सोने का अंडा देने वाली मुरगी- भाग 3: नीलम का क्या था प्लान

अब नीलम ने अपनी 4 सहअध्यापिकाओं को जो नीलम के आसपास रहती थीं को एकसाथ अपनी कार में स्कूल चलने को राजी कर लिया. उन के द्वारा दी गई धनराशि से वह पैट्रोल डलवा कर बचे हुए रुपयों में और रुपए मिला कर किस्त भरने लगी.

राजेश इन बातों से अनजान था. रोज नीलम से गाड़ी चलाने के लिए मिन्नत करता दिखाईर् देता. नीलम भी मन ही मन मुसकराती सौसौ एहितयात बरत कर गाड़ी चलाने का आदेश दे कर चाबी देती.

एक दिन नीलम की स्कूल की छुट्टी थी. उस ने नोटिस किया पूरे घर की कुछ

गुप्त मंत्रणा चल रही है. उस के रसोई में व्यस्त होने का लाभ उठाया जा रहा था. वह समझ गई कोई बड़ा फैसला ही है जो उस से गुप्त रखा जा रहा है. 2-3 बार उस ने वकील को भी घर में आते देखा.

वैसे तो उसे कोई चिंता नहीं थी पर वह अब राजेश की किसी चालाकी भरी योजना का शिकार नहीं बनना चाहती थी. वह ससुराल के प्रति अपने कर्तव्य से भली प्रकार परिचित थी और उन्हें पूरा कर भी रही थी. वह एकदम नौर्मल बातचीत करती रही.

राजेश ने कार की चाबी मांगी और मातापिता को कार में बैठा कर कहीं ले गया. दोपहर बाद सब लौटे. राजेश ने भी आज छुट्टी ली हुई थी. शाम को उस के सासससुर अपने रूटीन के अनुसार पार्क में घूमने चले गए.

नीलम ने राजेश को कुछ सामान लेने के बहाने भेजा. घर में इस समय कोई न था. उस ने झटपट सास के तकिए के नीचे रखीं अलमारी की चाबियां निकाल अलमारी खोल डाली. सामने वही लिफाफा पड़ा था जो उस ने ससुर  के हाथ में देखा था.

कागजात निकाल कर उस ने जल्दीजल्दी पढ़े, फिर उसी तरह कागजात लिफाफे में डाल, आलमारी में रख चाबी वहीं रख नौर्मल बन कर काम में लग गई.

दरअसल यह पुशतैनी मकान सासससुर ने अपनी दोनों की मृत्यु के बाद राजेश के छोटे भाई के नाम कर दिया था. उन्हें यह विश्वास था राजेश और नीलम समय आने पर नया प्लैट लेने में सक्षम रहेंगे.

कुछ दिनों बाद नीलम को सासससुर ने बड़े प्यार से बुला कर कहा, ‘‘बेटी, यह

पुशतैनी मकान पुराने तरीके से बना हुआ है. हमारा जमाना तो गुजर गया. अब राजेश, सुरेश और तुम लोगों को इस तरह के मकान में तंगी आएगी. हम सोच रहे हैं कि इसे नए तरीके के

घर में तब्दील कर लें. अगर तुम कुछ लोन ले लो तो यह काम आसान हो जाएगा. अभी तो तुम्हारे सिर पर कोई जिम्मेदारी नहीं है. नौकरी भी लंबी है. आसानी से किस्तें चुका सकती हो.’’

नीलम समझ गई उस पर जाल फेंक दिया गया है. उस ने कहा, ‘‘ठीक है ममीपापा मैं स्कूल में जा कर पता करती हूं.’’

3-4 दिन बीत गए. उस ने अकाउंट विभाग और अनुभवी साथियों से विचारविमर्श कर नीलम ने घर आ कर बताया कि लोन तो मिल जाएगा

पर तभी मिलेगा जब मकान मेरे नाम पर होगा क्योंकि सिक्यूरिटी के लिए मुझे मेरे नाम के मकान के कागजात बैंक ने अपने पास रखने हैं ताकि किस्तें न चुका पाने की हालत पर वह मकान पर कब्जा कर सके… यह नियम तो आप को मालूम ही होगा.

मरते क्या न करते. मकान को नीलम के नाम किया गया. अब नीलम ने लोन ले कर अपने मनपसंद तरीके से मकान को रैनोवेट करवाना शुरू करवा दिया. 3-4 महीनों में ही पुराने मकान की जगह एक नया खूबसूरत घर तैयार हो गया, जिस की मालकिन नीलम थी.

मकान बनने के कुछ दिन बाद ही एक दिन नीलम की एक सहकर्मी अध्यापिका उसे जल्दी घर ले कर आ गई. उस ने घर में सब को बताया कि अभी नीलम को अस्पताल से ले कर आ रही है. इसे स्कूल में घबराहट और चक्कर आ रहे थे. वहीं से वे दोनों अस्पताल गई थीं. डाक्टर ने मुआयना कर बताया कि यह किसी बड़े तनाव को झेल रही है. कुछ दिन घर पर आराम करने की सलाह दी गई है. यह बता कर वह चली गई.

एक दिन बाद सभी ने नीलम से तनाव के बारे में पूछा. नीलम ने कहा, ‘‘उसे हर समय लोन का तनाव रहने लगा है. स्कूल में भी मैं छात्राओं को मन लगा कर नहीं पढ़ा पाती. मानसिक तनाव से हर समय सिरदर्द रहता है. प्रिंसिपल के पास मेरी शिकायत भी छात्राओं ने की है. मुझे प्रिंसिपल की ओर से वार्निंग भी मिल चुकी है. इस कारण मैं मानसिक रूप से बहुत चिंतित हूं और तनाव ग्रस्त रहने लगी हूं.

‘‘मुझे डर है यह लोन का तनाव मेरी

नौकरी को न ले डूबे. आजकल स्कूलकालेजों में बहुत सख्त नियम बन गए हैं. जो पढ़ाने में लापरवाही करे या मनमानी करे उसे संस्पैंड कर देते हैं या किसी दूरदराज की शाखा में स्थानांतरित कर देते हैं. जहां मूलभूत सुविधाएं भी कठिनाई से मिलती हैं. मजबूरी में कुछ लोग तो नौकरी छोड़ना बेहतर समझते है. जब वे इतने ज्यादा वेतन देते हैं तो काम भी एकदम बेहतरीन मांगते हैं,’’ यह सुन सभी घबरा गए.

नीलम ने बड़े ही प्यार से आगे कहा, ‘‘कुछ महीने में लोन की रकम बढ़ा कर लोन जल्दी से जल्दी उतारने की कोशिश करती हूं, घर खर्चे की जिम्मेदारी आप दोनों उठा लें.’’

अगले महीने से सारा घर खर्च ससुर की पैंशन और राजेश के वेतन से चलने

लगा. नीलम ने बड़ी होशियारी से खुद को घर खर्च से आजाद कर लिया. नीलम मन ही मन हंसती रही. उस ने कार और मकान का लोन उतारने के लिए स्कूल में ही कुछ ट्यूशंस भी ले लीं, जिस से उस की आमदनी बढ़ गई और फिर वह लोन की किस्त की रकम बढ़ा कर लोन उतारने लगी.

राजेश ने भी रोज एक सोने का अंडा देने वाली मुरगी के सपने देखने छोड़ दिए और घर खर्च में तालमेल बैठाने के लिए पार्टटाइम जौब करने लगा.

नीलम भी मन ही मन सोचती कि प्यारमुहब्बत सादगी से राजेश उस से सहयोग चाहता तो वह बड़ी खुशी से करने को तैयार थी पर जहां उस ने चालाकी, मक्कारी से उसे मूर्ख बनाने की कोशिश की वहां तो तू डालडाल मैं पातपात वाली कहावत ही लागू करनी पड़ी.

सोने का अंडा देने वाली मुरगी- भाग 2: नीलम का क्या था प्लान

रात को सिरदर्द का बहना बना जल्दी सोने का नाटक किया. सोचती रही उस के मातापिता बेचारे ऐसा योग्य नेक दामाद पा कर कितना खुश हैं. नहीं, नहीं मैं उन का यह भ्रम बनाए रखूंगी. राजेश को मैं ही सबक सिखाऊंगी.

कुल्लूमनाली में उस ने नोटिस किया कि बड़ेबड़े खर्चे उसी के ऐटीएम से रुपए निकाल कर हो रहे हैं. छोटेमोटे खर्च वह अपने क्रैडिट कार्ड से करता. घर वालों के लिए उपहार ले कर वह बहुत संतुष्ट था. उस ने भी बहाने से उस के पर्स से क्रैडिट कार्ड निकाल अपने मातापिता के लिए दुशाला व शाल ले ली. क्रैडिट कार्ड वापस राजेश के पर्र्स में रख दिया. बातोंबातों में राजेश बड़े ही प्यार से उस से उस की अभी तक की सेविंग्स, पीएफ, वेतन आदि की जानकारी लेता रहा. नीलम भी सावधान थी. उस ने कोई भी जानकारी सही नहीं दी.

घर लौट कर नीलम ने बड़ी होशियारी से सब के लिए लाए उपहार उन्हें दिए, साथ में मेरी ओर से, मेरी ओर से कहना नहीं भूली. राजेश चुप रह गया. वह जानता था कि सब नीलम के पैसों से खरीदा है. सभी नीलम से खुश हो गए.

अब जीवन की गाड़ी अपनी रोजमर्रा की पटरी पर आ गई. राजेश का औफिस

नीलम के स्कूल के आगे ही था. राजेश अगर थोड़ा जल्दी निकल जाए तो नीलम को समय पर स्कूल छोड़ आगे जा सकता. वह स्कूटर पर जाता था. नीलम ने जब उस के सामने यह प्रस्ताव रखा तो उस ने हामी भर दी.

राजेश दूसरेतीसरे दिन नीलम के कार्ड से पैट्रोल के बहाने मनमाने रुपए निकलवा लेता था पर ले जाने के समय सप्ताह में 3 या 4 दिन ही ले जा पाता. कोई न कोई बहाना बना देता.

नीलम ने यह भी नोटिस किया कि छोटे भाई या बहन को कुछ पैसों की जरूरत होती तो वे दोनों चुपके से उस से मांग लेते और कह देते किसी को मत कहना.

नीलम अभी नई थी. ज्यादा कुछ नहीं कह पाती. पर उस ने सोच लिया कि इस का भी कोई न कोई हल निकालना पड़ेगा. 1-2 महीने ऐसे ही गुजर गए. नीलम के ही वेतन से लगभग परिवार का खर्चा चल रहा था. सभी को बचत करने की पड़ी थी. पापा अपनी पैंशन से धेला भी खर्च नहीं करते. यही हाल राजेश का था. राशन, दूध, बाई, बिजलीपानी का बिल, फलसब्जियों सबका भुगतान नीलम करती. छोटेछोटे खर्च राजेश दिखावे के लिए करता.

एक दिन नीलम मायके गई तो उस ने अपने पापा को कुछ उदास पाया. बारबार पूछने पर उन्होंने बताया कि मकान बनाने पर अनुमान से बहुत ज्यादा पैसा लग चुका है. अब हालत यह है कि मकान में लकड़ी का काम करवाने के लिए पैसे कम पड़ गए हैं. बिल्डर ने काम रोक दिया है. नीलम को मन ही मन बहुत दुख हुआ कि जिन मातापिता ने शिक्षा दिलवाई, कमाने योग्य बनाया वही आज पैसों की तंगी सहन कर रहे हैं. वह उदास मन से वापस आई. महीने के खत्म होते ही छुट्टी के दिन जब सवेरे सब फुरसत चाय की चुसकियां ले रहे थे उस समय नीलम ने बड़ी शालीनता और अपनेपन की चाशनी पगी जबान में कहा, ‘‘देखिए, कायदे से हमारे घर 3 जनों की आमदनी आती है- मेरी और राजेशजी का वेतन और पापाजी की पैंशन पर बचत के नाम पर कुछ भी नहीं है ऐसे कैसे चलेगा. मुझे तो बहुत चिंता होती है. सुरेश भैया की पढ़ाई के 2 साल बाकी हैं. मधु की शादी भी करनी है,’’ ऐसी अपनेपन और जिम्मेदारी वाली बातें कर उस ने सब का दिल जीत लिया.

‘‘आगे खर्च बढ़ेंगे. इसलिए हमें अभी से प्लानिंग कर के खर्च करना चाहिए.

आज हम यह देख लेते हैं कि इस महीने किस ने कम खर्च किया किस ने ज्यादा. सब अपने द्वारा किए हुए खर्च का ब्योरा दें. जिस का खर्च ज्यादा हुआ होगा उसे इस महीने राहत दी जाएगी.

‘‘नए महीने से सब बराबर खर्च करेंगे ताकि सब की थोड़ीबहुत बचत होती रहे जो भविष्य में होने वाले खर्च में सहायक बने.’’

एक कागज पर तीनों ने अपने द्वारा किए खर्च का ब्योरा लिखा. जब उस ब्योरे को जोरजोर से पढ़ा गया तो सब से ज्यादा रकम नीलम की ही खर्च हुई थी. राजेश के भाईबहन द्वारा लिया सारा खर्च भी सबके सामने स्पष्ट हो गया.

राजेश थोड़ा झेंप गया क्योंकि उस ने भी नीलम का बहुत पैसा निकाला था. अगले महीने के लिए सारे खर्च को बराबरबराबर बांट दिया गया. अब नीलम की अच्छीखासी बचत हो जाती थी. वह गुप्त रूप से माएके का मकान बनाने वाले बिल्डर से मिली. कुछ अग्रिम पैसा दे कर उस से कहा कि आप मकान का लकड़ी का

काम पूरा करिए. मैं समयसमय पर भुगतान करने आती रहूंगी. पापा को इस बात का पता नहीं लगना चाहिए.

1 महीने के अंदर घर का लकड़ी का

काम हो गया. नीलम ने मकान की सफाई वगैरह करवा कर सारा हिसाब चुकता कर दिया. उस

ने मकान की चाबी पापा को दे कर शिफ्ट होने

को कहा.

यह सब जान पापा चकित रह गए. बेचारे नीलम की इस मदद से शर्म से झके जा रहे थे. नीलम ने इस बात को गोपनीय रखने को कहते हुए पापा से कहा कि आप को इस मदद के लिए शर्म, लज्जा महसूस करने की आवश्यकता नहीं है. आप का हमारे ऊपर पूरा हक है क्योंकि आप ने ही हमें इस योग्य बनाया है.

राजेश भी कम न था. उस ने बिना दहेज के शादी की थी. मन ही मन नीलम से उस का मुआवजा चाहता था. एक दिन नीलम को उस के एक सहकर्मी से पता चला कि उस ने राजेश को कार के शोरूम में कार पसंद करते देखा. राजेश नीलम के सहकर्मी को पहचानता न था. नीलम को अंदाजा लग गया कि शीघ्र ही उस से रुपए ले कर राजेश कार खरीदने की योजना बना रहा है. नीलम ने भी एक योजना बना डाली.

अपने 2 बुजुर्ग सहकर्मियों को जो बहुत समझदार व अनुभवी थे अपने साथ ले कर एक नामी कार के शोरूम जा पहुंची. बहुत सोचसमझ कर उस ने एक कार पसंद की, डाउन पेमेंट कर आसान किश्ते बनवा लीं. कार उस ने अपने नाम से खरीदी. कार चलाना उसे कालेज के समय से आता था. 3-4 दिन उस ने सहकर्मी की पुरानी कार से अभ्यास किया. आत्मविश्वास आ जाने पर कार ले कर घर आई. पूरा परिवार देख कर चकित रह गया.

नीलम ने कहा, ‘‘मेरे मम्मीपापा ने विवाह की पहली वर्षगांठ पर मुझे दी है.’’

राजेश और उस के परिवार को खुशी तो

थी पर कार की मालकिन तो आखिर नीमम ही थी. बिना नीलम की इजाजत के कोई स्वेच्छा से कार नहीं ले जा सकता.

सोने का अंडा देने वाली मुरगी- भाग 1: नीलम का क्या था प्लान

मेहमानों के जाते ही सब ने राहत की सांस ली. सभी थके हुए थे पर मन खुशी से उछल रहे थे. दरअसल, आज नीलम का रोकना हो गया था. गिरधारी लालजी के रिटायरमैंट में सिर्फ 6 महीने बाकी थे पर उन की तीसरी बेटी नीलम का रिश्ता कहीं पक्का ही नहीं हो पाया था. जहां देखो कैश और दहेज की लंबी लिस्ट पहले ही तैयार मिलती.

गिरधारी लालजी 3 बेटियां ही थीं. उन्हें बेटियां होने का कोई मलाल न था. उन्होंने तीनों बेटियों को उन की योग्यता के अनुसार शिक्षा दिलवाई थी. कभी कोई कमी न होने दी.

2 बड़ी बेटियों के विवाह में तो लड़के वालों की मांगों को पूरा करतेकरते उन की कमर सी टूट गई थी, फिर मकान भी बन रहा था. उस के लिए भी पैसे आवश्यक थे. नीलम की शादी में अब वे उतना खर्च करने की हालत में नहीं रहे थे.

नीलम केंद्रीय विद्यालय में नौकरी करने लगी थी. उस ने लड़के वालों के नखरे देख कर शादी न करने की घोषणा भी कर दी थी? परंतु परिवार में कोई भी उस की बात से सहमत न था. जब किसी रिश्ते की बात चलती वह कोई न कोई बहाना बना मना कर देती. बारबार ऐसा करने से घर में कलह का वातावरण हो जाता. पापा खाना छोड़ बाहर निकल जाते. देर रात तक न आते. मम्मी उसे कोसकोस कर रोतीं. कभीकभी बहनों को बीचबचाव के लिए भी बुलाया जाता. वे भी उसे डांट कर जातीं.

नीलम को शादी या लड़कों से नफरत नहीं थी. वे शादी के नाम पर लड़की वालों को लूटनेखसोटने यानी दहेज, कैश जैसी प्रथाओं से चिढ़ती थी. आखिर में उस ने कहा कि जो लड़का बिना दहेज के शादी करने को तैयार होगा, मेरे योग्य होगा उस से विवाह कर लूंगी. इत्तफाक से नीलम की इकलौती बूआजी ऐसा ही रिश्ता खोज कर ले आईं. लड़का प्राइवेट कंपनी में मैनेजर था. लड़के वालों को दानदहेज कुछ नहीं चाहिए था. केवल पढ़ीलिखी, नौकरी वाली लड़की की मांग थी. बस दोनों ओर से रजामंदी हो गई.

आज रोकना की रस्म में भी लड़के ने केवल नारियल और 101 रुपए का शगुन लिया. गिरधारी लालजी ने लड़के के मातापिता, भाईबहन को मिठाई के डब्बे दे कर विदा किया.

उन के जाते ही महफिल जुट गई. नीलम की दोनों बहनें आई हुए थीं. बूआजी थीं. बूआजी तो आज की विशेष मेहमान थी. सभी उन की तारीफ कर रहे थे. उन्होंने भाई की बड़ी समस्या सुलझ दी थी. लड़का व परिवार भी अच्छा लग रहा था. लड़का एक प्राइवेट कंपनी में मैनेजर था. स्मार्ट भी था. चाय पी रहे थे. सभी खुश थे परंतु नीलम की तर्कबुद्धि, यह मानने को तैयार नहीं थी कि आज के जमाने में ऐसे आदर्शवादी लोग भी मिलते हैं, जो दहेज के बिना भी शादी करने को तैयार हो जाते हैं.

2 महीने बाद का ही विवाह का मुहूर्त भी निकल आया था. विवाद भी सादगीपूर्ण हुआ. नीलम अपनी ससुराल जा पहुंची. ससुराल में भी कोई सजावट या दिखावा नहीं था. नीलम ने स्कूल से एक महीने की छुट्टियां ली थीं. उस के पति राकेश ने हनीमून के लिए कुल्लूमनाली जाने का प्रयोग बनाया. जाने से एक दिन पहले राजेश के कुछ दोस्त, जो शादी में शामिल नहीं हुए थे, घर आ गए. लिविंगरूम में हंसीमजाक चल रहा था.

नीलम चायनाश्ता ले कर जा रही थी कि अचानक उस के कानों में एक दोस्त की आवाज सुनाई पड़ी. वह कह रहा था कि यार राजेश तूने बिना दहेज के शादी कर के बड़ी दरियादिली दिखाई. यह सुन नीलम के कदम पीछे ही रुक गए. वह राजेश का जवाब सुनने को आतुर हो उठी. नीलम की आहट से अनजान राजेश जोर से ठहाका लगा कर बोला कि मेरा दिमाग अभी पागल नहीं हुआ है. मैं तुम सब जैसा नहीं हूं. तुम जैसों से बुद्धि में चार कदम आगे ही चलता हूं. तुम सब दहेज मांग कर ससुराल में अपनी इमेज खराब करते हो. वहीं मैं ससुराल में भी मानसम्मान बनाए रख सरकारी नौकरी वाली लड़की से विवाह कर के अपना भविष्य सुरक्षित करने की सोचता हूं. आगे समझने लगा. तुम सब महामूर्ख हो. एक बार ढेर सारा दहेज ले कर सोचते हो उम्र कट जाएगी. बचपन में पढ़ी, वह कहानी, जिस में हंस लड़के को एक सोने का अंडा देने वाली मुरगी मिल जाती है.

उस मूर्ख ने सोचा रोजरोज कौन इंतजार करे एक ही बार इस मुरगी का पेट काट इस के सारे सोने के अंडे निकाल लूं और फिर उस ने वैसा ही किया. क्या हुआ मुरगी भी गई अंडा भी न मिला. तुम सब भी उस मूर्ख लड़के हंस से कम नहीं हो. कहानी याद आई कि नहीं? मैं तो मुरगी से रोज 1 सोने का अंडा लिया करूंगा. समझ लो मैं ने सोने का अंडा देने वाली मुरगी पाल ली है. तुम लोगों को यह पता ही है कि सहज पके सो मीठा होय. जहां तुम लोग बड़ेबड़े व्यवसायियों की लड़कियों से शादी कर दहेज और रकम के सपने पूरे करने के  पीछे पागल रहते. वहीं मैं कुछ और ही सोच रखता था. अब देखो मेरी पत्नी नीलम 3 बहनें ही हैं. मातापिता के बाद उन के पास जो भी है वह तीनों बहनों को ही मिलेगा, फिर नीलम नौकरी भी करती है.

सरकार स्कूल में पीजीटी अध्यापिका है. समझे कुछ? उसे 7वें पे कमीशन के अनुसार मोटा वेतन और तरहतरह की सुविधाए मिलती हैं. मैं ने तो नीलम से शादी कर के जीवन बीमा करवा लिया है जो जिंदगी के साथ भी और जिंदगी के बाद भी होगा. ऐसा सौदा किया है वरना दिमाग पागल नहीं हुआ था जो बिना दहेज की शादी करता.

दोस्त भी ठहाका लगा कर हंसने लगे. बोले कि जानते हैं, यार तू तो कालेज के जमाने से ही बनिया बुद्धि का था. हर जगह हिसाबकिताब, लाभहानि देखता था. फिर सभी का समवत ठहाका लगा.

यह सब सुन कर नीलम का मन खट्टा हो गया. उस की तार्किक बुद्धि आखिर जीत ही गई. वह समझ गई हाथी के खाने के दांत अलग हैं और दिखाने के अलग हैं. बेमन से चायनाश्ता देने अंदर गई. कुछ देर पास बैठ कर काम के बहाने बाहर निकल आई. वह सोचने लगी प्रेम, अपनापन, सहयोग के चलते हम दोनों मिल कर घर, बाहर का खर्च मिलबांट कर करते तो उसे कभी कोई एतराज न होता आखिर पढ़ीलिखी, नौकरी वाली बहू किसलिए आजकल मांग में है? पर इस प्रकार चालाकी से, रोब से या बेवकूफ बना कर कोई उस की कमाई पर हक जताएगा यह बात उसे कतई गवारा नहीं.

सीलन- भाग 4: दकियानूसी सोच से छटपटाती नवेली

दुबई जा कर मोहित ने एक घर किराए पर ले लिया था. मोहित को घर का खाना पसंद है. मोहित घर के काम नहीं कर सकता है. मगर, नवेली प्यार के कारण सारे काम बिना किसी शिकायत के करती रही थी. नवेली को लगता था, ऐसा करने से वह अपने प्यार को सीमेंट की  दीवार की तरह मजबूत बना रही है. वक्त के थपेड़े उस दीवार को चाह कर भी गिरा नही पाएंगे.

रात को सैक्स करते समय मोहित ने प्रोटेक्शन इस्तेमाल करने से मना कर दिया.

“क्या तुम मुझ पर शक करती हो?” मोहित गुस्से से बोला.

नवेली बोली नहीं, मगर मैं अभी मां नहीं बनना चाहती हूं.

मोहित बोला, “विश्वास रखो, मैं तुम्हें किसी मुसीबत में नहीं डालूंगा.”

मगर जब नवेली के यूरिन में इंफेक्शन हो गया, तो डाक्टर ने कंडोम यूज करने की सलाह दी थी, मगर डाक्टर की सलाह के बावजूद भी मोहित प्रोटेक्शन यूज करने को तैयार न था.

“मैं तुम्हारे और अपने मध्य किसी तीसरे को बरदाश्त नहीं कर सकता.”

नवेली को लगता कि क्या प्यार ये ही होता है?

जब नवेली ने ये बात मोहित के दोस्त की पत्नी अनुकृति को बताई, तो उस ने कहा, “अरे, मोहित पागल है क्या?

वह बस तुम्हें दबा रहा है.”

जब रात में नवेली ने मोहित से बात करनी चाही, तो मोहित बोला, “अगर तुम मुझ पर शक करती हो, तो मैं आज से तुम्हें छुऊंगा भी नहीं.”

एक हफ्ता हो गया था. मोहित नवेली से दूरदूर रहता. वह ऐसे जताता जैसे नवेली ने कोई अपराध कर दिया हो.

नवेली को लगता, जैसे उस ने कुछ गलत कर दिया हो और फिर नवेली ने ही माफी मांगी. मोहित ने कुछ नहीं

कहा. बस उस रात फिर से बिना प्रोटेक्शन के ही

सैक्स किया. नवेली बस अपने शरीर को प्यार के नाम पर कुरबान करती रही.

नवेली अपना प्यार साबित करने के लिए सब करती, मगर मोहित और अधिक की दरकार करता. नवेली

अपने प्यार की दीवार से एक ईंट निकाल कर

मोहित के प्यार की दीवार को पूरा करती रही, मगर अंदर से वो खोखला होती चली गई थी.

मोहित का प्यार सीलन की तरह उस के अंदर पनप रहा था और उस के पूरे वजूद को फफूंदी की तरह गला रहा था. जैसे फफूंदी सड़ेगले पदार्थों से अपना पोषण लेती है, वैसा ही कार्य मोहित का प्यार नवेली के लिए कर रहा था.

आज मोहित ने बाहर घूमने का प्रोग्राम बनाया था. नवेली जैसे ही तैयार हो कर बाहर आई, तो मोहित ने चिल्ला कर कहा, “ये टौप अभी के अभी बदल कर आओ. मैं नहीं चाहता कि लोग तुम्हारे जिस्म को देखें.”

मोहित का दोस्त अंकित और उस की पत्नी अनुकृति भी वहीं थे. मोहित ने इस बात का भी लिहाज नहीं किया.

आंखों में आंसू भरे हुए नवेली सूट पहन कर बाहर आई, तो मोहित फिर से बोला, “ये मुंह पर 12 क्यों बजा रखे हैं?”

ना जाने क्यों औरतों को सब को रिझाने में क्या मजा आता है?

रात में भी मोहित नवेली को कुछकुछ सुनाता रहा था, “तुम्हारी गलती नहीं है. तुम तो अच्छी लड़की हो, मगर तुम्हारे परिवार के संस्कार कुछ अलग हैं.”

नवेली मोहित के प्यार में ऐसी अंधभक्त हो चुकी थी कि उसे सही और गलत के बीच का फर्क ही समझ नहीं आ रहा था.

आज फिर से नवेली के पेट मे बहुत दर्द हो रहा था. डाक्टर ने आज उसे बहुत डांटा. पढ़ीलिखी हो कर भी तुम्हें क्यों समझ नहीं आ रहा है? तुम्हारा एरिया सेंसिटिव है. बारबार इंफेक्शन होना सही संकेत नहीं है.

रात में जब मोहित ने यह बात सुनी, तो उस ने फिर से अबोला कर लिया. सुबह नवेली की आंखें थोड़ी देर से खुली, तो मोहित बिना नाश्ता करे ही दफ्तर चला गया.

रात में नवेली ने बिरयानी और्डर कर दी थी, तो मोहित फिर से चिल्लाने लगा, “कैसी पत्नी हो? पति सुबह से भूखा अब घर आया है. और तुम ने बाहर से खाना मंगवा लिया. तुम्हें तो इतना भी नहीं पता कि मुझे चावल पसंद नहीं हैं.

“मगर, तुम्हारे घर में तो ऐसा ही चलता है.”

मोहित ने बेहद मानमनोव्वल के बाद भी खाना नहीं खाया था. नवेली भी उस रात भूखी ही सो गई थी.

सुबह उठ कर नवेली ने मोहित की पसंद के पोहे और हलवा बनाया. मोहित ने नवेली को खुशी से चूम लिया.

मोहित ने अच्छे से नाश्ता किया और गुनगुनाते हुए काम पर चला गया. एक बार भी मोहित ने ये नहीं पूछा कि नवेली ने नाश्ता किया है या नहीं.

रात में जब नवेली ने ये बात मोहित से कही, तो मोहित बोला, “तुम तो क्लेश करती रहती हो. अरे, तुम्हारा घर

है. मैं कौन होता हूं पूछने वाला?

“तुम्हें क्या समझ में आएगा, तुम्हारी परवरिश ही ऐसी हुई है.”

नवेली से रहा नहीं गया और बोल उठी, “तुम्हारी परवरिश  कैसी हुई है? बातबात पर दूसरों को नीचे दिखाना, बस अपने बारे में सोचना.”

मोहित ये सुनते ही आगबबूला हो उठा और गुस्से में तकिए को पटकने लगा. नवेली को ऐसा प्रतीत हो रहा था कि मोहित तकिए को नहीं उसे पटक रहा है.

नवेली रातभर सोचती रही, क्या सब शादियों में ऐसा ही होता है? क्या उस के परिवार में ही कुछ अलग तरीका है, जैसे मोहित कहता है. क्या वाकई में उस की मम्मी पापा की

कद्र नहीं करती हैं? क्या उस के परिवार में प्यार की परिभाषा ही गलत है? क्या प्यार में सांस लेने की भी जगह नहीं होती है?

नवेली बारबार अतीत में झांकने लगी, क्या हर बात पर पापा का मम्मी से सलाह लेना उन का दब्बूपन

दर्शाता है या उन का प्यार दर्शाता है? मम्मी को या उसे कभी भी किसी बात पर ना टोकना, क्या दर्शाता है? उन्हें बस सलाह दे कर फैसला उन पर छोड़ देना, इन सारी बातों में क्या मम्मीपापा के बीच प्यार की मजबूती नहीं झलकती है, जो उन के प्यार को सीमेंट की तरह मजबूत करता है?

क्यों मोहित का प्यार बस लेना जानता है? मोहित का प्यार तभी तक नवेली के लिए बरकरार रहता है, जब

तक नवेली मोहित के अनुसार काम करती है. जैसे ही नवेली थोड़ा सा इधरउधर होती है, मोहित नवेली को उस की गलत परवरिश और उस के स्वार्थी होने की दुहाई देना आरंभ कर देता है.

काफी सोचसमझ कर नवेली ने खुद को इस सीलन भरे प्यार से छुटकारा लेने का फैसला ले लिया था. नवेली ने अपनी मम्मी को फोन किया, “मम्मी, मैं घर आ रही हूं.”

राशि को नवेली की आवाज से समझ आ गया था कि नवेली खुश नहीं है. राशि ने बस इतना कहा, “तुम्हारा ही

घर है. जब मरजी तब आ जाओ.”

नवेली ने पैकिंग आरंभ कर दी थी. मोहित जब शाम को घर आया, तो नवेली को सामान बांधते देख कर

बोला, “तुम्हारे मम्मीपापा से मुझे ये ही उम्मीद थी. अपनी मरजी से जा रही हो और अपनी मरजी से ही आना.”

नवेली आंखों में आंसू भरते हुए बोली, “क्या तुम्हें मेरा दर्द समझ नहीं आता है? हां, मैं ने तुम्हें अपना समझ कर कुछ बातें बताई थीं, मगर इस का ये मतलब नहीं है कि तुम उन बातों को पकड़ कर मुझे रातदिन जलील करते रहो.”

मोहित जोरजोर से रोने लगा, “अरे नवी, यह क्यों नहीं बोलती कि तुम्हें आजादी पसंद है. तुम्हारा मन भर गया है मेरे प्यार से. तुम्हें तो डालडाल पर फुदकने की आदत पड़ गई है.”

नवेली ने चिल्लाते हुए कहा, “चुप. अब बस एक शब्द और नहीं. तुम्हारे इस सीलन भरे प्यार से मैं अपने वजूद को फफूंदी नहीं बनने दूंगी. मैं तुम्हारे इस खोखले इश्क के ताजमहल को हमेशाहमेशा के लिए छोड़ कर जा रही हूं.”

बाहर अचानक से बादलों को चीरते हुए तेज सूरज की किरणें जगमगा रही थीं. ये किरणें शायद कुछ सालों

तक नवेली के वजूद को तपा जरूर सकती हैं, मगर इस सीलन से छुटकारा अवश्य दिलाएंगी.

सीलन- भाग 3: दकियानूसी सोच से छटपटाती नवेली

मोहित ने गिफ्ट लिया और कहा कि मैं ने तो तुम्हारे लिए कुछ नहीं लिया है. मुझे ये चोंचलेबाजी पसंद नहीं है.

नवेली कुछ नहीं बोली. मगर उस रात मोहित ने नवेली को जी भर कर प्यार किया. नवेली का तनमन प्यार से भीग गया था.

अगली सुबह मोहित नवेली को बांहों में भरते हुए बोला, “ये गिफ्ट तो वो मर्द देते हैं, जो दब्बू होते हैं. मैं तो तुम्हें अपने बच्चों का तोहफा दूंगा, वह भी एक नहीं पूरे तीन. घर भराभरा सा लगना चाहिए.”

नवेली इस से पहले कुछ बोलती, मोहित ने उस के होंठों पर उंगली रखते हुए कहा, “परिवार के निर्णय मैं लूंगा, तुम क्यों दिमाग पर जोर देती हो. तुम बस घर का और अपना ध्यान रखो.”

नवेली को मोहित का ये रवैया पसंद भी था और नापसंद भी.

बचपन से नवेली ने अपने पापा को मम्मी से हर छोटीबड़ी बात पर दबते देखा था, इसलिए उसे मोहित का ये रूखापन ना जाने क्यों आकर्षित करता था. नवेली को लगता था कि अब उस की जिंदगी मोहित के प्यार के साए में महफूज है.

शाम को नवेली के मम्मीपापा का फोन आया था. नवेली की मम्मी राशि बोली, “बेटा, हनीमून के लिए कहां जा रहे हो?”

नवेली बोली, “मम्मी, मोहित ने अभी निर्णय नहीं लिया है.”

राशि बोली, “तुम्हारी कोई इच्छा नही है?”

नवेली बोली, “अरे मम्मी, मैं तो बड़े आराम से हूं. मैं आप के और पापा द्वारा दिए गए स्पेस से बहुत बोर हो गई हूं.”

राशि ने बिना कुछ बोले फोन रख दिया था.

अगले दिन मोहित ने नवेली से कहा, “नवेली, मुझे बिजनैस के सिलसिले में जरूरी काम से दुबई जाना होगा.”

नवेली बोली, “मैं भी साथ चलूंगी ना.”

मोहित कुछ सोचता हुआ बोला, “अरे, अगर तुम चलोगी, तो परिवार के साथ समय कैसे बिताओगी?मौसी, मामी, बूआ, नानी सब यहीं हैं, ऐसे में तुम्हें साथ ले कर जाना ठीक रहेगा क्या?”

नवेली बेचैन होते हुए बोली, “हम बिजनैस ट्रिप और हनीमून एकसाथ नहीं कर सकते क्या?”

मोहित बोला, “तुम को और मुझे हमेशा एकसाथ ही रहना है, फिर इतनी बेचैनी क्यों?

“यहां रुको और सब से रिश्ते बनाओ, ताकि तुम इस परिवार का हिस्सा बन पाओ.

“तुम्हारी मम्मी की तरह नहीं बस मैं और मेरे हस्बैंड.”

नवेली के चेहरे का रंग उतर गया. वह धीमे से बोली, “तुम हर बात पर मेरे मम्मीपापा को बीच में क्यों लाते हो?”

मोहित प्यार से बोला, “क्योंकि, मैं नहीं चाहता कि तुम किसी भी टेस्ट में फेल हो जाओ. मैं तुम्हें एक सफल पत्नी और बहू के रूप में देखना चाहता हूं. यह एक पति के रूप में मेरी जिम्मेदारी भी है. तुम्हें क्या पता होगा, क्योंकि तुम्हारे घर से तो रिश्तों से अधिक दोस्ती को महत्व दिया जाता है.”

उस रात नवेली ने मोहित के सामान की पैकिंग कर दी. ढेर सारी हिदायतें दे कर मोहित चला गया था.

दिनभर नवेली महिलाओं में घिरी रहती, पर रात होते ही उसे मोहित की याद आ जाती थी. मोहित रात में एक बार ही फोन करता था, जहां वो सब से बात करने के पश्चात ही उस से 2-3 मिनट बात कर के फोन रख देता था.

नवेली के कुछ बोलने से पहले ही वह बोल देता, ऐसे ही रोमांस बरकरार रहेगा.

सारी बातें अभी कर लोगी, तो बाद में क्या करोगी?

नवेली कुछ बोल नहीं पाती थी, मगर उसे मोहित की बात समझ नहीं आती थी.

मोहित चार दिन की बोल कर गया था, मगर एक हफ्ता हो गया था.

नवेली जब भी पूछती, एक ही उत्तर आता कि परिवार के साथ समय बिताओ, पूरे 22 साल अकेली रही हो.

नवेली के सासससुर और बाकी परिवार उस के साथ ठीकठाक ही थे, मगर नवेली के सारे शौक मन ही मन में रह गए थे.

कितने शान से वह सभी सहेलियों से कहती थी कि हनीमून के लिए तो यूरोप ट्रिप ही प्लान करेंगे. पर, यहां वह शादी के 5 दिन बाद से ही अकेली रह रही है.

नवेली को आज पहली बार रसोई में कुछ बनाना था. नवेली को तो बस थोड़ाबहुत ही कुछ बनाना आता था. सास ने कहा, “नवी, हलवा बना दो.”

नवेली ने कोशिश की, मगर हलवे में ना मीठा ठीक था और ना ही वो ठीक से भुना हुआ था.

सास ने कड़वा सा मुंह

बनाते हुए कहा, “अरे, कम से कम हलवा तो सीख लेती.”

शिप्रा मुसकराते हुए बोली, “भाभी, आप तो मुझ से भी कम जानती हो.”

नवेली बोली, “हमारे घर में कुक हैं ना.”

तभी सास बोली, “हमारे घर में खाना घर की लक्ष्मी ही बनाती है.”

नवेली बोली, “मैं धीरेधीरे सीख लूंगी.”

रात में नवेली की मम्मी राशि का फोन आया और वह शिकायत करते हुए बोली, “तुम अपनी फ्रैंड्स को फोन क्यों नहीं करती हो?”

“बेटा, शादी का मतलब ये नहीं कि तुम पुराने रिश्ते तोड़ दो.”

नवेली झुंझलाते हुए बोली, “मम्मी, नई जगह रिश्ते बनाने में थोड़ा समय तो लगता है.”

नवेली फोन रखते हुए सोच रही थी कि उस की मम्मी परिवार के लिए कभी कुछ नहीं करती हैं. उन्हें तो हमेशा अपने दोस्त, अपनी जिंदगी प्यारी लगती है.

आज अगर नवेली अपने नए परिवार के लिए कुछ करना चाहती है, तो उन्हें इस में भी दिक्कत है.

रात को नवेली ने सब के लिए खाना बनाया. मोहित को कल आना था. नवेली सोच रही थी कि क्या मोहित भी उसे मिस करता होगा.

देर रात मोहित आया और आते ही पहले अपने मम्मीपापा के कमरे में चला गया. नवेली प्रतीक्षा करती रही और जब मोहित कमरे में आया तो सो गया.

पूरी रात नवेली तकिए को आंसुओं से भिगोती रही थी.

सुबह जब वह सो कर उठी, तो सूरज सिर पर आ गया था. मोहित बिस्तर पर नहीं था. नीचे देखा तो मोहित अपनी मम्मी के साथ चाय पी रहा था.

मोहित नवेली को देख कर बोला, “तुम्हारे होते हुए मम्मी को काम करना पड़े, ये ठीक नहीं है.”

नवेली बिना कुछ बोले नहाने चली गई. उसे समझ नहीं आ रहा था कि मोहित क्यों उसे प्यार के लिए तरसा रहा है?

दोपहर खाने के बाद मोहित ने अपनी जिस्म की भूख भी मिटाई और फिर सो गया. रात को भी वही प्रक्रिया दोहराई गई. जब नवेली कुछ बोलती, तो मोहित कहता, “अरे, तुम्हारे साथ तो हमेशा रहूंगा, मगर

परिवार के साथ भी तो समय बिताना जरूरी है. जिस प्यार में परिवार नहीं होता, वो सीलन की तरह पूरी जिंदगी को खोखला कर देता है.

“परिवार का प्यार ही तो सीमेंट की तरह हर रिश्ते को मजबूती देता है.”

एक हफ्ते बाद नवेली को मोहित के साथ दुबई जाना था. वह बेहद खुश थी. जब नवेली पैकिंग कर रही थी, तो मोहित बोला, “ये शॉर्ट्स, क्रौप टौप सब घर पर ही पहनना. मैं नहीं चाहता कि तुम्हारे शरीर पर किसी और की नजर पड़े.”

नवेली ऐसी बातें सुन कर रोमांचित हो उठती थी. कितना प्यार करता है मोहित उस को.

सीलन- भाग 2: दकियानूसी सोच से छटपटाती नवेली

मोहित लड़कियों की पवित्रता को ले कर बहुत बातें करता था. नवेली को

लगता कि वह मोहित से धोखा कर रही है. नवेली ने अपने फोन नंबर को बदल लिया और अपने सारे सोशल मीडिया एकाउंट्स डिलीट कर दिए थे.

मोहित का प्यार धीरेधीरे नवेली के अंदर सीलन की तरह पनप रहा था. नवेली ने अपने सारे छोटे कपड़े इधरउधर बांट दिए थे. नवेली को लगने लगा था कि मोहित के प्यार में इतना तो वो कर सकती है.

मोहित अकसर फोन पर  नवेली को बताता था कि कैसे वो उस के लिए रातदिन मेहनत कर रहा है, ताकि वो लोग यूरोप के लिए हनीमून जा पाएं. तुम्हें मैं जमीन पर पैर नहीं रखने दूंगा, पर बस मेरे घर और दिल की रानी बन कर रहना.

नवेली मोहित की ऐसी बात सुन कर रोमांचित हो उठती थी. उस की जिंदगी में कभी ऐसा कोई नहीं आया था, जो उस पर इतनी रोकटोक करे.

नवेली ने एक बार फोन पर कह भी दिया था, “मोहित, तुम्हारे जितनी रोकटोक तो मेरे अपने पापा ने भी नहीं की है.”

मोहित बोला, “मैं तुम्हें बेहद प्यार करता हूं, इसलिए किसी और के साथ बांट नहीं सकता हूं.”

नवेली को मोहित का व्यवहार रोमांचित भी करता, पर साथ ही साथ डराता भी था.

नवेली एक अजीब सी दुविधा में फंस गई थी. मोहित अच्छा कमाता था, देखने में बेहद अच्छा था. बस, उस के विचार कुछ अलग थे. नवेली को समझ नहीं आ रहा था कि वह अपने अंदर की दुविधा किसे समझाए.

मोहित कभी भी विवाह से पहले नवेली से मिलने नहीं आया था. मोहित के शब्दों में अगर पास रहना है, तो थोड़ी दूरी भी जरूरी है. अगर सबकुछ जान जाओगी, तो शादी का मजा चला जाएगा.

मोहित की इन्हीं बातों ने नवेली को एक सूत्र में बांध रखा था. नवेली को यह तो समझ आ गया था कि इस रिश्ते का गणित और रिश्तों से कुछ अलग ही होगा.

नवेली कभीकभी सोचती, ‘क्या वह इस सवाल को सुलझा पाएगी?’

विवाह धूमधाम से संपन्न हो गया था, मगर नवेली को वह लाड़दुलार नहीं मिला, जिस की वह प्रतीक्षा कर रही थी.

फेरों के समय मोहित ने वधू पक्ष के देवताओं की पूजा करने को मना कर दिया था. दोनों परिवार में इस बात को ले कर थोड़ी कहासुनी हो गई थी.

विदाई के बाद जब नवेली ससुराल पहुंची, तो उसे एक कमरे में बैठा दिया था. उस ने तो सुना था कि ससुराल में नईनवेली दुलहन को एक मिनट के लिए भी अकेला नहीं छोड़ते हैं. करीब आधे घंटे बाद नवेली की सास कमरे में आईं और उस के बराबर में आ कर बैठ गईं. उस के कड़े को देख कर

बोलीं, “पापा के पैसों से सोने के कड़े लिए हैं और मोहित के पैसे होते तो हीरे के खरीदती. मेरा मोहित थोड़ा स्वभाव का सख्त है, मगर दिल से मोम है.

“बारबार उसे मैसेज मत करो. जब तक हमारी कुलदेवी की पूजा नहीं होगी, वह तुम्हारे पास नहीं आएगा.”

फिर तेज कदमों से नवेली की सास कमरे से चली गईं.

नवेली का मुंह अपमान से लाल हो गया था. क्या मोहित अपनी हर बात अपनी मां के साथ शेयर करता है?

तभी मोहित की मौसी आई और खाने की थाली रखते हुए रूखे स्वर में बोली, “खाने के बाद ये लहंगा उठाकर रख देना. इतना महंगा लहंगा है. हर साल करवाचौथ पर पहन लेना.” फिर वह भी दन से चली गई.

नवेली को समझ नहीं आ रहा था कि ये कौन सा तरीका है नई बहू के स्वागत करने का. हर कोई क्यों उसे सुना रहा है? और मोहित, जिस के साथ उस ने सात फेरे लिए हैं, वह कहां छिप कर बैठ गया है?

न मोहित की बहन शिप्रा नवेली के पास आई और न ही मोहित. नवेली के पास मम्मीपापा का फोन आया था, पर वह क्या बोलती. ये शादी की जिद भी उस की अपनी ही थी. मोहित पर नवेली इतनी अधिक मोहित हो गई थी कि नवेली ने झटपट शादी का निर्णय ले लिया था.

हालांकि नवेली की मम्मी ने कहा भी था कि नवी, ये कोई शादी की उम्र नहीं है.

मगर वह अपनी जिद पर अड़ गई थी. मेरे पास कोई कंपैनियन नहीं है. मुझे एक नई फैमिली चाहिए.

नवेली एक पब्लिशिंग हाउस में काम कर रही थी. आगे पढ़ने की उस की कोई इच्छा नहीं थी. इन्हीं सब बातों को मद्देनजर रखते हुए नवेली का प्रोफाइल भिन्नभिन्न मैरिज की साइट्स पर डाल दिया गया था. इस तरह से नवेली को यह परिवार मिला था.

आज कंगना खुलने की रस्म थी. नवेली ने सी ग्रीन रंग की साड़ी पहनी थी. मोहित ने बड़े अनमने ढंग से कंगना खेला और फिर उठ कर चला गया.

रात में जब मोहित नवेली के पास आया, तो नवेली शिकायती लहजे में बोली, “कल से तो तुम ने मुझे इग्नोर कर दिया है. शादी होते ही बदल गए हो.”

मोहित गुस्से में बोला, “शादी हो गई है ना. अब पूरी उम्र साथ ही रहना है ना.”

यह सुन कर नवेली एकाएक हक्कीबक्की रह गई थी. तभी मोहित रंग बदलते हुए बोला, “नवेली, तुम ही तो बोलती थी कि तुम्हें अपने पापा जैसा पप्पी हसबैंड नहीं चाहिए.”

नवेली इस बात का कुछ जवाब नहीं दे पाई थी.

एक बार कुछ अंतरंग पलों में नवेली ने मोहित को अपने पापा के दब्बूपन और मम्मी के दबंग व्यक्तिव के

बारे में जिक्र किया था, पर उस ने कभी नहीं सोचा था कि मोहित इस बात को उस के खिलाफ ऐसे इस्तेमाल करेगा.

मधुयामिनी में भी मोहित अपने मन की करता रहा, जैसे ही नवेली ने अपनी इच्छा जताई, तो मोहित उस के जिस्म को रौंदते हुए बोला, “पहले कितनी बार ये अनुभव कर चुकी हो?”

ऐसा सुनते ही नवेली सकपका गई थी. एकाएक उस का जिस्म ठंडा पड़ गया.

“यार, तुम तो बर्फ हो एकदम, मर्द भी तो तभी सुख दे सकता है, जब औरत में दम हो,” फिर मुसकराते हुए मोहित बोला, “नवी,, तुम्हारे पापा की तरह मैं दब्बू नहीं हूं.”

सुबह मुंहदिखाई की रस्म थी. कोई नवेली के बालों की तारीफ करता, तो कोई उस की आंखों की.

अभी नवेली इन तारीफों को पचा ही रही थी कि नवेली की सास हंसते हुए बोलीं, “अरे, मोहित की दादी तो

बोल रही हैं कि नवेली की नाक मोटी है.”

नवेली भीड़ में कट कर रह गई थी.

रात को नवेली को उम्मीद थी कि शायद मोहित उसे कोई गिफ्ट देगा. वह खुद भी उस के लिए एक महंगी घड़ी लाई थी.

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पोलपट्टी: क्या हुआ था गौरी के साथ

आज अस्पताल में भरती नमन से मिलने जब भैयाभाभी आए तो अश्रुधारा ने तीनों की आंखों में चुपके से रास्ता बना लिया. कोई कुछ बोल नहीं रहा था. बस, सभी धीरे से अपनी आंखों के पोर पोंछते जा रहे थे. तभी नमन की पत्नी गौरी आ गई. सामने जेठजेठानी को अचानक खड़ा देख वह हैरान रह गई. झुक कर नमस्ते किया और बैठने का इशारा किया. फिर खुद को संभालते हुए पूछा, ‘‘आप कब आए? किस ने बताया कि ये…’’

‘‘तुम नहीं बताओगे तो क्या खून के रिश्ते खत्म हो जाएंगे?’’ जेठानी मिताली ने शिकायती सुर में कहा, ‘‘कब से तबीयत खराब है नमन भैया की?’’

‘‘क्या बताऊं, भाभी, ये तो कुछ महीनों से… इन्हें जो भी परहेज बताओ, ये किसी की सुनते ही नहीं,’’ कहते हुए गौरी की आंखें भीग गईं. इतने महीनों का दर्द उमड़ने लगा. देवरानीजेठानी कुछ देर साथ बैठ कर रो लीं. फिर गौरी के आंसू पोंछते हुए मिताली बोली, ‘‘अब हम आ गए हैं न, कोई बदपरहेजी नहीं करने देंगे भैया को. तुम बिलकुल चिंता मत करो. अभी कोई उम्र है अस्पताल में भरती होने की.’’

मिताली और रोहन की जिद पर नमन को अस्पताल से छुट्टी मिलने पर उन्हीं के घर ले जाया गया. बीमारी के कारण नमन ने दफ्तर से लंबी छुट्टी ले रखी थी. हिचकिचाहटभरे कदमों में नमनगौरी ने भैयाभाभी के घर में प्रवेश किया. जब से वे दोनों इस घर से अलग हुए थे, तब से आज पहली बार आए थे. मिताली ने उन के लिए कमरा तैयार कर रखा था. उस में जरूरत की सभी वस्तुओं का इंतजाम पहले से ही था.

‘‘आराम से बैठो,’’ कहते हुए मिताली उन्हें कमरे में छोड़ कर रसोई में चली गई.

रात का खाना सब ने एकसाथ खाया. सभी चुप थे. रिश्तों में लंबा गैप आ जाए तो कोई विषय ही नहीं मिलता बात करने को. खाने के बाद डाक्टर के अनुसार नमन को दवाइयां देने के बाद गौरी कुछ पल बालकनी में खड़ी हो गई. यह वही कमरा था जहां वह ब्याह कर आई थी. इसी कमरे के परदे की रौड पर उस ने अपने कलीरे टांगी थीं. नवविवाहिता गौरी इसी कमरे की डै्रसिंगटेबल के शीशे पर बिंदियों से अपना और नमन का नाम सजाती थी.

मिताली ने उस का पूरे प्यारमनुहार से अपने घर में स्वागत किया था. शुरू में वह उस से कोई काम नहीं करवाती, ‘यही दिन हैं, मौज करो,’ कहती रहती. शादीशुदा जीवन का आनंद गौरी को इसी घर में मिला. जब से अलग हुए, तब से नमन की तबीयत खराब रहने लगी. और आज हालत इतनी बिगड़ चुकी है कि नमन ठीक से चलफिर भी नहीं पाता है. यह सब सोचते हुए गौरी की आंखों से फिर एक धारा बह निकली. तभी कमरे के दरवाजे पर दस्तक हुई.

दरवाजे पर मिताली थी, ‘‘लो, दूध पी लो. तुम्हें सोने से पहले दूध पीने की आदत है न.’’

‘‘आप को याद है, भाभी?’’

‘‘मुझे सब याद है, गौरी,’’ मिताली की आंखों में एक शिकायत उभरी जिसे उस ने जल्दी से काबू कर लिया. आखिर गौरी कई वर्षों बाद इस घर में लौटी थी और उस की मेहमान थी. वह कतई उसे शर्मिंदा नहीं करना चाहती थी.

अगले दिन से रोहन दफ्तर जाने लगे और मिताली घर संभालने लगी. गौरी अकसर नमन की देखरेख में लगी रहती. कुछ ही दिनों में नमन की हालत में आश्चर्यजनक सुधार होने लगा. शुरू से ही नमन इसी घर में रहा था. शादी के बाद दुखद कारणों से उसे अलग होना पड़ा था और इस का सीधा असर उस की सेहत पर पड़ने लगा था. अब फिर इसी घर में लौट कर वह खुश रहने लगा था. जब हम प्रसन्नचित्त रहते हैं तो बीमारी भी हम से दूर ही रहती है.

‘‘प्रणाम करती हूं बूआजी, कैसी हैं आप? कई दिनों में याद किया अब की बार कैसी रही आप की यात्रा?’’ मिताली फोन पर रोहन की बूआ से बात कर रही थी. बूआजी इस घर की सब से बड़ी थीं. उन का आनाजाना अकसर लगा रहता था. तभी गौरी का वहां आना हुआ और उस ने मिताली से कुछ पूछा.

‘‘पीछे यह गौरी की आवाज है न?’’ गौरी की आवाज बूआजी ने सुन ली.

‘‘जी, बूआजी, वह नमन की तबीयत ठीक नहीं है, तो यहां ले आए हैं.’’

‘‘मिताली बेटा, ऐसा काम तू ही कर सकती है, तेरा ही दिल इतना बड़ा हो सकता है. मुझे तो अब भी गौरी की बात याद आती है तो दिल मुंह को आने लगता है. छी, मैं तुझ से बस इतना ही कहूंगी कि थोड़ा सावधान रहना,’’ बूआजी की बात सुन मिताली ने हामी भरी. उन की बात सुन कर पुरानी कड़वी बातें याद आते ही मिताली का मुंह कसैला हो गया. वह अपने कक्ष में चली गई और दरवाजा भिड़ा कर, आंखें मूंदे आरामकुरसी पर झूलने लगी.

गौरी को भी पता था कि बूआजी का फोन आया है. उस ने मिताली के चेहरे की उड़ती रंगत को भांप लिया था. वह पीछेपीछे मिताली के कमरे तक गई.

‘‘अंदर आ जाऊं, भाभी?’’ कमरे का दरवाजा खटखटाते हुए गौरी ने पूछा.

‘‘हां,’’ संक्षिप्त सा उत्तर दिया मिताली ने. उस का मन अब भी पुराने गलियारों के अंधेरे कोनों से टकरा रहा था. जब कोई हमारा मन दुखाता है तो वह पीड़ा समय बीतने के साथ भी नहीं जाती. जब भी मन बीते दिन याद करता है, तो वही पीड़ा उतनी ही तीव्रता से सिर उठाती है.

‘‘भाभी, आज हम यहां हैं तो क्यों न अपने दिलों से बीते दिनों का मलाल साफ कर लें?’’ हिम्मत कर गौरी ने कह डाला. वह इस मौके को गंवाना नहीं चाहती थी.

‘‘जो बीत गई, सो बात गई. छोड़ो उन बातों को, गौरी,’’ पर शायद मिताली गिलेशिकवे दूर करने के पक्ष में नहीं थी. अपनी धारणा पर वह अडिग थी.

‘‘भाभी, प्लीज, बहुत हिम्मत कर आज मैं ने यह बात छेड़ी है. मुझे नहीं पता आप तक मेरी क्या बात, किस रूप में पहुंचाई गई. पर जो मैं ने आप के बारे में सुना, वह तो सुन लीजिए. आखिर हम एक ही परिवार की डोर से बंधे हैं. यदि हम एकदूसरे के हैं, तो इस संसार में कोईर् हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता. किंतु यदि हमारे रिश्ते में दरार रही तो इस से केवल दूसरों को फायदा होगा.’’

‘‘भाभी, मेरी डोली इसी घर में उतरी थी. सारे रिश्तेदार यहीं थे. शादी के तुरंत बाद से ही जब कभी मैं अकेली होती. बूआजी मुझे इशारों में सावधान करतीं कि मैं अपने पति का ध्यान रखूं. उन के पूरे काम करूं, और उन की आप पर निर्भरता कम करूं. आप समझ रही हैं न? मतलब, बूआजी का कहना था कि नमन को आप ने अपने मोहपाश में जकड़ रखा है ताकि… समझ रही हैं न आप मेरी बात?’’

गौरी के मुंह से अपने लिए चरित्रसंबंधी लांछन सुन मिताली की आंखें फटी रह गईं, ‘‘यह क्या कह रही हो तुम? बूआजी ऐसा नहीं कह सकतीं मेरे बारे में.’’

‘‘भाभी, हम चारों साथ होंगे तो हमारा परिवार पूरी रिश्तेदारी में अव्वल नंबर होगा, यह बात किसी से छिपी नहीं है. शादी के तुरंत बाद मैं इस परिवार के बारे में कुछ नहीं जानती थी. जब बूआजी जैसी बुजुर्ग महिला के मुंह से मैं ने ऐसी बातें सुनीं, तो मैं उन पर विश्वास करती चली गई. और इसीलिए मैं ने आप की तरफ शुष्क व्यवहार करना आरंभ कर दिया.

‘‘परंतु मेरी आंखें तब खुलीं जब चाचीजी की बेटी रानू दीदी की शादी में चाचीजी ने मुझे बताया कि इन बातों के पीछे बूआजी की मंशा क्या थी. बूआजी चाहती हैं कि जैसे पहले उनका इस घर में आनाजाना बना हुआ था जिस में आप छोटी बहू थीं और उन का एकाधिकार था, वैसे ही मेरी शादी के बाद भी रहे. यदि आप जेठानी की भूमिका अपना लेतीं तो आप में बड़प्पन की भावना घर करने लगती और यदि हमारा रिश्ता मजबूत होता तो हम एकदूसरे की पूरक बन जातीं. ऐसे में बूआजी की भूमिका धुंधली पड़ सकती थी. बूआजी ने मुझे इतना बरगलाया कि मैं ने नमन पर इस घर से अलग होने के लिए बेहद जोर डाला जिस के कारण वे बीमार रहने लगे. आज उन की यह स्थिति मेरे क्लेश का परिणाम है,’’ गौरी की आंखें पश्चात्ताप के आंसुओं से नम थीं.

गौरी की बातें सुन मिताली को नेपथ्य में बूआजी द्वारा कही बातें याद आ रही थीं, ‘क्या हो गया है आजकल की लड़कियों को. सोने जैसी जेठानी को छोड़ गौरी को अकेले गृहस्थी बसाने का शौक चर्राया है, तो जाने दे उसे. जब अकेले सारी गृहस्थी का बोझा पड़ेगा सिर पे, तो अक्ल ठिकाने आ जाएगी. चार दिन ठोकर खाएगी, तो खुद आएगी तुझ से माफी मांगने. इस वक्त जाने दे उसे. और सुन, तू बड़ी है, तो अपना बड़प्पन भी रखना, कोई जरूरत नहीं है गौरी से उस के अलग होने की वजह पूछने की.’

‘‘भाभी, मुझे माफ कर दीजिए, मेरी गलती थी कि मैं ने बूआजी की कही बातों पर विश्वास कर लिया और तब आप को कुछ भी नहीं बताया.’’

‘‘नहीं, गौरी, गलती मेरी भी थी. मैं भी तो बूआजी की बातों पर उतना ही भरोसा कर बैठी. पर अब मैं तुम्हारा धन्यवाद करना चाहती हूं कि तुम ने आगे बढ़ कर इस गलतफहमी को दूर करने की पहल की,’’ यह कहते हुए मिताली ने अपनी बांहें खोल दीं और गौरी को आलिंगनबद्ध करते हुए सारी गलतफहमी समाप्त कर दी.

कुछ देर बाद मिताली के गले लगी गौरी बुदबुदाई, ‘‘भाभी, जी करता है कि बूआजी के मुंह पर बताऊं कि उन की पोलपट्टी खुल चुकी है. पर कैसे? घर की बड़ीबूढ़ी महिला को आईना दिखाएं तो कैसे, हमारे संस्कार आड़े आ जाते हैं.’’

‘‘तुम ठीक कहती हो, गौरी. परंतु बूआजी को सचाई ज्ञात कराने से भी महत्त्वपूर्ण एक और बात है. वह यह है कि हम आइंदा कभी भी गलतफहमियों का शिकार बन अपने अनमोल रिश्तों का मोल न भुला बैठें.’’

देवरानीजेठानी का आपसी सौहार्द न केवल उस घर की नींव ठोस कर रहा था बल्कि उस परिवार के लिए सुख व प्रगति की राह प्रशस्त भी कर रहा था.

सीलन- भाग 1: दकियानूसी सोच से छटपटाती नवेली

नवेली ने जैसे ही फोन नीचे रखा, उस का दिल धकधक कर रहा था. मोहित की हर बात उसे दूसरी दुनिया की तरफ खींच रही थी. नवेली को विश्वास नहीं हो रहा था कि मोहित जैसा हैंडसम और इतना अच्छा लड़का उस के लिए दीवाना हो सकता है.

नवेली खुशी में गुनगुना रही थी कि तभी उस के पापा अनिल बोले, “नवी, क्या बात हुई?”

नवेली इतराते हुए बोली,  “कुछ खास नहीं. बस यों ही.”

तभी नवेली की मम्मी राशि बोली, “अरे नवी, अपनी आदत के अनुसार अपना तन, मन और धन मत न्यौछावर कर देना. थोड़ा सोचसमझ कर फैसला लेना.”

नवेली झुंझलाते हुए बोली, “मम्मी, मोहित से आप की पसंद से ही शादी कर रही हूं. अब भी दिक्कत है?”

राशि साड़ी का पल्ला ठीक करते हुए बोली, “नवी, तुम्हें कोई दिक्कत ना हो, इसलिए बोलती हूं.”

नवेली 22 वर्ष की सुंदर युवती थी. अपने मातापिता की वह इकलौती बेटी है. नवेली के मम्मीपापा बहुत ही लिबरल विचारों के हैं. उन्होंने अपनी बेटी पर कभी कोई रोकाटोकी नहीं की थी. नवेली के मम्मीपापा

अपनी अपनी दुनिया में व्यस्त थे. नवेली के छोटे कपड़ों पर उन्हें कोई दिक्कत नहीं थी और ना ही उन्हें नवेली के बोयफ्रैंड्स पर कोई एतराज होता था. नवेली को अपने मम्मीपापा, मम्मीपापा कम फ्रैंड्स ज्यादा लगते थे.

नवेली को अंदर से खालीपन लगता था. नवेली को एक भरापूरा परिवार चाहिए था, पर उस की जिंदगी में थी ढेर सारी फ्रीडम और अकेलापन. एक के बाद एक बोयफ्रैंड्स नवेली की जिंदगी में आते गए, मगर हर लड़के को नवेली के विचार बेहद बचकाने और भावुक लगते थे. उस के सभी बोयफ्रैंड्स नवेली की तरफ आकर्षित थे. मगर प्यार से उन्हें कोई सरोकार न था. आज की युवा पीढ़ी की तरह उन के लिए भी प्यार का मतलब था घूमनाफिरना, पार्टी  और सैक्स करना. हर लड़का कमिटमेंट से दूर भागता था.

नवेली की जिंदगी में सबकुछ था, पर नहीं था तो बस एक ठहराव.

उसी प्यार भरे ठहराव की तलाश में जब नवेली ने 22 वर्ष की उम्र में ही शादी करने की इच्छा जताई, तो

पहले तो राशि और अनिल ने ध्यान ही नहीं दिया था. मगर जब एक रोज नवेली ने खुले शब्दों में अपने मम्मीपापा से यह बात कही, तो अनिल ने शादी की वैबसाइट पर नवेली का प्रोफाइल डाल दिया था. एक हफ्ते में ही नवेली के प्रोफाइल पर 10 से भी अधिक प्रपोजल आ गए थे. हमेशा की तरह फैसला नवेली के हाथों में था.

नवेली सभी प्रोफाइल्स को चेक कर रही थी. कहीं पर हाइट कम थी, तो कहीं पर परिवार ही अधूरा था. तभी नवेली की निगाह एक प्रोफाइल पर रुक गई. खिलता हुआ गोरा रंग, ऊंचा लंबा कद, एथेलेटिक बदन, गहरी काली आंखें और बेहद प्यारी मुसकान. नाम था मोहित और वह दिल्ली में रहता था. एनुअल इनकम 70 लाख रुपए के आसपास थी.

नवेली ने अपने पापा को मोहित के बारे में बताया और फिर दोनों परिवार ने एकदूसरे के बारे में जानकारी एकत्रित कर ली थी.

नवेली के पापा की संपन्नता और नवेली का भोलापन मोहित के परिवार को भा गया था, तो वहीं मोहित की

इनकम, पढ़ाई और उस का भरापूरा परिवार नवेली को पसंद आ गया था.

मोहित के परिवार में उस के मम्मीपापा के अलावा उस की छोटी बहन शिप्रा भी थी. मगर मोहित के सभी

रिश्तेदार आसपास ही रहते थे, पूरा परिवार एक गुलदस्ते की तरह एकसाथ प्यार में बंधा हुआ था.

मोहित की बातों से नवेली को लगता, शायद उस की तलाश खत्म हो गई है. मोहित को सैक्स से अधिक वैल्यूज में इंटरैस्ट था. दोनों की फोन पर घंटों बातें होती थीं.

मोहित का परिवार जुलाई की एक अलसायी हुई दोपहर में नवेली से मिलने आया था. मोहित के पापा नवेली को बेहद सुलझे हुए लगे, तो उस की मम्मी कल्पना भी उसे बेहद ममतामयी लगी.

नवेली ने अपनी मम्मी को कभी अस्तपस्त नहीं देखा था. वह हमेशा टिपटौप रहती थीं, वही हाल उस के पापा अनिल का भी था. अकसर लोग नवेली को उन की बेटी नहीं छोटी बहन मानते थे. इस कारण नवेली को अंदर से बेहद कोफ्त होती थी. उसे मम्मीपापा जैसे दिखने वाले मम्मीपापा चाहिए थे. आज नवेली को लग रहा था कि उस का सपना शायद पूरा हो जाएगा.

नवेली ने बेहद सोचसमझ कर सफेट कुरता और पलाजो पहना था, सफेद जमीन पर लाल और हरे फूल उस कुरते के साथसाथ नवेली को भी ताजगी दे रहे थे. अपने सुनहले घुंघराले बाल उस ने यों ही खुले छोड़ दिए थे. चांदी के झुमके, आंखों में काजल और होंठों पर न्यूड लिपस्टिक सबकुछ बेहद ही मनोरम प्रतीत हो रहा था. वहीं मोहित नीली शर्ट और काली पैंट में बहुत हैंडसम लग रहा था. मोहित ने शायद आज शेव भी नहीं की थी. छोटीछोटी दाढ़ी के बाल नवेली को अपनी तरफ खींच रहे थे.

मोहित नवेली को अपने काम के बारे में बता रहा था. मोहित कह रहा था, “नवेली, मैं चाहता हूं कि तुम रानियों की तरह रहो. पैसा कमा कर लाने की जिम्मेदारी मेरी है और घरपरिवार को मैनेज करना तुम्हारी.”

नवेली आंखें बड़ीबड़ी करते हुए बोली, “तुम्हें क्या हाउसवाइफ चाहिए?”

मोहित शरारत से मुसकराते हुए बोला, “मुझे बस तुम चाहिए. तुम को मैं एक नए सांचे में ढाल लूंगा.

“मेरे विचार थोड़े पिताजी जैसे जरूर हैं, पर तुम्हें बेहद सिक्योर रखूंगा.”

नवेली की आंखों में आश्चर्य था. वह कभी भी मोहित जैसे लड़के से नहीं मिली थी.

मोहित आगे बोला, “मुझे तुम जैसी सभ्य लड़कियां पसंद हैं. मैं उन लड़कियों को नापसंद करता हूं, जो छोटेछोटे कपड़े पहन कर दूसरे लोगों को सैक्सुअली एक्साइट करती हैं.”

नवेली बोली, “मोहित, मैं तो शॉर्ट  पहनती हूं.”

मोहित बोला, “बाद में भी पहनना, मगर बस मेरे लिए.”

नवेली को लगा कि मोहित  उस को ले कर कितना संजीदा है… और लड़कों की तरह नहीं है वो.

नवेली को मोहित कुछ अलग सा लगा, मगर इस से पहले वो कुछ और समझ पाती, उस की और मोहित की मंगनी हो गई थी.

जैसे कि आमतौर पर होता है, मंगनी के बाद दिन सोना और रात चांदी हो जाती है, मगर मोहित आम लड़कों की तरह रातदिन फोन नहीं करता था. जब भी मोहित फोन करता, वो तब नवेली को दूसरी ही दुनिया में ले जाता था.

मोहित कुछ बातों में बेहद रिजिड था, इसलिए नवेली चाह कर भी मोहित से अपने अतीत की कोई भी बात नहीं बता पाती थी. मन ही मन नवेली को लगने लगा था कि वो हर स्तर पर मोहित से उन्नीस ही है. रंग, रूप, आचार, व्यवहार, हर स्तर पर मोहित उस से बीस ही है.

एक मुलाकात ऐसी भी- भाग 4: निशि का क्या था फैसला

दोस्ती होना तो लाजिमी ही था न. देखो, तुम्हारी और मिसेज सक्सेना की दोस्ती तो चंद घंटों में ही हो गई, जबकि हम तो पूरे 15 दिन साथ रहे थे. इसी दौरान एक बार मेरी तबीयत भी बिगड़ गई थी तो सक्सेना साहब ने ही मुझे संभाला था और वे सारी बातें यहां आने पर मैं ने तुम को बताई थीं.

‘‘हांहां, मुझे सब याद है,’’ मैं कुछ खोईखोई सी बोली.

‘‘उन्हीं दिनों हम दोनों, एकदूसरे के बेहद करीब आ गए थे. दोस्ती के उन्हीं लम्हों में हम ने आपस में एक वचन लिया कि समय आने पर मिशिका और पार्थ की शादी कर देंगे. आज पार्थ आई.ए.एस. हो गया है. मगर दोस्ती में किए गए वादे में कहीं कोई कमी नहीं आई है. सक्सेनाजी के पास तो अब कितने अच्छेअच्छे आफर आ रहे होंगे जबकि यह जानते हैं कि मैं ने तो जिंदगी भर शोहरत और इज्जत के अलावा कुछ नहीं कमाया. मेरे पास अपनी मिशिका को उन्हें सौंपने के अलावा और कुछ देने को नहीं है.’’

सक्सेना साहब ने जज साहब का हाथ अपने हाथों में ले लिया था और भावविह्वल हो कर बोले, ‘‘ऐसीवैसी कोई बात मत कीजिए जज साहब, नहीं तो मैं उठ कर चला जाऊंगा. जिंदगी में सबकुछ मिल जाता है, मगर दोस्ती, अच्छे लोग, अच्छा परिवार बहुत कम लोगों को मिल पाता है और हम लोग उन्हीं में से एक हैं कि हमें आप मिले हैं.’’

‘‘सुन रही हो निशि. तुम जाति- बिरादरी की बातें करती रहती हो, क्या इन से अच्छा तुम्हें मिशिका के लिए कुछ मिल पाएगा. अच्छे लोग, अच्छे रिश्ते, अच्छे परिवार इन सब से बढ़ कर न धर्म है न जाति है और न ही कुछ और. आज मैं ने बिना तुम्हारी इच्छा जाने इस रिश्ते को हां कर दी है क्योंकि मैं जानता हूं कि मैं सही काम कर रहा हूं और अदालत में आएदिन परिवारों के टूटनेबिखरने के मामले मैं ने सुने और निबटाए हैं, उन में रिश्ते टूटने की वजह यह शायद ही हो कि उन की जाति अलग थी या धर्म. मुझे माफ करना निशि, तुम्हारी बेसिरपैर की बातों के लिए मैं इतना अच्छा रिश्ता नहीं ठुकरा सकता. अच्छा लड़का सोच कर ही पार्थ से मिशिका की शादी की बात खुद तुम्हारे दिमाग में आए इस के लिए ही वह मुलाकात करवाई गई और अब यह पार्टी भी रखी गई ताकि इस ड्रामे का सुखद अंत कर दिया जाए.’’

पत्नी को काफी कुछ कह कर अंत में जज साहब ने उन का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘मेरे खयाल से अब तुम्हें भी समझ जाना चाहिए कि तुम्हारी सोच बहुत संकीर्ण थी. वक्त और जमाने से हट कर थी. तुम्हारे भैया तुम्हारी बात सुन कर अपनी बेटी का जीवन बिगाड़ सकते हैं, पर मैं नहीं.’’

सभी अपनीअपनी बात कह चुके थे. मिशिका और पार्थ भी अपनी स्वीकृति दे चुके थे. अब मेरी बारी थी सो मैं ने भी हाथ जोड़ कर इस रिश्ते को अपनी स्वीकृति दे दी. मिसेज सक्सेना ने उठ कर मुझे गले लगाते हुए कहा, ‘‘बधाई हो निशिजी. सबकुछ कितनी जल्दी हो गया न. अभीअभी तो हम दोस्त बने थे और अभीअभी समधिनें. उन्होंने अपने गले में पहना एक जड़ाऊ हार उतार कर तुरंत मिशिका को पहनाते हुए कहा, ‘‘आज से तुम्हारी एक नहीं, दोदो मांएं हैं.’’

सबकुछ बहुत अच्छा लग रहा था मगर दिल में कहीं एक डर और चिंता थी, जो मुझे खुल कर खुश नहीं होने दे रही थी. क्या करूंगी, कैसे जाऊंगी भैयाभाभी के सामने. यह सोचसोच कर ही मेरी जान सूखी जा रही थी. सभी थक कर सो गए थे, मगर मेरे मन का डर और अपराधभाव मुझे सोने ही नहीं दे रहा था.

अगली सुबह काफी देर से आंखें खुल पाईं. पता नहीं कितने बजे नींद आई थी. घड़ी पर नजर पड़ी तो पूरे 10 बज रहे थे. जज साहब के कोर्ट जाने की बात दिमाग में आते ही मैं तेजी से उठी कि भाभी ने चाय के प्याले के साथ कमरे में प्रवेश किया और हंसती हुई बोलीं, ‘‘क्या निशि, इतनी बड़ी खुशखबरी है और तुम सो रही हो अब तक?’’

जिस बात के लिए मैं अब तक इतनी परेशान थी, वह इतनी आसानी से सुलझ जाएगी, मैं ने सोचा भी न था. मुझे तो अपनी आंखों पर भरोसा ही नहीं हो रहा था.

मुझे हैरान देख भाभी बोलीं, ‘‘सुबहसुबह ही ननदोईजी का फोन आ गया और फोन पर उन्होंने जब रिश्ता तय होने की बात बताई तो हम से रहा नहीं गया और आप की खुशी में खुशी मनाने चले आए. अपने जीजाजी को देखने के लिए अंतरा भी बेचैन हो रही है, शाम को वह भी यहीं आएगी. सक्सेना परिवार को भी बुला लिया है, आज का डिनर मामामामी की तरफ से शहर के सब से अच्छे होटल में…’’ भाभी बोले जा रही थीं.

मैं हैरत में पड़ी भाभी का चेहरा पढ़ने में लगी थी. मगर वहां स्नेह व प्यार के अलावा और कुछ भी नहीं था. मेरे इतना बड़ा दुख देने के बावजूद भाभी का यह व्यवहार…कुछ समझ में नहीं आया तो मैं भाभी से लिपट कर जोरजोर से रो पड़ी.

‘‘भाभी, मैं इस लायक कहां कि आप मुझे इतना प्यार दें. मैं ने आप लोगों को अपनी गलत सोच की वजह से इतना दुख पहुंचाया, मैं तो आप को अपना मुंह भी दिखाने की हिम्मत नहीं कर पा रही थी. मैं कितनी बुरी हूं भाभी, कितनी बुरी…’’ मेरा रुदन तेज हुआ जा रहा था और भाभी मेरी पीठ सहलाए जा रही थीं.

‘‘मत रो निशि, मत रो. अब वह भी तुम्हारा हम से अगाध प्रेम ही तो था, वरना किसी को क्या पड़ी है, अच्छा हो या बुरा हो. तुम्हें गलत लगा, इसीलिए तुम ने रोका और हमें तुम्हारी बात सही लगी इसीलिए हम ने उसे मान लिया.’’

‘‘तुम्हारी भाभी बिलकुल सही कह रही हैं निशि. जो हो गया उसे भूल जा, और दिल खोल कर आने वाली खुशियों का इंतजार कर.’’ तभी कमरे में जज साहब के संग भैया आतेआते बोले, ‘‘मेरे मन का बोझ इतनी सहजता से उतर जाएगा, सोचा नहीं था,’’ मैं ने कृतज्ञता से जज साहब को देखा जिन्होंने अपनी समझदारी से इतनी बड़ी खुशी मुझे दे दी थी. उन्होंने मेरी आंखें पढ़ लीं और मुसकरा दिए.

‘‘मगर अभी तो अंतरा का दुख है मेरे सामने. वह तो बहुत नाराज है अपनी बूआ से. उसे कैसे वापस पा सकूंगी मैं?’’

‘‘अरे, अपने बच्चे छोटेछोटे हैं. ज्यादा देर तक अपने बड़ों से नाराज नहीं रहते. मैं ने उसे समझाया है निशि, उस के मन में तुम्हारे लिए कोई गुस्सा नहीं है.’’ भैया बोले तो साथसाथ भाभी भी बोल पड़ीं, ‘‘और अभी सुबहसुबह ही तो फूफाजी से उस की ढेरों बातें हुई हैं और फूफाजी ने उस से वादा किया है कि अब चाहे उस की बूआ कुछ भी कहें, वह अपनी अंतरा की शादी उसी के संग कराएंगे जिसे वह पसंद करती है. पहले चर्च में अंतरा की उस ईसाई लड़के से शादी होगी, फिर मिशिका की मंडप के नीचे. बच्चे जितनी जल्दी गुस्सा हो जाते हैं, उतनी ही जल्दी मान भी जाते हैं निशि.’’

भाभी अपनी बात कह चुकीं तो मैं ने खुश हो कर तुरंत कहा, ‘‘और अब सब से पहले तैयार हो कर हम लोग वहां चलेंगे. मुझे भी तो अपने दूसरे दामाद को शाम के डिनर के लिए आमंत्रित करना है. उन से भी तो माफी मांगनी है, इस बुरी बूआ को.’’

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