लेखक-अमृत कश्यप
मुसीबत की रात समाप्त होने को नहीं आती. उस ने बड़ी मुश्किल से वह रात काटी और सुबह ही सुबह पति को देखने के लिए अस्पताल दौड़ पड़ी. अपने साथ वह चाय और ब्रैड भी ले गई. पति की बीमारी में उसे पूजापाठ करने का होश भी न रहा. जब अनिल ने उस से पूछा कि आज वह पूजा पर क्यों नहीं बैठी और चाय बना कर कैसे ले आई है तो उस ने कहा, ‘‘पूजापाठ तो बाद में भी हो जाएगा, पहले मुझे तुम्हारी सेहत की चिंता है.’’ अब अनिल ठीक होता जा रहा था. वह अभी हिलनेडुलने के योग्य तो नहीं हुआ था किंतु उसे 5 दिन के बाद अस्पताल से छुट्टी मिल गई और वर्षा अपने पति को घर ले आई. अनिल ने अपने मातापिता को इस दुर्घटना के बारे में कोई खबर न होने दी थी. उस का खयाल था कि इस से वे बेकार परेशान होंगे.
दूसरे दिन मंगलवार था. अनिल ने कहा, ‘‘वर्षा, तुम तो हनुमानजी का व्रत रखोगी ही, आज मैं भी व्रत रखूंगा. क्या पता बजरंगबली मुझे जल्दी अच्छा कर दें.’’
‘‘नहींनहीं, तुम कमजोर हो, तुम से व्रत नहीं रखा जाएगा.’’ ‘‘इतनी कमजोर होने पर तुम सारे व्रत रख लेती हो तो क्या मैं एक व्रत भी नहीं रख सकता? मैं आज अवश्य व्रत रखूंगा.’’
‘‘मेरी बात और है, तुम्हारे शरीर से इतना खून निकल चुका है कि उस की पूर्ति करने के लिए तुम्हें डट कर पौष्टिक भोजन करना चाहिए, न कि व्रत रखना चाहिए,’’ वर्षा ने तर्क दिया.
‘‘तुम मुझे धार्मिक कार्य करने से क्यों रोकती हो? क्या तुम नास्तिक हो? फिर बजरंगबली मुझे कमजोर क्यों होने देंगे? मैं खाना न खाऊं, तब भी वे अपने चमत्कार से मुझे हट्टाकट्टा बना देंगे,’’ अनिल ने मुसकरा कर कहा.
‘‘अब तो तुम मेरी बातें मुझे ही सुनाने लगे. मैं कह रही हूं कि अभी तुम्हारे शरीर में इतनी शक्ति नहीं है कि व्रत रख सको. जब हृष्टपुष्ट हो जाओगे तो रख लेना व्रत,’’ वर्षा ने तुनक कर कहा.
‘‘मैं कुछ नहीं जानता. मैं तो आज हनुमानजी का व्रत अवश्य रखूंगा.’’ वर्षा के अनुनयविनय के बाद भी अनिल ने कुछ नहीं खाया और व्रत रख लिया. यद्यपि वर्षा ने स्वयं व्रत रखा था, पति के व्रत रखने पर उसे गहरी चिंता हो रही थी. वह सोच रही थी कि अनिल के शरीर में खून की कमी है, खाली पेट रहने से और नुकसान होगा. यदि डाक्टर के दिए कैप्सूल और दवाएं खाली पेट दी जाएंगी तो लाभ की जगह हानि हो सकती है. वह करे तो क्या करे?
उस ने कहा, ‘‘अब तुम खाली पेट कैप्सूल कैसे खाओगे?’’
‘‘मैं दवा भी नहीं खाऊंगा. जैसा कड़ा व्रत तुम रखा करती हो, वैसा ही मैं भी रखूंगा. आखिर बजरंगबली इतना भी नहीं कर सकते हैं?’’ अनिल ने दृढ़ता से कहा.
‘‘देखो जी, तुम्हें कुछ हो गया तो?’’
वर्षा अपनी बात पूरी न कर पाई थी कि अनिल ने टोकते हुए कहा, ‘‘तो भी क्या होगा? यदि मैं व्रत रख कर मर गया तो मोक्ष प्राप्त होगा, जन्ममरण के बंधन से मुक्त हो जाऊंगा.’’
‘‘ऐसा न कहो जी, जब तुम ही न रहोगे तो मेरी सुध लेने वाला कौन है इस संसार में?’’
‘‘क्यों, तुम्हारे भोलेभंडारी तुम्हें खानेपीने को देंगे, साईं बाबा तुम्हें सहारा देंगे, महालक्ष्मी तुम्हारे ऊपर धन की वर्षा करेंगी. और निर्मल बाबा, आसाराम बापू, श्रीश्री रविशंकर, रामदेव, अम्मा हैं न तुम्हारी देखभाल के लिए. इस के अतिरिक्त और भी देवीदेवता हैं. क्या वे तुम्हारी सहायता नहीं करेंगे?’’ अनिल ने हंसते हुए कहा.
‘‘अजी, छोड़ो जी, वे क्या करेंगे? मेरे लिए तो सबकुछ तुम ही हो.’’
‘‘किंतु मैं तुम्हारे देवीदेवताओं से तो बड़ा नहीं हूं.’’
‘‘हो. मेरे लिए तुम से बढ़ कर कोई नहीं है.’’
‘‘तो आज तक तुम ने मेरी जो उपेक्षा की है, व्रत रखरख कर जो मुझे असंतुष्ट रखा है और…’’
वर्षा को यह एहसास हो गया था कि उस ने अपने पति की परवा न कर के भारी भूल की है और अब उस के तीर उसी पर छोड़े जा रहे हैं. उस ने जरा सी देर के लिए वहां से हट जाना उचित समझा. जिस व्यक्ति के शरीर में रक्त की मात्रा बहुत कम हो, उस का व्रत रखना उचित नहीं होता. दोपहर तक अनिल भूख महसूस करने लगा और उस की आंखें बंद होने लगीं. वर्षा घबरा गई और उस ने पति से व्रत तोड़ने को कहा, किंतु अनिल अपनी जिद पर अड़ा रहा. शाम तक उस की हालत चिंताजनक हो गई. वर्षा ने जबरदस्ती उस का व्रत तुड़वाना चाहा, किंतु उस ने कहा, ‘‘मैं मर जाऊंगा, लेकिन व्रत नहीं तोड़ूंगा. अब तो रात को ही व्रत पूरा कर के कुछ खाऊंगा.’’ जब वर्षा ने बहुत जिद की तो अनिल ने कहा, ‘‘यदि तुम अपना व्रत तोड़ने को तैयार हो तो मैं भी तोड़ लूंगा.’’ पहले तो वह राजी नहीं हुई, फिर अपने पति की हालत देखते हुए उस ने व्रत तोड़ लिया. इस के बाद उस ने अनिल के सामने कुछ फल रख दिए. अनिल ने कहा, ‘‘वर्षा, मेरी एक बात का जवाब दो. तुम ने अपना व्रत क्यों तोड़ा?’’
‘‘तुम्हारे लिए.’’
‘‘क्यों? मेरे लिए यह पाप क्यों किया तुम ने?’’
‘‘मुझे इस समय व्रत से अधिक तुम्हारी चिंता है.’’
‘‘इस का मतलब यह हुआ कि मैं हनुमानजी से श्रेष्ठ हूं?’’
‘‘इस समय तो ऐसा ही समझ लो. तुम्हारी सेहत है तो सबकुछ है.’’
‘‘अब तुम्हारी समझ में मेरी बात आई है. मैं कई महीनों से तुम्हें समझाता रहा, किंतु तुम हमेशा ही मेरी बात की अवहेलना करती रहीं. मेरी सुखसुविधा पर ध्यान न दे कर व्रत रखती रहीं. अब तुम्हें मेरी सेहत की चिंता क्यों सता रही है? यह ठीक है कि तुम ने व्रत तोड़ डाला है, किंतु मैं तोड़ने को तैयार नहीं हूं.’’ अनिल ने गंभीर हो कर कहा.
‘‘तब तो तुम्हारी हालत और ज्यादा खराब हो जाने का डर है,’’ वर्षा ने चिंतित हो कर कहा.
‘‘ऐसा होना तो नहीं चाहिए. आज तक तुम ने पुण्य कमाने के लिए सैकड़ों व्रत रखे हैं. क्या तुम्हारे देवीदेवता तुम्हारे सुहाग की रक्षा भी नहीं करेंगे?’’
एक घंटे बाद अनिल की हालत और खराब हो गई. उस ने आंखें फेर लीं और बहुत निढाल हो गया. अब वह ठीक से बोल भी नहीं पा रहा था. कई बार उसे बेहोशी के दौरे भी पड़ चुके थे. वर्षा रोने लगी. उस के हाथपांव फूल गए. वह अपने किए पर पछताने लगी कि उस ने व्रत रखरख कर अपने पति की उपेक्षा की है. उसे कोई सुख नहीं दिया. वह पश्चात्ताप की आग में जलने लगी कि उस के व्यर्थ के अंधविश्वास से उस का पति दुखी रहा. वे सच कहा करते थे कि औरत के लिए पति सबकुछ होता है. पत्नी को उसी की सेवा करनी चाहिए और उसे प्रसन्न रखने की चेष्टा करनी चाहिए. अनिल में अब बोलने की भी शक्ति नहीं रही थी. वह उसी प्रकार अर्धचेतनावस्था में लेटा रहा. वर्षा ने चुपकेचुपके उस के मुंह में मौसमी का रस डाला और अनिल ने थोड़ी देर बाद आंखें खोल दीं. वह वर्षा की आंखों में देखने लगा जिन में पश्चात्ताप के आंसू साफ दिखाई दे रहे थे. अनिल मुसकराने लगा.
अब टीवी पर धार्मिक सीरियल नहीं चलते, गानों के और न्यूज चैनल चलते हैं. उन्होंने फर्टिलिटी क्लिनिक में जाना शुरू कर दिया और 2 माह में ही वर्षा गर्भवती हो गई थी. उस की फैलोपियन ट्यूब में कोई सूजन थी. वहां देवीदेवता नहीं, वायरस बैठा था जो दवा से गायब हो गया.