Serial Story: फैसला (भाग-3)

मैं वीणा को पहले ही सब बता दूं… बाद में उसे कोई शिकायत न हो.’’  बातों का रुख कहां से कहां पहुंच गया था. अब जश्न का वह मजा नहीं रहा. बेमन से सब ने खाना खाया. खाना खाने के बाद तुरंत शशि वहां से चला गया. लेकिन अपने पीछे बहुत से सवाल छोड़ गया. वीणा खामोश हो गई थी. मांपापा दोनों को समझ नहीं आ रहा था कि बात को कैसे संभालें?  जैसेजैसे दिन गुजरते जा रहे थे शशि का स्वभाव उन के सामने खुलता  जा रहा था. बड़ा ही सनकी और अजीब हठी था वह. किसी की एक नहीं सुनता. हरकोई उस की सुने, उस की यही मंशा थी. वीणा ने शशि की मां से बात की तो उन का भी यही मानना था कि शशि का कोई इलाज नहीं. बस यही कर सकते हैं कि वह जैसा बरताव करे हम उस के साथ वैसा ही करें ताकि उसे उस की गलती का एहसास हो.

लेकिन वीणा को लगता कि यह स्थायी समाधान नहीं. उस के जैसा बरताव कर के कब तक वह जिंदगी के सवालों को सुलझा सकती है? वीणा जैसे उलझन में फंस गई थी. आतेआते शादी अगले महीने तक आ गई. गुजरता वक्त उसे बेचैन कर रहा था. उस की तड़प बढ़ रही थी. तभी मोबाइल बज उठा. वीणा ने देखा तो उसे शशि का नंबर नजर आया. बैल बजती रही… लेकिन उसे बात करने की इच्छा नहीं थी. फोन बजता रहा और फिर कट गया. वह औफिस के लिए तैयार हो रही थी कि फिर से बैल बजी. इस बार मां ने फोन उठाया और वीणा को देने आ गईं.

इस बार वीणा को बात करनी ही पड़ी.  ‘‘हैलो वीणा, क्या कर रही हो? क्या इतनी बिजी हो कि मेरा फोन भी नहीं उठा सकतीं? खैर, सुनो आज तुम से मिलना है. कुछ जरूरी काम है. या तो पूरे दिन की छुट्टी ले लो या फिर हाफ डे कर लो. अब तुम्हीं तय कर मुझे फोन कर देना. और हां, टालना मत वरना मुझे वहां आना पड़ेगा.’’ उस का धमकी भरा स्वर सुन कर वीणा सकते में आ गई. बेमन से वह औफिस के लिए निकली. औफिस पहुंच कर उस ने हाफ डे के लिए अर्जी दी और शशि को फोन कर दिया.

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शशि को ऐसा क्या जरूरी काम आन पड़ा होगा, सोचते हुए वह फटाफट काम निबटाने लगी ताकि वक्त से पहले काम निबटा सके. आखिर डेढ़ बजे तक उस ने काम समाप्त कर दिया और शशि का इंतजार करने लगी. ठीक 2 बजे शशि उसे लेने आ गया. फिर दोनों उस की बाइक से एक रेस्तरां में आ गए. ‘‘बैठो वीणा, मुझे तुम से कुछ जरूरी बातें करनी हैं,’’ शशि बैठते हुए बोला, ‘‘वीणा अब हमारी शादी के दिन पास आ रहे हैं. शादी के बाद तुम हमारे घर आओगी.

वैसे तो तुम वहां पहले से आजा रही हो, फिर भी मैं कुछ बातें समझा देना चाहता हूं. वीणा वह तुम्हारी ससुराल होगी मायका नहीं. जैसे मायके में आजाद पंछी की तरह फुदकती रहती हो वैसे वहां नहीं चलेगा. वहां तुम्हें बहू के हिसाब से रहना होगा. घर के सारे काम तुम्हें करने होंगे. मैं ये सब इसलिए बता रहा हूं, क्योंकि मुझे लगता है कि तुम जौब और घर दोनों नहीं संभाल पाओगी, तो तुम काम छोड़ दो.’’ ‘‘शशि यह क्या कह रहे हो? मैं काम क्यों छोड़ूं? मैं दोनों जिम्मेदारियां ठीक से निभाऊंगी… इतना भरोसा है मुझे खुद पर. घरबार संभालना हम औरतों का जिम्मा है, तुम इस में न ही पड़ो तो बेहतर है. यकीन रखो मैं सब संभाल लूंगी,’’ वीणा ने सयंत हो कर कहा.

वैसे जिस तरह का स्वभाव शशि का था उस से वह कोई बात नहीं मानेगा यह वीणा समझ ही गई थी. फिर भी वह कोशिश करना चाहती थी.  ‘‘वीणा मैं कोई तुम से सलाहमशवरा करने नहीं बैठा हूं. मैं तुम्हें बता रहा हूं  कि तुम्हें नौकरी छोड़नी पड़ेगी और हां हमारे घर के फैसले घर के मर्द लेते हैं… जो होशियारी दिखानी हो घर में रह कर दिखाओ. बातबात में मुझ पर रौब मत जमाया करो. होगी तुम सयानी तो अपने घर की. मेरे घर में मेरी चलेगी, यह बात ठीक से समझ लो तो बेहतर है,’’ गुस्से में बड़बड़ाता शशि वहां से चला गया.  वीणा उसे आवाजें लगाती रह गई, पर वह नहीं रुका. वीणा ने बिल पे किया और घर चल पड़ी. घर पहुंची तो पापा ने दरवाजा खोला. उस की सूरत से ही वे समझ गए कि बात काफी उलझी है. मां किसी काम से बाहर गई थीं. वीणा ने पापा को देखा तो उस का दिल भर आया. पापा के सीने से लग कर वह फफकफफक कर रो पड़ी.

‘‘अरे, क्या हुआ बेटे. ऐसे क्यों रो रही हो?’’ ‘‘पापा आज शशि मिलने आया था,’’ और फिर उस ने सारी बात उन्हें बता दी. सारी बात सुन कर पापा सोच में पड़ गए. अभी तो शादी हुई नहीं है और शशि के ये तेवर हैं.’’  आगे न जाने क्या हालात होंगे. ‘‘पापा, मैं उस के साथ सहज नहीं हो पाऊंगी… मेरा मन नहीं मान रहा है इस शादी को… क्या करूं कुछ समझ नहीं आ रहा है?’’

‘‘ठीक है बेटे हम इस बारे में तुम्हारी मां के आने के बाद बात करेंगे. अब तुम फ्रैश हो लो.’’  वे दोनों उठने ही वाले थे कि तभी मां आ गई. ‘‘अरे मां, आप आ गईं? फ्रैश हो जाओ. मैं चाय ले कर आती हूं.’’ थोड़ी ही देर में मां फ्रैश हो कर आ गईं और वीणा की चाय भी. चाय के साथसाथ शशि की बात चल निकली. वीणा के मन में ‘शादी’ पर सवाल अंकित देख कर मां सहम गईं.

फिर बोलीं, ‘‘वीणा, मुझे तो हमेशा उस का हठी स्वभाव शंका में डालता था पर लगता था वक्त के साथ सब ठीक हो जाएगा. तुम दोनों एकदूसरे को समझ जाओगे लेकिन आज तुम कुछ  और ही बता रही हो. अब शादी अगले महीने है. सभी रिश्तेदारों और परिचितों को पता चल चुका है… सारी तैयारी हो चुकी है… ऐसे में रिश्ता टूटे तो बदनामी हमारी ही होगी.’’  मां की बातों में भले ही वजन था पर अब वीणा के मन से शशि उतर चुका था और  किसी भी कीमत पर वह शादी नहीं चाहती थी.

अत: वह मायूस हो कर वहां से चली गई. बाद में पता नहीं पापा ने उस की मां को किस तरह समझाया. अगली सुबह जब वीणा चाय लेने टेबल पर पहुंची तो पापा ने बताया कि वह शशि को फोन कर शादी से इनकार कर दे… जो होगा देख लेंगे. ‘‘पापा, आप सच कह रहे हैं? क्यों वाकई मैं इनकार कर दूं?’’ ‘‘हां बेटे, कल रात मैं और तुम्हारी मां देर तक सोचते रहे. अरे अपनी बेटी खुश रहे, उसे एक अच्छा जीवनसाथी मिले यही तो हर मम्मीपापा की इच्छा होती है. जो रिश्ता शुरू होने से पहले ही बोझ लगने लगा है तो उसे उम्रभर किस तरह निभाओगी तुम? इस से बेहतर है कि हम रिश्ता तोड़ दें.

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अब जाओ उसे फोन करो.’’ ये सब सुन कर वीणा को लगा जैसे दिल से भारी बोझ उतर गया हो. मम्मीपापा का हाथ उस के सिर पर है यह जान उसे तसल्ली मिली. वह मोबाइल पर शशि का फोन मिलाने ही वाली थी कि शशि का ही फोन आ गया. बोला, ‘‘हैलो वीणा… फिर क्या तय किया तुम ने? आज इस्तीफा भेज रही हो या नहीं?’’ ‘‘इस्तीफा नहीं शशि. मैं ने तुम से सगाई तोड़ने का फैसला किया है.’’ शशि हैलोहैलो… ही कहता रहा, लेकिन कुछ न कह वीणा ने फोन काट दिया. एक नयानया रिश्ता खत्म हो गया था, लेकिन किसी को भी रंज नहीं था वीणा के इस फैसले पर.

Serial Story: फैसला (भाग-2)

उस की सोच बड़ी दकियानूसी थी. उस दिन शशि ने उसे दोस्तों से मिलने बुलाया, लेकिन उस रोज कंपनी के एमडी के साथ उस की मीटिंग थी और हमेशा की तरह शशि उसे आने के लिए मजबूर करने लगा, जो वीणा के लिए नामुमकिन था. वह मीटिंग में उलझी रही, जिस कारण उस का मोबाइल साइलैंट मोड पर था. शशि अपने दोस्तों के साथ उस का इंतजार करता रहा. वह बारबार वीणा को फोन करता रहा, लेकिन वीणा फोन नहीं उठा सकी. बस फिर क्या था. शशि का दिमाग घूम गया. वह गुस्से से भरा बारबार मोबाइल का नंबर लगाता रहा. वीणा जब अपने काम से फ्री हुई तो उस ने यों ही मोबाइल देखा. शशि की 20 मिस्ड कौल देख कर वह घबरा उठी. उस ने तुरंत शशि को फोन किया.

शशि ने जैसे ही उस का नंबर देखा गुस्से से आगबबूला हो कर फोन पर बिफर पड़ा, ‘‘वीणा क्या समझती हो तुम खुद को? मैं ने तुम्हें अपने दोस्तों से मिलने बुलाया था न? फिर तुम क्यों नहीं आईं? मेरे ही दोस्तों के सामने मेरा अपमान करना चाहती हो तुम? ऊपर से इतनी बार फोन मिलाया… क्या उठा नहीं सकती थीं… जवाब दो मुझे.’’ ‘‘अरे, यह क्या शशि मैं ने तुम्हें सुबह ही तो बताया था न कि आज मुझे बिलकुल भी फुरसत नहीं है. आज मेरी सर के साथ मीटिंग थी… तुम्हें तो पता ही है न कि मीटिंग के वक्त मोबाइल साइलैंट रखा होता है.’’

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‘‘हांहां सब पता है मुझे. तुम ज्यादा मत सिखाओ मुझे. और सुनो यह काम का बहाना मत बनाया करो. अगर मैं ने तुम्हें बुलाया है तो तुम्हें आना ही होगा… तुम्हारे काम गए भाड़ में,’’ गुस्से से शशि और भी बहुत कुछ बोल गया.  उस का हर शब्द वीणा के दिल में नश्तर की तरह उतर गया. वह सोचने लगी कैसे निभेगी उस की शशि के साथ जिसे अपनी पत्नी की कोई कदर नहीं. बस अपने ही अहंकार में मदमस्त रहता है. नएनए रिश्ते की खुमारी भी कब की रफूचक्कर हो गई थी. रिश्ता जुड़ने की कगार पर था और अभी से वीणा को बोझ लगने लगा था. आज ही उस की प्रमोशन की खबर आई थी. बहुत उतावली थी वह यह खबर शशि को सुनाने को, लेकिन शशि तो कुछ सुनने के लिए तैयार ही नहीं था.  बड़ी मायूसी से वीणा घर चल पड़ी. घर पहुंची तो मां कहीं बाहर गईं थीं.

पापा अकेले थे. वीणा को आया देख वे चाय रखने किचन की तरफ चले गए. वीणा जब फ्रैश हो कर आई तब तक पापा चाय टेबल पर रख चुके थे. ‘‘अरे, पापा चाय आप ने क्यों बनाई? मैं बनाने आने ही वाली थी,’’ उस ने पापा से कहा. ‘‘कोई बात नहीं बेटा. तुम भी तो थक कर आई हो. और यह क्या चेहरा इतना उतरा हुआ क्यों है? तबीयत ठीक है न? या फिर शशि से लड़ कर आई हो?’’ पापा ने सहज भाव से पूछा. ‘‘पापा क्या आप को लगता है मैं ही लड़ती रहती हूं? आज तो उस ने हद ही कर दी. आज मेरी सर के साथ मीटिंग थी सो मैं ने उसे उस के दोस्तों से मिलने से मना कर दिया.

फिर भी पापा वह फोन करता रहा. बाद में जब मैं ने उसे फोन किया तब ठीक से बात करना तो दूर वह पूरी बातों में चीखताचिल्लाता रहा. मेरी एक नहीं सुनी. पापा वह भी तो एक कामकाजी है, फिर उसे ये बातें समझ क्यों नहीं आती? वह अभी मेरा कायदे से पति बना तो नहीं… फिर किस हक से मुझ पर हुक्म चला रहा है? पति है इसलिए दादागिरी करता रहे और मैं अपनी गलती न होने पर भी उस की सुनती रहूं,’’ उस की भावनाएं जैसे फूट पड़ीं. पापा उस की हालत देख कर सोच में पड़ गए. वैसे उन्हें भी शशि का यह बरताव नागवार गुजरा था. उन की फूल सी बेटी, जिस का उन्होंने इतना खयाल रखा, जिस की आंखों से उन्होंने एक शबनम तक नहीं गिरने दी, आज वह इस तरह बेबस हो कर बातें कर रही है?  वे दोनों खामोश बैठे थे कि तभी वीणा की मां आ गई.

उन दोनों को साथ बैठे देख वे भी उन के साथ बैठ गईं. चाय का एक दौर और गुजरा. इतने में मां को याद आया कि आज सुबह वीणा प्रमोशन के बारे में कुछ बता रही थी. अत: बोलीं, ‘‘वीणा, सुबह तुम कुछ बता रही थी न प्रमोशन के बारे में? क्या हुआ कुछ पता चला क्या?’’ ‘‘हां, मां मेरा प्रमोशन हुआ है. आज ही सर ने बताया. और्डर 2 दिन में आ जाएगा,’’ वीणा ने दोनों को बताया. ‘‘अरे यह तो बड़ी अच्छी खबर है… पर तू इतनी मायूस क्यों है? चलो आज हम जश्न मनाते हैं. तेरी पसंद का खाना बनाते हैं और हां शशि को भी फोन कर देना. भई वह इस घर का दामाद है अब.

वह भी हमारी खुशी में शामिल हो तो खुशी और बढ़ जाएगी,’’ मां ने उठते हुए कहा. वीणा ने इनकार किया, लेकिन मां ने उस की बात को कोई तवज्जो नहीं दी. वीणा ने पापा को ही शशि को फोन करने को कहा और खुद मां का हाथ बंटाने किचन में पहुंच गई.   करीब 1 घंटे के बाद शशि घर पहुंचा. वहां पहुंच कर उसे दावत की वजह पता  चली. वीणा की प्रमोशन की खबर सुन कर वह प्रसन्न नहीं हुआ. उस के चेहरे के हावभाव बदल गए. बड़ा रंज था उस के चेहरे पर. ‘‘क्या बात है दामादजी, आप खुश नहीं हुए क्या?’’ मां ने पूछा. ‘‘अगर उसे प्रमोट किया गया है तो इस में इतनी खुशी की क्या बात है. इसे काम ही क्या है घर में… सारा काम आप करती हैं.

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इसलिए यह कंपनी के काम में पूरा ध्यान लगा सकती है. अगर वह पूरा ध्यान नहीं भी लगाएगी तो भी उसे सफलता तो मिलनी ही है. ‘‘सुनो वीणा, ये सब मेरे घर में नहीं चलेगा. तुम्हें वहां घर का सारा काम करना पड़ेगा. बहू आने के बाद मेरी मां काम नहीं करेगी. वहां तुम्हारी मरजी बिलकुल नहीं चलेगी… बहू हो बहू ही रहना, बेटी बनने की कोशिश न करना,’’ शशि बड़बड़ाए जा रहा था. तीनों अवाक उसे घूरते जा रहे थे. तभी पापा बोल उठे, ‘‘शशि, यह क्या कह रहे हो? आजकल के लड़के हो कर इतनी दकियानूसी सोच है तुम्हारी? हैरानी हो रही है मुझे… तुम्हारी पत्नी बनने जा रही है यह… इस का अपमान मत करो.’’ ‘‘पापा, आप हम दोनों के बीच न ही पड़ें तो अच्छा है.

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Serial Story: फैसला (भाग-1)

वीणा औफिस के काम में व्यस्त थी. इस महीने उस ने 3 फुल डे और 2 हाफ डे लिए थे. ऊपर से अगला महीना मार्च का था. काम का बोझ ज्यादा था सो वह बड़ी शिद्दत से काम में जुटी थी. लंच तक उसे आधे से ज्यादा काम पूरे करने थे. काम करते अभी उसे एकाध घंटा ही हुआ था कि उस का मोबाइल बज उठा. बड़े बेमन से उस ने मोबाइल उठाया. लेकिन नंबर देख कर उसे टैंशन होने लगी, क्योंकि फोन शशि यानी उस के मंगेतर का था, जो किसी न किसी कारण से उसे फोन कर के घर बुलाता था.

कभी उस के काका मिलना चाहते हैं, तो कभी मामाजी अथवा बूआजी. इस तरह के बहाने बना कर वह उसे घर आने के लिए मजबूर करता था. नईनई शादी तय हुई थी, इस कारण वीणा के घर वाले मना नहीं कर पाते थे. वीणा को इच्छा न होते हुए भी वहां जाना पड़ता. इसी कारण जब उस ने मोबाइल पर शशि का नाम देखा तो वह मायूस हो गई. ‘‘हैलो,’’ उस ने फोन उठाते हुए बेमन से कहा. ‘‘हैलो, वीणा मैं बोल रहा हूं. आज मेरी मौसी आई हैं लखनऊ से और वे तुम से मिलना चाहती हैं. आज तुम हाफ डे ले लो. मैं तुम्हें 2 बजे तक लेने आ जाऊंगा. और हां, घर चल कर तुम्हें साड़ी भी पहननी है, क्योंकि आज तुम पहली बार मेरी मौसी से मिल रही हो. ठीक से तैयार हो कर चलना.’’

‘‘सुनो शशि, मैं आज नहीं आ पाऊंगी. बहुत ज्यादा काम है और फिर अब मुझे हाफडे नहीं मिलेगा.’’ ‘‘वीणा मैं तुम्हें यह बता रहा हूं कि तुम्हें मेरे साथ मेरे घर चलना है न कि तुम से पूछ रहा हूं… तुम्हें चलना ही पड़ेगा. अपनी छुट्टी कैसे मैनेज करनी है यह तुम जानो और हां, तुम्हें घर आ कर मां का हाथ भी बंटाना है. मैं तुम्हें ले कर पहुंच जाऊंगा, यह मैं उन से कह कर आया हूं.’’ ‘‘शशि, मुझ से पूछे बगैर तुम ने ये सब कैसे तय कर लिया?’’ ‘‘तुम से क्या पूछना? मुझे तुम से पूछ कर हर काम करना पड़ेगा?’’

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‘‘हां शशि जो मुझ से संबंधित हो… उस बारे में तुम्हें मुझ से पूछना चाहिए… एक तो हर दूसरे दिन मुझे किसी न किसी से मिलवाने अपने घर ले जाते हो और खुद गायब हो जाते हो… यह ठीक है कि तुम्हारे रिश्तेदार मुझ से मिलना चाहते हैं लेकिन शशि मेरा ऐसे बारबार तुम्हारे घर आना क्या अच्छा लगता है?’’ ‘‘और… और क्या? अब क्या शादी से पहले ही मेरे घर वालों से कतराना चाहती हो? या उन से ऊब गई हो?’’  ‘‘नहीं शशि मेरा यह मतलब नहीं… प्लीज गलतफहमी मत रखना… न मैं उन से कतराना चाहती हूं और न ही ऊब चुकी हूं. सच तो यह है कि मैं तुम्हारे साथ ज्यादा वक्त बिताना चाहती हूं. तुम्हें जानना चाहती हूं ताकि एकदूसरे को ज्यादा से ज्यादा समझ सकें, एकदूसरे की पसंदनापसंद जान सकें.’’ ‘‘नहीं, उस की कोई जरूरत नहीं. जो कुछ जाननासमझना है उस के लिए उम्र पड़ी है. अगर मेरे घर वाले तुम्हारे साथ वक्त बिताना चाहते हैं, तो तुम्हें उन की बात माननी पड़ेगी.

मैं तुम्हें लेने आ जाऊंगा. गेट पर मिलना,’’ और शशि ने फोन काट दिया. वीणा और शशि की शादी डेढ़ महीना पहले ही तय हुई थी. शशि वीणा की ही कंपनी की बाजू वाली कंपनी में काम करता था. आतेजाते दोनों एकदूसरे के आमनेसामने हो जाते थे. पहले मुलाकात हुई, फिर दोस्ती. शशि की तरफ से रिश्ता आया था. दोनों एकदूसरे से परिचित थे तो दोनों के घर वालों ने रिश्ते के लिए हां कर दी और फिर सगाई हो गई. उस के बाद हर दूसरेतीसरे दिन शशि वीणा को फोन कर के घर आने के लिए मजबूर करता.

शुरूशुरू में तो उसे अच्छा लगता कि उस के जाने के बाद उस की ससुराल वाले उस के आसपास मंडराते थे, लेकिन बाद में उसे ऊब होने लगी. वह शशि के साथ समय बिताना चाहती थी, जो जरूरी था. वह हर बात को ले कर जबरदस्ती करता. जैसे वीणा क्या पहनेगी या आज कहां जाना है? वह कभी उस के घर आएगा तो नाश्ता भी उसी की पसंद का बनेगा… यहां तक कि टीवी का चैनल भी उस की पसंद का लगाया जाएगा.  एक दिन जब शशि घर आया तो वीणा के घर वाले खाना खा रहे थे. आते ही उस ने  हमेशा की तरह जल्दी मचानी शुरू कर दी. ‘‘आओ बेटा खाना खाओ,’’ मां ने कहा. ‘‘नहीं मांजी, आज नहीं और वैसे भी मुझे यह भिंडी की सब्जी पसंद नहीं,’’ शशि मुंह बनाते हुए बोला. ‘‘अरे, यह तो हमारी बेटी की पसंदीदा सब्जी है,’’ पापा ने हंस कर कहा. ‘‘तो क्या हुआ? आज अगर पसंदीदा है तो खाए, बाद में तो उसे मेरे अनुसार ही खुद को ढालना पड़ेगा.’’ ‘‘क्या मतलब?’’ पापा ने चौंक कर पूछा. ‘‘पापा, मेरी बीवी मेरे अनुसार ही तो अपनी पसंदनापसंद तय करेगी न?

आखिर पति हूं मैं उस का… उसे मेरा कहना मानना ही पड़ेगा,’’ शशि रौब से बोला. ‘‘नहीं शशि… मैं क्यों हर बात तुम्हारी मरजी से करूंगी?’’ वीणा ने बात को हंसी में लेते हुए कहा, ‘‘आखिर मेरी जिंदगी मेरी मरजी से चलेगी न कि तुम्हारी मरजी से.’’ ‘‘वीणा, एक बात पल्ले बांध लो. हमारे समाज ने मर्दों को सारे अधिकार दे रखे हैं न कि औरतों को. अत: घर में पति की ही चलेगी न कि पत्नी की… और मैं तो…’’ ‘‘अरेअरे, रुको बेटा गुस्सा मत हो,’’ मां बीच में बोल पड़ीं… ‘‘तुम बाहर बैठो मैं उसे तैयार कर के भेजती हूं,’’ कह मां वीणा को अंदर ले गईं. बोलीं, ‘‘देखो बेटा, शशि थोड़ा हठी स्वभाव का लगता है… नईनई शादी तय हुई है. इस कारण हम पर खासकर तुम पर रौब झाड़ रहा… बाद में सब ठीक हो जाएगा और फिर शादी नाम ही उस रिश्ते का है जिस में समझौते से ही रिश्ते पनपते हैं. तुम चिंता मत करो. सब ठीक हो जाएगा. अब जाओ खुशीखुशी घूम आओ,’’ मां ने उसे समझा कर तैयार होने भेज दिया.  मां ने वीणा को तो समझा दिया, किंतु खुद उन की आंखों में फिक्र के साए उमड़ पड़े.  दिन बीतते गए. शादी की तारीख दीवाली के बाद की निकली थी.

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इसी बीच दोनों  मिलते रहे. उन मुलाकातों में बातें कम और शशि की सूचनाएं अधिक होती थीं. वीणा एक पोस्टग्रैजुएट लड़की थी. जिंदगी के प्रति उस की अपनी कुछ सोच थी, कुछ सपने थे, लेकिन उस का पार्टनर तो कुछ समझने को तैयार ही नहीं था.

आगे पढ़ें- उस दिन शशि ने उसे दोस्तों से…

Serial Story: आज दिन चढ़या तेरे रंग वरगा

Serial Story: आज दिन चढ़या तेरे रंग वरगा (भाग-5)

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6 जुलाई

आज मैं जसप्रीत के होस्टल गया. अच्छा हुआ कि उस की रूममेट, शालिनी छुट्टियां बिता कर आ चुकी थी वहां. एक पत्र उस को दे दिया मैं ने जसप्रीत के लिए. उस में ज्यादा न लिख कर केवल अपने जाने की बात लिख दी थी.

अब इस डायरी में हैदराबाद से लौट कर ही कुछ लिखूंगा.

20 नवंबर

मैं कितना प्रसन्न था कल हैदराबाद से लौटने पर. सोचा था कुछ देर बाद ही जसप्रीत से मिलने होस्टल जाऊंगा. पर उस समय मैं अवाक रह गया जब मम्मी ने मुझे जसप्रीत की शादी का कार्ड दिखाया. डाक से मिला था उन्हें वह कार्ड. यकीन ही नहीं हुआ मुझे.

जसप्रीत के विवाह की शुभकामनाएं देने के बहाने मैं एक बार लुधियाना जा कर इस बारे में जानना चाहता था. पर मम्मीपापा नहीं माने. उन का कहना था कि 31 अक्तूबर को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश में जो माहौल बना है उसे देखते हुए वे मुझे पंजाब जाने की अनुमति नहीं दे सकते.

जब अपने घर में ही लोग धर्म और जाति को ले कर इतना भेदभाव करते हैं तो देश में सौहार्दपूर्ण वातावरण की आशा क्यों?

21 नवंबर

मैं जसप्रीत के होस्टल जा कर शालिनी से मिला. उस ने बताया कि जसप्रीत जुलाई में लुधियाना से वापस आ गई थी. शालिनी ने मेरा पत्र भी दे दिया था प्रीत को. पर अगस्त में ही उस के पापा उसे वापस लुधियाना ले गए थे. शालिनी भी नहीं जानती थी कि प्रीत का विवाह हो गया.

क्या कहूं मैं अब? उसे तो भूल नहीं सकता कभी. मेरे लिए तो प्रीत के साथ बिताए वे 7 दिन ही सात जन्मों के बराबर थे. जसप्रीत, तुम ही हो मेरी सात जन्मों की साथी. किसी और की क्या जरूरत है अब मुझे?

कभी मिले तो पहचान लोगी न? खुश रहना हमेशा.

इतना पढ़ने के बाद हर्षित रुक गया. उस ने पन्ने पलटे पर इस के बाद डायरी में कुछ नहीं लिखा था.

‘‘तो सर कभी मिलीं जसप्रीतजी आप से आ कर?’’ साक्षी ने निराश हो कर पूछा.

‘‘आप ने क्यों नहीं कर ली शादी जब उन्होंने ही आप को धोखा दे दिया,’’ अमन के कहते ही दीपेश और हर्षित ने भी सहमति में अपना सिर हिला दिया.

प्रशांत सर ने पास रखा लकड़ी का डब्बा खोला और एक कागज साक्षी की ओर बढ़ा दिया और बोले, ‘‘मेरे हैदराबाद से लौटने के लगभग 2 वर्षों बाद अंकलजी हमारे घर आए थे. मैं मिल नहीं पाया था उन से, क्योंकि तब मैं जामिया मिलिया यूनिवर्सिटी से पीएचडी कर रहा था और प्रतिदिन होने वाली भागदौड़ से बचने के लिए होस्टल में रह रहा था. लो, पढ़ो यह पत्र.’’

एक सफेद लिफाफा जो लगभग पीला पड़ चुका था. भेजने वाले का नाम-सतनाम सिंह और पाने वाले की जगह लिखा था- प्रशांत पुत्तर के वास्ते. उस लिफाफे से कागज को निकाल कर साक्षी ने पढ़ना शुरू किया-

नई दिल्ली,

14.10.1986

प्रशांत, मेरे बच्चे,

लंबी उमर हो तेरी.

आज मैं आप के घर पर आया हुआ हूं. मिलना चाहता था एक बार आप से. यहां पहुंचा तो पता लगा कि आप गए हुए हो पीएचडी करने. मैं खत लिख कर आप के पापा को दे दूंगा.

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पिछली बार जब मेरा परिवार आप के घर आया था, तब कितने खुश थे हम सब. बस यों समझ लो कि मेरे जीवन की सारी खुशियां यहीं छूट गई थीं. मुसकराना भी भूल गया मैं तो उस के बाद.

मेरे भतीजे की शादी के टाइम पर एक रिश्ता आया था हमारी प्रीत के वास्ते. लड़का कनाडा में रहता था, पर उस वक्त वह शादी अटैंड करने आया हुआ था.

जसप्रीत ने इस रिश्ते के लिए इनकार कर दिया. मेरा पूरा परिवार तो हिल गया था यह सुन कर कि वह आप को पसंद करती थी. खानदान में कभी किसी ने सिख धर्म को छोड़ कर कहीं ब्याह नहीं किया था अपने बच्चों का.

लड़का अपने घरवालों के साथ 2 महीनों के लिए ही था इधर. हम ने जसप्रीत की मरजी के खिलाफ उस लड़के से जसप्रीत की शादी करने का प्रोग्राम बना लिया. जसप्रीत ने बहुत विनती की हम से कि आप के हैदराबाद से आने तक हम इंतजार करें, आप से बात कर के ही कोई फैसला लें.

नहीं माने हम लोग. पर क्या मिला उस जोरजबरदस्ती से हमें? आनंद कारज वाला घर अफसोस में बदल गया. बरात आने से पहले ही घर की छत से कूद गई जसप्रीत. 3 हफ्ते तक कोमा में रहने के बाद होश में तो आ गई वह, पर गरदन से नीचे का हिस्सा बेकार हो गया. सब समझती है, थोड़ाबहुत बोल भी लेती है पर, पुत्तर, उस के हाथपैर किसी काम के नही रहे. महसूस भी कुछ नहीं होता उसे गरदन के नीचे से पैरों तक. आप की आंटीजी सतवंत तो उस की हालत देख ही नहीं सकीं और पिछले साल चली गईं यह दुनिया छोड़ कर.

अंधे हो गए थे हम लोग. हमारी आंखों पर धर्म का परदा पड़ा था. हम नहीं समझ सके आप दोनों को. मेरे बच्चे, मैंनू माफ कर देना. वरना चैन से मर नहीं पाऊंगा.

आप का अंकलजी,

सतनाम सिंह.

पत्र पूरा होते ही सब सिर झुका कर बैठ गए. ‘‘मैं अभी आया,’’ कह कर प्रशांत सर लंबेलंबे डग भरते हुए दूसरे कमरे की ओर चल दिए.

कुछ देर बाद वे एक व्हीलचेयर को पीछे से सहारा देते हुए चला कर ला रहे थे. व्हीलचेयर पर एक महिला गाउन पहने बैठी थी. शांत, सौम्य चेहरा, स्नेह से भरी बड़ीबड़ी आंखें, बालों से झांकती हलकी चांदी और कंधे पर आगे की ओर लटकती हुई लंबी सी चोटी.

प्रशांत सर नम आंखों से सब की ओर देख कर व्हीलचेयर पर बैठी महिला से परिचय करवाते हुए बोले, ‘‘मिलिए इन से, मेरे सुखदुख की साथी, मेरे जीवन की खुशी, मेरी अर्धांगिनी, जसप्रीत.’’

सब आश्चर्यचकित रह गए. कुछ देर तक उन दोनों को अपलक निहारने के बाद दीपेश उठ कर खड़ा हो गया और उस को देख सभी जसप्रीत के सम्मान में खड़े हो गए.

जसप्रीत ने अपना टेढ़ा हाथ उठा कर सब को बैठने का इशारा किया और अपने होंठों को धीरे से फैलाते हुए मुसकरा दी.

प्रशांत सर बोलने लगे, ‘‘अपनी पीएचडी के दौरान ही जब मुझे जसप्रीत के विषय में पता लगा तो मैं ने झट से विवाह का निर्णय ले लिया. दबी जबान में मम्मीपापा ने विरोध जरूर किया पर वे समझ गए थे कि अब मैं नहीं रुकने वाला. मैं नहीं छोड़ सकता था जसप्रीत को उस हाल में.’’

‘‘इन्होंने बहुत इ…इ…इलाज करवाया मेरा. उस के बा…बाद ही थो…थोड़े हाथपैर चल…चलने लगे मेरे.’’ जसप्रीत अपनी बात रुकरुक कर कह पा रही थी.

‘‘आज जसप्रीत ने मुझ से कहा कि मैं अपनी डायरी आप सब को पढ़ने को दे दूं, इन का कहना था कि तभी बच्चे जान सकेंगे कि हम इमरान और स्वाति की भावनाएं क्यों बेहतर ढंग से समझ पा रहे हैं,’’ प्रशांत सर ने बताया.

‘‘ओह, आप से मिलना कितना अच्छा लग रहा है,’’ कह कर चहकती हुई साक्षी जसप्रीत से लिपट गई. सब लोग उठ कर जसप्रीत को घेर कर खड़े हो गए.

प्रशांत सर ने फिर से बोलना शुरू किया, ‘‘आप लोग जानना चाहते थे कि मैं ने क्या कहा स्वाति और इमरान के पेरैंट्स से? सुनो, मैं ने पहले उन से पूछा कि धर्म के नाम पर बंटवारा आखिर है क्या? कहां से आईं ये बातें? क्या यह जन्मजात गुण है व्यक्ति का? जन्म लेते ही बच्चे के चेहरे पर क्या उस का धर्म अंकित होता है? हम ही बनाते हैं ये दीवारें और कैद हो जाते हैं उन में खुद ही. इतना ही नहीं, जब कोई प्रेम के वशीभूत हो इन दीवारों को तोड़ना चाहता है तो हम उसे नासमझ ठहरा कर या डराधमका कर चुप करा देते हैं. कब तक अपनी बनाई हुई दीवारों में खुद को कैद करते रहेंगे हम? कब तक अपनी बनाई हुई बेडि़यों में जकड़े रखेंगे खुद को हम? आखिर कब तक.’’

जसप्रीत ने अपनी दोनों हथेलियां मिलाईं और धीरे से ताली बजाने लगी. वहां खड़े छात्र भी मुसकराते हुए जसप्रीत का अनुसरण करने लगे. कमरा तालियों की आवाज से गूंज उठा.

‘‘सर, हम किन शब्दों में आप को धन्यवाद कहें,’’ दीपेश ने कहा.

प्रशांत सर मुसकराते हुए बोले, ‘‘एक बात मैं जरूर कहूंगा. स्वाति और इमरान के पेरैंट्स समझदार हैं. फिलहाल दोनों के मिलने पर रोकटोक न लगाने को तैयार हैं वे. कह रहे थे कि रिश्ता जोड़ने के विषय में कुछ दिन विचार करेंगे. चलो, आशा की किरण तो दिखाई दी न? पर दुख की बात है कि सब लोग ऐसे नहीं होते.’’

‘‘क्यों न हम सब मि…मिल…मिल कर एक ऐसा संग…संगठन बनाएं जो लोगों को जा…जा…जाग…जागरूक करे,’’ जसप्रीत ने सुझाव दिया.

‘‘हां, हां,’’ की सम्मिलित आवाज कमरे में सुनाई देने लगी.

‘‘मैं भी स…सह… सहयोग करूंगी उस…उस में.’’ कह कर जसप्रीत का चेहरा नई आभा से दैदीप्यमान हो झिलमिलाने लगा.

‘‘वाह जसप्रीत, खूब. हम जल्द ही ऐसा करेंगे,’’ प्रशांत सर बोले.

‘‘उस संगठन के माध्यम से हम सब को यह समझाने का प्रयास करेंगे कि जाति और धर्म का लबादा जो हम ने सिर तक पहन रखा है, बहुत जरूरी है अब उसे उतार फेंकना. दम घुट जाएगा वरना हमारा,’’ हर्षित अपनी बुलंद आवाज में बोला.

‘‘और यह भी कि बच्चों की बात सुना करें पेरैंट्स. उन पर भरोसा रखें, उन्हें दोस्त समझें,’’ साक्षी ने कहा.

‘‘औ…औ…और यह भी…यह भी… कि कोई औरत अपने को कम….कम…. कमजोर समझ कर आ…आ….आ… आत्महत्या की कोशिश न करे…क… कभी,’’ जसप्रीत अटकअटक कर बोली.

‘‘बिलकुल, नारी अबला नहीं वह तो संबल है सब का,’’ साक्षी ने कहा.

कुछ देर बाद प्रशांत ने सब का धन्यवाद किया और वे चारों लौट गए.

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रात के 10 बज गए थे. प्रशांत सर ने कमला को खाना लगाने को कहा और जसप्रीत को सहारा दे कर डाइनिंग टेबल की कुरसी पर बैठा दिया.

अगले दिन सुबह 6 बजे नींद खुली उन की. खिड़की का परदा हटा कर वे बाहर देखते हुए सोच रहे थे, ‘कितना सुंदर है यह आकाश में गुलाबी रंग बिखेरता हुआ सूरज और उस के उदय होते ही गगन में स्वच्छंदता से उड़ान भरते हुए ये पंछियों के झुंड…

‘जसप्रीत, तुम्हारा यह नया रूप शायद आने वाले समय को अपने गुलाबी रंग में रंग लेगा और फिर नई पीढ़ी भर सकेगी एक स्वच्छंद, ऊंची उड़ान…आज का दिन तो सचमुच तुम्हारे रंग में रंग कर निकला है प्रीत.’

प्रशांत सर गुनगुना उठे –

‘‘आज दिन चढ़या तेरे रंग वरगा.’’

Serial Story: आज दिन चढ़या तेरे रंग वरगा (भाग-3)

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3 जून

आज जसप्रीत भी गई थी चांदनी चौक, उसे अपने लिए खरीदारी करनी थी.  अंकलजी प्रतिदिन मम्मी और आंटीजी के चले जाने के बाद 2-3 घंटे तक सोते रहते हैं और शेष समय समाचारपत्र व पत्रिकाएं आदि पढ़ने में बिता देते हैं. पर आज वे मेरे साथ बैठ कर खूब बातें करते रहे. अंकलजी बहुत रोचक किस्से सुनाते हैं. उन्होंने बताया कि कालेज के दिनों में वे अपने दोस्तों के साथ मिल कर खूब शरारत करते थे. किसी भी बरात में वे सजधज कर चले जाते और दूल्हे के आगे खूब नाचते थे. बाद में खापी कर चुपचाप वापस आ जाते थे.

अंकलजी हिंदी बोलते हुए बीचबीच में पंजाबी के शब्दों का प्रयोग करते हैं. मुझे यह बहुत अच्छा लगता है.

वे मुझे प्रशांत पुत्तर कह कर पुकारते हैं. उन के साथ बातों में दिन हंसते हुए बीत गया.

शाम को सब लोग वापस आ गए. जसप्रीत पास ही खड़े ठेले से मेरे लिए कोला वाली बर्फ की चुस्की ले कर आई. आज सुबह बात कर रहे थे हम दोनों अपनी पसंदनापसंद के विषय में. याद रही जसप्रीत को मेरी पसंद. मेरा रोमरोम खिल उठा.

4 जून

ओह, आज का दिन…क्या लिखूं? इस समय रात में डेढ़ बज चुके हैं. प्रीत सो गई होगी या नहीं? पता नहीं. पर मुझे नींद कहां?

सुबह से ही मेरे दोस्त अविनाश

और संजीव आए हुए थे. शाम

को वापस गए. सारा दिन कोई बात नहीं हुई मेरी जसप्रीत से.

रात को खाना खाने के बाद हम दोनों छत पर चले गए. आसमान में बादल छाए हुए थे और हवा कुछ शीतलता लिए थी. शायद कहीं बारिश हुई होगी.

जसप्रीत मुझे अपनी अब तक की खरीदारी के विषय में बता रही थी. किनारी बाजार और परांठे वाली गली के अनुभव सुना रही थी. मैं टहलते हुए निरंतर उस की ओर देख रहा था. रात की चांदनी में चांदनी चौक की बातें सुनते हुए उस का मदमाता रूप मुझे बारबार किसी और ही लोक में ले जा रहा था. तब मुझे तेज झटका लगा जब जसप्रीत ने अचानक पूछ लिया, ‘क्या आप ने कभी प्यार किया है?’

‘शायद नहीं.’

‘शायद? मतलब?’

‘अभी तक तो नहीं किया था,’ मैं मुसकरा दिया.

‘अच्छा बताओ, मुझे ऐसा क्यों लगता है कि आप के साथ मैं महफूज हूं. आप मुझे जो कहते हो, मेरा वही करने को दिल करता है. आप ने कहा, मैं छत पर चलूं, मैं आ गई, जबकि मैं अंधेरे से बहुत डरती हूं.’

‘सच? पर तुम्हें अचानक यह प्यार वाली बात कैसे सूझी?’ मुझे जसप्रीत की बात से नशा सा होने लगा था.

‘क्योंकि मैं जानना चाहती थी कि तब कैसा लगता होगा जब किसी से प्यार हो जाता है?’

‘हूं, सुनो, तब ऐसा लगता है जैसे आप किसी के पास महफूज हैं,’ मैं अपनी आवाज को गंभीर बनाते हुए बोला.

‘हाय, तुसी ते बड़े शैतान हो,’ आंखें फाड़ कर जसप्रीत लगातार मुझे देख रही थी.

अंधेरे में मुझे उस की आंखों में वह सब दिखाई दे रहा था, जो तेज रोशनी में एक लाज का परदा छिपा लेता है.

‘पर तुम बिलकुल शैतान नहीं हो,’ मैं भावहीन सा चेहरा लिए बोला.

जसप्रीत तेजी से अपना चेहरा मेरे चेहरे के पास लाई और पंजों के बल खड़े हो कर मेरे माथे को हौले से चूम लिया. मैं इस के लिए बिलकुल भी तैयार नहीं था. अचानक ही मेरे अंदर एक मादक सी ऊर्जा भरने लगी. हाथ उस को कस कर लपेट लेना चाहते थे, आंखें बस उस को ही देखना चाहती थीं और उस को मैं अपने बहुत करीब महसूस करना चाहता था. मैं ने उस का चेहरा अपने दोनों हाथों में थाम लिया और अपना मुंह उस के कान के पास ले जा कर धीरे से बोला, ‘मेरी सोहणी.’

जसप्रीत मुझ से छूट कर मुसकराती हुई नीचे भाग गई.

मैं भी नीचे आ गया. उस की पलकें लाज और प्रेम से बोझिल थीं. तुम बहुत प्यारी हो प्रीत, क्या लिखूं और?

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रात के 2 बजे हैं और नींद मेरी आंखों को छोड़ कर वैसे ही जा चुकी है जैसे मेरे और जसप्रीत के बीच 5 दिन पहले का परायापन.

अचानक बारिश होने लगी है. काश, मैं और जसप्रीत अभी छत पर ही होते, वह कहती ‘मेरी सोहणी’ कह कर रुक क्यों गए, कुछ और बोलो न. मैं कहता, कल्पना करो कि तुम धरती और मैं बादल. प्यासी धरती और फिर खूब जोर से बरस जाए बादल. वह कहती यों नहीं, प्यार से कहो, कुछ अलग ढंग से. और मैं उसे कुछ गढ़ कर सुना देता, शायद कुछ ऐसा-

जमीं से लिपट कर बरस रहे आज बादल,

खुशबू में उस की सिमट रहे आज बादल,

करवट ली मौसम ने कैसी अचानक आज,

लिबास बन कर जमीं का मदहोश है बादल.

तुम ने तो मुझे शायर बना दिया प्रीत. आज नींद नहीं आएगी मुझे.

5 जून

कल रात न जाने कब नींद आई, पर आंख सुबह 6 बजे ही खुल गई. आसमान सुनहरा था. मेरे चेहरे को छू रही थी धूप की गुनगुनी सी गरमी और गुलाब के फूल को छू कर आए नर्म हवा के झोंके. मैं पंजाबी में गुनगुना उठा –

‘आज दिन चढ़या तेरे रंग वरगा,

तेरे चुम्मन पिछली संग वरगा,

है किरणा दे विच नशा जेहा,

किसे चिंदे सप्प दे डंग्ग वरगा.’

‘ओह, तो आप शिव कुमार बटालवी को भी पढ़ते हैं?’ पीछे से जसप्रीत की आवाज आई.

‘हां जी, सुना भी है उन्हें. कितना सुंदर लिखते थे वे प्रेम पर,’ मैं मुसकरा दिया.

‘सिर्फ प्रेम पर थोड़े ही लिखते थे. वे तो जुदाई का दर्द भी जानते थे. तभी तो उन्हें बिरहा का सुलतान कहते हैं,’ जसप्रीत दोनों हाथ पीछे कर आंखें नचाती हुई बोली.

‘जब विरह से सामना होगा तब भी याद कर लेंगे उन्हें. पर अभी तो मोहब्बत के नगमे गाने दो न,’ मैं जसप्रीत के पास जा कर खड़ा हो गया.

‘करो जी इश्कविश्क, सुनाओ जी उन की प्रेम वाली कविता. पर मतलब भी समझते हो या यों ही?’ मुझे चिढ़ाने के अंदाज में हंसती हुई वह बोली.

मैं उस के एकदम करीब पहुंच गया और अपने दोनों हाथों में उसे समेटते हुए बोला, ‘मतलब भी जानते हैं, ऐसे ही थोड़ी गुनगुना रहा था मैं. लो सुनो, आज की सुबह तो बिलकुल तुम्हारे रंग जैसी है, एकदम सुनहरी. और पिछली मुलाकात में हुए चुंबन जैसी गुलाबी महक भी है सुबह में. और….और….आज तो किरणों की छुअन से भी नशा सा हो रहा है, किसी जहरीले सांप का डंक था वो चुंबन… नहीं…चुम्मन…’

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मेरे बाहुपाश में जकड़ी जसप्रीत खिलखिला कर हंस पड़ी, ‘आप तो माहिर हो पंजाबी में भी. हाय, मर जावां.’

जसप्रीत के तन की सुगंध मेरे अंगअंग पर छा रही थी. मैं किसी उन्मादी सा बहकने लगा था, ‘मर तो मैं गया हूं. एक बार फिर डस कर अपने जहर से जिंदा कर दो मुझे,’ कह कर मैं ने उस के अधरों पर अपने होंठों से प्रेम लिख दिया.

जसप्रीत का सुनहरा चेहरा सुर्ख लाल हो गया. मैं इस लाल रंग में रंगा अपनी सुधबुध खो बैठा हूं.

आगे पढ़ें- जसप्रीत लुधियाना में रहने वाली अपनी….

Serial Story: आज दिन चढ़या तेरे रंग वरगा (भाग-2)

पिछला भाग पढ़ने के लिए- आज दिन चढ़या तेरे रंग वरगा: भाग-1

जब वे लौटे तो उन के हाथ में लकड़ी का छोटा सा डब्बा और एक पुरानी डायरी थी.

‘‘आप सब को अपने प्रश्न का उत्तर जानने के लिए कुछ समय देना होगा. लो हर्षित, इस पृष्ठ से पढ़ना शुरू करो,’’ डायरी खोल कर सर ने हर्षित के हाथों में देते हुए कहा.

‘‘लेकिन सर, यह तो आप की लिखाई है. मतलब आप की पर्सनल डायरी, जोरजोर से पढ़ूं क्या?’’ हर्षित झिझकते हुए बोला.

‘‘हां, पढ़ो, आज से लगभग 34 साल पहले की है यह,’’ प्रशांत सर बोले.

तब तक चाय और नमकीन लग गए टेबल पर. चाय की चुसकियों के बीच हर्षित ने डायरी खोल कर सर के बताए पृष्ठ से पढ़ना शुरू किया.

1 मई, 1984

अगले सप्ताह से परीक्षाएं शुरू. अविश्वसनीय ही लग रहा है कि मैं एमए फाइनल भी पास करने जा रहा हूं. आज से खुद को अध्ययन में ही केंद्रित करना होगा. कल से यह डायरी अलमारी में और पुस्तकें बाहर.

29 मई

कल अंतिम दिन था परीक्षा का, आज चैन की सांस ली है. लेकिन पूरा दिन खाली बैठना उबाऊ भी लग रहा है. कल सैंट्रल लाइब्रेरी जा कर कुछ पुस्तकें ले आऊंगा. कम से कम घर पर मन तो लगा रहेगा.

30 मई

पुस्तकें ले कर घर लौटा, तो मम्मी ने बताया कि आज सामान लेने चांदनी चौक गई थीं वे. वहां अचानक उन की भेंट अपनी एक पुरानी सहेली जसवंत कौर से हो गई. वे अपने पति के साथ विवाह की खरीदारी करने लुधियाना से दिल्ली आई हुई हैं. जुलाई में उन के परिवार में एक शादी है.

आंटीजी को यहां शौपिंग करने में थोड़ी परेशानी हो रही थी, क्योंकि अंकलजी जल्दबाजी करते हैं. मम्मी के कहने पर वे लोग होटल छोड़ कर कुछ दिनों के लिए हमारे घर आ जाएंगे, फिर आंटीजी मम्मी के साथ 2-3 दिनों में आराम से सब खरीदारी कर सकेंगी.

31 मई

आज दोपहर में वे दोनों आ गए थे. अच्छा लगा उन से मिलना. आंटीजी एक गृहिणी हैं और अंकलजी का पारिवारिक व्यवसाय है.

उन की एक बेटी है जसप्रीत, जो दिल्ली यूनिवर्सिटी से बीए कर रही है. वह छात्रावास में रहती है. आज उस की परीक्षा का अंतिम दिन था. अब वह उन लोगों के साथ लुधियाना चली जाएगी. छुट्टियां भी हैं और वहां उस के ताऊजी के बेटे की शादी भी.

एग्जाम दे कर शाम को जसप्रीत भी आ गई थी हमारे घर. लेकिन उस से मिलना नहीं हो सका मेरा. मैं अपने मित्र सोहन के घर गया हुआ था. कुछ देर पहले ही लौटा हूं. रात के 11 बजे हैं, तेज नींद आ रही है.

1 जून

सुबह नाश्ते के बाद अपने कमरे में एक कहानीसंग्रह ले कर बैठा था. फिर से पढ़ी फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी ‘मारे गए गुलफाम’. सचमुच, कितनी भोलीभाली है यह कहानी, मन मोह लेती है पढ़ने वाले का, तभी तो बनी उस पर ‘तीसरी कसम’ जैसी फिल्म.

अचानक दरवाजे पर दस्तक हुई. ‘कौन होगा जो आधे खुले दरवाजे को खटखटा रहा है?’ सोच कर मैं ने दरवाजा खोला. वह जसप्रीत थी.

ओह, कितना गोरा रंग है उस का और बड़ीबड़ी मनमोहक आंखें. मेरा दिल तेजी से धड़क उठा जसप्रीत को देख कर.

‘मारे गए गुलफाम’ के हीरामन को शायद ऐसा ही लगा होगा जब चांदनी रात में उस ने हीराबाई का चेहरा पहली बार देखा था. उस के मुंह से निकल गया था, ‘अरे बाप रे, ई तो परी है.’

गुलाबी सलवारसूट और सितारे लगे दुपट्टे में किसी परी से कम कहां लग रही थी जसप्रीत.

वह अंदर आ कर बैठ गई. मैं डीयू से हिंदी में एमए कर रहा हूं, जान कर वह प्रसन्न हुई. वह हिस्ट्री (औनर्स)

के दूसरे वर्ष की परीक्षा दे चुकी है.

बातोंबातों में पता लगा कि उसे भी साहित्य में रुचि है. मेरी मेज पर रखे कहानीसंग्रह को वह खोल कर देखने लगी. उस में चंद्रधर शर्मा गुलेरी की अमर कहानी ‘उस ने कहा था’ का उल्लेख करते हुए वह बोली कि यह कहानी उसे बेहद पसंद है.

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जसप्रीत की आंखों, उस की बातों और विशेषकर लंबे बालों में न जाने क्या आकर्षण था कि उस की अनामिका उंगली में पहनी हुई अंगूठी मेरी आंखों में खटक रही थी. ‘क्या जसप्रीत का रिश्ता हो चुका है कहीं?’ जी चाहा मैं भी ‘उस ने कहा था’ कहानी के लहना सिंह की तरह ही पूछ लूं, ‘तेरी कुड़माई हो गई?’

पर उस के हाथ में अंगूठी का मतलब यह तो नहीं कि उस की सगाई हो गई हो, उम्र तो ज्यादा नहीं है उस की.

‘आप के हाथ में जो अंगूठी है क्या वह सोने की है?’ आखिर मुझ से रहा नहीं गया.

‘अरे, मैं तो इसे उतारना ही भूल गई. सोने की है पर यह अंगूठी नहीं ‘कलिचड़ी’ है. मेरे वीरजी की मैरिज है न लुधियाना में. यह अंगूठी भरजाईजी की बहन के लिए बनवाई है.’

‘हां, जानता हूं. दूल्हा शादी में अपनी साली को जो अंगूठी देता है, उसे पंजाब में ‘कलिचड़ी’ कहते हैं. पर तुम पहन कर क्यों बैठ गईं इसे?’ मैं जसप्रीत से दोस्ताना अंदाज में बोला.

‘मम्मी ने कहा था कि पहन कर देख लो. उस का और मेरा साइज एक है,’ अंगूठी उतारते हुए मेरी ओर देख मुसकरा कर जसप्रीत बोली.

‘अंगूठी उस की सगाई की नहीं है,’ सोच कर मैं मन ही मन राहत महसूस करने लगा. फिर अगले ही क्षण मुझे अपने पर ही हंसी आ गई. यदि जसप्रीत का रिश्ता तय हो चुका होता तो भी क्या फर्क पड़ता.

2 जून

नाश्ते के समय आज सुबह मैं और जसप्रीत बालकनी में कुरसियां डाल कर बैठे थे. उस ने मुझे अपनी सहेलियों और कालेज के विषय में बताया. मैं ने भी उस से अपने खास मित्रों की चर्चा की.

मम्मी और आंटीजी के चांदनी चौक चले जाने के बाद वह मेरे कमरे में आ कर बैठ गई. हम दोनों को बातचीत के लिए मनपसंद विषय मिल गया था-साहित्य.

उसे हिंदी कहानियों के साथसाथ कविताएं भी अच्छी लगती हैं. हिंदी साहित्य में उस की रुचि देख मुझे आश्चर्यमिश्रित हर्ष हो रहा था.

जब मैं ने उसे बताया कि मुझे रूसी भाषा का हिंदी में अनुवादित साहित्य भी पसंद है तो वह उस विषय में जानने को उत्सुक हो गई. यह सुन कर कि मैं ने मैक्सिम गोर्की का कालजयी उपन्यास ‘मां’ हिंदी में पढ़ा है, वह बेहद प्रभावित हुई. अपनी बड़ीबड़ी आंखें फाड़े मेरी ओर देख कर वह बोली, ‘अरे वाह, कुछ और भी बताओ न रूसी साहित्य के विषय में.’

जसप्रीत का चेहरा उस समय मुझे बेहद मासूम लग रहा था. मेरा नटखट मन चाह रहा था कि मैं उसे कोई प्रेमकहानी सुना दूं. तब मैं ने जानबूझ कर आंतोन चेखोव की कहानी ‘एक छोटा सा मजाक’ के बारे में बताना शुरू कर दिया. कहानी में एक लड़का नाद्या नाम की लड़की से बारबार तेजी से स्लेज पर फिसलते समय कहता है कि वह उस से प्यार करता है और भोलीभाली नाद्या हर बार यही सोचती है कि वह आवाज हवा की है.

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कहानी सुन कर जसप्रीत कुछ देर तक मेरी ओर देखती रही. ऐसा लग रहा था जैसे उस की झील सी आंखों में कोई प्रश्न तैर रहा है.

आगे पढ़ें- आज जसप्रीत भी गई थी चांदनी चौक, उसे…

Serial Story: आज दिन चढ़या तेरे रंग वरगा (भाग-4)

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6 जून

जसप्रीत लुधियाना में रहने वाली अपनी कुछ सहेलियों के लिए रेडीमेड सलवारसूट खरीदना चाहती थी. उस ने बताया कि कमला मार्केट में इस प्रकार के कपड़ों की कई दुकानें हैं. मम्मी आज थकी हुई थीं. आंटीजी ने मुझ से आग्रह किया कि जसप्रीत के साथ मैं चला जाऊं. मुझे पता था कि कनाट प्लेस के पास भी कपड़ों की कुछ ऐसी ही दुकानें हैं जनपथ पर. इसलिए हम दोनों वहां चले गए.

अहा, क्या दिन था आज का. चिलचिलाती धूप आज चांदनी से कम नहीं लग रही थी. कनाट प्लेस में घूमते हुए कुल्फी खाने में बहुत आनंद आ रहा था हम दोनों को. कुछ सामान खरीदने के बाद मैं ने उस से पालिका बाजार चलने को कहा.

पालिका बाजार के विषय में जसप्रीत नहीं जानती थी. वातानुकूलित भूमिगत बाजार पहली बार देखा था उस ने. वहां गरमी से तो राहत मिली पर भीड़भाड़ बहुत थी.

बाहर निकल कर हम ने रीगल सिनेमा हौल में फिल्म ‘शराबी’ देखने का निश्चय किया, पर हाउसफुल का बोर्ड देख कर निराश हो गए. फिर आसपास घूमते हुए हम ने रेहड़ी वाले से गन्ने का रस खरीद कर पिया और गोलगप्पे भी खाए, खूब चटखारे ले कर.

शाम तक प्रीत ने वह सब खरीद लिया जो वह लेना चाहती थी. घर आते समय सामान अधिक होने के कारण हम ने बस से न आ कर औटो करना उचित समझा. औटो की तेज गति और जसप्रीत की निकटता का रोमांच. मैं हवा में उड़ा जा रहा था.

घर पहुंचे तो सभी टीवी पर नजरें गड़ाए औपरेशन ब्लूस्टार का समाचार देख रहे थे. कुछ देर बाद अंकलजी ने कहा कि उन लोगों को लुधियाना के लिए कल ही निकल लेना चाहिए. कहीं ऐसा न हो कि राजनीति के नाम पर फूट डालने वालों को मौका मिल जाए और दंगेफसाद हो जाएं. खरीदारी भी लगभग पूरी हो गई थी उन की.

रात के खाने के बाद मैं जसप्रीत के साथ अपने कमरे में आ गया. हम अपने सपनों को ले कर चर्चा कर रहे थे. जसप्रीत बीएड कर एक अध्यापिका बनना चाहती है. मैं ने इस के लिए उसे खूब मेहनत करने की सलाह दी. मुझे भी लैक्चरर बनने के लिए शुभकामनाएं दीं उस ने.

अपने प्रेम के भविष्य को ले कर हमें एक सुखद एहसास हो रहा था. हम दोनों ही अपने मम्मीपापा की प्रिय संतान हैं, इसलिए विजातीय और अलगअलग धर्मों से होने के बावजूद हमें पूरा यकीन है कि हमारे मातापिता हमें एक होने से नहीं रोकेंगे.

7 जून

चली गई जसप्रीत.

जाने से पहले भावुक हो कर मुझ से बोली, ‘जल्दी ही हमेशा के लिए आ जाऊंगी यहां.’

मैं ने अपनी उदासी छिपाने की कोशिश कर हंसते हुए कहा, ‘जल्दी ही? अभी तो मैं अपने पैरों पर खड़ा भी नहीं हूं और तुम हो कि अपना बोझ मुझ पर लादना चाहती हो.’

उस ने नजरें झुका कर एक

कविता की पंक्तियां बोलते हुए जवाब

दिया-

‘चरणों पर अर्पित है, इस को चाहो तो स्वीकार करो,

यह तो वस्तु तुम्हारी ही है, ठुकरा दो या प्यार करो.’

‘ओह, सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता,’ मैं मुसकराने की असफल चेष्टा करते हुए बोला.

टैक्सी में बैठते हुए जसप्रीत अपनी रुलाई रोक न पाई और अपने कमरे में वापस आ कर मैं.

4 जुलाई

कई दिनों बाद डायरी खोली है. लिखता भी तो क्या? प्रीत की यादों के सिवा लिखने को था ही क्या मेरे पास.

आज लाइब्रेरी में पुस्तकें लौटाने गया तो यशपाल सर मिल गए. उन्होंने बताया कि केंद्रीय हिंदी संस्थान, हैदराबाद ने एक प्रोजैक्ट के लिए कुछ विद्यार्थियों के नाम मांगे थे उन से. सर ने मेरा नाम भी दिया था. मुझे चयनित कर लिया गया है. 4 महीने के लिए जाना पड़ेगा मुझे वहां पर. इस अनुभव का मुझे विशेष लाभ मिलेगा और पीएचडी के लिए आवेदन करने पर निश्चय ही मुझे प्राथमिकता दी जाएगी.

जसप्रीत तो 15 जुलाई से पहले आएगी नहीं होस्टल वापस. मैं तो तब तक हैदराबाद चला जाऊंगा. उसे पत्र या टैलीफोन द्वारा सूचित करने के उद्देश्य से मम्मी के पास जा कर जसप्रीत के घर का पता और फोन नंबर मांगा तो उन के माथे पर बल पड़ गए. वे जानना चाहती थीं कि मैं अपने हैदराबाद जाने की सूचना जसप्रीत को क्यों देना चाहता हूं? जब मैं ने उन्हें अपनी भावनाओं से अवगत कराया तो मेरी आशा के उलट वे नाराज हो गईं. मुझे डांट लगाती हुई बोलीं, ‘तुझे भी जमाने की हवा लग गई?’

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जब मैं इस विषय में खुल कर उन से चर्चा करने लगा तो वे कल पापा के सामने बात करेंगे. कह कर चुपचाप चली गईं. पापा आज औफिस के काम से मेरठ गए हैं, देर रात में लौटेंगे.

5 जुलाई

कभी सोचा भी नहीं था मैं ने कि पापा मेरे और प्रीत के रिश्ते को ले कर इतने नाराज हो जाएंगे. वे मुझ से ऐसे बरताव करने लगे जैसे मैं ने चोरी की हो.

‘यह क्या तमाशा है? अपनी जात में लड़कियों का अकाल पड़ गया है क्या?’ त्योरियां चढ़ा कर पापा सुबहसुबह मुझ से बोले.

‘पापा, मैं उस से प्यार करता हूं.’

‘एक हफ्ता रहे उस के साथ

और प्यार? इसे प्यार नहीं कुछ और ही कहते हैं.’

‘क्या कहते हैं इसे पापा?’

‘बुरी नजर. शर्म नहीं आती तुझे?’ पापा गुस्से से चिल्लाए.

‘जसप्रीत भी प्यार करती है मुझ से,’ मैं भी तेज आवाज में बोला.

मेरे इस तरह जवाब देने से पापा कहीं और क्रोधित न हो जाएं, यह सोच कर मम्मी बीच में आ गईं.

‘बेटा, तू बड़ा भोला है, वह तुझ से दो मीठे बोल बोली और तू प्यार समझ बैठा. वह सबकुछ भूल भी चुकी होगी अब तक,’ मम्मी बोलीं.

‘नहीं, मुझे यकीन है जसप्रीत पर,’ मैं अपनी बात पर अड़ा हुआ था.

‘लुधियाना से लौट कर तेरे साथ घूमनेफिरने के लिए कर रही होगी, प्यार का नाटक. यहां जसप्रीत की जानपहचान वाला तो कोई रहता नहीं. हमारे तो रिश्तेदार भरे पड़े हैं दिल्ली

में. मिलना भी मत उस से. हमारी

इज्जत मिट्टी में मिलाएगा?’ पापा जोर से चिल्लाए.

‘ठीक है पापा, अभी नहीं घूमूंगा उस के साथ. पर शादी के बाद तो घूम सकता हूं, फिर तो कोई एतराज नहीं होगा किसी रिश्तेदार को?’

‘फिर वही बेवकूफी. क्या कमी है तुझ में कि कोई अपनी लड़की नहीं देगा? और फिर भी तुझे हमारी बात नहीं माननी है तो समझ ले कि मर गए हम तेरे लिए,’ किसी फिल्मी पिता की तरह बोल कर पापा ने बात खत्म की.

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मैं अपने कमरे में वापस आ गया. सोच रहा हूं कि हैदराबाद न जाऊं.

पर ऐसा मौका हाथ से जाने भी नहीं

दे सकता.

ठीक है. चला जाता हूं. आ कर मिलता हूं जसप्रीत से. शायद उस के मम्मीपापा मना लेंगे मेरे पापामम्मी को.

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Serial Story: आज दिन चढ़या तेरे रंग वरगा (भाग-1)

‘‘10 मिनट पहले शुरू हो चुकी होगी क्लास.’’ कालेज के गेट से अंदर आते हुए अपने मोबाइल में टाइम देख अमन बोला.

‘‘यह दिल्ली की धोखेबाज मैट्रो, आज ही रुकना था इसे रास्ते में. क्या यार,’’ सिर झटक कर निराश स्वर में साक्षी ने कहा.

दोनों लगभग भागते हुए क्लासरूम की ओर जा रहे थे.

‘‘प्रशांत सर के लैक्चर में लेट होने का मतलब है क्लास में प्रवेश करते ही खूब सारी डांट, टाइम की वैल्यू पर लंबा सा भाषण और आज तो…’’

‘‘क्या आज तो? डरा क्यों रहा है?’’ साक्षी ने शिकायती अंदाज में पूछा.

‘‘हम दोनों हैं एकसाथ, कोई और दोस्त नहीं है.’’

‘‘ओ माय गौड, मैं तो भूल ही गई थी. लड़कालड़की साथ, मतलब सर का पारा हाई.’’

‘‘वही तो. एक दिन नेहा और कार्तिक कैंटीन में साथसाथ बैठे थे. प्रशांत सर भी पहुंच गए वहां. वे पूछने लगे, उन का रिलेशन, दोनों की कास्ट वगैरहवगैरह.’’

‘‘लगता है सर की शादी नहीं हुई, तभी तो किसी का प्यार देखा नहीं जाता इन से. पिछले महीने कालेज के फाउंडेशन डे पर सभी टीचर्स अपने परिवार के साथ आए थे, लेकिन सर अकेले ही थे. फिफ्टी प्लस तो होंगे ही न, ये सर?’’ साक्षी प्रशांत सर की आयु का अनुमान लगाने लगी.

‘‘हां, फिफ्टी? फिफ्टी फाइव प्लस होंगे, यार.’’

‘‘बेचारे, कुंआरे बिना सहारे,’’ साक्षी ठहाका लगा कर हंस पड़ी.

‘‘चुप, चुप, क्लासरूम आ गया.’’ अमन ने अपने होंठों पर उंगली रख साक्षी को चुप रहने का इशारा किया और दोनों क्लासरूम के भीतर चले गए.

अंदर दृश्य कुछ और ही था. सभी छात्र किसी चर्चा में लीन थे. सर नहीं थे वहां.

‘‘क्या हो गया?’’ अमन ने हर्षित को संबोधित करते हुए कहा.

‘‘अरे, आज इमरान क्लास में बेहोश हो कर गिर पड़ा. दीपेश ने उस के मुंह पर पानी के छींटे मारे. 2 मिनट बाद ही होश तो आ गया था उसे, पर बहुत बेचैन सा लग रहा था वह. विनायक और दीपेश उसे ले कर उस के घर गए हैं,’’ हर्षित ने बताया.

‘‘तो अब क्यों चिंता कर रहे हो तुम सब, उस के पेरैंट्स ले जाएंगे न डाक्टर के पास, सब ठीक हो जाएगा. नो फिक्र, यार,’’ अमन ने हर्षित को आश्वस्त करते हुए कहा.

‘‘क्या खाक ठीक हो जाएगा. पूरी बात तो सुन ले भाई,’’ हर्षित बोला.

‘‘अब तू और क्या सुनाएगा?’’ साक्षी के माथे पर चिंता की रेखाएं खिंच गईं.

‘‘हुआ यों कि जब इमरान के होश में आने पर हम उसे तसल्ली दे रहे थे कि स्वाति न सही कोई और सही, क्यों इतना मरा जा रहा है उस के लिए, तभी…’’

‘‘अरे, इमरान और स्वाति का ब्रेकअप हो गया क्या? इलैवंथ से साथसाथ थे वे दोनों. 6 साल पुराना रिश्ता अचानक कैसे टूट गया?’’ अमन ने हर्षित की बात बीच में ही काट कर प्रश्न किया.

‘‘ब्रेकअप हुआ नहीं, करवा दिया है स्वाति के घरवालों ने. उन को दोनों की रिलेशनशिप का पता लग गया और उन्होंने इमरान को धमकी दे दी कि अगर उस ने कभी स्वाति से बात भी की तो उस का नामोनिशान मिट जाएगा. देखा नहीं, 2 दिनों से वे दोनों दूरदूर बैठ रहे थे. आज तो आई ही नहीं स्वाति. सुना है उस ने अपने पेरैंट्स से कह दिया था कि वह इमरान से रिश्ता नहीं तोड़ सकती. शायद, इसलिए आने न दिया हो उस को,’’ हर्षित ने दोनों को वस्तुस्थिति से अवगत करवाया.

‘‘ओह, बड़ा बुरा हुआ यह तो,’’ साक्षी मुंह बना कर बोली.

‘‘अरे यार, अपनी वह बात तो पूरी कर कि जब सब लोग समझा रहे थे इमरान को, तब क्या हुआ?’’ अमन बेचैन हो कर बोला.

‘‘हां, हुआ यह कि हम सब इमरान को समझाने की कोशिश में लगे हुए थे तो पीछे से प्रशांत सर चुपचाप आ कर खड़े हो गए और उन्होंने सबकुछ सुन लिया.’’

‘‘गई भैंस पानी में,’’ अमन के माथे पर बल पड़ गए.

‘‘और फिर सर भी दीपेश और विनायक के साथ इमरान के घर चले गए,’’ हर्षित की बात पूरी होते ही तीनों चिंतित हो उठे.

दोपहर में कक्षा के लगभग सभी छात्र कैंटीन में बैठे इसी विषय पर चर्चा कर रहे थे.

‘‘सर ने जरूर इमरान के पेरैंट्स को सबकुछ बता दिया होगा,’’ साक्षी निराश स्वर में बोली.

‘‘पता नहीं क्या पट्टी पढ़ाई होगी आज सर ने उन को,’’ ग्रुप में से आवाज आई.

‘‘अगर इमरान अब कभी स्वाति के साथ बात करने की कोशिश भी करेगा तो सर की नजर रहेगी उस पर,’’ अमन इमरान के भविष्य में आने वाली परेशानियों का अनुमान लगा रहा था.

‘‘अरे, हम लोग बस इमरान के बारे में ही सोच रहे हैं. क्या स्वाति कम दुखी हो रही होगी?’’ अब तक चुप बैठी मारिया स्वाति के मन में उठ रहे तूफान के विषय में सोचते हुए बोली.

तभी दीपेश वहां हांफता हुआ आ पहुंचा. सब को संबोधित कर वह कुछ बोलने ही वाला था कि सब ने प्रश्नों की झड़ी लगा दी, ‘‘क्या हुआ? सर ने क्या कहा वहां जा कर? इमरान के साथ कुछ बुरा तो नहीं हुआ न? सब ठीक तो है न?’’

‘‘गाएज, यू वुंट बिलीव इट. सुनो, प्रशांत सर आज इमरान के पेरैंट्स के साथ स्वाति के घर गए थे. दोस्ती करवा दी उन्होंने दोनों परिवारों की. और स्वाति अब इमरान की तबीयत का हालचाल पूछने उस के घर गई है.’’

‘‘चल झूठे, क्यों हमारे जले पर नमक छिड़क रहा है?’’ तानिया बोली.

‘‘यह ठीक कह रहा है,’’ वहां पहुंच विनायक ने दीपेश का समर्थन करते कहा.

कोई इस घटना पर यकीन ही नहीं कर रहा था.

‘‘दीपेश, तू पहले यह बता कि वहां क्याक्या हुआ.’’

‘‘बता न विनायक, ऐसा किया क्या सर ने कि यह सब हो गया?’’

सब ने उन्हें घेर कर प्रश्न करने शुरू कर दिए.

‘‘मुझे नहीं पता. मैं और विनायक तो इमरान को उस के घर छोड़ कर मौल चले गए थे. दोपहर में व्हाट्सऐप पर इमरान का स्टेटस देख हम चौंक गए. उस में स्वाति और इमरान की एकसाथ हंसते हुए आज खींची हुई एक तसवीर थी. उसे देख कर विनायक ने इमरान को फोन किया. तब उस ने बताया हमें कि यह सब हो गया. लेकिन सर और बाकी सब के बीच क्याक्या बातें हुईं, यह तो उसे भी नहीं पता.’’

‘‘क्यों न हम सर से ही पूछने की कोशिश करें?’’ हर्षित ने सुझाव दिया.

‘‘हां, हम उन को थैंक्स भी बोल देंगे,’’ साक्षी बोली.

‘‘ऐसा करते हैं, 4 बजे शिखा मैम के लैक्चर के बाद हम लोग उन के पास चलेंगे,’’ अमन ने कहा. अमन से सहमत हो सब कक्षा की ओर चल दिए.

शाम 4 बजे प्रशांत सर यूनिवर्सिटी में नहीं थे, इसलिए अमन, साक्षी, दीपेश और हर्षित ने उन के घर जाने का फैसला किया, जो कैंपस में ही था.

वहां पहुंच कर अमन ने डोरबैल बजाई. प्रशांत सर ही आए दरवाजा खोलने. ड्राइंगरूम में विशेष सजावट तो नहीं थी, पर कुछ था जो आकर्षित कर रहा था वहां. लाल रंग के कालीन पर साफसुथरा नीले रंग का सोफा और बीच में गोलाकार सैंटर टेबल पर समाचारपत्र रखा था. दीवार से सटी शैल्फ में रखी साहित्यिक पुस्तकें गृहस्वामी के साहित्य प्रेम की व्याख्या कर रही थीं, तो ऊपर टंगा नदी और सागर के मिलन का तैलचित्र उन के अनुरागी हृदयी होने का प्रमाण था.

‘‘सर, हम आप का शुक्रिया अदा करने आए हैं, आप ने इमरान और स्वाति को एक तरह से नई जिंदगी दे दी है,’’ दीपेश ने बात शुरू की.

‘‘हां सर, हमारे पास धन्यवाद करने के लिए भी शब्द नहीं हैं. पर यह हुआ कैसे?’’ साक्षी ने बात आगे बढ़ाई.

‘‘प्लीज सर, हमें बताइए न, आप ने ऐसा क्या कहा उन के पेरैंट्स को कि दोनों को मिलने दिया आज उन्होंने?’’ अमन बोला.

‘‘आप जानना चाहते हैं, ओके, अभी आता हूं मैं, तब तक आप कुछ ले लीजिए, कमला, चाय बना दो,’’ और रसोई में खड़ी स्त्री को चाय बनाने को कह वे दूसरे कमरे में चले गए.

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कूल मौम: शादी के कुछ समय बाद ही जब मायके आई लतिका

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