी भी पार्टी के लिए चूज कर सकती हैं. ये आपके लुक को परफेक्ट लुक देगा.
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