हैप्पी बर्थडे

आज भोर में दादीमां की नींद खुल गई थी. पास ही दादाजी गहरी नींद में सो रहे थे. कुछ दिन पहले ही उन्हें दिल का दौरा पड़ा था. अब ठीक थे, लेकिन कभीकभी सोते समय नींद की गोली खानी पड़ती थी. दादाजी को सोता देख दादीमां के होंठों पर मुसकान दौड़ गई. आश्वस्त हो कर फिर से आंखें बंद कर लीं. थोड़ी देर में उन्हें फिर से झपकी आगई.

अचानक गाल पर गीलेपन का एहसास हुआ. आंख खोल कर देखा तो श्वेता पास खड़ी थी.

गाल पर चुंबन जड़ते हुए श्वेता ने कहा, ‘‘हैप्पी बर्थडे, दादीमां.’’

‘‘मेरी प्यारी बच्ची,’’ दादीमां का स्वर गीला हो गया, ‘‘तू कितनी अच्छी है.’’

‘‘मैं जाऊं, दादीमां? स्कूल की बस आने वाली है.’’

श्वेता ने दादाजी की ओर देखते हुए कहा, ‘‘कैसे सो रहे हैं.’’

दादीमां को लगा कि सच में दादाजी बरसों से जाग रहे थे. अब कहीं सोने को मिला था.

सचिन ने प्रवेश किया. हाथ में 5 गुलाबों का गुच्छा था. दादीमां को गुलाब के फूलों से विशेष प्यार था. देखते ही उन की आंखों में चमक आ जाती थी.

चुंबन जड़ते हुए सचिन ने फूलों को दादीमां के हाथ में दिया और कहा, ‘‘हैप्पी बर्थडे.’’

‘‘हाय, तू मेरा सब से अच्छा पोता है,’’ दादीमां ने खुश हो कर कहा, ‘‘मेरी पसंद का कितना खयाल रखता है.’’

सचिन ने शरारत से पूछा, ‘‘दादीमां, अब आप की कितनी उम्र हो गई?’’

‘‘चल हट, बदमाश कहीं का. औरतों से कभी उन की आयु नहीं पूछनी चाहिए,’’ दादीमां ने हंस कर कहा.

‘‘अच्छा, चलता हूं, दादीमां,’’ सचिन बोला, ‘‘बाहर लड़के कालिज जाने के लिए इंतजार कर रहे हैं.’’

दादीमां आहिस्ता से उठीं, खटपट से कहीं दादाजी जाग न जाएं. वह बाथरूम गईं और आधे घंटे बाद नहा कर बाहर आ गईं और कपड़े बदलने लगीं.

बेटे तरुण ने नई साड़ी ला कर दी थी. दादीमां वही साड़ी पहन रही थीं.

‘‘हाय मां,’’ तरुण ने अंदर आते हुए कहा, ‘‘हैप्पी बर्थडे. आज आप कितनी सुंदर लग रही हैं.’’

‘‘चल हट, तेरी बीवी से सुंदर थोड़ी हूं,’’ दादीमां बहू के ऊपर तीर छोड़ना कभी नहीं भूलती थीं.

‘‘किस ने कहा ऐसा,’’ तरुण ने मां को गले लगाते हुए कहा, ‘‘मेरी मां से सुंदर तो तुम्हारी मां भी नहीं थीं. तुम्हारी मां ही क्यों, मां की मां की मां में भी कोई तुम्हारे जैसी सुंदर नहीं थीं.’’

‘‘चापलूस कहीं का,’’ दादीमां ने प्यार से चपत लगाते हुए कहा, ‘‘इतना बड़ा हो गया पर बात वही बच्चों जैसी करता है.’’

‘‘अब तुम्हारा तो बच्चा ही हूं न,’’ तरुण ने हंस कर कहा, ‘‘मैं दफ्तर जाने के लिए तैयार हो रहा हूं. पापाजी को क्या हो गया? अभी तक सो रहे हैं.’’

‘‘सो कहां रहा हूं,’’ दादाजी ने आंखें खोलीं और उठते हुए कहा, ‘‘इतना शोर मचा रहे हो, कोई सो सकता है भला.’’

‘‘पापाजी, आप बहुत खराब हैं,’’ तरुण ने शिकायती अंदाज में कहा, ‘‘आप चुपकेचुपके मांबेटे की खुफिया बातें सुन रहे थे.’’

‘‘खुफिया बातें कान में फुसफुसा कर कही जाती हैं. इस तरह आसमान सिर पर उठा कर नहीं,’’ दादाजी ने चुटकी ली.

‘‘क्या करूं, पापाजी, सब लोग कहते हैं कि मैं आप पर गया हूं,’’ तरुण ने दादाजी को सहारा देते हुए कहा, ‘‘अब आप तैयार हो जाइए. वसुधा आप लोगों के लिए कोई विशेष व्यंजन बना रही है.’’

‘‘क्यों, कोई खास बात है क्या?’’ दादाजी ने प्रश्न किया.

‘‘पापाजी, कोई खास बात नहीं, कहते हैं न कि सब दिन होत न एक समान. इसलिए सब के जीवन में एक न एक दिन तो खासमखास होता ही है,’’ तरुण ने रहस्यमयी मुसकान से कहा.

‘‘तू दर्शनशास्त्र कब से पढ़ने लगा,’’ दादाजी ने कहा.

‘‘चलता हूं, पापाजी,’’ तरुण की आंखें मां की आंखों से टकराईं.

क्या सच ही इन को याद नहीं कि आज इन की पत्नी का जन्मदिन था जिस ने 55 साल पहले इन के जीवन में प्रवेश किया था? अब बुढ़ापा न जाने क्या खेल खिलाता है.

डगमगाते कदमों से दादाजी ने बाथरूम की तरफ रुख किया. दादीमां ने सहारा देने का असफल प्रयत्न किया.

दादाजी ने झिड़क कर कहा, ‘‘तुम अपने को संभालो. देखो, मैं अभी भी अभिनेता दिलीप कुमार की तरह स्मार्ट हूं. अपना काम खुद करता हूं. काश, तुम मेरी सायरा बानो होतीं.’’

दादाजी ने बाथरूम का दरवाजा अंदर से बंद कर लिया. अंदर से गाने की आवाज आ रही थी, ‘अभी तो मैं जवान हूं, अभी तो मैं जवान हूं.’

दादीमां मुसकराईं. बिलकुल सठिया गए हैं.

बहू वसुधा ने कमरे में आते ही कहा, ‘‘हाय मां, हैप्पी बर्थडे,’’ फिर उस की नजर साड़ी पर गई तो बोली, ‘‘तरुण सच ही कह रहे थे. इस साड़ी में आप खिल गई हैं. बहुत सुंदर लग रही हैं.’’

‘‘तू भी कम नहीं है, बहू,’’ यह कहते समय दादीमां के गालों पर लाली आ गई.

जातेजाते वसुधा बोली, ‘‘मां, मैं खाना लगा रही हूं. आप दोनों जल्दी से आ जाइए. गरमागरम कचौरी बना रही हूं.’’

दादीमां का बचपन सीताराम बाजार में कूचा पातीराम में बीता था. अकसर वहां की पूरी, हलवा, कचौरी और जलेबी का जिक्र करती थीं. जिस तरह दादीमां बखान करती थीं उसे सुन कर सुनने वालों के मुंह में पानी आ जाता था.

वसुधा मेरठ की थी और उसे ये सारे व्यंजन बनाने आते थे. दादीमां को अच्छे तो लगते थे लेकिन उस की प्रशंसा करने में हर सास की तरह वह भी कंजूसी कर जाती थीं. शुरूमें तो वसुधा को बुरा लगता था. लेकिन अब सास को अच्छी तरह पहचान लिया था.

थोड़ी देर बाद दादाजी और दादीमां बाहर आ कर कुरसी पर बैठ गए. उन के आने की आवाज सुन कर वसुधा ने कड़ाही चूल्हे पर रख दी.

सूजी का मुलायम खुशबूदार हलवा पहले दादीजी ने खाना शुरू किया. कचौरी के साथ वसुधा ने दहीजीरे के आलू बनाए थे.

दादाजी 2 कचौरियां खा चुके थे.

दादीमां ने दादाजी से हलवे की तारीफ में कहा, ‘‘शुद्ध घी में बनाया है न… बना तो अच्छा है लेकिन हजम भी तो होना चाहिए.’’

‘‘अरे वाह, तुम ने तो और ले लिया,’’ दादाजी ने निराश स्वर में कहा.

उन दोनों की बातें सुन कर वसुधा हंस पड़ी, ‘‘पापा, मैं फिर बना दूंगी.’’

दिल का दौरा पड़ जाने से दादाजी को काफी परहेज करना व करवाना पड़ता था.

दिन में दादीमां की दोनों बहनों व उन के परिवार के लोग फोन पर जन्मदिन की बधाई दे रहे थे. उन के भाईभाभी का कनाडा से फोन आया. बहुत अच्छा लगा दादीमां को. वह बहुत खुश थीं और दादाजी मुसकरा रहे थे.

रात को तो पूरा परिवार जमा था. बेटी और दामाद भी उपहार ले कर आ गए थे. खूब हल्लागुल्ला हुआ. लड़के-लड़कियां फिल्मी धुनों पर नाच रहे थे. तरुण अपने बहनोई से हंसीमजाक कर रहा था तो वसुधा अपनी ननद के साथ अच्छेअच्छे स्नैक्सबना कर किचन से भेज रही थी. बस, मजा आ गया.

‘‘दादीमां, आप का बर्थडे सप्ताह में कम से कम एक बार अवश्य आना चाहिए,’’ सचिन ने दादीमां से कहा, ‘‘काश, मेरा बर्थडे भी इसी तरह मनाया जाता.’’

दादीमां ने अचानक कहा, ‘‘आज मुझे सब लोगों ने बधाई दी. बस, एक को छोड़ कर.’’

‘‘कौन, मां?’’ तरुण ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘यह गुस्ताखी किस ने की?’’ सचिन ने कहा.

‘‘इन्होंने,’’ दादीमां ने पति की ओर देख कर कहा.

दादाजी एकदम गंभीर हो गए. ‘‘क्या कहा? मैं ने बधाई नहीं दी?’’

दादाजी अभी तक गुदगुदे दीवान पर सहारा ले कर बैठे थे कि अचानक पीछे लुढ़क गए. शायद धक्का सा लगा. ऐसे कैसे भूल गए. सब का दिल दहल गया.

‘‘हाय राम,’’ दादीमां झपट कर दादाजी के पास गईं. लगभग रोते हुए बोलीं, ‘‘आंखें खोलो. मैं ने ऐसा क्या कह दिया?’’

दादाजी को शायद फिर से दिल का दौरा पड़ गया, ऐसा सब को लगा. दादीमां की आंखें नम हो गईं. उन्होंने कान छाती पर लगा कर दिल की धड़कन सुनने की कोशिश की. एक कान से सुनाई नहीं दिया तो दूसरा कान छाती पर लगाया.

‘‘हैप्पी बर्थडे,’’ दादाजी ने आंखें खोल कर मुसकरा कर कहा, ‘‘अब तो कह दिया न.’’

‘‘यह भी कोई तरीका है,’’ दादीमां ने आंसू पोंछते हुए कहा. अब उन के होंठों पर हंसी लौट आई थी.

सब हंस रहे थे.

‘‘तरीका तो नहीं है,’’ दादाजी ने उठते हुए कहा, ‘‘लेकिन याद तो रहेगा न.’’

‘‘छोड़ो भी,’’ दादीमां ने शरमा कर कहा.

‘‘वाह, इसे कहते हैं 18वीं सदी का रोमांस,’’ सचिन ने ताली बजाते हुए कहा.

फिर तो सारा घर तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा.

शादी-भाग 3: रोहिणी ने पिता को कैसे समझाया

सुरेश ने सुकन्या से कहा, ‘‘खाना शुरू हुआ है, तो थोड़ा खा लेते हैं, नहीं तो निकलने की सोचते हैं.’’

‘‘इतनी जल्दी क्या है, अभी तो कोई भी नहीं जा रहा है.’’

‘‘पूरे दिन काम की थकान, फिर फार्म हाउस पहुंचने का थकान भरा सफर और अब खाने का लंबा इंतजार, बेगम साहिबा घर वापस जाने में भी कम से कम 1 घंटा तो लग ही जाएगा. चलते हैं, आंखें नींद से बोझिल हो रही हैं, इस वाहन चालक पर भी कुछ तरस करो.’’

‘‘तुम भी बच्चों की तरह मचल जाते हो और रट लगा लेते हो कि घर चलो, घर चलो.’’

‘‘मैं फिर इधर सोफे पर थोड़ा आराम कर लेता हूं, अभी तो वहां कोई नहीं है.’’

‘‘ठीक है,’’ कह कर सुकन्या सोसाइटी की अन्य महिलाआें के साथ बातें करने लगी और सुरेश एक खाली सोफे पर आराम से पैर फैला कर अधलेटे हो गए. आंखें बंद कर के सुरेश आराम की सोच रहे थे कि एक जोर का हाथ कंधे पर लगा, ‘‘सुरेश बाबू, यह अच्छी बात नहीं है, अकेलेअकेले सो रहे हो. जश्न मनाने के बजाय सुस्ती फैला रहे हो.’’

सुरेश ने आंखें खोल कर देखा तो गुप्ताजी दांत फाड़ रहे थे.

मन ही मन भद्दी गाली निकाल कर प्रत्यक्ष में सुरेश बोले, ‘‘गुप्ताजी, आफिस में कुछ अधिक काम की वजह से थक गया था, सोचा कि 5 मिनट आराम कर लूं.’’

‘‘उठ यार, यह मौका जश्न मनाने का है, सोने का नहीं,’’ गुप्ताजी हाथ पकड़ कर सुरेश को डीजे फ्लोर पर ले गए जहां डीजे के शोर में वर और वधू पक्ष के नजदीकी नाच रहे थे, ‘‘देख नंदकिशोर के ठुमके,’’ गुप्ताजी बोले पर सुरेश का ध्यान सुकन्या को ढूंढ़ने में था कि किस तरीके से अलविदा कह कर वापस घर रवानगी की जाए.

सुकन्या सोसाइटी की महिलाओं के साथ गपशप में व्यस्त थी. सुरेश को नजदीक आता देख मिसेज रस्तोगी ने कहा, ‘‘भाई साहब को कह, आज तो मंडराना छोड़ें, मर्द पार्टी में जाएं. बारबार महिला पार्टी में आ जाते हैं.’’

‘‘भाभीजी, कल मैं आफिस से छुट्टी नहीं ले सकता, जरूरी काम है, घर भी जाना है, रात की नींद पूरी नहीं होगी तो आफिस में काम कैसे करूंगा. अब तो आप सुकन्या को मेरे हवाले कीजिए, नहीं तो उठा के ले जाना पड़ेगा,’’ सुरेश के इतना कहते ही पूरी महिला पार्टी ठहाके में डूब गई.

‘‘क्या बचपना करते हो, थोड़ी देर इंतजार करो, सब के साथ चलेंगे. पार्टी का आनंद उठाओ. थोड़ा सुस्ता लो. देखो, उस कोने में सोफे खाली हैं, आप थोड़ा आराम करो, मैं अभी वहीं आती हूं.’’

मुंह लटका कर सुरेश फिर खाली सोफे पर अधलेटे हो गए और उन की आंख लग गई.

नींद में सुरेश ने करवट बदली तो सोफे से नीचे गिरतेगिरते बचे. इस चक्कर में उन की नींद खुल गई. चंद मिनटों की गहरी नींद ने सुरेश की थकान दूर कर दी थी. तभी सुकन्या आई, ‘‘तुम बड़े अच्छे हो, एक नींद पूरी कर ली. चलो, खाना शुरू हो गया है.’’

सुरेश ने घड़ी देखी, ‘‘रात का 1 बजा था. अब 1 बजे खाना परोस रहे हैं.’’

खाना खाते और फिर मिलते, अलविदा लेते ढाई बज गए. कार स्टार्ट कर के सुरेश बोले, ‘‘आज रात लांग ड्राइव होगी, घर पहुंचतेपहुंचते साढ़े 3 बज जाएंगे. मैं सोचता हूं कि उस समय सोने के बजाय चाय पी जाए और सुबह की सैर की जाए, मजा आ जाएगा.’’

‘‘आप तो सो लिए थे, मैं बुरी तरह थक चुकी हूं. मैं तो नींद जरूर लूंगी… लेकिन आप इतनी धीरे कार क्यों चला रहे हो?’’

‘‘रात के खाली सड़कों पर तेज रफ्तार की वजह से ही भयानक दुर्घटनाएं होती हैं. दरअसल, पार्टियों से वापस आते लोग शराब के नशे में तेज रफ्तार के कारण कार को संभाल नहीं पाते. इसी से दुर्घटनाएं होती हैं. सड़कों पर रोशनी पूरी नहीं होती, सामने से आने वाले वाहनों की हैडलाइट से आंखों में चौंध पड़ती है, पटरी और रोडडिवाइडर नजर नहीं आते हैं, इसलिए जब देरी हो गई है तो आधा घंटा और सही.’’

पौने 4 बजे वे घर पहुंचे, लाइट खोली तो रोहिणी उठ गई, ‘‘क्या बात है पापा, पूरी रात शादी में बिता दी. कल आफिस की छुट्टी करोगे क्या?’’

सुरेश ने हंसते हुए कहा, ‘‘कल नहीं, आज. अब तो तारीख भी बदल गई है. आज आफिस में जरूरी काम है, छुट्टी का मतलब ही नहीं. अगर अब सो गया तो समझ लो, दोपहर से पहले उठना ही नहीं होगा. बेटे, अब तो एक कप चाय पी कर सुबह की सैर पर जाऊंगा.’’

‘‘पापा, आप कपड़े बदलिए, मैं चाय बनाती हूं,’’ रोहिणी ने आंखें मलते हुए कहा.

‘‘तुम सो जाओ, बेटे, हमारी नींद तो खराब हो गई है, मैं चाय बनाती हूं,’’ सुकन्या ने रोहिणी से कहा.

चाय पीने के बाद सुरेश, सुकन्या और रोहिणी सुबह की सैर के लिए पार्क में गए.

‘‘आज असली आनंद आएगा सैर करने का, पूरा पार्क खाली, ऐसे लगता है कि हमारा प्राइवेट पार्क हो, हम आलसियों की तरह सोते रहते हैं. सुबह सैर का अपना अलग ही आनंद है,’’ सुरेश बांहें फैला कर गहरी सांस खींचता हुआ बोला.

‘‘आज क्या बात है, बड़ी दार्शनिक बातें कर रहे हो.’’

‘‘बात दार्शनिकता की नहीं, बल्कि जीवन की सचाई की है. कल रात शादी में देखा, दिखावा ही दिखावा. क्या हम शादियां सादगी से नहीं कर सकते? अगर सच कहें तो सारा शादी खर्च व्यर्थ है, फुजूल का है, जिस का कोई अर्थ नहीं है.’’

तभी रोहिणी जौगिंग करते हुए समीप पहुंच कर बोली, ‘‘पापा, बिलकुल ठीक है, शादियों पर सारा व्यर्थ का खर्चा होता है.’’

सुकन्या सुरेश के चेहरे को देखती हुई कुछ समझने की कोशिश करने लगी. फिर कुछ पल रुक कर बोली, ‘‘मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा है. आज सुबह बापबेटी को क्या हो गया है?’’

‘‘बहुत आसान सी बात है, शादी में सारे रिश्तेदारों को, यारों को, पड़ोसियों को, मिलनेजुलने वालों को न्योता दिया जाता है कि शादी में आ कर शान बढ़ाओ. सब आते हैं, कुछ कामधंधा तो करते नहीं…उस पर सब यही चाहते हैं कि उन की साहबों जैसी खातिरदारी हो और तनिक भी कमी हो गई तो उलटासीधा बोलेंगे, जैसे कि नंदकिशोर के बेटे की शादी में देखा, हम सब जम कर दावत उड़ाए जा रहे थे और कमियां भी निकाल रहे थे.’’

तभी रोहिणी जौगिंग का एक और चक्कर पूरा कर के समीप आई और बोलने लगी तो सुकन्या ने टोक दिया, ‘‘आप की कोई विशेष टिप्पणी.’’

यह सुन कर रोहिणी ने हांफते हुए कहा, ‘‘पापा ने बिलकुल सही विश्लेषण किया है शादी का. शादी हमारी, बिरादरी को खुश करते फिरें, यह कहां की अक्लमंदी है और तुर्रा यह कि खुश फिर भी कोई नहीं होता. आखिर शादी को हम तमाशा बनाते ही क्यों हैं. अगर कोई शादी में किसी कारण से नहीं पहुंचा तो हम भी गिला रखते हैं कि आया नहीं. कोई किसी को नहीं छोड़ता. शादी करनी है तो घरपरिवार के सदस्यों में ही संपन्न हो जाए, जितना खच?र् शादी में हम करते हैं, अगर वह बचा कर बैंक में जमा करवा लें तो बुढ़ापे की पेंशन बन सकती है.’’

‘‘देखा सुकन्या, हमारी बेटी कितनी समझदार हो गई है. मुझे रोहिणी पर गर्व है. कितनी अच्छी तरह से भविष्य की सोच रही है. हम अपनी सारी जमापूंजी शादियों में खर्च कर देते हैं, अकसर तो उधार भी लेते हैं, जिस को चुकाना भी कई बार मुश्किल हो जाता है. अपनी चादर से अधिक खर्च जो करते हैं.’’

‘‘क्या बापबेटी को किसी प्रतियोगिता में भाग लेना है, जो वहां देने वाले भाषण का अभ्यास हो रहा है या कोई निबंध लिखना है.’’

‘‘काश, भारत का हर व्यक्ति ऐसा सोचता.

शादी-भाग 2: रोहिणी ने पिता को कैसे समझाया

मुसकराती हुई सुकन्या ने कहा, ‘‘सारे अलग शादियों में नहीं, बल्कि राहुल की शादी में जा रहे हैं.’’

‘‘दिल खोल कर न्योता दिया है नंदकिशोरजी ने.’’

‘‘दिल की मत पूछो, फार्म हाउस में शादी का सारा खर्च वधू पक्ष का होगा, इसलिए पूरी सोसाइटी को निमंत्रण दे दिया वरना अपने घर तो उन की पत्नी ने किसी को भी नहीं बुलाया. एक नंबर के कंजूस हैं दोनों पतिपत्नी. हम तो उसे किटी पार्टी का मेंबर बनाने को राजी नहीं होते हैं. जबरदस्ती हर साल किसी न किसी बहाने मेंबर बन जाती है.’’

‘‘इतनी नाराजगी भी अच्छी नहीं कि मेकअप ही खराब हो जाए,’’ सुरेश ने कार स्टार्ट करते हुए कहा.

‘‘कितनी देर लगेगी फार्म हाउस पहुंचने में?’’ सुकन्या ने पूछा.

‘‘यह तो टै्रफिक पर निर्भर है, कितना समय लगेगा, 1 घंटा भी लग सकता है, डेढ़ भी और 2 भी.’’

‘‘मैं एफएम रेडियो पर टै्रफिक का हाल जानती हूं,’’ कह कर सुकन्या ने रेडियो चालू किया.

तभी रेडियो जौकी यानी कि उद्घोषिका ने शहर में 10 हजार शादियों का जिक्र छेड़ते हुए कहा कि आज हर दिल्लीवासी किसी न किसी शादी में जा रहा है और चारों तरफ शादियों की धूम है. यह सुन कर सुरेश ने सुकन्या से पूछा, ‘‘क्या तुम्हें लगता है कि आज शहर में 10 हजार शादियां होंगी?’’

‘‘आप तो ऐसे पूछ रहे हो, जैसे मैं कोई पंडित हूं और शादियों का मुहूर्त मैं ने ही निकाला है.’’

‘‘एक बात जरूर है कि आज शादियां अधिक हैं, लेकिन कितनी, पता नहीं. हां, एक बात पर मैं अडिग हूं कि 10 हजार नहीं होंगी. 2-3 हजार को 10 हजार बनाने में लोगों को कोई अधिक समय नहीं लगता. बात का बतंगड़ बनाने में फालतू आदमी माहिर होते हैं.’’

तभी रेडियो टनाटन ने टै्रफिक का हाल सुनाना शुरू किया, ‘यदि आप वहां जा रहे हैं तो अपना रूट बदल लें,’ यह सुन कर सुरेश ने कहा, ‘‘रेडियो स्टेशन पर बैठ कर कहना आसान है कि रूट बदल लें, लेकिन जाएं तो कहां से, दिल्ली की हर दूसरी सड़क पर टै्रफिक होता है. हर रोज सुबहशाम 2 घंटे की ड्राइविंग हो जाती है. आराम से चलते चलो, सब्र और संयम के साथ.’’

बातों ही बातों में कार की रफ्तार धीमी हो गई और आगे वाली कार के चालक ने कार से अपनी गरदन बाहर निकाली और बोला, ‘‘भाई साहब, कार थोड़ी पीछे करना, वापस मोड़नी है, आगे टै्रफिक जाम है, एफ एम रेडियो भी यही कह रहा है.’’

उस को देखते ही कई स्कूटर और बाइक वाले पलट कर चलने लगे. कार वालों ने भी कारें वापस मोड़नी शुरू कर दीं. यह देख कर सुकन्या ने कहा, ‘‘आप क्या देख रहे हो, जब सब वापस मुड़ रहे हैं तो आप भी इन के साथ मुड़ जाइए.’’

सुरेश ने कार नहीं मोड़ी बल्कि मुड़ी कारों की जगह धीरेधीरे कार आगे बढ़ानी शुरू की.

‘‘यह आप क्या कर रहे हो, टै्रफिक जाम में फंस जाएंगे,’’ सुकन्या ने सुरेश की ओर देखते हुए कहा.

‘‘कुछ नहीं होगा, यह तो रोज की कहानी है. जो कारें वापस मुड़ रही हैं, वे सब आगे पहुंच कर दूसरी लेन को भी जाम करेंगी.’’ धीरेधीरे सुरेश कार को अपनी लेन में रख कर आगे बढ़ाता रहा. चौराहे पर एक टेंपो खराब खड़ा था, जिस कारण टै्रफिक का बुरा हाल था.

‘‘यहां तो काफी बुरा हाल है, देर न हो जाए,’’ सुकन्या थोड़ी परेशान हो गई.

‘‘कुछ नहीं होगा, 10 मिनट जरूर लग सकते हैं. यहां संयम की आवश्यकता है.’’

बातोंबातों में 10 मिनट में चौराहे को पार कर लिया और कार ने थोड़ी रफ्तार पकड़ी. थोड़ीथोड़ी दूरी पर कभी कोई बरात मिलती, तो कार की रफ्तार कम हो जाती तो कहीं बीच सड़क पर बस वाले बस रोक कर सवारियों को उतारने, चढ़ाने का काम करते मिले.

फार्म हाउस आ गया. बरात अभी बाहर सड़क पर नाच रही थी. बरातियों ने अंदर जाना शुरू कर दिया, सोसाइटी निवासी पहले ही पहुंच गए थे और चाट के स्टाल पर मशगूल थे.

‘‘लगता है, हम ही देर से पहुंचे हैं, सोसाइटी के लोग तो हमारे साथ चले थे, लेकिन पहले आ गए,’’ सुरेश ने चारों तरफ नजर दौड़ाते हुए सुकन्या से कहा.

‘‘इतनी धीरे कार चलाते हो, जल्दी कैसे पहुंच सकते थे,’’ इतना कह कर सुकन्या बोली, ‘‘हाय मिसेज वर्मा, आज तो बहुत जंच रही हो.’’

‘‘अरे, कहां, तुम्हारे आगे तो आज सब फीके हैं,’’ मिसेज गुप्ता बोलीं, ‘‘देखो तो कितना खूबसूरत नेकलेस है, छोटा जरूर है लेकिन डिजाइन लाजवाब है. हीरे कितने चमक रहे हैं, जरूर महंगा होगा.’’

‘‘पहले कभी देखा नहीं, कहां से लिया? देखो तो, साथ के मैचिंग टाप्स भी लाजवाब हैं,’’ एक के बाद एक प्रश्नों की झड़ी लग गई, साथ ही सभी सोसाइटी की महिलाओं ने सुकन्या को घेर लिया और वह मंदमंद मुसकाती हुई एक कुरसी पर बैठ गई. सुरेश एक तरफ कोने में अलग कुरसी पर अकेले बैठे थे, तभी रस्तोगी ने कंधे पर हाथ मारते हुए कहा, ‘‘क्या यार, सुरेश…यहां छिप कर चुपके से महिलाआें की बातों में कान अड़ाए बैठे हो. उठो, उधर मर्दों की महफिल लगी है. सब इंतजाम है, आ जाओ…’’

सुरेश कुरसी छोड़ते हुए कहने लगे, ‘‘रस्तोगी, मैं पीता नहीं हूं, तुझे पता है, क्या करूंगा महफिल में जा कर.’’

‘‘आओ तो सही, गपशप ही सही, मैं कौन सा रोज पीने वाला हूं. जलजीरा, सौफ्ट ड्रिंक्स सबकुछ है,’’ कह कर रस्तोगी ने सुरेश का हाथ पकड़ कर खींचा और दोनों महफिल में शरीक हो गए, जहां जाम के बीच में ठहाके लग रहे थे.

‘‘यार, नंदकिशोर ने हाथ लंबा मारा है, सबकुछ लड़की पक्ष वाले कर रहे हैं. फार्म आउस में शादी, पीने का, खाने का इंतजाम तो देखो,’’ अग्रवाल ने कहा.

‘‘अंदर की बात बताता हूं, सब प्यारमुहब्बत का मामला है,’’ साहनी बोला.

‘‘अमा यार, पहेलियां बुझाना छोड़ कर जरा खुल कर बताओ,’’ गुप्ता ने पूछा.

‘‘राहुल और यह लड़की कालिज में एकसाथ पढ़ते थे, वहीं प्यार हो गया. जब लड़कालड़की राजी तो क्या करेगा काजी, थकहार कर लड़की के बाप को मानना पड़ा,’’ साहनी चटकारे ले कर प्यार के किस्से सुनाने लगा. फिर मुड़ कर सुरेश से कहने लगा, ‘‘अरे, आप तो मंदमंद मुसकरा रहे हैं, क्या बात है, कुछ तो फरमाइए.’’

‘‘मैं यह सोच रहा हूं कि क्या जरूरत है, शादियों में फुजूल का पैसा लगाने की, इसी शादी को देख लो, फार्म हाउस का किराया, साजसजावट, खानेपीने का खर्चा, लेनदेन, गहने और न जाने क्याक्या खर्च होता है,’’ सुरेश ने दार्शनिक भाव से कहा.

‘‘यार, जिस के पास जितना धन होता है, शादी में खर्च करता है. इस में फुजूलखर्ची की क्या बात है. आखिर धन को संचित ही इसीलिए करते हैं,’’ अग्रवाल ने बात को स्पष्ट करते हुए कहा.

‘‘नहीं, धन का संचय शादियों के लिए नहीं, बल्कि कठिन समय के लिए भी किया जाता है…’’

सुरेश की बात बीच में काटते हुए गुप्ता बोला, ‘‘देख, लड़की वालों के पास धन की कोई कमी नहीं है. समंदर में से दोचार लोटे निकल जाएंगे, तो कुछ फर्क नहीं पड़ेगा.’’

‘‘यह सोच गलत है. यह तो पैसे की बरबादी है,’’ सुरेश ने कहा.

‘‘सारा मूड खराब कर दिया,’’ साहनी ने बात को समाप्त करते हुए कहा, ‘‘यहां हम जश्न मना रहे हैं, स्वामीजी ने प्रवचन शुरू कर दिए. बाईगौड रस्तोगी, जहां से इसे लाया था, वहीं छोड़ आ.’’

सुरेश चुपचाप वहां से निकल लिए और सुकन्या को ढूंढ़ने लगे.

‘‘क्या बात है, भाई साहब, कहां नैनमटक्का कर रहे हैं,’’ मिसेज साहनी ने कहा, जो सुकन्या के साथ गोलगप्पे के स्टाल पर खट्टेमीठे पानी का मजा ले रही थी और साथ कह रही थी, ‘‘सुकन्या, गोलगप्पे का पानी बड़ा बकवास है, इतनी बड़ी पार्टी और चाटपकौड़ी तो एकदम थर्ड क्लास.’’

सुकन्या मुसकरा दी.

‘‘मुझ से तो भूखा नहीं रहा जाता,’’ मिसेज साहनी बोलीं, ‘‘शगुन दिया है, डबल तो वसूल करने हैं.’’

उन की बातें सुन कर सुरेश मुसकरा दिए कि दोनों मियांबीवी एक ही थैली के चट्टेबट्टे हैं. मियां ज्यादा पी कर होश खो बैठा है और बीवी मीनमेख के बावजूद खाए जा रही है.

शादी-भाग 1: रोहिणी ने पिता को कैसे समझाया

‘‘सुनो, आप को याद है न कि आज शाम को राहुल की शादी में जाना है. टाइम से घर आ जाना. फार्म हाउस में शादी है. वहां पहुंचने में कम से कम 1 घंटा तो लग ही जाएगा,’’ सुकन्या ने सुरेश को नाश्ते की टेबल पर बैठते ही कहा.

‘‘मैं तो भूल ही गया था, अच्छा हुआ जो तुम ने याद दिला दिया,’’ सुरेश ने आलू का परांठा तोड़ते हुए कहा.

‘‘आजकल आप बातों को भूलने बहुत लगे हैं, क्या बात है?’’ सुकन्या ने चाय की चुस्की लेते हुए कहा.

‘‘आफिस में काम बहुत ज्यादा हो गया है और कंपनी वाले कम स्टाफ से काम चलाना चाहते हैं. दम मारने की फुरसत नहीं होती है. अच्छा सुनो, एक काम करना, 5 बजे मुझे फोन करना. मैं समय से आ जाऊंगा.’’

‘‘क्या कहते हो, 5 बजे,’’ सुकन्या ने आश्चर्य से कहा, ‘‘आफिस से घर आने में ही तुम्हें 1 घंटा लग जाता है. फिर तैयार हो कर शादी में जाना है. आप आज आफिस से जल्दी निकलना. 5 बजे तक घर आ जाना.’’

‘‘अच्छा, कोशिश करूंगा,’’ सुरेश ने आफिस जाने के लिए ब्रीफकेस उठाते हुए कहा.

आफिस पहुंच कर सुरेश हैरान रह गया कि स्टाफ की उपस्थिति नाममात्र की थी. आफिस में हर किसी को शादी में जाना था. आधा स्टाफ छुट्टी पर था और बाकी स्टाफ हाफ डे कर के लंच के बाद छुट्टी करने की सोच रहा था. पूरे आफिस में कोई काम नहीं कर रहा था. हर किसी की जबान पर बस यही चर्चा थी कि आज शादियों का जबरदस्त मुहूर्त है, जिस की शादी का मुहूर्त नहीं निकल रहा है उस की शादी बिना मुहूर्त के आज हो सकती है. इसलिए आज शहर में 10 हजार शादियां हैं.

सुरेश अपनी कुरसी पर बैठ कर फाइलें देख रहा था तभी मैनेजर वर्मा उस के सामने कुरसी खींच कर बैठ गए और गला साफ कर के बोले, ‘‘आज तो गजब का मुहूर्त है, सुना है कि आज शहर में 10 हजार शादियां हैं, हर कोई छुट्टी मांग रहा है, लंच के बाद तो पूरा आफिस लगभग खाली हो जाएगा. छुट्टी तो घोषित कर नहीं सकते सुरेशजी, लेकिन मजबूरी है, किसी को रोक भी नहीं सकते. आप को भी किसी शादी में जाना होगा.’’

‘‘वर्माजी, आप तो जबरदस्त ज्ञानी हैं, आप को कैसे मालूम कि मुझे भी आज शादी में जाना है,’’ सुरेश ने फाइल बंद कर के एक तरफ रख दी और वर्माजी को ऊपर से नीचे तक देखते हुए बोला.

‘‘यह भी कोई पूछने की बात है, आज तो हर आदमी, बच्चे से ले कर बूढ़े तक सभी बराती बनेंगे. आखिर 10 हजार शादियां जो हैं,’’ वर्माजी ने उंगली में कार की चाबी घुमाते हुए कहा, ‘‘आखिर मैं भी तो आज एक बराती हूं.’’

‘‘वर्माजी, एक बात समझ में नहीं आ रही कि क्या वाकई में पूरे स्टाफ को शादी में जाना है या फिर 10 हजार शादियों की खबर सुन कर आफिस से छुट्टी का एक बहाना मिल गया है,’’ सुरेश ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा.

‘‘लगता है कि आप को आज किसी शादी का न्योता नहीं मिला है, घर पर भाभीजी के साथ कैंडल लाइट डिनर करने का इरादा है. तभी इस तरीके की बातें कर रहे हो, वरना घर जल्दी जाने की सोच रहे होते सुरेश बाबू,’’ वर्माजी ने चुटकी लेते हुए कहा.

‘‘नहीं, वर्माजी, ऐसी बात नहीं है. शादी का न्योता तो है, लेकिन जाने का मन नहीं है, पत्नी चलने को कह रही है. लगता है जाना पड़ेगा.’’

‘‘क्यों भई…भाभीजी के मायके में शादी है,’’ वर्माजी ने आंख मारते हुए कहा.

‘‘ऐसी कोई बात नहीं है, वर्माजी. पड़ोसी की शादी में जाना है. ऊपर वाले फ्लैट में नंदकिशोरजी रहते हैं, उन के बेटे राहुल की शादी है. मन इसलिए नहीं कर रहा कि बहुत दूर फार्म हाउस में शादी है. पहले तो 1 घंटा घर पहुंचने में लगेगा, फिर घर से कम से कम 1 घंटा फार्म हाउस पहुंचने में लगेगा. थक जाऊंगा. यदि आप कल की छुट्टी दे दें तो शादी में चला जाऊंगा.’’

‘‘अरे, सुरेश बाबू, आप डरते बहुत हैं. आज शादी में जाइए, कल की कल देखेंगे,’’ कह कर वर्माजी चले गए.

मुझे डरपोक कहता है, खुद जल्दी जाने के चक्कर में मेरे कंधे पर बंदूक रख कर चलाना चाहता है, सुरेश मन ही मन बुदबुदाया और काम में व्यस्त हो गया.

शाम को ठीक 5 बजे सुकन्या ने फोन कर के सुरेश को शादी में जाने की याद दिलाई कि सोसाइटी में लगभग सभी को नंदकिशोरजी ने शादी का न्योता दिया है और सभी शादी में जाएंगे. तभी चपरासी ने कहा, ‘‘साबजी, पूरा आफिस खाली हो गया है, मुझे भी शादी में जाना है, आप कितनी देर तक बैठेंगे?’’

चपरासी की बात सुन कर सुरेश ने काम बंद किया और धीमे से मुसकरा कर कहा, ‘‘मैं ने भी शादी में जाना है, आफिस बंद कर दो.’’

सुरेश ने कार स्टार्ट की, रास्ते में सोचने लगा कि दिल्ली एक महानगर है और 1 करोड़ से ऊपर की आबादी है, लेकिन एक दिन में 10 हजार शादियां कहां हो सकती हैं. घोड़ी, बैंड, हलवाई, वेटर, बसों के साथ होटल, पार्क, गलीमहल्ले आदि का इंतजाम मुश्किल लगता है. रास्ते में टै्रफिक भी कोई ज्यादा नहीं है, आम दिनों की तरह भीड़भाड़ है. आफिस से घर की 30 किलोमीटर की दूरी तय करने में 1 से सवा घंटा लग जाता है और लगभग आधी दिल्ली का सफर हो जाता है. अगर पूरी दिल्ली में 10 हजार शादियां हैं तो आधी दिल्ली में 5 हजार तो अवश्य होनी चाहिए. लेकिन लगता है लोगों को बढ़ाचढ़ा कर बातें करने की आदत है और ऊपर से टीवी चैनल वाले खबरें इस तरह से पेश करते हैं कि लोगों को विश्वास हो जाता है. यही सब सोचतेसोचते सुरेश घर पहुंच गया.

घर पर सुकन्या ने फौरन चाय के साथ समोसे परोसते हुए कहा, ‘‘टाइम से तैयार हो जाओ, सोसाइटी से सभी शादी में जा रहे हैं, जिन को नंदकिशोरजी ने न्योता दिया है.’’

‘‘बच्चे भी चलेंगे?’’

‘‘बच्चे अब बड़े हो गए हैं, हमारे साथ कहां जाएंगे.’’

‘‘हमारा जाना क्या जरूरी है?’’

‘‘जाना बहुत जरूरी है, एक तो वह ऊपर वाले फ्लैट में रहते हैं और फिर श्रीमती नंदकिशोरजी तो हमारी किटी पार्टी की मेंबर हैं. जो नहीं जाएगा, कच्चा चबा जाएंगी.’’

‘‘इतना डरती क्यों हो उस से? वह ऊपर वाले फ्लैट में जरूर रहते हैं, लेकिन साल 6 महीने में एकदो बार ही दुआ सलाम होती है, जाने न जाने से कोई फर्क नहीं पड़ता है,’’ सुरेश ने चाय की चुस्कियों के बीच कहा.

‘‘डरे मेरी जूती…शादी में जाने की तमन्ना सिर्फ इसलिए है कि वह घर में बातें बड़ीबड़ी करती है, जैसे कोई अरबपति की बीवी हो. हम सोसाइटी की औरतें तो उस की शानशौकत का जायजा लेने जा रही हैं. किटी पार्टी का हर सदस्य शादी की हर गतिविधि और बारीक से बारीक पहलू पर नजर रखेगा. इसलिए जाना जरूरी है, चाहे कितना ही आंधीतूफान आ जाए.’’

सुकन्या की इस बात को उन की बेटी रोहिणी ने काटा, ‘‘पापा, आप को मालूम नहीं है, जेम्स बांड 007 की पूरी टीम साडि़यां पहन कर जासूसी करने में लग गई है. इन के वार से कोई नहीं बच सकता है…’’

सुकन्या ने बीच में बात काटते हुए कहा, ‘‘तुम लोगों के खाने का क्या हिसाब रहेगा. मुझे कम से कम बेफिक्री तो हो.’’

‘‘क्या मम्मा, अब हम बच्चे नहीं हैं, भाई पिज्जा और बर्गर ले कर आएगा. हमारा डिनर का मीनू तो छोटा सा है, आप का तो लंबाचौड़ा होगा,’’ कह कर रोहिणी खिलखिला कर हंस पड़ी. फिर चौंक कर बोली, ‘‘यह क्या मां, यह साड़ी पहनोगी…नहींनहीं, शादी में पहनने की साड़ी मैं सिलेक्ट करती हूं,’’ कहतेकहते रोहिणी ने एक साड़ी निकाली और मां के ऊपर लपेट कर बोली, ‘‘पापा, इधर देख कर बताओ कि मां कैसी लग रही हैं.’’

‘‘एक बात तो माननी पड़ेगी कि बेटी मां से अधिक सयानी हो गई है, श्रीमतीजी आज गश खा कर गिर जाएंगी.’’

तभी रोहन पिज्जा और बर्गर ले कर आ गया, ‘‘अरे, आज तो कमाल हो गया. मां तो दुलहन लग रही हैं. पूरी बरात में अलग से नजर आएंगी.’’

बच्चों की बातें सुन कर सुकन्या गर्व से फूल गई और तैयार होने लगी. तैयार हो कर सुरेश और सुकन्या जैसे ही कार में बैठने के लिए सोसाइटी के कंपाउंड में आए, सुरेश हैरानी के साथ बोल पड़े, ‘‘लगता है कि आज पूरी सोसाइटी शादी में जा रही है, सारे चमकधमक रहे हैं. वर्मा, शर्मा, रस्तोगी, साहनी, भसीन, गुप्ता, अग्रवाल सभी अपनी कारें निकाल रहे हैं, आज तो सोसाइटी कारविहीन हो जाएगी.’’

टौनिक: पायल के अंदर क्यों थी हीन भावना

पायलबालकनी में खड़ी बारिश की बूंदों को निहार रही थी. मन ही मन खुद को कोस रही थी कि आज भी वह जयंत को ठीक से नाश्ता नही करा पाई. पायल बचपन से ही हर काम को परफैक्ट करना चाहती थी. अगर कोई काम उस से गलत हो जाता तो खुद को कोसना शुरू कर देती थी. पायल 42 वर्ष की सामान्य शक्ल सूरत की महिला थी. उसे अपनी बहुत सारी बातों से प्रौब्लम थी. उसे अपने रंग से ले कर बालों तक से प्रौब्लम थी.

आज पायल की सोसाइटी में तीज का फंक्शन था. सभी लेडीज बनठन कर गई थी. पायल ने भी अवसर के हिसाब से हरे रंग की शिफौन की साड़ी पहन रखी थी. मगर पायल खुद से संतुष्ट नहीं थी. उस ने देखा निधि 50 वर्ष की उम्र में भी 30 वर्ष की दिख रही हैं, वहीं पूजा की त्वचा एकदम कांच की तरह दमक रही है. चारू की आंखों के नीचे कोई काला घेरा नहीं है तो अंशु अपनी अदाओं से पूरी महफिल की जान बनी हुई हैं. उधर ऊर्जा अपनी जुल्फों को इधरउधर लहरा रही थी तो पायल अपने बालों पर शर्मिंदा हो रही थी.

कितने घने, मुलायम बाल थे उस के, मगर कुछ बच्चों के जन्म के बाद, कुछ मुंबई के पानी ने और रहीसही कसर हाइपोथायरायडिज्म ने पूरी कर दी थी. अपने झड़ू जैसे रूखे बालों को वह आइने में देखना ही नहीं चाहती थी. क्या कुसूर था उस का कि कुदरत ने सारी प्रौब्लम्स उस के ही नाम कर दी थीं.

तभी म्यूजिक आरंभ हो गया और सभी ब्यूटी स्टेज पर थिरकने लगी. पायल भी साड़ी संभालते हुए स्टेज पर थिरकने लगी, तभी पूजा उस के करीब आ कर बोली, ‘‘अरे पायल यह साड़ी पहन कर क्यों आई हो? कोई इंडोवैस्टर्न ड्रैस पहन कर आती तो तुम्हें नाचते हुए बिलकुल असुविधा नहीं होती.’’

पायल फीकी हंसी हंसते हुए बोली, ‘‘हां तुम इस क्रौपटौप और प्लाजो में बेहद स्मार्ट लग रही हो.’’

अचानक पायल की नजर सामने लगे आईने पर पड़ी. बिखरे बाल

और आंखों के नीचे काले घेरे, एकदम से पायल का मूड खराब हो गया.

नीचे आ कर उस ने जैसे ही कोल्डड्रिंक का गिलास उठाया कि तभी अंशु थिरकते हुए उस के करीब आई और बोली, ‘‘अरे पायल अगली बार साड़ी थोड़ी नीचे बांधना जैसे निधि ने बांधी हुई हैं, मगर थोड़ा सा पेट कम करो यार तुम अपना,’’ कह कर अंशु चली गई.

उस के बाद पायल वहां पर कुछ देर और बैठी रही, मगर उस का मन उड़ाउड़ा रहा.

घर आ कर सब से पहले उस ने अपने पति जयंत से पूछा, ‘‘कैसी लग रही हूं मैं?’’

जयंत उड़ती नजर उस पर डालते हुए बोला, ‘‘जैसी रोज लगती हो.’’

पायल बोली, ‘‘क्या तुम्हें लगता है मैं समय से पहले बूड़ी हो गई हूं?’’

जयंत चिढ़ते हुए बोला, ‘‘42 वर्ष की औरत बूढ़ी नहीं तो क्या जवान लगेगी?’’

‘‘अजीब हो तुम भी,’’ पायल रोतेरोते बोली और फिर उसी मनोस्थिति में उस ने खाना बनाया जो बेहद बेस्वाद था.

जयंत और बच्चों ने बड़ा बुरा मुंह बना कर खाना खाया. बेटी रिद्धिमा बोली, ‘‘निधि आंटी तो इतना अच्छा खाना बनाती है कि बस पूछो मत. एक आप हैं कि दाल भी ठीक से नहीं बना पाती हैं.’’

जयंत रूखे स्वर में बोला, ‘‘तुम्हारी मम्मी को रोने से ही फुरसत मिले तो ध्यान लगाए न खाने पर.’’

पायल बाथरूम में बंद हो गई और जोरजोर रोने लगी. जब कुछ मन हलका हुआ तो बाथरूम से बाहर निकली. जयंत पायल की लाललाल आंखें देख कर समझ गया कि आज वह फिर रोई है, मगर यह कोई नई बात नही है. जयंत पायल के करीब आ कर बोला, ‘‘आखिर कब तक पायल ये सब करती रहोगी? तुम जैसी हो, मुझे ठीक लगती हो.’’

पायल बोली, ‘‘बस ठीक ही लगती हूं न… जानती हूं औरों की तरह मैं खूबसूरत नही हूं और न ही स्मार्ट.’’

जयंत बिना कोई जवाब दिए अपने कमरे में चला गया.

पायल को बेहद घुटन हो रही थी. उसे लग रहा था कि वह खुल कर सांस नहीं ले पा रही है. उस ने चप्पलें डालीं और नीचे घूमने चली गई, घूमतेघूमते पायल बाहर निकल गई और सामने वाले पार्क में चली गई. हंसतेखिलखिलाते लोगों की भीड़ जमा थी पार्क में. कुछ दौड़ रहे थे, कुछ योगा कर रहे थे तो कुछ लोग घूम रहे थे. पायल ने खुद के कपड़े देखे, शायद ऐसे कपड़े पहन कर पार्क में आ गई थी बाकी सब लोग ट्रैक सूट या पैंट में थे.

पायल फिर से खुद को भलाबुरा कहने लगी. चलतेचलते पैरों में दर्द हो गया तो पायल बैठ गई. तभी एक 26-27 वर्ष का आकर्षक नौजवान आ कर पायल के बराबर में बैठ गया और बोला, ‘‘आप लगता है आज पहली बार घूमने आई हैं.’’

पायल को लगा कि उस ने अटपटे कपड़े पहन रखे हैं, इसलिए शायद यह लड़का ऐसे उस की खिल्ली उड़ा रहा है. फिर भी उस ने पूछा, ‘‘मेरे कपड़े देख कर पूछ रहे हो?’’

लड़का बोला, ‘‘अरे यह सूट तो आप पर एकदम फब रहा है. मैं तो यहां पर आने वाले हर खूबसूरत चेहरे की खबर रखता हूं. आप पहली बार दिखीं, इसलिए पूछ लिया.’’

पायल के होंठों पर बरबस मुसकान आ गई, ‘‘मेरे बारे में कह रहे हो?’’

लड़का बोला, ‘‘बाई दा वे मेरा नाम अकुल है, सामने वाले गुलमोहर गार्डन में रहता हूं्.’’

पायल बोली, ‘‘अरे मैं भी वहीं रहती हूं, मेरा नाम पायल है.’’

उस के बाद पायल वहां से उठ कर घूमने लगी. उस का मन फूल की तरह हलका हो उठा था. एक आकर्षक नौजवान ने आज उसे खूबसूरत बोला था. गुनगुनाते हुए वह घर पहुंची और सब के लिए मिल्क शेक बनाया.

जयंत हंसते हुए बोला, ‘‘ऐसे ही खुश रहा करो, बहुत अच्छी लगती हो.’’

अगले दिन पायल ने खुद ही जल्दीजल्दी डिनर बनाया और रात के डिनर के

बाद कदम खुदबखुद पार्क की ओर चल पड़े. अकुल अपने दोस्तों के साथ ऐक्सरसाइज कर रहा था. पायल ने भी घूमना शुरू कर दिया. तभी पीछे से अकुल की आवाज आई, ‘‘पायल एक मिनट रुको.’’

पायल को अकुल का पायल कहना थोड़ा अजीब, मगर अच्छा लगा.

अकुल पायल से बोला, ‘‘आप भी फिटनैस बैंड ले लीजिए, इस से आप को अपने गोल सैट करने आसान पड़ जाएंगे.’’

दोनों चलतेचलते बात कर रहे थे. देखते ही देखते 1 घंटा बीत गया. पायल को तब होश आया, जब उस के घर से बेटी का फोन आया, ‘‘मम्मी कितना घूमोगी? हम सब आप का वेट कर रहे हैं.’’

पायल और अकुल एकसाथ ही सोसाइटी

में वापस आ गए थे. अब यह रोज का नियम

हो गया था. पायल के आते ही अकुल अपने दोस्तों के गु्रप को बाय कह कर पायल के साथ घूमने लगता.

पायल और अकुल दोनों के बीच कुछ भी समान नहीं था इसलिए उन के पास ढेरों बातें होती थीं. अकुल बात करतेकरते पायल की कुछ ऐसी तारीफ कर देता कि पायल का अगला दिन बेहद अच्छा जाता.

पायल को जो तारीफ अपने पति से चाहिए होती थी वह उसे अब अकुल से मिल रही थी. अकुल पायल की जिंदगी में टौनिक का काम कर रहा था.

एक दिन अकुल पार्क नहीं आया, तो पायल बेहद

अनमनी सी रही. अगले दिन भी अकुल पार्क में नहीं आया तो पायल उस रात बिना घूमे ही घर लौट आई. घर आते ही पायल बिना किसी बात के अपने पति से उलझ पड़ी.

पायल रोज घूमने पार्क में जाती परंतु घूमने  से अधिक पायल की आंखें अकुल को ढूंढ़ती थीं. उस ने मन को समझ लिया था कि अब अकुल नहीं आएगा. दोनों ने ही एकदूसरे का नंबर भी नहीं लिया था. पायल और अकुल के बीच कोई गहरा रिश्ता न था, परंतु अकुल पायल के लिए टौनिक समान था. वह टौनिक जो उस की रुकीरुकी सी जिंदगी को चलाने में सहायक था.

पायल को फिर लगने लगा कि शायद उस से ही कुछ गलती हो गई होगी. कभी वह सोचती कि क्या पता अकुल उस से मजाक करता हो और वह बेवकूफ उसे सच मान बैठी. परंतु फिर भी रोज पायल न जाने क्यों पार्क जाती. उसे अब घूमने में मजा आने लगा था. उस ने अपने लिए ट्रैक सूट खरीद लिया था. अकुल को अब वह भूलने लगी थी.

एक दिन पायल घूम रही थी कि अचानक पीछे से आवाज आई, ‘‘हाय यंग लेडी.’’

पायल एकाएक मुड़ी तो देखा, अकुल खड़ा मुसकरा रहा था.

पायल रुखे स्वर में बोली, ‘‘कहां गायब हो गए थे.’’

अकुल बोला, ‘‘अपने होमटाउन चला

गया था.’’

पायल के मुंह से अचानक निकल गया, ‘‘पता है कितना मिस किया तुम्हें मैं ने.’’

अकुल शरारत से हंसता हुआ बोला, ‘‘वह क्यों भला? आखिर हम आप के हैं कौन?’’

पायल शरमा गई और बिना कुछ बोले वहां से चली गई. अब फिर से पायल की जिंदगी गुलजार हो गई थी.

एक दिन पायल का मूड बेहद खराब लग रहा था. अकुल बोला, ‘‘क्या हुआ पायल?’’

पायल रोनी सूरत बनाते हुए बोली, ‘‘पिछले

2 माह से मैं कितनी मेहनत कर रही हूं, मगर फिर भी मेरी स्किन, वेट पर कोई असर नहीं हो रहा है.’’

‘‘ठीक तो लग रही हैं आप, जैसे एक 40 वर्ष की महिला दिखती हैं?’’

पायल अकुल की तरफ देख कर मायूसी से बोली, ‘‘क्या मैं सच में 40 वर्ष की लगती हूं?’’

अकुल हैरान होते हुए बोला, ‘‘आप कितने वर्ष की दिखना चाहती हैं?’’

पायल बोली, ‘‘मगर तुम तो मुझे हमेशा यंग लेडी और ब्यूटीफुल और भी न जाने क्याक्या बोलते. सभी लड़के ऐसे ही होते हैं, पहले जयंत भी तुम्हारी तरह मेरी तारीफ करते थे और अब उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता.’’

अकुल हंसते हुए बोला, ‘‘आप को मेरी या जयंत की तारीफ की क्यों जरूरत है? अगर मैं कहूं आप 50 साल की लग रही हैं तो आप मान लेंगी और अगर मैं कहूं आप 20 वर्ष की लग रही हैं तो भी आप मान लेंगी?’’ आप की क्या अपनी कोई पहचान नहीं है या आप का अस्तित्व बस बाहरी खूबसूरती पर टिका हुआ है?’’

पायल कड़वे स्वर में बोली, ‘‘ये ज्ञान की बातें रहने दो, मगर जब दुनियाभर की कमियां तुम्हारे अंदर हों न तो तुम्हें मेरी बात समझ आएगी.’’

अकुल बोला, ‘‘आप गलत हैं पायल, आप कैसा दिखती हैं, यह इस बात

पर निर्भर करता है कि आप अंदर से कैसा महसूस करती हैं… ये बालों का रूखापन, थोड़ा सा वजन बढ़ना या चेहरे पर पिगमैंटेशन एक उम्र के साथ आम बात है… इन चीजों से खुद की पहचान मत बनाइए. सब से पहले खुद को प्यार करना सीखिए, अपने अंदर की औरत को दुलार करें, आप ने उस का बहुत तिरस्कार किया है… मेरी या जयंत की तारीफ की आप को जरूरत नहीं है. आप को जरूरत है खुद की तारीफ करने की… अगर कुछ कमी भी है तो उसे दिल से स्वीकार करें और उस पर काम करें और अगर कुछ न कर पाएं तो आगे बढ़ें… आप जैसी हैं अच्छी हैं, आप के पति या मेरी तारीफ के टौनिक की आप को जरूरत नहीं है…

‘‘कभी खुद की तारीफ खुद ही कीजिए, यकीन मानिए आप को किसी भी टौनिक की ताउम्र जरूरत नहीं पड़ेगी. खुद को प्यार करें, कोई गलती हो जाए तो खुद को माफ करें. जिंदगी बेहद खुशनुमा और प्यारी हो जाएगी… जिंदगी को खुल कर जीने के लिए अपने से बेहतर और कोई साथी नहीं होता है क्योंकि एक वही होता है जो बचपन से ले कर बुढ़ापे तक आप के साथ होता है. बाकी लोग तो आप की जीवन की रेलगाड़ी में आएंगे और जाएंगे, कुछ तारीफ करेंगे तो कुछ आलोचना. कब तक आप अपनी जिंदगी का रिमोट कंट्रोल दूसरों के हाथ में रखोगी… आज से नई शुरुआत करो और खुद से ही खुद का नया परिचय कराओ.’’

पायल हंसते हुए बोली, ‘‘ठीक है मेरे ज्ञानी बाबा… अब इस पायल को किसी और की तारीफों के टौनिक की जरूरत नहीं रहेगी, मगर तुम्हारी दोस्ती की अवश्य पड़ेगी.’’

अकुल अदा से सिर झकाते हुए बोला, ‘‘औलवेज ऐट योर सर्विस.’’

पप्पू अमेरिका से कब आएगा- भाग 3: क्यों उसके इंतजार में थी विभा

‘‘यह सब मैं नहीं पचा पाया. मैं अपने देश में, अपनों के बीच शांति से और सम्मानपूर्वक जीना चाहता था. मेरी पत्नी भी यही चाहती थी. इसलिए हम वापस आ गए. मेरी पढ़ाई और तजरबे के कारण यहां आते ही अच्छी नौकरी मिल गई.

‘‘मेरी समझ में नहीं आता कि हमारे देश में अमेरिका के प्रति इतना मोह क्यों है. हर कोई आंख बंद कर के अमेरिका

जाने को तैयार रहता है. यहां के लोग भोलीभाली लड़कियों को शादी के नाम पर वहां भेज कर अंधे कुएं में ढकेल देते हैं.’’

‘‘ठीक कहा तुम ने. मैं नहीं कहता कि सभी के साथ बुरा ही होता है पर जिस के साथ ऐसा होता है, उस की तो जिंदगी बरबाद हो जाती है न. आजकल हमारे देश में भी अच्छी नौकरियों या दूल्हों की कमी नहीं है,’’ नरेंद्र के जीजाजी बोले.

मनोहर, दीदी और जीजाजी को इतना भा गया कि वे उसे घर का ही सदस्य मानने लगे. वह भी नरेंद्र के साथसाथ शादी के कामों में इस तरह जुट गया जैसे शादी उसी के घर की हो.

शादी में अब केवल 2 दिन बाकी रह गए थे. घर मेहमान और सामान से भरा था. रात के 11 बज रहे थे. कुछ लोगों को छोड़ कर बाकी सब जिसे जहां जगह मिली, वहीं नींद में लुढ़के पडे़ थे. नरेंद्र भी बहुत थक गया था. थोड़ी देर आराम करने के लिए जगह ढूंढ़ रहा था. इतने में अर्चना उस के पास आई. उस के हाथ में एक लिफाफा था.

‘‘नरेंद्र, मैं कुछ ढूंढ़ रही थी तो मुझे दूल्हे की फोटो मिल गई. तुम इसे अपने पास रख लो. परसों लड़के वालों को लेने तुम्हें ही स्टेशन जाना होगा. तुम्हारे साथ मेरे देवरजी भी जाएंगे मगर उन्होंने भी लड़के वालों को नहीं देखा. इसलिए तुम्हें फोटो दे रही हूं. संभाल कर रखो. बरात को लिवा लाने में मदद मिलेगी.’’

अर्चना के हाथ से नरेंद्र ने फोटो ले ली. जैसे ही उस की नजर फोटो पर पड़ी उस के मन में फिर वही भावना जगी- कहीं देखा है इसे. पर कहां? दूर से भाईबहन को बतियाते देख विभा भी वहां आ गई.

‘‘सुनो, इस लिफाफे में दूल्हे की फोटो है. अपने पर्स में संभाल कर रख लो. परसों मुझे दे देना. बरात को लाने मुझे ही जाना है.’’

विभा ने लिफाफे में से फोटो निकाली, ‘‘अरे, यह तो महिंदर भाईसाहब का दामाद है.’’

नरेंद्र उछल पड़ा. उस की थकावट और नींद जाने कहां उड़ गई, ‘‘मगर यह बात तुम डंके की चोट पर कैसे कह रही हो? आखिर तुम ने भी तो उसे केवल एक बार शादी में ही देखा था.’’

‘‘आप मर्द लोग शादी में ताश खेलते हो, सुंदरसुंदर भाभियों पर लाइन मारते हो या राजनीति की चर्चाएं करते हों. शादी में दूल्हा या दुलहन बदल जाए तो भी तुम्हें पता नहीं चलता.’’

‘‘तो क्या तुम औरतों की तरह साजशृंगार कर के अदाएं बिखेरते चलें? खैर, छोड़ो असली बात तो बताओ.’’

‘‘शादी के अलबम दिखाने के लिए गेटटुगेदर के बहाने सिमरन भाभी ने सारी महिलाओं को बुलाया था. यह और बात है कि हमें झक मार कर 2 घंटे बैठ कर वीडियो भी देखना पड़ा. इतनी देर तक देखते रहने के बाद भला हम दूल्हे को कैसे भूल सकते हैं. मैं ही नहीं, सारी महिलाएं इसे पहचान लेंगी.’’

‘मगर अब करें क्या? यही तो सोचना है. शादी तो हमें हर हाल में रोकनी है’, नरेंद्र और विभा इसी चिंता के कारण रातभर सो नहीं पाए.

महिंदर भी नरेंद्र के अन्य मित्रों की तरह अपनी नौकरी पर निर्भर मध्यवर्ग का व्यक्ति था. बहुत सीधासादा और ईमानदार. उस ने अपनी जमापूंजी सब लगा कर अपनी लड़की की शादी इस लड़के से तय की थी कि लड़का सुंदर है, अच्छी नौकरी है. सब से बड़ी बात है लड़का अमेरिकावासी है. यह तो ‘बिन मांगे मोर’ था. उन लोगों ने सपनों में भी इस की कल्पना नहीं की थी. उन्होंने सोचा कि लड़की सुखी रहेगी. दूसरी बेटी के विवाह में वह हाथ भी बंटाएगी.

मगर यह आदमी शादी के बाद ऐसे गायब हुआ कि आज ही उस के बारे में पता चला जब उस की फोटो मिली.

महिंदर की बेटी लवली बेचारी आज भी इस की राह देख रही है. यहांवहां से तरहतरह की बातें सुन कर महिंदर को कुछकुछ अंदाजा हो गया है मगर घर में इस बात की चर्चा करने से डरता है. अब क्या किया जाए?

महिंदर की बात तो बाद में आती है. इस समय 2 दिन बाद होने वाली शादी को कैसे रोका जाए? वह कुछ कहे तो क्या दीदी और जीजाजी उस का विश्वास करेंगे? हमारे समाज में शादी टूटना बहुत बुरी बात है. नरेंद्र की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. वह अपनी भांजी की जिंदगी बरबाद होते नहीं देख सकता था.

पौ फटते ही नरेंद्र बिना किसी से कुछ कहेसुने विभा से फोटो ले कर निकल गया. 11 बजे तक वह महिंदर के घर में था. अब तक महिंदर के घर में सब को पता चल चुका था कि वे लोग ठगे गए थे. अब नरेंद्र की भांजी की घटना सुन कर उन का खून खौल उठा. उस के बाद की घटनाएं बड़ी तेजी से घटीं.

महिंदर को साथ ले कर नरेंद्र सारा दिन दौड़धूप करता रहा. शाम को महिंदर  को साथ ले कर टैक्सी से भोपाल के लिए निकल पड़ा. घर पहुंचतेपहुंचते रात के 11 बज गए. दीदी और जीजाजी नरेंद्र पर बहुत बिगड़े. पर नरेंद्र और महिंदरजी के मुख से सारी बात सुन कर उन के पांव तले की जमीन खिसक गई. रात आधी हो गई थी. घर मेहमानों से भरा था. क्या करें क्या न करें. वे सब अंदर सामान वाले कमरे में जागते रहे.

सुबह 10 बजे की गाड़ी से बरात आने वाली थी. पर सुबह होते ही जैसे कोहराम मच गया. अखबार में नाम और बड़ीबड़ी तसवीरों के साथ अमेरिकी दूल्हे की सारी कहानी छपी थी. शादी का जो सुमधुर कोलाहल था वह भयानक नीरवता में बदल गया जिस में मेहमानों की खुसुरफुसुर स्पष्ट रूप से सुनाई दे रही थी.

इस घटना को कोई 20-22 वर्ष गुजर गए हैं. अब विभा नहीं कहती ‘जाने पप्पू कब बड़ा होगा.’ क्योंकि इस लंबे अंतराल में उस के जीवन में बहुत से उतारचढ़ाव आए. जमापूंजी इकट््ठी करने के बाद भी पैसे कम पड़े तो मकान को गिरवी रख कर पप्पू यानी सुशांत को विदेश भेजा गया. वहां उस की पढ़ाई समाप्त हुई और अच्छी सी नौकरी भी लग गई. जाने से पहले पप्पू ने जो कहा था, वे शब्द आज भी विभा के कानों में गूंज रहे थे. उस ने नम आंखों से दोनों के चरण छूते हुए कहा था, ‘मां, बाबूजी, आप ने अपनी जिंदगीभर की जमापूंजी मुझ पर दांव लगा दी, मैं यह बात कभी नहीं भूलूंगा. मैं आप लोगों का सपना अवश्य पूरा करूंगा. खूब परिश्रम करूंगा और  पढ़ाई पूरी होते ही अच्छी नौकरी अवश्य मिल जाएगी. मैं अपना मकान छुड़वा लूंगा और हम सब मिल कर सुखचैन से रहेंगे.’’

सुशांत के जाने के बाद 3 वर्षों में ही नरेंद्र इतना बीमार पड़ा कि वह बिस्तर से उठ ही नहीं पाया. नई नौकरी का वास्ता दे कर सुशांत आ नहीं पाया. विभा कहां जाती. उस ने एक वृद्धाश्रम में पनाह ले ली. अब वह पेड़ के उस सूखे, पीले पत्ते की तरह है जो किसी भी क्षण पेड़ की टहनी से अलग हो कर धूल में मिल सकता है और अपना अस्तित्व खो सकता है. फिर भी उसे इंतजार है…

सूखे और झुर्रियों वाले चेहरे पर धंसी हुई निस्तेज आंखें कहीं दूर शून्य में फंसी हुई हैं. उसे इंतजार है अपने बेटे का. उस के सूखे होंठ बुदबुदा रहे हैं,‘जाने पप्पू कब आएगा…

पप्पू अमेरिका से कब आएगा- भाग 2: क्यों उसके इंतजार में थी विभा

‘‘खैर मानिए कि लड़की यहीं पर है. हमारे रिश्तेदारों में भी ऐसी ही घटना हो गई थी. रिश्तेदार एक छोटे से गांव के रहने वाले और रूढि़वादी हैं. उन की लड़की ज्यादा पढ़ीलिखी नहीं है. गांव से ही मिडिल पास है. अंगरेजी तो बिलकुल नहीं आती. जब उसे अमेरिका में रहने वाला लड़का ब्याह कर ले गया तो सारे रिश्तेदार अचंभित थे. जवान लड़कियां उस से ईर्ष्या करतीं. वह लड़की जब अमेरिका पहुंची तो उस ने देखा कि उस का पति और उस की अमेरिकन पत्नी सुबहसुबह नौकरी के लिए निकल जाते. उन्हें केवल एक पूर्णकालीन नौकरानी की जरूरत थी जो उन की, उन के घर की और उन के बच्चे की देखभाल कर सके. ऐसे में दहेज दे  कर भी अगर ऐसी कोई लड़की मिल रही थी तो लड़के की तो मुंहमांगी मुराद पूरी हो रही थी. ऐसी जिंदगी से तंग आ कर लड़की ने जब भारत वापस लौटना चाहा तो पहले तो किसी ने ध्यान न दिया, बाद में रोजरोज उस के कहने पर दोनों मिल कर उस की पिटाई करने लगे. न वहां उस की खोजखबर लेने वाला था न कोई उस की मदद करने वाला.’’

‘‘रेखाजी, आएदिन अखबारों में विज्ञापन छपते हैं, आप देखती ही होंगीं, ‘उच्च शिक्षा प्राप्त करने या नौकरी के लिए आस्ट्रेलिया, कनाडा या और कहीं जाने के लिए आप हम से मिलिए. हम आप के पासपोर्ट, वीजा आदि का इंतजाम करवा देंगे.’ बाद में पता चलता है कि वहां जा कर या तो कोई सड़कछाप काम करना पड़ता है या तरहतरह की ठोकरें खानी पड़ती हैं, नौकरी मिलना तो दूर की बात है, वापस आने के पैसे भी नहीं होते. कितने लोग गलत कामों में फंस जाते हैं,’’ लतिका ने कहा जो इन महिलाओं में ज्यादा समझदार थी.

‘‘ठीक कहा आप ने लतिकाजी, कई बार तो ये एजेंट लोग पैसे लेने के बाद यहीं के यहीं गायब हो जाते हैं कि विदेश जाने का सपना धरा का धरा रह जाता है,’’ एक अन्य ने जोड़ा.

विभा का सिर चकराने लगा. क्या ये सब बातें सच हैं या विदेश जाने वाले लोगों के प्रति जलन के मारे ऐसी बातें फैलाई जाती हैं.

‘‘विभाजी, आप यहां क्या कर रही हैं. सब लोग खाना शुरू भी कर चुके हैं. कहां खो गई हैं आप? चलिए, मैं ले चलती हूं,’’ मिसेज मोहन ने उन का हाथ थाम कर उठाते हुए कहा.

घर वापस आतेआते रात के 11 बज रहे थे. आते ही मां ने नरेंद्र से कहा, ‘‘बेटा, भोपाल से अर्चना का फोन आया था. उस की बेटी पिंकी की शादी तय हो गई है. अक्तूबर में शादी होगी. तारीख पक्की होते ही फिर बताएगी.’’

‘‘अच्छा मां, यह तो बड़ी अच्छी बात है. आज तो बहुत देर हो गई है. कल मैं दीदी से बात करता हूं,’’ नरेंद्र ने कहा.

घर में सब बहुत खुश थे खासकर नरेंद्र. उस की बहन अर्चना कई महीनों से अपनी बेटी के लिए एक अच्छे वर की तलाश में थी. अर्चना ने किसी से कहा तो नहीं था पर सभी लोग जानते थे कि वह हमेशा से विदेश में बसने वाले दामाद की तलाश में थी. पिंकी की पढ़ाई तो 2 साल पहले ही पूरी हो गई थी मगर दीदी की तलाश आज रंग लाई थी. उस ने जरूर अपनी पसंद का ही दामाद ढूंढ़ा होगा.

अगले दिन फोन से बात करने पर उस का अंदाजा सही निकला. यह जान कर सब खुश हुए. दीदी ने बताया कि लड़का अमेरिका के टैक्सास में रहता है.

दीदी चाहती थीं कि सब लोग शादी की तैयारियों में मदद करने के लिए कम से कम 10 दिन पहले भोपाल पहुंच जाएं. उन के अलावा दूसरा कौन था मदद करने वाला. सही भी था. अर्चना के बाद मांबाबूजी ने बहुत इंतजार करने के बाद सोच लिया था कि अब उन की कोई संतान नहीं होगी. उन्हें एक बेटा भी चाहिए था, निराशा तो हुई मगर क्या कर सकते थे. उन्होंने अपने मन को समझा लिया था. ऐसे में अर्चना के जन्म के 11 वर्ष के बाद नरेंद्र का जन्म हुआ था. नरेंद्र को अर्चना ने इतना प्यार दिया कि उस को मां और बाबूजी से ज्यादा अर्चना से लगाव था. वह अपनी दीदी की हर बात मानता था. वह उस से दीदी जैसे प्यार करता था, दोस्त जैसा अपनापन देता था और मां जैसा सम्मान करता था.

दफ्तर में 10 दिन छुट्टी ले कर नरेंद्र परिवार के साथ भोपाल जा पहुंचा. दीदी और जीजाजी बहुत खुश हुए. वे जानते थे कि अब नरेंद्र आ गया है तो वह सब संभाल लेगा. नरेंद्र भी तुरंत अपनी भांजी की शादी के कामों में जुट गया.

अगले दिन जब विभा और अर्चना बाजार गई हुई थीं तब अचानक नरेंद्र को खयाल आया कि उस ने तो अपनी भांजी के होने वाले दूल्हे को देखा ही न था. यह बात जब उस ने अपने जीजाजी से कही तो तुरंत उन्होंने कहा, ‘‘अरे, अभी तक अर्चना ने तुम्हें फोटो नहीं दिखाई? रुको, मैं ले कर आता हूं.’’

जब नरेंद्र ने लड़के की तसवीर देखी तो उसे लगा चेहरा तो बहुत जानापहचाना लग रहा है. लेकिन बहुत याद करने पर भी उसे याद नहीं आया कि उसे कहां देखा है? फिर वह शादी के कामों में उलझ कर इस बात को भूल गया.

शाम को नरेंद्र से मिलने मनोहर आया. वह उस का बचपन का दोस्त था. दोनों इंदौर में प्राथमिक कक्षाओं से ले कर महाविद्यालय तक साथसाथ पढ़े थे. फिर वह अमेरिका चला गया. उस के बाद जैसे दोनों का संबंधविच्छेद ही हो गया. उस की खबर न पा कर मित्रों की टोली यही सोचती रही कि वहां जा कर वह बहुत बड़ा आदमी बन गया होगा. पैसों के ढेर पर बैठे उसे इंदौर के ये साधारण मित्र याद नहीं आते होंगे. आज उस से मिलने के बाद नरेंद्र को असलियत का पता चला तो उस की आंखें नम हो गईं.

मनोहर अमेरिका में मिलने वाले वजीफे के भरोसे अमेरिका चला गया और एमएस में दाखिला ले लिया. उसे 6 महीनों तक वजीफा मिला भी. फिर वजीफा मिलना बंद हो गया. बाकी की पढ़ाई पूरी करने के लिए उसे तरहतरह के पापड़ बेलने पडे़. उसे कई ऐसे काम करने पडे़ जो यहां रहते हुए भारतवासी सोच भी नहीं सकते. उसी दौरान उसे कई भयंकर अनुभव हुए. वहां के प्रवासी भारतीयों ने उस की मदद न की होती तो शायद उसे पढ़ाई छोड़ कर वापस आने के लिए पैसे न होने के कारण भीख तक मांगनी पड़ती.

मनोहर ने बताया कि यहां भारतीय सोचते हैं कि अमेरिका जाने वाला हर आदमी जैसे सपनों की सैर करने गया है. वहां वह पैसों में खेल रहा है और वैभवपूर्ण जीवन जी रहा है. कुछ हद तक कुछ लोगों के विषय में यह सही हो सकता है लेकिन वहां ऐसे भी लोग हैं जो पगपग पर ठोकर खाते हैं और तनावपूर्ण जीवन जीते हैं.

मनोहर ने उसे बताया कि लुधियाना का रहने वाला एक लड़का भारत आ कर यहां गांव की सीधीसादी, अनपढ़ लड़की से शादी कर के अमेरिका ले गया. यहां सब खुश थे कि अनपढ़ गंवार हो कर भी लड़की को अमेरिका जाने का मौका मिल गया. वहां उस बेचारी का क्या हाल हुआ, क्या कोई जानता है?

‘‘क्यों, क्या हुआ?’’ नरेंद्र ने पूछा.

‘‘वहां उस लड़के की पहली पत्नी थी जो विदेशी थी. दोनों उस लड़की के सामने ही खुल कर रासलीलाएं करते थे. उन की भाषा अलग, रहनसहन अलग. इस के साथ किसी भी प्रकार का संबंध तो दूर खानेपीने या किसी भी जरूरत के बारे में न पूछते. कामवाली बाई से भी बदतर हालत थी. पति से पूछने पर गालीगलौज और मारपीट. वह वापस आना चाहती थी, वे लोग उस के लिए भी तैयार नहीं हुए. वे उसे किसी से मिलने नहीं देते थे, न कहीं जाने देते थे. एकदो बार उस लड़की ने घर से भागने की कोशिश की तो पकड़ कर वापस ले गए और इतनी पिटाई की कि लड़की ने बिस्तर पकड़ लिया. पता नहीं, बाद में उस ने कब और कैसे खुदकुशी कर ली. बेचारी की कहानी का और क्या अंत हो सकता था? यह सब मुझे वहां के एक मित्र ने बताया.’’

वह चुप हो गया. उस अनजान लड़की के लिए शायद दिल भर आया था. कुछ रुक कर फिर बोला, ‘‘कितनी भी मेहनत करो, आप को अमेरिका में दूसरे नंबर पर ही रहना होगा. स्वाभाविक है कि प्रथम स्थान तो वहां के नागरिकों का होगा. कुछ लोग परिस्थितियों से समझौता कर के, नित्य संघर्ष का सामना करते हुए वहां रह भी गए तो बच्चे जब बडे़ होने लगते हैं तो फिर से तनाव का सामना करना पड़ता है. बच्चे उस माहौल में पलतेबढ़ते हैं, इसलिए उन की संस्कृति ही सीखते हैं. उन की सोच ही अलग हो जाती है. मांबाप को यह सब ठीक लगे और सब की एक राय हो तो ठीक है वरना फिर से संघर्ष. 60 साल के बेटे को भी मांबाप यहां कुछ भी कह देते हैं, डांट देते हैं, अपमानित कर देते हैं पर बेटा कुछ नहीं कहता. पर वहां 12 साल के बच्चे को भी कुछ कहा जाए तो वह बंदूक निकाल कर गोली दाग देगा. ऐसी घटनाएं लोकविदित हैं. ऐसी कई समस्याएं हैं जिन की ओर से लोग जानबूझ कर आंख मूंद लेते हैं.

पप्पू अमेरिका से कब आएगा- भाग 1: क्यों उसके इंतजार में थी विभा

भारतीय सोचते हैं कि अमेरिका जाने वाला हर आदमी जैसे सपनों की सैर करने गया है, वहां वह पैसों में खेल रहा है और वैभवपूर्ण जीवन जी रहा है लेकिन वास्तव में वहां ऐसे लोग भी हैं जो पगपग पर ठोकर खाते हैं और तनावपूर्ण जीवन जीते हैं.

नरेंद्र के हाथ में फोटो देखते ही विभा ने कहा, ‘‘अरे, यह तो महिंदर भाईसाहब का दामाद है.’

‘‘सुनो, कल तुम्हें बताना भूल

गया था. आज शाम को 7 बजे मोहनजी के यहां पार्टी है. तुम तैयार रहना. हम साढे़ 6 बजे तक घर से निकल जाएंगे,’’ दफ्तर से नरेंद्र का फोन था.

‘‘क्यों, किस खुशी में पार्टी दे रहे हैं वे लोग?’’ विभा ने पूछा.

‘‘मोहनजी का बड़ा लड़का रघुवीर इस महीने के अंत तक अमेरिका चला जाएगा. तुम्हें याद होगा, हम उन की बेटी की शादी में भी गए थे. उस की शादी अमेरिका में बसे एक लड़के से हुई थी न. बस, अब उसी की मदद से रघु भी अमेरिका जा रहा है.’’

‘‘यह तो बड़ी अच्छी बात है. भाईबहन दोनों एक ही जगह रहें तो एकदूसरे का सहारा रहेगा.’’

‘‘हां और उन दोनों के अमेरिका जाने की खुशी में आज की पार्टी दी जा रही है. तुम देर न करना. और सुनो, मां और पप्पू का खाना बना लेना,’’ कहते ही नरेंद्र ने फोन रख दिया.

विभा सोच में पड़ गई, कहते हैं कि अभी भी अमेरिका में भारतीयों की भरमार है. केवल कंप्यूटर क्षेत्र में दोतिहाई लोग भारतीय हैं. डाक्टर, इंजीनियर, नर्स, व्यापारी पता नहीं कुल कितने होंगे. पता नहीं पप्पू के बडे़ होतेहोते अमेरिका की क्या हालत होगी. भारतीयों की तादाद अधिक हो जाने से कहीं आगे चल कर और भारतीयों को वहां आने से रोक न दिया जाए. जाने पप्पू कब बड़ा होगा? काश, अमेरिका वाले यहां के लोगों को और कम उम्र में यानी स्कूल में पढ़ते वक्त ही वहां आने दें. फिर तो उन का भविष्य ही सुधर जाएगा. वरना यहां रखा ही क्या है.

उसे याद आया कि उस की ममेरी बहन की लड़की 11वीं पास कर के ही अमेरिका चली गई थी. कल्चरल एक्सचैंज या जाने क्या? 11वीं के बाद उस का 1 साल बिगड़ा तो क्या हुआ? पढ़ाई तो बाद में होती रहेगी, सारी जिंदगी पड़ी है. अमेरिका जाने का मौका कहां बारबार आता है. जाने यह पप्पू भी कब बड़ा होगा?

विभा और नरेंद्र जब मोहनजी के यहां पहुंचे तब उन लोगों ने बड़ी गर्मजोशी से उन का स्वागत किया. वे प्रवेशद्वार पर ही बेटे रघुवीर के साथ खड़े गुलाब के फूलों से सब का स्वागत कर रहे थे. खुशी से उन के चेहरे दमक रहे थे. पार्टी एक शानदार होटल में रखी गई थी. लौन मेहमानों से भरा था. फौआरों और रंगबिरंगे बल्बों से सजा लौन बड़ा खुशनुमा वातावरण पैदा कर रहा था. विभा और नरेंद्र भी भीड़ में शामिल हो गए. मोहनजी ने अपने दफ्तर वालों, दोस्तों, पत्नी के मायके के लोगों, बेटे के दोस्तों को यानी कि बहुत सारे लोगों को इस पार्टी में आमंत्रित किया था.

‘‘हाय नरेंद्र, लुकिंग वैरी स्मार्ट. लगता है तुम्हारा सूट विदेशी है,’’ सामने भूपेंद्र और उन की पत्नी खड़े थे.

‘‘नहीं यार, भूपू. यह तो सौ प्रतिशत देशी है. हमारे सारे रिश्तेदार बड़े देशभक्त हैं जो यहीं पड़े हैं,’’ नरेंद्र ने हंस कर कहा.

भूपेंद्र ने तुरंत पैंतरा बदला, ‘‘सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तां हमारा, है कि नहीं भाभी? मुझे तो यहीं भाता है. अच्छा छोडि़ए, बहुत दिनों से आप हमारे यहां नहीं आए. भई क्या बात है, हम से कोई गलती हो गई है क्या?’’

‘‘आप ने मेरे मुंह की बात छीन ली. क्यों विभाजी, आप को वक्त नहीं मिल रहा है या भाईसाहब टीवी से चिपक जाते हैं?’’ भूपू की पत्नी अपनी ही बात पर ठहाका मार कर हंसते हुए बोली.

‘‘ऐसी कोई बात नहीं है. आएंगे हम लोग. आप लोग भी कभी समय निकाल कर आइए,’’ विभा ने कहा.

‘‘ओह, श्योरश्योर. अच्छा, फिर मिलते हैं. सब लोगों को एक बार हाय, हैलो कर लें,’’ कह कर पतिपत्नी दूसरी ओर बढ़ गए.

‘‘जरूरी था उन लोगों से कहना कि हम ही यहां ऐसे बेवकूफ  हैं जिन का कोई भी रिश्तेदार विदेश में नहीं है,’’ विभा ने होंठ भींचे ही पति को झिड़का.

‘‘हाय विभा, अभी आई है क्या?’’ किसी की बड़ी जोशीली चीख जैसी आवाज सुनाई दी. साथ ही किसी महिला ने उसे अपनी बांहों में भर कर गालों पर चूम लिया. वह घुटनों के ऊपर तक की चुस्त स्कर्ट और बिना बांहों की व लो नैक वाली टौप पहने हुए थी. विभा अचकचा गई. यह पहले तो कभी इतनी गर्मजोशी से नहीं मिली थी. मूड न होने पर तो एकदम सामने पड़ जाने के बावजूद ऐसे आंख फेर कर निकल जाती थी जैसे देखा ही न हो. विभा के मुंह से केवल ‘हाय सिट्टी’ निकला. वैसे तो मांबाप का दिया नाम सीता था मगर उसे सिट्टी कहलाना ही पसंद था. 2 मिनट बाद विभा ने देखा कि वह उसी गर्मजोशी से किसी दूसरी स्त्री से मिल रही थी. ऐसे लोग अपने हंगामे के जरिए भीड़ को आकर्षित करते हैं. कुछ देर बाद सब लोग वहां करीने से रखी हुई कुरसियों पर बैठ गए. पुरुष झुंड में खड़े हो कर बातें कर रहे थे. सभी के हाथों में अपनीअपनी पसंद के ड्रिंक थे. वरदीधारी लड़केलड़कियां सजधज कर महिलाओं को ठंडे पेय के गिलास सर्व कर रहे थे.

विभा सरला और मेनका के बीच में बैठी थी. थोड़ी देर रोजमर्रा की बातें हुईं, फिर सरला ने पूछा, ‘‘मेनका, सुना है आप की बेटी ने इंजीनियरिंग पूरी कर ली है. आगे का क्या सोचा है? शादीवादी या नौकरी?’’

‘‘अरे काहे की शादी और काहे की नौकरी? मेरी मन्नू ने टोफेल (टैस्ट औफ इंगलिश ऐज फौरेन लैंग्वेज) क्लियर कर लिया है. जीआईई की तैयारी कर रही है. फिलहाल उस का एक ही सपना है अमेरिका जाना,’’ मेनका ने बड़े गर्व से कहा.

‘‘आज के बच्चे बहुत स्मार्ट हैं. हमारे जैसे भोंदू नहीं हैं. वे जानते हैं कि उन के जीवन का मकसद क्या है और कैसे उसे हासिल किया जाए. मेरी बेटी टीना को ही ले लीजिए. उस ने कालेज में दाखिला लेते ही हमें बता दिया था कि उस के लिए अमेरिका का लड़का ही चुना जाए क्योंकि उस के सपनों की दुनिया अमेरिका है जहां वह पति के जरिए पहुंचना चाहती है,’’ सरला ने बीच में ही कहना शुरू कर दिया.

‘‘उस की ग्रेजुएशन पूरी हो गई?’’ विभा ने पूछ लिया.

‘‘ग्रेजुएशन क्या पोस्ट ग्रेजुएशन भी कर ली. लड़के के लिए पेपर में इश्तिहार दे दिया है. 2-3 मैरिज ब्यूरो में भी पैसे भर दिए हैं. साथ में दोस्तों और रिश्तेदारों को भी बता दिया है कि टीना के लिए अमेरिकी दूल्हा ही चाहिए.’’

विभा अपने ही विचारों में खोई कभी मेनका और कभी सरला की ओर देख रही थी और मन ही मन सोच रही थी, ‘जाने पप्पू कब बड़ा होगा.’

‘‘अरे विभाजी, सब लोग मौजमस्ती कर रहे हैं और आप बैठीबैठी क्या सोच रही हैं? यही न कि ‘एक दिन पप्पू बड़ा हो जाएगा तो मैं उसे अपनी नजरों से कदापि दूर नहीं भेजूंगी. पता नहीं, ये लोग अपनी औलाद को इतनी दूर भेज कर कैसे चैन से जी पाते हैं.’ ठीक कह रहा हूं न. मैं आप को अच्छी तरह जानता हूं,’’ ये मिस्टर दिवाकर थे.

‘आप खाक जानते हैं’, उस ने मन में सोचा पर कुछ न बोली. केवल हकला कर रह गई, ‘‘जी…जी…’’

उस ने सोचा कैसा उजड्ड आदमी है. लोग किस रफ्तार से दौडे़ जा रहे हैं और यह…? इस के विचार कितने दकियानूसी हैं. उस समय वह भूल गई कि इंसान चाहे कितनी भी तरक्की कर ले, उस की प्यार और अपनेपन की प्यास कभी नहीं मिटती. वह उठी और औरतों के दूसरे झुंड में जा मिली.

वहां एक औरत धीमी आवाज में कह रही थी, ‘‘आजकल तो लोगों पर एक पागलपन सा सवार है जिस के लिए वे कुछ भी करने को तैयार रहते हैं. हमारे पड़ोसी लालजी ने अपने बेटे को इंजीनियरिंग के बाद अमेरिका भेजा था. वे कोई बहुत धनी नहीं थे. मध्यवर्गीय ही कह लो. वहां जा कर उस की अच्छी सी नौकरी लग गई. वहां की जिंदगी उसे इतनी भा गई कि एक गोरी मेम से शादी कर के वहीं बस गया. मगर वह कायर था इसलिए शादी की बात घर में नहीं बताई. जब भी वह भारत आता उस के मांबाप उस से शादी के लिए कहते. इस तरह 5-6 साल गुजर गए. पिछली बार जब वह भारत आया तो मांबाप ने एक अच्छी सी लड़की ढूंढ़ ली. उस ने भी बिना एतराज के उस से शादी कर ली. बहुत जल्दी उसे अमेरिका ले जाने का वादा कर के वह लौट गया. 2 साल से वह लड़की यहीं पर है और अपने पति के बुलावे का इंतजार कर रही है. अभी हाल ही में लालजी को अमेरिका से आए किसी दोस्त ने बताया कि वहां उस लड़के की मृत्यु हो गई है. मृत्यु का कारण किसी को पता नहीं है. मांबाप तो रो ही रहे हैं, साथ में वह 20-21 वर्ष की लड़की भी रोतेरोते पागल सी हो गई है,’’ तभी दूसरी ने कहा.

ग्रहण: मां के एक फैसले का क्या था अंजाम

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धन्यवाद: सासूमां की तारीफ क्यों करने लगी रवि की पत्नी

सपनाने जब घर के अंदर कदम रखा तब शाम के 6 बज चुके थे. अपनी सास की भृकुटियां तनी देख कर वह भी उन से उलझने को मन ही मन फौरन तैयार हो गई.

‘‘तुम्हारा स्कूल को 2 बजे बंद हो जाता है. देर कैसे हो गई बहू?’’ उस की सास शीला ने माथे में बल डाल कर सवाल पूछ ही लिया.

‘‘मम्मी, मैं भाभी का हाल पूछने चली गई थी,’’ सपना ने भी रूखे से लहजे में जवाब दिया.

‘‘तुम मायके गई थी?’’

‘‘भाभी से मिलने और कहां जाऊंगी?’’

‘‘तुम्हें फोन कर के हमें बताना चाहिए था या नहीं?’’

‘‘भूल गई, मम्मी.’’

‘‘ये कोई भूलने वाली बात है? लापरवाही तुम्हारी और चिंता करें हम, यह तो ठीक बात नहीं है, बहू.’’

‘‘चिंता तो आप मेरी नहीं करती हैं, पर

मुझ से झगड़ने का कारण आज आप को जरूर मिल गया,’’ सपना ने अचानक ऊंची आवाज

कर ली, ‘‘यहां थकाहारा इंसान घर लौटे तो

पानी के गिलास के बजाय झिड़कियां और ताने दिनरात मिलते हैं. आप मेरे पीछे न पड़ी रहा

करो, मम्मी.’’

‘‘तुम घर के कायदेकानूनों को मान कर चलो, तो मुझे कुछ कहना ही न पड़े,’’ शीला ने भी अपनी आवाज में गुस्से के भाव और बढ़ा लिए. आप घर के कायदेकानूनों के नाम पर मुझे यूं ही तंग करती रहीं, तो यहां से अलग होने के अलावा हमारे सामने और कोई रास्ता नहीं बचेगा, मम्मी,’’ अपनी सास को यह धमकी दे कर सपना पैर पटकती अपने शयनकक्ष की तरफ चली गई.

‘‘अपनी इकलौती संतान को घर से अलग करने का सद्मा और दुख हमारा मन झेल नहीं पाएगा. इस बात का तुम गलत फायदा उठाती हो, बहू…’’ शीला देर तक ड्राइंगरूम में बोलती रही, पर सपना ने कोई प्रतिक्रिया जाहिर नहीं करी.

वे बोलबोल कर थक जातीं, इस से पहले ही उन की छोटी बहन मीना उन से मिलने आ पहुंची. शीला के अंदर फौरन नई ऊर्जा का संचार हुआ और वह अपनी बहू की बददिमागी और बदमिजाजी केउदाहरण उन्हें जोश के साथ सुनाने लगीं.

दोनों बहनों के बीच चल रहे वार्त्तालाप के हिस्से सपना के कानों तक भी पहुंच रहे थे. अपने शयनकक्ष से बाहर आ कर उस ने पहले 4 कप चाय बनाई. अपने ससुरजी को चाय उन के कमरे   में देने के बाद वे 3 कप ट्रे में सजा कर ड्राइंगरूम में आ गई.

मीना मौसी के पैर छूने के बाद वह जब उन्हें चाय का कप पकड़ा रही थी तब पैर कालीन में उलझ जाने के कारण वह झटका खा गई और थोड़ी सी चाय छलक कर मौसी के हाथ व साड़ी पर गिर गई.

‘‘हाय रे,’’ मौसी कराह उठीं.

अपनी बहन की दर्दभरी आवाज सुन कर शीला का पारा फिर से चढ़ गया,

‘‘बहू, क्या तुम कोई काम समझदारी और ढंग से नहीं कर सकती है? इतनी बड़ी हो कर तुम्हें यों बातबात पर डांट खाना अच्छा लगता है?’’ शीला ने मौका न चूकते हुए फिर से सपना को कड़वे, तीखे शब्द सुनाने शुरू कर दिए.

‘‘मम्मी, जरा सी चाय ही तो गिरी है और आप ने मुझे छोटी बच्ची की तरह डांटना शुरू कर  दिया. यह बात मुझे जरा भी पसंद नहीं है. चाय की सफाई में 1 मिनट भी नहीं लगेगा, पर मेरा दिमाग कई घंटों को खराब हो जाएगा,’’ सपना ने बराबर का तीखापन अपनी आवाज में पैदा किया.

‘‘तुम बहस करने में ऐक्सपर्ट और ढंग से काम करने में एकदम फिसड्डी हो.’’

‘‘और आप मुझे हर आएगए के सामने अपमानित करने का कोई मौका नहीं चूकतीं.’’

‘‘कितनी तेज जबान है तुम्हारी.’’

‘‘आप मुझे नाजायज दबाए जाएं और मैं चूं भी न करूं, यह कभी नहीं होगा, मम्मी,’’ कह सपना ने अपना कप उठाया और पैर पटकती अपने कमरें में घुस गई.

अपनी बहन की साड़ी की सफाई भी शीला को ही करनी पड़ी. सपना की बुराइयां करतेकरते 1 घंटा कब बीत गया, दोनों बहनों को पता ही नहीं चला.

मीना मौसी के जाने के 15 मिनट बाद शीला का बेटा रवि घर आया. तब उस के पिता भी ड्राइंगरूम में टीवी देख रहे थे.

शीला ने रवि के सोफे पर बैठते ही सपना की शिकायतें करनी शुरू कर दीं. उन की आवाज सपना तक पहुंची तो वह रसोई से निकल कर ड्राइंगरूम में आ धमकी.

अपनी सास को ज्यादा बुराई करने का मौका दिए बिना वह गुस्सैल स्वर में बीच में बोल पड़ी, ‘‘मम्मी, आप मुझ से इतनी ही दुखी हैं तो हमें घर से निकल जाने को क्यों नहीं कह देतीं?’’

‘‘यह बात बारबार उठाने के बजाय तुम खुद को सुधार क्यों नहीं लेती हो बहू?’’ शीला ने चिड़ कर उलटा सवाल पूछा.

‘‘आप के अलावा इस घर के बाकी के दोनों आदमी मुझे पसंद करते हैं… मम्मी न पापा को मुझ से कोई शिकायत है, न रवि को.’’

‘‘इन दोनों ने ही तुम्हें सिर पर चढ़ा रखा

है, लेकिन तुम्हारा असली रूप सिर्फ मैं ही पहचानती हूं.’’

‘‘जब दिल न मिलते हों, तो आंखें सामने वाले में सिर्फ कमियां और बुराइयां ही देख पाती हैं, मम्मी.’’

रवि ने उठते हुए उन दोनों से क्रोधित स्वर में कहा, ‘‘रातदिन जो तुम दोनों झिकझिक करती रहती हैं, उस ने मेरा दिमाग खराब कर दिया है. सपना, तुम जाओ यहां से.’’

रवि अपनी पत्नी का हाथ पकड़ कर उसे वहां से न ले गया होता, तो सासबहू की झड़प न जाने कितनी देर और चलती.

‘‘अब यह सारी रात मेरे बेटे के कान मेरे खिलाफ भरेगी. पता नहीं मुझे मेरे किन बुरे कर्मों की सजा ऐसी बदजबान और फूहड़ बहू पा कर मिल रही है,’’ अपने पति की सहानुभूति पाने के लिए शीला अपनी आंखों में आंसू भर लाई.

रात का खाना सासससुर और बहूबेटे ने अलगअलग खाया. दोनों औरतें एकदूसरे को गलत ठहराने का प्रयास अपनेअपने पतियों के सामने देर रात तक करती रहीं.

अगले दिन सुबह सासबहू के बीच तकरार फिर से शुरू हो गई. शीला ने ड्राइंगरूम की

सफाई करते हुए सपना के औफिस की कोई फाइल मेज पर से हटा कर अखबारों के बीच अनजाने में रख दी.

फाइल ढूंढ़ने में सपना को 15 मिनट लगे. वह पूरा समय अपनी सास को सुनाती रही, ‘‘आप पर भी रातदिन सफाई का भूत सवार रहता है. मेरी कोई चीज मत छेड़ा करो, ये बात मैं ने लाख बार तो आप को समझाई होगी, पर…’’

सपना बोलती रही और शीला उसे नाराजगी भरे अंदाज में घूरती जा रही थीं. अब फाइल मिल गई, तो सपना औफिस समय से पहुंचने के लिए हड़बड़ी मचाने लगी.

उस के पास अब अपना लंच बौक्स तैयार करने का समय नहीं था.

तब शीला ने उसे सुनाना शुरू कर दिया, ‘‘देर तक सोओगी, तो कभी तुम्हारा कोई काम समय पर नहीं होगा. हर दूसरे दिन मुझे रसोई में घुस कर अकेले सब का लंच तैयार करना पड़ता है. अपनी जिम्मेदारियां कब ढंग से निभाना सीखोगी तुम बहू?’’

‘‘अगले जन्म में,’’ ऐसा चिड़ा सा जवाब दे सपना बिना लंच बौक्स लिए औफिस के लिए निकल पड़ी.

वह औफिस डेढ़ घंटा देर से पहुंची. फौरन ही उस के बैड मास्टर अनिल साहब का बुलावा आ गया.

‘‘साहब गुस्से में हैं. जरा संभल कर पेश आना,’’ चपरासी रामप्रसाद की यह चेतावनी सुन कर सपना की हालत खस्ता हो गईर्.

अनिल साहब ने 2 मिनट तक उस की तरफ देखा ही नहीं और एक

फाइल का अध्ययन करते रहे. सपना के दिल की धड़कनें टैंशन के मारे लगातार तेज होती चली गईं.

‘‘तुम्हारा आए दिन औफिस लेट आना नहीं चलेगा, सपना,’’ अनिल साहब ने नाराजगी भरे अंदाज में कहा. तो मैं उन्हें देखने चली गई थी, ‘‘सपना ने पिछली रात घर देर से पहुंचने का कारण यहां भी दोहरा दिया.

‘‘मुझे वजह मत बताइए प्लीज. आप को अपनी भाभी को देखने जाना जरूरी था, तो दोपहर बाद जातीं. स्कूल के नियमों का पालन न करना गलत बात है, सपना.’’

‘‘सौरी, सर.’’

‘‘आप हर बार ‘सौरी’ कह कर नहीं छूट सकती हैं.’’ अनिल साहब भड़क उठे, ‘‘पिछले मंडे आप गायब ही हो गई थीं और फोन भी नहीं किया आप ने स्कूल में. देर से आना तो रोज की बात है आप के लिए. ऐसे काम नहीं चलेगा.’’

‘‘मैं आगे से सही समय पर आऊंगी सर.’’

‘‘आप को नौकरी करनी है तो टाइम से आइए, नहीं तो छोड़ दीजिए नौकरी. आप की लापरवाही से हम सब को परेशानी होती है.’’

‘‘आई एम सौरी, सर.’’

‘‘और जो स्टूडैंट रिपोर्ट आप को कल तक तैयार करनी थी वह कहां है?’’

‘‘उसे मैं आज जरूर बना दूंगी, सर.’’

‘‘सपना, क्या तुम कोई काम वक्त पर और सही ढंग से कर के नहीं दे सकती हो.’’

‘‘सर, काम का बोझ कभीकभी ज्यादा होता है, तो कुछ काम पैंडिग छोड़ना पड़ता है. मैं सारा काम कंप्लीट कर लूंगी आज सर.’’

‘‘क्या स्पोर्ट्स इंसैंटिव की फाइल मिल

गई है?’’

‘‘ अभी तक नहीं. वह मुझ तक आई होती, तो मेरी अलमारी में ही होती सर.’’

‘‘वह फाइल आप की पक्की सहेली रितु की क्लास की टेबल पर रखी मिली है, सपना. इस में कोई शक नहीं कि तुम ने ही उसे वहां छोड़ा और न जाने डांटे किसकिस को खानी पड़ी तुम्हारी इस लापरवाही के कारण.’’

‘‘आई एम सौरी…’’

‘‘मुझे तुम्हारी सौरी नहीं, अच्छा काम चाहिए, सपना. मैं तुम्हें इस रितु के साथ स्कूल टाइम में बेकार की गपशप करते अब बिलकुल न देखूं.’’

‘‘ओके सर.’’

‘‘आप को इस स्कूल से हर महीने अच्छी पगार मिलती है, इसलिए यह जरूरी है कि आप यहां दिल लगा कर मेहनत करें.’’

‘‘मैं करूंगी सर.’’

‘‘अच्छी नौकरी प्राइवेट स्कूलों में आसानी से नहीं मिलती है.’’

‘‘जी.’’

‘‘मेरा इशारा समझ रही हैं न, आप?’’

‘‘आगे मैं आप को शिकायत का मौका नहीं दूंगी, सर.’’

‘‘गुड, ये फाइले ले जाइए,’’ अनिल साहब ने अपनी मेज पर रखी फाइलों के छोटे से ढेर की तरफ इशारा किया.

हड़बड़ाई सपना ने उस को उठाया तो एक फाइल फिसल गई.

फाइल मेज पर रखे पानी के गिलास से टकराई और पानी मेज पर फैलने लगा.

‘‘आई एम सो सौरी सर… सो सौरी,’’ सपना ने गट्ठर मेज पर रखा और अपने रूमाल से ही पानी पोंछने के काम में बड़ी तत्परता से लग गई.

वह फाइलों का गट्ठर ठीक से नहीं रख पाई थी. उस का संतुलन बिगड़ा और सारी फाइलें गिर कर फर्श पर फैल गईं.

सपना को मारे घबराहट के ठंडा पसीना आ गया, ‘‘आई एम बेरी सौरी, सर…’’ इसी वाक्य को रोआंसी आवाज में बारबार दोहराती. वह मेज को ठीकठाक करने के काम में 2 मिनट तक जुटी रही.

‘‘यू मस्ट इंप्रूव सपना. मैं तुम्हारे काम और व्यवहार से बहुत नाखुश हूं,’’ अनिल साहब ने यह चेतावनी दे कर उसे बाहर भेज दिया.

आधा दिन सपना का मूड उदास रहा. स्कूल इंटरवल के बाद मन हलका करने को उसे अनिल साहब पर गुस्सा आने लगा. रितु के पास जाने की उस की हिम्मत नहीं हुई, सो वह उन्हें बड़बड़ाते हुए अपनी सीट पर बैठी खरीखोटी सुनाती रही.

स्कूल खत्म होने पर रवि उसे लेने आया. उसे पूरे 1 घंटे तक इंतजार करना पड़ा क्योंकि सपना को अपना काम निबटाने के लिए इतनी देर तक सीट पर बैठना पड़ा.

वह बड़ी खुंदक से भरी स्कूल से बाहर आई. गेट के पास रवि कार में बैठा उस का इंतजार कर रहा था.

सपना कार के पास पहुंची तो एक मरियल सा कुत्ता उसे दरवाजे के पास बैठा नजर आया. अचानक उस ने अपने ऊपर से नियंत्रण खोया और एक जोरदार किक उस कुत्ते को जमा दी.

कुत्ता कूंकूं करता उठा, तो उस की आवाज से उत्तेजित हो एक ताकतवर कुत्ता, जो अपने मालिक के साथ शाम की सैर पर निकला था, उस कुत्ते की तरफ लड़ने को झपटा.

उस कुत्ते के तेवर देख कर सपना की जान सूख गई. उस ने बिजली की फूरती से कार का दरवाजा खोला और तुरंत कार में बैठ गई.

उस के चेहरे पर हवाइयां उड़ती देख रवि ने हंस कर कहा, ‘‘वो चेन से बंधा था, डियर. तुम्हें काट नहीं सकता था वह इसलिए, बेकार डरो मत.’’

‘‘मुझे कुत्तों से बड़ा डर लगता है,’’ सपना ने मुसकराने का असफल सा प्रयास किया.

‘‘उस मरियल कुत्ते को फिर तुम ने जोरदार किक कैसे मार दी?’’

सपना ने फौरन कोई जवाब नहीं दिया. कुछ देर वह सोच में डूबी रही और फिर अचानक मंदमंद अंदाज में मुसकराने लगी.

यह पावर गेम है. घर में सास अपनी पावर दिखाना चाहती है तो बहू अपनी घर में

सास की जरा सी आलोचना सुनने पर उस ताकतवर कुत्ते की तरह गुर्राने वाले दफ्तर में बौस की झिड़की पर मरियल कुत्ते की तरह कूंकूं करने लगती है. अगर बौस से छुटकारा पाने के लिए नौकरी नहीं छोड़ी जा सकती तो सास की फटकार सुनने पर अलग होने की खोखली धमकी क्यों दी जाए. सपना को पावर गेम का एहसास हो गया था. उसे लगा उस के मन पर से टनों बोझ उतर गया है.

‘‘क्यों मुसकरा रही हो?’’ रवि ने फौरन उत्सुकता दर्शाई.

‘‘तुम नहीं समझोंगे. कार बाजार में से ले कर चलना,’’ सपना की मुसकान रहस्यमयी सी हो गई.

‘‘कुछ खरीदना है?’’

‘‘हां.’’

‘‘क्या?’’

‘‘एक फूलों का गुलदस्ता और गरमगरम जलेबियां.’’

‘‘गुलदस्ता किस के लिए लेना है?’’

‘‘मम्मी के लिए और जलेबियां भी. वही तो सब से ज्यादा शौक से खाती हैं.’’

‘‘तुम मम्मी को गुलदस्ता भेंट करोगी?’’ रवि हैरान हो उठा, ‘‘उन से तो तुम्हारी बिलकुल नहीं पटती है.’’

‘‘वैसी नोकझोंक तो हम सासबहू दोनों का  मनोरंजन होती है जनाब.’’

उन्होंने मुझे बराबर की लड़नेझगड़ने की छूट दे रखी है, मैं आज इसीलिए उन्हें धन्यवाद दूंगी फूलों का गुलदस्ता भेंट कर के और गरमगरम जलेबियां खिला कर, सपना की आवाज एकाएक बेहद कोमल और भावुक हो उठी.

रवि जबरदस्त उलझन का शिकार बना नजर आ रहा था. उसे सासबहू के बीच हुई रात व सुबह की तकरार का दृश्य पूरी तरह से याद था. कुछ ही घंटों में सपना के अंदर इतना बदलाव क्यों और कैसे आ गया है यह बात उसे कतई समझ में नहीं आ रही थी.

‘‘हम सासबहू के बीच जो गेम चलता है उसे समझने की कोशिश आप नहीं करें तो बेहतर है, जनाब,’’ सपना ने प्यार से रवि के गाल पर चिकोटी काटी और फिर प्रसन्न हो कर देर तक जोर से हंसती रही.

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