पति के आने की प्रतीक्षा करती हुई युवती जितनी व्यग्र होती है उतनी ही सुंदर भी दिखती है. माहिरा का हाल भी कुछ ऐसा ही था.
आज माहिरा के चेहरे पर चमक दोगुनी हो चली थी. वह बारबार दर्पण निहारती अपनी पलकों को बारबार ?ापकाते हुए थोड़ा शरमाती और अपनी साड़ी के पल्लू को संवारने का उपक्रम करती. माहिरा की सुडौल और गोरी बांहें सुनहरे रंग के स्लीवलैस ब्लाउज में उसे और भी निखार प्रदान कर रही थीं. आज तो मानो उस का रूप ही सुनहरा हो चला था.
माहिरा ने अपने माथे पर एक लंबी सी तिलक के आकार वाली बिंदी लगा रखी थी जो कबीर की पसंदीदा बिंदी थी.
माहिरा बारबार अपनेआप को दर्पण में निहारते हुए गुनगुना रही थी, ‘सजना है मुझे सजना के लिए… मैं तो सज गई रे सजना के लिए.’
हां, माहिरा की खुशी का कारण था कि आज उस के पति मेजर कबीर पूरे 1 महीने के बाद घर वापस आ रहे थे और अब कबीर कुछ दिन माहिरा के साथ ही बिताएंगे.
कबीर और माहिरा की शादी 2 साल पहले हुई थी. कबीर भारतीय सेना में मेजर थे और माहिरा शादी से पहले एक आईटी कंपनी में काम करती थी पर शादी के बाद माहिरा जौब छोड़ कर हाउसवाइफ बन गई. उस का कहना था कि पति के एक अच्छी नौकरी में होते हुए उसे किसी प्राइवेट जौब को करने की आवश्यकता नहीं है. उस के इस निर्णय में कबीर ने कोई दखलंदाजी नहीं करी. माहिरा के घर में उस के साथ ससुर थे पर कबीर और माहिरा उन के साथ कम ही रह पा रहे थे क्योंकि कबीर की पोस्टिंग अलगअलग जगहों पर होती थी.
कबीर की पोस्टिंग जब शहरी इलाकों में होती थी तब माहिरा कबीर के साथ ही रहती थी पर कभीकभी कबीर को फ्रंट पर अर्थात आतंकियों से निबटने के लिए या पड़ोसी देश की सेना से टक्कर लेने के लिए जाना होता था, तब माहिरा को निकटवर्ती शहर के किराए के मकान में रहना पड़ता था.
जब से माहिरा को कबीर का साथ मिला है तब से उस ने काफी भारत घूम लिया है और हर जगह उस ने ढेर सारे पुरुष और महिला मित्र बनाए है, आजकल सोशल मीडिया का एक फायदा यह भी है कि कोई अजनबी एक बार दोस्त बन जाए तो वह जीवनभर सोशल मीडिया पर आप से किसी न किसी रूप में जुड़ा रह सकता है.
माहिरा के तमाम दोस्त भी उस से चैटिंग और वीडियो कौल करते रहते थे. कबीर को माहिरा के दूसरों के प्रति इस बहुत ही दोस्ताना व्यवहार से शिकायत नहीं हुई बल्कि वे माहिरा के इतने सारे दोस्त होने पर खुशी भी दिखाते थे.
‘‘मेरे पीछे तुम्हें टाइम पास करने के लिए ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती होगी. तुम्हारे इतने सारे दोस्त जो हैं,’’ कबीर चुटकी लेते हुए कहते तो माहिरा बस मुसकरा देती. माहिरा कबीर की घनी और चौड़ी मूंछों को थोड़ा छोटा करने को कहती तो कबीर बनावटी गुस्सा दिखाते हुए कहते कि भला वे अपनी मूंछ छोटी कैसे कर सकते हैं क्योंकि ये मूंछें ही तो एक फौजी की आनबान और शान होती हैं.
माहिरा भी रोमांटिक होते हुए कबीर को बताती कि ये मूंछें उसे इसलिए नहीं पसंद हैं क्योंकि ये माहिरा के चेहरे पर गुदगुदी करती हैं. माहिरा की यह बात सुनते ही कबीर माहिरा को गोद में उठा लेते और उस के चेहरे पर अपनी घनी मूंछों को स्पर्श कराने लगते जिस से माहिरा रोमांचित हो कर अपनी आंखें बंद कर लेती.
माहिरा के आंखें बंद करने के अंदाज पर कबीर तंज कसते हुए कहते, ‘‘तुम औरतों में यही बुराई है कि कभी भी बिस्तर पर ऐक्टिव रोल नहीं प्ले करतीं. अरे भई हम पतिपत्नी हैं
और हमारे बीच सहजता से संबंध बनने चाहिए. कभी तो तुम भी अपना पहलू बदलो या हमेशा बेचारा मर्द ही ऊपर आ कर सारी जिम्मेदारी निबटाता रहे.’’
कबीर की यह बात सुन कर माहिरा शरमा जाती और कहती कि अपने पति की छाती पर सवार हो कर काम सुख लेना उसे अच्छा नहीं लगता और वैसे भी इस तरह प्रेम संबंध बनाने की उस की आदत भी नहीं है.
‘‘प्रैक्टिस मेक्स ए वूमन परफैक्ट मेरी जान… थोड़ा जिमविम जाओ अपने को लचीला बनाओ फिर देखो तुम भी बिस्तर पर कमाल करने लगोगी,’’ कह कर बड़ी चतुराई से कबीर ने अपने शरीर को माहिरा के शरीर के नीचे कर लिया और माहिरा को अपने सीने पर लिटा लिया. माहिरा इस तरह प्रेम संबंध बनाने के प्रयास में धीरेधीरे गति पकड़ने लगी.
इस बार तो कबीर के पीछे माहिरा ने एक जिम जौइन कर लिया था जहां उस ने अपने शरीर को लचीला बनाने के लिए ढेर सारी ऐक्सरसाइज करी और अब उस का बदन पहले से अधिक लचीला और सुडौल हो गया है. इस बार वह कबीर को बिस्तर पर उन के ही स्टाइल में खूब प्यार करेगी. माहिरा यह सब सोच कर रोमांचित हो जाती थी. कमरे में इस समय उस का साथी आईना ही था जिस में वह बारबार अपने को निहार रही थी. अब उसे बेसब्री से कबीर के फोन आने की प्रतीक्षा थी.
कबीर ने कहा था कि वे चलने से पहले फोन करेंगे पर अभी तक तो कोई फोन नहीं आया था. ऊहापोह में थी माहिरा पर तभी उस का मोबाइल बजा. शायद कबीर का फोन ही होगा, मुसकराते हुए माहिरा ने मोबाइल देखा. एक अनजाना नंबर था.
‘‘हैलो,’’ माहिरा ने धीरे से कहा.
उधर से जो स्वर गूंजा, उसे माहिरा कभी याद नहीं रखना चाहेगी क्योंकि उस अजनबी स्वर ने दुख जताते हुए उसे मोबाइल पर कबीर के एक आतंकी हमले में मारे जाने की खबर दी थी.
कबीर शहीद हो चुके थे. अब वे कभी वापस नहीं आएंगे और माहिरा का यह इंतजार कभी खत्म नहीं होगा. एक पल में माहिरा की दुनिया लुट चुकी थी.
माहिरा की आंखों से आंसू लगातार बह रहे थे. उस के सीने में अपार दुख भरा था और आंखों में उन दिनों की स्मृतियां घूम गई थीं जो दिन उस ने कबीर के साथ बिताए थे पर अब कुछ नहीं हो सकता था. वह एक विधवा थी. समाज और सरकार ने भले ही एक शहीद की विधवा को वीर नारी कह कर सम्मानित किया पर इन शब्दों से भला क्या होने वाला था? माहिरा अकेली थी क्योंकि उस का जीवनसाथी कबीर वहां जा चुका था जहां से कोई वापस नहीं आता.
माहिरा के जीवन में एक ऐसा जख्म जन्म
ले चुका था जिसे सरकार के द्वारा दिया गया
कोई भी सम्मान और कोई भी पुरस्कार राशि
भर नहीं सकती थी और इसीलिए माहिरा को
तब भी अधिक खुशी नहीं हुई जब सरकार ने शहीद कबीर को कीर्ति चक्र प्रदान करने की घोषणा करी और एक नियत तारीख पर माहिरा को कीर्ति चक्र लेने दिल्ली राष्ट्रपति भवन जाना था.
कबीर के मातापिता लखनऊ के गोमतीनगर इलाके में अपने निजी मकान में रहते थे और माहिरा को उन के साथ रह पाने का अधिक समय नहीं मिल पाया था पर जितना भी समय उस ने अपने सासससुर के साथ बिताया उन दिनों की स्मृतियां मधुर नहीं थीं. उस के सासससुर बेहद दकियानूसी और टोकाटोकी करने वाले थे और माहिरा अपने बहुत प्रयासों के बाद भी उन की पसंदीदा बहू नहीं बन पाई थी.
अभी तक उन्होंने माहिरा की खोजखबर नहीं ली थी पर अपने बेटे के शहीद हो जाने के बाद से वे माहिरा के पास ही आ गए थे और कीर्ति चक्र का सम्मान लेने माहिरा के साथ ही गए थे. बातबात में अपने बेटे के लिए उन के द्वारा किए गए त्याग की बातें करने लगते, मीडिया को कई इंटरव्यू में नौस्टैल्जिक होते हुए उन लोगों ने कबीर के बचपन की बहुत सी बातें बताईं और यह भी बताया कि कबीर को आर्मी की नौकरी दिलाने के लिए उन लोगों ने कितना पैसा लगाया और खुद भी कितना त्याग किया है.
सरकार ने माहिरा को वीर नारी का दर्जा देने के साथसाथ लखनऊ कैंट के आर्मी स्कूल में शिक्षिका की नौकरी औफर करी जिसे माहिरा ने कुछ सोचनेसम?ाने के बाद स्वीकार कर लिया.
घाव भरने के लिए समय से बड़ी कोई औषधि नहीं होती है. जब तक कबीर थे तब तक तो माहिरा ने नौकरी नहीं करी थी पर अब वह एक वर्किंग कामकाजी महिला थी और बिना जीवनसाथी के जीवन जीने का प्रयास कर रही थी.
माहिरा अपनी आंखों में कबीर का एक सपना ले कर जी रही थी. कबीर चाहते थे कि वे एक ऐसा स्कूल खोलें जहां पर गरीब और पिछड़ी जाति के लोग पढ़ाई के साथसाथ आर्मी की भरती के लिए अपनेआप को मानसिक और शारीरिक रूप से तैयार कर सकें. माहिरा जानती थी कि यह कठिन होगा पर फिर भी कठिनाई को जीतना ही तो जीवन है.
कबीर को गुजरे लगभग 8 महीने हो चुके थे और आज कबीर का जन्मदिन था. माहिरा ने आज स्कूल से छुट्टी ले ली थी और कबीर की पसंद के पकवान बनाने के बाद माहिरा ने हलके गुलाबी रंग की साड़ी के ऊपर सफेद रंग का स्लीवलैस ब्लाउज पहना तो उस के सासससुर की आंखें तन गईं. भले ही माहिरा सादे लिबास में थी पर उन्हें एक विधवा का इस तरह से स्लीवलैस ब्लाउज पहनना नहीं भा रहा था.
माहिरा ने कबीर की तसवीर के सामने खड़े हो कर आंखें बंद कीं और कबीर को याद किया. अभी वह मन ही मन कबीर को याद कर ही रही थी कि कौलबैल की आवाज ने माहिरा का ध्यान भटका दिया. आंखों की नम कोरों को पोंछते हुए माहिरा ने दरवाजा खोला. सामने लोकेश खड़ा था. लोकेश भी माहिरा के साथ कैंट स्कूल में स्पोर्ट्स टीचर था.
माहिरा ने बैठने का इशारा किया और किचन में चाय बनाने चली गई. माहिरा और कबीर के बीच थोड़ीबहुत बातें हुईं. चाय पी कर लोकेश वापस चला गया. उस के यहां आने का मकसद आज के दिन माहिरा को मानसिक संबल प्रदान करना था.
‘‘बहू, बुरा मत मानना पर एक विधवा को शालीनता से अपना चरित्र संभाल कर रखना चाहिए,’’ सास का स्वर कठोर था.
माहिरा ने जवाब देना ठीक नहीं सम?ा तो सास ने दोबारा तंज कसते हुए माहिरा को अपनी वेशभूषा एक विधवा की तरह रखने का उपदेश दे डाला.
माहिरा ने उत्तर में बहुत कुछ कह देना चाहा पर चुप ही रही. उसे अपने निजी जीवन में सासससुर का दखल देना ठीक नहीं लग रहा था.
2-3 दिन बीतने के बाद जो कुछ माहिरा की सास ने उस से कहा उस बात ने तो माहिरा को कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया था. हुआ यों था कि बारिश तेज हो रही थी और माहिरा को लोकेश की बाइक से उतरते हुए सास ने देखा और इसी बात पर अपनी दकियानूसी सोच का परिचय देते हुए माहिरा को पतिव्रता स्त्री के रहनसहन के ढंग बताने लगी.
‘‘अरे हमारे लड़के के शहीद हो जाने का दुख तो पहले से हमारे बुढ़ापे पर भारी था उस पर यह सब देखना पड़ेगा यह तो हम ने सोचा भी न था.’’
उन की बातें सुन कर माहिरा का मन छलनी हो गया. आएदिन और बातबात पर अपने लड़के और स्वयं के त्याग का रोना रोने वाले सासससुर अब माहिरा को अखरने लगे थे. वह विधवा हो गई है तो क्या? विधवा हो जाने में माहिरा का भला क्या दोष है? पति को खोने के बाद क्या वह भी जीना छोड़ दे? वह ये सारी बातें सोच कर परेशान हो चली थी.
सासससुर निरंतर यह जताने में लगे हुए थे कि बहू विधवा हो गई है पर उन लोगों ने तो अपना बेटा खोया है इसलिए उन का दुख बहू के दुख से बड़ा है और बेटे को मिले सम्मान और कीर्ति चक्र पर तो माहिरा से अधिक अधिकार उन लोगों का है. कीर्ति चक्र को माहिरा की सास हमेशा अपने हाथ में ही लिए रहती थी.
माहिरा पूरे निस्स्वार्थ भाव से सासससुर का ध्यान रख रही थी. वह सुबह 5 बजे उठ कर नाश्ता बना कर रखती. ससुर को डायबिटीज थी अत: उन के लिए दलिया बनाती और स्कूल से लौटने के बाद लंच में क्या बनाना है उस की तैयारी भी कर के जाती ताकि बाद में उसे कम मेहनत करनी पड़े. सास भी लंच बन जाने का इंतजार ही करते मिलती थी. खाना बनाने और घर के किसी काम में सास का कोई सहयोग नहीं मिलता था.
मगर आज तो माहिरा पूरे 6 बजे जागी और नहाधो कर सिर्फ ब्रैड खा कर स्कूल चली गई. जाते समय सासूमां से लंच बना कर रखने के लिए कह गई और हो सकता है कि उसे आने में देर हो जाए इसलिए सासूमां से डिनर की तैयारी भी कर के रख लेने को कह गई.
अभी तक तो सासससुर माहिरा के फ्लैट में मुफ्त की रोटियां तोड़ रहे थे पर आज थोड़ा सा ही काम कह दिए जाने पर तिलमिला गए.
जब माहिरा वापस आई तो उस ने देखा कि उस की सास ने घर का कोई काम नहीं निबटाया है. उस के माथे पर सिकुड़न तो आई पर उस ने शांत स्वर में सास से सवाल किया तो सास ने सिर दर्द का बहाना बना दिया. बेचारी माहिरा को ही खानेपीने का प्रबंध करना पड़ा. सासससुर आराम से खाना खा अपने कमरे में सोने चले गए .
अगले दिन भी माहिरा ने जाते समय सामान की एक लंबी लिस्ट अपने ससुर को पकड़ाते हुए कहा कि सोसायटी की शौप में सामान नही मिल रहा है इसलिए वे चौक बाजार जा कर सारा सामान ले आए. माहिरा ने सामान लाने के लिए पैसे भी ससुर को दे दिए और स्कूल चली गई.
माहिरा जब स्कूल से थकी हुई आई तब देखा कि ससुर टीवी के सामने बैठे हुए किसी बाबा को कपाल भाति करते हुए देख रहे हैं और बगल वाले शर्माजी से अपने बेटे की शहादत और बेटे के लिए खुद किए गए त्याग के बारे में बातें कर रहे हैं. ससुर की बातों में बेटे की शहादत का गर्व तो था ही पर उस में वे अपने योगदान का उल्लेख करना भी नहीं भूल रहे थे.
माहिरा ने देखा कि सामान का थैला खाली ही रखा हुआ है. वह सम?ा गई कि ससुर मार्केट नहीं गए. उस ने निराशाभरे स्वर में पूछा तो जवाब मिला कि गए थे पर दुकान ही बंद थी. ससुर के इस जवाब पर माहिरा खीज गई थी पर प्रत्यक्ष में कुछ कह न सकी.
घर का माहौल विषादपूर्ण था. माहिरा अब विडो थी. अभी उस का पूरा जीवन शेष था जिसे वह अच्छे और शांतिपूर्ण ढंग से जीने का पूरा प्रयास कर रही थी पर सासससुर का अपने बेटे के लिए दिनरात रोनाकल्पना और उस की शहादत पर अपना अधिकार दिखाना, माहिरा की सैलरी में भी उन का अपना हिस्सा मिलने की उम्मीद रखना तो ठीक न था.
पिछले कुछ दिनों से सासससुर की टोकाटाकी कुछ ज्यादा ही बढ़ गई थी पर उस दिन तो मामला बिगड़ ही गया जब माहिरा लोकेश के साथ उस की बाइक पर फिर बैठ कर आई. हालांकि लोकेश अंदर नहीं आया पर सास ने माहिरा को डांटते हुए कहा, ‘‘मना करने के बाद भी इस आदमी की बाइक पर लिफ्ट ले कर आती हो… एक विधवा को ये चरित्र शोभा नहीं देता और फिर लोग क्या कहेंगे?’’
इस से आगे भी सास बहुत कुछ कहना चाह रही थी पर आज माहिरा ने सासससुर को आइना दिखाना ही ठीक सम?ा. बोली, ‘‘मु?ो लोग क्या कहेंगे और क्या नहीं, इस की चिंता आप लोग मत करो. मैं कबीर की विधवा हूं और मरते दम तक कोई गलत कदम नहीं उठाने वाली मुझे आप लोगों से मानसिक शांति मिलने की आशा थी पर आप लोग तो शांति छीनने में ही लगे हो,’’ माहिरा की आंखें नम हो चली थीं.
उस ने बोलना जारी रखा और आगे कहा, ‘‘आप लोग कबीर के मांबाप हैं यानी मेरे भी मांबाप के समान ही हैं और मैं आप लोगों के मानसम्मान में कोई कमी नहीं रख रही थी पर आप लोग निरंतर मेरी कमियां ही निकालने में लगे हुए हैं. आप ने अपना बेटा खोया है तो मैं ने भी अपना पति खोया है. हमारे दोनों के दुख में कोई तुलना नहीं करी जा सकती पर आप लोग कहीं न कहीं अपने दुख को बड़ा बता कर महान बन जाना चाहते हैं… चलिए ठीक है आप ही महान बन जाइए पर महानता और बड़ापन सिर्फ बातों से नहीं आता. जब भी मैं ने आप लोगों से घर के काम में सहयोग की अपेक्षा करी आप लोगों ने कोई न कोई बहाना बनाया. और तो और मेरे चरित्र को भी खराब बताने की चेष्टा करी. लोकेश मेरा सहकर्मी है इस से ज्यादा कुछ नहीं पर आप लोगों की सोच को मैं क्या कहूं? पर इतना तो निश्चित है कि हम लोग एकसाथ नहीं रह सकते. आप दोनों बेशक इस फ्लैट में रहिए मैं कहीं और कमरा देख लेती हूं. हां महीने की एक तारीख को आप लोगों के पास पूरा खर्चा भेज दिया करूंगी,’’ कह कर माहिरा अपने कमरे में चली गई और दरवाजा अंदर से बंद कर लिया.
सासससुर सन्नाटे में ही बैठे रह गए. शाम को करीब 7 बजे माहिरा अपने कमरे से बाहर निकली तो उसे सासससुर कहीं दिखाई नहीं दिए. उन का सामान भी गायब था. माहिरा ने देखा कि टेबल पर एक परचा रखा हुआ था. उस ने ?ापट कर उसे उठाया और सरसरी निगाह से पढ़ने लगी. लिखा हुआ था- बहू तुम्हें सम?ाने में शायद हम से कुछ गलती हुई जो तुम्हारे चरित्र पर सवाल उठाया और तुम्हारे रहनसहन में टोकाटाकी करी. ऐसा शायद हमारेतुम्हारे बीच का जैनरेशन गैप होने के कारण हुआ.
तुम्हारी दोस्तों से होने वाली वीडियो कौल्स में कुछ गलत नहीं, बेटे को खोने के दुख में हम ज्यादा ही स्वार्थी और आत्मकेंद्रित हो गए थे. तुम एक वीर की विधवा हो और तुम्हारे दुख की तुलना संसार के किसी भी दुख से नहीं करी जा सकती. हमें खेद है कि हम ने तुम्हें मानसिक रूप से परेशान किया. हम चाहते हैं कि स्कूल खोलने का कबीर का सपना तुम पूरा कर सको और अब हम अपने मकान में वापस जा रहे हैं. हां हम यदाकदा और खासतौर से कबीर के जन्मदिन पर वापस तुम से मिलने जरूर आएंगे. आशा है तुम भी एक शहीद के मातापिता का दुख सम?ागी.
माहिरा यह पढ़ कर सोफे पर बैठ गई. उस ने पलकें उठाई और दीवार पर लगी कबीर की तसवीर की ओर देखा, तस्वीर पर कबीर को मिला हुआ कीर्ति चक्र अपनी पूरी शानोशौकत के साथ चमक और दमक रहा था. माहिरा ने महसूस किया कि कबीर की तसवीर मुसकरा उठी है और माहिरा से कह रही है कि यह सफर बहुत है कठिन मगर न उदास हो मेरे हमसफर.’’