मैं मायके चली जाऊंगी

उधर डोरबैल बजाने के बाद भी जब श्रीमतीजी ने दरवाजा नहीं खोला, तो हम ने गुस्से में आ कर दरवाजे को जोर से धकेल दिया. देखा तो वह खुला पड़ा था. सोचा कि श्रीमतीजी अंदर से बंद करना भूल गई होंगी. घर में घुसते ही हम ने इधरउधर नजर दौड़ाई. हमारी श्रीमतीजी हमें कहीं नजर नहीं आईं.

हम घबराए हुए सीधे बैडरूम में जा पहुंचे. वहां श्रीमतीजी अंधेरा किए बैड पर ऐसे फैली पड़ी थीं, जैसे किसी ने उन के कीमती जेवरों पर हाथ साफ कर दिए हों और अब उसी का गम मना रही हों.

हम ने जैसे ही कमरे की बत्ती जलाई, तो श्रीमतीजी ने गुस्से में मोटीमोटी लाललाल आंखें हमें दिखाईं, तो हम तुरंत समझ गए कि आज हमारी शामत आई है.

हम ने धीरे से श्रीमती से पूछा, ‘‘क्या तबीयत खराब है या मायके में कोई बीमार है?’’

वे गुस्से में फट पड़ीं, ‘‘खबरदार, जो मेरी या मेरे मायके वालों की तबीयत खराब होने की बात मुंह से निकाली.’’

श्रीमतीजी बालों को बांधते हुए बैडरूम से निकल कर ड्राइंगरूम में आ कर सोफे पर पसर गईं. हम भी अपने कपड़े बदल कर उन के पास आ कर बैठ गए. फिर उन के शब्दों के बाणों की बौछारें शुरू हो गईं, ‘‘शादी को अभी सालभर भी नहीं हुआ है और तुम ने मुझे इस फ्लैट की चारदीवारी में कैद कर दिया है. तुम न तो मुझे कभी फिल्म दिखाने ले जाते हो, न कहीं घुमाते हो और न ही किसी अच्छे से रैस्टोरैंट में खाना खिलाते हो.

‘‘आज तो तुम को मुझे कहीं न कहीं घुमाने ले जाना पड़ेगा और मेरे नाजनखरों को उठाना पड़ेगा, वरना मैं मायके चली जाऊंगी और फिर कभी वापस नहीं आऊंगी.’’

श्रीमतीजी के मायके जाने की धमकी ने हमारी आंखों को उन के पहलवान पिताजी कल्लू के साक्षात दर्शन करा दिए थे, जिन्होंने अपनी बेटी को विदा करते समय हमें चेतावनी दी थी कि अगर कभी हमारी बेटी यहां रोतीबिलखती आई, तो हम से बुरा कोई न होगा. बेटी राधिका को परेशान करने के एवज में तुम्हें हमारे बेटे भूरा से गांव के वार्षिक दंगल में लड़ना होगा.

भूरा की कदकाठी कुछ ऐसी ही थी कि हाथी भी सामने आ जाए, तो उस सांड़ को देख कर अपना रास्ता बदल ले.

हम ने तुरंत श्रीमतीजी के पैर पकड़ लिए और उन के नाजनखरों को उठाने को तैयार हो गए.

अगले दिन दफ्तर में श्रीमतीजी का फोन आया. वे बोलीं, ‘‘आज हमारा सलमान खान की फिल्म ‘बजरंगी भाईजान’ देखने का मन कर रहा है. उस के बाद डिनर भी हम बाहर ही करेंगे.’’

सो, इंटरनैट के जरीए हम ने ‘बजरंगी भाईजान’ के 2 टिकट बुक करा दिए. शाम को जब हम घर पहुंचे, तो श्रीमतीजी दरवाजे पर तैयार खड़ी गुस्से से कलाई घड़ी की तरफ देख रही थीं. उधर गरमी के मारे हमारी हालत बुरी थी.

सकपकाते हुए हम धीरे से घर के अंदर घुसे. फिर फ्रिज से हम ने ठंडा पानी निकाला और 2-4 घूंट पानी गले में डाला, जल्दी से कपड़े बदले और श्रीमतीजी के साथ स्कूटर पर निकल पड़े.

मगर रास्ते में ही स्कूटर ने धोखा दे दिया. उधर श्रीमतीजी का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया. स्कूटर का पिछला पहिया पंक्चर हो गया.

हम ने श्रीमतीजी के तमतमाए चेहरे की तरफ देखा और फिर घड़ी में समय देखा, तो शाम के 7 बज चुके थे. एक घंटे का शो पहले ही निकल चुका था. जब तक हम पंक्चर लगवा कर सिनेमाघर तक पहुंचे, तब तक रात के 9 बज चुके थे. लोग सिनेमाघर से बाहर निकल रहे थे.

अब हमारा दिल डर के मारे बुरी तरह धड़क रहा था.

हम ने श्रीमतीजी को समझाया, ‘‘कल हम तुम्हें मौर्निंग शो में फिल्म ‘बजरंगी भाईजान’ दिखा लाएंगे. इस के एवज में हम कल ड्यूटी पर भी नहीं जाएंगे.’’

यह सुन कर श्रीमतीजी के चेहरे पर गुस्से की लकीरें थोड़ी कम होने लगी थीं. फिर वहीं पास ही के एक अच्छे से रैस्टोरैंट में श्रीमतीजी को ले गए. वहां हम दोनों ने लजीज खाने का लुत्फ उठाया. जब पैसे देने का समय आया, तो हमारी जेब से पर्स गायब था.

हम ने रैस्टोरैंट के मालिक को बहुत समझाया. आखिरकार हमें अपना स्कूटर उन के पास बतौर गिरवी छोड़ना पड़ा और पैदल ही घर जाना पड़ा.

अभी हमारी मुसीबत कम नहीं हुई थी, क्योंकि सुनसान सड़क पर चलती हुई हमारी श्रीमतीजी सोने के जेवरों से दमक रही थीं. जब हम ने उन्हें समझाया कि पल्लू से अपने गहनों को ढक लो, तो

वे अकड़ते हुए बोलीं, ‘‘मैं कल्लू पहलवान की बेटी हूं. चोरउचक्कों से डर तुम जैसे शहरियों को लगता होगा. मैं एक धोबीपछाड़ दांव में अच्छेअच्छों को पटक दूंगी और अपनी हिफाजत मैं खुद कर लूंगी.’’

श्रीमतीजी की बहादुरी से हमारे हौसले भी बढ़ चुके थे कि तभी वही हो गया, जिस का हमें डर था. 2 लुटेरों ने हमें धरदबोचा. चाकूपिस्तौल देख हमारी हालत पतली हुई जा रही थी, तभी एक लुटेरा हमारी श्रीमतीजी के गहनों पर झपट पड़ा. इस के बाद श्रीमतीजी ने उन दोनों की जो हालत बनाई, वह नजारा हम अपनी जिंदगी में कभी भूल नहीं सकते हैं.

कुछ ही देर में पुलिस की एक गाड़ी वहां आ पहुंची. उन दोनों इनामी बदमाशों को पकड़वाने के एवज में श्रीमतीजी को 50 हजार रुपए का चैक बतौर इनाम मिला.

हम ने उन रुपयों से एक सैकंडहैंड कार ले ली है. अब तो हम हर शाम श्रीमतीजी के साथ कार में घूमने जाते हैं. इस बात की उम्मीद करते हैं कि दोबारा किसी लुटेरे गैंग से हमारी श्रीमतीजी की भिड़ंत हो जाए और उसे पकड़वाने के एवज में इनाम के तौर पर फिर कोई चैक मिल जाए.

पिया बावरा: उस धुंधली छाया में बस एक छवि अटकी थी

घंटी बजते ही दरवाजे खोल दिए गए थे. डा. सुभाष गर्ग चुपचाप बाहर निकल गए. सब की तरह उन के हाथों में भी फावड़ाटोकरी थमा दिए गए थे.

सुभाष ने हैरत से अपने हाथों को देखा कि जिन में कल तक सिरिंज और आपरेशन के पतले नाजुक औजार होते थे अब उन में फावड़ा और कुदाल थमा दी गई.

‘‘क्यों डाक्टर, उठा तो पा रहे हो न?’’ एक कैदी ने मसखरी की, ‘‘अब यहां कोई नर्स तो मिलेगी नहीं जो अपने नाजुकनाजुक हाथों से आप को कैंचीछुरी थमाएगी.’’

सभी कैदियों को एक बड़ी चट्टान पर पहुंचा दिया गया और कहा गया कि यहां की चट्टानों को तोड़ना शुरू करो.

यह सुन कर सुभाष के पूरे शरीर में सिहरन सी दौड़ गई थी.

‘यह क्या हो गया मुझ से. कुछ भी बुरा करते समय आखिर ऐसे अंजाम के बारे में हम क्यों नहीं सोच पाते हैं?’ सुभाष मन ही मन अपने उस अतीत के लिए तड़प उठे जिस की वजह से आज वे जेल की सजा काट रहे हैं और अब कुछ हो भी नहीं सकता था. इतनी भारी कुदाल उठा कर पत्थर तोड़ना आसान नहीं था. डा. सुभाष गर्ग बहुत जल्दी थक गए. पहले पत्थर तोड़ना फिर उन्हें फावड़े की मदद से तसले में डालना. कुदाल की चार चोटों में ही उन की सांस फूल गई थी. काम रोक कर वहीं पत्थर पर बैठ कर वे सुस्ताने लगे. हीरालाल ने दूर से देखा और अपना काम रोक कर वहीं आ गया.

‘‘थक गए, डाक्टर?’’

सुभाष चुप रहे.

हीरालाल ने पूछा, ‘‘क्यों मारा था पत्नी को?’’

‘‘मैं ने नहीं मारा.’’

‘‘तो मरवाया होगा?’’ हीरालाल ने व्यंग्य से कहा.

डाक्टर चुप रहे.

‘‘बहुत सुंदर होगी वह जिस के लिए तुम ने पत्नी को मरवाया?’’ हीरा शरारत से बोला.

तभी एक सिपाही का कड़कदार स्वर गूंज उठा, ‘‘क्या हो रहा है. एक दिन आए हुआ नहीं कि कामचोरी शुरू हो गई,’’ और दोनों पर एकएक बेंत बरसा कर तुरंत काम करने का आदेश दिया.

बेंत लगते ही दर्द से तड़प उठे डाक्टर. अपनी हैसियत और हालात पर सोच कर उन की आंखें भर आईं. चुपचाप डाक्टर ने कुदाल उठा ली और काम में जुट गए.

जैसेतैसे शाम हुई. सभी कैदी अपनीअपनी कोठरी में पहुंचा दिए गए.

अपनी कोठरी में लेटेलेटे डा. सुभाष बारबार आंखें झपकाने की कोशिश कर रहे थे पर गंदी सीलन भरी जगह और नीची छत देख कर लग रहा था जैसे वह अभी सिर पर टपकने ही वाली है. 2 दिन पहले एक रिपोर्टर उन का इंटरव्यू लेने आई थी. उस ने प्रश्न किया था :

‘अपने प्यार को पाने के लिए क्या पत्नी का कत्ल जरूरी था? आप तलाक भी तो ले सकते थे?’

डाक्टर की यादों के मलबे में जाने कितने कांच और पत्थर दबे हुए थे. रात भर खयालों की हथेलियां उन पत्थरों और कांच के टुकड़ों को उन के जज्बातों पर फेंकती रहती हैं. काश, वे उत्तर दे पाते कि इतने बड़ेबड़े बच्चों की मां और अमीर बाप की उस बेटी को तलाक देना कितना कठिन था.

सुभाष गर्ग जिस साल डाक्टरी की डिगरी ले कर घर पहुंचे थे उसी साल 6 माह के भीतर ही वीणा पत्नी बन कर उन के जीवन में आ गई थी.

वीणा बहुत सुंदर तो नहीं पर आकर्षक जरूर थी. बड़े बाप की इकलौती संतान थी वह. उस के पिता ने सुभाष के लिए नर्सिंग होम बनवाने का केवल वादा ही नहीं किया, बल्कि टीके की रस्म होते ही वह हकीकत में बनने भी लगा था.

मातापिता बहत गद्गद थे. सुभाष भी नए जीवन के रोमांचक पलों को भरपूर सहेज रहे थे. जैसेजैसे डा. सुभाष अपने नर्सिंग होम में व्यस्त होने लगे और वीणा अपने बच्चों में तो पतिपत्नी के बीच की मधुरता धूमिल हो चली.

वीणा के तेवर बदले तो मुंह से अब कर्कश स्वर निकलने लगे. उसे हर पल याद रहने लगा कि वह एक अमीर पिता की संतान है और वारिस भी. इसलिए घर में उस की पूछ कुछ अधिक होनी चाहिए. इसीलिए उस की शिकायतें भी बढ़ने लगीं. सुभाष जैसेजैसे पत्नी वीणा से दूर हो रहे वैसेवैसे वे नर्सिंग होम और अपने मरीजों में खोते जा रहे थे. जीवन में तनिक भी मिठास नहीं बची थी. दवाओं की गंध में फूलों से प्यारे जीवन के क्षण खो गए थे. याद करतेकरते जाने कब डा. सुभाष को नींद ने आ घेरा.

खाने की थाली ले कर जब डा. सुभाष कैदियों की लाइन में लगते तो अपने नर्सिंग होम पर लगी मरीजों की लाइन उन्हें याद आने लगती. वह लाइन शहर में उन की लोकप्रियता का एहसास कराती थी जबकि यह लाइन किसी भिखारी का एहसास दिलाती है. डा. सुभाष को उस पत्रकार महिला का प्रश्न याद आ गया, ‘क्या सचमुच समस्या इतनी बड़ी थी, क्या और कोई राह नहीं थी?’

खाना खाते समय लगभग वे रोते रहते. अपने घर की वह शानदार डाइनिंग टेबल उन्हें याद आने लगती. बस, वही तो कुछ पल थे जिस में पूरा परिवार एकसाथ बैठ कर खाना खाता था. हालांकि यह नियम भी वीणा ने ही बनाया था.

वीणा का नाम व चेहरा दिमाग में आते ही डा. सुभाष फिर पुरानी यादों में खो से गए.

उस साल बड़ा बेटा पुनीत इंजीनियरिंग पढ़ने आई.आई.टी. रुड़की गया था और छोटा भी मेडिकल के लिए चुन लिया गया था. इधर नर्सिंग होम में पहले से और अधिक काम बढ़ गया तो डा. सुभाष दोपहर में घर कम आने लगे. रोज की तरह उस दिन भी घर से उन का टिफिन नर्सिंग होम आ गया था और उन के सामने प्लेट रख कर चपरासी ने सलाद निकाला था. तभी तीव्र सुगंध का झोंका लिए 30 वर्ष की एक युवती ने कमरे में प्रवेश किया.

‘सौरी सर, आप को डिस्टर्ब किया.’

डा. सुभाष ने गर्दन उठाई तो आंखें खुली की खुली रह गईं. मन में खयाल आया कि इतना सौंदर्य कहां से मिल जाता है किसीकिसी को.

‘सर, मैं डा. सुहानी, मुझे आप के पास डा. रावत ने भेजा है कि तुरंत आप से मिलूं.’

एक सांस में बोल कर युवती अपना पसीना पोंछने लगी.

सुभाष मुसकरा दिए.

‘आइए, बैठिए.’

‘नो सर. आप कहें तो मैं थोड़ी देर में आती हूं.’

‘नर्वस क्यों हो रही हैं डाक्टर, आप बैठिए,’ सुभाष ने खड़े हो कर सामने वाली कुरसी की ओर संकेत किया.

सुहानी डरती हुई कुरसी पर बैठ गई. डा. सुभाष ने चपरासी को इशारा किया तो उस ने दूसरी प्लेट सुहानी की तरफ रख दी.

‘नो सर, मैं दोपहर में पूरा खाना नहीं खाती हूं.’

‘आप सलाद लीजिए.’

उन के इतने अनुरोध की मर्यादा रखते हुए सुहानी ने थोड़ा सा सलाद अपनी प्लेट में रख लिया.

डा. सुभाष उस के सौंदर्य को देखते हुए मुसकरा कर बोले, ‘आज मेरी समझ में आया है कि कैसे लड़कियां केवल सलाद खा कर सुंदरता बनाए रखती हैं.’

सुहानी ने संकोच से देखा और बोली, ‘ओके, डाक्टर.’

डा. सुभाष ने कांटे में पनीर का एक टुकड़ा फंसा कर मुख में रख लिया और बोले, ‘आप यहां मेरी सहायक के रूप में काम करेंगी. अभी थोड़ी देर में सुंदर आप को केबिन दिखा देगा.’

उस दिन के बाद डा. सुभाष का हर दिन सुहाना होता गया. सुहानी केवल सौंदर्य की ही नहीं, मन की भी सुंदरी थी. उस के मीठे बोल डा. सुभाष में स्फूर्ति भर देते. यह काम की नजदीकियां कब प्यार में बदल गईं, दोनों को पता ही नहीं चला.

तब घर का पूरा उत्तरदायित्व वे अच्छी तरह पूरा कर रहे थे. पर पहले की तरह अब घर पर दुखी भी होते तो सुहानी की यादें उन की आंखों में घुलीमिली रहतीं.

उन दिनों वीणा कुछ अधिक ही चिड़चिड़ी होती जा रही थी. शायद इस की वजह यह थी कि बच्चों के जाने के बाद सुभाष भी उस से दूर हो गए थे और बढ़ती दूरी के चलते उस को अपने पति सुभाष पर शक हो गया था. एक रात वीणा ने पूछ ही लिया, ‘आजकल कुछ ज्यादा ही महकने लगे हो, क्या बात है?’

डा. सुभाष चौंक पड़े, ‘ये क्या बेसिरपैर की बातें कर रही हो. अब उम्र महकने की तो रही नहीं. मेरी तकदीर में तो आयोडीन और…’

‘बसबस. आदमियों की उम्र महकने के लिए हमेशा 16 की होती है.’

‘देखो वीणा, रातदिन दवाओं की खुशबू सूंघतेसूंघते जी खराब होने लगता है तो कभीकभार सेंट छिड़क लेता हूं. बहुत संभव है कि कभी ज्यादा सेंट छिड़क लिया होगा,’ सुभाष ने सफाई दी, लेकिन धीरेधीरे वीणा की शिकायतों और डा. सुभाष की सफाइयों का सिलसिला बढ़ गया.

नर्सिंग होम में वीणा के बहुत सारे अपने आदमी भी थे जो तरहतरह की रिपोर्ट देते रहते थे.

‘तुम्हारे इतने बड़ेबड़े बच्चे हो गए हैं. कल को उन की शादी होगी. बुढ़ापे में इश्क फरमाते कुछ तो शर्म करो,’ वीणा क्रोध में उन्हें सुनाती.

सुभाष ने उन दिनों चुप रहने की ठान ली थी. इसीलिए वीणा का पारा अधिक गरम होता जा रहा था.

रोजरोज की चिकचिक से तंग आ कर आखिर एक दिन सुभाष के मुख से निकल ही गया कि हां, मैं सुहानी से प्यार करता हूं और उस से शादी भी करना चाहता हूं.

डा. सुभाष को जेल की यातना सहते महीनों बीत चुके थे, लेकिन घर से मिलने कोई नहीं आया था. वे बच्चे भी नहीं जो उन के ही अंश हैं और जिन को उन्होंने अपना नाम दिया है. ऐसा नहीं कि बच्चे उन्हें प्यार नहीं करते थे पर मां तो मां ही होती है. मां की हत्या ने उन्हें बच्चों की नजरों में एक अपराधी, मां का हत्यारा साबित कर दिया था, पर क्या इस हादसे के लिए वे अकेले ही उत्तरदायी हैं?

बच्चे क्या जानें कि वीणा सुहानी को ले कर कितनी हिंसक हो उठी थी. एक दिन गुस्से में  उस ने कहा भी था, ‘आप अगर सोचते हैं कि मैं आप से तलाक ले लूंगी और आप मजे से उस से शादी कर लेंगे तो मैं आप को याद दिला दूं कि मैं उस बाप की बेटी हूं जो अपनी जिद के लिए कुछ भी कर सकती है. मेरे एक इशारे पर आप की वह प्रेमिका कहां गायब हो जाएगी पता भी नहीं चलेगा.’

वीणा की धमकियां जैसेजैसे बढ़ रही थीं वैसेवैसे सुभाष की घबराहट भी बढ़ रही थी…वे अच्छी तरह जानते थे कि इस आयु में बड़ेबड़े बच्चों के सामने पत्नी को तलाक देना या दूसरा विवाह करना उन के लिए सरल न होगा. पर सुहानी को वीणा सताए यह भी उन्हें स्वीकार नहीं था. इसलिए ही उन्होंने सुहानी से कहा था कि वह जितनी जल्दी हो सके यहां से लंबे समय के लिए कहीं दूर चली जाए.

अगले दिन सुहानी को नर्सिंग होम में न देख कर वीणा बोली थी, ‘उसे भगा दिया न. क्या मैं उसे खोज नहीं सकती. पाताल से भी खोज कर उसे अपनी राह से हटाऊंगी. तुम समझते क्या हो अपनेआप को.’

‘इतनी नफरत किस काम की,’ गुस्से से डा. सुभाष ने कहा था, ‘क्या इस उम्र में मैं दूसरी शादी कर सकता हूं.’

‘प्यार तो कर रहे हो इस उम्र में.’

‘नहीं, किसी ने गलत खबर दी है.’

‘किसी ने गलत खबर नहीं दी,’ वीणा फुफकारती हुई बोली, ‘मैं ने स्वयं आप का पीछा कर के अपनी आंखों से आप दोनों को एकदूसरे की बांहों में सिमटते देखा है.’

डा. सुभाष स्तब्ध थे, कितनी तेज है यह औरत. घबरा कर कहा, ‘अपने बच्चों को भी तो हम किसी अच्छी बात पर प्यार कर लेते हैं.’

‘शर्म नहीं आती तुम को इतना झूठ बोलते हुए,’ वीणा के अंदर का झंझावात बुरी तरह उफन रहा था.

उस दिन पत्थर तोड़ते हुए हीरा ने कहा, ‘‘डाक्टर आप चाहते तो बच सकते थे. आप ने बीवी की कार का पीछा क्यों किया. अच्छेभले नर्सिंग होम में बैठे रहते तो बच जाते.’’

‘‘मैं बहुत डरा हुआ था, क्योंकि वीणा के पिता के आदमी उस की सुरक्षा में लगे हुए थे. शायद हत्या की सुपारी लेने वाला अपना काम न कर पाता,’’ हीरालाल की सहानुभूति पा कर डा. सुभाष ने भी बोल दिया.

‘‘उस के आदमी चारों तरफ सुरक्षा में फैले रहते हैं. तभी तो आप आसानी से अंदर हैं.’’

शायद हीरालाल ठीक कह रहा था, वे क्या करते, जो कुछ भी हुआ वह सोचीसमझी योजना का हिस्सा नहीं था. वह सबकुछ केवल सुहानी को बचाने की जिद से हो गया. शायद उन से बचकानी हरकत हो गई. इतनी बड़ी बात को गंभीरता से नहीं लिया और नतीजे के बारे में भी नहीं सोचा था.

उन्हें लगा कि वीणा सुहानी के घर की तरफ ही जा रही है और बिना समय गंवाए उन्होंने वीणा पर गोली चला दी. सुहानी तो बच गई मगर वीणा के पिता का कुछ भरोसा नहीं. केवल उन्हें सलाखों के पीछे भेज कर वे संतुष्ट होने वाले नहीं हैं. सुभाष के जीवन से तो सबकुछ छिन गया, पत्नी भी और प्रेमिका भी.

वह 15 अगस्त का दिन था. सभी कैदियों को सुबह झंडा फहराते समय राष्ट्रगान गाना था. फिर सब को बूंदी के लड्डू दिए गए थे. सुभाष अपना लड्डू खाने का प्रयत्न कर ही रहे थे कि हीरालाल ने जल्दी से आ कर उन के कान से मुख सटा दिया और कहा, ‘‘अभीअभी इंस्पेक्टर के कमरे से सुन कर आया हूं, कह रहे थे कि डाक्टर की प्रेमिका का पता चल गया है. बहुत जल्द उसे भी गिरफ्तार कर लिया जाएगा.’’

‘‘क्या?’’ उन के हाथ से लड्डू छिटक गया. हीरालाल ने झट से लड्डू उठा लिया और बोला, ‘‘डाक्टर, मुझे पता है कि अब तुम इस लड्डू को नहीं खाओेगे. डाक्टर हो न, जमीन पर गिरा लड्डू कैसे खा सकते हो.’’

उस ने वह लड्डू भी खा लिया.

सुभाष बहुत व्याकुल हो उठे थे. वे समझ गए थे कि यह सब वीणा के पिता ने ही करवाया है. उन की आंखों से आंसू बहने लगे.

हीरा ने कहा, ‘‘यह क्या, डाक्टर साहब. आप इतने कमजोर दिल के हैं, फिर भला दूसरों के दिल का आपरेशन कैसे करते थे?’’

डाक्टर ने अपने आंसू पोंछे और कहा, ‘‘हीरा, सब को अपने अंत का पता होता है, फिर भी हम जैसों से इतनी भूल कैसे हो जाती है.’’

‘‘आप शरीफ इनसान हैं इसलिए सबकुछ शराफत के दायरे में करने की कोशिश की. काश, आप भी शातिर खिलाड़ी होते तो आज पकड़ा कोई और जाता और आप अपनी सुहानी के साथ हनीमून मना रहे होते.’’

सुभाष ने चौंक कर हीरालाल को देखा और बोले, ‘‘क्या कह रहे हो?’’

‘‘ठीक कह रहा हूं, डाक्टर. आज मैं जिस कत्ल की सजा भोग रहा हूं उस व्यक्ति को मैं ने कभी देखा ही नहीं. उस का हत्यारा बहुत शातिर और धनवान था. मुझे उलझा कर खुद मजे से घूम रहा है.’’

डाक्टर ठगे से खड़े रह गए.

‘‘डाक्टर, सच यह है कि इतने वर्षों में इस जेल के अंदर रह कर मैं ने दांवपेंच सीख लिए हैं. एक बार यहां से भागने का अवसर मिला तो उस शातिर की हत्या कर के सचमुच का हत्यारा बन जाऊंगा.’’

डा. सुभाष अपनी सोच में डूबे हुए थे, धीरे से बुदबुदाए, ‘इस से तो अच्छा था कि मुझे फांसी हो जाती.’’

इतना कहने के साथ ही उन्होंने कस कर अपनी छाती को दबाया और कराह उठे. उन का हृदय दर्द से तड़प रहा था.

‘‘डाक्टर,’’ हीरा चिल्ला उठा.

डाक्टर धीरेधीरे धरती पर गिर कर तड़पने लगे. हलचल मचते ही कई अधिकारी वहां आ गए थे. डाक्टर को स्ट्रेचर पर लिटाया गया और सिपाही चल पड़े. हीरा भाग कर वहां पहुंचा और झुक कर डाक्टर के कान में कहने की चेष्टा की कि वहां से भाग जाना पर सुभाष बेसुध हो चुके थे.

हीरा मन मसोस कर उन्हें जाता देखता रहा. सुभाष की बंद आंखों के सामने बहुत से चेहरे घूम रहे थे.

‘तुम पागल हो गए हो उस बेटी समान लड़की के लिए,’ वीणा के पुराने स्वर डाक्टर को नीमबेहोशी में सुनाई दे रहे थे. फिर सबकुछ डूबने लगा. आवाज, सांस और धुंधलाती सी पुरानी यादें. उस धुंधली छाया में बस एक छवि अटकी थी सुहानी…सुहानी.

प्रेम विवाह: भाग 3- अभिजित ने क्यों लिया तलाक का फैसला?

‘यह सब क्या है?’ अभिजित ने पूछा. ‘अभि,’ उस की आंखों से आंसू बह निकले, ‘मैं ने तुम्हें बताया तो था कि मेरा बौस बेहूदा हरकतें करता रहता है. आज वह सारी हदें पार कर गया.’

‘यह खबर और तुम्हारी शक्ल आज सैकड़ों लोगों ने टीवी पर देखी होगी. मेरी तो इज्जत उतर गई. मैं किसी को मुंह दिखाने के काबिल नहीं रहा. कल कालेज में लोग तुम्हारे बारे में उलटेसीधे सवाल करेंगे तो मैं क्या जवाब दूंगा?’ अभि ने अपना सिर थाम लिया.

कुछ देर बाद उस ने कहा, ‘जाहिर है, मैं अब यहां नौकरी नहीं कर सकता. मुझे अमेरिका से एक औफर आया है विजिटिंग प्रोफैसर की जौब के लिए,  हम वहीं चलेंगे.’

‘और तुम्हारा परिवार?’

‘मैं उन्हें हर महीने पैसे भेजता रहूंगा और साल में एक बार आ कर उन की खोजखबर लेता रहूंगा.’

प्लेन में बैठी कैथरीन बहुत खुश हो रही थी. उस ने अपने मन की मुराद पा ली थी. वह अपनी ससुराल के घुटन भरे माहौल से निकल आई थी. उस ने अभि को देखा, जो मुंह लटकाए बैठा था. उसे अपने घर वालों से बिछड़ने का बहुत दुख था. कैथरीन ने उस के कंधों को घेरते हुए उस की दिलजोई की, ‘उदास क्यों होते हो

डार्लिंग. तुम अपने परिवार के भले के लिए ही तो विदेश जा रहे हो. अमेरिका में मैं भी कोई नौकरी कर लूंगी. हम दोनों जन मिल कर कमाएंगे. मेरे पैसों से घर चलेगा और तुम अपने पैसे घर वालों के लिए जमा करते रहना.’

अभि ने उसे स्नेहसिक्त आंखों से देखा. फिर बोला, ‘तुम मेरे लिए यह सब करोगी?’

‘क्यों नहीं, बीवी हूं तुम्हारी. तुम्हारे सुखदुख की साथी.’

अभि ने उस का हाथ अपने हाथों में ले कर सहलाया, उसे चूमा. वह भावविभोर हो गया था, ‘ओह कैथरीन, आई रियली लव यू. तुम कितनी भली हो. तुम्हें पत्नी के रूप में पा कर मुझे सब कुछ मिल गया.’

कैथरीन खुशी से भर उठी. वह अभि के ऊपर सिर्फ अपना अधिकार चाहती थी. अभि उस के रूप का दीवाना तो था ही पर वह चाहती थी कि उस का पति सिर्फ उसी का हो कर रहे. वह अपने घर वालों को भुला कर केवल उस की ही माला जपे.

अमेरिका में आ कर उसे ऐसा लगा जैसे वह एक निराली दुनिया में आ गई है. उसे और अभि को रहने के लिए एक सुंदर सा बंगला मिल गया. कैथरीन ने एक डिपार्टमैंटल स्टोर में सेल्स गर्ल की नौकरी कर ली और वहीं उस की कुछ गहरी दोस्त बन गईं. वे लंच टाइम में साथ बैठ कर गपशप करतीं.

अभि अपनी नौकरी में व्यस्त रहता पर जब भी अपने घर वालों से फोन पर बात करता तो बहुत उदास हो जाता.

एक दिन कैथरीन ने उसे बियर का गिलास थमाया.

‘यह क्या? तुम तो जानती हो कि मैं शराब नहीं पीता.’

‘लेकिन यह शराब नहीं है. इस से नशा बिलकुल नहीं होता. कम औन डियर. मुझे कंपनी देने के लिए ही सही, एकआध घूंट तो पियो.’

गम भुलाने के लिए अभि ने बियर पी तो ली मगर धीरेधीरे उसे इस की लत पड़

गई. बियर से नशा चढ़ना कम हुआ तो शराब का सहारा लिया. कैथरीन भी उस का साथ देती.

समय बीतता गया. कुछ ही साल में अभि ने अपनी बहनों की शादी कर दी. उस की दादी, नानी व पिता एक के बाद एक चल बसे. बूआ के बेटों की नौकरी लग गई और वे अपनी मां को ले कर चले गए.

अभि को मां की चिंता लगी. मां का अमेरिका आने का बिलकुल मन न था. कुछ साल वे बेटियों के घर पर रहीं. जब बहुत अशक्त हो गईं तो उन्होंने बेटे को पत्र लिखा कि अब खानाबदोशों की तरह इधरउधर भटका नहीं जा रहा, शरीर बहुत कमजोर हो गया है. मुझे लगता है कि मेरा अंतिम समय आ पहुंचा है. मेरी हार्दिक इच्छा है कि मैं अपने बेटे की गोद में सिर रख कर मरूं. इसलिए मैं ने अमेरिका आने का फैसला कर लिया है.

अभि खुशी से नाच उठा. पर कैथरीन चिंतित हो गई. उस ने अपनी सहेलियों को यह समाचार दिया तो वे सब एक सुर में बोलीं, ‘अरी कैथरीन, अपनी सास को बुलाने की गलती न करना वरना पछताएगी. तू अपनी नौकरी करेगी, घर संभालेगी या बीमार सास की सेवाटहल करेगी?’

कैथरीन ने मन ही मन तय कर लिया कि यदि अभि की मां यहां आ धमकीं तो वह उन से साफ शब्दों में कह देगी कि अम्मां, यह मेरा घर है और यहां सिर्फ मेरी मरजी चलेगी. मैं अपने घर में जो चाहे करूं, जो चाहे पकाऊंखाऊं, जो चाहे पहनूं मिनी ड्रैस या टौपलैस, मुझे पूरा हक है.

पर इस की नौबत ही नहीं आई. कुछ ही दिनों में अभि को समाचार मिला कि उस की मां का अचानक दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया.

फूटफूट कर रोता अभि अपनेआप को कोसता रहा. ‘अब मेरा यहां बिलकुल मन नहीं लगता. बहुत अकेलापन महसूस होता है,’ वह बोला.

‘ऐसा मत कहो डार्लिंग,’ कैथरीन ने उस से लिपट कर कहा.

‘हम ने यहां आ कर कौन सी जायदाद खड़ी कर ली. अपने परिवार से दूर बेगानों

की तरह पड़े हैं. दिन भर जानवरों की तरह खटते हैं. क्यों करते हैं हम इतनी दौड़धूप, इतनी मेहनतमशक्कत? किस के लिए करते हैं? मुझे तो लगता है कि अब हमारा एक बच्चा होना चाहिए. बिना बच्चे के घर सूना लगता है.

‘तुम ठीक कहते हो.’

दूसरे दिन कैथरीन ने अपनी सहेलियों से कहा, ‘मेरा पति चाहता है कि हमारा एक बच्चा हो.’

‘और तू क्या चाहती है?’ डोरिस ने पूछा.

‘मैं अभी से यह जंजाल पालना नहीं चाहती.’

‘बिलकुल ठीक. बच्चा होने के बाद औरत घर से बंध कर रह जाती है. उस का बदन ढीला पड़ जाता है. मर्दों का क्या जाता है. बस हुक्म चला दिया कि एक बच्चा होना चाहिए. आफत तो हम औरतों की होती है.

जरा सोचो, शिशु को 9 महीने कोख में रखो, प्रसव पीड़ा सहो, मरमर कर उसे पालो और जब वह बड़ा हो जाए और मुंह फेर कर चल दे तो कुछ न कर सको. ‘होता तो यही है. बच्चे पीछे मुड़ कर देखते भी नहीं कि मांबाप जी रहे हैं कि मर गए. मांबाप बूढ़े और लाचार हो जाएं तो उन्हें वृद्धाश्रम में डाल कर सोचते हैं कि उन का कर्तव्य पूरा हो गया. ऐसी औलाद होने से तो बेऔलाद ही भले.’

‘हां,’ रूबी ने डोरिस की हां में हां मिलाई, ‘घरघर की यही कहानी है, लेकिन वे भी क्या करें. यहां एक आदमी की तनख्वाह से गुजारा होता नहीं.’ मियांबीवी दोनों को नौकरी करनी पड़ती है. मांबाप की देखभाल करना उन के लिए मुमकिन नहीं, इसीलिए वृद्धाश्रम की शरण लेते हैं. इस देश की यही प्रथा है.

‘हमारी युवा पीढ़ी तो हम से भी एक कदम आगे है. उन की तो शादी की संस्था में भी आस्था नहीं है. किसी से प्रेम हुआ तो साथ रहने लगे. तकरार हुई तो अलग हो गए. बच्चों की चाह हुई तो ही शादी करते हैं नहीं तो वे सिर्फ अपने लिए ही जीते हैं. भरपूर ऐश करते हैं. खूब मौजमस्ती करते हैं. जिंदगी का पूरा लुत्फ उठाते हैं.’

‘यही तो सही अंदाज है जीने का.

लेकिन इधर मेरा पति बच्चे के लिए मेरे पीछे हाथ धो कर पड़ा है,’ कैथरीन मुंह बना कर बोली.

‘उसे बहलाना कौन सी बड़ी बात है. तू चुपचाप गर्भनिरोधक गोलियां खाती रह.

उसे पता भी न चलेगा. अब तुझे इतनी सी बात भी समझानी पड़ेगी क्या?’ डोरिस बोली.

‘मेरी मान, तू अपने पति को एक कुत्ते का पिल्ला भेंट कर दे. उस का दिल लग जाएगा. किस्सा खत्म,’ रूबी बोली तो सभी ठहाका लगा कर हंस पड़े.

दिन अच्छेभले गुजरते जा रहे थे. कैथरीन अपनी ही दुनिया में मस्त थी. तंद्रा भंग होते ही कैथरीन अभि और सुहानी के बीच जो खिचड़ी पक रही थी उस के बारे में सोचने लगी. उसे बिलकुल भी इस स्थिति का अंदाजा न था. अभि ने सहसा तलाक का नाम उछाल कर उसे सकते में डाल दिया था.

अभि का हाथ थाम कर वह अपने परिवार से दूर, अपने देश को छोड़ इतनी दूर चली आई थी. उसी अभि ने उसे बीच भंवर में ला कर उस से किनारा कर लिया था. कहां गए उस के लंबेचौड़े वादे. आजन्म साथ निभाने की कसमें. एक क्षण में उस का प्यार काफूर हो गया था.

उसे अपने हाल पर रोना आया. उस ने किसी का क्या बिगाड़ा था, जो उसे यहसजा मिली? उस ने सोचा. उस के मन ने उस की भर्त्सना की. क्या उस ने चौधरी पर झूठा इलजाम लगा कर उसे बेइज्जत नहीं किया? उसे नौकरी छोड़ने पर मजबूर नहीं किया? उस का पारिवारिक सुखचैन नष्ट नहीं किया? उस ने सुना था कि चौधरी की पत्नी ने उसे तलाक दे दिया था. यह सब मेरी वजह से हुआ, उस ने अपनेआप को धिक्कारा.

उसे बाद में जा कर पता लगा था कि दफ्तर में कुछ लोगों की चौधरी से दुश्मनी थी. उन्होंने जानबूझ कर उसे सरेआम बेइज्जत करने का प्लान बनाया था और इस काम के लिए कैथरीन को मुहरा बनाया गया था.

चंद रुपयों की खातिर मैं ने ऐसा किया, उस ने सोचा. आज मेरे पास पैसा है पर मन की शांति नहीं. मैं ने किसी और का घर उजाड़ कर अपना आशियाना बसाना चाहा था, आज मेरे पास घर है पर घर वाला जा चुका है.

कैथरीन ने चारों तरफ नजरें घुमाईं. शाम के झुटपुटे में उस का घर उजड़ा हुआ लग रहा था और उस के अंतरमन में एक गहन सन्नाटा पसरा हुआ था. उस के मन से एक हूक निकली, उस का इतनी लगन से सजाया घर आज सूना पड़ा था. अब उसे इस घर में अकेले रहना था. बिलकुल अकेले.

साथ: भाग 2- पति से दूर होने के बाद कौन आया शिवानी की जिंदगी में

‘‘आप मांजी को अकेला ही छोड़ कर आए हैं, यह तो ठीक नहीं है,’’ फिर पता नहीं क्या सोच कर मैं ने साहिल से कहा, ‘‘आप काम कीजिए, मैं आप के घर जा रही हूं. मुझे आज वैसे भी कुछ खास काम नहीं, आप मांजी को फोन कर दीजिए.’’

पूरे हक से कही मेरी यह बात सुन कर साहिल हैरान था पर उस ने मुझे मना नहीं किया. अगले 30 मिनट बाद मैं मांजी के पास थी. मैं ने उन को दवा दी और उन के पास बैठी रही. वे बोलीं, ‘‘बेटा, अब मैं ठीक हूं, साहिल तो ऐसे ही परेशान हो जाता है.’’

‘‘मांजी, आप साहिल की शादी कर दो, ताकि आप की सेवा करने के लिए कोई आप के पास रहे,’’ मैं ने मांजी के सिर को दबाते हुए कहा.

मांजी ने आंखें बंद करते हुए कहा, ‘‘यह सपना तो मैं कब से देख रही हूं पर साहिल को कोई पसंद ही नहीं आती. कहता है कि आजकल की लड़कियां सिर्फ दिखावटी जिंदगी जीती हैं, सचाई तो उन में है ही नहीं.’’

कुछ देर में मांजी की आंख लग गई और मैं साहिल के बारे में सोचती रही. उस में कोई दिखावा नहीं था. सादगी भरी थी उस की जिंदगी. शाम को साहिल के घर लौटते ही मैं वापस आ गई.

अगला दिन रविवार था, औफिस की छुट्टी थी. मेरा मन हुआ कि मांजी की तबीयत का हाल पूछ लूं. मैं ने साहिल को फोन किया तो मांजी ने ही फोन उठाया. उन्होंने बहुत जोर दिया कि मैं लंच उन के साथ ही करूं. तो मैं ने मान लिया क्योंकि घर पर अकेले रहने को दिल नहीं कर रहा था. मैं झट से तैयार हो कर मांजी के पास पहुंच गई. दरवाजे की कालबैल बजाते ही साहिल को अपने सामने खड़ा पाया.

सफेद कुरतेपाजामे में वह बहुत आकर्षित लग रहा था. मेरी नजर उस पर 1 मिनट टिकी फिर मैं ने नजरें हटा ली. सारा दिन मांजी और साहिल के साथ ही बीता. रात का खाना भी उन के साथ ही खाया. रात को काफी देर हो गई तो साहिल मुझे घर छोड़ आया. उस रात मुझे सिर्फ साहिल का ही खयाल आता रहा. अगले दिन मैं औफिस पहुंच कर सब से पहले साहिल के पास गई.

‘‘गुड मौर्निंग साहिल,’’ मैं ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘वेरी गुड मौर्निंग शिवी.’’

साहिल के मुंह से शिवी सुन कर मुझे अजीब लगा पर अगले ही मिनट साहिल फिर बोला, ‘‘ओ सौरी, शिवानीजी,’’ मेरा ध्यान कहीं और था.

‘‘कोई बात नहीं, पर ये शिवी कौन है?’’ मैं ने साहिल से पूछा.

‘‘अरे कोई नहीं, आप ही हैं. कल रात मांजी से आप की बात कर रहा था तो मांजी ने आप को प्यार से बारबार शिवी कहा था. इसलिए मेरे मुंह से यह निकल गया, सौरी,’’ साहिल ने थोड़ा घबरा कर कहा पर मैं उस के मुंह से शिवी सुन कर बहुत खुश थी. हम ने उस दिन भी लंच साथ किया और शाम को घर आने से पहले मैं साहिल के घर मांजी से मिलने भी गई.

धीरेधीरे यह एक सिलसिला सा बन गया. अब साहिल मुझे शिवी ही कहता था. हम साथसाथ लंच करते, साथसाथ घर वापस आते. हमारी नजदीकियां बढ़ने लगी थीं. मुझे पता नहीं चला कि कब मुझे साहिल का साथ इतना पसंद आने लगा कि मैं भूल गई कि मैं शादीशुदा हूं.

पुणे से वापस आ कर और भी बिजी हो गए थे. उन को अपनी मेहनत का फल भी मिला. उन का प्रमोशन हो गया. हम दोनों में बात न के बराबर होती थी. लेकिन जब कभी उन के औफिस की कोई पार्टी वगैरह होती थी तो मैं उन के साथ जरूर जाती थी और उन के दोस्त जब मेरी तारीफ करते थे तो उन का चेहरा चमक उठता था.

उस दिन साहिल का फोन आया कि मांजी की तबीयत बहुत खराब हो गई है, वह उन को अस्पताल ले जा रहा है. मैं ने अमन को फोन कर कह दिया कि मेरी एक सहेली की मां बहुत बीमार हैं, मैं उन को देखने जाऊंगी, इसलिए रात को देर से आऊंगी. अमन ने सिर्फ ओके कह कर फोन काट दिया. मांजी आईसीयू में थीं. डाक्टर ने कहा कि यहां कोई और नहीं रुक सकता, आप कल सुबह आना. मैं समझबुझ कर साहिल को घर ले आई. रात काफी हो चुकी थी. साहिल मांजी को ले कर बहुत परेशान था. उस को ऐसी हालत में छोड़ कर मैं घर कैसे जाऊं, समझ नहीं आ रहा था. पर घर तो जाना ही था.

‘‘अब मैं चलती हूं साहिल, कल सुबह आती हूं,’’ मैं ने अपना पर्स उठाते हुए कहा.

‘‘प्लीज मत जाओ शिवी, मुझे तुम्हारी जरूरत है,’’ साहिल की आंखों में आंसू थे, उस ने मुझे अपनी ओर खींच लिया.

‘‘साहिल मुझे जाने दो रात बहुत हो चुकी है,’’ मैं ने अपनेआप को छुड़ाते हुए कहा. लेकिन चाह कर भी वहां से घर नहीं आ पाई. सारी रात साहिल सिर्फ मेरी गोद में सिर रख कर रोता रहा और कहता रहा कि वह मांजी और मेरे बिना नहीं जी पाएगा.

मैं सुबह घर जा रही थी तो लग रहा था कि अमन की बातों को झेलना पड़ेगा. पर घर पर अमन अभी तक सो रहे थे. मैं नहाने चली गई. वापस आई तो देखा अमन अब भी सो रहे थे. मैं किचन में चली गई. इतने में साहिल का फोन आया. उस ने कांपती हुई आवाज में मुझे मांजी के न होने की खबर दी. मेरी आंखों से आंसू निकल पड़े. दिल किया कि जोर से रो लूं पर खुद पर नियंत्रण किया. साहिल कैसे सहेगा इस दुख को. सोचते हुए मैं ने अमन को जगाया और बताया कि मेरी सहेली की मांजी नहीं रहीं.

‘‘अरे ये तो बुरा हुआ,’’ उन्होंने आंखें मलते हुए कहा.

‘‘मैं जा रही हूं अमन, आप प्लीज नाश्ता बाहर कर लेना,’’ मैं ने जल्दी से उन को कहा.

‘‘हां, ठीक है. अरे सुनो, आज पवन के घर पार्टी है तुम जल्दी आ जाना,’’ अमन ने चादर मुंह पर लेते हुए कहा तो मैं थोड़ी सोचती हुई वहीं खड़ी रह गई कि ये इंसान हैं या पत्थर. किसी की मां नहीं रहीं और इन को पार्टी में जाना है. पर इन का भी क्या कुसूर ये तो अपनों का दर्द ही नहीं समझते, परायों का क्या समझेंगे.

अल्पविराम: शादीशुदा स्वरा जब अपने दोस्त के प्यार में पड़ गई

शादीके 10 साल के बाद प्रेम क्या मर जाता है? रिश्ता भी विवाहित जोड़े क्या यंत्रचालित ढंग से निभाने लगते हैं? अब यह सब विवाहितों पर लागू होता है अथवा नहीं, यह तो वे ही जानें, स्वरा और आलोक के लिए तो यह पूर्णतया सत्य है. स्वरा और आलोक के विवाह को 9 साल से कुछ महीने ज्यादा ही हो गए थे. उन का एक 8 साल का प्यारा बेटा शिव था. आलोक एक उच्च पद पर कार्यरत था, इसलिए घर में वह सब कुछ मौजूद था, जो उसे आधुनिक और संपन्न बनाता था. शिव के जन्म के बाद स्वरा ने अपनी स्कूल की जौब छोड़ दी थी और अब जब शिव तीसरी कक्षा का छात्र है, वह अपना खाली समय शौपिंग, गौसिप वगैरह में गुजारती. आज वह घर में ही थी और इधरउधर की बातें सोचतेसोचते थक गई थी. शिव के आने में काफी समय था अभी. और आलोक के आने का कोई तय समय नहीं था. जब बैठेबैठे ऊब गई तो महाराज को खाना क्या बनाना है, बता कर गाड़ी ले कर निकल गई.

मौल में घूमते हुए उस का ध्यान कई जोड़ों पर गया. कितना समय बीत गया था आलोक और उसे ऐसे घूमे हुए. अब तो आलोक रोमांटिक बातों पर हंसता है और फैमिली आउटिंग को टालता है. प्रेम भी वे मशीनी तरीके से करते हैं और इस प्रेम का दिन भी फिक्स हो गया है, शनिवार की रात. अब तो हालत यह हो गई है कि शनिवार की रात जब आलोक उस की तरफ बढ़ता, तो उसे उबकाई आ जाती. वह कोई न कोई बहाना बनाने की कोशिश करती. कभीकभी वह जीत जाती, तो कभीकभी आलोक जीत जाता. तब वह सोचती कि प्रेम क्या कभी तय कर के किया जाता है? वह तो एक उन्माद की तरह आता है और सुख दे जाता है. लेकिन आलोक को यह बात कौन समझाए? वह तो प्रेम भी अपनी मीटिंग की तरह करने लगा था. ऐसा पहले तो नहीं था. क्या उसे अपना बाकी जीवन ऐसे ही गुजारना होगा.

‘‘मैडम, ऐक्सक्यूज मी, आप एक फौर्म भर देंगी?’’ एक युवक उस के पास आ कर बोला, तो उस की विचारों की तंद्रा भंग हुई और वह वर्तमान दुनिया में लौट आई.

‘‘क्या है यह?’’

‘‘यह हमारी कंपनी की स्पैशल स्कीम है. सभी फौर्म में से एक सिलैक्ट होगा और उसे भरने वाले को 3 दिन और 2 रातों का गोवा का पैकेज मिलेगा.’’

‘‘बाद में आना, अभी मैं बिजी हूं,’’ स्वरा ने उसे टालते हुए कहा.

‘‘परंतु मैं तो बिलकुल फ्री हूं,’’ कोई अचानक उन के बीच आ कर बोला तो स्वरा और वह लड़का दोनों चौंक गए.

अरे यह तो कमल है, उस के कालेज के दिनों का सहपाठी. स्वरा को याद आया, कितना स्मार्ट हो गया है यह लल्लू. फिर उस लड़के से उस का नंबर ले कर स्वरा ने उसे बाद में आने को कहा.

उस लड़के के जाने के बाद स्वरा और कमल मौल में ही एक रैस्टोरैंट में बैठे तो बात करतेकरते कब शाम हो गई उन्हें पता ही नहीं चला. अगले दिन मिलने का वादा कर के स्वरा घर आ गई, परंतु घर आ कर भी कमल की बातों को भूल नहीं पा रही थी. कितने दिनों के बाद किसी ने उस की इस तरह से तारीफ की थी. रात में खाना खा कर अभी वह लेटी ही थी कि फोन की घंटी बजी. फोन कमल का था. उस ने सोचा कि कमल को डांट दे कि अभी फोन करने का क्या मतलब? परंतु कर नहीं पाई. उन की बात जब खत्म हुई तो पता चला कि रात का 1 बज गया है.

फिर तो यह रोज का सिलसिला बन गया. या तो वे दिन में मिल लेते या घंटों फोन पर बातें करते रहते. स्वरा काफी खुश रहने लगी थी, क्योंकि कमल और उस की सोच काफी मिलती थी. वह कमल से उन सभी टौपिक पर बात करती, जिन पर वह अकेली बैठे सोचती रहती. फिर उसे लगता कि कमल आलोक से कितना अलग, कितना संवेदनशील है. ऐसा होने से दोनों ही एकदूसरे का साथ ज्यादा से ज्यादा चाहने लगे थे. एक दिन कमल ने अचानक स्वरा को फोन कर के मौल में बुला लिया और वह पहुंची तो बोला, ‘‘स्वरा, कल मैं कंपनी के काम से न्यू जर्सी जा रहा हूं. 1 महीने बाद आऊंगा.’’

‘‘क्या इतने दिन…’’

‘‘हां, लगेंगे तो इतने ही दिन. जाना तो मैं भी नहीं चाहता था पर तुम तो जानती ही हो मेरे बिजनैस की प्रौब्लम.’’

‘‘नहींनहीं कमल तुम जरूर जाओ. हम फोन पर तो बात करते रहेंगे.’’

‘‘स्वरा, मैं एक बात सोच रहा था.’’

‘‘हां, बोलो.’’

‘‘जाने से पहले तुम्हारे साथ कुछ वक्त गुजारना चाहता था.’’

‘‘गुजार तो रहे हो.’’

‘‘नहीं, ऐसे नहीं अकेले कहीं… तुम समझ रही हो न?’’

कुछ सोच कर स्वरा ने कहा, ‘‘बोलो, कहां चलें?’’

‘‘तुम कोई सवाल मत करो, बस चलो. मुझ पर तुम्हें भरोसा तो है न?’’

‘‘चलो, फिर चलें.’’

कमल ने गाड़ी एक आलीशान होटल के सामने रोकी.

‘‘ये कहां आ गए हम?’’ स्वरा गाड़ी से उतरते हुए बोली. वह खुद को असहज महसूस कर रही थी.

‘‘स्वरा, मुझे तुम से जो बात करनी है, उस के लिए एकांत जरूरी है.’’

होटल की लौबी से कमरे तक पहुंचने का रास्ता स्वरा को काफी लंबा महसूस हो रहा था, परंतु वह अंदर से एक अलग रोमांच का भी अनुभव कर रही थी. शादी के पहले कालेज बंक कर के जब स्वरा आलोक से मिलने जाया करती थी, तब भी कुछ ऐसा ही महसूस करती थी. परंतु एक अंतर यह था कि तब उस के कदम तेजी से बढ़ते थे, लेकिन आज बड़ी मुश्किल से उठ रहे थे.

‘‘आओ स्वरा, अंदर आओ. कहां खो गईं, भरोसा तो है न मुझ पर?’’

‘‘कमल, यह तुम ने दूसरी बार पूछा है. औफकोर्स है यार. न होता तो यहां तक आती क्या?’’

अंदर पहुंच कर कमल ने स्वरा को बिस्तर पर बैठाया और खुद उस के घुटनों के पास नीचे बैठ गया.

‘‘यह क्या कमल, तुम यहां क्यों बैठ रहे हो?’’

‘‘मुझे यहीं बैठने दो स्वरा, क्योंकि मुझे जो कहना है वह मैं तुम्हारी आंखों में आंखें डाल कर कहना चाहता हूं.’’

‘‘ऐसा क्या?’’

‘‘स्वरा, तुम से मिलने से पहले मैं सोचता था कि मेरी जिंदगी यों ही कट जाएगी. औफिस से घर व घर से औफिस. और एक ऐसी बीवी जो मुझ से ज्यादा किट्टी पार्टी और शौपिंग में रुचि रखती है. मैं शायद अपने दोनों बेटों की खातिर जी रहा था यह जिंदगी. लेकिन तुम मिलीं तो सब कुछ बदल गया. हम दोनों शादी की बेमजा जिंदगी में कैद हैं, इसलिए मैं तुम्हें अपना बनाना चाहता हूं,’’ ऐसा कहते हुए कमल स्वरा के एकदम करीब आ गया. इतना करीब कि उस की गरम सांसें स्वरा के कोमल कपोलों को सुलगाने गीं.

स्वरा ने इस क्षण के आने के बारे में सोचा न हो ऐसा न था. वह सोचती थी कि जब यह क्षण आएगा तो वह रोमांचित हो जाएगी. जो रिक्तता उस की शादीशुदा जिंदगी में आ गई थी, शायद वह भर जाएगी. परंतु यह क्या? कमल का पास आना उसे बिलकुलअच्छा नहीं लगा. उसे ऐसा लगा जैसे आलोक की कोई बहुत प्यारी चीज, कमल उस से छीनना चाहता है और वह ऐसा होने नहीं देना चाहती. उसी पल उस को यह भी एहसास हुआ कि अंदरूनी रूप से तो वह कभी भी आलोक से दूर हुई ही नहीं थी.

एक झटके में वह कमल को पीछे कर के खड़ी हो गई.

‘‘क्या हुआ स्वरा, मुझ से कोई भूल हो गई?’’

‘‘भूल, नहीं कमल, हुआ तो यह है कि तुम्हारी वजह से मैं समझ पाई कि मैं आलोक से कितना प्यार करती हूं. हमारी शादी में एक अल्पविराम जरूर लग गया था, परंतु प्रयास कर के मैं उसे हटा दूंगी. अल्पविराम को पूर्णविराम समझने की भूल से उबारने के लिए धन्यवाद दोस्त.’’

कमल को जड़ छोड़ कर स्वरा होटल से बाहर आ गई और औटो में बैठ कर उस ने 3 फोन किए. पहला, टूअर पैकेज वाले लड़के को और उस से गोवा की अगले हफ्ते की बुकिंग करवाई. दूसरा, अपनी मां को ताकि शिव उस पूरे हफ्ते किसी भरोसेमंद के पास रहे और तीसरा फोन किया आलोक को.

महत्त्वाकांक्षा: आधुनिकता की चमक में जब मीत ने आया को सौंपी बेटी की परवरिश

आजमीता का औफिस में कतई मन नहीं लग रहा था. सिर भारी हो गया था, आंखें सूजी हुई थीं. रात में वह सो जो नहीं पाई थी. पति से काफी नोकझोंक हुई थी. उस की पूरी रात टैंशन में गुजरी थी.

‘‘तुम औफिस से छुट्टी क्यों नहीं ले लेतीं.’’

‘‘आप क्यों नहीं ले लेते? पिछली दफा मैं ने लंबी छुट्टी नहीं ली थी क्या?’’ पति के कहने पर मीता फट पड़ी.

‘‘उस के पहले मैं ने भी तो लंबी छुट्टी ली थी.’’

उस के बाद दोनों के बीच खूब झगड़ा हुआ और फिर दोनों बिना कुछ खाएपीए सो गए.

सुबह उठने पर दोनों के चेहरों पर कई सवालिया निशान थे. बिना एकदूसरे से बोले और कुछ खाएपीए दोनों औफिस चले गए.

‘पूरी जिम्मेदारी औरत के सिर ही क्यों थोप दी जाती है.’ रहरह कर यही सवाल उसे बुरी तरह मथे जा रहा था. हर बार औरत ही समझौता करे? पत्नी की प्रौब्लम से पति को सरोकार क्यों नहीं? क्यों पुरुष इतना खुदगरज, लालची और हठधर्मी बन जाता है?

‘‘अरे, क्या हुआ? यह मुंह क्यों लटका हुआ है?’’ मैडम सारिका ने पूछा.

‘‘क्या बताऊं मैडम, बेटी को ले कर हम दोनों में रोज झगड़ा होता है. वह बीमार है. मुझे दफ्तर की ओर से विदेश यात्रा पर जाना है. ऐसे में मैं कैसे छुट्टी ले सकती हूं. पति मेरी कोई मदद नहीं करते, उलटे गृहिणी बनने की सलाह दे कर मेरा और मूड खराब कर देते हैं.’’

‘‘बेटी को क्या हुआ है?’’

‘‘उस ने हंसनाखेलना छोड़ दिया है. हमेशा उनींदी सी रहती है. रहरह कर दांत किटकिटाती है. हर समय शून्य में निहारती रहती है.’’

‘‘किसी चाइल्ड स्पैशलिस्ट को दिखाओ,’’ मैडम सारिका घबरा कर बोलीं.

‘‘मैं छुट्टी नहीं ले सकती… मेरी टेबल पर बहुत काम पड़ा है.’’

‘‘उस की तुम टैंशन मत लो… मैं सब संभाल लूंगी… तुम बेटी को किसी अच्छे डाक्टर को दिखाओ.’’

मीता को यह जान कर अच्छा लगा कि पति ने भी अगले दिन की छुट्टी ले ली है. अगली सुबह आया की राह देखी, उस के न आने पर पड़ोसिन को घर की चाबी दे कर डाक्टर के पास रवाना हो गए.

डिस्पैंसरी में बहुत भीड़ थी. प्राइवेट डिस्पैंसरी में भी सरकारी अस्पतालों जैसी भीड़ देख कर मीता दंग रह गई. उसे अपना नंबर आना नामुमकिन सा लगने लगा, क्योंकि शनिवार होने के कारण डिस्पैंसरी 1 बजे बंद हो जानी थी.

मीता को आज पता चला कि छुट्टी की कितनी अहमियत है. सरकारी और प्राइवेट औफिसों में कितना अंतर है. प्राइवेट औफिस सैलरी तो अच्छी देते हैं पर खून चूस लेते हैं. जरा भी आजादी नहीं… कितना मन मार कर काम करना पड़ता है… इंसान मशीन बन जाता है. अपनी आजादी पर ग्रहण लग जाता है.

इस बीच पड़ोसिन का फोन आया कि आया अभी तक नहीं आई है. पता नहीं क्या हो गया था उसे जो बिना बताए छुट्टी कर गई.

बड़ी देर बाद मीता का नंबर आया. बच्ची की हालत देख कर एक बार को डाक्टर भी चौंक गया. उस ने बच्ची की बीमारी से संबंधित बहुत सारे प्रश्न पूछे, जिन के मीता आधेअधूरे उत्तर ही दे पाई. जितना आया जानती थी उतना मीता कहां जानती थी… बच्ची का खानापीना, खेलनाखिलाना सब कुछ उसी के जिम्मे जो था. वह दिन भर आया के पास ही तो रहती थी.

बच्ची का मुआयना कर डाक्टर ने कुछ सावधानियां बरतने की सलाह दी और बच्ची को ज्यादा से ज्यादा अपने पास रखने की ताकीद भी की. साथ ही यह भी कहा कि आया पर पूरी नजर रखें. यह सुन मीता घबरा गई.

अब पतिपत्नी दोनों को एहसास हो रहा था कि उन से बच्ची की उपेक्षा हुई है. उन्होंने अपनी बेटी से ज्यादा नौकरी को अहमियत दी. यह उसी का दुष्परिणाम है, जो बच्ची की हालत बद से बदतर हो गई.

‘‘सुनो जी, मैं 1 सप्ताह की छुट्टी ले लेती हूं… सैलरी कटे तो कटे… बच्ची को इस समय मेरी सख्त जरूरत है,’’ मीता कहतेकहते रो पड़ी.

‘‘मैं भी छुट्टी ले लेता हूं मीता. मेरी भी बराबर की जिम्मेदारी है… कहीं का नहीं छोड़ा इस नौकरी ने हमें, महत्त्वाकांक्षी बन कर रह गए थे हम.’’

‘‘बच्ची को कुछ हो गया तो मैं कहीं की नहीं रहूंगी. विदेश जाने की धुन ने मुझे एक तरह से अंधा बना दिया था,’’ मीता अपने पति के कंधे पर सिर रख कर रोने लगी.

 

बच्ची की आंखें थोड़ी खुलतीं, फिर बंद हो जातीं. वह अपनी अधखुली आंखों से शून्य में निहारती. अपनी मां को अर्धबेहोशी में देखते रहने का वह पूरा प्रयत्न करती.

‘‘बेटी आंखें खोल… अपनी ममा से बातें कर… देख तो तेरी ममा कितनी दुखी हो रही है… अब तुझे कभी आया के पास नहीं छोड़ेगी तेरी ममा… जरा तो देख..’’ कहतेकहते मीता का कंठ पूरी तरह अवरुद्ध हो गया.

रोतेबिलखते कब उस की आंख लग गई, उसे पता ही नहीं चला. दरवाजे पर आहट से वह जागी. दरवाजा खोला तो सामने पति हाथ में लिफाफा लिए खड़े थे. पति के हाथों से लगभग उसे छीन कर बच्ची की ब्लड रिपोर्ट पढ़ने लगी.

‘‘ड्रग्स,’’ उस ने प्रश्नवाचक दृष्टि से पति की ओर ताका.

‘‘हां, ड्रग्स. बच्ची को धीमा जहर दिया जा रहा था. जरूर यह आया का काम है. तभी तो वह अब नहीं आ रही है.’’

‘‘बेबी के शरीर ने फंक्शन करना बंद कर दिया है,’’ मीता को डाक्टर का यह कहना याद आ गया और वह चक्कर खा कर बिस्तर पर जा गिरी.

कुछ समय बाद अचानक डाक्टर का फोन आया. बच्ची को ले कर क्लीनिक बुलाया. डाक्टर ने पुलिस को फोन कर आया को गिरफ्तार भी करा दिया था. पुलिस आया को ले कर क्लीनिक आ गई थी. उन के वहां पहुंचने पर आया उन से मुंह छिपाने का प्रयास करने लगी. तब पुलिस ने उन के सामने ही आया से पूछताछ शुरू की.

‘‘क्या आप की आया यही है?’’

‘‘जी, यही है,’’ दोनों ने एकसाथ जवाब दिया.

‘‘बच्ची पूरा दिन आया के पास ही रहती थी क्या?’’

‘‘जी हां, हम दोनों तो अपनेअपने औफिस चले जाते थे.’’

‘‘क्या आप ने इसे नौकरी पर रखते समय पुलिस थाने में जानकारी दी थी?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘यही आप से बहुत बड़ी गलती हुई है…’’ पुलिस इंस्पैक्टर ने दो टूक शब्दों में कहा और फिर आया की ओर मुखातिब हुए, ‘‘पतिपत्नी के औफिस जाने के बाद तुम बच्ची को कहां ले जाती थी?’’

‘‘जी, कहीं नहीं, मैं पूरा समय घर पर ही रहती थी.’’

‘‘झूठ… इन को जानती हो?’’ पुलिस ने पास के पार्क के माली की ओर इशारा कर के पूछा तो आया का चेहरा उतर गया. पार्क में बीमार बच्ची के नाम पर भीख मांगती थी. बच्ची बीमार सी लगे, इसलिए उसे भूखा रखती, ऊपर से धीमे जहर ने बच्ची पर और कहर ढा दिया था. पर समय रहते डाक्टर के रिपोर्ट करने पर पुलिस ने उसे रेलवे स्टेशन से गिरफ्तार कर लिया था.

अब आया जेल में थी और बच्ची अस्पताल में जीवनमृत्यु के बीच झूल रही थी. वह अपने मातापिता की महत्त्वाकांक्षा की बलि जो चढ़ गई थी.

 

मृगमरीचिका एक अंतहीन लालसा: मीनू ने कैसे चुकाई कीमत

प्रेम विवाह: भाग 2- अभिजित ने क्यों लिया तलाक का फैसला?

शादी के बाद हनीमून मना कर वे घर में दाखिल हुए तो कैथरीन की सास जानकी ने उस से कहा, ‘देखो कैथरीन, अब तुम इस घर की बहू हो. पर एक बात मैं तुम्हें साफसाफ बता देना चाहती हूं. मेरी रसोई में प्रवेश न करना. मेरी सास छुआछूत बहुत मानती हैं और किसी का छुआ नहीं खातीं.’

‘जी,’ कैथरीन बोली. पर उस का सर्वांग सुलग उठा.

‘एक बात और सवेरे जब उठो तो अपनी नाइटी बदल कर सलवारकमीज या साड़ी पहन कर बाहर आना. घर के बड़ेबूढ़ों का थोड़ाबहुत लिहाज तो करना ही पड़ेगा.’

‘जी,’ कैथरीन बोली.

उस ने मन ही मन अपने दांत पीसे. घर में घुसते ही इतनी हिदायतें, बंदिशें. घर भी क्या था एक खंडहर. बदरंग दीवारें, जगहजगह से प्लास्टर उखड़ा हुआ. दड़बे जैसे कमरे. उसे और अभि को सब से अच्छा कमरा दिया गया था. कमरा क्या एक कोठरी थी.

एक बात उसे बहुत अखरती थी. देर रात तक घर के लोग जागते रहते थे. अभि के पिता दमे के मरीज थे और निरंतर खांसते रहते थे. सवेरे 5 बजे सास उठ जातीं और किचन में खटरपटर करने लगतीं.

अभि कैथरीन को अपनी बांहों में लेता तो वह उसे परे धकेलती, ‘रुको, अभि, घर में सब जाग रहे हैं.’

‘तो क्या हुआ, हम पतिपत्नी हैं और अपने कमरे में बंद हैं. हमें किसी से क्या लेना?’

‘नहीं, मुझे शर्म आती है.’

‘ओहो, यह क्या गंवारों जैसी बातें कर रही हो. कम औन यार, वक्त जाया न करो. मेरी बांहों में आओ. आज रविवार है,’ अभि ने कहा.

‘तो?’

‘आज का दिन तुम्हारे नाम. हम पूरा दिन साथ बिताएंगे. पहले एक बढि़या से रेस्तरां में तुम्हें खाना खिलाएंगे. उस के बाद पिक्चर देखेंगे और शाम को पार्क में टहल कर घर लौटेंगे.’

कैथरीन उस से लिपट गई, ‘ओह अभि, तुम कितने अच्छे हो.’

पार्क में बैठेबैठे उस ने अभि के कंधे पर सिर रख दिया.

‘अभि, आज का दिन कितना अच्छा गुजरा. काश हमें एकांत खोजने के लिए घर से बाहर न आना होता. क्यों अभि, क्या हम अलग मकान में शिफ्ट नहीं कर सकते? छोटा सा 1 बैडरूम वाला, किराए का ही सही.’

‘यह कैसे संभव है डार्लिंग? 2 घर चलाना मेरे लिए मुमकिन नहीं और मैं एकएक पैसा अपनी बहनों की शादी के लिए जोड़ रहा हूं. किराए के घर के लिए भी डिपौजिट की जरूरत पड़ती है. वह कहां से लाएंगे?’

‘ओह,’ कैथरीन ने एक ठंडी सांस भरी, ‘तो सारा खेल पैसों का है.’

अगर उस का बस चलता तो वह अभि के परिवार को घर से चलता कर देती. घर मकान मालिक को लौटा कर बदले में एकमुश्त पैसे ले कर एक अलग घर बसाती, जहां वह और अभि आनंद से रहते. पर यह सब एक आकाश कुसुम जैसा था.

‘तो कम से कम मुझे ही कोई नौकरी कर लेने दो,’ उस ने कहा, ‘घर पर तो अम्मां मुझे किसी काम को हाथ लगाने नहीं देतीं और मैं दिन भर बैठी बोर होती रहती हूं.’

‘तुम नौकरी करोगी?’

‘हां, इस में हरज ही क्या है. मैं ग्रैजुएट हूं और मैं ने सैके्रेटरी का कोर्स भी किया हुआ है. उस रोज मेरी सहेली शीला मिली थी. वह बता रही थी कि वरली में एक प्राइवेट कंपनी में रिसेप्शनिस्ट की पोस्ट खाली है. वेतन भी ठीक है और काम भी हलका है. क्या कहते हो?’

‘ठीक है. तुम्हें जंचे तो कर लो.’

कैथरीन अपनी नई नौकरी पर गई तो उसे बहुत अच्छा लगा. उस के सहकर्मी बड़े मिलनसार थे. पर अपने बौस चौधरी को ले कर वह तनिक उलझन में पड़ गई. उस के बौस जरा रंगीन मिजाज के थे. उन की आदत थी कि दफ्तर में घुसते ही स्टाफ की लड़कियों को छेड़ते, उन से चुहल करते. सब से हायहैलो करते. वे कैथरीन की मेज पर रुकते, उस से थोड़ी देर बतियाते, फिर अपने कैबिन में दाखिल होते.

‘इस रोमियो से जरा बच कर रहना,’ उसे उस के सहकर्मियों ने आगाह किया, ‘यह सब लड़कियों से फ्लर्ट करता है, उन के करीब आने की कोशिश करता है. इस से दूरी बनाए रखना.’

एक दिन चौधरी ने उसे बुलाया,

‘मिस कैथरीन, मुझे मालूम हुआ है कि तुम ने सैके्रटरी का कोर्स किया हुआ है. मेरी स्टैनो छुट्टी पर गई हुई है. अगर कुछ दिन तुम उस का काम भी संभाल लो तो मैं तुम्हारा आभारी होऊंगा.’

भला वह कैसे इनकार कर सकती थी. जबतब उस का इंटरकौम बज उठता, ‘कैथरीन, मेरे कैबिन में आना. एक लैटर डिक्टेट करना है.’

एक बार तो वह लिफ्ट से नीचे जा रही थी कि चौधरी भी लिफ्ट में आ गया.

‘तुम घर ही जा रही हो न. कहो तो मैं तुम्हें ड्रौप कर दूं.’

‘नहीं सर, मैं चली जाऊंगी.’

लेकिन चौधरी ने उस की एक न सुनी.

यहां तक तो ठीक था पर एक दिन लिफ्ट में उसे अकेली पा कर चौधरी ने उसे चूम लिया. वह हड़बड़ा गई.

‘सौरी डियर, तुम जब मुसकराती हो तो तुम्हारे गालों में जो गड्ढे पड़ते हैं वे इतने प्यारे लगते हैं कि मैं खुद को रोक न सका,’ चौधरी ने सफाई दी.

वह कैंटीन में बैठी घर से लाया हुआ सैंडविच खा रही थी कि उस के सहकर्मियों ने प्रवेश किया.

‘हैलो कैथरीन, कैसा चल रहा है?’

‘ठीक है.’

‘क्या बात है, तुम कुछ परेशान सी लग रही हो?’ शुक्ला ने कहा, ‘लगता है अपने दिलफेंक आशिक ने कोई गुस्ताखी की है.’

कैथरीन की आंखों में आंसू छलक आए.

‘मैं यह नौकरी छोड़ दूंगी,’ वह बोली.

‘तुम क्यों नौकरी छोड़ोगी? नौकरी तो उसे छोड़नी होगी.’

‘हां, हम सब उस के बरताव से तंग आ गए हैं,’ बनर्जी ने कहा, ‘हम उसे ऐसा सबक सिखाना चाहते हैं कि वह दोबारा कभी लड़कियों को छेड़ने की हिम्मत नहीं करेगा.’

‘हम ने एक प्लान बनाया है,’ गोडबोले ने कहा, ‘तुम साथ दो तो ही इसे अंजाम दिया जा सकता है.’

‘क्या मतलब?’

उन्होंने उसे बताया.

वह सोच में पड़ गई.

‘ओह, मुझे नहीं लगता कि मैं यह सब कर पाऊंगी,’ वह बोली.

‘सोच लो. हम तुम्हें इस काम के लिए 2 लाख रुपए देंगे.’

‘2 लाख?’ वह चकित हुई.

‘हां, हम ने ये रुपए चंदा मांग कर इकट्ठे किए हैं. हम किसी भी कीमत पर चौधरी को यहां से भगाना चाहते हैं. उस ने मेरी बहन का जीवन बरबाद कर दिया. वह इस की चिकनीचुपड़ी बातों में आ गई और इसे दिल दे बैठी. वह सोचती थी कि यह अपनी पत्नी को तलाक दे कर उस से शादी कर लेगा. पर इस ने उसे धोखा दिया. मेरी बहन अपना मानसिक संतुलन खो बैठी है.’

‘लेकिन इस काम में बड़ा जोखिम है,’ उस ने आपत्ति की.

‘बिलकुल नहीं. बात हम चारों के बीच रहेगी. किसी और को कानोंकान खबर भी न होगी, सोच लो. 5 मिनट के काम के लिए 2 लाख मिल रहे हैं.’

वह उधेड़बुन में पड़ी रही. बड़ी विषम परिस्थिति थी. पैसा उस की कमजोरी था. इतने सारे पैसे हाथ आ गए तो उस की सारी मुश्किलें दूर हो जाएंगी. वह और अभि एक अलग मकान किराए पर ले लेंगे और जिंदगी का भरपूर आनंद उठाएंगे. काफी सोचविचार के बाद उस ने निश्चय कर लिया.

हमेशा की तरह चौधरी ने उसे बुलाया. वह शौर्टहैंड की नोटबुक ले कर गई. फिर चौधरी ने साथ कौफी पीने की फरमाइश की. वह उसे कौफी का प्याला थमा रही थी कि प्याला छलक गया और गरमगरम कौफी उस के हाथों पर गिर गई. प्याला उस के हाथ से छूट कर छन्न से जमीन पर जा गिरा. उस के मुंह से चीख निकली.

‘अरे, जरा सी कौफी ही तो गिरी है. इस में इतना परेशान होने की क्या बात है?’ चौधरी ने कहा.

पर उस पर तो जैसे पागलपन सवार हो गया था. वह फिर जोर से चीखी.

‘क्या हुआ, हाथ जल गया क्या? देखूं तो,’ चौधरी ने उस का हाथ थामा.

उस ने उस का हाथ झटक दिया, ‘मुझे हाथ मत लगाना. मुझ से दूर रहो बदमाश कहीं के.’

चौधरी हक्काबक्का रह गया.

‘यह क्या बक रही हो? तुम होश में तो हो?’

तभी अचानक कैबिन का द्वार खुला और 4 लोग अंदर घुस आए.

‘क्या बात है? यह हंगामा कैसा है?’

कैथरीन उन लोगों को देख कर रोते हुए बोली, ‘इस आदमी ने मुझे रेप करने की कोशिश की.’

चौधरी का चेहरा पीला पड़ गया.

‘यह झूठ है. मैं ने इसे हाथ भी नहीं लगाया.’

‘इस ने मुझ से हाथापाई की. मुझे अपनी बांहों में लेना चाहा. मेरे कपड़े फाड़ दिए.’

‘झूठ, सरासर झूठ,’ चौधरी ने सिर हिलाया.

कैथरीन फूटफूट कर रोने लगी.

कैबिन में भीड़ इकट्ठा हो गई थी. कुछ के हाथों में कैमरे थे. वे धड़ाधड़ तसवीरें ले रहे थे. दरअसल, वे टीवी और अखबार वाले थे.

‘हम ने पुलिस को खबर कर दी है,’ किसी ने कहा.

‘नहीं, पुलिस मत बुलाओ,’ चौधरी गिड़गिड़ा रहा था, ‘आप लोग जानते हैं कि यह इलजाम सरासर झूठा है. आप जो चाहें मैं करने के लिए तैयार हूं. मैं इज्जतदार आदमी हूं.’

कैथरीन जब घर पहुंची तो घर के लोग टीवी के इर्दगिर्द बैठे थे. अभि का चेहरा उतरा हुआ था.

 

साथ: भाग 1- पति से दूर होने के बाद कौन आया शिवानी की जिंदगी में

बात 5 साल पहले की है. मेरी शादी को 1 साल हो चुका था. पर अमन और मेरे विचारों में इतना अंतर था कि अकसर हमारे बीच छोटीछोटी बातों को ले कर बहस होती रहती थी. हद तो एक दिन तब हो गई जब अमन शाम को गुस्से में घर आए और आते ही मुझे जोरजोर से पुकाराना शुरू का दिया.

मैं ऊपर के कमरे से जल्दी से नीचे आ गई, ‘‘क्या हुआ अमन सब ठीक तो है न?’’

‘‘नहीं, तुम्हारे रहते कुछ भी ठीक नहीं हो सकता. आज तुम्हारी वजह से औफिस में मेरी बहुत बेइज्जती हुई,’’ अमन की आंखें लाल हो चुकी थीं.

‘‘पर मैं ने क्या किया?’’ मैं ने भी गुस्से में पूछा.

मुझे गुस्से में देख कर अमन और गुस्से में आ गए, ‘‘तुम जैसी अनपढ़ और गंवार के साथ मेरी जिंदगी नर्क बन गई है. तुम ने आज खाने में नमक इतना मिला दिया था कि लंच टाइम में सब ने मेरी हंसी उड़ाई.’’

‘‘देखो अमन, पहली बात तो यह कि मैं अनपढ़ नहीं हूं और दूसरी बात यह कि अगर एक दिन नमक थोड़ा ज्यादा हो गया तो कौन सा तूफान आ गया? आप वह खाना फेंक कर बाजार से कुछ और मंगवा लेते,’’ मैं ने चिल्ला कह कहा.

मुझ से मेरे इस तरह का जवाब सुन कर अमन गुस्से से कांपने लगे और मेज पर पड़ा फूलदान उठा कर मेरी तरफ फेंक दिया. अगर वक्त रहते मैं वहां से हटी न होती तो मेरा सिर फट जाता. अब तो मामला बरदाश्त से बाहर हो चुका था. सब्जी में नमक थोड़ा ज्यादा होने पर अमन हाथ उठा सकते हैं, ऐसा मैं ने सोचा भी नहीं था. वह रात जैसेतैसे कट गई पर सुबह होते ही मैं ने अमन से कह दिया कि जो कुछ रात को हुआ अगर वह दोबारा हुआ तो मैं गांव से आप के मांबाप को बुला लूंगी. अमन अपने मांबाप की बहुत इज्जत करते थे, इसलिए मेरी बात का असर उन पर तुरंत हुआ. कुछ दिन शांति से निकल गए पर उन का गुस्सा उन्हें कैसे छोड़ता.

एक दिन हम दोनों उन के एक दोस्त के घर गए. वहां उन के दोस्त की पत्नी, जो फैशन डिजाइनर हैं, अपने कपड़ों की खुद तारीफ कर रही थीं. अमन का मूड खराब हो गया. घर आ कर वे मु?ा पर फिर ?ाल्ला उठे, ‘‘तुम्हें कपड़े पहनने की तमीज भी नहीं.’’

इतना कह कर वे सोने चले गए और मैं ने वहीं सोफे पर सारी रात अपने से बातें करने में निकाल दी.

सुबह मैं ने एक फैसला लिया. मैं चाय बना कर अमन के पास गई. उन्हें बहुत प्यार से जगाया और चाय का कप पकड़ा कर प्यार से कहा, ‘‘अमन, आप को शायद ठीक ही लगता है, मैं आप के लायक नहीं हूं. क्या आप मुझे एक मौका देंगे?’’

अमन ने चाय का एक घूंट ही भरा था. उन का हाथ रुक गया और वे हैरानी से पूछने, ‘‘मौका, कैसा मौका?’’

‘‘मैं नौकरी करना चाहती हूं, ताकि दिल्ली में रहने के तौरतरीके सम?ा सकूं और आप के लायक बन सकूं. मैं ने ग्रैजुएशन कर रखा है. मुझे छोटीमोटी नौकरी तो मिल ही जाएगी. वैसे भी घर पर तो मैं सारा दिन बोर ही होती रहती हूं. बाहर जाऊंगी तो कुछ सीखने को मिलेगा,’’ मैं ने एक ही सांस में सब कुछ बोल दिया.

‘‘नौकरी, पर…,’’ अमन ने थोड़ा गंभीर हो कर कहा.

मैं ने उन को बीच में ही टोक दिया, ‘‘पर कुछ नहीं, नौकरी करूंगी तो यहां का अंदाज भी समझ आ जाएगा. फिर आप को मुझे कहीं ले जाने में शर्म नहीं आएगी.’’

‘‘देखो शिवानी, तुम्हारे नौकरी करने में मुझे कोई एतराज नहीं है पर तुम नहीं कर पाओगी. यह दिल्ली है, यहां अंगरेजी आनी जरूरी है. तुम से नहीं हो पाएगा, तुम रहने दो,’’ उन्होंने चाय का कप एक तरफ रखते हुए कहा.

‘‘पर मुझे एक मौका तो दीजिए,’’ मैं ने उन का हाथ पकड़ लिया.

‘‘ठीक है, तुम करना चाहो तो कोशिश कर लो, पर मुझे पता है कि तुम्हारा यह जोश जल्दी ही ठंडा पड़ जाएगा,’’ वे एक अजीब सी हंसी हंस कर बाथरूम में फ्रैश होने चले गए.

उन की उस हंसी ने मेरे नौकरी करने के इरादे को और पक्का कर दिया. अखबारों में विज्ञापन देखदेख कर मैं ने 1 हफ्ते में 10 इंटरव्यू दे डाले पर कुछ हाथ न लगा.

मेरी इतनी भागदौड़ का फल मुझे एक दिन मिल गया. एक कंपनी में मुझे सेल्सगर्ल की नौकरी मिल गई. इस पर भी अमन ने एक कांटा यह कह कर चुभा दिया कि जो नौकरी तुम को मिली है उसे तो दिल्ली की कालेज की लड़कियां अपनी छुट्टियों में टाइम पास करने के लिए करती हैं. उन की इस बात से नौकरी मिलने का जोश थोड़ा थम गया पर ठंडा नहीं हुआ.

औफिस के काम में सारे दिन का पता ही नहीं चलता था. मुझे अपने काम के सिलसिले में बहुत लोगों से मिलनाजुलना होता था, जिन में से कुछ अमन जैसे घमंडी और गुस्सैल होते थे तो कुछ साहिल जैसे शांत. साहिल मेरे साथ काम करता था. मैं सेल्स में थी तो वह अकाउंट में. काम के सिलसिले में हम अकसर बात करते थे.

वह बहुत शांत और समझदार इंसान था. सारा औफिस उस की तारीफ करता था. हर किसी की मदद करने में वह सब से आगे रहता था. मेरी पहली नौकरी थी, इसलिए सब से ज्यादा मुझे ही उस की मदद की जरूरत पड़ती थी.

साहिल के प्रमोशन की पार्टी थी. उस ने औफिस के सभी लोगों को अपने घर पर बुलाया था. उस की मां से मिल कर पता चला कि साहिल के पिताजी बचपन में ही गुजर गए थे और उन्होंने किस तरह मेहनत कर के साहिल को काबिल बनाया था. साहिल की मां मेरठ की थीं और शादी के बाद दिल्ली आई थीं. उन से मिल कर मुझे अपनी मां की याद आ गई थी.

उस दिन घर वापस आने में थोड़ी देर हो गई. मुझे डर था कि कहीं अमन गुस्सा न हो जाए, पर मेरी सोच से उलट अमन ने घर का दरवाजा खोलते ही नाराज होने के बजाय मेरे सूट की तारीफ की. उस रात अमन का मूड बहुत अच्छा था. अगली सुबह अमन ने बताया कि उन को 4 दिन के लिए औफिस के काम से पुणे जाना है. मैं ने उन को कहा कि मैं अकेली कैसे रहूंगी तो उन्होंने कहा कि अब तुम भी नौकरी करती हो, अपनेआप में थोड़ा आत्मविश्वास जगाओ.

अमन चले गए तो सिर्फ अपने लिए लंच बनाने का दिल नहीं हुआ. औफिस में लंच टाइम में कैंटीन गई तो वहां साहिल को देख कर मुझे हैरानी हुई, क्योंकि साहिल की मां ने बताया था कि साहिल बाहर का खाना नहीं खाते.

मैं ने साहिल के सामने वाली कुरसी पर बैठते हुए पूछा, ‘‘साहिल, आप तो बाहर का खाना नहीं खाते, फिर आज कैंटीन में कैसे?’’

‘‘बस यों ही, मांजी की तबीयत थोड़ी ठीक नहीं थी इसलिए,’’ उस के चेहरे पर थोड़ी परेशानी आ गई.

‘‘क्या हुआ मांजी को?’’ मैं ने पूछा.

‘‘कल रात से बुखार है. अगर मुझे मैनेजर को इस महीने की रिपोर्ट नहीं देनी होती तो आज घर पर ही रुक जाता,’’ उस के चेहरे पर परेशानी दिख रही थी.

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