Serial Story: प्रतीक्षालय (भाग-1)

लेखिका- जागृति भागवत

हाथ में एक छोटा सा हैंडबैग लिए हलके पीले रंग का चूड़ीदार कुरता पहने जानकी तेज कदमों से प्रतीक्षालय की ओर बढ़ी आ रही थी. यहां आ कर देखा तो प्रतीक्षालय यात्रियों से खचाखच भरा हुआ था. बारिश की वजह से आज काफी गाडि़यां देरी से आ रही थीं. उस ने भीड़ में देखा, एक नौजवान एक कुरसी पर बैठा था तथा दूसरी पर अपना बैग रख कर उस पर टिक कर सो रहा था, पता नहीं सो रहा था या नहीं. एक बार उस ने सोचा कि उस नौजवान से कहे कि बैग को नीचे रखे ताकि एक यात्री वहां बैठ सके, परंतु कानों में लगे इयरफोंस, बिखरे बेढंगे बाल, घुटने से फटी जींस, ठोड़ी पर थोड़ी सी दाढ़ी, मानो किसी ने काले स्कैचपैन से बना दी हो, इस तरह के हुलिया वाले नौजवान से कुछ समझदारी की बात कहना उसे व्यर्थ लगा. वह चुपचाप प्रतीक्षालय के बाहर चली गई.

मनमाड़ स्टेशन के प्लेटफौर्म पर यात्रियों के लिए कुछ ढंग की व्यवस्था भी नहीं है, बाहर बड़ी मुश्किल से जानकी को बैठने के लिए एक जगह मिली. ट्रेन रात 2:30 बजे की थी और अभी शाम के 6:30 बजे थे. रोशनी मंद थी, फिर भी उस ने अपने बैग में से मुंशी प्रेमचंद का उपन्यास ‘गोदान’ निकाला और पढ़ने लगी. गाडि़यां आतीजाती रहीं. प्लेटफौर्म पर कभी भीड़ बढ़ जाती तो कभी एकदम गायब हो जाती. 8 बज चुके थे, प्लेटफौर्म पर अंधेरा हो गया था. प्लेटफौर्म की मंद बत्तियों से मोमबत्ती जैसी रोशनी आ रही थी. सारे दिन की बारिश के बाद मौसम में ठंडक घुल गई थी. जानकी ने एक बार फिर प्रतीक्षालय जा कर देखा तो वहां अब काफी जगह हो गई थी.

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जानकी एक अनुकूल जगह देख कर वहां बैठ गई. उस ने चारों तरफ नजर दौड़ाई तो लगभग 15-20 लोग अब भी प्रतीक्षालय में बैठे थे. वह नौजवान अब भी वहीं बैठा था. कुरसियां खाली होने का फायदा उठा कर अब वह आराम से लेट गया था. 2 लड़कियां थीं. पहनावे, बालों का ढंग और बातचीत के अंदाज से काफी आजाद खयालों वाली लग रही थीं. उन के अलावा कुछ और यात्री भी थे, जो जाने की तैयारी में लग रहे थे, शायद उन की गाड़ी के आने की घोषणा हो चुकी थी. जल्द ही उन की गाड़ी आ गई और अब प्रतीक्षालय में जानकी के अलावा सिर्फ वे 2 युवतियां और वह नौजवान था, जो अब सो कर उठ चुका था. देखने से तो वह किसी अच्छे घर का लगता था पर कुछ बिगड़ा हुआ, जैसे किसी की इकलौती संतान हो या 5-6 बेटियों के बाद पैदा हुआ बेटा हो.

नौजवान उठ कर बाहर गया और थोड़ी देर में चाय का गिलास ले कर वापस आया. अब तक जानकी दोबारा उपन्यास पढ़ने में व्यस्त हो चुकी थी. थोड़ी देर बाद युवतियों की आवाज तेज होने से उस का ध्यान उन पर गया. वे मौडर्न लड़कियां उस नौजवान में काफी रुचि लेती दिख रही थीं. नौजवान भी बारबार उन की तरफ देख रहा था. लग रहा था जैसे इस तरह वे तीनों टाइमपास कर रहे हों. जानकी को टाइमपास का यह तरीका अजीब लग रहा था. उन तीनों की ये नौटंकी काफी देर तक चलती रही. इस बीच प्रतीक्षालय में काफी यात्री आए और चले गए. जानकी को एहसास हो रहा था कि वह नौजवान कई बार उस का ध्यान अपनी तरफ खींचने का प्रयास कर रहा था, परंतु उस ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. अब तक 9:00 बज चुके थे. जानकी को अब भूख का एहसास होने लगा था. उस ने अपने साथ ब्रैड और मक्खन रखा था. आज यही उस का रात का खाना था. तभी किसी गाड़ी के आने की घोषणा हुई और वे लड़कियां सामान उठा कर चली गईं. अब 2-4 यात्रियों के अलावा प्रतीक्षालय में सिर्फ वह नौजवान और जानकी ही बचे थे. नौजवान को भी अब खाने की तलाश करनी थी. प्रतीक्षालय में जानकी ही उसे सब से पुरानी लगी, सो उस ने पास जा कर धीरे से उस से कहा, ‘‘एक्सक्यूज मी मैम, क्या मैं आप से थोड़ी सी मदद ले सकता हूं?’’

जानकी ने काफी आश्चर्य और असमंजस से नौजवान की तरफ देखा, थोड़ी घबराहट में बोली, ‘‘कहिए.’’ ‘‘मुझे खाना खाने जाना है, अगर आप की गाड़ी अभी न आ रही हो तो प्लीज मेरे सामान का ध्यान रख सकेंगी?’’ ‘‘ओके,’’ जानकी ने अतिसंक्षिप्त उत्तर दिया और नौजवान चला गया. लगभग 1 घंटे बाद वह वापस आया, जानकी को थैंक्स कहने के बहाने उस के पास आया और कहा, ‘‘यहां मनमाड़ में खाने के लिए कोई ढंग का होटल तक नहीं है.’’

‘‘अच्छा?’’ फिर जानकी ने कम से कम शब्दों का इस्तेमाल करना उचित समझा.

‘‘आप यहां पहली बार आई हैं क्या?’’ बात को बढ़ाते हुए नौजवान ने पूछा.

‘‘जी हां.’’ जानकी ने नौजवान की ओर देखे बिना ही उत्तर दिया. अब तक शायद नौजवान की समझ में आ गया था कि जानकी को उस से बात करने में ज्यादा रुचि नहीं है.

‘‘एनी वे, थैंक्स,’’ कह कर उस ने अपनी जगह पर जाना ही ठीक समझा. जानकी ने भी राहत की सांस ली. पिछले 4 घंटों में उस ने उस नौजवान के बारे में जितना समझा था, उस के बाद उस से बात करने की सोच भी नहीं सकती थी. जानकी की गाड़ी काफी देर से आने वाली थी. शुरू में उस ने पूछताछ खिड़की पर पूछा था तब उन्होंने 2:00 बजे तक आने को कहा था. अब न तो वह सो पा रही थी न कोई बातचीत करने के लिए ही था. किताब पढ़तेपढ़ते भी वह थक गई थी. वैसे भी प्रतीक्षालय में रोशनी ज्यादा नहीं थी, इसलिए पढ़ना मुश्किल हो रहा था. नौजवान को भी कुछ सूझ नहीं रहा था कि क्या करे. वैसे स्वभाव के मुताबिक उस की नजर बारबार जानकी की तरफ जा रही थी. यह बात जानकी को भी पता चल चुकी थी. वह दिखने में बहुत सुंदर तो नहीं थी, लेकिन एक अनूठा सा आकर्षण था उस में. चेहरे पर गजब का तेज था. नौजवान ने कई बार सोचा कि उस के पास जा कर कुछ वार्त्तालाप करे लेकिन पहली बातचीत में उस के रूखे व्यवहार से उस की दोबारा हिम्मत नहीं हो रही थी. नौजवान फिर उठ कर बाहर गया. चाय के 2 गिलास ले कर बड़ी हिम्मत जुटा कर जानकी के पास जा कर कहा, ‘‘मैम, चाय.’’ इस से पहले कि जानकी कुछ समझ या बोल पाती, उस ने एक गिलास जानकी की ओर बढ़ा दिया. जानकी ने चाय लेते हुए धीरे से मुसकरा कर कहा, ‘‘थैंक्स.’’ नौजवान को हिम्मत देने के लिए इतना काफी था. थोड़ी औपचारिक भाषा में कहा, ‘‘क्या मैं आप से थोड़ी देर बातें कर सकता हूं?’’

जानकी कुछ क्षण रुक कर बोली, ‘‘बैठिए.’’

एक कुरसी छोड़ कर नौजवान बैठ गया. जानकी ने यह सोच कर उसे बैठने के लिए कह दिया कि लड़का चाहे जैसा भी हो, थोड़ी देर बात कर के बोरियत तो दूर होगी. चाय की चुस्कियां लेते हुए नौजवान ने ही शुरुआत की, ‘‘मेरा नाम सिद्धार्थ है, पर मेरे दोस्त मुझे ‘सिड’ कहते हैं.’’

‘‘क्यों? सिद्धार्थ में क्या बुराई है?’’ जानकी ने टोका. सिद्धार्थ को इस एतराज की उम्मीद नहीं थी, थोड़ा हिचकिचाते हुए वह बोला, ‘‘सि-द्-धा-र्थ काफी लंबा नाम है न और काफी पुराना भी, इसलिए दोस्तों ने उस का शौर्टकट बना दिया है.’’

‘‘अमिताभ बच्चन, स्टैच्यू औफ लिबर्टी, सैंट फ्रांसिस्को, ग्रेट वौल औफ चाइना वगैरा नाम पचास बार भी लेना हो तो आप पूरा नाम ही लेते हैं, उस का तो शौर्टकट नहीं बनाते, फिर इतने अच्छे नाम का, जो सिर्फ साढ़े 3 अक्षरों का है, शौर्टकट बना दिया. जब बच्चा पैदा होता है तब मातापिता नामों की लंबी लिस्ट से कितनी मुश्किल से एक ऐसा नाम पसंद करते हैं जो उन के बच्चे के लिए फिट हो. बच्चा भी वही नाम सुनसुन कर बड़ा होता है और बड़ा हो कर दोस्तों के कहने पर अपना नाम बदल देता है. नाम के नए या पुराने होने से कुछ नहीं होता, गहराई उस के अर्थ में होती है.’’ पिछले 3 दिनों में जानकी ने पहली बार किसी से इतना लंबा वाक्य बोला था. पिछले 3 दिनों से वह अकेली थी, इसलिए किसी से बातचीत नहीं हो पा रही थी. शायद इसीलिए उस ने सिद्धार्थ से बातें करने का मन बनाया था. परंतु सिद्धार्थ एक मिनट के लिए सोच में पड़ गया कि उस ने जानकी के पास बैठ कर ठीक किया या नहीं. थोड़ा संभलते हुए कहा, ‘‘आप सही कह रही हैं, वैसे आप कहां जा रही हैं?’’ सिद्धार्थ ने बात बदलते हुए पूछा.

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‘‘इंदौर जा रही हूं, और आप कहां जा रहे हैं?’’

‘‘मैं पुणे जा रहा हूं, आज से महाराष्ट्र में टैक्सी वालों की हड़ताल शुरू हो गई है, इसलिए ट्रेन से जाना पड़ रहा है, एक तो ये गाडि़यां भी कितनी लेट चल रही हैं. आज यहां मनमाड़ में कैसे?’’ सिद्धार्थ ने बातों की दिशा को मोड़ते हुए पूछा. अब जानकी, सिद्धार्थ के साथ थोड़ा सहज महसूस कर रही थी. कहा, ‘‘मैं पुणे गई थी लेक्चरर का इंटरव्यू देने, लौटते समय एक दिन के लिए नासिक गई थी, अब वापस इंदौर जा रही हूं.’’

‘‘पुणे में किस कालेज में इंटरव्यू देने गई थीं आप?’’ सिद्धार्थ ने जानकारी लेने के उद्देश्य से पूछा.

‘‘पुणे आर्ट्स ऐंड कौमर्स से हिस्ट्री के प्रोफैसर की पोस्ट के लिए इंटरव्यू कौल आया था.’’

‘‘हिस्ट्री प्रोफैसर? आप हिस्ट्री में रुचि रखती हैं?’’ सिद्धार्थ ने चौंकते हुए पूछा. जानकी को उस की प्रतिक्रिया बड़ी अजीब लगी, उस ने पूछा, ‘‘क्यों? हिस्ट्री में क्या बुराई है? हमारे इतिहास में इतना कुछ छिपा है कि एक पूरी जिंदगी भी कम पड़े जानने में.’’ सिद्धार्थ अब जानकी से सिर्फ टाइमपास के लिए बातें नहीं कर रहा था, उसे जानकी के व्यक्तित्व में झांकने का मन होने लगा था. पिछले कुछ घंटों से वह दूर से जानकी को देख रहा था. वह जैसी दिख रही थी वैसी थी नहीं. उस ने सोचा था कि वह एक शर्मीली, छुईमुई, अंतर्मुखी, घरेलू टाइप की लड़की होगी. परंतु उस की शैक्षणिक योग्यता, उस के विचारों का स्तर और विशेषकर उस का आत्मविश्वास देख कर सिद्धार्थ समझ गया कि वह उन लड़कियों से बिलकुल अलग है जो टाइमपास के लिए होती हैं. कुछ देर वह शांत बैठा रहा. अब तक दोनों की चाय खत्म हो चुकी थी. आमतौर पर जानकी कम ही बोलती थी, पर यह चुप्पी उसे काफी असहज लग रही थी, सो उसी ने बात शुरू की. सिद्धार्थ के बाएं हाथ पर लगी क्रेप बैंडेज देख कर उस ने पूछा, ‘‘यह चोट कैसे लगी आप को?’’

‘‘मैं बाइक से स्लिप हो गया था.’’

‘‘बहुत तेज चलाते हैं क्या?’’

‘‘मैं दोस्तों के साथ नाइटराइड पर था, थोड़ा डिं्रक भी किया था, इसलिए बाइक कंट्रोल में नहीं रही और मैं फिसल गया.’’ सिद्धार्थ ने थोड़ा हिचकिचाते हुए बताया. जानकी ने शरारतभरे अंदाज में कहा, ‘‘जहां तक मैं जानती हूं, रात सोने के लिए होती है न कि बाइक राइडिंग के लिए. खैर, वैसे आप यहां कैसे आए थे?’’ ?‘‘डैड का टैक्सटाइल ऐक्सपोर्ट का बिजनैस है, मुझे यहां सैंपल्स देखने के लिए भेजा था. डैड चाहते हैं कि मैं उन का बिजनैस संभालूं. इसीलिए उन्होंने मुझ से टैक्सटाइल्स में इंजीनियरिंग करवाई और फिर मार्केटिंग में एमबीए भी करवाया, पर मेरा इस सब में कोई इंट्रैस्ट नहीं है. मैं कंप्यूटर्स में एमटैक कर के यूएस जाना चाहता था. पर डैड मुझे अपने बिजनैस में इन्वौल्व करना चाहते हैं.’’ सिद्धार्थ ने काफी संजीदा हो कर बताया. जानकी को भी अब उस की बातों में रुचि जाग गई थी. थोड़ा खोद कर उस ने पूछा, ‘‘कोई और भाई है क्या आप का?’’

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धंधा: सरदार ओंकार सिंह को महंगी पड़ी ये हरकत

Serial Story: धंधा (भाग-4)

इन दिनों, जैक मारटीनो, जो एक अश्वेत अमेरिकी पुलिस अधिकारी था, इस विभाग का इंचार्ज था. जैक मारटीनो चुस्त अधिकारी था. वह अपनी कुरसी पर बैठा कौफी पी रहा था और साथ ही समुद्र तट पर छद्म वेश में तैनात व समुद्र में गश्त लगा रहे गश्ती दल की रिपोर्ट भी अपने कान पर लगे इयर फोन से सुन रहा था.

‘‘सर, आज समुद्र तट पर स्थानीय निकाय का मेयर सरदार ओंकार सिंह लायलपुरी टैक्सी चलाता टैक्सी चालक की वरदी पहने आया है. वह एक चट्टान पर बैठा जैसे जासूसी कर रहा है,’’ जासूस ने रिपोर्ट दी.

‘‘वह पहले टैक्सी चालक था. कोई पंगा पड़ गया होगा, इसलिए यह छद्म रूप धारण किए है. आज उस के साथ कोई दिल बहलाने वाली नहीं आई?’’ जैक मारटीनो ने पूछा.

‘‘नहीं सर, कुछ दिन पहले एक पपाराजी इस की तसवीर खींच कर भागा था. उस के बाद इस का प्रेमालाप बंद है.’’

‘‘यह शायद उसी पपाराजी की फिराक में है. यह स्टेट काउंसिल का चुनाव लड़ रहा है. हो सकता है ब्लैकमेलिंग का चक्कर हो.’’

‘‘सर, वह पपाराजी जोड़ा भी समुद्र तट पर टहल रहा है.’’

‘‘उस पर भी नजर रखो.’’

‘‘सर, इन शरारती फोटोग्राफरों को काबू करने का और्डर क्यों नहीं करवाते.’’

‘‘अरे भाई, इन से ज्यादा कुसूरवार तो ये प्रेमी जोड़े हैं. इन में अधिकांश बूढ़े हैं और शहर की सम्मानित हस्तियां हैं. पपाराजी को पकड़ते ये सब भी उजागर होंगे तब बड़ा स्कैंडल बन जाएगा. हमारा काम तो नशीले पदार्थों की रोकथाम करना है.’’

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‘‘ओके, सर.’’

चप्पुओं वाली किश्ती को अपनी याट के समीप रोक जैक स्मिथ ने पहले इधरउधर फिर याट के ऊपर देखा. जब भी वह आता था, मोबाइल फोन से स्टाफ को सूचना देता था. याट पर तैनात सुरक्षाकर्मी या केयरटेकर याट पर लगी लिफ्ट के प्लेटफौर्म को समुद्र के पानी के समतल कर देता था.

मगर आज जैक स्मिथ का इरादा चुपचाप आने का था. वह अपनी और मारलीन डेक की तसवीरें खींची जाने से क्षुब्ध था. किश्ती को एक हुक से बांधा. वह रस्सी वाली सीढ़ी की सीढि़यां चढ़ता ऊपर चला गया.

डेक सुनसान था. चालककक्ष में अंधेरा था. केयरटेकर और सुरक्षाकर्मी शायद नीचे थे. वह दबेपांव चलता नीचे जाने वाली सीढि़यों की तरफ बढ़ा. उस के कानों में अनेक लोगों के हंसनेखिलखिलाने की आवाज आई.

इतने सारे लोग, उस को क्रोध आने लगा. फिर अपने पर नियंत्रण रखता, वह दबेपांव सीढि़यां उतरता प्रथम तल पर पहुंचा. सीढि़यों की तरफ कूड़ाकरकट फेंकने का बड़ा ड्रम रखा था.

दबेपांव चलता वह उस ड्रम के पीछे बैठ गया और चोरनजरों से प्रथम तल के बड़े हाल में झांका. बार के लंबे काउंटर के सामने पड़ी ऊंची कुरसियों पर उस के दोनों मुलाजिम बैठे शराब के घूंट भर रहे थे. अन्य कुरसियों पर 6-7 हब्शी दिखने वाले आदमी बैठे थे. उन के हाथों में भी शराब के गिलास थे.

हाल के केंद्र में रखी मेज पर सफेद पदार्थ से भरी पौलिथीन की थैलियों का ढेर लगा था. वह उन का वार्त्तालाप सुनने लगा :

‘‘इस माल की पेमैंट कब मिलेगी?’’ एक नीग्रो ने पूछा.

‘‘अगली डिलीवरी के साथ,’’ दूसरे ने कहा.

‘‘अगली सप्लाई कब चाहते हो?’’

‘‘4 दिन बाद.’’

‘‘कहां?’’

‘‘इसी याट पर.’’

‘‘नो, नैवर, मैं एक ही जगह दोबारा नहीं आता,’’ सप्लाई करने वाले नीग्रो ने दृढ़ स्वर में कहा.

‘‘ठीक है, इस याट को समुद्र में कहीं और ले आएंगे. कहां लाएं?’’

‘‘मैं फोन कर के बता दूंगा.’’

‘‘ओके,’’ फिर अपना गिलास खाली कर सब खड़े हुए. जैक स्मिथ दबेपांव सीढि़यां चढ़ता डेक पर पहुंचा. वह चालक केबिन में घुस कर एक तरफ खड़ा हो गया.

सभी ऊपर आए. लिफ्ट से बारीबारी से सब नीचे गए. सुरक्षाकर्मी और केयरटेकर डेक पर खड़े हो कर बातें करने लगे :

‘‘आज का माल क्या है?’’

‘‘शायद कोकीन है.’’

‘‘कितनी कीमत का है?’’

‘‘पता नहीं. हमें तो हर फेरे के 10 हजार डौलर मिलने हैं.’’

‘‘एक हफ्ते से सेठ नहीं आया?’’

‘‘उस की और उस की ‘वो’ की किसी ने यहां तसवीरें खींच ली थीं. वह सेठ को ब्लैकमेल कर रहा है.’’

‘‘तुम को किस ने बताया?’’

‘‘परसों मैं सेठ के दफ्तर गया था. तभी फोन आया, मैं दरवाजे पर ही था. उस की बात सुन ली थी.’’

‘‘तसवीरें कैसे खींची गईं?’’

‘‘क्या पता? इसे छोड़, बता, अंदर रखा माल कब जाएगा?’’

‘‘सुबह से पहले कभी भी.’’

‘‘अब क्या करें?’’

‘‘बीच पर चलते हैं. यहां किसे आना है.’’

दोनों नीचे उतर कर मोटरबोट में सवार हुए. उन के जाते ही जैक स्मिथ केबिन से बाहर निकला और गंभीर हो, सोचने लगा.

कितनी अजीब स्थिति थी कि अपने ही याट में उस को एक चोर की तरह प्रवेश करना पड़ा था. उस के लवनैस्ट को उस के हरामखोर नौकर नशीले पदार्थों के सौदागरों को एक वितरण स्थल का ट्रांजिट माउंट के रूप में इस्तेमाल करवा धन कमा रहे हैं. अमेरिका में अन्य देशों की भांति नशीले पदार्थों का धंधा एक गंभीर अपराध था. ऐसा करने वालों को 40 साल तक की सजा हो सकती थी. याट में नशीला पदार्थ पकड़े जाने पर जैक स्मिथ कितनी भी सफाई देता, पुलिस उस का कतई ऐतबार न करती कि वह इस धंधे में शामिल नहीं था.

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अभी तक वह पपाराजी द्वारा खींची गई तसवीरों से घबराया था. अब यह पंगा, जिस की उसे कल्पना भी नहीं, सामने आ गया था. वह धीमेधीमे सीढि़यां उतरता नीचे हाल में पहुंचा. इधरउधर तलाशी लेने पर उस को एक बैग कोने में मिल गया. बैग ठसाठस सफेद पाउडर जैसे नशीले पदार्थ, जो शायद कोकीन था, से भरा था. तभी उस के दिमाग में कौंधा कि अगर यह माल यहां से गायब हो जाए तब क्या होगा?

उस के हरामखोर नौकरों की अपनेआप शामत आ जाएगी. उस ने सारा हाल भी तलाशा. सारे कमरे तलाशे. याट दोमंजिला था. प्रथम तल के बाद ग्राउंड फ्लोर भी तलाशा. इंजनरूम भी. कहीं कोई और नशीला पदार्थ नहीं था उस ने एअरबैग उठाया और जैसे सीढि़यां चढ़ते आया था वैसे ही उतरता नीचे किश्ती में पहुंच गया. चप्पू चलाता वह पायर पर पहुंचा. उस की किस्मत अच्छी थी. उस पर न किसी मौजमेला करने वाले की नजर पड़ी न खुफिया पुलिस की.

पायर से काफी आगे घनी झाडि़यों का झुरमुट था. उस ने एअर बैग एक झाड़ी में छिपा दिया. फिर सधे कदमों से चलता अपनी मोटरसाइकिल पर सवार हुआ और शहर की तरफ बढ़ चला. मोटरबोट से काफी देर विचरण करने के बाद डेनियल और सुब्बा लक्ष्मी समुद्र में जहांतहां खड़े याटों की तरफ देखने लगे.

‘‘हर सुनसान दिखते याट में प्रेमी जोड़ा प्रेमालाप कर रहा हो, यह जरूरी तो नहीं है,’’ मोटरबोट का इंजन बंद कर के उस को समुद्र के पानी पर स्थिर करते सुब्बा लक्ष्मी ने कहा.

‘‘तुम्हारी बात ठीक है. पिछली बार ऐडवैंचर से हमें नया नजारा देखने को मिला था. इस बार देखते हैं क्या होता है.’’

‘‘अगर यह ऐडवैंचर हमें उलटा पड़ गया तो?’’

‘‘देखेंगे,’’ फिर उस ने एक बड़े लग्जरी याट की तरफ इशारा किया.

‘‘मोटरबोट का इंजन शोर करता है, इस को किश्ती के समान चलाते हैं,’’ सुब्बा लक्ष्मी ने एयरजैटसी के लिए रखे चप्पुओं को मोटरबोट के हुक से फिट कर दिया. किश्ती के समान चप्पू खेते वे दोनों सुनसान दिखते याट के समीप पहुंचे.

इस याट पर भी एक लिफ्ट लगी थी. साथ ही रस्सियों वाली सीढ़ी. दोनों डेक पर पहुंचे. डेक सुनसान था. चालक कक्ष में अंधेरा था. दोनों नीचे जाने वाली सीढि़यों की तरफ बढ़े. तभी ऊपर आते भारी कदमों की आवाज सुनाई पड़ी. दोनों लपक कर चालक केबिन के पीछे जा छिपे.

चुस्त वरदी पहने हाथ में छोटीछोटी बंदूकें लिए 2 अश्वेत सुरक्षाकर्मी ऊपर आ गए और डेक के केबिन की रेलिंग के साथ लग कर गपशप मारने लगे.

डेनियल और सुब्बा लक्ष्मी ने एकदूसरे की तरफ देखा. कहां आ फंसे.

‘‘तुम सो जाओ, मैं 2 घंटे पहरा दूंगा. फिर तुम्हारी बारी,’’ एक ने दूसरे से कहा.

‘‘तुम भी सो जाओ. यहां कौन आता है.’’

दोनों, डेनियल और सुब्बा लक्ष्मी, डेक पर बिछी लकड़ी की बैंचों पर लेट कर सोने की तैयारी करने लगे.

‘‘नीचे उतर कर वापस चलो,’’ सुब्बा लक्ष्मी ने कहा.

‘‘एक नजर नीचे मार आते हैं,’’ डेनियल ने कहा.

‘‘पंगा मत लो, मेरा कहना मानो,’’ सुब्बा लक्ष्मी ने समझाया.

लेकिन डेनियल नहीं माना. विवश हो सुब्बा लक्ष्मी भी उस के पीछेपीछे सीढि़यां उतरती गई.

एक बड़े हाल में कुछ लोग, जिन में श्वेतअश्वेत दोनों थे, मेजों के गिर्द कुरसियों पर बैठे जुआ खेल रहे थे. एक बारबेक्यू एक तरफ बना था. उस पर मांस की बोटियां ग्रिल की जा रही थीं.

दोनों उस फ्लोर से उतर कर नीचे वाले फ्लोर पर पहुंचे. एक बड़े कमरे में कुछ लोग सफेद पाउडर को छोटेछोटे पाउचों में भर रहे थे. यहां नशीले पदार्थों का धंधा हो रहा था.

डेनियल ने सधे हाथों से उन के फोटो लिए. तभी ऊपर कुछ हल्लागुल्ला हुआ. डेक पर लेटे सुरक्षाकर्मी नीचे दौड़े आए. जुआ खेल रहे आपस में लड़ पड़े थे.

‘‘यहां हमारे मतलब का क्या है?’’ सुब्बा लक्ष्मी ने कहा. दोनों सीढि़यां चढ़ डेक पर आ गए. तभी सुरक्षाकर्मी भी ऊपर चढ़ आए. दोनों फिर चालक केबिन के पीछे चले गए.

जैक स्मिथ समुद्र तट से शहर को जाते एक सार्वजनिक टैलीफोन बूथ पर रुका. 10 सेंट का एक सिक्का कौइन बौक्स में डाला. डायरैक्टरी देख कर नशीले पदार्थों की रोकथाम करने वाले विभाग का नंबर डायल किया. झाड़ी में छिपाए बैग के बारे में बताया. गुमनाम रहते याटों पर चल रहे नशीले पदार्थों के धंधे के बारे में बताया.

जैक मारटीन ने तुरंत गश्ती दल को फोन किया. बैग बरामद हो गया. एक के बाद एक याट पर धावा बोला गया. अनेक पर यौनाचार हो रहा था. नशीले पदार्थ पकड़े गए. डेनियल और सुब्बा लक्ष्मी को बच निकलने का मौका नहीं मिला. उन का धंधा

भी सामने आ गया. सरदार ओंकार सिंह ने पुलिस को पैसा खिला कर अपनी तसवीरें दबा दीं. ऐसा ही जैक स्मिथ ने किया. साथ ही दोनों ने इस तरह के मौजमेलों से तौबा की. एंड्र्यू डेक ने भारी हरजाना दे पत्नी को तलाक दे दिया. थोड़े दिन डेनियल और सुब्बा लक्ष्मी को हिरासत में रहना पड़ा. लेकिन चूंकि उन की वजह से नशीले पदार्थों का धंधा सामने आया था, इसलिए पुलिस ने उन को चेतावनी दे कर छोड़ दिया.

दोनों थोड़े दिन शांत रहे, फिर इस निश्चय के साथ कि बड़ी मछली के चक्कर में न पड़ छोटामोटा शिकार ही पकड़ेंगे, दोनों का पपाराजी का धंधा फिर से चल पड़ा. बूढ़े, अधेड़ अपने मनबहलाव के लिए आते रहे, उन की तसवीरें खिंचती रहीं, ब्लैकमेलिंग का पैसा अदा होता रहा.

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Serial Story: धंधा (भाग-3)

पिछले अंक में आप ने पढ़ा कि कैसे सरदार ओंकार सिंह लायलपुरी और एंड्र्यू डेक की अंतरंग तसवीरें पपाराजी डेनियल के हाथ लग गई थीं जिन के बल पर वह दोनों को ब्लैकमेल कर रहा था. क्या सरदार ओंकार सिंह और एंड्र्यू पपाराजी की ब्लैकमेलिंग से बच पाए? जानने के लिए पढि़ए अंतिम भाग.

सरदार ओंकार सिंह लायलपुरी टैक्सी चालक से तरक्की करता अमीर बना था और अब मेयर होते हुए स्टेट काउंसिल का उम्मीदवार था. इसलिए बदनामी से बचना चाहता था. दूसरा जैक स्मिथ मामूली हैसियत का था. वह प्रेमविवाह होने से पत्नी के मायके से मिले धन से बना अमीर था. उस की ऐसी तसवीरें सामने आने से उस का सब चौपट हो सकता था.

डेनियल एक ब्लैकमेलर था. उस का लालच भविष्य में क्या गुल खिला दे, इसलिए सरदार के लिए और जैक स्मिथ के लिए उस को काबू करना जरूरी था. सरदार ओंकार सिंह अपने दोस्त वरनाम सिंह के पास पहुंचा.

‘‘वरनाम सिंह, मुझे एक टैक्सी और चालक की वरदी दे दे.’’

‘‘क्यों, क्या दोबारा टैक्सी चालक का धंधा करना चाहता है?’’

‘‘नहीं, उस शरारती फोटोग्राफर को काबू करना है. वह एक ब्लैकमेलर है, भविष्य में लालच में पड़ कर दोबारा पंगा कर सकता है.’’ वरनाम सिंह ने हरी झंडी दी. टैक्सी चलाता ओंकार सिंह अपने घर पहुंचा.

‘‘अरे, आप ने दोबारा टैक्सी चालक का धंधा शुरू कर दिया?’’ उस की पत्नी ने उस को टैक्सी चालक की वरदी में और टैक्सी को देख कर हैरानी से पूछा.

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‘‘नहीं, थोड़ा मनबहलाव के लिए कुछ दिन अपना पुराना धंधा करना चाहता हूं. अमीरी भोगतेभोगते बोर हो चला हूं.’’ पत्नी और बेटीबहुओं ने बुढ़ापे में चढ़ आई सनक समझ कर उस को नजरअंदाज कर दिया. उस शाम ओंकार सिंह अपनी लग्जरी कार में सैर करने नहीं निकला. वह टैक्सी चालक बन टैक्सी चलाता समुद्र तट पर पहुंचा.

वह जानता था ब्लैकमेलर यानी शरारती फोटोग्राफर अपना धंधा करने ‘बीच’ पर जरूर आएगा. उस ने सैकड़ों बार ऐसे फोटोग्राफरों को प्रेमालाप में लीन जोड़ों की गुप्त तसवीरें खींचते देखा था. मगर जब तक उस पर यही शरारत न आ पड़ी, उस ने उन का कोई नोटिस नहीं लिया था. अब ऐसा पंगा पड़ जाने से उस का दिमाग चौकन्ना हो गया था.

जैक स्मिथ मामूली हैसियत का था. मारलीन डेक से प्रेम शुरू होने से पहले वह अपनी पत्नी की तरफ पूरा ध्यान देता था. मगर मारलीन डेक उस की पत्नी की तुलना में युवा थी. दोनों में सिलसिला ठीक चल रहा था कि यह पपाराजी का पंगा पड़ गया. जिस लाइन पर सरदार ओंकार सिंह सोच रहा था उसी पर जैक स्मिथ भी सोच रहा था.

उस ने भी अनेक पपाराजी को इस तरह तसवीरें खींचते देखा था. मगर उस को अंदाजा नहीं था कि कोई उस के याट में घुस कर इस तरह तसवीरें खींचने का दुसाहस कर सकता था. एक बार दुसाहस करने पर ब्लैकमेलिंग का पैसा मिलने पर ब्लैकमेलर दोबारा लालच कर सकता था. इसलिए उस को काबू करना जरूरी था. इस घटना के बाद मारलीन डेक ने उस से मिलनाजुलना बंद कर दिया था.

जैक स्मिथ छोटामोटा धंधा करता था. वह सभी वाहन चलाना जानता था. सामान्य तौर पर अमीर बनने के बाद वह लग्जरी कार में चलता था. काफी समय बाद उस ने साधारण कपड़े पहने. सिर पर नौजवान लड़कों द्वारा पहनी जाने वाली टोपी और धूप का बड़ा चश्मा पहनने से उस का हुलिया बदल गया था. हैल्मेट पहने वह बाइक पर सवार हुआ और समुद्र तट पर जा पहुंचा.

सरदार ओंकार सिंह टैक्सी एक तरफ खड़ी कर टैक्सी चालक बना एक चट्टान पर बैठा था. उस की मुद्रा ऐसी थी मानो वह समुद्र तट पर सैरसपाटा करने आई अपनी सवारी के लौटने का इंतजार कर रहा हो. जैक स्मिथ ने बाइक एक पाम के पेड़ के समीप खड़ी कर दी. लौक कर के यों समुद्र तट पर टहलने लगा जैसे वह तनहाईपसंद हो और उस को अकेला घूमना पसंद हो.

पपाराजी की शरारत का शिकार हुए दोनों की लाइन एक ही थी. किसी पपाराजी, जो हमेशा अपने शिकार की खोज में रहता था और कभी यह कल्पना भी नहीं कर सकता था कि वह कभी किसी की खोजी निगाहों का शिकार हो सकता है, को शिकार बनाने को ये दोनों तत्पर थे. सरदार ओंकार सिंह लायलपुरी ने सतर्क निगाहों से अपने चारों तरफ देखा. विशाल समुद्र तट पर दिखने वालों को अनदेखा किए कई मेल और बेमेल प्रेमी जोड़े खुद में लीन थे और उन की निगहबानी करते दर्जनों शरारती फोटोग्राफर अपना काम बिना फ्लैशलाइट जलाए फोटो खींचने वाले कैमरों से कर रहे थे.

जैक स्मिथ भी अपनी सतर्क निगाहों से यह सब क्रियाकलाप देख रहा था. तभी उस को बीच समुद्र में खड़ी अपनी याट का ध्यान आया. जिस तरह से शरारती फोटोग्राफर चुपचाप अपना काम कर गया था, उसी तरह अगर वह भी एक चोर की तरह अपनी याट पर जाए तो? शाम का अंधेरा गहरे अंधेरे में बदल गया था. समुद्र का नीला पानी अब काले हीरे के समान चमक रहा था. उभरता चांद पानी की चमक को बढ़ा रहा था.

पायर पर बंधी चप्पुओं वाली एक नौका खोल कर उस पर बैठ चप्पू चलाता जैक स्मिथ बीच समुद्र में खड़ी अपनी याट की तरफ बढ़ता गया.

कोई उन की निगहबानी या जासूसी कर सकता था. इस से बेखबर डेनियल और सुब्बा लक्ष्मी मोटरसाइकिल खड़ी कर समुद्र तट पर टहलने लगे. उन के हावभाव ऐसे थे मानो शाम बिताने आए 2 प्रेमी हों. गले या कंधे पर कैमरा लटकाए घूमने आना आम था. इसलिए यह पता चलना आसान नहीं था कि कौन शौकिया तसवीर खींचने वाला था और कौन शरारती फोटोग्राफर.

एक बारगी सरदार ओंकार सिंह लायलपुरी को लगा कि उस का इस तरह जासूसी करने आना बेकार है. मगर वह धैर्य रखे था. चुपचाप प्रेमी जोड़ों की तसवीरें खींच रहे पपाराजी में उस की तसवीरें खींचने वाला कौन सा था.

‘‘एक चक्कर बीच समुद्र का लगाएं,’’ डेनियल ने कहा.

‘‘उसी याट का?’’

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‘‘उस में अब क्या मिलेगा? वह प्रेमी जोड़ा सावधान हो चुका है. वैसे भी एक जगह चोरी करने के बाद चोर दोबारा वहां चोरी करने नहीं जाता.’’

डेनियल की इस मजाकिया टिप्पणी पर सुब्बा लक्ष्मी खिलखिला कर हंस पड़ी. आज पायर पर कोई चप्पुओं वाली नौका नहीं थी. मोटरबोटों पर ताला लगी जंजीरें लगी थीं. डेनियल आखिर एक चोर ही था. उस ने अपनी जेब से एक ‘मास्टर की’ निकाली. ताला खोला.

मोटरबोट समुद्र में दौड़ पड़ी. जहांतहां छोटेबड़े याट, लग्जरी बोट लंगर डाले खड़े थे. इन में क्याक्या हो रहा था यह इन में प्रवेश करने पर ही पता चल सकता था.

चप्पुओं वाली किश्ती चलाता जैक स्मिथ अपनी याट के समीप पहुंचा. याट पर भ्रमण के दौरान 8-10 आदमियों का स्टाफ होता था. खड़ी अवस्था में 1 या 2 व्यक्ति ही होते थे. आमतौर पर याट एक लवनैस्ट ही था.

अमीर बनने के बाद, जैक स्मिथ को अमीरों की तरह पर-स्त्री से संबंध रखने व कैप्ट या रखैल रखने का शौक लग गया था. थोड़ेथोड़े अंतराल पर वह किसी नई प्रेमिका को यहां ले आता था. यह सिलसिला ठीक चल रहा था. मगर अब एक पपाराजी द्वारा यों लवनैस्ट में प्रवेश कर तसवीरें खींच लेने से यह सिलसिला थम गया था.

उस के याट के समान अन्य याट भी या तो लवनैस्ट थे या फिर अन्य अवैध कामों के लिए मिलनेजुलने के स्थल. शहर में अवैध कामों, खासकर नशीले पदार्थों को बेचने और सप्लाई करने वालों को पुलिस या नशीले पदार्थों को नियंत्रण करने वालों की निगाहों में आने से बचने के लिए बीच समुद्र में खड़े छोटेबड़े याट या लग्जरी याट काफी सुविधाजनक थे.

शाम ढलने के बाद, रात के अंधेरे में छोटेबड़े स्मगलर अपनेअपने ठिकानों पर आ जाते. अधिकांश याट प्रभावशाली अमीरों के थे. इन पर एकदम छापा मारना मुश्किल था. शक की बिना पर किसी प्रभावशाली अमीर के याट पर छापा मारना उलटा पड़ जाता था. लेकिन खुफिया पुलिस और मादक पदार्थ नियंत्रण करने वाला विभाग अपनी निगरानी चुपचाप जारी रखता था. सादे और छद्म वेश में जहांतहां भूमि, समुद्र और समुद्र तट पर तैनात जासूस अपना काम चुपचाप करते थे. वे प्रेमालाप में लीन मेल या बेमेल जोड़ों को और उन की तसवीरें खींच कर भाग जाने का शरारती फोटोग्राफरों को कोई आभास तक न होने देते और उन की निगरानी करने के साथ उन की तसवीरें भी चुपचाप नई तकनीक से कैमरों से खींच लेते थे.

डेनियल समेत अन्य सभी शरारती फोटोग्राफरों का पुराना रिकौर्ड खुफिया विभाग के पास था. और साथ ही बीच पर आने वाले बेमेल प्रेमी जोड़ों का भी लेकिन इस विभाग को नशीले पदार्थों की रोकथाम से काम था. इसलिए न प्रेमी जोड़ों के काम में दखल देता और न ही पपाराजियों के. हां, उन की रोजाना रिपोर्ट पुलिस मुख्यालय में जरूर पहुंचती थी.

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Serial Story: धंधा (भाग-2)

शाम का अंधेरा गहरा रहा था. एक किश्ती की रस्सी खोल, दोनों उस पर सवार हो, बीच समुद्र में बढ़ चले. कई याटों पर सुरक्षाकर्मी डैक पर टहल रहे थे. एक बड़े लग्जरी याट के डैक पर कोई नहीं था.

एक प्लेटफौर्म समुद्र के पानी से थोड़ा ऊपर था. यह एक खुली लिफ्ट थी. इस पर 4 व्यक्ति एकसाथ ऊपर आजा सकते थे. रस्सियों वाली एक सीढ़ी साथ ही लटक रही थी. दोनों किश्ती को एक हुक से बांध सीढि़यां चढ़ते हुए ऊपर पहुंच गए. डैक सुनसान था. चालक कक्ष भी सुनसान था. डैक से सीढि़यां नीचे जा रही थीं. सारा याट सुनसान जान पड़ता था.

डैक से नीचे के तल पर एक बड़ा हाल था. उस में एक तरफ बार बना था. खुली दराजों में तरहतरह की शराब की बोतलें सजी थीं. कई छोटेछोटे केबिन एक कतार में बने थे. एक केबिन में रोशनी थी.

दरवाजे के ऊपर वाले हिस्से में एक गोलाकार शीशा फिट था. दबेपांव चलते दोनों ने दरवाजे के करीब पहुंच कर शीशे से अंदर झांका. दोनों के मतलब का दृश्य था.

अधेड़ अवस्था का एक पुरुष एक नवयौवना सुंदरी के साथ सर्वथा… अवस्था में मैथुनरत था. डेनियल ने सुब्बा लक्ष्मी की तरफ देखा, वह निर्लिप्त भाव से मुसकराई.

डेनियल ने अपना कैमरा निकाला और दक्षता से तसवीरें खींचने लगा. अभिसारग्रस्त जोड़ा उन्माद उतर जाने के बाद अलगअलग हो, गहरी सांसें भरने लगा.

थोड़ी देर बाद दोनों ने कपड़े पहने और बाहर को लपके. डेनियल और सुब्बा लक्ष्मी तुरंत बार काउंटर के पीछे जा छिपे. प्रेमी जोड़ा सीढि़यां चढ़ता ऊपर को गया. डेनियल ने शराब की 2 बोतलें उठा कर अपनी जैकेट की जेब में डाल लीं. दोनों दबे पांव चलते सीढि़यां चढ़ते डैक पर पहुंचे.

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प्रेमी जोड़ा लिफ्ट पर सवार हो रहा था. डेनियल ने उन की इस मौके की तसवीर भी ले ली. प्रेमी जोड़ा मोटरबोट पर सवार हो तट की तरफ चला. दोनों भी उतर कर किश्ती पर सवार हुए.

‘‘एक चक्कर इस याट के इर्दगिर्द लगाते हैं?’’

‘‘क्यों?’’ सुब्बा लक्ष्मी ने पूछा.

‘‘याट किस का है? यह पता लगाना जरूरी है.’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘हर किश्ती या छोटेबड़े जहाज पर उस का नाम व रजिस्ट्रेशन नंबर होता है. बिना पंजीकृत हुए कोई मोटरबोट, छोटाबड़ा समुद्री जहाज, स्टीमर कहीं भी समुद्र या नदी में नहीं चल सकता. पंजीकरण दफ्तर से इस याट के मालिक का नाम पता चल जाएगा,’’ डेनियल ने समझाया.

पंजीकरण रिकौर्ड में याट जैक स्मिथ नाम के बड़े व्यापारी के नाम दर्ज था. वह कई फैक्टरियों का मालिक था.

उस की निगहबानी करने से उस को उस की प्रेमिका का नाम भी पता चल गया. वह एक अन्य व्यापारी एंड्र्यू डैक की पत्नी मारलीन डैक थी.

‘‘तसवीरों का सैट किस को भेजना है?’’

‘‘इस मामले में प्रेमीप्रेमिका दोनों ही अमीर हैं. मेरे विचार में एकएक सैट दोनों को भेज देते हैं,’’ डेनियल ने कहा.

‘‘लेकिन पैसा एक ही पार्टी से मिलेगा. 2 किश्तियों की सवारी से नुकसान होता है.’’

‘‘इस में दोनों पक्ष ही पैसे वाले हैं.’’

‘‘ज्यादा लालच अच्छा नहीं होता. आप इन से कितना पैसा मांगेंगे?’’

‘‘देखते हैं.’’

एंड्र्यू डैक अपनी फैक्टरी के दफ्तर जाने के लिए कार पर सवार हो रहा था कि उस को डाकिया एक लिफाफा थमा गया. लिफाफा उस की पत्नी के नाम था. लिफाफा एक पत्र के बजाय किसी और मैटर से भरा था.

उत्सुकतावश उस ने लिफाफा खोल डाला. मैटर देखते ही वह गंभीर हो उठा और चुपचाप कार में बैठ गया. उस के इशारे पर शोफर ने कार आगे बढ़ा दी.

एंड्र्यू डैक अपनी पत्नी की चरित्रहीनता से वाकिफ था. वह उस को तलाक देना चाहता था लेकिन उस को एकतरफा तलाक देने की कार्यवाही करने पर हरजाने के तौर पर काफी मोटी रकम देनी पड़ती.

बिना हरजाना दिए तलाक लेने के लिए या तो उस की पत्नी भी स्वेच्छा से तलाक लेती या फिर उस को चरित्रहीन साबित करने के लिए उस के खिलाफ कोई सुबूत होता.

उस ने कई महीनों तक एक प्राइवेट जासूसी फर्म से अपनी पत्नी की जासूसी करवाई थी लेकिन मारलीन डैक काफी चालाक थी. वह किसी पकड़ में नहीं आई.

अब संयोग से चरित्रहीनता को साबित करते फोटो उस के पास आ गए थे. एंड्र्यू डैक समझ गया कि यह किसी शरारती फोटोग्राफर यानी पपाराजी का काम था.

अभिसार करने वाले मर्द जैक स्मिथ को पहचानता था. जैक स्मिथ के खिलाफ एक बात यह थी कि वह अपने बूते पर अमीर नहीं बना था. वह घरजमाई था. उस की पत्नी धनी बाप की इकलौती संतान थी. उस ने जैक स्मिथ से प्रेमविवाह किया था.

ऐसी तसवीरें जैक स्मिथ की पत्नी और उस के ससुर के सामने आने पर उस का फौरन तलाक होना निश्चित था. इस तरह एंड्र्यू डैक के हाथ पत्नी और उस के प्रेमी दोनों को अर्श से फर्श पर लाने का सुबूत लग गया था.

वह अनुभवी था. उस को पता था कि बिना फोटो के नैगेटिव और उन को खींचने वाले फोटोग्राफर की गवाही के इन को अदालत में पक्का सुबूत साबित नहीं किया जा सकता था. अदालत में विरोधी पक्ष उन को ट्रिक फोटोग्राफी कह कर खारिज करवा सकता था.

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‘‘कौन था यह पपाराजी?’’

जैक स्मिथ अपनी स्टेनो द्वारा लाई डाक देख रहा था. साधारण डाक अब कम आती थी.

‘‘सर, यह लिफाफा साधारण डाक से आया है.’’

किसी व्यावसायिक फोटोग्राफर द्वारा इस्तेमाल करने वाला लिफाफा था. तसवीरें देखते ही वह उछल पड़ा. उस के निजी याट पर इतनी सफाई से तसवीरें खींची गई थीं. उस को और मारलीन डैक को आभास तक न हुआ था.

तसवीरों के सार्वजनिक हो जाने के परिणाम के विचार से चिंतित हो उठा. उस की पत्नी और ससुर उस को बाहर निकाल एकदम सड़क पर खड़ा कर देंगे.

घबरा कर उस ने तुरंत मारलीन डैक को फोन किया.

‘‘क्या कह रहे हो? मैं ने तो हमेशा सावधानी बरती है. किसी जासूस को भी भनक तक नहीं हुई.’’

‘‘यह किसी जासूस का काम नहीं है. यह किसी प्रोफैशनल फोटोग्राफर का काम है, जिस का मकसद ऐसी तसवीरें खींच कर ब्लैकमेल करना होता है. मेरा अंदाजा है कि ऐसा लिफाफा तुम्हारे पास भी आया होगा,’’ जैक स्मिथ ने कहा.

‘‘मुझे तो नहीं मिला या पता नहीं, मेरे हसबैंड को डाकिया थमा गया हो,’’ मारलीन डैक ने चिंतित स्वर में कहा. पति को ऐसी तसवीरों का मिलना, मतलब बिना हरजाना दिए एकदम से तलाक.

‘‘यह शरारती फोटोग्राफर कौन है?’’ उस ने पूछा.

‘‘हौसला रखो, जल्द ही पैसे की मांग के लिए उस का फोन आएगा,’’ जैक स्मिथ ने धैर्य बंधाते हुए कहा जबकि वह खुद घबराया हुआ था.

उधर, सरदार ओंकार सिंह लायलपुरी ने जल्दबाजी में ब्लैकमेलर को एक लाख डौलर दे तो दिए थे मगर बाद में उस को खुद पर गुस्सा आ रहा था. वह पाईपाई जोड़ कर अमीर बना था. पैसे की कीमत जानता था.

उस को उम्मीद थी कि पैसा लेने के लिए ब्लैकमेलर सामने आएगा. सारे न्यूयार्क के चप्पेचप्पे से वाकिफ होने के कारण वह हर व्यवसाय के प्रमुख व्यक्तियों को जानता था. शहर में फोटोग्राफर थे कितने? एक दफा ब्लैकमेलर का चेहरा सामने आ जाता, फिर वह पंजीकरण विभाग से उस की फोटो निकलवा उस को काबू कर लेता.

लेकिन डेनियल भी पूरा घाघ था. वह उस के सामने हैल्मेट पहने आया था और पैसे का पैकेट थामते ही ये जा, वो जा.

ओंकार सिंह अपने घनिष्ठ मित्र सरदार वरनाम सिंह, जो कभी उसी के समान टैक्सी चालक था और अब टैक्सियों का भारी बेड़ा रखता था और खुद टैक्सी न चला किराए पर देता था, के पास पहुंचा.

‘‘ओए, खोते दे पुत्तर, इस उम्र में लड़की जवानी दा चक्कर. कुछ तो शर्म कर,’’ सारा मामला जानने के बाद वरनाम सिंह ने उस को झिड़कते हुए कहा.

‘‘यार, तेरी भाभी सहयोग नहीं करती.’’

‘‘इस उम्र में परजाई क्या कर सकती है? तुझे चुम्माचाटी ही करनी थी तो बंद कमरे में करता, खुले समुद्र तट पर क्यों गया था? अब बता क्या चाहता है?’’

‘‘इस फोटोग्राफर को काबू करना है.’’

‘‘वह काबू आ भी जाए तब क्या करेगा. 1 लाख डौलर थमा दिए, अब चुपचाप गम खा ले. मामला सार्वजनिक हो गया तो तेरी बदनामी ही होगी.’’

लेकिन ओंकार सिंह पर इस नेक सलाह का कोई असर नहीं हुआ, वह यह नहीं भूल पा रहा था कि एक शरारती फोटोग्राफर ने इस तरह बदनामी करने की धमकी दे कर उस से 1 लाख डौलर झटक लिए हैं.

वह पुराना खिलाड़ी होते हुए भी मात खा गया था. अब वह हर हालत में उस को काबू करना चाहता था.

इधर, अब जैक स्मिथ के लैंडलाइन पर फोन आया.

‘‘क्या चाहते हो?’’‘‘10 लाख डौलर.’’

‘‘दिमाग खराब हुआ है.’’

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‘‘जनाब, आप की माली हैसियत और सामाजिक हैसियत काफी ऊंची है, उस को देखते यह मामूली रकम है.’’

‘‘यों बदमाशी करते किसी की तसवीरें खींचना जुर्म है, पुलिस में रिपोर्ट कर दूं तो सीधे 10 साल के लिए नप जाओगे.’’

‘‘जनाब, ऐसी बातों में कुछ नहीं रखा. आप बताइए, रकम दे रहे हो या नहीं?’’

‘‘इतनी बड़ी रकम, ज्यादा से ज्यादा 10 हजार डौलर.’’

‘‘नहीं जनाब, पूरे 10 लाख डौलर. मैं कल फिर फोन करूंगा,’’ फोन कट गया.

जैक स्मिथ ने कौलर आइडैंटिटी की स्क्रीन पर नजर डाली. फोन किसी सार्वजनिक बूथ से किया गया था. उस ने टैलीफोन डायरैक्ट्री से नंबर खोजा. फोन जिस एरिया से आया था, उस को नोट कर लिया.

जैक स्मिथ के बाद डेनियल ने एंड्र्यू डैक को फोन किया. एंड्र्यू डैक जैसे उस के फोन का इंतजार कर रहा था. मरदाना आवाज सुनते डेनियल चौंका. उसे तो मारलीन डैक से बात करनी थी.

‘‘मुझे मैडम मारलीन डैक से बात करनी है.’’

‘‘मैं उस का पति बोल रहा हूं. तसवीरों का लिफाफा तुम ने ही भेजा था?’’

अब डेनियल उलझन में था. लिफाफा पत्नी के बजाय पति को मिल गया था. अब ब्लैकमेल कैसे करे. तसवीरें पति के सामने आ चुकी थीं. पत्नी अब पैसा किस बात का देगी?

‘‘हैलो, तुम ने ब्लैकमेल करने के इरादे से तसवीरें खींचीं. तुम कितना पैसा चाहते हो?’’ एंड्र्यू डेक के इस सीधे सवाल पर डेनियल सकपका गया. ऐसा सवाल मारलीन डैक करती तो समझ भी आता.

वह खामोश रहा.

‘‘देखो, अगर तुम इन तसवीरों के नैगेटिव और अदालत में गवाही देने को तैयार हो जाओ तो जो पैसा तुम मेरी पत्नी से चाहते हो वह मैं दूंगा.’’

‘‘गवाही, किस बात की गवाही?’’ उलझनभरे स्वर में डेनियल ने पूछा.

‘‘मुझे अपनी पत्नी को तलाक देना है. उस को चरित्रहीन साबित करने के लिए ऐसे फोटोग्राफ खींचने वाली गवाही चाहिए.’’

अब डेनियल को मामला समझ आ गया था. एंड्र्यू डैक काफी अधीर था. साधारण तरीके से तलाक का मुकदमा डालने पर उस को मोटा हरजाना देना पड़ता. लेकिन पत्नी के चरित्रहीन साबित हो जाने पर उस को बिना हरजाना दिए उस से तलाक मिल जाना था.

‘‘10 लाख डौलर.’’

‘‘पागल हुए हो. शरारती फोटोग्राफर को 500 डौलर, ज्यादा से ज्यादा 1 हजार मिल जाते हैं. यह एक अपराध है. मैं तुम्हें ज्यादा से ज्यादा 1 लाख डौलर दे सकता हूं.’’

‘‘ओके. मैं सोच कर तुम्हें दोबारा फोन करूंगा.’’

‘‘अब आप क्या करेंगे?’’ मारलीन डैक ने अपने प्रेमी जैक स्मिथ से पूछा.

‘‘इस पपाराजी का पता लगाऊंगा.’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘अपने तरीके से. एक बार वह काबू में आ जाए.’’

अभी तक डेनियल ने जिन जोड़ों के अश्लील फोटो खींचे थे, वे किसी विशेष स्थिति में थे और खानदानी अमीर नहीं थे.

क्रमश

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Serial Story: धंधा (भाग-1)

सरदार ओंकार सिंह लायलपुरी ने लवलीन मुनरों को बांहों में भरा और एक जोरदार चुंबन उस के गाल पर जड़ा, फिर अपने होंठ उस के होंठों की तरफ बढ़ाए, तभी एक फ्लैशलाइट चमकी. दोनों ने सकपका कर सामने देखा, तभी दूसरी फ्लैशलाइट चमकी. फिर एक मोटरसाइकिल के स्टार्ट होने और तेजी से जाने की आवाज.

‘‘क्या हुआ है यह?’’ अपनेआप को सरदार साहब की बांहों से छुड़ाती लवलीन ने पूछा.

‘‘कोई शरारती फोटोग्राफर हमारी फोटो खींच कर भाग गया.’’

‘‘वह क्यों?’’ लवलीन मुनरों, जो स्थानीय विश्वविद्यालय में स्नातकोत्तर कक्षा में पढ़ाती थी और जिस की उम्र मात्र 22 साल थी, ने पूछा.

‘‘ब्लैकमेल करने के लिए. हमारे पास नमूने के तौर पर इन तसवीरों का एक सैट आएगा. फिर हमारे पास फोन आएगा, हम से पैसा मांगा जाएगा. पैसा नहीं देने पर इन तसवीरों को अखबारों में छपवाने व इंटरनैट पर जारी करने की धमकी दी जाएगी,’’ सरदार साहब ने विस्तार से समझाया.

‘‘इस से तो मैं बदनाम हो जाऊंगी,’’ चिंतातुर स्वर में लवलीन ने कहा.

‘‘हौसला रखो, ऐसे शरारती फोटोग्राफर, जिन को पपाराजी कहा जाता है, हर बड़े नगर में होते हैं. मुझे इन से निबटना आता है.’’

दोनों की शाम का मजा खराब हो गया था. दोनों समुद्र तट से सड़क के किनारे खड़ी गाड़ी में बैठे. कार न्यूयार्क की तरफ चल पड़ी.

सरदार ओंकार सिंह लायलपुरी 60 बरस का था लेकिन तंदुरुस्ती के लिहाज से 40 साल का लगता था. वह न्यूयार्क में एक रैस्टोरेंट की शृंखला का मालिक था. वह कभी न्यूयार्क में टैक्सी चलाता था. फिर एक छोटा सा रैस्तरां खोला और धीरेधीरे तरक्की करता अब अनेक रैस्तराओं का मालिक था.

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कारोबार अब दोनों बेटे देखने लगे थे. सरदार साहब के पास पैसा और समय काफी था. उस की पत्नी भी उसी की तरह 60 बरस की थी लेकिन वह एक बुढि़या नजर आती थी. वह अपना समय पोतेपोतियों को खिलाने में और घर की अन्य गतिविधियों में शिरकत कर बिताती थी. सरदारनी में यौन इच्छा नहीं रही थी लेकिन सरदार अब भी घोड़े के समान था. अपनी इच्छापूर्ति के लिए  वह कभी किसी कौलगर्ल, कभी किसी अन्य को बुलाता था. एक एजेंट के मारफत उस का संपर्क विश्वविद्यालय में पढ़ने वाली अनेक श्वेतअश्वेत अमेरिकी छात्राओं से बन गया था. ऐसी बालाएं तफरीह और मौजमस्ती के लिए ऐसे जवां और ठरकी बूढ़ों के मनबहलाव के लिए आ जाती थीं. सरदार साहब शाम को ऐसी किसी लड़की को अपनी कार में ले कर किसी सुनसान समुद्र तट पर पहुंच जाता. समुद्र तट पर छितरे पाम के पेड़ों के पीछे, चट्टानों के पीछे, इधरउधर उन्हीं के समान चूमाचाटी, मौजमस्ती में लीन पड़े जोड़े होते थे.

अधिकांश जोड़े बेमेल होते थे. मर्द 60 साल का होता था जबकि लड़की  20-22 साल की. औरत 60 साल की होती थी, दिल बहलाने वाला छैला 25-30 का. अधिक उम्र वाला धनी होता था. कम उम्र वाला गरीब या मामूली हैसियत का. लवलीन मुनरों को उस के होस्टल के बाहर उतार कर ओंकार सिंह अपने घर, जो एक महल के समान बड़ी कोठी थी, में पहुंचा. वह चिंतातुर था. निकट भविष्य में स्टेट काउंसिल का चुनाव लड़ रहा था. कई साल स्थानीय निकाय का सदस्य चुना जाता रहा था. अब वह राज्य स्तर पर उभरना  चाहता था. बाद में सीनेटर बन अमेरिका की लोकसभा में जाना चाहता था.

कोई भी स्कैंडल अमेरिका में राजनीति के क्षेत्र में किसी का भविष्य एकदम बिगाड़ देता था. पपाराजी या शरारती फोटोग्राफर द्वारा खींची तसवीरें सार्वजनिक हो जाने पर सरदार ओंकार सिंह लायलपुरी का राजनीतिक कैरियर एकदम तबाह कर सकती थीं.

डेनियल एक शरारती फोटोग्राफर या पपाराजी था. वह एक श्वेत अमेरिकी और नीग्रो मां की दोगली संतान था. उस का रंगरूप एक भारतीय जैसा था. पहले वह एक फोटोग्राफर के यहां असिस्टैंट था. बाद में उस ने अपना फोटोग्राफी का स्वतंत्र व्यवसाय आरंभ किया था. एक दफा एक कंपनी ने उस को विरोधी कंपनी की जासूसी के लिए कुछ तसवीरें खींचने को नियुक्त किया. तसवीरें कंपनी के डायरैक्टर की उस की प्रेमिका के साथ मौजमेले की थीं.

इस काम के बदले उस को मोटी धनराशि मिली थी. इस के बाद वह अपने साफसुथरे फोटोग्राफी के धंधे की आड़ में एक पपाराजी बन गया था. सुब्बा लक्ष्मी दक्षिण भारत से अमेरिका एक हाउस मेड के तौर पर आई थी. एक ही इलाके में रहते हुए उस की जानपहचान डेनियल से हो गई थी. दोनों में आंखें चार हो गई थीं. वह भी फोटोग्राफी सीख अब डेनियल के साथ फोटोग्राफी करती थी.

दोनों हर शाम कभी मोटरसाइकिल से, कभी कार द्वारा समुद्र तट पर व अन्य प्रेमालाप के लिए उपयुक्त दूसरे एकांत स्थलों पर पहुंच जाते थे. इन स्थलों पर अनेक बेमेल जोड़े प्रेमालाप में लीन होते थे. वे पहले उन की निगाहबानी करते थे. फिर अपना शिकार छांट कर उस जोड़े की अंतरंग तसवीरें इन्फ्रारैड कैमरे, जिन में फ्लैशलाइट की जरूरत नहीं पड़ती थी, से खींचते थे. फिर पार्टी को चौंकाने के लिए फ्लैशलाइट की चमक इधरउधर मारते और भाग जाते थे.

बाद में तसवीरें साधारण डाक से भेज कर फोन करते और ब्लैकमेल के तौर पर छोटीबड़ी रकम मांगते. पार्टी, जो आमतौर पर बूढ़ा धनपति या अमीर बुढि़या होती थी, बदनामी से बचने के लिए उन को चुपचाप पैसा दे देती थी.

‘‘यह सरदार सुना है काफी अमीर है,’’ आज डिजिटल कैमरे से खींची तसवीरों के पिं्रट देखते हैं,’’ सुब्बा लक्ष्मी ने कहा.

‘‘हां, यह एक रैस्तरां की एक बड़ी शृंखला का मालिक है.’’

‘‘लड़की कौन है?’’

‘‘पता नहीं, मेरा अंदाजा है, कोई स्टूडैंट है. पैसा और मौजमस्ती के लिए लड़कियों का ऐसे बूढ़े या अधेड़ों के साथ मस्ती करना आम बात है.’’

‘‘तसवीरें तो सरदार को ही भेजनी हैं.’’

सरदार ओंकार सिंह ने गहरी नजरों से तसवीरों के सैट को देखा. वह कभी फोटोग्राफी का शौकीन था. टैक्सी चालक रहा था. कई साल अविवाहित रहते इच्छापूर्ति के लिए कौलगर्ल्स या अन्य औरतों से समागम करता रहा था.

लेकिन अब एक सम्मानित शहरी बन जाने पर, खासकर नगरपालिका का मेयर होते हुए और स्टेट काउंसिल का चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार के लिए ऐसी तसवीरों का सार्वजनिक होना शर्मनाक था.

‘‘सरदार साहब, तसवीरें मिलीं आप को?’’ लैंडलाइन फोन पर डेनियल ने फोन कर के पूछा.

‘‘हां, क्या चाहते हो?’’

‘‘10 लाख डौलर.’’

‘‘दिमाग खराब हुआ है. ज्यादा से ज्यादा 500 डौलर.’’

‘‘सरदार साहब, आप की जो हैसियत है उस के लिहाज से 10 लाख डौलर ज्यादा नहीं हैं, ऊपर से आप स्टेट काउंसिल का चुनाव लड़ रहे हैं,’’ डेनियल के शब्दों में कुटिलता थी.

सरदार तिलमिलाया. यह पपाराजी सामने होता तो वह उस को कच्चा चबा डालता. उस ने फोन के कौलर आइडैंटिटी पर नजर डाली. फोन सार्वजनिक टैलीफोन बूथ से किया जा रहा था. ब्लैकमेलर चालाक था.

‘‘देखो, तुम ज्यादा हवा मत लो. अमेरिका में पपाराजी अपराध है. पुलिस में रिपोर्ट करते ही तुम अंदर हो जाओगे.’’

‘‘यह सब होतेहोते होगा. लेकिन आप की तसवीरें सार्वजनिक होते ही आप का राजनीतिक कैरियर खत्म हो जाएगा. साथ ही, बदनामी भी होगी.’’

‘‘तेरी ऐसी की तैसी, फोटोग्राफर,’’ सरदार फुफकारा.

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‘‘ज्यादा गुस्सा सेहत के लिए खतरनाक होता है, खासकर 60 साल की उम्र में.’’ सरदार खामोश रहा.

‘‘सरदार साहब, कल शाम तक आप 1 लाख डौलर दे देना. नहीं तो तसवीरें पहले अखबार वालों को, फिर इंटरनैट पर जारी हो जाएंगी.’’

‘‘इस बात की क्या गारंटी है, तुम भविष्य में तसवीरें सार्वजनिक नहीं करोगे और दोबारा ब्लैकमेल नहीं करोगे?’’

‘‘सरदार साहब, ऐसी सूरत में आप पुलिस को रिपोर्ट कर सकते हैं.’’

‘‘पैसा कहां देना है?’’

‘‘आप फटाफट मुझे अपना मोबाइल फोन नंबर बताओ.’’

सरदार साहब ने नंबर बताया.

‘‘ओके. कल शाम आप जैसे रोज सैरसपाटे के लिए निकलते हैं, निकलेंगे. तब मैं रास्ते में आप को फोन कर के कहीं भी पेमैंट ले लूंगा.’’

अगली शाम सरदार अपनी कार पर समुद्र तट को निकला. डेनियल हैल्मेट पहनेपहने बाइक पर सवार हो पीछेपीछे चला. एक सुनसान स्थान पर फोन आते ही सरदार ने कार रोकी. डेनियल हैल्मेट पहने सामने आया. सरदार ने खिड़की खोल एक लिफाफा उस को थमा दिया.

पहली बार एक लाख डौलर मिले थे. अब से पहले ज्यादा से ज्यादा 5 या 10 हजार डौलर ही मिले थे. डेनियल का हौसला और लालच बढ़ गया.

अभी तक वह समुद्र तट पर चट्टानों के पीछे, यहांवहां पाम के नीचे प्रेमालाप में लीन प्रेमी जोड़ों की तसवीरें खींचता था. अब उस की निगाह समुद्र के बीच खड़े छोटेछोटे समुद्री जहाज, जिन्हें आम भाषा में याट कहा जाता था, पर पड़ी.

ये याट अमीर लोगों के थे जो इन पर समुद्र विहार करते थे. कई याटों पर सुरक्षाकर्मी थे.

‘‘क्यों न आज किसी याट पर चलें?’’ मोटरसाइकिल को एक तरफ खड़ी करते डेनियल ने कहा.

‘‘पागल हुए हो, पकड़े गए तो?’’

‘‘देखेंगे, अमीर लोग छिपछिप कर इन में कैसी रंगरेलियां मनाते हैं.’’

समुद्र तट पर अनेक जगह कटाफटा स्थान था. रेतीले सपाट समुद्र तट के बजाय ऐसा कटाफटा तट किश्तियों को बांधने के लिए उपयुक्त था. इस तट पर कई अमीर लोगों ने निजी पायर यानी सीमेंट के चबूतरे बना कर अपनीअपनी मोटरबोटें या चप्पुओं से चलने वाली नौकाएं बांध रखी थीं.

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अंत: श्रीकांत और सुलभा जब आए पास

Serial Story: अंत (भाग-3)

कभीकभी इंसान को जब कोई विकल्प सामने नजर नहीं आता तो उस का सब्र सारी सीमाएं तोड़ कर ज्वालामुखी के लावे सा रिसने लगता है. ऐसा ही एक दिन श्रीकांत के साथ भी हुआ था. सजीसंवरी, खुशबू से सराबोर हेमा घर से निकल कर कार की तरफ मुड़ रही थी कि श्री उस का मार्ग रोक कर खड़े हो गए थे.

‘कैसी मां हो तुम? किस कुसूर की सजा दे रही हो तुम अपनी बच्ची को? आखिर कब तक घरगृहस्थी और अपनी बेटी के प्रति दायित्वों से मुंह मोड़ कर दूर भागती फिरोगी?’

‘सजा कुसूरवार को दी जाती है श्रीकांत. तुम ने तो कुसूर किया ही नहीं है. मैं तुम्हें सजा कैसे दे सकती हूं? मैं ने तो सुहागरात को ही तुम से स्पष्ट शब्दों में कह दिया था कि महेश को भुलाने में मुझे समय लगेगा. तुम कहो तो मैं यहां रहूं, नहीं तो, जा भी सकती हूं. मेरी तरफ से तुम भी पूर्णरूप से स्वतंत्र हो.’

संवेदनशील श्रीकांत, पत्नी का चेहरा निहारते रह गए थे. ‘क्या अनैतिक संबंधों का पलड़ा, नैतिक संबंधों की मर्यादा से भी भारी हो सकता है?’ यही सोचसोच कर वे घुटते रहे थे.

बेटे का दुख अरुंधतीजी के शरीर को घुन की तरह खाता जा रहा था. हर समय खुद को श्रीकांत का दोषी समझतीं. कमलापतिजी ने तो अपने गर्व और अभिमान के वशीभूत हो कर सुलभा का रिश्ता ठुकरा दिया था किंतु वे तो मां थीं. विरोध कर सकती थीं पति की सोच का. ऐसे मानसम्मान और दहेज का क्या करें, जिस ने उन के बेटे का जीवन ही बरबाद कर दिया. कई बार मन में आता, दुर्गाप्रसादजी से बात करें, शायद वे ही बेटी को समझा सकें किंतु फिर मन में डर उपजता कि स्थिति कहीं और विस्फोटक न हो जाए. बेटे का जीवन उन्हें मझधार में फंसी हुई उस नाव के समान लगता था जिस का कोई किनारा ही न हो. भारीभरकम शरीर जर्जरावस्था में पहुंच गया था. जबान तालू से चिपकती गई. और एक दिन देखते ही देखते उन के प्राण पखेरू उड़ गए.

श्रीकांत अकेले रह गए थे इस संसार में. वह कंधा, जिस पर सिर रख कर वे अपना मन हलका कर लेते थे, वह भी छिन गया था. 13 दिन रह कर श्री वापस लौट आए थे. मां की तरह देवयानी ताई भी उन्हें भरपूर स्नेह देती थीं. उन के साथ बैठ कर दुखसुख बांट लेते थे.

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हेमा ने तो 13 दिन श्वेत वस्त्र धारण कर के, आंसू के 2-4 कतरे बहाए और फिर लौट गई अपनी दिनचर्या में. बाहरी चकाचौंध के सामने उस की नजरों में पति का दुख काफी छोटा था.

एक दिन, एकाकी श्रीकांत छत पर अकेले बैठे चांदनी निहार रहे थे. मां को याद कर के कभी हंसते, कभी रो पड़ते. देवयानी ताई उन्हें ढूंढ़ते हुए छत पर पहुंच गई थीं. श्रीकांत के मौन को तोड़ने के उद्देश्य से उन्होंने पूछा, ‘हेमा कहां गई?’

‘मुझे नहीं मालूम.’

‘बता कर या पूछ कर भी नहीं जाती?’ उन्होंने साधिकार प्रश्न किया था.

‘नहीं,’ उन्होंने ताई का प्रश्न सुन कर छोटा सा उत्तर दिया था.

‘तू क्यों नहीं साथ जाता?’

‘मैं?’ श्रीकांत, फीकी हंसी हंस दिए थे, ‘मैं कैसे चला जाऊं? वह हर जगह अकेले ही जाना पसंद करती है.’

‘अकेले?’ देवयानी ताई ने चौंक कर कहा था, ‘गुड़गांव साइबर सिटी में मेरी बेटी शालिनी का औफिस है. दामाद भी वहीं बैठते हैं. दोनों ने हर दिन कार में एक पुरुष के साथ उसे आतेजाते देखा है.’

जेहन में चुभता सोच का टुकड़ा अंतर्मन के सागर में फेंक कर श्रीकांत निष्प्रयत्न बोले, ‘ताई, मुझे सब मालूम है. बड़ों की सामाजिक मर्यादा और अपनी इकलौती बेटी की खातिर ही सब बरदाश्त कर रहा हूं. लोगों को जरा सी भी भनक पड़ गई कि लड़की की मां बदचलन है तो उस की जिंदगी बरबाद हो सकती है.’

‘कौन है यह पुरुष?’

‘महेश, हेमा का पुराना प्रेमी.’

फिर तो प्याज के छिलकों की तरह श्रीकांत के अवसाद की एकएक तह खुलती गई. उन का दुख उस सड़क की भांति था जो कहीं नहीं पहुंचती. बस, भूलभुलैया की तरह उलझाए रखती है.

‘सब के सामने उसे अपना बड़ा भाई बताती है लेकिन परदे के पीछे कुछ और ही चलता है. बुटीक जाने का तो एक बहाना है. दरअसल, वह महेश की बिखरी गृहस्थी संभालने जाती है.’

‘लेकिन, महेश तो अमेरिका में था.’

देवयानी ताई श्रीकांत की जिंदगी से जुड़ी, किसी भी बात से अनभिज्ञ नहीं थीं. हेमा के रंगढंग भी तो ऐसे ही थे. इस परिवार की घनिष्ठ थीं वे, शुभचिंतक भी थीं.

‘महेश का अपनी पत्नी से तलाक हो गया है. दरअसल, उस की पत्नी को हेमा और महेश के प्रेमसंबंधों के बारे में पता चल गया था. महेश ने लाख झुठलाया, पत्नी को समझाया, लेकिन हेमा और महेश के बीच नियमित रूप से चल रहे फोन कौल और मैसेज इस बात का साक्ष्य थे कि दोनों के बीच अब भी कोई गहरा संबंध है.’

‘ये बातें तुम्हें किस ने बताईं?’

‘स्वयं हेमा ने. पत्नी से तलाक हो जाने के बाद महेश दिनरात शराब पीता है. लिवर में सूजन आ गई है. उसे ले कर हेमा अस्पतालों के चक्कर काटती रहती है. एक डाक्टर से दूसरे डाक्टर, एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल. यही दिनचर्या रह गई है उस की. कुछ कहता हूं तो कहती है, तुम्हारा कोई भाईबहन नहीं है, इसीलिए तुम मेरा दुख नहीं समझ पा रहे हो.’

‘श्रीकांत, वह तो ठीक है, मगर कुछ तो तुम्हें भी करना होगा. घुलने से अच्छा है उसे घुलाओ. महेश और हेमा के बीच दीवार खड़ी करो. अपने जायज हक के लिए लड़ो तो,’ ताई का सब्र जवाब देता जा रहा था.

‘मगर कैसे? हेमा से कहता हूं तो कहती है, तुम मुझे मरा हुआ क्यों नहीं समझते? दिल बेचैनियों से सराबोर हो जाता है. जायज हक पाने के लिए मुझे हेमा से दूर रहना पड़ेगा, जिस का असर मेरी बेटी पर पड़ेगा. बस, इसीलिए विवश हो कर सह रहा हूं. बेटी के ब्याह के बाद ही कुछ करूंगा. फिलहाल तो इस घुटनभरे माहौल में रह कर, खुद को मजबूत बनाना है.’

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वक्त का पहिया अपनी गति से चलता रहा. कशिश, डाक्टर बन गई. अपने कालेज जीवन में ही उस ने जीवनसाथी भी चुन लिया. डा. विक्रम कौल. दद्दा ने सुना तो अपना नादिरशाही फरमान जारी कर दिया था :

‘हम ब्राह्मण हैं, विक्रम कश्मीरी. न विचार मिलेंगे, न रीतिरिवाज.’

‘यह आप ने कैसे कह दिया? एक बार मिल तो लीजिए विक्रम से. मुझे पूरा विश्वास है वह आदर्श दामाद और अच्छा पति साबित होगा,’ कशिश ने दद्दा के स्वर से 1 डिगरी ऊंचे स्वर में बात की तो दद्दा चुप हो गए थे.

श्रीकांत हैरान रह गए थे बेटी के दृढ़ स्वर को सुन कर. सोच रहे थे, कितना अंतर आ गया है समय में. वर्ग, धनसंपदा, जांतिपांति जैसी बातों की उखाड़पछाड़ न कर के युवकयुवतियों का स्वयं जीवनसाथी पसंद करना, मातापिता के हृदय में आए उदार परिवर्तन, ये सब 25 साल पहले क्यों नहीं थे?

शादी की तैयारियां शुरू हो गई थीं. शौपिंग, कैटरिंग, फार्महाउस की बुकिंग, जेवरातों की खरीदफरोख्त. इन सब में कैसे समय बीत जाता, पता ही नहीं चलता था. शगुनों के समय औरतें सुहाग गा रही थीं. बंदनवार सजे हुए थे. पकवानों की खुशबू से पूरा आंगन महक रहा था. 7 बजे वर पक्ष के लोग पहुंचने वाले थे.

‘हेमा कहां है?’ देवयानी ताई ने श्रीकांत से पूछा था.

‘यहीं कहीं होगी.’

‘दिखाई तो नहीं दे रही?’ देवयानी ने बारबार अपना प्रश्न दोहराया तो श्रीकांत के आक्रोश का लावा राख में दबी चिंगारी की तरह धधक उठा था, ‘आप तो जानती हैं उस का होना न होना बराबर है. आज भी सुबह से ही महेश के घर पर है.’

‘आज भी?’

‘हूं, महेश की हालत गंभीर है. कैंसर आखिरी स्टेज पर है.’

‘शाम तक तो आ जाएगी?’ कहीं श्रीकांत की तपस्या अकारथ तो नहीं चली जाएगी, यही सोच कर बारबार वे श्रीकांत से पूछ रही थीं. पर श्रीकांत ने कोई उत्तर नहीं दिया था.

ठीक 7 बजे कश्मीरी सुहाग चिह्न ‘अटेरू’ धारण किए हुए कुछ महिलाएं हौल में प्रविष्ट हुईं. साथ में पुरुष भी थे. सिल्क के कुरतेपजामे के ऊपर गरम शौल और सिर पर टोपी. ऐसा लगा जैसे पूरा कश्मीर ही सिमट आया था उस बडे़ से हौल में. आमनेसामने सोफे पर बैठे दोनों समधियों ने फूलों का गुलदस्ता आपस में बदल कर, कशिश और विक्रम के संबंध को मान्य ठहराते हुए और भी मजबूत बना दिया था. फूलों से सजे झूले पर कशिश और विक्रम ने हीरों से दमकती अंगूठी एकदूसरे की उंगली में पहनाई तो श्रीकांत ने आशीर्वचनों से बेटीदामाद की झोली भर दी थी.  तभी नाभिदर्शना साड़ी, कटे हुए बाल, गहरे कटावदार गले का ब्लाउज पहने इधरउधर डोलती हेमा, न जाने कहां से प्रकट हुई. श्रीकांत ने एक उड़ती हुई सी निगाह उस पर डाली, फिर मेहमानों की आवभगत में जुट गए. हेमा जैसे ही शगुन के किसी सामान को हाथ लगाती, श्रीकांत के दांत भिंच जाते. फिर अभ्यागतों का ध्यान कर के उस सामान को आगे सरका देते.

रात 11 बजे तक गानाबजाना चलता रहा. कशिश और विक्रम की खूबसूरत जोड़ी देख सभी खुश थे. इस समय हेमा के व्यवहार में एक आदर्श पत्नी और गौरवशाली मां का बोध था. श्रीकांत सब के सामने तो हेमा के साथ सहजता से पेश आ रहे थे पर भीड़ छंटते ही उस से दूर छिटक जाते थे. जैसे दोनों के बीच कोई रिश्ता ही न हो. देखने वाले, चाहे उन की तटस्थता का मूल कारण समझ नहीं रहे थे, क्योंकि जिंदगी के उन कड़वे वर्षों के विषय में उन्हें जानकारी ही कहां थी जो उन्होंने हेमा के साथ बिताए थे. स्वयं श्रीकांत ने ही तो अपने मरुस्थलनुमा जीवन पर परदा डाला हुआ था.

कशिश और विक्रम परिणयसूत्र में बंध गए. कशिश की विदाई के बाद श्रीकांत को अकेलापन बुरी तरह कचोटने लगा था, जैसे कुछ भी नहीं रह गया था करने के लिए. स्थानीय ससुराल होने के कारण बेटीदामाद अकसर आते रहते थे. समधी भी सज्जन थे. उन का ध्यान रखते थे. पर दूसरों के आसरे तो जीवन नहीं कटता.

श्रीकांत की दिनचर्या अब गरीबों, दीनदुखियों और बेसहारा लोगों की सेवासुश्रूषा में बीतने लगी. शुरू से ही उन्हें गरीबों की सेवा करने का मन था, अब और भी लगने लगा. एक दिन उन्होंने अपनी सारी जमापूंजी और फ्लैट बेच कर गे्रटर नोएडा में एक प्लौट खरीदा और एक आश्रम के निर्माणकार्य में जुट गए. हेमा भी अब उन का हाथ बंटाने के लिए हर समय तत्पर रहती थी. वह जितना उन से और बेटीदामाद से जुड़ने का प्रयत्न करती, सब उस से दूर छिटक जाते.

अपनी अवहेलना, हेमा बरदाश्त नहीं कर पा रही थी. शुरू से ही अभिमान की भावना उस में कूटकूट कर भरी थी. एक दिन साहस बटोर कर श्रीकांत से बोली, ‘श्रीकांत, मुझे माफ कर दो, थोड़ा सा सहारा दे दो. तुम्हारे आश्रम में मेरा भी योगदान रहेगा,’ हेमा लगभग गिड़गिड़ा रही थी.

‘हेमा, मैं खुद असहाय हूं. फिर किसी का सहारा कैसे बन सकता हूं? सारी उम्र इसी आस में जीता रहा कि कभी तो तुम्हें अपने दायित्वों का बोध होगा. फिर कशिश की खातिर जीता रहा. तुम्हें तो उस की भी परवा नहीं थी. लेकिन मैं उसे राह दिखाता रहा. मैं ने 25 वर्ष का कारावास झेला है. अब अपने दायित्वों से मुक्त हो पाया हूं. इसीलिए बिना किसी व्यवधान के खुली हवा में सांस लेना चाहता हूं,’ श्रीकांत ने दुखी स्वर में कहा.

‘श्रीकांत, मेरी आंखों के आगे गर्दोगुबार ही उड़ रहा है. इस बुढ़ापे के प्रभात में तुम्हें छोड़ कर मेरा कोई सहारा नहीं है,’ उस के स्वर में अनुनय का पुट था.

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हेमा के विषय में श्रीकांत को जानकारी मिलती रहती थी. महेश की मृत्यु हो गई थी. उस का जो कुछ रुपयापैसा था, उस के भाईभतीजे ले गए. हेमा के पास अब कुछ नहीं था. वह पाईपाई के लिए मुहताज हो गई थी.

‘श्रीकांत, तुम मेरे अंधेरे जीवन की चांदनी हो. एक ऐसी चांदनी जो सींखचों में कैद रही. अब तुम मेरे जीवन को अपनी चांदनी में नहला कर मेरे गुनाह माफ कर दो,’ हेमा अब भी श्रीकांत के चरण पकड़े हुए थी.

‘हेमा, संध्या के धूमिल प्रहर में कोई सवेरे का वरदान मांगे तो यह उस की भूल है. मुझे बहकाना बंद करो. आज भी तुम्हें तुम्हारी जरूरत ने मजबूर किया है वरना क्या 25 वर्षों के साथ ने तुम्हें मुझ से न जोड़ा होता? तुम मुझे समझ नहीं सकीं पर मैं तुम्हें समझ चुका हूं. अपने प्यार, विश्वास और रिश्ते के कारण तुम्हें बदलने का प्रयास करता रहा. पर अब नहीं.’

तभी कशिश और विक्रम, कमरे में आए थे. शाम का समय, मरीजों के लिए तय था. एक प्यारभरी दृष्टि कशिश पर उकेर कर हेमा ने कहा, ‘मैं खुशनसीब हूं कि मुझे इतनी प्यारी बेटी मिली.’

सैलाब के क्षणों में जैसे समूची धरती उलटपलट जाती है वैसे ही कशिश के अंतस में भयावह हाहाकार जाग उठा था, बिना एक क्षण गंवाए ही वह तपाक से बोली, ‘मैं जो कुछ भी हूं अपने पापा की बदौलत हूं. उन का त्याग मैं कभी नहीं भूल सकती.’

‘और मैं? मैं तुम्हारी मां हूं, कशिश. मैं ने तुम्हें जन्म दिया है, बेटी.’

‘जन्म देने से ही मां का दायित्व संपूर्ण नहीं हो जाता,’ कशिश के चेहरे पर घृणा के भाव मुखरित हो उठे थे, ‘तुम तो सारी उम्र मामा के इर्दगिर्द ही चक्कर लगाती रहीं. मैं जानती हूं, वह तुम्हारा भाई नहीं, तुम्हारा प्रेमी था, महेश. पापा ने चाहे मेरा इस सच से परिचय नहीं करवाया पर मैं उस से मिल चुकी हूं. वार्ड नंबर 6. कैंसर की बीमारी से ग्रस्त, ऐसे मरीज उस वार्ड में थे जिन के ऊपर, कीमोथेरैपी, रेडियोथेरैपी, दवाएं सभी हार जाती हैं. राउंड लेते समय मैं ने कर्मशिला अस्पताल में कई बार तुम्हें उस का माथा दबाते, उस की पेशानी पर उभर आए स्वेद बिंदुओं को नरम तौलिए से पोंछते देखा है. उस की बेचैनी के साथ तुम्हें बेचैन होते देखा है. उस की घबराहट देख तुम्हें घबराते देखा है. तुम मेरी मां कभी नहीं हो सकतीं.’

‘श्रीकांत?’ सूनी आंखों से, उस ने श्रीकांत को एक बार फिर से पुकारा.

श्रीकांत ने पहले कही बात फिर दोहरा दी थी.

अपने प्रति अपने परिवारजनों की बेरुखी देख कर हेमा कुंठाग्रस्त हो गई. बातबात पर चीखतीचिल्लाती, लड़तीझगड़ती. कोई समझाने के लिए आगे बढ़ता तो आक्रामक हो कर उसे नुकसान पहुंचाने के लिए उद्यत हो उठती. श्रीकांत ने उसे मनोचिकित्सक को दिखाया और उन के कहने पर उसे मैंटल हौस्पिटल में भरती करवा दिया.

जीवन में सुखदुख सब एकसाथ चलते हैं. कुछ लोग अपने दुख, क्रोध या उदासी को मिटाने का प्रयत्न कर के, विक्षिप्तावस्था से खुद को उबार लेते हैं. लेकिन यदि जीने की लालसा ही समाप्त हो जाए तो यही कुंठा और उदासी व्यक्ति के स्वास्थ्य को पूरी तरह तहसनहस कर डालती है और यही हेमा के साथ हुआ था.

श्रीकांत ने पूरे आश्रम की बागडोर अपने हाथ में ले ली थी. व्यस्त दिनचर्या के बावजूद बेटीदामाद भी नियमित रूप से आश्रम आते थे. श्रीकांत का कद बढ़ता जा रहा था. लोग उन्हें मानसम्मान देते. श्रीकांत के आश्रम ‘आनंदधाम’ को कई पुरस्कार मिले. मीडिया में उन की प्रशंसा के कसीदे पढ़े गए. साक्षात्कार लिए गए. हेमा यह सब देखती, सुनती तो और उदास हो जाती. न खाती, न पीती. अपनी बांहों में सिर छिपा कर अंधेरे में गुमसुम सी बैठ जाती.

श्रीकांत को यह सब अच्छा नहीं लगता था, क्योंकि उन्होंने यह सब ख्याति प्राप्त करने के लिए नहीं, मन को शांति और संतुष्टि प्रदान करने के लिए किया था. लेकिन उन की प्रसिद्धि और ख्याति दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती ही जा रही थी.

हेमा की दशा दिनपरदिन बिगड़ती जा रही थी. डाक्टरों ने उसे इलैक्ट्रिक शौक देना शुरू कर दिया. इलैक्ट्रिक शौक के समय जब श्रीकांत उस के बंधे हाथ देखते तो परेशान हो उठते.

एक दिन जब वे हेमा से मिलने गए तो वह कमरे के एक कोने में सिमटीसिकुड़ी बैठी थी. उसे अन्य मरीजों के साथ नहीं रखा जाता था क्योंकि वह कभी भी दूसरे मरीजों को आघात पहुंचा सकती थी. डाक्टर तो श्रीकांत को भी हेमा से मिलने के लिए मना करते थे लेकिन श्रीकांत नहीं मानते थे. वैसे भी हेमा उन पर जल्दी अपना आक्रामक व्यवहार प्रदर्शित नहीं करती थी.

उस दिन, जब वे उस के पास गए तो हेमा बांहों में अपना मुंह छिपा कर बैठी थी. उन्हें देख कर वह जोरजोर से रोने लगी, ‘मुझे मेरा घर चाहिए, मेरा घर चाहिए, मेरी बेटी चाहिए,’ फिर रोतेसिसकते धीमे स्वर में बोली, ‘मुझे माफ कर दो, श्रीकांत.’

कितना विचित्र है इंसान का स्वभाव. जो कुछ सरलता से प्राप्त हो जाता है, पाने वाले की नजरों में उस की कद्र नहीं होती. और जो कुछ नहीं मिलता वही उसे अनमोल लगता है. वह उसी की तलाश में हर समय भटकता है. अपने असंतोष और तृष्णा की वजह से जीवन के ऐसे मोड़ पर जा खड़ा होता है जहां वह खुद अपनी नजरों का सामना करने योग्य नहीं रह जाता.

श्रीकांत कुछ देर वहीं बैठे रहे. फिर उठ कर चले आए.

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आज 3 दिन बाद मैंटल हौस्पिटल से डा. सहाय द्वारा यह खबर आई कि हेमा को भयानक दौरा पड़ा और उसी में वह खिड़की से गिर गई. लोग चाहे कुछ भी कहें मगर श्रीकांत समझ गए थे, यह हादसा नहीं था. हेमा ने जानबूझ कर अपनी जान दी थी.

सुबह के 4 बज चुके थे. श्रीकांत नहाधो कर दैनिक क्रियाकलाप से फारिग हुए और गैराज से कार निकाली. पूरा शरीर पसीने से तरबतर हो गया था. सोच रहे थे गणित नहीं है जिंदगी, जिस के हर सूत्र का एक स्पष्ट एवं सिद्ध उत्तर हो. जिंदगी के अपने उसूल होते हैं, अपने कायदे होते हैं. विवाहबंधन में बंधने के बाद हेमा ने अतीत से निकल कर वर्तमान को अपनाया होता तो शायद उस का ऐसा दयनीय अंत न हुआ होता. अतीत तो सब का होता है, अच्छा या बुरा. उन्होंने भी तो अपने अतीत को भुलाया था. हेमा क्यों नहीं भुला पाई? इन्हीं विचारों में उलझते हुए उन्होंने गाड़ी की गति तेज कर दी.

Serial Story: अंत (भाग-2)

सुलभा और श्रीकांत दोनों ही बालिग थे. जिंदगी की छोटीबड़ी बारीकियों से पूरी तरह परिचित. अपना भलाबुरा सोचने की पूरी कूवत थी दोनों में. चाहते तो अपने अधिकारों का प्रयोग कर के कोर्टमैरिज कर सकते थे. लेकिन पिता की रूढि़वादी विचारधारा का विरोध करना तो दूर, अपनी प्रेमिका से मिलने तक की हिम्मत नहीं जुटा पाए थे. कदम ही नहीं बढ़े थे उस ओर. दद्दा ने बड़ी ही चालाकी से सुलभा और उस के परिवार के हर सदस्य को दृश्यपटल से ही ओझल कर दिया. सुलभा व उस के परिवार के सदस्य कहां हैं, इस की जरा भी भनक, न श्रीकांत को मिली न ही घर वालों को.

रिश्तों की कमी नहीं थी. पर दद्दा को हर रिश्ते में कोई न कोई खामी नजर आ ही जाती थी. आखिर बड़ी ही जद्दोजहद के बाद उन्हें दीवान दुर्गा प्रसाद की इकलौती सुपुत्री हेमा का रिश्ता श्रीकांत के लिए उपयुक्त लगा था. कुछ नहीं कह पाए थे श्रीकांत तब. दोनों पक्षों की मानमर्यादा और प्रतिष्ठा की वेदी पर उन की हर खुशी कुरबान चढ़ गई. हेमा, सजातीय तो थी ही, लाखों का दहेज भी लाई थी. ऐसी धूमधाम की शादी हुई कि लोग देखते ही रह गए.

लेकिन हेमा के बारे में दद्दा का अनुभव गलत साबित हुआ. प्रथम साक्षात्कार के समय सुहागरात की बेला में ही, बिना कोई भूमिका बांधे, उस ने अपने मन की बात कह दी थी :

‘हमारे समाज में अधिकांश विवाह लड़की की सहमति के बिना ही होते हैं. मातापिता अपनी बेटी के लिए जीवनसाथी नहीं ढूंढ़ते. अपने परिवार की मानमर्यादा और प्रतिष्ठा कायम रखने के लिए ऐसे इंसान को खोजते हैं जो जीवनभर उन की बेटी को सुखी रख सके.’

हेमा के शब्दों में ऐसा भाव था जिस ने श्रीकांत के मन को छू लिया था.

‘श्रीकांतजी, मैं किसी और से प्यार करती थी. मैं ने कई बार इस विवाह का विरोध किया पर मां और पापा नहीं माने. आप को बुरा तो लगेगा पर मैं सच कह रही हूं. मैं ने आप को एक नजर देखा भी नहीं था.’

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कल्पना का महल खंडित हो चुका था. श्रीकांत अपनी जगह से न हिले न डुले. यों ही बैठे रहे, जड़वत. उन्हें ऐसा लगा जैसे वे जमीन में धंसते चले जा रहे हैं. ऐसे समय में कोई नवविवाहित पुरुष कह भी क्या सकता था? बस, हेमा के अगले वाक्य की प्रतीक्षा करते रहे थे.

‘महेश को भुलाने की पूरी कोशिश करूंगी पर आप को इस के लिए मुझे कुछ समय देना होगा.’

‘महेश कहां है?’ टूटतेबिखरते स्वर को संयत कर के उन्होंने पूछा था.

‘अमेरिका में है. उस का विवाह हो चुका है.’

अगले दिन अरुंधतीजी थाल में नए वस्त्र और आभूषण ले कर कक्ष में आई थीं जिन्हें शरीर पर धारण कर के हेमा को आगंतुकों से शुभकामनाएं और आशीर्वाद ग्रहण करना था. मां का हाथ पकड़ कर सिसक उठे थे श्रीकांत. हेमा का कहा एकएक शब्द उन्होंने मां के सामने दोहरा दिया था.

वस्तुस्थिति से पूरी तरह परिचित होने के बावजूद अरुंधतीजी न चौंकीं न परेशान ही हुईं. यह जानतेबूझते भी कि जो कुछ हुआ, गलत हुआ है. बेटे को ही समझाती रही थीं, ‘धीरज रखो श्री. समय हर घाव भर देता है. किसी विजातीय निर्धन परिवार की कन्या, हमारे घर की बहू कैसे बन सकती थी?’

‘चाहे उस के लिए अपने बेटे की संपूर्ण खुशियां ही दांव पर क्यों न लग जाएं?’ अत्यंत भावहीन कांपते स्वर में मां से प्रतिप्रश्न किया था उन्होंने.

‘कुछ लड़कियां चंचल प्रकृति की होती हैं. शुक्र कर बेटा, जो उस ने अपने संबंध का सही चित्रण किया है तेरे सामने. अब यह तुझ पर निर्भर करता है कि तू सामदामदंडभेद जैसा कोई भी अस्त्र प्रयोग कर के, अपनी पत्नी का मन कैसे जीतता है? अगर तू ऐसा नहीं कर पाया तो दोष तेरे ही अंदर होगा. कम से कम मैं तो ऐसा ही समझती हूं.’

मां द्वारा हेमा का पक्ष लिया जाना उन्हें बुरा नहीं लगा था, बल्कि इस बात की पुष्टि कर गया था कि जैसे भी हो, उन्हें हालात से समझौता करना ही है. फिर अरुंधतीजी ने बहू की ओर रुख किया था, ‘देखो हेमा, तुम इस घर की बहू हो. इस घर की मानमर्यादा तुम्हें ही बना कर रखनी है. समाज में हमारा मानसम्मान है, इज्जत है. ऐसा कोई भी कदम मत उठाना जिस से हमारे परिवार की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचे.’

सुबह से शाम तक कीमती साडि़यों और आभूषणों से सजीधजी हेमा इधरउधर डोलती थी. हर सभासोसाइटी में, हर समारोह में पति की अर्धांगिनी बनने का फर्ज बखूबी निभाती. लेकिन दिन का उजास जब रात की काली चादर में सिमटने लगता तो करवटें बदलते हुए पूरी रात आंखों ही आंखों में काट देती. पति की अंकशायिनी बनने के बावजूद उस का पूरा शरीर बर्फ की मानिंद ठंडा पड़ा रहता. श्रीकांत कभी गहरी नींद में सो रहे होते तो हेमा के मोबाइल पर बजने वाली घंटियां और मैसेज की टनटनाहट इस बात का स्पष्ट संकेत दे जाती कि देह से हेमा उन के साथ रहती थी पर उस के दिल पर महेश का ही अधिकार था. श्रीकांत देख कर भी अनदेखा कर देते, सुन कर भी अनसुना कर देते. बस, इस आस और उम्मीद में जी रहे थे कि जिस तरह उन्होंने अपने जीवन की किताब से सुलभा के साथ बिताए हुए उन चंद सुनहरे पृष्ठों को फाड़ कर फेंक दिया है वैसे ही, हेमा भी अपने अतीत को भुला कर उन्हें और उन के परिवार को अपना लेगी. लेकिन श्रीकांत का हरसंभव प्रयत्न बेकार ही चला गया.

स्नेह के पात्र की तरह मनुष्य घृणा के पात्र को एक नजर देखता अवश्य है लेकिन हेमा के दिल में पति के लिए न भावनाएं थीं न संवेदनाएं, न आदर न ही सम्मान. ऐशोआराम में पली नकचढ़ी हेमा, मानसम्मान, व्यवहार, शिष्टाचार की परिभाषा से पूरी तरह विमुख थी.

श्रीकांत सोचते थे. विवाह एक ऐसा बंधन है जहां पतिपत्नी एकदूसरे के सुखदुख के साथी होते हैं. लेकिन हेमा ने अपने स्वभाव से ऐसी विषम परिस्थितियां उत्पन्न कर दी थीं कि उन का जीवन दूभर हो गया था. कितनी बार अपने परिजनों के बीच वे दया के पात्र बन चुके थे.

एक तरफ नौकरी की व्यस्तता और दूसरी तरफ हेमा के कारण उत्पन्न तनाव. मातापिता शांति से जीवन गुजार सकें, यही सोच कर श्रीकांत ने दिल्ली के लिए तबादले की अर्जी दे दी थी. यह सुनते ही अरुंधतीजी उदास हो गई थीं. इकलौता बेटा, उसे आंखों से ओझल कैसे होने देतीं? हेमा की कोख में 4 माह का गर्भ भी तो सांस ले रहा था. ऐसे समय में औरत को विशेष देखभाल की जरूरत होती है, यह सोचसोच कर वे परेशान हुई जा रही थीं. नया शहर, नए लोग. कैसे जाने देतीं अकेले? लेकिन श्रीकांत नहीं माने थे.

‘मुझे तो भुगतना ही है. कम से कम आप लोग तो हेमा के प्रहारों से छलनी होने से बच जाओगे.’

नोएडा में 3 कमरों का मकान किराए पर ले लिया था श्रीकांत ने. मकान मालकिन, मकान के अगले हिस्से में रहती थीं. अरुंधतीजी स्वयं आई थीं बेटे की गृहस्थी बसाने के लिए. साथ में हरि काका को भी लाई थीं. मकान मालकिन से पुरानी जानपहचान भी निकल आई थी. सभी उन्हें देवयानी ताई कह कर पुकारते थे. उन्हीं की मदद से उन्होंने बेटे की गृहस्थी की हर चीज मुहैया कर ली थी.

बहू के प्रसव तक वे यहीं रही थीं. अपनी संतान से बढ़ कर उन्होंने हेमा की देखभाल की थी. प्रसव के बाद नन्ही कशिश की मालिश अपने हाथों से करतीं, उसे नहलातींधुलातीं, लोरी दे कर सुलातीं. देवयानी ताई का साथ हमेशा मिला था उन्हें. हेमा उन से बातबात पर उलझती, उन का निरादर करती. मां के समर्पण के सामने श्रीकांत स्वयं को बौना महसूस करते थे. जितने दिन वे रहीं, एक पल भी सुख का नहीं काट सकी थीं. बुरा तो अरुंधतीजी को भी लगता था पर श्रीकांत का मन बनाए रखने के लिए उन्हें समझाया था उन्होंने.

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‘तू दिल छोटा मत कर. एक बार मातृत्व बोध होने पर हेमा खुद ही घरगृहस्थी में रम जाएगी,’ पर वहां भी निराशा ही हाथ लगी. स्वच्छंद होते ही हेमा पर फैलाने लगी. कशिश के मातापिता श्रीकांत ही थे. उस की किलकारियां श्रीकांत ने सुनीं या देवयानी ताई ने. हेमा ने तो कभी उस की भूखप्यास की चिंता नहीं की थी. वैसे भी यह तो भावनाओं की बात है. जिसे सांसारिक रिश्ते निभाने ही न हों वह इन रिश्तों का मोल क्या जाने?

मौजमस्ती, गुलछर्रे उड़ाना ही हेमा के काम्य थे और यही प्राप्ति. एक दिन हेमा ने एक चौंका देने वाला प्रस्ताव श्रीकांत के सामने रखा, ‘मैं कुछ करना चाहती हूं.’

‘तो करो. घर में बहुत काम हैं करने के लिए,’ श्रीकांत खुश हो गए थे. देर से ही सही, हेमा के मन में कर्तव्यबोध की भावना तो जागी.

‘ये सब नहीं, श्रीकांत. ये काम तो घर में बाई और नौकर भी कर सकते हैं.’

‘तो फिर?’ श्रीकांत ने साश्चर्य पूछा था.

‘कोई बिजनैस.’

‘उस के लिए पैसा कहां से आएगा?’ कशिश की शिक्षा और विवाह के लिए भविष्य निधि योजना में रकम जमा करते समय उन के हाथ सहसा रुक गए थे.

‘उस की व्यवस्था हो जाएगी. मेरे कई मित्र हैं जो मेरी सहायता के लिए हर समय तैयार रहते हैं. यदि फिर भी कमी हुई तो अपने गहने गिरवी रख दूंगी.’

‘कौन सा मित्र और कहां का मित्र,’ श्रीकांत बखूबी समझ रहे थे. हेमा ने भी उन से सहमति या अनुमति नहीं मांगी थी, सिर्फ सूचना भर दी थी.

हेमा ने गुड़गांव में एक बुटीक खोल लिया था. श्रीकांत ने विरोध प्रकट किया था उस समय.

‘नोएडा इतना बड़ा क्षेत्र है, बुटीक खोलना ही था तो यहां शुरू करतीं. आनेजाने में समय भी बरबाद न होता. कशिश की देखभाल भी हो जाती.’

‘श्रीकांत, गुड़गांव में जितने सुंदर अवसर मिलेंगे उतने नोएडा में नहीं मिल सकते. अगर पैसा कमाना है तो दौड़भाग तो करनी ही पड़ेगी, मेहनत भी करनी होगी.’

श्रीकांत ने चुप्पी साध ली थी. कुछ कहने का मतलब था घर में तूफान को बुलावा देना. वे शुरू से ही शांतिप्रिय व्यक्ति थे. समझौते और सामंजस्य की भावना कूटकूट कर भरी थी उन में.

2 साल की कशिश वहीं आंगन में ठुमकती रहती. देवयानी ताई ने दोनों घरों के बीच का दरवाजा खोल दिया था. नन्ही सी बच्ची के मुंह में जब ताई निवाला डालतीं तो श्रीकांत क्षुब्ध हो उठते. बुखार में तपती कशिश के माथे पर जब हरि काका को पट्टियां बदलते देखते तो उन का कलेजा मुंह को आ जाता. कशिश बोलना सीखी तो मां के बारे में ढेरों प्रश्न पूछती जिन का श्रीकांत के पास कोई उत्तर न होता. क्या करती है. कहां जाती है. कितना कमाती है और कितना खर्चती है, इन सब बातों की, जरा भी जानकारी होती उन्हें, तब तो कुछ कहते भी. चतुर घाघ सी हेमा ने ऐसी संवेदनशील बातों से उन्हें हमेशा दूर ही रखा था.

क्रमश:

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Serial Story: अंत (भाग-1)

रात को 12 बजे फोन की घंटी बजी. श्रीकांत ने फोन उठाया. डा. सहाय थे. मैंटल हौस्पिटल से बोल रहे थे.

‘‘श्रीकांत, एक बुरी खबर है, हेमा नहीं रहीं.’’

‘‘क्या?’’ कुछ घुटती हुई आवाज उन के गले से निकली, फिर गले में ही दब कर रह गई थी.

‘‘हेमा को अचानक फिर से दौरा पड़ा. जब तक नर्स उन्हें संभाल पाती तब तक वे 5वीं मंजिल की खिड़की से छलांग लगा चुकी थीं.’’

हेमा की लाश को मौर्चरी में रखने के लिए कह कर श्रीकांत ने लंबी सांस भरी और शरीर की थकावट दूर करने के लिए बिस्तर पर लेट गए. उन के निवास से मैंटल हौस्पिटल की दूरी लगभग 50 किलोमीटर थी. कशिश और विक्रम आधा घंटा पहले ही अपने घर के लिए निकल गए थे. ड्राइवर भी वापस चला गया था. रात के समय उन्होंने किसी को सूचित कर के बुलाना ठीक नहीं समझा.

पिछले कई दिनों से वे आश्रम के वार्षिकोत्सव की तैयारी, आश्रमवासियों के साथ मिल कर, कर रहे थे. आज का

पूरा दिन थका देने वाला था. देशीविदेशी मेहमानों की आवभगत, गरीब, बेसहारा महिलाओं द्वारा हस्तनिर्मित कपड़ों की प्रदर्शनी और बिक्री का लेखाजोखा तय करतेकरते पूरा दिन कैसे बीत गया, पता ही नहीं चला.

कमर सीधी करने के लिए बिस्तर पर लेटे थे लेकिन शरीर की अकड़न जस की तस बनी हुई थी. आज हेमा इस दुनिया को छोड़ कर चली गई. उस की मौत का जिम्मेदार किसे ठहराएं. श्रीकांत खुद को, मातापिता को या हेमा को, जिस ने महेश की पैबंद लगी गृहस्थी को सीतेसीते अपनी मुट्ठी में इस तरह कैद कर लिया कि वे असहाय हो कर सबकुछ देखते ही नहीं रह गए थे, बल्कि उस तरफ से आंखें ही मूंद ली थीं.

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बीती यादों को, चाहे कितना ही सहेज कर भीतर किसी कोने में दफना दिया जाए, वे बाहर निकल ही आती हैं, फिर चाहे वे मीठी हों या कड़वी या बेहद दुखदायी.

तपिश को कम करने के लिए शीतलता की जरूरत तो होती ही है, वरना भीतर के उद्वेग ही मनुष्य को जला डालते हैं. हर जगह गुलाब ही मिलें, ऐसा संभव नहीं है. और अगर मिल भी जाएं तो कांटे भी साथ आएंगे. पर वहां, इतना संतोष तो होता ही है कि गुलाब की पंखडि़यों का स्पर्श, कांटों की चुभन झेलने की शक्ति खुद ही देता है. लेकिन श्रीकांत को तो सिर्फ कांटे ही मिले. न खुशबू मिली न कोमल पंखडि़यां.

एक समय था जब सबकुछ उन की मुट्ठी में था. यह कहना कि उन्होंने अपने मन को कड़ा कर के निर्णय लिया, बहुत नाकाफी है उस मनोस्थिति को समझने के लिए जिस से वे गुजर रहे थे उस समय. ऐसा लगता था जैसे उन्होंने अपने मन को किसी जंजीर से बांध कर आदेश दिया था कि पड़े रहो चुपचाप, भावशून्य हो कर. विद्रोहस्वरूप वे जब भी हिले तो जख्मों पर जंजीर की रगड़ को ही महसूस किया था उन्होंने.

कमलापति के इकलौते सुपुत्र थे श्रीकांत. देहरादून के धनीमानी प्रतिष्ठित लोगों में कमलापति की गिनती होती थी. तबीयत शौकीन और अंदाज रईसी. जिद्दी इतने कि बिना आगापीछा सोचे अपनी बात मनवा कर ही दम लेते. न किसी का हस्तक्षेप बरदाश्त करते न ही किसी की टीकाटिप्पणी, जो कह दिया सो कह दिया. पत्थर की लकीर होता था उन का निर्णय. अपने अभिमान और जिद्दी स्वभाव की वजह से उन्होंने श्रीकांत और सुलभा की प्रेम कहानी की एकएक ईंट गिरा दी थी और रह गया था एक खंडहर. 2 युवा प्रेमियों के अंदर पनप रहे प्रेमरूपी लहलहाते पौधे को समूल उखाड़ फेंकते समय उन्होंने यह भी नहीं सोचा था कि कितनी पीड़ा हुई होगी दोनों को. वे तो बस यही सोच कर खुश थे कि उन की मानमर्यादा और प्रतिष्ठा पर जरा भी आंच नहीं आई.

आंखों के सामने कई बिंब बुलबुलों की तरह बनने और मिटने लगे. इंजीनियरिंग का पहला साल. खड़गपुर आईआईटी जैसे दूरस्थ स्थान का प्रथम इंस्टिट्यूट. वहां दाखिला मिलना साधारण बात नहीं थी. कालेज जीवन में श्रीकांत की भेंट सुलभा से हुई थी. वह देहरादून से इंजीनियरिंग करने आई थी. विद्यार्थी जीवन में दोनों ही पहले व दूसरे नंबर के प्रतियोगी जैसे रहे थे. सुलभा का हंसमुख चेहरा, अनुपम परिहास, रसिकता श्रीकांत को उस के सर्वथा अनूठे व्यक्तित्व की नित नई झांकियां दिखाते रहते थे. होली आती तो वह अबीरगुलाल से परिसर में रहने वाले सभी विद्यार्थियों को आकंठ डुबो देती और दीवाली पर किसी स्थानीय प्रोफैसर के घर जा कर ऐसे स्वादिष्ठ भोजन पकाती कि सभी अतिथि उंगलियां चाटते रह जाते थे. सुलभा का साहचर्य उन्हें भला लगता था. दोनों हर दिन मिलते.

धीरेधीरे दोनों करीब आने लगे. मानसिक रूप से, मित्र रूप से, अंत में प्रणयी रूप से. बरसात की वह खनकती, बरसती भीगीभीगी रातें, मूसलाधार वृष्टि, बिजली का कौंधना, बादलों की टंकार, सभीकुछ आनंददायक लगता था. दीघा बीच के किनारे बैठ कर दोनों प्रेमी कब कितने सपने देखते, कितने नाम रेत पर लिखतेमिटाते रहे, एकदूसरे का हाथ पकड़े. डूबते सूरज को साक्षी मान कर, भविष्य के तानेबाने बुनते रहे, कोई सीमा नहीं थी उन सुखद क्षणों की. श्रीकांत की छुअन मात्र से ही सुलभा सिहर उठती. फोटोग्राफी के शौकीन श्रीकांत न जाने कितने पोज में अपनी प्रेमिका को, कभी अकेले, कभी स्वयं अपनी बांहों में कैद कर के, चित्रों में उतार चुके थे. श्रीकांत को मात्र सूरज ही नहीं, ज्ञान और बुद्धि की पूर्ण अपेक्षा थी अपनी सहधर्मिणी से. सुलभा हर तरह से उन के सपनों की साकार रूप थी.

5 साल का समय कब पंख लगा कर उड़ गया, पता ही न चला.10 की मैरिट लिस्ट में, सुलभा का 7वां और श्रीकांत का 5वां स्थान रहा था. खड़गपुर को अंतिम प्रणाम कर के दोनों ने देहरादून में अपनीअपनी कंपनियों में मैनेजमैंट टे्रनी के पद संभाल लिए थे. सुलभा के परिवार में सबकुछ साधारण था, अति साधारण. मातापिता ने बिटिया का मन और श्रीकांत का अपनी बेटी के प्रति लगाव जान कर बडे़ विश्वास के साथ दद्दा के सामने अपना मन थोड़ीबहुत औपचारिकता के बाद खोल दिया था.

‘कमलापतिजी, आज आप से कुछ मांगने आया हूं. सुलभा और श्रीकांत का एकदूसरे के प्रति लगाव तो आप जानते ही होंगे. आज बड़ी हिम्मत और उम्मीद ले कर आप के पास आया हूं. बच्चों की लाइन एक है. दोनों एकदूसरे को पसंद करते हैं. मैं भले ही आप से हैसियत में कम हूं पर विश्वास कीजिए, शादी में रस्मोरिवाज और आप की खातिरदारी में मैं कोई कमी नहीं रखूंगा.

सुलभा के पिता के इस प्रस्ताव ने तूफान की स्थिति निर्मित कर दी थी. आमतौर पर तूफान की गति भले ही कितनी तीव्र हो लेकिन उस की अवधि बहुत थोड़ी होती है. अल्पावधि में ही तूफान अपने विनाशकारी निशान छोड़ते हुए गुजर जाता है. लेकिन सुलभा के पिता ने जो तूफान खड़ा किया था वह प्रकृतिजन्य तूफान से अलग किस्म का था. न तो इस तूफान के आने की किसी को पूर्व सूचना थी न ही उस की गति में अप्रत्याशित तेजी ही थी. उन के इस प्रस्ताव ने बवंडर मचा दिया था हवेली में.

‘मेरी समझ में यही नहीं आ रहा है सिंह साहब कि आप ने इतने ऊंचे सपने कैसे देख लिए. कम से कम हमारी मानमर्यादा और प्रतिष्ठा का ध्यान तो रखा होता. कहां राजा भोज और कहां गंगू तेली. एक से एक समृद्ध धनाढ्य परिवार मुझे श्रीकांत के लिए घेर रहे हैं. मैं ने अपने बेटे को यह अधिकार नहीं दिया है कि वह अपना जीवनसाथी स्वयं चुने. ताज्जुब है अपनी बेटी को समझाने के बजाय आप उस का प्रस्ताव ले कर यहां आ गए.’

फिर सुलभा के पिता की उपस्थिति में ही उन्होंने श्रीकांत को भी आड़े हाथों ले लिया था, ‘तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई, इतनी घटिया हरकत करने की? सोच लो, अगर तुम इस से विवाह करोगे तो एक तरफ हम सब होंगे, दूसरी तरफ तुम अकेले. मेरे लिए तुम उसी दिन मर जाओगे जिस दिन इस लड़की का हाथ थामोगे. हम तो यों भी मर गए तुम्हारे लिए, हमारे रहते तुम ने अपने लिए बीवी चुन ली.’

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अजीब सी मनोदशा हो गई थी श्रीकांत की. न किसी से बात करते, न लोगों के बीच उठतेबैठते. जरा सा शोर सुनते तो किसी अंधियारे कोने में जा दुबकते. न रात में नींद आती न दिन में चैन. हाथपांव पसीने से भीगे रहते.

बेटे की ऐसी दशा देख कर अरुंधतीजी घबरा गई थीं. पति को समझाया था, ‘दोनों पढ़ेलिखे हैं, मिल कर कमाएंगे तो दहेज की क्या कीमत रह जाएगी?’ लेकिन दद्दा टस से मस नहीं हुए. प्रेम में चोट खाए हृदय का दुख समय के साथसाथ खुद ही मिट जाएगा, इसी विश्वास के साथ उन्होंने ऊंचे, प्रतिष्ठित और समृद्ध परिवारों में लड़की ढूंढ़नी शुरू कर दी थी.

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