बहुत जरूरी है प्रोफैशनल होना

सफल प्रोफैशनल वह है जो अपनी जौब के प्रति वफादार हो और अपने सहयोगियों की टीम को साथ ले कर चले. जौब हासिल करने व कैरियर में कामयाब होने के लिए सिर्फ अच्छी एजुकेशन ही काफी नहीं है, बल्कि इस के लिए आप का प्रोफैशनल होना भी बहुत जरूरी है, ताकि आप खुद को अपनी जौब के लिए योग्य साबित कर सकें.

महेश और सुरेश दोनों एक ही कंपनी में, एक ही पद पर कार्यरत थे. महेश जहां प्रगति की सीढि़यां चढ़ता गया वहीं सुरेश की पदोन्नति नहीं हुई. उसे अपने पुराने पद पर ही बना रहना पड़ा. महेश की कामयाबी के पीछे उस का बेहतर प्रोफैशनल होना था. किसे कहते हैं बेहतर प्रोफैशनल? आइए जानते हैं.

– बेहतर प्रोफैशनल वही हो सकता है जिस में सभी क्लालिटीज हों. समय पर औफिस आना और समय पर काम पूरा करना एक अच्छे प्रोफैशनल की निशानी है.

– जो विषम परिस्थितियों में भी घबराता न हो. अपना काम सही ढंग से करता हो. हर परिस्थिति में दूसरों की बातें सुनता हो और किसी को नीचा दिखाए बिना अपनी बात सामने रखता हो.

– प्रोफैशनल वह है जो भारत में फैल रही धर्म और जाति के चक्कर में हेट कौंसपिरैंसी का हिस्सा न बने और हरेक को बराबर की जगह दे, बराबर का मौका दे.

– अच्छा प्रोफैशनल वह है जो चुनावों में तो भाग ले पर न अंधपूजन में लगे और न पूजा पर्यटन का शिकार बने.

– जो अपने कार्यों को सूचीबद्ध तरीके से करता हो. औफिस में अपना समय ठीक तरह से मैनेज करता हो और दूसरों को भी इस ओर प्रेरित करता हो.

– जो दबाव में भी अपना मानसिक संतुलन न खोता हो. साथ ही, अपने काम की समयसीमा का भी ध्यान रखता हो तथा टालमटोल की आदत से बचता हो.

– जो अपनी जिम्मेदारियां और कंपनी के नियमकायदे की जानकारी रखता हो. अनुशासन में रह कर खुद भी व अपने सहयोगियों को भी अनुशासन की सीख देता हो. कंपनी व अपनी प्रगति के लिए प्रयत्नशील हो.

– जो अच्छे या बुरे दोनों हालात में काम करना जानता हो. अपनी जिम्मेदारियां सम?ाता हो.

– जो अच्छेबुरे सभी को साथ ले कर चलता हो. सभी के हितों की बात करते हुए आगे बढ़ता हो. अपना गुस्सा दूसरों पर न निकालता हो और सभी के कामों में सा?ोदारी करता हो.

– जो दूसरों की समस्याएं सुनता हो और उन्हें निबटाने में विशेष रुचि लेता हो. सभी की बातों को तवज्जुह देता हो. एक प्रोफैशनल द्वारा दूसरे सहयोगियों की बात सुनने का मतलब है कि अगर दूसरों से अच्छा आइडिया मिलता है, तो वह उसे स्वीकार करते हुए अमल में लाए.

– प्रोफैशनल के लिए प्रगति का मार्ग सदैव खुला रहता है. वह अपने मकसद में कामयाब होता है. कभी भी काम की कठिनाइयों से घबराता नहीं. वह काम को सरल करने की कोशिश में रहता है.

– जो अपनी कार्यकुशलता व व्यवहार से दूसरों को भी आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करता हो. नएनए विचार सब को देता हो और उन्हें काम करने के लिए प्रेरित करता हो.

आप भी यदि अपनी जौब में कामयाब होना चाहते हैं तो एक अच्छे प्रोफैशनल की तरह काम करने की आदत डालें क्योंकि बिना इस के प्रगति संभव नहीं है.    –

20 Tips: बच्चों को खेल-खेल में सिखाएं काम की बातें

तेजी से बदलती जीवनशैली का प्रभाव क्या केवल आप के जीवन पर ही पड़ रहा है? क्या समय की कमी सिर्फ आप को ही परेशान करती है? औफिस की व्यस्तता और मल्टीटास्किंग से क्या आप ही परेशान हैं? नहीं, ये तमाम बातें आप के अलावा आप के बच्चों को भी परेशान करती हैं. जिन की वजह से अकसर वे चिड़चिड़े और आलसी दिखते हैं और आप की बात नहीं मानते हैं. उन्हें छोटीछोटी बातें समझाने में भी दिक्कत आती है.

पेरैंट्स होने के नाते आप परेशान हो जाते हैं. 6 से 12 साल की उम्र बहुत से बदलावों की होती है. इस दौरान शारीरिक बदलावों के साथसाथ बच्चों में स्वभाव को ले कर भी कई तरह के बदलाव देखे जाते हैं. लेकिन वह उम्र होती है जब बच्चों को कई अहम बातों के बारे में बताना जरूरी होता है. ऐसे में विशेषज्ञों की राय काफी महत्त्वपूर्ण हो जाती है. खासतौर से कामकाजी पेरैंट्स के लिए यह किसी चुनौती से कम नहीं कि वे अपने छोटे या बढ़ते बच्चों को कैसे समझाएं या उन के साथ कैसे डील करें.

  1. पढ़ाई में लगाएं फन का तड़का
  2. बच्चों के साथ उन की फन ऐक्टिविटीज में भाग लें.
  3. बच्चों को पेंटिंग का बहुत शौक होता है. इस कार्य में उन का अच्छा दोस्त बना जा सकता है.
  4. उन्हें बताएं कि कौन से 2 रंग मिलाने पर कौन सा नया रंग बनता है.
  5. उन से अपने बचपन की बातें शेयर करें. उन्हें यह न बताएं कि आप बचपन में हर काम में बहुत निपुण थे, बल्कि बताएं कि फलां कार्य करने में आप को भी बहुत परेशानी होती थी.
  6. बच्चों के संग समय बिताएं. उन के साथ टीवी देखें. उन की पसंदनापसंद के बारे में पूछें.
  7. अपना टेस्ट उन के साथ शेयर करें. मसलन, अगर आप उन्हें बताना चाहते हैं कि बाहर गरमी से आने पर तुरंत फ्रिज का ठंडा पानी पीने से गला खराब हो सकता है, तो इस बात पर अमल भी कर के दिखाएं.
  8. अगर आप पिता हैं तो छुट्टी वाले दिन उन के साथ उन के स्कूल बैग का हालचाल जानें. उन के दोस्त बनें, डांटफटकार करने वाले पिता नहीं.
  9. अपनी रुचियां उन पर न थोपें, बल्कि उन की पसंदीदा चीजों संग अपनी रुचि भी जाहिर करें.
  10. उन्हें मजेमजे में बताएं कि शैतानियों में क्या अच्छाबुरा होता है. जैसेकि हर इनसान को पेड़ पर चढ़ना आना चाहिए, लेकिन पेड़ से गिरने पर जोर की चोट भी लग सकती है. इसलिए अपने सामने उन्हें ऐसा करने की सलाह दें.
  11. किसी अनजान से बात न करें. यह बात उन्हें किसी ऐक्टिविटी के माध्यम से समझाने की कोशिश करें. हो सके तो इस तरह की बातें अपने बच्चों को उन के दोस्तों के सामने समझाएं.
  12. छुट्टी वाले दिन सुबह जल्दी उठ कर पार्क जाएं, जौगिंग करें. यह बात केवल मौखिक रूप से न समझाएं, बल्कि छुट्टी वाले दिन आप खुद भी जल्दी उठ कर बच्चों के साथ पार्क जाएं.
  13. गुड और बैड टच के बारे में प्यार से समझाएं
  14. बच्चे बहुत जिज्ञासु होते हैं खासतौर पर बढ़ती उम्र में जब वे अपने और अपने पेरैंट्स के शरीर में अंतर देखते हैं.
  15. वे इस बात की ओर भी बहुत जल्दी ध्यान देते हैं कि लड़के और लड़की के शरीर में काफी अंतर होता है.
  16. जब बच्चा आप से अपने प्राइवेट अंगों के बारे में कुछ पूछे तो उसे समझाएं कि लड़की और लड़के में यह अंतर उन के प्रजनन अंगों की वजह से होता है.
  17. बच्चे को निजी अंगों के वैज्ञानिक नाम बताने से झिझकें नहीं. आप नहीं बताएंगे तो वह बाहर से कुछ और ही सीख कर आएगा.
  18. उन्हें बताएं और किताब का हवाला दें कि देखो किताब में इसे पेनिस या इसे वैजाइना कहते हैं.
  19. 2-3 साल के बच्चे को अच्छे और बुरे स्पर्श के बारे में बताने का सब से अच्छा समय होता है. उन्हें बताएं कि कोई अनजान उन के निजी अंगों को नहीं छू सकता. केवल मातापिता उन्हें छू सकते हैं.
  20. उन्हें बताएं कि अगर कोई अनजान व्यक्ति उन के निजी अंगों को छूता है तो उन्हें क्या करना चाहिए.

– डा. संदीप गोविल, मनोचिकित्सक, सरोज सुपर स्पैश्यालटी अस्पताल, नई दिल्ली

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न्यू बौर्न के Hygiene से जुड़ी बातों का रखें ख्याल

नए बच्चे के आगमन के साथ पूरे परिवार में खुशी की लहर दौड़ जाती है. मातापिता के लिए अपने बच्चे की मुसकान से अधिक कुछ नहीं होता. यह मुसकान कायम रहे, इस के लिए जरूरी है बच्चे का स्वस्थ रहना. शिशु जब 9 माह तक मां के गर्भ में सुरक्षित रह कर बाहर आता है तो एक नई दुनिया से उस का सामना होता है, जहां पर हर पल कीटाणुओं के संक्रमण के खतरों से उस के नाजुक शरीर को जू झना पड़ता है. ऐसे में जरूरी है, उस के खानपान और रखरखाव में पूरी तरह हाईजीन का खयाल रखना.

स्नान

डा. बी.एल. कपूर मेमोरियल हास्पिटल की चाइल्ड स्पेशलिस्ट डा. शिखा महाजन बताती हैं, ‘‘नवजात शिशु को शुरुआत में स्पंज बाथ कराना चाहिए, खासकर तब तक जब तक नाभिनाल गिर न जाए. आमतौर पर 4 से 10 दिनों में नाभिनाल सूख कर गिर जाती है. इस से पूर्व उसे नहलाएं नहीं, हलके गरम पानी में तौलिया भिगो कर पूरे शरीर को पोंछें. नाभिनाल को दिन में 2 बार डाक्टरों द्वारा बताए गए स्प्रिट से साफ करें. जहां तक हो सके, उस जगह को सूखा रखें. पाउडर, घी या तेल न लगाएं. ध्यान रखें कि इस में इन्फेक्शन या दर्द न हो. यदि आप को खून, लाली या पस दिखे तो तुरंत डाक्टर से संपर्क करें.’’

बच्चा थोड़ा बड़ा हो जाए तो उसे प्लास्टिक के बाथटब में नहला सकती हैं. नहलाते वक्त त्वचा की सलवटों (स्किन क्रीजेज), अंडरआर्म्स, गले, उंगलियोें के बीच, घुटनों के नीचे और यूरिनरी पार्ट्स की अच्छी तरह से सफाई करें, पर साबुन का ज्यादा प्रयोग न करें. सिर और पौटी वाली जगह पर ही साबुन लगाएं. बच्चों को आम साबुन या शैंपू से न नहलाएं बल्कि बेबीसोप व शैंपू से नहलाएं. घर का बना उबटन व कच्चे दूध से भी बच्चे को नहला सकती हैं. पर इस बात का ध्यान रखें कि उबटन, साबुन या दूध के कण बच्चे के शरीर पर लगे न रहें. नहला कर उसे वार्मरूम में ले जाएं और सौफ्ट टौवल से धीरेधीरे पोंछते हुए पूरा शरीर सुखा दें.

मालिश

चाइल्ड स्पेशलिस्ट डा. शिखा महाजन कहती हैं, ‘‘मालिश की जितनी उपयोगिताएं गिनाई जाती हैं उतनी होतीं नहीं. पर मुख्य लाभ है, मांबच्चे का भावनात्मक जुड़ाव. स्पर्श संवेदना के जरिए बच्चे और मालिश करने वाले व्यक्ति के बीच रिश्ता गहरा होता है. इसलिए बेहतर होगा कि मालिश बच्चे का कोई निकट संबंधी करे. नौकरानी को यह काम न सौंपें, क्योंकि हो सकता है उस के हाथ गंदे हों या फिर वह कड़े हाथ से मालिश कर दे.

‘‘मालिश हमेशा वेजीटेबल आयल से करें. नारियल, तिल या बादाम तेल से हफ्ते में 2 दिन मसाज करें. पर इस के लिए सरसों के तेल का प्रयोग न करें. यह हार्ड होता है. बच्चे को इस से एलर्जी हो सकती है.’’ बच्चे की मालिश का एक फायदा यह भी होता है कि इस से उसे अच्छी नींद आती है. शिशु की टांगों की मालिश करने से उसे बड़ा आराम मिलता है और वह रात को चैन से सोता है.

मसाज करते वक्त ध्यान रखें

कमरा गरम और आरामदेह हो.

हाथों की चूडि़यां व अंगूठियां उतार दें.

वैक्सिनेशन वाले हिस्से पर मालिश न करें.

बच्चे की नाक या कानों में तेल न डालें.

मालिश करने के कुछ समय बाद बच्चे को नहला दें.

यदि शिशु को बुखार हो तो मालिश न करें.

नेल कटिंग

बच्चों को अपनी उंगली चूसने की आदत होती है खासकर तब जब उन के दांत निकल रहे होते हैं. ऐसे में यदि उन के नाखून गंदे हों तो इन्फेक्शन पेट में चला जाता है. इस के अलावा नाखूनों से बच्चा दूसरों को और कभीकभी अपनी स्किन को भी नोच लेता है. इसलिए जरूरी है कि उस के नाखूनों को काटा जाए. शुरू में नाखून बहुत ही कोमल होते हैं. नेलफाइलर से क्लीन कर के उस से नाखून काट सकती हैं. बेबीसीजर/क्लिपर का प्रयोग भी कर सकती हैं. बच्चा सो रहा हो, उस वक्त नाखून काटना आसान होता है. नहलाने के बाद बच्चे के नाखून नरम हो जाते हैं. नवजात शिशु के नाखून उस समय हाथ से भी तोड़े जा सकते हैं.

काजल

बच्चे की आंखें खूबसूरत और बड़ी दिखाने के चाव में उसे रोज काजल न लगाएं. ‘काजल से आंखें बड़ी होती हैं’ यह एक मिथ है. इस से इन्फेक्शन का खतरा रहता है. घर में बना काजल भी नुकसानदेह होता है. बाजार के काजल में लेड और अन्य कई हानिकारक केमिकल होते हैं, जिन से बच्चों की आंखों की रोशनी जा सकती है. इसी तरह बच्चे को ज्यादा पाउडर भी न लगाएं.

कपड़ों की सफाई

बच्चों के कपड़े साफ पानी में किसी गुणवत्ता वाले माइल्ड प्रोडक्ट से धोएं, क्योंकि डिटरजेंट में मौजूद हार्ड केमिकल्स कपड़ों से पूरी तरह साफ नहीं होते और बच्चों की नाजुक स्किन में खुजली, लाली जैसी समस्याएं पैदा करते हैं. जब भी कपड़े धोएं, पानी से उन्हें अच्छी तरह साफ करें ताकि केमिकल्स का थोड़ा सा भी असर न रहे. कपड़े धो कर उन्हें धूप या हवा में सुखाएं. धूप में इन के कीटाणु मर जाते हैं. बच्चे की नैपी को साबुन से धोने के बाद डेटोल के पानी से धोएं. शिशु के कंबल, बिछावन, ओढ़ने की चद्दर आदि को भी हर दूसरे दिन धूप में सुखाएं.

पौटी ट्रेनिंग

बच्चों में निश्चित समय पर पौटी करने की आदत डलवाएं. जब बच्चे बहुत छोटे होते हैं तो सुसकारने (शी…शी…) की आवाज के द्वारा उन्हें सूसू, पौटी कराने की कोशिश की जाती है. दूध पीने के बाद बच्चा जल्दी सूसू करता है, इसलिए दूध पिलाने के 15-20 मिनट बाद बच्चे को सूसू कराएं. यदि सर्दी का मौसम है तो हर आधेपौने घंटे बाद सूसू कराएं. बच्चों के लिए छोटी पौटी चेयर मिलती है. बच्चे को इस पर बैठा कर सूसू, पौटी कराएं ताकि वह पौटी मैनर्स सीख सके. बीमारी की स्थिति में यदि बच्चा 5 घंटे तक पेशाब न करे तो फौरन डाक्टर के पास ले जाएं. जब वे थोड़े बड़े हो जाएं तो उन्हें समय पर टायलेट में बैठाएं. यदि बच्चे ने पैंटी में ही पौटी कर दी हो तो तुरंत सफाई करें. पौटी उस के शरीर से अच्छी तरह साफ कर दें. फिर उस जगह को अच्छी तरह तौलिए से पोंछ कर सुखा दें ताकि उस की स्किन में कोई प्रौब्लम न हो.

नैपी चेंज करना

बच्चों की स्किन नाजुक होती है. भीगी नैपी देर तक रह जाए तो रैशेज हो सकते हैं. इस से बचने के लिए नैपी गीली होते ही बदल दें. यदि डायपर पहनाती हैं तो जल्दीजल्दी डायपर बदलें. दिन में 7-8 बार डायपर चेंज करना जरूरी होता है. डायपर हमेशा अच्छी कंपनी का और सौफ्ट होना चाहिए.

दूध

मां का दूध छोटे बच्चे के लिए संपूर्ण आहार है. 6 माह तक बच्चे को मां का ही दूध दें. यदि ऐसा न हो सके तो पाश्चराइज्ड दूध दें. कच्चा दूध कभी न दें, इस से इन्फेक्शन हो सकता है. बच्चे को पिलाए जाने वाले दूध की बोतल की सफाई का भी ध्यान रखें. बोतल में दूध डालने से पहले बोतल को पानी में उबाल कर उस की सफाई करें. हर 6 महीने में बोतल का निप्पल बदलें. खिलौने वगैरह भी अच्छी तरह साफ कर के दें और खिलौने अच्छी क्वालिटी के प्लास्टिक से बने हुए ही खरीदें.

ओरल हाईजीन

मुंह में दूध की बोतल रखेरखे सुलाने की आदत छोटे बच्चों के दांतों पर भारी पड़ सकती है. दूध मीठा होता है, इस से उन के दांतों में कैविटी की शिकायत हो सकती है. दूध पीने और सोने से पहले हलके से उन के दांत पोंछ दें या उन्हें खुद ब्रश करने को प्रेरित करें.

दानों की समस्या

कई बार गरमी, लार या दूध उगलने की वजह से छोटे बच्चों की स्किन पर दानों की समस्या हो जाती है. गलत दवा या स्किन को सूट न करने वाले कपड़े भी इस की वजह बन सकते हैं. आवश्यक सावधानी और सफाई का खयाल रखने से यह समस्या खुद ठीक हो जाती है. गरमी के मौसम में दानों पर बेबी पाउडर बुरकें. यदि 2-3 माह तक दाने ठीक न हों तो डाक्टर से संपर्क करें.

कुछ और बातों का खयाल जरूरी

कुछ नवजात बच्चों की ब्रेस्ट को दबाने पर दूध निकलता है. यह मां के हारमोन का असर होता है. ऐसी स्थिति में बारबार उसे छुएं या दबाएं नहीं. इस से इन्फेक्शन या जख्म होने का डर रहता है. कुछ दिनों में यह समस्या स्वयं ठीक हो जाती है.

बच्चे के शरीर पर ज्यादा बाल हैं तो इन्हें हटाने की कोशिश में आटे की लोई, उबटन, क्रीम वगैरह न लगाएं. ये खुद हट जाएंगे.

गंदे हाथों से बच्चे को न छुएं.

बाहर से आ कर एकदम बच्चे को न गोद में  उठाएं और न ही उसे तत्काल दूध पिलाएं.

नवजात शिशु के सिर पर यदि बाल हैं तो उन्हें कंघी न करें. थोड़ा बड़ा होने पर उस के लिए सौफ्ट हेयर ब्रश या बेबी कांब लाएं.

शिशु को बारबार चूमना ठीक नहीं, इस से उसे संक्रमण होने का खतरा रहता है.

कुछ भी खाने से पहले हाथ धोने की आदत बच्चे में डालें.

बच्चे को कभी भी गिरी हुई चीज उठा कर खाने न दें.

खयाल रखें

बच्चे को रोज नहलाएं. जाड़े के दिनों में आमतौर पर मांएं नहलाने से हिचकिचाती हैं, ऐसा करना ठीक नहीं. बच्चा बीमार है तो भी उस के शरीर को भीगे तौलिए से पोंछ जरूर दें.

बच्चे के नहाने का टब वगैरह रोज साफ करें. उस के बाथटब को दूसरे काम में न लें. नहलाने के लिए माइल्ड/बेबी सोप का प्रयोग करें. ध्यान रखें, उस के लिए प्रयुक्त तौलिया भी सौफ्ट हो और इसे घर के दूसरे सदस्य प्रयोग में न लाएं.

बच्चे को जहां तक हो सके, सौफ्ट कपड़े पहनाएं खासकर गरमी में कौटन के हलके कपड़े ही अच्छे रहते हैं. टेरीकोट मिक्स कपड़ों से उस की कोमल त्वचा पर रैशेज हो सकते हैं.

बच्चे को खिलाते वक्त नैपकीन/बिब बांधना न भूलें. यदि वह दूध उलट दे या कपड़े भीग जाएं तो तुरंत उन्हें बदल दें.

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बच्चों में डालें अच्छी आदतें

बचपन से ही बच्चों को अच्छी आदतें और व्यवहार सिखाना जरूरी है. कच्ची उम्र में बच्चे जो सीखते हैं वह आगे चल कर उन की दिनचर्या व व्यवहार का हिस्सा बन जाता है.

साफसफाई की आदत

शेमरौक प्रीस्कूल की ऐग्जीक्यूटिव डायरैक्टर एवं शेमफोर्ड फ्यूचरिस्टिक स्कूल की फाउंडर डायरैक्टर मीनल अरोड़ा कहती हैं कि बच्चों में व्यक्तिगत स्तर पर साफसफाई की आदत डालने की कम उम्र से ही शुरूआत करने की जरूरत होती है. बचपन से ही बच्चों में निम्न आदतें डाल कर आप उन्हें साफसफाई के प्रति सजग बना सकती हैं:

– बच्चे के दिन की शुरुआत हाथमुंह धोने से कराएं.

– उसे अपने दांत 2 से 3 मिनट तक सही ढंग से साफ करने को कहें ताकि उस के दांत कैविटी मुक्त रहें. दिन में 2 बार ब्रश करने को आदत बनाएं.

– हर भोजन से पहले और बाद में साबुन से हाथ धोने की आदत डालें.

– बच्चे को अपने नाखून छोटे रखने को कहें, क्योंकि बड़े नाखूनों में गंदगी जमा हो जाती है, जिस से संक्रमण का खतरा रहता है.

– खांसते या छींकते समय टिशू पेपर या रूमाल मुंह या नाक पर रखना सिखाएं.

– धुले और प्रैस किए गए कपड़े पहनने को कहें.

– कूड़ा हमेशा कूड़ेदान में ही डालने की आदत डालें.

– बतौर जिम्मेदार अभिभावक बच्चे को समझाएं कि खुद को साफसुथरा रखने के साथसाथ अपने घर, महल्ले और पासपड़ोस को भी साफ रखना चाहिए.

– बच्चे को अपनी चीजें जैसे खिलौने, किताबें आदि सही जगह रखने की शिक्षा दें.

– उंगली, पैंसिल, पैन, रबड़ जैसी चीजों को नाक या मुंह में न डालने की शिक्षा दें.

– बच्चें को सिखाएं कि वह सड़कों पर कूड़ाकचरा न डालें. बाहर जाते समय साथ एक पेपर बैग ले जाने को कहें ताकि कचरा कहीं खुले में न डालना पड़े.

घर से करें शुरुआत

कई बच्चों को नैपकिन व नाइफ का इस्तेमाल करना नहीं आता, तो कुछ को खाना खाते वक्त जोर से आवाज करने की आदत होती है. पेरैंट्स होने के नाते आप को अपने बच्चों को रेस्तरां, सामाजिक आयोजनों में ले जाने से पहले टेबल पर बैठने और खाने के तरीकों के बारे में सिखाना चाहिए. नन्हे बच्चों में टेबल मैनर्स और खाने के शिष्टाचार सिखाने की शुरुआत घर से ही करनी चाहिए.

टेबल मैनर्स का प्रयोग बच्चे घर से बाहर कर सकें, इस के लिए उन्हें पहले घर पर प्रैक्टिस कराएं. अगर बच्चे रेस्तरां में या किसी के घर पर खाने की टेबल पर कोई गलती कर रहे हैं, तो उन्हें वहां डांटें या उन पर चीखेंचिल्लाएं नहीं, घर आ कर आराम से प्यार से समझाएं.

शुरू में ऐसे रेस्तरां में ले जाएं जहां बहुत ज्यादा भीड़ न हो ताकि वे आप के द्वारा सिखाए गए टेबल मैनर्स पर सहजता से अमल कर सकें. अगर आप के बच्चे टेबल मैनर्स का पालन करते हैं, तो उन की तारीफ करें ताकि वे आगे भी इन नियमों का पालन करें.

बचपन से बच्चों को मैनर्स सिखाना बहुत जरूरी है, क्योंकि जैसेजैसे बच्चे बड़े होंगे, सोशल गैटटुगैदर में ये मैनर्स उन्हें आत्मविश्वास दिलाएंगे.

जरूरी टेबल मैनर्स

– बच्चों को सिखाएं कि किस तरह उन्हें छोटेछोटे टुकड़े तोड़ कर, खाने को अच्छी तरह चबा कर और मुंह बंद कर के खाना खाना है. साथ ही यह भी सिखाएं कि पानी पीते व भोजन करते समय अनावश्यक आवाज न करें. ऐसी आदत भी डालें कि प्लेट में उतना ही खाना लें जितना खा सकें या पहले थोड़ा ही लें. जरूरत हो तो बाद में ले लें ताकि खाने को बरबाद होने से बचाया जा सके.

– खाना खाते समय किस बरतन में क्या खाना है, इस की जानकारी भी छोटी उम्र से ही दें जैसे सूप के लिए बड़े चम्मच और डैजर्ट के लिए छोटे चम्मच. इसी तरह ग्रेवी वाली डिश के लिए कटोरी का इस्तेमाल करना सिखाएं.

– बच्चों को यह भी सिखाएं कि अगर उन्हें खाने की कोईर् चीज टेस्टी लगती है, तो उन्हें उसे बनाने वाले की तारीफ कैसे करनी चाहिए, साथ ही अगर कोई चीज अच्छी न लगे तो किस तरह विनम्रतापूर्वक यह बताना कि उन्हें वह डिश पसंद नहीं आई.

– बच्चों को बताएं कि अपने घर में भी और किसी और के घर में भी खाना खाने के बाद अपनी प्लेट खुद उठा कर सिंक में रखें.

– किसी भी रैस्टोरैंट में जाने पर बच्चों को नैपकिन का इस्तेमाल करना सिखाएं. नैपकिन का यूज मुंह या हाथ पोंछने के लिए ही करें.

– बच्चों को टेबल पर बैठने के मैनर्स भी सिखाएं. उन्हें बताएं कि हाथों को टेबल पर रखें. उन्हें यह भी बताएं कि खाना खाते वक्त उन के हाथों की पोजिशन ऐसी हो कि साथ बैठे लोगों को दिक्कत न आए.

– उन्हें बताएं कि खाना खाते समय बातें न करें. यह भी सिखाएं कि भोजन करते समय नाइफ को राइट और फौर्क को लैफ्ट हैंड से पकड़ें. खाना खत्म होने के बाद पानी के गिलास में हाथ न धोएं और अगर वे खाना खा चुके हों तब भी तुरंत टेबल से न उठें. सब के भोजन समाप्त होने का इंतजार करें.

– अपने घर पर ही शुरू से ही अलगअलग तरह की कटलरी का प्रयोग करना सिखाएं. बच्चों को प्लेट से भोजन को चम्मच से मुंह के पास ला कर खाने को कहें. उन्हें बताएं कि अगर डाइनिंग टेबल पर उन्हें कोई डिश चाहिए तो पास बैठे व्यक्ति से डिश पास करने को कह दें न कि टेबल की दूसरी ओर हाथ बढ़ा कर खुद लेने की कोशिश करें.

सिखाएं टेबल मैनर्स

बच्चों को किसी पब्लिक प्लेस पर ले जाना किसी मुसीबत से कम नहीं होता खास कर तब जब वे शरारती हों. कई बार तो बच्चे बाहर जा कर खाने की टेबल पर इतना आतंक मचाते हैं कि औरों के सामने आप को शर्मिंदा होना पड़ता है. कुछ बच्चे खाना खाते समय एक जगह टिक कर नहीं बैठते, इधरउधर भागते रहते हैं. क्रौकरी के साथ छेड़छाड़ करते रहते हैं. कभी टेबल पर पानी गिरा देते हैं तो कभी खाना, जिस से मेजबानों को बहुत परेशानी होती है. इसलिए कम उम्र से ही बच्चों को टेबल मैनर्स सिखाएं ताकि घर या बाहर आप को शर्मिंदगी का सामना न करना पड़े.

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Back to Office : ऐसे बैठाएं तालमेल

कोरोना वायरस के कारण औफिस क्या बंद हुए औफिस फ्रैंड्स की आपसी बातचीत ही कम हो गई. अब सिर्फ काम के सिलसिले में ही बात होती थी. औफिस में जो ग्रुप मस्ती होती थी वह अब न तो जूम मीटिंग में थी और न ही मैसेज में वह बात थी. ऐसा एहसास हो रहा था जैसे हम अपनों से काफी दूर हो गए थे. घर से काम होने के कारण वर्कलोड भी काफी बढ़ गया था, जिस कारण औफिस फ्रैंड्स से दिन में कई बार बात जरूर होती थी, लेकिन वह बात सिर्फ काम तक ही सीमित रहती थी. न घूमनाफिरना और न वह मस्ती, हम सभी उसे मिस कर रहे थे. मन ही मन यही सोच रहे थे कि काश फिर से औफिस खुल जाएं ताकि हम वही पुरानी मस्ती फिर से कर सकें.

आखिर फिर से धीरेधीरे जीवन पटरी पर आने लगा और औफिस भी खुलने लगे. एक दिन जूम मीटिंग के जरीए बौस से पता चला कि अगले हफ्ते से औफिस खुल रहे हैं. यह खबर सुन कर ऐसा लगा कि फिर से हमें खुली हवा में सांस लेना का मौका मिल रहा है.

काम के साथसाथ हम अब अपने औफिस फ्रैंड्स के साथ मस्ती भरे पल भी बिता पाएंगे, जोकि वर्क फ्रौम होम में संभव नहीं था. ऐसे में जब फिर लौट रहे हैं औफिस के पुराने दिन तो आपस में ट्यूनिंग बैठाने के लिए फिर से दोहराएं कुछ चीजों को ताकि कुछ सालों की दूरी कुछ ही समय में फिर दूर हो सके. तो जानिए इस के लिए क्या करें:

एकदूसरे को गिफ्ट्स दें

गिफ्ट लेना किसे पसंद नहीं होता है. ऐसे में जब आप इतने लंबे समय के बाद औफिस जा रहे हैं तो मन में ऐक्साइटमैंट तो बहुत होगी ही क्योंकि इतने दिनों बाद औफिस को देखेंगे, औफिस फ्रैंड्स से मिलेंगे, उन के साथ बातें करेंगे. ऐसे में जब आप उन से मिलें तो उन्हें यह कह कर गिफ्ट दें कि यह तेरे बर्थडे का गिफ्ट है, जो मैं तुम्हें दूर रहने के कारण दे नहीं पाई थी.

इस से आप की औफिस दोस्त को एहसास होगा कि अभी भी आप को उस का खयाल है. इस से फिर दोबारा से ट्यूनिंग बैठाने में आसानी होगी या फिर आप उस की पसंद की चीज गिफ्ट में दे कर पुराने दिनों की याद को फिर से ताजा कर सकते हैं.

टी टाइम में करें मस्ती

वर्क फ्रौम होम के दौरान जिस टी टाइम को आप मिस कर रहे थे, अब उसे फिर से जी लेने का समय आ गया है क्योंकि औफिस जो खुल गया है. रामू चाय की दुकान पर औफिस वर्क से ले कर पर्सनल टौपिक्स जो शेयर होते थे. ऐसे में अब जब आप औफिस लौट रहे हैं, तो टी टाइम को ऐंजौय करना न भूलें. यह सोच कर टी टाइम को न छोड़ें कि घर में तो हम ने टी टाइम लेना ही छोड़ दिया था.

जान लें कि टी टाइम से न सिर्फ आप खुद को फ्रैश फील करेंगे बल्कि इस के बहाने औफिस दोस्तों के साथ फिर खुल कर बातचीत होगी, हंसीमजाक होगा, पुराने दिन फिर लौट आएंगे और यह टी टाइम आपस में बौंडिंग को स्ट्रौंग बनाने में मदद करेगा.

लंच टाइम में लंच भी मस्ती भी

घर में तो जब मन करा तब लंच कर लिया और यह लंच भी काम के साथसाथ एक टेबल पर या बैड पर अकेले बैठ कर कर लिया. जो न तो खाने का आनंद लेने दे रहा था और न ही इस ब्रेक में हम मस्ती कर पा रहे थे. अगर थोड़ा रिलैक्स करने का सोचा भी तो भी हाथ में फोन पर या तो फेसबुक देख रहे होते थे या फिर व्हाट्सऐप अथवा कुछ और खंगालने में लगे रहते थे जो औफिस के लंच टाइम से बिलकुल अलग था, जिसे हम घर में मिस करने के अलावा कुछ नहीं कर सकते थे.

लेकिन अब जब आप का औफिस खुल गया है तो लंच टाइम में पहले की तरह दोस्तों के साथ कुछ ही मिनटों में लंच कर के मस्ती के लिए कभी पास की मार्केट में निकल जाओ या फिर लंच ब्रेक में मस्ती भरे पल स्पैंड करो, पुरानी यादों को बातों से ताजा करो. इस मस्ती से आप फिर से पहले की तरह एकदूसरे से जुड़ पाएंगे.

औफिस के बाद आउटिंग

पहले जब आप का औफिस खत्म हो जाता था और उस के बाद आप कभी औफिस के दोस्तों के साथ खाने के लिए कभी पास की लोकल मार्केट या फिर शौपिंग करने चले जाते थे. याद है न आप को वे दिन. लेकिन बीच में वर्क फ्रौम होम के कारण इस सब पर ब्रेक सा लग गया था.

लेकिन अब जब दोबारा औफिस जाने का मौका मिल रहा है तो औफिस वर्क के साथसाथ औफिस के बाद आउटिंग या फिर मस्ती जरूर करें. इस से एक तो औफिस के स्ट्रैस से छुटकारा मिलेगा, दूसरा आप अपने औफिस के फ्रैंड्स के साथ दिल खोल कर मस्ती भी कर पाएंगे.

बीचबीच में गौसिप

घर से जब हम काम कर रहे थे तो न तो काम का वह मजा आ रहा था क्योंकि बीचबीच में ऐंटरटेन करने वाले औफिस के दोस्त जो नहीं थे. साथ में बोरियत अलग थी. ऐसे में बैक टू औफिस आप को इस बोरियत से छुटकारा दिलाएगा क्योंकि अब काम के साथसाथ गौसिप, मस्ती, एकदूसरे की टांगखिंचाई जो होगी.

इसलिए खुद को रिफ्रैश करने के लिए काम के बीच में छोटेछोटे ब्रैक जरूर लें ताकि इस से काम के न्यू आइडियाज मिलने के साथसाथ आप थोड़ीथोड़ी देर में खुद को तरोताजा कर सकें क्योंकि सिर्फ और सिर्फ काम करते रहने से बोरियत होने के साथसाथ काम से इंटरैस्ट भी हटता है.

चटपटी बातों के लिए भी समय

वर्क फ्रौम होम जितना शुरू में अच्छा लग रहा था, उतना बाद में उस से ऊबने लगे. ऐसे में बैक टु औफिस इस बोरियत से तो आप को बाहर निकालेगा ही, साथ ही आप को औफिस के दोस्तों के साथ चटपटी बातों के लिए भी समय मिल जाएगा जैसे यार प्रिया छोटी ड्रैस में कितनी हौट लग रही है, देखो रोहन नेहा को इंप्रैस करने के लिए उस के आगेपीछे ही घूमता रहता है.

लग रहा है कि इस बार स्नेहा टारगेट को पूरा करने के लिए किसी भी हद तक चली जाएगी, वगैरावगैरा. ऐसी बातें भले ही हमें शोभा नहीं देती हैं, लेकिन ऐसी बातें कर के मजा बहुत आता है.

रोमांस का भी मिलेगा मौका

अरे घर में बैठ कर काम करने से हम औफिस में रोमांस को काफी मिस करते थे. अब जब किसी को देख या मिलजुल ही नहीं रहे थे तो किसी पर क्रश होना तो बहुत दूर की बात थी. ऐसे में अब जब औफिस दोबारा से खुल गए हैं तो काम, मस्ती के साथसाथ रोमांस का भी फुल मजा ले सकेंगे जो आप में नई ऊर्जा का संचार करने का काम करेगा. आप जिसे पसंद कर रहे हैं उसे देख कर काम करने का मजा ही अलग होगा. भले ही यह मस्ती के लिए हो, लेकिन आप को ऐसा कर के खुशी बहुत मिलेगी.

नए लोगों को जानने का मौका

इस दौरान बहुत से लोगों ने औफिस छोड़ा होगा व उन के बदले बहुत से नए लोगों ने औफिस जौइन किया होगा, लेकिन वर्क फ्रौम होम के कारण आप की उन नए लोगों से बौंडिंग उतनी स्ट्रौंग नहीं बन पाई होगी, जितनी दूसरे लोगों से. ऐसे में बैक टू औफिस में आप को नए लोगों को जानने, उन्हें सम झने, उन से कुछ नया सीखने का भी मौका मिलेगा, साथ ही आप भी उन्हें काम के बेहतर टिप्स दे पाएंगे जो आप लोगों को एकदूसरे के करीब लाने का काम करेगा.

मोटिवेट करें

भले ही वर्क फ्रौम होम के कारण आप सभी काफी समय तक एकदूसरे से दूर रहे हैं, लेकिन अब जब दोबारा से औफिस जाने का मौका मिल रहा है तो एकदूसरे को पहले की तरह मोटिवेट करना न भूलें. उन्हें काम में हैल्प भी करें, उन्हें गुड वर्क के लिए मोटिवेट भी करें. इस से आप सब के बीच दोबारा से स्ट्रौंग बौंडिंग बनेगी. यह आप के स्ट्रैस को भी कम करने का काम करेगा क्योंकि जब आप किसी को मोटिवेट करेंगे तो वह भी आप को प्रोत्साहित किए बिना नहीं रहेगा, जो आप की प्रोडक्टिविटी को बढ़ाने में मददगार साबित होगा. इस तरह आप फिर से बैक टु औफिस में ट्यूनिंग बैठा सकते हैं.

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होम क्लीनिंग के लिए जानें टूथपेस्ट के ये 10 फायदे

घर में सुबह और शाम दोनों टाइम टूथपेस्ट का इस्तेमाल का दांतों को साफ करने और मुंह की बदबू को दूर करने के लिए किया जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि घर से जुड़ी कुछ प्रौब्लम्स को दूर करने के लिए टूथपेस्ट के कुछ ऐसे ट्रिक्स हैं, जिसे अपनाकर आप होमकेयर प्रौब्लमस से छुटकारा पा सकते हैं. आइए आपको बताते हैं क्या है टूथपेस्ट ट्रिक्स…

1. जिद्दी दाग

सफाई किसे पसंद नहीं होती ? पर घर पर अगर बच्चें हों तो साफ-सफाई रखना और भी मुश्किल हो जाता है. कभी कभी आप खुद ही अपनी महंगी सफेद ड्रेस पर स्याही या सौस उड़ेल लेती हैं. इन सब से छुटकारा दिलाएगा सिर्फ जरा सा टूथपेस्ट. जिद्दी दाग पर जरा सा टूथपेस्ट लगाएं. थोड़ी देर के लिए छोड़ दें और ठंडे पानी से धो लें. अगर एक बार में दाग न जाए तो इस प्रोसेस को दोहराएं.

2. गौगल्स

काला चश्मा तो सभी पर जचदा है. पर चश्मे को डस्ट फ्री रखना भी जरूरी है. चश्मे पर गंदगी बैठ जाती है, और पूरी तरह से साफ करने में दिक्कत होती है. जरा से टूथपेस्ट से आपके गौगल्स नए जैसे हो जाएंगे.

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3. डायमंड ज्वेलरी

डायमंड ज्वेलरी की चमक बरकरार रखना भी आसान नहीं है. हीरे के गहने आपकी सुंदरता तो बढ़ाते हैं. पर इन्हें चमकदार बनाए रखने में परेशानी होती है. डायमंड ज्वेलरी को आप टूथपेस्ट की सहायता से आसानी से साफ कर सकती हैं. ब्रश और टूथपेस्ट से साफ करें डायमंड ज्वेलरी और अपने गहनों को सालो साल बनाए रखें नए जैसा.

4. हाथों का ड्योड्रेंट

प्याज और लहसुन छिलने और काटने से इनकी खुशबू हाथों में ही रह जाती है. हाथों पर जरा सा टूथपेस्ट लगाएं और हाथों को धो लें. प्याज, लहसुन की महक चली जाएगी. वैसे तो आप हैंडवॉश का यूज करती ही होंगी, पर टूथपेस्ट भी इस काम के लिए कारगर है.

5. बालों से हटाएं च्युइंग गम

बच्चे शरारती होते हैं. खेल-खेल में वे कई शैतानियां करते हैं. कई बार च्युइंग गम चबाने के अलावा बालों में भी लगा लेते हैं. च्युइंग गम बालों से आसानी से नहीं निकलता. पर टूथपेस्ट से यह आसानी से निकल जाएगा. बालों में लगे च्युइंग गम पर टूथपेस्ट लगाएं, इससे च्युइंग गम आसानी से निकल जाएगा.

6. कार्पेट स्टेन्स

कार्पेट पर स्टेन्स तो लग ही जाते हैं. चाहे आप कितनी भी सावधानी क्यों न बरतें. पर ये दाग छुड़ाने में शामत आपकी आती है. पर टूथपेस्ट से ये काम आसान हो जाएगा. दाग पर टूथपेस्ट लगाएं, और गीले टूथब्रश से रगड़ें. अगर दाग एक बार में न निकले, तो यह प्रोसेस दोहराएं.

7. दीवारों पर क्रेयौन

बच्चे अपनी करामात दीवारों पर भी दिखाते हैं. इन नन्हे-मुन्ने चित्रकारों को डांटने के बजाय अपने ख्यालों को आकार देने दीजिए. गंदी दीवारों की सफाई का जिम्मा टूथपेस्ट पर छोड़ दीजिए. दीवारों पर टूथपेस्ट लगाएं. गिले कपड़े से साफ कर लें. दीवारों पर बने क्रेयॉन के दाग साफ हो जाएंगे.

8. कौफी टेबल पर बने पानी के दाग

कौफी टेबल पर बने पानी के दाग आपके खूबसूरत से कॉफी टेबल की रंगत बिगाड़ देते हैं. कौफी टेबल पर बने इन दागों को भी आप आसानी से टूथपेस्ट से साफ कर सकती हैं. दाग पर टूथपेस्ट लगाएं और भीगे कपड़े से पोछें करें. दाग साफ हो जाएंगे.

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9. हेडलाइट्स

स्कूटी या कार से घूमना जितना मजेदार होता है, इसके रख-रखाव पर उतना ही ध्यान देना पड़ता है. हेडलाइट पर पड़े स्क्रैच और गंदे लगते हैं. पर जरा से टूथपेस्ट से आप अपने गाड़ी की हेडलाइट भी चमका सकती हैं. टूथपेस्ट को हल्के से पानी के साथ मिलाकर हेडलाइट पर लगाएं. जरा सा रगड़कर कपड़े से पोंछ लें. हेडलाइट साफ करने की यह टिप आजमाइए और फर्क खुद ही देख लीजिए.

10. सफेद जूते

सफेद जूते आजकल फैशन का नया ट्रेन्ड हैं. पर इनको भी चमकदार बनाए रखना आसान नहीं है. पर टूथपेस्ट से आपका यह काम भी आसान हो जाएगा. गंदे जूतों पर टूथपेस्ट लगाएं, और ब्रश से साफ करें. जूते नए जैसे चमकेंगे.

टूथपेस्ट आपके कई काम आसान हो जाएंगे. वैसे भी साफ-सफाई में आपका बहुत सारा वक्त लग जाता है. पर ध्यान रखें की आप सफेद टूथपेस्ट जैसे कोल्गेट, बबूल आदि का ही इस्तमाल करें, न की जेल-बेस्ड टूथपेस्ट का.

Health Insurance के हैं कई फायदे

कोरोना महामारी का कहर अभी भी बरकरार है. अगर किसी व्यक्ति को कोरोना या उस से जुड़े कौंप्लीकेशंस होते हैं और उस का इलाज प्राइवेट अस्पताल में होता है तो कुल खर्च ₹10 से ₹12 लाख तक जा सकता है. कोरोना के अलावा भी तमाम तरह की बीमारियां हैं जो लोगों को परेशान करती हैं और उन के इलाज में लोगों की सारी जमापूंजी खत्म हो जाती है. यही वजह है कि हैल्थ इंश्योरैंस के महत्त्व को नकारा नहीं जा सकता.

कोरोनाकाल में हम सभी को इस सवाल का जवाब भी मिल गया है कि अचानक आई बीमारी से निबटने, सही इलाज और परिवार की सुरक्षा के लिए ₹2-3 लाख का साधारण हैल्थ इंश्योरैंस कुछ भी नहीं है. वह भी तब जब घर में एक व्यक्ति से ज्यादा लोग एकसाथ बीमार हो जाते हैं. कोरोना के दौर में इस तरह का वाकेआ आप के आसपास ही कई घरों में दिखा होगा. इसलिए अगर आप के पास कोई हैल्थ इंश्योरैंस की पौलिसी नहीं है तो आप जल्द से जल्द एक अच्छी पौलिसी अवश्य ले लें.

यदि आप ऐंप्लोई ग्रुप बीमा कवर में आते हैं, तब भी आप अपने लिए कम से कम ₹5 से ₹10 लाख का हैल्थ इंश्योरैंस अवश्य ले लें. अगर आप ने इंश्योरैंस लिया हुआ है तो भी उसे मौजूदा हालात के हिसाब से रीशेप करना जरूरी है. आप चाहें तो एक इंश्योरैंस कंपनी से दूसरी कंपनी में शिफ्ट भी कर सकते हैं. जिस कंपनी द्वारा ज्यादा सुविधाएं दी जा रही हैं उसे चुन सकते हैं.

आइए जानते हैं इस के बारे में:

फैमिली फ्लोटर स्वास्थ्य बीमा योजना

लगभग हर बीमा कंपनी बेसिक हैल्थ इंश्योरैंस कवर उपलब्ध कराती है, जिस में अस्पताल में भरती होने से पहले के खर्चों के अलावा अस्पताल में भरती होने के बाद का खर्च, दवाइयों के लिए खर्च, डाक्टर की फीस और जांच आदि भी शामिल हैं. बेसिक हैल्थ इंश्योरैंस 2 प्रकार के होते हैं- पहला इन्डिविजुअल और दूसरा फैमिली फ्लोटर. इन्डिविजुअल में सिर्फ आप को कवरेज मिलता है जबकि फैमिली फ्लोटर में पूरे परिवार को कवरेज मिलता है.

फैमिली फ्लोटर स्वास्थ्य बीमा योजना आमतौर पर एक व्यक्ति, उस के जीवनसाथी और उस के बच्चों को कवर करती है. हालांकि कुछ बीमा कंपनियां बीमा पौलिसी खरीदने वाले के आश्रित मातापिता, भाईबहन और सासससुर को भी कवरेज देती हैं. फैमिली फ्लोटर स्वास्थ्य बीमा का एक फायदा यह भी है कि कम रकम में पूरे परिवार को सुरक्षा मिल जाती है. आवश्यकता पड़ने पर एक व्यक्ति द्वारा अधिक धनराशि का उपयोग भी किया जा सकता है. इसलिए आज के समय में फैमिली फ्लोटर स्वास्थ्य बीमा योजना एक बेहतरीन औप्शन है.

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लिमिट/सब लिमिट वाला प्लान न लें

कई हैल्थ पौलिसीज में अस्पताल में कमरे के किराए की सीमा तय होती है. ऐसी लिमिट वाली पौलिसीज से बचें. यह आप के हाथ में नहीं है कि आप के इलाज के दौरान आप को किस कमरे में रखा जाएगा. वैसे भी कोरोनाकाल में हम ने देखा है कि अचानक गंभीर रूप से बीमारी और फिर कई सप्ताह हौस्पिटल में एडमिट होने की नौबत आ सकती है. उस पर अलग कमरे में क्वारंटाइन में रहने की जरूरत भी होती है. कई बार जो बैड या रूम मिला वही लेना पड़ता है. आप यह नहीं कह सकते कि सस्ते वाले बैड पर शिफ्ट करो. ऐसे में खर्च के लिए स्वास्थ्य बीमा कंपनी द्वारा कोई सब लिमिट तय किया जाना आप के लिए ठीक नहीं है. हैल्थ पौलिसी खरीदते या रीशेप करते वक्त इस बात का ध्यान रखें और ऐसी पौलिसी न लें.

ताउम्र रिन्यू की सुविधा

ऐसी पौलिसी लें जिसे जीवन में किसी भी समय रिन्यू कराया जा सके. दरअसल, उम्र बढ़ने पर इलाज के लिए रुपयों की जरूरत ज्यादा होती है क्योंकि बड़ी उम्र में बीमारियों का हमला अधिक होता है. आमतौर पर इस समय तक इंसान रिटायर भी हो चुका होता है. उस के पास इलाज कराने के लिए पैसे नहीं होते. इन सब बातों का खयाल रखना जरूरी हो जाता है.

कोरोना कवच

आप कोरोना के इलाज के लिए अलग से भी पौलिसी ले सकते हैं. आईआरडीएआई के निर्देश पर इंश्योरैंस कंपनियों ने कोरोना स्पैशल पौलिसी लौंच की है. इसे कोरोना कवच के नाम से जाना जाता है. इस के लिए बीमा की राशि ₹50 हजार से ₹5 लाख तक है. कोरोना कवच पौलिसी शौर्ट टर्म के लिए साढ़े तीन महीने, साढ़े छह महीने और साढ़े नौ महीने के लिए हो सकती है.

घर पर इलाज कराने पर इंश्योरैंस का फायदा

कोरोना जैसी संक्रामक बीमारी के इस दौर में कई कंपनियां घर पर ही रह कर इलाज कराने पर होने वाले खर्च को भी कवर कर रही हैं. इस के अलावा कई बीमा कंपनियां सरकार द्वारा बनाए जाने वाले क्वारंटाइन सैंटर पर भरती हो कर इलाज कराने पर होने वाले खर्च को भी कवर कर रही हैं. इंश्योरैंस लेते समय यह देख लें कि आप की कंपनी यह सुविधा दे रही है या नहीं.

महामारी को कवर करे

वैसे तो अधिकांश स्वास्थ्य बीमा पौलिसियां कोरोना जैसी महामारियों को कवर करती हैं. हालांकि यह मुख्य रूप से पौलिसी पर निर्भर करता है. कुछ पौलिसीज ऐसी भी हैं जो महामारी को कवर नहीं करती हैं. आप को पौलिसी दस्तावेज पढ़ने चाहिए और उसी हिसाब से पौलिसी लेनी चाहिए जिस में इसे कवर किया गया हो.

इन्वैस्टमैंट एडवाइजर मनीषा अग्रवाल कहती हैं कि कोई भी पौलिसी लेते समय कुछ और महत्त्वपूर्ण बातों का खयाल जरूर रखें.

कैशलैस पौलिसी ज्यादा बैस्ट

ऐसी इंश्योरैंस पौलिसी खरीदनी चाहिए जो कैशलैस सुविधा दे रही हो. कैशलैस इंश्योरैंस पौलिसी का फायदा यह होता है कि पौलिसीधारक को अस्पताल का बिल नहीं चुकाना होता है बल्कि वे इस के लिए सीधे इंश्योरैंस कंपनी से संपर्क करते हैं.

हैल्थ इंश्योरैंस पौलिसी लेते समय इस बात का भी विशेष ध्यान रखें कि आप जिस शहर में रहते हैं, वहां के बड़े और अच्छी सुविधा वाले अस्पताल कैशलैस अस्पतालों की सूची में शामिल हों. इस से आप को किसी भी प्रकार की दिक्कत महसूस नहीं होगी, आप आसानी से हेल्थ इंश्योरैंस का फायदा उठा सकते हैं.

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क्लेम सैटलमैंट

जिस कंपनी का क्लेम रेशो अच्छा हो यानी ज्यादा से ज्यादा लोगों के क्लेम सैटल कर रही हो और उस में आप की सारी जरूरतें पूरी हो रही हों वही पौलिसी लें.

रीफिल बैनिफिट का औप्शन

अगर आप की ₹5 लाख की पौलिसी है और वे रुपए एक बीमारी में खर्च हो गए जबकि 3 माह बाद फिर कोई बीमारी हो जाती है तो ऐसे में पौलिसी ऐसी लें जिस में रिफिल का औप्शन हो ताकि आप को दूसरी बीमारी के लिए भी पैसे मिल जाएं.

ज्यादातर पौलिसीज में यह बैनिफिट सेम पर्सन सेम डिजीज और डिफरैंट पर्सन सेम डिजीज के लिए भी मिल जाता है.

को पेमैंट से बचें

कुछ प्लान्स में को पेमैंट की भी बात होती है यानी किसी बीमारी के इलाज में जितना खर्च आया उस का कुछ प्रतिशत पौलिसीधारक को भी देना होता है. कई ऐसे प्लान्स भी हैं जिन में

60+ वाले लोगों के लिए खासतौर पर को पेमैंट का औप्शन लगा दिया जाता है यानी पूरा पैसा कंपनी के द्वारा नहीं दिया जाएगा बल्कि इस में कुछ खर्च आप को भी करना होगा. इस तरह के प्लान लेने से बचें और यदि लिया हुआ है तो बदलवा लें.

टौपअप प्लान

मौजूदा हालात को देखते हुए बहुत सी कंपनियों के टौपअप प्लान आ गए हैं. मान लीजिए आप का ₹5 लाख का इंश्योरैंस है तो ₹डेढ़ दो हजार की मामूली रकम से ही आप को एडिशनल ₹5 लाख का टौपअप मिल जाता है यानी औलरैडी रनिंग पौलिसी ₹5 लाख की है और उस में ₹5 लाख का टौपअप ले लिया जाए तो आप को कुल ₹10 लाख का बीमा कवर मिल जाएगा. जाहिर है ऐसा प्लान फायदे का सौदा है.

हर बीमा कंपनी के अपने नियम होते हैं. हैल्थ पौलिसी खरीदने से पहले यह जान लें कि उस में कितना और क्याक्या कवर होगा. जिस पौलिसी में ज्यादा से ज्यादा चीजें जैसे टैस्ट का खर्च और ऐंबुलैंस का खर्च कवर हो उस पौलिसी को लेना चाहिए ताकि आप को जेब से पैसे खर्च न करने पड़ें.

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जीवन बीमा क्यों है जरूरी

हमारे देश में आज भी जीवन बीमा को ले कर लोगों में झिक है खासतौर से महिलाओं में. अधिकांश महिलाओं को तो जीवन बीमा के विषय में जानकारी ही नहीं होती. इन सब बातों को वे अपने पति पर छोड़ देती हैं. पति भी पत्नियों को बचत के तरीकों, अपने खातों की जानकारी, विकास पत्र या बीमा पौलिसी के बारे में अधिक जानकारी देने से बचते हैं.

हमारे यहां परिवार का आर्थिक बोझ उठाने की जिम्मेदारी अकसर पुरुषों के कंधों पर होती है. हालांकि अब बड़ी संख्या में  महिलाएं भी नौकरी कर रही हैं और घर की आर्थिक जरूरतों को पूरा करने में अपना योगदान दे रही हैं. ऐसे में बहुत जरूरी है कि आप अपने और अपने परिवार को सुरक्षित रखने का इंतजाम समय रहते कर लें.

घर की आर्थिक गाड़ी खींचने वाला व्यक्ति चाहे स्त्री हो या पुरुष, उस के कंधों पर कई तरह की जिम्मेदारियां होती हैं. बच्चों की शिक्षा, उच्च शिक्षा के लिए बच्चों को विदेश भेजने की ख्वाहिश, बेटी का अच्छा विवाह, अपना घर बनवाना और रिटायर होने के बाद भी आय का कोई सोर्स हर व्यक्ति चाहता है.

बीमा की उपयोगिता

इन तमाम जिम्मेदारियों को पूरा करने से पहले ही अगर घर के कमाऊ सदस्य के साथ कोई अनहोनी घट जाए तो सोचिए उस के लक्ष्यों का क्या होगा? परिवार के सपनों को पूरा करने के लिए पैसे कहां से आएंगे? इस का सिर्फ एक इलाज है- जीवन बीमा. इस के जरीए सभी वित्तीय लक्ष्यों के लिए परिवार को सुरक्षा कवच मिल जाता है. जीवन बीमा परिवार के आत्मसम्मान की रक्षा करता है. घर के मुख्य कमाऊ सदस्य की अचानक मृत्यु के बाद परिवार को दूसरों पर आश्रित नहीं होना पड़ता है.

जीवन बीमा के बारे में आज हर व्यक्ति को जानने की जरूरत है. इस के विषय में ज्यादा से ज्यादा सवाल पूछने की जरूरत है. जीवन बीमा की उपयोगिता क्या है? यह कितनी रकम का होना चाहिए? इसे कब लेना चाहिए? ऐसे सभी सवालों के जवाब हम आप को दे रहे हैं.

अगर आप नौकरीपेशा हैं या अपना कोई व्यवसाय करते हैं तो आप को अपनी सालाना आमदनी का कम से कम 10 गुना जीवन बीमा कवर जरूर लेना चाहिए.

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क्यों खरीदें जीवन बीमा पौलिसी

मान लीजिए किसी व्यक्ति ने होम लोन ले कर घर खरीदा है. उस के बच्चे निजी स्कूल में पढ़ रहे हैं. घर के सभी प्रकार के खर्च के लिए परिवार उस व्यक्ति पर निर्भर है. अब यदि किसी बीमारी या दुर्घटना की वजह से उस व्यक्ति की मौत हो जाती है तो उस के नहीं रहने की स्थिति में उस का परिवार सड़क पर न आ जाए, इस के लिए बीमा पौलिसी खरीदना जरूरी है.

बीमा कवरेज लेने से उस के नहीं होने की स्थिति में उस के आश्रितों को बीमा कंपनी से मुआवजा मिलेगा, जिस से उन का आगे का समय आसानी से कट सकता है. जीवन बीमा पौलिसी व्यक्ति के नहीं रहने की स्थिति में उस के परिवार को वित्तीय जोखिम से सुरक्षा देता है.

जीवन बीमा किसे लेना चाहिए

यदि व्यक्ति के परिवार में पत्नी है, बच्चे हैं और उस के मातापिता वृद्ध हैं तथा उन की अपनी कोई कमाई नहीं है तो उस व्यक्ति को निश्चित रूप से जीवन बीमा पौलिसी खरीदना चाहिए. जीवन बीमा पौलिसी खरीदने की सब से आम वजह किसी अप्रत्याशित घटना से परिवार को संरक्षण प्रदान करना है. जीवन बीमा पौलिसी से मुआवजे के रूप में मिली रकम का उपयोग कर परिवार के आश्रित सदस्यों के अगले कई सालों का खर्च उठाया जा सकता है.

अगर आप पर ऋण या देनदारी है

यदि किसी व्यक्ति ने लोन ले कर खरीदारी यानी घर खरीदा है या अपनी संपत्ति गिरवी रखी है, तो उसे जीवन बीमा पौलिसी अवश्य ले लेनी चाहिए. इस से उस के नहीं रहने की स्थिति में न सिर्फ उस के परिवार को उस कर्ज को चुकाने में मदद मिलेगी, बल्कि परिवार के लिए आमदनी का एक नियमित स्रोत भी बनेगा.

पार्टनरशिप फर्म में भागीदार

यदि आप के साथ पार्टनरशिप फर्म में शामिल कोई व्यक्ति है तो आप दोनों को जीवन बीमा पौलिसी खरीदनी चाहिए. इस प्रकार की पौलिसी आप के पार्टनर की मृत्यु होने की स्थिति में होने वाले किसी प्रकार के वित्तीय नुकसान की स्थिति में आप की फर्म को वित्तीय सुरक्षा देगी.

कब कराना चाहिए जीवन बीमा

नौकरी लगते ही आप को जीवन बीमा पौलिसी खरीद लेनी चाहिए. जीवन बीमा कवरेज लेने के लिए टर्म प्लान कम प्रीमियम में अधिकतम कवरेज हासिल करने का बेहतरीन विकल्प है. आप की उम्र जितनी कम होगी जीवन बीमा पौलिसी में आप का प्रीमियम उतना ही कम होगा.

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बीमा कितने समय के लिए कराना चाहिए

जब तक आप के परिवार के सदस्य अपने खर्च के लिए आप की कमाई पर निर्भर हों, आप को उतने समय का अंदाजा लगा कर ही बीमा पौलिसी खरीदनी चाहिए. आप जब तक अपने परिवार के लिए कमाने वाले महत्त्वपूर्ण सदस्य हैं तब तक के लिए आप को जीवन बीमा कराना चाहिए.

आमतौर पर यह माना जाता है कि अगर आप की शादी 30 साल की उम्र में हो गई है और 35 साल की उम्र तक आप के 2 बच्चे हैं तो उन की पढ़ाईलिखाई आदि अगले 25 साल में पूरी हो जाएगी और तब तक वे जौब शुरू कर देंगे. इस हिसाब से आप को जीवन बीमा पौलिसी में 60-65 साल तक की उम्र के लिए लेनी चाहिए.

वजन कम करने के कारण स्ट्रैच मार्क्स हो गए हैं, मैं क्या करुं?

सवाल-

मैं ने अपना वेट काफी कम किया है. मगर मेरे पेट और टांगों पर स्ट्रैच मार्क्स हो गए हैं. बताएं क्या करूं?

जवाब-

जब हम वेट कम करते हैं तो स्किन पहले की तरह टाइट नहीं हो पाती और स्ट्रैच मार्क्स हो ही जाते हैं. घर में आप विटामिन ई के कैप्सूल लें. उन्हें तोड़ कर स्ट्रैच मार्क्स पर लगाएं. इस से कुछ हद तक स्ट्रैच मार्क्स में फर्क आ सकता है. आप किसी क्लीनिक से लेजर की सिटिंग्स भी ले सकती हैं. इस से स्ट्रैच मार्क्स काफी हद तक कम हो सकते हैं.

आजकल स्ट्रैच मार्क्स के लिए कई तरह के औयल भी उपलब्ध हैं, जिन्हें लगाने से काफी हद तक फर्क पड़ जाता है. आप घर पर ऐलोवेरा जैल भी लगा सकती हैं. ताजा ऐलोवेरा ले कर उसे तिरछा काट कर कुछ देर के लिए रख दें. उस से पीले रंग का एक लिक्विड निकलता है जिसे निकलने दें. फिर उसे सैंटर से काट कर चाकू से

जल को निकाल लें. फिर हर रोज इस जैल से स्ट्रैच मार्क्स की मसाज करें. इस से भी स्ट्रैच मार्क्स कम होते हैं.

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स्ट्रैच मार्क्स यानी त्वचा पर खिंचाव के निशान. यों तो महिलाओं में गर्भावस्था के बाद होने वाली यह एक आम परेशानी है, लेकिन कई बार देखा गया है कि वजन कम करने के बाद भी इस तरह के निशान त्वचा पर देखे जाते हैं. यही नहीं महिलाओं के साथसाथ पुरुषों में भी स्ट्रैच मार्क्स एक आम समस्या बनते जा रहे हैं. स्टैच मार्क्स कई तरह के होते हैं, जिन के होने की कुछ अलगअलग वजहें हो सकती हैं. लेकिन इन से घबराने की जरूरत नहीं है.

महिलाएं और पुरुष इस तरह के निशानों को कुछ साधारण घरेलू उपायों से दूर कर सकते हैं. इस के अलावा कुछ खास क्रीमों और औयल आदि की नियमित मालिश से भी इन निशानों से छुटकारा पाया जा सकता है.

क्यों होते हैं स्ट्रैच मार्क्स

शरीर के अलगअलग हिस्सों पर हमारी त्वचा अलगअलग प्रकार की यानी कहीं सख्त तो कहीं मुलायम होती है. लेकिन मुख्य तौर पर त्वचा की 3 परतें होती हैं- पहली परत यानी बाहरी त्वचा को ऐपिडर्मिस, दूसरी परत को डर्मिस और सब से निचली यानी अंतिम परत को हाइपोडर्मिस कहते हैं.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- स्ट्रैच मार्क्स से ऐसे पाएं छुटकारा

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

अपना स्वास्थ्य करें सुरक्षित

महिलाएं ही अपने परिवार में स्वस्थ जीवनशैली को बढ़ावा देती हैं और सभी का खयाल रखती हैं, मगर वे कामकाजी और पारिवारिक जीवन में इतनी व्यस्त हो जाती हैं कि दोनों को संभालने के चक्कर में अपने स्वास्थ्य को नजरअंदाज करती हैं. ज्यादातर महिलाओं को इस बात का एहसास नहीं होता कि वे अपने परिवार के स्वास्थ्य का खयाल अच्छी तरह तभी रख सकती हैं, जब वे खुद बिलकुल स्वस्थ होंगी.

ऐसे में स्वास्थ्य बीमा की जरूरत को भी समझना बहुत जरूरी हो जाता है, जो आप को किसी भी मैडिकल आपात स्थिति में बड़े संकट से बचा सकता है. जांच में कोई बड़ी बीमारी निकल आए तो उस से न सिर्फ आप के स्वास्थ्य को नुकसान होता है, बल्कि वह आप की पूरी जिंदगी को भी खराब कर सकती है. आज मैडिकल इलाज बहुत महंगा हो गया है. इतना महंगा कि व्यक्ति के लिए स्वास्थ्य बीमा के बिना अपने दम पर इतना वित्तीय बोझ वहन करना मुमकिन नहीं है.

स्वास्थ्य बीमा सभी आयुवर्गों के लिए उपयोगी होता है. युवा लड़कियां स्वयं और अपने मातापिता के लिए स्वास्थ्य बीमा ले सकती हैं, जबकि विवाहित महिलाएं स्वयं और अपने नए परिवार के लिए स्वास्थ्य बीमा का विकल्प चुन सकती हैं.

क्या है स्वास्थ्य बीमा

स्वास्थ्य बीमा एक व्यापक कौन्सैप्ट है, जो लोगों को किसी अप्रत्याशित मैडिकल आपदा और उस पर होने वाले खर्च से सुरक्षा प्रदान करता है. आज बाजार में ऐसी कई योजनाएं मौजूद हैं, जिन में कवर, लाभ इत्यादि उपलब्ध हैं, लेकिन सभी में कुछ न कुछ अंतर होता है.

महिलाओं के लिए स्वास्थ्य बीमा

बाजार में महिलाओं पर केंद्रित कई अनूठी योजनाएं उपलब्ध हैं, जो सिर्फ उन की जरूरतों और गंभीर बीमारियों को कवर करती हैं. हालांकि बाजार में उपलब्ध इन योजनाओं के लिए कोई विशेष प्रीमियम मूल्य नहीं है.

सभी स्वास्थ्य बीमा कंपनियां महिलाओं पर केंद्रित उत्पाद उपलब्ध नहीं करातीं, लेकिन कंपनियों की नीतियों में मैटरनिटी बैनिफिट शामिल होता है. कंपनियों की नई योजनाएं विभिन्न आयुवर्गों की महिलाओं और उन के जीवन के कई चरणों के लिए हैं. बाजार में उपलब्ध प्रत्येक पौलिसी दूसरी पौलिसी से अलग होती है. पौलिसी के कुछ सामान्य प्रावधान निम्नलिखित हैं:

– बीमा कंपनी के नैटवर्क के अस्पतालों में कैशलैस हौस्पिटलाइजेशन.

– अस्पताल में भरती होने से पहले या भरती होने के दौरान आने वाला खर्च.

– अधिकृत केंद्रों पर हैल्थ चैकअप की लागत.

– मैटरनिटी बैनिफिट, जो अस्पताल में भरती होने का खर्च भी कवर करता है. जन्म से पूर्व और जन्म के बाद होने वाला खर्च शामिल.

– ऐसी पौलिसी, जो आप के परिवार को भी कवर करे. पौलिसीधारक को कैंसर, हार्टअटैक, स्ट्रोक और गुरदे खराब होने जैसी गंभीर बीमारी होने पर संपूर्ण भुगतान.

– धारा 80 डी के तहत लाभ.

– पौलिसी में महिलाओं की गंभीर बीमारियां जैसे स्तन कैंसर, सर्वाइकल कैंसर और स्पौंडिलाइटिस आदि भी कवर होता है.

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अविवाहित/विवाहित महिलाओं के लिए स्वास्थ्य बीमा

अविवाहित या विवाहित महिलाओं द्वारा उठाया जाने वाला मैडिकल खर्च काफी अधिक होता है. अगर उन के परिवार में किसी को गंभीर बीमारी हो जाए, जिस के इलाज पर काफी रकम खर्च करने की जरूरत हो तो एक समग्र हैल्थकेयर योजना और एक गंभीर बीमारी योजना परिवार को ऐसे समय में वित्तीय मदद उपलब्ध कराती है.

अगर आप अकेले ही बच्चों की जिम्मेदारी उठा रही हैं तो स्वास्थ्य बीमा योजनाओं के जरीए निम्तलिखित लाभ उठा सकती हैं:

– व्यापक स्वास्थ्य कवर के तहत आप के साथ आप का बच्चा भी कवर हो सकता है.

– एक ही कवर में चाइल्ड केयर बैनिफिट भी उपलब्ध हो सकता है.

– इस कवर में 12 वर्ष की आयु तक वैक्सिनेशन शुल्क भी शामिल.

– आप अपने सिंगल कवर के तहत अपने बच्चों के साथ ही अपने अभिभावकों को भी शामिल कर सकती हैं.

– किसी भी गंभीर बीमारी की स्थिति में अस्पताल में इलाज पर होने वाला पूरा खर्च शामिल.

नवविवाहित युगल के लिए स्वास्थ्य बीमा

नवविवाहित महिलाएं ऐसा बीमा योजना चुन सकती हैं कि जब अपना परिवार आगे बढ़ाने की योजना बनाएं तो मैटरनिटी बैनिफिट ले सकें. युगल मैटरनिटी लाभ तभी ले सकते हैं, जब पति और पत्नी को यह योजना लिए कम से कम 2 साल का समय बीत गया हो.

संयुक्त परिवार में रहने वाली महिलाओं के लिए स्वास्थ्य बीमा अगर कोई महिला संयुक्त परिवार में रहती है तो उस के लिए भी बाजार में ऐसी पौलिसियां हैं, जो एक बार में 15 लोगों को कवर कर सकती हैं जैसे स्वयं, पति, उन पर निर्भर लोग (25 वर्ष तक की आयु के अविवाहित) या फिर उन पर निर्भर नहीं रहने वाले बच्चे, उन पर निर्भर या निर्भर नहीं रहने वाले अभिभावाक, निर्भर रहने वाले भाईबहन, बहुएं, दामाद, सासससुर, दादादादी और पोतेपोती (अधिकतम 15 सदस्य तक).

वरिष्ठ नागरिकों के लिए स्वास्थ्य बीमा

वरिष्ठ महिला नागरिक किसी बीमारी के इलाज के लिए अस्पताल में भरती होने पर स्वास्थ्य बीमा का लाभ उठा सकती हैं. अस्पताल से आने के बाद नर्सिंग जैसी सेवाएं भी उपलब्ध कराई जाती हैं और ये सेवाएं उस समय बहुत काम आती हैं, जब घर में उन की देखभाल करने वाला कोई नहीं हो. कुछ पौलिसियों में नई पौलिसी खरीदने के लिए कोई उम्र सीमा नहीं होती. हालांकि उस के तहत व्यक्ति को दिए जाने वाले लाभ पौलिसी दर पौलिसी बदल सकते हैं.

बीमित रकम और भुगतान किया जाने वाला प्रीमियम

स्वास्थ्य बीमा पौलिसी का प्रीमियम योजना, प्लान, कवरेज की सीमा और बीमित रकम के साथ ही व्यक्ति की उम्र पर भी निर्भर करता है व इसी के अनुसार बढ़ या घट सकता है. प्रीमियम का भुगतान ईसीएस, कैश, चैक और डायरैक्ट औनलाइन भी किया जा सकता है.

दावों का निबटान

बीमाकर्ता पौलिसीधारक को विस्तृत दिशानिर्देश उपलब्ध कराते हैं, जिन में लिखा होता है कि दावे के लिए उन्हें क्या करना है. अस्पताल में भरती दावों के लिए बीमा कंपनी के नैटवर्क में शामिल अस्पतालों में कैशलैस सुविधा उपलब्ध  होती है. इन अस्पतालों को सूची बीमाधारक को पौलिसी लेते समय ही उपलब्ध करा दी जाती है. अगर बीमाकंपनी के नैटवर्क में शामिल अस्पतालों के अतिरिक्त कहीं और इलाज कराया तो बीमाधारक को दावों का भुगतान प्रतिपूर्ति के आधार पर करना होता है.

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कैसे खरीदें पौलिसी

पौलिसी की खरीद औनलाइन भी की जा सकती है. इस के अतिरिक्त आप बीमा कंपनी की अपने नजदीक की शाखा या कौल सैंटर पर भी कौल कर सकते हैं. उस के बाद वे एक उपयुक्त अधिकारी को आप से संपर्क करने को कहेंगे, जो आप को उस योजना की विस्तृत जानकारी उपलब्ध कराएगा.

बीमाकर्ता का चयन कैसे करें

व्यक्ति को बीमा हमेशा अच्छी साख वाली बीमा कंपनी से ही लेना चाहिए, जिन की सेवा और दावे निबटान का रिकौर्ड बहुत अच्छा हो, क्योंकि ये बातें उस समय बहुत महत्त्वपूर्ण हो जाती हैं, जब वास्तव में आप को अपने बीमा का इस्तेमाल करने की जरूरत होती है. सस्ती पौलिसी जरूरी नहीं कि हमेशा अच्छी हो. ऐसी पौलिसी चुनें, जो कवरेज और बीमित रकम के लिहाज से आप की जरूरतों को पूरा करती हो. पूरी विवरणिका और पौलिसी के नियमों व शर्तों को ध्यान से पढ़ें, जिस से आप को निबटान इंतजार की अवधि, क्या शामिल नहीं है और पौलिसी में कितनी सीमा है जैसी जानकारी मिल सके. किसी भी पौलिसी पर हस्ताक्षर करने से पहले अच्छी तरह सोच समझ लें.

(श्रीराज देशपांडे, प्रमुख (स्वास्थ्य बीमा) फ्यूचर जेनेराली इंडिया इंश्योरैंस कंपनी लिमिटेड)

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