अगर आप सलाद नहीं खाती हैं तो…

सलाद भोजन का एक अनिवार्य अंग है.लेकिन एक सर्वे में पाया गया है कि महिलाएँ अक्सर खुद की थाली में सलाद परोसने से कतराती हैं या आलस करती हैं. वो इसके पीछे तर्क देती हैं कि अरे,  हमें सलाद की आदत बिल्कुल भी नहीं है या  ऐसा कबती हैं कि चलो आज रहने दो कल जरूर  खा लूंगी बात यह है कि  आज जरा जल्दी खाना निपटा लूं.पर यह बहाना बहुत घातक है क्योंकि सलाद को टाल देने की यह आदत फिर हौले -हौले स्वभाव ही बन जाती है इस तरह सलाद खुराक से हट ही जाता है लेकिन सलाद न खाने से बहुत नुकसान होते हैं इसके अनगिनत फायदे हैं लीजिए यह जान लीजिये.

सामान्य प्याज, टमाटर वाले सलाद  में पाया जाने वाला पोषक तत्व फाइबर और विटामिन सी से भरपूर होता है.  ये साइट्रिक एसिड से युक्त होता है. इसमें विटामिन सी के साथ अन्य पोषक तत्व होते हैं. और ये कैंसर जैसी गंभीर बीमारी के खतरे को कम करता है.टमाटर, खीरा, प्याज, हरी मिर्च और नींबू के रस  वाला  खट्टा-मीठा रसीला सलाद बहुत लाभदायक होता है. ये भूख को जगाता है साथ ही  ये तमाम औषधीय गुणों से भी भरपूर है.  इसमें एंटी इन्फ्लैमेटरी, एंटी-हेल्मिंथिक, एंटी-माइक्रोबियल, एंटी-ऑक्सीडेंट और एंटी-माइक्रोबियल जैसे गुण होते हैं. और ये सलाद  पेट से जुड़ी समस्या जैसे अल्सर, गैस,कब्ज, एसिडीटी आदि से छुटकारा पाने में मदद करता है. मूली, गाजर, चुकंदर वाले सलाद के  तो क्या कहने ,ये केवल दिखने में ही काफी फैंसी नहीं होता जबकि  इसमें कैलोरी की मात्रा कम होती है.

इसमें एंटीऑक्सीडेंट गुण होते हैं. अध्ययनों के अनुसार ऐसा रंगीन सलाद हृदय रोग, फेफड़ों के कैंसर, कोलोरेक्टल कैंसर और मेटाबोलिक रोग के जोखिम को कम कर सकता है. इसके अलावा इसमें फाइबर और कुदरती ग्लूकोज जैसे कई अन्य पोषक तत्व भी होते हैं..ये कैंसर, मोटापा और डायबिटीज जैसी बीमारियों से लड़ने में मदद करता है. महिलाओं मे इम्युनिटी बढ़ाने में मदद करता है. ये बुखार और पीलिया को भी ठीक करता है. सलाद की तासीर ठंडी होती है. कोई भी सलाद हो इसमें  टैनिन,फाइबर,फॉस्फोरस, प्रोटीन और आयरन जैसे तत्व तो होते ही हैं. एक प्लेट सलाद में प्रचुर मात्रा में प्रोटीन होते है. जो शरीर में वसा की मात्रा को बढ़ने नहीं देते है. इसके कारण शरीर का वजन नहीं बढ़ता है. जिनको अपना वजन कम करना है तो उनको एक बड़ी प्लेट रंग बिरंगे सलाद का सेवन रोजाना करना चाहिए.

सलाद  में कई तरह के विटामिन और एंटीऑक्सीडेंट तत्व के गुण होते है. जो शरीर के रक्त चाप को नियंत्रण करने में सहायता करते है. रक्त चाप के मरीजों को दोनो समय आहार से पहले सलाद का चबाचबाकर  सेवन करना चाहिए.

प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए सलाद एक अच्छी औषधि है. इसके  के एंटीऑक्सीडेंट तत्व शरीर की इम्युनिटी सिस्टम को मजबूत रखने में सहायता करता है. जिसके कारण शरीर को बीमारियों से लड़ने की ताकत मिले यानि वह व्यक्ति जल्दी बीमार नहीं होता है.

आंखो के लिए  तो सलाद की प्लेट बहुत ही अनुकूल है. रंगीन सलाद बहुत गुणों से भरा हुआ रहता है. रोजाना इसका का सेवन करने आंखो की रौशनी और शक्ति भी  बढ़ती है. आंखो से जुडी समस्या को ठीक करने में सहायता करता है.  सलाद की  कच्ची सब्जियां मन को खुश रखती हैं. हर दिन सलाद खाना है यह शपथ लीजिए.

Mother’s Day Special: जब फेल हो जाएं ओवरीज

भारत में 25% महिलाएं अनियमित माहवारी या माहवारी से जुड़ी समस्याओं से जूझ रही हैं. 90% मामलों में बीमारी के कारणों का पता नहीं चलता है.

मां बनने की उम्र पर आ कर किसी युवती को यह पता चले कि वह कभी मां नहीं बन सकती है, तो उस के लिए दुनिया मानो रुक सी जाती है. मां न बन पाने के लिए कई कारण जिम्मेदार होते हैं, जिन में से एक है ओवरीज का फेल हो जाना.

आइए, जानते हैं कि किन कारणों से यह समस्या पैदा होती है और क्या है इस से निबटने का तरीका:

पीओएफ यानी प्रीमैच्योर ओवरीज फेल

पीओएफ का मतलब है 40 की उम्र से पहले ओवरीज का सामान्य काम न करना. मतलब कि ओवरीज का सामान्य रूप से ऐस्ट्रोजन हारमोन का निर्माण न करना या नियमित रूप से अंडे का रिलीज न करना.

कई बार उम्र से पहले ओवरीज के फेल होने को मेनोपौज से जोड़ दिया जाता है, लेकिन ये स्थितियां भिन्न हैं. किसी महिला की ओवरीज फेल होती हैं तो उसे अनियमित माहवारी हो सकती है और वह गर्भधारण भी कर सकती है. उम्र से पहले मेनोपौज का अर्थ है कि माहवारी का स्थाई तौर पर रुक जाना. उस के बाद गर्भवती होना नामुमकिन होता है.

कैसे पहचानें इस अनचाहे खतरे को

अगर आप को अनियमित माहवारी, बहुत ज्यादा गरमी लगना व पसीना आने की शिकायत हो तो जल्द से जल्द किसी फर्टिलिटी सैंटर में जा कर अपनी जांच करवानी चाहिए. अगर ब्लड टैस्ट में आप का फौलिकल स्टिम्यूलेटिंग हारमोन 25% से ज्यादा है, तो आप को पीओएफ का खतरा है.

पीओएफ का कारण

पिछले कुछ समय से महिलाओं में उम्र से पहले ओवरीज फेल होने के मामले बढ़े हैं. हालांकि यह समस्या आनुवंशिक है, लेकिन पर्यावरण और जीवनशैली जैसेकि धूम्रपान, शराब का सेवन, लंबी बीमारी जैसे थायराइड व ओडेटो इम्यून बीमारियां, रेडियोथेरैपी या कीमोथेरैपी होना भी इस के मुख्य कारण हैं.

इसके अलावा टीबी भी उम्र से पहले ओवरीज फेल होने का कारण हो सकती है. भारत में 30 से 40 साल की आयुवर्ग में पीएफओ के मामले 0.1% हैं, लेकिन 25% महिलाएं अनियमित माहवारी या माहवारी के कई महीने तक न होने के बाद फिर से शुरू होने जैसी समस्याओं से जूझ रही हैं.

युवतियां भी हो सकती हैं शिकार

कम उम्र की लड़कियां भी इस बीमारी की चपेट में आ सकती हैं. डा. शोभा गुप्ता बताती हैं कि आज का बदलता पर्यावरण और जीवनशैली के कारण शरीर में कई बदलाव आ रहे हैं. ऐसे में उम्र से पहले ओवरीज फेल होने के कई मामले देखने को मिल रहे हैं.

इस तरह की बीमारियों से बचने के लिए बेहतर है कि समय पर परिवार बढ़ाने के बारे में सोचें. साथ ही, अगर किसी भी तरह की दिक्कत आ रही हो तो मैडिकल जांच जरूर करवाएं. इस तरह की समस्या होने पर घबराने की जरूरत नहीं है, क्योंकि इस समस्या का भी चिकित्सा के क्षेत्र में समाधान है.

आईवीएफ तकनीक

एग डोनेशन तकनीक अपना कर बच्चे की चाहत को पूरा किया जा सकता है. एग डोनेशन का मतलब है ओवम को फ्रीज कर के रखना. इस से महिलाएं 35 की उम्र के बाद भी आईवीएफ तकनीक के जरीए गर्भधारण कर सकती हैं.

इस तकनीक में महिला को 14 दिन तक हारमोन के इंजैक्शन लगाए जाते हैं. उस के बाद उस के परिपक्व ओवम को फ्रीज किया जाता है. यह तकनीक उन दंपतियों के लिए वरदान है, जो कैरियर या किसी अन्य बीमारी जैसेकि उम्र से पहले ही ओवरीज के फेल होने से ग्रस्त हैं.

डा. शोभा गुप्ता बताती हैं, ‘‘आईवीएफ विशेषज्ञा होने के नाते मैं गर्भधारण में उम्र के महत्त्व को समझती हूं. लेकिन अगर किसी दंपती को इस में देरी करनी है, तो एग डोनेशन अच्छा समाधान है.’’

टैस्ट ट्यूब बेबी

टैस्ट ट्यूब बेबी को ले कर लोगों में अनेक जिज्ञासाएं होती हैं. जबलपुर के नौदरा ब्रिज स्थित आइडियल फर्टिलिटी के संचालक डा. दीपंकर बनर्जी ने बताया कि स्त्री की फैलोपियन ट्यूब यदि बंद हो अथवा अन्य कोई कारण हो, जिस से साधारण रूप से बच्चा नहीं हो सकता हो तो स्त्री के अंडों को बाहर निकाल कर उस के पति के शुक्राणु से शरीर के बाहर भ्रूण बनाते हैं और फिर स्त्री के गर्भ में बैठा देते हैं. यदि शुक्राणु निल (नहीं) हैं, तो शुक्राशय से शुक्राणु निकाल कर टैस्ट ट्यूब बेबी कर सकते हैं या फिर बंद नली को खोल सकते हैं. इस में किसी बैड रैस्ट की जरूरत नहीं पड़ती और न ही किसी तरह के औपरेशन की.

ऐसी महिलाएं, जिन की माहवारी बंद हो चुकी हो या बंद हो रही हो एवं बच्चा नहीं हो तो उन के लिए अंडदान करवा कर गर्भधारण करवा सकते हैं. एक टैस्ट ट्यूब बेबी पर खर्च करीब 90 हजार रूपया आता है. आजकल भ्रूण व शुक्राणु बैंकिंग तथा संग्रहण की भी सुविधा उपलब्ध है. डी.एन.ए. परीक्षण द्वारा अजन्मे बच्चे की थैलेसीमिया व सिकल सैल की पूर्ण जांच की जाती है.

– डा. शोभा गुप्ता

आईवीएफ विशेषज्ञा, मदर्स लैप आईवीएफ सैंटर से बातचीत पर आधारित

Eid Special: ईद पर ऐसे रखे अपनी सेहत का ख्याल

रोजेदारों का इंतजार अब खत्म होने को है. ईद की खुशियां छाने लगी हैं, लोग तैयारी में जुटे हुए हैं. गर्मी भी अपने शबाब पर है. ऐसे में ईद वाले दिन खानपान को लेकर सतर्कता बरतने की जरूरत है. लापरवाही से सेहत बिगड़ सकती है. चिकित्सकों का कहना है कि खूब जश्न मनाएं, पर सेहत को नजरंदाज बिल्कुल न करें. कुछ बातों का ख्याल रखकर त्योहार के दौरान बीमारी की चपेट में आने से बचा जा सकता है। एक रिपोर्ट..

पोषक आहार के साथ करें दिन की शुरुआत

ईद के दिन घर-घर पकवान बनाए जाते हैं। सामूहिक ईद मिलन समारोहों का दौर भी शुरू हो जाता है। ऐसे माहौल में एक माह तक रोजे रखने वालों को एकाएक गरिष्ठ भोजन करने से बचना चाहिए।

जिला अस्पताल के डॉ. अमित सिंह का कहना है कि ईद पर पोषक आहार के साथ दिन की शुरुआत करना बेहतर रहेगा। भारी खाने से बचें, ज्यादा तला-भुना और नमकीन खाने से परहेज करें

  • ब्राउन राइस

ब्राउन राइस में वाइट राइस की तुलना में कहीं अधि‍क फाइबर पाए जाते हैं. अगर सेहत की बात करें तो विशेषज्ञ भी मानते हैं कि वाइट राइस की तुलना में ब्राउन राइस खाना ज्यादा फायदेमंद होता है.

  • हरी सब्जियां

पत्तीदार हरी शाक-सब्जियाँ शरीर के उचित विकास एवं अच्छे स्वास्थ के लिए आवश्यक होती है,क्योंकि इसमें सभी जरूरी पोषक तत्व उपस्थित होते हैं.  पालक, तोटाकुरा, गोंगुरा, मेथी, सहजन की पत्तियाँ और पुदिना इनमें से एक हैं.

  • लीन मीट
  • मछली
  • अंडे
  • फल जैसे- तरबूज, खरबूजा, आम केला व सेब मेहमानों का स्वागत कराना अच्छा रहेगा.

मेरा वजन 118 किलोग्राम हैं, क्या बैरिएट्रिक सर्जरी के द्वारा अतिरिक्त चरबी को खत्म हो सकती है?

सवाल

मेरी उम्र 38 साल और वजन 118 किलोग्राम हैं. मुझे पिछले 8 सालों से डायबिटीज की शिकायत है. मुझे किसी ने सलाह दी है कि बैरिएट्रिक सर्जरी के द्वारा अतिरिक्त चरबी को खत्म कर के डायबिटीज को भी ठीक किया जा सकता है. यह बात कितनी सही है?

जवाब

जी हां, बहुत संभावना है कि बैरिएट्रिक सर्जरी के द्वारा डायबिटीज को पूरी तरह खत्म किया जा सकता है. इस के लिए सब से पहले हमें कुछ टैस्ट द्वारा बौडी में इंसुलिन के स्तर की जांच करनी होती है. यदि जांच फेवर में हो तो मरीज की मैटाबोलिक सर्जरी की जाती है. इस सर्जरी को करने के बाद डायबिटीज ठीक हो जाती है.

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सवाल

मेरी उम्र 32 साल और वजन 108 किलोग्राम है. मैं डाइटिंग व ऐक्सरसाइज के द्वारा वजन कम करने की बहुत कोशिश करती हूं लेकिन बहुत ज्यादा फर्क नहीं आ पाता है. क्या बाजार में उपलब्ध वजन कम करने की दवाइयां व सप्लिमैंट लेना सुरक्षित है और यह कारगर साबित होता है?

जवाब

वजन कम करने के लिए दवा व सप्लिमैंट का प्रयोग किया जा सकता है. इस का प्रभाव भी पड़ता है, लेकिन यह प्रभाव सीमित समय तक ही रहता है. जैसे ही दवा लेना बंद करते हैं वजन बढ़ने लगता है. दूसरा वजन में केवल 5 से 10% तक ही फर्क पड़ता है. यह दवा व सप्लिमैंट केवल कुछ अधिक वजन वाली सामान्य आबादी पर ही कारगर साबित होता है. यह दवा दिमाग के सैरोटोनिन रिसैप्टर 2 को सक्रिय करती है. इस रिसैप्टर के सक्रिय होने से भूख कम लगती है और थोड़ा सा खाने से ही पेट भर जाने का एहसास होता है. अत्यधिक मोटापे से ग्रस्त लोगों पर इस दवा का कोई असर नहीं होता. आप को सम?ाना होगा कि यदि आप का मोटापा आनुवंशिक है तो आप के पास सर्जरी और नियमित संतुलित आहार व व्यायाम ही विकल्प है.

-डा. कपिल अग्रवाल

डाइरैक्टर, हैबिलाइट सैंटर फौर बैरिएट्रिक ऐंड लैप्रोस्कोपिक सर्जरी

पाठक अपनी समस्याएं इस पते पर भेजें : गृहशोभा, ई-8, रानी झांसी मार्ग, नई दिल्ली-110055.

व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या 9650966493 पर भेजें.     

पिछले कुछ महीनों से खाने के बाद हमेशा मेरे सीने में तेज जलन होती है, क्या करूं?

सवाल

मुझे सीने व गले में लगातार जलन रहती है. पहले तो यह तकलीफ कभीकभी होती थी, लेकिन पिछले कुछ महीनों से खाने के बाद जलन हमेशा होती है. हालांकि मैं खाने में ज्यादा मिर्च व तलाभुना लेने से परहेज करती हूं. क्या करूं?

जवाब

ग्रासनली एक ऐसी नली होती है जो मुंह से भोजन पेट में ले जाती है. गैस्ट्रोइसोफेजियल रिफलक्स डिजीज (गर्ड) या ऐसिडिटी तब होती है जब आप की ग्रासनली के अंतिम सिरे पर स्थित मांसपेशी ठीक प्रकार से बंद नहीं होती है. इस से पेट की चीजें वापस ऊपर ग्रासनली में रिसने लगती हैं और जलन उत्पन्न करती हैं. आप को अपने सीने या गले में जलन का अनुभव हो सकता है जिसे हार्टबर्न कहते हैं.

कभीकभी आप को अपने मुंह में पेट के तरल का अनुभव हो सकता है. इस का उपचार न करने पर इस की वजह से गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं. कुछ मामलों में आप को दवा या सर्जरी की भी आवश्यकता पड़ सकती है.

निम्न तरीके से इन लक्षणों को कम किया जा सकता है.

शराब और मसालेदार, तैलीय या ऐसिडिक आहार से दूर रहें.

एकदम ज्यादा न खाएं बल्कि छोटे आहार लें.

खाना खा कर एकदम न सोएं, वजन को नियंत्रित रखें.

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सवाल

मेरी उम्र 40 साल ह. मैं पिछले काफी समय से अपने पेट व जांघ के बीच सूजन महसूस कर रहा हूं. धीरेधीरे यह बढ़ती जा रही है. जब मैं ने एक डाक्टर को दिखाया तो उन्होंने हर्निया की शिकायत बताई और औपरेशन करवाने की सलाह दी. मुझे औपरेशन से डर लगता है. क्या इस का कोई विकल्प है?

जवाब

हर्निया का सिर्फ एक ही उपचार है सर्जरी. इसे अन्य किसी भी दवा से ठीक नहीं किया जा सकता. आजकल हर्निया की सर्जरी लैप्रोस्कोपी के द्वारा भी की जाती है. इस में डरने वाली कोई बात नहीं होती क्योंकि सिर्फ

3 छोटे छेद कर के सर्जरी कर दी जाती है. 24 घंटे के अंदरअंदर मरीज को अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया जाता है. इसलिए आप को बिना किसी डर या शंका के किसी काबिल सर्जन से अपनी सर्जरी करवा लेनी चाहिए.

-डा. कपिल अग्रवाल

डाइरैक्टर, हैबिलाइट सैंटर फौर बैरिएट्रिक ऐंड लैप्रोस्कोपिक सर्जरी द्य

पाठक अपनी समस्याएं इस पते पर भेजें : गृहशोभा, ई-8, रानी झांसी मार्ग, नई दिल्ली-110055.

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पीरियड्स पर मौसम का असर

हम सभी के मन में पीरियड्स को ले कर कई सारे सवाल होते हैं. जैसे यह कैसे प्रभावित होता है? किस तरह से यह हमें प्रभावित करता है? क्या हो अगर किसी तरह से हमारे इस साइकल में रुकावट आ जाए?

क्या मौसम आप के पीरियड्स में रुकावट ला सकता है? इस का जवाब है हां. सर्दियों में पीरियड्स और प्रीमैंस्ट्रुअल तनाव बिलकुल बढ़ सकता है. सर्दियों में पीरियड्स बहुतों के लिए अत्यधिक बुरे हो सकते हैं. सर्दियों में अधिक ठंड के कारण महिलाएं बहुत आसानी से बीमार पड़ सकती हैं. कई बार महिलाओं का मूड भी तापमान की तरह गिरता रहता है और ऐसा लगता है सर्दी का यह मौसम उन के पीरियड्स साइकल पर बहुत ज्यादा असर डाल सकता है. इसीलिए महिलाएं अकसर सर्दियों में पीरियड्स में दिक्कत आने की शिकायत करती रहती हैं. ऐसे में बदलते मौसम के साथ कुछ जरूरी बातों का ध्यान रखना जरूरी है. आइए, जानते हैं वे महत्त्वपूर्ण बातें जो सर्दियों में पीरियड्स साइकल में होने वाले बदलावों से बेहतर तरीके से निबटने में मदद कर सकती हैं:

1. पीरियड्स साइकल की अवधि

सर्दी पीरियड्स साइकल की अवधि को प्रभावित करती है. हारमोन स्राव में बढ़ोतरी, ओव्युलेशन की बढ़ती फ्रीक्वैंसी और साइकल का कम होना जहां सर्दियों की तुलना में 0.9 दिनों का होता है वहीं सर्दियों में पीरियड्स साइकल ठंड की वजह से बिगड़ जाता है. इस रिसर्च के अनुसार गरमियों में अंडाशय अधिक सक्रिय होता है. सर्दियों में ओव्युलेशन स्तर 97% से घट कर 71% रह जाता है. लंबे पीरियड्स साइकल और घटे हुए ओव्युलेशन के कारण पीरियड्स का अनुभव परेशानी भरा हो सकता है.

2. धूप

धूप यानी सूर्य की किरणें विटामिन डी और डोपामाइन दोनों ही बनाने में मदद करती हैं. इन के बिना जो मूड स्विंग्स हम पीरियड्स में महसूस करते हैं, वह बढ़ सकता है, जिस से पार पाना मुश्किल हो सकता है. धूप प्लैजर, मोटिवेशन और कंस्ट्रेशन बढ़ाता है. धूप शरीर में फौलिक स्टिम्युलेटिंग हारमोन  के स्राव को बढ़ा देती है. यह हारमोन शरीर को साधारण बनाता है. महिलाएं गरमियों की तुलना में सर्दियों में ज्यादा ओव्युलेट करती हैं, जिस से उन के पीरियड्स लंबे समय तक चलते हैं.

3. प्री मैंस्ट्रुअल सिंड्रोम

प्री मैंस्ट्रुअल सिंड्रोम यानी पीरियड्स शुरू होने से पहले जो बदलाव या लक्ष्ण महिलाओं में दिखाई देते हैं, उन में महिलाओं को चिड़चिड़ापन, सूजन, चिंता, ऐंग्जाइटी और डिप्रैशन महसूस होता है. सर्दियों में महिलाएं अधिकतर घर में रहती हैं, जिस से वे खुद को अधिक तटस्थ महसूस करती हैं. धूप की कमी यानी विटामिन डी और कैल्सियम की कमी के कारण पीएमएस और बढ़ जाता है. ऐसे समय में खानपान का खास ध्यान रखना जरूरी हो जाता है. उच्च कैल्सियम युक्त खाद्यपदार्थों के सेवन और नियमित रूप से ऐक्सरसाइज करने से पीएमएस के लक्षणों में सुधार आ सकता है.

4. पीरियड्स में होने वाला दर्द

सर्दियों  में पीरियड्स का दर्द अधिक बढ़ जाता है, क्योंकि ये हमारी रक्तवाहिकाओं को संकुचित कर देते हैं. इस से रक्तवाहिनियों में अवरोध पैदा हो जाता है और रक्तप्रवाह में बाधा आती है. इसीलिए सर्दियों में दर्द ज्यादा होता है. इस के लिए गरम पानी की बोतल या हीटिंग पैड इस दर्द को कम करने में मदद कर सकता है.

5. हारमोनल इंबैलेंस

हारमोनल इंबैलेंस सर्दियों में होने वाली एक और समस्या है. ठंडे मौसम के कारण सर्दियों में धूप कम निकलती है, कम धूप न केवल ऐंडोक्रीन सिस्टम को प्रभावित करती है, बल्कि थायराइड की गति को भी धीमा कर देती है. धीमे थायराइड से मैटाबोलिज्म भी धीमा हो जाता है. इस का असर हमारे मैटाबोलिज्म और पीरियड्स पर पड़ता है जब तक कि शरीर खुद को मौसम के अनुसार नहीं ढाल लेता. यदि आप के मासिकधर्म में ज्यादा दिक्कत आती है तो गाइनेकोलौजिस्ट या ऐंडोक्रिनोलौजिस्ट से मिलें.

हमारे व्यवहार, परिवर्तन का असर भी हमारे पीरियड्स पर पड़ता है. सर्दियों में हमारे व्यावहारिक जीवन में काफी बदलाव देखने को मिलता है जैसेकि ऐक्सरसाइज कम करना, हाई फैट व शुगरी फूड खाना, शराब का सेवन अधिक करना. इस तरह की जीवनशैली पीरियड्स में होने वाली तकलीफ और पीएमएस को बढ़ा सकती है. मूड, मैटाबोलिज्म और मैंस्ट्रुएशन तीनों मौसम बदलने के साथ बदलते हैं.

 -जैसमिन वासुदेवा

मार्केटिंग मैनेजर, सैनिटरी नैपकिन नाइन 

जोड़ों के दर्द को न करें नजरअंदाज, हो सकता है गठिया बाय

हम सभी अपने जीवन में कभी न कभी जोड़ों के दर्द से पीडि़त होते हैं. हालांकि सभी जोड़ों के दर्द का मतलब यह नहीं है कि हम आर्थराइटिस से पीडि़त हैं. लेकिन 1 से अधिक जोड़ों में लगातार होने वाले दर्द को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए. जोड़ों के दर्द को नजरअंदाज करने से जोड़ों में खराबी आ सकती है और परिणामस्वरूप उनमें विकृति आ सकती है. इसलिए चिकित्सीय सहायता जरूरी है.

इसके अलावा आर्थराइटिस के 200 विभिन्न प्रकार हैं. विभिन्न प्रकार के आर्थराइटिस में गंभीरता के विभिन्न स्तर होते हैं. आर्थराइटिस के विभिन्न प्रकारों में, गठिया बाय भारत में आर्थराइटिस का दूसरा सब से आम प्रकार है. गठिया बाय आर्थराइटिस का गंभीर प्रकार है क्योंकि यह सिर्फ जोड़ों का रोग नहीं है बल्कि यह त्वचा, आंखें, हृदय, फेफड़े और गुर्दे जैसे अन्य महत्वपूर्ण अंगों को भी प्रभावित करता है. गठिया बाय एक ऑटोइम्यून रोग है जिसका अर्थ है कि प्रतिरक्षा प्रणाली में कुछ समस्या है. गठिया बाय में रोगी की प्रतिरक्षा प्रणाली शरीर के स्वस्थ ऊतकों पर हमला करना शुरू कर देती है और दर्द और अन्य लक्षण जैसे सूजन और जकड़न का कारण बनती है. इससे शुरुआत में छोटे जोड़ प्रभावित होते हैं लेकिन बाद में शरीर के अन्य अंग भी प्रभावित हो सकते हैं.

गठिया बाय बहुत तेजी से आगे बढ़ता है और इसलिए शरीर के अन्य भागों में विकृति और जटिलताओं को रोकने के लिए प्रारंभिक अवस्था में गठिया बाय का निदान और उपचार करना आवश्यक है.

यहां कुछ लक्षण दिए गए हैं जो गठिया बाय को पहचानने और अपने डॉक्टर से परामर्श करने में मदद कर सकते हैं.

6 सप्ताह से अधिक समय से जोड़ों का दर्द

6 सप्ताह से अधिक समय से जोड़ों का दर्द जो आराम करने से कम नहीं हो रहा है और दिनों दिन बढ़ रहा है. एक से अधिक जोड़ों में दर्द हाथ, कोहनी और कंधे आदि के जोड़. आपके हाथों की उंगलियों के जोड़ और पैरों के तलवों में सूजन इसकी वजह से मुट्ठी बांधना और वस्तुओं को पकड़ना मुश्किल हो जाता है और लोगों से हाथ मिलाते समय भी दर्द होता है.

सुबह 1 घंटे से अधिक समय तक जोड़ों में अकड़न सुबह के समय जोड़ों में अकड़न होना जिस से बिस्तर से उठना और दैनिक कार्य करना मुश्किल हो जाता है.

परिवार में किसी भी व्यक्ति को गठिया बाय होना गठिया बाय वंशानुगत हो सकता है. यदि आपके किसी निकट संबंधी को गठिया बाय है तो संभावना है कि आपको भी यह हो सकता है.

थकान और हल्का बुखार

आप थकान का अनुभव करते हैं जो आराम करने से भी कम नहीं होता है और हल्का बुखार रहता है.

जोड़ों के दर्द के लिए दर्द निवारक दवा लेने की जरूरत है 

आपको दर्द नाशक दवाएं लेनी पड़ती हैं क्योंकि घरेलू उपचार से दर्द कम नहीं हो रहा है. दर्द नाशक दवाएं केवल लक्षणों में आराम देते हैं. इसमें खुद से दवा लेना उपयोगी नहीं होता है. यह समय है जब आप अपने डॉक्टर से परामर्श लें. डॉक्टर इसका सही निदान और उपचार करने में आपकी सहायता करेंगे.

6 सप्ताह से अधिक समय से जोड़ों का दर्द.

6 सप्ताह से अधिक समय से जोड़ों का दर्द जो आराम करने से कम नहीं हो रहा है और दिनों दिन बढ़ रहा है. एक से अधिक जोड़ों में दर्द हाथ, कोहनी और कंधे आदि के जोड़.

आपके हाथों की उंगलियों के जोड़ और पैरों के तलवों में सूजन इसकी वजह से मुट्ठी बांधना और वस्तुओं को पकड़ना मुश्किल हो जाता है और लोगों से हाथ मिलाते समय भी दर्द होता है.

सुबह 1 घंटे से अधिक समय तक जोड़ों में अकड़न सुबह के समय जोड़ों में अकड़न होना जिस से बिस्तर से उठना और दैनिक कार्य करना मुश्किल हो जाता है.

परिवार में किसी भी व्यक्ति को गठिया बाय होना गठिया बाय वंशानुगत हो सकता है. यदि आपके किसी निकट संबंधी को गठिया बाय है तो संभावना है कि आपको भी यह हो सकता है.

थकान और हल्का बुखार

आप थकान का अनुभव करते हैं जो आराम करने से भी कम नहीं होता है और हल्का बुखार रहता है.

जोड़ों के दर्द के लिए दर्द निवारक दवा लेने की जरूरत है

आपको दर्द नाशक दवाएं लेनी पड़ती हैं क्योंकि घरेलू उपचार से दर्द कम नहीं हो रहा है. दर्द नाशक दवाएं केवल लक्षणों में आराम देते हैं. इसमें खुद से दवा लेना उपयोगी नहीं होता है. यह समय है जब आप अपने डॉक्टर से परामर्श लें. डॉक्टर इसका सही निदान और उपचार करने में आपकी सहायता करेंगे.

सर्वाइकल कैंसर का प्रजनन क्षमता पर पड़ने वाले असर को समझना

कैंसर का पता चलना भारी सदमा पहुँचाने वाला हो सकता है, और कैंसर के उपचार से प्रजनन क्षमता (फर्टिलिटी) और संपूर्ण सेहत, दोनों प्रभावित हो सकते हैं. सर्वाइकल कैंसर, कैंसर का एक प्रकार है जो गर्भाशय ग्रीवा (सर्विक्‍स) में होता है. गर्भाशय ग्रीवा गर्भाशय के निचले हिस्से में स्थित होती है और वजाइना की ओर आगे निकली होती है.

हाल में किए गए शोध के मुताबिक, 30-35 साल की उम्र की महिलाओं में सर्वाइकल कैंसर होने के मामलों में बढ़ोतरी देखने को मिली है. डब्ल्यूएचओ के अनुमान के अनुसार, 2019 में 45,300 भारतीय महिलाओं को सर्वाइकल कैंसर के कारण अपनी जान गँवानी पड़ी. इसलिए, सही कदमों और उपायों के साथ इस तरह के स्वास्थ्य संबंधी जानलेवा खतरों का सामना करने के लिए शिक्षित और जागरूक होना बहुत महत्वपूर्ण है.

डॉ. गुंजन सभरवाल, गुरुग्राम में आईवीएफ विशेषज्ञ, नोवा आईवीएफ फर्टिलिटी, का कहना है कि-

कैंसर के उपचार के बाद प्रजनन दर में कमी आती है

सर्वाइकल कैंसर से लड़ने के लिए उपचार के अनेक विकल्प उपलब्ध हैं। हालाँकि, इस तरह के स्वास्थ्य संबंधी खतरों के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाने वाली विधियों का भविष्य में गर्भधारण के प्रयासों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है :

सर्जरी :

कैंसर के ग्रेड के आधार पर सर्वाइकल कैंसर का इलाज कोनाइजेशन, एलईईपी, रैडिकल हिस्टेरेक्टॉमी या हिस्टेरेक्टॉमी जैसी सर्जरी की मदद से किया जाता है. ये प्रक्रियाएँ प्रजनन क्षमता में बाधा डाल सकती हैं.

कीमोथेरेपी :

कीमोथेरेपी साइटोस्टैटिक्स और साइटोटॉक्सिन नामक दवाओं का उपयोग करके तेजी से विभाजित होने वाली कैंसर कोशिकाओं के विभाजन को नष्ट करती या रोकती है। चूँकि,दवा आमतौर पर “व्‍यवस्थित रूप से” रक्तप्रवाह के माध्यम से दी जाती है, इसलिए यह विभिन्न प्रकार की कोशिकाओं को भी लक्षित कर सकती है। यदि इसका असर अंडों के डीएनए पर असर पड़ता जाता है (यानी, अंडा आनुवंशिक रूप से असामान्य हो जाता है), तो हो सकता है इसका निषेचन (फर्टिलाइजेशन) नहीं हो, या इसके कारण गर्भपात या जन्म दोष हो सकता है.

रेडिएशन थेरेपी :

रेडिएशन थेरेपी (विकिरण चिकित्सा) में कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करने की उम्‍मीद में उच्च-ऊर्जा किरणों को निर्देशित करना शामिल है. लेकिन, इस उपचार के दौरान, शरीर कैंसर से अप्रभावित हिस्सों पर भी बहुत जोखिम हो जाता है, जिससे महिला के सभी अंडाणु नष्ट हो जाते हैं. विकिरण गर्भाशय की परत को भी प्रभावित करेगा और उन पर घाव के दाग पैदा करेगा. रेडिएशन थेरेपी से गुजरने वाली महिलाओं के समय से पहले मेनोपॉज होने की संभावना नहीं होती है.

सर्वाइकल कैंसर से लड़ने वाली महिलाओं के लिए प्रजनन के विकल्प

कैंसर से जंग जीतने वाले जो लोग उपचार से पहले प्रजनन संरक्षण करा लेते हैं, उनके पास परिवार शुरू करने के कई विकल्प होते हैं. आईवीएफ, आईयूआई, एग या एम्ब्रियो फ्रीजिंग जैसे अत्‍याधुनिक फर्टिलिटी समाधान कैंसर के उपचार से पीड़ित महिलाओं या उसके बाद के चरण में पैरेंटहुड  की इच्छा रखने वाली महिलाओं के लिए बहुत बड़ा वरदान साबित होता है.

अन्य प्रक्रियाओं, जैसे कि डिम्बग्रंथि के ऊतकों की फ्रीजिंग के लिए अपनी प्रजनन योजनाओं को शुरू करने से पहले आपको अपने प्रजनन विशेषज्ञ से परामर्श करने और उनका मार्गदर्शन लेने की आवश्यकता होती है. आपके प्रजनन संबंधी विकल्पों और प्रजनन क्षमता पर कैंसर के उपचार के संभावित प्रभाव के बारे में अपने डॉक्टर के साथ व्यापक बातचीत करना महत्वपूर्ण है. सही दृष्टिकोण के साथ, कपल्‍स के पास भविष्य में माता-पिता बनने की सबसे अच्छी संभावना हो सकती है.

सर्वाइकल कैंसर की रोकथाम और टीकाकरण

सर्वाइकल कैंसर से बचाव में मदद के लिए आप जो दो सबसे महत्वपूर्ण कार्य कर सकते हैं, वह है जल्दी टीका लगवाना और नियमित रूप से जाँच कराना. एचपीवी वैक्सीन एचपीवी के उन प्रकारों से रक्षा कर सकता है जो सर्वाइकल कैंसर का कारण बनते हैं, और पैप टेस्‍ट और एचपीवी टेस्‍ट जैसे नियमित जाँच कराने से सर्वाइकल कैंसर का जल्द पता लगा सकते हैं, खासकर जब यह सबसे अधिक उपचार के योग्य होता है.

क्या प्रैग्नेंसी के दौरान सैक्स करना सेफ रहेगा?

सवाल-

मैं 2 महीने से प्रैगनैंट हूं. क्या इस समय सैक्स करना सेफ रहेगा?

जवाब-

प्रैगनैंसी के पहले 3 महीने या पहली तिमाही तक इंटरकोर्स या सैक्स करना सेफ नहीं होता है. इस से गर्भपात होने की संभावना रहती है. लेकिन दूसरी तिमाही में सैक्स कर सकते हैं. इंटरकोर्स करते समय इस बात का ध्यान रहे कि उस में प्यार और फोरप्ले का समावेश ज्यादा हो यानी पार्टनर से जबरदस्ती बिलकुल नहीं करनी चाहिए. सैक्स करने से दोनों पार्टनर एकदूसरे से ज्यादा कनैक्ट हो पाते हैं. दूसरी तिमाही के बाद सैक्स करने के बाद गर्भाशय में संकुचन महसूस होगा, औक्सीटोन नाम का लव हारमोन भी रिलीज होगा जो मातापिता और बच्चे के बीच के बंधन को मजबूत करता है. इसलिए सैक्स करने की बात को ले कर घबराएं नहीं. इस से नौर्मल डिलिवरी होने की संभावना और बढ़ जाती है. सैक्स करते वक्त बस हाइजीन मैंटेन करें और कंडोम का इस्तेमाल करना न भूलें. याद रखें, ऐंजौय सैक्स, सेफ सैक्स तो डिलिवरी भी सेफ होगी.

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बिना सैक्स के आदमी और औरत का संबंध अधूरा है.कुछ लोग चाहे जितना गुणगान कर लें कि सैक्स गंदा है, असल में आदमीऔरत में पूरा प्यार या लगाव सैक्स से ही होता है. यह बात दूसरी है कि कुछ मामलों में यह प्यार व लगाव कुछ मिनटों तक सिमट कर रह जाता है और शारीरिक प्रक्रिया पूरी होते ही दोनों अपनेअपने काम में व्यस्त हो जाते हैं. सैक्स के बराबर ही पेट भरना जरूरी है. शायद सैक्स से ज्यादा दूसरे मनोरंजन भी भारी पड़ते हैं.

एक संस्थान जो लगातार अमेरिकी लोगों पर शोध कर रही है ने पता किया है कि अमेरिकियों में भी सैक्स की चाहत कम हो रही है और वे सैक्स की जगह वीडियो गेम्स या अपने कैरियरों पर समय और शक्ति अधिक लगाने लगे हैं. युवा लड़कियों में 18% और युवा लड़कों में 23% ने कहा कि उन्हें पिछले 1 साल में एक बार भी सैक्स सुख नहीं मिला. 60 वर्ष की आयु से अधिक के 50% लोग सैक्स से दूर रहते हैं.

बिना सैक्स के जीवन की बहुत महिमा गाई जाती है पर यह है गलत. आदमी-औरत का संबंध प्राकृतिक है, चाहे प्रकृति ने इस में आनंद डाला था या नहीं, कहा नहीं जा सकता. सभ्य समाज सैक्स पर आधारित है, क्योंकि सुरक्षित सैक्स और पार्टनर की ग्रांटेड मौजूदगी ने ही विवाह संस्था को जन्म दिया है. विवाह है तो घर है, घर है तो गांव है, गांव है तो शहर है, शहर है तो देश है. बिना सैक्स के लोग अकेले पड़ जाएंगे और जीवन के प्रति उन का नजरिया ही बदल जाएगा.

प्रैग्नेंट न होने के कारण क्या हमें आईवीएफ तकनीक की मदद लेनी चाहिए?

सवाल

मेरी उम्र 27 साल और पति की 30 साल है. हमारी शादी को 5 साल हो चुके हैं. हम लोगों की रिपोर्ट नौर्मल आई है. पति के शुक्राणुओं की संख्या भी लगभग 90 मिलियन आई है, बावजूद इस के हम संतान सुख से वंचित हैं. क्या हमें आईवीएफ तकनीक की मदद लेनी चाहिए?

जवाब

आप को घबराने की जरूरत नहीं है. चूंकि आप के पति के शुक्राणुओं की संख्या ठीक है, इसलिए आप को आईयूआई तकनीक की दरकार नहीं है. लेकिन आप के लिए बढि़या विकल्प आईवीएफ है. इस तकनीक की मदद से संतान सुख की प्राप्ति कर सकते हैं. हां, इस बात का ध्यान रखें कि इस तकनीक के लिए किसी अच्छे चिकित्सक से ही संपर्क करें.

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आईवीएफ प्रक्रिया के माध्यम से हर साल हजारों बच्चे जन्म लेते हैं. जो महिलाएं बांझपन जैसी समस्या से जूझ रही हैं उन के लिए आईवीएफ प्रक्रिया की यह जानकारी काफी फायदेमंद हो सकती है:

पहला चरण: मासिकधर्म के दूसरे दिन आप के ब्लड टैस्ट एवं अल्ट्रासाउंड के माध्यम से आप के अंडाशय की जांच होती है. फिर यह अल्ट्रासाउंड सुनिश्चित करता है कि आप को कितनी मात्रा में स्टिम्युलेशन दवा दी जानी चाहिए. मासिकधर्म के दौरान डाक्टर जांच के तहत हो रही प्रक्रिया पर निगरानी करते हैं. फिर जांच के बाद आप के फौलिकल्स यानी रोम को मौनिटर करते हैं. जैसे ही आप का रोम एक निश्चित आकार में पहुंच जाता है तो फिर आप उसे रोज मौनिटर कर सकते हैं. मौनिटरिंग के बाद आप को दूसरी दवा दी जाती है, जो ट्रिगर शौट के रूप में जानी जाती है.

दूसरा चरण: अंडों की पुन:प्राप्ति के बाद डाक्टर आप के गर्भाशय के स्तर के विकास के लिए प्रोजेस्टेरौन को बढ़ाने के लिए बाहरी प्रोजेस्टेरौन दवा देते हैं.

तीसरा चरण: जब अंडे पुन: बनने की प्रक्रिया में हों तब पुरुष साथी को मास्टरबेशन के माध्यम से शुक्राणु प्रदान करने के लिए कहा जाता है. डाक्टर क्लीनिक में भी निषेचन के लिए शुक्राणु तैयार करते हैं.

चौथा चरण: शुक्राणु एवं अंडे की पुन:प्राप्ति की प्रक्रिया के बाद डाक्टर शुक्राणु एवं अंडे का गठबंधन करते हैं. इस के बाद वे निषेचित अंडे को कुछ समय के लिए इनक्यूबेटर में रख देते हैं. इस अवधि के दौरान एक भ्रूण विशेषज्ञ के द्वारा भ्रूण के विकास की नियमित चैकिंग की जाती है. अगर सब कुछ सही दिशा में चल रहा हो तो स्वस्थ विकास के लिए 3 से 5 दिनों के बाद भ्रूण तैयार हो जाता है.

5वां चरण: भ्रूण के आरोपण के लिए यह एक सरल एवं दर्दरहित प्रक्रिया है. आरोपण के लिए भ्रूण को तरल पदार्थ के रूप में एक कैथेटर में रखा जाता है. इस प्रक्रिया में अच्छी खबर के लिए आप को 2 सप्ताह इंतजार करना पड़ता है, जिस में प्रैगनैंसी टैस्ट होता है. इस के बाद डाक्टर कुछ निश्चित भोजन से संबंधित एहतियात बरतने को कहते हैं. उन्हीं चीजों को खाने की सलाह देते हैं जो आप के आरोपण की प्रक्रिया में सहायक साबित हों.

इस प्रक्रिया में आप को प्रैगनैंसी का सही परिणाम जानने के लिए ब्लड टैस्ट होने तक का इंतजार अवश्य करना चाहिए, बजाय इस के कि प्रैगनैंसी किट से रिजल्ट पता किया जाए, क्योंकि कई बार प्रैगनैंसी किट से गलत रिजल्ट भी आता है.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
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