अनुराग की डायरी
नागेश की ज्यादतियां बढ़ती जा रही हैं. नीहारिका को अब वह ज्यादा समय अपने कमरे में ही बिठा कर रखता है. काम क्या करवाता होगा, गप्पें ही मारता होगा. नीहारिका से पूछता हूं तो उस के बारे में ज्यादा कुछ नहीं बताती है. मैं मन मसोस कर रह जाता हूं. नागेश क्या मेरे और नीहारिका के बीच दूरियां बनाने का प्रयत्न कर रहा है? लेकिन वह इस में सफल नहीं होगा. नीहारिका और मेरे बीच अब कोई दूरी नहीं रह गई है. उस ने मेरे शादी के प्रस्ताव को मान लिया है. मैं जल्द ही उस के मांबाप से मिलने वाला हूं.
नीहारिका मेरी मनोदशा समझती है. इसीलिए वह नागेश के बारे में भूल कर भी बात नहीं करती है. मैं खोदखोद कर पूछता हूं…तब भी नहीं बताती. मैं खीझ कर कहता हूं, ‘‘वह हरामी कोई ज्यादती तो नहीं करता तुम्हारे साथ?’’
वह हंस कर कहती, ‘‘तुम को मेरे ऊपर विश्वास है न. तो फिर निश्ंिचत रहो. अगर ऐसी कोई स्थिति आई तो मैं स्वयं उस से निबट लूंगी. तुम चिंता न करो.’’
‘‘क्यों न करूं? तुम एक नाजुक लड़की हो और वह विषधर काला नाग. कमीना आदमी है. पता नहीं, कब कैसी हरकत कर बैठे तुम्हारे साथ? उस के साथ कमरे में अकेली जो रहती हो.’’
नीहारिका के चेहरे पर वैसी ही मोहक मुसकान है. आंखों में चंचलता और शैतानी नाच रही है. निचले होंठ का दायां कोना दांतों से दबा कर कहती है, ‘‘वैसी हरकत तो तुम भी कर सकते हो मेरे साथ. तुम्हारे साथ भी एकांत कमरे में रहती हूं.’’ उस ने जैसे मुझे निमंत्रण दिया कि मैं चाहूं तो उस के साथ वैसी हरकत कर सकता हूं. वह बुरा नहीं मानेगी. हम दोनों इंडिया गेट पर भीड़भाड़ से दूर एकांत में टहल रहे थे. अंधेरा घिरने लगा था. मैं ने इधरउधर देखा. कहीं कोई साया नहीं, आहट नहीं. मैं ने नीहारिका को अपनी बांहों में समेट लिया. वह फूल की तरह मेरे सीने में सिमट गई. नागेश रूपी सांप हमारे बीच से गायब हो चुका था.
नीहारिका ने जिस भाव से अपने को मेरी बांहों में सौंपा था, मुझे उस के प्रति कोई अविश्वास न रहा. मैं नागेश की तरफ से भी आश्वस्त हो गया कि नीहारिका उस की किसी भी बेजा हरकत से निबट लेगी. दोनों को ले कर मेरी चिंता निरर्थक है.
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इधर लगता है, नागेश को नीहारिका के साथ मेरे प्यार को ले कर शक हो गया है. तभी तो उस ने आदेश पारित किया है कि अब वह हरीश के साथ काम करेगी. मुझे इस से कोई अंतर नहीं पड़ने वाला. नीहारिका मेरे इतने करीब आ चुकी है कि उसे मुझ से जुदा करना नागेश के बूते की बात नहीं है. मुझे इंतजार उस दिन का है जब नीहारिका ब्याह कर मेरे घर आएगी.
नीहारिका की डायरी
बहुत कुछ बरदाश्त के बाहर होता जा रहा है. नागेश ने मुझे अपनी संपत्ति समझ लिया है. इसी तरह की बातें भी करता है और व्यवहार भी.
पता नहीं…शायद नागेश को शक हो गया है कि अनुराग और मेरे बीच अंतरंगता बढ़ती जा रही है. शायद शक न भी हो, पर उसे डर लगता है कि मैं या अनुराग एकदूसरे के ऊपर आसक्त हो जाएंगे. इसी डर की वजह से उस ने मुझे हरीश के साथ लगा दिया है.
मुझे इस से कोई अंतर नहीं पड़ता. दिन में न सही, शाम को हम दोनों मिलते हैं. अनुराग और मेरे दिलों के बीच क ी दूरी समाप्त हो चुकी है. बस, शादी के बंधन में बंधना है. इस में थोड़ी सी रुकावट है. मेरी पक्की नौकरी नहीं है. उम्र भी अभी कम है. मैं ने अनुराग से कह दिया है. कम से कम 1 साल उसे इंतजार करना पड़ेगा. वह तैयार है. तब तक कोई नौकरी मिल ही जाएगी. तब हम दोनों शादी के बंधन में बंध जाएंगे.
अब नागेश खुले सांड की तरह खूंखार होता जा रहा है. जब से हरीश के साथ लगाया है, एक पल के लिए पीछा नहीं छोड़ता या तो अपने कमरे में बुला लेता है या खुद हरीश के कमरे में आ कर बैठ जाता है और अनर्गल बातें करता है. उस के चक्कर में न तो हरीश कोई काम कर पाता है न वह मुझ से कोई काम करवा पाता है.
नागेश की वजह से पूरे दफ्तर में मैं बदनाम होती जा रही हूं. सब मुझे एसी वाली लड़की कहने लगे हैं. नागेश के कमरे में एसी जो लगा है. लोग जब मुझे एसी वाली लड़की कहते हैं मैं हंस कर टाल जाती हूं. किसी बात का प्रतिरोध करने का मतलब उस को बढ़ावा देना है, कहने वालों की सोच बेलगाम हो जाती और फिर मेरे और नागेश के बारे में तरहतरह की बातें फैलतीं, चर्चाएं होतीं. इस में मेरी ही बदनामी होती. नागेश का क्या जाता? उस से कोई कुछ भी न कहता. मैं अस्थायी थी. लोग सोचते, मैं नागेश को फंसा कर अपनी नौकरी की जुगाड़ में लगी हूं. सचाई किसी को पता नहीं है.
नागेश का मुंह तो चलता ही रहता है, अब उस के हाथ भी चलने लगे हैं. वह मेरे पीछे आ कर खड़ा हो जाता है और कंप्यूटर पर काम करवाने के बहाने कभी सर, कभी कंधे और कभी पीठ पर हाथ रख देता है. मुझे उस का हाथ मरे हुए सांप जैसा लगता है. कभीकभी मरा हुआ सांप जिंदा हो जाता है. उस का हाथ अधमरे सांप की तरह मेरी पीठ पर रेंगने लगता है. वह मेरी पीठ सहलाता है. मुझे गुदगुदी का एहसास होता है, परंतु उस में लिजलिजापन होता है.
मन में एक घृणा उपजती है, कोई प्यार नहीं. नागेश के प्रति मैं एक आक्रोश से भर जाती हूं, परंतु इसे बाहर नहीं निकाल सकती. मैं बरदाश्त करने की कोशिश करती हूं. देखना चाहती हूं कि वह किस हद तक जा सकता है. मेरी तय हुई हद के बाहर जाते ही वह परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहे…मैं ने मन ही मन तय कर लिया था. जैसे ही उस ने हद पार की, मेरा रौद्र रूप प्रकट हो जाएगा. अभी तक उस ने मेरी हंसी और प्यारी मुसकराहट देखी है. बूढ़े को पता नहीं है कि लड़कियां आत्मरक्षा और सम्मान के लिए चंडी बन सकती हैं.
जब वह मेरी पीठ सहलाता है मैं बहाना बना कर बाहर निकल जाती हूं. कोशिश करती हूं कि जल्दी उस के कमरे में न जाना पड़े. पर वह शैतान की औलाद…कहां मानने वाला है. बारबार बुलाता रहता है. मैं देर करती हूं तो वह खुद उठ कर हरीश के कमरे में आ जाता है…न खुद चैन से बैठता है न मुझे बैठने देता है.
उस दिन हद हो गई. उस ने सारी सीमाएं तोड़ दीं. उस का बायां हाथ अधमरे सांप की तरह मेरी पीठ पर रेंग रहा था. मैं मन ही मन सुलग रही थी. अचानक उस का हाथ आगे बढ़ा और मेरी बांह के नीचे से होता हुआ कुछ ढूंढ़ने का प्रयास करने लगा. मैं समझ गई, वह क्या चाहता था? मैं थोड़ा सिमट गई परंतु उस ने घात लगा कर मेरे बाएं वक्ष को अपनी हथेली में समेट लिया. उसी तरह जैसे चालाक सांप बेखबर मेढक को अपने मुंह में दबोच लेता है.
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यह मेरी तय की हुई हद से बाहर की बात थी. मैं अपना होश खो चुकी थी. अचानक खड़ी हो गई. उस का हाथ छिटक गया. पर मेरा दायां हाथ उठ चुका था. बिजली की तरह उस के बाएं गाल पर चिपक गया, मैं ने जो नहीं सोचा था वह हो गया. जोर से तड़ाक की आवाज आई और वह दाईं तरफ बूढे़ बैल की तरह लड़खड़ा कर रह गया.
मैं ने उस के मुंह पर थूक दिया और किटकिटा कर कहा, ‘‘मैं ने दोस्ती की थी…शादी नहीं.’’ और तमतमाती हुई बाहर निकल गई.
फिर मैं वहां नहीं रुकी. नागेश के कमरे से बाहर आते ही मैं बिलकुल सामान्य हो गई. अनुराग को चुपके से बुलाया और कार्यालय के बाहर चली गई. बाहर आ कर मैं ने अनुराग को सबकुछ बता दिया. वह हैरानी से मेरा मुंह ताकने लगा, जैसे उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि मैं ऐसा भी कर सकती हूं. वह मुझे बच्ची समझता था…20 वर्ष की अबोध बच्ची. परंतु मैं अबोध नहीं थी.
अनुराग ने चुपचाप मुझे एक बच्ची की तरह सीने से लगा लिया, जैसे उसे डर था कि कहीं खो न जाऊं. परंतु मैं खोने वाली नहीं थी क्योंकि मैं इस बेरहम और स्वार्थी दुनिया के बीच अकेली नहीं थी, अनुराग के प्यार का संबल जो मुझे थामे हुए था.