रमा को जब पूनम के साथ कृष्णकांत ज्यादा समय गुजारते दिखने लगा तो रमा ने उसे लंपट, आवारा, नीच कहा. कृष्णकांत ने पलट कर कहा, ‘‘तुम क्या हो? तुम ने अपनी दैहिक जरूरतों के लिए मुझे फंसा कर रखा. शर्म आनी चाहिए तुम्हें. तुम सैक्स की भूखी हो.’’
‘‘मैं तुम्हें कोर्ट में घसीटूंगी, दैहिक शोषण का आरोप लगा कर जेल भिजवाऊंगी.’’
‘‘और मैं छोड़ दूंगा तुम्हें. मैं भी तुम पर दैहिक शोषण का आरोप लगा सकता हूं. तुम्हारे घर वालों को, अपने घर वालों को बता दूंगा सबकुछ. लोग तुम पर हंसेंगे, न कि मुझ पर.’’
‘‘शादी हुई है हमारी.’’
‘‘सुबूत कहां हैं? कोर्ट मंदिर में की गई शादी नहीं मानता और उस समय मेरी उम्र 18 वर्ष भी नहीं हुई थी. अवयस्क उम्र के लड़के से विवाह करने के अपराध में तुम्हें सजा भी हो सकती है. सारा शहर तमाशा देखेगा. यदि शादी साबित कर भी देती हो तुम, तब भी मैं तलाक तो मांग ही सकता हूं. अब तुम पर है कि हंगामा खड़ा करना है या शांति से मसले को सुलझाना है.’’
रमा समझ चुकी थी कि तीर कमान से निकल चुका है. अब कुछ नहीं हो सकता. फिर बेमेल संबंधों को कब तक खींचा जा सकता है. अच्छा यह हुआ कि सावधानी रखने के कारण उन की कोई संतान नहीं थी.
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रमा के मातापिता भी अब कहने लगे थे, ‘बेटी, अपना फर्ज निभा लिया. भाईबहनों को पढ़ालिखा कर कामधंधे में लगा दिया. उन का विवाह कर दिया. अब कोई अपने हिसाब का लड़का तलाश और शादी कर ले.’
रमा वापस अपने शहर आ गई. उस ने कृष्णकांत से जुड़ी सारी यादें मिटा दीं. शादी के और उस के बाद के सारे फोटो नष्ट कर दिए. कृष्णकांत भी आजाद हो गया.
पूनम को देख कर कृष्णकांत सोचता, ‘इसे कहते हैं लड़की. पता नहीं क्यों मैं रमा के आकर्षण में बंध गया था? प्यार करने लायक तो पूनम है. सांचे में ढला हुआ दुबलापतला, आकर्षक शरीर. चेहरे पर चमक. जिस्म के पोरपोर में जवानी की महक. यही है उस के सपनों की रानी.’
आज पेड़ काटे जा रहे हैं. पौधे नष्ट किए जा रहे हैं. जंगल उजाड़े जा रहे हैं. सड़कों का डामरीकरण, चौड़ीकरण हो रहा है. देश का विकास अंधाधुंध तरीके से हो रहा है. विकास के लिए नएनए कलकारखाने और कारखानों से इन की गंदगी नदियों में बड़ीबड़ी पाइपलाइनों के जरिए जा रही है. नीचे पानी प्रदूषित हो रहा है व ऊपर आसमान और बीच में फंसा बेवकूफ मनुष्य, बस, बातें कर रहा है प्रदूषण के बारे में, जहरीली वायु के बारे में. जंगल नष्ट किए जा रहे हैं उद्योगों के लिए. शहर के हर कोने में बोर मशीनें चल रही हैं जमीन से पानी निकालने के लिए.
वातावरण में डस्ट बढ़ती जा रही है. गरमी बढ़ती ही जा रही है. सब अपनीअपनी सुखसुविधाओं में डूबे हैं. प्रकृति असंतुलित हो रही है.
यही हाल मानवीय मूल्यों और रिश्तों का भी है. रिश्ते प्रदूषित हो रहे हैं. रमा के पिता ने कहा, ‘‘बेटी, बहुत रिश्ते आएंगे. तुम आर्थिकरूप से निर्भर हो. अच्छा वेतन है तुम्हारा. सुरक्षित भविष्य है. कितनी बेरोजगारी फैली है. एक नहीं कईर् आदमी मिलेंगे शादी के लिए.
‘‘सुरक्षित भविष्य की चाह में कोई प्राइवेट जौब वाला, अस्थायी नौकरी वाला शादी के लिए तैयार हो जाएगा. प्रैक्टिकल बनो. मुझे तुम्हारे और कृष्णकांत के बारे में सब पता था लेकिन मैं ने तुम्हें कभी टोका नहीं. मैं जानता था अपनी जरूरतों के लिए तुम उस से जुड़ी हो. जो हुआ सो हुआ. लेकिन शादी अपनी जातिसमाज में ही करना उचित रहेगा.’’
कितना प्रदूषण है पिता की बातों में. रमा ने आश्चर्य से पिता की तरफ देखा. उसे पिता के चेहरे पर डस्ट जमी हुई दिखाई दी. फिर उस ने सोचा, ‘यह डस्ट तो सब के चेहरों पर है. बाजार में कितनी क्रीम, टोनर, साबुन, फेसवाश आ गए हैं डस्ट से बचने के लिए. इन फालतू की बातों में उलझ कर जीवन क्यों बरबाद करना. आगे बढ़ना ही जीवन है. उस ने डस्ट से भरा चेहरा साफ किया और नए जीवन की शुरुआत के लिए कोशिश शुरू कर दी.
कृष्णकांत के पिता रमाकांत क्लर्क थे. नौकरी के अंतिम बचे 2 वर्षों में अधिक से अधिक कमा लेना चाहते थे. लेकिन एक दिन रिश्वत लेते रंगेहाथों पकड़े गए. अधिकारी ने कहा, ‘‘मिलबांट कर खाना चाहिए. चोरी करने के लिए किस ने मना किया है? सरकारी नौकरी होती ही, कमाने के लिए है?
5 लाख रुपए का इंतजाम करो? इस मामले से तुम्हें निकालने की कोशिश करता हूं.’’
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रमाकांत ने बेटे को सारी बात बता कर कहा, ‘‘बेटा, 2 लाख रुपए की मदद करो. 3 लाख रुपए का इंतजाम है मेरे पास.’’
कृष्णकांत ने कहा, ‘‘पिताजी, आप ने रिश्वत ली.’’
रमाकांत ने गुस्से में कहा, ‘‘मदद मांगी है, उपदेश नहीं. वेतन से मात्र घर चलता है, वह भी 20 दिनों तक. बेटी की शादी, मकान, ऐशोआराम की जिंदगी बिना रिश्वत लिए नहीं चलती. रिश्वत मैं ने कोई पहली बार नहीं ली. हमेशा से लेता आया हूं. सब लेते हैं. बस, पकड़ा पहली बार गया हूं. मदद करो कहीं से भी.’’
‘‘मैं कहां से करूं?’’ कृष्णकांत ने असहाय भाव से कहा.
‘‘रमा से मांग लो,’’ पिता की यह बात सुन कर कृष्णकांत सन्नाटे में आ गया. मतलब पिता को, घर में सब को मालूम था.
‘‘रमा को मैं ने छोड़ दिया है,’’ कृष्णकांत ने कहा.
‘‘बेवकूफ, दुधारू गाय को कोई छोड़ता है, भला. मन भर गया था तो किसी दूसरे के पास चला जाता या दूसरी ढूंढ़ता, तो कमाई वाली ढूंढ़ता. नहीं कर सकता तो मेरे कहने से शादी कर. 5 लाख रुपए दहेज दे रहे हैं लड़की वाले. जल्दी आ जा. चट मंगनी पट ब्याह करा देते हैं.’’
‘‘मैं एक जगह बात कर के देखता हूं.’’
‘‘जो करना है जल्दी करना.’’
‘‘जी.’’
कृष्णकांत ने फोन काट दिया. क्या पिता है? सब मालूम था और ऐसे बने रहे कि जैसे कुछ मालूम न हो. रिश्तों में लालच की कितनी डस्ट जमी हुई है. चारों तरफ प्रदूषण फैला हुआ है. पैसा ही सबकुछ हो गया. इंसानी रिश्ते, भावनाएं सब में डस्ट जम गईर् है. पैसों और जरूरतों के आगे सब कचरे का ढेर हो गया है. कचरे के ढेर में आग लगाओ और जहरीला धुआं वातावरण में फैलने लगता है. कृष्णकांत ने खुद क्या किया? वही जो रमा ने किया. लेकिन कृष्णकांत को पिता की यह बात ठीक लगी कि दुधारू गाय है. क्यों छोड़ दी? लेकिन पिता को क्या बताए? दुधारू गाय का भी दूध ज्यादा निकालो तो वह भी सींग मारने लगती है. पैर झटकने लगती है.
कृष्णकांत ने पूनम से बात की. पूनम ने अपने पिता सेठ महेशचंद्र से मिलवाया. शादी की बात की. साथ में 2 लाख रुपए मदद की भी बात रख दी.
सेठ महेशचंद्र गुस्से में आ गए. उन्होंने कहा, ‘‘मैं दहेज के खिलाफ हूं. फिर तुम्हारी नौकरी कौन सी स्थायी है? न जाने कब छूट जाए?’’
फिर उन्होंने अपनी बेटी को समझाते हुए कहा, ‘‘अपनी बराबरी वालों से रिश्ता करना चाहिए. दोस्ती तक ठीक है. शादी के पहले 2 लाख रुपए मांग रहा है. बाद में 50 लाख रुपए मांग सकता है. शादी के लिए तुम्हें यही लड़का मिला था. मैं अपनी अमीर बिरादरी में क्या मुंह दिखाऊंगा लोगों को.
‘‘लोग क्या कहेंगे कि सेठ महेशचंद्र ने अपनी बेटी की शादी एक अस्थायी नौकरी वाले लड़के से कर दी. मैं तो तुम्हें होशियार समझता था, बेटी, लेकिन तुम भी प्रेम के नाम पर बेवकूफ बन गई. शादी अपने बराबर वाले से भविष्य की सुरक्षा व सुखों को ध्यान में रख कर की जाती है.’’
फिर उन्होंने कृष्णकांत से कहा, ‘‘एक फोन पर तुम्हारी नौकरी चली जाएगी. मेरी बेटी से दूर रहना.’’
सेठ ने अब बेटी से कहा, ‘‘अमेरिका जाने की तैयारी करो आगे की पढ़ाई के लिए. प्रेम जैसे वाहियात शब्द से दूर रहो.’’ बाद में पूनम ने कहा, ‘‘कृष्णकांत, मैं अपने पिता की बात नहीं ठुकरा सकती.’’
कृष्णकांत उदास हो कर घर आ गया. उस ने कहा, ‘‘पिताजी, मैं आप के कहे अनुसार शादी करने को तैयार हूं. पिता ने 5 लाख रुपए सगाई में ले कर रिश्ता पक्का कर दिया. वे रिश्वत लेते पकड़े गए, रिश्वत दे कर छूट गए.
कितने प्रकार के प्रदूषण हैं इस देश में. हैं तो पूरी धरती पर, लेकिन देश में ज्यादा है. वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, जल प्रदूषण, रिश्तों में प्रदूषण. नित नए कड़वे होते रिश्ते. विकास और सुरक्षित भविष्य के लिए सब अनदेखा कर रहे हैं. घर में गाड़ी, टीवी के लिए सब एकदूसरे को चूस रहे हैं. सेठ महेशचंद्र चोरी का माल खरीदतेबेचते करोड़पति बन गए. लेकिन कैसे बने, इस बात की उन्हें रत्तीभर परवा नहीं थी. बने और सेठ कहलाए, इस गर्व से भरे हुए थे वे. पूनम ने प्रेम तो किया था लेकिन सुरक्षित भविष्य के डर से वह कृष्णकांत से दूर हो गई.
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रमा, कृष्णकांत, पूनम, रमाकांत, रमा के पिता, सेठ महेशचंद्र जैसे लोग भ्रष्ट व्यवस्था के हिस्से बने हुए हैं. उन के सारे शरीर पर भ्रष्टाचार की डस्ट जमी हुई है. चेहरा तो वे साफ कर लेते हैं, मन कैसे साफ करेंगे? यह शायद वे कभी सोचते भी नहीं होंगे. वाटर फिल्टर से पानी शुद्ध तो कर लेते हैं लेकिन उन नदियों का, जमीन के नीचे बोरिंग मशीन लगा कर निकाले गए पानी का क्या? उन की शुद्धता के बारे में लोग क्यों नहीं सोचते.
अब तो हवा शुद्ध करने के लिए एयर प्योरीफायर भी आ गया है. लेकिन जमीन, आसमान से ज्यादा दिमाग पर फैली हुई उस डस्ट का क्या, उस प्रदूषण का क्या? उसे साफ करने के लिए क्यों कुछ नहीं किया जाता? जब आदमी अंदर से बेईमान हो तो सारे प्रदूषण, सारे अधर्म, सारे पाप दूसरों के सिर पर मढ़ कर मुक्त हो जाता है. लेकिन इस दोषारोपण से क्या आप बच पाएंगे? आप की आने वाली नस्लों का क्या होगा? जिस दिन प्रकृति व रिश्ते हिसाब करेंगे, सिवा बरबादी के कुछ नहीं होगा.