मषहूर अदाकारा रिद्धि डोगरा पिछले 15 वर्षों से अभिनय जगत में काम कर रही हैं,जबकि वह अभिनेत्री बनना नहीं चाहती थी.वह तो डंास के षौक के चलते षाॅमक डावर से डांस की ट्ेनिंग ले रही थी.उसके बाद उन्हे एक चैनल पर नौकरी मिल गयी.पर एक दिन नौकरी छोड़ दी और अचानक दिया टोनी सिंह ने उन्हे सीरियल ‘‘मर्यादा’’ में अभिनय करने का अवसर दे दिया.उसके बाद से उन्होने पीछे मुड़कर नहीं देखा.कई टीवी सीरियलांे में अभिनय करने के अलावा वह ‘नच बलिए’ और ‘खतरों के खिलाड़ी’ जैसे रियालिटी षो का भी हिस्सा बनी.फिर वेब सीरीज ‘असुर’,‘मैरीड ओमन’ व ‘पिचर्स’ में भी नजर आयीं.मगर वह फिल्मों से नहीं जुड़ना चाहती थी.लेकिन उनकी तकदीर उन्हे फिल्मों में ले आयी.बतौर हीरोईन उनकी पहली फिल्म ‘‘लकड़बग्घा’’ तेरह जनवरी 2023 को सिनेमाघरों में प्रदर्षित हो चुकी हंै.जबकि षाहरुख खान के साथ फिल्म ‘जवान’ और सलमान खान के साथ फिल्म ‘‘टाइगर 3’’ की षूटिंग कर चुकी हैं.
प्रस्तुत है रिद्धि डोगरा के साथ हुई बातचीत के अंष…
सवाल – आपके अंदर अभिनय के प्रति रूचि कहां से पैदा हुई थी?
जवाब – मुझे लगता है कि मेरे मम्मी पापा में कुछ तो रहा होगा.मेरी मम्मी ने स्कूल व कालेज में स्टेज पर बहुत काम किया है.तो वही मेरे खून में आ गया.मेरे पापा को फिल्मों का बहुत षौक था.उनको सिनेमा का काफी ज्ञान था.जब मैं व मेरा भाई बच्चे थे,तब वह हमें फिल्मों के बारे में बताया करते थे कि कौन सी फिल्म में क्या है और वह कहंा फिल्मायी गयी थी.तो आप कह सकते हैं कि हमें यह सिनेमा के प्रति लगाव व रचनात्मकता के प्रति झुकाव कहीं न कहीं हमें हमारे माता पिता से ही मिला है.पर यह सच है कि मुझे अभिनेत्री नही बनना था.पर तकदीर ने मुझे अभिनेत्री बना दिया.
सवाल – 2007 से 2022 तक के अपने कैरियर को किस तरह से देखती हैं?
जवाब – मैं पीछे मुड़कर देखती नही हॅूं.मैं तो सिर्फ काम करते जा रही हॅूं.लेकिन अब मैं 2007 से पहले की बहुत सी चीजों को देख व समझ सकती हॅॅंू.मेरे अभिनेत्री बनने की बात अब मेरी समझ में आ रही है.हकीकत यही है कि मैं कभी भी अभिनेत्री नहीं बनना चाहती थी.मैने कभी नहीं सोचा था कि मुझे बड़े होकर अभिनय को कैरियर बनाना है.जबकि षुरू से ही मैं स्टेज पर या लोगों के बीच सहज रही हूॅॅं,क्योंकि मैं डांसर रही हॅूं.जब मैं कालेज में थी,तो मैने सायकोलाॅजी आॅनर्स किया.इसी के चलते मानवीय व्यवहार की समझ विकसित हुई.कलाकार को बहुत आॅब्जर्व करना चाहिए,वह आदत मेरे अंदर भी है.हर कलाकार मानवीय भावनाओं से काफी जुड़ा रहता है.मैं कभी अकेले रहते हुए बोर नही होती.क्योंकि तब मैं लोगों को आॅब्जर्व करती रहती हॅूं.उनके बात करने के तरीके,चाल ढाल वगैरह पर मेरी नजर रहती है.तो अब मेरी समझ में आया कि मैने सायकोलाॅजी/मनोविज्ञान से पढ़ाई क्यों की थी? मैं जूम टीवी पर नौकरी कर रही थी,पर यह नौकरी छोड़ दी,क्योंकि मुझे लगा कि मुझे कोई ‘बाॅस’ कैसे बता सकता है कि मुझेक्या करना है और क्या नहीं करना है.अब मेरी समझ में आया कि वह नौकरी मुझे क्यों नही भायी और मैं अपनी बाॅस बन गयी.आज बतौर कलाकार मैं अपने निर्णय खुद ले रही हॅॅंू.तो अब 2007 से पहले की बातें मेरी समझ में आ रही हैं.
सवाल – कभी आपने कहा था कि आप टीवी पर काम करते हुए खुष हैं.फिल्म नही करना चाहती.पर अब आपकी पहली फिल्म ‘‘लकड़बग्घा’’ सिनेमाघर में पहुॅच चुकी है?
जवाब – मैने बहुत बड़े सपने कभी नही देखे.मैं तो अच्छा काम करना चाहती थी.टीवी पर मुझे सषक्त किरदार निभाने को मिल रहे थे.पर जब ओटीटी षुरू हुआ,तब भी मुझे उससे जुड़ने की इचछा नही हुई.लेकिन एक दिन मेरे पास वेब सीरीज ‘असुर’ का आफर आया,कहानी सुनकर मना नही कर पायी.फिर‘मैरीड ओमन’ ओर ‘पिचर्स’ भी की.फिर जब एक दिन मेरे पास अंषुमन झा व फिल्म ‘लकड़बग्घा’ के निर्देषक विक्टर मुखर्जी आए और मुझे कहानी सुनायी,तो कर लिया.अगर आप इस पर कोई लेबल लगाना चाहते हैं तो यह मेरी पहली फिल्म है.हालांकि, मुझे लगता है कि मैं हमेशा दर्शकों से जुड़ी रही हूं, इसलिए मुझे ऐसा नहीं लग रहा है कि मैं पहली बार दर्शकों से मिली.जब भी मैं कहती हूं कि यह मेरी पहली फिल्म है,तो कभी-कभी मुझे यह अजीब लगता है.लेकिन यह भी सच है कि मैं पहली बार बड़े पर्दे पर नजर आ रही हूं, जो मेरे लिए काफी रोमांचक है.मैने इस फिल्म को दो वजहों से किया.एक तो यह फिल्म जानवरों पर बनी है और दूसरी वजह यह कि मुझे क्राव मागा सीखना था,जो कि इस फिल्म के निर्माता ने मुझे क्राव मागा सीखने का अवसर दिया.
सवाल – क्राव मागा सीखना कितना फायदेमंद रहा?
जवाब – मेरी समझ से क्राव मागा सभी को सीखना चाहिए,क्योंकि यह एक उस तरह का मार्शल आर्ट है,जिसमें हाथ से हाथ का मुकाबला होता है.यहां हथियार का उपयोग नहीं होता.क्राव मागा हमारे देष की महिलाओं के लिए बहुत उपयोगी है.वह इसका उपयोग आत्मरक्षा के लिए कर सकती हैं.
सवाल – अब तो आप षाहरुख खान और सलमान खान के साथ भी फिल्में कर रही हैं?
जवाब – जी हाॅ! जब मैने ‘लकड़बग्घा’ साइन की थी,उसके बाद ही मुझे षाहरुख खान के ेसाथ फिल्म ‘जवान’ और सलमान खान के ेसाथ ‘‘टाइगर 3’’ की है.इन फिल्मों को लेकर फिलहाल ज्यादा बात नही कर सकती.
सवाल – डांसर होने का अभिनय में कितनी मदद मिल रही है?
जवाब – मेरी राय में डांस और अभिनय सब परफार्मेंस ही हैं.डांस,अदाकारी में बहुत मदद करती हैं.हालांकि मैने क्लासिकल डांस कभी नही किया.क्लासिकल डांस से अभिनय करने में मदद बहुत मिलती है.लेकिन मुझे डांस से उर्जा मिलती है.जिसके चलते जब मैं कैमरे के सामने होती हॅूं,तो वह पल जाया नहीं होने देती.इतना ही नही डांस परफार्मेंस देते रहने के कारण जब मैं पहली बार कैमरे के ेसामने पहुॅची,तो मुझे डर नहीं लगा.जबकि तमाम कलाकार बताते हैं कि वह कैमरे के सामने फ्रिज हो गयी थी.या उन्हें डर लगा था.मंै तो सेट पर पूरी युनिट व कैमरे के सामने एकदम सहज थी.दूसरी बात स्टेज पर डांस करते रहने के कारण मेरे अंदर अनुषासन की भावना आ गयी है.मैंने षाॅमक डावर से नृत्य सीखा है. उन्होेने सिखाया था कि बिना अनुषासन के परफार्मेंस अच्छी हो ही नही सकती.सुबह से षाम तक एक ही डांस को बार बार करते रहना होता था.डांस करते समय हमें यह याद रखना होता था कि हर स्टेप सही होना चाहिए.तो डंास से मैंने हर छोटी छोटी चीज पर ध्यान देना सीखा.
सवाल – सायकोलाॅजी की पढ़ाई करने के कारण अभिनय में कितनी मदद मिल रही है?
जवाब – मुझे तो यही लगता है कि मैने सायकोलाॅजी मंे आॅनर्स किया, इसीलिए अभिनय मंे मेरा षौक बढ़ा.पहले मैं काॅमर्स स्टूडेंट थी.पर कालेज जाने पर मंैने साॅयकोलाॅजी ले ली.मेरे इस निर्णय से मेरे माता पिता भी हैरान हुए थे.अब जब मैं पटकथा पढ़ती हॅंू,अपने किरदार के बारे में पढ़ती हॅूं,या अलग अलग निर्देषक के साथ किरदार को लेकर विचार विमर्ष करती हॅूं,तो इंज्वाॅय करती हॅूं.सायकोलाॅजी पढ़ा है,इसलिए मैं किरदार का विष्लेषण करती हॅंूं कि यह इंसान ऐसा क्यों है?
मैं यहां पर बताना चाहॅूॅंगी कि जब मैं जूम टीवी में नौकरी कर रही थी,तो मेरा आफिस मंुबई में ही लोअर परेल में था.वहां से यहां अंध्ेारी तक लोकल ट्ेन से आती जाती थी.तो मैं हर किसी को आॅब्जर्व करती रहती थी.ट्ेन में मछली वाली मिलती थी.उनकी आपस की लड़ाईयों को आब्जर्व किया करती थी.घर आकर मैं मौसी को उसी तरह से एक्टिंग करके बताती थी कि आज ट्ेन में ऐसा हुआ.उन दिनों मैं अपनी मौसी के साथ रहती थी.तब मुझे अभिनेत्री नहीं बनना था.पर वह मेरे अंदर कहीं न कहीं था.क्यांेकि मैं आब्जर्व कर अभिनय कर रही थी.
सवाल- वैसे भी अभिनय में दो चीजमहत्वपूर्ण होती हैं.एक तो कलाकार के निजी जीवन के अनुभव व उसका अपना आब्जर्वेषन और दूसरा उसकी कल्पना षक्ति.आप इनमें से किसका कितना उपयोग करती हैं?
जवाब – कलाकार के तौर पर मैं दोनों का ही उपयोग करती हॅूं.आब्जर्वेषन और कल्पनाषक्ति दोनों का उपयोग करती हॅूं.मगर मैं अपनी निजी जिंदगी का ज्यादा उपयोग नहीं करती.क्यांेकि फिर मैं बहुत खर्च हो जाती हॅूं.इसलिए उससे बचने का प्रयास करती हॅूं.कई बार जब रोने का दृष्य हो,तो मैं अपनी निजी जिंदगी की घटना याद करती हॅूं,पर फिर लगता है कि मैं यह क्या कर रही हॅूं.मैं तो अपने गम को ही याद करके यूज करती हॅॅंू.पहले मैं अपनी निजी जिंदगी की घटनाओं का उपयोग करती थी,पर अब कम करती हॅूं.पहले मैं अपनी निजी जिंदगी के अनुभव,भावनाओं, अहसास का बहुत उपयोग करती थी,पर फिर लगा कि इसे अपने आप से अलग करना बहुत भारी हो जाता है.इसलिए षूटिंग से पहले वर्कषाॅप करना जरुरी है.वर्कषाॅप में हमंे समझ मंे आता है कि यह किरदार है,इसके यह चारित्रिक विषेषताएं हैं,इसकी यह बौडी लैंगवेज है और इस हिसाब से हमें चलना है.मैं मानती हॅूॅं कि कल्पना षक्ति काम आती है.कलाकार के तौर पर हमें किरदार में रूचि लेनी होती है.इसीलिए कहते हंै कि कलाकार भावुक होता है.कलाकार खुद को खर्च करने किए बगैर किरदार को समझ पाता है.
सवाल – आपने अब तक कई किरदार निभाए.कोई ऐसा किरदार जिसने आपकी निजी जिंदगी पर असर किया हो?
जवाब – टीवी पर तो लगभग सभी किरदार असर करते थे.क्योकि मैं ख्ुाद सीखती थी,मैं हर किरदार निभाते हुए बड़ी हो रही थी.षुरूआत में मेेरे हिस्से ऐसे किरदार आए,जहंा मैं कई संवाद बोलती थी,जो कि लड़कियों की जिंदगी के उत्थान के लिए होते थे.उस वक्त मैं भी बीस वर्ष की थी,तो उसका असर मुझ पर भी हो रहा था. उन चीजों,संवादों ने मुझे खुद को स्ट्ांग बनाने में बहुत प्रभावित किया था.फिर अभी मैने ओटीटी पर वेब सीरीज ‘‘मैरीड ओमन’’ किया,जिसका मुझ पर काफी असर हुआ.यदि हम औरतों की सेक्सुअल ओरिएंटेषन को नजरंदाज कर दें,तो समाज में कितनी औरते हैं,जो बोल नहीं पाती.तमाम औरतें बोल या बता नही पाती कि उनके दिल में क्या है?वह क्या अहसास करती हैं.मेरे मन में औरतों के प्रति संवेदना है.सिर्फ औरतों के प्रति ही नहीं,बल्कि आज के वक्त में लड़कों के लिए भी आवाज उठाना चाहिए.सभी ने अपने घर की बेटियों को सिखा दिया है कि आपको अपनी आवाज उठानी चाहिए.लड़कों को किसी ने नही सिखाया कि लड़कियां आवाज उठा रही हैं,उनकी इज्जत करो.लड़के तो अपने आप मंे जी रहे हैं.मुझे लगता है कि अब लड़कों को भी सिखाना चाहिए.बेचारे लड़के कन्फ्यूज हंै कि लड़कियां स्ट्ांग हो गयी,अब हम क्या करें?
सवाल – आप ओमन इम्पावरमेंट की बात कर रही हैं.पर आपको लगता है कि इसका समाज पर कुछ असर हो रहा है?
जवाब – फिल्म इंडस्ट्ी में ओमन इम्पावरमेंट तो कई वर्षों से चल रहा है.ब्लैक एंड व्हाइट के युग से स्ट्ांग ओमन किरदार फिल्मों में पेष किए जाते रहे हैं.मुझे लगता है कि समाज व फिल्म इंडस्ट्ी दोनों एक दूसरे के प्रतिबिंब ही हैं.लेकिन समाज ज्यादा बड़ा है.समाज की सोच ज्यादा बड़ी है.समाज में काफी बदलाव आया है.सोषल मीडिया की वजह से भी बदलाव आया है.अब उन्हे अपने मन की बात कहने की जगह मिल गयी है.पर अभी और बदलाव आने की जरुरत है.मैं टीवी से ओटीटी और फिल्म तक पहुॅची हॅूं,तो मैं बहुत ज्यादा आब्जर्व कर रही हॅूं.मैं अहसास कर रही हूॅॅं कि महिलाओं की आवाज उठाने का अवसर टीवी में ज्यादा था.फिल्मों में स्ट्ांग किरदार कम हैं, मुझे स्ट्ांग किरदार ढूढ़ने पड़ेंगे. इसके लिए मुझे ही लिखना पड़ेगा.नारी सषक्त है,पर समाज उन्हें दबा देता है.तो हम लड़कियों और औरतों को आवाज उठाते रहना पड़ेगा.दुनिया का दस्तूर तो औरतों को दबाते रहना ही है.