अपनी सब से गहरी सहेलियों कीर्ति और अंशु की बातें सुन कर मान्या सन्न रह गई. उसी दिन से उस ने उन दोनों से अपनी दोस्ती खत्म कर ली. अपने मोबाइल से उन दोनों के नंबर भी हटा दिए. उस के बाद उन दोनों ने भी कभी मान्या से संपर्क नहीं किया.
अपने और परम के रिश्ते की वजह से इन दोनों की दोस्ती को खो देना मान्या के लिए एक बड़ा आघात था. तभी से मान्या अकेलेपन की धूप में तपती आ रही थी. ऐसे में सविताजी और रितु के प्यार और अपनेपन ने शीतल छाया का काम किया. उन के साथ बरसों बाद उसे पारिवारिक और सौहार्दपूर्ण वातावरण मिला था.
देरसवेर औफिस में भी अब बात फैलने लगी थी कि मान्या बिना शादी के परम के साथ रह रही है. लड़कियां उस से और खिंचीखिंची सी रहने लगीं. उसे अजीब नजरों से देखतीं. पुरुष सहकर्मी भी उसे लोलुप निगाहों से देखते.
फाइलें देतेलेते समय जानबूझ कर मान्या की उंगलियों को पकड़ लेते या हाथ फेर देते. उन के होंठों पर कुटिल मुसकराहट होती. उन के गंदे विचारों को समझ कर मान्या के तनबदन में आग लग जाती.
अकसर पुरुषकर्मी बेवजह बातें करने या काम के बहाने मान्या की टेबल पर आ कर बैठे रहते. मान्या औफिस के माहौल में अब घुटन सी महसूस करने लगी थी.
इधर कई दिनों से परम का भी व्यवहार बदलने लगा था. पहले वह और परम घर पर सारा काम मिल कर करते थे. लेकिन पिछले कुछ दिनों से परम हर काम के लिए मान्या से ही उम्मीद रख रहा था. छुट्टी के दिन वह चाहता कि मान्या उस का लंच पैक कर के दे. यहां तक कि महीने भर से उस के कपड़े भी मान्या ही धो रही थी. पहले परम लाड़ से रिक्वैस्ट करता था कि प्लीज मान्या मेरी शर्ट धो देना या कल मेरा लंच बना देना और अब तो परम मान्या से ये सारे काम करवाना अपना अधिकार समझने लगा था. उस के व्यवहार में हर समय पति के तौर पर हुकुम चलाने वाले भाव रहते. समर्पण की भावना की जगह उम्मीदें बढ़ने लगी थीं.
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अभी तो मान्या के लिए दूसरा धक्का इंतजार कर रहा था. कई दिनों से वह देख रही थी कि सविता आंटी और रितु उस से कटीकटी सी रहने लगी हैं. मिलने पर बात तो हंसमुसकरा कर ही करतीं, लेकिन व्यवहार में अब वह अपनापन नहीं रह गया था. घर पर आनाजाना भी कम हो गया. रितु भी अब दूरदूर रहने लगी थी. पहले की तरह सविता आंटी अब छुट्टी वाले दिन खाने पर नहीं बुलाती थीं.
एक बार फिर मान्या अकेली हो गई थी. एक छुट्टी वाले दिन परम बाहर गया था तो मान्या ने मौका अच्छा जान कर सोचा कि सविता आंटी से बात की जाए. अत: वह सविताजी के यहां चली गई.
‘‘क्या बात है आंटी आजकल रितु बाहर नहीं निकलती? उस से तो मुलाकात ही नहीं हो पाती,’’ मान्या ने कुछ देर की औपचारिक बातचीत के बाद पूछा.
‘‘रितु की परीक्षा पास आ रही है इसलिए बाहर कम ही निकलती है,’’ सविता ने जवाब दिया.
‘‘बहुत दिनों से महसूस कर रही हूं आंटी कि आप मुझ से कटीकटी सी रहने लगी हैं. क्या बात है?’’ मान्या ने फालतू समय बरबाद न कर के मन की बात पूछ ली.
‘‘देखो मान्या वैसे तो यह तुम्हारा निजी मामला है कि तुम अपनी जिंदगी कैसे जीती हो, लेकिन माफ करना एक पहचान वाले से हमें पता चला है कि तुम और परम शादीशुदा नहीं हो, बल्कि लिव इन रिलेशन में रह रहे हो. रितु कच्ची उम्र की है, मैं नहीं चाहती कि उस के मन पर इन बातों का बुरा असर पड़े,’’ सविताजी ने सामान्य स्वर में जवाब दिया.
लेकिन मान्या सन्न रह गई कि तो अब यहां भी यह सचाई पता चल चुकी है और अगर सविताजी को पता चली है तो निश्चितरूप से पूरी कालोनी भर को खबर हो जाएगी.
‘‘देखो मान्या, मैं किसी को भी बुराभला नहीं कहती. मुझे नहीं मालूम कि रितु भी बड़ी होने पर क्या करेगी. लेकिन मां होने के नाते मेरा फर्ज बनता है कि मैं जहां तक हो सके उसे ऐसे किसी हालात में पड़ने से बचाऊं. अभी तक तो उसे या किसी को भी मैं ने सच बात नहीं बताई है, लेकिन जैसे आज मुझे पता चला है वैसे ही कभी न कभी तो कालोनी के दूसरे लोगों को भी पता चल ही जाएगा,’’ सविताजी के स्वर में अब भी हलका सा अपनापन था.
मान्या चुपचाप सिर झुका कर सुनती रही
‘‘अब मुझे पता चला कि क्यों कभी तुम्हारे मायके या ससुराल से कोई तुम्हारे घर क्यों नहीं आता. लेकिन कब तक घरपरिवार मातापिता से कट कर रहोगी. अगर बीच रास्ते में ही परम तुम से अलग हो कर किसी और के साथ रहने लगा तो? पति तलाक दे या छोड़ दे तो पत्नी के पास फिर भी घर, समाज की सहानुभूति होती है, लेकिन तुम्हारे साथ तो कोई भी नहीं होगा. तुम बिलकुल अकेली रह जाओगी,’’ सविताजी ने समझाया.
‘‘हम आधुनिकता की चकाचौंध में अंधे हो कर समाज से टकराने की हिम्मत तो कर लेते हैं, लेकिन यह भूल जाते हैं कि पलट कर चोट हमें ही लगती है, समाज का कुछ नहीं बिगड़ता,’’ सविताजी ने प्यार और अपनेपन से मान्या का हाथ अपने हाथ में ले कर कहा, ‘‘एक स्त्री होने के नाते मैं जानती हूं कि आज नहीं तो कल तुम मां बनना जरूर चाहोगी… और फिर सोचो कि ऐसी हालत में अपने बच्चे को जन्म दे कर तुम उसे क्या दे पाओगी? तुम उसे न पिता का नाम दे पाओगी और न घरपरिवार. तुम स्वयं भी आधीअधूरी रह जाओगी और अपने बच्चे का व्यक्तित्व भी उस की पहचान भी अधूरी कर दोगी.’’
सविताजी के पास से लौट कर मान्या धड़ाम से सोफे पर पसर गई. उस का सिर घूम रहा था. उसे कोफ्त हो रही थी कि पता नहीं किस मनहूस घड़ी में उस ने बिना शादी किए परम के साथ रहने का फैसला किया. वह अपने लिए एक कप कौफी बना लाई. कौफी पी कर दिमाग शांत हुआ तो वह बेहतर ढंग से अपनी स्थिति के बारे में सोच पाई.
आज सविताजी को पता चला है कल को कालोनी के दूसरे लोगों को भी पता चल जाएगा. फिर यह कालोनी भी छोड़ कर दूसरी कालोनी में फ्लैट तलाश करो. क्या वह सारी उम्र एक से दूसरी जगह भटकती रहेगी. कभी स्थिर नहीं हो पाएगी? यह तो किराए का घर है, इसलिए बदल भी सकते हैं, लेकिन अपना घर हो तो?
इस तरह तो वह कभी अपना घर बना ही नहीं पाएगी. जिंदगी भर भटकती रहेगी.
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आज वह समाज से कट गई है. कल को घर पर पता लगने पर परिवार से भी कट जाएगी. आज जो थोड़ाबहुत अपनापन बचा है, जीवन में कल को वह भी खो जाएगा.
और परम? क्या परम जीवन भर उस का साथ निभा पाएगा? पिछले कुछ दिनों से तो उस का व्यवहार देख कर ऐसा नहीं लग रहा. परम उसे पत्नी के अधिकार तो कभी देगा नहीं हां एक पति की तरह बन कर मान्या से सेवा और घर के सारे काम की उम्मीद अवश्य करेगा.
जब शादी न कर के पत्नी के पूरे कर्तव्य निभाने पड़ेंगे, कभी सिर दबा दो, कभी पैर दबा दो और अपनी आजादी खोनी ही पड़ेगी तो फिर शादी करने में क्या खराबी है? कम से कम वहां इज्जत तो रहेगी. घरपरिवार का साथ तो रहेगा. जिंदगी में स्थिरता तो रहेगी.
यहां तो न सिर पर छत है न पैरों के नीचे जमीन है. मैं ने खुद को अधर में लटका लिया है और अकेलेपन का दर्द अपने गले बांध लिया है. परम के साथ मेरा बस शरीर का है, यह आकर्षण खत्म हो गया तब?
मान्या कांप उठी कि नहींनहीं भाड़ में जाए यह आधुनिकता का चक्कर. उस के सिर से पश्चिमी सभ्यता के अंधानुकरण का भूत उतर चुका था. सोचा मां का बताया हुआ दीदी की ससुराल का रिश्ता अभी भी है. लड़के वालों को वह बहुत पसंद है और वे अभी भी रुके हुए हैं.
मान्या की आंखें खुल चुकी थीं कि अधर में टंगे रिश्ते के बजाय शादी ही भली है. फिर क्या था मान्या ने तुरंत मां को फोन लगाया, ‘‘मां, मैं जल्दी घर आ रही हूं… आप उस लड़के को हां कह दीजिए.’’
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