Serial Story: प्रेम गली अति सांकरी

Serial Story: प्रेम गली अति सांकरी (भाग-1)

एक सौतन के साथ अपने पति को शेयर करने में कितनी हिम्मत चाहिए, यह मैं अब जान पाई हूं. बचपन से ही मैं ने मां को तिलतिल मरते देखा है, पापा से हर दिन लड़ते देखा है और अपने हक के लिए दिनरात कुढ़ते देखा है. जब एक म्यान में दो तलवारें ठूंस दी जाएंगी तो वे एकदूसरे को काटेंगी ही. उसी तरह एक पत्नी के होते हुए दूसरी पत्नी लाई जाएगी तो उन के दिलों में हड़कंप मचना स्वाभाविक है.

पापा को सच में मां से प्यार या सहानुभूति होती तो वे मां की सौतन को घर लाने के बारे में सोचते ही न. जब सबकुछ बरसों तक अनैतिक चलता रहा, फिर माफी मांगने से मेरी मां भला उन्हें कैसे माफ करती. प्रेम में क्षमा न तो दी जा सकती है और न ही मांगने से मिलती है. प्रेम या तो होता है या नहीं होता. कभी खुशी कभी गम वाली बीच की स्थिति में हजारों लोग जीते हैं, उन में प्रेम नहीं बल्कि सैक्स एकदूसरे का काम चलाता है. सैक्स को प्रेम मान लेना शादी की असफलता की बहुत भारी भूल है.

औरतें स्वभाव से भावुक होती हैं. हरेक बात अपने आसपास के लोगों से शेयर कर लेती हैं. हम लोग अभी बच्चे ही थे कि मां और पापा में किसी तीसरी औरत को ले कर ठन गई थी. मां ने उसे कभी नाम से नहीं पुकारा. मां हमेशा उसे ‘वह’ कहती थीं. उसे हमेशा नफरत और हिकारत की नजरों से देखतीं. ‘वह’ पापा के औफिस में काम करती थी. पापा औफिस में सीनियर औफिसर थे. हर तरफ उन का दबदबा था.

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जब मैं 7 साल की थी तब पापा मुझे कभीकभार अपने साथ औफिस ले जाते थे. पापा मुझे अपने औफिस की अन्य महिला सहयोगियों से मिलवाते. वे मेरा खूब स्वागत करतीं. मुझ से प्यारभरी बातें करतीं.

‘वह’ उन सब में सब से अलग थी. मुझे उस के पास छोड़ कर पापा बहुत खुश होते. वह मुझे देखते ही खिल जाती थी. ‘वह’ मुझे गोद में उठा लेती. मेरा मुंह बारबार चूमती और मुझे चौकलेट ले कर देती या कैंटीन से कोल्ड डिं्रक मंगवाती. पूरे दफ्तर में मुझे ‘वह’ सब से ज्यादा प्यारी लगती थी.

एक दिन मैं उस की गोद में बैठी थी. ‘वह’ पापा के कैबिन में कुरसी पर बैठी थी. पापा भी पास ही खड़े थे. उस ने मुझ से पूछा, ‘क्या तुम भी मेरे साथ रहना पसंद करोगी, अगर तुम्हारे पापा मेरे साथ मेरे घर में रहने लगें तो?’ बहुत ही बेढंगा प्रस्ताव था उस का. मैं चक्कर में पड़ गई, हां कहूं या ना. मैं सकपका गई और घबरा कर उस की गोदी से नीचे उतर गई थी.

मां अकसर मेरी बड़ी बहन से ‘उस के’ बारे में बातें करती थीं. मैं तब समझती थी कि मां उस से जलती हैं. ‘वह’ सुंदर थी, उस के पास कीमती गहने थे, वह आकर्षक थी और हमेशा नए फैशन के कपड़े पहनती थी. मैं सोचती थी कि ‘वह’ मुझ से खास स्नेह रखती थी, इसलिए मां को चिंता थी कि कहीं ‘वह’ मुझे उस से छीन न ले.

असली बात मुझे तब पता चली जब मैं थोड़ी बड़ी हुई. मां और पापा के झगड़े भयानक तेवर लेने लगे थे. उन के बहस के केंद्र में हमेशा ‘वह’ होती. मां पापा को कोसतीं, गुस्से में कहतीं कि उन के दफ्तर की स्त्रियों से संबंध हैं. कई दिनों तक मां और पापा रूठे रहते जिस का असर हम दोनों बहनों पर पड़ता.

पापा की उस प्रेमिका ने हमारे घर में तूफान ला दिया था. हर वक्त घर में कोहराम मचा रहता था. पापा हमेशा कसमें खाते कि उन का ‘उस से’ कोई संबंध नहीं है. मां इधरउधर दफ्तर के लोगों से पूछताछ करतीं. वे लोग उन्हें सच क्यों बताने लगे.

कुछ दिन पापा मां के प्रति वफादार रहते मगर उस के बाद उन का असली रंग सामने आ जाता. मां जासूसी करतीं. वे पापा को पकड़ ही लेतीं. कभी पापा ‘उस के’ साथ कैफे में मिल जाते तो कभी किसी सिनेमाहाल के बाहर.

मामला घूमनेफिरने या फिल्म देखने तक ही सीमित नहीं रहा. पापा उस के साथ शुरूशुरू में रातभर कहीं रहने लगे तो मां ने आसमान सिर पर उठा लिया. घर में खाना न बनता. मां चीखतींचिल्लातीं, घर की कई चीजें तोड़ देतीं. हम बच्चों को बेवजह पीटने लगतीं.

पापा सिर झुकाए सब कुछ सहते, चुपचाप सिगरेट फूंकते रहते. बहुत देर तक टैनिस की बौल की तरह इधर से उधर टप्पे खाखा कर मां गला फाड़फाड़ कर अंत में थक जातीं मगर पापा को कोई फर्क न पड़ता.

अगले कुछ दिनों में मां को कीमती उपहार दे कर, आगे से सुधरने का वचन दे कर पापा मां को मना लेते. कुछ दिन मां खुश रहतीं मगर फिर कोई न कोई बात मां के कानों में पड़ ही जाती. फिर वही सबकुछ दोहराया जाता. मां की गालियां सुन कर भी पापा ने अपनी मिस्ट्रैस को छोड़ा नहीं.

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उस दिन तो ‘उस ने’ बड़ी हिम्मत दिखाई. ‘वह’ एक दिन हमारे घर के दरवाजे पर आ खड़ी हुई. मैं ने दरवाजे के बाहर उसे अपनी तरफ मुसकराते देखा. घर में एक मैं ही थी जिस के मन में ‘उस के’ प्रति कोई प्रतिकार या नफरत की भावना नहीं थी.

उस के पेट के निचले हिस्से में आए उभार को देख कर मैं खुश हो उठी. मुझे मालूम था कि बच्चे मां के पेट में ही पलते व बढ़ते हैं. मां ने कुछ सप्ताह पहले ही मेरे छोटे भाई को जन्म दिया था.

मैं आश्वस्त थी कि पापा की मित्र भी जल्दी ही एक प्यारे से बच्चे को जन्म देगी. अब तक मैं ‘उसे’ पापा के औफिस की परिचित व मित्र मानती थी, जैसे हम बच्चों के स्कूल में लड़केलड़कियां मित्र होते हैं. यह तो काफी दिनों बाद मुझे बताया गया कि ‘उसे’ पापा ने ही गर्भवती बनाया था और एक विवाहित आदमी के लिए ऐसा काम अनैतिक व घृणित था. उस के बाद मैं ने ‘उसे’ नफरत की निगाहों से देखना शुरू कर दिया था.

उस दिन ‘वह’ पक्के इरादे के साथ हमारे घर आई थी. वह दरवाजे पर आश्वस्त हो कर खड़ी थी. उस ने मुझ से पापा के बारे में पूछा. उस के कसे हुए चुस्त कपड़े देख कर मैं उस की तरफ आकर्षित हुई. मैं हैरान थी कि ‘वह’ हमारे घर के अंदर क्यों नहीं आ रही थी.

मैं ने मां को बुलाया. ‘उसे’ घर के बाहर पा कर मां तो भड़क गईं. वे उस पर बुरी तरह चीखनेचिल्लाने लगीं. मां ने उसे धमकाया कि अगर ‘वह’ दोबारा इधर दिखी तो वे पुलिस को बुला लेंगी. ‘वह’ शांत बनी नीची नजर से धरती की तरफ देखती रही. उस की आंखें हमारे घर के अंदर कुछ ढूंढ़ रही थीं. उसे पता था कि मेरे पापा अंदर ही होंगे.

मां के इस प्रहार से एक मिनट के लिए तो वह घबरा गई. वह कुछ कहना चाहती थी मगर मां ने उसे मुंह खोलने का अवसर ही नहीं दिया. उस ने अपमान का कड़वा घूंट चुपचाप पी लिया.

वह चुपचाप वापस चली गई. पिछले एक सप्ताह से मां और पापा के बीच ‘उसे’ ले कर घमासान चल रहा था. पापा औफिस नहीं गए थे. मां उन्हें बाहर जाने नहीं दे रही थीं. सो, वह उन का पता करने आई थी. उस नादान उम्र में मैं साफ नहीं जान पाती थी कि बड़े लोग एकदूसरे के साथ कैसेकैसे खेल खेलते हैं. उन का व्यवहार हम बच्चों की समझ से बाहर था.

पापा की इस लंपट प्रवृत्ति के कारण हमारे घर में सदा शीतयुद्ध छिड़ा रहता था. पापा के अन्य स्त्रियों से भी अनैतिक संबंध थे और मां ने अपने विवाहित जीवन के पहले 10 वर्ष पापा की इन इश्कमिजाज पहेलियों को सुलझाने में ही होम कर दिए थे. रोमांस उन के जीवन से कोसों दूर था.

मां गोरीचिट्टी और जहीन दिमाग की भद्र महिला थीं. मगर पापा को तो तीखी व तुर्श स्त्रियां भाती थीं. पापा तो मां की सहेलियों से भी रोमांटिक संबंध बना लेते और फोन पर बतियाते रहते. मां किसकिस सौतन से उन का बचाव करतीं.

‘वह’ पापा के रोमांस की धुरी बन कर रह गई. पापा उस से बहुत ज्यादा हद तक ‘इन्वौल्व’ थे. ‘उस के’ लिए वे मां व हम बच्चों को छोड़ देने को तैयार थे. मां ने कई बार पापा को छोड़ देने की बात की, कोशिश भी की.

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पापा ने उन्हें उकसाया भी मगर 90 के दशक में एक मध्यवर्ग की औरत के लिए इतना आसान नहीं था कि वह एक आवारा भंवरेरूपी पति से छुटकारा पा सके और खासकर तब जब उस के 3 बच्चे हों.

पापा सच में शैतान का अवतार थे. उन्होंने एक ही समय में 2-2 औरतों को गर्भवती बना दिया था. मां के साथ तो चलो ठीक था, वे उन की कानूनी पत्नी थीं मगर ‘उसे’ अपनी हवस का शिकार बना कर कहीं का नहीं छोड़ा.

अपना बढ़ता हुआ पेट ले कर वह कहीं नहीं जा सकती थी. औफिस से उस ने छुट्टी ले रखी थी. आसपड़ोस में बदनामी हो रही थी. ‘उस के’ मांबाप ने उसे काफी साल पहले त्याग दिया था. वे उस की शादी अच्छी जगह करना चाहते थे मगर पापा से रोमांटिक तौर पर जुड़ने के चलते ‘उस ने’ आने वाले रिश्तों को ठुकरा दिया था.

‘उस में’ बला की हिम्मत थी और गजब का आत्मविश्वास. जब उस ने फैसला किया कि वह पापा के नाजायज बच्चे को जन्म देगी तो पापा ने उसे कितना समझाया होगा मगर वह बच्चा गिराने के पक्ष में नहीं थी. बेचारी को तब पता नहीं था कि उस का सामना कितने बड़े तूफान से होने वाला था. मगर उसे यों गुमनामी के अंधेरों में धकेला जाना अच्छा नहीं लगा. उस ने जम कर संघर्ष करना शुरू कर दिया था.

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Serial Story: प्रेम गली अति सांकरी (भाग-2)

वह 25 बरस की थी और पापा 40 पार कर चुके थे. ‘उस में’ इतनी समझ तो थी ही कि ‘वह’ एक बंद गली के पार नहीं जा पाएगी मगर अब जब उस ने पापा से प्यार कर ही लिया था तो पीछे किस तरफ लौटती.

पापा अभी हम लोगों को छोड़ने के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं थे. एक कुंआरी लड़की का मां बनने का यह साहसभरा फैसला विवाहित लोगों के लिए चुनौती ही था क्योंकि सिंगल पेरैंट बनने की यह आधुनिक संकल्पना अभी काफी दूर थी.

पापा ने मां और हम से कड़ी बेरुखी दिखानी शुरू कर दी थी. वे अपनी मिस्ट्रैस को ज्यादा तवज्जुह देने लगे थे. जब मेरा छोटा भाई मां के पेट में था तब पापा कईकई दिन घर से बाहर रहते. जब बच्चा पैदा हुआ तब हमारे पड़ोस की आंटी मां के पास अस्पताल में थीं. मां को पता था कि पापा कहां हैं और किस के पास हैं.

बच्चा पैदा होने के 2 सप्ताह बाद पापा घर लौटे. मां ने पापा को बुलाना बंद कर दिया था. कोई वादप्रतिवाद नहीं हुआ. पापा को इस से कुछ ज्यादा ही शह मिली. अब उन्होंने अपना समय इस तरह बांट लिया था कि ज्यादा समय वे ‘उस के’ साथ बिताते.

अगर हमारे पास कुछ ज्यादा समय के लिए ठहर जाते तो उन की मिस्ट्रैस उन्हें ढूंढ़ते हुए हमारे घर पहुंच जाती. अगर पापा अपनी चहेती के घर ज्यादा दिनों तक टिके रहते तो मां कभी उन की छानबीन न करतीं. पापा घर में न होते तो घर में शांति बनी रहती.

पापा आते और सारी की सारी सैलरी मां को सौंप देते. ‘वह’ नौकरी करती थी, सो पापा का सारा खर्च वही उठाती थी. मां ने कभी पैसे की तंगी नहीं झेली. अच्छा मकान था और अच्छी आय, साथ में सारे बच्चे भी मां की तरफ ही थे.

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मां ने पापा को इधरउधर मुंह मारने के लिए लंबी रस्सी थमा रखी थी और मन ही मन उन्हें पता भी था कि थकहार कर एक दिन उन का पति पूरी तरह उन के पास लौट आएगा. मां ने अगर पापा के साथ सख्त रवैया अपनाया होता तो हो सकता था कि पापा इतनी देर तक लंपट नहीं रहते. मां के ढुलमुल रवैये के कारण पापा बेलगाम होते गए.

और तभी मां के सब्र का प्याला भर गया. मां और पापा में एक दिन खूब झगड़ा हुआ. मां ने बताया कि पापा उस से जबरदस्ती करना चाहते थे. मां भड़क गईं, ‘उसे’ भलाबुरा कहने लगीं. पापा ने हाथ चला दिया तो मां ने आसमान सिर पर उठा लिया.

मैं स्कूल से घर आई तो पाया कि मां घर पर नहीं हैं. पापा मेरे छोटे भाई की नैपी बदल रहे थे. उन की हालत काफी दयनीय थी. मैं ने दबी जबान में पूछा, ‘मां कहां हैं?’

पापा का सख्त व रूखा जवाब था, ‘चली गई है.’

मेरे पैरों तले जमीन डोल गई. कांपती आवाज में मैं ने फिर पूछा, ‘मां कहां चली गईं?’

पापा का गुस्से से भरा उत्तर था, ‘बस चली गई.’

पापा ने हम दोनों बहनों के लिए खाना बनाया जो हमें बिलकुल अच्छा नहीं लगा. पिछले कितने महीनों से पापा हम से बेरुखी से बात करते थे.

घर का मालिक अपनी कमाई से परिवार के लिए सुविधाएं जुटाता है और इस के जरिए अपनी ताकत बढ़ाता है और इसी ताकत के आगे गिरवी पड़ी रहती है बच्चों की मां. हमारे लिए तो मां ही सबकुछ थीं. अब मां पता नहीं कहां होंगी. कहीं नानी के पास तो नहीं चली गईं. वहां तो जाने में ही 2 दिन लगते हैं और आने में भी समय लगता है. इतने दिनों तक हम कैसे रहेंगी? क्या पापा उन्हें मना कर लाएंगे?

अगले दिन भी मां नहीं लौटीं तो हम दोनों बहनों की चिंता बढ़ गई. पापा ने पिछले कई महीनों में हम से ढंग से बात नहीं की थी. हम तैयार हो कर स्कूल चली गईं. पापा ने घर की चाबियां पड़ोस में दीं व हमारे छोटे भाई को ले कर चले गए और रातभर नहीं लौटे.

पड़ोस की आंटी ने हमें खाना खिलाया. मां की हमें बुरी तरह याद आ रही थी. पता नहीं उन से मिलना हो पाएगा या नहीं.

अगले दिन स्कूल से आ कर देखा कि घर में पापा की मिस्ट्रैस आई हुई थी. साथ में, उस की छोटी सी गुडि़या और हमारा छोटा भाई. ‘उस ने’ घर का काम संभाल लिया.

‘वह’ उस बैडरूम में सोने लगी थी जहां मां सोती थीं. पापा भी उस के साथ ही सोते. पापा के हौसले बुलंद थे. घर में हुए इस बदलाव से हम दोनों बहनें बहुत त्रस्त थीं.

हमें मां की याद सता रही थी और हमें कुछ भी पता नहीं था कि मां कहां हैं. कहीं वे मर तो नहीं गईं. हम यह बात पड़ोसियों से भी पूछ नहीं सकते थे.

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पड़ोसियों की आंखों में कुछ दूसरे हैरानजदा सवाल थे कि हमारे घर में आ कर रहने वाली यह स्त्री कौन है और पापा की क्या लगती है. पापा ने उस के बारे में एकदो पड़ोसियों को यह बताया था कि ‘वह’ उन की चचेरी बहन है जिसे उस के पति ने छोड़ दिया है.

सप्ताह बाद मां लौटीं तो हमारी सांस में सांस आई. हमारा रुटीन सामान्य हो गया. सुबह स्कूल, दोपहर को होमवर्क और शाम को खेल. बड़े लोगों को घर में क्या परेशानियां हैं, हम उन्हें क्या समाधान दे सकते थे. पापा ने घर में क्या गड़बड़झाला रचा रखा है, हमारी समझ में कुछ नहीं आता था. अब घर में कई लोग थे : एक पति और उन की 2 पत्नियां व 4 बच्चे.

मां के लौट आने पर अब घर में पापा की मिस्ट्रैस का रुतबा घट गया था. ‘वह’ चुपचाप रहती, गेट के ठीक सामने बाहर वाले कमरे में अपनी गुडि़या को संभालने में ही मस्त और व्यस्त रहती. घर के किसी मामले में उस की कोई राय नहीं ली जाती थी. मां ने अपना पुराना बड़ा वाला बैडरूम संभाल लिया था.

घर में पापा का दरजा अब वह नहीं रह गया था. हर तीसरेचौथे दिन ये बड़े लोग घर में तूफान मचाते, गालियां देते और एकदूसरे को कोसते. पापा सोते तो मां के कमरे में ही मगर दोनों के बीच कोई बातचीत नहीं होती थी.

पापा की जरूरतें पूरी करने के लिए दोदो औरतें थीं. घर में हर समय तनाव रहता. मां उन से बचने की कोशिश न करती या यों कहें कि वे जानबूझ कर पापा को और दुखी करतीं. पापा उन की ये बातें समझ न पाते या समझ कर अनजान बने रहते.

उन के लिए घर में रखैल रखना खांडे की धार पर चलने जैसा था. वे एक समय में दोदो नावों पर सवार होना चाहते थे. वे दोनों औरतों के बीच बुरी तरह फंस गए थे. एक को खुश करते तो दूसरी नाराज हो जाती.

हर रात हम खाने के टेबल पर डिनर के लिए बैठते. एक कष्टभरी खामोशी हमारे बीच तनी रहती. हम ऐसा बरताव करते, मानो एकदूसरे के लिए एलियंस हों. सुबह मां हमें तैयार कर के स्कूल भेजतीं. फिर किचन में पापा व उन की मिस्ट्रैस घुसते. मां की गालियों और तानों की बौछारों को सहन करते हुए ‘वह’ रह रही थी. उस का यह साहस वर्णन से बाहर था.

‘उस की’ बेटी से हम बात नहीं करते थे. हमारे लिए ‘उस से’ बोलना भी मना था. पापा के खिलाफ मां की उस जंग में हम बच्चे पूरी तरह मां के साथ थे. ‘उस ने’ मुझे अपनी तरफ झुकाने की बहुत कोशिश की.

उस ने मुझे ‘एलिस इन वंडरलैंड’ नामक किताब मेरे 12वें जन्मदिन पर उपहार में दी. मुझे वह पुस्तक बहुत अच्छी लगी. मैं जानती थी कि वह मेरे प्रति दयालु है मगर मैं अपनी मां के प्रति वफादार रहना चाहती थी. हां, मेरे मन का एक हिस्सा ‘उसे’ चाहता जरूर था. मुझे तब पता नहीं था कि मेरे पापा से प्यार कर के उस ने कितना बड़ा गुनाह किया है.

‘उस का’ इस तरह हमारे साथ रहने का यह अनोखा अरेंजमैंट ज्यादा दिनों तक चल नहीं पाया. पापा को तो कोई आपत्ति नहीं थी मगर जब भी मां मेरे छोटे भाई को ले कर बाहर निकलतीं, उन्हें खुद पर शर्म आती कि वे अपनी सौत के साथ रह रही हैं. हमें भी यही बताया गया था कि अगर पड़ोसी ‘उस के’ बारे में पूछताछ करें तो कहो कि वह हमारी किराएदार है.

मां ने सभी टोनेटोटके कर के देख लिए, नानी और मामा की राय ली, कई वकीलों से सलाह की मगर ‘उसे’ अपने घर से नहीं निकाल पाईं. ‘वह’ इतने अपमान और बेइज्जती के बावजूद हमारे घर में रह रही थी, उस की एक ही मुख्य वजह थी. वह वजह थी कि ‘वह’ पापा से बेइंतहा प्यार करती थी. जो ज्ञान पुरुष स्त्रियों से उन के बारे में हासिल करते हैं भले ही वह उन की संचित संभावनाओं के बारे में न हो कर सिर्फ उन के भूत और वर्तमान के बारे में ही क्यों न हो, वह तब तक अधूरा और उथला रहेगा जब तक कि स्त्रियां स्वयं वह सबकुछ नहीं बता देतीं.

कई महीनों बाद जब मां से यह सब सहन नहीं हुआ तो उन्होंने अदालत का दरवाजा खटखटाया और पापा पर दोष लगाते हुए ‘उसे’ घर से निकालने के लिए पुलिस कार्यवाही की मांग की. पापा के औफिस में भी लिख कर शिकायत दे दी कि ‘उस के’ हमारे घर में यों रहने से हम पर व हमारे बच्चों पर बुरा असर पड़ रहा है.

एक रात उस का सामान चला गया और साथ ही वह भी. पापा 2 परिवारों के मुखिया बन गए. पापा ने हमारे घर आना बिलकुल ही कम कर दिया. बस, हर महीने की पहली तारीख को आते और घर में अपनी तनख्वाह छोड़ जाते. किसी बच्चे के बारे में न पूछते.

मां ने तलाक की अर्जी लगा दी तो पापा हम से बिलकुल ही दूर हो गए. हम बच्चों की हालत बहुत खराब हो गई थी. मां हमेशा गुमसुम रहने लगी थीं. अपनी सेहत का खयाल न रखतीं. ढंग के कपड़े न पहनतीं. न कहीं जातीं और न ही हमें ले कर निकलतीं.

हमारी पढ़ाईलिखाई के खर्च बढ़ते जा रहे थे. पापा खर्च उठा रहे थे मगर मां बहुत बार हमें बिना कारण डांटतीं, हम पर पाबंदियां लगातीं.

मां अपने आत्मत्याग से हमें ब्लैकमेल करतीं. हमें वही पता होता जो वे हमें बतातीं. वे हमें हर वक्त बतातीं कि कैसे अपना पेट काटकाट कर उन्होंने हमें शिक्षा दी. कभीकभी वही बातें बारबार सुनसुन कर हमें चिढ़ आ जाती. हमें पैदा करने या महंगे स्कूलों में भेजने का आग्रह हम बच्चों ने तो नहीं किया था.

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हम नहीं जानते थे कि जो कुछ वे कर रही थीं या पति के साथ जैसे उन का समीकरण बिगड़ रहा था उस में हम लोगों की कोई भूमिका थी भी या नहीं. हां, इस का असर हम पर पड़ रहा था. वे हमारे लिए जो कर रही थीं उस के पीछे उन का अपना निजी उद्देश्य भी तो था. पापा ने तो आसानी से पैसे के दम पर हम से पल्ला झाड़ लिया था मगर मां कई बार गुस्से में बिफर कर कहतीं, ‘तुम न होते तो मैं फिर शादी कर लेती या फिर अपने मायके में जा कर शान से रहती. हमारी खातिर मां के आत्महत्या और बलि का बकरा बनने का विचार हमें उन के प्रति कृतज्ञता नहीं बल्कि भ्रम और अपराधबोध से भर देता था.

हम मां की आधीअधूरी रह गई आकांक्षाओं की पूर्ति के साधनमात्र रह गए थे. हम चाहते थे कि मां हर हालत में खुश रहें मगर वे उदास थीं, वंचिता थीं. और हमारे खयाल में यह सब हमारी गलती के कारण ही था.

क्रमश:

Serial Story: प्रेम गली अति सांकरी (भाग-3)

पिछले अंक में आप ने पढ़ा कि कैसे पापा की प्रेमिका ने हमारे घर में तूफान ला दिया था. सभी टोनेटोटकों के बावजूद मां उसे घर से बाहर नहीं निकाल पाईं. लेकिन मां द्वारा अदालत का दरवाजा खटखटाने पर उसे घर छोड़ना पड़ा और इस तरह पापा दो परिवारों के मुखिया बन कर रह गए. लेकिन पापा ने हम से पल्ला झाड़ लिया. पढि़ए शेष भाग…

छोटीछोटी बातों पर शादी में दरारें आती हैं. शादी को कायम रखने के लिए उसे किसी भी प्रकार के वैचारिक हमलों से बचाना चाहिए. यह सोच कर शादी नहीं करनी चाहिए कि यह तो करनी ही है क्योंकि सब करते हैं.

पापा ने जो किया था वह एक सम्माननीय और संतुलित व्यक्ति का व्यवहार नहीं था. अपनी वासनात्मक लालसाएं पूरी करने के लिए पापा ने इस घर के 4 जनों को दिनरात घुलते चले जाने को विवश किया था. विवाहेतर संबंध तो ठीक थे मगर उस पर यह अतिरेक और कुचेष्टा कि उन की रखैल मिस्ट्रैस को इस घर में सम्मान मिले और वह हमारे साथ भी रहे. दैहिक जरूरतों के सामने घर जैसी पवित्र जगह को युद्ध की रणभूमि बना डाला था ऐसे में तो कुंठा और दमन ही हाथ आना था.

यह तो बहुत ही मार देने वाला काम था. मां की हिम्मत थी कि पिछले इतने सालों से वे किसी तरह घर को जोड़ कर के रखे हुए थीं. वे पस्त हो जातीं, टूट जातीं या भाग कर मायके चली जातीं तो हम बच्चों का भविष्य खराब हो जाता.

लगभग 1 साल बाद मां को मोटी रकम मिल गई और पापा को तलाक मिल गया. ‘उस ने’ अगले ही महीने पापा से शादी कर ली. मां ने पापा को माफ कर दिया यह समझ कर कि गलती तो उस युवती की है जो एक अधेड़ व्यक्ति का पीछा नहीं छोड़ती.

तब मैं तय नहीं कर पाई कि सच में सारी गलती ‘उस की’ ही थी. क्या मां या पापा कुसूरवार नहीं थे? त्रिकोणीय संबंधों में अगर 1 को बलि का बकरा बनना पड़ता है तो बाकी के 2 लोग भी ज्यादा देर तक ऐसे अनैतिक संबंध को सहजता से नहीं जी पाते.

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जल्दी ही उस मायावी औरत से पापा का मोहभंग हो गया. जब तक उस से पापा की शादी नहीं हुई थी तब तक पापा में उसे सारा आकर्षण दिखता था. गलत पते की चिट्ठी की तरह पापा 1 साल बाद हमारे घर के चक्कर लगाने लगे. भरापूरा घर, जिसे वे एक जवान नई औरत के लिए लात मार कर चले गए थे, अब हम बच्चेबच्चियों को देखने के बहाने फिर आने लगे थे.

पापा हमारे जन्मदिन पर बढि़या तोहफे लाते, हमें कपड़े ले कर देते. हमारे कालेज के बारे में पूछते. मेरे छोटे भाई में उन्हें खास दिलचस्पी रहती. हमें यकीन नहीं होता कि ये हमारे वही पापा हैं जिन्होंने हम से बात तक करनी बंद कर दी थी क्योंकि हम हमेशा मां की तरफदारी करते थे.

मां के मन की स्थिति कोई खास निश्चित नहीं थी कि अब पापा को ले कर वे क्या सोचती थीं. ‘उस ने’ जब पापा को हासिल कर लिया तभी से उन के रिश्ते के अंत का काउंटडाउन शुरू हो गया.

हम दोनों बहनों ने अच्छे संस्थानों से डिगरी ले ली थी और हमें अच्छी जौब मिल गई थी. पापा हम दोनों को ले कर कुछ ज्यादा ही वात्सल्य दिखाने लगे थे. मां के प्रति उन के मन में सोया प्यार जागने लगा था. अपनी मिस्ट्रैस की परवा कम ही करते थे. मां तो कहती कि

अब इस बूढे़ का दिल लगता है, दफ्तर की किसी अन्य स्त्री पर आ गया है

और हमारी आड़ ले कर यह अपनी मिस्ट्रैस से जान छुड़ाना चाहता है.

हो सकता है मां की बातों में कुछ सचाई हो मगर हमें अब सारा मामला समझ में आने लगा था. पापा इतनी ऊंची पोस्ट पर थे, अच्छा कमाते थे, फिर मां की उन से एक दिन भी नहीं बनी. क्या मां का कोई दोष नहीं था? मेरी बड़ी बहन का मानना था कि मां के हर समय शक करते रहने से पापा ऐसे बन गए.

खैर, मां और पापा का कोई समझौता नहीं हो सका. पापा पेंडुलम की तरह इधर से उधर, उधर से इधर आतेजाते रहे. मां ने उन्हें कोई तबज्जुह न दी. मां अब धार्मिक व अंधविश्वासी हो गई थीं. मेरे छोटे भाई ने जब डिगरी हासिल कर ली तो मां का ध्यान पूरा ईश्वर में लग गया. वे हर दुखसुख से ऊपर उठ गई थीं.

घर के मामलों में उन्होंने रुचि लेनी बंद कर दी थी. हमारी शादी के बारे में भी उन्होंने कभी सीरियसली नहीं सोचा. उन्होंने सबकुछ पापा और वक्त पर छोड़ दिया था. कोई इतना उदासीन कैसे हो सकता है, यह मां को देख कर अंदाजा लगाया जा सकता था.

मां को मालूम था कि पापा अब भी घर में रुचि लेते हैं. मां को एक निश्चित रकम हर महीने मिल जाती. हम बच्चे भी अच्छा कमा रहे थे, कारों में घूमते थे.

जब मेरी बहन ने अपने दोस्त के साथ रहने का फैसला किया तो उस ने मेरी ड्यूटी लगाई कि मैं मां को सारी बातों के बारे में ब्रीफ करूं. उस में हिम्मत नहीं थी यह सब कहने की. पापा को तो हम इतनी अंतरंग बातें कभी न बता सकते थे.

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वे तो एक अवांछित मेहमान की तरह हफ्ते में 2-3 बार आते. खाने का समय होता तो खाना खा लेते. ज्यादातर वे संडे को आते या तब आते जब हम बच्चों में से कोई एक घर पर होता. मां से अकेले मिलने वे कभी नहीं आए. अब अजीब सा, नीरस सा रिश्ता बचा रह गया था दोनों के बीच में.

अब वे शराब बहुत पीने लगे थे. उन की मिस्ट्रैस की हमें कोई खबर नहीं थी, न ही कभी वे उस के बारे में बताते और न ही हमें कोई जिज्ञासा थी कुछ जानने की. हम उसे हमारा घर बरबाद करने में सौ फीसदी जिम्मेदार मानते थे. मां की असहनीय उदासी और तिलतिल कर जवानी को गलाने के पीछे पापा की मिस्ट्रैस का ही हाथ था.

बड़ी बहन के अफेयर और घर छोड़ कर जाने के फैसले के बारे में मैं ने मां से जिस दिन बात की उस दिन उन का मौन व्रत था. मां आजकल ध्यान शिविरों, योग कक्षाओं और धर्मगुरुओं के प्रवचनों में बहुत अधिक शिरकत करने लगी थीं.

मैं ने डरतेडरते बात शुरू की, ‘मां, शिखा के बारे में आप को बताना था.’

मां ने मुसकरा कर मुझे इशारे से सबकुछ कहने के लिए कहा. उन के होंठों पर बहुत दिनों बाद मैं ने हलकी मुसकराहट देखी. मैं थोड़ा कांप गई. लगता था कि शिखा की बात उन से छिपी हुई नहीं है.

मेरी बहन ने कहा था कि जो लोग धर्म में बहुत गहरी आस्था रखने लगते हैं और अत्यधिक पूजापाठ करने लगते हैं, उन्हें अपने प्रियजनों की बहुत सारी बातें पहले से ही पता चल जाती हैं. इसीलिए मेरी बहन ने मां से खुद कुछ पूछना या अपने होने वाले पति के बारे में बताना उचित नहीं समझा. उसे डर था कि कहीं मां उस के होने वाले पति के बारे में कोई अप्रिय भविष्यवाणी ही न कर दें तो फिर एक शक का बीज उस के मन में उगने लगेगा.

मां हम बच्चों की शादी से डरती क्यों थीं. शादी से उन का विश्वास उठ गया था जैसे. आखिरकार ‘शादी’ वह सामाजिक बंधन या करार है जो 2 लोग आपस में मिल कर करते हैं. उन्हें उम्मीद होती है कि उन की शादी हमेशा कायम रहेगी. अकसर ऐसा होता नहीं है. हालात बुरी तरह बिगड़ सकते हैं और बिगड़ते भी हैं. शादियां भ्रष्ट भी

हो जाती हैं. दूसरा आदमी या दूसरी औरत एक अच्छे जोड़े में दरार पैदा कर सकती है.

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फिर भी इतिहास गवाह है कि शादी वह नायाब और चिरायु सामाजिक करार है जो हर युग, हर कौम और हर संस्कृति में कारगर व सफल रहा है. विवाह हमारे जीवन को स्थायित्व देता है मगर साथ ही, हम में कुछ लोगों को यह स्थायित्व डराता भी है. अपने जीवनसाथी के सामने शर्तहीन समर्पण हमें डराता है, संशय से भर देता है. हम सोचते हैं कि अगर उस ने हमारी निजता का मान न रखा या हमारी कसौटी पर खरा न उतरा या वह हमारे लिए सुपात्र सिद्ध न हुआ तो फिर हम कहीं के न रहेंगे.

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Serial Story: प्रेम गली अति सांकरी (भाग-4)

विवाह स्मृतियों का एक पिटारा ही तो है जिस में अगर अच्छी और सुखद यादों के चित्र ज्यादा समेटे हुए हों तो उस विवाह को कामयाब कहा जा सकता है. विवाह पलों में सिमट सकता है, यह और बात है कि किन पलों को भुला दिया जाए और किन लमहों की यादों को करीने व खूबसूरती से संजोया जाए.

अब मैं जान गई हूं कि छोटीछोटी बातों पर शादी में दरारें आती हैं. एक कहावत है कि पत्थर अंतिम चोट से टूटता है मगर पहले की गई चोटें भी बेकार नहीं जातीं. शादी को कायम रखने के लिए उसे किसी भी प्रकार के वैचारिक हमलों से बचाना चाहिए. यह सोच कर शादी नहीं करनी चाहिए कि यह तो करनी ही है क्योंकि सब करते हैं. इसीलिए भी शादी नहीं करनी चाहिए कि बच्चे चाहिए. बच्चे तो गोद भी लिए जा सकते हैं. किसी काल्पनिक सुरक्षा के लिए शादी करना बेकार है क्योंकि कोई ऐसी चीज है ही नहीं.

शादी में 2 अनजान लोग सारी उम्र साथ गुजारने का प्रण लेते हैं और एक धुंधले आकर्षण के साथ सारा जीवन साथ रहने को तैयार हो जाते हैं. कुछ डरपोक लोगों के लिए यह एक खतरनाक खेल है. कुछ अन्य के लिए यह एक मूर्खतापूर्ण कदम है. एक तर्कहीन यात्रा है. कुछ मान लेते हैं कि शादी एक पागलपन है, हताशा से उपजी विवशता है और अनिश्चितताओं से परिपूर्ण है.

मेरी बहन ने प्रेम कर के बिना किसी औपचारिक रस्म, कसम या शादी के अपने दोस्त के साथ रहने का मन बना लिया था. उसे विश्वास था कि टिकना हुआ तो यह बंधन भी खूब चलेगा वरना मांपापा की शादी में कितनी कसमें, रस्में और रिश्तेदार जुड़े थे, वह तो एक दिन भी ठीक से नहीं निभ पाई. बहन अपनी जगह ठीक थी.

मां बताती थीं कि पहले महीने के बाद से उन का पति उन का नहीं हो पाया. मगर अब समय बदल गया था. ऐसा आज समाज में व्यापक पैमाने पर हो रहा है. वर्जनाएं टूट रही हैं और हमारी नई पीढ़ी नए प्रयोग करने को तत्पर व आमादा है.

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पापा अपनी दुनिया में मस्त थे और मां अपने दुख में त्रस्त थीं. ऐसे में हम दोनों बहनें शादी की उम्र से काफी आगे निकल गई थीं. अपनी उम्र के तीसरे दशक में जा कर हर कुंआरी लड़की एक आखिरी जोर लगाती है कि कोई जीवनभर का साथी मिल जाए. उम्र के तीसरे दशक के अंत में और चौथे दशक के शुरू होने तक उस का सौंदर्य अपने उतार पर आने लगता है. बालों में चांदी उतरने लगती है. सोने सी काया निढाल और परेशान सी दिखने लगती है.

मेरी बहन मुझ से कहती, ‘क्या करूं, कितने सालों से हम अपने लिए कोई फैसला लेने से रुके हुए हैं. घर का माहौल तो ठीक होने से रहा. क्यों न अब अपनी जिंदगी किसी रास्ते पर लगाई जाए.’

उस का मानना था कि प्रेम की कोई हद नहीं. प्रेम के समक्ष विवाह का कोई मेल नहीं. जो लोग प्रेम नहीं समझते वे कूपमंडूक हैं. जिंदगी केवल भावनाओं व आवश्यकताओं से ही नहीं चलती. रिश्तों में संवेदना और संजीदगी होनी चाहिए और एकदूसरे के प्रति एक मुकम्मिल प्रतिबद्धता भी.

मां का मौन सबकुछ कह गया.

बिना किसी औपचारिक विदाई के मेरी बहन ने अपने होने वाले पति के साथ रहना शुरू कर दिया. मुझे अपने प्यार के बारे में मां को बताना ठीक नहीं लगा. मैं भी उस दिन की राह तकने लगी जब मैं भी पक्के मन से फैसला कर के अपने प्रेमी निकुंभ के साथ उस के फ्लैट में चली जाऊंगी.

प्रेम के मामले में मैं कच्ची थी, नवीना थी, नवस्फुटा थी. मेरे कोमल हृदय की सारी नवीन और उग्र वासनाएं पंख फैला कर उड़ना चाहती थीं मगर मुझे अभी रास्ता मालूम नहीं था.

वह कहता था कि मैं बला की खूबसूरत हूं. ऐसा मुझे कई नौजवान कह चुके थे. मैं सुंदर थी, अच्छी डीलडौल की थी. भरीपूरी छातियां असल में लड़की के गले में लटकता फांसी का फंदा होता है जो उसे उन लड़कों की नजर में चढ़ा देता है जो उसे अपनी रबड़ की गुडि़या बनाना चाहते हैं. लड़की के हुस्न की तारीफ तब तक है जब तक उस में मर्द को अपनी ओर खींचने की कोशिश होती है. एक बार उस की छातियां लटक जाएं या सूख जाएं तो फिर उस से वितृष्णा उपजती है.

कुतूहल और अनभिज्ञतावश जरा दो कदम आगे की ओर अग्रसर होती तो लाज, डर और मां के लिहाज के मारे वापस लौट आती. मैं अपनी मंजिल पर पहुंचने के लिए व्याकुल थी मगर मां को छोड़ कर जाती तो मां की देखभाल कौन करता. वे तो दिनरात मीरा की तरह अपने कथित भगवान की भक्ति में ही खोई रहतीं. बहुत कम बोलतीं. मेरा भाई बहुत पहले ही विदेश चला गया था.

मेरी जिंदगी सरपट भाग रही थी. अब मैं और किसी राजकुमार का इंतजार नहीं कर सकती थी, कोई बड़े खानदान का रईस या फिल्मी हीरो की तरह

बांका सजीला. एक बार जिस के साथ प्यार हो गया अब तो उसी के लिए जीनामरना था.

मेरा हीरो आज के जमाने का बिंदास आशिक था, वह शादी के खिलाफ था. मैं अपने कौमार्य को कब तक बचाती. मेरी उम्र मेरे हाथों से फिसलती जा रही थी. फिर एक दिन मैं उस की रौ में बह ही गई. अपने बैडरूम में ले जा कर उस ने धीरेधीरे अपने और मेरे कपड़े निकाले और बड़ी खूबसूरत व कलात्मक ढंग से मुझे प्यार किया. उस ने कोई घबराहट, हड़बड़ी या जल्दबाजी नहीं दिखाई.

उस ने आहिस्ताआहिस्ता मेरे बदन को यों सहलाया जैसे मैं इस दुनिया की सब से नायाब और कीमती चीज हूं. वह मुझे दीवानगी और कामुकता के उच्च शिखर तक ले गया और फिर वापस लौट आया. मैं इस दुनिया में कहीं बहुत ऊपर तैर रही थी. वह बड़े सधे ढंग से इस खेल का निर्देशन कर रहा था. खुद पर उस का नियंत्रण लाजवाब था. ठीक वक्त पर वह रुका. हम दोनों एकसाथ अर्श पर पहुंचे.

पापा ने मेरी बहन को तो कभी कुछ नहीं कहा मगर जब मेरे लवर से संबंध बने और वह जब अकसर घर आने लगा तो पापा ने एक दिन मुझे आड़े हाथ लिया. बहस होने लगी. मैं विद्रोह की भाषा में बोल पड़ी. पापा की मिस्ट्रैस को ले कर मैं ने कुछ उलटासीधा कह दिया. पापा ने मेरी खूब धुनाई कर दी. प्यार करने वाले तो पहले ही इतने पिटे हुए होते हैं कि उन्हें तो एक हलका सा धक्का ही काफी होता है उन की अपनी नजर से नीचे गिराने के लिए. पापा ने जब मुझे पीटा तब भी मां कुछ नहीं बोलीं. अब वे पूरी तरह से गूंगी हो चुकी थीं. कई बार मैं ने सोचा कि उन्हें किसी बढि़या ओल्डऐज होम में भरती करवा दूं. मां को पैसे की किल्लत न थी.

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इस कशमकश में कब मेरे बालों में सफेदी उतर आई, पता ही नहीं चला. मां के गुजर जाने के बाद घर में मैं अकेली ही रह गई. सब लोगों ने अपनेअपने घोंसले बना लिए थे. सब लोग आबाद हो गए थे. एक मेरी और पापा की नियति में दुख लिखे थे.

पापा काफी वृद्ध हो गए थे. अपनी मिस्ट्रैस और उस से हुई बेटी से उन की कम ही बनती थी. पापा कभीकभार हमारे घर आते. अपने औफिस की एक अन्य बूढ़ी औरत के घर में रहते थे. मां के गुजर जाने के बाद पापा की वित्तीय स्थिति काफी मजबूत हो गई थी. मां को जो खर्च देते थे वह भी बच जाता था.

फिर एक दिन पापा भी इस दुनिया से कूच कर गए. मेरी बहन विदेश चली गई थी. पापा की मौत के बारे में सुन कर 1 साल बाद आई. हम ने एकदूसरे को सांत्वना दी. भाई ने तो बरसों पहले ही हम लोगों से नाता तोड़ रखा था. वह बहुत पहले घर को बेचना चाहता था. मगर मैं यहां रहती थी. उस ने सोचा

था कि मैं इस मकान को अकेले ही हड़प लूंगी.

मैं भला मां को छोड़ कर कहां जाती. अपने मकान में मैं जैसी भी थी, सुख से रहती थी. मेरी नौकरी कोई खास बड़ी नहीं थी. दरअसल, अपने इश्क की खातिर मैं ने यह शहर नहीं छोड़ा था, इसलिए मेरी तरक्की के साधन सीमित थे यहां.

मैं अजीब विरोधाभास में थी. अपने आशिक के घर में जा कर नहीं रह सकती थी. मेरे जाने के बाद मां की हालत खराब हो जाती. वह पापा के कारण यहां आने से कतराता था. फिर भी हम ने कहीं दूसरी जगह मिलने का क्रम जारी रखा. हमारे प्यार की इन असंख्य पुनरावृत्तियों में हमेशा एक नवीनता बनी रही. हम ने एकदूसरे से शादी के लिए कोई आग्रह नहीं किया. हमारे इश्क में शिद्दत बनी रही क्योंकि हमारे प्यार की अंतिम मंजिल प्यार ही थी.

उस के सामने मेरी कैफियत उस बच्चे के समान थी जो नंगे हाथों से अंगार उठा ले. उस ने मेरे विचारों, मेरी मान्यताओं और मेरी समझ को उलटपलट कर रख दिया था, जैसे बरसात के दौरान गलियों में बहते पानी का पहला रेला अपने साथ गली में बिखरे तमाम पत्ते, कागज वगैरह बहा ले जाता है.

मैं भी एक पहाड़ी नदी की तरह पागल थी, बावरी थी, आतुर थी. मुझे बह निकलने की जल्दी थी. मुझे कई मोड़, कई ढलान, कई रास्ते पार करने थे. मुझे क्या पता था कि तेजी से बहती हुई नदी जब मैदानों में उतरेगी तो समतल जमीन की विशालता उस की गति को स्थिर कर देगी, लील लेगी. उस के साथ रह कर मुझे लगा कि मैं फिर से जवान हो गई हूं. मेरी उम्र कम हो गई है. फिर उस की उम्र देख कर बोध होता कि मैं गलत कर रही हूं. प्यार तो समाज की धारा के विरुद्ध जा कर ही किया जा सकता है.

मैं डर गई थी समाज से, पापा से, अपनेआप से. कहीं फंस न जाऊं, हालांकि उस से जुदा होने को जी नहीं चाहता था मगर उस के साथ घनिष्ठ होने का मेरा इरादा न था या कहें कि हिम्मत नहीं थी.

मैं तो उसे दिल की गहराइयों से महसूस कर के देखना चाहती थी. मगर वह तो मेरे प्यार के खुमार में दीवानगी की हद तक पागल था. तभी तो मैं डर कर अजीब परस्पर विरोधी फैसले करती थी. कभी सोचती आगे चलूं, कभी पीछे हटने की ठान लेती. एक सुंदर मौका, जब मैं किसी को अपने दिल की गहराइयों से प्यार करती थी, मैं ने जानबूझ कर गंवा दिया.

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मैं ने उसे अपमानित किया. उसे बुला कर उस से मिलने नहीं गई. वह आया तो मैं अधेड़ उम्र के सुरक्षित लोगों से घिरी बतियाने में मशगूल रही. उस की उपेक्षा की. आखिरकार, मैं ने अपनेआप को एक खोल में बंद कर लिया, जैसे अचार या मुरब्बे को एअरटाइट कंटेनरों में बंद किया जाता है. अब मुझे इस उम्र में जब मैं 58 से ऊपर जा रही हूं, उन क्षणों की याद आती है तो मैं बेहद मायूस हो जाती हूं. मैं सोचती हूं कि मैं ने प्यार नहीं किया और अपनी मूर्खता में एक प्यार भरा दिल तोड़ दिया.

सौ बरस और: बाबरा के सामने आया इंडिया का कड़वा सच

Serial Story: सौ बरस और (भाग-3)

मम्मी बाबरा को ले कर उन के घर पहुंचीं तो बाबरा ने मिसेज सिद्दीकी के सामने ही टीशर्ट उतार कर कुरता पहन लिया. मिसेज सिद्दीकी शर्म से गड़ गईं, ‘‘हाय रे, यह तो बड़ी बेशर्म और बेबाक है.’’ इतने दिनों में बाबरा हिंदुस्तानी हावभाव समझने लगी थी.

‘‘आप भी तो औरत हैं, आप से कैसी शर्म?’’ बाबरा हंस कर अंगरेजी में बोली.

‘‘फिर भी लाजशर्म तो औरत का गहना है, यों खुलेआम कपड़े उतारना, तोबातोबा. ऐसे खुलेपन पर ही तो हिंदुस्तानी मर्द मरमर जाते हैं.’’

मैं जानता था, मिसेज सिद्दीकी की दोनों बेटियां घर में सलवारकुरता पहन, हिजाब कर के बाहर निकलती थीं, लेकिन कालेज के बाथरूम में टाइट टीशर्ट और टाइट जींस पहन लेतीं और बौयफ्रैंड के साथ मोटरसाइकिल पर बैठ घंटों किसी रेस्तरा में बतियातीं या पार्क में उन के कंधे पर सिर रख कर बैठी रहतीं.

बाबरा के हमारे घर आने की खबर जंगल की आग की तरह कालोनी में फैलने लगी. तभी नीलू भाई, जो एक करोड़पति बाप की बिगड़ी संतान हैं, का फोन मेरे मोबाइल पर आ गया. मैं बाबरा और अर्शी को ले कर आगरा जाने की तैयारी कर रहा था.

‘‘यार बड़े बेवफा हो, शिप से लौट आए हो, इतने दिन हो गए लेकिन कोई खबर तक नहीं की. अच्छा चलो, छोड़ो, शिकवाशिकायत. मैं अभी हाजिर होता हूं. खालाजान से कहना तुलसीअदरक वाली उन के हाथ की चाय पीने की ख्वाहिश हो रही है.’’ मैं लिहाजन चुप रह कर उन का इंतजार करने के लिए विवश था.

ड्राइंगरूम में घुसते ही उन की नजरें इधरउधर घूम कर कुछ तलाशने लगीं. सोफे पर धंसते ही उन का पहला जुमला सुनाई पड़ा, ‘‘सुना है अंगरेज लड़की साथ लाए…’’ सुनते ही मेरी कनपटी सुलगने लगी और मिलने के बहाने मेरे घर आने का मकसद भी साफ समझ में आ गया. गोश्त की महक को गिद्धों के नथुने तक पहुंचने में कितनी देर लगती है भला?

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‘‘जी, मेरे सीनियर की बेटी जरमन से आई है,’’ मैं बोला.

‘‘तो हमें मिलवाओ, यार,’’ सोफे के हत्थे पर जोर से हथेली पटकते हुए लपलपाती जीभ से वे बोले. आवाजें सुन कर बाबरा खुद ही कमरे से ड्राइंगरूम में आ गई और अजनबी को सामने बैठा देख कर दोनों हाथ जोड़ दिए.

दिन की शुरुआत चायकौफी की जगह शराब से शुरू करने वाले नीलू भाई की आंखों में बाबरा को देखते ही सुरूर के लाल डोरे उतर आए. अद्वितीय जरमन सुंदरता को प्रत्यक्ष देख कर नीलू भाई कुछ पलों के लिए पलकें झपकाना भूल गए.

‘‘बाबरा, आइए बैठिए,’’ मैं उन के कुतूहल का मोहभंग कर के बोला.

‘‘यू हैव कम फर्स्ट टाइम टू इंडिया?’’

‘‘आई केम टू एशिया, बट आई वाज नौट इंटर्ड इन इंडिया. आई वाज गोइंग टू सिंगापुर, दैट टाइम. आई क्रौस्ड इंडिया बाय शिप,’’ बाबरा बड़ी सहजता से बोली.

‘‘इट मींस यू हैव कैच्ड माई यंगर ब्रदर ऐट द शिप,’’ नीलू भाई चुटकी लेते हुए बोले.

‘‘नो, नोनो, आई नेवर मीट विद हिम बिफोर. ही इज माई फादर्स कलीग, लाइक माई ऐल्डर ब्रदर.’’ बाबरा इस भद्दे मजाक को बरदाश्त नहीं कर पाई. उत्तेजना से उस का चेहरा लाल हो गया था.

‘‘ब्रदर, मैं चाहता हूं कि तुम्हारे मेहमान को इंडियन फूड का जायका चखाया जाए,’’ मेरी पीठ पर धौल जमाते हुए अधिकारपूर्वक वे बोले. मैं जानता था कि नीलू भाई औरतों को जूतियों की तरह बदलते हैं. उन की आंखों में उतर आई छद्मता को पढ़ने में ज्यादा वक्त नहीं लगा मुझे.

‘‘बाबरा का पेट कुछ गड़बड़ है.’’

‘‘कोई बात नहीं, हम इन की प्लेट में सिर्फ राइस और बनाना (केला) रख देंगे,’’ बाबरा का सान्निध्य पाने का हर संभव प्रयास करते हुए पासा फेंका उन्होंने. मैं ने प्रश्नवाचक निगाहों से बाबरा की तरफ देखा तो वह दोनों हाथ हिला कर बोली, ‘‘नोनो…नोनो, आई हैड माई लंच जस्ट नाऊ.’’

अपने औफर को बाबरा द्वारा नकारे जाने पर हताश नहीं हुए नीलू भाई क्योंकि शायद वे इस जवाब का पहले ही कयास लगा चुके थे. वे बाबरा का सान्निध्य ज्यादा से ज्यादा देर तक पाने के लिए अपना पारिवारिक इतिहास बताने लगे.

‘‘माई फादर वाज फ्रीडमफाइटर. ही वर्क्ड विद सुभाष चंद्र बोस. ही लाइक्ड हिटलर मैथोलौजी.’’

‘‘मगर हम उसे पसंद नहीं करते क्योंकि उस ने पूरी जरमनी को तबाह कर डाला था. उसी की वजह से हमारे चर्च नेस्तनाबूद हो गए. हमारी आर्थिक व्यवस्था क्षतविक्षत हो गई. उस पागल आदमी की वजह से हमारे देश के 2 टुकड़े हो गए. प्लीज आई डोंट वौंट टू लिसन ईवन हिज नेम,’’ बाबरा गुस्से से बोली.

बाबरा की तीखी आवाज ने नीलू भाई को निरुत्तर कर दिया. बाबरा सोचने लगी कि इन हिंदुस्तानियों के पास कितना फालतू वक्त होता है? 2 घंटे से बैठ कर फुजूल की बातों में वक्त जाया कर रहे हैं. टाइम की कोई कीमत ही नहीं है इन के पास. जरमनी में रोटी, कपड़ा और जीने की जद्दोजेहद में हमें सिर्फ रात में 6-7 घंटे ही बैठनेसोने के लिए वक्त मिल पाता है. इन्हीं जैसे लोगों के कारण इंडिया अभी तक विकासशील देशों की लाइन में ही खड़ा हुआ है.

अपना पत्ता साफ होते देख नीलू भाई उठ खड़े हुए, ‘‘सो, नाइस मीटिंग विद यू, यंग लेडी,’’ कह कर बाबरा की तरफ हाथ बढ़ा दिया. बाबरा ने भी छुटकारा पाने की दृष्टि से अपनी तहजीब के मुताबिक हाथ बढ़ा दिया. नीलू भाई ने उस की हथेलियों को धीरे से दबा दिया और देर तक उस का हाथ थामे हुए मुझ से मेरी अगली जौइनिंग के बारे में बेमकसद बातें करने लगे. बाबरा उन की धूर्तता को समझ गई और झटके से अपना हाथ खींच कर घर के अंदर चली गई.

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‘‘शरमा गई,’’ कह कर, खिसियानी हंसी हंसते हुए नीलू भाई बाहर चले गए. माहौल बहुत ही बोझिल हो गया था, इसलिए मैं भी चुपचाप अपने कमरे में जा कर लेट गया.

शाम को अर्शी ने बतलाया कि बाबरा ने इंटरनैट पर अपनी वापसी का टिकट बुक कर लिया. मैं ने झिझकते हुए इतनी जल्दी वापस जरमनी जाने की वजह पूछी तो वह बिफर पड़ी, ‘‘इट इज रियली स्ट्राइकिंग, आप के देश में गंगा जैसी पावन नदी है. एवरेस्ट जैसी दुनिया की सब से ऊंची चोटी है. दूर तक फैला रेगिस्तान है. आसमान छूने वाली इमारत कुतुबमीनार है. प्यार और कुर्बानी का प्रतीक ताजमहल है. गांधी, गौतम, विवेकानंद का बर्थप्लेस है यह. एशिया का सब से ज्यादा पापुलेटेड कंट्री है यह. लेकिन हकीकत में एशिया का सब से घटिया देश है.

‘‘यहां के आलसी और धूर्त लोग मुफ्त में मिली चीजों का भोग करने में ही खुद को गौरवान्वित महसूस करते हैं. आजादी मिले आधी सदी से ज्यादा हो गए लेकिन आज भी दोतिहाई हिंदुस्तानियों को पेटभर रोटी, तनभर कपड़ा, सिर पर छत मयस्सर नहीं है. 21वीं सदी में पहुंच कर भी यहां के मर्द, औरत को बराबरी का दरजा नहीं दे सके हैं. उन की महत्तवाकांक्षाओं को पूरा करने के बजाय वे उसे सिर्फ भोग की वस्तु समझते हैं. ऐंड यू नो, स्टिल इंडियंस नीड हंड्रैड ईयर्स टू कम विद द लैवल औफ यूरोपियन पीपल.’’

‘‘बट औल आर नौट लाइक दैट, बाबरा.’’ मैं ने ठंडी सांस भर कर बेबुनियाद सफाई देते हुए उसे समझाने की कोशिश की तो वह और आगबबूला हो गई. वह बोली, ‘‘मिस्टर अनीस, माई फादर वाज टोटली डिस्एग्री टू सेंड मी इंडिया. नोइंग औल द फैक्ट्स बाय माई फ्रैंड्स, आई वौंट टू सी एवरीथिंग बाय माई ओन आइज.’’ यह कहते हुए उस की नीली आंखों में समंदर उतर आया और वह फफक कर रो पड़ी. भरे गले से जो कुछ उस ने बताया, सुन कर मेरी काटो तो खून नहीं जैसी हालत हो गई, शर्मिंदगी से कई फुट पैर जमीन में धंस गए.

‘‘20 साल पहले उस की इकलौती फूफी इंडिया घूमने आई थी. अल्हड़, बिंदास फूफी हिंदी न समझने और अंगरेजी न बोल सकने के कारण जरमन में ही बोलती थी.

‘‘आगरा में ताजमहल देखने जाते वक्त टैक्सी वाले ने गाड़ी गांव की तरफ मोड़ दी. अपने 2 साथियों के साथ मिल कर उस का कीमती कैमरा और पर्स छीन लिया. वह रिपोर्ट करने जब पुलिस स्टेशन पहुंची तो राहजन को पहचानने का बहाना बना कर पुलिस वालों ने उसे पुरानी कोठी में 3 दिनों तक रखा और लगभग 10 लोगों ने उस के साथ बलात्कार किया.

‘‘जरनम ऐंबैसी की मदद से वह किसी तरह विक्षिप्त हालत में हैम्बर्ग पहुंच तो गई लेकिन एड्स की घातक बीमारी ने उसे आखिरकार 5 सालों में निगल लिया. मेरे डैडी अभी तक इस सदमे से उबर नहीं पाए हैं,’’ बाबरा के मुंह से यह सुन कर मेरी जबान तालू से चिपक गई. हताश, निराश मैं तीसरे दिन बाबरा को एयरपोर्ट पहुंचाने के लिए गाड़ी निकाल रहा था कि मिस्टर जेम्स का फोन आ गया, ‘‘थैंक्यू फौर सेंडिंग माई डौटर सेफली, थैंक्यू वेरी मच.’’ यह वाकई शुक्रिया था या करारा चांटा, मैं आज तक समझ नहीं पाया हूं.

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Serial Story: सौ बरस और (भाग-2)

मर्चेंट नेवी जौइन करने से पहले मैं भी विदेशियों को कम कपड़ों में धूप सेंकने के तौरतरीकों को आपत्तिजनक और बेशर्मी का शगल मानता था लेकिन यूरोप महाद्वीप के बाशिंदे वहां की हाड़ कंपा देने वाली सर्दी और माइनस जीरो डिगरी से भी कम तापमान में रह कर काम करते हुए धूप की जरूरत शिद्दत से महसूस करने लगते हैं. पूरे 10 महीनों की भीषण सर्दी में रहते हुए उन के शरीर को विटामिन डी की काफी जरूरत होती है. गोरी चमड़ी को त्वचा रोग से बचाने के लिए पूरे शरीर को सूर्य की किरणों से नहलाना, विलासिता या शरीर प्रदर्शन का शौक नहीं, बल्कि शरीर की जबरदस्त मांग के कारण यह बेहद जरूरी होता है.

बाबरा भारतीय खाने और व्यंजनों के प्रति आकर्षित रही और उन की रैसिपी के लिए भी बेहद उत्सुक व जिज्ञासु दिखलाई दी. घूमनेफिरने के बाद जितने वक्त भी घर में रहती, मम्मी के साथ किचन में ही खड़ी हो कर उन की पाकविद्या को सीखने का भरसक प्रयत्न करती रहती. हमारे साथ रह कर उस ने नमस्ते, आदाब और शुक्रिया कहना सीख लिया था. उस के जरमन लहजे में बोले गए हिंदी-उर्दू शब्द सुन कर मम्मी खुश होतीं.

3-4 दिनों तक मसूरी, धनौल्टी, ऋषिकेश, हरिद्वार, हरकी पौड़ी घूमते हुए हरिद्वार के मंदिर में रोज होने वाली हजारों दीयों की आरती को देख कर बाबरा बहुत ही अचंभित और खुश हुई.

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उस दिन शाम को कौलबैल बजी तो दरवाजे पर खड़े मिस्टर व मिसेज नेगी को देख कर हैरान रह गईं मम्मी. किटी पार्टी या ईदबकरीद में बारबार बुलाने पर भी कभी उन्होंने हमारे घर का पानी तक नहीं छुआ था. स्वयं को वे उच्च कुलीन ब्राह्मण की मानसिकता के कंटीले दायरे से निकाल नहीं पाए थे.

बाबरा ड्राइंगरूम में ही बैठी थी. उन्हें देख कर नमस्ते करने के लिए उस ने दोनों हाथ जोड़ दिए और चांदनी सी मुसकराहट बिखेरती हुई उन के सामने बैठी रही. गरमी से बेहाल बाबरा ने उस वक्त स्लीवलैस, डीप गले का टौप और जांघों तक की पैंट पहन रखी थी. मिस्टर नेगी की नजर बारबार उस के गोरे चेहरे से फिसलते हुए कुछ देर तक उस के उन्नत उरोजों पर ठहर कर, खुले चिकने पेट से हो कर उस की गुलाबी जांघों पर आ कर ठहर जाती.

पूरे 1 घंटे तक मिसेज नेगी पूरी कालोनी की खबरों का चलताफिरता, सब से तेज चैनल बनी रहीं. मम्मी बारबार पहलू बदलने लगी थीं क्योंकि उन्हें रात के खाने की तैयारी करनी थी और बाबरा की डिशेज के लिए सामान लाने के लिए मुझे बाहर जाना था.

मिसेज नेगी अपने मन का अवसाद निकाल कर जब बाबरा की तरफ पलटीं तो सवालों की झड़ी लगा दी, ‘‘कहां से आई हो? क्या करती हो, शादी हुई या नहीं? अनीस के परिवार को कब से जानती हो?’’

जवाब देने के लिए छोटी बहन अर्शी को शिष्टाचारवश मध्यस्थता के लिए अपनी पढ़ाई छोड़ कर आना पड़ा. यूरोपियन संस्कृति में व्यक्तिगत प्रश्न पूछे जाने को बेहद ही अशिष्ट माना जाता है. कभीकभी तो लोग झुंझला कर पूछने

वाले के व्यक्तिगत जीवन पर नाहक दखलंदाजी की तोहमत लगा कर केस भी कर देते हैं. लेकिन सौम्य, सुसंस्कृत बाबरा अंदरअंदर खीझती हुई भी बड़ी ही शालीनता से उन के बेसिरपैर के प्रश्नों का जवाब दे रही थी.

‘‘हमारे देश का खाना कैसा लगता है?’’

‘‘इट्स फाइन, बट आई कुड नौट ईट. इट इज सो मच औयली ऐंड स्पाइसी,’’ बाबरा ने कंधे उचका कर अंगरेजी में जवाब दिया.

‘‘अपने देश में आप क्या खाती हैं?’’

‘‘वैल, वी ईट चीज, बटर, ब्रैड, मीट, एग्स, वेजीटेबल्स, फिश, बट औल थिंग्स आर बौयल्ड.’’

‘‘मीट किस का खाती हैं? हम ने सुना है, सूअर का मांस…’’ बुरा सा मुंह बना कर बोलीं मिसेज नेगी, जैसे अभी उलटी कर देंगी.

‘‘यस, औब्वियस्ली, इट कंटेन्स मोर प्रोटींस ऐंड विटामिंस,’’ बाबरा ने बड़े ही संयत ढंग से कुबूल किया.

बाबरा का जवाब सुनते ही मिसेज नेगी ने दोनों हाथों से कान पकड़ लिए. ‘‘भाभीजी, आप ऐसे लोगों को कैसे बरदाश्त कर रही हैं जो आप के मजहब में भी एतराज की गई चीजें खाते हैं,’’ कहती हुई मिसेज नेगी मुंह पर हाथ रख कर बाहर निकल गईं. पीछेपीछे मिस्टर नेगी भी कनखियों से बाबरा की सुडौल और खूबसूरत पिंडलियों को देखते हुए बाहर निकल गए.

बाबरा उन के बरताव पर हतप्रभ रह गई और विस्फारित नेत्रों से हम तीनों को बारीबारी से देखने लगी.

हम निरुत्तर हो कर एकदूसरे को शर्मिंदगी से देखने लगे. क्या बताते बाबरा को कि मिसेज नेगी जिन सूअरों का मांस खाने की बात समझ रही थीं, वे भारत में गंदी नालियों में लोटते और मैला खाते हैं. हम मिसेज नेगी को समझाते भी कैसे कि यूरोपियन जिन सूअरों का मांस खाते हैं, वे बहुत ही साफसुथरे ढंग से गेहूं और सोयाबीन खिला कर पाले जाते हैं. यही विदेशियों का सब से पसंदीदा खाना होता है और फिर हमारी दोस्ती तो इंसानी संबंधों के चलते कायम हुई. इस में खानपान की शर्तें कहां.

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इसलामी बंदिशों और यूरोपियन संस्कृति की जरूरतें कभी आपस में टकरा नहीं सकतीं क्योंकि हमारा परिवार इस तंग सोच से ऊपर, बहुत ऊपर उठ कर केवल इंसानी जज्बों को सिरआंखों पर बैठाता है.

बाबरा के भारत आने पर सूरज भी शायद खुश हो कर अपनी उष्मा दिनबदिन बढ़ाता ही चला जा रहा था. एसी, कूलर, पंखे, सारी व्यवस्थाओं के बावजूद बाबरा गरमी से बेहाल थी. मम्मी उस के लिए 2 जोड़ी सूती गहरे रंग के सलवारकुरते ले आईं. कालोनी में ही बुटीक चलाती मिसेज सिद्दीकी के पास नाप दिलवाने बाबरा को ले गईं.

जरमन लड़की को इतने करीब से देखने और उस से मुखातिब होने का सुअवसर सिद्दीकी की बेटियों को जब अनजाने ही मिल गया तो वे बौरा सी गईं. खि…खि…खिखियाती हुई वे एकदूसरे को कोहनी मार कर कहने लगीं, ‘‘तू पूछ न…’’

‘‘नहीं, तू पूछ.’’ बस, इसी नोकझोंक में एक ने हिम्मत कर के पूछा, ‘‘इन की शादी हो गई है?’’ मम्मी ने पूछने वाली को आश्चर्य से देखा. मानो हर लड़की की जिंदगी का मकसद सिर्फ शादी करना है. इस से आगे और इस से ज्यादा वे सोच भी नहीं सकतीं क्योंकि सदियों से शायद उन्हें जन्मघुट्टी के साथ यही पिलाया जाता है, ‘तुम्हें दूसरे के घर जाना है. सलीका, तरीका, खाना बनाना, सीनापिरोना, उठनेबैठने का कायदा सीख लो. तुम्हारी जिंदगी का फसाना सिर्फ शादी, बच्चे, शौहर की गालियां, लातघूंसे और घुटघुट के तिलतिल मरने के बाद ही खत्म होगा.’

‘‘मुझे नहीं मालूम,’’ मम्मी ने जवाब दिया.

‘‘ये लो, आप की मेहमान है और आप ने पूछा ही नहीं. कोई जवान बेटे के घर में किसी की जवान बेटी को ऐसे कैसे रख सकता है? परदेदारी भी कोई चीज है इसलाम में,’’ मिसेज सिद्दीकी की कुंठा को जबान मिल गई.

‘‘नहीं, किसी के पर्सनल मामले में सवाल पूछना तहजीब के खिलाफ है. जहां तक परदेदारी की बात है, तो बदलते जमाने के साथ अपनी सोच को भी खुला रखना चाहिए. इसलाम में गैरों से परदे का हुक्म दिया गया है, अपनों से नहीं. बाबरा तो अर्शी की तरह ही है अनीस के लिए.’’ मम्मी का टका सा जवाब सुन कर मिसेज सिद्दीकी बुरा सा मुंह बना कर बाबरा की नाप लेने लगीं.

2 दिनों बाद उन का फोन आया, ‘‘कपड़े सिल गए हैं. आप आ कर फिटिंग देख लीजिए.’’

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Serial Story: सौ बरस और (भाग-1)

मर्चेंट नेवी में सेफ्टी औफिसर के पद का 3 महीनों का कौंट्रैक्ट खत्म कर के मैं हिंदुस्तान लौटने वाला था. साइन औफ के समय जरमन स्टाफ कैप्टन ने कंधे पर आत्मीयता से हाथ रख दिया. पिछले 15 सालों से हम अलगअलग शिपिंग कंपनियों में कई बार साथ काम कर चुके थे.

‘‘आई वौंट अ फेवर फ्रौम यू, जैंटलमैन,’’ मिस्टर जेम्स बोले.

‘‘ओ श्योर, इट्स माई प्लेजर.’’

‘‘माई डौटर वौंट्स टू विजिट इंडिया. बट ड्यू टू लास्ट बिटर एक्सपीरियंस, आई डौंट वौंट टू सेंड हर अलोन.’’

‘‘डौंट वरी सर, यू सेंड हर. मी ऐंड माई औल फैमिली मैंबर्स विल टेक केयर औफ हर.’’ मैं ने उन के कड़वे अनुभव को कुरेदने की कोशिश नहीं की.

‘‘थैंक्स. आई बिलीव औन यू, बिकौज आई नो यू सिंस लौंग बैक.’’

हिंदुस्तान पहुंचने के एक हफ्ते बाद मिस्टर जेम्स की बेटी का मेल आ गया. देहरादून एयरपोर्ट से रिसीव कर के मैं बाबरा को घर ले आया. अम्मी और मेरी छोटी बहन अर्शी ने उस का बड़ी गर्मजोशी से स्वागत किया.

20 वर्षीया, फोटोजैनिक चेहरे वाली बाबरा की आंखें नीली और बाल भूरे थे. जरमन मर्द और औरतें अपनी फिगर के लिए बहुत सचेत रहते हैं. बाबरा दुबलीपतली लेकिन पूरी तरह स्वस्थ थी. वह जरमन भाषा के अलावा अंगरेजी और फ्रैंच बोल सकती थी.

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अम्मी को अंगरेजी नहीं आती थी, लेकिन अर्शी ने अंगरेजी में ही घर, महल्ले, शहर के आसपास के दर्शनीय स्थलों के बारे में उसे पूरी जानकारी दे दी थी. बाबरा के रहने, खाने के जरमन तरीके की पूरी व्यवस्था की थी मैं ने.

मेरा मकान शहर की एक पौश कालोनी में था जिस में ड्यूप्लैक्स और फ्लैट्स मिला कर लगभग 50 घर थे. वाचमैन, जमादार, माली की बाकायदा व्यवस्था थी. संपन्न लोग ही हमारी कालोनी में मकान खरीद सकते थे. कालोनी में ज्यादातर उच्च पद वाले सरकारी अधिकारी और बड़े बिजनैस वाले किराएदार थे.

रात का खाना खाने के बाद मैं बाबरा के साथ कालोनी की ही सड़क पर टहलते हुए उसे भारत के ऐतिहासिक नगरों की जानकारी देने लगा. उस वक्त कालोनी के कुछ लोग भी इवनिंग वाक कर रहे थे. हम लोगों को क्रौस कर के वे आगे तो निकल जाते, लेकिन बारबार पलट कर हमें देखने लगते. उन में से एक 45 साल का व्यक्ति, जो शायद किसी सरकारी महकमे में क्लासवन औफिसर था, हमारे साथसाथ चलते हुए हमारी बातें सुनने का प्रयास करने लगा. थोड़ी दूर चल कर फिर तेजी से चहलकदमी करता अपने ग्रुप से जा मिला.

दूसरे दिन सुबह ही कालोनी की दबंग मिसेज वशिष्ठ का फोन मेरी मम्मी के मोबाइल पर आया. औपचारिक बातों में उन्होंने उलाहना दी, ‘‘आजकल आप फौरेनर्स की मेहमाननवाजी में व्यस्त हैं, इसीलिए कल मिसेज मल्होत्रा के यहां किटी पार्टी में दिखाई नहीं दीं.’’

‘‘जी, जरमनी से अनीस के दोस्त की बेटी इंडिया घूमने आई है. बस, उसी के साथ व्यस्त हो गई हूं.’’

‘‘दोस्त की बेटी, या खुद अनीस की दोस्त? बेटे की उम्र हो गई है शादी की. देशविदेश घूमता रहता है. अगर यह लड़की तैयार है तो कर दीजिए चट मंगनी पट ब्याह.’’ नौनस्टौप बोलने के बाद वे खुद ही हो…हो…कर के हंसने लगीं.

‘‘नहींनहीं, ऐसी कोई बात नहीं है.’’ मम्मी इस अप्रत्याशित सवाल पर बौखला सी गईं.

‘‘है कैसे नहीं, अंगरेज लड़की के साथ घूमनाफिरना, कुछ तो मतलब रखता है. अरे, अपनी कालोनी के सेन साहब के बेटे के बारे में तो सुना ही होगा न आप ने?’’

‘‘नहींनहीं, मैं ने कुछ नहीं सुना. मुझे वक्त कहां मिलता है जो कालोनी के घरों के बारे में जानकारियां रख सकूं. किसी के निजी मामलों में दखल देने का मेरा मिजाज भी नहीं है.’’ मम्मी की आवाज में हलकी तल्खी महसूस की मैं ने.

‘‘अरे, तो हमें कौन सी पड़ी है किसी के घर में झांकने की? अब अगर सामने ही कुछ हो रहा है तो आंखें और कान तो बंद नहीं किए जा सकते न. हुआ यों था कि सेन साहब का बेटा पढ़ने के लिए अमेरिका गया था. वापसी पर वह विदेशी गिफ्ट्स के साथ एक अंगरेज लड़की भी ले आया. ये विदेशी लड़कियां हैंडसम लड़कों और उन के बैंकबैलेंस पर ही अपना ईमान खराब करती हैं. न धर्म देखती हैं न जाति. बस, लड़का मालदार हो तो चिपक जाती हैं जोंक सी. जब तक खून से पूरा पेट नहीं भर लेती हैं तब तक नहीं छोड़ती हैं ये.

‘‘सेन भाभी ने बड़ी धूमधाम से उस के साथ बेटे की मंगनी कर दी. कालोनी में, रिश्तेदारी में उन का तो मान बढ़ाती थी अंगरेजन. सगाई के बाद सेन साहब का बेटा स्टूडैंट वीजा पर दोबारा अमेरिका गया. लेकिन क्या बताएं भाभीजी, मुआ 6 महीने में ही लौट आया.’’

‘‘सेन भाभी रोरो कर बतला रही थीं, ‘अंगरेज लड़की के परिवार वाले तकरीबन रोज ही उस पर क्रिश्चियन धर्म अपना लेने के लिए दबाव डालने लगे.’ खालिस पंजाबी परिवार का बेटा भला कैसे ईसाई हो जाता. बेचारा बैरंग लौट आया. धोबी का कुत्ता बन गया- न घर का रहा न घाट का.

‘‘अब वह रोज शराब के प्यालों में अंगरेजन को भुलाने की कोशिश में बोतल पर बोतल खाली कर देता है. सेन साहब तो सदमे से आधे रह गए. बुढ़ापे में उन्हें जवान बेटे का खर्चा उठाना पड़ रहा है. इसीलिए कहती हूं, आप भी जरा आंखें और कान खुले रखना.’’ पूरी कालोनी का पुराण कंठस्थ कर के दूसरी महिलाओं को सुनाना उन के अजीब से असामाजिक व्यवहार में शामिल हो गया था.

दूसरे दिन मोटरसाइकिल पर सवार होने के लिए बाबरा मेरे साथ निकल ही रही थी कि आसपास के घरों की खिड़कियां खुलनेबंद होने लगीं. उस ने मोटरसाइकिल के दोनों तरफ पैर डाल दिए थे, उस की छोटी स्कर्ट थोड़ी और ऊंची हो गई थी.

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दोपहर को वह सनबाथ लेने के लिए बिकिनी पहन कर जैसे ही छत की आरामकुरसी पर बैठी, पड़ोसियों की हमेशा सूनी पड़ी छतों पर कपड़े सुखाने और सफाई करने के बहाने आने वालों की संख्या बढ़ने लगी.

कहां फिल्मों और टीवी स्क्रीन पर दिखलाया जाने वाला गौर वर्ण का अर्धनग्न नारी शरीर और कहां साक्षात अंगरेज लड़की का आधा नंगा संगमरमरी बदन, जिस की ताब में पड़ोसियों की आंखें सिंकने लगीं. मर्दों के मुंह से तो लार टपकतेटपकते बची और खुद महिलाएं, लड़कियां नारी स्वतंत्रता आंदोलन की प्रचारक तो बन गईं लेकिन जरमन लड़की की आजादी आपत्तिजनक साबित करने लगीं. वस्तुस्थिति तो यह थी कि वे भीतर ही भीतर जरमन लड़की से ईर्ष्या कर रही थीं.

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