Serial Story: अब बहुत पीछे छूट गया (भाग-2)

कहती रही सुमन कि राजन झूठ बोल रहा है, बल्कि वही उस पर गंदी नजर रखता था और आज उस ने ही उस के साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की है. भरोसा करे उस पर, उस ने कुछ नहीं किया है. मगर मीता ने उस की एक भी बात पर भरोसा नहीं किया और रात को ही उसे अपने घर से निकल जाने का हुक्म सुना दिया. इतना तक कह दिया कि वह ‘आस्तीन की सांप’ निकली। गलती हो गई उसे अपने घर में लाकर. मगर मीता ने एक बार भी यह नहीं सोचा कि गलत उस का पति की भी हो सकता है.

रोतेरोते कहती रही सुमन की इतनी रात को वह कहां जाएगी। सुबह तक की मोहलत दे दे. लेकिन मीता ने धक्के मार कर उसे अपने घर से बाहर निकाल दिया.

इस कुप्प अंधेरी रात में कहां जाती वह? न तो उस के लिए पति के घर का दरवाजा खुला था और ना ही मां का. मीता ने भी उस पर अविश्वास कर उसे अपने घर से निकाल दिया, तो अब उस के पास एक ही रास्ता बचता था, मौत का. वैसे भी अब उस के पास जीने के लिए रखा ही क्या था. वह पागलों की तरह सड़क पर चली जा रही थी मरने के लिए, मगर उसे नहीं पता था कि कुछ गुंडे उस का पीछा कर रहे हैं। मौका मिलते ही सुनसान गली में उन तीनों ने सुमन को धरदबोचा और उसके साथ जबरदस्ती करने लगे. सुमन जोरजोर से चिल्लाने लगी. मगर इतनी रात गए सुनसान गली में कौन सुनता उस की आवाज? लेकिन तभी तेज रफ्तार से एक गाड़ी आ कर उस के सामने रुकी. गाड़ी की तेज रोशनी से उन गुंडों की आंखें चौंधिया गई. चिल्लाया,“कौन है बे? हिम्मत है तो सामने आ.“

“रात के अंधेरे में कुत्ते की तरह भौंकने वाले, हिम्मत है तो तू मेरे सामने आ कर भौंक,”एक गरजती आवाज सुन तीनों चौंक पड़े. लेकिन सामने एक महिला को देख उन की हंसी छूट पड़ी, क्योंकि उन्हें लगा एक अकेली औरत क्या बिगाड़ लेगी उन का?

पुरुषों की मानसिकता आज भी यही है कि औरत कमजोर, अबला नारी होती है, जिसे वह जब चाहे अपने पैरों के नीचे रौंद सकता है. लेकिन उस महिला ने उन गुंडों पर लातघूंसों की बारिश शुरू कर दी। ऐसा पस्त कर दिया तीनों को मारमार कर कि वे वहां से भागने के लायक भी नहीं बचे. तब तक पुलिस भी वहां पहुंच गई और तीनों गुंडों को घसीटते हुए गाड़ी में बैठाषकर ले गई.

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35-36 साल की उस महिला की स्फूर्ति और निडरता देख कर सुमन भी दंग रह गई थी।
“घर से भाग रही थी या किसी नदीनाले में कूद कर मरने जा रही थी?“ ऊपर से नीचे तक सुमन को घूरते हुए जब उस महिला ने पूछा, तो वह सहम उठी.

“इस का मतलब मैं सही हूं. चलो बैठो गाड़ी में,” उस ने इशारा किया. लेकिन सुमन अब भी वैसे ही अपनेआप में सिमटी खड़ी थी. उसे डर लग रहा था कि पता नहीं यह औरत कौन है और उसे कहां ले जाएगी. अब किसी पर उसे भरोसा नहीं रह गया था.

“डरो मत, बैठो गाड़ी में,” जब उस ने फिर कहा तो सुमन को गाड़ी में बैठना ही पड़ा, क्योंकि चारा भी क्या था उस के पास. कुछ ही देर में गाड़ी एक टावर के पास आ कर रुकी. गाड़ी की हौर्न सुनते ही दौड़ कर वाचमैन ने गेट खोला और अदब से उस महिला को नमस्ते किया. उस का घर 7वें फ्लोर पर था. घबराई सी सुमन यहां तक तो आ गई, पर उस का दिल जोरजोर से धड़क रहा था कि जाने आगे क्या होगा? कहीं उस के साथ फिर कुछ गलत हो गया तो? लेकिन घर में प्रवेश करते ही उसे एक अजीब सा एहसास हुआ. वह इधरउधर देखने लगी. घर बहुत बड़ा नहीं था, पर बहुत ही करीने से सजा हुआ था. दीवारों पर तसवीरें, खिड़कियोंदरवाजों पर लहराते परदे, एक कोने में बिस्तर और एक कोने में दीवान। टीवी के सामने फर्श पर गद्दा व तकिए. स्टूल पर लैंप. मेज के पास किताबों का रैक. वह कमरा ऐसा लग रहा था जैसे एक रंगीन पत्रिका.

“कौफी पीओगी?” गैस पर बरतन चढ़ाते हुए जब उस महिला ने पूछा तो सुमन अकचका कर उस की तरफ देखने लगी.

“जानती हो, चाहे कितनी भी देर हो जाए मुझे घर लौटने में, जब तक 1 कप कौफी बना कर न पी लूं, मजा नहीं आता. पीती तो हो न कौफी?”

“हां, पीती हूं,” सूखते गले से बोल कर सुमन धीरे से कुरसी पर बैठ गई. कुछ ही देर में वह 2 कप कौफी और सैंडविच बना कर ले आई. सुमन को कौफी पकड़ाते हुए वह अपनी भी कौफी उठा कर चुसकियां भरने लगी.

“मैं ने तुम्हारा नाम तो पूछा ही नहीं. क्या नाम है तुम्हारा?” उस महिला ने पूछा तो धीरे से सुमन ने कहा,”सुमन।”

“अच्छा नाम है, और मैं किरण हूं,” बोल कर वह हंसी.

“वैसे, सुमन का मतलब पता है तुम्हें? हंसमुख, हमेशा प्रसन्न रहने वाला. मगर तुम तो कितनी दुखी नजर आ रही हो? क्या कोई समस्या है जिंदगी में? मरने क्यों जा रही थी?”सुबह की चाय पीते हुए जब किरण ने पूछा तो सुमन की आंखों से आंसू बहने लगे. किरण ने उसे रोने से इसलिए नहीं रोका, क्योंकि रोने से इंसान का मन हलका हो जाता है. कुछ देर रो लेने के बाद जब उस का मन जरा हलका हुआ तो सुमन बताने लगी…

ग्रैजुएशन करने के बाद वह आगे और पढ़ना चाहती थी. उसका शुरू से एमबीए करने का मन था. उस की कई सहेलियों ने भी गैजुएशन के बाद एमबीए करने का सोच रखा था. इसलिए वह चाहती थी उन के साथ वह भी उसी कालेज में ऐडमिशन ले ले। मगर सुमन के मातापिता उस की शादी कर देना चाहते थे. कितना कहा सुमन ने कि उसे आगे और पढ़ने दें. पर उन की सोच कि ‘वक्त के साथ लड़कियों की शादी हो जाए वही अच्छा होता है’ के आगे सुमन की एक न चली. बेटी मांबाप के लिए एक बोझ से कम नहीं होती, जिसे वह जितनी जल्दी हो सके उतार कर अपना माथा हलका कर लेना चाहते हैं.

अच्छा घरवर मिलते ही सुमन के मातापिता ने उस की शादी सूरज से तय कर दी जो एक सरकारी विभाग में अच्छे पद पर कार्यरत था. शहर में उस ने अपना घर भी बना लिया था तो और क्या चाहिए था उन्हें. लगा बेटी सुख करेगी वहां जा कर. लेकिन उन की सोच गलत थी. अच्छी नौकरी और बड़ा घर होने से लोगों के विचार भी अच्छे और दिल बड़ा नहीं हो जाता.

ससुराल में कुछ दिन रहने के बाद ही सुमन को पता चल गया कि सूरज अच्छा आदमी नहीं है. शराबी तो वह है ही, कई औरतों के साथ भी उस के नाजायज संबंध हैं. शराब पीना, औरतों के साथ रातें गुजारना उस की आदतों में शामिल है.

उस के किस्से सिर्फ घर वालों को ही नहीं, बल्कि मोहल्लेभर में भी सब जानते थे.

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यह जानते हुए कि सूरज एक नंबर का ऐयाश इंसान है, उस की शादी करा दी गई.

एक दिन जब सुमन ने इस बात पर लड़ाई की और कहा कि जब बाहर के औरतों के साथ ही संबंध रखना था, तो फिर उस से शादी क्यों की? इस बात पर सूरज ने उसे बहुत मारा, यह कह कर कि वह मर्द है जो चाहे कर सकता है. गुस्से में सुमन ने अपनी सास से कहा भी कि जब उन्हें पता था कि उस का बेटा शराबी है, कई औरतों से उस के संबंध हैं,तो फिर क्यों उस ने उस की जिंदगी बरबाद की? क्यों नहीं बताया सब कुछ? क्यों अपने बेटे की गंदी आदतों को छिपाया?

आगे पढ़ें- सास के पास कोई जवाब नहीं था. बेटे…

Serial Story: अब बहुत पीछे छूट गया (भाग-3)

सास रोते हुए कहने लगीं कि उसे लगा था शादी के बाद उस का बेटा सही रास्ते पर आ जाएगा.

“एक मां हो कर जब आप अपने बेटे को सही राह पर नहीं ला पाईं, फिर मुझ से कैसे उम्मीद लगा लिया कि मैं उसे सही राह पर ला सकती हूं?”

सास के पास कोई जवाब नहीं था. बेटे के आदतों से त्रस्त सुमन की सास अपनी बेटी के पास रहने चली गईं. लेकिन सुमन कहां जाती?
रोजरोज शराब पीकर आधी रात को घर आना और कुछ पूछने पर उलटे सुमन को मारना, गंदीगंदी गालियां देना सूरज की आदत बन चुकी थी.

कभीकभी तो बिना बात के ही वह सुमन को मारने और गाली देने लगता था. सुमन को वह अपने पैरों की जूती के बराबर समझता था. सूरज यह सोच कर अपनी पत्नी पर जुल्म ढाता कि वह मर्द है और जो चाहे कर सकता है।

सुमन पर उस का अत्याचार रोजरोज बढ़ता ही चला जा रहा था. जब सुमन रोरो कर अपनाशदर्द मां को बताती, तो उलटे वह उसे ही समझाने लगतीं कि मर्द ऐसे ही होते हैं. औरतों को संभालना आना चाहिए.

एक रात एक महिला की बांहों में झूमतेहुए जब सूरज घर आया और कमरे में जा कर अंदर से दरवाजा लगा लिया, तो सुमन अंदर तक सुलग उठी. कैसे एक पत्नी यह बात बरदाश्त कर सकती थी कि उस का पति उस के ही सामने, उस के ही बैडरूम में किसी गैर महिला के साथ….

‘इतना कैसे गिर सकता है यह इंसान’ सुमन बड़बड़ाई और जोरजोर से दरवाजा पीटने लगी. गुस्से में सूरज बाहर आया और उस औरत के सामने ही मारतेमारते यह बोल कर सुमन को घर से बाहर निकाल दिया कि अब न तो उस की जिंदगी में और न ही इस घर में उस के लिए कोई जगह है. रोतीचीखती रही वह, दरवाजा पीटती रही, पर सूरज ने दरवाजा नहीं खोला. आसपड़ोस वाले सब देख रहे थे. मगर उन्हें क्या जरूरत थी किसी के घरेलू मामलों में दखल देने की. सो सब तमाशा देख अपनेअपने घर चले गए.

घंटों वह दरवाजे के बाहर सिसकती रही, पर सूरज ने दरवाजा नहीं खोला. फिर क्या करती वह?

फिर वह मायके आ गई लेकिन यहां भी उस का वास नहीं हुआ. मां बातबात पर समझाती रहतीं कि वह अपने घर लौट जाए, क्योंकि वे कब तक उस का बोझ उठा पाएंगे. भाई बढ़ते खर्चे को ले कर अलग सुनाता रहता था और भाभी तो उसे देखना तक नहीं चाहती थी. सोचती कब वह उस घर से निकल जाए.

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“आखिर हम औरतों की स्थिति इतनी बदतर क्यों है? हमें ही क्यों सब सहना पड़ता है?” सुमन बोली.

सुमन की दर्दभरी कहानी सुन कर किरण को बहुत दुख हुआ.
बोली,“लेकिन यह कौन सी नई बात है सुमन? मर्द तो शुरू से ही औरतों पर राज करते आए हैं, उसे अपना गुलाम समझते आए हैं. चाहे बाप हो, भाई हो या पति, सब ने औरतों को दबा कर रखना चाहा. जो दब कर रहीं वह सीता, सावित्री कहलाईं और जो नहीं दबीं वह बदचलन, बेहया बन गईं. लेकिन जरूरत आज इस बात पर भी अंडरलाइन करने की है कि खुद औरतें इस बात से इनकार करती हैं कि पति उस पर जुल्म करता है.

“पूछो तो यही जवाब मिलेगा कि यह उन के घर का मामला है। आप रहने दो. चाहे पति मारेपीटे, जान ही क्यों न ले ले, पर कई औरतों के लिए उस का पति देवता है, परमेश्वर है।”

किरण बोली,”आज औरतों की स्थिति बदतर इसलिए है, क्योंकि वह सहना जानती है, लड़ना नहीं. जिस दिन औरतें अपने हक के लिए लड़ना शुरू कर देंगी न, सच कहती हूं सुमन, सही मानों में उस दिन औरतों को आजादी मिलेगी, गुलामी और बेचारगी जैसे शब्दों से. मगर औरतें खुद ऐसा चाहती हैं क्या? मैं तो कहती हूं कि तुम्हें उसी दिन पति का घर छोड़ देना चाहिए था, जब उस की करतूतों का तुम्हें पता चला था. लेकिन तुम ने ऐसा नहीं किया क्योंकि तुम्हें लगा एक दिन वह सुधार जाएगा.”

“आपशकी एकएक बात सही है किरणजी, लेकिन दुख तो मुझे इस बात का है कि मेरे मांबाप ने भी मुझे नहीं समझा, वरना मुझे यों दरदर की ठोकरें न खानी पड़ती,” बोलतेबोलते सुमन सिसकने लगी.

“नहीं, रोना नहीं, रोते तो बुजदिल लोग हैं और तुम तो बहादुर लड़की हो. तुम कमजोर नहीं हो सुमन यह दिखा दो दुनिया वालों को और एक बात, तुम मुझे किरणजी नहीं, बल्कि दीदी कह कर बुलाओगी, तो मुझे ज्यादा अच्छा लगेगा,” उस के सिर पर हाथ फेरते हुए जब किरण बोली तो उसे पकड़ कर सुमन फूटफूट कर रोने लगी.

आज पहली बार कोई ऐसा मिला था, जो उस के दर्द को समझ रहा था, वरना तो सब ने उसे ही कटघरे में खड़ा किया यह बोल कर कि गलती उसी की है.

“बसबस… अब रोना बंद करो,” सुमन के आंसू पोंछते हुए किरण बोली, “तुम ने कहा था तुम एमबीए करना चाहती थीं?”

“जी।”

“तो आगे क्या करने का सोचा है, एमबीए या सुसाइड?” बोल कर किरण हंसी तो सुमन भी हंस पड़ी,“देखो, तो हंसते हुए तुम कितनी प्यारी लग रही हो,” प्यार से सुमन को निहारते हुए किरण बोली.

“दी, मैं एमबीए करना चाहती हूं, सपना है मेरा. लेकिन मैं कोई छोटीमोटी नौकरी भी करना चाहती हूं ताकि अपना खर्चा उठा सकूं,”सुमन बोली.

सुमन नहीं चाहती थी कि वह किरण पर बोझ बन कर रहे. और किरण भी नहीं चाहती कि उसे लगे वह उस पर कोई एहसान कर रही है, इसलिए उस के नौकरी करने वाली बात पर उस ने हामी भर दी.

किरण अनाथ बच्चों के लिए एक एनजीओ चलाती थी. इस के अलावा वह जरूरतमंदों की भी मदद करती रहती थी. किरण का बड़े-बड़े लोगों से पहचान था, तो उनषसे बोल कर सुमन की नौकरी भी लगवा दी और उस का एमबीए में एडमिशन भी हो गया.

जो सुमन पहले हरदम उदास रहा करती थी, अब काफी खुश रहने लगी थी. उस की नाइट शिफ्ट ड्यूटी होती थी। वह सुबह उठ कर किरण के साथ घर के कामों में हाथ बंटा कर कालेज निकल जाती, फिर देर रात ही घर वापस आती थी. जिंदगी अब अच्छी लगने लगी थी उसे.

एमबीए की पढ़ाई पूरी होते ही एक बड़ी कंपनी में सुमन की नौकरी लग गई. कल तक यही सुमन थी जिस का कोई ठिकाना नहीं था. दरदर भटकने को मजबूर थी वह. लेकिन आज उस के पास सब कुछ है. सुमन और किरण छोटा सा घर छोड़ कर एक बड़े घर में आ गई थी. अब सुमन बस से नहीं, बल्कि अपनी गाड़ी से औफिस जाने लगी थी.

एक दिन यह सोच कर सुमन के आंखों में आंसू आ गए कि अगर किरण न आई होती उस की जिंदगी में या तो वह आत्महत्या कर चुकी होती या रोरो कर अपनी जिंदगी काट रही होती कहीं पर.शलेकिन आज उस की जिंदगी उमंगों से भरी हुई है.

लेकिन एक बात उसे बड़ा दर्द देता था, वह यह कि हरदम हंसनेमुसकराते और लोगों की मदद करने वाली किरण कभीकभी उदास क्यों हो जाती है? कई बार पूछना चाहा सुमन ने, पर यह सोच कर रुक जाती कि शायद उसे ठीक न लगे.

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उस रात बैड पर दोनों समांतर लेटी हुई थीं. बगल में कौफी का 2 मग रखा हुआ था और दोनों यहांवहां की बातें कर रही थीं.

“दी, आज भी यह सब सोच कर हंसी आती है कि कैसे आप ने उन तीनों गुंडों को पानी पिलापिला कर मारा था. कैसे आपषने उन्हें पस्त कर दिया था. आप में इतनी हिम्मत आई कहां से? मैं तो 1 को भी ना मार सकूं और आप ने 3-3 को धूल चटा दिया। कैसे दी?” सुमन ने पूछा.

उस की बात पर पहले तो किरण हंसी, फिर बोली, “वह इसलिए क्योंकि मैंने कराटे का कोर्स किया हुआ है. ब्लैक बैल्ट हूं मैं समझी।”

“ओह, तभी…” अपनी आंख नचाते हुए सुमन बोली,“दी, एक बात और पूछूं आप से? बुरा तो नहीं मानोगी?”

उस की बात पर किरण ने मुसकराते हुए न में सिर हिलाया.

“दी,आज तक आप ने शादी क्यों नहीं की?” बहुत दिन तक अपने आप को रोके रखने के बाद आज सुमन ने पूछ ही लिया.

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उस की बात पर पहले तो किरण चुप रह गई. फिर मीठे भाव से मुसकराई और फिर गंभीर हो गई.

“बोलो न दी, आज तक क्यों आप अकेली हो. पढ़ीलिखी हो, इतनी सुंदर भी हो, फिर भी क्यों आप अकेली हो आज तक?”

“क्योंकि मेरे लायक कोई मिला ही नहीं… और जो मिला वह मेरा हो नहीं पाया,” बोल कर वे चुप हो गईं.

“हो नहीं पाया मतलब…” सुमन आज जान लेना चाहती थी कि आखिर क्यों अब तक किरण दी अकेली हैं?

“क्योंकि जिस से मैं ने प्यार किया, वह इंसान दगाबाज निकला. फायदा उठाया उस ने मेरा सिर्फ. आज भी सोचती हूं, तो लगता है कितनी स्टुपेड थी मैं जो उसे जान नहीं पाई. जानती हो सुमन, मैं ने उस के लिए कितना त्याग किया? जब उस की नौकरी छूट गई थी तब मैं ने उस के सारे खर्चे हंसतेहंसते उठाए. अपने परिवार के खिलाफ जा कर मैं उस के साथ लिवइन में रहने लगी और वह मेरी आंखों में धूल झोंक कर कईकई लड़कियों से संबंध रखता रहा.

“एक दिन जब मैं ने अपनी इन्हीं आंखों से उसे उस लड़की के साथ हमबिस्तर होते हुए देखा, तो सन्न रह गई थी. पूछा उस से कि हम दोनों तो एकदूसरे से प्यार करते थे न, शादी कर के अपनी छोटी सी गृहस्थी बसाने का सपना देखा था न, फिर उस ने मेरे साथ ऐसा क्यों किया? क्यों धोखा दिया उस ने मुझे? तो बेशर्मों की तरह हंसते हुए बोला कि उस का कई लड़कियों के साथ संबंध हैं तो क्या वह सब के साथ शादी कर ले।

“पागल थी मैं जो उस की बातों में आ कर अपने परिवार से रिश्ता खत्म कर लिया. गई थी मांपापा के पास अपनी गलतियों के लिए माफी मांगने, पर उन्होंने मेरे मुंह पर ही दरवाजा दे मारा यह बोलशकर कि मैं उन के लिए मर चुकी हूं. झूठ नहीं कहूंगी, फिर कई पुरुष आए मेरे जीवन में, पर सब ने मुझ से नहीं, बल्कि मेरे शरीर से प्यार किया. जैसे ही भूख मिटी मुझे छोड़ कर किसी और की बांहें तलाशने लग गए.

“अब तो सोच लिया है कि एकला ही चलूंगी अब।

“विकट मोड़ों वाली झाड़झंकर भरी जिंदगी में अटकाभटका आज मैं जीवन के ऐसे मुकाम पर पहुंच गई हूं जहां अब मुझे किसी के साथ की जरूरत नहीं है. खुश हूं मैं उन बच्चों के साथ जो इस दुनिया में अनाथ हैं.”

आगे पढें- किरण की बातें सुन सुमन….

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Serial Story: अब बहुत पीछे छूट गया (भाग-4)

किरण की बातें सुन सुमन की आंखें भर आईं. बोली,“हर व्यक्ति के साथ कितना कुछ गोपनीय होता है. सतह के ऊपर किसी से मिलते हुए, उस के बारे में बहुत कुछ जानते हुए भी हम उसशके अंतर्मन के गहन कोने से कितने अनजान रहते हैं न दी और हमें इस का भान भी नहीं होता,” एक उदास मुस्कान के साथ सुमन बोली.

“हूं…” एक गहरी सांस छोड़ते हुए किरण बोली, “सही कह रही हो तुम. अच्छा छोड़ो अब यह सब बातें. यह बताओ वह लड़का…अरे वही जो औफिस में तुम्हारे साथ काम करता है, क्या नाम है उस का… हां, सत्यम… कैसा लगता है तुम्हें?” सुमन की आंखों में झांकते हुए किरण ने पूछा तो शरमा कर सुमन ने अपनी नजरें झुका ली.

“न न… ऐसे शरमाने से थोड़े ही चलेगा, बताना पड़ेगा बहन कि चक्कर क्या चल रहा है तुम दोनों के बीच?”

“दी आप भी न, ऐसी कोई बात नहीं है सच में,”नजरें झुकाए सुमन मुसकराई.

“अच्छा, मुझ से झूठ बोलोगी? मैं उड़ती चिड़िया के पंख गिन लेती हूं तो तुम क्या हो? अरे भई मैं ने भी प्यार किया है, तो क्या समझ नहीं सकती तुम्हारी आंखों की भाषा?”

“प्यारव्यार कुछ नहीं, बस दोस्ती है हमारे बीच. एकदूसरे का साथ अच्छा लगता है हमें और कुछ नहीं दी,” सुमन बोली.

“और कुछ नहीं दी… मुंह बनाते हुए किरण बोलीं,“अरे पागल इसे ही तो प्यार कहते हैं. एकदूसरे का साथ अच्छा लगना, एकदूसरे के खुशी में खुश होना, एक दिन भी न मिलने पर बेचैन हो जाना, यही तो प्यार है पगली।”

सुमन के गालों पर शर्म की लाली देख किरण को एक शरारत सूझी,“वैसे, सुना है वह बंदा शादीशुदा है और उसशका एक बेटा भी है?”

“क्या…” सुमन भयंकर तरीके से चौंकी, “पर आप को कैसे पता यह सब?” उसे लगा शादीशुदा होते हुए भी कहीं वह लड़का उसे अपने जाल में तो नहीं फंसा रहा है?

“अरे, कल तुम ही तो नींद में बड़बड़ा रही थी यह सब बातें बोल कर,” किरण ठठा कर हंस पड़ी, “मज़ाक कर रही हूं।”

“ओह दी, आप ने तो मेरी जान ही ले ली,” अपने दिल पर हाथ रख सुमन बोली.

“अरे वाह, अभी तो कह रही थी कोई प्यारव्यार नहीं है तुम दोनों के बीच, तो फिर यह क्या है?”

किरण की बात पर वह लजा गई.

“वैसे, एक रोज उसे खाने पर बुलाओ. देखें तो बंदा है कैसा? मेरी बहन के लायक है भी या नहीं,” सुमन के गालों पर प्यार की थपकी देते हुए किरण बोली.

किरण को सुमन के लिए सत्यम एकदम सही लड़का लगा. ‘हां, दोनों की उम्र में अंतर जरूर है, लेकिन प्यार में सब जायज है और आजकल के लड़के तो अपनी उम्र से बड़ी लड़कियों को पसंद करने लगे हैं’ किरण ने सोचा.

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सत्यम को पूरी और आलू की भाजी बहुत पसंद है इसलिए आज उस के ही पसंद का खाना बन रहा था. सुमन ने पूरी बेल कर किरण को दी, तो उसे कङाही में छोड़ते हुए किरण बोली, “यह अच्छा है सुमन जो तुम्हें सत्यम जैसा जीवनसाथी मिला. देखा मैं ने उस की आँखों में तुम्हारे लिए प्यार. लेकिन क्या सत्यम के मातापिता भी तैयार हैं तुम दोनों के रिश्ते के लिए?”

“सत्यम के पापा नहीं हैं, मां हैं और एक बड़ी बहन है, जिन की शादी हो चुकी है. मिल चुकी हूं मैं उन सब से. कोई दिक्कत नहीं है उन्हें हमारे रिश्ते से,” पूरी बेल कर किरण के हाथों में पकड़ाते हुए सुमन बोली.

“फिर तो ठीक है, कोई समस्या नहीं है. लेकिन एक समस्या है. कहीं सूरज ने तुम्हें तलाक देने से मना कर दिया, तो क्या करोगी फिर?” सुमन की तरफ देख कर किरण बोली.

मगर उस दिन सत्यम के साथ सुमन को देख कर सूरज ने कैसे रिएक्ट किया था, यह नहीं बताई थी दी को।

गुस्से से उबलते हुए कहने लगा कि उसे क्या लगता है. वह उसे तलाक दे देगा? ताकि वह इस सत्यम से शादी कर सके. कभी नहीं, कभी वह उसे तलाक नहीं देगा.

उस पर सुमन बोली थी,“जैसा तुम ठीक समझो. लेकिन यह भी जान लो,:तुम ने मुझ पर जितने भी जुल्म किए हैं न सूरज, उस का एकएक सुबूत है मेरे पास और वह आसपड़ोस के लोग जिन्होंने रोज मुझे तुम्हारे हाथों मारगालियां खाते देखा है, क्या वे गवाही नहीं देंगे तुम्हारे खिलाफ? शादीशुदा होने के बाद भी तुम्हारे कई औरतों से संबंध हैं, वह भी बताऊंगी मैं पुलिस को. फिर तो तुम्हें जेल जाने से कोई रोक नहीं सकता. नौकरी तो जाएगी ही समझ लो और तलाक तो मुझे वैसे भी मिल जाएगा. तो सोच लो, फायदा किस का ज्यादा है, मेरा या तुम्हारा? और जब हमारे बीच अब कुछ बचा ही नहीं, तो फिर नाम के रिश्ते को क्यों ढोना?” बोल कर सुमन लौट आई थी और वह देखता रह गया था.

शायद उसे भी सुमन की बात समझ में आ गई थी कि इस में ही उस की भलाई थी.

“देगा वह मुझे तलाक, आप चिंता मत करो दी, क्योंकि उसे भी मुझ से छुटकारा चाहिए,” सलाद काटते हुए सुमन बोली.

खानापीना खत्म होने के बाद किरण ने ही कहा वह सत्यम को उस के घर तक छोड़ आए. मन तो सुमन का भी था जाने का, पर बोलने में उसे शर्म आ रही थी. जब किरण ने कहा तो वह झटपट तैयार हो गई जाने के लिए.

मौसम आज बहुत सुहाना था इसलिए दोनों घूमतेघूमते एक पार्क में बेंच पर जा कर बैठ गए और अपने भविष्य के सपने बुनने लगे.

“कैसा लगा मैं तुम्हारी दीदी को? पसंद आया या नहीं?” सत्यम ने पूछा.

“क्यों पूछ रहे हो ?” सुमन बोली.
“मतलब, उन्हें मैं पसंद आया या नहीं?” सत्यम बोला.

“तो क्या? शादी मुझे करनी है तुम से, और तुम मुझे बहुत पसंद हो,” जब अपनी आंखें बंद कर सुमन बोली, तब एकटक से सत्यम उसे निहारने लगा.

अचानक से उसे सुमन पर बहुत प्यार आने लगा. सुरक्षित एकांत जगह देख कर एकायक सत्यम मुड़ा और सुमन को अपने आलिंगन में भर कर उस के अधरों को चूम लिया. गहरी मुसकान के साथ सुमन भी उसे प्यार से देखने लगी. पुरुष के साथ उस का यह पहला भरपूर आलिंगन था, इसलिए सुमन की रीढ़ में हलकी सी झुरझुरी पैदा हो गई. सूरज ने कभी उसे इस तरह से बांहों में भर कर प्यार नहीं किया था. उसे तो सिर्फ सुमन के शरीर से प्यार था, जिसे वह जबतब रौंदता रहता था.

जब सत्यम ने सुमन के होंठों पर दबाव बढ़ाया, तो यौवन वेग के अनेक लहरें अचानक देह में गहराने लगीं.

सत्यम ने कहा कि आज रात वह उसशके घर ही रुक जाए. उसकी मां एक रिश्तेदार की शादी में गई हुई हैं, तो कोई समस्या नहीं है.

“हां, लेकिन दी को क्या कहूंगी?”

सुमन बोली. मन तो उस का भी तड़प रहा था अपने शरीर के ताप को बुझाने के लिए.

“ठीक है, मैं कोई बहाना बना देती हूं,” बोल कर सुमन मुसकराई.

आज उन के दरमियान कोई नहीं था सिवाय खामोशी के. चुंबन के दौरान सुमन ने महसूस किया कि उस की कमीज के बटन खोले जा रहे हैं. अब दृढ़ आलिंगन में सुमन की नग्न पीठ पर सत्यम के चपल हाथ का स्पर्श था. जैसेजैसे सत्यम का हाथ फिसलता जा रहा था, सुमन रोमांचित होती जा रही थी. सत्यम के स्पर्श और चुंबनों ने सुमन के पूरे शरीर में थरथराहट भर दी. सुमन ने अपने भीतर ऐसी तप्त नमी कभी महसूस नहीं की थी. जब सत्यम ने उसे अपने आगोश में भरा, तो सुमन की सांस रुक गई और आंखें बंद हो गईं.

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समागम के पहले सुमन जितनी मुखर थी, बाद में उतनी ही मौन हो गई. आज जीवन में पहली बार सुमन ने खुद को परिपूर्ण पाया था. अपनत्व और सुरक्षा की ऐसी अनुभूति पहले कभी नहीं हुई थी उसे. उसे लग रहा था अपने सत्यम के साथ वह दुर्गम पर्वत के शिखर पर पहुंच गई हो, जहां सिर्फ मौन, शांति और सुकून था.

बहुत ऊंचाई से उसे बाहरी संसार का शोर और अंधड़ याद आया, जो अब बहुत पीछे छूट गया था. वह अब अपने सत्यम की मजबूत बांहों में सुरक्षित थी.

अपना सा कोई: क्या बीमारी थी अंकित को?

Serial Story: अपना सा कोई (भाग-3)

नीचे के फ्लोर पर ही उन्हें कमरा दिलवाया और दरवाजा खोलती हुई बोली,”आ जाओ साहब. आज की रात यही आशियाना है तुम्हारा.”

थैंक्स कह कर अंकित ने दरवाजा बंद करना चाहा तो वह दरवाजे के बीच में आ गई.

“इतनी जल्दी पीछा छुड़ाना चाहते हो हम से मेरी जान?” लड़की की आंखों में कुटिलता और वासना की लपटें जल उठीं.

वह जबरन अंकित से सटती हुई बोली,”दिल चीज क्या है आप हमारी जान लीजिए…. हुजूर जो चाहे ले लो यह कनीज अब तुम्हारी है.”

“यह क्या कह रही हो?” घबड़ाता हुआ अंकित बोला.

मयंक भी अचरज से उस लड़की की तरफ देख रहा था. लड़की अब बेशर्मी पर उतर आई थी.

बिस्तर पर बैठती हुई बोली,” तुम्हारी जिंदगी की यह रात रंगीन कर दूंगी. तुम बस इशारा करो.”

अब तक अंकित और मयंक अच्छी तरह समझ गए थे कि यह किस तरह की लड़की है और वे इस होटल में आ कर बुरी तरह फंस गए हैं. मयंक बाथरूम की तरफ चला गया और इधर लड़की अंकित पर डोरे डालती रही. अंकित घबरा कर पीछे हट रहा था और लड़की उस के करीब आने का प्रयास करती रही.

अंकित तैयार नहीं हुआ तो वह अपनी अदाएं बिखेरती हुई बोली,”किस बात से डर रहे हो हुजूर? इस उम्र में जवां, खूबसूरत शरीर की जरूरत नहीं या जेब ढीली करना नहीं चाहते हो? चलो ज्यादा नहीं केवल ₹1 लाख दे देना. उतनी रकम तो होगी ही न. भारत दर्शन पर निकले हो.”

अंकित ने उसे परे करते हुए कहा,”नहीं बहनजी हमारे पास रुपए नहीं हैं.”

“ओए लड़के, बहन किस को बोला? मैं बहन नहीं तेरी. चल ₹1 लाख नहीं है तो अपनी यह घड़ी, अपनी यह सोने की चेन और अंगूठी दे देना. चल नखरे मत कर. शुरू हो जा. जी ले अपनी जिंदगी मेरे साथ आज की रात.”

अंकित सिकुड़ कर बैठता हुआ बोला,” सुनो, आप गगलतफहमी में हो. मेरा दोस्त बीमार है. इलाज के लिए आया हूं मैं.”

“देख चिकने, बहाने मत बना. तू ऐसे तैयार नहीं होगा तो यह शालू तुझे लूट लेगी,” कहते हुए उस लड़की यानी शालू ने बंदूक निकाल ली.

तभी मयंक सामने आ गया और बोला,”हम तो कब के लुट गए हैं शालू, बस तुम्हारी नजरों में अपना चेहरा ही ढूंढ़ रहे हैं. ”

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मयंक ने शालू के करीब आ कर कहा तो अंकित आंखें फाड़ कर उस की तरफ देखने लगा.

“देख शालू, मेरी जिंदगी के बस आखिरी 2-4 महीने ही बचे हैं. मैं अपनी जिंदगी के बचे हुए इन थोड़े से दिनों में जीवन की सारी खुशियां पा लेना चाहता हूं. मैं 35 साल का हूं पर तू यकीन नहीं करेगी, आज तक मेरी न कोई गर्लफ्रैंड है न बीवी. अतृप्त ही रह जाता अगर तू न मिलती. जल जाना चाहता हूं आज. आ जला दे मुझे…”

शालू शराबी निगाहों से उस की तरफ देखती हुई बोली,”क्या सचमुच तू मुझे अब पाना चाहता है?”

“हां पर एक धंधेवाली की तरह नहीं, एक प्रेमिका की तरह मेरी बांहों में समा जा. मरने से पहले एक बार अपने प्यार से तृप्त कर दे मुझे,” मयंक ने शालू को अपनी तरफ खींचा और आगोश में भर कर बाथरूम की तरफ ले गया.

बाथरूम में शौवर के नीचे खड़ा करता हुए बोला,”आज मैं भीग जाना चाहता हूं तुम्हारे साथ,” कहते हुए उस ने शौवर चला दिया और शालू पूरी तरह भीग गई. मयंक ने अचानक अपने होंठ उस के भीगे होंठों पर रख दिए. शालू की सांसें तेज हो गई थीं. वह पूरी तरह मयंक की गिरफ्त में थी.

मयंक ने उसी के दुपट्टे से उस की आंखें बांधते हुए कहा,” बस अब देखो मत. महसूस करो मुझे. मैं तुम्हारी रूह में उतर जाना चाहता हूं. ”

कहते हुए मयंक ने उस की बांहें थामी और उसे पीछे की तरफ करता हुआ खुद बाथरूम से बाहर आ गया और जल्दी से दरवाजा बंद कर दिया. शालू को बात समझ में आई तो वह दरवाजा पीटने लगी. तब तक मयंक और अंकित तेजी से होटल से बाहर निकल आए. जल्दी से कार स्टार्ट की और रफूचक्कर हो गए. वहां से काफी दूर आने के बाद उन की जान में जान आई.

अंकित हंसता हुआ बोला,”यार तू इतना रोमांटिक है, यह तो मुझे पता ही नहीं था.”

“और तू इतना शरमीला है यह भी कहां पता था मुझे,” मयंक ने कहा तो दोनों दोस्त ठहाके लगा कर हंसने लगे. काफी आगे जा कर उन्हें एक सलीके का होटल मिला तो दोनों वहीं ठहर गए.

आगे भी पूरे सफर में तबीयत खराब होने के बावजूद मयंक अपने मन की करता रहा. वह जिंदगी की हर खुशी अपने दामन में भर लेना चाहता था. कभी पहाड़ों पर चढ़ने की जिद करता तो कभी सागर में गोते लगाना चाहता. कभी हैलीकोप्टर में बैठ कर दुनिया देखने की डिमांड करता तो कभी स्ट्रीट फूड्स खाने को मचल उठता. अंकित उसे ऐसे कामों के लिए मना करता रह जाता और अमन अपने मन की कर गुजरता.

इसी दौरान एक दिन अचानक उस की तबीयत काफी खराब हो गई. उस समय वे शिमला में थे. अंकित जल्दी से उसे पास के एक अस्पताल में ले कर भागा मगर उस अस्पताल में मयंक को दाखिल नहीं किया गया. उन लोगों ने उसे दूसरे अस्पताल रेफर कर दिया. अंकित मयंक को ले कर वहां पहुंचा लेकिन वहां भी मयंक को ट्रीटमैंट की फैसिलिटी नहीं मिल सकी. उस की तबीयत बिगड़ रही थी. अंकित घबराया हुआ था. अंत में थक कर अंकित शिमला के सब से बड़े अस्पताल में पहुंचा. वहां मयंक को ऐडमिट कर लिया गया. 4-5 दिन में उस की स्थिति बेहतर हो गई तो छठे दिन उसे डिस्चार्ज कर दिया गया.

अब अंकित ने उस ट्रिप को थोड़ी जल्दी में पूरा किया और मयंक को ले कर वापस घर आ गया. 2 महीने के इस सफर के बाद मयंक बहुत खुश था. वह अंदर से बेहतर महसूस कर रहा था.

मयंक की बहन प्रज्ञा इस बात से बहुत खुश रहती थी कि अंकित मयंक का इतना खयाल रखता है.

वह जब भी फोन करतीं तो अंकित दोस्त के इलाज और हालत के बारे में विस्तार से बताता. मयंक की गतिविधियों का लेखाजोखा देता. बातचीत करते समय दोनों दोस्तों में मीठी झड़पें होतीं तो प्रज्ञा के बच्चे तालियां बजाबजा कर हंसते. वे अंकित को यंगर अंकल कह कर पुकारते और उस के साथ खूब मस्ती भरी बातें करते.

कई बार मयंक कहता,”मेरा भाई भी होता न तो तुझ सा नहीं हो पाता. तू तो भाई से भी बढ़ कर है.”

एक दिन मयंक की बहन वीडियो काल पर थी. अंकित चाय बनाने गया हुआ था और मयंक बहन से अंकित की तारीफ कर रहा था.

प्रज्ञा ने थोड़ा गंभीर होते हुए कहा,”मयंक मैं एक बात कहूं, तू मानेगा?

“हां दीदी बोलो न.”

“मैं चाहती हूं तू अपना घर अंकित के नाम कर दे. तेरे बाद मैं नहीं बल्कि तेरा भाई अंकित ही इस घर का मालिक होगा.”

इस बीच अंकित चाय ले कर कमरे में आ रहा था. उस ने प्रज्ञा की बात सुन ली थी.

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चाय रखते हुए उस ने इनकार में सिर हिलाते हुए कहा,” नहीं दीदी यह सही नहीं. आप ऐसी बातें नहीं कर सकतीं. जो घर मयंक का है वह कल को आप का या बच्चों का होगा मेरा नहीं. मैं किसी चीज की ख्वाहिश में मयंक का साथ नहीं दे रहा बल्कि मयंक के साथ मुझे यों ही दुनिया की खुशियां मिल रही हैं. ”

“देख मेरे भाई, मेरे अंकित, मैं ने मयंक से घर तेरे नाम करने की बात इसलिए नहीं की है ताकि तेरे एहसानों का कर्जा उतारा जा सके बल्कि इसलिए की है ताकि आने वाले समय में कभी मुझे भारत जाने की इच्छा हुई तो मुझे यह सोच कर मन न मसोसना पड़े कि वहां अब मेरा और कोई नहीं. मैं मयंक के बाद भी भारत घूमने आऊं तो पूरे अधिकार के साथ तेरे घर आ कर रुक सकूं. तू मेरी बात समझ रहा है न अंकित ? ”

“हां दीदी समझ गया. जैसी आप की इच्छा,” कहते हुए मयंक की आंखें भर आईं. आज उसे महसूस हो रहा था कि वाकई उस की कोई बड़ी बहन भी है जो उस पर अपना पूरा हक रखना चाहती है. भले ही वह दुनिया में अकेला है मगर अब उस का भी एक परिवार था जो उसे बहुत प्यार करता था.

Serial Story: अपना सा कोई (भाग-1)

आज मयंक बहुत खुश था. उस ने पूरे 2 दिन की छुट्टी ली थी. एक दिन तो हमेशा की तरह आराम और काम में निकल गया. मगर आज की छुट्टी का इस्तेमाल उस ने आसपड़ोस वालों से जानपहचान करने में लगाने की योजना बनाई थी. दरअसल, इस मोहल्ले में आए उसे पूरे डेढ़ महीने हो चुके थे. इस दौरान उस की नाइट शिफ्ट चल रही थी. सुबह 5 बजे निकल कर रात में 11 बजे घर में घुसता था. ऐसे में उसे दूसरों से परिचय करने का वक्त ही नहीं मिलता था.

उस ने 200 गज पर 1980-90 के समय के बने मकान का तीसरा फ्लोर खरीदा था. 3 कमरे, घर के बाहर खूबसूरत सी बालकनी और आसपास हरियाली देख कर उस ने यह घर पसंद किया था.

सुबहसुबह उठ कर वह बालकनी में आया और सामने के ग्राउंड में कुछ फिटनैस फ्रीक लोगों को मौर्निंग वाक और जौगिंग करता देख मुसकरा उठा. उस ने मन ही मन सोचा कि आज पूरे मोहल्ले का 1-2 चक्कर लगाने और ग्राउंड में जा कर ऐक्सरसाइज करने के बाद ही वह घर लौटेगा.

उस ने ट्रैकसूट पहना और नीचे आ गया. वाक और ऐक्सरसाइज के बाद दूध, अखबार और ब्रैड खरीद कर वापस लौटने लगा कि दूसरे फ्लोर की सीढ़ियों पर आ कर ठिठक गया. दरवाजा अंदर से बंद था और बाहर जमीन पर अखबार के साथ 2 पत्रिकाएं भी पड़ी हुई थीं. मयंक को शुरू से किताबें और पत्रिकाएं पढ़ने का बहुत शौक रहा है. उस ने पलट कर देखा तो सरिता और गृहशोभा एकसाथ देख कर उस का मन खुश हो गया. उस ने मन ही मन सोचा कि काश आज फ्री टाइम में मुझे यह पत्रिकाएं पढ़ने को मिल जातीं.

वह अभी पत्रिकाएं पलट ही रहा था कि तभी कमरे के अंदर से मुकेश के गाने ‘मैं पल दो पल का राही हूं…’ की आवाज आने लगी. गाना और मुकेश की आवाज दोनों ही मयंक को पसंद था. अपने इस पड़ोसी से मिलने का उसे मन कर रहा था. तभी दरवाज़ा खुला और अंदर से उसी की उम्र का एक युवक बाहर निकला. सवालिया नजरों से उस ने पहले मयंक को और फिर उस के हाथ में पकड़ी पत्रिकाओं को देखा.

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मयंक मुसकराता हुआ बोला,” हाय, मैं मयंक. आप का पड़ोसी. इधर से गुजर रहा था. पत्रिकाओं पर नजर गई तो देखने लगा. ये पत्रिकाएं शायद आप बराबर लेते हैं…”

“जी हां. मैं इन्हें शुरू से ही पढ़ता आ रहा हूं. आइए अंदर आ जाइए. मेरा नाम अंकित है.”

मयंक अंकित के साथ अंदर आता हुआ बोला,” आप का म्यूजिक टेस्ट भी बिलकुल मेरे जैसा है. मुकेश की आवाज का मैं भी दीवाना हूं.”

“गुड. फिर तो अच्छी जमेगी हमारी.”

इस के बाद 2-4 मिनट की औपचारिक बातचीत के बाद अंकित उठता हुआ बोला,”आई एम सौरी मयंक बट आई एम गेटिंग लेट.”

मयंक भी उठ गया और बोला,”आई कैन अंडरस्टैंड. जौब प्रेशर तो सब को रहता है. आप जाइए मैं चलता हूं.”

पत्रिकाएं अभी भी मयंक के हाथों में थीं. वह उन्हें टेबल पर रखने लगा तो अंकित मुसकराता हुआ बोला,”आप चाहें तो ये पत्रिकाएं ले जा सकते हैं. पढ़ कर लौटा दीजिएगा.”

“थैंक यू सो मच,” मयंक के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई.

यह मयंक और अंकित की पहली मुलाकात थी. इस के बाद भी उन दोनों के बीच हैलोहाय से ज्यादा बात नहीं हो पाई क्योंकि मयंक की शिफ्ट वाली जौब थी तो अंकित का टूरिंग वाला काम. दोनों व्यस्त थे.

उस दिन रविवार था. मयंक दूध और फल लेने के लिए नीचे उतर उतर रहा था कि उस ने बरामदे में अंकित को बेहोश पड़ा देखा. इंसानियत के नाते मयंक उसे तुरंत अस्पताल ले कर गया. वहां उसे ऐडमिट कर लिया गया. उसे माइनर हार्ट अटैक आया था. उस के घर में कोई और सदस्य था नहीं इसलिए पूरे दिन मयंक ही अस्पताल में उस के साथ रहा. अगले दिन भी उसे अस्पताल में ही रुकना पड़ा. तीसरे दिन सुबह अंकित को छुट्टी मिल गई. अब तक अंकित की तबियत संभल चुकी थी. उस ने दिल से मयंक का शुक्रिया अदा किया. दोनों में दोस्ती हो गई. घर आ कर भी मयंक ने अंकित को अकेला नहीं छोड़ा. उसे खाना बना कर खिलाने के बाद ही अपने औफिस गया.

रविवार को सुबहसुबह अंकित मयंक के घर आया. वह मयंक के लिए बिरयानी बना कर लाया था. दोनों ने साथ बैठ कर खाना खाया. बिरयानी बहुत स्वादिष्ठ बनी थी. उंगलियां चाटता हुआ मयंक बोला,”यार तुम खाना तो बहुत टेस्टी बनाता हो. भाभीजी तो खुश हो जाती होंगी. ”

“नहीं यार मेरी शादी कहां हुई है अभी? ”

“क्या बात है, यानी इस मामले में भी हम दोनों एकजैसे हैं. मैं ने भी अब तक शादी नहीं की. वैसे तुम ने शादी क्यों नहीं की?”

“यार मैं एक अनाथालय में पलाबढ़ा हूं. उन्होंने ने ही मुझे पढ़ाया है. बाद में एक सज्जन ने मुझे गोद ले लिया. वे भी दुनिया में अकेले थे. नौकरी मिलने के बाद मैं यहां चला आया. इस बीच उन का देहांत हो गया. अब मेरे जैसे अकेले लड़के को अपनी बेटी कौन देगा? उस पर टूरिंग वाली जौब है. मैं खुद भी अब शादी करने से हिचकने लगा हूं.”

“यार, काफी हद तक मेरी कहानी भी कुछ ऐसी ही है. मेरे पिताजी उसी समय चल बसे थे जब मैं मुश्किल से 8-10 साल का था. मां ने मुझे पढ़ायालिखाया. मुझे नौकरी लग गई उस के कुछ दिनों के बाद ही मां बीमार पड़ गईं. इस बीच मेरी बड़ी बहन की शादी अमेरिका में हो गई इसलिए वह भी दूर चली गई. मैं कई सालों तक मां की देखभाल और सेवा में लगा रहा. उस दौरान शादी का खयाल ही नहीं आया. 2 साल पहले उन का निधन हो गया. अब मैं भी दुनिया में अकेला हूं. शादी करने का सोचता हूं मगर परिवार में कोई न होने की वजह से मेरी शादी में भी दिक्कतें आ रही हैं.”

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“कोई नहीं यार. अब हम दोनों एकदूसरे का साथ देंगे.”

“बिलकुल…” अंकित ने कहा तो दोनों ठठा कर हंस पड़े.

इस के बाद तो अकसर ही दोनों एकसाथ खाना बना कर खाने लगे. कई दफा अंकित मयंक के लिए खाना बना कर रखता. कई बार मयंक बाजार से कुछ खाने की चीजें लाता तो दोनों मिल कर खाते. दोनों ने डुप्लीकेट चाबी भी ऐक्सचैंज कर ली थी ताकि वे एकदूसरे के पीछे में उन के फ्रिज में खाने की चीजें रख सकें या जरूरी होने पर एकदूसरे के काम भी आ सकें. अकसर रविवार को समय निकाल कर दोनों साथ घूमने भी जाने लगे.

आगे पढ़ें- एक दिन अंकित बाजार से घर लौटा कि तभी…

Serial Story: अपना सा कोई (भाग-2)

एक दिन अंकित बाजार से घर लौटा कि तभी उस का मोबाइल बज उठा. एक अनजान नंबर से काल आ रही थी. उस ने फोन उठाया तो सामने से आवाज आई,”जी मैं अनुज प्रसाद बोल रहा हूं. कल रात मयंक भाई औफिस में अचानक बेहोश हो गए. नाईट शिफ्ट की वजह से औफिस में ज्यादा लोग नहीं थे. मैं ने और मेरे एक कुलीग ने मिल कर उन्हें किसी तरह अस्पताल पहुंचा दिया है. उन का कोई रिश्तेदार तो यहां इस शहर में है नहीं. वे अकसर आप के बारे में बताया करते थे. इसीलिए उन के मोबाइल से आप का नंबर ले कर मैं ने काल लगाया है. आप आ जाएं तो बहुत अच्छा होगा.”

“ओके मैं अभी आता हूं. आप अस्पताल का नाम और वार्ड वगैरह मैसेज कर दीजिए. अंकित जल्दीजल्दी तैयार हो कर अस्पताल पहुंचा. मयंक बैड पर था. डाक्टर ने कई सारे टेस्ट करवाए थे.

टेस्ट रिपोर्ट्स ले कर अंकित डाक्टर से मिला.

डाक्टर ने रिपोर्ट देखते हुए परेशान स्वर में कहा,”सौरी मगर मुझे कहना पड़ेगा कि मिस्टर मयंक अब 5-6 महीने से ज्यादा के मेहमान नहीं हैं.”

“मगर उसे हुआ क्या है डाक्टर?” अंकित की आवाज कांप रही थी.

“बेटे उसे पेनक्रिएटिक कैंसर है. इस के बारे में जल्दी पता नहीं चलता क्योंकि शुरुआती फेज में कोई खास लक्षण नहीं होते. बाद में लक्षण पैदा होते हैं मगर फिर भी इन की पहचान मुश्किल होती है. क्योंकि लक्षण बहुत कौमन होते हैं. जैसे भूख कम लगना, वजन घटना आदि. मयंक को अब तक एहसास भी नहीं हुआ होगा कि उसे कोई गंभीर बीमारी है.”

“पर डाक्टर क्या अब कोई उपाय नहीं है? ”

“नहीं बेटा, अब सच में कोई उपाय नहीं. बस उसे खुश रखो. उसे जितना प्यार और खुशियां दे सको उतना दो और क्या कहूं मैं?”

“जी डाक्टर,”वह भीगी पलकों के साथ डाक्टर के केबिन से बाहर निकला. मयंक कहने को तो उस का कुछ नहीं लगता था पर जाने क्यों उसे लग रहा था जैसे मयंक ही तो उस का पूरा परिवार था. उस के साथ सब कुछ खत्म हो जाएगा. वह दोस्ती और प्यार, वह अपनापन, उस का साथ, हंसीमजाक और छोटीछोटी खुशियां. पिछले कुछ समय से उसे लगने लगा था जैसे मयंक ही उस की दुनिया है. पर अब वह भी जाने वाला था. अचानक गैलरी के फर्श पर बैठ कर अंकित फफकफफक कर रो पड़ा.

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अपनी बीमारी की बात जब मयंक को पता चली तो वह खामोश रह गया. पलकों की कोर से आंसू बह निकले.

अंकित ने उसे संभालते हुए पूछा,”तुम्हारी बड़ी बहन है न. उन का नंबर दो. मैं बात करता हूं.”

नंबर ले कर जब अंकित ने फोन लगाया और सारी बात बताई तो वह भी परेशान स्वर में बोलीं,” मेरे इकलौते भाई को यह अचानक क्या हो गया. इतनी दूर से मैं उस के लिए कुछ कर भी नहीं सकती. मेरे पति खुद बहुत बीमार हैं. उन्हें छोड़ कर आ भी नहीं सकती.”

फिर बहन ने भाई से वीडियो काल पर बात की. उसे दिलासा दिया पर साथ नहीं दे पाई.

अब मयंक की देखभाल के लिए अंकित के सिवा और कोई नहीं था. अंकित ने तय किया कि चाहे जो हो जाए वह अपने दोस्त का अंत तक साथ देगा. उस ने एक बड़ा फैसला लिया और अपनी नौकरी छोड़ दी. मयंक पहले ही रिजाइन दे चुका था. अंकित पूरे समय मयंक की देखभाल करने लगा. मयंक कई बार उलटियां कर देता तब अंकित उस की सफाई करता. उस का मुंह धुलवाता. उस के लिए सादा खाना बनाता फिर प्यार से खिलाता. उसे हर तरह का आराम देता. समय पर दवाएं देता. तरहतरह की फलसब्जियां ले कर आता और उसे खिलाता. जितना होता उसे खुश रखने का प्रयास करता.

एक दिन मयंक ने उदास स्वर में कहा,”जानते हो अंकित मेरा एक सपना था जो अब पूरा नहीं हो पाएगा.”

“कैसा सपना? कहीं शादी तो नहीं करना चाहता था तू…” हंसते हुए अंकित ने कहा तो मयंक बोला,”नहीं यार मेरा सपना शादी नहीं बल्कि मैं तो दुनिया घूमना चाहता था. दुनिया नहीं तो कम से कम भारत दर्शन तो करना चाहता ही था. हमेशा सोचता था कि कभी औफिस से 1-2 महीने की छुट्टी ले कर पूरा भारत देखूंगा. पर देख ले अब तो दुनिया से ही छुट्टी मिलने वाली है.”

“यदि ऐसा है तो तेरा यह सपना मैं जरूर पूरा करूंगा.”

“पर कैसे? नहीं यार इस हाल में अब संभव नहीं.”

“ऐसा कुछ नहीं है. डाक्टर ने केवल खानपान में परहेज करने को कहा है मगर घूमने से नहीं रोका है. फिर भी मैं डाक्टर से एक बार बात कर लूंगा. पर तेरा यह सपना जरूर पूरा करूंगा. तेरी खुशी ही तेरी बीमारी का इलाज है और फिर कोई इच्छा अधूरी छोड़नी भी नहीं चाहिए. नईनई जगह घूमने से तेरा मन बहलेगा. आबोहवा बदलेगी तो तुझे अच्छा लगेगा. तेरी तबीयत में भी सुधार आएगा. मैं आज ही प्लान बनाता हूं कि कैसे जाना है और कब जाना है.”

“सच यार तू मेरा यह सपना पूरा करेगा? तू मेरे भाई से भी बढ़ कर है. काश, हम पहले मिले होते. अब तो समय ही बहुत कम है मेरे पास.”

“कम है तो क्या हुआ? जितना समय है हम साथ घूमेंगे. तेरी मुसकान बनी रहेगी…” कहते हुए मयंक ने अंकित को भींच कर सीने से लगा लिया.

जल्द ही अंकित ने पुरानी कार खरीदी और अपने दोस्त को ले कर भारत दर्शन पर निकल पड़ा. उस ने मयंक की दवाएं और खानेपीने की जरूरी चीजें भी रख ली थीं. बीमारी की हालत में भी मयंक ने यह ट्रिप बहुत ऐंजौय किया. अंकित ने हर कदम पर उस का साथ दिया. उस के खानेपीने और दवाओं का ध्यान रखा. कोशिश करता कि मयंक के लिए साफसुथरा और सादा खाना मिल जाए. समय पर दवाएं खिलाता.

सफर के दौरान एक दिन वे मुंबई से पुणे के रास्ते में थे. पुणे के आउटर ऐरिया तक पहुंचतेपहुंचते ही शाम हो गई. दोनों ने तय किया कि रात यहीं बिताई जाए. उन्होंने ऐसी जगह कार रोकी जहां थोड़ी आबादी दिख रही थी.

अभी वे होटल, ढाबा जैसी कोई चीज ढूंढ़ ही रहे थे कि एक लड़की उन के करीब आई और बोली,”ठिकाना ढूंढ़ रहे हो क्या मुसाफिर?”

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“हां जी. हमें ठहरने के लिए जगह चाहिए.”

“नो प्रौब्लम. पास में ही मेरे चाचू का होटल है. चलो आप को वहां ले चलती हूं,” कह कर लड़की उन्हें एक छोटे से होटल में ले आई.

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छांव: जीवन का सच क्या जान पाई आशा?

Serial Story: छांव (भाग-1)

लेखिका- डा. ऋतु सारस्वत

आंसू थे कि थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे और मैं भी इन्हें कहां थामना चाह रही थी. एक ऐसा सैलाब जो मुझे पूर्वाग्रहों की चुभन से बहुत दूर ले जाए, पर यह चाह कब किसी की पूरी हुई है जो मेरी होती. प्रश्नों के घेरे में बंध कर पांव उलझ गए और थम गई मैं, पर प्रश्नों का उत्तर इतना पीड़ादायक होगा, यह अकल्पनीय था.

‘आभाजी, यह निर्णय आसान नहीं है. किसी और की बच्ची को स्वीकारना सहज नहीं है. ऐसा न हो कि मां का साया देने की चाह में पिता की उंगली भी छूट जाए? मैं बहुत डरता हूं आप फिर सोच लीजिए.’ पर मैं कहीं भी सशंकित नहीं थी. मेरी ममता तो तभी हिलोरे मारने लगी थी जब आरती को पहली बार देखा था. दादी की गोद में सिमटी वह दुधमुंही बच्ची स्वयं को सुरक्षा के कवच में घेरे हुए थी. वह कवच जो मेरे विनय से सात फेरे लेने के बाद और आरती की मां बनने के बाद भी न टूटा.

‘‘मां, आप आरती को मुझे दे दीजिए, मैं इसे सुला दूंगी. आप आराम से मौसीजी से बातचीत कीजिए.’’

‘‘नहीं आभा, तुम आरती की चिंता मत करो, जाओ देखो, विनय को किसी चीज की जरूरत तो नहीं.’’

‘‘ठीक है, मां,’’ इस से अधिक कुछ नहीं कह पाई. कमरे से बाहर निकली तो मौसीजी की आवाज सुन कर पांव वहीं थम गए :

‘‘यह क्या विमला, तू ने आरती को आभा को दिया क्यों नहीं? जब से

आई हूं, देख रही हूं तू एक पल के लिए भी आरती को खुद से दूर नहीं करती. इस तरह तो आरती कभी आभा से जुड़ नहीं पाएगी. आखिर वह मां है इस की.’’

‘‘मां नहीं, सौतेली मां, कैसे सौंप दूं अपने कलेजे के टुकड़े को पराए हाथों में, मैं ने वृंदा को वचन दिया था कि मैं उस की बच्ची का खयाल रखूंगी.’’

‘‘तो तू ने विनय की दोबारा शादी की क्यों?’’

‘‘दीदी, अभी विनय की उम्र ही क्या है, सारा जीवन पड़ा है उस के सामने, तनमन की जरूरत तो पत्नी ही पूरी कर सकती है. अब दोनों मिल कर अपनी गृहस्थी संभालें.’’

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‘‘और आरती?’’

‘‘न दीदी, आरती उन की जिम्मेदारी नहीं है. उस की दादी भी मैं और मां भी मैं. अपनी बच्ची को सौतेलेपन की हर छाया से दूर रखूंगी.’’

‘‘विमला, तू यह ठीक नहीं कर रही.’’

‘‘दीदी, ठीक और गलत का हिसाब आप रखो. आज तक कौन सी सौतेली मां सगी हुई है, जो आभा होगी.’’

‘‘ठीक है, विमला, तुझे जो उचित लगे वह कर पर देखना तेरी यह सोच एक दिन आरती को ही सब से ज्यादा नुकसान पहुंचाएगी,’’ मौसीजी कमरे से बाहर आ गईं.

‘‘तू यहीं खड़ी थी, आभा,’’ मुझे देख कर मौसीजी एक पल को सकपका गईं फिर संभलते हुए बोलीं, ‘‘तू परेशान मत हो, समय सब ठीक कर देगा.’’

उस समय के इंतजार में एकएक दिन बीतने लगा पर जैसे बंद मुट्ठी से रेत सरक कर बिखर जाती है, मां के दिल के बंद दरवाजों से मेरी ममता टकरा कर लौट आती.

‘‘मैं तुम्हारे दर्द को समझता हूं, आभा पर क्या करूं. मां का व्यवहार मेरी समझ से परे है. उन्होंने तो मुझे भी आरती से दूर कर दिया है. जब भी मैं आरती को गोदी में लेता हूं, वे किसी न किसी बहाने से उसे मुझ से वापस ले लेती हैं. क्या मेरा मन इस से आहत नहीं होता पर क्या करूं?’’

‘‘विनय, मुझे इस घर में आए 6 महीने हो गए हैं और मुझे वह पल याद नहीं जब आरती को मैं ने अपनी गोद में लिया हो. मां क्यों नहीं समझतीं कि रिश्ते बांधने से बंधते हैं. क्या यशोदा मां…’’

‘‘तुम खुद को समझा रही हो या मुझे? तुम भी जानती हो कि तुम्हारी ये उपमाएं निरर्थक हैं.’’

विनय की बात सुन कर मैं ने चुप्पी ओढ़ ली. धीरेधीरे समय सरक रहा था और मैं मां की कड़ी पहरेदारी में अपनी ममता को अपने ही आंचल में दम तोड़ते हुए देख रही थी. मेरी बेबसी पर शायद प्रकृति को तरस आ गया.

‘‘मां, बधाई हो, आप दादी बनने वाली हैं,’’ उत्साह भरे लहजे में विनय ने कहा.

‘‘मैं तो पहले ही दादी बन चुकी हूं, तू तो आभा को बधाई दे. चल अच्छा हुआ, अब कम से कम मेरी आरती से झूठी ममता का नाटक तो बंद करेगी,’’ मां के स्वर की कटुता दीवारों को भेदती हुई मुझ तक पहुंची और एक पल में ही खुशी के रंग स्याह हो गए. पलक अपने जन्म के साथ मेरे लिए ढेर सारी आशाएं भी लाई.

‘‘विनय, अब देखना मां कितना भी चाहें पर आरती अपनी बहन से दूर नहीं रह पाएगी.’’

‘‘काश, ऐसा हो,’’ विनय ने ठंडे स्वर में कहा.

जानती थी मैं कि विनय का विश्वास डगमगा चुका है. पिछले 3 सालों में उन्होंने अपनी बेटी के पास होते हुए भी दूर होने की पीड़ा को झेला है. खुद को समझातेसमझाते विनय थक चुके हैं. विनय की पीड़ा को जब मैं समझ पा रही हूं तो मां क्यों नहीं? 9 महीने अपने खून से सींचा है उन्होंने विनय को, फिर क्यों अपने बेटे को जानेअनजाने दुख पहुंचा रही हैं?

‘‘क्या सोच रही हो, आभा, पलक कब से रोए जा रही है?’’

‘‘आई एम सौरी,’’ मैं ने पलक को विनय की गोद से ले कर सीने से लगा लिया. पलक का स्पर्श मेरे तन और मन को तृप्त कर गया पर मन का एक कोना अब भी आशा और निराशा के बीच हिचकोले खा रहा था.

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‘‘आरती बेटा, इधर आओ, देखो तुम्हारी छोटी बहन,’’ आरती पलक को दूर से ही टुकुरटुकुर देख रही थी पर मेरी आवाज में इतनी ताकत कहां थी कि वह आरती को अपने पास बुला सके. आरती बिना कुछ बोले मुड़ गई और मैं अपनी भावनाओं को शब्दों में पिरो ही नहीं पाई. ?

मां के जीवन का एकमात्र ध्येय था आरती को असीम स्नेह देना, क्या कभी ममता भी नुकसानदायक हुई है? यह एक ऐसा सवाल है जिस का जवाब हां या न में देना कठिन है पर एक बात निश्चित है कि अगर ममता अपनी आंखों पर पट्टी बांध ले तो वह बच्चे के लिए घातक बन जाती है. आरती की हर चाह उस के बोलने से पहले पूरी कर देना मां की पहली प्राथमिकता थी.

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Serial Story: छांव (भाग-3)

लेखिका- डा. ऋतु सारस्वत

आरती की शादी? कैसे निभाएगी आरती शादी के उत्तरदायित्वों को. समझौता, त्याग, समर्पण ये शब्द तो आरती के शब्दकोष में हैं ही नहीं. और इन के बगैर परिवार के दायित्वों का वहन नहीं किया जा सकता. कहीं आरती जिम्मेदारियों से…नहींनहीं, मैं यह क्या सोचने लगी. मैं ने स्वयं को धिक्कारा. मां और विनय को घर और वर दोनों पसंद आ गए.

‘‘विनय, राज करेगी हमारी बेटी वहां, पैसों की तो कोई कमी ही नहीं है. तभी तो समधनजी ने दहेज के लिए साफ मना कर दिया,’’ मां खुशी से फूली नहीं समा रही थीं.

‘‘पर मां, उन्होंने यह भी तो कहा था कि आरती घर की बड़ी बहू बन कर सारे घर को संभाल ले. क्या आरती संभाल पाएगी?’’

‘‘मैं ने पहली बार ऐसा बाप देखा है जो अपनी बेटी के अवगुण ढूंढ़ रहा है. मांबाप तो वे होते हैं जो बच्चों के अवगुण होने पर भी उसे ढक दें पर तू क्यों ऐसा करेगा, आखिर आभा की छाया का असर तो आएगा ही,’’ मां के इस तीखे प्रहार से विनय सुन्न हो गए और मैं हमेशा की तरह आंसुओं के सैलाब में बह कर इन प्रहारों से दूर बहने की नाकाम कोशिश करने लगी.

वह घड़ी भी आ गई जब आरती घर से विदा हो गई. ऐसा लगा मां ने पहली बार खुली हवा में सांस ली हो, जैसे कह रही हों कि देख वृंदा, मैं ने तेरी बच्ची को सौतेली मां की छाया से कितना दूर रखा है. मेरी बेचैनी आरती के जाने के बाद बढ़ गई थी. हर समय मन शंकाओं से घिरा रहता था.

आखिर वही हुआ जिस का डर था, अभी आरती की शादी को 2 महीने भी नहीं बीते थे कि एक दिन सुबहसुबह आरती घर आ गई.

‘‘दादी, दादी,’’ वह दौड़ती हुई मां के कमरे में पहुंची. विनय और मैं भी उस के पीछेपीछे भागे.

‘‘दादी, मुझे उस घर में नहीं रहना. शेखर की मम्मी बातबात पर चिल्लाती हैं और मेरी ननद और देवर दिनभर मेरे कान खाए रहते हैं. कभी चाय बनाओ तो कभी घर की सफाई करो. क्या मैं नौकरानी हूं?’’

‘‘तू चिंता मत कर लाडो, मैं बात करूंगी उन लोगों से, तू जा नहाधो कर आराम कर ले.’’

आरती के कमरे में जाते ही मां बोलीं, ‘‘मैं जानती थी यह सब होगा. दहेज इसीलिए नहीं लिया कि घर के लिए नौकरानी चाहिए. विनय, चल उस शेखर को फोन मिला, खबर लेती हूं उस की.’’

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विनय कुछ कहते कि दरवाजे पर घंटी बजी. देखा, सामने शेखर था, ‘‘मम्मी, आरती आई है क्या?’’

‘‘हां बेटा, क्या तुम्हें बिना बताए?’’

‘‘जी मम्मी,’’ विनय और मां भी कमरे में आ गए.

‘‘बेटा, तुम्हारे और आरती के बीच कुछ…’’ विनय के सवाल पर शेखर का चेहरा उतर गया.

‘‘मम्मीपापा, आरती की नासमझी ने घर के लोगों को बहुत ठेस पहुंचाई है. इस के तानाशाही व्यवहार से मेरी मम्मी बहुत दुखी हैं. क्या आप यकीन करेंगे कि यह पानी का गिलास भी अपने हाथ से नहीं लेना चाहती. सुबह यह आंखें तभी खोलती है जब मम्मी या मेरी बहन शशि इस के सामने चाय ले कर पहुंचें. पूरेपूरे दिन कमरे में अकेले बैठ कर टीवी देखना, घर के किसी काम में हैल्प करना तो बहुत दूर की बात, अपना काम तक खुद न करना, इस की आदत में शुमार है.

‘‘हम सब को लगता था कि समय के साथ यह अपनी जिम्मेदारी समझने लगेगी पर आरती का यह व्यवहार अब हम सब की परेशानी का सबब बन गया है. दुख तो मुझे इस बात का है कि पिछले 3-4 दिन से मेरी मम्मी की तबीयत बहुत खराब है. उन का खयाल तो रखना दूर की बात उन के कमरे में जा कर हालचाल तक पूछना आरती ने उचित नहीं समझा. मैं ने जब इस बात के लिए डांटा तो यह चीखचीख कर रोने लगी. अब आप ही बताइए, क्या मैं ने गलत किया?’’

‘‘तुम बिलकुल परेशान मत हो, शेखर. मैं तुम से आरती के व्यवहार के लिए माफी मांगती हूं, जल्द ही सब ठीक हो जाएगा. एकदो दिन वह यहां रह ले फिर हम खुद ही उसे ले कर तुम्हारे घर आएंगे,’’ मेरे इस आश्वासन के बाद शेखर चला गया पर मां के लिए यह सब असहनीय था.

‘‘तू कौन होती है आरती को समझाने वाली, नहीं जाएगी आरती उस घर में. यहीं रहेगी इस घर में, मेरी बच्ची मुझ पर बोझ नहीं है.’’

‘‘नहीं मां, आरती यहां नहीं रहेगी. उसे अपने घर जाना होगा.’’

‘‘आभा, तेरी हिम्मत जो तू मेरे सामने…आखिर सौतेली मां जो ठहरी,’’ गुस्से में मां दांत किटकिटाने लगीं.

‘‘मां, क्या आप जानती हैं कि सौतेला किसे कहते हैं? दुख तो इस बात का है कि कुछ लोगों ने मिल कर मां जैसे पवित्र रिश्ते को सौतेलेपन का तमगा पहना दिया है पर कोई रिश्ता कभी सौतेला नहीं होता, सौतेला होता है हमारा व्यवहार जो कभी भी किसी भी रिश्ते में निभाया जा सकता है.

‘‘यह कैसी परिपाटी है, अगर मां जन्म देने वाली न हो तो उसे अविश्वास की दृष्टि से देखा जाए. एक जानवर के साथ जब हम कुछ सालों तक रह लेते हैं तो उस से भी घुलमिल जाते हैं तो फिर आरती तो एक जीतीजागती इंसान है. आज जो आरती की स्थिति है उस का कारण आप का अति स्नेह है. आप ने उसे इतनी गहरी छांव में रखा कि वह जान ही नहीं पाई कि जीवन का सच क्या है.

‘‘मां, क्या आप ने बरगद के पेड़ के नीचे किसी पौधे को पनपते हुए देखा है? नहीं न, आप वही बरगद की छांव हैं. प्यार और दुलार का मतलब यह बिलकुल नहीं कि बच्चों को उन की गलतियों पर डांटा न जाए. आंखें खोल कर देखिए और सोचिए, क्या आरती को बचपन से ही कभी उसे उस की जिम्मेदारियों को सिखाने की कोशिश की गई तो फिर एकाएक वह कैसे जिम्मेदार बन सकती है? अब क्या आप ट्यूटर की तरह शेखर को भी बदल देंगी?’’

‘‘यह क्या बकवास कर रही है, आभा? तू अपनी मर्यादा में रह.’’

‘‘मां, मर्यादा मैं नहीं आप तोड़ रही हैं, रिश्तों की हर मर्यादा आप ने आरती के मोह में तज दी. आज आप शेखर के परिवार को खरीखोटी सुनाने के लिए तैयार हैं. क्या आप ने आरती को बड़ों का सम्मान करना, छोटों से प्यार करना सिखाया? जबजब विनय या मैं ने कोशिश की तो आप ने हमें सौतेला कह कर दूर फेंक दिया. आरती ने सिर्फ शासन करना सीखा पर उस में उस की गलती नहीं है क्योंकि बच्चा हमेशा अपने बड़ों के व्यवहार को अपने जीवन में अंगीकार करता है. मां, शेखर या उस का परिवार क्यों आरती की हुकूमत बरदाश्त करेगा?

‘‘रिश्तों को जोड़ने के लिए प्यार और समर्पण देना होता है. हमारा जीवन हमारी ही प्रतिध्वनि है. हम जो देते हैं वही हम तक लौट कर आता है. आप ही बताइए, क्या शादी गुड्डेगुडि़यों का खेल है कि आज पसंद नहीं तो दूसरा ले आओ. मां, हमारी बच्ची हम पर बोझ नहीं है पर अपने अंतर्मन से पूछिए क्या वाकई गलती आरती की नहीं है? बच्चों की गलतियों को सुधारना और सही राह दिखाना ही तो मातापिता का दायित्व होता है. एक पल को मान लीजिए कि आरती सबकुछ छोड़ कर यहीं हमारे पास रह जाती है तो वह करेगी क्या? जब हम इस दुनिया में नहीं रहेंगे तो वह कैसे अपना जीवन बिताएगी? मां, आप ने तो उसे आत्मनिर्भर भी बनने नहीं दिया.

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‘‘जीवन, पाने से अधिक, देने का नाम है. मैं हमेशा खामोश रही पर अगर आज भी मैं चुप रहती तो मैं स्वयं की नजरों में गिर जाती. सिर्फ इस डर से कि आप मुझे सौतेली मां कहेंगी. मैं आरती का जीवन बिखरने नहीं दूंगी. मां, सिर्फ जन्म देने वाली ही मां हो, ऐसा नहीं है. मां वह भी होती है जो बच्चे का हाथ थाम उसे जीवनपथ पर चलना सिखाए. उसे अच्छेबुरे का ज्ञान कराए और इन सब से बढ़ कर जिम्मेदार और अच्छा इंसान बनाए. मां, आरती को अपनी छांव से मुक्त कर दीजिए वरना मां, मेरी बच्ची का जीवन यों…’’ मैं बिलखबिलख कर रोने लगी.

मां खामोश थीं. उन की चुप्पी शायद आरती की गहरी छांव से मुक्ति और उस के जीवन की शुरुआत का संदेश थी.

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