इतनी गरमी में अपर्णा को किचन में खाना पकाते देख शिव को अपनी पत्नी पर प्यार हो आया. वह पास पड़ा तौलिया उठा कर उस के चेहरे का पसीना पोंछने लगा तो अपर्णा मुसकरा उठी.
‘‘मुसकरा क्यों रही हो? देखो, गरमी कितनी है? मैं ने कहा था बाहर से ही खाना और्डर कर मंगवा लेंगे. लेकिन तुम सुनती कहां हो.
चलो, अब लाओ, सब्जी मैं काट देता हूं, तुम जा कर थोड़ी देर ऐसी में बैठो,’’ उस के हाथ से चाकू लेते हुए शिव बोला.
‘‘अरे नहीं, इस की कोई जरूरत नहीं है पति देव. मैं कर लूंगी,’’ शिव के हाथ से चाकू लेते हुए अपर्णा बोली, ‘‘आप दीदी को फोन लगा कर पूछिए वे लोग कब तक आएंगे. अच्छा, रहने दीजिए. मैं ही पूछ लेती हूं. आप एक काम करिए, वह हमारे घर के पास जो ‘राधे स्वीट्स’ की दुकान है न वहां से
1 किलोग्राम अंगूर रबड़ी ले आओ. ‘राधे स्वीट्स’ की मिठाई ताजा होती है. और हां बच्चों के लिए चौकलेट आइसक्रीम भी लेते आइएगा.’’
‘‘राधे स्वीट्स से मिठाई पर उस की दुकान की मिठाई तो उतनी अच्छी नहीं होती. एक काम करता हूं बाजार चला जाता हूं वहीं से मिठाई लेता आऊंगा मैं,’’ शिव ने कहा. लेकिन अपर्णा कहने लगी कि क्यों बेकार में उतनी दूर जा कर टाइम बेस्ट करना, जब यहीं घर के पास ही अच्छी मिठाई की दुकान है.
‘‘कोई अच्छी दुकान नहीं है उस की. पिछली बार याद नहीं, कितनी खराब मिठाई दी थी उस ने? फेंकनी पड़ी थी.’’
‘‘अब एक ही बात को कितनी बार रटते रहोगे तुम? मैं कह रही हूं न अच्छी मिठाई मिलती वहां,’’ अपर्णा थोड़ी इरिटेट हो गई.
‘‘अच्छा भई ठीक है. मैं वहीं से मिठाई ले आता हूं,’’ अपर्णा का मूड भांपते हुए शिव बोला. लेकिन उस का मन बाजार से जा कर मिठाई लाने का था, ‘‘और भी कुछ सामान मंगवाना है तो बोल दो वरना बाद में कहोगी यह रह गया वह
रह गया.’’
‘‘नहीं और कुछ नहीं मंगवाना. बस जो कहा है वह ले आओ,’’ बोल कर अपर्णा अपनी दीदी को फोन लगाने लगी. पता चला कि उन्हें आने में अभी घंटा भर तो लग जाएगा. ‘ठीक ही है चलो’ फोन रख बड़बड़ाते हुए वह किचन में चली गई. तब तक शिव मिठाई और आइसक्रीम ले कर आ गया तो अपर्णा ने उसे फ्रिज में रख दिया ताकि गरमी की वजह से वह खराब न हो जाए.
दरअसल, आज अपर्णा के घर खाने पर
उस की दीदी और जीजाजी आने वाले हैं.
इसलिए वह सुबह से ही किचन में बिजी है. अपर्णा की दीदी बैंगलुरु में रहती है. बच्चों की छुट्टियों में वह यहां अपने मायके आई हुई है. इसलिए शिव और अपर्णा ने आज उन्हें अपने घर खाने पर इन्वाइट किया और उन के लिए ही ये सारी तैयारियां हो रही हैं. अपर्णा का मायका यहीं दिल्ली में ही है. 75 साल के उस के पापा और 70 साल की उस की मां दिल्ली के आनंद विहार में 2 कमरों के घर में रहते हैं. अपर्णा का एक भाई भी है जो अपने परिवार के साथ कोलकाता में रहता है और साल में एक बार यहां अपने मांपापा से मिलने आता है लेकिन अकेले. अपर्णा का भाई रेलवे में गार्ड है. वहां ही उस ने एक बंगाली लड़की से शादी कर ली और फिर वहीं का हो कर रह गया.
अपर्णा का पति शिव सरकारी विभाग में ऊंची पोस्ट पर कार्यरत है. उसे औफिस की तरफ से ही रहने के लिए घर और गाड़ी सब मिला हुआ है. इन के 2 बच्चे हैं.
13 साल की बेटी रिनी और 8 साल का बेटा रुद्र. दोनों बच्चे दिल्ली में पढ़ते हैं. अभी अपर्णा के बच्चों का भी वेकेशन चल रहा है इसलिए दोनों बच्चे इस बात को ले कर खुश हैं कि उन के मौसीमौसा आने वाले हैं और उन के लिए ढेर सारे गिफ्ट्स भी ले कर आएंगे. अब बच्चे तो बच्चे ही हैं. लालहरी पन्नी में बंधा गिफ्ट्स देख कर खुशी से उछल पड़ते हैं.
मेहमानों के आने का टाइम हो चुका था. वैसे खाना भी तैयार ही था. अपर्णा ने सारा खाना अच्छे से डाइनिंगटेबल पर सजा दिया और सलाद काट कर फ्रिज में रख दिया. पूरा घर खाने की खुशबू से महक रहा था. घर में खाने की बहुत सारी प्लेटें हैं, पर शिव ने जिद पकड़ ली कि आज नए डिनर सैट में मेहमानों को खाना खिलाया जाए. आखिर उस ने इतना महंगा डिनर सैट खरीदा किसलिए है? सजा कर रखने के लिए तो नहीं?
शिव कहीं गुस्सा न हो जाए इसलिए अपर्णा ने वह नया डिनर सैट निकाल लिया. अपर्णा के मायके वालों के आने से शिव बहुत खुश था.
वैसे भी शिव को मेहमाननवाजी करना बहुत पसंद है. अपर्णा तो इस बात को ले कर बहुत खुश थी कि इतने दिनों बाद उस की दीदी से उस का मिलना होगा.
अपर्णा सुबह उठ कर पहले पूरे घर की डस्टिंग कर अच्छे से सब व्यवस्थित कर खाना पकाने में लग गई थी. मगर हाल में अभी भी इधर अखबार, उधर किताबें फैली हुई थीं. सोफा और कुशन भी अस्तव्यस्त थे. उस ने रिनी से कहा भी कि वह जरा सोफा, कुशन सही कर दे. किताबें, अखबार समेट कर उन्हें अलमारी में रख दे. मेहमान आएंगे तो क्या सोचेंगे. मगर उसे तो अपने मोबाइल से ही फुरसत नहीं है.
आज के बच्चों में मोबाइल फोन की ऐसी लत लग गई है कि पूछो मत. आलतूफालतू रील देख कर ‘हाहा’ करते रहते हैं. लेकिन यह नहीं सम झते कि ये सब उन की शारीरिक और मानसिक सेहत पर कितना बुरा प्रभाव डाल रहा है. अब रुद्र को ही देख लो. कैसे छोटीछोटी
बातों पर चिड़ जाता है और रिनी मैडम को तो कुछ याद ही नहीं रहता. कुछ भी पूछो, जबाव आता है मु झे नहीं पता. ये सब मोबाइल फोन का ही तो असर है.
खैर, अपर्णा झटपट खुद ही हाल समेटने लगी. मन तो किया उस का रिनी को कस कर डांट लगाए और कहे कि जब देखो मोबाइल से चिपकी रहती हो. जरा मदद नहीं कर सकती मेरी? लेकिन यह सोच कर चुप रह गई कि
बेकार में शिव का पारा गरम हो जाएगा. शिव की आदत है छोटीछोटी बातों को ले कर चिल्लाने लगते हैं. पूरा घर सिर पर उठा लेते हैं जैसे न जाने क्या हो गया.
‘‘अरे, अब ये क्या करने लग गई तुम. रिनी कहां है? कहो उस से कर देगी,’’ अपर्णा को सोफा ठीक करते देख शिव बोला, ‘‘रुको, मैं बुलाता हूं उसे. रिनी… इधर आओ,’’ शिव ने जोर की दहाड़ लगाई, तो रिनी भागीभागी आई.
‘‘चलो, हौल अच्छे से ठीक कर दो और देखो फ्रिज में पानी की सारी बोतलें भरी हुई हैं या नहीं? और अपर्णा तुम जा कर जल्दी से तैयार हो जाओ. मेरा मतलब है कपड़े चेंज कर लो न. अच्छा नहीं लग रहा है.’’
‘‘अब इन कपड़ों में क्या खराबी है,’’ शिव की बातों से अपर्णा को चिड़ हो आई कि यह
पति है या उस की सास? जब देखो पीछे ही पड़ा रहता है.
‘‘अब सोचने क्या लग गई. जाओ न. आते ही होंगे वे लोग,’’ शिव ने फिर टोका.
‘‘अच्छा ठीक है,’’ कह कर अपर्णा कमरे में चली गई और शिव खाने की व्यवस्था देखने लगा कि सबकुछ ठीक तो है न. कभीकभी शिव का औरताना व्यवहार अपर्णा के मन में चिड़चिड़ाहट पैदा कर देता.
छुट्टी के दिन शिव पूरी किचन की तलाशी लेगा कि फ्रिज में बासी खाना तो नहीं पड़ा है? किचन में कोई चीज बरबाद तो नहीं हो रही है? आटा, दाल, तेल, मसाला वगैरह का डब्बा खोलखोल कर देखेगा कि कोई चीज कम तो नहीं हो गई है? मन करता है अपर्णा का कि कह दे कि जो काम तुम्हारा नहीं है उस में क्यों घुस रहे हो लेकिन वही लड़ाई झगड़े के डर से कुछ बोलती नहीं है.
दरवाजे की घंटी बजी तो शिव ने ही दरवाजा खोला और आदर के साथ मेहमानों को घर के अंदर ले आया. तब तक अपर्णा सब के लिए गिलासों में ठंडा ले आई और सब के हाथ में गिलास पकड़ाते हुए वह भी अपना गिलास ले कर अपनी दीदी की बगल में बैठ गई. दोनों बहनें कितने दिनों बाद मिली थीं तो बातों का सिलसिला चल पड़ा.
उधर शिव और अपर्णा के जीजाजी भी यहांवहां की बातें करने लगें. बच्चे एक कमरे में बैठ कर टीवी का मजा ले रहे थे और बीच में आआ कर फ्रिज से कभी आइसक्रीम तो कभी ठंडा और आलू चिप्स ले कर चले जाते. बातों में लगी अपर्णा रिनी और रुद्र को इशारे से मना करती कि बस अब ज्यादा नहीं. खाना भी तो खाना है न? उस की दीदी उसे टोकती कि जाने दो न बच्चे हैं. ऐंजौय करने दो उन्हें. खूब हाहाहीही चल रही थी. घर का माहौल काफी खुशनुमा बना हुआ था. शिव ने इशारे से अपर्णा से कहा कि अब खाना लगा दो. भूख लगी होगी सब को.
सब लोगों ने खाना खाया. खाने के बाद अपर्णा सब के लिए अंगूर रबड़ी ले आई.
सब से पहले अंगूर रबड़ी का कटोरा शिव ने उठाया. लेकिन पहला चम्मच मुंह में डालते हुए उस का मूड खराब हो गया. उस ने अंगूर रबड़ी का कटोरा इतनी जोर से टेबल पर पटका कि छलक कर मिठाई टेबल पर फैल गई. अपर्णा ने सहमते हुए पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’
‘‘पूछ रही हो क्या हुआ? तुम से कहा था
न जा कर बाजार से मिठाई ले आता हूं लेकिन नहीं, तुम्हें तो बस अपनी ही चलानी होती है. किसी की सुनती हो? लो अब तुम्हीं खाओ यह घटिया मिठाई,’’ मिठाई का पूरा डोंगा अपर्णा की तरफ बढ़ाते हुए शिव जोर से चीखते हुए कहने लगा कि यह औरत कभी मेरी बात नहीं सुनती. अनपढ़गंवार की तरह किसी की भी बातों में आ जाती है.
अपर्णा को जिस बात का डर था वही हुआ. उस ने मेहमानों के सामने ही अपना रंग दिखा दिया. शिव के अचानक से ऐसे व्यवहार से अपर्णा की दीदी और जीजाजी दोनों अवाक रह गए. बच्चे भी डर कर कमरे में भाग गए और अपर्णा को सम झ नहीं आ रहा था अब वह क्या करे? कैसे संभाले बात को?
‘‘वह दीदी गलती मेरी ही है. शिव ने कहा था कि बाजार से मिठाई ले आते हैं लेकिन मैं ने ही…’’ दांत निपोरते हुए अपर्णा को सम झ नहीं आ रहा था कि क्या बोले. किस तरह शिव को शांत कराए.
अपर्णा ने इशारे से शिव को कई बार सम झाना चाहा कि मेहमान क्या सोचेंगे. चुप हो जाओ. मगर शिव कहां कुछ सुनने वाला था. उसे तो जब गुस्सा आता है, पूरा घर सिर पर उठा लेता है. यह भी नहीं सोचता कि सामने बैठे लोग क्या सोचेंगे. गुस्से पर तो उस का कंट्रोल ही नहीं रहता. लेकिन हां गरजते बादल की तरह वर्षा कर वह शांत भी हो जाता है. लेकिन ऐसी शांति किस काम की जो सब तहसनहस कर जाए. मेहमान सारे चले गए लेकिन अब अपर्णा का खून खौल रहा था.
गुस्सा शांत होते ही शिव को अपनी गलती का एहसास हुआ और उस के लिए उस ने अपर्णा से माफी भी मांगी लेकिन अपर्णा ने उस की बातों का कोई जवाब दिए बिना कमरे में जा कर अंदर से दरवाजा लगा लिया. अब गुस्सा तो आएगा ही न? इतनी गरमी में बेचारी सुबह से कितनी मेहनत कर रही थी और इस शिव ने उस की सारी मेहनत पर पानी फेर दिया. उस के मायके वालो के सामने उसे जलील कर दिया. क्या अच्छा किया उस ने?
शिव की आदत है राई का पहाड़ बनाने की. छोटीछोटी बातों पर वह चीखनेचिल्लाने लगता है कि ऐसा क्यों हुआ. वैसा क्यों नहीं हुआ. अब तो बच्चे भी सम झने लगे हैं अपनी पापा की आदत को कि पता नहीं कब वे किस बात पर, कहां, किस के सामने चिल्ला पड़ेंगे. माना अपर्णा से गलती हुई लेकिन शिव को इतना बोलने की क्या जरूरत थी? बाद में भी तो वह अपर्णा पर गुस्सा निकाल सकता था?
अपर्णा ने क्याक्या नहीं सोच रखा था कि खाना खाने के बाद शाम को सब मिल कर पास ही जो वाटरफौल है, वहां जाएंगे. फिर ईको पार्क चलेंगे. अभी नया जो आइसक्रीम पार्लर खुला है, वहां जा कर आइसक्रीम खाएंगे. खूब मस्ती करेंगे लेकिन इस शिव ने सब गुड़गोबर कर के रख दिया. ऐसा उस ने कोई पहली बार नहीं किया है. पहले भी कई बार वह ऐसा कर चुका है जब लोगों के सामने अपर्णा को शर्मिंदा होना पड़ा है.
कुछ दिन की ही बात है जब अपर्णा शिव के साथ मौल में अपने लिए कपड़े खरीदने गई थी. वह भी शिव के जिद्द करने पर वरना तो वह औनलाइन ही सूटसाड़ी वगैरह खरीद कर पहनना पसंद करती है. इस से समय तो बचता ही है,
दाम भी रीजनेबल होता है. सब से अच्छी बात यह कि अगर आप को चीजें पसंद न आएं तो आप लौटा भी सकते हैं. पैसा तुरंत आप के अकाउंट में आ जाता है. लेकिन मौल में
10 चक्कर लगवाएंगे अगर कोई चीज लौटानी हो तो. लेकिन यह बात शिव को सम झासम झा कर वह थक चुकी थी.
मौल में उस ने अपने लिए एक कुरती पसंद कर जब उसे पहन कर वह शिव को दिखाने आई तो सब के सामने ही उस ने उसे झाड़ दिया यह कह कर कि अपर्णा में कलर सैंस जरा भी नहीं है. गंवारों की तरह लालपीलाहरा रंग ही पसंद आता है इसे.
शिव की बात पर वहां खड़े सारे लोग अपर्णा को देखने लगे जैसे वह सच में गंवार महिला हो. उफ, कितना बुरा लगा था. उसे उस वक्त रोना आ रहा था जब चेंजिंग रूम के बाहर खड़ी दोनों लड़कियां उसे देख कर हंसने लगीं. शर्म के मारे अपर्णा कुछ बोल नहीं पाई पर उसी वक्त वह गुस्से में मौल से बाहर निकल आई और जा कर गाड़ी में बैठ गई.
वह भी तो पलट कर जवाब दे सकती थी कि शिव के काले रंग पर कोई कलर सूट नहीं करता पर वह उस की जैसी नहीं है. ‘दिमाग से पैदल इंसान’ अपर्णा ने दांत भींच लिए. गुस्से के मारे उस के तनबदन में आग लग रही थी. मन कर रहा था पैदल ही घर चली जाए. लेकिन बाहर वह कोई तमाशा खड़ा नहीं करना चाहती थी इसलिए पूरे रास्ते खिड़की से बाहर देखती रही और अपने आंसू पोंछती हुई सोचती रही कि आखिर शिव अपनेआप को सम झता क्या है. पति है तो कुछ भी बोलेगा? क्या उस की कोई इज्जत नहीं है?
इधर शिव को अपनी बात पर बहुत पछतावा हो रहा था कि सब के सामने उसे अपर्णा से ऐसे बात नहीं करनी चाहिए थी, ‘‘अपर्णा, सुनो न, मेरे कहने का वह मतलब नहीं था. मैं तो बस यह कह रहा था कि तुम पर…’’ शिव ने सफाई देनी चाही पर अपर्णा उस की बात सुने बिना बालकनी में चली गई. शिव उस के पीछेपीछे गया पर उस ने जोर से दरवाजा लगा लिया यह कहते हुए कि अगर उस ने ज्यादा परेशान किया तो वह यह घर छोड़ कर कहीं चली जाएगी.
उस दिन के बाद आज फिर उस ने मेहमानों के सामने अपनी मूर्खता का प्रदर्शन दे दिया. अरे, क्या सोच रहे होंगे वे लोग उस के बारे में यह भी नहीं सोचा शिव ने. ऐसे तो घर में वह बहुत केयरिंग और लविंग पति बन कर घूमता है. घर के कामों में भी वह अपर्णा की मदद कर दिया करता है, पत्नी व बच्चों को बाहर घुमाने और होटल में खिलाने का भी वह शौकीन है, मगर कभीकभी पता नहीं उसे क्या हो जाता है. अपनेआप को बहुत महान, ज्ञानवान सम झने लगता और अपर्णा को मूर्खगंवार. लोगों के सामने डांट कर कहीं वह यह तो साबित नहीं करना चाहता कि वह मर्द है और अपर्णा औरत.
अपर्णा की दीदी का फोन आया लेकिन उस ने उस का फोन नहीं उठाया क्योंकि उस का मूड पूरी तरह से खराब हो चुका था, सो वह कमरे की लाइट औफ कर के सो गई.
खाना तो सुबह का ही कितना सारा बचा हुआ था तो बनाना तो कुछ था नहीं और अपर्णा की भूख वैसे भी मर चुकी थी. दोनों बच्चे भी अपने कमरे में एकदम शांत, चुपचाप बैठे थे. डर के मारे दोनों मोबाइल भी नहीं चला रहे थे कि पापा डांटेंगे.
इधर शिव अकेले हौल में सोफे पर अधलेटा न जाने क्या सोच रहा था. यही सोच रहा होगा कि बेकार में ही उस ने अपर्णा का मूड खराब कर दिया. बेचारी सुबह से कितनी मेहनत कर रही थी और जरा सी बात के लिए उस ने सब के सामने उसे क्या कुछ नहीं सुना दिया. शिव के मन ने उसे धिक्कारा.
अब अपर्णा के सामने जाने की तो शिव की हिम्मत नहीं थी इसलिए उस ने बच्चों के कमरे में झांक कर देखा. रिनी लेटी हुई थी और रुद्र कुरसी पर बैठा खिड़की से बाहर झांक रहा था. अपर्णा के कमरे में जब झांक कर देखा तो वह उधर मुंह किए सोई हुई थी. शिव को पता
है वह सोई नहीं है. शायद रो रही होगी या कुछ सोच रही होगी. यही कि शिव कितना बुरा इंसान है. ‘हां, बहुत बुरा हूं मैं. बेकार में मैं ने अपनी बीवी का मूड खराब कर दिया,’ अपने मन में सोच शिव अपर्णा का मूड ठीक करने का उपाय सोचने लगा.
‘‘रिनी, बेटा, जरा 1 कप चाय बनाओ तो,’’ अपर्णा के कमरे की तरफ मुंह कर के शिव बोला ताकि वह सुन सके कि शिव को चाय पीनी है. लेकिन डाइरैक्ट अपर्णा से बोलने की उस की हिम्मत नहीं पड़ रही थी इसलिए बेटी को आवाज लगाई, ‘‘बेटा, चाय में जरा चीनी डाल देना, लगता है शुगर कम हो गई. सिर में दर्द हो रहा है मेरे,’’ यह बात भी उस ने अपर्णा को सुना कर कही ताकि वह दौड़ी चली आए और पूछे कि क्या हुआ. सिरदर्द क्यों कर रहा है तुम्हारा? तबीयत तो ठीक है तुम्हारी? लेकिना ऐसा कुछ नहीं हुआ क्योंकि अपर्णा को सब पता था कि शिव सिर्फ नाटक कर रहा है.
इधर शिव मन ही मन छटपटा रहा था अपर्णा से बात करने के लिए. वह उस से माफी मांगने के लिए भी तैयार था. आज अपर्णा का गुस्सा 7वें आसमान पर था.
अपर्णा ने फोन कर रिनी को चुपके से सम झा दिया कि वह और रुद्र खाना खा लें. उसे उठाने न आएं. इधर शिव इस बात से परेशान हो रहा था कि अपर्णा अब तक भूखी है. वैसे भूख तो उसे भी लगी थी. मगर अकेले खाने की उस की आदत नहीं है. शिव खुद को ही कोसे जा रहा था कि उस ने ऐसा क्यों किया. रिनी से कहा कि वह जा कर मम्मी को खाने के लिए उठाए पर रिनी कहने लगी कि मम्मी बहुत गुस्से में हैं इसलिए वह उठाने नहीं जाएगी.
अब शिव क्या करे सम झ नहीं आ रहा था उसे. उसे पता है अपर्णा को जल्दी गुस्सा नहीं आता. लेकिन जब आता है, फिर वह किसी के बाप की नहीं सुनती. लेकिन शिव इस के एकदम उलट है. जितनी जल्दी उसे गुस्सा आता है उतनी जल्दी भाग भी जाता है. उस की एक खूबी यह भी है कि भले ही वह अपर्णा से कितना भी लड़ झगड़ ले पर कभी उस से बात बंद नहीं करता. लेकिन अपर्णा कईकई दिनों तक शिव से बात नहीं करती. शिव का कहना होता है कि भले ही उस की गलती के लिए अपर्णा और कुछ भी करे पर बात बंद न करे. उसे जिंदगी वीरान लगने लगती है अपर्णा के बिना.
बहुत प्यार करता है वह अपनी पत्नी से. मगर उस का अपने गुस्से पर ही कंट्रोल नहीं रहता तो क्या करे बेचारा. खैर, अब जो है सो है. गलती हुई शिव से. मगर अब वह उस बात को पकड़े बैठा तो नहीं रह सकता न और कई बार माफी तो मांगी न उसने अपर्णा से? अब क्या करे जान दे दे अपनी? अपने मन में सोच शिव ने अपना माथा झटका और अपने रोज की दिनचर्या में लग गया.
मगर अपर्णा के दिमाग में अब भी वही सब बातें चल रही थीं कि शिव ने ऐसा क्यों किया? उस की दीदी, जीजाजी क्या सोचा रहे होंगे उन के बारे में वगैरहवगैरह.
यह बात बिलकुल सही है कि पुरुषों के मुकाबले औरतें ज्यादा टैंशन लेती हैं. ऐसा क्यों हुआ? वैसा क्यों नहीं हुआ, जैसी बातें उन के दिलोदिमाग से जल्दी गायब नहीं होतीं. बारबार उन्हीं बातों में उल झी रहती हैं, जबकि पुरुष फाइट या फ्लाइट यानी लड़ो या फिर भाग जाओ पर यकीन रखते हैं. अब शिव में इतनी हिम्मत तो थी नहीं कि अपर्णा से लड़ पाता. इसलिए वह दूसरे कमरे में जा कर सो गया ताकि उसे देख कर अपर्णा का गुस्सा और न भड़क जाए. मगर अपर्णा बारबार कभी किचन में बरतन पटक कर, कभी फोन पर किसी से गुस्से में बात कर के या कभी बच्चों को डांट कर यह दर्शाने की कोशिश कर रही थी कि वह उस बात के लिए शिव को माफ नहीं करेगी.
अर्पणा की मां का फोन आया तो मन तो किया उस का शिव की खूब बुराई
करे और कहे कि कैसे इंसान के साथ उन्होंने उसे बांध दिया लेकिन क्या फायदा क्योंकि उस की मां तो अपने दामाद का ही पक्ष लेंगी. घड़ी में देखा तो रात के 11 बच रहे थे. गुस्सा आया अपर्णा को कि ऐसे तो तुरंत 11-12 बज जाता है और आज घड़ी भी जैसी ठहर गई है. नींद भी नहीं आ रही थी उसे, सो उठ कर उस ने बच्चों के कमरे में झांक कर देखा. दोनों गहरी नींद में सो रहे थे. जब शिव के कमरे में झांक कर देखा तो फोन देखतेदेखते चश्मा पहने ही वह सो गया. मन किया अपर्णा का उस का चश्मा उतार कर टेबल पर रख दे, मगर उस का गुस्सा अभी भी उस के सिर पर सवार था.
भूख के मारे पेट में वैसे ही जलन हो रही थी. किचन में गई भी, मगर उस का गुस्सा उस की भूख से ज्यादा तेज था. सो एक गिलास पानी पी कर वह कमरे में आ कर सोने की कोशिश करने लगी. मगर नींद भी नहीं आ रही थी उसे. ‘देखो, कैसे आराम से खापी कर सो गया. कोई चिंता है मेरी? एक बार पूछने तक नहीं आया खाने के लिए’ बैड पर लेटीलेटी अपर्णा बड़बड़ाए जा रही थी. गुस्से में तो थी ही, भूख के मारे और तिलमिला रही थी.
अब शिव ने माफी तो मांगी न तुम से?
फिर इतना क्या गुस्सा दिखा रही हो? हां, माना कि उसे मेहमानों के सामने तुम से इस तरह से बात नहीं करनी चाहिए थी और उस की छोटीछोटी बातों पर एकदम से चीखनेचिल्लाने लगना तुम्हें जरा भी पसंद नहीं. लेकिन उस की कुछ अच्छी आदतें भी तो हैं न? उन्हें भूल गई तुम? अभी पिछले महीने ही जब तुम्हारे पापा को हार्ट अटैक आया था, तब कैसे अपना सारा कामकाज छोड़ कर शिव उन की सेवा में लग गया था.
पैसे से ले कर क्या कुछ नहीं किया उस ने तुम्हारे पापा के लिए? रातरातभर जाग कर उस ने तुम्हारे पापा की सेवा की थी, तब जा कर वे अस्पताल से ठीक हो कर घर आ पाए थे और आज भी जब भी उन्हें कोई जरूरत पड़ती है शिव एक पैर पर खड़ा रहता है उन की सेवा में.
हर 3 महीने पर वह तुम्हारे मांपापा को शुगरबीपी चैक कराने ले कर जाता है. डाक्टर
को दिखाता है. कितना भी बिजी क्यों न हो लेकिन उन से यह पूछना नहीं भूलता कि उन्होंने समय पर दवाई ली या नहीं वे रोज सुबह वाक
पर जाते हैं या नहीं? कौन करता है इतना.
बोलो न? दामाद हो कर वह बेटे जैसा कर रहा है, कम है क्या? अरे, किसीकिसी इंसान की आदत होती है छोटीछोटी बातों पर गुस्सा करने की. इस का मतलब वह बुरा इंसान नहीं हो गया.
शिव थोड़ा सख्त और गुस्सैल मिजाज
का है, मानता हूं मैं पर इंसान वह कितना अच्छा है, यह भूल गईं तुम? और यह भूल गईं कि
कैसे तुम्हारे मांपापा के जन्मदिन पर सब से
पहले बधाई शिव ही देता है उन्हें? उन के जन्मदिन पर हंगामेदार पार्टी रखता है. और यह
भी भूल गई जब तुम औफिस से थकीहारी घर आती हो कैसे वह तुम्हें प्यार से निहारता है?
तुम्हें तो अपने पति पर निछावर होना चाहिए? अपर्णा के दिल से आवाज आई तो वह हड़बड़ा कर उठ बैठी.
‘हां, यह बात कैसे भूल गई मैं कि शिव
ने मेरे पापा के लिए क्या कुछ नहीं किया?
अगर उस दिन शिव न होते तो जाने क्या अनर्थ
हो जाता. उस ने रातदिन एक कर के मेरे पापा
की जान बचाई. यहां तक कि अस्पताल में उस
ने पापा के पैर भी दबाए. नर्स ने उसे पापा के
पर दबाते देख कर कहा भी था कि कैसा श्रवण बेटा पाया है पापा ने. लेकिन जब उस नर्स को पता चला कि शिव उन के बेटे नहीं दामाद है, तो वह हैरत से शिव को देखने लगी थी.
मैं भले भूल जाऊं पर शिव रोज एक बार मांपापा का हालचाल लेना नहीं भूलता है. कभी शिव ने मु झ पर किसी बात की बंदिशें नहीं लगाईं. मु झे जो मन किया करने दिया और मैं उस की एक छोटी सी बात पर इतना नाराज हो गई कि उस से बात करना छोड़ दिया. ‘ओह, मैं भी न. बहुत बुरी हूं’ अपने मन में सोच अपर्णा खुद को ही कोसने लगी.
खिड़की से झांक कर देखा तो बाहर जोर की बारिश हो रही थी. चिंता हो आई उसे कि कल शिव को औफिस के काम से 2 दिन के लिए दूसरे शहर जाना है. ‘बेचारा, कितनी मेहनत करता है अपने बीवीबच्चों के लिए. हमारी हर सुखसुविधा का ध्यान रखता है और मैं उस की एक छोटी सी बात का तिल का ताड़ बना देती हूं’ अपर्णा अपने मन गिलटी महसूस करने लगी.
‘कभी नीमनीम कभी शहदशहद पिया मोरे पिया मोरे पिया…’ मन में गुनगुनाती हुई अपर्णा मुसकरा उठी. उस का सारा गुस्साकाफूर हो चुका था. देखा तो शिव उधर मुंह कर सोए हुए था. वह भी जा कर उस के बगल में
लेट गई. शिव ने चेहरा घुमा कर देखा और मुसकराते हुए अपर्णा को अपनी बांहों में कैद कर लिया. अपर्णा भी मुसकरा कर सुकून से अपनी आंखें बंद कर लीं.