Hindi Moral Tales : एक बेटी ऐसी भी

Hindi Moral Tales :  ‘‘नानी आप को पता है कि ममा ने शादी कर ली?’’ मेरी 15 वर्षीय नातिन टीना ने जब सुबहसुबह यह अप्रत्याशित खबर दी तो मैं बुरी तरह चौंक उठी.

मैं ने पूछा, ‘‘तुझे कैसे पता? फोन आया है क्या?’’

‘‘नहीं, फेसबुक पर पोस्ट किया है,’’ नातिन ने उत्तर दिया.

मैं ने झट से उस के हाथ से मोबाइल लिया और उस पुरुष के प्रोफाइल को देख कर सन्न रह गई. वह पाकिस्तान में रहता था. मैं अपना सिर पकड़ कर बैठ गई. ‘यह लड़की कब कौन सा दिन दिखा दे, कुछ नहीं कह सकते… इस का कुछ नहीं हो सकता.’ मैं मन ही मन बुदबुदाई.

टीना ने देखते ही अपनी मां को अनफ्रैंड कर दिया. 10वीं क्लास में है. छोटी थोड़ी है, सब समझती है.

पूरे घर में सन्नाटा पसर गया था. मेरे पति घर पर नहीं थे. वे थोड़ी देर बाद आए तो यह खबर सुन कर चौंके. फिर थोड़ा संयत होते हुए बोले, ‘‘अच्छा तो है. शादी कर के अपना घर संभाले और हमें जिम्मेदारी से मुक्ति दे. उस के नौकरी पर जाने के बाद उस के बच्चे अब हम से नहीं संभाले जाते… तुम इतनी परेशान क्यों हो?’’

मैं ने थोड़े उत्तेजित स्वर में कहा, ‘‘अरे, मुक्ति कहां मिलेगी? और जिम्मेदारी बढ़ गई है. जिस आदमी से शादी की है वह पाकिस्तानी है, अब वह वहीं रहेगी. इसीलिए तो उस ने नहीं बताया और चुपचाप शादी कर ली. अब बच्चे तो हमें ही संभालने पड़ेंगे… कम से कम मुझे शादी करने से पहले बताती तो… लेकिन जानती थी कि इस शादी के लिए हम कभी नहीं मानेंगे. मानते भी कैसे. अपने देश के लड़के मर गए हैं क्या? मुझ से तो बोल कर गई थी कि औफिस के काम से मुंबई जा रही है.’’

वे विस्फारित आंखों से अवाक से मेरी ओर देखते रह गए.

‘कोई मां इतनी स्वार्थी कैसे हो सकती है? उसे अपने बूढ़े मांबाप और बच्चों का जरा भी खयाल नहीं आया?’ मैं मन ही मन बुदबुदाई.

‘‘उफ, यह तो बहुत बुरी बात है. हमारे बारे में न सोचे, लेकिन अपने बच्चों की जिम्मेदारी तो उसे उठानी ही चाहिए… वैसे बच्चे तो हम ही संभाल रहे थे उस के बावजूद उस के यहां हमारे साथ रहने से घर में तनाव ही रहता था. अब कम से कम हम शांति से तो रह सकते हैं,’’ उन्होंने मुझे सांत्वना दी.

‘‘वह तो ठीक है, लेकिन हम भी कब तक संभालेंगे? हमारा शरीर भी थक रहा है. फिर इन का खर्चा कहां से आएगा?’’ मैं ने थके मन से कहा.

यह सुन उन्हें अपनी अदूरदर्शिता पर क्षोभ हुआ तो फिर सकारात्मक में सिर हिलाते हुए कहा, ‘‘हूं.’’

हमारे कोई बेटा नहीं था. इकलौती बेटी मंजरी, जिसे हम ने कंप्यूटर इंजीनिरिंग की उच्च शिक्षा दिलाई थी, को जाने किस के संस्कार मिले थे. उस का जब दूसरा बच्चा हुआ था, तभी से हम अपना घर छोड़ कर उस के बच्चों को संभालने के लिए उस के साथ रह रहे थे. उस के पिता रिटायरमैंट के बाद भी उसे आर्थिक सहायता देने हेतु नौकरी कर रहे थे.

मंजरी के दोनों बच्चे हमारी ही देखरेख में पैदा हुए थे, पले थे. कई बार हम मंजरी के व्यवहार से आहत हो कर यह कह कर कि अब हम कभी नहीं आएंगे, अपने घर लौट जाते, फिर बच्चों की कोई न कोई समस्या देख कर लौट आते. मंजरी हमारी इस कमजोरी का पूरा लाभ उठाने में नहीं चूकती थी.

हम उसे समझाते तो वह कहती, ‘‘आप लोगों ने जिस तरह मेरी परवरिश की है वैसी मैं अपने बच्चों की नहीं होने दूंगी.’’

वास्तविकता तो यह थी कि वह बिना मेहनत के सब कुछ प्राप्त करना चाहती थी, यह हमें बहुत बाद में ज्ञात हुआ. औफिस से आ कर प्रतिदिन बताना कि आज उस की तबीयत अचानक बहुत खराब हो गई थी. झूठी बीमारियों की रिपोर्ट बनवा कर हमें डरा कर हम से इलाज के लिए पैसे भी ऐंठती थी.

हम सब को इमोशनली ब्लैकमेल करती थी. शुरू में तो मैं भी उस की रिपोर्ट्स देख कर घबरा जाती थी कि उस का और उस के बच्चों का क्या होगा, लेकिन उस के चेहरे पर शिकन भी नहीं होती थी. बाद में समझ आया कि अकसर वह गूगल पर बीमारियों के बारे में क्यों जानकारी लेती रहती थी. नौकरी छोड़ के बिजनैस करना, उस को बंद कर के फिर नौकरी करना यह उस की आदत बन गई थी. घर के कार्यों में तो उस की रत्ती भर भी रुचि नहीं थी. खाना बनाने वाली पर या बाजार के खाने पर ही उस के बच्चे पल रहे थे.

मंजरी ने पहली शादी नैट के द्वारा अमेरिका रहने के लोभ के कारण किसी अमेरिका निवासी से की, जिस में हम भी शामिल हुए थे. बिना किसी जानकारी के यह रिश्ता हमें समझ नहीं आ रहा था. हम ने उसे बहुत समझाया, लेकिन उस पर तो अमेरिका का भूत सवार था. फिर वही हुआ जिस का डर था. कुछ ही महीनों बाद वह गर्भवती हो कर इंडिया आ गई.

शादी के बाद अमेरिका जाने के बाद उसे पता लगा कि वह पहले से विवाहित था, तो उस के पैरों तले की जमीन खिसक गई थी. हम बेबस थे. उस ने एक बेटी को जन्म दिया. हम ने मंजरी की बेटी को अपने पास रख लिया और वह दिल्ली जा कर किसी कंपनी में नौकरी करने लगी.

एक दिन अचानक जब हम उस से मिलने पहुंचे तो यह देख कर सन्न रह गए कि वह एक पुरुष के साथ लिव इन रिलेशन में रह रही थी. हम ने अपना सिर पीट लिया. हमें देखते ही वह व्यक्ति वहां से ऐसा गायब हुआ कि फिर दिखाई नहीं दिया. लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी. 4 महीने का गर्भ उस के पेट में पल रहा था, असहाय से हम कर भी क्या सकते थे. अपना घर छोड़ कर उस के साथ रहने को मजबूर हो गए.

महरी ने जब डोर बैल बजाई तो मेरे विचारों का तारतम्य टूटा. किचन में जा कर बरतन खाली कर उसे दिए और डिनर की तैयारी में लग गई. लेकिन दिमाग पर अभी भी मंजरी ने ही कब्जा कर रखा था. सोच रही थी इनसान एक बार धोखा खा सकता है, 2 बार खा सकता है, लेकिन यह  तीसरी बार… मुसलमानों में तो 4 शादियों की स्वीकृति उन का धर्म ही देता है, तो क्या गारंटी है कि… और एक और बच्चा हो गया तो?

आगे की स्थिति सोच कर मैं कांप गई, लेकिन जो उस की पृष्ठभूमि थी, उस में कोई संस्कारी पुरुष तो उसे अपनाता नहीं. जो कदम उस ने उठाए हैं, उस के बाद क्या वह अपने परिवार को तथा अपनी किशोरावस्था की ओर अग्रसर होती बेटी को मुंह दिखा पाएगी? जरूर कोई बहुत बड़ा आसामी होगा, जिसे उस ने अपने चंगुल में फांस लिया होगा. पैसे के लिए वह कुछ भी कर सकती है, यह सर्वविदित था. बहुत जल्दी सारी स्थिति स्पष्ट हो जाएगी, कब तक परदे के पीछे रहेगी.

टीना के द्वारा उस को फेसबुक पर अनफ्रैंड करते ही वह समझ गई कि सब को उस के विवाह की खबर मिल गई है और टीना उस से बहुत नाराज है. आए दिन उस का फोन आने लगा. लेकिन इधर की प्रतिक्रिया में कोई अंतर नहीं आया. मैं ने मन ही मन सोचा आखिर कब तक बात नहीं करूंगी? बच्चों के भविष्य के बारे में तो उस से बात करनी ही पड़ेगी.

एक बार उस का फोन आने पर जैसे ही मोबाइल को अपने कान से लगा कर मैं ने हैलो कहा, वह तुरंत बोली, ‘‘टीना को समझाओ… मुझे भी तो खुशी से जीने का हक है. मेरे विवाह से किसी को क्या परेशानी है. अभी भी मैं अपने बच्चों की जिम्मेदारी संभालूंगी. उन्हें किसी चीज की कमी नहीं होने दूंगी, क्योंकि जिस से मैं ने विवाह किया है उस का बहुत समृद्घ व्यवसाय है…’’

मुझे उस का कथन बड़ा ही हास्यास्पद लगा और मैं ने जो उस के वर्तमान पति की हैसियत के बारे में अनुमान लगाया था वह सत्य निकला. फिर एक दिन अचानक बहुत बड़ा सा कूरियर आया, जिस में बहुत महंगे मोबाइल और बच्चों के लिए कपड़े थे और औन लाइन बहुत सारा खाने का सामान, जिस में चौकलेट, केक, पेस्ट्री आदि भेजा था. सामान को देख कर चिंटू के अलावा कोई खुश नहीं हुआ.

एक दिन मंजरी ने हमें अपने बच्चों का वीजा बनवाने के लिए कहा कि एअर टिकट वह भेज देगी और हमारे लिए भी फ्लाइट के टिकट भेजेगी ताकि हम अपने घर लौट जाएं.

यह सुनते ही टीना आक्रोश में बोली, ‘‘नहीं जाना मुझे. आप के पास रहना है, आई हेट हर…’’ चिंटू बोला, ‘‘मुझे जाना है, ममा के पास, लेकिन वे यहां क्यों नहीं आतीं?’’

मैं तो शब्दहीन हो कर सन्न रह गई. थोड़ा मौन रहने के बाद कटाक्ष करते हुए बोली, ‘‘बहुत अच्छा संदेश दिया है तूने… तूने बच्चों को जन्म दिया है, तेरा पूरा अधिकार है उन पर, कानून भी तेरा ही साथ देगी. हम तो केयरटेकर मात्र हैं. हमारा कोई रिश्ता थोड़ी है बच्चों से… पूछे कोई तुम से रातरात भर जाग कर किस ने बच्चों को पाला है. वहां जाने के बाद तो हम इन से मिलने को तरस जाएंगे.

‘‘यदि तुम्हें बच्चों की इतनी चिंता होती तो ऐसा कदम उठाने से पहले सौ बार सोचती. बच्चे प्यार के भूखे होते हैं, पैसे के नहीं. हमारी भावनाओं की तो कद्र ही नहीं है, जाने किस मिट्टी की बनी है तू. मुझे अफसोस है कि  तू मेरी बेटी है, मुझे तुझ पर ही विश्वास नहीं है कि तू बच्चों को अच्छी तरह पालेगी, फिर मैं उस सौतेले बाप पर कैसे कर सकती हूं…’’

‘‘चिंटू जाना चाहे तो चला जाए, लेकिन टीना को तो मैं हरगिज नहीं भेजूंगी. जमाना वैसे ही बहुत खराब है… यदि मैं नहीं संभाल पाई तो होस्टल में डाल दूंगी,’’ मैं ने एक सांस में अपनी सारी व्यथा उगल दी. मेरे वर्चस्व का सब ने सम्मान कर के मेरे निर्णय का समर्थन किया. टीना के चेहरे पर खुशी झलक रही थी. वह मेरे गले से लिपट गई.

Hindi Moral Tales : रिश्ता

Hindi Moral Tales :  ‘‘मां ये देखो गोवा के टिकट, अगले हफ्ते हम सब गोवा जा रहे हैं,’’ सूरज मेरे कमरे में आते ही खुशी से बोला. उस के पीछेपीछे मेरी बहू रीता और पोता मयंक भी मेरे कमरे में आ गए.

‘‘दादी पता है वह बहुत बड़ा समंदर है. हमारी टीचर ने बताया था… कितना मजा आएगा न?’’ कहते हुए मयंक ने मुझे खुशी से गले लगा लिया. मेरी बहू ने हंसते हुए कहा, ‘‘मां, इस बार मैं आप की एक नहीं सुनूंगी. आप को भी गोवा में जींस पहननी होगी.’’

‘‘चल पगली, मैं और जींस… दुनिया देखेगी तो हंसेगी मुझ पर,’’ मैं ने झूठा गुस्सा दिखाते हुए कहा.

‘‘मां इस बार आप को रीता की बात माननी ही होगी,’’ सूरज ने मेरी गोद में सिर रख कर कहा.

‘‘अच्छाअच्छा सोचूंगी, अभी चलो सब सो जाओ बहुत रात हो गई है.’’ सब के अपने कमरों में जाने के बाद मैं खुशी के मारे सो ही नहीं पाई. मैं ने कभी समंदर नहीं देखा था. अगले हफ्ते समंदर के किनारे बैठी होऊंगी, सोचसोच कर मन नाच रहा था. फिर यह भी सोचा कि कल सत्संग में जा कर सब को बताऊंगी कि मैं गोवा जा रही हूं. सुबह रीता मयंक के स्कूल जाने के बाद मुझे सत्संग के लिए छोड़ कर औफिस चली गई. मुझे अपनी सहेलियों को गोवा जाने की बात बताने की बहुत जल्दी थी. सत्संग का तो बहाना होता है. यहां आने वाली सब औरतें आमतौर पर घर की बातचीत कर के ही वक्त बिताती हैं. मयंक ने जब से स्कूल जाना शुरू किया है मैं भी वक्त गुजारने के लिए कभीकभी यहां आ जाती हूं. सत्संग शुरू हो चुका था. मैं ने धीरे से अपने पास बैठी शीला से कहा, ‘‘सुन, अगले हफ्ते सत्संग में नहीं आ पाऊंगी. मैं अपने बेटेबहू के साथ गोवा जा रही हूं.’’

‘‘क्या गोवा? पिछले साल तू शिमला गई थी इस बार गोवा, तेरे तो मजे हैं,’’ शीला ने कहा.

‘‘गोवा… अरे वाह, सूरज की मां सुना है कि समंदर के किनारे शाम का मजा ही कुछ और होता है. मेरे भाई के बेटाबहू गए थे, उन्होंने बताया,’’ आगे बैठी नीरजा ने अपनी गरदन पीछे घुमा ली. धीरेधीरे सत्संग छोड़ कर मेरे आसपास की औरतों ने एक छोटा सा घेरा बना लिया. मैं गर्व से फूली नहीं समा रही थी.

‘‘तू इतना लंबा सफर कर पाएगी? गोवा बहुत दूर है, पूरे एक दिन का सफर है,’’ इस बार शीला के साथ बैठी राजरानी ने कहा.

‘‘तू बुरा न मानना, मैं ने तेरे से ज्यादा दुनिया देखी है. तेरे बेटाबहू बहुत सयाने हैं,’’ साथ बैठी दीदी ने कहा. वे मेरी जानपहचान की औरतों में सब से बड़ी थीं, इसलिए सब उन्हें दीदी ही कहते थे. कोई उन का नाम जानता ही नहीं था. मैं ने उन से कहा, ‘‘क्यों क्या हुआ दीदी, आप ऐसा क्यों कह रही हो?’’

‘‘तू तो बस बच्चों की तरह घूमनाफिरना सुन कर खुश हुए जा रही है. जरा सोच तेरी उम्र में तुझे तीर्थ करवाने की जगह शिमला, गोवा क्यों घुमा रहे हैं तेरे बेटाबहू? कुछ नहीं, बस उन को एक आया चाहिए अपना बच्चा संभालने के लिए.’’

‘‘क्या बात कर रही हो दीदी, मेरा बेटा मेरी बहुत इज्जत करता है. मुझे आया क्यों समझेगा?’’ मैं ने थोड़ी नाराजगी दिखाते हुए कहा. ‘‘अरे बेटा तो तेरा है पर अब बहू के चक्कर में उस को भी कहां कुछ समझ आ रहा है. दरअसल, बच्चा संभालने के लिए आया पर होने वाला खर्च बचा रहे हैं दोनों.’’ इतने में सत्संग खत्म हो गया और कीर्तन शुरू हो गया. दीदी उठ कर आगे चली गईं. उन के जाने के बाद नीरजा बोली, ‘‘वैसे दीदी गलत नहीं कह रही थीं. तू ने ही बताया था न कि शिमला में सूरज और रीता देर रात तक माल रोड पर घूमते थे और तू और मयंक उन के आने से पहले ही सो जाते थे. तू ही बता, अगर तू नहीं जाएगी तो मयंक को वहां कौन संभालेगा?’’

मेरे कुछ कहने से पहले ही शीला ने अपनी बात कह डाली, ‘‘देख, दीदी की बात कड़वी है पर सच है. तू इतने सालों से घर संभाल रही है. पहले सूरज को पाला और अब मयंक की सारी जिम्मेदारी तेरे सिर डाल कर तेरी बहू काम पर चली जाती है. अरे इस उम्र में बच्चे संभालना आसान नहीं. अब मुझे देख, मैं ने तो साफ कह दिया अपनी बहू से कि अपने बच्चों को खुद संभालो. मुझे तो अब अपने तरीके से जीने दो. भाई, तुझे उन की कोई जरूरत नहीं पर उन को तेरी जरूरत है. उन के औफिस जाने के बाद तू पूरे घर और बच्चे की रखवाली जो करती है, क्यों नीरजा बहन…?’’

‘‘और नहीं तो क्या. खुद को देख जरा, सत्संग खत्म होने से पहले ही घर भागना होता है तुझे, मयंक स्कूल से जो आ जाता है. तेरी बहू सुबह की निकली रात को घर आती है,’’ नीरजा बोली, ‘‘अब और क्या कहूं तू ही बता, सारा घर तो तेरी बहू ने अपने हाथ में ले रखा है. मैं ने तो अपने बेटे से कह दिया था तू जाने तेरी बीवी जाने. मुझे हर महीने खर्चा दे बस. पर तू तो सत्संग के दान के पैसे भी बहू से ले कर आती है.’’ मैं उन सब के बीच चुपचाप उन की बातें सुन रही थी. मेरी ही गलती थी कि मैं ने अपने बेटेबहू की तारीफ करतेकरते अपने घर की सारी बातें इन को बता रखी थीं. पर सब बातों का यह अर्थ भी निकल सकता था, कभी सोचा नहीं था. अब भी वक्त है अपने बारे में सोच जरा. तभी सत्संग खत्म होते ही जयजयकार से हौल गूंज उठा और मैं बातोंबातों में भूल गई कि मयंक घर आ गया होगा. जल्दी से घर के लिए औटो किया पर सारे रास्ते दिमाग में नीरजा और शीला की बातें ही घूमती रहीं. घर पहुंची तो मयंक बाहर ही बैठा था.

‘‘क्या हुआ दादी, कहां रह गई थीं आप?’’ उस ने पूछा पर मैं ने कुछ नहीं कहा, बस घर का ताला खोल दिया.

शाम को रीता ने आते ही मुझ से पूछा, ‘‘क्या हुआ मां, आज आप सत्संग से देर में आईं? सब ठीक है न, औटो नहीं मिला था क्या?’’ रीता का इस तरह के सवाल करना मुझे अच्छा नहीं लगा. मन में आया कि कह दूं कि मैं नौकरानी हूं क्या, जो अपने 1-1 पल का हिसाब दूं? पर मैं चुप रही.

रीता फिर बोली, ‘‘क्या बात है मां, आप की तबीयत ठीक नहीं क्या या कोई और बात है?’’

‘‘नहीं, बस थोड़ा सिरदर्द है,’’ इस से ज्यादा मेरा कुछ कहने का मन ही नहीं हुआ. रात को सूरज भी कमरे में आया पर मैं जानबूझ कर आंखें बंद किए रही ताकि उसे लगे कि मैं सो रही हूं. सारी रात अजीब कशमकश. मेरी सहेलियां जो कह रही थीं वह मुझे सच सा लग रहा था. सही तो कह रही थीं. अगर मैं मयंक का ध्यान न रखूं तो क्या रीता काम पर जा पाएगी? घर की ओर से बेफिक्री सिर्फ मेरी वजह से ही तो है. सच में रीता ने मुझे घर का चौकीदार बना दिया है. कल मैं कह दूंगी सूरज से कि अपने बेटे की जिम्मेदारी खुद उठाओ. अब मुझे मेरे हिसाब से जीने दो. सच ही तो है, कहीं भी जाना हो रीता के हिसाब से जाना होता है. सूरज की और अपनी कमाई का हिसाब रीता ही रखती है. सूरज उसी से पैसे लेता है. मुझे भी सत्संग आनेजाने या दान के पैसे उस से ही मांगने पड़ते हैं. कल तक मेरी सास ने घर अपने हाथ में लिया हुआ था आज रीता ने… मैं तो कल भी नौकरानी थी और आज भी. मेरी आंखों से आंसू भी बहने लगे. यही सोचसोच कर मैं रात में न जाने कब सो गई पता ही नहीं चला. सुबह रसोई में खटरपटर की आवाज से नींद खुल गई. घड़ी पर नजर गई तो 8 बज चुके थे. हाय इतनी देर तक सोती रही. फिर पलंग से उठी तो ऐसा लगा जैसे सिर पर किसी ने सौ किलोग्राम का भार रख दिया हो. कल रात भर सोचती रही शायद इसीलिए झूठ का सिरदर्द सच हो गया. मयंक तो स्कूल चला गया होगा, सोचती मैं जल्दीजल्दी बाहर आई तो देखा रीता रसोई में थी. मुझे देख कर बोली, ‘‘मां आप जाग गईं, आप की तबीयत कैसी है? आप बैठिए, मैं आप के लिए अदरक वाली चाय बना कर लाती हूं,’’ कह कर रीता चाय बनाने लगी.

तभी सूरज भी आ गया और बोला, ‘‘मां आप का सिरदर्द कैसा है?’’ मैं ने कुछ न कहा तो वह फिर बोला, ‘‘मां लगता है तबीयत ज्यादा खराब है. रीता, आज मां को डाक्टर को दिखा आना.’’

‘‘आप फिक्र मत करो मैं दिखा आऊंगी,’’ रीता ने मुझे चाय पकड़ाते हुए कहा.

‘‘क्यों तुम्हें आज औफिस नहीं जाना?’’ मैं ने रीता से पूछा.

‘‘नहीं मां, आप की तबीयत ठीक नहीं, इसलिए मैं ने आज छुट्टी ले ली,’’ रीता कहती हुई रसोई में चली गई. ‘हां अगर मैं बीमार हो गई तो घर की रखवाली कौन करेगा?’ मैं ने मन ही मन सोचा. थोड़ी देर बाद हम डाक्टर के पास थे. रीता परची कटवाने के लिए लाइन में लगी थी और मैं एक ओर रखी बैंच पर बैठ गई. तभी एक जानापहचाना चेहरा सामने वाली बैंच पर बैठा नजर आया. क्या यह शिखा है? नहींनहीं श्खि तो लखनऊ में रहती है. लग तो यह शिखा ही रही है, यह सोच कर मैं अपनी जगह से उठ कर उस के पास चली गई. और उस से बोली, ‘‘शिखा… तुम शिखा ही हो न? पहचाना मुझे, मैं शारदा…’’

‘‘अरे शारदा तू,’’ कहते ही वह मेरे गले से लग गई. कितने सालों बाद देखा तुझे. कैसी है तू और तेरा छोटू सूरज कैसा है?’’ शिखा खुशी से मानो उछल ही पड़ी.

‘‘सूरज ठीक है, अब तो उस का छोटू भी हो गया. मयंक नाम रखा है उस का.’’

‘‘अरे वाह, बड़ा प्यारा नाम है,’’ वह बोली.

‘‘हां वह तो है, मैं ने जो रखा है उस का नाम. तू सुना, तू यहां कैसे?’’ मैं ने उस ने पूछा.

‘‘मैं पिछले 2 सालों से यहां हूं और एक वृद्ध आश्रम चला रही हूं. चला क्या रही हूं समझो अपना टाइम पास कर रही हूं.’’

‘‘मतलब…?’’ मैं ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘तू तो जानती है मैं ने शादी नहीं की. सारी उम्र तो अच्छे से गुजर गई, खूब कमाया पर अब समझ में आया कि जो कमाया वह साथ तो ले कर जाना नहीं, तो थोड़ी सेवा ही की जाए. बस कुछ सालों से समाजसेवा कर रही हूं और पिछले 2 सालों से तेरी उम्र के लोगों की देखभाल कर रही हूं, जिन के बच्चे उन्हें अपने साथ नहीं रखते. कुछ तो ऐसे हैं जो अपने बच्चों के साथ नहीं रहना चाहते. बस उन्हीं में से कुछ को यहां ले कर आई थी,’’ बता कर उस ने साथ बैठे कुछ लोगों की ओर इशारा किया. बैंच पर बैठे उन लोगों की ओर देख कर मेरा मन बैठ सा गया. जरा देखो तो कैसे बच्चे हैं, अपने मांबाप को नहीं रख सकते. भला हो शिखा का जो इन की देखरेख कर रही है.

‘‘अरे तू तो बहुत नेकी का काम कर रही है,’’ मैं ने खुशी से कहा.

‘‘बिलकुल. मेरे पास पैसा था. मेरे रिश्तेदारों ने मुझे बहुत बहलाने की कोशिश की पर मैं ने बस अपने मन की सुनी और इस काम में लग गई. तू भी कभीकभी आया कर. उन लोगों से बात कर. इस से उन को भी अच्छा लगेगा और तुझे भी.’’

‘‘मां परची कटवा ली. चलो नंबर आने ही वाला है,’’ रीता ने तभी आ कर कहा.

‘‘शिखा, ये मेरी बहू है रीता… रीता, ये मेरी बचपन की सहेली है, शिखा.’’ रीता ने पैर छू कर शिखा को प्रणाम किया, तो शिखा बोली, ‘‘अरे शारदा, तेरी बहू तो बहुत सुंदर है और संस्कारी भी वरना आजकल बच्चों के पास कहां टाइम है जो अपनी सास को ले कर अस्पताल तक आएं. चल अब तू जा. पर हां, ये मेरा नंबर ले ले. फोन करती रहना.’’ डाक्टर को दिखा कर हम घर आ गए. रीता ने कहा कि मां तुम थोड़ा आराम कर लो, तो मैं अपने कमरे में चली गई. आज शिखा से मिल कर मन बहुत खुश हुआ. कितना पुराना रिश्ता था. मेरी शादी में सब से आगे थी वह और जब सूरज के पापा मुझे छोड़ कर गए तो भी मेरे आंसू पोंछने में वह सब से आगे थी. पर फिर एक दिन नौकरी के लिए लखनऊ चली गई और मैं अपनी ससुराल में उलझ कर रह गई. अचानक मन बहुत सालों पीछे चला गया. सूरज सिर्फ 5 साल का था जब सूरज के पापा मुझे छोड़ कर इस दुनिया से चले गए थे. सूरज के दादादादी ने उपकार किया, जो अपने घर में जगह दी. पिताजी ने मुझे अपनी बेटी माना पर माताजी ने हमेशा मुझे पराई ही समझा. हर पल एहसास दिलाया कि मुझे उस घर में सिर्फ सूरज के कारण रहने दिया जा रहा है. बातबात पर माताजी, ‘यह मेरा घर है मेरे हिसाब से चल’ जैसे वाक्यों का प्रयोग कर के मेरे आत्मविश्वास को हिलाती आई थीं. सूरज भी उन की परवरिश में पलाबढ़ा. उस ने भी कभी किसी चीज में मेरी राय तो दूर उसे मुझे बताना भी जरूरी नहीं समझा. सासससुर मरने से पहले अपना सब कुछ सूरज के नाम कर गए. उस के बाद तो सूरज की जो मरजी हुई वह उस ने किया. जब उस ने रीता से शादी का फैसला किया तब भी मेरी नाराजगी को नजरअंदाज किया. पर रीता ने पहले दिन से मुझे सम्मान दिया. घर की छोटीछोटी बातों में मेरी राय ली और सूरज को भी मेरे करीब लाई. पहली बार मैं मौल भी तो उसी के साथ ही गई थी. फिल्म देखने का मुझे बहुत शौक था. जब उसे इस बात का पता चला तो महीने में 2-3 फिल्में दिखाने ले जाती. रीता एक तरह से मेरी बेटी जैसी बन गई. इतने सालों से सब कुछ बहुत अच्छा चल रहा था पर अचानक कल सत्संग में नीरजा और शीला की बातों से मैं क्याक्या सोचने लगी. कैसी पागल हूं मैं… मेरी नजरों के सामने शिखा के साथ आए वे लोग घूमने लगे जिन के बच्चों ने उन्हें आश्रम में रहने के लिए मजबूर किया था. मेरा मन कांप गया कि मैं मूर्ख बन कर रिश्तों की डोर को किसी की बातों में आ कर खींच रही थी. अच्छा हुआ कि समय रहते अक्ल आ गई.

मैं झट से उठी और रसोई में जा कर रीता से बोली, ‘‘रीता, अब मेरी तबीयत ठीक है. तू ने छुट्टी ली है तो चल शाम को बाजार से गोवा जाने के लिए थोड़ी खरीदारी ही कर आते हैं.’’ मेरी बात सुन कर रीता ने छोटे बच्चे की तरह मुझे गले लगा लिया.

Hindi Story Collection : सहारा – उमाकांत के मन से बेटी के लिए कैसे मिटा संशय?

Hindi Story Collection : अपनी सहेली के विवाह समारोह में भाग लेने के बाद दीप्ति आलोकजी के साथ रात को 11 बजे वापस लौटी. जिस घर में वह पेइंग गेस्ट की तरह रहती थी उस के गेट के सामने अपने मातापिता को खड़े देख वह जोर से चौंक पड़ी क्योंकि वे दोनों बिना किसी पूर्व सूचना के कानपुर से दिल्ली आए थे.

‘‘मम्मी, पापा, आप दोनों ने आने की खबर क्यों नहीं दी?’’ कार से उतर कर बहुत खुश नजर आ रही दीप्ति अपनी मां गायत्री के गले लग गई.

‘‘हम ने सोचा इस बार अचानक पहुंच कर देखा जाए कि यहां तुम अकेली किस हाल में रह रही हो,’’ अपने पिता उमाकांत की आवाज में नाराजगी और रूखेपन के भावों को पढ़ दीप्ति मन ही मन बेचैन हो उठी.

‘‘मैं बहुत मजे में हूं, पापा,’’ उन की नाराजगी को नजरअंदाज करते हुए दीप्ति उमाकांत के भी गले लग गई.

आलोकजी इन दोनों से पहली बार मिल रहे थे. उन्होंने कार से बाहर आ कर अपना परिचय खुद ही दिया.

‘‘रात के 11 बजे कहां से आ रहे हैं आप दोनों?’’ उन से इस सवाल को पूछते हुए उमाकांत ने अपने होंठों पर नकली मुसकराहट सजा ली.

‘‘दीप्ति की पक्की सहेली अंजु की आज शादी थी. वह इस के औफिस में काम करती है. यह परेशान थी कि शादी से घर अकेली कैसे लौटेगी. मैं ने इस की परेशानी देख कर साथ चलने की जिम्मेदारी ले ली. अकेले लौटने का डर मन से दूर होते ही शादी में शामिल होने की इस की खुशी बढ़ गई. मुझे अच्छा लगा,’’ आलोकजी ने सहज भाव से मुसकराते हुए जवाब दिया.

‘‘अकेली लड़की के लिए रात को इतनी ज्यादा देर तक घर से बाहर रहना ठीक नहीं होता है, बेटी,’’ दीप्ति को सलाह देते हुए उमाकांत की आवाज में कुछ सख्ती के भाव उभरे.

दीप्ति के कुछ बोलने से पहले आलोकजी ने कहा, ‘‘उमाकांतजी, देर रात के समय दीप्ति को मैं कहीं अकेले आनेजाने नहीं देता हूं. इस मामले में आप दोनों को फिक्र करने की कोई जरूरत नहीं है.’’

‘‘मांबाप को जवान बेटी की चिंता होती ही है. आजकल किसी पर भी भरोसा करना ठीक नहीं है जनाब. अब मुझे इजाजत दीजिए. गुड नाइट,’’ कुछ रूखे से अंदाज में अपने मन की चिंता व्यक्त करने के बाद उमाकांत मुड़े और गेट की तरफ चलने को तैयार हो गए.

‘‘उमाकांतजी, कल इतवार को आप डिनर हमारे घर कर रहे हैं. मैं ‘न’ बिलकुल नहीं सुनूंगा,’’ आलोकजी ने दोस्ताना अंदाज में उन के कंधे पर हाथ रख कर उन्हें अपने घर आने का निमंत्रण दिया.

‘‘ओके,’’ बिना मुसकराए उन्होंने आलोकजी का निमंत्रण स्वीकार किया.

दीप्ति ने असहज भाव से मुसकराते हुए उन से विदा ली, ‘‘गुड नाइट, सर. मैं सुबह ठीक 9 बजे पहुंच जाऊंगी.’’

‘‘थैंक यू ऐंड गुड नाइट,’’ आलोकजी ने उस से हाथ मिलाने के बाद गायत्री को हाथ जोड़ कर नमस्ते किया और कार में बैठ गए.

उन्हें अपने घर पहुंचने में 5 मिनट लगे. अपनी पत्नी उषा की नजरों से वे अपने मन की बेचैनी छिपा नहीं पाए थे.

उषा की सवालिया नजरों के जवाब में उन्होंने कहा, ‘‘दीप्ति के मातापिता कानपुर से आए हैं. उन्हें दीप्ति का मेरे साथ इतनी देर से वापस लौटना अच्छा नहीं लगा. मुझे लग रहा है कि वे दोनों इस कारण तरहतरह के सवाल पूछ कर उसे जरूर परेशान करेंगे.’’

‘‘उन्हें अपनी बेटी पर विश्वास करना चाहिए,’’ उषा ने अपनी राय जाहिर की.

‘‘उस के पिता मुझे तेज गुस्से वाले इंसान लगे हैं. मुझे उन का विश्वास जीतने के लिए कुछ और देर उन के साथ रुकना चाहिए था.’’

‘‘हम कल उन्हें घर बुला लेते हैं.’’

‘‘मैं ने दोनों को कल रात डिनर के लिए बुला लिया है.’’

‘‘गुड.’’

‘‘तुम सुबह अनिता और राकेश को भी कल डिनर यहीं करने के लिए फोन कर देना.’’

‘‘ओके.’’

कुछ देर बाद अमेरिका में रह रहे अपने बेटे अमित और बहू वंदना से बात कर के उन का मूड कुछ सही हुआ. वे दोनों अगले महीने घर आ रहे हैं, यह खबर सुन वे खुशी से झूम उठे थे.

कमरदर्द से परेशान उषा नींद की गोली लेने के बाद जल्दी सो गई थी. आलोकजी दीप्ति की फिक्र करते हुए कुछ देर तक करवटें बदलते रहे थे.

सुबह 9 बजे से कुछ मिनट पहले दीप्ति अपनी मां गायत्री के साथ उन के घर पहुंच गई. आलोकजी को इस कारण उस के साथ अकेले में बातें करने का मौका नहीं मिला.

वैसे उन्हें मांबेटी सहज नजर नहीं आ रही थीं. इस बात से उन्होंने अंदाजा लगाया कि बीती रात दीप्ति के साथ उस के मातापिता ने उसे डांटनेसमझाने का काम जरूर किया होगा.

उन तीनों को फिजियोथेरैपिस्ट के यहां से वापस लौटने में डेढ़ घंटा लगा. तब तक आलोकजी ने सब के लिए नाश्ता तैयार कर दिया था. लेकिन गायत्री ने सिर्फ चाय पी और अपने पति के पास जल्दी वापस लौटने के लिए दीप्ति से बारबार आग्रह करने लगी. वह अपनी मां के साथ जाने को उठ कर खड़ी तो जरूर हो गई पर उस के हावभाव साफ बता रहे थे कि उसे गायत्री का यों शोर मचाना अच्छा नहीं लगा था.

पिछली रात वह 2 बजे सो सकी थी. उस के मातापिता ने कल उसे डांटते हुए कहा था :

‘अपनी दौलत और मीठे व्यवहार के बल पर यह आलोक तुम्हें गुमराह कर रहा है. बड़ी उम्र के ऐसे चालाक पुरुषों के जवान लड़कियों को अपने प्रेमजाल में फंसाने के किस्से किस ने नहीं सुने हैं.

‘तुम्हें इस इंसान से फौरन सारे संबंध तोड़ने होंगे, नहीं तो हम बोरियाबिस्तर बंधवा कर तुम्हें वापस कानपुर ले जाएंगे,’ उमाकांत ने उसे साफसाफ धमकी दे दी थी.

दीप्ति ने उन्हें समझाने की बहुत कोशिश की पर वे दोनों कुछ सुनने को तैयार ही नहीं थे. तब धीरेधीरे उस का गुस्सा भी बढ़ता गया था.

‘बिना सुबूत और बिना मुझ से कुछ पूछे आप दोनों मुझे कैसे चरित्रहीन समझ सकते हैं?’ दीप्ति जब अचानक गुस्से से फट पड़ी तब कहीं जा कर उस के मातापिता ने अपना सुर बदला था.

‘चल, मान लिया कि तू भी ठीक है और यह आलोकजी भी अच्छे इंसान हैं, पर दुनिया वालों की जबान तो कोई नहीं पकड़ सकता है, बेटी. हमारा समाज ऐसे बेमेल रिश्तों को न समझता है, न स्वीकार करता है. तुझे अपनी बेकार की बदनामी से बचना चाहिए,’ उसे यों समझाते हुए जब गायत्री एकाएक रो पड़ीं तो दीप्ति ने उन दोनों को किसी तरह की सफाई देना बंद कर दिया था.

‘कल आप दोनों आलोक सर और उन की पत्नी से मिल कर उन्हें समझने की कोशिश तो करो. अगर बाद में भी आप दोनों के दिलों में उन के प्रति भरोसा नहीं बना तो आप जैसा कहेंगे मैं वैसा ही करूंगी,’ यह आखिरी बात कह कर दीप्ति ने उन्हें गेस्ट रूम में सोने भेज दिया था.

सुबह जागने के बाद दीप्ति की अपने मातापिता से ज्यादा बातें नहीं हुईं. बस, दोनों पार्टियों के बीच तनाव भरी खामोशी लंबी खिंची थी.

वे तीनों रात को 8 बजे के करीब आलोकजी के घर पहुंचे. उन्होंने अपनी पत्नी के साथसाथ उन का परिचय रितु और शिखा नाम की 2 लड़कियों से भी कराया.

‘‘ये दोनों पहली मंजिल पर रहने वाली हमारी किराएदार हैं. आज इन के हाथ का बना स्वादिष्ठ खाना ही आप दोनों को खाने को मिलेगा,’’ उषा ने रितु और शिखा के हाथ प्यार से थाम कर उन की तारीफ की.

‘‘रितु को नई जौब मिल गई है. वह अगले महीने मुंबई जा रही है. तब दीप्ति ने यहीं मेरे साथ शिफ्ट होने का प्लान बनाया है,’’ यह सूचना दे कर शिखा ने दीप्ति को गले से लगा लिया था.

इस खबर को सुनने के बाद उमाकांत की आंखों में पैदा हुई चिढ़ और नाराजगी के भावों को आलोकजी ने साफ पढ़ा. उमाकांत के मन की टैंशन कम करने के लिए उन्होंने सहज भाव से कहा, ‘‘यह शिखा सोते हुए खर्राटे लेती है. शायद दीप्ति इस के साथ रूम शेयर न करना चाहे.’’

‘‘आलोक सर, मेरा सीक्रेट आप सब को क्यों बता रहे हैं?’’ शिखा ने नाराज होने का अभिनय करते हुए जब किसी छोटे बच्चे की तरह जमीन पर पांव पटके तो उमाकांत को छोड़ सभी जोर से हंस पड़े थे.

उमाकांत ने शुष्क स्वर में शिखा को बताया, ‘‘तुम्हें नई रूममेट ढूंढ़नी पड़ेगी क्योंकि दीप्ति तो बहुत जल्दी वापस कानपुर जा रही है.’’

‘‘अरे, कानपुर जाने का फैसला तुम ने कब किया, दीप्ति?’’ शिखा ने हैरान हो कर दीप्ति से सवाल किया.

‘‘पापा के इस फैसले की मुझे भी कोई जानकारी नहीं है,’’ दीप्ति ने थके से स्वर में उसे बताया और उषाजी का हाथ पकड़ कर रसोई की तरफ चल पड़ी.

‘‘अंकल, आप दीप्ति को कानपुर क्यों ले जा रहे हैं? क्या वहां उसे यहां जैसी अच्छी जौब मिलेगी?’’ उमाकांत के बगल में सोफे पर बैठती हुई शिखा ने सवाल पूछा.

‘‘वह?घर से दूर रहती है, इसलिए उस का कहीं रिश्ता पक्का करने में हमें दिक्कत आ रही है. वह जौब करेगी या नहीं, यह फैसला अब उस की भावी ससुराल वाले करेंगे,’’ उमाकांत अभी भी नाराज नजर आ रहे थे.

‘‘यह क्या बात हुई, अंकल? दीप्ति को तो बड़ी जल्दी प्रोमोशन मिलने वाला है. शादी करने के लिए उस की इतनी अच्छी जौब छुड़ाना गलत होगा,’’ शिखा को उन की बात पसंद नहीं आई थी.

‘‘अंकल, दीप्ति ने बहुत मेहनत कर के खुद को काबिल बनाया है. वह शादी होने के बाद जौब करे या न करे, यह फैसला उसी का होना चाहिए. आप को उस का रिश्ता उस घर में पक्का करना ही नहीं चाहिए जो जबरदस्ती उसे घर बिठाने की बात करें,’’ उमाकांत के सामने बैठती हुई रितु ने जोशीले अंदाज में अपनी राय व्यक्त की.

बहुत जल्दी ही उमाकांत ने खुद को इन दोनों लड़कियों के साथ बहस में उलझा हुआ पाया. दुनिया की ऊंचनीच समझाते हुए वे लड़कियों के लिए कैरियर से ज्यादा शादी को महत्त्वपूर्ण बता रहे थे.

उन्हें रितु और शिखा से यों बहस करने में मजा आ रहा है, यह इस बात से जाहिर था कि घंटे भर का वक्त गुजर जाने का उन्हें बिलकुल पता नहीं चला.

उन दोनों के साथ बातों में उलझे रहने का एक कारण यह भी था कि उन का मन एक तरफ चुपचाप बैठे आलोकजी से बात करने का बिलकुल नहीं कर रहा था.

गायत्री बहुत देर पहले रसोई में चली गई थी. वहां अपनी बेटी दीप्ति को उषा का कुशलता से काम में हाथ बटाते देख उन्हें यह समझ आ गया कि वह अकसर ऐसा करती रहती थी. दीप्ति को अच्छी तरह मालूम था कि वहां कौन सी चीज कहां रखी हुई थी.

उन्हें अपनी बेटी का उषा के साथ हंसनाबोलना अच्छा नहीं लग रहा था. दीप्ति, रितु और शिखा को इन लोगों ने अपने मीठे व्यवहार और दौलत की चमकदमक से फंसा लिया है, यह विचार बारबार उन के मन में उठ कर उन की चिंता बढ़ाए जा रहा था. किसी अनहोनी की आशंका से उन का मन बारबार कांप उठता था.

जब उषाजी ने उन के साथ हंसनेबोलने की कोशिश शुरू की तो और ज्यादा चिढ़ कर गायत्री ड्राइंगरूम में वापस लौट आईं. वे अपने पति की बगल में बैठी ही थीं कि किसी के द्वारा बाहर से बजाई गई घंटी की आवाज घर में गूंज उठी.

कुछ देर बाद आलोकजी एक युवती के साथ वापस लौटे और उमाकांत व गायत्री से उस का परिचय कराया, ‘‘यह मेरी बेटी अनिता है. आप दोनों से मिलाने के लिए मैं ने इसे खास तौर पर बुलाया है.’’

‘‘क्या अकेली आई हो?’’ अनिता के माथे पर लगे सिंदूर को देख कर गायत्री ने उस के नमस्ते का जवाब देने के बाद सवाल पूछा.

‘‘नहीं, राकेश साथ आए हैं. वे कार पार्क कर रहे हैं. दीप्ति तो बिलकुल आप की शक्लसूरत पर गई है, आंटी. इस उम्र में भी आप बड़ी अच्छी लग रही हैं,’’ अनिता के मुंह से अपनी तारीफ सुन गायत्री तो खुश हुईं पर उमाकांत को उस का अपनी पत्नी के साथ यों खुल जाना पसंद नहीं आया था.

‘‘उमाकांतजी, आप मेरे साथ पास की मार्किट तक चलिए. खाने के बाद मुंह मीठा करने के लिए रसमलाई ले आएं. दीप्ति ने बताया था कि आप को रसमलाई बहुत पसंद है,’’ बड़े अपनेपन से आलोकजी ने उमाकांत का हाथ पकड़ा और दरवाजे की तरफ चल पड़े.

उमाकांत को मजबूरन उन के साथ चलना पड़ा. वैसे सचाई तो यह थी कि उन का मन इस घर में बिलकुल नहीं लग रहा था.

घर से बाहर आते ही आलोकजी ने उन का परिचय अंदर प्रवेश कर रहे अपने दामाद से कराया, ‘‘ये मेरे दामाद राकेशजी हैं. शहर के नामी चार्टर्ड अकाउंटैंटों में इन की गिनती होती है. राकेशजी, ये दीप्ति के पिता उमाकांतजी हैं.’’

राकेश का परिचय जान कर उमाकांत को तेज झटका लगा था. उस ने अपने ससुर और उमाकांत दोनों के पैर छुए थे. उम्र में अपने से 8-10 साल छोटे राकेश से अपने पांव छुआना उन को बहुत अजीब लगा. उन्होंने बुदबुदा कर राकेश को आशीर्वाद सा दिया और बहुत बेचैनी महसूस करते हुए आगे बढ़ गए.

घर से कुछ दूर आ कर आलोकजी ने पहले एक गहरी सांस छोड़ी और फिर अशांत लहजे में उमाकांत को बताना शुरू किया, ‘‘अपने दिल पर लगे सब से गहरे जख्म को मैं आप को दिखाने जा रहा हूं. चार्टर्ड अकाउंटैंट बनने का सपना देखने वाली मेरी बेटी अनिता राकेश की फर्म में जौब करने गई थी. उन के बीच दिन पर दिन बढ़ते जा रहे दोस्ताना संबंध तब हमारे लिए भी गहरी चिंता का कारण बने थे, उमाकांतजी.

‘‘जब मेरी बेटी ने अपने से उम्र में 17 साल बड़े विधुर राकेश से शादी करने का फैसला हमें सुनाया तो हमारे पैरों तले से जमीन खिसक गई थी. जिस आक्रोश, डर और चिंता को आप दोनों पतिपत्नी दीप्ति और मेरे बीच बने अच्छे संबंध को देख कर आज महसूस कर रहे हैं, उन्हें उषा और मैं भली प्रकार समझ सकते हैं क्योंकि हम इस राह पर से गुजर चुके हैं.

‘‘जिस पीड़ा को अनिता का बाप होने के कारण मैं झेल चुका हूं, वैसी पीड़ा आप को कभी नहीं भोगनी पड़ेगी, ऐसा वचन मैं आप को इस वक्त दे रहा हूं, उमाकांतजी. आप की बेटी का कैसा भी अहित मेरे हाथों कभी नहीं होगा.

‘‘इस महानगर में अनगिनत युवा पढ़ने और जौब करने आए हुए हैं. उन सब को अपने घर व घर वालों की बहुत याद आना स्वाभाविक ही है. घर से दूर अकेली रह रही लड़कियों के लिए बड़ी उम्र वाले किसी प्रभावशाली पुरुष के बहुत निकट हो जाने को समझना भी आसान है क्योंकि वह लड़की अपने पिता के साथ को परदेस में बहुत ‘मिस’ करती हैं.

‘‘जिन दिनों राकेश ने मेरी बेटी को अपने प्रेमजाल में फंसाया, उन दिनों उषा और मैं भी अपने बेटेबहू के पास रहने अमेरिका गए हुए थे. राकेश आज मेरा दामाद जरूर है लेकिन मेरे मन के एक हिस्से ने उसे भावनात्मक दृष्टि से अपरिपक्व अनिता को गुमराह करने के लिए आज भी पूरी तरह से माफ नहीं किया है.

‘‘मेरी पत्नी कमरदर्द के कारण अपाहिज सी हो गई है. बेटाबहू विदेश में हैं. हम दोनों को दीप्ति, रितु व शिखा का बहुत सहारा है. सुखदुख में ये बहुत काम आती हैं हमारे.

‘‘बदले में हम इन्हें घर के जैसा सुरक्षित व प्यार भरा परिवेश देने का प्रयास दिल से करते हैं. हम सब ने एकदूसरे को परिवार के सदस्यों की तरह से अपना लिया है. सगे रिश्तेदारों और पड़ोसियों से ज्यादा बड़ा सहारा बन गए हैं हम एकदूसरे के.

‘‘दीप्ति मुझ से बहुत प्रभावित है… मुझे अपना मार्गदर्शक मानती है…वह मेरे बहुत करीब है पर इस निकटता का मैं गलत फायदा कभी नहीं उठाऊंगा. दीप्ति की जिंदगी में आप मुझे अपनी जगह समझिए, उमाकांतजी.’’

आलोकजी का बोलतेबोलते गला भर आया था. उमाकांत ने रुक कर उन के दोनों हाथ अपने हाथों में लिए और बहुत भावुक हो कर बोले, ‘‘आलोकजी, मैं ने आप को बहुत गलत समझा है. अपनी नजरों में गिर कर मैं इस वक्त खुद को बहुत शर्मिंदा महसूस कर रहा हूं…मुझे माफ कर दीजिए, प्लीज.’’

वे दोनों एकदूसरे के गले लग गए. उन की आंखों से बह रहे आंसुओं ने सारे शिकवे दूर करते हुए आपसी विश्वास की जड़ों को सींच मजबूत कर दिया था.

Hindi Kahaniyan : मैं झूठ नहीं बोलती – कितनी सही थी मां की सीख

Hindi Kahaniyan : जब से होश संभाला, यही शिक्षा मिली कि सदैव सच बोलो. हमारी बुद्धि में यह बात स्थायी रूप से बैठ जाए इसलिए मास्टरजी अकसर ही  उस बालक की कहानी सुनाते, जो हर रोज झूठमूठ का भेडि़या आया भेडि़या आया चिल्ला कर मजमा लगा लेता और एक दिन जब सचमुच भेडि़या आ गया तो अकेला खड़ा रह गया.

मां डराने के लिए ‘झूठ बोले कौआ काटे’ की लोकोक्ति का सहारा लेतीं और उपदेशक लोग हर उपदेश के अंत में नारा लगवाते ‘सच्चे का बोलबाला, झूठे का मुंह काला.’ भेडि़ये से तो खैर मुझे भी बहुत डर लगता है बाकी दोनों स्थितियां भी अप्रिय और भयावह थीं. विकल्प एक ही बचा था कि झूठ बोला ही न जाए.

बचपन बीता. थोड़ी व्यावहारिकता आने लगी तो मां और मास्टरजी की नसीहतें धुंधलाने लगीं. दुनिया जहान का सामना करना पड़ा तो महसूस हुआ कि आज के युग में सत्य बोलना कितना कठिन काम है और समझदार बनने लगे हम. आप ही बताओ मेरी कोई सहकर्मी एकदम आधुनिक डे्रस पहन कर आफिस आ गई है, जो न तो उस के डीलडौल के अनुरूप है न ही व्यक्तित्व के. मन तो मेरा जोर मार रहा है यह कहने को कि ‘कितनी फूहड़ लग रही हो तुम.’ चुप भी नहीं रह सकती क्योंकि सामने खड़ी वह मुसकरा कर पूछे जा रही है, ‘‘कैसी लग रही हूं मैं?’’

‘अब कहो, सच बोल दूं क्या?’

विडंबना ही तो है कि सभ्यता के साथसाथ झूठ बोलने की जरूरत बढ़ती ही गई है. जब हम शिष्टाचार की बात करते हैं तो अनेक बार आवश्यक हो जाता है कि मन की बात छिपाई जाए. आप चाह कर भी सत्य नहीं बोलते. बोल ही नहीं पाते यही शिष्टता का तकाजा है.

आप किसी के घर आमंत्रित हैं. गृहिणी ने प्रेम से आप के लिए पकवान बनाए हैं. केक खा कर आप ने सोचा शायद मीठी रोटी बनाई है. बस, शेप फर्क कर दी है और लड्डू ऐसे कि हथौड़े की जरूरत. खाना मुश्किल लग रहा है पर आप खा रहे हैं और खाते हुए मुसकरा भी रहे हैं. जब गृहिणी मनुहार से दोबारा परोसना चाहती है तो आप सीधे ही झूठ पर उतर आते हैं.

‘‘बहुत स्वादिष्ठ बना है सबकुछ, पर पेट खराब होने के कारण अधिक नहीं खा पा रहे हैं.’’

मतलब यह कि वह झूठ भी सच मान लिया जाए, जो किसी का दिल तोड़ने से बचा ले.

‘शारीरिक भाषा झूठ नहीं बोलती,’ ऐसा हमारे मनोवैज्ञानिक कहते हैं. मुख से चाहे आप झूठ बोल भी रहे हों आप की आवाज, हावभाव सत्य उजागर कर ही देते हैं. समझाने के लिए वह यों उदाहरण देते हैं, ‘बच्चे जब झूठ बोलते हैं तो अपना एक हाथ मुख पर धर लेते हैं. बड़े होने पर पूरा हाथ नहीं तो एक उंगली मुख या नाक पर रखने लगते हैं अथवा अपना हाथ एक बार मुंह पर फिरा अवश्य लेते हैं,’ ऐसा सोचते हैं ये मनोवैज्ञानिक लोग. पर आखिर अभिनय भी तो कोई चीज है और हमारे फिल्मी कलाकार इसी अभिनय के बल पर न सिर्फ चिकनीचुपड़ी खाते हैं हजारों दिलों पर राज भी करते हैं.

वैसे एक अंदर की बात बताऊं तो यह बात भी झूठ ही है, क्योंकि अपनी जीरो फिगर बनाए रखने के चक्कर में प्राय: ही तो भूखे पेट रहते हैं बेचारे. बड़ा सत्य तो यह है कि सभ्य होने के साथसाथ हम सब थोड़ाबहुत अभिनय सीख ही गए हैं. कुछ लोग तो इस कला में माहिर होते हैं, वे इतनी कुशलता से झूठ बोल जाते हैं कि बड़ेबड़े धोखा खा जाएं. मतलब यह कि आप जितने कुशल अभिनेता होंगे, आप का झूठ चलने की उतनी अच्छी संभावना है और यदि आप को अभिनय करना नहीं आता तो एक सरल उपाय है. अगली बार जब झूठ बोलने की जरूरत पड़े तो अपने एक हाथ को गोदी में रख दूसरे हाथ से कस कर पकड़े रखिए आप का झूठ चल जाएगा.

हमारे राजनेता तो अभिनेताओं से भी अधिक पारंगत हैं झूठ बोलने का अभिनय करने में. जब वह किसी विपदाग्रस्त की हमदर्दी में घडि़याली आंसू बहा रहे होते हैं, सहायता का वचन दे रहे होते हैं तो दरअसल, वह मन ही मन यह हिसाब लगा रहे होते हैं कि इस में मेरा कितना मुनाफा होगा. वोटों की गिनती में और सहायता कोश में से भी. इन नेताओं से हम अदना जन तो क्या अपने को अभिनय सम्राट मानने वाले फिल्मी कलाकार भी बहुत कुछ सीख सकते हैं.

विशेषज्ञों ने एक राज की बात और भी बताई है. वह कहते हैं कि सौंदर्य आकर्षित तो करता ही है, सुंदर लोगों का झूठ भी आसानी से चल जाता है. अर्थात सुंदर होने का यह अतिरिक्त लाभ है. मतलब यह भी हुआ कि यदि आप सुंदर हैं, अभिनय कुशल हैं तो धड़ल्ले से झूठ बोलते रहिए कोई नहीं पकड़ पाएगा. अफसोस सुंदर होना न होना अपने वश की बात नहीं.

गांधीजी के 3 बंदर याद हैं. गलत बोलना, सुनना और देखना नहीं है. अत: अपने हाथों से आंख, कान और मुंह ढके रहते थे पर समय के साथ इन के अर्थ बदल गए हैं. आज का दर्शन यह कहता है कि आप के आसपास कितना जुल्म होता रहे, बलात्कार हो रहा हो अथवा चोट खाया कोई मरने की अवस्था में सड़क पर पड़ा हो, आप अपने आंख, कान बंद रख मस्त रहिए और अपनी राह चलिए. किसी असहाय पर होते अत्याचार को देख आप को अपना मुंह खोलने की जरूरत नहीं.

ऐसा भी नहीं है कि झूठ बोलने की अनिवार्यता सिर्फ हमें ही पड़ती हो. अमेरिका जैसे सुखीसंपन्न देश के लोगों को भी जीने के लिए कम झूठ नहीं बोलना पड़ता. रोजमर्रा की परेशानियों से बचे होने के कारण उन के पास हर फालतू विषय पर रिसर्च करने का समय और साधन हैं. जेम्स पैटरसन ने 2 हजार अमेरिकियों का सर्वे किया तो 91 प्रतिशत लोगों ने झूठ बोलना स्वीकार किया.

फील्डमैन की रिसर्च बताती है कि 62 प्रतिशत व्यक्ति 10 मिनट के भीतर 2 या 3 बार झूठ बोल जाते हैं. उन की खोज यह भी बताती है कि पुरुषों के बजाय स्त्रियां झूठ बोलने में अधिक माहिर होती हैं जबकि पुरुषों का छोटा सा झूठ भी जल्दी पकड़ा जाता है. स्त्रियां लंबाचौड़ा झूठ बहुत सफलता से बोल जाती हैं. हमारे नेता लोग गौर करें और अधिक से अधिक स्त्रियों को अपनी पार्टी में शामिल करें. इस में उन्हीं का लाभ है.

बिना किसी रिसर्च एवं सर्वे के हम जानते हैं कि झूठ 3 तरह का होता है. पहला झूठ वह जो किसी मजबूरीवश बोला जाए. आप की भतीजी का विवाह है और भाई बीमार रहते हैं. अत: सारा बंदोबस्त आप को ही करना है. आप को 15 दिन की छुट्टी तो चाहिए ही. पर जानते हैं कि आप का तंगदिल बौस हर्गिज इतनी छुट्टी नहीं देगा. चाह कर भी आप उसे सत्य नहीं बताते और कोई व्यथाकथा सुना कर छुट्टी मंजूर करवाते हैं.

दूसरा झूठ वह होता है, जो किसी लाभवश बोला जाए. बीच सड़क पर कोई आप को अपने बच्चे के बीमार होने और दवा के भी पैसे न होने की दर्दभरी पर एकदम झूठी दास्तान सुना कर पैसे ऐंठ ले जाता है. साधारण भिखारी को आप रुपयाअठन्नी दे कर चलता करते हैं पर ऐसे भिखारी को आप 100-100 के बड़े नोट पकड़ा देते हैं. यह और बात है कि आप के आगे बढ़ते ही वह दूसरे व्यक्ति को वही दास्तान सुनाने लगता है और शाम तक यों वह छोटामोटा खजाना जमा कर लेता है.

कुछ लोग आदतन भी झूठ बोलते हैं और यही होते हैं झूठ बोलने में माहिर तीसरे किस्म के लोग. इस में न कोई उन की मजबूरी होती है न लाभ. एक हमारी आंटी हैं, उन की बातों का हर वाक्य ‘रब झूठ न बुलवाए’ से शुरू होता है पर पिछले 40 साल में मैं ने तो उन्हें कभी सच बोलते नहीं सुना. सामान्य बच्चों को जैसे शिक्षा दी जाती है कि झूठ बोलना पाप है शायद उन्हें घुट्टी में यही पिलाया गया था कि ‘बच्चे सच कभी मत बोलना.’  बाल सफेद होने को आए वह अभी तक अपने उसी उसूल पर टिकी हुई हैं. रब झूठ न बुलवाए, इस में उन की न तो कोई मजबूरी होती है न ही लाभ.

सदैव सत्य ही बोलूंगा जैसा प्रण ले कर धर्मसंकट में भी पड़ा जा सकता है. एक बार हुआ यों कि एक मशहूर अपराधी की मौत हो गई और परंपरा है कि मृतक की तारीफ में दो शब्द बोले जाएं. यह तो कह नहीं सकते कि चलो, अच्छा हुआ जान छूटी. यहां समस्या और भी घनी थी. उस गांव का ऐसा नियम था कि बिना यह परंपरा निभाए दाह संस्कार नहीं हो सकता. पर कोई आगे बढ़ कर मृतक की तारीफ में कुछ भी बोलने को तैयार नहीं. अंत में एक वृद्ध सज्जन ने स्थिति संभाली.

‘‘अपने भाई की तुलना में यह व्यक्ति देवता था,’’ उस ने कहा, ‘‘सच भी था. भाई के नाम तो कत्ल और बलात्कार के कई मुकदमे दर्ज थे. अपने भाई से कई गुना बढ़ कर. अब उस की मृत्यु पर क्या कहेंगे यह वृद्ध सज्जन. यह उन की समस्या है पर कभीकभी झूठ को सच की तरह पेश करने के लिए उसे कई घुमावदार गलियों से ले जाना पड़ता है यह हम ने उन से सीखा.

मुश्किल यह है कि हम ने अपने बच्चों को नैतिक पाठ तो पढ़ा दिए पर वैसा माहौल नहीं दे पाए. आज के घोर अनैतिक युग में यदि वे सत्य वचन की ही ठान लेंगे तो जीवन भर संघर्ष ही करते रह जाएंगे. फिल्म ‘सत्यकाम’ देखी थी आप ने? वह भी अब बीते कल की बात लगती है. हमारे नैतिक मूल्य तब से घटे ही हैं सुधरे नहीं. आज के झूठ और भ्रष्टाचार के युग में नैतिक उपदेशों की कितनी प्रासंगिकता है ऐसे में क्या हम अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देना छोड़ दें. संस्कार सब दफन कर डालें? प्रश्न कड़वा जरूर है पर पूछना आवश्यक. बच्चों को वह शिक्षा दें, जो व्यावहारिक हो जिस का निर्वाह किया जा सके. उस से बड़ी शर्त यह कि जिस का हम स्वयं पालन करते हों.

सब से बड़ा झूठ तो यही कहना, सोचना है कि हम झूठ बोलते नहीं. कभी हम शिष्टाचारवश झूठ बोलते हैं तो कभी समाज में बने रहने के लिए. कभी मातहत से काम करवाने के लिए झूठ बोलते हैं तो कभी बौस से छुट्टी मांगने के लिए. सामने वाले का दिल न दुखे इस कारण झूठ का सहारा लेना पड़ता है तो कभी सजा अथवा शर्मिंदगी से बचने के लिए. कभी टैक्स बचाने के लिए, कभी किरायाभाड़ा कम करने के लिए. चमचागीरी तो पूरी ही झूठ पर टिकी है. मतलब कभी हित साधन और कभी मजबूरी से. तो फिर हम सत्य कब बोलते हैं?

शीर्षक तो मैं ने रखा था कि ‘मैं झूठ नहीं बोलती’ पर लगता है गलत हो गया. इस लेख का शीर्षक तो होना चाहिए था,  ‘मैं कभी सत्य नहीं बोलती.’

क्या कहते हैं आप?

Famous Hindi Stories : कलंक – एक गलत फैसले ने बदल दी तीन जिंदगियां

Famous Hindi Stories : उस रात 9 बजे ही ठंड बहुत बढ़ गई थी. संजय, नरेश और आलोक ने गरमाहट पाने के लिए सड़क के किनारे कार रोक कर शराब पी. नशे के चलते सामने आती अकेली लड़की को देख कर उन के भीतर का शैतान जागा तो वे उस लड़की को छेड़ने से खुद को रोक नहीं पाए.

‘‘जानेमन, इतनी रात को अकेली क्यों घूम रही हो? किसी प्यार करने वाले की तलाश है तो हमें आजमा लो,’’ आसपास किसी को न देख कर नरेश ने उस लड़की को ऊंची आवाज में छेड़ा.

‘‘शटअप एंड गो टू हैल, यू बास्टर्ड,’’ उस लड़की ने बिना देर किए अपनी नाराजगी जाहिर की.

‘‘तुम साथ चलो तो ‘हैल’ में भी मौजमस्ती रहेगी, स्वीटहार्ट.’’

‘‘तेरे साथ जाने को पुलिस को बुलाऊं?’’ लड़की ने अपना मोबाइल फोन उन्हें दिखा कर सवाल पूछा.

‘‘पुलिस को बीच में क्यों ला रही हो मेरी जान?’’

‘‘पुलिस नहीं चाहिए तो अपनी मां या बहनों…’’

वह लड़की चीख पाती उस से पहले ही संजय ने उस का मुंह दबोच लिया और झटके से उस लड़की को गोद में उठा कर कार की तरफ बढ़ते हुए अपने दोस्तों को गुस्से से निर्देश दिए, ‘‘इस ‘बिच’ को अब सबक सिखा कर ही छोड़ेंगे. कार स्टार्ट करो. मैं इस की बोटीबोटी कर दूंगा अगर इस ने अपने मुंह से ‘चूं’ भी की.’’

आलोक कूद कर ड्राइवर की सीट पर बैठा और नरेश ने लड़की को काबू में रखने के लिए संजय की मदद की. कार झटके से चल पड़ी.

उस चौड़ी सड़क पर कार सरपट भाग रही थी. संजय ने उस लड़की का मुंह दबा रखा था और नरेश उसे हाथपैर नहीं हिलाने दे रहा था.

‘‘अगर अब जरा भी हिली या चिल्लाई तो तेरा गला दबा दूंगा.’’

संजय की आंखों में उभरी हिंसा को पढ़ कर वह लड़की इतना ज्यादा डरी कि उस का पूरा शरीर बेजान हो गया.

‘‘अब कोई किसी का नाम नहीं लेगा और इस की आंखें भी बंद कर दो,’’ आलोक ने उन दोनों को हिदायत दी और कार को तेज गति से शहर की बाहरी सीमा की तरफ दौड़ाता रहा.

एक उजाड़ पड़े ढाबे के पीछे ले जा कर आलोक ने कार रोकी. उन की धमकियों से डरी लड़की के साथ मारपीट कर के उन तीनों ने बारीबारी से उस लड़की के साथ बलात्कार किया.

लड़की किसी भी तरह का विरोध करने की स्थिति में नहीं थी. बस, हादसे के दौरान उस की बड़ीबड़ी आंखों से आंसू बहते रहे थे.

लौटते हुए संजय ने लड़की को धमकाते हुए कहा, ‘‘अगर पुलिस में रिपोर्ट करने गई, तो हम तुझे फिर ढूंढ़ लेंगे, स्वीटहार्ट. अगर हमारी फिर मुलाकात हुई तो तेजाब की शीशी होगी हमारे हाथ में तेरा यह सुंदर चेहरा बिगाड़ने के लिए.’’

तीनों ने जहां उस लड़की को सड़क पर उतारा. वहीं पास की दीवार के पास 4 दोस्त लघुशंका करने को रुके थे. अंधेरा होने के कारण उन तीनों को वे चारों दिखाई नहीं दिए थे.

उन में से एक की ऊंची आवाज ने इन तीनों को बुरी तरह चौंका दिया, ‘‘हे… कौन हो तुम लोग? इस लड़की को यहां फेंक कर क्यों भाग रहे हो?’’

‘‘रुको जर…सोनू, तू कार का नंबर नोट कर, मुझे सारा मामला गड़बड़ लग रहा है,’’ एक दूसरे आदमी की आवाज उन तक पहुंची तो वे फटाफट कार में वापस घुसे और आलोक ने झटके से कार सड़क पर दौड़ा दी.

‘‘संजय, तुझे तो मैं जिंदा नहीं छोड़ूंगी,’’ उस लड़की की क्रोध से भरी यह चेतावनी उन तीनों के मन में डर और चिंता की तेज लहर उठा गई.

‘‘उसे मेरा नाम कैसे पता लगा?’’ संजय ने डर से कांपती आवाज में सवाल पूछा.

‘‘शायद हम दोनों में से किसी के मुंह से अनजाने में निकल गया होगा,’’ नरेश ने चिंतित लहजे में जवाब दिया.

‘‘आज मारे गए हमसब. मैं ने उन आदमियों में से एक को अपनी हथेली पर कार का नंबर लिखते हुए देखा है. उस लड़की को ‘संजय’ नाम पता है. पुलिस को हमें ढूंढ़ने में दिक्कत नहीं आएगी,’’ आलोक की इस बात को सुन कर उन दोनों का चेहरा पीला पड़ चुका था.

नरेश ने अचानक सहनशक्ति खो कर संजय से चिढ़े लहजे में पूछा, ‘‘बेवकूफ इनसान, क्या जरूरत थी तुझे उस लड़की को उठा कर कार में डालने की?’’

‘‘यार, उस ने हमारी मांबहन…तो मैं ने अपना आपा खो दिया,’’ संजय ने दबे स्वर में जवाब दिया.

‘‘तो उसे उलटी हजार गालियां दे लेता…दोचार थप्पड़ मार लेता. तू उसे उठा कर कार में न डालता, तो हमारी इस गंभीर मुसीबत की जड़ तो न उगती.’’

‘‘अरे, अब आपस में लड़ने के बजाय यह सोचो कि अपनी जान बचाने को हमें क्या करना चाहिए,’’ आलोक की इस सलाह को सुन कर उन दोनों ने अपनेअपने दिमाग को इस गंभीर मुसीबत का समाधान ढूंढ़ने में लगा दिया.

पुलिस उन तक पहुंचे, इस से पहले ही उन्हें अपने बचाव के लिए कदम उठाने होंगे, इस महत्त्वपूर्ण पहलू को समझ कर उन तीनों ने आपस में कार में बैठ कर सलाहमशविरा किया.

अपनी जान बचाने के लिए वे तीनों सब से पहले आलोक के चाचा रामनाथ के पास पहुंचे. वे 2 फैक्टरियों के मालिक थे और राजनीतिबाजों से उन की काफी जानपहचान थी.

रामनाथ ने अकेले में उन तीनों से पूरी घटना की जानकारी ली. आलोक को ही अधिकतर उन के सवालों के जवाब देने पड़े. शर्मिंदा तो वे तीनों ही नजर आ रहे थे, पर सब बताते हुए आलोक ने खुद को मारे शर्म और बेइज्जती के एहसास से जमीन में गड़ता हुआ महसूस किया.

‘‘अंकल, हम मानते हैं कि हम से गलती हुई है पर ऐसा गलत काम हम जिंदगी में फिर कभी नहीं करेंगे. बस, इस बार हमारी जान बचा लीजिए.’’

‘‘दिल तो ऐसा कर रहा है कि तुम सब को जूते मारते हुए मैं खुद पुलिस स्टेशन ले जाऊं, लेकिन मजबूर हूं. अपने बड़े भैया को मैं ने वचन दिया था कि उन के परिवार का पूरा खयाल रखूंगा. तुम तीनों के लिए किसी से कुछ सहायता मांगते हुए मुझे बहुत शर्म आएगी,’’ संजय को आग्नेय दृष्टि से घूरने के बाद रामनाथ ने मोबाइल पर अपने एक वकील दोस्त राकेश मिश्रा का नंबर मिलाया.

राकेश मिश्रा को बुखार ने जकड़ा हुआ था. सारी बात उन को संक्षेप में बता कर रामनाथ ने उन से अगले कदम के बारे में सलाह मांगी.

‘‘जिस इलाके से उस लड़की को तुम्हारे भतीजे और उस के दोनों दोस्तों ने उठाया था, वहां के एसएचओ से जानपहचान निकालनी होगी. रामनाथ, मैं तुम्हें 10-15 मिनट बाद फोन करता हूं,’’ बारबार खांसी होने के कारण वकील साहब को बोलने में कठिनाई हो रही थी.

‘‘इन तीनों को अब क्या करना चाहिए?’’

‘‘इन्हें घर मत भेजो. ये एक बार पुलिस के हाथ में आ गए तो मामला टेढ़ा हो जाएगा.’’

‘‘इन्हें मैं अपने फार्म हाउस में भेज देता हूं.’’

‘‘उस कार में इन्हें मत भेजना जिसे इन्होंने रेप के लिए इस्तेमाल किया था बल्कि कार को कहीं छिपा दो.’’

‘‘थैंक्यू, माई फ्रैंड.’’

‘‘मुझे थैंक्यू मत बोलो, रामनाथ. उस थाना अध्यक्ष को अपने पक्ष में करना बहुत जरूरी है. तुम्हें रुपयों का इंतजाम रखना होगा.’’

‘‘कितने रुपयों का?’’

‘‘मामला लाखों में ही निबटेगा मेरे दोस्त.’’

‘‘जो जरूरी है वह खर्चा तो अब करेंगे ही. इन तीनों की जलील हरकत का दंड तो भुगतना ही पड़ेगा. तुम मुझे जल्दी से दोबारा फोन करो,’’ रामनाथ ने फोन काटा और परेशान अंदाज में अपनी कनपटियां मसलने लगे थे.

उन की खामोशी से इन तीनों की घबराहट व चिंता और भी ज्यादा बढ़ गई. संजय के पिता की माली हालत अच्छी नहीं थी. इसलिए रुपए खर्च करने की बात सुन कर उस के माथे पर पसीना झलक उठा था.

‘‘फोन कर के तुम दोनों अपनेअपने पिता को यहीं बुला लो. सब मिल कर ही अब इस मामले को निबटाने की कोशिश करेंगे,’’ रामनाथ की इस सलाह पर अमल करने में सब से ज्यादा परेशानी नरेश ने महसूस की थी.

नरेश का रिश्ता कुछ सप्ताह पहले ही तय हुआ था. अगले महीने उस की शादी होने की तारीख भी तय हो चुकी थी. वह रेप के मामले में फंस सकता है, यह जानकारी वह अपने मातापिता व छोटी बहन तक बिलकुल भी नहीं पहुंचने देना चाहता था. उन तीनों की नजरों में गिर कर उन की खुशियां नष्ट करने की कल्पना ही उस के मन को कंपा रही थी. मन के किसी कोने में रिश्ता टूट जाने का भय भी अपनी जड़ें जमाने लगा था.

नरेश अपने पिता को सूचित न करे, यह बात रामनाथ ने स्वीकार नहीं की. मजबूरन उसे अपने पिता को फौरन वहां पहुंचने के लिए फोन करना पड़ा. ऐसा करते हुए उसे संजय अपना सब से बड़ा दुश्मन प्रतीत हो रहा था.

करीब घंटे भर बाद वकील राकेश का फोन आया.

‘‘रामनाथ, उस इलाके के थानाप्रभारी का नाम सतीश है. मैं ने थानेदार को सब समझा दिया है. वह हमारी मदद करेगा पर इस काम के लिए 10 लाख मांग रहा है.’’

‘‘क्या उस लड़की ने रिपोर्ट लिखवा दी है?’’ रामनाथ ने चिंतित स्वर में सवाल पूछा.

‘‘अभी तो रिपोर्ट करने थाने में कोई नहीं आया है. वैसे भी रिपोर्ट लिखाने की नौबत न आए, इसी में हमारा फायदा है. थानेदार सतीश तुम से फोन पर बात करेगा. लड़की का मुंह फौरन रुपयों से बंद करना पड़ेगा. तुम 4-5 लाख कैश का इंतजाम तो तुरंत कर लो.’’

‘‘ठीक है. मैं रुपयों का इंतजाम कर के रखता हूं.’’

संजय के लिए 2 लाख की रकम जुटा पाना नामुमकिन सा ही था. उस के पिता साधारण सी नौकरी कर रहे थे. वह तो अपने दोस्तों की दौलत के बल पर ही ऐश करता आया था. जहां कभी मारपीट करने या किसी को डरानेधमकाने की नौबत आती, वह सब से आगे हो जाता. उस के इसी गुण के कारण उस की मित्रमंडली उसे अपने साथ रखती थी.

वह इस वक्त मामूली रकम भी नहीं जुटा पाएगा, इस सच ने आलोक, नरेश और रामनाथ से उसे बड़ी कड़वी बातें सुनवा दीं.

कुछ देर तो संजय उन की चुभने वाली बातें खामोशी से सुनता रहा, पर अचानक उस के सब्र का घड़ा फूटा और वह बुरी तरह से भड़क उठा था.

‘‘मेरे पीछे हाथ धो कर मत पड़ो तुम सब. जिंदगी में कभी न कभी मैं तुम लोगों को अपने हिस्से की रकम लौटा दूंगा. वैसे मुझे जेल जाने से डर नहीं लगता. हां, तुम दोनों अपने बारे में जरूर सोच लो कि जेल में सड़ना कैसा लगेगा?’’ यों गुस्सा दिखा कर संजय ने उन्हें अपने पीछे पड़ने से रोक दिया था.

थानेदार ने कुछ देर बाद रामनाथ से फोन पर बात की और पैसे के इंतजाम पर जोर डालते हुए कहा कि जरूरत पड़ी तो रात में आप को बुला लूंगा या सुबह मैं खुद ही आ जाऊंगा.

नरेश के पिता विजय कपूर ने जब रामनाथ की कोठी में कदम रखा तो उन के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं.

रामनाथ ने उन्हें जब उन तीनों की करतूत बताई तो उन की आंखों में आंसू भर आए थे.

अपने बेटे की तरफ देखे बिना विजय कपूर ने भरे गले से रामनाथ से प्रार्थना की, ‘‘सर, आप इस समस्या को सुलझवाइए, प्लीज. अगले महीने मेरे घर में शादी है. उस में कुछ व्यवधान पड़ा तो मेरी पत्नी जीतेजी मर जाएगी.’’

अपने पिता की आंखों में आंसू देख कर नरेश इतना शर्मिंदा हुआ कि वह उन के सामने से उठ कर बाहर बगीचे में निकल आया.

अब संजय व आलोेक के लिए भी उन दोनों के सामने बैठना असह्य हो गया तो वे भी वहां से उठे और बगीचे में नरेश के पास आ गए.

चिंता और घबराहट ने उन तीनों के मन को जकड़ रखा था. आपस में बातें करने का मन नहीं किया तो वे कुरसियों पर बैठ कर सोचविचार की दुनिया में खो गए.

उस अनजान लड़की के रेप करने से जुड़ी यादें उन के जेहन में रहरह कर उभर आतीं. कई तसवीरें उन के मन में उभरतीं और कई बातें ध्यान में आतीं.

इस वक्त तो बलात्कार से जुड़ी उन की हर याद उन्हें पुलिस के शिकंजे में फंस जाने की आशंका की याद दिला रही थी. जेल जाने के डर के साथसाथ अपने घर वालों और समाज की नजरों में सदा के लिए गिर जाने का भय उन तीनों के दिलों को डरा रहा था. डर और चिंता के ऐसे भावों के चलते वे तीनों ही अब अपने किए पर पछता रहे थे.

संजय का व्यक्तित्व इन दोनों से अलग था. इसलिए सब से पहले उस ने ही इस समस्या को अलग ढंग से देखना शुरू किया.

‘‘हो सकता है कि वह लड़की पुलिस के पास जाए ही नहीं,’’ संजय के मुंह से निकले इस वाक्य को सुन कर नरेश और आलोक चौंक कर सीधे बैठ गए.

‘‘वह रिपोर्ट जरूर करेगी…’’ नरेश ने परेशान लहजे में अपनी राय बताई.

‘‘तुम्हारी बात ठीक है, पर बलात्कार होने का ढिंढोरा पीट कर हमेशा के लिए लोगों की सहानुभूति दिखाने या मजाक उड़ाने वाली नजरों का सामना करना किसी भी लड़की के लिए आसान नहीं होगा,’’ आलोक ने अपने मन की बात कही.

‘‘वह रिपोर्ट करना भी चाहे तो भी उस के घर वाले उसे ऐसा करने से रोक सकते हैं. अगर रिपोर्ट लिखाने को तैयार होते तो अब तक उन्हें ऐसा कर देना चाहिए था,’’ संजय ने अपनी राय के पक्ष में एक और बात कही.

‘‘मुझे तो एक अजीब सा डर सता रहा है,’’ नरेश ने सहमी सी आवाज में वार्त्तालाप को नया मोड़ दिया.

‘‘कैसा डर?’’

‘‘अगर उस लड़की ने कहीं आत्महत्या कर ली तो हमें फांसी के फंदे से कोई नहीं बचा सकेगा.’’

‘‘उस लड़की का मर जाना उलटे हमारे हक में होगा. तब रेप हम ने किया है, इस का कोई गवाह नहीं रहेगा,’’ संजय ने क्रूर मुसकान होंठों पर ला कर उन दोनों का हौसला बढ़ाने की कोशिश की.

‘‘लड़की आत्महत्या कर के मर गई तो उस के पोस्टमार्टम की रिपोर्ट रेप दिखलाएगी. पुलिस की तहकीकात होगी और हम जरूर पकड़े जाएंगे. यह एसएचओ भी तब हमें नहीं बचा पाएगा. इसलिए उस लड़की के आत्महत्या करने की कामना मत करो बेवकूफो,’’ आलोक ने उन दोनों को डपट दिया.

‘‘मुझे लगता है एसएचओ को इतनी जल्दी बीच में ला कर हम ने भयंकर भूल की है, वह अब हमारा पिंड नहीं छोड़ेगा. लड़की ने रिपोर्ट न भी की तो भी वह रुपए जरूर खाएगा,’’ संजय ने अपनी खीज जाहिर की.

‘‘तू इस बात की फिक्र क्यों कर रहा है? रेप करने में सब से आगे था और अब रुपए निकालने में तू सब से पीछे है.’’

आलोक के इस कथन ने संजय के तनबदन में आग सी लगा दी. उस ने गुस्से में कहा, ‘‘अपना हिस्सा मैं दूंगा. मुझे चाहे लूटपाट करनी पड़े या चोरी, पर तुम लोगों को मेरा हिस्सा मिल जाएगा.’’

संजय ने उसी समय मन ही मन जल्द से जल्द अमीर बनने का निर्णय लिया. उस का एक चचेरा भाई लूटपाट और चोरी करने वाले गिरोह का सदस्य था. उस ने उस के गिरोह में शामिल होने का पक्का मन उसी पल बना लिया. उस ने अभावों व जिल्लत की जिंदगी और न जीने की सौगंध खा ली.

नरेश उस वक्त का सामना करने से डर रहा था जब वह अपनी मां व जवान बहन के सामने होगा. एक बलात्कारी होने का ठप्पा माथे पर लगा कर इन दोनों के सामने खड़े होने की कल्पना कर के ही उस की रूह कांप रही थी. जब आंतरिक तनाव बहुत ज्यादा बढ़ गया तो अचानक उस की रुलाई फूट पड़ी.

रामनाथ ने अब उन्हें अपने फार्महाउस में भेजने का विचार बदल दिया क्योंकि एसएचओ उन से सवाल करने का इच्छुक था. उन के सोने का इंतजाम उन्होंने मेहमानों के कमरे में किया.

विजय कपूर अपने बेटे नरेश का इंतजार करतेकरते सो गए, पर वह कमरे में नहीं आया. उस की अपने पिता के सवालों का सामना करने की हिम्मत ही नहीं हुई थी.

सारी रात उन तीनों की आंखों से नींद कोसों दूर रही. उस अनजान लड़की से बलात्कार करना ज्यादा मुश्किल साबित नहीं हुआ था, पर अब पकड़े जाने व परिवार व समाज की नजरों में अपमानित होने के डर ने उन तीनों की हालत खराब कर रखी थी.

सुबह 7 बजे के करीब थानेदार सतीश श्रीवास्तव रामनाथ की कोठी पर अपनी कार से अकेला मिलने आया.

उस का सामना इन तीनों ने डरते हुए किया. थाने में बलात्कार की रिपोर्ट लिखवाने वह अनजान लड़की रातभर नहीं आई थी, लेकिन थानेदार फिर भी 50 हजार रुपए रामनाथ से ले गया.

‘‘मैं अपनी वरदी को दांव पर लगा कर आप के भतीजे और उस के दोस्तों की सहायता को तैयार हुआ हूं,’’ थानेदार ने रामनाथ से कहा, ‘‘मेरे रजामंद होने की फीस है यह 50 हजार रुपए. वह लड़की थाने न आई तो इन तीनों की खुशकिस्मती, नहीं तो 10 लाख का इंतजाम रखिएगा,’’ इतना कह कर वह उन को घूरता हुआ बोला, ‘‘और तुम तीनों पर मैं भविष्य में नजर रखूंगा. अपनी जवानी को काबू में रखना सीखो, नहीं तो एक दिन बुरी तरह पछताओगे,’’ कठोर स्वर में ऐसी चेतावनी दे कर थानेदार चला गया था.

वे तीनों 9 बजे के आसपास रामनाथ की कोठी से अपनेअपने घरों को जाने के लिए बाहर आए. उस लड़की का रेप करने के बाद करीब 1 दिन गुजर गया था. उसे रेप करने का मजा उन्हें सोचने पर भी याद नहीं आ रहा था.

इस वक्त उन तीनों के दिमाग में कई तरह के भय घूम रहे थे. कटे बालों वाली लंबे कद की किसी भी लड़की पर नजर पड़ते ही पहचाने जाने का डर उन में उभर आता. खाकी वरदी वाले पर नजर पड़ते ही जेल जाने का भय सताता. अपने घर वालों का सामना करने से वे मन ही मन डर रहे थे. उस वक्त की कल्पना कर के उन की रूह कांप जाती जब समाज की नजरों में वे बलात्कारी बन कर सदा जिल्लत भरी जिंदगी जीने को मजबूर होंगे.

अगर तीनों का बस चलता तो वे वक्त को उलटा घुमा कर उस लड़की को रेप करने की घटना घटने से जरूर रोक देते. सिर्फ 12 घंटे में उन की हालत भय, चिंता, तनाव और समाज में बेइज्जती होने के एहसास से खस्ता हो गई थी. इस तरह की मानसिक यंत्रणा उन्हें जिंदगी भर भोगनी पड़ सकती है, इस एहसास के चलते वे तीनों अपनेआप और एकदूसरे को बारबार कोस रहे थे.

Dr. Kiruba Munusamy: A Fearless Advocate for Social Justice

Dr. Kiruba Munusamy: Born in 1986 into a Dalit family in Tamil Nadu, Dr. Kiruba Munusamy experienced the harsh realities of caste discrimination and gender bias from an early age. Growing up in a marginalized community, she witnessed the suffering of Dalit women and the injustices they faced, which fueled her determination to fight for equality through law.

Breaking Barriers in Law & Activism

Despite facing caste-based humiliation throughout her education, Kiruba turned her struggles into strength. Today, she is a renowned human rights lawyer, Ambedkarite activist, and a global voice against caste oppression and gender violence.

  • Supreme Court Advocate: She fights for victims of caste atrocities, gender-based violence, and social injustice.
  • Founder of ‘Legal Initiative for Equality’: Her organization provides legal aid to marginalized communities.
  • International Recognition: She has addressed United Nations forums and spoken at global platforms on human rights and caste discrimination.

Landmark Legal Battles

  • Secured convictions in honor killing cases, ensuring justice for victims.
  • Fought for transgender rights, challenging discriminatory laws.
  • Advocated for tribal women’s rights, improving their lives through legal empowerment.

Awards & Honors

  • Featured in Vogue India for her impactful activism.
  • Honored with the ‘Inspire Award’ by Grihshobha for her relentless fight for justice.

“The Female Ambedkar of Our Times”

Kiruba’s courage in taking on dangerous, high-profile cases—despite threats and societal pressure—makes her a true inspiration. She proves that women can challenge deep-rooted injustices and transform lives.

 

First Menstruation : पहली बार पीरियड्स के लिए तैयार हैं आप?

First Menstruation  :  पीरियड्स होने की कोई उम्र फिक्स नहीं होती है. ज्यादातर लड़कियों को पीरियड्स 13 साल की उम्र तक आता है. तो किसी को 11 साल की उम्र में भी पीरियड्स आ सकता है. हालांकि हर लड़की का विकास अलगअलग होता है.

पहले पीरियड्स को लेकर लड़कियों के मन में कई तरह के सवाल होते हैं. कुछ ऐसे ही 13 साल की वैशाली की स्थिति थी. उसके सहेलियों के पीरियड्स आ चुके थे. वह भी अकसर सोचती थी मुझे भी पीरियड्स कभी भी आ सकता है. मेर पहला पीरियड्स कैसा होगा, मां मुझे बाहर निकलना बंद करवा देगी, पता नहीं मैं फिजिकली फिट रह पाऊंगी या नहीं ? वगैरह…वगैरह… खुद के कई तरह के सवालों से वह परेशान थी.

न जाने वैशाली की उम्र की ऐसी कई लड़कियां होंगी जो पहले पीरियड्स को लेकर परेशान रहती होंगी. इस उम्र की हर लड़की की यह समस्या होती है, वह खुद  को पहले पीरियड्स के लिए कैसे तैयार करें…

अगर इसी तरह के सवाल से आप भी परेशान हैं, तो यह आर्टिकल आपके लिए बेहद मददगार साबित होगा. आज हम आपको बताएंगे कि आप अपनी पहली पीरियड्स को कैसे सहज बना सकती हैं. इस दौरान खुद को इजी फील करवाने के लिए क्या क्या तरीके अपना सकती हैं.

सबसे पहले आप पहले पीरियड्स के संकतों के बारे में समझें..

  • अगर बौडी के ब्रेस्ट का विकास 12-13 साल की उम्र में होता है, तो यह पहले पीरियड्स का संकेत हो सकता है.
  •  प्राइवेट पार्ट्स पर हेयर ग्रोथ का होना भी पहले पीरियड्स का संकेत हो सकता है.
  • अगर आपको वेजाइनल डिस्चार्ज होने लगे तो ये भी पहले पीरियड्स का संकेत है.
  • पीरियड्स के दौरान रखें खुद का ख्याल
    पीरियड्स को कोई बीमारी न समझें. इस दौरान खानपान का ख्याल रखें. मसालेदार खाने से परहेज करें. लाइट खाना खाएं, फल या जूस अधिक मात्रा में ले. पर्याप्त नींद भी जरूरी है. अपनी पहली पीरियड्स को एंजौय करें और इसका एक्सपीरियंस फ्रैंड्स के साथ शेयर करें.
  • मूड स्विंग
    पीरियड्स के दिनों में मूड स्विंग और पेट दर्द होना आम है. आप इन कठिन दिनों को आसान बनाने के लिए मूवीज देख सकती हैं या अपनी मनपसंद गेम खेल सकती हैं.
  • पैड का सही इस्तेमाल
    जाहिर सी बात है जब पहली बार पीरियड्स होता है, तो आपको पैड का इस्तेमााल करना पता नहीं होता है. ऐसे में आप यूट्यूब पैड सही तरीके से इस्तेमाल करने का वीडियो देख सकती हैं. यह आपके लिए मददगार साबित होगा. अगर आप पहले से ही पीरियड्स से जुड़ी जानकारी रखेंगी, आपका पहला पीरियड्स यादगार और आसान होगा.

Manjari Jaruhar : Who Dare to Be Different Make the Path Easier for Others

Manjari Jaruhar: The story of IPS officer Manjari Jaruhar is truly inspiring. She graced the Awardescent event and was honored with the Fearless Warrior Icon Award for her fearless and exemplary work. Her journey serves as a role model for millions of women who are forced to compromise on their dreams due to societal and familial constraints.

Breaking Barriers

Manjari hails from Bihar, where her family included several IAS and IPS officers. However, the focus at home was less on her education and more on preparing her to be a “good homemaker.” Despite societal expectations, she aspired to achieve something meaningful in life. After marriage, she found no support from her in-laws, but Manjari was not one to give up. Following her divorce, she took charge of her life and, through sheer hard work, became Bihar’s first and India’s fifth woman IPS officer, as well as the state’s first female police officer.

“Don’t Underestimate the Power of a Woman”

Manjari joined the Indian Police Service (IPS) in 1975 when very few women were in the force, making her entry itself a significant challenge. She recalled that after her selection, she was kept on hold for a long time because she was the only woman to have qualified for the IPS that year. While her batchmates were posted across different locations, she was initially given a desk job—something she never wanted. Determined to work in the field, she persevered and eventually succeeded, setting an example for countless women.

Leading High-Profile Cases

Throughout her career, Manjari handled several critical cases, including the infamous Bhagalpur blindings case, with remarkable efficiency. She proved that no obstacle is too big if one’s resolve is strong. Her journey inspires every girl who dreams of breaking societal norms and carving her own identity.

Beyond Policing: A Multifaceted Leader

Today, Manjari serves as a consultant at Tata Consultancy Services (TCS) in New Delhi. She is also the Chief Coordinator of the Indian Music Industry (IMI) and recently became the Chairperson of FICCI’s Private Security Committee.

“Sky is the Limit”

In an interview with Grihshobha, when asked about her greatest achievement for women, she emphasized balancing career and family. She believes that when women maintain this balance, life becomes easier. From a career perspective, she says, “Sky is the limit.” With opportunities available in every field today, all it takes is determination and commitment.

Awards & Recognitions

Manjari has been honored with:

  • Police Medal for Meritorious Service by the Government of India
  • President’s Police Medal for Distinguished Service
  • Director General’s Commendation Disc twice in CISF and once in CRPF for outstanding service

Her journey is a testament to courage, resilience, and the power of self-belief—an inspiration for every woman who dares to dream.

 

Makeup Tips : अपने लुक को निखारने के लिए इस तरह लगाएं पाउडर फाउंडेशन

Makeup Tips : बाजार में पाउडर फाउंडेशन चार प्रकारों में उपलब्ध है. पहला, क्रीम से पाउडर फाउंडेशन, दूसरा, लिक्विड से पाउडर फाउंडेशन, तीसरा, मिनरल पाउडर फाउंडेशन और चौथा प्रेस्ड पाउडर बेस्ड फाउंडेशन. ये सभी प्रकार के त्वचा जैसे सामान्य, तैलीय और मिश्रित त्वचा के लिए उपयुक्त हैं. बस जब भी चेहरे पर फाउंडेशन लगाएं तब अपने स्किन टोन के हिसाब से सही कलर का चुनाव करें. वैसे अच्छा होगा कि ड्राई त्वचा वाले लोग क्रीम फाउंडेशन का, औयली त्वचा वाले लोग केक या पाउडर फाउंडेशन का व सामान्य त्वचा वाले लोग लिक्विड फाउंडेशन का उपयोग करें.

त्वचा की सफाई और टोनिंग

एक हल्के क्लींजर का उपयोग करके अपने चेहरे को अच्छी तरह से साफ करें. इससे सारी अशुद्धियां और तेल दूर हो जाता है. अपनी त्वचा को टोन करने के लिए टोनर का उपयोग करें. फाउंडेशन टोन और साफ त्वचा पर ही लगाना चाहिए.

मौस्चराइजर लगाना

उचित मौइस्चराइजर का उपयोग करके अपनी त्वचा को सुधारें. मौस्चराइजर आपकी त्वचा पर सुरक्षात्मक परत की तरह कार्य करेगा. अत: नमी खत्म नहीं होगी और अंदर ही बनी रहेगी. सूखे पैच (धब्बे) भी समाप्त हो जायेंगे और एकसमान सतह बन जायेगी. इसे अपने चेहरे पर 3 मिनिट सूखने दें.

कंसीलर लगाना

कंसीलर का उपयोग करके किसी भी धब्बे या दोष को छिपाया जा सकता है. गाढ़े कंसीलर का उपयोग करके मुहांसों या धब्बों को छुपाया जा सकता है. कंसीलर आपकी त्वचा के प्रकार से मिलता हुआ होना चाहिए. धब्बे पर कंसीलर लगाने के लिए छोटे मेकअप ब्रश का उपयोग करना चाहिए. उसकी बाद ब्लेंडिंग (मिश्रण) करना चाहिए.

फाउंडेशन लगाना

पाउडर फाउंडेशन अच्छी तरह से लगाने के लिए मेकअप स्पंज का उपयोग करना चाहिए. फाउंडेशन ब्रश का भी उपयोग किया जा सकता है. परंतु पाउडर फाउंडेशन लागाने के लिए उंगलियों के पोर का उपयोग कभी नहीं करना चाहिए.

स्पंज का उपयोग:

एक स्पंज लें. इस पर फाउंडेशन लगाएं. इस स्पंज को पूरे चेहरे पर लगाएं. इसे विशिष्ट जगहों जैसे टी ज़ोन (जिसमें माथा, नाक और ठोडी शामिल हैं) पर भी लगाया जा सकता है.

ब्रश का उपयोग:

ब्रश को घुमाकर पाउडर फाउंडेशन को उठायें. अतिरिक्त पाउडर को निकाल दें. इसे चेहरे पर हल्के हल्के गोलाकार दिशा में घुमाएं. फाउंडेशन को नीचे की ओर घुमाते हुए अंग्रेजी के अक्षर “एस” के आकार में लगाएं.

ब्रश का उपयोग:

ब्रश को घुमाकर पाउडर फाउंडेशन को उठायें. अतिरिक्त पाउडर को निकाल दें. इसे चेहरे पर हल्के हल्के गोलाकार दिशा में घुमाएं. फाउंडेशन को नीचे की ओर घुमाते हुए अंग्रेजी के अक्षर “एस” के आकार में लगाएं.

फाउंडेशन को मिलाएं:

पाउडर फाउंडेशन को बहुत सावधानीपूर्वक मिलाना चाहिए. इसे माथे से प्रारंभ करके पूरे चेहरे पर लगाएं. उसके बाद मिलाते समय पुन: गोलाकार दिशा में घुमाएं. धब्बे और रेखाएं दिखनी नहीं चाहिए. फाउंडेशन आपकी त्वचा के अनुसार होना चाहिए. पाउडर का उपयोग न करें क्योंकि इससे चेहरा बनावटी और अप्राकृतिक दिखेगा.

मंजरी जरुहार : मिसालभरे कामों के लिए जानी जाती हैं

Manjari Jaruhar : लीक से हट कर काम करने वाली सशक्त महिलाएं दूसरों के लिए भी रास्ता आसान बना देती हैं. आईपीएस मंजरी जरुहर की कहानी किसी को भी प्रेरित कर सकती है. अवार्ड एसेंट की शोभा बढ़ाने के लिए मंजरी जरुहार भी हमारे बीच मौजूद रहीं. मंजरी के फीयरलैस और मिसालभरे कामों के लिए उन्हें फीयरलेस वैरियर आइकौन के अवार्ड से नवाजा गया. मंजरी जरुहर की कहानी उन लाखों महिलाओं के लिए मिसाल है जो समाज और परिवार की बेडि़यों के कारण अपने सपनों से सम झौता करने को मजबूर हैं.

मंजरी बिहार की रहने वाली हैं. उन के परिवार में कई आईएएस व आईपीएस अफसर हैं. लेकिन उन के घर में उन की पढ़ाईलिखाई से ज्यादा फोकस इस बात पर रखा गया कि वे आगे जा कर एक अच्छी गृहिणी बन सकें. वे अपनी लाइफ में कुछ अच्छा करना चाहती थीं लेकिन शादी के बाद उन्हें ससुराल में कोई सपोर्ट नहीं मिली पर मंजरी कहां रुकने वाली थी. शादी के कुछ समय बाद तलाक होने पर उन्होंने अपनी जिंदगी की कमान अपने हाथों में ले ली. अपनी मेहनत के बल पर वे बिहार की पहली और देश की 5वीं महिला आईपीएस अफसर बन गईं और बिहार राज्य की पहली महिला अधिकारी हैं.

डौंट अंडरएस्टीमेट द पावर औफ वूमन

मंजरी जरुहर 1975 में भारतीय पुलिस सेवा में शामिल हुईं. उस समय पुलिस सेवा में महिलाओं की संख्या बेहद कम थी और इस क्षेत्र में कदम रखना अपनेआप में एक बड़ी चुनौती थी. उन्होंने बताया कि जब उन का चयन हुआ तो उन्हें काफी समय तक होल्ड पर रखा गया क्योंकि वे अकेल ऐसी महिला थीं जिस ने आईपीएस क्वालीफाई किया था. उन के साथ के सभी लोग अलगअलग जगह पोस्ट हो चुके थे. कुछ समायी बाद उन्हें डैस्क जौब दी गई जो उन्हें बिलकुल नहीं करनी थी.

मंजरी फील्ड में काम करना चाहती थीं. बाद में अपने काम के प्रति लगन से उन्होंने फील्ड में जाना शुरू कर दिया और उन की यह लगन आज हजारोंलाखों महिलाओं के लिए मिसाल बन गई.

बड़ेबड़े प्रोजैक्ट्स पर किया काम

मंजरी जरुहार अपनी प्रोफैशनल लाइफ में काफी सफल रहीं. पुलिस अधिकारी के रूप में भागलपुर कांड से ले कर अन्य कई महत्त्वपूर्ण मामलों की जांच की जिम्मेदारी उन्होंने बखूबी निभाई और वे कई युवा अधिकारियों के लिए प्रेरणा बनीं. उन्होंने साबित कर दिया कि अगर इरादे मजबूत हों तो कोई भी मुश्किल रास्ता को रोक नहीं सकता. उन के संघर्ष की कहानी हर उस लड़की को प्रेरित करती है जो अपने सपनों के लिए लड़ना चाहती है, समाज की रूढि़यों को तोड़ना चाहती है और अपनी पहचान बनाना चाहती है.

मंजरी जरुहर वर्तमान में नई दिल्ली स्थित टाटा कंसल्टैंसी सर्विसेज (टीसीएस) की सलाहकार हैं. वे भारतीय संगीत उद्योग (आईएमआई) की चीफ कोऔर्डिनेटर भी हैं. इस के अलावा वे हाल ही में फिक्की में प्राइवेट सिक्युरिटी कमेटी की चेयरपर्सन हैं.

मंजरी के लिए स्काई इज द लिमिट

गृहशोभा टीम के साथ बातचीत में जब उन से पूछा गया कि महिलाओं के लिए उन की सब से बड़ा अचीवमैंट क्या है कि इस के जवाब में उन्होंने बताया कि अपने कैरियर को बनाने के साथसाथ अपनी फैमिली को भी देखें. जब दोनों के बीच अच्छा संतुलन बना कर रखेंगी तो लाइफ आसान होती नजर आएगी. कैरियर के पौइंट औफ व्यू से वे कहती हैं कि स्काई इज द लिमिट. आज के दौर में महिलाओं के लिए लगभग सभी साधन उपलब्ध हैं बस जरूरत है मन में एक संकल्प लेने की.

अवार्ड्स

मंजरी को सराहनीय सेवा के लिए भारत सरकार के पुलिस पदक और विशिष्ट सेवा के लिए राष्ट्रपति पुलिस पदक से सम्मानित किया जा चुका है. उन्हें सीआईएसएफ में 2 बार और सीआरपीएफ में 1 बार उत्कृष्ट सेवा के लिए महानिदेशक की प्रशस्ति डिस्क से सम्मानित किया गया.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें