मायोसाइटिस को समझने में ना करें देरी ,समय रहते इलाज है जरूरी

Myositis: हाल ही में दंगल फ़िल्म कि छोटी बबिता का रोल अदा करने वाली सुहानी भटनागर की मौत का कारण बनी एक ऐसी बीमारी जो 10 लाख लोगो में किसी एक को होती है. इस बीमारी का नाम है डर्मेटोमायोसाइटिस. यह मायोसाइटिस का एक प्रकार है।मायोसाइटिस एक तरह की ऑटो इम्यून डिजीज है.

इस बीमारी में सबसे ज्यादा मांसपेशियां कमज़ोर होने लगती हैं यह रोग त्वचा के साथ साथ शरीर के किसी भी अंग को अपनी चपेट में लें लेता है.इस बीमारी के कारण पीड़ित को उठने – बैठने,चलने में परेशानी होती है अगर समय रहते बीमारी का इलाज ना हो तो मरीज की जान भी जा सकती है.

जाने क्या है मायोसाइटिस

आमतौर पर यह समस्या 40 से 60 साल की उम्र के लोगो को होती है लेकिन कई बार बच्चे भी इसका शिकार हो सकते हैं. यह बीमारी इम्यून सिस्टम पर वार करती है जिस कारण हमारा शरीर बीमारियों से लड़ने में असमर्थ हो जाता है और ऐसे एंटीबाडी डेवलप होने लगते हैं जो मांसपेशियों को कमजोर करते हैं.

मायोसाइटिस के कारण

किसी वायरस द्वारा इन्फेक्शन होना,रूमेटाइड अर्थराइटिस
दवाई का साइड इफ़ेक्ट, लुपस ,स्क्लेरोडर्मा इस बीमारी के मुख्य कारण हैं.

लक्षण

इस बीमारी के आम लक्षण है मांसपेशियों में दर्द रहना कंधे,कूल्हे, गर्दन, के आसपास दर्द होना,सांस फूलना,स्किन पर रेशेज का होना,रोजमरा की क्रिया करने में परेशानी आना, घुटने,पाँव, नाखुनो के आसपास सुजन व दर्द होना. कई बार इसके लक्षण सामन्य लगते है और जब बीमारी घातक हो जाती है तब पता चलता है समय रहते इलाज मिलने से मरीज को ठीक किया जा सकता है.

मायोसाइटिस के प्रकार

डर्मेटोमायोसाइटिस
इंक्लूजन-बॉडी मायोसाइटिस
जूवेनाइल मायोसाइटिस
पोलिमायोसाइटिस
टॉक्सिक मायोसाइटिस
मायोसाइटिस का इलाज
मायोसाइटिस के लिए कोई सटीक इलाज नहीं है, इसलिए उचित इलाज का पता लगाने के लिए डॉक्टर को कई अलग-अलग इलाज प्रक्रियाओं का इस्तेमाल करके देखना पड़ता है।जिसके लिए मांसपेशियों की बायोप्सी इलेक्ट्रोमायोग्राफी,एमआरआई,ब्लड टेस्ट,मायोसाइटिस स्पेसिफिक एंटीबॉडी पैनल टेस्ट व जेनेटिक टेस्ट करके पता लगाया जाता है कि किस तरह का मायोसाइटिस है और और तब इलाज शुरू किया जाता है.

क्या है लैक्टोज इनटौलरैंस

दूध, दही आदि डेयरी प्रोडक्ट्स स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छे होते हैं. इस के बावजूद दुनिया में करोड़ों लोग ऐसे हैं जिन्हें दूध या अन्य डेयरी प्रोडक्ट सूट नहीं करते या कह सकते हैं उन्हें इन से ऐलर्जी होती है. मैडिकल भाषा में इसे लैक्टोज इनटौलरैंस कहते हैं. वे इन्हें पचा नहीं पाते हैं .

लैक्टोज क्या है:

दूध में शुगर होती है जिसे लैक्टोज कहते हैं. हालांकि लैक्टोज इनटौलरैंस कोई बीमारी नहीं है पर यह आप के लिए असहज हो सकती है. हमारे शरीर में एक ऐंजाइम ‘लैक्टेज’ होता है जो शरीर को शुगर एब्जार्ब करने में मदद करता है. यह एंजाइम छोटी आंत में होता है पर कुछ लोगों को यह नहीं होता है या बहुत कम होता है. जिन्हें लो लैक्टोज होता है वे डेयरी प्रोडक्ट्स नहीं पचा पाते हैं यहां तक कि दूध से बनी स्वादिष्ठ देशी मिठाइयां भी.

लो लैक्टोज से क्या होता है:

जिन्हें लैक्टोज ऐंजाइम की कमी है उन की छोटी आंत में दूध का शुगर, लैक्टोज, ब्रेक डाउन नहीं हो पाता है. यह नीचे कोलन में जा कर वहां बैक्टीरिया से मिलता है और फरमैंट करता है जिस के चलते गैस, डकार, दस्त और उलटियों की शिकायत होती है.

लैक्टोज इनटौलरैंस किसे हो सकता है:

इस में कोई अपवाद नहीं है, यह शिकायत दुनियाभर में करोड़ों लोगों को है खासकर व्यस्कों को. इस में कोई आश्चर्य नहीं है कि लगभग 40% लोगों में 2 से 5 साल के बाद लैक्टोज ऐंजाइम बनना बंद हो जाता है या बहुत कम हो जाता है.

यह आनुवंशिक भी हो सकता है या कुछ अन्य बीमारियों के चलते भी.

सिंपटम्स: दस्त (डायरिया, मिचली, उलटी, पेट में दर्द या क्रैंम्प (ऐंठन), गैस और डकार.

डायग्नोसिस: आप स्वयं कुछ सप्ताह के लिए डेयरी प्रोडक्ट्स खाना बंद कर देखें. आप के सिंप्टम खत्म हो गए हों तब पुन: डेयरी प्रोडक्ट्स खाना शुरू कर इस की प्रतिक्रिया देखें. आवश्यकतानुसार डाक्टर की सलाह लें.

आप के सिंप्टम के आधार पर डाक्टर आप को भोजन में डेयरी प्रोडक्ट्स कुछ दिनों के लिए बंद करने की सलाह दे कर उस का परिणाम देखना चाह सकते हैं. इस के अतिरिक्त निम्न टैस्ट की सलाह दे सकते हैं:

हाइड्रोजन ब्रेथ टैस्ट: आप को एक पेय पीने को कहा जाएगा जिस में लैक्टोज हाई लैवल में होगा. कुछ समय के अंतराल पर आप की सांस में हाइड्रोजन की मात्रा नापी जाएगी. अगर आप के द्वारा छोड़ी गई सांस में हाइड्रोजन की मात्रा अधिक हुई तो इस का मतलब आप को लैक्टोज इनटौलरैंस है.

लैक्टोज टौलरैंस टैस्ट: हाई लैवल लैक्टोज ड्रिंक पीने के 2 घंटे बाद आप का ब्लड टैस्ट किया जाएगा. अगर ब्लड में ग्लूकोस की मात्रा में वृद्धि नहीं हुई तो इस का मतलब आप लैक्टोज नहीं पचा पा रहे हैं और आप को  लैक्टोज इनटौलरैंस है.

उपचार: अगर लैक्टोज इनटौलरैंस कुछ निहित कारणों से हो तब उपचार के बाद ठीक हो सकता है हालांकि इस में महीनों लग सकते हैं अन्यथा इस के लिए कुछ उपाय हैं.

मिल्क और अन्य डेयरी प्रोडक्ट्स खाना कम कर इनटौलरैंस रैग्युलेट किया जा सकता है. लैक्टोज ऐंजाइम का पाउडर दूध में मिला कर ले सकते हैं.

अकसर आटिज्म से ग्रस्त बच्चों को डाक्टर ग्लूटेन फ्री (बिना गेहूं वाला) और केसिन फ्री खाना खाने की सलाह देते हैं. ग्लूटेन और केसिन पेट में इनफ्लैमेशन बढ़ाते हैं जिस का असर ब्रेन पर भी पड़ता है और आटिज्म के सिंप्टम और खराब हो सकते हैं.

आजकल अन्य लैक्टोज फ्री मिल्क भी उपलब्ध हैं: सोया मिल्क, राइस मिल्क, आमंड मिल्क , कोकोनट मिल्क, काजू मिल्क, हेंप सीड मिल्क, ओट मिल्क, गोट मिल्क, पी नट मिल्क और हेजल नट मिल्क. इन में कुछ के दूध के अलावा दही, पनीर और मिठाई भी बन सकती है. डेयरी मिल्क का निकटतम वैकल्पिक मिल्क सोया मिल्क है, यह अन्य विकल्प की तुलना में सस्ता भी होता है.

जानें, ब्रेस्ट रैशेज होने के क्या हैं कारण

ब्रेस्ट रैशेज महिलाओं को होने वाली एक गंभीर समस्या है. रैशेज यानी चकत्ते लाल रंग के होते हैं. इनमें सूजन भी हो सकती है, इसके अलावा इनमें पस भी भरा होता है.

त्वचा की यह समस्या महिलाओं की दूसरी गंभीर बीमारी की तरफ भी इशारा करती है. ब्रेस्ट रैशेज के क्या कारण हैं, इसके बारे में जानें यहां.

ब्रेस्ट रैशेज के कारण

– ब्रेस्ट रैशेज के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार कारक एलर्जी, संक्रमण या ऑटोइम्यून डिजीज है.

– कुछ तरह के चर्म रोगों के कारण भी ब्रेस्ट रैशेज हो सकते हैं.

– रैशेज कॉस्मे‍टिक्स या डिटर्जेंट से भी हो सकते हैं.

– ज्वैलरी के कारण भी रैशेज होते हैं.

– दवाओं के साइड-इफेक्ट से होते हैं रैशेज.

– अधिक तनाव लेने से होते हैं ब्रेस्ट रैशेज.

– औद्योगिक केमिकल जैसे – इलास्टिक, लैटेक्स या रबर के संपर्क में आने से भी रैशेज हो सकते हैं.

ब्रेस्ट रैशेज के दूसरे कारण

– एग्जीमा के कारण भी ब्रेस्ट रैशेज होते हैं

– फूड एलर्जी से भी होता है

– कीड़े के काटने या डंक मारने से भी होता है.

– चिकेनपॉक्स, फंगल इंफेक्शन (Candida albicans), इंपेटिगो, लाइम डिजीज, मेस्टाइटिस, रूबेला आदि त्वचा की बीमारियों से भी होते हैं.

– कावासाकी, रूमेटाइड अर्थराइटिस, सिस्टेमिक ल्यूपस आदि ऑटोइम्यून डिजीज के कारण कारण भी ब्रेस्ट रैशेज होते हैं.

– सेलुलाइटिस और स्कैबीज के कारण भी यह हो सकता है

रैशेज होने पर आजमायें ये कुछ प्रभावी तरीके

ब्रेस्ट रैशेज के कारण खुजली और जलन होती है, जो कि असहनीय हो सकती है. ऐसे में बेबी पाउडर का इस्तेमाल करें, इसे लगाने से खुजली और जलन में आराम मिलेगा और रैशेज बढ़ेंगे नहीं. फंगल रैसेज की समस्या है, तो मीठा खाना कम करें. कॉर्न स्टॉर्च लगाएं, इससे बढ़ते हुए रैशेज कम होंगे. कॉर्न- स्टार्च का पेस्ट 10-15 मिनट लगाने के बाद हटा दें. तुलसी के पत्तों का पेस्ट लगाएं. हल्दी को ऐलोवेरा और दूध के साथ मिलाकर प्रभावित हिस्से पर लगायें.

अगर रैशेज की समस्या गंभीर है तो स्त्री रोग विशेषज्ञ या त्व‍चा रोग विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.

अपनी डाइट में शामिल करें ये चीजें, कैंसर का खतरा होगा कम

दुनियाभर में लोगों के हो रहे मौत के कारणों में कैंसर प्रमुख कारणों में से एक है. ये 100 से भी अधिक तरह की होती है. दुनियाभर की एक बड़ी आबादी कैंसर के चपेट में है. इसके होने वाले तमाम कारणों में खानपान प्रमुख है. आप जो भी खाते पीते हैं इसका सीधा असर आपकी सेहत पर होता है.

इस खबर में हम आपको कुछ खास चीजों के बारे में बताने वाले हैं जिनके सेवन से आप कैंसर के खतरे को कम कर सकेंगी.

1. अखरोट

अखरोट में कई तरह के स्वास्थवर्धक तत्व पाए जाते हैं. कुछ स्टडीज के मुताबिक अखरोट खाने से ब्रेस्ट कैंसर नहीं होता है. इसके अलाव प्रोस्टेट कैंसर में भी ये काफी असरदार होता है. इसके साथ ही डीएनए की सुरक्षा में भी ये काफी असरदार होता है.

2. क्रैनबेरिज

क्रैनबेरिज फाइबर, विटामिन-सी और एंटीऔक्सिडेंट का प्रमुख स्रोत होता है. इससे शरीर में पैदा होने वाले कैंसर के तत्व समाप्त हो जाते हैं.

3. सेब

सेब कई तरह की बीमारियों में बेहद लाभकारी होता है. इसके एंटीऔक्सिडेंट और  एंटी इंफ्लामेट्री गुण कैंसर के खतरे को काफी कम कर देते हैं. खासकर के कोलोरक्टल कैंसर में ये काफी प्रभावी है. अधिकतर लोग सेब के छिलके को छील कर खाते हैं, पर इससे आपका काफी नुकसान हो जाता है. अगर आप अपनी ये आदत बदल लें तो आपकी सेत के लिए ये काफी फायदेमंद हो जाता है. इसके छिलके में बहुत से गुणकारी तत्व होते हैं. कोलोरेक्टल कैंसर के अलावा सेब फेफड़ों, ब्रेस्ट और पेट के कैंसर से भी बचाव करता है.

4. ब्लू बैरीज

ब्लू बेरीज में कई तरह के गुणकारी तत्व पाए जाते हैं. इसमें फाइटोकेमिकल, एलेजिक एसिड, युरोलिथिन जैसे कई खास गुण पाए जाते हैं. ये हमारे डीएनए को हमारे शरीर में मौजूद फ्री रेडिकल्स से सुरक्षा प्रदान करते हैं, जिससे कैंसर का खतरा काफी कम  हो जाता है. आपको बात दें कि ब्लू बैरीज के सेवन से मुंह, ब्रेस्ट, कोलोन और प्रोस्टेट कैंसर का खतरा कम होता है.

5. ग्रीन टी

पुराने समय में कई तरह के रोगों का इवलाज करने के लिए चाय का सहारा लिया जाता था. आपको बता दें कि ग्रीन टी और ब्लौक टी में कई तरह के फायदेमंद तत्व पाए जाते हैं. स्टडी के मुताबिक, ग्रीन टी के सेवन से शरीर में कोलोन, लिवर, ब्रेस्ट और प्रोस्टेट कैंसर की कोशिकाएं बन नहीं पाती हैं. वहीं कई दूसरी स्टडी में बताया गया है कि ग्रीन टी फेफड़ों, स्किन और पेट के कैंसर से भी सुरक्षित रखता है.

नाखून हैं आपकी हेल्थ कुंडली, जानिए इनके टूटने का क्या है मतलब

नाखून आपकी ब्यूटी का अहम हिस्सा हैं. ये न सिर्फ आपकी खूबसूरती बढ़ाते हैं, बल्कि लोगों को इंप्रेस भी करते हैं. यही कारण है कि हर कोई, खासतौर पर महिलाएं अपने नाखूनों पर विशेष ध्यान देती हैं. हालांकि कई लोग नाखून टूटने की समस्या से भी परेशान रहते हैं. नाखूनों का बेवजह टूटना कोई आम बात नहीं है. इसका सीधा मतलब है कि आपके शरीर में पोषक तत्वों की कमी है. नाखून कैसे बताते हैं आपकी हेल्थ कुंडली चलिए जानते हैं.

ये स्थिति है गंभीर

कुछ लोगों के नाखूनों की परतें उतरने लगती हैं. वहीं कुछ के नाखूनों पर सफेद रेखाएं नजर आती हैं, कभी-कभी ये दरारों के रूप में भी दिखाई देती हैं. अगर आपके नाखून भी छूने में खुरदरे या रूखे महसूस होते हैं तो भी आपको सावधान रहने की जरूरत है. अगर अक्सर आपके क्यूटिकल की तरफ से भी नाखून टूटते हैं, तो भी आपको संभलने की आवश्यकता है. विशेषज्ञों के अनुसार नाखूनों की यह स्थिति कई स्वास्थ्य समस्याओं की ओर इशारा करती हैं और इसके कई कारण भी होते हैं.

1. पोषक तत्वों की कमी

जैसा कि हमने पहले भी बताया आपके नाखून आपकी हेल्थ रिपोर्ट पेश करते हैं. कमजोर, टूटे, बेजान नाखूनों का मतलब है कि आप में कई पोषक तत्वों की कमी है. खासतौर पर आयरन की. कई बार एनीमिया के कारण नाखून टूटने लगते हैं. इसी के साथ बायोटिन, जिंक, विटामिन डी और प्रोटीन की कमी के कारण भी नाखून कमजोर होकर टूटते हैं.

2. फंगल इंफेक्शन है बड़ा कारण

ओनिकोमाइकोसिस जैसे फंगल इंफेक्शन के कारण नाखून कई बार टिप से मोटा हो जाता है. पीला, सफेद या भूरा होकर यह क्यूटिकल की ओर फैलने लगता है और टूट जाता है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि संक्रमण से नाखून में मौजूद केराटिन खत्म हो जाता है. समय रहते इस पर ध्यान देना चाहिए.

3. रसायनों का ज्यादा उपयोग

आमतौर पर महिलाएं जब एसीटोन, सैनिटाइजर, साबुन, क्लीनर, डिटर्जेंट आदि के कठोर रसायनों के संपर्क में रहती हैं तो ये नाखूनों को नुकसान पहुंचाते हंै. इसके कारण नाखून टूटने लगते हैं. इससे नाखूनों का नेचुरल ऑयल खत्म होने लगता है. इसलिए हमेशा सौम्य साबुन और डिटर्जेंट आदि का ही उपयोग करें.

4. बढ़ रही है नाखूनों की उम्र

आपकी बढ़ती उम्र के साथ नाखून कमजोर होने लगते हैं. यही कारण है कि ये बेजान होकर टूटने लगते हैं. शोध बताते हैं कि उम्र के साथ नाखूनों की बढ़ने की गति भी कम हो जाती है. इसलिए आपको अपने आहार पर खास ध्यान दें. कैल्शियम, आयरन, प्रोटीन और विटामिन डी से भरपूर भोजन करें.

5. नियमित एक्सटेंशन और मैनीक्योर खतरनाक

इन दिनों नाखूनों को लेकर युवतियां और महिलाएं कई प्रकार के एक्सपेरिमेंट करती हैं. नेल एक्सटेंशन, आर्टिफिशियल नेल, मैनीक्योर आदि नियमित रूप से करवाने से भी नाखूनों को नुकसान पहुंचता है. इससे नाखून कमजोर होने लगते हैं. इसी के साथ नेल पॉलिश, नेल पेंट रिमूवर जैसे रसायनों का भी लगातार उपयोग नाखूनों को डैमेज करता है.

Intimate Hygiene से जुड़ी बीमारियों का ऐसे करें इलाज

क्या आप किसी प्रकार की इंटिमेट बीमारी से परेशान है? क्या डॉक्टर से कहने में शर्म महसूस करती है? किससे कहूँ? कैसे कहूँ? जैसी झिझक आपको है, तो लीजिये पढ़िए ये लेख जिसमे आपको सभी प्रश्नों के उत्तर मिल जायेंगे. महिलाएँ आज सभी क्षेत्रों में अपनी पहचान बना रही है, लेकिन वे शरीर से सम्बंधित किसी भी विषय को खुलकर नहीं कहती,पति से भी नहीं. अन्तरंग भाग की कुछ बिमारियों को वह किसी से नहीं कह पाती, इसका उदहारण एक लेडी डॉक्टर के पास मिला, जैसा कि 35 वर्षीय महिला डॉक्टर से भी अपनी बात कहने से शर्म महसूस कर रही थी और डॉक्टर पूरी तरह से उसे डांट रही थी, जबकि उसे इंटरनली कुछ बड़ी इन्फेक्शन हो चुकाथा, जिसका इलाज जल्दी करना था.

इस बारें में नानावती मैक्स सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल की प्रसूति एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ,डॉ. गायत्री देशपांडे कहती है कि आज भी छोटे शहरों की महिलाएं, किसी पुरुष स्त्री रोग विशेषज्ञ से जांच नहीं करवाती, उनके पास डिलीवरी के लिए नहीं जाती. असल में अंतरंग स्वच्छता और देखभाल का उनकी शारीरिक व मानसिक हेल्थ पर काफी असर होता है, लेकिन जागरूकता के साथ-साथ समय पर चिकित्सीय सहायता से वल्वोवैजाइनल इन्फेक्शन के मामलों में बढ़ोतरी हुई है. खासकर गर्मियों के मौसम में इंटिमेट हायजिन को बनाए रखना बहुत आवश्यक होता है, क्योंकि पसीने और गर्मी से इंटिमेट पार्ट में फंगल इन्फेक्शन बहुत जल्दी होता है, इसलिए महिलाओं को इस बात से अवगत होना चाहिए कि, अंतरंग स्वच्छता केवल साफ-सफाई नहीं बल्कि बड़े पैमाने पर उनकी भलाई से जुड़ा विषय है. महिलाओं को उन सभी सांस्कृतिक, धार्मिक और सामाजिक बाधाओं को खुद से दूर रखना बेहद जरूरी है, क्योंकि उन्हें इस विषय पर खुलकर बातचीत करने और अंतरंग देखभाल के सबसे बेहतर साधनों का उपयोग करने से रोका जाता है और कुछ घरेलू नुस्खे का प्रयोग किया जाता है, जिससे बीमारी अधिक बढ़ती है औए कई बार ये इन्फेक्शन इतना अधिक फ़ैल जाता है, जिसे कंट्रोल करना मुश्किल होता है और उस महिला की मृत्यु भी हो सकती है.

इंटिमेट हाइजिन है क्या

डॉ.गायत्री आगे कहती है कि गर्भाशय ग्रीवा की बाहरी सतह से लेकर योनि के छिद्र तक की परत को वजाइनल म्यूकोस (योनि श्लेष्मा) कहते है, जो कुदरती तौर पर निकलने वाले तरल पदार्थों की मदद से खुद को साफ करने में सक्षम होता है, खुद को साफ करने की क्षमता के बावजूद, योनि में कई स्वस्थ बैक्टीरिया (लैक्टोबैसिली) मौजूद होते है,जो संक्रमण की रोकथाम के साथ-साथ माइक्रोबियल संतुलन बनाए रखते है. कई तरह के बाहरी या आंतरिक असंतुलन अथवा आदतों की वजह से डिस्बिओसिस, यानी स्वस्थ माइक्रोबियल की प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न होती है, जिससे योनि या मूत्र मार्ग में संक्रमण होने का डर रहता है.

इसके अलावा योनि को प्रतिदिन धोने, शौच के बाद टिश्यू पेपर या वेट वाइप्स का उपयोग करने, स्नान करने और अच्छी तरह सुखाने, अंडरगारमेंट्स की सफाई, मासिक धर्म के दौरान स्वच्छता बरकरार रखने और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कियौन-संबंध बनाने से पहले औरबाद में स्वच्छता का ध्यान रखने जैसी अच्छी आदतों से योनि और इससे संबंधित सभी अन्तरंग अंगों की हिफाज़त करने में काफी मदद मिलती है.कुछ सुझाव निम्न है जिसे अपनाने से इन समस्याओं से छुटकारा पाया जा सकता है.

रखें नियमित सफाई एवं स्वच्छता

हर बार पेशाब करने के बाद योनि को सामने की तरफ से लेकर पीछे तक सादे पानी से धोना जरूरी है. महिलाओं को समझना चाहिए कि योनि क्षेत्र भी उनकी सामान्य त्वचा की तरह ही है, इसलिए नहाते समय इसे भी शरीर के दूसरे अंगों की तरह सामान्य साबुन या बॉडी वॉश से आगे से पीछे की ओर धोना चाहिए. इसकी वजह, पीछे के मार्ग (गुदा) पर बैक्टीरिया या जीवाणु मौजूद हो सकते है, जिनके संपर्क में आने से योनि में संक्रमण हो सकता है.

सही फैब्रिक का करें चुनाव

महिलाओं के लिए सूती पैंटी पहनना ही सबसे बेहतर है, जो नमी को सोखने में और इंटिमेट पार्टको सूखा रखने में सहायक होती है. इसी तरह, महिलाओं को बेहद तंग, गहरे रंग वाले या नम कपड़ों से परहेज करना चाहिए अपने कपड़ों को पहनने से पहले उन्हें साफ-सुथरी जगह पर धूप में सुखाना जरुरी है, ताकि अन्तरंग भागों के आसपास नमी की मौजूदगी भी संक्रमण का एक प्रमुख कारण हो सकती है

सार्वजनिक शौचालयों का उपयोग

सार्वजनिक शौचालयों में ई-कोलाई, स्टैफिलोकोकी, स्ट्रेप्टोकोकी जैसे सक्रिय जीवाणु मौजूद होते है, जो महिलाओं के मूत्र-मार्ग में संक्रमण (यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन) का सबसे आम कारण होता है. इन शौचालयों के साफ-सुथरे दिखने के बावजूद, टॉयलेट सीट, फ्लश, वॉटर नॉब्स या दरवाज़े के हैंडल जैसी जगहों पर कीटाणु और बैक्टीरिया मौजूद हो सकते है. इससे बचने के  लिए आवश्यक सावधानी बरतनी चाहिए,मसलन टॉयलेट सीट पर टिश्यू पेपर का इस्तेमाल करना, कपड़े या शरीर को छूने से पहले हाथ साफ करने के लिए सैनिटाइज़र और अपने पास मौजूद साबुन का उपयोग करना चाहिए. बाहर के वॉशरूम और टॉयलेट का उपयोग करने के बाद लैक्टिक एसिड आधारित वजाइनल वॉश का उपयोग करना, योनि की देखभाल के लिए बेहद महत्वपूर्ण है.

खुद को रखे स्वच्छ,यौनसंबंध से पहले

यौन-संबंधों के दौरान साथी द्वारा साफ-सफाई नहीं रखने की वजह से महिलाओं के मूत्र-मार्ग में संक्रमण (यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन) या योनि में संक्रमण भी हो सकता है. यौन-संबंध बनाने के बाद हमेशा मूत्र त्याग की कोशिश करनी चाहिएऔर योनि को आगे से पीछे की ओर साफ करना चाहिए. कंडोमऔर गर्भनिरोधक तरीकों का उपयोग करना यौन-संबंधों से होने वाले संक्रमणों की रोकथाम में बेहदमुख्यभूमिका निभा सकता है.एक से अधिक साथी के साथयौन-संबंधों से परहेज करेंऔर अपने साथी सेभीप्राइवेट पार्टकी स्वच्छता बनाए रखने का अनुरोध करें.

रहे सावधान फीका रंगत वाला या बदबूदार स्राव से

माहवारी के दिनों में फीका रंगत वाला मामूली स्राव होना बेहद सामान्य बात है. हार्मोन में बदलाव की वजह से ऐसे स्राव में योनि तथा गर्भाशय ग्रीवा की त्वचा की कोशिकाएँ मौजूद होती है, लेकिन इस तरह के स्राव के बरकरार रहने, गंध और समय-सारणी को ध्यान में रखना महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह माहवारी के दौरान शरीर में होने वाले बदलावों को दर्शाता है. प्री-ओव्यूलेटरी डिस्चार्ज (अण्डोत्सर्ग से पहले का स्राव) अपेक्षाकृत गाढ़ा, कम और गोलाकार होता है, जबकि पोस्ट-ओव्यूलेटरी वजाइनल डिस्चार्ज (माहवारी से एक हफ्ते पहले) अधिक मात्रा में, बहुत पतला और चिपचिपा होता है. महिलाओं को यह समझना चाहिए कि इस तरह के स्राव बेहद सामान्य हैऔर स्वस्थ अण्डोत्सर्ग (ओव्यूलेशन) की प्रक्रिया का संकेत देते है.

हालाँकि, अगर यह स्राव बेहद गाढ़ा हैऔर इसके साथ लालिमा, खुजली या जलन की समस्या जुड़ी हुई है और आपके माहवारी के दिनों के अलावा ऐसा होता है, तो इस समस्या पर तुरंत ध्यान देना और स्त्री रोग विशेषज्ञ से परामर्श लेना बेहद जरूरी है. कैंडिडल, मोइलियल या ट्राइकोमोनल इन्फेक्शन की वजह से इस तरह के स्राव हो सकते है. बैक्टीरियल वेजिनोसिस के कारण होने वाले स्राव में मछली की तरह तेज गंध होती है. इसके अलावा, डायबिटीज मेलिटस से पीड़ित महिलाओं में बार-बार योनि और मूत्र संक्रमण होने की संभावना अधिक होती है.

सम्हलकर करें,प्यूबिक हेयर की वैक्सिंग या ट्रिमिंग

शरीर के किसी भी अन्य छिद्र की तरह, प्राइवेट पार्ट के बाल भी योनि के छिद्र की हिफाजत करते है, जो कई सूक्ष्मजीवों के लिए किसी रुकावट की तरह काम करते है,इसलिए, वैक्सिंग कराने से न केवल योनि के ऐसे सूक्ष्मजीवों के संपर्क में आने की संभावना बढ़ जाती है, बल्कि वैक्सिंग के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले अनुचित साधनों से योनि के आसपास सूजन या संक्रमण भी हो सकता है, रैशेज और इन्फेक्शन से बचने के लिए प्यूबिक एरिया को साफ रखना जरूरी है.

इलाज से बेहतर है, रोकथाम

महिलाओं के लिए समस्याग्रस्त होने के बाद इलाज कराने के बजाय इसकी रोकथाम पर ध्यान देना बेहतर है. साल में एक बार स्त्री रोग विशेषज्ञ से परामर्श लेना, सर्विकल कैंसर से बचने के लिए समय-समय पर PAP स्मीयर टेस्ट करानाआदि स्त्री रोग विशेषज्ञ की सलाह पर करने के साथ-साथ उनके द्वारा दी गयी दवाइयों का प्रयोग करें और अन्तरंग स्वच्छता के बारें में भी जानकारी प्राप्त करें. बीमारी का पता सही समय पर चल जाने से इलाज जल्दी हो सकता है और संक्रमण अधिक फ़ैल नहीं सकता.

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Infertility का इलाज है संभव

दुनियाभर में इनफर्टिलिटी की समस्या से जूझ रहे लोगों की समस्या दिनप्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है. भारत में 10 से 15% के बीच शादीशुदा कपल इनफर्टिलिटी की समस्या से जूझ रहे हैं. बता दें कि भारत में 30 मिलियन इंफर्टाइल कपल में से करीब 3 मिलियन कपल हर साल इनफर्टिलिटी का इलाज करवा रहे हैं. जबकि शहरी क्षेत्रों में ये आंकड़ा काफी ज्यादा है. वहां हर 6 में से 1 कपल इनफर्टिलिटी की समस्या से जूझ रहा है और इस के इलाज को ले कर काफी जागरूक है. लेकिन बता दें कि हर समस्या का इलाज संभव है. तभी तो उम्मीद छोड़ चुके कपल भी पेरैंट्स बन पाते हैं.

क्या है इनफर्टिलिटी

वर्ल्ड हैल्थ आर्गेनाईजेशन के अनुसार, इनफर्टिलिटी रिप्रोडक्टिव सिस्टम से जुड़ी हुई बीमारी है. इनफर्टिलिटी शब्द का इस्तेमाल तब किया जाता है, जब कपल बिना कोई प्रोटैक्शन इस्तेमाल लिए एक साल से ज्यादा समय से प्लान कर रहे हों, लेकिन फिर भी कंसीव करने में दिक्कत आ रही हो. इनफर्टिलिटी का कारण सिर्फ महिलाएं ही नहीं, बल्कि पुरुष भी होते हैं. अकसर महिलाओं में इस का कारण फैलोपियन ट्यूब का ब्लौक होना, अंडे नहीं बनना, अंडों की क्वालिटी खराब होना, थाईराइड होना, प्रैग्रैंसी हारमोंस का संतुलन बिगड़ना, पीसीओडी यानि पोलिसिस्टिक औवरियन सिंड्रोम आदि के कारण होता है, जिस से मां बनने में दिक्कत आती हैं.

वहीं पुरुषों में स्पर्म काउंट कम होना, उन की क्वालिटी सही नहीं होना व उन की मोटेलिटी यानि वे कितना ऐक्टिवली वर्क कर पाते हैं ठीक नहीं होती तब भी पार्टनर को कंसीव करने में दिक्कत होती है. लेकिन परेशान होने से नहीं बल्कि इनफर्टिलिटी के ट्रीटमैंट से आप की समस्या का समाधान होगा.

क्या है इस का निदान

मासिकधर्म को सामान्य करना:

चाहे बात  नार्मल तरीके की या फिर किसी ट्रीटमैंट से, डाक्टर्स सब से पहले आप के मासिकधर्म को नार्मल करने की कोशिश करते हैं, ताकि आप के हारमोंस नार्मल हो सकें और आप को कंसीव करने में कोई दिक्कत न आए. साथ ही आप के ओवुलेशन पीरियड को ट्रैक करने में आसानी हो. ऐसे में हैल्दी ईटिंग हैबिट्स व दवाओं के जरीए इसे सामान्य करने की कोशिश की जाती है.

हारमोंस के संतुलन को ठीक करना:

कंसीव करने के लिए जरूरी हारमोंस जैसे एफएसएच, जो ओवरीज में अंडों को बड़ा होने में मदद करता है, जिस से ऐस्ट्रोजन का उत्पादन बढ़ जाता है और फिर जो शरीर में एलएच हारमोंस की वृद्धि का संकेत देता है. जिस से सफलतापूर्वक ओवुलेशन होने के साथसाथ कंसीव करने में आसानी होती है. ऐसे में चाहे आप आईयूआई यानि इंट्रायूटरिन इनसेमिनेशन करवाएं या फिर इनविट्रो फर्टिलाइजेशन, दवाओं व इन्फेक्शन के जरीए उसे ठीक किया जा सकता है. इस में हैल्दी ईटिंग हैबिट्स भी काफी सहायक सिद्ध होती हैं.

अंडों को परिपक्व बनाने में मदद:

कुछ मामलों में देखा जाता है कि अंडे बनते तो हैं लेकिन मैच्योर हो कर फूटते नहीं हैं, जिस से कंसीव होने में दिक्कत होती है. ऐसे में दवाओं के जरीए हैल्दी ओवुलेशन करवाने की कोशिश की जाती हैं, ताकि आप का ट्रीटमैंट सफल हो कर आप पेरैंट्स बनने के सपने को पूरा कर सकें.

बंद ट्यूब को खोलना:

अगर आप की दोनों ट्यूब्स बंद हैं या फिर कोई एक, तो डाक्टर लैप्रोस्कोपी, हिस्ट्रोस्कोपी के जरीए उसे ओपन करते हैं. साथ ही अगर आप को सिस्ट की प्रौब्लम है, जो कंसीव करने में बाधा बनती है, तो डाक्टर सर्जरी के जरीए ही इसे रिमूव करते हैं, ताकि कंसीव करने में आसानी हो सके.

डाक्टर का कहना है कि इनविट्रो फर्टिलाइजेशन में महिला के अंडे व पुरुष के स्पर्म को ले कर प्रयोगशाला में फर्टीलाइज कर के महिला के यूटरस में डाला जाता है. इस प्रक्रिया के दौरान पूरी जांच, दवाओं व इंजैक्शन का सहारा लिया जाता है, ताकि किसी भी तरह की कोई दिक्कत न हो और पहले ही प्रयास में इसे सफल किया जा सके. लेकिन इस के लिए अनुभवी डाक्टर व दवाइयों का होना बहुत जरूरी होता है.

इन सब चीजों के अलावा आपको अपने लाइफस्टाइल में भी बदलाव लाने की जरूरत होगी.

Miscarriage के सदमे से उबरें ऐसे

शादी के 3 साल बाद जब प्रेग्नेंसी कन्फर्म हुई तब भावना और उस के पति की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. उन के लिए इस खबर को अपने तक रखना नामुमकिन हो गया और उन्होंने यह बात अपने परिवार के लोगों और मित्रों को बता दी. उस के बाद सब उन सहित एक नन्हेमुन्ने के आने का इंतजार करने लगे. भावना के सासससुर ने पूरी तैयारी शुरू कर दी. भावना के पति भी प्लानिंग करने लगे कि बच्चे का कमरा कैसे होगा, कौन से रंग का पेंट करवाएं, कैसा बैड खरीदें, खिलौने कहां अच्छे मिलते हैं, आदि.

मगर प्रैगनैंसी के 9 हफ्ते ही बीते थे कि भावना को ब्लीडिंग होने लगी. जब बच्चे की हार्टबीट सुननी बंद हो गई तो दोनों बुरी तरह निराश हो गए. जब डाक्टर ने कहा कि उस का मिसकैरिज हो गया है तो भावना और उस के पति दोनों को लगा जैसे उन से किसी ने सारी खुशियां छीन ली हैं. फिर तो भावना इस दुख में डूब गई कि अवश्य उस से कोई गलती हुई होगी. तभी तो मिसकैरिज हुआ. सास ने भी सुनाया कि जब मैं ज्यादा घूमने से मना करती थी, तो कहां मानती थीं. फिर जिस ने भी सुना सब ने अपनीअपनी राय दी. किसी ने कहा कि अब जल्दबाजी मत कर देना. कुछ समय ठहर कर ही पै्रगनैंट होने की सोचना, वगैरहवगैरह.

ऐसी अनेक महिलाएं हैं, जिन्हें मिसकैरिज के दर्द से गुजरना पड़ता है और यह ऐसा दर्द है, जो इमोशनली, फिजिकली और सोशली हर तरह से औरत को आहत करता है. कभीकभी तो जिंदगी भर का घाव बन जाता है. हालांकि मिसकैरिज होना आम बात मानी जा सकती है, पर उस औरत के लिए नहीं, जो अपने गर्भ में पल रहे शिशु को महसूस करने लगी थी, जिस के साथ वह भावनात्मक स्तर पर जुड़ गई थी. पिता भी इस दौरान एक आघात की स्थिति से गुजरता है.

भावनात्मक स्तर पर

मनोवैज्ञानिक डा. पल्लवी गिलानी के अनुसार, ‘‘प्रैगनैंट होते ही एक मनोवैज्ञानिक और शारीरिक प्रक्रिया शुरू हो जाती है. हारमोंस लैवल बढ़ने और फीडिंग के लिए ब्रैस्ट के  बड़े होने के कारण मातृत्व की भावना प्रबल हो जाती है. गर्भ में अपने अंश के होने का एहसास ही उस से गहराई से जुड़ने के लिए काफी होता है. उसे ले कर मातापिता दोनों ही अनेक सपने संजोने लगते हैं. अपने जीवन में आने वाले बदलाव और खुशियों का स्वागत करने के लिए वे तैयारी में जुट जाते हैं. उन का अंश आने वाला है, यह एहसास उन्हें एकदूसरे के नजदीक ले आता है. लेकिन जैसे ही वह अपने बच्चे को खोती है, उस का उत्साह खत्म हो जाता है. उसे समझ नहीं आता कि आखिर ऐसा कैसे हुआ. यहां तक कि तब उसे किसी और के प्रैगनैंट होने की बात भी खुशी नहीं देती है. यह वह समय होता है जब युगल सैल्फ सैंटर्ड बन जाता है. न किसी से मिलनाजुलना पसंद करता है, न किसी से बात करना. मिसकैरिज इमोशनली सब से अलग कर देता है.

‘‘वह शिशु जो जन्मा नहीं था, उस के चले जाने का गम उन के लिए किसी बड़े नुकसान से कम नहीं होता है. फिर तो जहां भी नन्हा शिशु दिखता है, उस औरत के जख्म हरे हो जाते हैं. वह यही सोचती है कि काश, अगर आज उस का बच्चा जीवित होता तो वह उसे ऐसे कपड़े पहना रही होती. वह ऐसे खिलौनों से खेल रहा होता या उस के लिए वह खाने की ये चीजें खरीदती. यहां तक कि किसी और की गोद में शिशु को देख उस की ममता उसे झकझोरने लगती है. वह सोचने लगती है कि उस का बच्चा भी ऐसा ही प्यारा सा गोलमटोल होता.’’

शारीरिक स्तर पर

मिसकैरिज होते ही मन के साथसाथ औरत का तन भी टूट जाता है. हारमोन में आए बदलाव और ब्लीडिंग की वजह से उस के अंदर कमजोरी आ जाती है. रिकवर होने में काफी समय लग जाता है.

गाइनेकोलौजिस्ट डा. अनीता सिंह के अनुसार, ‘‘मिसकैरिज से उत्पन्न हुई शारीरिक कमजोरी कितने समय में ठीक होगी, यह इस बात पर निर्भर करता है कि औरत इमोशनली कितनी स्ट्रौंग है. अगर वह जल्द ही अपने को संभाल लेती है तो तुरंत अपने खानेपीने पर ध्यान देने लगती है और एक पौजिटिव अप्रोच रखते हुए अगली प्रैगनैंसी के लिए अपने को तैयार करने लगती है ताकि इस बार कोई चूक न हो.

‘‘शारीरिक स्तर पर मां को मिसकैरिज के बाद वैजाइनल ब्लीडिंग होती है और उस दौरान खून के बडे़बड़े थक्के निकलते हैं. उसे ब्रैस्ट छूने पर दर्द होता है. हारमोन में आए बदलाव उसे चिड़चिड़ा बना देते हैं और कई बार उस की पूरा दिन सोने की इच्छा होती है. शरीर की कमजोरी के साथसाथ तनाव भी उस समय औरत में बहुत होता है. अकसर पहली बार मिसकैरिज होने या बारबार मिसकैरिज होने से औरत की मां बनने की संभावना भी कम हो जाती है. ’’

सामाजिक स्तर पर

बच्चे के आगमन की खबर सुन कर घरपरिवार के लोग और रिश्तेदार, यहां तक कि आप के नजदीकी मित्र भी बहुत उत्साहित हो जाते हैं. प्रैगनैंसी का पता चलते ही वे युगल से पार्टी मांगने लगते हैं और अपनीअपनी तरह से तैयारी में जुट जाते हैं. उस का इंतजार और प्लानिंग करते लोगों को जब पता चलता है कि बच्चा तो जन्म लेने से पहले ही उन्हें छोड़ कर चला गया तो जैसे उन के सपने टूट जाते हैं. खासकर परिवार में होने वाला वह अगली पीढ़ी का पहला बच्चा हो तो दादादादी, बूआ, चाचा आदि सब निराश हो जाते हैं. उस समय उन्हें बहू किसी खलनायिका से कम नहीं लगती है, जिस ने उन से वंश के चिराग को छीन लिया.

अंधविश्वासों के चलते हमारे समाज में ऐसा भी देखा गया है कि गर्भवती महिलाओं को ऐसी औरतों से दूर रखा जाता है जिन का मिसकैरिज हो गया होता है ताकि कहीं उन की काली छाया उन के बच्चे पर भी न पड़ जाए. यह सोच कर उन्हें सामाजिक उत्सवों में भी नहीं बुलाया जाता है. आशय यह है कि उस अजन्मे शिशु के चले जाने से परिवार में अशांति और तनाव व्याप्त हो जाता है.

गिल्ट में जीती हैं

कई औरतों में बच्चे के चले जाने के दुख के साथ एक गिल्ट फीलिंग भी जुड़ जाती है. उन्हें लगता है कि वे ठीक से अपने अजन्मे शिशु की केयर नहीं कर पाईं. उन्हें लगता है कि उन की लापरवाही की वजह से आज उन का पति और घर वाले नाराज और दुखी हैं. उन की उम्मीदों को उन्होंने तोड़ा है. यही नहीं, कहीं आगे भी ऐसा न हो यह डर भी उन पर हावी हो जाती है. वे हर पल यही सोचती रहती हैं कि आखिर किस वजह से ऐसा हुआ? शायद उन्होंने ज्यादा सैर कर ली या फिर ज्यादा काम. पति और घर वालों से नजरें चुरातीं वे इस के लिए कहीं न कहीं स्वयं को दोषी मानने लगती हैं और कई बार तो ऐसी स्थिति में वे दोबारा प्रैगनैंट होने से घबराती हैं. उन्हें लगता है कि उन के शरीर ने उन्हें धोखा दिया है और इस वजह से वे शर्म भी महसूस करती हैं.

यह गिल्ट फीलिंग केवल औरतों को ही नहीं आदमियों को भी कई बार सताती है. उन्हें भी लगता है कि प्रैगनैंसी के दौरान उन्होंने अपनी पत्नी का ठीक से खयाल नहीं रखा, इसीलिए यह हुआ है. अकसर वे अपने दुख में इतना डूब जाते हैं कि पत्नी के दुख तक को नजरअंदाज कर देते है जिस से वे बहुत असहाय और अकेलापन महसूस करती हैं.

अपनी किताब ‘मदरहुड ऐंड मौर्निंग’ में पेपर्स और नैप लिखते हैं कि औरत से उम्मीद की जाती है कि वह अपने दुख के साथ जीए, जबकि आदमी से समाज यही ऐक्सपैक्ट करता है कि वह अपने इमोशंस को दबा कर रखे, जिस की वजह से वह दुख से उबरने और अपने साथी के दर्द से बचने के लिए खुद को काम में डुबो देता है.

पति का असहयोग औरत के अंदर कड़वाहट भर देता है. अकेलापन उन के रिश्तों में दरार डाल देता है. पत्नी सोचती है कि उस का पति इस समय उस का दुख बांटने के बजाय उस से दूर भाग रहा है. यहां तक कि उस के अंदर यह डर भी समा जाता है कि कहीं पति को खुशी से वंचित रखने के कारण वह उसे छोड़ न दे. यह खालीपन युगल के संबंधों को खतरे में डाल सकता है.

निकलें इस दर्द से

चाहे आप की लापरवाही से या फिर किसी अन्य वजह से मिसकैरिज हो गया है, तो भी उस दुख से जितनी जल्दी हो सके बाहर निकलें. हालांकि इस समय पति व घर वालों का सहयोग व विश्वास कि हम तुम्हारे साथ हैं, औरत को दर्द से बाहर लाने में सहायक होता है. बच्चे के चले जाने से अपनी आशाएं और अपेक्षाएं न खोएं, बल्कि नए सिरे से जिंदगी को जीने के लिए तैयार हो जाएं. युगल को आपस में मिल कर एकदूसरे का दुख बांटना चाहिए और कोशिश करनी चाहिए कि वे दोनों ही एकदूसरे को दोष न दें. जब आप पूरी तरह से तनाव से बाहर आ जाएंगी, तभी अगली बार कंसीव कर पाएंगी.

पीठ दर्द और जकड़न से परेशान हो गई हूं, मैं क्या करुं?

सवाल-

मेरी उम्र 25 साल है. लौकडाउन और उसके बाद से मैं अपना सारा काम घर से ही कर रहा था. मेरा काम लैपटौप पर होता है. मेरी पीठ में दर्द होने लगता है. जकड़न भी महसूस होती है. ऐसे में काम करने में मुश्किल होती है. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब-

गतिहीन जीवनशैली, गलत मुद्रा में बैठना, लेट कर लैपटौप पर काम करना, लगातार एक ही मुद्रा में काम करना और उठनेबैठने के गलत तरीकों के कारण घर से काम कर रहे लोगों में रीढ़ की समस्याएं विकसित हो रही हैं. ये सभी फैक्टर रीढ़ और पीठ की मांसपेशियों पर तेज दबाव बनाते हैं. सभी काम झुक कर करने से रीढ़ के लिगामैंट्स में ज्यादा खिंचाव आ जाता है, जिस से पीठ में तेज दर्द के साथ अन्य गंभीर समस्याएं भी हो सकती हैं. सर्वाइकल पेन भी इसी से संबंधित एक समस्या है, जो गरदन से शुरू होता है. यह दर्द व्यक्ति को परेशान कर देता है. हालांकि एक स्वस्थ और सक्रिय जीवनशैली के साथ इस समस्या से बचा जा सकता है. रोज ऐक्सरसाइज करना, बौडी स्ट्रैच, सही तरीके से उठनाबैठना, सही तरीके से झुकना और शरीर को सीधा रखने से आराम मिलता है.

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पीठ, हमारे शरीर का अत्यंत महत्वपूर्ण हिस्सा.  मगर परेशानी तब शुरू होती है जब इसी हिस्से के दर्द को शुरुवात में हल्के में लिया जाता है. रही सही कसर टीवी पर आने वाले  तरह-तरह के मरहम के विज्ञापन पूरी कर देते हैं.  कमर दर्द या पीठ का दर्द कई वजहों से हो सकता है जैसे रीढ़ की हड्डियों की कमजोरी या वहां पनप रही कोई समस्या, मांसपेशियों का मजबूत ना होना, किसी प्रकार की कोई नई अथवा पुरानी चोट आदि.

वजह छोटी हो या बड़ी जरूरी यह है कि बिना देर किए समय पर चिकित्सा सलाह लें.

कुछ छोटी-छोटी बातों को अगर ध्यान में रखेंगे तो कमर या पीठ की तकलीफ से बचा जा सकता है.

 पोश्चर – 

पोश्चर यानी आपके उठने, बैठने, सोने का सही तरीका.

अक्सर देखने में आता है जब भी हम किसी को सीधे बैठने के लिए कहते हैं  तो वो तन के बैठ जाते हैं और 5 से 10 मिनट बाद ही थक कर झुक जाते हैं, ऐसा इसलिए होता है क्योंकि आपकी मांसपेशियां तनी हुई होने के कारण ज्यादा काम कर रही होती हैं और जल्दी ही थक जाती हैं.  सीधे बैठने का अर्थ है सीधी पर आरामदायक अवस्था में पीठ का होना.

पिछले 1 साल में कमर दर्द के मरीजों में इजाफा हुआ है. कई लोग वर्क फ्रम होम होने के बाद से कमर दर्द से परेशान थे .

इसके पीछे सबसे बड़ा कारण पोश्चर का सही ना होना है. आप जब भी लंबे समय के लिए बैठे ध्यान  रखें कि आपकी कुर्सी आरामदायक हो. एर्गोनॉमिकली डिजाइन की गई कुर्सी आसानी से बाजार में उपलब्ध है, और अगर वह नहीं है तो बैठते वक्त एक तकिया आपकी कमर के पीछे लगाएं, ध्यान रखें कि तकिया ना तो बहुत कठोर हो ना ही मुलायम.  इसके अलावा एक टॉवल को रोल कर के अपनी गर्दन के पीछे रखें .

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

कब्ज से अक्सर रहती हैं परेशान, तो राहत पाने के लिए अपनाएं ये उपाय

आजकल के समय में कब्ज की शिकायत होना कोई असमान्य बात नहीं है. हर 10 में से 5वे व्यक्ति को आज के समय में कब्ज की शिकायत होती है. कब्ज जिसे लोग आमतौर पर कॉन्स्टिपेशन के नाम से जानते हैं, इसका मुख्य कारण आपका स्ट्रेस लेना, लो फाइबर डायट का होना, रोजाना ठीक से फीजिकल एक्सरसाइज ना करना और लिक्विड चीजों का कम सेवन करना, जैसे ज्यादा पानी ना पीना हो सकता है.

आपको कब्ज होने का मतलब है कि आपके शरीर में डायजेशन अच्छी तरह से नहीं हो रहा है. कब्ज की समस्या के कारण आपके शरीर में और भी कई समस्याऐं पैदा हो सकती हैं, जैसे आपके पेट में ऐंठन होना या हार्टबर्न की शिकायत होना. कई बार ऐसा होता है कि कॉन्स्टिपेशन कुछ दवाओं के कारण भी हो जाता है.

तो आइए जानते हैं कब्ज से निजात पाने के लिए क्या हैं आसान उपाय :

– सामान्य तौर पर कब्ज को आप एक फुल फाइबर डायट से बैलेंस कर सकते हैं. लेकिन आपको ये बात भी ध्यान में रखनी होगी कि कई बार फाइबर का सेवन अधिक हो जाने से पेट में गैस की शिकायत, ब्लोटिंग या डायरिया भी हो सकता है.

– कब्‍ज से बचने का सबसे महत्वपूर्ण और आसान उपाय है कि आप सुबह सबेरे अपने टॉयलेट जाने का समय निश्चित कर लें. हर रोज आप एक ही समय पर टॉयलेट जाएंगे तो आपका रूटीन बन जाएगा और धीरे धीरे आप देखेंगे कि आपकी कब्ज की समस्या खुद-ब-खुद खत्म हो रही है.

– आपको हर रोज कम से कम 6 से 8 गिलास पानी पीना चाहिए. रोजाना सुबह उठकर खाली पेट, एक गिलास हल्के कुनकुने पानी में आधा नींबू निचोड़ कर पीना चाहिए और ये पानी पीने के बाद कुछ देर तक वॉक करें. ऐसा करने से कब्ज में आराम मिलेगा. कई दिनों तक लगातार ऐसा करने से धीरे-धीरे कब्ज की समस्या दूर भी हो जाती है.

– कब्ज के मरोजों को सुबह ब्रेकफास्ट जरूर करना चाहिए. यह बात भी ध्यान में रखना चाहिए कि आपका ब्रेकफास्ट हेल्दी हो. ब्रेकफास्ट में एक ग्लास जूस हो तो ये आपके लिए और भी फायदेमंद होगा.

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