शाम को भी उस का मोबाइल स्विच औफ था. 2 दिनों से उसे लगातार फोन करता रहा लेकिन उस का मोबाइल स्विच औफ ही मिला.
तीसरे दिन रविवार को उस का फोन आया. मन आशंकित हो उठा, न जाने कैसी खबर हो?
‘‘सर…’’
‘‘कमाल हो तुम भी, मैं लगातार 2 दिनों से तुम्हें फोन कर रहा हूं और तुम्हारा मोबाइल स्विच औफ जा रहा है,’’ मैं ने लगभग डांटते हुए, अधिकारपूर्वक उस से कहा लेकिन दूसरे ही क्षण मुझे आत्मग्लानि हुई कि मैं ने उस की मां की तबीयत के विषय में नहीं पूछा. धीरे से बोला, ‘‘सौरी मीठी, अब तुम्हारी मां की तबीयत कैसी है?’’
‘‘मम्मी ठीक नहीं हैं, सर. अस्पताल में दौड़धूप व उन की देखभाल में इतनी व्यस्त रही कि मोबाइल चार्ज करना ही भूल गई. और हमारा अपना है ही कौन जो मेरे फोन पर मेरी मम्मी का हाल पूछता. इस शहर में थोड़े समय पहले ही तो शिफ्ट हुई हैं हम मांबेटी.’’
‘‘क्या? तुम लोग अभी थोड़े वक्त पहले ही शिफ्ट हुई हो इस शहर में? और इतनी जल्दी खुद का मकान भी ले लिया जिस के आधार पर तुम बैंक से लोन लेना चाहती हो?’’ ऐसे नाजुक मौके पर भी मैं ने अपना बैंक वाला दिमाग दौड़ा लिया. मन में सोचा, मुझे बेवकूफ समझ रही है कल की लड़की. सोच रही है अपने नाम की तरह ही मीठी बातों में फंसा कर मुझ से लोन पास करवा लेगी.
‘‘सर, बात थोड़ी गंभीर है. फोन पर नहीं बता सकती. मुझे आप की मदद की सख्त जरूरत है. अगर आप मेरे घर आएंगे तो मेरी मम्मी से भी मिल लेंगे और मैं आप को अपनी बात खुल कर बता सकूंगी. मैं अपने घर का पता आप को अभी एसएमएस करती हूं.’’
जल्दी ही उस के पते का एसएमएस भी आ गया. उस का घर मेरे घर से काफी दूर था. एक बार को लगा, कहीं यह नीली आंखों वाली अपनी मां के साथ मिल कर मेरे खिलाफ कोई साजिश तो नहीं रच रही? नहीं, मैं नहीं जाऊंगा, आखिर मेरी उस से पहचान ही कितनी है? फिर अंदर से आवाज आई, इंसानियत के नाते बीमार को देखने जाना चाहिए. शायद वास्तव में उसे मेरी मदद की जरूरत हो? साधना को भी साथ ले जाऊंगा.
लेकिन दूसरे ही पल खयाल आया, अगर साधना को साथ ले गया तो मामला और पेचीदा हो सकता है. सुंदर और जवान लड़की को देख कर कहीं वह मेरे और उस के संबंधों को ले कर कोई गलत धारणा न बना ले और मुझ पर अधिक निगाह रखने लगे. हो सकता है मेरी जासूसी भी करे. आफत मेरी ही आएगी. इसलिए उसे साथ ले जाने का विचार त्याग दिया और उस के घर जाने के लिए खुद को पूरी तरह से सतर्क व चौकन्ना कर लिया. साधना से कह दिया कि विजिट के लिए एक पार्टी के साथ जा रहा हूं.
उस का घर ढूंढ़ने में बहुत परेशानी हुई. काफी वक्त लग गया जबकि लगातार उस से मोबाइल पर घर की सिचुएशन पूछता रहा था. वह मुझे अपने घर के दरवाजे पर ही मिल गई. बेहद तनावग्रस्त, चिंतित और दुखी लगी. मुझे देख कर भरे स्वर में बोली, ‘‘थैंक्यू सर, प्लीज आइए,’’ कहती हुई मुझे अंदर ले गई जहां एक छोटे से कमरे में उस की बीमार मां लेटी थीं.
लगभग 50 वर्षीया एक महिला पलंग पर लेटी थीं, मुझे देख कर वे उठने का प्रयास करने लगीं. मैं ने रोक दिया, ‘‘प्लीज, आप लेटी रहिए.’’
‘‘मम्मी, आप बैंक मैनेजर आनंदजी हैं. अपने ब्यूटीपार्लर के लिए मैं लोन के सिलसिले में इन से मिली थी.’’
‘‘आनंदजी, प्लीज आप इस के ब्यूटीपार्लर के लिए लोन पास करवा दीजिए, जिस से यह आत्मनिर्भर हो जाए,’’ कमजोर स्वर में जब वे बोलीं तो मीठी ने उन्हें चुप कराते हुए कहा, ‘‘प्लीज मम्मी, आप बोलिए मत, मैं बात कर लूंगी, आनंदजी से.’’
‘‘सर, आप क्या लेंगे चाय या कौफी?’’ मीठी ने पूछा तो मैं ने कहा, ‘‘मीठी, मैं यहां चाय या कौफी पीने नहीं आया हूं. मैं तो तुम्हारी मां को देखने आया हूं. अब उन की तबीयत कैसी है? उन्हें हुआ क्या है?’’
मेरे यह पूछने पर वह असहज हो गई. फिर अपनी मां को दवाई खिलाती हुई बोली, ‘‘मम्मी, आप यह दवाई खा कर आराम करो. मैं आनंदजी को अपना घर दिखाती हूं. इसी के आधार पर हमें लोन मिलेगा.’’
मुझे उस का व्यवहार कुछ अजीब सा लगा. इस की मां की तबीयत खराब है और इसे लोन की पड़ी है.
वह मुझे ऊपर एक कमरे में ले गई जो बहुत ही कलात्मक ढंग से सजा था और वहां सिर्फ एक बैड पड़ा था. बैड के अलावा वहां बैठने के लिए कोई कुरसी या स्टूल न था. लिहाजा, मुझे सकुचाते हुए उसी बैड पर बैठना पड़ा.
‘‘सौरी सर, मैं मम्मी के सामने आप को कुछ बता नहीं सकती थी, इसलिए आप को ऊपर ले कर आई हूं. इस समय मैं ने उन्हें वह दवाई दे दी है जिस से उन्हें गहरी नींद आ जाएगी.’’
यह सुन कर मेरी घिग्घी बंध गई. आखिर, यह लड़की कहना क्या चाहती है?
‘‘सर, हम लोग अलीगढ़ के नहीं, बल्कि आगरा के हैं. आगरा में हमारा छोटा सा खुशहाल परिवार था. मैं मीठी, मेरी मम्मी ममता और पापा मनोज. पापा ताजमहल में गाइड थे. उन के सपने बहुत ऊंचे थे. वे विदेश जा कर खूब पैसा कमाना चाहते थे. उन की इस चाहत और सपने को पूरा किया अमेरिका की सेरेना ने जो ताजमहल घूमते वक्त अपने गाइड की नीली आंखों की गहराई में इस कदर डूब गई कि उन्हें अपना बना कर ही दम लिया. वह बहुत अमीर थी, पापा यही तो चाहते थे. मम्मी बहुत रोईंगिड़गिड़ाईं, मेरा हवाला दिया लेकिन पापा नहीं पिघले. सेरेना ने हम मांबोटी को 15 लाख रुपए दे दिए या यों कहो, हमारे पापा की कीमत हमें दे दी. वे 15 लाख रुपए पा कर भी हम गरीब थे क्योंकि हमारे पापा हमारे पास नहीं थे.
‘‘औपचारिकता पूरी हो जाने के बाद पापा उस के साथ अमेरिका चले गए हमेशा के लिए. हम मांबेटी ने आगरा शहर छोड़ने का मन बना लिया. जिस प्रेम के प्रतीक ताजमहल की वजह से हमारा घरसंसार चलता था, हम सब मुहब्बत से रहते थे, उसी की वजह से हमारा सबकुछ हम से छिन गया क्योंकि हमारी दुनिया थे हमारे पापा. उन्होंने हमें बेशक भुला दिया था लेकिन हम उन्हें नहीं भुला सके थे, इसलिए हम आगरा में रहना ही नहीं चाहते थे.
‘‘हम अलीगढ़ आ गए. बरसों पहले जब नानाजी की पोस्टिंग अलीगढ़ में थी तब मम्मी यहां रही थीं, इसलिए उन्होंने अलीगढ़ को चुना. हम किराए के मकान में रहने लगे. हमें लगा ये 15 लाख रुपए धीरेधीरे खत्म हो जाएंगे. इसलिए हम ने एक ब्रोकर की मदद से 10 लाख रुपए का यह छोटा सा घर ले लिया. डेढ़ लाख रुपए में घर का जरूरी सामान खरीद लिया, 3 लाख रुपए मेरी शादी के लिए मम्मी ने गहने खरीद लिए और बाकी 50 हजार रुपए बैंक में जमा कर दिए.
‘‘मां ने घर का खर्चा चलाने के लिए एक प्राइवेट स्कूल में नौकरी कर ली और ट्यूशन भी पढ़ाने लगीं. मैं कालेज के बाद ब्यूटीपार्लर का कोर्स करने लगी. इस कार्य में मैं पारंगत हो गई, तो सोचा, क्यों न घर के नीचे वाले हिस्से में ब्यूटीपार्लर खोल लूं. कमाई अच्छी होगी, घर की घर में भी रहूंगी.
‘‘लेकिन मम्मी, पापा की बेवफाई सह न सकीं और दिल की मरीज हो गईं. उन्हें अटैक पड़ा तो एंजियोग्राफी से पता चला उन की 2 आर्टरीज ब्लौक हैं. डाक्टरों ने एंजियोप्लास्टी के लिए बोला है. इस का खर्चा लगभग 2-3 लाख रुपए तो होगा ही. बस, इसी वजह से परेशान हूं कि इतना पैसा इतनी जल्दी कैसे मैनेज करूं? यह सब मम्मी को बता कर परेशान नहीं करना चाहती.’’
मेरे दिमाग ने सचेत किया, इस के झांसे में मत आना. हो सकता है यह सब मनगढ़ंत कहानी हो. मैं बोला, ‘‘मीठी, इस मामले में मैं तुम्हारी क्या मदद कर सकता हूं?’’
‘‘सर, मैं चाहती हूं अगर आप किसी भी तरह 3 लाख रुपए का इंतजाम करवा दें तो मैं आप का एहसान जिंदगीभर नहीं भूलूंगी. 50 हजार रुपए मैं अपने अकाउंट से निकाल लूंगी,’’ आशाभरी नजरों से उस ने मुझे ताकते हुए कहा.
लेकिन मैं अंदर से मजबूत था और उस की भावनाओं के जाल में फंसने वाला नहीं था. ‘‘मीठी, 3 लाख रुपए तो बहुत होते हैं. 10-20 हजार रुपए की रकम होती तो मैं अभी दे देता. 3 लाख रुपए तो मेरे खाते में भी नहीं है,’’ मैं ने झूठ बोला हालांकि मैं जानता था कि उसे पता है कि मैं झूठ बोल रहा हूं क्योंकि एक बैंक मैनेजर के खाते में 3 लाख रुपए नहीं होंगे, ऐसा नहीं हो सकता.
‘‘सर, मैं आप से पैसा नहीं, बल्कि सहयोग मांग रही हूं. आप मेरे गहने गिरवी रखवा कर पैसा दिलवा दें क्योंकि ऐसा काम कोई भरोसेमंद इंसान ही कर सकता है.’’
‘‘तुम मुझ पर किस आधार पर विश्वास कर रही हो? तुम तो सिर्फ एक बार ही मुझ से मिली हो.’’
‘‘उम्र भले ही कम हो मेरी लेकिन वक्त और हालात ने मुझे इतना परिपक्व कर दिया है कि इंसान की नीयत और फितरत को पहचानने में कभी गलती नहीं करती हूं,’’ आत्मविश्वास से भरे स्वर में वह बोली.
मेरी जिज्ञासा बढ़ी और मुसकरा कर बोला, ‘‘जरा मेरी नीयत और फितरत तो बताओ.’’
‘‘सर, आप परीक्षा ले रहे हैं मेरी. लेकिन मैं सच जरूर बताऊंगी.’’
मैं मन ही मन थोड़ा डर गया, पता नहीं मेरे बारे में क्या बताए? लेकिन मैं हंस कर बोला, ‘‘हांहां, बताओ, जरा मैं भी तो सुनूं मेरे बारे में क्या धारणा है तुम्हारी?’’
‘‘आप बहुत ही नेकदिल और ईमानदार इंसान हैं लेकिन मुझे ले कर आप थोड़ा आशंकित व भयभीत हैं. कहीं मैं आप के साथ फ्रौड या धोखा न कर दूं.’’
हालांकि वह सच कह रही थी लेकिन मैं ने कहा, ‘‘नहीं, मीठी तुम गलत बोल रही हो, ऐसा कुछ भी नहीं है.’’
‘‘नहीं सर, आप अपनी जगह ठीक हैं. 3 लाख रुपए की रकम कोई छोटीमोटी तो है नहीं जो किसी अजनबी को दे दी जाए. अगर आप की जगह मैं होती तो शायद मैं भी हिचकिचाती. लेकिन आप मेरे गहने ले जाइए और अपने किसी परिचित व विश्वसीनय सुनार से उन की जांच करवा लीजिए. और फिर पैसा दिलवा दीजिए. मैं मम्मी की जल्दी से जल्दी एंजियोप्लास्टी कराना चाहती हूं.’’
मैं ने मन में सोचा जब यह लड़की अपने कीमती गहने मुझे सौंप रही है, सिर्फ मुझ पर विश्वास कर के तो इंसानियत के नाते मुझे भी इस की मदद करनी चाहिए.
‘‘ठीक है, मेरा एक खास परिचित ज्वैलर है. वह यह काम भी करता है. मैं अभी उस से फोन पर बात कर के देखता हूं.’’
‘‘सर, अगर पैसा आज ही मिल जाए तो बेहतर होगा. कल सुबह ही टैक्सी कर के मम्मी को दिल्ली ले जाऊंगी.’’
मैं ने ज्वैलर से बात की तो उस ने हां कर दी. मैं ने मीठी से पूछा, ‘‘गहने घर पर हैं या लौकर में?’’
‘‘मैं ने कल ही गहने और कैश लौकर से निकाल लिए थे, पता नहीं कब जरूरत पड़ जाए,’’ कहती हुई वह एक बैग ले आई और सारे गहने दिखा दिए.
‘‘चलो जल्दी से तैयार हो जाओ, मैं ने ज्वैलर को टाइम दे दिया है.’’
‘‘मैं क्या करूंगी वहां जा कर? आप हो तो सही.’’
‘‘नहीं मीठी, तुम्हें चलना पड़ेगा. गहने कितने वजन के हैं? कितने रुपए के हैं. लिखापढ़ी, रसीद बहुतकुछ होता है. जल्दी चलो और अपनी मां को भी बता दो.’’
‘‘सर, मुझे आप पर पूरा भरोसा है, प्लीज आप जल्दी जाइए.’’
‘‘मीठी, मुझे यह ठीक नहीं लग रहा. उस ज्वैलर को इन गहनों के बारे में क्या बताऊंगा? तुम साथ होगी तो मुश्किल नहीं होगी.’’
‘‘कह देना, एक दूर की रिश्तेदार के हैं, बीमारी की वजह से आने में असमर्थ हैं,’’ कहती हुई वह मुसकरा पड़ी.
मन में आया कह दूं कि तुम दूर की नहीं, मेरे दिल की रिश्तेदार हो.
गहनों का बैग ले कर मैं तुरंत निकल पड़ा. इस दौरान साधना के पचासों फोन आए लेकिन मैं ने रिसीव नहीं किए. हर बार काट दिए. रास्ते में फिर फोन बजा. मुझे पता था कि उसी का होगा. सुबह का निकला और लगभग शाम हो चली, चिंता तो कर रही होगी, इसलिए स्कूटी साइड में रोक कर बात की.
‘‘अरे, सुबह से कहां हो आप? एक कप चाय पी कर निकले हो. फोन करना तो दूर, मेरा फोन भी काट रहे हो. कहीं किसी मुसीबत में तो नहीं हो,’’ वह घबराए और आशंकित स्वर में बोली.
‘‘नहीं साधना, मैं किसी मुसीबत में नहीं हूं. बस, हुआ यों, मैं जिस पार्टी के साथ था उस की मां की अचानक तबीयत खराब हो गई तो मानवता के नाते मैं उस के साथ अस्पताल में हूं. तुम परेशान मत हो,’’ बड़ी सफाई से झूठ बोलते हुए मैं ने उसे आश्वस्त कर दिया.
ज्वैलर्स की दुकान पर पहुंच कर जैसे ही गहनों का बैग खोला तो ज्वैलर शरारत से मुसकरा कर बोला, ‘‘बैंक मैनेजर साहब, किस का लौकर तोड़ दिया?’’
‘‘अरे यार, बात यह है कि…’’
‘‘जुए में बुरी तरह हार कर भाभी के गहने चुरा लाए हो. लेकिन याद रखो दोस्त, जैसे ही भाभी को पता चलेगा, वे तुम्हें रुई की तरह धुन देंगी,’’ मेरी बात पूरी होने से पहले ही वह फिर शरारत पर उतर आया था.
‘‘अरे भाई, यह मस्तमजाक छोड़ो. पहले मेरी बात सुनो. मेरे एक दूर के रिश्तेदार हैं जो बहुत बीमार हैं. उन्हें तुरंत दिल्ली के एक अस्पताल में ले जाना है, जहां उन का औपरेशन होना है. ये गहने उन्हीं के हैं. उन्हें पैसों की सख्त जरूरत है. इन की जल्दी से जांच कर लो कि असली हैं या नकली? अगर असली हैं तो इन्हें गिरवी रख कर कितना पैसा मिल जाएगा.’’
वह शीघ्र ही गहनों की शुद्धता की जांच करने लगा और बोला, ‘‘गुरु, शुद्ध खालिस सोने के हैं.’’
‘‘क्या कीमत होगी इन की?’’
उस ने जल्दी ही गहनों को तोल कर बताया, लगभग 3 लाख रुपए के हैं. मैं पूरे 3 लाख रुपए दे दूंगा क्योंकि किसी जरूरतमंद बीमार के लिए चाहिए और आप मेरे खास परिचित भी हो. उस ने गहनों की लिखापढ़ी, लिस्ट, रसीद सबकुछ देते हुए पूरे 3 लाख रुपए भी दे दिए.
रुपए ले कर निकला तो बाहर गहरा अंधेरा हो गया था. मैं ने स्कूटी मीठी के घर की तरफ दौड़ा दी. अपना मोबाइल भी स्विच औफ कर लिया क्योंकि मुझे पता था साधना बारबार फोन करेगी. घर जा कर कह दूंगा कि बैटरी डिस्चार्ज हो गई थी. उस के घर पहुंचतेपहुंचते रात हो चुकी थी.
वह दरवाजे पर खड़ी मेरा इंतजार कर रही थी. मुझे जल्दी से ऊपर कमरे में ले गई, ‘‘सर, काम बना?’’
‘‘हांहां, बन गया. पूरे 3 लाख रुपए हैं, गिन लो,’’ कहते हुए मैं ने उसे नोटों का बैग थमा दिया.
‘‘थैंक्यू सर,’’ कहती हुई वह भावावेश में मुझ से कस कर लिपट गई. मैं हक्काबक्का रह गया. यह अप्रत्याशित स्थिति मेरे लिए अकल्पनीय थी. इस के लिए मैं तैयार न था. लेकिन उस के जिस्म की गरमी, सांसों की तेज रफ्तार…मैं खुद पर काबू न रख सका और उसे बेतहाशा चूमने लगा.