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मीरा और सुजाता रोज पार्क में सैर करने जाती थीं. एक दिन मीरा की तबीयत खराब होने की वजह से वह सैर पर न आ सकी और सुजाता की मुलाकात सोमनाथजी से हो गई. धीरेधीरे सुजाता और सोमनाथजी एकदूसरे से खुल गए. पति कुणाल के बाद सुजाता की जिंदगी में आया खालीपन भी धीरेधीरे भरने लगा था. मगर इस रिश्ते को कोई नाम मिलने के आसार नजर नहीं आ रहे थे.
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गोवा जाने के लिए छोटी लग्जरी बस का इंतजाम किया गया था, जिस में कुल मिला कर जाने वालों की संख्या 12 थी. तय हुआ कि बस सुजाता के घर पर आ जाएगी और सोमनाथजी भी वहीं से बैठ जाएंगे.
सुबह के 7 बजे के करीब सोमनाथजी ने एक छोटे से ट्रौली बैग के साथ सुजाता के घर में प्रवेश किया.
‘‘अरे वाह, आज तो आप कमाल के लग रहे हैं… गजब की डैशिंग पर्सनैलिटी है आप की,’’ कह सुजाता उन्हें देखती ही रह गई.
औफव्हाइट टीशर्ट और ब्लू जींस में सोमनाथजी वाकई बहुत हैंडसम लग रहे थे. अपने आधे काले आधे सफेद बालों पर उन्होंने स्टाइलिश गौगल लगा रखा था.
‘‘सब आप की संगत का असर है,’’ सोमनाथजी ने मुसकराते हुए कहा.
बस में सुजाता ने सोमनाथजी का सभी से परिचय करवाया. कुछ देर में सोमनाथजी सभी से ऐसे घुलमिल गए जैसे वर्षों की पहचान हो. गोवा के इस सुहाने सफर ने दोनों के बीच की रहीसही हिचक को भी मिटा दिया. पूरे सफर के दौरान सोमनाथजी और सुजाता ने एकदूसरे का पूरा खयाल रखा. सुजाता यहां एक नए सोमनाथजी को देख रही थी.
हमेशा कहीं खोए और बुझेबुझे से रहने वाले सोमनाथजी इस ट्रिप के दौरान नदारद थे. उन की हाजिरजवाबी, सरल व्यवहार के सभी कायल हो चुके थे. सुजाता वाकई उन के लिए बहुत खुश थी. दोनों ने जैसे एकदूसरे की जिंदगी की कमी को पूरा कर दिया था.
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इधर मीरा भी अपनी दोस्त सुजाता के लिए बहुत खुश थी. सुजाता और सोमनाथजी की मस्ती भरी जुगलबंदी ने पूरे ट्रिप के दौरान सभी को हंसाहंसा कर लोटपोट कर दिया. 1 हफ्ते की इस आउटिंग से सुजाता बहुत ही फ्रैश फील रही थी. इस दौरान करीब रोज ही पलक से फोन पर उस की बात होती रही थी.
घर आने के बाद सुजाता ने अपनी मेड सर्वेंट संगीता के साथ मिल कर सब से पहले बंद पड़े घर की साफसफाई की. फिर उस ने पूरा दिन आराम किया.
समय के पंखों की उड़ान जारी थी. सुजाता और सोमनाथजी काफी सारा वक्त एकदूसरे के साथ बिताने लगे. एक अदृश्य भावनात्मक डोर से वे एकदूसरे के साथ बंधे जा रहे थे. इस रिश्ते में कहीं भी उथलापन नहीं था. बीचबीच में अखिलेश आ कर उन दोनों से मिलता रहता था. पापा को एक बार फिर से जिंदगी जीते देख वह बहुत खुश था.
सुजाता तो सोमनाथजी का साथ पा कर जैसे खिल उठी थी. जिंदगी से उसे कोई शिकायत पहले भी न थी, किंतु सोमनाथजी से मिल कर उस ने जाना कि कुणाल के जाने से उस के दिल का एक कोना तो जरूर सूना हो चुका था, जिसे सोमनाथजी के प्यार ने एक बार फिर से गुलजार कर दिया था.
एक सुबह सोमनाथजी को सैर पर न पा कर वह कुछ चिंतित हो उठी.
‘‘अरे, कोई काम आ गया होगा,’’ मीरा ने उसे समझाना चाहा.
‘‘अगर कोई काम होता तो वे मुझे फोन कर सकते थे,’’ वह बहुत ही तेजी से घर जा कर सारे काम जल्दीजल्दी निबटा कर सोमनाथजी के घर चल पड़ी.
वहां पहुंचते ही बाहर गेट पर ही उन की कामवाली सुजाता से उस की मुलाकात हो गई तो पूछा, ‘‘सोमनाथजी ठीक तो हैं’’
‘‘साहब तो बिलकुल ठीक हैं, पर उन की फ्रूटी नहीं रही.’’
‘‘क्या? क्या कह रही हो तुम?’’ सुजाता अविश्वास से चीख पड़ी, ‘‘अभी कल ही तो मैं उस से मिल कर उसे खिला कर गई थी.’’
‘‘हां, कल दोपहर को उसे किसी जहरीले सांप ने काट लिया. साहब अस्पताल भी ले कर गए, पर वह नहीं बच पाई,’’ बाई ने बताया.
‘‘उफ…’’ सुजाता के मुंह से निकला और फिर वह तेजी से अंदर चली गई.
हौल में सोमनाथजी सोफे पर बैठे उस कोने को निहार रहे थे, जहां फ्रूटी बैठा करती थी. सामने से आती सुजाता को देख कर उन की आंखें छलक उठीं और वे बच्चों की तरह बिलख पड़े, ‘‘फ्रूटी नहीं रही सुजाता. 12-13 साल का साथ छूट गया. अब कैसे जिऊंगा मैं.’’
सोमनाथजी की यह हालत देख कर सुजाता ने उन्हें सीने से लगा लिया. सांत्वना के सभी शब्द आज छोटे लग रहे थे. फ्रूटी के प्रति उन के अगाध प्रेम से विह अनजान नहीं थी.
‘‘आंटी, अब आप ही इन्हें समझाइए. कल रात से बच्चों की तरह रोए जा रहे हैं. न कुछ खाया न पिया. ऐसे तो अपनी तबीयत खराब कर लेंगे ये.’’ किचन से चाय की ट्रे लाते हुए अखिलेश ने कहा.
बहुत देर तक सुजाता सोमनाथजी को सांत्वना देती रही. फिर अखिलेश और उस ने जबरदस्ती उन्हें कुछ खिलाया और फिर सुला दिया.
‘‘आंटी मैं चला जाऊंगा तो पापा बिलकुल अकेले पड़ जाएंगे. पहले तो फ्रूटी से उन का मन लगा रहता था, मगर अब मुझे उन की बहुत चिंता हो रही है,’’ अखिलेश ने उदास स्वर में कहा.
‘‘तुम बिलकुल चिंता न करो, मैं हूं न इन के साथ,’’ सुजाता ने उसे तसल्ली देते हुए कहा.
लेकिन अखिलेश की चिंता निर्मूल नहीं थी. फ्रूटी की मौत के सदमे ने उन्हें अवसाद में ला दिया था. अकेलेपन के शिकार सोमनाथजी के लिए फ्रूटी एक साथ ही नहीं, बल्कि उन के जीने का सबब भी थी. जब तक सुजाता वहां होती, उन्हें कुछ तसल्ली रहती, पर उस के जाने के बाद वे फिर तनावग्रस्त हो जाते.
ऐसे में सुजाता उन्हें बिलकुल अकेला नहीं छोड़ना चाहती थी. अत: उस ने सोमनाथजी को अपने घर शिफ्ट करने की ठान ली.
‘‘तू ने अच्छी तरह सोच लिया है… लोगों की नजरें और उन में तैरते प्रश्न. इतना आसान नहीं है. जितना तू समझ रही है,’’ मीरा ने उसे चेताते हुए कहा.
‘‘मैं ने निर्णय ले लिया है. जो होगा देखा जाएगा,’’ कहते हुए सुजाता ने अखिलेश को भी फोन कर अपने इस निर्णय के बारे में बता दिया.
सुन कर अखिलेश ने खुशी जाहिर की. सोमनाथजी के बहुत मना करने के बाद भी आखिर सुजाता जिद कर उन्हें अपने घर ले आई. उस की भावनात्मक सपोर्ट और उचित देखभाल से उन में जल्द की सकारात्मक बदलाव देखने को मिला.
तभी एक शाम पलक के आए फोन ने उसे तनिक चिंता में डाल दिया. समर को अपने औफिस के किसी काम से एक हफ्ते के लिए इंदौर आना था, तो पलक भी अगले हफ्ते भर समर के साथ इंदौर आने वाली थी.
अब न ही सुजाता सोमनाथजी से कुछ कह सकती थी और न ही पलक को घर आने से मना कर सकती थी. अजीब उलझन में फंस गई थी. उस ने सोमनाथजी से इस बाबत कोई बात नहीं की. वरना वे वापस अपने घर जाने की जिद पकड़ लेते. हलके तनाव में घिरी सुजाता ने यह फैसला हालफिलहाल वक्त पर ही छोड़ दिया.
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मगर सुजाता की निगाहों की बेचैनी व चिंता सोमनाथजी की आंखों से न छिप सकी.
उन्होंने सुजाता को सच बताने पर मजबूर कर दिया. तब उसे मजबूरन उन्हें बच्चों के आने की जानकारी देनी पड़ी. सुन कर सोमनाथजी ने बहुत ही प्यार से उसे समझाया कि देखो तुम ने मुझे तब सहारा दिया जब मुझे जरूरत थी. अब जबकि मैं पूरी तरह ठीक हो चुका हूं, तो मैं वादा करता हूं कि अपना पूरा ध्यान रखूंगा. अभी तुम खुश हो कर सिर्फ अपने बच्चों का स्वागत करो.’’
सुजाता ने जब यह कहा कि एक न एक दिन तो हमें अपने रिश्ते का सच बताना ही है तो अभी क्यों नहीं, तो इस पर सोमनाथजी ने कहा कि हर काम को करने का एक सही वक्त होता है और वह तभी किया जाए तो ही अच्छा रहता है.
बुधवार सुबह नौ बजे पलक की फ्लाइट लैंड करने वाली थी. सुजाता को बेसब्री से अपने बच्चों का इंतजार था. बच्चों की गाड़ी को गेट पर आया देख वह खुशी से झूम उठी. दोनों मांबेटी करीब 6 महीनों के बाद मिल रही थीं. सुजाता ने कस कर बेटी को गले से लगा लिया.
‘‘मम्मा कैसी हैं आप? बहुत अच्छा किया जो आप घूमने गईं…कैसा रहा आप का ट्रिप? मुझे वहां खींचे गए फोटो भी दिखाओ…मुझे मालूम है आप सभी ने मिल कर बहुत मस्ती की होगी,’’ पलक बहुत ऐक्साइटेड थी.
‘‘हांहां दिखाती हूं, पहले अंदर तो आओ,’’ सुजाता ने हंसते हुए कहा.
‘‘मम्मीजी कैसी हैं आप?’’ सुजाता के पैरों को छूते हुए समर ने पूछा.
‘‘बिलकुल ठीक हूं बेटा,’’ चायनाश्ता करने के बाद पलक बोली, ‘‘मम्मा गोवा के फोटो दिखाओ न.’’
‘‘ओके बाबा, यह ले अभी तो मोबाइल पर ही देख ले,’’ कहते हुए उस ने अपना मोबाइल पलक को पकड़ा दिया. पलक और समर फोटो देखने में व्यस्त हो गए और सुजाता उन के खानेपीने की तैयारी के लिए संगीता को निर्देश देने लगी.
‘‘मौम, ये अंकल कौन हैं? इन्हें पहले कभी नहीं देखा?’’ ज्यादातर फोटोज में सुजाता के पास खड़े सोमनाथजी को देखते हुए पलक ने पूछा.
‘‘बेटा ये सोमनाथजी हैं, पास ही अन्नपूर्णा कालोनी में रहते हैं. ये भी हमारे साथ ट्रिप पर गए थे.’’
पलक और भी कुछ पूछना चाहती थी, लेकिन तभी समर ने किसी काम के लिए उसे आवाज दी.
‘‘जी, आई,’’ कह कर वह उस वक्त तो चली गई. लेकिन उस की निगाहों में तैरते प्रश्न सुजाता की अनुभवी नजरों ने तुरंत ताड़ लिए.
रात को बिस्तर पर अपने साथ सोई बेटी के बालों में प्यार से उंगलियां फिराते हुए सुजाता सोचती रही कि वक्त आ गया है पलकको अपने व सोमनाथजी के रिश्ते की सचाई बताने का… मेरी बेटी है वह और उसे यह जानने का पूरा हक है. वैसे भी अगर यह सचाई उसे किसी और से पता चलती है, तो उसे बहुत बुरा लगेगा. लेकिन पलक को किस तरह बताए यह सुजाता की समझ में नहीं आ रहा था.
सुबह मौम को सैर के लिए गया देख कर पलक ने अपने लिए चाय बनाई. चाय पी कर सुजाता का इंतजार करने लगी. समर अपने औफिस के काम के लिए निकल चुका था. कुछ देर बाद मौम को उन्हीं अंकल के साथ आता देख वह कुछ आश्चर्य से भर उठी.
‘‘मेरा राजा बेटा जग गया… इन से मिलो ये वही सोमनाथ अंकल हैं, जिन के बारे में मैं ने तुम्हें कल बताया था.’’
‘‘जी, नमस्ते अंकल,’’ पलक ने कुछ उदास स्वर में कहा. शायद उन अंकल से मां का इतना खुला व्यवहार उसे अच्छा नहीं लगा.
सोमनाथ कुछ देर वहां बैठ कर लौट गए. उन्होंने अपनी ओर से बहुत सहज व्यवहार करने की कोशिश की, पलक की बेरुखी ने जैसे सारे माहौल को बोझिल बना दिया था.
‘‘पलक तुझ से कुछ जरूरी बात करनी है,’’ दोपहर के खाने के बाद सुजाता ने उसे अपने पास बैठाते हुए कहा.
‘‘हां मौम, बोलो न,’’ पलक ने कुछ ठंडे स्वर में कहा.
‘‘बेटा, तू तो जानती है, तेरे पापा के जाने के बाद भी मैं ने खुद को कभी अकेला नहीं महसूस किया. लेकिन तेरे सुसराल चले जाने के बाद मेरे जीवन में खालीपन सा आ गया है,’’ सुजाता ने गंभीर होते हुए कहा.
‘‘मैं जानती हूं मां. इसीलिए तो कहती हूं कि आप बाहर निकलो, घूमाफिरो, नएनए दोस्त बनाओ. कुछ सोशल ऐक्टिविटीज जौइन करो,’’ पलक ने मां की तकलीफ को समझते हुए ढेर सारे सुझाव दे डाले.
‘‘पिछले कुछ दिनों से सोमनाथ अंकल मेरे बहुत अच्छे दोस्त बन चुके हैं. गोवा के ट्रिप के दौरान हम ने एकदूसरे को और अच्छी तरह जानासमझा है. मुझे लगता है कि मैं उन के साथ बहुत खुश रहूंगी… तुम्हारा इस बारे में क्या खयाल है?’’ स्पष्ट रूप से अपनी बात रखने के बाद सुजाता ने इस मुद्दे पर बेटी की राय जाननी चाही.
‘‘यह आप क्या कह रही हैं मौम? यह सच है कि हम आज बहुत ही ऐडवांस स्टेज में जी रहे हैं और आप की किसी के साथ हुई दोस्ती पर भी मुझे कोई ऐतराज नहीं है, लेकिन सोमनाथजी अंकल से आप का कोई मैच नहीं है. पहली बात तो यह कि वे बंगाली हैं, मीटमछली खाने वाले और हम ब्राह्मण, दूसरे वे उम्र में भी आप से काफी बड़े हैं. सोचो मां…मेरे ससुराल वालों को, समर को इस बारे में पता चलेगा तो वे सब क्या सोचेंगे,’’ पलक ने कुछ तेज स्वर में तैश के साथ कहा.
‘‘बेटा मेरी इस समय की स्थिति में उम्र का यह अंतर बहुत माने नहीं रखता. माने रखती है तो सिर्फ यह बात कि हमारी आपस में अंडरस्टैंडिंग कैसी है. उन के साथ रहते हुए मुझे उम्र का यह फासला कभी महसूस ही नहीं होता… मेरा यकीन करो, जितना मैं उन्हें जानती हूं, वे एक अच्छे और सच्चे इंसान हैं. मैं उन के साथ बेहद खुश रहूंगी,’’ सुजाता ने साफ शब्दों में पलक से अपने मन की बात कह डाली.
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‘‘मां मुझे आप की इस दोस्ती का कोई सुखद भविष्य नजर नहीं आ रहा है,’’ पलक जैसे अपनी मौम की मां ही बन बैठी. यह कह कर उस ने साफ इशारा दे दिया कि सुजाता और सोमनाथजी के रिश्ते पर उसे कड़ा ऐतराज है.
मां से नाराज पलक शाम होते ही कुछ देर के लिए मीरा आंटी के घर चली गई. वह जानना चाहती थी कि क्या मीरा आंटी को मौम की इस रिलेशनशिप के बारे में पता है और यदि पता है तो उन का इस पर क्या कहना है. बचपन से ही मीरा आंटी उन दोनों मांबेटी के बीच में छिटपुट विवादों को सुलझाती आईर् थीं.
पलक को घर आया देख मीरा बहुत खुश हुई. मारे खुशी के उस ने पलक को गले से लगा लिया, पर पलक की आंखों में आंसू देख उस का मन बहुत दुखी हुआ. पलक से पूरी बात सुनने के बाद तुरंत ही उस ने सब से पहले सुजाता को चुपचाप फोन कर के यह बता दिया कि पलक उस के पास है. और वह समर को भी फोन कर औफिस से सीधे अपने घर बुला लेगी. वह परेशान न हो.
समर औफिस से सीधे मीरा के घर आ गया. पलक का उतरा चेहरा देख उसे बड़ी हैरानी हुई. पूछा, ‘‘क्या हुआ तुम इतनी दुखी क्यों लग रही हो?’’
‘‘बैठो बेटा. मैं आप को पूरी बात समझाती हूं,’’ समर को आया देख मीरा ने प्यार से कहा.
उसे चायनाश्ता करवा कर मीरा ने पलक की परेशानी समर से साझा की और यह भी बताया कि इस बारे में वह पहले से जानती है तथा उस ने सोमनाथजी को पूरी तरह परखा है. सुजाता का यह बिलकुल सही चुनाव है.
पूरी बात समझने के बाद समर ने पलक की ओर देखा मानो जानना चाहता हो कि इस सब में उसे परेशानी कहां आ रही है.
पलक ने कहा, ‘‘मुझे मौम की दूसरी शादी से कोई ऐतराज नहीं है. मैं जानती हूं कि मेरे जाने के बाद वे बिलकुल अकेली हो चुकी हैं, पर हमें उन दोनों की उम्र का अंतर भी देखना चाहिए. मुझे लगता है उन अंकल ने मेरी मौम को बहकाया है.’’
पलक की परेशानी समझ समर जोर से हंस पड़ा, ‘‘अरे वे तुम्हारी मौम हैं कोई छोटी बच्ची नहीं, जो किसी की बातों में आ जाएंगी. उन्होंने हम से ज्यादा दुनिया देखी हैं. वे इंसान को पहचानने का हुनर हम से ज्यादा रखती हैं. तुम क्यों चिंता करती हो… और फिर देखा जाए तो यह अच्छा ही है… हमतुम उन के साथ हर पल तो नहीं रह सकते… वैसे भी इतनी बड़ी जिंदगी अकेले काटना कोई समझदारी नहीं है. फिर तुम्हें भी तो हर वक्त मौम की चिंता लगी रहती है. फिर परेशानी क्या है. इस मुकाम पर उम्र का अंतर बहुत ज्यादा माने नहीं रखता है. चलो तुम्हारी शंका के निवारण के लिए मैं भी उन अंकलजी से मिल लूंगा,’’ समर ने उसे समझाते हुए कहा.
पलक उस समय तो ऊपरी तौर पर चुप रही पर अभी भी अंदर ही अंदर वह इस रिश्ते से नाखुश थी.
थोड़ी देर बाद डोरबैल बजी. ‘‘शायद मां होंगी. मैं उन्हें बिना बताए आ गई थी,’’ पलक ने उठते हुए कहा.
‘‘नहीं, तुम बैठो. मैं देखती हूं,’’ कहते हुए मीरा ने उठ कर दरवाजा खोला, ‘‘आओआओ, मैं तुम्हारा ही इंतजार कर रही थी,’’ अखिलेश को देखते ही मीरा के चेहरे पर प्रसन्नता के भाव आ गए. मीरा ने अखिलेश से समर और पलक का परिचय करवाया तभी मीरा के पति भी आ गए.
‘‘दोस्तो, मीरा ने सभी को संबोधित करते हुए कहा,’’ सुजाता मेरी सब से प्यारी सहेली है. पलक के पापा के जाने के बाद उस ने किसी को अपना दुख महसूस नहीं होने दिया. यहां तक की पलक को भी नहीं. लेकिन मैं उस दुख और तकलीफ की स्वयं साक्षी हूं, जो सुजाता ने उठाए हैं. कुणाल के जाने के बाद पहली बार किसी ने सुजाता के दिल पर मरहम रखा, उस के दिल को छुआ. बिना स्वार्थ व लालच के उस से दोस्ती की, उसे निभाया और उस का खयाल रखा. दूसरी ओर सुजाता ने भी सोमनाथजी के जीवन का अकेलापन दूर कर उन्हें जिंदगी से एक बार फिर मिलवाया. जिंदगी के हर पल को जीना सिखाया,’’ कहतेकहते मीरा थोड़ी भावुक हो उठी.
‘‘मेरा मानना है कि किसी भी रिश्ते को निभाने के लिए प्रेम, समर्पण और विश्वास का होना जरूरी है, जोकि सुजाता और सोमनाथजी में एकदूसरे के लिए बहुत है. मैं ने अखिलेश को भी यहां इसीलिए बुलाया है कि दोनों के बच्चे आज अपने मातापिता के लिए फैसला लें और उन्हें इस विवाह के लिए राजी करें, क्योंकि वे शायद आप से इस बाबत कभी कह न पाएं. वे एकदूसरे को चाहते रहेंगे, एकदूसरे के साथ रहेंगे, पर शायद विवाह के लिए उम्र में इतनी आसानी से न मानें. इसीलिए मैं उन की भावनाओं को आप सभी के समक्ष रख रही हूं,’’ कह मीरा चुप हो गई.
‘‘मैं आंटीजी की बात से पूरी तरह सहमत हूं…’’ मैं मम्मीजी को इस शादी के लिए राजी करूंगा,’’ समर ने उठ कर तालियां बजाते हुए कहा.
‘‘मैं भी अपने पापा और होने वाली मां के लिए बहुत खुश हूं. मुझे विश्वास है कि मैं भी अपने पापा को मना लूंगा,’’ अखिलेश ने समर से हाथ मिलाते हुए कहा.
पलक ने भी उठ कर आखिर अपनी मौन स्वीकृति दे दी. फिर तय किया गया कि दोनों की कौर्ट मैरिज करवाई जाएगी और फिर कुछ दोस्तों को बुला कर छोटी सी पार्टी दे दी जाएगी.
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उधर सुजाता मन ही मन बहुत दुखी थी कि यह उस ने क्या किया, कितने दिनों बाद पलक घर आई और उस ने उसे दुखी कर दिया. आखिर उस ने पलक के सामने यह बात छेड़ी ही क्यों? वह पलक को दुखी कर के कोई निर्णय नहीं लेना चाहती थी, आखिर पलक उस की इकलौती बेटी थी. पर दूसरी तरफ वह सोमनाथजी को भी दुखी नहीं करना चाहती थी. वह बड़ी दुविधा में थी. 11 बजने को थे. बच्चे अभी तक घर नहीं आए थे. वह सोचने लगी कि मीरा के घर आखिर क्या चल रहा है. पलक के जिद व गुस्से को भी वह अच्छी तरह जानती थी.
तभी बैल बजी. घबराई सुजाता ने जल्दी से दरवाजा खोला तो अखिलेश, समर, पलक खड़े नजर आए. उसे कुछ समझ नहीं आया. तभी उन के पीछे से निकलते हुए सोमनाथजी को मुसकराता देख सुजाता स्तब्ध रह गई.
तभी समर ने उसे बांहों से थाम कर सोफे पर बैठाते हुए कहा, ‘‘मां, अब जब हमें पता चल ही गया है कि आप और सोमनाथजी अंकल एकदूसरे को चाहते हैं, तो कृपया समय की बरबादी न करते हुए दोनों की भलाई इसी में है कि शादी के लिए हां कह दें.’’
वातावरण को सहज बनाने के लिए एक मनोरंजक अंदाज में समर द्वारा सुजाता को मनाने का यह तरीका देख सब हंस पड़े.
‘‘हां आंटी, देखिए न मैं ने भी अपने पापा को मना लिया है. अब आप दोनों मिल कर अपने जीवन की नई शुरुआत कीजिए,’’ कहते हुए अखिलेश ने अपने दोनों हाथ जोड़ दिए.
यह सुन कर सुजाता ने पलक की ओर देखा. ‘‘वैसे तो मैं आप का प्यार किसी के साथ बांटना नहीं चाहती, लेकिन सिर्फ आप की खुशी के लिए मुझे आप दोनों की शादी मंजूर है मां. आप दोनों का प्यार और साथ हमेशा बना रहे, मैं यह कामना करती हूं,’’ कह कर पलक ने दोनों का हाथ पकड़ कर एकदूसरे के सामने खड़ा कर दिया.
तभी सुजाता के सामने खड़े सोमनाथजी ने उस की आंखों में देख कर बड़ी अदा से झुकते हुए पूछा, ‘‘क्या तुम मुझ से शादी करोगी?’’
सभी का सम्मिलित स्वर ठहाके के रूप में कमरे में गूंज उठा और सुजाता लजा कर सोमनाथजी के सीने से लग गई.