Serial Story: प्रतीक्षालय (भाग-4)

लेखिका- जागृति भागवत

इस पर सिद्धार्थ बोला, ‘‘डोंट टेक इट अदरवाइज, लेकिन उस रात जब आप से मुलाकात हुई और जो बातें हुईं, उस का मेरे जीवन पर बहुत गहरा असर पड़ा. मैं ने कहा था न कि आप मेरे लिए प्रेरणास्रोत हैं और वही हुआ, मैं समझ गया कि मेरे पास क्या है और मुझे कितना खुश होना चाहिए. मैं ने अब पापा के साथ औफिस जाना भी शुरू कर दिया है ऐंड आय एम रियली एंजौइंग इट और हां, अब मैं ने डैड को पापा कहना भी शुरू कर दिया है. ऐक्चुअली, आप को बताऊं, मौम और पापा बहुत सरप्राइज्ड हैं इस बदलाव से. मौम ने मुझ से पूछा भी था लेकिन मेरी समझ में नहीं आया कि क्या बताऊं. एनी वे, अब आप ने रहने के बारे में क्या सोचा है?’’ इस सवाल से जानकी मानो आसमान में उड़तेउड़ते अचानक जमीन पर आ गिरी हो. चेहरे पर उदासी लिए बोली, ‘‘पता नहीं, यहां पर तो किराए के लिए डिपौजिट भी देना पड़ता है और मैं वह अफोर्ड नहीं कर सकती.’’

‘‘अगर आप बुरा न मानें तो एक रिक्वैस्ट कर सकता हूं?’’

‘‘कहिए.’’

‘‘मैं यह कह रहा था कि जब तक आप के रहने का इंतजाम नहीं हो जाता, तब तक आप मेरे घर पर रह सकती हैं.’’ जानकी के चेहरे के बदले भाव देख कर सिद्धार्थ ने तुरंत बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘‘वहां मेरी मौम भी हैं. एक आउटहाउस अलग से है, वहां आप को कोई परेशानी नहीं होगी.’’ जानकी को यह सब बहुत अटपटा लग रहा था. उसे लगा कि थोड़ी सी पहचान में कोई आदमी क्यों किसी की इतनी मदद करेगा. पहली छवि के आधार पर सिद्धार्थ पर भरोसा करना कोई समझदारी नहीं थी. जो कुछ यह बोल रहा है, न जाने उस में कितना सच है. जरा देर की पहचान है इस से. इस के साथ जा कर मैं कहीं किसी मुसीबत में न फंस जाऊं. अनजान शहर है, अनजान लोग. कैसे किसी पर भरोसा कर लूं?

‘‘आप क्या सोचने लगीं? जानकीजी?’’

सिद्धार्थ की आवाज से जानकी विचारों की उधेड़बुन से बाहर आई और बोली, ‘‘देखिए सिद्धार्थजी, आप ने मेरे लिए इतना सोचा, इस के लिए मैं आप की बहुत शुक्रगुजार हूं, लेकिन आप के घर मैं नहीं चल सकती. आप अपना नंबर दे दीजिए, यदि कोई जरूरत पड़ी तो मैं आप को फोन जरूर करूंगी.’’ सिद्धार्थ जानकी की बात को समझ रहा था, इसलिए उस ने कोई जबरदस्ती नहीं की. बस, इतना कहा, ‘‘मैं अपना नंबर तो आप को दे देता हूं, अगर आप का भी नंबर मिल जाए तो…’’

जानकी बोली, ‘‘अभी तक तो मुझे मोबाइल की जरूरत नहीं पड़ी है, सौरी.’’

सिद्धार्थ बोला, ‘‘मैं आप को होटल तक छोड़ सकता हूं?’’

‘‘ओ श्योर,’’ जानकी ने मिजाज बदलते हुए कहा.

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सिद्धार्थ जानकी को होटल छोड़ कर घर चला गया. मन काफी भारी था और उदास भी. घर पहुंचा तो मां ने पूछा, लेकिन सिद्धार्थ ने बताया कि उस ने एक दोस्त के साथ बाहर खाना खा लिया है. सिद्धार्थ के चेहरे की उदासी उस के मन की जबान बन रही थी. मां ने उस से पूछा, ‘‘कौन दोस्त था तेरा?’’ सिद्धार्थ ने इस प्रश्न की कल्पना नहीं की थी. वह बस बोल गया, ‘‘मौम, आप नहीं जानतीं उसे,’’ और सिद्धार्थ अपने कमरे में चला गया. मां का शक पक्का हो गया कि सिद्धार्थ कुछ छिपा रहा है उस से. वे सिद्धार्थ के कमरे में गईं और पूछा, ‘‘आज तू पापा के साथ औफिस क्यों नहीं गया, इसी दोस्त के लिए?’’

सिद्धार्थ समझ नहीं पा रहा था कि मां इतना खोद कर क्यों पूछ रही हैं. वह बोला, ‘‘हां मौम, वह बाहर से आया है न, इसलिए उस का थोड़ा अरेंजमैंट देखना था.’’

‘‘तो क्या हो गया अरेंजमैंट?’’

‘‘अभी नहीं, मौम,’’ सिद्धार्थ बात को खत्म करने के लहजे में बोला. लेकिन मां तो आज ठान कर बैठी थीं कि सिद्धार्थ से आज सब जान कर रहेंगी.

‘‘फिर तू उसे घर क्यों नहीं ले आया? जब तक उस का कोई और इंतजाम नहीं हो जाता, वह हमारे साथ रह लेता,’’ मां ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा.

‘‘मौम, उसे हैजिटेशन हो रहा था, इसलिए नहीं आया,’’ सिद्धार्थ बात को जितना समेटने की कोशिश कर रहा था, मां उसे और ज्यादा खींच रही थीं.

‘‘अच्छा यह बता, पिछले 10-12 दिन से तो तू बहुत खुशखुश लग रहा था, आज सुबह दोस्त से मिलने गया तब भी बड़ा खुश था, अब अचानक इतना गुमसुम क्यों हो गया है. सच बताना, मैं मां हूं तेरी मुझ से कुछ मत छिपा, कोई समस्या हो तोबता, शायद मैं मदद कर सकूं,’’ कह कर अब तो मां ने जैसे मोरचा ही खोल दिया था. अब सिद्धार्थ के लिए बात को छिपाना मुश्किल लग रहा था. इतने कम समय में उस ने जानकी को बहुत अच्छी तरह से पहचान लिया था लेकिन इतना बड़ा फैसला लेने में घबरा रहा था. इस बारे में मां और पिताजी को समझाना उसे काफी मुश्किल लग रहा था. सब से बड़ी बात है कि जानकी अनाथालय में पलीबढ़ी थी. जमाना कितना भी आगे बढ़ जाए लेकिन ऐसे समय सभी खानदान और कुल जैसे भंवर में फंस जाते हैं. वह उच्च और रईस घराने से था, ऐसे में एक ऐसी लड़की जिस के न मातापिता का पता है न खानदान का. अनाथालय में पलीबढ़ी एक लड़की के चरित्र पर भी लोग संदेह करते हैं. ऐसे में वह क्या करे क्या न करे, फैसला नहीं ले पा रहा था.

दूसरी तरफ उसे जानकी की चिंता सता रही थी. जब तक उस के रहने की व्यवस्था नहीं हो जाती तब तक उसे होटल में ही रुकना पड़ेगा जो उस के लिए बहुत खर्चीला होगा. वह कहां से लाएगी इतना पैसा? आखिर उस ने मां को सबकुछ बताने का फैसला किया. ‘‘मौम, आप बैठिए प्लीज, मुझे आप से कुछ बातें करनी हैं,’’ और उस ने मनमाड़ रेलवे स्टेशन के प्रतीक्षालय से ले कर आज तक की सारी बातें मां को बता दीं. सबकुछ सुनने के बाद मां कुछ देर चुप रहीं फिर बोलीं, ‘‘देखते हैं बेटा, कुछ करते हैं,’’ और उठ कर चली गईं.

अब सिद्धार्थ पहले से अधिक बेचैन हो गया. बारबार सोचता कि उस ने सही किया या गलत? फिर रात को पापा आए. सब ने साथ खाना खाया. खाने की टेबल पर पापा और सिद्धार्थ की थोड़ीबहुत बातें हुईं. पापा ने भी अनजाने में उस से पूछ लिया, ‘‘बेटा, तेरा वह दोस्त आया कि नहीं?’’

‘‘आया न पापा,’’ सिद्धार्थ ने मां की ओर देखते हुए कहा.

‘‘फिर उसे ले कर घर क्यों नहीं आया,’’ वही मां वाले सवाल पापा दुहराए जा रहे थे.

‘‘पापा, बाद में आएगा,’’ कह कर सिद्धार्थ ने बड़ी मुश्किल से जान छुड़ाई. खाना खा कर तीनों सोने चले गए. अगले दिन शाम को लगभग 4:30 बजे पिताजी ने औफिस में सिद्धार्थ को अपने कक्ष में बुला कर कहा, ‘‘तुम्हारी मौम का फोन था, वह आ रही हैं अभी, तुम्हारे साथ कहीं जाना है उन्हें. तुम अपना काम वाइंडअप कर लो.’’

कई वर्षों बाद ऐसा होगा जब सिद्धार्थ अपनी मौम के साथ कहीं जा रहा हो, वरना अब तक तो मां के साथ पिताजी ही जाते थे और सिद्धार्थ अपने दोस्तों के साथ. अचानक मां को उस के साथ कहां जाना है, वह समझ नहीं पा रहा था.

‘‘जी पापा,’’ इतना कह कर वह अपने कक्ष में आ गया. मां के आने तक सिद्धार्थ बेचैनी से घिरा जा रहा था. मां आईं और सिद्धार्थ उन के साथ गाड़ी में जा बैठा और पूछा, ‘‘मौम, कहां जाना है?’’

मां ने गंभीरता से पूछा, ‘‘जानकी किस होटल में रुकी है?’’ सिद्धार्थ अवाक् रह गया. बस, इतना ही मुंह से निकल पाया, ‘‘होटल शिवाजी पैलेस.’’

‘‘तो चलो,’’ मां बोलीं.

होटल पहुंच कर सिद्धार्थ ने सिर्फ इतना कहा, ‘‘मौम, वह मेरी भावनाओं से अनजान है.’’

‘‘मैं जानती हूं.’’

रिसैप्शन पर कमरा नंबर पता कर के दोनों उस के कमरे के बाहर पहुंचे. दरवाजे पर सिद्धार्थ आगे खड़ा था. दरवाजा खुलते ही जानकी बोली, ‘‘आप? अचानक?’’ ‘‘अंदर आने के लिए नहीं कहेंगी?’’ सिद्धार्थ ने स्वयं ही पहल की. लेकिन जानकी थोड़ा असमंजस में पड़ गई कि उसे अंदर आने के लिए कहे या नहीं. तभी सिद्धार्थ की मां सामने आईं और बोलीं, ‘‘मुझे तो अंदर आने दोगी?’’

‘‘मेरी मौम,’’ सिद्धार्थ ने मां से जानकी का परिचय करवाया.

जानकी ने दोनों को अंदर बुलाया. सिद्धार्थ और जानकी खामोश थे. खामोशी को तोड़ते हुए मां ने वार्त्तालाप शुरू की, ‘‘जानकी बेटा, मुझे सिद्धार्थ ने तुम्हारे बारे में बताया, लेकिन हमारे रहते तुम यहां होटल में रहो, यह हमें बिलकुल अच्छा नहीं लगेगा. तुम सिद्धार्थ के कहने पर नहीं आईं, मैं समझ सकती हूं, अब मैं तुम्हें लेने आई हूं, अब तो तुम्हें चलना ही पड़ेगा.’’ सिद्धार्थ की मां ने इतने स्नेह और अधिकार के साथ यह सब कहा कि जानकी के लिए मना करना मुश्किल हो गया. फिर भी वह संकोचवश मना करती रही. लेकिन मां के आग्रह को टाल नहीं सकी. मां ने सिद्धार्थ से कहा, ‘‘सिद्धार्थ, नीचे रिसैप्शन पर जा कर बता दे कि जानकी होटल छोड़ रही हैं और बिल सैटल कर के आना.’’ जानकी को यह सब काफी अजीब लग रहा था. उस ने बिल के पैसे देने चाहे लेकिन सिद्धार्थ की मां बोलीं, ‘‘यह हिसाब करने का समय नहीं है, तुम अपना सामान पैक करो, बाकी सब सिद्धार्थ कर लेगा.’’

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सामान बांध कर जानकी सिद्धार्थ के घर चली गई. सिद्धार्थ की मां ने आउटहाउस को दिन में साफ करवा दिया था. जानकी रात को पिताजी से भी मिली. पहली बार उस ने मातापिता के स्नेह से सराबोर घर को देखा था. जानकी बहुत भावुक हो गई. अगले दिन से उस ने कालेज जाना शुरू कर दिया. साथ ही साथ रहने की व्यवस्था पर गंभीरता से खोज करने लगी. एक हफ्ते में सिद्धार्थ ने ही एक वर्किंग वूमन होस्टल ढूंढ़ा. जानकी को भी पसंद आया. सिद्धार्थ के पिताजी की पहचान से जानकी की अच्छी व्यवस्था हो गई. रविवार के दिन वह होस्टल जाने वाली थी. इस एक हफ्ते में सिद्धार्थ के मातापिता को जानकी को समझनेपरखने का अच्छा मौका मिल गया. अपने बेटे के लिए इतनी शालीन और सभ्य लड़की तो वे खुद भी नहीं खोज पाते. शनिवार की रात सब लोग एक पांचसितारा होटल में खाना खाने गए. पहले से तय किए अनुसार सिद्धार्थ के पिताजी सिद्धार्थ के साथ बिलियर्ड खेलने चले गए. अब टेबल पर सिर्फ सिद्धार्थ की मां और जानकी ही थे. अब तक जानकी उन से काफी घुलमिल गई थी. इधरउधर की बातें करतेकरते अचानक मां ने जानकी से पूछा, ‘‘जानकी, तुम्हें सिद्धार्थ कैसा लगता है?’’

अब तक जानकी के मन में सिद्धार्थ की तरफ आकर्षण जाग चुका था लेकिन सिद्धार्थ की मां से ऐसे प्रश्न की उसे अपेक्षा नहीं थी. सकुचाते हुए जानकी ने पूछा, ‘‘क्या मतलब?’’

‘‘इस के 2 मतलब थोड़े ही हैं, मैं ने पूछा तुम्हें सिद्धार्थ कैसा लगता है? अच्छा या बुरा?’’ मां शरारतभरी मुसकान बिखेरते हुए बोलीं.

अब जानकी को कोई कूटनीतिक उत्तर सोचना था, वह चालाकी से बोली, ‘‘आप जैसे मातापिता का बेटा है, बुरा कैसे हो सकता है आंटी.’’

‘‘फिर शादी करना चाहोगी उस से?’’ मां ने बेधड़क पूछ लिया. आमतौर पर लड़की के सामने शादी का प्रस्ताव लड़का रखता है लेकिन यहां मां रख रही थी.

जवाब में जानकी खामोश रही. सिद्धार्थ की मां ने उस के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘बेटा, मैं जानती हूं कि तुम क्या सोच रही हो. रुपया, पैसा, दौलत, शोहरत एक बार चली जाए तो दोबारा आ सकती है लेकिन, रिश्ते एक बार टूट जाएं तो फिर नहीं जुड़ते, प्यार एक बार बिखर जाए तो फिर समेटा नहीं जाता और मूल्यों से एक बार इंसान भटक जाए तो फिर वापस नहीं आता. लेकिन तुम्हारी वजह से यह सब संभव हुआ है. यों कहो कि तुम ने यह सब मुमकिन किया है.‘‘सिद्धार्थ हमारा इकलौता बेटा है. पता नहीं हमारे लाड़प्यार की वजह से या कोई और कारण था, हम अपने बेटे को लगभग खो चुके थे. सिद्धार्थ के पिताजी को दिनरात यही चिंता रहती थी कि उन के जमेजमाए बिजनैस का क्या होगा? उस रात तुम से मिलने के बाद सिद्धार्थ में ऐसा बदलाव आया जिस की हम ने उम्मीद ही नहीं की थी. तुम ने चमत्कार कर दिया. तुम्हारी वजह से ही हमें हमारा बेटा वापस मिल गया. हम मातापिता हो कर अपने बच्चे को अच्छे संस्कार और मूल्य नहीं दे सके लेकिन तुम ने अनाथालय में पल कर भी वह सब गुण पा लिए. ‘‘जानकी बेटा, तुम्हारे दिल में सिद्धार्थ के लिए क्या है, मैं नहीं जानती, लेकिन वह तुम को बहुत पसंद करता है, साथ ही, मैं और सिद्धार्थ के पिताजी भी. अब बस एक ही इच्छा है कि तुम हमारे घर में बहू बन कर आओ. बोलो आओगी न?’’

जानकी झेंप गई और बस इतना ही बोल पाई, ‘‘आंटी, आप मानसी चाची से बात कर लें,’’ और जानकी का चेहरा शर्म से लाल हो गया. सिद्धार्थ के मातापिता की तय योजना के अनुसार, जिस में अब जानकी भी शामिल हो गई थी, उस के पिताजी उसे ले कर वापस आए. अब चारों साथ बैठे थे. अब चौंकने की बारी सिद्धार्थ की थी. मां ने वही सवाल अब सिद्धार्थ से पूछा, ‘‘बेटा, क्या तुम जानकी के साथ शादी करना चाहोगे?’’ सिद्धार्थ कुछ क्षणों के लिए तो सब की शक्लें देखता रहा, फिर शरमा कर उठ कर चला गया. सिद्धार्थ का यह एक नया रूप उस के मातापिता ने पहली बार देखा था.

पिताजी जानकी से बोले, ‘‘जाओ बेटा, उसे बुला कर ले आओ.’’ जानकी सिद्धार्थ के पास जा कर खड़ी हुई, दोनों ने एकदूसरे को देखा और मुसकरा दिए. 2 माह बाद अनाथालय को दुलहन की तरह सजाया गया और जानकी वहां से विदा हो गई.

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Serial Story: प्रतीक्षालय (भाग-3)

लेखिका- जागृति भागवत

पिछले अंक में आप ने पढ़ा : जानकी अनाथालय में पलीबढ़ी थी. मेहनत और प्रतिभा के बल पर पढ़ाई कर पुणे के एक कालेज में लैक्चरर के इंटरव्यू के लिए जा रही थी. ट्रेन के इंतजार में रेलवे प्रतीक्षालय में उस की मुलाकात सिद्धार्थ से होती है जो एक संपन्न व्यवसायी का बिगड़ैल बेटा था. समय काटने के लिए दोनों के बीच बातचीत का सिलसिला शुरू होता है. सबकुछ होते हुए भी जिंदगी से नाराज सिद्धार्थ को जानकी की बातें एक नया नजरिया देती हैं. सिद्धार्थ स्वयं को शांत और सुलझा हुआ महसूस करने लगता है. उस के मातापिता उस में हुए बदलाव से हैरान थे. अब आगे…

सिद्धार्थ की आंखों से नींद कोसों दूर थी. जब तक नींद ने उसे अपनी आगोश में नहीं ले लिया तब तक वह सिर्फ जानकी के बारे में ही सोचता रहा. उसे अफसोस हो रहा था कि काश, वह थोड़ी हिम्मत कर के जानकी का फोन नंबर ही पूछ लेता. न जाने अब वह जानकी को देख पाएगा भी या नहीं? अचानक उसे याद आया कि 15 दिन बाद वह पुणे ही तो आ रही है नौकरी जौइन करने. उसी समय उस ने निश्चय किया कि 15 दिन बाद वह कालेज में जा कर जानकी को खोजेगा.

सुबह 11 बजे से पहले कभी न जागने वाला सिद्धार्थ आज सुबह 8 बजे उठ गया. नहा कर नाश्ते की मेज पर ठीक 9 बजे पापा के साथ आ बैठा और बोला, ‘‘पापा, आज मैं भी आप के साथ औफिस चलूंगा.’’ पापा का चेहरा विस्मय से भर गया. मां, जो सिद्धार्थ की रगरग पहचानती थीं, नहीं समझ पाईं कि सिद्धार्थ को क्या हो गया है. बस, दोनों इसी बात से खुश हो रहे थे कि उन के बेटे में बदलाव आ रहा है. हालांकि वे आश्वस्त थे कि यह बदलाव ज्यादा दिन नहीं रहेगा. जल्द ही सिद्धार्थ काम से ऊब जाएगा. फिर उस की संगत भी तो ऐसी थी कि अगर सिद्धार्थ कोशिश करे भी, तो उस के दोस्त उसे वापस गर्त में ले जाएंगे. जानकी अनाथालय पहुंच चुकी थी. सब लोग उस के इंतजार में बैठे थे. जैसे ही जानकी पहुंची, सब उस पर टूट पड़े. जानकी, मानसी चाची को उस की कामयाबी के बारे में पहले ही फोन पर बता चुकी थी, इसलिए सब उस के स्वागत के लिए खड़े थे. आज वात्सल्य से पहली लड़की को नौकरी मिली थी. अनाथालय में उत्सव का माहौल था.

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रात को जानकी ने मानसी चाची को साक्षात्कार से ले कर सारी यात्रा का वृत्तांत काफी विस्तार से सुनाया, सिवा प्रतीक्षालय में सिद्धार् से हुई मुलाकात के. यह बात छिपाने के पीछे कोई उद्देश्य नहीं था फिर भी जानकी को यह गैरजरूरी लगा. पिछली रात नींद न आने से जानकी काफी थक गई थी, इस कारण लेटते ही नींद लग गई. सुबह भी काफी देर से जागी. पिछले 8-10 दिनों से लगातार बारिश के कारण मौसम बहुत सुहाना हो गया था. सुबह ठंडक और बढ़ गई थी. नींद खुलने के बाद भी उस का उठने का मन नहीं हो रहा था. जानकी उठी और बाहर आंगन में आ कर बैठ गई. बारिश रुक चुकी थी और हलकी धूप खिली थी लेकिन गमलों की मिट्टी अभी भी गीली थी. ठंडी हवाएं अब भी चल रही थीं. लगा कि कोई शौल ओढ़ ली जाए. ऐसे में अचानक ही उसे सिद्धार्थ का खयाल आया, ‘अब तक तो वह भी अपने घर पहुंच गया होगा. क्या लड़का था, थोड़ा अजीब लेकिन काफी उलझा सा था. काफी नकारात्मक सोच थी, यदि सोच को सही दिशा दे देगा तो बहुत कुछ पा सकता है.’ जानकी की यादों की लड़ी तब टूटी जब मानसी चाची ने आ कर पूछा, ‘‘अरे जानकी बेटा, तू कब उठी?’’

‘‘बस, अभी उठी हूं, चाची,’’ थोड़ी हड़बड़ाहट में जानकी ने जवाब दिया, लगा जैसे उस की कोई चोरी पकड़ी गई हो और उठ कर रोजमर्रा के कामों में जुट गई. धीरेधीरे दिन बीतते गए और जानकी के पुणे जाने के दिन करीब आते गए. जानकी को काफी तैयारियां करनी थीं. पुणे जा कर सब से बड़ी दिक्कत उस के रहने की व्यवस्था थी. पुणे में वह किसी को नहीं जानती थी. इस बीच उसे कई बार ऐसा लगा कि उस ने सिद्धार्थ से उस का मोबाइल नंबर क्यों नहीं लिया. शायद, उस अनजान शहर में वह कुछ मदद करता उस की. अनाथालय को छोड़ कर मानसी चाची भी उस के साथ नहीं जा सकती थीं. इसी चिंता में वे आधी हुई जा रही थीं कि जानकी का क्या होगा वहां, अनजान शहर में बिलकुल अकेली, कैसे रहेगी. सिद्धार्थ में आया बदलाव बरकरार था. पहले वह काफी गुस्सैल था और अब काफी शांत हो चुका था, बोलता भी काफी कम था, लगभग गुमसुम सा रहने लगा था. कोई दोस्तीयारी नहीं, कोई नाइट पार्टीज और बाइक राइडिंग नहीं. मां ने कई बार पूछा इस बदलाव का कारण लेकिन सिद्धार्थ ने मां से सिर्फ इतना ही कहा, ‘‘मौम, जब जागो तभी सवेरा होता है और मुझे भी एक न एक दिन तो जागना ही था, अब मान लो कि वह दिन आ चुका है. बस, आप लोग जैसा सिद्धार्थ चाहते थे वैसा बनने की कोशिश कर रहा हूं.’’

सिद्धार्थ को अब उस दिन का इंतजार था जब जानकी पुणे आने वाली थी. निश्चित तारीख तो उसे पता नहीं थी लेकिन वह उस रात के बाद से हिसाब लगा रहा था. अब उसे एहसास हो रहा था कि जानकी उस के दिलोदिमाग पर छा चुकी है. वही लड़की है जो उस के लिए बनी है, अगर वह उस की जिंदगी में आ जाए तो सिद्धार्थ के लिए किसी से कुछ मांगने के लिए बचेगा ही नहीं. इस बीच, वह जा कर पुणे आर्ट्स कालेज का पता लगा कर आ चुका था और यह भी पता कर चुका था कि जानकी कब आने वाली है. 15 सितंबर वह तारीख थी जिस का अब सिद्धार्थ को बेसब्री से इंतजार था. आखिर वह दिन आ गया. 14 सितंबर को जानकी पुणे के लिए रवाना होने वाली थी. यहां अनाथालय में खुशी और दुख साथसाथ बिखर रहे थे. मानसी चाची की तो एक आंख रो रही थी तो दूसरी आंख हंस रही थी. एक ओर तो उन की बेटी आज नौकरी करने जा रही है लेकिन उसी बेटी से बिछड़ने का गम भी खुशी से कम नहीं था. आखिर जानकी पुणे के लिए रवाना हो गई.

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सुबहसुबह पुणे पहुंच कर उस ने स्टेशन के पास ही एक ठीकठाक होटल खोज लिया. तैयार हो कर नियत समय पर कालेज पहुंच गई. सारी जरूरी कार्यवाही पूरी करने के बाद कालेज की एक प्रोफैसर ने उसे पूरा कालेज दिखाया और सारे स्टाफ व विद्यार्थियों से परिचय भी करवाया. इस बीच, उस ने उस प्रोफैसर से रहने की व्यवस्था के बारे में पूछा. उस प्रोफैसर ने कुछ एक जगह बताईं लेकिन पुणे बहुत महंगा शहर है, जानकी के लिए ज्यादा खर्चा करना मुमकिन नहीं था. इधर सिद्धार्थ ने पापा से एक दिन की छुट्टी ले ली थी. सुबह से काफी उत्साहपूर्ण लग रहा था. उस के तैयार होने का ढंग भी कुछ अलग ही था. मां सबकुछ देख रही थीं और समझने की कोशिश कर रही थीं. बेटा चाहे जितना भी बदल जाए, मां उस का मन फिर भी पढ़ लेती है. लेकिन मां खामोशी से सब देखती भर रहीं, कुछ बोली नहीं.

कालेज देखने के बाद प्रधानाचार्य ने जानकी से अगले दिन से लैक्चर्स लेने को कहा. जानकी कालेज से बाहर निकली तो क्या देखा, सामने सिद्धार्थ खड़ा था. उसे पहचानने में जानकी को कुछ क्षण लगे, क्योंकि सिद्धार्थ का हुलिया बिलकुल बदला हुआ था. फटी जीन्स, फंकी टीशर्ट की जगह शर्टपैंट पहने था, बेढंगे बाल आज अच्छे कढ़े हुए थे और वह स्केचपैन जैसी दाढ़ी तो गायब ही थी. जानकी उसे देख कर आश्चर्य से चिल्ला पड़ी, ‘‘आप…यहां?’’ सिद्धार्थ के चेहरे की खुशी छिपाए नहीं छिप रही थी, मुसकराते हुए बोला, ‘‘हां, आप ने बताया था न कि आज आप  पुणे आने वाली हैं, तो मैं ने सोचा कि आप को सरप्राइज दिया जाए. यह भी सोचा, पता नहीं आप यहां किसी को जानती होंगी या नहीं, पता नहीं आप के साथ कोई आया होगा या नहीं, आप काफी परेशान होतीं, इसलिए मैं आ गया.’’ जानकी ने भरपूर अचरज से पूछा, ‘‘लेकिन आज की तारीख आप को कैसे पता चली?’’

‘‘अब वह सब छोडि़ए, पहले यह बताइए कि आप अकेली ही आई हैं, कोई जानपहचान का है क्या यहां, रहने के बारे में क्या सोचा है,’’ सिद्धार्थ ने उस के सवाल को टालते हुए कई सारे सवाल उस के सामने रख दिए. जानकी हंस पड़ी, बोली, ‘‘अरे सांस तो ले लो जरा, मैं सब बताती हूं. मैं अकेली ही आई हूं, यहां आप के सिवा किसी को नहीं जानती और अभी स्टेशन के पास एक होटल में रुकी हूं. रहने की व्यवस्था अभी नहीं हुई है.’’

‘‘आप मेरे साथ चलें,’’ कहता हुआ सिद्धार्थ उसे काले रंग की कार की तरफ ले गया और पूछा, ‘‘आप ने ब्रेकफास्ट किया है या नहीं?’’

‘‘हां, सुबह चाय के साथ थोड़े स्नैक्स लिए थे,’’ जानकी ने थोड़े संकोच के साथ जवाब दिया.

‘‘बस, इतना ही, अब तो 2 बज चुके हैं,’’ कार का गेट खोलते हुए सिद्धार्थ बोला. जानकी कार में बैठने के लिए हिचकिचा रही थी. सिद्धार्थ को उस की हिचकिचाहट को समझने में देर नहीं लगी. वह बोला, ‘‘आय कैन अंडरस्टैंड जानकीजी. आप मुझे जानती ही कितना हैं जो मेरे साथ चलने को तैयार हो जाएं. मैं ने ऐक्साइटमैंट मेंयह सब सोचा ही नहीं.’’

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‘‘कैसा ऐक्साइटमैंट?’’

सिद्धार्थ जबान पर काबू न रख पाया और बोल पड़ा, ‘‘आप के आने का ऐक्साइटमैंट.’’ जानकी थोड़ी असहज हो गई और सिद्धार्थ को भी अपनी गलती तुरंत समझ आ गई. बात को बदलते हुए उस ने कहा, ‘‘मैं सोच रहा था आप लंच कर लेते तो…’’ जानकी कार में बैठते हुए सिद्धार्थ के लहजे में बोली, ‘‘तो चलें सिद्धार्थजी?’’ दोनों एक होटल में गए, साथ में खाना खाया. सिद्धार्थ ने जानकी से कालेज के बारे में काफी पूछताछ कर डाली.

जानकी ने भी पूछ लिया, ‘‘आप इतने बदल कैसे गए?’’

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Serial Story: प्रतीक्षालय (भाग-2)

लेखिका- जागृति भागवत

‘‘न कोई भाई न बहन, इकलौता हूं. इसीलिए सब को बहुत उम्मीदें हैं मुझ से.’’ सिद्धार्थ की आवाज में काफी उदासी थी. जानकी ने संवाद को आगे बढ़ाते हुए पूछा, ‘‘और आप उन की उम्मीदें पूरी नहीं कर रहे हैं? आप उन की इकलौती संतान हैं, आप से उम्मीदें नहीं होंगी तो किस से होंगी. आप के लिए जमाजमाया बिजनैस है और आप उस के मुताबिक ही क्वालिफाइड भी हैं, मतलब बिना किसी संघर्ष के आप वह सब पा सकते हैं जिसे पाने के लिए लोगों की आधी जिंदगी निकल जाती है.’’ ये सब कह कर तो जानकी ने जैसे सिद्धार्थ की दुखती रग पर हाथ रख दिया हो. वह बिफर पड़ा, ‘‘ये सब बातें देखनेसुनने में अच्छी लगती हैं मैम, जिस पर बीतती है वह ही इस का दर्द जानता है. अगर पिता डाक्टर हैं तो बेटे को डाक्टर ही बनना होगा ताकि पिता का हौस्पिटल आगे चल सके. पिता वकील हैं तो बेटा भी वकील ही बने ताकि पिता की वकालत आगे बढ़ सके, ऐसा क्यों? टीचर का बेटा टीचर बने, यह जरूरी नहीं, बैंकर का बेटा बैंकर बने, यह भी जरूरी नहीं फिर ये बिजनैस कम्युनिटी में पैदा हुए बच्चों की सजा जैसी है कि उन्हें अपनी चौइस से अपना प्रोफैशन चुनने का अधिकार नहीं है, अपना कैरियर बनाने का अधिकार नहीं है. मैं ने तो नहीं कहा था अपने पिता से कि वे बिजनैस करें, फिर वे मेरी रुचि में इंटरफेयर क्यों करें?’’

जानकी सोच भी नहीं सकती थी कि ऐसे फ्लर्ट से दिखने वाले नौजवान के अंदर इतनी आग होगी. जानकी ने बहस के लहजे में उस से कहा, ‘‘जिसे आप सजा कह रहे हैं, वह असल में आप के लिए सजा है, जब तक इंसान के सिर पर छत और थाली में खाना सजा मिलता है, तभी तक उसे कैरियर में चौइस और रुचि जैसे शब्द सुहाते हैं. जब बेसिक नीड्स भी पूरी नहीं होती है तब जो काम मिले, इंसान करने को तैयार होता है. कभी उन के बारे में भी सोच कर देखें, तब आप को आप से ज्यादा खुश कोई नहीं लगेगा.’’ ‘‘मैम, अगर आप मेरी जगह होतीं तो मेरी पीड़ा समझ पातीं, आप के पेरैंट्स ने कभी आप की लाइफ में इतना इंटरफेयर नहीं किया होगा, तभी आप इतनी बड़ीबड़ी बातें कर पा रही हैं.’’ सिद्धार्थ की आवाज में थोड़ा रूखापन था. जवाब में जानकी ने कहा, ‘‘इंटरफेयर तो तब करते न जब वे मेरे पास होते.’’

यह सुनते ही सिद्धार्थ के चेहरे के भाव ही बदल गए. वह क्या पूछे और कैसे पूछे, समझ नहीं पा रहा था. फिर आहिस्ता से पूछा, ‘‘सौरी मैम, कोई दुर्घटना हो गई थी?’’ ‘‘नहीं जानती,’’ जानकी की आवाज ने उसे व्याकुल कर दिया. ‘‘नहीं जानती, मतलब?’’ सिद्धार्थ ने आश्चर्य से पूछा. इस पर जानकी ने बिना किसी भूमिका के बताया, ‘‘नहीं जानती, मतलब मैं नहीं जानती कि वे लोग अब जिंदा हैं या नहीं. मैं ने तो उन्हें कभी देखा भी नहीं है. जब मेरी उम्र लगभग 4-5 दिन थी तभी उन लोगों ने या अकेली मेरी मां ने मुझे इंदौर के एक अनाथालय ‘वात्सल्य’ के बाहर एक चादर में लपेट कर धरती मां की गोद में छोड़ दिया, जाने क्या वजह थी. तब से ‘वात्सल्य’ ही मेरा घर है और उसे चलाने वाली मानसी चाची ही मेरी मां हैं. मैं धरती की गोद से आई थी, इसलिए मानसी चाची ने मेरा नाम जानकी रखा. न मैं अपने मातापिता को जानती हूं और न ही मुझे उन से कोई लगाव है.

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‘‘मैं जानती हूं कि मातापिता के साथ रहना निसंदेह बहुत अच्छा होता होगा लेकिन मैं उस सुख की कल्पना भी नहीं कर सकती. जिद क्या होती है, चाहतें क्या होती हैं, बचपन क्या होता है, ये सब सिर्फ पढ़ा है. मानसी चाची ने हम सब को भरपूर दुलार दिया क्योंकि स्नेह को पैसों से खरीदने की जरूरत नहीं होती. हमारी मांगें पूरी करना, हमारा जन्मदिन मनाना जैसी इच्छाएं ‘वात्सल्य’ के लिए फुजूलखर्ची थीं. मानसी चाची ने हमें कभी किसी चीज के लिए मना नहीं किया लेकिन डोनेशंस से सिर्फ बेसिक नीड्स ही पूरी हो सकती थीं.’’ ये सब सुनने के बाद सिद्धार्थ अवाक् रह गया. आश्चर्य, दुख, दया, स्नेह और कई भाव एकसाथ सिद्धार्थ के चेहरे पर तैरने लगे. उन दोनों के अलावा वहां अब कोई नहीं था. अगले 10-15 मिनट प्रतीक्षालय में सन्नाटा छाया रहा. न कोई संवाद न कोई हलचल. सिद्धार्थ के मन में जानकी का कद बहुत ऊंचा हो गया. उस ने जानकी से बातचीत सिर्फ समय काटने के उद्देश्य से शुरू की थी. वह नहीं जानता था कि आज जीवन की इतनी बड़ी सचाई से उस का सामना होने वाला है. फिर सिद्धार्थ ने प्रतीक्षालय में पसरी खामोशी को तोड़ते हुए कहा, ‘‘आय एम सौरी मैम, मेरा मतलब है जानकीजी. मैं सोच भी नहीं सकता था कि…मैं आवेश में पता नहीं क्याक्या बोल गया, आय एम रियली सौरी.’’

जानकी ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘मेरे चेहरे पर तो सब लिखा नहीं था, और आप तो मुझ से आज पहली बार मिले हैं, सब कैसे जानते भला? फिर भी एक बात अच्छी हुई है, इस बहाने कम से कम आप मेरा नाम तो जान गए.’’ सिद्धार्थ ने थोड़ा ?मुसकराते हुए अचरजभरे अंदाज में बोला, ‘‘या दैट्स राइट.’’ ‘‘तब से मैममैम कर रहे थे आप और हां, ये ‘डैड’ क्या होता है, अच्छेखासे जिंदा आदमी को डैड क्यों कहते हैं,’’ कहते हुए पहली बार जानकी खिलखिलाई. सिद्धार्थ अब थोड़ा सहज हो गया था. उसे जानकी से और विस्तार से पूछने में हिचक हो रही थी, लेकिन जिज्ञासा बढ़ रही थी, इसलिए उस ने पूछ ही लिया, ‘‘आप को देख कर लगता नहीं है कि आप अनाथालय में पलीबढ़ी हैं, आय मीन आप की एजुकेशन वगैरा?’’ ‘‘सब मानसी चाची ने ही करवाई. जब मैं छोटी थी तब लगभग 19-20 लड़कियां थीं ‘वात्सल्य’ में, सब अलगअलग उम्र की. सामान्यतया अनाथालय के बच्चों को वोकेशनल ट्रेनिंग दी जाती है ताकि वे अपने पैरों पर खड़े हो सकें. हमारे यहां भी सभी लड़कियों को स्कूल तो भेजा गया. कोई 5वीं, कोई 8वीं तक पढ़ी, पर कोई भी 10वीं से ज्यादा पढ़ नहीं सकी. फिर उन्हें सिलाई, कढ़ाई, बुनाई, अचारपापड़ बनाना जैसे छोटेछोटे काम सिखाए गए ताकि वे आत्मनिर्भर हो सकें. सिर्फ मैं ही थी जिस ने 12वीं तक पढ़ाई की. मेरी रुचि पढ़ाई में थी और मेरे मार्क्स व लगन देख कर मानसी चाची ने मुझे आगे पढ़ने दिया. अनाथालय में जो कुटीर उद्योग चलते थे उस से अनाथालय की थोड़ीबहुत कमाई भी होती थी. अनाथालय की सारी लड़कियां मेरी पढ़ाई के पक्ष में थीं और इस कमाई में से कुछ हिस्सा मेरी पढ़ाई के लिए मिलने लगा. मेरी भी जिम्मेदारी बढ़ गई. सब को मुझ से बहुत उम्मीदें हैं. मुझे उन लोगों के सपने पूरे करने हैं जिन्होंने न तो मुझे जन्म दिया है और न ही उन से कोई रिश्ता है. अपनों के लिए तो सभी करते हैं, जो परायों के लिए करे वही महान होता है. चूंकि साइंस की पढ़ाई काफी खर्चीली थी, सो मैं ने आर्ट्स का चुनाव किया, बीए किया, फिर इतिहास में एमए किया. फिर एक दिन अचानक इस लैक्चरर की पोस्ट के लिए इंटरव्यू कौल आई. वही इंटरव्यू देने पुणे गई थी.’’

‘‘फिर सैलेक्शन हो गया आप का?’’ अधीरता से सिद्धार्थ ने पूछा. जानकी ने बताया, ‘‘हां, 15 दिन में जौइन करना है.’’  इसी तरह से राजनीति, फिल्मों, बाजार आदि पर बातचीत करते समय कैसे गुजर गया, पता ही नहीं चला. लगभग 2:30 बजे जानकी की गाड़ी की घोषणा हुई. इन 5-6 घंटों की मुलाकात में दोनों ने एकदूसरे को इतना जान लिया था जैसे बरसों की पहचान हो. जानकी के जाने का समय हो चुका था लेकिन सिद्धार्थ उस का फोन नंबर लेने की हिम्मत नहीं जुटा पाया. बस, इतना ही बोल पाया, ‘‘जानकीजी, पता नहीं लाइफ में फिर कभी हम मिलें न मिलें, लेकिन आप से मिल कर बहुत अच्छा लगा. आप के साथ बिताए ये 5-6 घंटे मेरे लिए प्रेरणा के स्रोत रहेंगे. मैं ने आज आप से बहुत कुछ सीखा है.’’

‘‘अरे भई, मैं इतनी भी महान नहीं हूं कि किसी की प्रेरणास्रोत बन सकूं. हो सकता है कि दुनिया में ऐसे भी लोग होंगे जो मुझ से भी खराब स्थिति में हों. मैं तो खुद अच्छा महसूस करती हूं कि जिन से मेरा कोई खून का रिश्ता नहीं है, उन्होंने मेरे जीवन को संवारा है. आप सर्वसाधन संपन्न हो कर भी अपनेआप को इतना बेचारा समझते हैं. मैं आप से यही कहना चाहूंगी कि जो हम से बेहतर हालात में रहते हैं, उन से प्रेरणा लो और जो हम से बेहतर हालात में रहते हैं, उन तक पहुंचने की कोशिश करो. यह मान कर चलना चाहिए कि जो हो रहा है, सब किसी एक की मरजी से हो रहा है और वह कभी किसी का गलत नहीं कर सकता. बस, हम ही ये बात समझ नहीं पाते. एनी वे, मैं चलती हूं, गुड बाय,’’ कह कर जानकी ने अपना बैग उठाया और जाने लगी. सिद्धार्थ ने सोचा ट्रेन तक ही सही कुछ समय और मिल जाएगा जानकी के साथ. और वह उस के पीछेपीछे दौड़ा. बोला, ‘‘जानकीजी, मैं आप को ट्रेन तक छोड़ देता हूं.’’

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जानकी ने थोड़ी नानुकुर की लेकिन सिद्धार्थ की जिद पर उस ने अपना बैग उस के हाथ में दे दिया. जल्द ही ट्रेन प्लेटफौर्म पर आ गई और जानकी चली गई. सिद्धार्थ के लिए वक्त जैसे थम सा गया. जानकी से कोई जानपहचान नहीं, कोई दोस्ती नहीं, लेकिन एक अजीब सा रिश्ता बन गया था. पिछले 5-6 घंटों में उस ने अपने ?अंदर जितनी ऊर्जा महसूस की थी, अब उतना ही कमजोर महसूस कर रहाथा. भारी मन से वह वापस प्रतीक्षालय लौट आया. अब उस के लिए समय काटना बहुत मुश्किल हो गया था. जानकी का खयाल उस के दिमाग से एक मिनट के लिए भी जा नहीं रहा था. रहरह कर उसे जानकी की बातें याद आ रही थीं. अब उसे एहसास हो रहा था कि वह आज तक कितना गलत था. इतना साधन संपन्न होने के बाद भी वह कितना गरीब था. आज अचानक ही वह खुद को काफी शांत और सुलझा हुआ महसूस कर रहा था. उस के मातापिता ने आज तक जो कुछ उस के लिए किया था उस का महत्त्व उसे अब समझ में आ रहा था. उसे लगा, सच ही तो है कि पिता के व्यवसाय को बेटा आगे नहीं बढ़ाएगा तो उस के पिता की सारी मेहनत बरबाद हो जाएगी. लोग पहली सीढ़ी से शुरू करते हैं, उसे तो सीधे मंजिल ही मिल गई है. कितनी मुश्किलें हैं दुनिया में और वह खुद को बेचारा समझता था. वह आत्मग्लानि के सागर में गोते लगा रहा था. बारबार मन स्वयं को धिक्कार रहा था कि आज तक मैं ने क्याक्या खो दिया. मन विचारमग्न था तभी अगली गाड़ी की घोषणा हुई, जिस से सिद्धार्थ को पुणे जाना था.

अगले दिन सिद्धार्थ पुणे पहुंच गया. रात जाग कर काटी थी. अब काफी थकान महसूस हो रही थी और नींद न होने से भारीपन भी. जब घर पहुंचा तो पिताजी औफिस जा चुके थे. मां ने ही थोड़े हालचाल पूछे. नहाधो कर सिद्धार्थ ने खाना खाया और सो गया. जब जागा तो डैड, जो अब उस के लिए पापा हो गए थे, वापस आ चुके थे. नींद खुलते ही सिद्धार्थ के दिमाग में वही प्रतीक्षालय और जानकी घूमने लगे. रात को तीनों साथ बैठे. सिद्धार्थ के हावभाव बदले हुए थे. मातापिता को लगा सफर की थकान है. जो सैंपल सिद्धार्थ लाया था उस ने वह पापा को दिखाए और काफी लगन से उन की गुणवत्ता पर चर्चा करने लगा. वह क्या बोल रहा था, इस पर पापा का ध्यान ही नहीं था, वे तो विश्वास ही नहीं कर पा रहे थे कि ये सब बातें सिद्धार्थ बोल रहा है जिसे उन के व्यवसाय में रत्ती भर भी रुचि नहीं है.

सिद्धार्थ बातों में इतना तल्लीन था कि समझ नहीं पाया कि पापा उसे निहार रहे हैं. रात का खाना खा कर वह फिर सोने चला गया. मातापिता दोनों ने इतने कम समय में सिद्धार्थ में बदलाव महसूस किया लेकिन कारण समझ नहीं सके. सिद्धार्थ के स्वभाव को जानते हुए उन के लिए इसे बदलाव समझना असंभव था.

क्रमश:

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Serial Story: प्रतीक्षालय (भाग-1)

लेखिका- जागृति भागवत

हाथ में एक छोटा सा हैंडबैग लिए हलके पीले रंग का चूड़ीदार कुरता पहने जानकी तेज कदमों से प्रतीक्षालय की ओर बढ़ी आ रही थी. यहां आ कर देखा तो प्रतीक्षालय यात्रियों से खचाखच भरा हुआ था. बारिश की वजह से आज काफी गाडि़यां देरी से आ रही थीं. उस ने भीड़ में देखा, एक नौजवान एक कुरसी पर बैठा था तथा दूसरी पर अपना बैग रख कर उस पर टिक कर सो रहा था, पता नहीं सो रहा था या नहीं. एक बार उस ने सोचा कि उस नौजवान से कहे कि बैग को नीचे रखे ताकि एक यात्री वहां बैठ सके, परंतु कानों में लगे इयरफोंस, बिखरे बेढंगे बाल, घुटने से फटी जींस, ठोड़ी पर थोड़ी सी दाढ़ी, मानो किसी ने काले स्कैचपैन से बना दी हो, इस तरह के हुलिया वाले नौजवान से कुछ समझदारी की बात कहना उसे व्यर्थ लगा. वह चुपचाप प्रतीक्षालय के बाहर चली गई.

मनमाड़ स्टेशन के प्लेटफौर्म पर यात्रियों के लिए कुछ ढंग की व्यवस्था भी नहीं है, बाहर बड़ी मुश्किल से जानकी को बैठने के लिए एक जगह मिली. ट्रेन रात 2:30 बजे की थी और अभी शाम के 6:30 बजे थे. रोशनी मंद थी, फिर भी उस ने अपने बैग में से मुंशी प्रेमचंद का उपन्यास ‘गोदान’ निकाला और पढ़ने लगी. गाडि़यां आतीजाती रहीं. प्लेटफौर्म पर कभी भीड़ बढ़ जाती तो कभी एकदम गायब हो जाती. 8 बज चुके थे, प्लेटफौर्म पर अंधेरा हो गया था. प्लेटफौर्म की मंद बत्तियों से मोमबत्ती जैसी रोशनी आ रही थी. सारे दिन की बारिश के बाद मौसम में ठंडक घुल गई थी. जानकी ने एक बार फिर प्रतीक्षालय जा कर देखा तो वहां अब काफी जगह हो गई थी.

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जानकी एक अनुकूल जगह देख कर वहां बैठ गई. उस ने चारों तरफ नजर दौड़ाई तो लगभग 15-20 लोग अब भी प्रतीक्षालय में बैठे थे. वह नौजवान अब भी वहीं बैठा था. कुरसियां खाली होने का फायदा उठा कर अब वह आराम से लेट गया था. 2 लड़कियां थीं. पहनावे, बालों का ढंग और बातचीत के अंदाज से काफी आजाद खयालों वाली लग रही थीं. उन के अलावा कुछ और यात्री भी थे, जो जाने की तैयारी में लग रहे थे, शायद उन की गाड़ी के आने की घोषणा हो चुकी थी. जल्द ही उन की गाड़ी आ गई और अब प्रतीक्षालय में जानकी के अलावा सिर्फ वे 2 युवतियां और वह नौजवान था, जो अब सो कर उठ चुका था. देखने से तो वह किसी अच्छे घर का लगता था पर कुछ बिगड़ा हुआ, जैसे किसी की इकलौती संतान हो या 5-6 बेटियों के बाद पैदा हुआ बेटा हो.

नौजवान उठ कर बाहर गया और थोड़ी देर में चाय का गिलास ले कर वापस आया. अब तक जानकी दोबारा उपन्यास पढ़ने में व्यस्त हो चुकी थी. थोड़ी देर बाद युवतियों की आवाज तेज होने से उस का ध्यान उन पर गया. वे मौडर्न लड़कियां उस नौजवान में काफी रुचि लेती दिख रही थीं. नौजवान भी बारबार उन की तरफ देख रहा था. लग रहा था जैसे इस तरह वे तीनों टाइमपास कर रहे हों. जानकी को टाइमपास का यह तरीका अजीब लग रहा था. उन तीनों की ये नौटंकी काफी देर तक चलती रही. इस बीच प्रतीक्षालय में काफी यात्री आए और चले गए. जानकी को एहसास हो रहा था कि वह नौजवान कई बार उस का ध्यान अपनी तरफ खींचने का प्रयास कर रहा था, परंतु उस ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. अब तक 9:00 बज चुके थे. जानकी को अब भूख का एहसास होने लगा था. उस ने अपने साथ ब्रैड और मक्खन रखा था. आज यही उस का रात का खाना था. तभी किसी गाड़ी के आने की घोषणा हुई और वे लड़कियां सामान उठा कर चली गईं. अब 2-4 यात्रियों के अलावा प्रतीक्षालय में सिर्फ वह नौजवान और जानकी ही बचे थे. नौजवान को भी अब खाने की तलाश करनी थी. प्रतीक्षालय में जानकी ही उसे सब से पुरानी लगी, सो उस ने पास जा कर धीरे से उस से कहा, ‘‘एक्सक्यूज मी मैम, क्या मैं आप से थोड़ी सी मदद ले सकता हूं?’’

जानकी ने काफी आश्चर्य और असमंजस से नौजवान की तरफ देखा, थोड़ी घबराहट में बोली, ‘‘कहिए.’’ ‘‘मुझे खाना खाने जाना है, अगर आप की गाड़ी अभी न आ रही हो तो प्लीज मेरे सामान का ध्यान रख सकेंगी?’’ ‘‘ओके,’’ जानकी ने अतिसंक्षिप्त उत्तर दिया और नौजवान चला गया. लगभग 1 घंटे बाद वह वापस आया, जानकी को थैंक्स कहने के बहाने उस के पास आया और कहा, ‘‘यहां मनमाड़ में खाने के लिए कोई ढंग का होटल तक नहीं है.’’

‘‘अच्छा?’’ फिर जानकी ने कम से कम शब्दों का इस्तेमाल करना उचित समझा.

‘‘आप यहां पहली बार आई हैं क्या?’’ बात को बढ़ाते हुए नौजवान ने पूछा.

‘‘जी हां.’’ जानकी ने नौजवान की ओर देखे बिना ही उत्तर दिया. अब तक शायद नौजवान की समझ में आ गया था कि जानकी को उस से बात करने में ज्यादा रुचि नहीं है.

‘‘एनी वे, थैंक्स,’’ कह कर उस ने अपनी जगह पर जाना ही ठीक समझा. जानकी ने भी राहत की सांस ली. पिछले 4 घंटों में उस ने उस नौजवान के बारे में जितना समझा था, उस के बाद उस से बात करने की सोच भी नहीं सकती थी. जानकी की गाड़ी काफी देर से आने वाली थी. शुरू में उस ने पूछताछ खिड़की पर पूछा था तब उन्होंने 2:00 बजे तक आने को कहा था. अब न तो वह सो पा रही थी न कोई बातचीत करने के लिए ही था. किताब पढ़तेपढ़ते भी वह थक गई थी. वैसे भी प्रतीक्षालय में रोशनी ज्यादा नहीं थी, इसलिए पढ़ना मुश्किल हो रहा था. नौजवान को भी कुछ सूझ नहीं रहा था कि क्या करे. वैसे स्वभाव के मुताबिक उस की नजर बारबार जानकी की तरफ जा रही थी. यह बात जानकी को भी पता चल चुकी थी. वह दिखने में बहुत सुंदर तो नहीं थी, लेकिन एक अनूठा सा आकर्षण था उस में. चेहरे पर गजब का तेज था. नौजवान ने कई बार सोचा कि उस के पास जा कर कुछ वार्त्तालाप करे लेकिन पहली बातचीत में उस के रूखे व्यवहार से उस की दोबारा हिम्मत नहीं हो रही थी. नौजवान फिर उठ कर बाहर गया. चाय के 2 गिलास ले कर बड़ी हिम्मत जुटा कर जानकी के पास जा कर कहा, ‘‘मैम, चाय.’’ इस से पहले कि जानकी कुछ समझ या बोल पाती, उस ने एक गिलास जानकी की ओर बढ़ा दिया. जानकी ने चाय लेते हुए धीरे से मुसकरा कर कहा, ‘‘थैंक्स.’’ नौजवान को हिम्मत देने के लिए इतना काफी था. थोड़ी औपचारिक भाषा में कहा, ‘‘क्या मैं आप से थोड़ी देर बातें कर सकता हूं?’’

जानकी कुछ क्षण रुक कर बोली, ‘‘बैठिए.’’

एक कुरसी छोड़ कर नौजवान बैठ गया. जानकी ने यह सोच कर उसे बैठने के लिए कह दिया कि लड़का चाहे जैसा भी हो, थोड़ी देर बात कर के बोरियत तो दूर होगी. चाय की चुस्कियां लेते हुए नौजवान ने ही शुरुआत की, ‘‘मेरा नाम सिद्धार्थ है, पर मेरे दोस्त मुझे ‘सिड’ कहते हैं.’’

‘‘क्यों? सिद्धार्थ में क्या बुराई है?’’ जानकी ने टोका. सिद्धार्थ को इस एतराज की उम्मीद नहीं थी, थोड़ा हिचकिचाते हुए वह बोला, ‘‘सि-द्-धा-र्थ काफी लंबा नाम है न और काफी पुराना भी, इसलिए दोस्तों ने उस का शौर्टकट बना दिया है.’’

‘‘अमिताभ बच्चन, स्टैच्यू औफ लिबर्टी, सैंट फ्रांसिस्को, ग्रेट वौल औफ चाइना वगैरा नाम पचास बार भी लेना हो तो आप पूरा नाम ही लेते हैं, उस का तो शौर्टकट नहीं बनाते, फिर इतने अच्छे नाम का, जो सिर्फ साढ़े 3 अक्षरों का है, शौर्टकट बना दिया. जब बच्चा पैदा होता है तब मातापिता नामों की लंबी लिस्ट से कितनी मुश्किल से एक ऐसा नाम पसंद करते हैं जो उन के बच्चे के लिए फिट हो. बच्चा भी वही नाम सुनसुन कर बड़ा होता है और बड़ा हो कर दोस्तों के कहने पर अपना नाम बदल देता है. नाम के नए या पुराने होने से कुछ नहीं होता, गहराई उस के अर्थ में होती है.’’ पिछले 3 दिनों में जानकी ने पहली बार किसी से इतना लंबा वाक्य बोला था. पिछले 3 दिनों से वह अकेली थी, इसलिए किसी से बातचीत नहीं हो पा रही थी. शायद इसीलिए उस ने सिद्धार्थ से बातें करने का मन बनाया था. परंतु सिद्धार्थ एक मिनट के लिए सोच में पड़ गया कि उस ने जानकी के पास बैठ कर ठीक किया या नहीं. थोड़ा संभलते हुए कहा, ‘‘आप सही कह रही हैं, वैसे आप कहां जा रही हैं?’’ सिद्धार्थ ने बात बदलते हुए पूछा.

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‘‘इंदौर जा रही हूं, और आप कहां जा रहे हैं?’’

‘‘मैं पुणे जा रहा हूं, आज से महाराष्ट्र में टैक्सी वालों की हड़ताल शुरू हो गई है, इसलिए ट्रेन से जाना पड़ रहा है, एक तो ये गाडि़यां भी कितनी लेट चल रही हैं. आज यहां मनमाड़ में कैसे?’’ सिद्धार्थ ने बातों की दिशा को मोड़ते हुए पूछा. अब जानकी, सिद्धार्थ के साथ थोड़ा सहज महसूस कर रही थी. कहा, ‘‘मैं पुणे गई थी लेक्चरर का इंटरव्यू देने, लौटते समय एक दिन के लिए नासिक गई थी, अब वापस इंदौर जा रही हूं.’’

‘‘पुणे में किस कालेज में इंटरव्यू देने गई थीं आप?’’ सिद्धार्थ ने जानकारी लेने के उद्देश्य से पूछा.

‘‘पुणे आर्ट्स ऐंड कौमर्स से हिस्ट्री के प्रोफैसर की पोस्ट के लिए इंटरव्यू कौल आया था.’’

‘‘हिस्ट्री प्रोफैसर? आप हिस्ट्री में रुचि रखती हैं?’’ सिद्धार्थ ने चौंकते हुए पूछा. जानकी को उस की प्रतिक्रिया बड़ी अजीब लगी, उस ने पूछा, ‘‘क्यों? हिस्ट्री में क्या बुराई है? हमारे इतिहास में इतना कुछ छिपा है कि एक पूरी जिंदगी भी कम पड़े जानने में.’’ सिद्धार्थ अब जानकी से सिर्फ टाइमपास के लिए बातें नहीं कर रहा था, उसे जानकी के व्यक्तित्व में झांकने का मन होने लगा था. पिछले कुछ घंटों से वह दूर से जानकी को देख रहा था. वह जैसी दिख रही थी वैसी थी नहीं. उस ने सोचा था कि वह एक शर्मीली, छुईमुई, अंतर्मुखी, घरेलू टाइप की लड़की होगी. परंतु उस की शैक्षणिक योग्यता, उस के विचारों का स्तर और विशेषकर उस का आत्मविश्वास देख कर सिद्धार्थ समझ गया कि वह उन लड़कियों से बिलकुल अलग है जो टाइमपास के लिए होती हैं. कुछ देर वह शांत बैठा रहा. अब तक दोनों की चाय खत्म हो चुकी थी. आमतौर पर जानकी कम ही बोलती थी, पर यह चुप्पी उसे काफी असहज लग रही थी, सो उसी ने बात शुरू की. सिद्धार्थ के बाएं हाथ पर लगी क्रेप बैंडेज देख कर उस ने पूछा, ‘‘यह चोट कैसे लगी आप को?’’

‘‘मैं बाइक से स्लिप हो गया था.’’

‘‘बहुत तेज चलाते हैं क्या?’’

‘‘मैं दोस्तों के साथ नाइटराइड पर था, थोड़ा डिं्रक भी किया था, इसलिए बाइक कंट्रोल में नहीं रही और मैं फिसल गया.’’ सिद्धार्थ ने थोड़ा हिचकिचाते हुए बताया. जानकी ने शरारतभरे अंदाज में कहा, ‘‘जहां तक मैं जानती हूं, रात सोने के लिए होती है न कि बाइक राइडिंग के लिए. खैर, वैसे आप यहां कैसे आए थे?’’ ?‘‘डैड का टैक्सटाइल ऐक्सपोर्ट का बिजनैस है, मुझे यहां सैंपल्स देखने के लिए भेजा था. डैड चाहते हैं कि मैं उन का बिजनैस संभालूं. इसीलिए उन्होंने मुझ से टैक्सटाइल्स में इंजीनियरिंग करवाई और फिर मार्केटिंग में एमबीए भी करवाया, पर मेरा इस सब में कोई इंट्रैस्ट नहीं है. मैं कंप्यूटर्स में एमटैक कर के यूएस जाना चाहता था. पर डैड मुझे अपने बिजनैस में इन्वौल्व करना चाहते हैं.’’ सिद्धार्थ ने काफी संजीदा हो कर बताया. जानकी को भी अब उस की बातों में रुचि जाग गई थी. थोड़ा खोद कर उस ने पूछा, ‘‘कोई और भाई है क्या आप का?’’

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धंधा: सरदार ओंकार सिंह को महंगी पड़ी ये हरकत

Serial Story: धंधा (भाग-4)

इन दिनों, जैक मारटीनो, जो एक अश्वेत अमेरिकी पुलिस अधिकारी था, इस विभाग का इंचार्ज था. जैक मारटीनो चुस्त अधिकारी था. वह अपनी कुरसी पर बैठा कौफी पी रहा था और साथ ही समुद्र तट पर छद्म वेश में तैनात व समुद्र में गश्त लगा रहे गश्ती दल की रिपोर्ट भी अपने कान पर लगे इयर फोन से सुन रहा था.

‘‘सर, आज समुद्र तट पर स्थानीय निकाय का मेयर सरदार ओंकार सिंह लायलपुरी टैक्सी चलाता टैक्सी चालक की वरदी पहने आया है. वह एक चट्टान पर बैठा जैसे जासूसी कर रहा है,’’ जासूस ने रिपोर्ट दी.

‘‘वह पहले टैक्सी चालक था. कोई पंगा पड़ गया होगा, इसलिए यह छद्म रूप धारण किए है. आज उस के साथ कोई दिल बहलाने वाली नहीं आई?’’ जैक मारटीनो ने पूछा.

‘‘नहीं सर, कुछ दिन पहले एक पपाराजी इस की तसवीर खींच कर भागा था. उस के बाद इस का प्रेमालाप बंद है.’’

‘‘यह शायद उसी पपाराजी की फिराक में है. यह स्टेट काउंसिल का चुनाव लड़ रहा है. हो सकता है ब्लैकमेलिंग का चक्कर हो.’’

‘‘सर, वह पपाराजी जोड़ा भी समुद्र तट पर टहल रहा है.’’

‘‘उस पर भी नजर रखो.’’

‘‘सर, इन शरारती फोटोग्राफरों को काबू करने का और्डर क्यों नहीं करवाते.’’

‘‘अरे भाई, इन से ज्यादा कुसूरवार तो ये प्रेमी जोड़े हैं. इन में अधिकांश बूढ़े हैं और शहर की सम्मानित हस्तियां हैं. पपाराजी को पकड़ते ये सब भी उजागर होंगे तब बड़ा स्कैंडल बन जाएगा. हमारा काम तो नशीले पदार्थों की रोकथाम करना है.’’

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‘‘ओके, सर.’’

चप्पुओं वाली किश्ती को अपनी याट के समीप रोक जैक स्मिथ ने पहले इधरउधर फिर याट के ऊपर देखा. जब भी वह आता था, मोबाइल फोन से स्टाफ को सूचना देता था. याट पर तैनात सुरक्षाकर्मी या केयरटेकर याट पर लगी लिफ्ट के प्लेटफौर्म को समुद्र के पानी के समतल कर देता था.

मगर आज जैक स्मिथ का इरादा चुपचाप आने का था. वह अपनी और मारलीन डेक की तसवीरें खींची जाने से क्षुब्ध था. किश्ती को एक हुक से बांधा. वह रस्सी वाली सीढ़ी की सीढि़यां चढ़ता ऊपर चला गया.

डेक सुनसान था. चालककक्ष में अंधेरा था. केयरटेकर और सुरक्षाकर्मी शायद नीचे थे. वह दबेपांव चलता नीचे जाने वाली सीढि़यों की तरफ बढ़ा. उस के कानों में अनेक लोगों के हंसनेखिलखिलाने की आवाज आई.

इतने सारे लोग, उस को क्रोध आने लगा. फिर अपने पर नियंत्रण रखता, वह दबेपांव सीढि़यां उतरता प्रथम तल पर पहुंचा. सीढि़यों की तरफ कूड़ाकरकट फेंकने का बड़ा ड्रम रखा था.

दबेपांव चलता वह उस ड्रम के पीछे बैठ गया और चोरनजरों से प्रथम तल के बड़े हाल में झांका. बार के लंबे काउंटर के सामने पड़ी ऊंची कुरसियों पर उस के दोनों मुलाजिम बैठे शराब के घूंट भर रहे थे. अन्य कुरसियों पर 6-7 हब्शी दिखने वाले आदमी बैठे थे. उन के हाथों में भी शराब के गिलास थे.

हाल के केंद्र में रखी मेज पर सफेद पदार्थ से भरी पौलिथीन की थैलियों का ढेर लगा था. वह उन का वार्त्तालाप सुनने लगा :

‘‘इस माल की पेमैंट कब मिलेगी?’’ एक नीग्रो ने पूछा.

‘‘अगली डिलीवरी के साथ,’’ दूसरे ने कहा.

‘‘अगली सप्लाई कब चाहते हो?’’

‘‘4 दिन बाद.’’

‘‘कहां?’’

‘‘इसी याट पर.’’

‘‘नो, नैवर, मैं एक ही जगह दोबारा नहीं आता,’’ सप्लाई करने वाले नीग्रो ने दृढ़ स्वर में कहा.

‘‘ठीक है, इस याट को समुद्र में कहीं और ले आएंगे. कहां लाएं?’’

‘‘मैं फोन कर के बता दूंगा.’’

‘‘ओके,’’ फिर अपना गिलास खाली कर सब खड़े हुए. जैक स्मिथ दबेपांव सीढि़यां चढ़ता डेक पर पहुंचा. वह चालक केबिन में घुस कर एक तरफ खड़ा हो गया.

सभी ऊपर आए. लिफ्ट से बारीबारी से सब नीचे गए. सुरक्षाकर्मी और केयरटेकर डेक पर खड़े हो कर बातें करने लगे :

‘‘आज का माल क्या है?’’

‘‘शायद कोकीन है.’’

‘‘कितनी कीमत का है?’’

‘‘पता नहीं. हमें तो हर फेरे के 10 हजार डौलर मिलने हैं.’’

‘‘एक हफ्ते से सेठ नहीं आया?’’

‘‘उस की और उस की ‘वो’ की किसी ने यहां तसवीरें खींच ली थीं. वह सेठ को ब्लैकमेल कर रहा है.’’

‘‘तुम को किस ने बताया?’’

‘‘परसों मैं सेठ के दफ्तर गया था. तभी फोन आया, मैं दरवाजे पर ही था. उस की बात सुन ली थी.’’

‘‘तसवीरें कैसे खींची गईं?’’

‘‘क्या पता? इसे छोड़, बता, अंदर रखा माल कब जाएगा?’’

‘‘सुबह से पहले कभी भी.’’

‘‘अब क्या करें?’’

‘‘बीच पर चलते हैं. यहां किसे आना है.’’

दोनों नीचे उतर कर मोटरबोट में सवार हुए. उन के जाते ही जैक स्मिथ केबिन से बाहर निकला और गंभीर हो, सोचने लगा.

कितनी अजीब स्थिति थी कि अपने ही याट में उस को एक चोर की तरह प्रवेश करना पड़ा था. उस के लवनैस्ट को उस के हरामखोर नौकर नशीले पदार्थों के सौदागरों को एक वितरण स्थल का ट्रांजिट माउंट के रूप में इस्तेमाल करवा धन कमा रहे हैं. अमेरिका में अन्य देशों की भांति नशीले पदार्थों का धंधा एक गंभीर अपराध था. ऐसा करने वालों को 40 साल तक की सजा हो सकती थी. याट में नशीला पदार्थ पकड़े जाने पर जैक स्मिथ कितनी भी सफाई देता, पुलिस उस का कतई ऐतबार न करती कि वह इस धंधे में शामिल नहीं था.

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अभी तक वह पपाराजी द्वारा खींची गई तसवीरों से घबराया था. अब यह पंगा, जिस की उसे कल्पना भी नहीं, सामने आ गया था. वह धीमेधीमे सीढि़यां उतरता नीचे हाल में पहुंचा. इधरउधर तलाशी लेने पर उस को एक बैग कोने में मिल गया. बैग ठसाठस सफेद पाउडर जैसे नशीले पदार्थ, जो शायद कोकीन था, से भरा था. तभी उस के दिमाग में कौंधा कि अगर यह माल यहां से गायब हो जाए तब क्या होगा?

उस के हरामखोर नौकरों की अपनेआप शामत आ जाएगी. उस ने सारा हाल भी तलाशा. सारे कमरे तलाशे. याट दोमंजिला था. प्रथम तल के बाद ग्राउंड फ्लोर भी तलाशा. इंजनरूम भी. कहीं कोई और नशीला पदार्थ नहीं था उस ने एअरबैग उठाया और जैसे सीढि़यां चढ़ते आया था वैसे ही उतरता नीचे किश्ती में पहुंच गया. चप्पू चलाता वह पायर पर पहुंचा. उस की किस्मत अच्छी थी. उस पर न किसी मौजमेला करने वाले की नजर पड़ी न खुफिया पुलिस की.

पायर से काफी आगे घनी झाडि़यों का झुरमुट था. उस ने एअर बैग एक झाड़ी में छिपा दिया. फिर सधे कदमों से चलता अपनी मोटरसाइकिल पर सवार हुआ और शहर की तरफ बढ़ चला. मोटरबोट से काफी देर विचरण करने के बाद डेनियल और सुब्बा लक्ष्मी समुद्र में जहांतहां खड़े याटों की तरफ देखने लगे.

‘‘हर सुनसान दिखते याट में प्रेमी जोड़ा प्रेमालाप कर रहा हो, यह जरूरी तो नहीं है,’’ मोटरबोट का इंजन बंद कर के उस को समुद्र के पानी पर स्थिर करते सुब्बा लक्ष्मी ने कहा.

‘‘तुम्हारी बात ठीक है. पिछली बार ऐडवैंचर से हमें नया नजारा देखने को मिला था. इस बार देखते हैं क्या होता है.’’

‘‘अगर यह ऐडवैंचर हमें उलटा पड़ गया तो?’’

‘‘देखेंगे,’’ फिर उस ने एक बड़े लग्जरी याट की तरफ इशारा किया.

‘‘मोटरबोट का इंजन शोर करता है, इस को किश्ती के समान चलाते हैं,’’ सुब्बा लक्ष्मी ने एयरजैटसी के लिए रखे चप्पुओं को मोटरबोट के हुक से फिट कर दिया. किश्ती के समान चप्पू खेते वे दोनों सुनसान दिखते याट के समीप पहुंचे.

इस याट पर भी एक लिफ्ट लगी थी. साथ ही रस्सियों वाली सीढ़ी. दोनों डेक पर पहुंचे. डेक सुनसान था. चालक कक्ष में अंधेरा था. दोनों नीचे जाने वाली सीढि़यों की तरफ बढ़े. तभी ऊपर आते भारी कदमों की आवाज सुनाई पड़ी. दोनों लपक कर चालक केबिन के पीछे जा छिपे.

चुस्त वरदी पहने हाथ में छोटीछोटी बंदूकें लिए 2 अश्वेत सुरक्षाकर्मी ऊपर आ गए और डेक के केबिन की रेलिंग के साथ लग कर गपशप मारने लगे.

डेनियल और सुब्बा लक्ष्मी ने एकदूसरे की तरफ देखा. कहां आ फंसे.

‘‘तुम सो जाओ, मैं 2 घंटे पहरा दूंगा. फिर तुम्हारी बारी,’’ एक ने दूसरे से कहा.

‘‘तुम भी सो जाओ. यहां कौन आता है.’’

दोनों, डेनियल और सुब्बा लक्ष्मी, डेक पर बिछी लकड़ी की बैंचों पर लेट कर सोने की तैयारी करने लगे.

‘‘नीचे उतर कर वापस चलो,’’ सुब्बा लक्ष्मी ने कहा.

‘‘एक नजर नीचे मार आते हैं,’’ डेनियल ने कहा.

‘‘पंगा मत लो, मेरा कहना मानो,’’ सुब्बा लक्ष्मी ने समझाया.

लेकिन डेनियल नहीं माना. विवश हो सुब्बा लक्ष्मी भी उस के पीछेपीछे सीढि़यां उतरती गई.

एक बड़े हाल में कुछ लोग, जिन में श्वेतअश्वेत दोनों थे, मेजों के गिर्द कुरसियों पर बैठे जुआ खेल रहे थे. एक बारबेक्यू एक तरफ बना था. उस पर मांस की बोटियां ग्रिल की जा रही थीं.

दोनों उस फ्लोर से उतर कर नीचे वाले फ्लोर पर पहुंचे. एक बड़े कमरे में कुछ लोग सफेद पाउडर को छोटेछोटे पाउचों में भर रहे थे. यहां नशीले पदार्थों का धंधा हो रहा था.

डेनियल ने सधे हाथों से उन के फोटो लिए. तभी ऊपर कुछ हल्लागुल्ला हुआ. डेक पर लेटे सुरक्षाकर्मी नीचे दौड़े आए. जुआ खेल रहे आपस में लड़ पड़े थे.

‘‘यहां हमारे मतलब का क्या है?’’ सुब्बा लक्ष्मी ने कहा. दोनों सीढि़यां चढ़ डेक पर आ गए. तभी सुरक्षाकर्मी भी ऊपर चढ़ आए. दोनों फिर चालक केबिन के पीछे चले गए.

जैक स्मिथ समुद्र तट से शहर को जाते एक सार्वजनिक टैलीफोन बूथ पर रुका. 10 सेंट का एक सिक्का कौइन बौक्स में डाला. डायरैक्टरी देख कर नशीले पदार्थों की रोकथाम करने वाले विभाग का नंबर डायल किया. झाड़ी में छिपाए बैग के बारे में बताया. गुमनाम रहते याटों पर चल रहे नशीले पदार्थों के धंधे के बारे में बताया.

जैक मारटीन ने तुरंत गश्ती दल को फोन किया. बैग बरामद हो गया. एक के बाद एक याट पर धावा बोला गया. अनेक पर यौनाचार हो रहा था. नशीले पदार्थ पकड़े गए. डेनियल और सुब्बा लक्ष्मी को बच निकलने का मौका नहीं मिला. उन का धंधा

भी सामने आ गया. सरदार ओंकार सिंह ने पुलिस को पैसा खिला कर अपनी तसवीरें दबा दीं. ऐसा ही जैक स्मिथ ने किया. साथ ही दोनों ने इस तरह के मौजमेलों से तौबा की. एंड्र्यू डेक ने भारी हरजाना दे पत्नी को तलाक दे दिया. थोड़े दिन डेनियल और सुब्बा लक्ष्मी को हिरासत में रहना पड़ा. लेकिन चूंकि उन की वजह से नशीले पदार्थों का धंधा सामने आया था, इसलिए पुलिस ने उन को चेतावनी दे कर छोड़ दिया.

दोनों थोड़े दिन शांत रहे, फिर इस निश्चय के साथ कि बड़ी मछली के चक्कर में न पड़ छोटामोटा शिकार ही पकड़ेंगे, दोनों का पपाराजी का धंधा फिर से चल पड़ा. बूढ़े, अधेड़ अपने मनबहलाव के लिए आते रहे, उन की तसवीरें खिंचती रहीं, ब्लैकमेलिंग का पैसा अदा होता रहा.

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Serial Story: धंधा (भाग-3)

पिछले अंक में आप ने पढ़ा कि कैसे सरदार ओंकार सिंह लायलपुरी और एंड्र्यू डेक की अंतरंग तसवीरें पपाराजी डेनियल के हाथ लग गई थीं जिन के बल पर वह दोनों को ब्लैकमेल कर रहा था. क्या सरदार ओंकार सिंह और एंड्र्यू पपाराजी की ब्लैकमेलिंग से बच पाए? जानने के लिए पढि़ए अंतिम भाग.

सरदार ओंकार सिंह लायलपुरी टैक्सी चालक से तरक्की करता अमीर बना था और अब मेयर होते हुए स्टेट काउंसिल का उम्मीदवार था. इसलिए बदनामी से बचना चाहता था. दूसरा जैक स्मिथ मामूली हैसियत का था. वह प्रेमविवाह होने से पत्नी के मायके से मिले धन से बना अमीर था. उस की ऐसी तसवीरें सामने आने से उस का सब चौपट हो सकता था.

डेनियल एक ब्लैकमेलर था. उस का लालच भविष्य में क्या गुल खिला दे, इसलिए सरदार के लिए और जैक स्मिथ के लिए उस को काबू करना जरूरी था. सरदार ओंकार सिंह अपने दोस्त वरनाम सिंह के पास पहुंचा.

‘‘वरनाम सिंह, मुझे एक टैक्सी और चालक की वरदी दे दे.’’

‘‘क्यों, क्या दोबारा टैक्सी चालक का धंधा करना चाहता है?’’

‘‘नहीं, उस शरारती फोटोग्राफर को काबू करना है. वह एक ब्लैकमेलर है, भविष्य में लालच में पड़ कर दोबारा पंगा कर सकता है.’’ वरनाम सिंह ने हरी झंडी दी. टैक्सी चलाता ओंकार सिंह अपने घर पहुंचा.

‘‘अरे, आप ने दोबारा टैक्सी चालक का धंधा शुरू कर दिया?’’ उस की पत्नी ने उस को टैक्सी चालक की वरदी में और टैक्सी को देख कर हैरानी से पूछा.

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‘‘नहीं, थोड़ा मनबहलाव के लिए कुछ दिन अपना पुराना धंधा करना चाहता हूं. अमीरी भोगतेभोगते बोर हो चला हूं.’’ पत्नी और बेटीबहुओं ने बुढ़ापे में चढ़ आई सनक समझ कर उस को नजरअंदाज कर दिया. उस शाम ओंकार सिंह अपनी लग्जरी कार में सैर करने नहीं निकला. वह टैक्सी चालक बन टैक्सी चलाता समुद्र तट पर पहुंचा.

वह जानता था ब्लैकमेलर यानी शरारती फोटोग्राफर अपना धंधा करने ‘बीच’ पर जरूर आएगा. उस ने सैकड़ों बार ऐसे फोटोग्राफरों को प्रेमालाप में लीन जोड़ों की गुप्त तसवीरें खींचते देखा था. मगर जब तक उस पर यही शरारत न आ पड़ी, उस ने उन का कोई नोटिस नहीं लिया था. अब ऐसा पंगा पड़ जाने से उस का दिमाग चौकन्ना हो गया था.

जैक स्मिथ मामूली हैसियत का था. मारलीन डेक से प्रेम शुरू होने से पहले वह अपनी पत्नी की तरफ पूरा ध्यान देता था. मगर मारलीन डेक उस की पत्नी की तुलना में युवा थी. दोनों में सिलसिला ठीक चल रहा था कि यह पपाराजी का पंगा पड़ गया. जिस लाइन पर सरदार ओंकार सिंह सोच रहा था उसी पर जैक स्मिथ भी सोच रहा था.

उस ने भी अनेक पपाराजी को इस तरह तसवीरें खींचते देखा था. मगर उस को अंदाजा नहीं था कि कोई उस के याट में घुस कर इस तरह तसवीरें खींचने का दुसाहस कर सकता था. एक बार दुसाहस करने पर ब्लैकमेलिंग का पैसा मिलने पर ब्लैकमेलर दोबारा लालच कर सकता था. इसलिए उस को काबू करना जरूरी था. इस घटना के बाद मारलीन डेक ने उस से मिलनाजुलना बंद कर दिया था.

जैक स्मिथ छोटामोटा धंधा करता था. वह सभी वाहन चलाना जानता था. सामान्य तौर पर अमीर बनने के बाद वह लग्जरी कार में चलता था. काफी समय बाद उस ने साधारण कपड़े पहने. सिर पर नौजवान लड़कों द्वारा पहनी जाने वाली टोपी और धूप का बड़ा चश्मा पहनने से उस का हुलिया बदल गया था. हैल्मेट पहने वह बाइक पर सवार हुआ और समुद्र तट पर जा पहुंचा.

सरदार ओंकार सिंह टैक्सी एक तरफ खड़ी कर टैक्सी चालक बना एक चट्टान पर बैठा था. उस की मुद्रा ऐसी थी मानो वह समुद्र तट पर सैरसपाटा करने आई अपनी सवारी के लौटने का इंतजार कर रहा हो. जैक स्मिथ ने बाइक एक पाम के पेड़ के समीप खड़ी कर दी. लौक कर के यों समुद्र तट पर टहलने लगा जैसे वह तनहाईपसंद हो और उस को अकेला घूमना पसंद हो.

पपाराजी की शरारत का शिकार हुए दोनों की लाइन एक ही थी. किसी पपाराजी, जो हमेशा अपने शिकार की खोज में रहता था और कभी यह कल्पना भी नहीं कर सकता था कि वह कभी किसी की खोजी निगाहों का शिकार हो सकता है, को शिकार बनाने को ये दोनों तत्पर थे. सरदार ओंकार सिंह लायलपुरी ने सतर्क निगाहों से अपने चारों तरफ देखा. विशाल समुद्र तट पर दिखने वालों को अनदेखा किए कई मेल और बेमेल प्रेमी जोड़े खुद में लीन थे और उन की निगहबानी करते दर्जनों शरारती फोटोग्राफर अपना काम बिना फ्लैशलाइट जलाए फोटो खींचने वाले कैमरों से कर रहे थे.

जैक स्मिथ भी अपनी सतर्क निगाहों से यह सब क्रियाकलाप देख रहा था. तभी उस को बीच समुद्र में खड़ी अपनी याट का ध्यान आया. जिस तरह से शरारती फोटोग्राफर चुपचाप अपना काम कर गया था, उसी तरह अगर वह भी एक चोर की तरह अपनी याट पर जाए तो? शाम का अंधेरा गहरे अंधेरे में बदल गया था. समुद्र का नीला पानी अब काले हीरे के समान चमक रहा था. उभरता चांद पानी की चमक को बढ़ा रहा था.

पायर पर बंधी चप्पुओं वाली एक नौका खोल कर उस पर बैठ चप्पू चलाता जैक स्मिथ बीच समुद्र में खड़ी अपनी याट की तरफ बढ़ता गया.

कोई उन की निगहबानी या जासूसी कर सकता था. इस से बेखबर डेनियल और सुब्बा लक्ष्मी मोटरसाइकिल खड़ी कर समुद्र तट पर टहलने लगे. उन के हावभाव ऐसे थे मानो शाम बिताने आए 2 प्रेमी हों. गले या कंधे पर कैमरा लटकाए घूमने आना आम था. इसलिए यह पता चलना आसान नहीं था कि कौन शौकिया तसवीर खींचने वाला था और कौन शरारती फोटोग्राफर.

एक बारगी सरदार ओंकार सिंह लायलपुरी को लगा कि उस का इस तरह जासूसी करने आना बेकार है. मगर वह धैर्य रखे था. चुपचाप प्रेमी जोड़ों की तसवीरें खींच रहे पपाराजी में उस की तसवीरें खींचने वाला कौन सा था.

‘‘एक चक्कर बीच समुद्र का लगाएं,’’ डेनियल ने कहा.

‘‘उसी याट का?’’

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‘‘उस में अब क्या मिलेगा? वह प्रेमी जोड़ा सावधान हो चुका है. वैसे भी एक जगह चोरी करने के बाद चोर दोबारा वहां चोरी करने नहीं जाता.’’

डेनियल की इस मजाकिया टिप्पणी पर सुब्बा लक्ष्मी खिलखिला कर हंस पड़ी. आज पायर पर कोई चप्पुओं वाली नौका नहीं थी. मोटरबोटों पर ताला लगी जंजीरें लगी थीं. डेनियल आखिर एक चोर ही था. उस ने अपनी जेब से एक ‘मास्टर की’ निकाली. ताला खोला.

मोटरबोट समुद्र में दौड़ पड़ी. जहांतहां छोटेबड़े याट, लग्जरी बोट लंगर डाले खड़े थे. इन में क्याक्या हो रहा था यह इन में प्रवेश करने पर ही पता चल सकता था.

चप्पुओं वाली किश्ती चलाता जैक स्मिथ अपनी याट के समीप पहुंचा. याट पर भ्रमण के दौरान 8-10 आदमियों का स्टाफ होता था. खड़ी अवस्था में 1 या 2 व्यक्ति ही होते थे. आमतौर पर याट एक लवनैस्ट ही था.

अमीर बनने के बाद, जैक स्मिथ को अमीरों की तरह पर-स्त्री से संबंध रखने व कैप्ट या रखैल रखने का शौक लग गया था. थोड़ेथोड़े अंतराल पर वह किसी नई प्रेमिका को यहां ले आता था. यह सिलसिला ठीक चल रहा था. मगर अब एक पपाराजी द्वारा यों लवनैस्ट में प्रवेश कर तसवीरें खींच लेने से यह सिलसिला थम गया था.

उस के याट के समान अन्य याट भी या तो लवनैस्ट थे या फिर अन्य अवैध कामों के लिए मिलनेजुलने के स्थल. शहर में अवैध कामों, खासकर नशीले पदार्थों को बेचने और सप्लाई करने वालों को पुलिस या नशीले पदार्थों को नियंत्रण करने वालों की निगाहों में आने से बचने के लिए बीच समुद्र में खड़े छोटेबड़े याट या लग्जरी याट काफी सुविधाजनक थे.

शाम ढलने के बाद, रात के अंधेरे में छोटेबड़े स्मगलर अपनेअपने ठिकानों पर आ जाते. अधिकांश याट प्रभावशाली अमीरों के थे. इन पर एकदम छापा मारना मुश्किल था. शक की बिना पर किसी प्रभावशाली अमीर के याट पर छापा मारना उलटा पड़ जाता था. लेकिन खुफिया पुलिस और मादक पदार्थ नियंत्रण करने वाला विभाग अपनी निगरानी चुपचाप जारी रखता था. सादे और छद्म वेश में जहांतहां भूमि, समुद्र और समुद्र तट पर तैनात जासूस अपना काम चुपचाप करते थे. वे प्रेमालाप में लीन मेल या बेमेल जोड़ों को और उन की तसवीरें खींच कर भाग जाने का शरारती फोटोग्राफरों को कोई आभास तक न होने देते और उन की निगरानी करने के साथ उन की तसवीरें भी चुपचाप नई तकनीक से कैमरों से खींच लेते थे.

डेनियल समेत अन्य सभी शरारती फोटोग्राफरों का पुराना रिकौर्ड खुफिया विभाग के पास था. और साथ ही बीच पर आने वाले बेमेल प्रेमी जोड़ों का भी लेकिन इस विभाग को नशीले पदार्थों की रोकथाम से काम था. इसलिए न प्रेमी जोड़ों के काम में दखल देता और न ही पपाराजियों के. हां, उन की रोजाना रिपोर्ट पुलिस मुख्यालय में जरूर पहुंचती थी.

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Serial Story: धंधा (भाग-2)

शाम का अंधेरा गहरा रहा था. एक किश्ती की रस्सी खोल, दोनों उस पर सवार हो, बीच समुद्र में बढ़ चले. कई याटों पर सुरक्षाकर्मी डैक पर टहल रहे थे. एक बड़े लग्जरी याट के डैक पर कोई नहीं था.

एक प्लेटफौर्म समुद्र के पानी से थोड़ा ऊपर था. यह एक खुली लिफ्ट थी. इस पर 4 व्यक्ति एकसाथ ऊपर आजा सकते थे. रस्सियों वाली एक सीढ़ी साथ ही लटक रही थी. दोनों किश्ती को एक हुक से बांध सीढि़यां चढ़ते हुए ऊपर पहुंच गए. डैक सुनसान था. चालक कक्ष भी सुनसान था. डैक से सीढि़यां नीचे जा रही थीं. सारा याट सुनसान जान पड़ता था.

डैक से नीचे के तल पर एक बड़ा हाल था. उस में एक तरफ बार बना था. खुली दराजों में तरहतरह की शराब की बोतलें सजी थीं. कई छोटेछोटे केबिन एक कतार में बने थे. एक केबिन में रोशनी थी.

दरवाजे के ऊपर वाले हिस्से में एक गोलाकार शीशा फिट था. दबेपांव चलते दोनों ने दरवाजे के करीब पहुंच कर शीशे से अंदर झांका. दोनों के मतलब का दृश्य था.

अधेड़ अवस्था का एक पुरुष एक नवयौवना सुंदरी के साथ सर्वथा… अवस्था में मैथुनरत था. डेनियल ने सुब्बा लक्ष्मी की तरफ देखा, वह निर्लिप्त भाव से मुसकराई.

डेनियल ने अपना कैमरा निकाला और दक्षता से तसवीरें खींचने लगा. अभिसारग्रस्त जोड़ा उन्माद उतर जाने के बाद अलगअलग हो, गहरी सांसें भरने लगा.

थोड़ी देर बाद दोनों ने कपड़े पहने और बाहर को लपके. डेनियल और सुब्बा लक्ष्मी तुरंत बार काउंटर के पीछे जा छिपे. प्रेमी जोड़ा सीढि़यां चढ़ता ऊपर को गया. डेनियल ने शराब की 2 बोतलें उठा कर अपनी जैकेट की जेब में डाल लीं. दोनों दबे पांव चलते सीढि़यां चढ़ते डैक पर पहुंचे.

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प्रेमी जोड़ा लिफ्ट पर सवार हो रहा था. डेनियल ने उन की इस मौके की तसवीर भी ले ली. प्रेमी जोड़ा मोटरबोट पर सवार हो तट की तरफ चला. दोनों भी उतर कर किश्ती पर सवार हुए.

‘‘एक चक्कर इस याट के इर्दगिर्द लगाते हैं?’’

‘‘क्यों?’’ सुब्बा लक्ष्मी ने पूछा.

‘‘याट किस का है? यह पता लगाना जरूरी है.’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘हर किश्ती या छोटेबड़े जहाज पर उस का नाम व रजिस्ट्रेशन नंबर होता है. बिना पंजीकृत हुए कोई मोटरबोट, छोटाबड़ा समुद्री जहाज, स्टीमर कहीं भी समुद्र या नदी में नहीं चल सकता. पंजीकरण दफ्तर से इस याट के मालिक का नाम पता चल जाएगा,’’ डेनियल ने समझाया.

पंजीकरण रिकौर्ड में याट जैक स्मिथ नाम के बड़े व्यापारी के नाम दर्ज था. वह कई फैक्टरियों का मालिक था.

उस की निगहबानी करने से उस को उस की प्रेमिका का नाम भी पता चल गया. वह एक अन्य व्यापारी एंड्र्यू डैक की पत्नी मारलीन डैक थी.

‘‘तसवीरों का सैट किस को भेजना है?’’

‘‘इस मामले में प्रेमीप्रेमिका दोनों ही अमीर हैं. मेरे विचार में एकएक सैट दोनों को भेज देते हैं,’’ डेनियल ने कहा.

‘‘लेकिन पैसा एक ही पार्टी से मिलेगा. 2 किश्तियों की सवारी से नुकसान होता है.’’

‘‘इस में दोनों पक्ष ही पैसे वाले हैं.’’

‘‘ज्यादा लालच अच्छा नहीं होता. आप इन से कितना पैसा मांगेंगे?’’

‘‘देखते हैं.’’

एंड्र्यू डैक अपनी फैक्टरी के दफ्तर जाने के लिए कार पर सवार हो रहा था कि उस को डाकिया एक लिफाफा थमा गया. लिफाफा उस की पत्नी के नाम था. लिफाफा एक पत्र के बजाय किसी और मैटर से भरा था.

उत्सुकतावश उस ने लिफाफा खोल डाला. मैटर देखते ही वह गंभीर हो उठा और चुपचाप कार में बैठ गया. उस के इशारे पर शोफर ने कार आगे बढ़ा दी.

एंड्र्यू डैक अपनी पत्नी की चरित्रहीनता से वाकिफ था. वह उस को तलाक देना चाहता था लेकिन उस को एकतरफा तलाक देने की कार्यवाही करने पर हरजाने के तौर पर काफी मोटी रकम देनी पड़ती.

बिना हरजाना दिए तलाक लेने के लिए या तो उस की पत्नी भी स्वेच्छा से तलाक लेती या फिर उस को चरित्रहीन साबित करने के लिए उस के खिलाफ कोई सुबूत होता.

उस ने कई महीनों तक एक प्राइवेट जासूसी फर्म से अपनी पत्नी की जासूसी करवाई थी लेकिन मारलीन डैक काफी चालाक थी. वह किसी पकड़ में नहीं आई.

अब संयोग से चरित्रहीनता को साबित करते फोटो उस के पास आ गए थे. एंड्र्यू डैक समझ गया कि यह किसी शरारती फोटोग्राफर यानी पपाराजी का काम था.

अभिसार करने वाले मर्द जैक स्मिथ को पहचानता था. जैक स्मिथ के खिलाफ एक बात यह थी कि वह अपने बूते पर अमीर नहीं बना था. वह घरजमाई था. उस की पत्नी धनी बाप की इकलौती संतान थी. उस ने जैक स्मिथ से प्रेमविवाह किया था.

ऐसी तसवीरें जैक स्मिथ की पत्नी और उस के ससुर के सामने आने पर उस का फौरन तलाक होना निश्चित था. इस तरह एंड्र्यू डैक के हाथ पत्नी और उस के प्रेमी दोनों को अर्श से फर्श पर लाने का सुबूत लग गया था.

वह अनुभवी था. उस को पता था कि बिना फोटो के नैगेटिव और उन को खींचने वाले फोटोग्राफर की गवाही के इन को अदालत में पक्का सुबूत साबित नहीं किया जा सकता था. अदालत में विरोधी पक्ष उन को ट्रिक फोटोग्राफी कह कर खारिज करवा सकता था.

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‘‘कौन था यह पपाराजी?’’

जैक स्मिथ अपनी स्टेनो द्वारा लाई डाक देख रहा था. साधारण डाक अब कम आती थी.

‘‘सर, यह लिफाफा साधारण डाक से आया है.’’

किसी व्यावसायिक फोटोग्राफर द्वारा इस्तेमाल करने वाला लिफाफा था. तसवीरें देखते ही वह उछल पड़ा. उस के निजी याट पर इतनी सफाई से तसवीरें खींची गई थीं. उस को और मारलीन डैक को आभास तक न हुआ था.

तसवीरों के सार्वजनिक हो जाने के परिणाम के विचार से चिंतित हो उठा. उस की पत्नी और ससुर उस को बाहर निकाल एकदम सड़क पर खड़ा कर देंगे.

घबरा कर उस ने तुरंत मारलीन डैक को फोन किया.

‘‘क्या कह रहे हो? मैं ने तो हमेशा सावधानी बरती है. किसी जासूस को भी भनक तक नहीं हुई.’’

‘‘यह किसी जासूस का काम नहीं है. यह किसी प्रोफैशनल फोटोग्राफर का काम है, जिस का मकसद ऐसी तसवीरें खींच कर ब्लैकमेल करना होता है. मेरा अंदाजा है कि ऐसा लिफाफा तुम्हारे पास भी आया होगा,’’ जैक स्मिथ ने कहा.

‘‘मुझे तो नहीं मिला या पता नहीं, मेरे हसबैंड को डाकिया थमा गया हो,’’ मारलीन डैक ने चिंतित स्वर में कहा. पति को ऐसी तसवीरों का मिलना, मतलब बिना हरजाना दिए एकदम से तलाक.

‘‘यह शरारती फोटोग्राफर कौन है?’’ उस ने पूछा.

‘‘हौसला रखो, जल्द ही पैसे की मांग के लिए उस का फोन आएगा,’’ जैक स्मिथ ने धैर्य बंधाते हुए कहा जबकि वह खुद घबराया हुआ था.

उधर, सरदार ओंकार सिंह लायलपुरी ने जल्दबाजी में ब्लैकमेलर को एक लाख डौलर दे तो दिए थे मगर बाद में उस को खुद पर गुस्सा आ रहा था. वह पाईपाई जोड़ कर अमीर बना था. पैसे की कीमत जानता था.

उस को उम्मीद थी कि पैसा लेने के लिए ब्लैकमेलर सामने आएगा. सारे न्यूयार्क के चप्पेचप्पे से वाकिफ होने के कारण वह हर व्यवसाय के प्रमुख व्यक्तियों को जानता था. शहर में फोटोग्राफर थे कितने? एक दफा ब्लैकमेलर का चेहरा सामने आ जाता, फिर वह पंजीकरण विभाग से उस की फोटो निकलवा उस को काबू कर लेता.

लेकिन डेनियल भी पूरा घाघ था. वह उस के सामने हैल्मेट पहने आया था और पैसे का पैकेट थामते ही ये जा, वो जा.

ओंकार सिंह अपने घनिष्ठ मित्र सरदार वरनाम सिंह, जो कभी उसी के समान टैक्सी चालक था और अब टैक्सियों का भारी बेड़ा रखता था और खुद टैक्सी न चला किराए पर देता था, के पास पहुंचा.

‘‘ओए, खोते दे पुत्तर, इस उम्र में लड़की जवानी दा चक्कर. कुछ तो शर्म कर,’’ सारा मामला जानने के बाद वरनाम सिंह ने उस को झिड़कते हुए कहा.

‘‘यार, तेरी भाभी सहयोग नहीं करती.’’

‘‘इस उम्र में परजाई क्या कर सकती है? तुझे चुम्माचाटी ही करनी थी तो बंद कमरे में करता, खुले समुद्र तट पर क्यों गया था? अब बता क्या चाहता है?’’

‘‘इस फोटोग्राफर को काबू करना है.’’

‘‘वह काबू आ भी जाए तब क्या करेगा. 1 लाख डौलर थमा दिए, अब चुपचाप गम खा ले. मामला सार्वजनिक हो गया तो तेरी बदनामी ही होगी.’’

लेकिन ओंकार सिंह पर इस नेक सलाह का कोई असर नहीं हुआ, वह यह नहीं भूल पा रहा था कि एक शरारती फोटोग्राफर ने इस तरह बदनामी करने की धमकी दे कर उस से 1 लाख डौलर झटक लिए हैं.

वह पुराना खिलाड़ी होते हुए भी मात खा गया था. अब वह हर हालत में उस को काबू करना चाहता था.

इधर, अब जैक स्मिथ के लैंडलाइन पर फोन आया.

‘‘क्या चाहते हो?’’‘‘10 लाख डौलर.’’

‘‘दिमाग खराब हुआ है.’’

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‘‘जनाब, आप की माली हैसियत और सामाजिक हैसियत काफी ऊंची है, उस को देखते यह मामूली रकम है.’’

‘‘यों बदमाशी करते किसी की तसवीरें खींचना जुर्म है, पुलिस में रिपोर्ट कर दूं तो सीधे 10 साल के लिए नप जाओगे.’’

‘‘जनाब, ऐसी बातों में कुछ नहीं रखा. आप बताइए, रकम दे रहे हो या नहीं?’’

‘‘इतनी बड़ी रकम, ज्यादा से ज्यादा 10 हजार डौलर.’’

‘‘नहीं जनाब, पूरे 10 लाख डौलर. मैं कल फिर फोन करूंगा,’’ फोन कट गया.

जैक स्मिथ ने कौलर आइडैंटिटी की स्क्रीन पर नजर डाली. फोन किसी सार्वजनिक बूथ से किया गया था. उस ने टैलीफोन डायरैक्ट्री से नंबर खोजा. फोन जिस एरिया से आया था, उस को नोट कर लिया.

जैक स्मिथ के बाद डेनियल ने एंड्र्यू डैक को फोन किया. एंड्र्यू डैक जैसे उस के फोन का इंतजार कर रहा था. मरदाना आवाज सुनते डेनियल चौंका. उसे तो मारलीन डैक से बात करनी थी.

‘‘मुझे मैडम मारलीन डैक से बात करनी है.’’

‘‘मैं उस का पति बोल रहा हूं. तसवीरों का लिफाफा तुम ने ही भेजा था?’’

अब डेनियल उलझन में था. लिफाफा पत्नी के बजाय पति को मिल गया था. अब ब्लैकमेल कैसे करे. तसवीरें पति के सामने आ चुकी थीं. पत्नी अब पैसा किस बात का देगी?

‘‘हैलो, तुम ने ब्लैकमेल करने के इरादे से तसवीरें खींचीं. तुम कितना पैसा चाहते हो?’’ एंड्र्यू डेक के इस सीधे सवाल पर डेनियल सकपका गया. ऐसा सवाल मारलीन डैक करती तो समझ भी आता.

वह खामोश रहा.

‘‘देखो, अगर तुम इन तसवीरों के नैगेटिव और अदालत में गवाही देने को तैयार हो जाओ तो जो पैसा तुम मेरी पत्नी से चाहते हो वह मैं दूंगा.’’

‘‘गवाही, किस बात की गवाही?’’ उलझनभरे स्वर में डेनियल ने पूछा.

‘‘मुझे अपनी पत्नी को तलाक देना है. उस को चरित्रहीन साबित करने के लिए ऐसे फोटोग्राफ खींचने वाली गवाही चाहिए.’’

अब डेनियल को मामला समझ आ गया था. एंड्र्यू डैक काफी अधीर था. साधारण तरीके से तलाक का मुकदमा डालने पर उस को मोटा हरजाना देना पड़ता. लेकिन पत्नी के चरित्रहीन साबित हो जाने पर उस को बिना हरजाना दिए उस से तलाक मिल जाना था.

‘‘10 लाख डौलर.’’

‘‘पागल हुए हो. शरारती फोटोग्राफर को 500 डौलर, ज्यादा से ज्यादा 1 हजार मिल जाते हैं. यह एक अपराध है. मैं तुम्हें ज्यादा से ज्यादा 1 लाख डौलर दे सकता हूं.’’

‘‘ओके. मैं सोच कर तुम्हें दोबारा फोन करूंगा.’’

‘‘अब आप क्या करेंगे?’’ मारलीन डैक ने अपने प्रेमी जैक स्मिथ से पूछा.

‘‘इस पपाराजी का पता लगाऊंगा.’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘अपने तरीके से. एक बार वह काबू में आ जाए.’’

अभी तक डेनियल ने जिन जोड़ों के अश्लील फोटो खींचे थे, वे किसी विशेष स्थिति में थे और खानदानी अमीर नहीं थे.

क्रमश

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Serial Story: धंधा (भाग-1)

सरदार ओंकार सिंह लायलपुरी ने लवलीन मुनरों को बांहों में भरा और एक जोरदार चुंबन उस के गाल पर जड़ा, फिर अपने होंठ उस के होंठों की तरफ बढ़ाए, तभी एक फ्लैशलाइट चमकी. दोनों ने सकपका कर सामने देखा, तभी दूसरी फ्लैशलाइट चमकी. फिर एक मोटरसाइकिल के स्टार्ट होने और तेजी से जाने की आवाज.

‘‘क्या हुआ है यह?’’ अपनेआप को सरदार साहब की बांहों से छुड़ाती लवलीन ने पूछा.

‘‘कोई शरारती फोटोग्राफर हमारी फोटो खींच कर भाग गया.’’

‘‘वह क्यों?’’ लवलीन मुनरों, जो स्थानीय विश्वविद्यालय में स्नातकोत्तर कक्षा में पढ़ाती थी और जिस की उम्र मात्र 22 साल थी, ने पूछा.

‘‘ब्लैकमेल करने के लिए. हमारे पास नमूने के तौर पर इन तसवीरों का एक सैट आएगा. फिर हमारे पास फोन आएगा, हम से पैसा मांगा जाएगा. पैसा नहीं देने पर इन तसवीरों को अखबारों में छपवाने व इंटरनैट पर जारी करने की धमकी दी जाएगी,’’ सरदार साहब ने विस्तार से समझाया.

‘‘इस से तो मैं बदनाम हो जाऊंगी,’’ चिंतातुर स्वर में लवलीन ने कहा.

‘‘हौसला रखो, ऐसे शरारती फोटोग्राफर, जिन को पपाराजी कहा जाता है, हर बड़े नगर में होते हैं. मुझे इन से निबटना आता है.’’

दोनों की शाम का मजा खराब हो गया था. दोनों समुद्र तट से सड़क के किनारे खड़ी गाड़ी में बैठे. कार न्यूयार्क की तरफ चल पड़ी.

सरदार ओंकार सिंह लायलपुरी 60 बरस का था लेकिन तंदुरुस्ती के लिहाज से 40 साल का लगता था. वह न्यूयार्क में एक रैस्टोरेंट की शृंखला का मालिक था. वह कभी न्यूयार्क में टैक्सी चलाता था. फिर एक छोटा सा रैस्तरां खोला और धीरेधीरे तरक्की करता अब अनेक रैस्तराओं का मालिक था.

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कारोबार अब दोनों बेटे देखने लगे थे. सरदार साहब के पास पैसा और समय काफी था. उस की पत्नी भी उसी की तरह 60 बरस की थी लेकिन वह एक बुढि़या नजर आती थी. वह अपना समय पोतेपोतियों को खिलाने में और घर की अन्य गतिविधियों में शिरकत कर बिताती थी. सरदारनी में यौन इच्छा नहीं रही थी लेकिन सरदार अब भी घोड़े के समान था. अपनी इच्छापूर्ति के लिए  वह कभी किसी कौलगर्ल, कभी किसी अन्य को बुलाता था. एक एजेंट के मारफत उस का संपर्क विश्वविद्यालय में पढ़ने वाली अनेक श्वेतअश्वेत अमेरिकी छात्राओं से बन गया था. ऐसी बालाएं तफरीह और मौजमस्ती के लिए ऐसे जवां और ठरकी बूढ़ों के मनबहलाव के लिए आ जाती थीं. सरदार साहब शाम को ऐसी किसी लड़की को अपनी कार में ले कर किसी सुनसान समुद्र तट पर पहुंच जाता. समुद्र तट पर छितरे पाम के पेड़ों के पीछे, चट्टानों के पीछे, इधरउधर उन्हीं के समान चूमाचाटी, मौजमस्ती में लीन पड़े जोड़े होते थे.

अधिकांश जोड़े बेमेल होते थे. मर्द 60 साल का होता था जबकि लड़की  20-22 साल की. औरत 60 साल की होती थी, दिल बहलाने वाला छैला 25-30 का. अधिक उम्र वाला धनी होता था. कम उम्र वाला गरीब या मामूली हैसियत का. लवलीन मुनरों को उस के होस्टल के बाहर उतार कर ओंकार सिंह अपने घर, जो एक महल के समान बड़ी कोठी थी, में पहुंचा. वह चिंतातुर था. निकट भविष्य में स्टेट काउंसिल का चुनाव लड़ रहा था. कई साल स्थानीय निकाय का सदस्य चुना जाता रहा था. अब वह राज्य स्तर पर उभरना  चाहता था. बाद में सीनेटर बन अमेरिका की लोकसभा में जाना चाहता था.

कोई भी स्कैंडल अमेरिका में राजनीति के क्षेत्र में किसी का भविष्य एकदम बिगाड़ देता था. पपाराजी या शरारती फोटोग्राफर द्वारा खींची तसवीरें सार्वजनिक हो जाने पर सरदार ओंकार सिंह लायलपुरी का राजनीतिक कैरियर एकदम तबाह कर सकती थीं.

डेनियल एक शरारती फोटोग्राफर या पपाराजी था. वह एक श्वेत अमेरिकी और नीग्रो मां की दोगली संतान था. उस का रंगरूप एक भारतीय जैसा था. पहले वह एक फोटोग्राफर के यहां असिस्टैंट था. बाद में उस ने अपना फोटोग्राफी का स्वतंत्र व्यवसाय आरंभ किया था. एक दफा एक कंपनी ने उस को विरोधी कंपनी की जासूसी के लिए कुछ तसवीरें खींचने को नियुक्त किया. तसवीरें कंपनी के डायरैक्टर की उस की प्रेमिका के साथ मौजमेले की थीं.

इस काम के बदले उस को मोटी धनराशि मिली थी. इस के बाद वह अपने साफसुथरे फोटोग्राफी के धंधे की आड़ में एक पपाराजी बन गया था. सुब्बा लक्ष्मी दक्षिण भारत से अमेरिका एक हाउस मेड के तौर पर आई थी. एक ही इलाके में रहते हुए उस की जानपहचान डेनियल से हो गई थी. दोनों में आंखें चार हो गई थीं. वह भी फोटोग्राफी सीख अब डेनियल के साथ फोटोग्राफी करती थी.

दोनों हर शाम कभी मोटरसाइकिल से, कभी कार द्वारा समुद्र तट पर व अन्य प्रेमालाप के लिए उपयुक्त दूसरे एकांत स्थलों पर पहुंच जाते थे. इन स्थलों पर अनेक बेमेल जोड़े प्रेमालाप में लीन होते थे. वे पहले उन की निगाहबानी करते थे. फिर अपना शिकार छांट कर उस जोड़े की अंतरंग तसवीरें इन्फ्रारैड कैमरे, जिन में फ्लैशलाइट की जरूरत नहीं पड़ती थी, से खींचते थे. फिर पार्टी को चौंकाने के लिए फ्लैशलाइट की चमक इधरउधर मारते और भाग जाते थे.

बाद में तसवीरें साधारण डाक से भेज कर फोन करते और ब्लैकमेल के तौर पर छोटीबड़ी रकम मांगते. पार्टी, जो आमतौर पर बूढ़ा धनपति या अमीर बुढि़या होती थी, बदनामी से बचने के लिए उन को चुपचाप पैसा दे देती थी.

‘‘यह सरदार सुना है काफी अमीर है,’’ आज डिजिटल कैमरे से खींची तसवीरों के पिं्रट देखते हैं,’’ सुब्बा लक्ष्मी ने कहा.

‘‘हां, यह एक रैस्तरां की एक बड़ी शृंखला का मालिक है.’’

‘‘लड़की कौन है?’’

‘‘पता नहीं, मेरा अंदाजा है, कोई स्टूडैंट है. पैसा और मौजमस्ती के लिए लड़कियों का ऐसे बूढ़े या अधेड़ों के साथ मस्ती करना आम बात है.’’

‘‘तसवीरें तो सरदार को ही भेजनी हैं.’’

सरदार ओंकार सिंह ने गहरी नजरों से तसवीरों के सैट को देखा. वह कभी फोटोग्राफी का शौकीन था. टैक्सी चालक रहा था. कई साल अविवाहित रहते इच्छापूर्ति के लिए कौलगर्ल्स या अन्य औरतों से समागम करता रहा था.

लेकिन अब एक सम्मानित शहरी बन जाने पर, खासकर नगरपालिका का मेयर होते हुए और स्टेट काउंसिल का चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार के लिए ऐसी तसवीरों का सार्वजनिक होना शर्मनाक था.

‘‘सरदार साहब, तसवीरें मिलीं आप को?’’ लैंडलाइन फोन पर डेनियल ने फोन कर के पूछा.

‘‘हां, क्या चाहते हो?’’

‘‘10 लाख डौलर.’’

‘‘दिमाग खराब हुआ है. ज्यादा से ज्यादा 500 डौलर.’’

‘‘सरदार साहब, आप की जो हैसियत है उस के लिहाज से 10 लाख डौलर ज्यादा नहीं हैं, ऊपर से आप स्टेट काउंसिल का चुनाव लड़ रहे हैं,’’ डेनियल के शब्दों में कुटिलता थी.

सरदार तिलमिलाया. यह पपाराजी सामने होता तो वह उस को कच्चा चबा डालता. उस ने फोन के कौलर आइडैंटिटी पर नजर डाली. फोन सार्वजनिक टैलीफोन बूथ से किया जा रहा था. ब्लैकमेलर चालाक था.

‘‘देखो, तुम ज्यादा हवा मत लो. अमेरिका में पपाराजी अपराध है. पुलिस में रिपोर्ट करते ही तुम अंदर हो जाओगे.’’

‘‘यह सब होतेहोते होगा. लेकिन आप की तसवीरें सार्वजनिक होते ही आप का राजनीतिक कैरियर खत्म हो जाएगा. साथ ही, बदनामी भी होगी.’’

‘‘तेरी ऐसी की तैसी, फोटोग्राफर,’’ सरदार फुफकारा.

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‘‘ज्यादा गुस्सा सेहत के लिए खतरनाक होता है, खासकर 60 साल की उम्र में.’’ सरदार खामोश रहा.

‘‘सरदार साहब, कल शाम तक आप 1 लाख डौलर दे देना. नहीं तो तसवीरें पहले अखबार वालों को, फिर इंटरनैट पर जारी हो जाएंगी.’’

‘‘इस बात की क्या गारंटी है, तुम भविष्य में तसवीरें सार्वजनिक नहीं करोगे और दोबारा ब्लैकमेल नहीं करोगे?’’

‘‘सरदार साहब, ऐसी सूरत में आप पुलिस को रिपोर्ट कर सकते हैं.’’

‘‘पैसा कहां देना है?’’

‘‘आप फटाफट मुझे अपना मोबाइल फोन नंबर बताओ.’’

सरदार साहब ने नंबर बताया.

‘‘ओके. कल शाम आप जैसे रोज सैरसपाटे के लिए निकलते हैं, निकलेंगे. तब मैं रास्ते में आप को फोन कर के कहीं भी पेमैंट ले लूंगा.’’

अगली शाम सरदार अपनी कार पर समुद्र तट को निकला. डेनियल हैल्मेट पहनेपहने बाइक पर सवार हो पीछेपीछे चला. एक सुनसान स्थान पर फोन आते ही सरदार ने कार रोकी. डेनियल हैल्मेट पहने सामने आया. सरदार ने खिड़की खोल एक लिफाफा उस को थमा दिया.

पहली बार एक लाख डौलर मिले थे. अब से पहले ज्यादा से ज्यादा 5 या 10 हजार डौलर ही मिले थे. डेनियल का हौसला और लालच बढ़ गया.

अभी तक वह समुद्र तट पर चट्टानों के पीछे, यहांवहां पाम के नीचे प्रेमालाप में लीन प्रेमी जोड़ों की तसवीरें खींचता था. अब उस की निगाह समुद्र के बीच खड़े छोटेछोटे समुद्री जहाज, जिन्हें आम भाषा में याट कहा जाता था, पर पड़ी.

ये याट अमीर लोगों के थे जो इन पर समुद्र विहार करते थे. कई याटों पर सुरक्षाकर्मी थे.

‘‘क्यों न आज किसी याट पर चलें?’’ मोटरसाइकिल को एक तरफ खड़ी करते डेनियल ने कहा.

‘‘पागल हुए हो, पकड़े गए तो?’’

‘‘देखेंगे, अमीर लोग छिपछिप कर इन में कैसी रंगरेलियां मनाते हैं.’’

समुद्र तट पर अनेक जगह कटाफटा स्थान था. रेतीले सपाट समुद्र तट के बजाय ऐसा कटाफटा तट किश्तियों को बांधने के लिए उपयुक्त था. इस तट पर कई अमीर लोगों ने निजी पायर यानी सीमेंट के चबूतरे बना कर अपनीअपनी मोटरबोटें या चप्पुओं से चलने वाली नौकाएं बांध रखी थीं.

आगे पढ़ें- शाम का अंधेरा गहरा रहा था. एक किश्ती….

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अंत: श्रीकांत और सुलभा जब आए पास

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