लेखक- डा. मनोज श्रीवास्तव
कहीं किसी औघड़ द्वारा तावीज पहन कर उसे ये चीजें मुहैया नहीं हुईं, जबकि सास का यह दावा था कि उस के अमुक पूजापाठ करवाने की वजह से तेजेंद्र एयर कंडीशन और वाशिंग मशीन खरीद सका. मेरे द्वारा फलानी देवी मइया के दर्शन से वह कार और स्कूटर खरीद पाया और प्रयाग में महाकुंभ स्नान करने पर वह अपने मकान में गृहप्रवेश कर सका.
अगर वह इतने ढेर सारे तामझाम और टोनेटोटके न करती तो वह सड़कछाप ही रह गया होता. बहरहाल, घर में कीमती सामान इकट्ठे कर के जुगुनी पूरे महल्ले में इतरा रही थी और पड़ोसवाले दिनेशजी, राय साहब व चौधरी साहब के बराबर अपनी हैसियत होने का वहम पाल रही थी.
पर, उफ्फ, तेजेंद्र के साथ सब से बुरी बात यह हुई कि छोटी बहनों में दूसरे नंबर की बहन मीठी की अचानक मौत हो गई. डाक्टरों ने कभी उसे क्षयरोग की दवा दी तो कभी निमोनिया की. कभी उसे पीलिया से ग्रस्त बताया गया तो कभी थैलीसीमिया से.
दरअसल, उसे तो कोई बीमारी हुई ही नहीं थी. बस, भावुक होने की वजह से सदमे में रहने लगी थी कि अब क्या होगा. 2 बेरोजगार भाइयों और 2 अनब्याही बहनों तथा एक परित्यक्त स्त्री (बहन) के परिवार का बेड़ा पार कैसे होगा? बड़े भाई ने अपनी जिम्मेदारियों से बहुत पहले ही किनारा कर लिया था. तेजेंद्र भी अपनी पत्नी के दबाव में उन के लिए कुछ भी कर पाने में असमर्थ था. यहां तक कि उन से मिलने की युक्ति भी नहीं कर पाता था. जुगुनी उसे बातबात में लांछित करती रहती थी.
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अपनी मौत से ठीक एक दिन पहले मीठी ने खुद फोन कर के तेजेंद्र से निवेदन किया, ‘‘भैया, आप तुरंत मेरे पास आ जाइए. मेरी तबीयत बहुत खराब चल रही है. आप आ जाएंगे तो मुझे ढाढ़स मिलेगा. मेरा मनोबल बढ़ेगा और मैं ठीक हो जाऊंगी.’’
तेजेंद्र ने उसे दिलासा दिया, ‘‘मैं यहां तुम्हारी भाभी से इजाजत ले कर शीघ्र आने का बंदोबस्त कर रहा हूं.’’ पर उसे तो बेहद डर लग रहा था कि अगर उस ने बीमार मीठी से मिलने जाने के लिए जुगुनी से कुछ कहा तो वह झगड़ाफसाद करने पर उतारू हो जाएगी और उसे किसी कीमत पर वहां नहीं जाने देगी. सारे गड़े मुर्दे उखाड़ने और दहेज के स्कूटर को वापस लेने के मुद्दे पर झगड़ने लगेगी.
लेकिन, अफसोस कि इस के पहले वह जुगुनी से इस बारे में बात करता, अगले ही दिन मीठी की तबीयत बिगड़ गई और उस के दिल की धड़कन रुक गई. तेजेंद्र को फोन पर खबर मिली कि मीठी नहीं रही.
वह बेहद आहत हुआ. मीठी के अंतिम शब्द थे, ‘कोई बड़ा आदमी घर में नहीं है.’ क्योंकि जब वह अंतिम सांसें ले रही थी, न तो पिताजी घर पर थे, न ही गजेंद्र. कमलेंद्र भाईसाहब के उपस्थिति होने की तो कल्पना ही नहीं की जा सकती थी. बस, उस की बड़ी और छोटी दोनों बहनें नंदिनी और रोशनी तथा तेजेंद्र का छोटा भाई प्रेमेंद्र ही उपस्थित थे. कमलेंद्र और तेजेंद्र तथा छोटा भाई गजेंद्र उस की अंत्येष्टि में मौजूद हुए. कमलेंद्र का परिवार अंत्येष्टि और दूसरे क्रियाकर्म में शामिल होने के लिए बाद में आया जबकि तेजेंद्र की पत्नी जुगुनी मीठी के शव के पास बैठ कर घडि़याली आंसू बहाती रही. जुगुनी के बड़े भाई शांताराम ने अंत्येष्टि के बाद के कर्मकांडों में पहुंचने का नाटक किया जबकि उस के मांबाप ने एक दिन पहुंच कर वहां अपनी मौजूदगी दर्ज की. अम्मा ने जुगुनी को एक कोने में ले जा कर उस के कान से अपना मुंह सटा दिया, ‘‘देखो जुगुनी, आगेआगे होता है क्या? तेरी ससुराल में बचेखुचे लोगों का भी सफाया जल्दी ही होने वाला है. मैं अपने कर्मकांडों के बल से खुद डायन बन कर लोगों के जीवन से खेल सकती हूं, यह मेरा दावा है. सारी दुनिया में उथलपुथल मचा सकती हूं.’’ तब, जुगुनी ने मुसकरा कर अम्मा को शांत रहने की सलाह दी.
जवान और अनब्याही बहन के निधन पर भाईबहन और सगेसंबंधी सभी व्याकुल थे. तेजेंद्र पश्चात्ताप की आग में जलता रहा, ‘काश, मैं मीठी के बुलाने पर समय से पहुंच गया होता तो इस अनिष्ट को रोका जा सकता था.’
बहरहाल, जब वह सारा कर्मकांड पूरा करा कर वहां से वापस मुंबई पहुंचा तो जुगुनी का दिमाग सातवें आसमान पर चढ़ा हुआ था. उस ने मुंबई पहुंचते ही अपने जवान हो रहे बेटे अनुग्रह के कान भर कर उसे अच्छी तरह पढ़ालिखा दिया था कि तुम्हारे चाचाबूआ तुम्हारे पापा के टुकड़ों पर पल रहे हैं और तुम्हारे पापा अपनी तनख्वाह का एक हिस्सा उन के खर्चे के लिए हर माह भेज देते हैं. अनुग्रह को लगा कि उस का हक उस के चाचाबूआ मार रहे हैं. सो, वह अपने पिता की न केवल पूरी तरह अवज्ञा करने लगा, बल्कि उन से बदतमीजी से पेश भी आने लगा.
जुगुनी ने पता नहीं किस तरह उसे भड़काया कि एक दिन वह सारी हदें लांघ गया और उस ने अपने पापा पर हाथ उठा दिया. तेजेंद्र अपने बेटे की मार खा कर शर्र्म से जारजार हो गया. उस का जी कर रहा था कि वह खुदकुशी कर ले. पर, उस के सामने तो घर की जिम्मेदारियां थीं, जिन्हें वह पूरा कर के ही इस दुनिया से कूच करेगा.
वह छत पर चला गया और खुद को एक कमरे में बंद कर लिया. वह विषम परिस्थितियों से बेहद डर गया. अब उसे ऐसी स्थिति से बचना चाहिए ताकि वह अपने बेटे की हिंसा का शिकार न हो.
पर, जुगुनी तो उस की हालत देख, मन ही मन खुश हो रही थी. उस ने झट अम्मा को फोन लगा कर इस बारे में जानकारी दी, ‘‘आज तेजेंद्र को हम ने बेबस व लाचार कर दिया है. कितनी अच्छी बात है कि अनुग्रह अब मेरा साथ दे रहा है और उस ने आज अपने बाप की पिटाई भी की है. पर, वह बेहया, अपनी हरकत से बाज आने वाला नहीं है. वह अभी भी अपने भाईबहनों के लिए बेचैन है.’’
अम्मा खुशी से चहक उठी, ‘जुगुनी, अभी कल मैं देवी मइया के दर्शन करने गई थी. मैं ने उन से मांगा था कि वे जल्दी से जल्दी मेरी जुगुनी की जिंदगी संवार दें. अहा, मइया की कृपा तत्काल हो गई है. देखना, अब तू गिनती के कुछ दिनों में आबाद हो जाएगी. कोई भूचाल आएगा जिस में तेजेंद्र और उस के परिवार वाले मीठी की तर्ज पर बिना वजह कुत्ते की मौत मरेंगे और तू तेजेंद्र की मिल्कियत पर राज करेगी. यह तुझ से मेरा वादा है.’’
अम्मा से बातचीत बंद होते ही जुगुनी का भाई शांताराम, जिस ने पड़ोस में ही मकान ले रखा था, आ धमका. दरअसल, तेजेंद्र के किसी पड़ोसी ने उस के घर में होहल्ला सुन कर उसे जा कर बता दिया था कि तेजेंद्र और जुगुनी के बीच आजकल खूब ठनी हुई है और ऐसे मौके का मजा लेने के लिए तुम्हारा वहां मौजूद होना जरूरी है. सो, शांताराम ने आते ही चुटकी ली, ‘‘मेरे इशारे पर सही जा रही हो, जुगुनी. कुछ समय पहले जब तेजेंद्र के भाईबहन भी आए हुए थे, मैं ने देखा था कि अनुग्रह अपने चाचाबूआओं से बड़े प्यार और इज्जत से पेश आ रहा था. मुझे अनुग्रह को उन के इतना करीब पा कर बेहद डाह हो रही थी. तब, मैं ने तुम से कहा था कि जुगुनी, तुम्हें अपने बच्चों के मन में ऐसी ऊलजलूल बातें डालनी होंगी कि वे अपने चाचाबूआओं से घोर नफरत करने लगे.
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‘‘आज मुझे कितनी खुशी हो रही है कि तुम ने मेरे सबक पर अमल किया. अनुग्रह ने अपने बाप की पिटाई कर के मेरे मन को बहुत ठंडक पहुंचाई है. वह तो उस का दुश्मन बन गया है. अब देखना, तुम्हारे अच्छे दिन आने वाले हैं. तुम कुछ ही समय में फलनेफूलने लगोगी.’’
तब जुगुनी ने शांताराम के कान में फुसफुसा कर कहा, ‘‘वो मुआ तेजेंद्र ऊपर कमरे में खुद को बंद कर के शोक मना रहा होगा. दरअसल, वह अपने भाईबहनों से मोबाइल पर बात कर रहा होगा. वह उन से छिपछिप कर बात करने से कभी बाज नहीं आएगा.’’
अत्यंत उपेक्षित और अपमानित हो कर तेजेंद्र छत पर बने अलग कमरे में रहने लगा था. जुगुनी अपनी अम्मा से पाठ पढ़ कर उसे मानसिक रूप से और भी प्रताडि़त करने लगी थी.
जैसे ही वह नीचे की मंजिल पर किसी काम से आता, वह ताने देने लगती, ‘‘अपनी रसोई भी ऊपर ही कर लो. नीचे अपनी मनहूस शक्ल दिखाने क्यों आ जाते हो?’’ तब, अनुग्रह भी व्यंग्य करने से बाज नहीं आता. लेकिन, मन से तनिक भावुक बेटी रचना, जो अपने भाई से 5 साल छोटी थी, बड़ी सहानुभूति से पापा को देखती. पर, मम्मी के डर से उस के पक्ष में कुछ भी न बोल पाती. वह सशंकित होती कि मम्मी उस की शिकायत नानी अर्थात अम्मा से न कर दें.
तेजेंद्र का मन दुनिया से उचटता जा रहा था. पत्नी ने तो उसे औरत का सुख कभी दिया ही नहीं, बेटे ने भी उस का दिल खूब तोड़ा जबकि उस ने अपनी जिम्मेदारियां बखूबी निभाई थीं. अपनी पैतृक विरासत और रिश्तों से भी वह दूर होता जा रहा था.
एक दिन शाम को औफिस से लौट कर उसे अचंभा हुआ. उस ने नीचे की मंजिल में झांक कर देखा कि जुगुनी की अम्मा, भाई शांताराम और जीजा दोनों ड्राइंगरूम में आ कर जमे हुए हैं. पता नहीं, वे कब आए और क्यों? उस ने छिप कर उन की बातें सुनी. उसे यह जान कर अत्यधिक क्षोभ हुआ कि वे सारे उसे येनकेनप्रकारेण किनारे लगाने की साजिश रच रहे हैं. वह बेहद रोंआसा और संजीदा हो गया. उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उस की ससुराल वाले ही नहीं, खुद उस की पत्नी भी उस से किनारा करना चाहती है.
मानसिक तनाव से उस का सिर फटने लगा. ब्लडप्रैशर से दिल में दर्द भी होने लगा. तब उस ने सिरदर्द की एक गोली ली और छत पर जा कर दरवाजे पर सांकल चढ़ाया और जमीन पर ही लेट गया. लेटे ही लेटे उस ने सीलिंग फैन की ओर देखा, फांसी लगा कर आत्महत्या कर लेने से ही मेरी दैहिकमानसिक अशांति का शमन होगा. पर, उस ने आखिरकार अपने कदम वापस खींच लिए, अभी तो बेटे अनुग्रह को उच्चशिक्षा दिलानी है और जवान हो रही बिटिया की शादी करनी है.
अभी मुझे तो आत्महत्या का खयाल तक नहीं लाना चाहिए, अन्यथा लोग क्या कहेंगे कि इस ने अपनी जरूरी जिम्मेदारियां तक नहीं निभाईं, फिर जैसे ही उस ने सीढि़यां उतरने के लिए जमीन से उठने की कोशिश की, वह संभल नहीं पाया और बैड पर ही निढाल लुढ़क गया. शायद, ब्लडप्रैशर ज्यादा बढ़ गया था.
सुबह जब देर तक तेजेंद्र का दरवाजा नहीं खुला तो जुगुनी ने शांताराम को बुला भेजा, वह मुआ अभी भी नींद के खुमार में ऊपर बैड तोड़ रहा है. उस से पूछो कि उसे औफिस जाना है या नहीं? जुगुनी लगातार भुनभुनाती जा रही थी.
लेकिन, कई बार जोरजोर से आवाज लगाने और दरवाजा पीटने पर भी जब तेजेंद्र की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई तो जुगुनी ने ताना कसा, ‘‘लगता है, उस ने नींद की गोली खा रखी है?’’ आखिरकार, शांताराम ने दरवाजा पड़ोसियों की मदद से तोड़ दिया. अंदर प्रवेश कर जब उस ने बैड पर पड़े तेजेंद्र का बदन हिलाया तो उस में कोई हरकत नहीं हुई. वहां खड़ी जुगुनी ने फिर चुटकी ली, यह तो ऐसे ही घोड़ा बेच कर सोता है.
फिर शांताराम ने उस की नाड़ी टटोली और सीने पर हाथ रखा तो वह एकदम से हड़बड़ा उठा, ‘‘अरे, इस की तो सांस ही नहीं चल रही.’’ तब तक पड़ोस के डाक्टर हितेश भी आ चुके थे, उन्होंने तेजेंद्र की जांच की और सिर झुका लिया, ‘‘ही इज नो मोर. ही डाइड औफ अ सीवियर हार्ट अटैक.’’
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जब शांताराम ने जुगुनी को आंख मार कर कुछ गुप्त इशारा किया तो उस ने माहौल के मुताबिक अपनेआप को ढालते हुए रोने का नाटक शुरू कर दिया. जब तक महल्ले वाले शोरगुल सुन कर इकट्ठे होते, जुगुनी झट रूमाल पानी से भिगो कर आंखें पोंछते हुए दहाड़ें मारमार कर रोने लगी. जमीन पर हाथ पटकपटक कर चूडि़यां तोड़ीं, मांग में लगा सिंदूर मिटाया. उस की अम्मा को उस के इस सिद्धहस्त व्यवहार को देख बड़ा अचंभा हो रहा था कि उस की बेटी तो उस से भी बढि़या नौटंकी कर लेती है.
पूरे तेरह दिनों तक चलने वाली तेजेंद्र की अंत्येष्टिक्रिया के समापन के बाद ताजी जानकारी यह है कि जुगुनी के जीजा स्थायी तौर पर मुंबई में बस चुके हैं तेजेंद्र द्वारा जमाई गई गृहस्थी में. अम्मा ने भी वहां पक्का डेरा जमा लिया है जबकि तेजेंद्र के बड़े भाई कमलेंद्र, जिन की जुगुनी पर विशेष कृपा थी, का आनाजाना लगा रहता है. जुगुनी अपने रचे हुए इस नए संसार में बेहद खुश नजर आ रही थी. ऐसा लग रहा था मानो बुराई ने अच्छाई को निगल लिया हो.