विरासत कानून के अजीब प्रावधान

हिंदू विरासत कानून है एक अजीब प्रावधान है. 1956 में बने विरासत कानून में यह भी डाला गया है कि किसी व्यक्ति के मरने के बाद संपत्ति पत्नी और बच्चों में बराबर बंटने के साथ बराबर का हिस्सा मां को भी मिलेगा. यह एकदम अव्याहारिक व अनैतिक कानूनी प्रावधान है जिस का कोई सिरपैर नहीं है.

जब कानून बना था तो कहा गया था कि यह मां की सुरक्षा के लिए था पर यह तो कई बेटेबेटियों और पति के जिंदा रहने वाली मां को मिलने वाला हक है. बेटे के मरने के बाद अक्सर मांबाप विधवा और उस के बच्चों को पूरा हिस्सा न मिले इसलिए उस हक का उपयोग करते हैं.

स्वयं इंदिरा गांधी ने प्रधानमंत्री रहते हुए इस कानून का उपयोग किया था और मेनका, व वरुण को संजय गांधी की मृत्यु के बाद बराबर का हिस्सा इंदिरा गांधी, प्रधानमंत्री को देना पड़ा था. मेनका गांधी अपने हिस्से में बंटबारा न हो इस के लिए सुप्रीम कोर्ट तक गई थी पर इंदिरा गांधी नहीं मानी थी जबकि उस समय वह प्रधानमंत्री की और उस के साथ राजीव गांधी, सोनिया, प्रियंका और राहुल थे. मेनका और वरुण का एक हिस्सा कम किया था.

हां, यह जरूर सुनने में आया कि संजय गांधी की संपत्ति का एक तिहाई हिस्सा जो इंदिरा को मिला था इंदिरा गांधी ने वरुण गांधी को गिफ्ट कर दिया था और इस तरह छोटा सा वरुण संजय गांधी की संपत्ति का 2 तिहाई मालिक हो गया था और मेनका एक तिहाई की मालिक रह गई थी.

यह कानून जवान बेटों की मृत्यु पर जम कर इस्तेमाल किया जाता है. वृद्ध पिता मरते हैं तो उस समय उस की मां जिंदा नहीं होती इसलिए वो बड़ा नहीं बनता या जब विधवा हाथपैर मार कर जिंदा रहने का प्रयास कर रही हो तब प्रोटिडेंट फंड, फिक्सडिपोजिट, जौयंट प्रौपर्टी में मृत पति को मिला हिस्सा, मकान आदि पर सास अपने पति के पिता और भाईबहन के कहने पर हक जमाने लगे, यह बहुत गलत है.

जो लोग कहते हैं कि हिंदू कानून गंगा जल सा साफ और गौमूत्र सा पवित्र है, उन्हें ख्याल रखना चाहिए कि हिंदू संपत्ति, विवाद, गोद, विरासत कानून अनैतिकता से भरे हैं. 1956 व 2005 में कुछ सुधार हुए हैं पर समाज आज भी युवा औरतों के प्रति ही नहीं बूढ़ी औरतों के प्रति भी आज भी पौराणिकवाद में जी रहा है जब औरत होने का मतलब आहितर्य, सीता या द्रौपदी होना ही था.

बच्चे अब टैस्टट्यूब से होगे

1978 से पहले जितने बच्चे पैदा होते थे वे अपनी मां की कोख में ही स्पर्म और एग के मिलन से होते थे. आज हर मिनट में कम से कम एक बच्चे का पहला जन्म टैस्टट्यूब में होता है जब पुरुष का स्पर्म और औरत का एग फर्टीलाइज किया जाता है, दुनिया की आजादी में सवा करोड़ लोगों ने मां के पेट में पहला जन्म नहीं लिया था. उन्हें मां के गर्भ में प्रत्यारोपित किया गया था.

जैसेजैसे लड़कियां काम पर जाने लगी हैं, बच्चे पैदा करना और उन्हें पालना एक आफत लगने लगी है और वे इसे 40-42 तक टालती हैं. इस समय यदि स्पर्म काउंट या एग प्रोडेक्शन कम हो जाए या यूट्स और फैलोपीयन ट्यूबें जबाव देने लगे तो वे आईवीएफ सेंटरों में चक्कर लगाना शुरू करती हैं.

अपने कैरियर की ऊंचाई पर पहुंचने के बाद उन्हें एहसास होता है कि उन से ज्यादा तेज, ज्यादा टैकसैवी कंपीटीटर वर्षा फोर्स में आने लगी है और उन्हें काम के बजाए शारीरिक सुख को प्रायरोसी देनी चाहिए. बच्चे, अपने बच्चे, इस सुख का हिस्सा है.

इन विद्रो फॢटलाइजेशन ड्रग्स और तकनीक की बड़ी मांग होने लगी है और अब बच्चे पंडों, पादरियों की मेहरबानी से नहीं डाक्टरों और टैक्रीशियनों की मेहरबानी से हो रही है. आज 125 पैदा हुए बच्चों में से एक आईटीएफ से हो रहा है, कल ज्यादा होंगे यह पक्का है.

अभी आईवीएफ तकनीक मानसिक व शारीरिक तौर पर पेनफुल है और मंहगी भी है पर जैसेजैसे मांग बढ़ेगी, यह सस्ती होगी और हर 5 में से एक अगर आईवीएफ से होने लगे तो बड़ी बात नहीं.

जैसे आज जिंदगी शुरू से प्लान की जाती है. स्कूल जाने से लेकर इंजीनियर, डाक्टर बनना सब पलांड है, नेचुरल नहीं, वैसे ही बच्चे भी प्लान किए जाएं अपनी सुविधा के हिसाब से तो कोई हर्ज नहीं. गनीमत यह है कि चर्च, मसजिद या मंदिर ने इस का जम कर विरोध नहीं किया है. शायद इसलिए उन्हें तो हर नए बच्चे एक नया दान करने वाला भक्त दिखता है. बच्चा टैस्टट्यूब में हुआ हो या औरत के शरीर में बच्चे को होने के बाद कोई धर्म उसे छोड़ता नहीं है जबकि यह उन के ईश्वरीय ग्रंथों के नितांत खिलाफ है, मर्द, बात पैसे की है, नहीं.

लड़की है कठपुतली नहीं

क्रौप टौप काफी ट्रेंड में है. यह पहनने पर कूल फीलिंग देते हैं. इतना ही नहीं ये सैक्सी भी लगते हैं. लेकिन कई घरों में लड़कियों के क्रौप टौप पहनने पर पाबंदी होती है. जो लोग क्रौप टौप पहनने के विरोध में हैं, उन का कहना है क्रौप टौप अश्लीलता को बढ़ावा देता है. इस में कमर दिखती है. क्रौप टौप बनाने वाली कंपनियां अपनी बिक्री के लिए लड़कियों को बिगाड़ रही हैं.

क्रौप टौप अश्लीलता को बढ़ावा नहीं देते. इस विषय पर जाग्रति राय अपना एक ऐक्सपीरियंस शेयर करते हुए कहती हैं, ‘‘मैं 20 साल की हूं. एक दिन मैं क्रौप टौप और जींस पहन सोफे पर बैठ कर टीवी देख रही थी. तभी मेरे पापा आए और गुस्से में मुझ से बोले कि जाग्रति यह तुम ने किस तरह के कपड़े पहने हुए हैं? जाओ जा कर कपड़े बदलो. क्या तुम्हें कपड़े पहनने की जरा भी अकल नहीं है? अब तुम बड़ी हो गई हो. लगता है बाहर जा कर तुम ज्यादा ही बिगड़ गई हो. मुझे तुम्हारा बाहर जाना बंद करना पड़ेगा. तभी तुम्हें अकल आएगी. पापा को इतने गुस्से में देख कर मैं डर गई. मैं ने कपड़े तो बदल लिए लेकिन मैं अपने कमरे से बाहर नहीं आई.’’

जाग्रति के पापा सुरेंद्र राय का उस पर गुस्सा करने का कारण था जाग्रति का क्रौप टौप पहनना. वे लड़कियों के छोटे कपड़े पहनने के सख्त खिलाफ हैं.

कपड़े पहने पर बेशर्मी क्यों

क्या मौडर्न कपड़े पहनना बेशर्मी की निशानी है? इस पर जाग्रति कहती हैं, ‘‘क्रौप टौप पहनना बेशर्मी नहीं है. यह बिलकुल ब्लाउज की तरह होता है. बस फर्क यह है कि ब्लाउज साड़ी के साथ पहना जाता है और क्रौप टौप जींस, स्कर्ट, शौर्ट्स, प्लाजो के साथ पहना जाता है.’’

लड़कियों की घरों में बेइज्जती किस तरह से होती है, इस का एक उदाहरण दीपिका रावत देती हैं. गाजियाबाद की रहने वाली दीपिका बताती हैं, ‘‘जब भी वह कभी सुबह लेट सो कर उठती थी तो मम्मी कहती थीं कि ससुराल में भी ऐसे ही देर से उठोगी तो 2 दिन में सास मायके छोड़ जाएगी. मैं अकेली ऐसी लड़की नहीं हूं जिस ने यह सब सुना है. हमारे देश की लगभग हर लड़की ने अपने घर में यह सब कभी न कभी सुना ही होगा. देर से उठने का नियम क्या सिर्फ लड़कियों पर लागू होता है? लड़कों को इस से बाहर क्यों रखा गया है? क्या उन का देर से उठना इस सोसाइटी को मंजूर है? इस तरह के दकियानूसी चोंचले सिर्फ लड़कियों के लिए बनाए गए हैं क्योंकि वे कभी नहीं चाहते कि लड़कियां उन के हाथों से फिसलें. वे लड़कियों को अपनी मुट्ठी में कैद रखना चाहते हैं.’’

वैसे तो इस सोसाइटी ने लड़कियों के लिए न जाने कितने नियम बनाए हुए हैं. इन्हीं में से एक नियम है लड़कियों का पैर फैला कर बैठना. यह सोसाइटी लड़कियों के पैर फैला कर बैठने की आदत को गलत नजर से देखती है. अगर कोई लड़की पैर फैला कर बैठती है तो इसे सैक्स सिंबल भी समझ लिया जाता है. जो लोग लड़कियों के पैर फैला कर बैठने को गलत कहते हैं उन का मानना है कि ऐेसी लड़कियां अच्छे घर की नहीं होतीं. इन में संस्कारों की कमी होती है. लड़कियां ऐसी हरकत कर के लड़कों को अट्रैक्ट करना चाहती हैं.

संस्कार या बंदिशें

लड़कियों के पैर फैला कर बैठने के तरीके को ले कर 25 साल की सुरभि यादव अपने बचपन का एक ऐक्सपीरियंस बताते हुए कहती हैं, ‘‘मैं जब 16 साल की थी तब अपने मम्मीपापा के साथ एक पार्टी में गई थी. वहां मैं कंफर्टेबली पैर फैला कर अपने दोस्तों के साथ खाना ऐंजौय कर रही थी. तभी पापा ने मुझे आंखें दिखाते हुए अपने पास आने का इशारा किया.

‘‘जब मैं उन के पास गई तो वे मेरा हाथ पकड़ कर साइड में ले गए. उन्होंने गुस्से भरी नजरों से मुझे देखा और कहा कि तुम्हें ढंग से बैठना नहीं आता क्या जो पैर फैला कर बेशर्मों की तरह बैठी हो? देख नहीं रही हो कि लोग तुम्हें किस तरह से घूर रहे हैं? जाओ जा कर ठीक से बैठो. पापा की इन बातों को सुन कर मैं हैरान हो गई. लेकिन मेरे पास कोई जवाब नहीं था इसलिए मैं चुपचाप जा कर पैरों को क्रौस कर के बैठ गई.

‘‘इस सोसाइटी ने लड़कियों के शोषण के लिए तरहतरह के नियम बनाए हुए हैं. यह सोसाइटी बस उन्हें किसी भी तरह कंट्रोल करना चाहती है. इस के लिए वह समयसमय पर उन्हें टोकती है, रोकती है और न जाने किसकिस तरह की पाबंदियां उन पर लगाई जाती हैं. फैमिली द्वारा बारबार उन्हें नीचा दिखाना? उन्हें गलत समझना, उन की बेइज्जती करना लड़कियों के मन में परिवार वालों के लिए गुस्सा और नफरत पैदा कर देता है. ऐसी लड़कियां चिड़चिड़ी हो जाती हैं. उन्हें बातबात पर गुस्सा आने लगता है. ऐसी लड़कियां अपने मम्मीपापा के बूढ़े होने पर उन से दूरी बना लेती हैं. वे उन से मिलती भी नहीं हैं क्योंकि उन के अंदर बेइज्जती की कड़वी यादें बसी होती हैं. मैं समझती हूं कि अगर आप को इज्जत चाहिए तो आप को इज्जत देनी भी पड़ेगी.’’

इशारों की गुलाम नहीं

लड़कियों की बेइज्जती में सोसाइटी का बहुत बड़ी भूमिका है. इस सोसाइटी ने लड़कियों को कठपुतली समझ रखा है, जिस की बागडोर उन्होंने पुरुषों के हाथों में दी हुई है. वे जैसे मरजी चाहें वैसे इसे घुमा सकते हैं. तभी तो उन के हंसने को ले कर भी उन्हें कड़े नियमकायदे बताए गए हैं. ज्यादा जोर से नहीं हंसना, ज्यादा खिलखिला कर नहीं हंसना, इस तरह से हंसना है, इस तरह से नहीं वगैरहवगैरह.

हर लड़की को उस की लाइफ में उस के परिवार वालों ने कभी न कभी जरूर टोका होगा. कभी तो उसे धीरे हंसने के लिए कहा ही होगा. उन्हें ऐसा करने के लिए इस सोसाइटी ने पढ़ायालिखाया है ताकि उन्हें अपने काबू में रख सकें.

35 साल की रिचा कुमारी एक मैरिड वूमन हैं. वे पेशे से ग्राफिक डिजाइनर हैं. वे बताती हैं कि कुछ महीने पहले उन के फ्रैंड्स गैटटूगैदर करने उन के ससुराल में आए थे. जब उन की फ्रैंड यामिनी ने जोक सुनाया तो वे जोरजोर से हंसने लगीं. उन के हंसने की आवाज हौल में बैठे उन के सासससुर तक भी गई. जब दूसरी बार ऐसा फिर से हुआ तो उन की सास ने उसे सब के सामने टोकते हुए कहा कि तुम्हें इस तरह से नहीं हंसना चाहिए. महिलाओं का इस तरह से हंसना सभ्य नहीं माना जाता है. तुम थोड़ा आराम से हंसो. 5 साल बाद भी वे यह वाकेआ नहीं भूली हैं.

यह कैसी सोच

लड़कियों की बेइज्जती न सिर्फ घर में होती है बल्कि यह बीच सड़क पर भी होती है. उन की यह बेइज्जती कोई बाहर वाला नहीं करता वरन अपनी फैमिली के मैंबर द्वारा की जाती है. रिचा कहती है कि लड़कियां अगर अपने लिए स्टैंड लें तो किसी की मजाल नहीं कि वह उन के बारे में कुछ उलटा बोल सके.’’

प्रीति वर्मा 18 साल की है. वह अपने मम्मीपापा की इकलौती संतान है. एक दिन जब प्रीति अपने फ्रैंड निखिल अरोड़ा के साथ हाथ पकड़ कर रोड पार कर रही थी तभी रोड की दूसरी साइड कार से आते उस के पापा सचिन वर्मा ने उन्हें देख लिया. उन्होंने कार को साइड में लगा कर रोड क्रौस किया और प्रीति के पास आ कर उस का हाथ ?ाटकते हुए उसे निखिल से दूर किया. इस के बाद उन्होंने प्रीति को सचिन के सामने ही थप्पड़ मार दिया. फिर उन्होंने प्रीति को कार में बैठाया और सीधे घर ले कर आ गए.

सचिन ने घर आते ही प्रीति को सुनाते हुए कहा, ‘‘हमारे भरोसे का तुम यह सिला दे रही हो? बाहर जाते ही तुम अपने संस्कार भूल गई. इस तरह सड़क पर लड़के के हाथों में हाथ डाल कर चलना हमारे संस्कार में नहीं है. इस तरह से तुम हमारी नाक कटा रही हो. अगर दोबारा मैं ने इस तरह का कुछ भी सुना तो तुम्हारा बाहर जाना बंद हो जाएगा.’’

रिश्तों में दरार डालती हैं गलतफहमियां कई बार गलतफहमी रिश्तों में दरार लाने का कारण बन जाती है. ऐसा ही सचिन वर्मा और प्रीति के साथ भी हुआ. लेकिन प्रीति अपने दोस्त के सामने अपनी बेइज्जती को नहीं भूली. इसलिए अब वह एक शहर में होते हुए भी जल्दी अपने घर नहीं जाती है.

ऐसा ही एक वाकेआ अदा शर्मा के साथ भी हुआ था. 30 साल के महेंद्र शर्मा ने जब अपनी 23 साल की बहन अदा शर्मा को एक कैफे में लड़के के साथ कौफी पीते देखा तो वह उस पर भड़क गया. उस ने न आव देखा न ताव सीधा अदा को और उस के फ्रैंड को थप्पड़ मार दिए. महेंद्र शर्मा का ऐसा करना उस की रूढि़वादी सोच को दिखाता है. उस ने यह जानने की कोशिश नहीं की कि वह लड़का कौन है. वह अदा का बौयफ्रैंड है या बस फ्रैंड. बिना सच जाने, बिना सोचेसमझे उस का ऐसा करना अदा के लिए शर्मींदगी का कारण बन गया.

इस घटना के बाद अदा के जितने भी मेल फ्रैंड थे सब ने उस से दूरी बना ली. वे उस के साथ चलने से डरने लगे. उन्हें डर लगने लगा कि न जाने कब उस का भाई या पापा आ जाए और उन्हें बिना किसी बात के मारने लगे.

अदा कहती है, ‘‘मेरे भाई की इस हरकत ने मेरे दोस्तों को मु?ा से दूर कर दिया. हमारी सोसाइटी में लड़कियों को ऐसी सिचुएशन से कई बार गुजरना पड़ता है, जबकि इस में उन की कोई गलती भी नहीं होती सिवा उन के लड़की होने की.’’

कई बार लड़कियों की बेइज्जती अपने ही घर में इतनी बढ़ जाती है कि उस की अपनी फैमिली उस के कैरेक्टर पर सवाल उठाने लग जाती है. ऐसा अकसर कम पढ़ेलिखे और आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के घर में होता है. ऐसा ही एक घर मोली गौड़ा का है.

मौली गौड़ा 24 साल की है. वह मुंबई की घनी आबादी वाली एक चाल में रहती है. आएदिन उस के घर उस के छोटे भाई जयंत गौड़ा की फीमेल फ्रैंड आती रहती थी. लेकिन जब मोली का दोस्त पंकज कंपा घर आया तो उस के पापा मुकेश मौली पर बरस पड़े. वे चिल्लाते हुए बोले, ‘‘यह मेरा घर है या कोई कोठा जो मुंह उठा कर कोई भी आ जाता है? तुम ने मेरे घर को क्या कोठा सम?ा लिया है जो जब चाहा किसी को भी ले आती हो? कभी कोई दोस्त. तुम्हारा कोई कैरेक्टर है या नहीं या तुम्हारा एक लड़के से मन नहीं भरता. जो आए दिन कोई न कोई यहां आता ही रहता है?’’

इतना सुनते ही मौली रोते हुए कमरे में चली गई. यह सब सुन कर उस का दोस्त भी वहां से चला गया. इस घटना के बाद वह फिर कभी मौली के घर नहीं आया.

पहले घर में इज्जत जरूरी इस तरह की बातें गरीब तबके के लोगों के लिए आम हो गई हैं. ज्यादा पढ़ेलिखे न होने के कारण वे इस तरह के शब्दों का यूज करते हैं. लेकिन इस बात को अनदेखा नहीं किया जा सकता कि आखिर वह किसी लड़की या महिला के लिए  ऐसा कैसे कह सकते हैं जो महिलाओं के चरित्र का हनन करती है. लेकिन फिर भी धड़ल्ले से महिलाओं के लिए अपशब्दों का यूज किया जाता है.

जो लोग अपने घर में लड़कियों और महिलाओं की बेइज्जती करते हैं वे यह नहीं समझ पाते कि ऐसा कर के वे अपने लिए ही गड्ढा खोद रहे हैं क्योंकि बेइज्जती या अपमान सहने वाली लड़कियां दोबारा उस घर में पैर नहीं रखना चाहती हैं. फिर चाहे उन के घर वाले उन्हें लाख बुलाएं.

ऐसे में जिस कपल ने अपनी इकलौती बेटी की बेइज्जती की होती वे अपनी बेटी को देखने के लिए तरस जाते हैं क्योंकि वह उन्हें देखना तक नहीं चाहती. बेइज्जती सहने वाली कुछ लड़कियां अगर अपने घर जाती भी हैं तो सीधे मुंह किसी से बात नहीं करती हैं. अगर उन के इस व्यवहार को खत्म करना है तो उन्हें अपने घर की लड़कियों और औरतों का मानसम्मान करना होगा, उन से इज्जत से बात करनी होगी.

लव जिहाद षडयंत्र सिद्धांत

लव जिहाद पर काफी कट्टरवादियों का खून खौलने लगता है चाहे लव जिहाद की घटना उन के घर से 200 किलोमीटर दूर क्यों न हुई हो भगवाई पब्लिसिटी गैंग ने इस कदर माहौल को बिगाड़ दिया है कि आजकल प्रेम करने से पहले धर्म और जाति पूछनी होती है और लडक़ा अगर मुसलिम हो तो आसमान टूट पड़ता है.

यह बीमारी अब मुसलमानों में भी शुरू हो गई है, दिल्ली में 10 जुलाई को 20 साल के ङ्क्षहदू लडक़े की हत्या कर दी गई क्योंकि उस ने एक मुसलिम लडक़ी से पे्रम करने की हिम्मत दिखा दी थी. अररिया, बिहार, का राजकुमार का एक मुसलिम लडक़ी से प्रेम हो गया तो लडक़ी के रिश्तेदारों ने उस की हत्या लवजिहाद के तरीके से कर डाली.

धर्म के नाम पर प्रेम को अब इस तरह गंदला कर डाला गया है कि युवा दिनों के डर लगने लगा है कि उन्होंने यदि कदम कहीं आगे बढ़ा लिए तो मौत का ही सामना न करना पड़े.

भारतीय जनता पार्टी इस तरह की हत्याओं को खूब समर्थन देती है जबकि उन के चुराए हुए आदर्श नेता सुभाष चंद्र बोस ने खुए एक जापानी लडक़ी से शादी कर ली थी जब वे द्वितीय विश्वयुद्ध के दिनों में जापान में थे. अगर लव जिहाज बुरा है, अगर अपने धर्म से दूसरे से प्रेम करना हिंदू संस्कारों के खिलाफ है, अगर जाति तोड़ कर विवाह करना गलत है तो न केवल कई भारतीय जनता पार्टी के नेता, कितने ही भाजपा के भगवा लपेट में आ जाएंगे. पुराण उन मामलों से भरे पड़े हैं जिन में एक जाति के महापुरुषों ने दूसरी में शादी की थी और बच्चे भी पैदा किए थे. धर्म ने इस तरह अंधा बना रखा है कि बिना जांचे परखे आज के महंत, गुरू, पादरी, मुल्ला जो कहें वही पत्थर की लकीर हो जाता है और कुछ लोग इस लकीर को घर करने वालों को दंड देने पर उतारू हो जाते हैं.

दिल्ली के शहजाद बाग जैसी घटनाएं अब सारे देश में होने लगी हैं और प्रेम को बदनाम करने वाले ने इतना डर फैला दिया है कि जब हत्या हो रही होती है तो आसपास के लोग चुपचाप खड़े हो कर देखते हैं, कोई बीच में नहीं पड़ता. सभी को डर होता है कि मारने वाले अगर लोग पार्टी से जुड़े होंगे तो वे तो बच जाएंगे और बीच बचाव या बचाने वाले थानों, अदालतों के चक्कर में फंस जाएंगे.

आज का समाज यह बोडकास्ट कर रहा है कि प्रेम करना है तो पहले पंड़ों, मौलवियों, पादरियों, ग्रंथियों से पूछो, उन्हें चढ़ावा चड़ाओ और फिर ‘आईलवयू’, ‘आई लव यू टू बोलो.’

कैसे रुकेगा कामकाजी महिलाओं का शोषण

यौन उत्पीड़न को एक अवांछित व्यवहार के रूप में परिभाषित किया गया है. कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न दुनिया में एक व्यापक समस्या है. फिर चाहे वह विकसित राष्ट्र हो या विकासशील या फिर अविकसित, महिलाओं के खिलाफ अत्याचार हर जगह आम है. यह पुरुषों और महिलाओं दोनों पर नकारात्मक प्रभाव देने वाली एक सार्वभौमिक समस्या है.

यह महिलाओं के खिलाफ अपराध है, जिन्हें समाज का सब से कमजोर तबका माना जाता है. इसलिए उन्हें कन्या भू्रण हत्या, मानव तस्करी, पीछा करना, यौन शोषण, यौन उत्पीड़न से ले कर सब से जघन्य अपराध बलात्कार तक सहना पड़ता है. किसी व्यक्ति को उस के लिंग के कारण परेशान करना गैरकानूनी है.

यौन उत्पीड़न अवांछित यौन व्यवहार है, जिस से किसी ऐसे व्यक्ति से मिलने की उम्मीद की जा सकती है जो आहत, अपमानित या डरा हुआ महसूस करता है. यह शारीरिक, मौखिक और लिखित भी हो सकता है.

कार्यस्थल छोड़ने का मुख्य कारण

सितंबर, 2022 में जारी यूएनडीपी जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, भारत में काम करने वाली महिलाओं का प्रतिशत 2021 में लगभग 36त्न से घट कर 2022 में 33त्न हो गया. कई प्रकाशनों ने कई मूल कारणों की पहचान की, जिन में महामारी, घरेलू दायित्वों में वृद्धि और शादी एक बाधा के रूप में शामिल है. लेकिन क्या यही कारण हैं? नहीं, जिन अंतर्निहित कारणों पर हम अकसर विचार करने में विफल रहे हैं उन में से एक कार्यस्थल में उत्पीड़न है, जिस के कारण महिलाएं कार्य छोड़ देती हैं.

महिलाओं ने वित्तीय रूप से स्वतंत्र बन कर, सरकारी, निजी और गैरलाभकारी क्षेत्रों में काम कर के समाज के मानकों को तोड़ने की कोशिश की है, जो उन्हें मालिकों, सहकर्मियों और तीसरे पक्ष से उत्पीड़न के लिए उजागर करता है.

क्या कहते हैं आंकड़े?

राष्ट्रीय अपराध रिकौर्ड ब्यूरो 2021 की रिपोर्ट के अनुसार, कार्यस्थल या कार्यालय में यौन उत्पीड़न के 418 मामले दर्ज किए गए. लेकिन यह संख्या केवल एक उत्पीड़न को इंगित करती है. अधिकांश लोगों का मानना है कि कार्यस्थल उत्पीड़न केवल यौन प्रकृति का हो सकता है, लेकिन वास्तव में विभिन्न प्रकार के उत्पीड़न से संबंधित विभिन्न श्रेणियां हैं, जो सभी कर्मचारियों को मानसिक रूप से प्रभावित करती हैं, जिस से अपमान और मानसिक यातना होती है. इस के परिणामस्वरूप उन की कार्यक्षमता में कमी आती है और काम छूट जाता है.

कुछ महिलाएं अभी भी कार्यस्थल में उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाने से डरती हैं. यौन उत्पीड़न की निम्न उल्लेखनीय शिकायतें जो राष्ट्रीय सुर्खियों में आईं:

  •  रूपन देव बजाज, (आईएएस अधिकारी), चंडीगढ़ ने ‘सुपर कौप’ केपीएस गिल के खिलाफ शिकायत की.
  •  देहरादून में पर्यावरण मंत्री के खिलाफ अखिल भारतीय लोकतांत्रिक महिला संघ की एक कार्यकर्ता ने शिकायत दर्ज की.
  •  मुंबई में अपने सहयोगी महेश कुमार लाला के खिलाफ एक एयरहोस्टेस ने कंप्लेन की.

शिकायत कैसे दर्ज कर सकते हैं?

  •  शिकायत घटना के 3 महीने के भीतर लिखित रूप में की जानी चाहिए. घटनाओं की शृंखला के मामले में पिछली घटना के 3 महीने के भीतर रिपोर्ट तैयार की जानी चाहिए. वैध परिस्थितियों पर समयसीमा को और 3 महीने तक बढ़ाया जा सकता है.
  •  शिकायतकर्ताओं के अनुरोध पर जांच शुरू करने से पहले समिति सुलह में मध्यस्थता करने के लिए कदम उठा सकती है. शारीरिक/मानसिक अक्षमता, मृत्यु या अन्य किसी स्थिति में कानूनी उत्तराधिकारी महिला की ओर से शिकायत कर सकता है.
  •  शिकायतकर्ता जांच अवधि के दौरान स्थानांतरण (स्वयं या प्रतिवादी के लिए) 3 महीने की छुट्टी या अन्य राहत के लिए कह सकता है.
  •  जांच शिकायत के दिन से 90 दिनों की अवधि के भीतर पूरी की जानी चाहिए. गैरअनुपालन दंडनीय है.

ब्रा कोई गुप्त चीज नही

ढीले और लटकी ब्रैस्ट देखने में भद्दी लगती है. अकसर ऐसा बड़ी उम्र में होता है. लेकिन कई बार ऐसा छोटी उम्र में भी देखने को मिलता है. इस की वजह है ब्रा न पहनना. ढीली और लटकी ब्रैस्ट बिलकुल अट्रैक्टिव नहीं होती है. लेकिन इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि ब्रा को दिनभर पहने रहना आसान नहीं होता है.

ब्रा से जुड़ा अपना ऐक्सपीरियंस बताते हुए 24 साल की रचना यादव कहती है, ‘‘मु?ो शुरूशुरू में ब्रा पहनना बिलकुल पसंद नहीं था. लेकिन धीरेधीरे यह मेरी आदत में शामिल हो गया. टीनऐज में जब मां मु?ो ब्रा पहनने को कहती थीं तो मु?ो बहुत गुस्सा आता था क्योंकि मैं कपड़े का एक और बो?ा अपने शरीर पर लादना नहीं चाहती थी. लेकिन मु?ा से कहा गया कि मैं अब बड़ी हो रही हूं. मेरी बौडी में तरहतरह के बदलाव हो रहे हैं और इन में लड़की की छाती बहुत महत्त्वपूर्ण होती है. इन बदलाव में मेरी ब्रैस्ट उभरने लगेगी. इसलिए मु?ो ब्रा पहननी चाहिए.

‘‘मगर ब्रा पहनना आसान नहीं था. सब से ज्यादा मुश्किल इसे पूरा दिन पहने रखना था. ब्रा पहनने के बाद मु?ो अपनी बौडी बंधीबंधी सी लगने लगी. लेकिन फिर यह धीरेधीरे मेरी हैबिट में आ गया. अब ब्रा न पहनूं तो अजीब सा लगता है. ऐसा लगता है जैसे कुछ खाली सा हो.’’

खुद की चौइस होनी चाहिए

कंफर्ट की बात पर रचना कहती है, ‘‘शुरूशुरू में यह बिलकुल कंफर्टेबल नहीं था. सांस लेने में दिक्कत होती थी. अकसर ब्रा की स्ट्रैप से निशान पड़ जाते थे. गरमी के मौसम में ये दिक्कतें और बढ़ जाती थीं जैसे पसीने आना, ब्रैस्ट और उस के आसपास खुजली होना.

इतना ही नहीं कई बार ब्रा से रैशेज भी पड़ जाते थे. इन सब के बावजूद ब्रा पहनने से ब्रैस्ट सही पोजीशन में रहती है. वह कसी रहती है. लटकती नहीं है. इतना ही नहीं अलगअलग ऐक्टिविटीज करते समय यह उछलते भी नहीं है, जिस की वजह से यह भद्दी नहीं लगती है. इसे पहनने से मैं कौन्फिडैंट फील करती हूं. मैं ब्रा पहनने के पक्ष में हूं. लेकिन हां मैं इसे पूरा दिन पहनने के पक्ष में नहीं हूं. इसलिए मैं इसे रात को उतार कर सोना पसंद करती हूं.’’

नई दिल्ली के एक बुक स्टोर में जौब कर ने वाली प्रीति तिवारी कहती है, ‘‘पूरा दिन ब्रा पहने रहना अनकंफर्टेबल होता है. जब मैं ने पहली बार ब्रा पहनी थी तो मु?ो ऐसा लगा जैसे किसी ने मेरी ब्रैस्ट को जकड़ लिया हो. मु?ो लगा जैसे मैं अब सांस नहीं ले पाऊंगी. मैं बस इसे उतार कर फेंकना चाहती थी. लेकिन कई दिनों तक इसे पहनने के बाद मु?ो धीरेधीरे इस की आदत पड़ गई.

‘‘ब्रा से होने वाली परेशानी को मैं इस गंदी सोसाइटी के आगे भूल गई थी. मैं बिना ब्रा के बाहर जाने में बिलकुल कंफर्टेबल नहीं हूं. लेकिन यह भी सच है कि घर आते ही मैं इसे उतार देती हूं. इसे उतारने पर ही मु?ो राहत मिलती है. मैं फ्री फील करती हूं. मैं सम?ाती हूं ब्रा पहनना न पहनना लड़की की अपनी चौइस होनी चाहिए न कि सोसाइटी का डर, जिस की वजह सी उसे ब्रा पहननी पड़ रही है.’’

मगर सवाल यह है कि इतनी प्रौब्लम्स होने के बाद भी लड़कियों और महिलाओं को ब्रा क्यों पहननी पड़ती है? इस के उत्तर में निधि धावरिया कहती है, ‘‘महिलाओं पर पितृसत्तात्मक सोच का बो?ा है जो उन्हें बातबात पर यह बताती है कि आप के लिए क्या सही है और क्या नहीं. अगर कोई महिला सभ्य तरीके से कपड़े पहनने के पितृसत्तात्मक तरीकों को मानने से इनकार कर देती है, तो उसे फूहड़ कहा जाता है. इन्होंने आदमीऔरत की बनावट के आधार पर न सिर्फ उन के अधिकारों को बांटा है बल्कि उन के कपड़े भी बांट दिए हैं. पुरुषवादी समाज ने हमेशा ही महिलाओं को अपने अंदर रखने की कोशिश की है.

‘‘वे चाहते हैं कि महिलाएं बस उन का कहना मानें. लेकिन इस के उलट महिलाएं पुरुषों की इस रूढि़वादी सोच का हिस्सा नहीं बनना चाहती हैं. वे चाहती हैं कि ब्रा पहननी है या नहीं इस का फैसला वे खुद करें न कि यह दकियानूसी बातें करने वाला पुरुषवर्ग.’’

ब्रा पर थोपी पुरुषवादी सोच

उत्तर प्रदेश से दिल्ली आ कर बसने वाली 26 वर्षीय मानवी राय कहती है, ‘‘गांवों में ब्रा को ‘बौडी’ कहते हैं. कई शहरी लड़कियां इसे ‘बी’ कह कर बुलाती हैं. हमारे गांव में ब्रा बोलने भर से तूफान मच जाता था. लेकिन अब लड़कियां अपनी आजादी को ले कर ज्यादा जागरूक हो गई हैं. वे सम?ा गई हैं कि ब्रा उन पर थोपी गई एक पुरुषवादी सोच है. इसीलिए अब कई महिलाएं ब्रा का विरोध करने लगी हैं. आज दुनियाभर में कई ऐसी महिलाएं है जिन्होंने ब्रा को ‘नो’ कह कर उसे न पहनने से इनकार कर दिया.’’

कुछ ऐसी भी महिलाएं हैं जो ब्रा पहनना पसंद नहीं करती हैं. 2017 में साउथ कोरिया की मौडल और ऐक्ट्रैस सूली ने एक फैमनिस्ट कैंपेन शुरू किया, जिसे ‘नो ब्रा मूवमैंट’ नाम दिया गया. उन्होंने अपने सोशल अकाउंट पर बिना ब्रा के टौप पहने पिक्चर अपलोड की. इस का परिणाम यह रहा कि महिलाएं वर्किंग और पब्लिक प्लेस पर विदाउट ब्रा घूमने लगीं. इस मुहिम ने सोशल मीडिया पर तहलका मचा दिया था. महिलाएं हैशटैग नो ब्रा लिख कर बिना ब्रा के कपड़े पहन कर अपनी तसवीरें सोशल मीडिया पर शेयर करने लगीं.

नैशनल नो ब्रा डे

ऐसा ही एक ग्रुप महिलाओं का है, जिसे ‘फैन’ के नाम से जानते हैं जो अपने विरोध के अनोखे तरीकों के लिए जाना जाता है. यह गु्रप अपनी छाती को ढकता नहीं था. इसलिए यह चर्चा का विषय था. इसी की तरह 1960 में ‘ब्रा बर्निंग’ नाम का मूवमैंट आया. इस में महिलाएं अपना विरोध जताने के लिए ब्रा को जलाया करती थी. वहीं कुछ महिलाएं ब्रा न जला कर उन्हें कूड़ेदान में फेंक देती थीं. यह उन का विरोध जताने का एक अनोखा तरीका था. भारत में हर साल 13 अक्तूबर को ‘नैशनल नो ब्रा डे’ मनाया जाता है. यह ब्रैस्ट कैंसर के खिलाफ जागरूकता फैलाने के लिए मनाया जाता है.

ब्रा न पहनने का पक्ष लेने वाली कोलकाता की 22 साल की विनिता मुखर्जी की भी कुछ ऐसी ही राय है. वह कहती है, ‘‘हम खुद के शरीर के साथ अनकंफर्टेबल फील करेंगे तो दूसरों को भी ऐसा एहसास होगा. पहले मु?ो बिना ब्रा के पब्लिक प्लेस पर जाने में प्रौब्लम होती थी लेकिन धीरेधीरे मैं कंफर्टेबल हो गई. लेकिन मैं यही कहूंगी कि लड़कियां और महिलाएं खुद फैसला करें कि उन्हें ब्रा पहननी है या नहीं.

विदाउट ब्रा घर से बाहर जाने पर महिलाओं की सोच मिलीजुली है. दिल्ली के नजफगढ़ इलाके में ब्यूटीपार्लर चलाने वाली 32 वर्षीय वीणा दुबे कहती है, ‘‘वैसे तो ब्रा हमारी बौडी पर एक ऐक्ट्रा कपड़ा ही है, लेकिन हमारी सोसाइटी ने हमारे माइंड में यह फिट कर दिया है कि महिलाओं को बिना ब्रा के बाहर नहीं निकलना चाहिए. यह उन के सभ्य दिखने के लिए बहुत जरूरी है. इन लोगों ने ब्रा को हमारी आदत बना दिया है. इसलिए हम अब खुद को बिना ब्रा के देख कर अनकंफर्टेबल फील करते हैं.’’

वीणा की ही तरह मुंबई की रहने वाली योगा इंस्ट्रक्टर सूर्यंका मिश्रा कहती है, ‘‘विदआउट ब्रा के घर से बाहर निकलने के बारे में मु?ो सोच कर ही अजीब सा लगता है. ब्रा ब्रैस्ट को सपौर्ट करती है. अगर ब्रा नहीं पहनेंगी तो ब्रैस्ट लटकने लगेगी. ब्रा न पहनने से कम उम्र की महिलाएं भी ज्यादा उम्र की लगने लगती है. वहीं ब्रा के पहनने के बाद कपड़ों की फीटिंग भी अच्छी आती है. टौप के नीचे ब्रा पहनी लड़की विदाउट ब्रा पहने लड़की से ज्यादा अटैक्ट्रिव लगती है. लेकिन फिर भी ब्रा पहनना आप की अपनी चौइस है.’’

कई बार टीनऐज में लड़कियों को ब्रा के बारे में नौलेज नहीं होता है. इसलिए वे ब्रा नहीं पहन पातीं. यही कारण है कि उन की ब्रैस्ट लटकने लगतर है. ऐसा अकसर स्लम एरिया में देखने को मिलता है.

ब्रा का इतिहास

अगर इतिहास उठा कर देखा जाए तो ऐसा नहीं है कि महिलाओं ने हमेशा ही ब्रा पहनी है या कहें अपनी छाती को ढका है. ब्रा कैसे अस्तित्व में आई इस के लिए यह जानना जरूरी है कि ब्रा शब्द है क्या. असल में ब्रा फ्रैंच शब्द ‘ब्रासिएर’ का छोटा रूप है, जिस का शाब्दिक अर्थ होता है शरीर का ऊपरी हिस्सा.

अगर बात करें दुनिया की पहली मौडर्न ब्रा कहां बनी थी, तो इस का जवाब है फ्रांस में. 1869 में फ्रांस की हर्मिनी कैडोल ने एक जैकेटनुमा पोशाक को 2 टुकड़ों में काट कर अंडरगार्मैंट्स बनाए थे. बाद में इस के ऊपर का हिस्सा ब्रा की तरह पहना और बेचा जाने लगा.

रोमन औरतें स्तनों को छिपाने के लिए छाती वाले हिस्से के चारों तरफ एक कपड़ा बांध लेती थीं. वहीं ग्रीक औरतों की बात करें तो वे एक बैल्ट के जरीए ब्रैस्ट को उभारने की कोशिश करती थीं. ये सब ब्रा के शुरुआती रूप थे. वहीं आज जैसी ब्रा आज हम दुकानों में देखते हैं वैसी अमेरिका में 1930 में बननी शुरू हुई थीं.

महिलाएं हमेशा से ब्रा पहनती नहीं आई हैं. उन्हें ब्रा का तोहफा या कहें बेहूदा तोहफा देने के पीछे पुरुषों की साजिश थी. वे महिलाओं को हमेशा आकर्षण की वस्तु मानते आए हैं. वहीं ब्रा एक सैक्सुअली कपड़ा है. अगर महिला ब्रा पहनेंगी तो वह सैक्सी लगेगी और पुरुष उसे भोगने के लिए उत्सुक होंगे.

दूसरा कारण है बिजनैस. ब्रा के बिना भी काम चल सकता है. लेकिन अपने व्यापार का क्षेत्र बढ़ाने के लिए व्यापारियों ने ब्रा को ईजाद किया. इस के बाद धीरेधीरे अलगअलग  तरह की ब्रा बना कर अपने बिजनैस को बढ़ाते चले गए.

नहीं पहनना कितना कंफर्टेबल होता है

अगर बात कंफर्ट की की जाए तो पूरा दिन ब्रा पहनना बिलकुल कंफर्टेबल नहीं होता है. इसलिए घर पर अकेले रहने वाली लड़कियां

और महिलाएं ब्रा नहीं पहनती हैं. लगभग हर लड़की और महिला रात को सोने से पहले ब्रा उतार देती है.

पूरी दुनिया जब कोविड की चपेट में थी तब ब्रा की बिक्री में गिरावट देखी गई. कोविड-19 के समय में वर्क फ्रौम होम चल रहा था. ऐसे में ज्यादातर महिलाएं घर पर ही थीं. वर्क फ्रौम होम करने वाली महिलाएं कंफर्टेबल फील करने के लिए घर पर ब्रा पहनना अवौइड करती थीं.

33 साल की रागिनी खन्ना पेशे से टीचर है. वह बताती है, ‘‘कोविड के समय स्कूलकालेज सब बंद थे. लेकिन देश का भविष्य कहे जाने वाले बच्चों की पढ़ाई में कोई रुकावट न हो इसलिए सरकार ने औनलाइन क्लासेज शुरू कीं. इस समय सभी टीचर्स ने बच्चों को औनलाइन पढ़ाया. वह बताती है मेरी जब औनलाइन क्लास होती थी तो मैं ब्रा पहनती थी. लेकिन क्लास खत्म होते ही मैं ब्रा उतार देती थी. बिना ब्रा के रहना मु?ो ज्यादा कंफर्टेबल फील कराता था.

‘‘पूरा दिन ब्रा पहनना बिलकुल कंफर्टेबल नहीं होता है. ऐसे लगता है जैसे किसी ने सांसें रोक ली हों. वहीं अगर विदाउट ब्रा रहें तो फ्रीफ्री सा फील होता है. बौडी एकदम रिलैक्स लगती है. ऐसा लगता है जैसे कोई बो?ा हट गया हो. मगर ब्रा पहनने के क्या फायदे और नुकसान हैं यह जानना बहुत जरूरी है.’’

दिल्ली के बतरा हौस्पिटल की एमबीबीएस डाक्टर श्रुति गुप्ता कहती हैं, ‘‘ब्रैस्ट ह्यूमन फीमेल बौडी का महत्त्वपूर्ण पार्ट होता है. फीमेल बौडी में ब्रैस्ट अट्रैक्शन का मुख्य केंद्र होती है. बिना ब्रा के रहने से स्तन कैंसर होने की संभावना को कम किया जा सकता है.

‘‘ब्रा ब्रैस्ट डैवलपमैंट में हैल्प करती हैं. इसे न पहनने से ब्रैस्ट डैवलपमैंट में प्रौब्लम आती है. जो लड़कियां या महिलाएं ब्रा नहीं पहनती हैं उन की ब्रैस्ट लटकने लगती है. इतना ही नहीं ब्रा न पहनने से ब्रा का साइज बढ़ जाता है. लेकिन यह भी सच है कि 12 घंटे से ज्यादा देर तक ब्रा पहनना हानिकारक होता है. रात को ब्लड सर्कुलेशन तेज होता है. इसलिए रात को ब्रा उतार कर सोना चाहिए.’’

आप खुद करें फैसला

मोनिका गुप्ता कहती है, ‘‘एक सही ब्रा आप की ड्रैस में चार चांद लगा देती है. कई ड्रैसेज ऐसी होती हैं जिन के लिए अलगअलग तरह की ब्रा चाहिए होती है. बिना ब्रा के वह ड्रैस उतनी खास नहीं लगेगी जितनी ब्रा के साथ. ऐसे में ब्रा को अवौइड करना सही नहीं होगा.

ब्रा ही तो है

तुम्हारी ब्रा का स्ट्रैप दिख रहा है, इसे ठीक करो. तुम अपनी ब्रा को बाहर बालकनी में मत सुखाया करो. कोई देख लेगा तो क्या कहेगा. तुम अपनी ब्रा को अपनी अलमारी में छिपा कर क्यों नहीं रखती हो. इस तरह की बातें हर लड़की ने अपनी लाइफ में कभी न कभी जरूर सुनी होंगी. सवाल यह है कि यह सिर्फ एक कपड़ा है न कि कोई गुप्त चीज.

नहाने जाते वक्त भी महिलाएं अपने अंडरगारमैंट्स को कपड़ों में छिपा कर ले जाती हैं. यही नहीं ब्रा को सुखाते समय इसे दूसरे कपड़ों के नीचे छिपा कर रखती हैं ताकि वह किसी को दिखाई न दे सके.

वक्त के साथसाथ बड़ेबड़े बदलाव तो हुए, लेकिन आज भी समाज में ब्रा को देखना एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है. अगर किसी लड़की या महिला की ब्रा स्ट्रैप दिखाई देती है तो लोग उसे अजीब तरीके से देखते हैं. टिप्पणियां करने लगते हैं. उसे बिना संस्कार वाली लड़की सम?ा जाता है. इस सोच को बदलना बहुत जरूरी है. ब्रा की स्ट्रैप दिखना कोई बड़ी बात नहीं है. यह बहुत ही सामान्य है. बिलकुल वैसे ही जैसे पुरुषों की बनियान की स्टैप दिखाई देती है.

औरतों के लिए जरूरी सेवा

देश भर में आटो रिक्शा इस्तेमाल करने वालों को एक बड़ी मुसीबत यह रहती है कि आटो वाले इस तरफ कभी नहीं जाना चाहते जिधर सवारी चाहती है और दूसरी दिक्कत होती है कि मीटर या तो होते ही नहीं या ओवर बात करते हैं. इस के लिए दोषी हमेशा आटो ड्राइवरों को ठहराया जाता है और उन की पूरी कोम को मन ही मन 20 गालियां दे दी जाती हैं.

शहरों को ङ्क्षजदा रखने वाली यह सेवा देने वाले बेइमान हैं तो इस का जिम्मेदार इन के उन पर सारा सिस्टम है. शहर में कोई भी आटो बिना परमिट के नहीं चल सकता और यह परमिट हर साल रिन्यू कराना पड़ता है. सुप्रीम कोर्ट ने न जाने किस वजह से शहर में आटो की संख्या पर सीधा लगा रखी है जो दिल्ली में 1 लाख है. परमिट इशू करने वालों के लिए यह सीधा और हर साल रिन्यूअल एक वरदान है, लक्ष्मी का बेइमानी की सोने की मोहरे देने वाला है.

इस परमिट को पाने के लिए ढेरों रुपया चाहिए होता है. शहर बढ़ रहा है पर परमिटों की संख्या नहीं तो पुराने परमिटों की जमकर बिक्री होती है. जो परमिट होल्डर मर जाए उस का परमिट दूसरे के नाम करने के 15-20 लाख तक लग जाते हैं जिस में ये मुश्किल से 10000 रुपए मृत होल्डर ने परिवार को मिलते हैं.

उवर ओला ने इन नियमों को ताक पर रख कर टैक्नोलौजी के बल पर टैक्सियां तो उतार दी पर वे आटो की संख्या कहीं भी नहीं बढ़वा पाए. बढ़ते फैलते शहरों की जरूरत को हट करने के लिए इस सॢवस के लिए तो सरकार को सब्सिडी देनी चाहिए पर सरकार और सरकार के मुलाजिम लगभग पूरे देश में पैसा बनाते है. यही पैसा आटो रिक्शा वाले सवारियों से बसूलते हैं और इस सॢवस को बहुत नाकभौं ङ्क्षसकोड़ कर लिया जाता है.

आटो रिक्शा अगर मैले, टूटे, बदबूदार है तो इसलिए कि सरकारी अगला जिस में ट्रांसपोर्ट अर्थारिटी से ले कर नुक्कड़ का ट्रैफिक पुलिसमैन शामिल हैं, नियमों के नाम पर भरपूर कमाई करते है और आटो रिक्शा वालों के पास वह पैसा नहीं बचता जो बचाना चाहिए.

आटो रिक्शा ड्राइङ्क्षवग में वैसे भी 50 प्रतिशत औरतों को आना चाहिए ताकि औरतें उन के साथ चलने में उचित समझें. आज औरतों के लिए यह व्यवसाय सहज सुलभ है जिस में वे अपनी मर्जी के घंटों के साथ काम कर सकती हैं और घरों की घुटन भरी सांस से बच सकती है. वे सडक़ों, टै्रफिक से जूझ सकती है और ट्रांसपोर्ट अर्थोरिटियों की माफियानुमा जंजीरों को शायद, नहीं तोड़ सकतीं और इसीलिए कम औरतें ही इस लाइन में आ रही हैं. कभीकभार बड़े मान से औरतों को परमिट दिए जाते है पर लगता है सही ही वे बिकबिका जाते.

आटो रिक्शा सॢवस औरतों के लिए एक बहुत जरूरी सेवा है जो उन्हें घरों की कैद से निकाल सकती है और जब तक यह ठीकठाक न हो, शहर सुरक्षित नहीं होंगे पर शहरों के मालिकों के लिए यह साॢवस वह दुलारू गाय है जो दान में पंडित जी को मिली जिसे छुए और फिर सडक़ों पर छोड़ दो.

अपना घर लेना आसान नहीं

एक अच्छे घर के सपने के लिए लाखों लोग अपना घर सोसायटियों में ले रहे हैं जहां सुरक्षामनचाहे लोगकुछ सार्वजनिक सुविधाएं और एक स्टेटस मिलता है. शहरों के बाहर खेती की जमीनों पर तेजी से मकान उग रहे हैं. लोन की सुविधा पर युवा जोड़े अपना आशियाना खोज रहे है. आरवीआई (रिजर्व बैंक औफ इंडिया) की रिपोर्ट के अनुसार जनवरीमार्च 2023 में घरों की बिक्री 21.6 ‘ बढ़ी और साथ ही घरों पर बकाया लोन बढ़ कर 19,36.428 करोड़ रुपए हो गया.

अपनेआप में यह सुखद बात है कि लोग अपना मकान ले रहे हैं पर अफसोस यह है कि वे बचत पर नहीं ले रहे लोन पर ले रहे हैं. लोन पर लिए मकान का मतलब बौंकर के अपने घर में 24 घंटे मेहमान की तरह रखना जो करता कुछ नहीं है सिर्फ खाता है और गुर्राता है. उस ने मकान दिलवायां तो वह मकान मालिक से ज्यादा गुर्राता है और ज्यादा खाता है क्योंकि एक भी ईएमआई में देर हुई नहीं कि पीनल इंट्रस्ट चालू हो जाता है जो घरों में बैठे इस मेहमान को खूखांर और जानलेवा तक बना देता है.

यदि सामान्य बैंक के कम इंट्रस्ट वाले लोन की इंस्टालमैंट नहीं चुका पाओ तो बाजार से ज्यादा इंट्रस्ट पर लोन लेना पड़ता है. जैसेजैसे अच्छे मकानों की तमन्ना बढ़ती जा रही है वैसेवैसे ज्यादा इंट्रस्ट वाले लोन भी बढ़ रहे हैं और अब कुल होम लोन का 56.1 का 56.1 प्रतिशत हो गया है.

अपना फ्लैट एक अच्छी ग्रेट्ड सोसायटी में होना एक अच्छा सपना है पर जिस तरह से सरकारबिल्डरप्रौपर्टी एजेंट और बैंक आम ग्राहक को लूटते है. उस से यह सपना टूटने में देर नहीं लगती. सभी शहरों में हजारों बिङ्क्षल्डगों में ताले लगे फ्लैट दिख जाएंगे जो अलाट तो हो गए हैं पर पूरा पैसा न देने पर उन का पौजेशन नहीं दिया गया.

सरकार ने रेस नाम की एक संस्था बनाई है जो बिल्डरों पर लगाम लगा कर यह भी पुलिस थाने और अदालत जैसे हो गई है जहां शिकायत हल नहीं की जाती टाली जाती हैसाल दर साल और इस दौरान बुक किए फ्लैट पर इंट्रस्ट बढ़ता रहता है और भटकते रहते हैं.

सोसायटी में रहने की तमन्ना के लायक अभी देश की इकोनौमिक हालत नहीं हुई है. देश अभी भी गरीबों का देश है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चाहे अमेरिका जा कर ढींग कर आए कि पिछले 10 सालों में अर्थव्यवस्था 10वें से 5वें स्थान पर पहुंच गई है. प्रति व्यक्ति आय के पैमाने पर 2015 से 2022 में आय 1600 डौलर प्रति व्यक्ति से 400 डौलर बढ़ कर 2000 डौलर हुई जबकि इसी दौरान वियटनाम जैसे पिछड़े देश में 2055 से बढ़ कर 3025 डौलर और ङ्क्षसगापुर जैसे समृद्ध देश में 59112 डौलर से बढ़ कर 69.896 डौलर हो गई है.

हम सभी अपने घर अफौर्ड नहीं कर सकते. यह साफ है. कुछ ही ऐसे चतुर हैं जो या तो मांबाप के मकाए पैसे पर या किसी तरह के भागीदार हो कर होमलोन चुकता कर पाने की स्थिति में है.

 

समझौता नहीं आजादी चुनें

तू नहीं तो कोई और सही, कोई और नहीं तो कोई और सही बहुत लंबी है यह जिंदगी, मिल जाएंगे हम को लाखों हसीं.

कुछ ऐसी ही कहानी रही है गुरुग्राम में रहने वाली अनीता की. अनीता एक पंजाबी परिवार की 22 साल की खूबसूरत, लंबी, गोरी लड़की थी जिसे कोई एक बार देख ले तो देखता रह जाए. वह जितनी आकर्षक थी उतनी ही चुलबुली भी. खूब बातें करती थी और नाजुक होने के बावजूद दबंग भी थी. बचपन से उसे अपने लिए इतनी तारीफें सुनने को मिली थीं कि उस के चेहरे से साफ ?ालकता था. उस के पिता बिजनैसमैन थे. घर में पैसों की कोई कमी नहीं थी. मगर एक हादसे में उस के पिता की मौत हो गई. उस वक्त अनीता 17 साल की थी और उस की बड़ी बहन 20 साल की.

पिता के जाने के बाद मां ने अनीता की बहन की शादी जल्दी करा दी ताकि जवान लड़की के साथ कुछ ऊंचनीच न हो जाए. फिर मां अनीता के लिए भी लड़का देखने लगी. पिता के बाद उन की हैसियत किसी बड़े घर में रिश्ते की तो थी नहीं सो मां ने एक साधारण परिवार में उस की शादी करा दी. लड़का प्राइवेट स्कूल में टीचर था. घर में आर्थिक तंगी थी. घर भी छोटा सा था जिस में ननद, देवर और सासससुर समेत कुल 6 प्राणी रहते थे. अनीता ने आगे पढ़ने की इच्छा जताई तो सास ने मना कर दिया.

प्रैगनैंसी सुखद नहीं रही

अनीता के लिए वहां 1-1 दिन काटना कठिन होने लगा. पति देखने में साधारण था. उसे गुस्सा बहुत जल्दी आता था. छोटीछोटी बात पर दोनों लड़ने लगते. पति मारपीट भी करता था. अंत में अनीता ने उस शादी से निकलना ही बेहतर सम?ा और क्व2 लाख ले कर आपसी सहमति से अलग हो गई.

अनीता ने जल्द ही दूसरी शादी कर ली. दूसरे पति की आर्थिक स्थिति थोड़ी बेहतर थी. पैसों की कमी नहीं थी और घर में सदस्य भी कम थे. सिर्फ देवर और ससुर साथ रहते थे. अनीता उस घर में खुश थी. जल्द ही वह प्रैगनैंट भी हो गई. उस दौरान उस के चेहरे पर हमेशा मुसकान खिली रहती. मगर जल्द ही उस की मुसकान छिन गई जब उस का मिसकैरेज हो गया. कुछ समय बाद वह फिर से प्रैगनैंट हुई. मगर इस बार उस की कोख में एक स्पैशल चाइल्ड था जिसे पति के कहने पर उसे अबौर्ट कराना पड़ा. तीसरी बार की प्रैगनैंसी भी उस के लिए सुखद नहीं रही क्योंकि यह बच्चा भी मैंटली रिटार्डेड था.

मगर इस बार अनीता अड़ गई और बच्चे को जन्म दिया. उसे अपने बच्चे से बहुत प्यार था. मगर घर में और कोई उसे पसंद नहीं करता था. अनीता के पति ने उस से साफसाफ कह दिया कि वह बच्चे को ऐसे संस्थान में भेज दे जहां इस तरह के बच्चे रहते हैं. मगर अनीता की ममता ने यह बात स्वीकार नहीं की. पति द्वारा ज्यादा जोर दिए जाने और मानसिक रूप से टौर्चर किए जाने पर उस ने पति के बजाय बेटे को चुना और दूसरी बार फिर से तलाक ले कर अलग हो गई.

इस बार उसे पति से क्व3-4 लाख मिले जिन्हें उस ने बेटे के नाम जमा करा दिया. इतना कुछ सहने के बाद अब अनीता के चेहरे की चमक कम हो चुकी थी. वह थोड़ी परेशान भी रहने लगी थी, मगर उस ने हिम्मत नहीं हारी और एक बार फिर से शादी का फैसला लिया. लड़का उस की सहेली का परिचित था जो काफी अमीर और 2 बच्चों का पिता था. अनीता ने इस रिश्ते के लिए हामी भर दी.

तीसरे पति के साथ भी उस की ज्यादा समय तक निभ नहीं सकी. तीसरे पति की 2 संतानें पहले से थीं. दोनों बच्चे टीनएजर थे और वे अनीता के छोटे बच्चे को काफी परेशान करते थे. अनीता जब इस बात की शिकायत करती तो उस का पति बच्चे को स्पैशल चाइल्ड के स्कूल में भेजने की बात करने लगता. उस के बच्चे के साथ भेदभाव किया जाता. पति प्रौपर्टी डीलर था. घर में  पैसों की कमी नहीं थी. मगर उसे बच्चे पर रुपए खर्च करने से रोका जाता.

छोटीछोटी बातें खटकने लगीं

अनीता को इस तरह की छोटीछोटी बातें खटकने लगीं. एक बार ?ागड़ा शुरू हुआ तो फिर बढ़ता ही गया. बहुत जल्दी अनीता की सम?ा में आ गया कि वह इस शादी को और नहीं खींच सकती. वह अपने आत्मसम्मान और अपने बच्चे का अपमान नहीं देख पाई और अंत में भारी मन से तलाक लेने का फैसला कर लिया.

इस तलाक में अनीता को काफी रुपए मिले जिन्हें उस ने भविष्य के लिए जमा कर लिए. फिर गुरुग्राम की एक अच्छी सोसाइटी में एक किराए का 2 बीएचके फ्लैट ले कर अकेली अपने बेटे के साथ रहने लगी. इनकम के लिए उस ने फ्रीलांस ट्रांसलेटर का काम शुरू किया और अपने बल पर बच्चे का पालनपोषण करने लगी.

तलाक से गुजरने के बाद की मानसिक स्थिति

तलाक से गुजरने वाला शख्स क्या सहता है इस की कल्पना भी नहीं की जा सकती. अनीता के लिए भी वह दौर इतना मुश्किल रहा कि वह भावनात्मक रूप से काफी टूट गई थी. हर बार हालात ऐसे बने कि उसे अलग होने के इस कठिन और कड़वे अनुभव से गुजरने पर मजबूर होना पड़ा. डिवोर्स लेना किसी भी तरह से आसान नहीं होता है क्योंकि एक रिश्ते से प्यार, भावनाएं, यादें, जिम्मेदारियां, परिवार जैसी कई चीजें जुड़ी होती हैं.

हर बार अनीता के अंदर अजीब सी उथलपुथल मची रहती थी. उसे गुस्सा, उदासी और पछतावा सब एकसाथ महसूस होता. कई बार अपनी शादी को निभाने की कोशिश और उसे खत्म करने के फैसले के बीच वह खुद को फंसी हुई भी महसूस करती थी. तलाक के दौरान और उस के बाद कई दफा उसे डिप्रैशन भी महसूस हुआ. वह अंदर ही अंदर दिल के किसी कोने में अपनी शादी को बचाने की उम्मीद रखती पर वास्तव में ऐसा हो पाना संभव नहीं होता. उसे सम?ा आता गया कि वह चाहे कुछ भी कर ले लेकिन अपने रिश्ते को टूटने से नहीं बचा सकेगी. उसे पता था कि उस के पास चीजों को जाने देने के अलावा और कोई चारा नहीं है.

अपने फैसलों से खुश

अनीता ने अपने तीनों तलाक स्वीकार कर लिए थे. वह अब अपने अतीत के दर्दों को भुला कर जीवन के नए पहलू की तरफ आगे बढ़ने की कोशिश करने लगी और इस में सफल भी हो चुकी है. वह हर वक्त अपने दुखों के बारे में सोचने की जगह बच्चे के साथ अपनी जिंदगी को ऐंजौय करने लगी है. वह अब छोटीछोटी चीजों से हमेशा अपनेआप को खुश रखने की कोशिश करती है. उस ने प्रौपर्टी डीलिंग का बिजनैस भी शुरू कर लिया है और घर से ही काम करती है ताकि बेटे को पूरा समय दे सके. कुछ लोग उस के इस कदम को सही नहीं मानते. मगर वह अपने फैसलों से खुश है.

अगर कोई स्त्री तलाक लेती है तो लोग अकसर उसे ही दोषी करार देते हैं. वे कहने लगते हैं कि वह निभाना नहीं जानती होगी. जरूर उस का चक्कर चल रहा होगा या फिर वह बां?ा होगी. लोग यह नहीं सोच पाते कि समस्या पुरुष या उस के परिवार में भी हो सकती है. मुमकिन है कि उस के साथ अत्याचार हो रहा हो या फिर उस के बढ़ते कदमों को रोका जा रहा हो या वह वहां खुश नहीं हो. आखिर औरत हमेशा अपने आत्मसम्मान को दांव पर लगा कर रिश्ते निभाने की कोशिश क्यों करती रहे? एक बार तलाक तो फिर भी समाज द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है? मगर जब बात 2 या 3 तलाक की हो तब लोग औरतों को ही दोषी मान लेते हैं. उन के फैसले पर उंगली उठाई जाती है. श्वेता तिवारी का उदाहरण भी कुछ ऐसा ही है.

श्वेता तिवारी की 2 शादियां और तलाक

टीवी ऐक्ट्रैस श्वेता तिवारी ने भी 2 शादियां कीं, लेकिन दोनों ही शादियां उन के लिए जी का जंजाल बन गईं. पहली शादी राजा चौधरी से हुई जिस पर श्वेता ने घरेलू हिंसा के आरोप लगाए और तलाक ले लिया. राजा से इन्हें 1 बेटी पालक है. इस के बाद श्वेता ने अभिनव कोहली से दूसरी शादी की और बेटे रेयांश का जन्म हुआ. लेकिन यह शादी भी नहीं टिक पाई. अभिनव पर भी श्वेता ने घरेलू हिंसा, गालीगलौज के आरोप लगाए और अलग रहने लग गईं. मिडल क्लास फैमिली की होने की वजह से उन के परिवार ने हमेशा उन्हें शादी न तोड़ने की सलाह दी और कहा था कि एडजस्ट करो. लेकिन वे ऐसे रिश्ते में नहीं रहना चाहती थीं जिस में सम्मान न मिले.

2 शादियां टूटने के बाद लोग श्वेता को तीसरी शादी न करने की सलाह देते हैं. इस पर श्वेता का कहना है कि अगर आप 10 साल तक लिव इन रिलेशनशिप में रहें तो कोई सवाल नहीं करेगा. लेकिन आप 2 साल में शादी तोड़ दें तो लोग सवाल करेंगे कि तुम कितनी शादियां करोगी? कई लोग मु?ो यह भी सलाह देते हैं कि तुम तीसरी शादी मत कर लेना. मगर क्यों? यह मेरा डिसीजन है. मेरी लाइफ है. इंसान को दूसरी क्या 5वी शादी में भी दिक्कत हो तो उसे अलग हो जाना चाहिए.

सवाल यह उठता है कि हम भला दिक्कतों के साथ क्यों जीएं और ये नंबर्स हैं ही क्यों? आप कई अफेयर्स करें तो ठीक है फिर कई शादियां करने में दिक्कत क्यों? गलत व्यक्ति तो आप को दूसरी या तीसरी शादी में भी मिल सकता है. ऐसे में एक ही व्यक्ति के साथ बारबार समस्याओं का सामना करने से अच्छा है कोई दूसरी समस्या डिस्कवर करो. जहां भी समस्या आए तो छोड़ो और आगे बढ़ो.

क्यों न नई शुरुआत करें

दरअसल, जब औरत समझते के बजाय आजादी चुनती है तो पुरातनपंथी लोगों को बहुत कड़वा लगता है. वे औरत को दोष देने लगते हैं. मगर हकीकत में खुश रहने का हक सब को है. किसी अनहैप्पी मैरिज में बने रह कर परेशान रहने के बजाय क्या यह अच्छा नहीं कि स्त्री उस बंधन को तोड़ कर नई शुरुआत करे? तलाक के बाद जिंदगी खत्म नहीं हो जाती. वह दूसरी या तीसरी बार शादी क्यों नहीं कर सकती? उसे भी हक है कि वह अपने लिए बेहतर लाइफ पार्टनर की तलाश करे ताकि उस की जिंदगी की हर कमी पूरी हो सके. अगर ऐसा नहीं हो पाता और उसे बारबार तलाक लेना पड़ता है तो भी इस में गलत क्या है? आखिर दमघोटू माहौल में रह कर मैंटली, फिजिकली सिक होने से तो अच्छा है कि वह बेहतर औप्शन की तलाश करे. कम से कम उस के पास कोशिश करने का हक तो है ही.

अकसर लोगों को कहते सुना जाता है कि पतिपत्नी का रिश्ता तो 7 जन्मों का होता है. हिंदू विवाह में पति और पत्नी के बीच जन्मजन्मांतरों का संबंध माना जाता है जिसे किसी भी परिस्थिति में नहीं तोड़ा जा सकता. अग्नि के 7 फेरे ले कर और धु्रव तारे को साक्षी मान कर 2 तन और मन एक बंधन में बंध जाते हैं. हिंदू धर्म में तलाक और लिव इन रिलेशनशिप वगैरह सही नहीं माने जाते हैं. यह मान्यता दृढ़ होती है कि एक बार जिस व्यक्ति का किसी से विवाह हो जाता है तो मृत्युपर्यंत जारी रहता है और उस विवाह में पवित्रता होनी जरूरी होती है.

आंकड़े क्या कहते हैं

यही वजह है कि भारत में तलाक दर  लगभग 1.1त्न होने का अनुमान है जो पूरी

दुनिया में सब से कम है. दुनियाभर में अधिकांश तलाक महिलाओं द्वारा शुरू किए जाते हैं जबकि भारत में ज्यादातर पुरुष ही तलाक की पहल

करते हैं.

एक स्टडी भी कहती है कि दूसरी शादी में तलाक की दर पहली शादी की तुलना में 60त्न से अधिक होती है. ऐसा इसलिए क्योंकि ज्यादातर लोग तनाव में पुनर्विवाह का फैसला करते हैं जो उन्हें कभी भी खुश नहीं रहने देता है. ऐसे में अगर आप भी दूसरी शादी का विचार कर रहे हैं तो कुछ बातों पर पहले से विचार करें:

आप की मरजी या परिवार का प्रैशर

इस में कोई दोराय नहीं कि पार्टनर से अलग होने के बाद की जिंदगी किसी के लिए भी आसान नहीं होती. जिन चीजों की जिम्मेदारी पहले पतिपत्नी मिल कर उठाते थे अलग होने के बाद वह सब अकेले ही मैनेज करना पड़ता है. ऐसे में अगर आप खुद दूसरी शादी करना और पिछला सब भूल कर आगे बढ़ना चाहते हैं तो यह उचित है. लेकिन यदि केवल परिवार के प्रैशर में आ कर दूसरी शादी करने को तैयार होते हैं तो संभव है कि आप आगे चल कर एडजस्ट न कर पाएं. याद रखें परिवार या आप के दोस्त आप को दूसरी शादी के लिए मोटिवेट कर सकते हैं. लेकिन यह आप को खुद तय करना होता है कि आप अपनी लाइफ से क्या चाहते हैं.

पुरानी कड़वाहट साथ ले कर न जाएं

जब लोग पुनर्विवाह करते हैं तो अकसर पुराने रिश्ते की कड़वाहट और कुछ बातों को ले कर पूर्वाग्रह उन के दिलोदिमाग में कायम रहते हैं जो किसी भी नए रिश्ते को मजबूत बनने से रोकने के लिए काफी हैं. इसी तरह अगर आप अभी भी अपने एक्स की यादों से घिरे हुए हैं तो ये कभी आप को नए रिश्ते में बंधने नहीं देंगी. इसलिए खुद को थोड़ा समय दें.

दरअसल, जब हम किसी रिश्ते में अपना 100त्न देते हैं और अचानक से वह रिश्ता खत्म हो जाता है तो वहां कौन्फिडैंस, ऐक्सपैक्टेशंस और सोचनेसम?ाने की क्षमता न के बराबर रह जाती है. ऐसे में सब से जरूरी यही है कि कोई भी फैसला लेने से पहले खुद को थोड़ा समय दें. सोचसम?ा कर फैसला लें और फिर पूरी कोशिश करें कि यह रिश्ता सफल हो जाए.

सोचसमझ कर लें फैसला

दूसरी शादी में डर का होना लाजिम है. लेकिन आप को अपने पार्टनर से अपने विचारों और इच्छाओं को व्यक्त करना होगा. बताना  होगा कि जिंदगी से और लाइफपार्टनर से आप की क्या उम्मीदें हैं. बहुत से लोग अकेलेपन का शिकार हो जाते हैं जिस की वजह से भी वे दूसरी शादी करने पर विचार करते हैं. हालांकि ऐसे लोगों को समझना चाहिए कि बिना सही सोचविचार किए पुनर्विवाह से आप की परेशानी कम होने वाली नहीं है.

नए रिश्ते के लिए ईमानदारी

किसी भी नए रिश्ते में बंधने के लिए ईमानदारी का होना बेहद जरूरी है. अगर आप नए रिश्ते की शुरुआत करने की सोच रहे हैं तो खुद से सवाल करिए कि क्या आप वाकई में बच्चों की जिम्मेदारी से ले कर पार्टनर की उम्मीदों पर खरा उतरने के लिए तैयार हैं? पिछले रिश्ते में कहां क्या गलती हुई, इसे जितना खुल कर आप अपने साथी से डिसकस करेंगे उतना ही आप अपने पार्टनर से जुड़ाव महसूस करेंगी.

किन हालात में महिलाओं के लिए तलाक ही अच्छा है

हमारे देश में लड़की और शादी को इस तरह से लिया जाता है जैसे लड़की का जन्म ही शादी करने के लिए हुआ हो. शादी के बंधन में बंध कर ही उस का जीवन सार्थक होता है और ऐसे में अगर वह तलाक ले ले तो यह उस की जिंदगी की एक बड़ी असफलता समझ जाता है. तलाकशुदा महिला को शादीशुदा जितना सम्मान नहीं मिलता. तलाक के बाद महिला मातापिता पर बोझ समझ जाती है. उस के नाम से डिवोर्सी का टैग जुड़ जाता है. तलाक के बाद अलग तरह की परेशानियां शुरू हो जाती हैं इसलिए महिलाएं अपनी शादी को हर तरह से निभाने की कोशिश करती हैं. मगर किसी भी चीज की सीमा होती है. इन स्थितियों पर तलाक लेना ही बेहतर है:

दहेज की मांग की जा रही हो: अगर शादी के बाद भी आप को दहेज के लिए बातें सुनाई जाती हैं, रातदिन ताने दिए जाते हैं और आप को नीचा दिखाया जाता है तो ऐसे घर में रहना उचित नहीं. दहेज के लोभियों का क्या भरोसा कब वे हिंसक हो उठें और आप की जान पर बन आए. वैसे दहेज लेना और देना दोनों ही कानूनी जुर्म हैं. फिर भी हमारे समाज में दहेज का लालच खत्म नहीं हुआ है. कई दफा दहेज के बिना शादी तो हो जाती है, लेकिन पैसों की मांग शादी के बाद होती है. लड़की पर दबाव बनाया जाता है कि वह अपने घर से पैसे लाए और जब ऐसा नहीं होता तो उस पर अत्याचार किए जाते हैं. शादी बचाने और मातापिता की इज्जत का खयाल कर लड़कियां सब सहती हैं. मगर याद रखें जिस घर में इंसान से ज्यादा पैसे को अहमियत दी जाए वहां आप सुरक्षित नहीं.

घरेलू हिंसा की जा रही हो: अगर शादी के बाद अगर आप के साथ किसी भी प्रकार की हिंसा मसलन मारपीट, यौन शोषण या गालीगलौज की जा रही है तो आप को बिना समय गंवाए तलाक का फैसला ले लेना चाहिए. याद रखें शादी कर के पति पत्नी का मालिक नहीं हो जाता. किसी को यह हक नहीं कि आप पर हाथ उठाए. बहुत सी महिलाएं सालों मारपीट सहती हैं. मगर ऐसी जिंदगी का क्या फायदा? घुटघुट कर जीने और रोज मरने से अच्छा है अलग हो जाना.

बेइज्जती की जाती हो: शब्दों के तीर अकसर बहुत गहरे जख्म देते हैं. अगर घर में महिला के साथ दुर्व्यवहार हो रहा हो, पति खुद गलती मानने के बजाय हर बात के लिए पत्नी को ही दोषी ठहराए, उस की कीमत न समझे, उसे हलके में ले, उस के काम को अहमियत न दे, उस पर बारबार चिल्लाए, गाली दे, नीचा दिखाए तो इस रिश्ते को तोड़ देना ही बेहतर है. रोजरोज की मानसिक प्रताड़ना झेल कर कोई खुश नहीं रह सकता. बेहतर है कि अलग हो जाएं.

पति बेवफा हो: अगर किसी महिला को यह पता चलता है कि उस के पति का किसी और के साथ अफेयर है तो एक बार तो वह खुद को समझ कर पति से अपने प्यार की दुहाई देगी. ऐसे में अगर पति अपनी गलती मान कर उस औरत से मिलना छोड़ दे तो बात संभल जाती है. अकसर लड़के घर वालों के दबाव में आ कर शादी तो कर लेते हैं, लेकिन शादी के बाद भी वे अपने प्यार से अलग नहीं हो पाते. कई बार पति अपनी पत्नी से बोर हो कर भी बाहर खुशियां ढूंढ़ता है. ऐसे रिश्तों में बहुत कोफ्त होती है. बेवफाई रिश्तों के भरोसे को खत्म कर देती है और कोई भी रिश्ता बिना भरोसे के चल नहीं सकता. इसलिए महिला के लिए बेहतर यही होता है कि वह ऐसे रिश्ते से अलग हो जाए.

जब रिश्ते में केवल नकारात्मकता हो: अगर आप को पति के साथ नकारात्मकता महसूस होने लगे, आप दोनों हर बात पर झगड़ने लगें और पति का करीब आना भी आप को बरदाश्त न हो तो जाहिर है ऐसा रिश्ता अंदर से खोखला हो चुका होता है. अगर आप को लगता है कि आप के पास अपने साथी से जुड़ी नकारात्मक बातें सकारात्मक बातों की तुलना में ज्यादा हैं तो आप को तलाक की जरूरत है.

 ये 3 कारण बनते हैं कपल्स के बीच तलाक की मुख्य वजह

‘जर्नल औफ सैक्स ऐंड मैरिटल थेरैपी’ में प्रकाशित एक शोध में कपल्स के बीच तलाक की मुख्य वजहों को जानने की कोशिश की गई. इस के लिए 2371 लोगों को शामिल कर उन से कुछ सवाल पूछे गए और उस आधार पर तलाक के कारण बताए गए:

कम्युनिकेशन गैप: ज्यादातर कपल्स में तलाक का कारण कम्युनिकेशन गैप होता है. रिसर्च के अनुसार 44त्न रिलेशनशिप में डिवोर्स का कारण कम्युनिकेशन गैप होता है. दरअसल, बातचीत से ही रिश्तों में मधुरता आती है और मतभेद दूर किए जाते हैं. संवाद की कमी रिश्ते को खोखला कर देती है.

रिश्ते में इंटिमेसी की कमी: रिसर्च में शामिल लगभग 47त्न प्रतिभागियों का कहना था कि लो इंटिमेसी के चलते उन का तलाक हुआ है. इंटिमेसी की कमी सिर्फ उम्रदराज कपल्स में ही नहीं बल्कि युवाओं में भी होती है, जिस का कारण तलाक के रूप में दिख रहा है. इस के पीछे तनाव, खराब खानपान और अनियमित दिनचर्या जैसे कई कारण जिम्मेदार हैं.

पार्टनर के लिए सम्मान, भरोसे या सहानुभूति का अभाव: शोध में शामिल करीब 34त्न महिलाओं ने अपने पति से इन 3 चीजों के अभाव का दावा किया, जिन के चलते उन में से कुछ महिलाओं ने अपने पति से तलाक ले लिया और कुछ ने दूसरी शादी कर ली.

दूसरी शादी करने से पहले खुद से पूछें कुछ सवाल: प्यार, सम्मान, मुसकान, भावनात्मक जुड़ाव, विश्वास और जीवन भर के साथ का इरादा एक शादीशुदा रिश्ते में इन बातों का होना बेहद जरूरी है. कुछ कपल्स जहां जिंदगी में आए हर उतारचढ़ाव को पार करते हुए आगे बढ़ते रहने का प्रयास करते हैं तो कइयों का साथ बीच में ही छूट जाता है. जब प्यार की डोर कमजोर होती है तो जिंदगी की मुश्किलें और गलतफहमियां बड़ी आसानी से रिश्ते में दरार ले आती हैं. इस तरह जब भी कोई रिश्ता टूटता है तो वे सपने भी टूट जाते हैं जिन्हें दोनों ने मिल कर संजोया था.

शादीशुदा रिश्ते के बिखर जाने के बाद जिम्मेदारियों का बो?ा न केवल एक इंसान पर आ जाता है बल्कि कठिन राहों में अकेले आगे बढ़ना भी मुश्किल लगने लगता है. ऐसे समय में ज्यादातर लोग दोबारा शादी करने का विचार करते हैं. मगर अकसर दूसरी या तीसरी शादी करने से पहले व्यक्ति के मन में थोड़ी असमंजस की स्थिति होती है क्योंकि उसे पता नहीं होता है कि इस शादी का परिणाम क्या होगा. उसे डर रहता है कि कहीं पहले की तरह यह रिश्ता भी दर्द की सौगात दे कर खत्म न हो जाए.

दीक्षा डगर: बांए हाथ से दुनिया मुट्ठी में

अपनी कमी को कोई अगर अपनी ताकत बना ले तो फिर उसका नाम दीक्षा डगर ही हो सकता है. दीक्षा ने जहां परिवार का नाम रोशन किया है वही देश का परचम भी अनेक दफा लहराया है. दीक्षा जन्मजात श्रवण बाधित है मगर उसने अपनी कमी को अपनी कमजोरी कभी नहीं माना  और ऐसा मुकाम हासिल किया है जो शारीरिक अक्षमता से घिरे अवसाद ग्रस्त लोगों के लिए एक नजीर है.

आइए आज आपको हम मिलाते हैं हरियाणा में झज्जर की रहने वाली प्रतिभाशाली गोल्फ खिलाड़ी दीक्षा डागर से. जिन्होंने शानदार प्रदर्शन करते हुए  अपना दूसरा ‘लेडीज यूरोपीय टूर’ खिताब जीत लिया है. तेईस वर्षीय दीक्षा डागर ‘टिपस्पोर्ट चक लेडीज ओपन में चार शाट की जीत के साथ खिताब अपने नाम कर इतिहास में अपना नाम स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज करा लिया.

दीक्षा डागर के बारे में आपको हम   बताते चले कि आप बाएं हाथ से खेलती है . और पहले पहल मात्र 19 वर्ष की उम्र में  2019 में एलईटी खिताब जीता था लंदन- में वह अरेमैको टीम सीरीज में विजयी टीम का हिस्सा रही. अब तक आप दो व्यक्तिगत खिताब के अलावा नौ बार शीर्ष दस में आ चुकी हैं।l. इनमें में चार बार तो वर्तमान सीजन में ही किया है.

हाल की खिताबी दौड़ में दीक्षा ने दिन की शुरुआत पांच शाट की बढ़त के साथ की थी. अंतिम राउंड में  69 का स्कोर किया और हफ्ते में सिर्फ एक बार ही बोगी लगी. मजे की बात यह है कि केवल पहला और अंतिम शाट ड्राप किया. दीक्षा की थाईलैंड की ट्रिचेट से टक्कर थी. और अंतिम दिन नाइन शाट से शुरुआत की थी. खेल के दिन  दीक्षा शानदार लय में थीं. ट्रिचेट दूसरे स्थान पर रहीं, जबकि फ्रांस की सेलिन हचिन को तीसरा स्थान मिला. रावल विरोन क्लब में हवाओं के बीच भी अच्छा प्रदर्शन किया. वह इस हफ्ते 2021 में यहां संयुक्त चौथे स्थान पर रहीं थी.

दीक्षा डागर भारत की दूसरी महिला गोल्फर हैं, जिसने एलईटी टूर पर खिताब जीता है. इससे पहले अदिति अशोक ने 2016 में इंडियन ओपन जीता था. दीक्षा डागर ने पहला खिताब मार्च 2019 में दक्षिण अफ्रीकी ओपन के रूप में जीत दर्ज की थी . दीक्षा दो बार डेफलपिक (बधिरों के लिए ओलंपिक) में दो बार पदक जीत चुकी हैं. 2017 में रजत पदक और 2021 में स्वर्ण पदक हासिल किया था। उसके बाद उन्होंने तोक्यो ओलंपिक में भाग लिया और ऐसी पहली गोल्फर बनीं, जिसने डेफ ओलंपिक और मुख्य ओलंपिक दोनों जगह हिस्सा लिया. उन्होंने 2018 एशियाई खेलों में भी शिरकत की थी.

दीक्षा डागर को जन्म से ही सुनने में दिक्कत है. वह छह साल की उम्र से ही मशीन की मदद से सुनती रही हैं. उनके भाई योगेश डागर भी बहरेपन की समस्या से ग्रसित हैं. मानो अपनी अदम्य जिजीविषा से दीक्षा ने बहरेपन की चुनौतियों पर काबू पा लिया और महिला गोल्फ में अपना नाम कमाने के लिए ज्यादातर लिप- रोडिंग या साइन लैंग्वेज का सहारा लिया. परिजन बताते हैं कि जब वह कुछ महीने की थी, तब बहरेपन के संकेत मिले थे. वह आवाज का जवाब नहीं दे पाती थी.

इस बीच चिकित्सा तकनीक में भी सुधार हुआ था. पूर्व स्क्रैच गोल्फर रहे उनके पिता कर्नल नरेन्द्र डागर ने उन्हें गोल्फ की शुरुआती बारीकियां सिखाई.  आखिकार दीक्षा ने अभूतपूर्व प्रदर्शन किया और सफलता के झंडे गाड़ दिए .माता-पिता ने हमेशा सुनने की अक्षमता को गंभीरता से न लेने में उनकी मदद की.  पिता नरेंद्र अपने दोनों बच्चों को एक सामान्य जीवन देने के लिए दृढ़ थे.

उन्होंने सोचा कि खेल उनके  आत्मविश्वास को बढ़ाने में मदद करेगा. ऐसे में उनके परिवार ने उनकी पढ़ाई को लेकर ज्यादा चिंता नहीं की. क्योंकि, वह टेनिस, तैराकी और एथलेटिक्स में वह पारंगत हो गई थी. और दीक्षा ने दिखा दिया कि बाएं हाथ से भी वह कैसे कमाल दिखा सकती

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