मैं वीणा को पहले ही सब बता दूं… बाद में उसे कोई शिकायत न हो.’’ बातों का रुख कहां से कहां पहुंच गया था. अब जश्न का वह मजा नहीं रहा. बेमन से सब ने खाना खाया. खाना खाने के बाद तुरंत शशि वहां से चला गया. लेकिन अपने पीछे बहुत से सवाल छोड़ गया. वीणा खामोश हो गई थी. मांपापा दोनों को समझ नहीं आ रहा था कि बात को कैसे संभालें? जैसेजैसे दिन गुजरते जा रहे थे शशि का स्वभाव उन के सामने खुलता जा रहा था. बड़ा ही सनकी और अजीब हठी था वह. किसी की एक नहीं सुनता. हरकोई उस की सुने, उस की यही मंशा थी. वीणा ने शशि की मां से बात की तो उन का भी यही मानना था कि शशि का कोई इलाज नहीं. बस यही कर सकते हैं कि वह जैसा बरताव करे हम उस के साथ वैसा ही करें ताकि उसे उस की गलती का एहसास हो.
लेकिन वीणा को लगता कि यह स्थायी समाधान नहीं. उस के जैसा बरताव कर के कब तक वह जिंदगी के सवालों को सुलझा सकती है? वीणा जैसे उलझन में फंस गई थी. आतेआते शादी अगले महीने तक आ गई. गुजरता वक्त उसे बेचैन कर रहा था. उस की तड़प बढ़ रही थी. तभी मोबाइल बज उठा. वीणा ने देखा तो उसे शशि का नंबर नजर आया. बैल बजती रही… लेकिन उसे बात करने की इच्छा नहीं थी. फोन बजता रहा और फिर कट गया. वह औफिस के लिए तैयार हो रही थी कि फिर से बैल बजी. इस बार मां ने फोन उठाया और वीणा को देने आ गईं.
इस बार वीणा को बात करनी ही पड़ी. ‘‘हैलो वीणा, क्या कर रही हो? क्या इतनी बिजी हो कि मेरा फोन भी नहीं उठा सकतीं? खैर, सुनो आज तुम से मिलना है. कुछ जरूरी काम है. या तो पूरे दिन की छुट्टी ले लो या फिर हाफ डे कर लो. अब तुम्हीं तय कर मुझे फोन कर देना. और हां, टालना मत वरना मुझे वहां आना पड़ेगा.’’ उस का धमकी भरा स्वर सुन कर वीणा सकते में आ गई. बेमन से वह औफिस के लिए निकली. औफिस पहुंच कर उस ने हाफ डे के लिए अर्जी दी और शशि को फोन कर दिया.
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शशि को ऐसा क्या जरूरी काम आन पड़ा होगा, सोचते हुए वह फटाफट काम निबटाने लगी ताकि वक्त से पहले काम निबटा सके. आखिर डेढ़ बजे तक उस ने काम समाप्त कर दिया और शशि का इंतजार करने लगी. ठीक 2 बजे शशि उसे लेने आ गया. फिर दोनों उस की बाइक से एक रेस्तरां में आ गए. ‘‘बैठो वीणा, मुझे तुम से कुछ जरूरी बातें करनी हैं,’’ शशि बैठते हुए बोला, ‘‘वीणा अब हमारी शादी के दिन पास आ रहे हैं. शादी के बाद तुम हमारे घर आओगी.
वैसे तो तुम वहां पहले से आजा रही हो, फिर भी मैं कुछ बातें समझा देना चाहता हूं. वीणा वह तुम्हारी ससुराल होगी मायका नहीं. जैसे मायके में आजाद पंछी की तरह फुदकती रहती हो वैसे वहां नहीं चलेगा. वहां तुम्हें बहू के हिसाब से रहना होगा. घर के सारे काम तुम्हें करने होंगे. मैं ये सब इसलिए बता रहा हूं, क्योंकि मुझे लगता है कि तुम जौब और घर दोनों नहीं संभाल पाओगी, तो तुम काम छोड़ दो.’’ ‘‘शशि यह क्या कह रहे हो? मैं काम क्यों छोड़ूं? मैं दोनों जिम्मेदारियां ठीक से निभाऊंगी… इतना भरोसा है मुझे खुद पर. घरबार संभालना हम औरतों का जिम्मा है, तुम इस में न ही पड़ो तो बेहतर है. यकीन रखो मैं सब संभाल लूंगी,’’ वीणा ने सयंत हो कर कहा.
वैसे जिस तरह का स्वभाव शशि का था उस से वह कोई बात नहीं मानेगा यह वीणा समझ ही गई थी. फिर भी वह कोशिश करना चाहती थी. ‘‘वीणा मैं कोई तुम से सलाहमशवरा करने नहीं बैठा हूं. मैं तुम्हें बता रहा हूं कि तुम्हें नौकरी छोड़नी पड़ेगी और हां हमारे घर के फैसले घर के मर्द लेते हैं… जो होशियारी दिखानी हो घर में रह कर दिखाओ. बातबात में मुझ पर रौब मत जमाया करो. होगी तुम सयानी तो अपने घर की. मेरे घर में मेरी चलेगी, यह बात ठीक से समझ लो तो बेहतर है,’’ गुस्से में बड़बड़ाता शशि वहां से चला गया. वीणा उसे आवाजें लगाती रह गई, पर वह नहीं रुका. वीणा ने बिल पे किया और घर चल पड़ी. घर पहुंची तो पापा ने दरवाजा खोला. उस की सूरत से ही वे समझ गए कि बात काफी उलझी है. मां किसी काम से बाहर गई थीं. वीणा ने पापा को देखा तो उस का दिल भर आया. पापा के सीने से लग कर वह फफकफफक कर रो पड़ी.
‘‘अरे, क्या हुआ बेटे. ऐसे क्यों रो रही हो?’’ ‘‘पापा आज शशि मिलने आया था,’’ और फिर उस ने सारी बात उन्हें बता दी. सारी बात सुन कर पापा सोच में पड़ गए. अभी तो शादी हुई नहीं है और शशि के ये तेवर हैं.’’ आगे न जाने क्या हालात होंगे. ‘‘पापा, मैं उस के साथ सहज नहीं हो पाऊंगी… मेरा मन नहीं मान रहा है इस शादी को… क्या करूं कुछ समझ नहीं आ रहा है?’’
‘‘ठीक है बेटे हम इस बारे में तुम्हारी मां के आने के बाद बात करेंगे. अब तुम फ्रैश हो लो.’’ वे दोनों उठने ही वाले थे कि तभी मां आ गई. ‘‘अरे मां, आप आ गईं? फ्रैश हो जाओ. मैं चाय ले कर आती हूं.’’ थोड़ी ही देर में मां फ्रैश हो कर आ गईं और वीणा की चाय भी. चाय के साथसाथ शशि की बात चल निकली. वीणा के मन में ‘शादी’ पर सवाल अंकित देख कर मां सहम गईं.
फिर बोलीं, ‘‘वीणा, मुझे तो हमेशा उस का हठी स्वभाव शंका में डालता था पर लगता था वक्त के साथ सब ठीक हो जाएगा. तुम दोनों एकदूसरे को समझ जाओगे लेकिन आज तुम कुछ और ही बता रही हो. अब शादी अगले महीने है. सभी रिश्तेदारों और परिचितों को पता चल चुका है… सारी तैयारी हो चुकी है… ऐसे में रिश्ता टूटे तो बदनामी हमारी ही होगी.’’ मां की बातों में भले ही वजन था पर अब वीणा के मन से शशि उतर चुका था और किसी भी कीमत पर वह शादी नहीं चाहती थी.
अत: वह मायूस हो कर वहां से चली गई. बाद में पता नहीं पापा ने उस की मां को किस तरह समझाया. अगली सुबह जब वीणा चाय लेने टेबल पर पहुंची तो पापा ने बताया कि वह शशि को फोन कर शादी से इनकार कर दे… जो होगा देख लेंगे. ‘‘पापा, आप सच कह रहे हैं? क्यों वाकई मैं इनकार कर दूं?’’ ‘‘हां बेटे, कल रात मैं और तुम्हारी मां देर तक सोचते रहे. अरे अपनी बेटी खुश रहे, उसे एक अच्छा जीवनसाथी मिले यही तो हर मम्मीपापा की इच्छा होती है. जो रिश्ता शुरू होने से पहले ही बोझ लगने लगा है तो उसे उम्रभर किस तरह निभाओगी तुम? इस से बेहतर है कि हम रिश्ता तोड़ दें.
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अब जाओ उसे फोन करो.’’ ये सब सुन कर वीणा को लगा जैसे दिल से भारी बोझ उतर गया हो. मम्मीपापा का हाथ उस के सिर पर है यह जान उसे तसल्ली मिली. वह मोबाइल पर शशि का फोन मिलाने ही वाली थी कि शशि का ही फोन आ गया. बोला, ‘‘हैलो वीणा… फिर क्या तय किया तुम ने? आज इस्तीफा भेज रही हो या नहीं?’’ ‘‘इस्तीफा नहीं शशि. मैं ने तुम से सगाई तोड़ने का फैसला किया है.’’ शशि हैलोहैलो… ही कहता रहा, लेकिन कुछ न कह वीणा ने फोन काट दिया. एक नयानया रिश्ता खत्म हो गया था, लेकिन किसी को भी रंज नहीं था वीणा के इस फैसले पर.