उस के बाद जब कभी शानिका आई, वह उस से सामना होने को टालता रहा. यह सोच कर कि शानिका से किसी पूर्व सूचना के घर आ गई. रागिनी उस समय घर पर नहीं थी. मां को प्रणाम कर वह किताबें ले कर स्टडीरूम में चली गई. उसे भी पता नहीं था कि देवेश इस समय घर पर होगा. देवेश को देख कर वह चौंक गई. शानिका को अचानक सामने आया देख कर देवेश भी चौंक गया. दिल की धड़कनें बेकाबू हो गईं. आज उसे शानिका बहुत दिनों बाद दिखाई दी. ‘‘अरे आप आज घर पर कैसे?’’
‘‘बस थोड़ा देर से जाऊंगा आज,’’ देवेश मुसकराते हुए बोला, ‘‘रागिनी को पता नहीं था कि आप आने वाली हैं? वह तो अभी घर पर नहीं है. पर जल्दी आ जाएगी.’’ ‘‘कोई बात नहीं मैं इंतजार कर लूंगी. ये लीजिए अपनी किताबें,’’ वह किताबें मेज पर रखती हुई बोली.
‘‘दूसरी किताबें देख लीजिए जो आप को चाहिए,’’ वह मीठे स्वर में बोला. वह शानिका की मौजूदगी को इतने दिनों से टाल रहा था. लेकिन अब सामने आ गई थी तो उस का दिल नहीं कर रहा था कि वह जाए. शानिका शेल्फ में किताबें देखने लगी. देवेश अपने दिल पर अकुंश नहीं रख पा रहा था. सोच रहा था, एक बार तो बात करे शानिका से कि आखिर वह क्या चाहती है. अपने ही ध्यान में जैसे किसी अदृश्य शक्ति से बंधा ऐसा सोचता हुआ वह उस के करीब आ गया.
‘‘शानिका,’’ वह भावुक स्वर में बोला. ‘‘जी,’’ एकाएक उसे इतने करीब देख कर शानिका उस की तरफ पलट गई.
‘‘मुझ से शादी करोगी?’’ उस की निगाहें उस के चेहरे पर टिकी थीं. उसे स्वयं पता नहीं था कि वह क्या बोल रहा है. ‘‘जी,’’ शानिका हकला सी गई, ‘‘मैं ने
ऐसा कुछ सोचा नहीं अभी,’’ वह उलझी, परेशान सी बोली. ‘‘तो कब सोचोगी?’’ देवेश का स्वर हलका सा कठोर हो गया.
शानिका गरदन झुकाए नीचे देखने लगी. ‘‘बोलो शानिका कब सोचोगी?’’
‘‘पता नहीं मेरे घर वाले मानेंगे या नहीं…’’ ‘‘अगर तुम्हारे घर वाले नहीं मानेंगे तो क्यों आई हो मेरी जिंदगी में तूफान ले कर,’’ वह उसे झंझोड़ता हुआ बोला, ‘‘क्यों मेरी भावनाओं को उकसाया तुम ने? मैं जैसा भी था अपने हाल से समझौता कर लिया था मैं ने. तुम ने क्यों हलचल मचा दी मेरे दिलदिमाग में. बताओ शानिका बताओ,’’ वह उसे बुरी तरह झंझोड रहा था. उस की आंखों में आंसू थे और चेहरे पर कठोरता के भाव.
शानिका देवेश को ऐसे रूप में देख कर हड़बड़ा सी गई. वह खुद को छुड़ाने का यत्न करने लगी. बोली, ‘‘छोड़ दीजिए मुझे. मैं आप की बात का जवाब बाद में दूंगी. आप अभी होश में नहीं हैं.’’ ‘‘मैं होश में नही हूं और होश में न ही आऊं तो ठीक है… जाओ चली जाओ मेरे सामने से. फिर कभी मत आना मेरे सामने,’’ कह कर उस ने शानिका को हलका सा धक्का दे कर छोड़ दिया.
शानिका रोती हुई बाहर निकल गई. तभी अंदर आती रागिनी ने उसे पकड़ लिया. पूछा, ‘‘क्या हुआ शानिका? ऐसी बदहावास सी क्यों हो रही है और रो क्यों रही है? भैया ने कुछ कहा क्या?’’ ‘‘नहीं…मैं घर जा रही हूं.’’
‘‘चली जाना…पहले मेरे साथ आ,’’ वह उसे खींचती हुई अपने बैडरूम में ले गई. उसे सहलाया, पानी पिलाया. जब वह संयत हो गई तो फिर बोली, ‘‘शानिका मैं नहीं जानता, तेरे और भैया के बीच ऐसी क्या बात हुई पर मैं बात का अंदाजा लगा सकती हूं. मैं जानती हूं भैया तुझ से बहुत प्यार करते हैं. तुझ से शादी करना चाहते हैं…मैं जानती हूं यह नामुमकिन है, फिर भी पूछना चाहती हूं कि तेरा दिल क्या कहता है? तेरे दिल में भैया के लिए वैसी कोमल भावनाएं हैं क्या? तू भी उन्हें पसंद करती है?’’ शानिका कुछ नहीं बोली. टपटप आंसू
गिरने लगे. ‘‘बोल न शानिका,’’ रागिनी उसे प्यार से सहलाते हुए बोली.
‘‘मेरे चाहने से क्या होता…मम्मीपापा को कौन मनाएगा? मैं तो बोल भी नहीं सकती उन से.’’ ‘‘मतलब कि तू भी भैया से प्यार करती है?’’
शानिका ने कोई जवाब नहीं दिया. चुपचाप नीचे देखती रही. थोड़ी देर दोनों चुप रहीं, फिर रागिनी बोली, ‘‘पापा की जिद्द ने भैया के जीवन में इतना बड़ा व्यवधान पैदा कर दिया. छोटी सी उम्र में उन्हें शादी के बंधन में बांध दिया और वह शादी उन के लिए नासूर बन गई. वरना तू भी जानती है कि मेरे भैया जैसा लड़का चिराग ले कर ढूंढ़ने पर भी नहीं मिलेगा, उन जैसा साथी पाने का तो कोई भी लड़की ख्वाब देख सकती है.’’ शानिका ने कोई जवाब नहीं दिया तो रागिनी फिर बोली, ‘‘अगर प्यार भैया से करती है, तो किसी दूसरे के साथ कैसे खुश रह पाएगी तू और जब तक अपनी बात नहीं बोलेगी तब तक कोई तेरी बात कैसे मानेगा…अपने दिल की बात अपने मातापिता से कहना कोई गुनाह तो नहीं. अगर प्यार करती है तो बोलने की भी हिम्मत कर. चुप मत रह. चुप रहना किसी समस्या का हल नहीं है. तेरी चुप्पी, भैया और तेरी दोनों की जिंदगी बरबाद कर देगी,’’ रागिनी ने उसे समझाबुझा कर घर भेज दिया.
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शानिका कुछ दिनों तक सोचती रही कि सही कहती है रागिनी. उस ने स्वयं को टटोला. उस के अंदरबाहर देवेश कब बस गया उसे पता ही नहीं चला. कब शनी से इतना प्यार हो गया वह समझ नहीं पाई. किसी दूसरे के साथ वह खुश नहीं रह पाएगी. अपने दिल की बात अपने मातापिता के आगे रखना कोई गुनाह तो नहीं है. उसे रागिनी की बात याद आई.
एक दिन हिम्मत कर के उस ने सधे शब्दों में मम्मी से अपने दिल की बात कर दी. मम्मी समझदार थीं. सहजता से, गंभीरता से, धैर्य से उस की बात सुनी फिर बोली, ‘‘यह क्या कह रही है बेटी… देवेश हर तरह से अच्छा लड़का सही. पर एक बच्चे का पिता है वह. पहले विवाह की बात हम भुला भी दें पर बच्चा आंखों देखी मक्खी तो नहीं निगली जा सकती न?’’
‘‘उस नन्हे से सब को इतनी नफरत क्यों है मम्मी?’’ वह रोआंसी सी हो गई, ‘‘जो सिर्फ प्यार की भाषा जानता है. उस का पिता तक उस से नफरत करता है. वह नन्हा बच्चा, जिसे कुछ भी पता नहीं सिर्फ सब से प्यार करना चाहता है और सब से प्यार पाना चाहता है, मुझे जिस बात पर ऐतराज नहीं, तो आप क्यों परेशान हो रही हैं? मैं सब संभाल लूंगी.’’ जब पिता व भाइयों तक बात पहुंची तो वे भी आपे से बाहर हो गए. उन्हें यहां तक लगा कि उन की भोलीभाली बेटी को उन लोगों ने बरगला दिया है. लेकिन शानिका भी कटिबद्ध थी सब को अपनी बात समझाने के लिए. उस ने अपने तर्कों से सब को परास्त कर दिया.
‘‘एक बात सोचिए पापा. देवेश व निमी के पिता ने अपनी जिद्द के कारण देवेश व निमी का जीवन बरबाद कर दिया…शनी से उस का बचपन छीन लिया…मातापिता का प्यार छीन लिया. क्या आप भी मेरे साथ ऐसी ही कोई गलती करना चाहते हैं?’’ सुन कर सब चुप हो गए. पता नहीं उस के कहने में कोई बात थी या बात में ही कोई दम था. तर्क अकाट्य था. निशाना अचूक और अपनी पूरी सत्यता के साथ उन के सामने था.
‘‘ठीक है, तेरी जिस में खुशी है उसी में हम सब की खुशी है,’’ कह कर पापा ने हथियार डाल दिए. शानिका की तो खुशी का ठिकाना नहीं था. अक्तूबर का महीना था. दीवाली का पर्व यानी रोशनी का त्योहार, देवेश के लिए तो सभी त्योहार जैसे बेमानी हो गए थे. वह कोई भी त्योहार नहीं मानता था. वह चुपचाप अपने स्टडीरूम में अंधेरे में बैठा था. खिड़की से बाहर दीयों व बिजली के लट्टुओं को जगमगाता देख रहा था. पटाखों की आवाज सुन रहा था और सोच रहा था कि उस की जिंदगी के गलियारों का अंधेरा तो इतना घना हो गया है, जिसे कोई भी चिराग रोशन नहीं कर सकता.
रागिनी दरवाजे पर रंगोली बना रही थी. तभी गेट खुला, उस ने किसी को अंदर आते देखा. आकृति के करीब आने पर वह चौंक गई, बोली, ‘‘शानिका तू? इस वक्त?’’ वह आश्चर्य से सुंदर सी साड़ी में सजी शानिका को देखती रह गई. ‘‘हां, आज तुम लोगों के साथ दीवाली मनाने आई हूं.’’
‘‘दीवाली मनाने…इतनी रात किस के साथ आई है…तेरे पापा ने कैसे आने दिया…’’ ‘‘पापा की आज्ञा ले कर आई हूं और भैया छोड़ कर गए हैं मुझे यहां,’’ शानिका मुसकरा रही थी. ‘‘अब हमेशा जिंदगी भर इसी घर में दीवाली मनाऊंगी.’’
‘‘क्या?’’ रागिनी आश्चर्यमिश्रित खुशी से बोली, ‘‘तू सच कह रही है शानिका?’’ ‘‘हां, मैं सच कह रही हूं…पापा मान गए.’’
‘‘तो अंदर चल न जल्दी,’’ खुशी के आवेग से उस की आवाज कांप रही थी. ‘‘भैया अंदर स्टडीरूम में बैठे हैं. जा जा कर उन्हें बुला ला.’’
शानिका स्टडीरूम में गई तो देवेश अपने खयालों में डूबा आंखें बंद कर चुपचाप बैठा था. वह धीरे से उस के पास जा कर खड़ी हो गई और उंगलियों से उस के बालों को सहलाती हुई बोली, ‘‘दीवाली जैसे रोशनी के पर्व में भी यों अंधेरे में बैठे हैं आप.’’ शानिकाका स्पर्श पा कर देवेश एकदम चौंक गया. बोला, ‘‘तुम यहां इस वक्त?’’
‘‘हां,’’ शानिका ने बिजली का स्विच औन कर दिया, ‘‘आप के साथ दीवाली मनाने आई हूं… पापा की आज्ञा ले कर… भैया छोड़ कर गए हैं मुझे. अब हमेशा आप के साथ दीवाली मनाऊंगी जिंदगी भर,’’ वह संजीदगी से बोली, ‘‘मैं ने भैया से कहा है कि घर वापस आप मुझे छोड़ देंगे. वे मुझे लेने न आएं. छोड़ देंगे न आप मुझे?’’ ‘‘शानिका…’’ देवेश अपनी जगह खड़ा हो गया, ‘‘क्या तुम सच कह रही हो? मजाक तो नहीं कर रही हो न? ऐसा मजाक मैं सहन नहीं कर पाऊंगा.’’
‘‘मैं सच कह रही हूं… पापा मान गए. मैं ने मना लिया मम्मीपापा को. वे बहुत समझदार हैं… मुझ से बहुत प्यार करते हैं. मेरी पसंद उन की पसंद,’’ वह शरमाते हुए बोली. ‘‘ओह शानिका,’’ कह खुशी के आवेग में देवेश ने शानिका को बांहों में भर कर सीने से लगा लिया.
फिर बोला, ‘‘चलो शानिका मां के पास चलते हैं, उन्हें भी बता दें.’’ ‘‘एक शर्त पर चलूंगी.’’
‘‘कौन सी?’’ ‘‘पहले शनी को ले कर आइए. मां सब से प्यारी चीज होती है बच्चे के जीवन में और एक मां के कारण ही शनी से उस का बचपन व पिता का प्यार छिन गया. अब मैं नहीं चाहती कि दूसरी मां की वजह से उस के शेष जीवन की खुशियां छिन जाएं. मैं उस की मां बन कर उस के पिता का प्यार उसे लौटाना चाहती हूं. आप के जीवन
में जो कुछ भी घटा उस में उस मासूम का कोई दोष नहीं.’’ ‘‘अब ले कर आता हूं,’’ देवेश हंस कर बाहर चला गया और फिर तुरंत शनी को ले आया.
दोनों ने शनी के हाथ पकड़े और मां के पास चले गए. शानिका को देख कर मां चौंक गईं. बोलीं, ‘‘शानिका तुम यहां इस वक्त?’’
शानिका प्रणाम करने के लिए मां के पैरों में झुक गई. ‘‘होने वाली बहू को गले लगाओ मां…इस दीवाली साक्षात लक्ष्मी आप के घर आ गई है,’’ रागिनी सजल नेत्रों से हंसते हुए बोली.
‘‘क्या सच…’’ मां ने बात की सचाई के लिए देवेश की तरफ देखा तो खुशी से दमकता देवेश का चेहरा देख अब कुछ भी देखनासमझना बाकी नहीं रह गया था. उन्होंने पैर छूती शानिका को उठा कर अपने गले से लगा लिया.
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खुशी के अतिरेक में देवेश ने शनी को गोद में उठा कर अपनी बांहों में भींच लिया. कभी न दुलारने वाले पापा को शनी हैरानी से देखने लगा. वहां वात्सल्य का सागर लहरा रहा था. बच्चा प्यार की भाषा बहुत जल्दी समझ जाता है. उस ने अपनी दोनों नन्हीनन्ही बांहें देवेश के गले में डाल दीं.
रागिनी पीछे खड़ी अपने बहते आंसुओं को लगातार पोंछ रही थी और मन ही मन प्रार्थना कर रही थी कि यह दीवाली उन के घर को ताउम्र रोशन रखे.