Serial Story: सजा किसे मिली (भाग-2)

पूर्व कथा

अस्पताल में पड़ी अल्पना की आंखों में अतीत चलचित्र की भांति घूमने लगा.

अल्पना संपन्न परिवार के कामकाजी मातापिता की इकलौती बेटी थी. मातापिता की व्यस्तता के कारण अल्पना ने बोलनाचलना दादी और आया की गोद में सीखा था.

10 वर्ष की होने पर उसे बोर्डिंग स्कूल में डाल दिया गया. वह छुट्टियों में घर आती थी. लेकिन व्यस्तता के कारण उस के मातापिता के पास उस के लिए समय नहीं था. धीरेधीरे अल्पना के मन में अपने मातापिता के प्रति नफरत पनपने लगी.

एक बार वह छुट्टियों में अपनी सहेली स्नेहा के घर जाती है. वहां जा कर उसे घर और मां के स्नेह का एहसास होता है.

अपने घर आने पर वही सूनापन उस पर हावी होने लगता है और वह वापस होस्टल लौट जाती है.

दोबारा छुट्टियां पड़ने पर वह वार्डन को घर जाने से मना कर देती है. सभी लोग उसे समझाते हैं पर अल्पना साफ इनकार कर देती है. होस्टल में सभी लोग उस के मातापिता के बारे में पूछते हैं लेकिन अल्पना कारण पूछने पर चुप्पी साध लेती है. नतीजा यह होता है कि फर्स्ट टर्म में वह फेल हो जाती है. अब आगे…

गतांक से आगे…

अल्पना की यह दशा देख कर एक दिन मिस सुजाता ने उसे बुला कर कहा था, ‘बेटा, तुम्हें देख कर मुझे अपना बचपन याद आता है…यही अकेलापन, यही सूनापन…मैं ने भी सबकुछ भोगा है…अपने मातापिता के मरने के बाद चाचाचाची के ताने, चचेरे भाईबहनों की नफरत…सब झेली है मैं ने. पर मैं कभी जीवन से निराश नहीं हुई बल्कि जितनी भी मन में चोटें पड़ती गईं, उतनी ही विपरीत परिस्थितियों से लड़ने का साहस मन में पैदा होता गया.

‘जीवन से भागना बेहद आसान है बेटा, लेकिन कुछ सार्थक करना बेहद कठिन…पर तुम ने तो आसान राह ढूंढ़ ली है…न जाने तुम ने यह कैसी ग्रंथि पाल ली है कि तुम्हारे मातापिता तुम्हें प्यार नहीं करते हैं…हो सकता है उन की कुछ मजबूरी रही हो जिसे तुम अभी समझ नहीं पा रही हो.

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‘तुम्हारे मातापिता तो हैं पर जरा उन बच्चों के बारे में सोचो जो अनाथ हैं, बेसहारा हैं या दूसरों की दया पर पल रहे हैं…फिर ऐसा कर के तुम किसे कष्ट दे रही हो, अपने मातापिता को या खुद को…जीवन तो तुम्हारा ही बरबाद होगा…जीवन बहुत बहुमूल्य है बेटा, इसे व्यर्थ न होने दो.’

दूसरों की तरह वार्डन का समझाना भी उसे बेहद नागवार गुजरा था…पर उन की एक बात उस के दिमाग में रहरह कर गूंज रही थी…जीवन से भागना बेहद आसान है बेटा, पर कुछ सार्थक करना बेहद कठिन…उस ने सोच लिया था कि अब से वह दूसरों के बारे में न कुछ कहेगी और न ही कुछ सोचेगी…जीएगी तो सिर्फ अपने लिए…आखिर जिंदगी उस की है.

सब तरफ से ध्यान हटा कर उस ने पढ़ने में मन लगा लिया…पहले जहां वह ऐसे ही पास होती रही थी अब मेरिट में आने लगी. सभी उस में परिवर्तन देख कर चकित थे. हायर सेकंडरी में उस ने अपने स्कूल में द्वितीय स्थान प्राप्त किया. इस के बाद आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली चली आई. कंप्यूटर साइंस में बी.एससी. करने के बाद वहीं से एम.एससी. करने लगी पर तब भी वह अपने घर नहीं गई. इस दौरान उस के मातापिता ही मिलने आते रहे पर वह निर्विकार ही रही.

एक बार उस की मां ने कहा, ‘बेटा, 1-2 अच्छे लड़के मेरी निगाह में हैं, अगर तू देख कर पसंद कर ले तो हमारी एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी पूरी हो जाएगी.’

‘किस जिम्मेदारी की बात कर रही हैं आप? अब तक आप ने कौन सी जिम्मेदारी निभाई है? जब बच्चे को मां का आंचल चाहिए तब आप ने मुझे क्रेच में डाल दिया, जब एक बेटी को मां के प्यार और अपनेपन की जरूरत थी तब होस्टल में डाल दिया…यह भी नहीं सोचा कि आप की मासूम बेटी अपने नन्हेनन्हे हाथों से खाना कैसे खाती होगी, कैसे स्कूल के लिए तैयार होती होगी…

‘आप को मुझ से नहीं, अपने कैरियर से ही प्यार था…बारबार आप क्यों आ कर मेरे दंश को और गहरा कर देती हैं…मैं ने तो मान लिया कि मेरा कोई नहीं है…आप भी यही मान लीजिए…जहां तक विवाह का प्रश्न है, मुझे विवाह के नाम से नफरत है…ऐसे बंधन से क्या लाभ जिस में 2 इनसान जकड़े तो रहें पर प्यार का नामोनिशान ही न हो…दैहिक सुख से उत्पन्न संतान के प्रति जिम्मेदारी का एहसास तक न हो.’

मां चली गई थीं. उन की आंखों से निकलते आंसू उसे सुकून दे रहे थे, मानो उस में दिल नाम की चीज ही नहीं रह गई थी…तभी तो उन्हें देखते ही न जाने उसे क्या हो जाता था कि वह जहर उगलने लगती थी…पर यह भी सच है कि उन के जाने के बाद वह घंटों अपने ही अंतर्कवच में कैद बैठी रह जाती थी.

एक ऐसे ही क्षण जब वह अपने कमरे में अकेली बैठी थी तब राहुल ने अंदर आते हुए उस से कहा, ‘अंधेरे में क्यों बैठी हो, अल्पना…याद नहीं है प्रोजेक्ट के लिए डाटा कलेक्ट करने जाना है.’

‘बस, एक मिनट रुको…ड्रेस चेंज कर लूं,’ अंतर्कवच से बाहर निकल कर उस ने कहा था.

राहुल उस का क्लासमेट था…पढ़ाई में जबतब उस की मदद किया करता था, प्रोजेक्ट भी उन्हें एक ही मिला था अत: साथसाथ आनेजाने के कारण उन में मित्रता हो गई थी.

एक दिन वे प्रोजेक्ट कर के लौट रहे थे. राहुल को परेशान देख कर उस ने परेशानी का कारण पूछा तो राहुल ने कहा, ‘मेरा मकान मालिक घर खाली करने को कह रहा है, समझ में नहीं आता कि क्या करूं, कहां जाऊं. 1-2 जगह पता किया तो किराया बहुत मांगते हैं और उतना दे पाने की मेरी हैसियत नहीं है.’

‘तुम मेरा रूम शेयर कर लो. हम दोनों साथ पढ़ते हैं, साथसाथ जाते हैं…एक जगह रहने से सुविधा हो जाएगी.’

‘पर….’

‘पर क्या? मैं किसी की परवा नहीं करती…जो मुझे अच्छा लगता है वही करती हूं.’

दूसरे दिन ही राहुल शिफ्ट हो गया था. उस की मित्र बीना ने उस के इस फैसले पर विरोध करते हुए उसे चेतावनी भी दी थी पर उस का यही कहना था कि उसे किसी की परवा नहीं है, उस की जिंदगी है, जैसे चाहे जीए. किसी को कुछ भी कहने का अधिकार नहीं है.

बीना ने यह सब कुछ अल्पना की मां को बता दिया तो वह उसे समझाने आईं, फिर भी वह अपनी जिद पर अड़ी रही तो मां ने पैसा न भेजने का निर्णय सुना दिया. इस पर उस ने भी क्रोध में कह दिया था, ‘आज तक आप ने दिया ही क्या है…सिर्फ पैसा ही न, अगर वह भी नहीं देना चाहतीं तो मत दीजिए, मुझे उस की भी कोई परवा नहीं है.’

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मां रोते हुए और पापा क्रोधित हो कर चले गए थे. उस दिन उसे बेहद सुकून मिला था. पता नहीं क्यों जबजब वह मां को रोते हुए देखती, उसे लगता जैसे उस के दुखते घावों में किसी ने मरहम लगा दिया हो.

उसी दिन न जाने उसे क्या हुआ कि उस ने राहुल के सामने समर्पण कर दिया. राहुल ने आनाकानी भी की तो वह बोली, ‘जब मुझे कोई परेशानी नहीं है तो तुम्हें क्यों है? फिर मैं विवाह के लिए तो कह नहीं रही हूं. हम जब चाहेंगे अलग हो जाएंगे.’

पढ़ाई पूरी होते ही उन की नौकरी लग गई. किंतु एक ही शहर में होने के कारण उन का संबंध कायम रहा.

पूरी सावधानी बरतने के बाबजूद एक दिन अल्पना को लगा जैसे उस के शरीर में कुछ ऐसा हो रहा है जो वह पहली बार महसूस कर रही है. वह राहुल को इस बारे में बताना चाहती ही थी कि उस ने कहा, ‘अल्पना, मांपिताजी विवाह के लिए जोर डाल रहे हैं, अब मुझे दूसरा घर ढूंढ़ना होगा.’

राहुल की बात सुन कर अल्पना चौंक गई और बोली, ‘तुम ऐसा कैसे कर सकते हो. और मुझे ऐसी हालत में छोड़ कर तुम कैसे जा सकते हो?’

‘कैसी हालत?’ राहुल बोला.

‘मैं तुम्हारे बच्चे की मां बनने वाली हूं.’

‘यह तुम्हारी प्रोब्लम है, इस में मैं क्या कर सकता हूं?’

‘सहयोगी तो तुम भी रहे हो.’

‘वह तो तुम्हारी वजह से…तुम्हीं ने कहा था कि जब मुझे एतराज नहीं है तो तुम्हें क्यों है…अब तुम भुगतो?’

‘ऐसा तुम कैसे कह सकते हो…तुम तो मेरे मित्र, हमदर्द रहे हो.’

‘देखो अल्पना, पिताजी मेरा विवाह तय कर चुके हैं और उन्हें मना करना मेरे लिए संभव नहीं है. फिर मैं तुम्हारी जैसी लड़की के साथ संबंध कैसे बना सकता हूं जो विवाह जैसी संस्था में विश्वास ही न करती हो और विवाह से पहले ही अपना शरीर किसी को दे देने में उसे कुछ आपत्तिजनक नहीं लगता हो.’

‘परंपराओं की दुहाई मत दो, राहुल. तुम भी विवाह से पहले संबंध बना चुके हो. क्या तुम उस लड़की के साथ अन्याय नहीं करोगे जिस के साथ तुम विवाह कर रहे हो?’

‘मेरी बात और है, मैं पुरुष हूं… फिर तुम्हारे पास प्रमाण क्या है?’

आगे पढ़ें- प्रमाण की बात सुनते ही अल्पना गुस्से से…

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Serial Story: सजा किसे मिली (भाग-1)

नन्ही अल्पना के मातापिता के पास अपनी मासूम बेटी के लिए समय नहीं था. ऊपर से उन के द्वारा लगाई गई पाबंदियां थीं, सो अलग. अकेलेपन की शिकार अल्पना के बालमन में धीरेधीरे अपने मातापिता के प्रति नफरत के बीज अंकुरित होने लगे.

अल्पना की आंखें खुलीं तो खुद को अस्पताल के बेड पर पाया. मां फौरन उस के पास आ कर बोलीं, ‘‘कैसी है, बेटी. इतनी बड़ी बात तू ने मुझ से छिपाई… मैं मानती हूं कि अच्छी परवरिश न कर पाने के कारण तू अपने मातापिता को दोषी मानती है पर हैं तो हम तेरे मांबाप ही न…तुझे दुखी देख कर भला हम खुश कैसे रह सकते हैं…’’

‘‘प्लीज, आप इन से ज्यादा बातें मत कीजिए…इन्हें आराम की सख्त जरूरत है,’’ उसी समय राउंड पर आई डाक्टर ने मरीज से बातें करते देख कर कहा तथा नर्स को कुछ जरूरी हिदायत देती हुई चली गई.

अल्पना कुछ कह पाती उस से पहले ही नर्स आ गई तथा उस ने उस के मम्मीपापा से कहा, ‘‘इन की क्लीनिंग करनी है, कृपया थोड़ी देर के लिए आप लोग बाहर चले जाएं.’’

नर्स साफसफाई कर रही थी पर अल्पना के मन में उथलपुथल मची हुई थी. वह समझ नहीं पा रही कि उस से कब और कहां गलती हुई…उसे लगा कि मातापिता को दुख पहुंचाने के लिए ऐसा करतेकरते उस ने खुद के जीवन को दांव पर लगा दिया…अतीत की घटनाओं के खौफनाक मंजर उस की आंखों के सामने से किताब के एकएक पन्ने की तरह आ- जा रहे थे.

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वह एक संपन्न परिवार से थी. मातापिता दोनों के नौकरी करने के कारण उसे उन का सुख नहीं मिल पाया था. जब उसे मां के हाथों का पालना चाहिए था तब दादी की गोद में उस ने आंखें खोलीं, बोलना और चलना सीखा. वह डेढ़ साल की थी कि दादी का साया उस के ऊपर से उठ गया. अब उसे ले कर मम्मीपापा में खींचतान चलने लगी, तब एक आया का प्रबंध किया गया.

एक दिन ममा ने आया को दूध में पानी मिला कर उसे पिलाते तथा बचा दूध स्वयं पीते देख लिया. उस की गलती पर उसे डांटा तो उस ने दूसरे दिन से आना ही बंद कर दिया…अब उस की समस्या उन के सामने फिर मुंहबाए खड़ी थी. दूसरी आया मिली तो वह पहली से भी ज्यादा तेज और चालाक निकली. उसे अकेला छोड़ कर वह अपने प्रेमी के साथ गप लड़ाती रहती…पता लगने पर ममा ने उसे भी निकाल दिया…

वह 2 साल की थी, फिर भी उस के जेहन में आज भी क्रेच की आया का बरताव अंकित है. उस के स्वयं खाना न खा पाने पर डांटना, झल्लाना, यहां तक कि मारना…पता नहीं और भी क्याक्या… दहशत इतनी थी कि जब भी मां उसे क्रेच में छोड़ने के लिए जातीं तो वह पहले से ही रोने लगती थी पर ममा को समय से आफिस पहुंचना होता था अत: उस के रोने की परवा न कर वह उसे आया को सौंप कर चली जाती थीं.

जब वह पढ़ने लायक हुई तब स्कूल में उस का नाम लिखवा दिया गया. स्कूल की छुट्टी होती तो कभी ममा तो कभी पापा उसे स्कूल से ला कर घर छोड़ देते तथा उस से कहते कि उन के अलावा कोई भी आए तो दरवाजा मत खोलना और न ही बाहर निकलना. देखने के लिए दरवाजे में आई पीस लगवा दिया था.

एक दिन वह पड़ोस में रहने वाले सोनू की आवाज सुन कर बाहर चली गई तथा खेलने लगी तभी ममा आ गईं. खुला घर तथा उसे बाहर खेलते देख वह क्रोधित हो गईं…दूसरे दिन से वह उसे बाहर से बंद कर के जाने लगीं…एक दिन उसे न जाने क्या सूझा कि घर की पूरी चीजें जो उस के दायरे में थीं, उस ने नीचे फेंक दीं…उस दिन उस की खूब पिटाई हुई और मम्मीपापा में भी जम कर झगड़ा हुआ.

ममा की परेशानी देख कर सोनू की मम्मी ने स्कूल के बाद उसे अपने घर छोड़ कर जाने के लिए कहा तो वह बहुत खुश हुई…साथ ही मम्मीपापा की समस्या भी हल हो गई. 4 साल ऐसे ही निकल गए. पर तभी सोनू के पापा का तबादला हो गया. फिर वही समस्या.

बड़ी होने के कारण अब उस के स्कूल का समय बढ़ गया था तथा अब वह पहले से भी ज्यादा समझदार हो गई थी. उस ने अपनी स्थिति से समझौता कर लिया था, ममा के आदेशानुसार वह उन के या पापा के आफिस से आने पर उन की आवाज सुन कर ही दरवाजा खोलती, किसी अन्य की आवाज पर नहीं. एकांत की विभीषिका उसे तब भी परेशान करती पर जैसेजैसे बड़ी होती गई उसे पढ़ाने और होमवर्क कराने को ले कर मम्मीपापा में तकरार होने लगी.

अभी वह 10 वर्ष की ही थी कि उसे बोर्डिंग स्कूल में डाल दिया गया. वहां मम्मीपापा हर महीने उस से मिलने जाते, उस के लिए अच्छीअच्छी गिफ्ट लाते, पूरा दिन उस के साथ गुजारते पर शाम को उसे जब होस्टल छोड़ कर जाने लगते तो वह रो पड़ती थी. तब ममा आंखों में आंसू भर कर कहतीं, ‘बेटा, मजबूरी है. जो मैं कर रही हूं वह तेरे भविष्य के लिए ही तो कर रही हूं.’

वह उस समय समझ नहीं पाती थी कि यह कैसी मजबूरी है. सब के बच्चे अपने मम्मीपापा के पास रहते हैं फिर वह क्यों नहीं…पर धीरेधीरे वह अपनी हमउम्र साथियों के साथ घुलनेमिलने लगी क्योंकि सब की

एक सी ही

कहानी थी…वहां अधिकांशत: बच्चों को इसलिए होस्टल में डाला गया था क्योंकि किसी की मां नहीं थी तो किसी के घर का माहौल अच्छा नहीं था, किसी के मातापिता उस के मातापिता की तरह ही कामकाजी थे तो कोई अपने बच्चों के उन्नत भविष्य के लिए उन्हें वहां दाखिल करवा गए थे.

छुट्टी में घर जाती तो मम्मीपापा की व्यस्तता देख उसे लगता था कि इस से तो वह होस्टल में ही अच्छी थी. कम से कम वहां बात करने वाला कोई तो रहता है. धीरेधीरे उस के मन में विद्रोह पैदा होता गया. उसे मम्मीपापा स्वार्थी लगने लगे. जिन्होंने अपने स्वार्थ के लिए उसे पैदा तो कर दिया पर उस की जिम्मेदारी उठाना नहीं चाहते.

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आखिर एक बच्चे को अच्छे कपड़ों, अच्छे खिलौनों के साथसाथ और भी तो कुछ चाहिए, यह साधारण सी बात वह क्यों नहीं समझ पा रहे हैं या जानतेबूझते हुए भी समझना नहीं चाहते हैं. एक बार उस ने पूछ ही लिया, ‘मैं आप की ही बेटी हूं या आप कहीं से मुझे उठा तो नहीं लाए हैं.’

उस की मनोस्थिति समझे बिना ही ममा भड़क कर बोलीं, ‘कैसी बातें कर रही है…कौन तेरे मन में जहर घोल रहा है?’

मम्मा आशंकित मन से पापा की ओर देखने लगीं. पापा भी चुप कहां रहने वाले थे. बोल उठे, ‘शक क्यों नहीं करेगी. कभी प्यार के दो बोल बोले हैं. कभी उस के पास बैठ कर उस की समस्याएं जानने की कोशिश की है…तुम्हें तो बस, हर समय काम ही काम सूझता रहता है.’

‘तो तुम क्यों नहीं उस से समस्याएं पूछते…तुम भी तो उस के पिता हो. क्या बच्चे को पालने की सारी जिम्मेदारी मां को ही निभानी पड़ती है.’

दोनों में तकरार इतनी बढ़ी कि उस दिन घर में खाना ही नहीं बना. ममा गुस्से में चली गईं. लगभग 10 बजे पापा हाथ में दूध तथा ब्रैड ले कर आए और आग्रह से खाने के लिए कहने लगे पर उसे भूख कहां थी. मन की बात जबान पर आ ही गई, ‘पापा, अगर किसी को मेरी आवश्यकता नहीं थी तो मुझे इस दुनिया में ले कर ही क्यों आए? मेरी वजह से आप और ममा में झगड़ा होता है…मुझे कल ही होस्टल छोड़ दीजिए. मेरा यहां मन नहीं लगता.’

पापा ने प्यार से उस के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘ऐसा नहीं कहते बेटा, यह तेरा घर है.’

‘घर, कैसा घर, पापा…मैं पूरे दिन अकेली रहती हूं. आप और ममा आते भी हैं तो सिर्फ अपनीअपनी समस्याएं ले कर. मेरे लिए आप दोनों के पास समय ही नहीं है.’

पापा उदास मन से आफिस चले गए थे पर उस दिन उसे अपने मन में बारबार उमड़ती बात कहने पर बहुत संतोष मिला था…

इस अकेलेपन के बावजूद उस के पास कुछ खुशनुमा पल थे…गरमियों की छुट्टियों में जब वे 15 दिन किसी हिल स्टेशन पर घूमने जाते…उस के जन्मदिन पर उस की मनपसंद ड्रेस के साथ उस को उपहार भी खरीदवाया जाता…यहां तक कि होस्टल में वार्डन से इजाजत ले कर उस के जन्मदिन पर एक छोटी सी पार्टी आयोजित की जाती तथा उस के सभी दोस्तों को गिफ्ट भी दी जाती.

फिर जैसेजैसे वह बड़ी होती गई अपनों के प्यार से तरसते मन में विद्रोह का अंकुर पनपने लगा…यही कारण था कि पहले जहां वह चुप रहा करती थी, अब अपने मन की भड़ास निकालने लगी थी तथा उन की इच्छा के खिलाफ काम करने लगी थी.

ऐसा कर के वह न केवल सहज हो जाया करती थी वरन मम्मीपापा के लटके चेहरे देख कर उसे असीम आनंद मिलने लगा था. जाने क्यों उसे लगने लगा था, जब इन्हें ही मेरी परवा नहीं है तो मैं ही इन की परवा क्यों करूं.

इसी मनोस्थिति के चलते एक बार वह छुट्टियों में अपने घर न आ कर अपनी मित्र स्नेहा के घर चली गई. वहां उस की मम्मी के प्यार और अपनत्व ने उस के सूने मन में उत्साह का संचार कर दिया…वहीं उस ने जाना कि घर ऊंचीऊंची दीवारों से नहीं, उस में रहने वाले लोगों के प्यार और विश्वास से बनता है. उस का घर तो इन के घर से भी बड़ा था, सुखसुविधाएं भी ज्यादा थीं पर नहीं थे तो प्यार के दो मीठे बोल, एकदूसरे के लिए समय…प्यार और विश्वास का सुरक्षित कवच…वास्तव में प्यार से बनाए मां के हाथ के खाने का स्वाद कैसा होता है, उस ने वहीं जाना.

उन को स्नेहा की एकएक फरमाइश पूरी करते देख, एक बार उस ने पूछा था, ‘आंटी, आप ने स्नेहा को खुद से दूर क्यों किया?’

उन्होंने तब सहज उत्तर दिया था, ‘बेटा, यहां कोई अच्छा स्कूल नहीं है…स्नेहा के भविष्य के लिए हमें यह निर्णय करना पड़ा. स्नेहा इस बात को जानती है अत: इस ने इसे सहजता से लिया.’

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घर न आने के लिए मां का फोन आने पर उस ने रूखे स्वर में उत्तर दिया, ‘मैं यहीं अच्छी हूं. आप और पापा ही घूम आओ…मैं नहीं जाऊंगी क्योंकि लौट कर आने के बाद तो आप और पापा फिर नौकरी पर जाने लगोगे और मुझे अकेले ही घर में रहना पडे़गा. मैं यहां स्नेहा के पास ही अच्छी हूं. कम से कम यहां मुझे घर होने का एहसास तो हो रहा है.’

अल्पना का ऐसा व्यवहार देख कर स्नेहा की मां ने अवसर पा कर उसे समझाते हुए कहा, ‘बेटा, तुम मेरी बेटी जैसी हो, मेरी बात का गलत अर्थ मत लगाना…एक बात मैं तुम से कहना चाहती हूं, अपने मातापिता को तुम कभी गलत मत समझना…शायद उन की भी कोई मजबूरी रही होगी जिसे तुम समझ नहीं पा रही हो.’

‘आंटी, अपने बच्चे की परवरिश से ज्यादा एक मातापिता के लिए और भी कुछ जरूरी है?’

‘बेटा, सब की प्राथमिकताएं अलगअलग होती हैं…कोई घरपरिवार के लिए सबकुछ त्याग देता है तो कोई अपने कैरियर को भी जीवन का ध्येय मानते हुए घरपरिवार को सहेजना चाहता है. तुम्हारी मां कैरियर वुमन हैं, उन्हें अपने कैरियर से प्यार है पर इस का यह अर्थ कदापि नहीं कि वह तुम से प्यार नहीं करतीं. मैं जानती हूं कि वह तुम्हें ज्यादा समय नहीं दे पातीं पर क्या उन्होंने तुम्हें किसी बात की कमी होने दी?’

आंटी की बात मान कर अल्पना घर आई तो मां उसे अपने सीने से लगा कर रो पड़ीं. पापा का भी यही हाल था. हफ्ते भर मां छुट्टी ले कर उस के पास ही रहीं…उस से पूछपूछ कर खाना बनाती और खिलाती रहीं.

तब अचानक उस का सारा क्रोध आंखों के रास्ते बह निकला था. तब उसे एहसास हुआ था कि मां की बराबरी कोई नहीं कर सकता…पर जैसे ही उन्होंने आफिस जाना शुरू किया, घर का सूनापन उस के दिलोदिमाग पर फिर से हावी होता गया. अभी छुट्टी के 15 दिन बाकी थे पर लग रहा था जैसे उसे आए हुए वर्षों हो गए हैं.

शाम को मम्मीपापा के आने पर उन के पास बैठ कर वह ढेरों बातें करना चाहती थी पर कभी फोन की घंटी बज उठती तो कभी कोई आ जाता…कभी मम्मीपापा ही उस की उपस्थिति से बेखबर किसी बात पर झल्ला उठते जिस से घर का माहौल तनावपूर्ण हो उठता. यह सब देख कर मन में विद्रोह फिर पनपने लगा.

वह होस्टल जाने लगी तो ममा ने उस के लिए नई डे्रस खरीदी, जरूरत का अन्य सामान खरीदवाया, यहां तक कि उस की पसंद की खाने की कई तरह की चीजें खरीद कर रखीं, फिर भी न जाने क्यों इन चीजों में उसे मां का प्यार नजर नहीं आया. उस ने सोच लिया जब उन्हें उस से प्यार ही नहीं है, तो वही उन की परवा क्यों करे.

अब फोन आने पर वह ममा से ढंग से बातें नहीं करना चाहती थी…वह कुछ पूछतीं तो बस, हां या हूं में उत्तर देती. उस का रुख देख कर एक बार उस की ममा उस से मिलने भी आईं तो भी पता नहीं क्यों उन से बात करने का मन ही नहीं किया…मानो वह अपने मन के बंद दरवाजे से बाहर निकलना ही नहीं चाह रही हो.

छुट्टियां पड़ीं तो उस ने अपनी वार्डन से वहीं रहने का आग्रह किया. पहले तो वह मानी नहीं पर जब उस ने उन्हें अपनी व्यथा बताई तो उन्होंने उस के मम्मीपापा को सूचना दे कर रहने की इजाजत दे दी.

उस का यह रुख देख कर मम्मीपापा ने आ कर उसे समझाना चाहा तो उस ने साफ शब्दों में कह दिया, ‘घर से तो मुझे यहीं अच्छा लगता है…कम से कम यहां मुझे अपनापन तो मिलता है…मैं यहीं रह कर कोचिंग करना चाहती हूं.’

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बुझे मन से वह दोनों वार्डन को उस का खयाल रखने के लिए कह कर चले गए.

कुछ दिन तो वह होस्टल में रही किंतु सूना होस्टल उस के मन के सूनेपन को और बढ़ाने लगा…अब उसे न जाने क्यों किसी से मिलना भी अच्छा नहीं लगता था क्योंकि वह जिस से भी मिलती वही उस के घर के बारे में पूछता और वह अपने घर के बारे में किसी को क्या बताती? अब न उस का पढ़ने में मन लगता और न ही किसी अन्य काम में…यहां तक कि वह क्लास भी मिस करने लगी…नतीजा यह हुआ कि वह फर्स्ट टर्म में फेल हो गई.

 

का से कहूं- पति विलास का कौनसा सच जान गई थी मोहना?

Serial Story: का से कहूं (भाग-3)

जब मोहना के घरवाले लौट गए तो मोहना ने दरवाजे की ओट से रानी ओर किशोरजी बातें सुनीं.

‘‘मैं ने सोचा था कि शादी के बाद विलास ठीक हो जाएगा… सभी हो जाते हैं. पर ये तो अब तक वहीं अटका हुआ है,’’ किशोरजी कह रहे थे.

‘‘हां, मुझे भी कहां लगा था कि बहू इस का मन नहीं बदल पाएगी,’’ रानी भी हां में हां मिला रही थीं.

मोहना को अब यह बात बिलकुल स्पष्ट हो चुकी थी कि जो करना है उसे ही करना पड़ेगा. विलास एक बहुत अच्छा पति है, सुलझा हुआ, संवेदनशील और प्यार करने वाला किंतु जीवन में शारीरिक सामीप्य की जो खाई थी, क्या मोहना उस के साथ अपना पूरा जीवन काट सकेगी? अब इस प्रश्न का उत्तर उसे स्वयं ही देना था. बात थी भी इतनी कि किस से कहती वह?

घर पर त्योहार मनाने का सब से बड़ा फायदा जो मोहना को हुआ वह यह रहा कि अब उस ने

अपने जीवन की बागडोर अपने हाथों में लेने का निर्णय कर लिया. वापस मुंबई लौट कर मोहना ने विलास के आगे एक छोटी सी ट्रिप पर चलने का प्रस्ताव रखा. कई बार जो बातें रोजमर्रा के माहौल में नहीं हो पातीं वह पर्यटन स्थलों पर फ्रैश मूड में बहुत अच्छे से हो जाती हैं. इसी सोच से मोहना ने ये बात कही जो विलास ने सहर्ष स्वीकार कर ली.

आने वाले वीकैंड पर दोनों ने पंचगनी का ट्रिप बनाया. जहां मुंबई का तापमान हमेशा एकसा रहता है वहीं पंचगनी की हलकी ठंड से लिपटी शामें विलास और मोहना के लिए एक अच्छा बदलाव थीं. शौल ओढ़े, बोनफायर के आसपास बैठे दोनों ने अपने रिजार्ट में एक अच्छा दिन बिताया. अगले दिन दोनों ने यहां के प्रसिद्ध पर्यटक स्थलों को देखने का मन बनाया. आर्थर सीट की ऊंचाई से कोइना वैली का अद्भुत नजारा देखा, एल्फिंस्टन पौइंट पर पहुंच कर दोनों ने गरमगरम मैगी खाई और मसाला छास पी, टेबल लैंड का विशाल क्षेत्र उन्होंने घुड़सवारी कर पूरा किया और वेणा लेक में बोटिंग कर एक यादगार दिन बिताया.

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‘‘यहां की प्रसिद्ध स्ट्राबेरी तो ले लो. रूम में चल कर खाएंगे,’’ मोहना ने कहा.

‘‘सिर्फ स्ट्राबेरी?’’ मैं तो यहां की स्ट्राबेरी वाइन भी लेने वाला हूं,’’ हंस कर विलास ने कहा.

दोनों काफी खुश थे. यही सही मौका है, आज ही विलास से अपने दिल की बात करनी होगी, मोहना ने सोच रखा था. रूम में पहुंच कर दोनों ने वाइन ले चीयर्स किया. मोहना का गंभीर चेहरा देख विलास ने कारण जानना चाहा, ‘‘क्या घर की याद आ रही है?’’

‘‘नहीं… लेकिन एक अत्यंत गंभीर विषय पर बात करनी है तुम से… सोच नहीं पा रही कैसे कहूं…’’ मोहना की हिचकिचाहट देख विलास को बात का अंदेशा होने लगा. आखिर अपनी कमी किसे पता नहीं होती. उस ने बात को आगे न बढ़ाते हुए दूसरी बात शुरू करनी चाही, ‘‘मोहना, छोड़ो ये गंभीर बातें. आज का दिन कितना अच्छा बीता, अब मूड मत औफ करो.’’

‘‘विलास, तुम क्या चाहते हो कि मैं केवल ऊपर से हंसती रहूं या अंदर से भी खुश रहूं?’’ मोहना आज इस विषय पर बात करने की ठान चुकी थी. आखिर कब तक इस रिश्ते को यों अधूरा सा जीती रहेगी वह, ‘‘प्लीज मुझे बताओ कि आखिर बात क्या है. मैं असली कारण जानना चाहती हूं. आखिर हम जीवनसाथी हैं, सारी उम्र हमें एकदूसरे का साथ निभाना है, चाहे सुख हो या दुख, चाहे तकलीफ हो या आनंद. अगर हम ही अपने दिलों की परतें हटा कर एकदूसरे से अपने मन की बात नहीं कह सकते तो फिर कैसा रिश्ता है यह? मैं तुम्हें अपना सब कुछ मान चुकी हूं और मैं जानती हूं कि तुम भी मुझ से प्यार करते हो. ये रिश्ता केवल सतही नहीं अपितु हम दोनों के दिलों को एक सूत्र में बांधता है. क्या तुम मुझ से अपने मन की व्यथा नहीं कह सकते? क्या रोकता है तुम्हें? क्या मैं तुम्हें पसंद नहीं? क्या तुम्हारा प्यार मेरी गलतफहमी है या फिर केवल परिवार के लिए लिया गया एक फैसला?’’ मोहना कहती चली गई. आज उस ने स्वयं को रोका नहीं. जो पीड़ा उस के मन में आज तक मरोड़ रही थी, उस ने आज उसे विलास के सामने उघाड़ कर रख दिया.

मोहना की आंतरिक तकलीफ ने विलास को भी विचलित कर दिया. उस ने सोचा न था कि ऊपर से हमेशा हंसती रहने वाली मोहना हृदय की गहराइयों में इतनी व्यथित होगी. किंतु अपने दिल की असलियत बयान करने से वह अभी भी हिचकिचा रहा था, ‘‘क्या बताऊं, मोहना… ऐसी कोई बात नहीं है. बस, यों ही कभी कुछ तो कभी कुछ कारणों की वजह से… तुम व्यर्थ ही इतना परेशान हो रही हो.’’

‘‘ठीक है. जैसा तुम चाहो. यदि तुम मुझे अपनी संगिनी नहीं मानते तो कोई बात नहीं. पर यदि कल को मेरे कदम बहक जाएं तो प्लीज मुझे दोष मत देना. तब यह न सोचना कि मैं चरित्रहीन निकली. मैं ने सब से पहले तुम्हारे आगे अपने मन की बात कही. एक लड़की होते हुए भी मैं ने ऐसे कठिन विषय पर बात करने की पहल की. पर अगर तुम मुझ से परदा रखना चाहते हो, तो हमारी शादीशुदा जिंदगी में आगे जो कुछ भी होगा उस के जिम्मेदार तुम ही रहोगे, मेरी यह बात याद रखना,’’ आज मोहना काफी अडिग थी.

नींद आंखों से कोसों दूर भटकती रही और सारी रात विलास, मोहना द्वारा कही बातों पर विचार करता रहा. सच ही तो कह रही है वह. आखिर वह जीवनसंगिनी है, यदि विलास उस के आगे अपना मन नहीं खोल सकता तो फिर किस से कहेगा? पौ फटने के समय जब आकाश में लालिमा छाई, तब विलास के मस्तिष्क में भी रोशनी होने लगी. उस ने सोच लिया कि आज वह मोहना को सब कुछ बता देगा.

‘‘नाश्ते के लिए चलें?’’ नहा कर आई मोहना ने पूछा.

‘‘हां, संक्षिप्त सा उत्तर दे विलास उस के साथ चल दिया. गहरी सोच में था वह. आखिर आज वह अपने अंदर दबी उलझनों की गांठों को खोलने की कोशिश करने वाला था.

नाश्ते के बाद आज कुछ शौपिंग का प्रोग्राम था. लेकिन विलास के कहने पर पहले दोनों ने केट्स पौइंट जाने का निश्चय किया. पहाड़ की ऊंचाई पर पहुंच कर विलास ने एक एकांत कोना तलाशा और मोहना से वहां बैठने का आग्रह किया, ‘‘तुम जानना चाहती हो न कि मैं क्यों तुम्हारे पास नहीं आता? आज मैं तुम्हें अपने अतीत का वह राज बताने जा रहा हूं जिसे मैं कभी भी कुरेदना नहीं चाहता. लेकिन अगर आज नहीं कहा तो शायद फिर कभी कह न सकूंगा…’’

‘‘विलास, तुम बेझिझक मुझ से अपनी बात कह सकते हो. तुम जो भी कहोगे, वह केवल हम दोनों के बीच रहेगा,’’ मोहना की बात से विलास आश्वस्त हो गया. उस ने 1 गिलास पानी पिया. कुछ सोच कर उस ने आगे बात कहनी शुरू की…

जब विलास केवल 12 वर्ष का था तब उस के साथ एक हादसा गुजरा था. उस के मौसाजी

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जोकि उसी शहर नौकरी करने आए थे. उस के घर में रहने आए. अगले कुछ महीनों जब तक उस की मौसीजी की नौकरी का तबादला  उसी शहर में न हो जाता, उन्हें इसी के घर में रहना था. एक बार मौसीजी आ जाए, तब ये अपना घर ले लेंगे, ऐसा विचार था. सब कुछ अच्छे ढंग से व्यवस्थित हो गया. किशोरजी अपनी दुकान संभालते, रानी घर संभालतीं, मौसाजी अपने दफ्तर जाते और विलास अपने स्कूल. सब की मुलाकात अकसर रात को खाने की मेज पर हुआ करती. ऐसे ही करीब 20 दिन बीत गए.

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Serial Story: का से कहूं (भाग-1)

रानीऔर किशोरजी के इकलौते बेटे की शादी थी. पूरे घर में रौनक ही रौनक थी. कहीं कोई कसर नहीं छोड़ी थी. दुलहनिया भी इसी शहर के एक नामी घर से लाए थे. जैसे इन का अपना सुनार का व्यवसाय था जो पूरे शहर में प्रसिद्ध था वैसे ही दुलहन के घरवालों का भी गोटेकारी का बड़ा काम था और उन की दुकानें शहर में कई जगहों पर थीं. उन का पूरा परिवार एक संयुक्त परिवार के रूप में एक ही कोठी में रहता था. चाचाताऊ में इतना एका था कि विलास के रिश्ते के लिए हां करने से पहले भी मोहना ने अपने ताऊजी को बताया था. तभी तो रानी को मेहना भा गई थी. उन का मानना था कि एकल परिवार की लड़कियां सासससुर से निभा नहीं सकतीं. संयुक्त परिवार की लड़की आएगी तो हिलमिल कर रहेगी.

डोली तो अलसुबह ही आंगन में उतर चुकी थी, दूल्हादुलहन को अलग कमरों में बिठा कर थोड़ी देर सुस्ताने का मौका भी दिया गया था. गीतों से वातावरण गुंजायमान था. फिर खेल होने थे सो सब औरतें उसी तैयारी में व्यस्त थीं. खूब हंसीखुशी के बीच खेल हुए. मोहना और विलास ने बहुत संयम से भाग लिया. न कोई छीनाझपटी और न कोई खींचतानी. मोहना खुश थी कि उस की पसंद सही निकल रही है वरना उस के बड़े भैया की शादी में भाभी के हाथों में उन के अपने नाखून गड़ कर लहूलुहान हो गए थे पर उन्होंने भैया को बंद मुट्ठी नहीं खोलने दी थी. ऐसे खेलों का क्या फायदा जो शादी के माहौल में नएनवेले जोड़े के मन में प्रतियोगियों जैसी भावना भर दें.

शाम ढलने को थी. सभी भाइयोंदोस्तों ने विलास का कमरा सुसज्जित कर दिया था. रात्री भोजन के पश्चात मोहना को सुहाग कक्ष में ले जा कर बैठा दिया गया. हंसतीखिलखिलाती बहनें कुछ ही देर में विलास को भी वहां छोड़ गईं.

‘‘अरे आप इतने भारी कपड़ों में सांस कैसे ले पा रही हो? वाई डोंट यू चेंज,’’ विलास ने कमरे में आते ही कहा, ‘‘मैं भी बहुत थक गया हूं. मैं भी चेंज कर लेता हूं.’’

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मोहना एक बार फिर खुशी से लाल हो गई. कितना समझने वाला साथी मिला है उसे. वो उठ कर बाथरूम में चेंज कर के आई तब तक विलास भी चेंज कर के बिस्तर पर लेट चुका था. ‘गुड नाईट’, मुसकरा कर कह विलास ने कमरे की लाइट बुझा दी. थोड़ी ही देर में पिछले कई दिनों से चल रही रस्मों की थकान और सुबह से उकड़ू बैठी मोहना को नींद ने घेर लिया.

सुबह दोनों फ्रैश उठे. एकदूसरे को देख कर मुसकराए. विलास बोला, ‘‘कुछ दिनों की बात है, मोहना, यहां तो रीतिरिवाज खत्म नहीं होंगे पर हम दोनों जब मुंबई चले जाएंगे तब लाइफ सैटल होने लगेगी.’’ विलास अपने पिता का कारोबार न संभाल कर मुंबई में नौकरी करता था. शादी के कुछ दिनों बाद दोनों का मुंबई चले जाने का कार्यक्रम तय था. पर उस से पहले विलास और मोहना को हनीमून पर जाना था. शादी का दूसरा दिन हनीमून की पैकिंग में गया और तीसरे दिन दोनों ऊटी के लिए रवाना हो गए. ऊटी का नैसर्गिक सौंदर्य देख दोनों प्रसन्नचित्त थे. रिजौर्ट भी चुनिंदा था. विलास के मातापिता की तरफ से ये उन की शादी का गिफ्ट था.

‘‘यहां का सूर्योदय बहुत फेमस है तो कल सुबह जल्दी उठ कर चलेंगे सन पौइंट. चलो अब सो जाते हैं,’’ कह विलास ने कमरे की लाइट बंद कर दी. आज मोहना को थोड़ा अजीब लगा. नई विवाहिता पत्नी बगल में लेटी है और विलास जल्दी सोने की बात कर रहा है, वह भी हनीमून पर. घर पर उसे लगा था कि समय की कमी, थकान, आसपास परिवार वालों की मौजूदगी आदि के कारण वो उस के निकट नहीं आया पर यहां अकेले में? यहां क्यों विलास को सोने की जल्दी है? पर फिर अगले ही पल उस ने अपने विचारों को झटका, कह तो रहा है कि सुबह जल्दी निकलना है और फिर कितना तो खयाल रखता है वह मोहना का. सारे रास्ते उस के आराम और खानेपीने के बारे में पूछता रहा. कुछ ज्यादा ही सोच रही है वह शायद.

अगला दिन अच्छा व्यतीत हुआ. दोनों ने काफी कुछ घूमा. देर शाम थक कर

दोनों कमरे में लौटे, ‘‘मोहना, प्लीज क्या तुम मेरी पीठ पर ये बाम लगा दोगी? मेरी पीठ में काफी दर्द है कुछ दिनों से,’’ विलास ने मोहना को बाम की एक शीशी देते हुए कहा.

‘‘हां, क्यों नहीं. इस में प्लीज कहने की क्या बात है. लाओ, मैं बाम लगा देती हूं,’’ वो बाम लगाते हुए सोचने लगी, ‘‘अगर तुम्हारी पीठ में दर्द है तो कल कमरे में ही रेस्ट करते हैं, कहीं घूमने नहीं निकलते.’’

‘‘नहीं, नहीं, सुबह तक आराम आ जाना चाहिए और फिर इतनी दूर तक आए हैं तो कमरे में रहने तो नहीं,’’ विलास ने कहा.

अगले 2 दिनों में दोनों ने ऊटी शहर के पर्यटक आकर्षणों को देखा. बोटैनिकल गार्डन, रोज गार्डन, सैंट स्टीफन चर्च आदि घूम कर दोनों ने शहर का पूरा लुत्फ उठाया. होम मेड चौकलेट भी खरीदीं और यहां की सुप्रसिद्ध चाय भी. सभी घरवालों के लिए कुछ न कुछ तोहफे भी लिए. आज वापसी की बारी थी. मोहना जरा सी उदास भी थी और नहीं भी. जब उस का कुंवारा दिल पति प्रेम के सानिध्य में डूबने की इच्छा जताता, वह उसे समझा लेती कि पतिपत्नी का रिश्ता एक हफ्ते का नहीं अपितु पूरे जीवन भर का होता है. जिस सामीप्य के लिए वह तरस रही है, वह उसे मिल ही जाएगा. तो फिर आज के खुशहाल क्षण क्यों गंवाए?

घर लौटने पर रानी और किशोरजी बेहद खुश हुए. अब तक सारे रिश्तेदार लौट चुके थे. घर अपने वास्तविक रूप में लौट चुका था. आज मोहना ने अपनी पहली रसोई बनाई जिस में रानी ने उस की पूरी सहायता की. शगुन के रूप में किशोर जी ने उसे सोने के कंगन दिए. इतना प्यार, इतना दुलार पा कर मोहना अपने भाग्य पर इठलाने लगी थी.

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कुछ दिन वहां रह कर मोहना और विलास मुंबई के लिए रवाना हो गए. सब कुछ बहुत अच्छा था, एकदम आदर्श स्थिति… बस कमी थी तो केवल शारीरिक सामीप्य की. विलास अब तक मोहना के निकट नहीं आया था. पर वह बेचारा भी क्या करे, पीठ में दर्द जो कायम था, सोच मोहना अपना मन संभाल रही थी.

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Serial Story: का से कहूं (भाग-2)

मुंबई पहुंच कर नए घर को व्यवस्थित करने का जिम्मा विलास ने मोहना को दिया, ‘‘अब से इस घर की सारी जिम्मेदारी तुम्हारी. चाहे जैसे सजाओ, चाहे जैसे रखो. हम तो आप के हुक्म के गुलाम हैं,’’ विलास का यह रूप, लच्छेदार बातें मोहना पहली बार सुन रही थी. अच्छा लगा उसे कि अकेले में विलास उस से बिलकुल खुल चुका था. विलास ने अपना औफिस वापस जौइन कर लिया और मोहना घर की साजसज्जा में व्यस्त रहने लगी. दिन में जितने फोन मोहना के मायके से आते, उतनी ही बार रानी भी उस से बात करती रहतीं. उसे अकेलापन बिलकुल नहीं महसूस हो रहा था. लेकिन विलास अकसर रातों को बहुत ही देर से घर लौटता, ‘‘आजकल काफी काम है. शादी के लिए छुट्टियां लीं तो बहुत काम पेंडिंग हो गया है,’’ वह कहता. घर की एक चाबी उसी के पास रहती तो देर रात लौट कर वह मोहना की नींद खराब नहीं करता, बल्कि अपनी चाबी से घर में घुस कर चुपचाप बिस्तर के एक कोने में सो जाता. मोहना सुबह पूछती तो पता चलता कि रात कितनी देर से लौटा था.

जब जिंदगी पटरी पर दौड़ने लगी तो मोहना सारा दिन घर में अकेले बोर होने लगी. विलास के कहने पर उस ने लोकल ट्रेन में चलना सीखा और अवसरों की नगरी मुंबई में 2 शिफ्टों में सुबहशाम की 2 नौकरियां ले लीं. अब मोहना खुद भी व्यस्त रहने लगी. शुरू में उसे यह व्यस्तता बहुत अच्छी लगी. लोकल ट्रेन में चलने का अपना ही नशा होता है. आप सारी भीड़ का एक हिस्सा हैं, आप उन के साथ उन की रफ्तार से कदम से कदम मिला कर चल रहे हैं और एकएक मिनट की कीमत समझ रहे हैं. मोहना भी इस जिंदगी का मजा लेने लगी. उस के कुछ नए दोस्त भी बने. प्रियंवदा उस की अच्छी सहेली बन गई जो उसे अकसर लोकल ट्रेन में मिला करती. उस का औफिस भी उसी रास्ते पर था. प्रियंवदा की शादी को एक साल हुआ था और मोहना की शादी को अभी केवल 2 महीने बीते थे.

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‘‘दूसरी शिफ्ट की क्या जरूरत है, मोहना, रात को घर लौटते समय देर नहीं हो जाती?’’ एक दिन प्रियंवदा ने पूछा.

‘‘हां, करीब 10 बज जाते हैं पर विलास काफी देर से घर लौटते हैं तो मुझे कोई प्रौब्लम नहीं होती.’’

‘‘तभी मैं कहूं्… मेरे पति तो मुझे जरा सी देर भी अकेला नहीं छोड़ते. यहां तक कि किचन का काम निबटाने में भी अगर टाइम लग जाए तो शोर मचाने लगते हैं,’’ कह प्रियंवदा शरमा कर हंसने लगी, ‘‘तुम्हारी शादी तो और भी नई है. रात को ऐनर्जी कहां से लाती हो.’’

मोहना के मन में आया कि अपनी सहेली को असली बात बता दे पर फिर नई दोस्ती होने के कारण चुप रह गई. किंतु अब उस के मन की टीस बढ़ने लगी. हर किसी के बैडरूम के किस्से और मजाक सुन कर उस के मन में अपनी जिंदगी की रिक्तता और भी गहराने लगी थी. खैर, जिंदगी तो अपनी रफ्तार से भागती रहती है. यों ही 6 महीने गुजर गए. आज फिर मोहना ने शुरुआत करने के बारे में सोचा… उसे याद आया कि जब पिछले महीने उस ने विलास के करीब सरक कर अपना हाथ उस की छाती पर रखा था तो कैसे विलास ने बेरुखी से कहा था, ‘‘क्या कर रही हो?’’

‘‘कुछ नहीं,’’ सकुचा कर रह गई थी वह. पर फिर भी उस ने हाथ नहीं हटाया था. धीरे से विलास की बांहों में जब वह आ गई तो उस ने विलास के गाल को चूमा था. विलास असहज हो गया और बोला, ‘‘मोहना, आजकल औफिस में बहुत स्ट्रैस चल रहा है. इस कारण मुझे सिरदर्द भी है. तुम्हें बुरा न लगे तो मैं करवट लेना चाहता हूं,’’ और विलास मोहना की तरफ पीठ फेर कर सो गया था. न जाने कितनी और देर तक मोहना जागी रही थी. सोती भी कैसे, नींद जो पलकों में आने से इंकार कर रही थी. इन बीते दिनों में जब कभी उस ने हिम्मत कर के शुरुआत की तब विलास की तरफ से केवल बेरुखी हाथ लगी. कभी कहता आज बहुत थका हुआ हूं, तो कभी खराब तबीयत का बहाना.

आज फिर मोहना ने कोशिश करने की सोची. उस ने एक बहाना बनाया, ‘‘मेरी पीठ में

आजकल बहुत ड्राईनैस हो रही है, मौसम बदल रहा है न, शायद इसलिए. पर मेरा हाथ पूरी पीठ तक नहीं पहुंच पा रहा. क्या तुम मेरी पीठ पर क्रीम लगा दोगे?’’ कहते हुए मोहना ने अपनी पीठ पर क्रीम लगाने की फरमाइश की और उस की ओर अपनी नंगी पीठ ले कर बैठ गई. स्पर्श में बड़ी ताकत होती है. उसे उम्मीद थी कि क्रीम लगाते हुए शायद विलास का मन उसे बांहों में लेने को हो जाए. विलास ने क्रीम तो लगा दी लेकिन काम पूरा करते ही नजर फेर ली.

वैसे मोहना को विलास से और कोई शिकायत न थी. वह उस का पूरा खयाल रखता. जब कभी वह लेट हो जाता तो डिनर भी बना कर रखता. नाश्ता बनाने में, घर को व्यवस्थित रखने में उस की पूरी सहायता करता. मोहना को लगता जैसे विलास उस से प्यार तो करता है पर कुछ है जो उसे रोक रहा है.

अगले महीने से त्योहार शुरू होने वाले थे. चूंकि ये उन का पहला त्योहार था इसलिए दोनों ने घरवालों के साथ ही त्योहार मनाने का कार्यक्रम बनाया. विलास व मोहना कुछ दिनों के लिए अपने शहर लौटे.

उस शाम मोहना के घरवाले विलास के घर डिनर पर आमंत्रित थे. बातचीत का सिलसिला चल रहा था.

‘‘और बच्चों हमें गुड न्यूज कब सुना रहे हो?’’ विलास की बुआ जो इसी शहर में रहती हैं, भी आई हुई थीं.

‘‘उस के लिए तो इन दोनों को समय से घर आना पड़ेगा, बहनजी,’’ मोहना की मां ने जवाब दिया, ‘‘ये दोनों तो 10 बजे के बाद ही घर में घुसते हैं. मैं ने तो टोका भी मोहना को कि 2-2 शिफ्टों में नौकरी करने की क्या जरूरत?’’

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वह आगे कुछ कहतीं इस से पहले ही किशोरजी बोल पड़े, ‘‘अच्छा ही है न, देर से आएगी, थकी होगी तो बैडरूम में कोई डिमांड भी नहीं करेगी.’’ उन की यह बात जहां सभी को अटपटी लगी वहीं मोना को समझते देर न लगी कि किशोरजी स्थिति से अवगत हैं और उन्होंने फिर भी जानबूझ कर ये रिश्ता करवाया. उस का मन किशोर जी के प्रति घृणा से भर गया. तभी रानी भी बोल पड़ी, ‘‘बच्चे समझदार हैं, जो करना होगा खुद कर लेंगे, हमें कुछ भी बोलने की क्या जरूरत है भला,’’ ओह, तो इस का मतलब रानी भी सब जानती हैं.

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Serial Story: का से कहूं (भाग-4)

उस दिन भी रोज की तरह सब काम यथावत हो रहे थे. विलास की स्कूल बस नहीं आई तो मौसाजी ने उसे स्कूल छोड़ने का प्रस्ताव रखा, ‘‘यह अच्छा हो जाएगा, तुम तो जाते भी उसी तरफ हो,’’ कह किशारेजी आश्वस्त हो गए. लेकिन मौसाजी की नीयत में भारी खोट था. उन्होंने रास्ते में एक फ्लाईओवर के नीचे कोने में गाड़ी रोक ली. फिर उन्होंने विलास के साथ जबरदस्ती की. बेचारे विलास ने बहुत छूटने की कोशिश की पर विफल रहा.

एक बलिष्ठ आदमी के आगे छोटे बच्चे का क्या जोर. इस दुर्घटना ने उस के आत्मविश्वास को बुरी तरह छलनी कर दिया. ऊपर से उसे धमकी भी दी गई कि अगर मुंह खोला तो घर में कोई भी उस की बात का विश्वास नहीं करेगा. मां, अपनी बहन का साथ निभाएगी और पिता से ऐसी गंदी बात वह कह कैसे सकता है. विलास का बालमन घायल हो गया. लेकिन बेदर्दी मौसा को शर्म न आई. उस आदमी ने इस घटना को एक सिलसिला ही बना लिया. अब वह अकसर विलास को स्कूल छोड़ने की पेशकश करने लगा.

मातापिता सोचते कि बच्चा आराम से कार में चला जाएगा और मान लेते. विलास कितना भी मना करता, कभीकभी स्कूल न जाने के लिए बीमार होने का नाटक भी करता पर रानी और किशोरजी उस की एक न सुनते. सोचते अन्य बच्चों की तरह स्कूल न जाने के बहाने बना रहा है. मौसा ने उस के साथ दुष्कर्म करना जारी रखा. विलास अंदर से टूटता जा रहा था. कहे तो किस से कहे? इस कारण पढ़ाई में उस का मन न लगता जिस से स्कूल में उस के नंबर भी गिरने लगे.

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‘‘मम्मीपापा को काउंसलर ने स्कूल बुलाया तो उन्होंने बताया कि मैं अकसर स्कूल न जाने का बहाने बनाता हूं. बातोंबातों में यह बात सामने आई कि मौसाजी मुझे आराम से कार में छोड़ते हैं और मैं फिर भी नानुकुर करता हूं. शायद काउंसलर टीचर को कुछ संदेह हुआ. अगले दिन से उन्होंने अकेले में मेरी काउंसलिंग शुरू कर दी. अब तक इन हादसों को करीब 2 महीने गुजर चुके थे. टीचर के बारबार कुरेदने से मेरे अंदर की घबराहट बाहर आने लगी और एक दिन मैं ने उन्हें सब कुछ बता दिया. उस दिन मैं इतना रोया, इतना रोया कि टीचर भी मेरे साथ रो पड़ी थीं. फिर उन्होंने ही मेरे घर में बताया,’’ कह विलास चुप हो गया.

मोहना सुन्न बैठी थी. उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि विलास के मुंह से वह ऐसी कोई बात सुनेगी. आज उसे समझ आ गया कि विलास का उस के पास न आना और न ही उसे पास आने देने के पीछे क्या कारण है. विलास मनोरूप से घायल है, खास कर संबंध बनाने को ले कर. मोहना, विलास का दर्द समझ सकती थी. आखिर वह उस की जीवनसंगिनी है, विलास ने उसे अपना समझ कर उस से अपना वह दर्द बांटा है जिसे वह कई सालों से अपने मन के किसी कोने में दबाए हुए था.

ऊपर से सब कुछ सही लगता है पर कितनी बार मन के अंदर की परतें रिस रही होती हैं. हम कितनी बार ऐसी खबरें पढ़तेसुनते हैं लेकिन इन का कितना गहरा असर होता होगा बाल मन पर, यह कितनी बार सोचते हैं हम? शायद कभी नहीं. कारण है कि हमारा अपना कोई इन खबरों का हिस्सा नहीं होता न. मोहना को भी आज पहली बार इस वेदना का अंदाजा हुआ था. एक पीडि़त के कथन के बाद वह समझी थी कि यौन शोषण जीवन पर एक काला धब्बा है. तो क्या इस की छाप अमिट है? क्या विलास या इस के जैसे बचपन में हुए हादसों के शिकार अन्य लोग उबर नहीं सकते? मोहना गहरी सोच में पड़ गई.

उस रात मोहना ने विलास का हाथ नहीं छोड़ा. शायद वह बिना बोले ही कहना चाहती थी कि वह उस की तकलीफ में उस के साथ है. आज विलास ने भी अपना हाथ छुड़ाने की चेष्टा नहीं की. अगली सुबह दोनों मुंबई के लिए रवाना हो गए. इस छोटी सी ट्रिप का काफी बड़ा फायदा हुआ था. कम से कम बात की असलियत तो सामने आई. अब मोहना ने ठान लिया कि वह विलास को मानसिक रूप से भी स्वस्थ कर के रहेगी. उस ने इस विषय पर काफी पढ़ना आरंभ कर दिया. जो ज्ञान, जो बात जहां से पता चल सकती थी, उस ने जानना शुरू कर दिया.

काफी कुछ पढ़ने से उसे यह पता चला कि यह एक जटिल मनोदशा होती है जो बड़े होने पर आहत मन में ट्रौमा के रूप में रहती है और यही हो रहा था विलास के साथ. कुछ महीनों के शोषण ने उस की पूरी जिंदगी पर गलत छाप छोड़ दी. मोहना ने पढ़ा कि ऐसी स्थिति से बाहर निकलने में काउंसलिंग काफी सहायक होती है. पहले उस ने एक अच्छी काउंसलर के बारे में पता लगाया. उन से मिली. उन की बातों से उसे आश्वासन मिला कि वह विलास की मदद अवश्य कर सकेंगी. हां, इस में कुछ महीनों का समय लग सकता है. मोहना को अब विलास को काउंसलिंग के लिए तैयार करना था.

‘‘तुम ने कहा था कि यह बात केवल हम दोनों के बीच रहेगी… फिर यह काउंसलिंग? यह गलत है मोहना, तुम ने मेरा विश्वास तोड़ा है,’’ मोहना की बात सुन कर विलास तैश में आ गया.

‘‘नहीं विलास, मैं तुम्हारा विश्वास जीतना चाहती हूं. मुझे ऐसा क्यों लगता है कि तुम किसी पापी के पाप की सजा खुद को देते आ रहे हो. तुम क्यों घुट कर जी रहे हो. आज जमाना खुल कर जीने का है. क्या तुम अपने आसपास नहीं देखते कि लोग स्वयं अपना जीवनसाथी चुन रहे हैं, यहां तक कि समलैंगिक साथी चुनने की आजादी भी मिल गई है. लोग शोषण के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं, रेप विक्टिम्स खुल कर सामने आ रहे हैं, मातापिता बच्चों के साथ हुए दुर्व्यवहार पर गुहार लगा रहे हैं,’’ मोहना पूरी कोशिश कर रही थी. ‘‘ऐसे में तुम बरसों पुरानी दुर्घटना की चादर अपने ऊपर से उतार फेंकने को तैयार नहीं हो. क्यों? क्या डर है तुम्हें? एक बार अपने भय का सामना तो करो. एक बार कोशिश तो करो. मैं वादा करती हूं कि अगर तुम्हें काउंसलिंग पसंद नहीं आई या तुम्हारी तकलीफ बढ़ी तो मैं तुम्हारा साथ दूंगी और एक बार फिर कहती हूं कि यह बात हम दोनों के बीच ही रहेगी.’’

मोहना के मनाने पर विलास काउंसलिंग के कुद सैशंस लेने को तैयार हो गया और पहले कुछ सैशंस में ही विलास ने अनुभव किया कि अपने अंदर जो पीड़ा, जो दर्द, घृणा व छटपटाहट उस ने दबा रखी थी, उस का पहाड़ रेत की तरह ढहने लगा है. धीरेधीरे विलास अपनी मनोचिकित्सक से खुलता गया. जितना उस ने अपनी भावनाएं बांटी, उस की वेदना उतनी ही घटती गई. कुछ महीनों में विलास अपने अंदर एक नयापन, स्फूर्ति और उल्लास अनुभव करने लगा.

कुछ महीनों में काउंसलिंग की अवधि समाप्त हो गई. विलास ने अब अपने भूत को पूरी तरह त्याग दिया. वह खुशी से वर्तमान में जीने लगा. मोहना तो खुश थी ही, क्योंकि उसे सही अर्थों में अपना पति मिल गया. एक और कारण था दोनों की खुशी का उन्हें एकदूसरे में सच्चा हमसफर जो मिल गया था.

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घोंसले के पंछी

घोंसले के पंछी-भाग 3: ऋचा से क्यों पूछे जा रहे थे सवाल

अंकिता सोचने लगी पर उस के मन में दुविधा और शंका के बादल मंडरा रहे थे. बताए या न बताए. मम्मी उस के मन की बात जान गई हैं. कहां तक छिपाएगी? नहीं बताएगी तो उस पर प्रतिबंध लगेंगे. उस ने आगे आने वाली मुसीबतों के बारे में सोचा. उसे लगा कि मां जब इतने प्यार और सहानुभूति से पूछ रही हैं, तो उन को सब कुछ बता देना ही उचित होगा.

अंकिता खुल गई और धीरेधीरे उस ने मम्मी को सारी बातें बता दीं. गनीमत थी कि अभी तक अंकिता ने अपना कौमार्य बचा कर रखा था. लड़के ने कोशिश बहुत की थी, परंतु वह उस के साथ होटल जाने को तैयार नहीं हुई. डर गई थी, इसलिए बच गई. मम्मी ने इतमीनान की गहरी सांस ली और बेटी को सांत्वना दी कि वह सब कुछ ठीक कर देंगी. अगर लड़का तथा उस के घर वाले राजी हुए तो इसी साल उस की शादी कर देंगे.

अंकिता ने बताया था कि वह अपने साथ पढ़ने वाले एक लड़के के साथ प्यार करती है. उस के घरपरिवार के बारे में वह बहुत कम जानती है. वे दोनों बस प्यार के सुनहरे सपने देख रहे हैं. बिना पंखों के हवा में उड़ रहे थे. भविष्य के बारे में अनजान थे. प्रेम की परिणति क्या होगी, इस के बारे में सोचा तक नहीं था. वे बस एकदूसरे के प्रति आसक्त थे. यह शारीरिक आकर्षण था, जिस के कारण लड़कियां अवांछित विपदाओं का शिकार होती हैं.

ऋचा ने आदित्य को सब कुछ बताया. मामला सचमुच गंभीर था. अंकिता अभी नासमझ थी. उस के विचारों में परिपक्वता नहीं थी. उस की उम्र अभी 20 साल थी. वह लड़का भी इतनी ही उम्र का होगा. दोनों का कोई भविष्य नहीं था. वे दोनों बरबादी की तरफ बढ़ रहे थे. उन्हें संभालना होगा.

स्थिति गंभीर थी. ऋचा और आदित्य का चिंतित होना स्वाभाविक था. परंतु ऋचा और आदित्य को कुछ नहीं करना पड़ा. मामला अपनेआप सुलझ गया. संयोग उन का साथ दे रहा था. समय रहते अंकिता को अक्ल आ गई थी. उस की मम्मी की बातों का उस पर ठीक असर हुआ था.

अंकिता ने जब शिवम को बताया कि उस की मम्मी को उस के प्रेम के बारे में सब पता चल गया है तो वह घबरा गया.‘‘इस में घबराने की क्या बात है? मम्मी ने तुम्हारे डैडी का फोन नंबर व पता मांगा है. वह तुम्हारे घर वालों से हमारी शादी की बात करना चाहती हैं.’’

‘‘अरे मर गए, क्या तुम्हारे पापा को भी पता है?’’ उस के माथे पर पसीने की बूंदें छलक आईं.‘‘जरूर पता होगा. मम्मी ने बताया होगा उन को. परंतु तुम इतना परेशान क्यों हो रहे हो? हम एकदूसरे से प्रेम करते हैं, शादी करने में क्या हरज है? कभी न कभी करते ही, कल के बजाय आज सही,’’ अंकिता बहुत धैर्य से यह सब कह रही थी.

‘‘अरे, तुम नहीं समझतीं. यह कोई शादी की उम्र है. मेरे डैडी जूतों से मेरी खोपड़ी गंजी कर देंगे. शादी तो दूर की बात है,’’ वह हाथ मलते हुए बोला.‘‘अच्छा,’’ अंकिता की अक्ल ठिकाने आ रही थी. वह समझने का प्रयास कर रही थी. बोली, ‘‘तुम मुझ से प्रेम कर सकते हो तो शादी क्यों नहीं. प्रेम मांबाप से पूछ कर तो किया नहीं था. अगर वे हमारी शादी के लिए तैयार नहीं होते, तो शादी भी उन से बिना पूछे कर लो. आखिर हम बालिग हैं.’’

‘‘क्या बकवास कर रही हो, शादी कैसे कर सकते हैं?’’ वह झल्ला कर बोला, ‘‘अभी तो हम पढ़ रहे हैं. मांबाप से पूछे बगैर हम इतना बड़ा कदम कैसे उठा सकते हैं?’’‘‘अच्छा, मांबाप से पूछे बगैर तुम जवान कुंआरी लड़की को बरगला सकते हो. उस को झूठे प्रेमजाल में फंसा सकते हो. शादी का झांसा दे कर उस की इज्जत लूट सकते हो. यह सब करने के लिए तुम बालिग हो परंतु शादी करने के लिए नहीं,’’ वह रोंआसी हो गई.

उसे मम्मी की बातें याद आ गईं. सच कहा था उन्होंने कि इस उम्र में लड़कियां अकसर बहक जाती हैं. लड़के उन को बरगला कर, झूठे सपनों की दुनिया में ले जा कर उन की इज्जत से खिलवाड़ करते हैं. शिवम भी तो उस के साथ यही कर रहा था. समय रहते उस की मम्मी ने उसे सचेत कर दिया था. वह बच गई. अगर थोड़ी देर होती तो एक न एक दिन शिवम उस की इज्जत जरूर लूट लेता. कहां तक अपने को बचाती. वह तो उस के लिए पागल थी.

शिवम इधरउधर ताक रहा था. अंकिता ने एक प्रयास और किया, ‘‘तुम अपने घर का पता और फोन नंबर दो. तुम्हारे मम्मीडैडी से पूछ तो लें कि वे इस रिश्ते के लिए राजी हैं या नहीं.’’‘‘क्या शादीशादी की रट लगा रखी है,’’ वह दांत पीस कर बोला, ‘‘हम कालेज में पढ़ने के लिए आए हैं, शादी करने के लिए नहीं.’’

‘‘नहीं, प्यार करने के लिए…’’ अंकिता ने उस की नकल की. वह भी दांत पीस कर बोली, ‘‘तो चलो, नाचेगाएं और खुशियां मनाएं,’’ अब उस की आवाज में तल्खी आ गई थी, ‘‘कमीने कहीं के, तुम्हारे जैसे लड़कों की वजह से ही न जाने कितनी लड़कियां अपनी इज्जत बरबाद करती हैं. मैं ही

बेवकूफ थी, जो तुम्हारे फंदे में फंस गई. थू है तुम पर.. भाड़ में जाओ. सब कुछ खत्म हो गया. अब कभी मेरे सामने मत पड़ना. गैरत हो तो अपना काला मुंह ले कर मेरे सामने से चले जाओ.’’उस दिन शाम को अंकिता जल्दी घर पहुंच गई. बहुत दिनों बाद ऐसा हुआ था. ऋचा और आदित्य ने भेदभरी नजरों से एकदूसरे की तरफ देखा. अंकिता चुपचाप अपने कमरे में चली गई थी. आदित्य ने ऋचा को इशारा किया. वह पीछेपीछे अंकिता के कमरे में पहुंची. आदित्य भी बाहर आ कर खड़े हो गए थे.

‘‘आज बहुत जल्दी आ गईं बेटी,’’ ऋचा अंकिता से पूछ रही थी.‘‘हां मम्मी, आज मैं अपने मन का बोझ उतार कर आई हूं. बहुत हलका महसूस कर रही हूं,’’ फिर उस ने एकएक बात मम्मी को बता दी.

मम्मी ने उसे गले से लगा लिया. उसे पुचकारते हुए बोलीं, ‘‘बेटी, मुझे तुम पर गर्व है. तुम्हारी जैसी बेटी हर मांबाप को मिले.’’‘‘मम्मी यह सब आप की समझदारी की वजह से हुआ है. समय रहते आप ने

मुझे संभाल लिया. मैं आप की बात समझ गई और पतन के गर्त में जाने से बच गई. आप थोड़ा सी देर और करतीं तो मेरी बरबादी हो चुकी होती. मैं आप से वादा करती हूं कि मन लगा कर पढ़ाई करूंगी. आप की नसीहत और मार्गदर्शन से एक अच्छी बेटी बन कर दिखाऊंगी.’’

‘‘हां बेटी, तुम्हारे सिवा हमारा और कौन है? तुम चली जातीं तो हमारे जीवन में क्या बचता?’’‘‘मम्मी, ऐसा क्यों कह रही हैं? मैं आप के साथ हूं और भैयाभाभी भी तो हैं.’’ऋचा ने अफसोस से कहा, ‘‘वे अब हमारे कहां रहे? हम ने एकदूसरे को नहीं समझा और वे हम से दूर हो गए.’’

‘‘ऐसा नहीं है मम्मी, वे पहले भी हमारे थे और आज भी हमारे हैं.’’ ‘‘ये क्या कह रही हो तुम?’’‘‘मम्मी, मैं आप को राज की बात बताती हूं. भैया और भाभी से मैं रोज बात करती हूं. भाभी खुद फोन करती हैं. मैं ने उन्हें देखा नहीं है परंतु वे बातें बहुत प्यारी करती हैं. वे हम सब को देखना चाहती हैं. भैया तो एक दिन भी बिना मुझ से बात किए नहीं रह सकते. वे और भाभी यहां आना चाहते हैं लेकिन डैडी से डरते हैं, इसीलिए नहीं आते. मम्मी, आप एक बार…सिर्फ एक बार उन से कह दो कि आप ने उन्हें माफ किया, वे दौड़ते हुए आएंगे.’’

‘‘सच…’’ ऋचा ने उसे अपने सीने से लगा लिया, ‘‘बेटी, आज तू ने मुझे दोगुनी खुशी दी है,’’ वह खुशी से विह्वल हुई जा रही थी.‘‘हां, मम्मी, आप उन्हें फोन तो करो,’’ अंकिता चहक रही थी, ‘‘मैं भाभी से मिलना चाहती हूं.’’

‘‘अभी करती हूं. पहले उन को बता दूं. सुन कर वे भी खुशी से पागल हो जाएंगे. हम लोगों ने न जाने कितनी बार उन को बुलाने के बारे में सोचा. बस हठधर्मिता में पड़े रहे. बेटे के सामने झुकना नहीं चाहते थे परंतु आज हम बेटे के लिए और उस की खुशी के लिए छोटे बन जाएंगे. उसे फोन करेंगे.’’

वह बाहर जाने के लिए मुड़ी. कमरे के बाहर खड़े आदित्य अपनी आंखों से आंसू पोंछ रहे थे. आज उन्हें खोई हुई खुशी मिल रही थी. बेटी भी वापस अंधेरी गलियों में भटकने से बच गई थी. वह सहीसलामत घर लौट आई थी. बेटा भी मिल गया था. आज उन की हठधर्मिता टूट गई थी. उन्हें अपनी गलती का एहसास हो चुका था.

ऋचा ने आदित्य को बाहर खड़े देखा. वे समझ गईं कि अब कुछ कहने की जरूरत नहीं थी. वे सब सुन चुके थे. उन के पास जा कर भरे गले से बोली, ‘‘चलिए, बेटे को फोन कर दें और बहू के स्वागत की तैयारी

करें. आज हमें दोगुनी खुशी मिल रही है.ऐसा लग रहा है, जैसे घोंसले के पंछी वापस आ गए हैं. अब हमारा आशियाना वीरान नहीं रहेगा.’’ ‘‘हां, ऋचा,’’ आदित्य ने उसे बांहों के घेरे में लेते हुए कहा, ‘‘घोंसले के पंछी घोंसले में ही रहते हैं, डाल पर नहीं. प्रतीक को वापस आना ही था. हमारी बगिया के फूल यों ही हंसतेमुसकराते रहें. उन की सुगंध चारों ओर फैले और वे अपनी महक से सब के जीवन को गुलजार कर दे.

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