Serial Story: सुबह दोपहर और शाम (भाग-1)

‘‘मैं परेशान हो गई हूं इस रोजरोज की चिकचिक से… न मन का खा सकते और न ही पहन सकते… हर समय रोकटोक… आखिर कोई सहन करे भी तो कितना…’’ दोपहर के 2 बज रहे थे और आदत के अनुसार लंच कर के काव्या पलंग पर पसर गई. कमर सीधी करतेकरते ही बड़ी बहन नव्या को फोन लगाया और फिर दोनों बहनें शुरू हो गईं अपनाअपना ससुरालपुराण पढ़ने.

‘‘अरे, क्यों सहन करती है तू सास की ज्यादती? अभय से क्यों नहीं कहती? मैं तो तेरे जीजू से कोई बात नहीं छिपाती… हर रात सोने से पहले उन की मां का कच्चा चिट्ठा खोल कर रख देती हूं… जब तक वे मेरी हां में हां नहीं मिलाते, हाथ भी नहीं लगाने देती…’’  नव्या ने अपने अनुभव के सिक्के बांटे.

‘‘दीदी, अभय तो बिलकुल ममाज बौय हैं… अपनी मां के खिलाफ एक शब्द भी नहीं सुनते. उलटे मुझे ही एडजस्ट करने की नसीहत देने लगते हैं… सच दीदी, ससुराल के मामले में तुत बहुत खुशहाल निकलीं… जीजाजी तुम्हारी उंगलियों पर नाचते हैं… पता नहीं मेरे अच्छे दिन कब आएंगे…’’ काव्या ने एक गहरी सांस भरी.

‘‘वह तो है… अच्छा चल रखती हूं… तेरे जीजू का 2 बार फोन आ चुका है… मेरे बिना चैन नहीं उन्हें भी,’’ नव्या इतराई.

‘‘चल ठीक है… थोड़ी देर में सास महारानीजी की चाय का समय हो जाएगा… मुझे तो दो घड़ी चैन की नींद भी नहीं मिलती…’’ अपने को कोसते हुए काव्या ने फोन काट दिया और फिर एसी की कूलिंग थोड़ी और बढ़ा कर चादर  ओढ़ कर सो गई.

काव्या की अभय से शादी को मात्र 3 वर्ष हुए हैं. अभय एक प्राइवेट फर्म में मैनेजर है. सैलरी ठीकठाक है. मांपापा के साथ रहने से मकान का किराया, पानीबिजली, राशन आदि का कोई खर्चा उसे जेब से नहीं देना पड़ता… जो भी पैसा खर्च होता है वह स्वयं और काव्या के निजी शौकों और जरूरतों पर ही होता है. शादी से पहले काव्या ने सपनों सी जिंदगी का कल्पना की थी, जिस में सिर्फ पति के साथ मौजमस्ती ही थी. उस के सपनों की दुनिया में सासससुर नामक खलनायक नहीं थे…

‘एक बंगला बने न्यारा…’ वाले अरमानों के साथ काव्या ने ससुराल की देहरी लांघी थी, लेकिन जब पता चला कि जनाब अभय को अकेले रह कर शादीशुदा जिंदगी के मजे लेने का कोई शौक नहीं है तो वह बुझ सी गई. जबतब अपनी मां के सामने अपना दुखड़ा रो कर मन हलका करने की कोशिश करती, लेकिन मां ने कभी उस की बातों को सीरियसली नहीं लिया और न ही कभी अलग गृहस्थी बसाने के उस के सपने को पोषित किया.

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‘‘ससुराल गैंदे के फूल सा होता है… कोई पंखुड़ी छोटी तो कोई बड़ी… लेकिन जब सब मिल कर आपस में गुंध जाती हैं तो फूल की छवि देखने लायक होती है,’’ मां हमेशा उसे समझाती थीं. लेकिन काव्या के कानों पर जूं तक नहीं रेंगती थी. इसीलिए वह आजकल मां से बस नपीतुली बात ही करती है. हां, लेकिन बड़ी बहन से बिना नागा बात करती है और उस से ससुराल से अलग घर ले कर रहने से संबंधित सलाह भी मांगती रहती है.

यहां तक तो फिर भी सब ठीक था, लेकिन आग में घी डालने का काम किया सामने वाले घर में किराए पर रहने आए दंपती ने. ये नवल और रिया थे. नवल भी अभय की तरह एक प्राइवेट फर्म में जौब करता है, लेकिन रिया का ठसका तो देखो. कभी जींस.. कभी कैपरी… कभी शौर्ट्स तो कभी कोई और दिल जलाने वाली वैस्टर्न पोशाक… काव्या देखती तो कलेजे पर सांप लोट जाता… ऊपर से स्टाइलिश हैयर कट और मेकअप से पुता चेहरा. काव्या के दिलोदिमाग में हलचल मचाए रहता.

‘क्या जिंदगी है… इसे कहते हैं जिंदगी के असली मजे लूटना… मैं ने पता नहीं कौन सो बुरे कर्म किए थे… तभी तो ये बेडि़यां मेरे पांवों में डल गईं…’ काव्या सोचसोच कर दुबली होने लगी. पेट में पचने वाली तो बात थी ही नहीं… बहन को नमकमिर्च लगा कर बताया.

‘‘अरे तो बावल कुआं तेरे पास है और तू है कि प्यासी घूम रही है… रिया से दोस्ती गांठ और ले ले शाही जिंदगी जीने के…’’ नव्या ने हाथोंहाथ सलाह दे डाली.

बस फिर क्या था. काव्या रिया से नजदीकियां बढ़ाने लगी. रिया तो खुद जैसे उसी की पहल का इंतजार कर रही थी. हायहैलो से शुरू हुई बातचीत धीरेधीरे अंतरंग होने लगी और जल्द ही दोनों घीखिचड़ी सी घुलमिल गईं. कभी रिया काव्या के पास तो कभी काव्या रिया के साथ…

‘‘देखो काव्या, पति नामक जीव को अपने इशारों पर नचाना हो तो लटकेझटके दिखाने ही होंगे… तुम सारा दिन सूटसाड़ी में लिपटी रहती हो… बेचारे अभय का भी मन करता होगा न तुम्हें मौडल सी सजीधजी देखने का… कभी कुछ बोल्ड पहनो… नया ट्राई करो… फिर देखो कैसे अभय तुम पर लट्टू हुआ जाता है…’’ रिया ने भी वही सलाह दे डाली जो नव्या दिया करती है.

‘‘क्या खाक बोल्ड पहनूं… अभय से पहले तो उस के मांपापा देखेंगे… फिर जो कुहराम मचेगा उस का पूरा महल्ला फ्री में मजा लेगा…’’ काव्या ने मुंह बनाया.

‘‘फिर तो बन्नो एक ही उपाय है… कोपभवन… जैसे कैकेयी ने दशरथ से अपनी शर्तें मनवाई थीं वैसे ही तुम भी कोई नाजुक सा मौका तलाश करो… पहले ढील दो और फिर खींच लो डोरी… पतंग न कटे तो मेरा नाम बदल देना…’’  रिया ने मंथरा की भूमिका निभाई.

काव्या मौका तलाशने लगी. समय शायद इस बार काव्या के पक्ष में ही चल

रहा था. अगले ही महीने काव्या ने खुशखबरी दी कि घर में तीसरी पीढ़ी का आगमन होने वाला है. सास ने बलाएं लीं… भारी काम करने से मना किया… ससुर हर समय चहकने लगे… और अभय के तो मिजाज ही निराले लग रहे थे… पत्नी पर बादलों सा उमड़घुमड़ कर प्यार आने लगा… दोस्तों में उठनाबैठना कम हो गया… खिलौने से कमरे में जगह कम पड़ने लगी. मनुहार करकर के खिलानेपिलाने लगा… काव्या के पांव जमीन पर नहीं पड़ रहे थे… इस हंसीखुशी के बीच कहीं न कहीं साजिशों के बीज भी अंकुरण की जगह तलाश रहे थे.

8 महीने पूरे हुए. काव्या की गोद भराई की रस्म के बाद अब कल उसे अपने मायके जाना है. पूरी रात अभय की हिदायतों का लैक्चर जारी था- यह करना, यह मत करना… ऐसे बैठना… ऐसे सोना… अभय बोले जा रहा था. काव्या सुनने का दिखावा करती लेटी थी. दिमाग में तो अलग ही खिचड़ी पक रही थी.

गर्भ का समय पूरा हुआ और काव्या ने एक नन्हे फरिश्ते को जन्म दिया. दोनों परिवारों में खुशी की लहर दौड़ गई. टोकरे भरभर कर मिठाई और बधाइयों का आदानप्रदान हो रहा था. पोते को देखने के लिए दादादादी सिर के बल चले आए. अभय के पांव भी कहां रुकने वाले थे. बिना किसी की परवाह किए सीधे काव्या के पास पहुंचा.

‘‘बेसब्रा कहीं का,’’ कह कर मां मुसकराईं, लेकिन देखा जाए तो खुद उन्हें भी कहां सब्र था. खैर, अभय ने जैसे ही अपने अंश को अंक में भरने की चेष्टा की, काव्या ने उसे अपने कलेजे से लगा लिया. अभय ने अपनी प्रश्नवाचक दृष्टि उस पर गड़ा दी.

‘‘इतनी आसानी से नहीं सैयांजी… पहले एक वादा करना होगा…’’  काव्या इठलाई.

‘‘इस अनमोल रत्न के बदले जो चाहे मांग ले रानी…’’ अभय भी नौटंकी करने में कहां कम था.

‘‘झूठ बोले कौआ काटे… देखो, सच्चे मर्द हो तो झूठे वादे मत करना…’’ काव्या ने उस के पौरुष को ललकारा.

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‘‘प्राण जाए पर वचन न जाए…’’ अभय ने भी चुनौती स्वीकार कर ली और इस के साथ ही काव्या ने अर्थपूर्ण ढंग से मुसकराते हुए नन्हा फरिश्ता पिता की गोद में डाल दिया.

अभय तो उसे छूते ही निहाल हो गया. कभी उस का गाल अपने गाल से सटाता… कभी उस की नन्हीनन्ही उंगलियों में अपनी उंगलियां फंसाता…

‘‘मोगंबो खुश हुआ… कहो क्या मांगती हो?’’ अभय ने बच्चे के चेहरे को निहारते हुए पूछा.

‘‘एक अलग दुनिया… जिस में सिर्फ हम 3 ही हों…’’ काव्या ने सपाट स्वर में कहा.

अभय के हाथपांव कांप गए. क्षणभर में

ही दशरथ और पुत्र बनवास का सा एहसास हो गया. बच्चे पर पकड़ ढीली पड़ने ही वाली थी कि मां ने आ कर संभाल लिया. शायद उन्होंने काव्या की बात सुन भी ली थी. अभय आंखें चुराता हुआ बाहर निकल गया.

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शादी ही भली: लिव इन रिलेशनशिप के चक्कर में पड़ कर मान्या का क्या हुआ?

Serial Story: शादी ही भली (भाग-3)

अपनी सब से गहरी सहेलियों कीर्ति और अंशु की बातें सुन कर मान्या सन्न रह गई. उसी दिन से उस ने उन दोनों से अपनी दोस्ती खत्म कर ली. अपने मोबाइल से उन दोनों के नंबर भी हटा दिए. उस के बाद उन दोनों ने भी कभी मान्या से संपर्क नहीं किया.

अपने और परम के रिश्ते की वजह से इन दोनों की दोस्ती को खो देना मान्या के लिए एक बड़ा आघात था. तभी से मान्या अकेलेपन की धूप में तपती आ रही थी. ऐसे में सविताजी और रितु के प्यार और अपनेपन ने शीतल छाया का काम किया. उन के साथ बरसों बाद उसे पारिवारिक और सौहार्दपूर्ण वातावरण मिला था.

देरसवेर औफिस में भी अब बात फैलने लगी थी कि मान्या बिना शादी के परम के साथ रह रही है. लड़कियां उस से और खिंचीखिंची सी रहने लगीं. उसे अजीब नजरों से देखतीं. पुरुष सहकर्मी भी उसे लोलुप निगाहों से देखते.

फाइलें देतेलेते समय जानबूझ कर मान्या की उंगलियों को पकड़ लेते या हाथ फेर देते. उन के होंठों पर कुटिल मुसकराहट होती. उन के गंदे विचारों को समझ कर मान्या के तनबदन में आग लग जाती.

अकसर पुरुषकर्मी बेवजह बातें करने या काम के बहाने मान्या की टेबल पर आ कर बैठे रहते. मान्या औफिस के माहौल में अब घुटन सी महसूस करने लगी थी.

इधर कई दिनों से परम का भी व्यवहार बदलने लगा था. पहले वह और परम घर पर सारा काम मिल कर करते थे. लेकिन पिछले कुछ दिनों से परम हर काम के लिए मान्या से ही उम्मीद रख रहा था. छुट्टी के दिन वह चाहता कि मान्या उस का लंच पैक कर के दे. यहां तक कि महीने भर से उस के कपड़े भी मान्या ही धो रही थी. पहले परम लाड़ से रिक्वैस्ट करता था कि प्लीज मान्या मेरी शर्ट धो देना या कल मेरा लंच बना देना और अब तो परम मान्या से ये सारे काम करवाना अपना अधिकार समझने लगा था. उस के व्यवहार में हर समय पति के तौर पर हुकुम चलाने वाले भाव रहते. समर्पण की भावना की जगह उम्मीदें बढ़ने लगी थीं.

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अभी तो मान्या के लिए दूसरा धक्का इंतजार कर रहा था. कई दिनों से वह देख रही थी कि सविता आंटी और रितु उस से कटीकटी सी रहने लगी हैं. मिलने पर बात तो हंसमुसकरा कर ही करतीं, लेकिन व्यवहार में अब वह अपनापन नहीं रह गया था. घर पर आनाजाना भी कम हो गया. रितु भी अब दूरदूर रहने लगी थी. पहले की तरह सविता आंटी अब छुट्टी वाले दिन खाने पर नहीं बुलाती थीं.

एक बार फिर मान्या अकेली हो गई थी. एक छुट्टी वाले दिन परम बाहर गया था तो मान्या ने मौका अच्छा जान कर सोचा कि सविता आंटी से बात की जाए. अत: वह सविताजी के यहां चली गई.

‘‘क्या बात है आंटी आजकल रितु बाहर नहीं निकलती? उस से तो मुलाकात ही नहीं हो पाती,’’ मान्या ने कुछ देर की औपचारिक बातचीत के बाद पूछा.

‘‘रितु की परीक्षा पास आ रही है इसलिए बाहर कम ही निकलती है,’’ सविता ने जवाब दिया.

‘‘बहुत दिनों से महसूस कर रही हूं आंटी कि आप मुझ से कटीकटी सी रहने लगी हैं. क्या बात है?’’ मान्या ने फालतू समय बरबाद न कर के मन की बात पूछ ली.

‘‘देखो मान्या वैसे तो यह तुम्हारा निजी मामला है कि तुम अपनी जिंदगी कैसे जीती हो, लेकिन माफ करना एक पहचान वाले से हमें पता चला है कि तुम और परम शादीशुदा नहीं हो, बल्कि लिव इन रिलेशन में रह रहे हो. रितु कच्ची उम्र की है, मैं नहीं चाहती कि उस के मन पर इन बातों का बुरा असर पड़े,’’ सविताजी ने सामान्य स्वर में जवाब दिया.

लेकिन मान्या सन्न रह गई कि तो अब यहां भी यह सचाई पता चल चुकी है और अगर सविताजी को पता चली है तो निश्चितरूप से पूरी कालोनी भर को खबर हो जाएगी.

‘‘देखो मान्या, मैं किसी को भी बुराभला नहीं कहती. मुझे नहीं मालूम कि रितु भी बड़ी होने पर क्या करेगी. लेकिन मां होने के नाते मेरा फर्ज बनता है कि मैं जहां तक हो सके उसे ऐसे किसी हालात में पड़ने से बचाऊं. अभी तक तो उसे या किसी को भी मैं ने सच बात नहीं बताई है, लेकिन जैसे आज मुझे पता चला है वैसे ही कभी न कभी तो कालोनी के दूसरे लोगों को भी पता चल ही जाएगा,’’ सविताजी के स्वर में अब भी हलका सा अपनापन था.

मान्या चुपचाप सिर झुका कर सुनती रही

‘‘अब मुझे पता चला कि क्यों कभी तुम्हारे मायके या ससुराल से कोई तुम्हारे घर क्यों नहीं आता. लेकिन कब तक घरपरिवार मातापिता से कट कर रहोगी. अगर बीच रास्ते में ही परम तुम से अलग हो कर किसी और के साथ रहने लगा तो? पति तलाक दे या छोड़ दे तो पत्नी के पास फिर भी घर, समाज की सहानुभूति होती है, लेकिन तुम्हारे साथ तो कोई भी नहीं होगा. तुम बिलकुल अकेली रह जाओगी,’’ सविताजी ने समझाया.

‘‘हम आधुनिकता की चकाचौंध में अंधे हो कर समाज से टकराने की हिम्मत तो कर लेते हैं, लेकिन यह भूल जाते हैं कि पलट कर चोट हमें ही लगती है, समाज का कुछ नहीं बिगड़ता,’’ सविताजी ने प्यार और अपनेपन से मान्या का हाथ अपने हाथ में ले कर कहा, ‘‘एक स्त्री होने के नाते मैं जानती हूं कि आज नहीं तो कल तुम मां बनना जरूर चाहोगी… और फिर सोचो कि ऐसी हालत में अपने बच्चे को जन्म दे कर तुम उसे क्या दे पाओगी? तुम उसे न पिता का नाम दे पाओगी और न घरपरिवार. तुम स्वयं भी आधीअधूरी रह जाओगी और अपने बच्चे का व्यक्तित्व भी उस की पहचान भी अधूरी कर दोगी.’’

सविताजी के पास से लौट कर मान्या धड़ाम से सोफे पर पसर गई. उस का सिर घूम रहा था. उसे कोफ्त हो रही थी कि पता नहीं किस मनहूस घड़ी में उस ने बिना शादी किए परम के साथ रहने का फैसला किया. वह अपने लिए एक कप कौफी बना लाई. कौफी पी कर दिमाग शांत हुआ तो वह बेहतर ढंग से अपनी स्थिति के बारे में सोच पाई.

आज सविताजी को पता चला है कल को कालोनी के दूसरे लोगों को भी पता चल जाएगा. फिर यह कालोनी भी छोड़ कर दूसरी कालोनी में फ्लैट तलाश करो. क्या वह सारी उम्र एक से दूसरी जगह भटकती रहेगी. कभी स्थिर नहीं हो पाएगी? यह तो किराए का घर है, इसलिए बदल भी सकते हैं, लेकिन अपना घर हो तो?

इस तरह तो वह कभी अपना घर बना ही नहीं पाएगी. जिंदगी भर भटकती रहेगी.

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आज वह समाज से कट गई है. कल को घर पर पता लगने पर परिवार से भी कट जाएगी. आज जो थोड़ाबहुत अपनापन बचा है, जीवन में कल को वह भी खो जाएगा.

और परम? क्या परम जीवन भर उस का साथ निभा पाएगा? पिछले कुछ दिनों से तो उस का व्यवहार देख कर ऐसा नहीं लग रहा. परम उसे पत्नी के अधिकार तो कभी देगा नहीं हां एक पति की तरह बन कर मान्या से सेवा और घर के सारे काम की उम्मीद अवश्य करेगा.

जब शादी न कर के पत्नी के पूरे कर्तव्य निभाने पड़ेंगे, कभी सिर दबा दो, कभी पैर दबा दो और अपनी आजादी खोनी ही पड़ेगी तो फिर शादी करने में क्या खराबी है? कम से कम वहां इज्जत तो रहेगी. घरपरिवार का साथ तो रहेगा. जिंदगी में स्थिरता तो रहेगी.

यहां तो न सिर पर छत है न पैरों के नीचे जमीन है. मैं ने खुद को अधर में लटका लिया है और अकेलेपन का दर्द अपने गले बांध लिया है. परम के साथ मेरा बस शरीर का है, यह आकर्षण खत्म हो गया तब?

मान्या कांप उठी कि नहींनहीं भाड़ में जाए यह आधुनिकता का चक्कर. उस के सिर से पश्चिमी सभ्यता के अंधानुकरण का भूत उतर चुका था. सोचा मां का बताया हुआ दीदी की ससुराल का रिश्ता अभी भी है. लड़के वालों को वह बहुत पसंद है और वे अभी भी रुके हुए हैं.

मान्या की आंखें खुल चुकी थीं कि अधर में टंगे रिश्ते के बजाय शादी ही भली है. फिर क्या था मान्या ने तुरंत मां को फोन लगाया, ‘‘मां, मैं जल्दी घर आ रही हूं… आप उस लड़के को हां कह दीजिए.’’

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Serial Story: शादी ही भली (भाग-2)

इतनी बेइज्जती सहने के बाद वहां कौन रहता. तब परम और मान्या ने 8 दिनों में ही यहां फ्लैट किराए पर ले लिया. यहां भी 1-2 बार आतेजाते पासपड़ोस की औरतों से जब बातें होती हैं तो औरतें उसे कुछ टटोलती सी निगाहों से देखती हैं. मान्या जानती है वे उस के शरीर पर सुहागचिह्न ढूंढ़ती हैं, क्योंकि मान्या न मांग भरती न बिंदी लगाती और न ही मंगलसूत्र व चूडि़यां पहनती.

एक दिन पड़ोसिन आशा ने तो कह ही दिया, ‘‘माना कि तुम बहुत पढ़ीलिखी हो, तो भी थोड़ाबहुत तो परंपराओं का निर्वाह करना ही पड़ता है. मैं भी समझती हूं कि तुम काम पर जाती हो मंगलसूत्र नहीं पहन सकतीं. मगर मांग और माथे पर सिंदूर तो लगा ही सकती हो.’’

‘‘परम को पसंद नहीं है,’’ कह कर मान्या ने बहाना बनाया और वहां से खिसक ली थी पर वह जानती थी कि महिलाओं के समूह में देर तक उस की आलोचना चलती रही होगी.

कभी मान्या से लोग पूछते की शादी को कितने साल हो गए? कभी महिलाएं अपनापन जताने के लिए बच्चे के बारे में टोकने लगतीं, ‘‘अब जल्दी से लड्डू खिलाओ.’’

मान्या क्या जवाब दे? वह कैसे लड्डू खिला सकती है? कभी सोसाइटी की महिलाएं उस के मायके और ससुराल के लोगों के न आने पर सवाल करती हैं. बात ज्यादा बढ़ने से पहले ही मान्या और परम फ्लैट बदल लेते हैं.

10 बजे परम उठा तो मान्या 2 कप चाय बना लाई. 3-4 दिन बाद जब मान्या काम पर जाने लगी तो देखा कि सामने वाले खाली फ्लैट में कोई रहने आ गया है.

एक संडे को मान्या गैलरी में बैठी चाय पी रही थी कि कालबैल बजी. मान्या ने दरवाजा खोला तो सामने एक महिला खड़ी थीं.

‘‘मैं आप के सामने वाले फ्लैट में रहने आई हूं. आप तो कभी दिखाई ही नहीं देतीं. सोचा आज छुट्टी है मैं ही चल कर मिल आऊं,’’ महिला ने अपनेपन से मुसकराते हुए कहा.

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‘‘आइए अंदर आइए न. मैं जौब करती हूं. सुबह जल्दी औफिस चली जाती हूं और शाम लौटने तक देर हो जाती है, इसलिए मिलना नहीं हो पाता,’’ मान्या ने उन्हें अंदर बैठाया. पता नहीं क्योंकर मान्या को उन की मुसकराहट अच्छी लगी.

‘‘तुम्हारे पति?’’ महिला ने घर में एक उचटती सी निगाह डाल कर पूछा.

मान्या के मन में एक कचोट सी उठी. क्षण भर पहले उन्हें देख कर मन को जो अच्छापन लगा था वह कहीं खो गया. फिर सोचा यह सब तो होना ही है.

‘‘जी वे सो रहे हैं. पूरा हफ्ता बहुत भागदौड़ रहती है न तो संडे को देर से उठते हैं,’’ मान्या ने अपनेआप को सहज करते हुए जवाब दिया.

शुक्र है आगे उन्होंने मान्या की व्यक्तिगत जिंदगी के बारे में कोई सवाल नहीं किया. मान्या ने राहत की सांस ली. कि चलो यह तो टिपिकल इंडियन टाइप की मानसिकता वाली स्त्री नहीं लगती. मान्या के बारे में उन्होंने ज्यादा खोजबीन करने वाले सवाल नहीं पूछे. मान्या उन के लिए चाय बना लाई. उन का नाम सविता था. पहले वे किराए के फ्लैट में रहती थीं. अब सामने वाला फ्लैट खरीद लिया था. पति सरकारी नौकरी में हैं और 1 ही बेटी है, जो 12वीं कक्षा में पढ़ती है.

जातेजाते उन्होंने मान्या के हेयरकट की तारीफ की और पूछा कि क्या वे अपने पार्लर में उन की बेटी रितु के बाल सैट करवा लाएंगी. इसे मान्या ने सहर्ष स्वीकार कर लिया.

अगले शनिवार को मान्या की छुट्टी थी पर परम काम पर गया था. परम ने उठ कर अपना नाश्ता बना लिया था. लंच वह औफिस में ही करता था. मान्या ने उठ कर अपने लिए सैंडविच बना कर खाया और कौफी बना कर ड्राइंगरूम में आ कर टीवी देखने लगी. उस ने कौफी खत्म कर के कप रखा ही था कि कालबैल बज उठी. बाई होगी, सोच कर मान्या ने दरवाजा खोला तो देखा सामने एक 16-17 साल की प्यारी सी लड़की खड़ी थी.

‘‘दीदी, मैं रितु हूं. मम्मी ने आप को बताया होगा न,’’ रितु ने बड़े अपनेपन से मुसकराते हुए कहा.

मान्या ने भी मुसकराते हुए रितु का स्वागत किया और फिर उस के साथ बैठ कर बातें करने लगी. रितु बड़ी प्यारी और चुलबुली लड़की थी. जल्द ही वह और मान्या आपस में ऐसे घुलमिल गईं जैसे बरसों से एकदूसरे को पहचानती हों. मान्या को रितु की चुलबुली बातें बड़ी अच्छी लग रही थीं. ऐसा लग रहा था जैसे वह बरसों बाद खुल कर किसी अपने से बातें कर रही हो. परम के साथ रहते हुए तो पिछले 3 सालों से वह जैसे समाज से कट ही गई थी. औफिस में भी बस n2-1 दोस्त और सहेलियां ही हैं, जो उस के और परम के बारे में सच जानते हैं. उन के साथ ही कभीकभी घूमनाफिरना या बातें हो जाती हैं वरना तो वह सब से कटती ही जा रही थी.

बातों ही बातों में रितु को पता चला कि परम औफिस चला गया है और मान्या ने अभी खाना नहीं बनाया है तो रितु ने जिद की कि मान्या उन के यहां ही खाना खाए. मान्या ने संकोच के कारण बहुत मना किया, लेकिन रितु ने एक नहीं सुनी. आखिर मान्या को लंच के लिए उस के यहां जाना ही पड़ा.

सविताजी ने बड़े प्यार से रितु और मान्या को खाना खिलाया. खाना खा कर मान्या को मां की याद आ गई. सच बाई के हाथों का बना खाना और होटलों का खाना खाने में वह स्वाद कहां. मान्या को लगा कि उस ने महीनों बाद भरपेट खाना खाया है.

सविताजी, रितु और रितु के पिताजी सतीश तीनों ही बड़े मिलनसार और अपनत्व से भरे हुए लोग थे. बातें करते कब 4 बज गए पता ही नहीं चला.

मान्या रितु को पार्लर ले गई. वहां उस के बाल सैट करवा दिए. रितु बहुत खुश थी. आते समय उन्होंने मार्केट में आइसक्रीम खाई. मान्या को लगा वह अपना पीछे छूट गया बचपन जी रही है. उस शाम घर आने के बाद मान्या बहुत खुश और हलका महसूस कर रही थी.

इस के बाद लगभग हर छुट्टी वाले दिन मान्या और रितु साथ कहीं न कहीं घूमने निकल जातीं. 1 बार रितु मान्या और परम के साथ बाहर घूमनेफिरने और पिक्चर देखने चली गई, तो घर आ कर परम मान्या पर बुरी तरह नाराज हुआ, ‘‘तुम ने यह क्या फालतू की बला अपने सिर मढ़ ली है. मैं ने ऐंजौय करने के लिए तुम्हारे साथ रिश्ता जोड़ा है, ये बेकार के रिश्ते झेलने के लिए नहीं. आइंदा इस लड़की को अपने साथ मत ले चलना… तुम उस के साथ ज्यादा मेलजोल न ही रखो तो अच्छा है,’’ कहते हुए परम ने मान्या का हाथ पकड़ कर उसे बिस्तर पर अपनी ओर खींच लिया.

अपनी इच्छापूर्ति कर के परम तो मान्या की ओर पीठ कर के गहरी नींद सो गया, लेकिन मान्या की आंखों में नींद नहीं थी.

‘तो क्या अब उसे परम की इच्छानुसार चलना होगा? जिस से वह कहे उस से रिश्ता रखे जिस से वह न कहे उस से तोड़ ले,’ मान्या सोच रही थी.

यों भी इस शहर में उस की पहचान है ही आखिर किस से? जितनी सहेलियां थीं उन में से कुछ तो अपने घर लौट गईं, कुछ नौकरी के सिलसिले में दूसरे शहरों में चली गईं. इस शहर में जो बची हैं उन में से भी अधिकांश शादी कर के अपनेअपने परिवार में व्यस्त हो गईं. शादीशुदा सहेलियां अब मान्या से कतराने लगी थीं.

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‘‘सौरी मान्या, अब मैं तुम्हें अपने घर नहीं बुला सकती. क्या करूं जौइंट फैमिली में रहती हूं… सासससुर हैं घर में. अकेली आओगी तो अम्मांजी तुम्हारी शादी की बात को ले कर तुम्हारे पीछे पड़ जाएंगी और परम के साथ आओगी तो सौ सवाल उठ खड़े होंगे,’’ एक दिन कीर्ति ने कहा.

‘‘अपने पति को मैं ने तुम्हारी और परम की लिव इन रिलेशनशिप के बारे में कुछ नहीं बताया है. तुम्हारे बारे में यह बात सुन कर कहीं वे मेरे बारे में भी गलत न सोचने लगें कि इस की सहेली ऐसी है तो यह भी पता नहीं कैसी होगी. सौरी यार… नईनई शादी है मैं अपने रिश्ते के लिए कोई जोखिम नहीं लेना चाहती,’’ एक दिन अंशु बोली.’’

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Serial Story: शादी ही भली (भाग-1)

मोबाइल की रिंगटोन सुन कर मान्या की नींद खुली. उस ने उनींदी सी आंखों से देखा, मां का फोन था.

‘‘हैलो मां,’’ मान्या फोन उठा कर नींद भरे स्वर में बोली.

‘‘क्या बात है मान्या बेटा, तुम्हारी आवाज भारीभारी क्यों लग रही है? क्या तबीयत ठीक नहीं है?’’ मां का चिंतित स्वर सुनाई दिया.

‘‘नहीं मां. मैं सो रही थी. आप ने इतनी सुबह क्यों फोन किया?’’ मान्या खीज कर बोली.

‘‘सुबहसुबह?’’ मां के स्वर में आश्चर्य था, ‘‘अरे, 9 बज रहे हैं.’’

‘‘ओह मां तो क्या हुआ आज छुट्टी है. एक ही दिन तो मिलता है सोने के लिए बाकी के 6 दिन तो सुबह से ले कर रात तक भागतेदौड़ते बीतते हैं. अच्छा आप बताओ फोन क्यों किया?’’

‘‘तुम्हारे लिए तुम्हारी दीदी की जेठानी के भाई का रिश्ता आया है. उन लोगों को तुम्हारा फोटो पसंद आया है. लड़का भी बहुत अच्छा है मान्या और देखाभाला परिवार है. न इस बार कोई मीनमेख निकालना और न ही फुजूल के बहाने बनाना. बस जल्दी औफिस में छुट्टी की अर्जी दे और जल्द से जल्द घर आ जा. तुम दोनों एकदूसरे को आमनेसामने देख लो और अपनी रजामंदी दे दो. हम बड़ों की ओर से तो बात पक्की ही है. लड़का जयपुर में रहता है. वहां तुम्हें भी आराम से नौकरी मिल जाएगी,’’ मां खुशी में एक ही सांस में पूरी बात कह गईं.

‘‘आप ने फिर मेरी शादी का पुराण शुरू कर दिया. मां, मैं ने कितनी बार कहा है कि मुझे अभी शादी नहीं करनी है,’’ मान्या खीज कर बोली.

‘‘2 महीने बाद 27 साल की हो जाओगी… और कब तक शादी नहीं करोगी? पहले पढ़ाई, फिर कैरियर अब और क्या बहाना बचा है? 1-2 साल और शादी नहीं की तो कुंआरे लड़कों के रिश्ते आने बंद हो जाएंगे. फिर तो तलाकशुदा या विधुर अधेड़ों के ही रिश्ते आएंगे,’’ मां गुस्से से भुनभुनाईं.

‘‘ठीक है मां 2-4 दिन में सोच कर बताती हूं,’’ मान्या ने हथियार डालते हुए कहा.

‘‘जल्द ही बताना मान्या. वे तुम्हारी दीदी के आचरण से इतने प्रभावित हैं कि तुम्हें ही अपने घर की बहू बनाना चाहते हैं और साल, 6 महीने तक रुकने में भी उन्हें ऐतराज नहीं है इसलिए मैं चाहूंगी कि तुम बेवजह की अपनी जिद छोड़ दो,’’ मां के स्वर में आदेश था.

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‘‘ठीक है मां जैसा आप कहो,’’ मान्या ने टालने वाले स्वर में कहा और फोन काट दिया.

10 बज रहे थ. अब दोबारा क्या नींद आएगी… मान्या ने बगल में सो रहे परम की ओर देखा. परम रात में परम संतुष्ट हो कर अब तक गहरी नींद में बेसुध पड़ा था. मान्या ने उस के घुंघराले बालों में हाथ फेरा और फिर फ्रैश होने के लिए बाथरूम में चली गई.

हाथमुंह धो कर मान्या ने अपने लिए चाय बनाई और फिर चाय का कप ले कर गैलरी में आ कर बैठ गई. नीचे बिल्डिंग के बच्चे खेल रहे थे. लोग अपनेअपने काम से बिल्डिंग के अंदरबाहर आ जा रहे थे. 6 महीने हो गए मान्या और परम को इस बिल्डिंग में आए. अब तक उन की किसी से खास जानपहचान नहीं हुई थी. सामने वाले फ्लैट में रहने वाले 1-2 लोगों से बस हायहैलो थी. इस से अधिक पहचान बढ़ाने में न तो परम को दिलचस्पी थी और न ही मान्या को. बगल वाला एक फ्लैट अभी खाली था.

4 साल हो गए थे, परम और मान्या की मुलाकात हुए. मान्या की एक फ्रैंड के घर में गैटटुगैदर के लिए सारे दोस्त आए हुए थे. वहीं पर मान्या और परम की आपस में पहचान हुई थी. तब परम 6 महीने पहले से जौब कर रहा था और मान्या का इंजीनियरिंग का आखिरी सैम बचा था. पहली ही मुलाकात में परम और मान्या आपस में काफी घुलमिल गए. इस के बाद दोस्तों की पार्टियों में मुलाकातें होती रहीं. फिर फोन पर बातें शुरू हो गईं. बातें करते हुए दोनों कब एकदूसरे को पसंद करने लगे, पता ही नहीं चला. दोनों अकसर मिलने लगे. जब पढ़ाई पूरी करने के बाद मान्या को जौब मिली तब तक दोनों का प्यार पूरी तरह परवान चढ़ चुका था.

मान्या को भी मुंबई में ही जौब मिल गई. मान्या के मातापिता उस की पढ़ाई पूरी होते ही उस की शादी कर देने के पक्ष में थे. उन का कहना था कि जहां भी उस की शादी होगी वह अपने लिए नौकरी भी वहीं ढूंढ़ ले. जैसाकि उस की दीदी ने किया था. मान्या की बड़ी बहन ने एमबीए पूरा किया ही था कि उस के लिए अच्छा रिश्ता आ गया. मातापिता ने फटाफट उस की शादी कर दी. कुछ दिन ससुराल में ऐडजस्ट होने के बाद दीदी ने उसी शहर में नौकरी जौइन कर ली. आज दीदी जौब भी करती है और अपना घरपरिवार भी संभालती है. ससुराल में सभी उस से बेहद खुश हैं. मान्या के मातापिता चाहते थे कि मान्या भी अपनी बड़ी बहन का अनुसरण करे.

मगर मान्या थोड़े अलग विचारों वाली लड़की थी. उसे अपनी आजादी बेहद पसंद थी. वह ससुराल और रिश्तों के बंधन में बंधना पसंद नहीं करती थी. उसे सुबह से रात तक घर, परिवार, पति, बच्चों के बंधन में जकड़े रहना पसंद नहीं था.

तभी तो साल भर परम के साथ घूमतेफिरते और एकदूसरे के विचारों को जानने के बाद दोनों ने लिव इन रिलेशनशिप में साथसाथ रहने का फैसला किया. पहले मान्या ने मातापिता को जैसेतैसे राजी कर लिया कि उस की शादी की इतनी जल्दी न करें. अभी उसे जौब करने दें. बड़ी मुश्किल से मान्या के मातापिता राजी हुए. तभी मान्या और परम ने मिल कर यह फ्लैट लिया और एकसाथ रहने लगे. इस बीच 2 बार मान्या के मातापिता उस के साथ रहने के लिए मुंबई आए. तब मान्या अपना सामान ले कर अपनी सहेली के रूम में रहने चली गई. उस के मातापिता को यही पता था कि मान्या अपनी सहेली के साथ रहती है.

परम के घर से भी जब कोई आता तो वह भी अपने दोस्त के पास चला जाता. अपने फ्लैट का पता उन दोनों ने ही अपने घर वालों को नहीं दिया था, क्योंकि अगर दोनों में से किसी के भी घर से कोई इस फ्लैट पर आ जाता तो वे दोनों छिपाने की चाहे जितनी कोशिश करते घर वालों की अनुभवी नजरें ताड़ ही लेतीं कि इस फ्लैट में लड़कालड़की साथ रहते हैं. तब घर वालों को कुछ भी समझा पाना मुश्किल होता. खासतौर पर मान्या के लिए. मान्या के मातापिता उस की जौब छुड़वा कर वापस ले जाते.

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मान्या ने चाय का कप मेज पर रखा. परम अभी उठा नहीं था. जब से मान्या और परम साथ रह रहे थे यह उन का तीसरा घर था. कुछ ही महीनों बाद पता नहीं कैसे आसपास रहने वाले लोगों को पता चल जाता कि दोनों बिना शादी किए साथ रह रहे हैं और बस सोसाइटी में कानाफूसी शुरू हो जाती. पिछली वाली सोसाइटी के अध्यक्ष ने तो साफसाफ मुंह पर बोल दिया था कि हम बालबच्चेदार और इज्जतदार लोग हैं, यहां ये पश्चिम के रंगढंग नहीं चलेंगे.

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गलतफहमी: नेहा को पति आर्यन की अर्पिता से दोस्ती क्यों बर्दाश्त न हुई?

Serial Story: गलतफहमी (भाग-3)

नरेश ने बेटी को एकाध बार समझाने की कोशिश की थी पर वह ध्यान ही नहीं देती थी.

‘‘देखा नेहा, आर्यन को तुम्हारी कोई फिक्र नहीं. उसे तो बस अर्पिता से ही मतलब है. सचमुच उन दोनों में संबंध न होता तो वह तुम्हें इस तरह इग्नोर न करता. इतने दिनों से तुम्हारी खोजखबर लेने की भी जरूरत न समझी उस ने,’’ सीमा उसे और भड़कातीं.

‘‘मम्मी, मैं क्या करूं, मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा,’’ नेहा बोली.

‘‘बेटी, उस ने तुम्हें बहुत दुख पहुंचाया है. आर्यन को इस का मजा जरूर चखाना चाहिए. मैं किसी अच्छे वकील से बात करती हूं. तलाक का नोटिस पहुंचेगा तो उस का दिमाग ठिकाने आ जाएगा. उस पर दहेज के लिए तुम्हें प्रताडि़त करने और दूसरी स्त्री से संबंध रखने का आरोप लगेगा तब पता चलेगा.’’

‘‘मम्मी, यह सब करने की क्या जरूरत है? कोई आसान सी तरकीब निकालो न, जिस में ज्यादा परेशानी न हो. कोर्टकचहरी का चक्कर बहुत खराब होता है,’’ नेहा ने घबरा कर कहा.

‘‘नेहा, तुम बहुत भोली हो, जब तक वह खूब परेशान नहीं होगा तब तक सुधरेगा नहीं. देखना तुम कैसे मजबूर हो जाएगा तुम्हारे सामने गिड़गिड़ा कर माफी मांगने के लिए… फिर कभी जिंदगी भर किसी दूसरी लड़की की तरफ आंख उठा कर देखने की हिम्मत नहीं करेगा.’’

‘‘हां, आप ठीक कहती हैं मम्मी,’’ नेहा ने इस सब का परिणाम सोचे बिना कहा.

कुरियर वाले ने औफिस में आर्यन के पर्सनल नाम का लिफाफा पकड़ाया तो सोचने लगा क्या है इस में? उतावलेपन से पैकेट खोला, पर उस में से निकले पेपर को पढ़ते ही होश उड़ गए. तलाक के पेपर्स थे. उस पर ऐसे इलजाम लगाए गए थे वह उन के बारे में सपने में भी नहीं सोच सकता था. उस ने तुरंत नेहा का नंबर डायल किया, पर उधर से फोन काट दिया गया. आर्यन ने फिर लैंडलाइन पर मिलाया. रिसीवर सीमा ने ही उठाया.

‘‘मम्मीजी, नेहा कहां है मुझे उस से जरूरी बात करनी है,’’ आर्यन ने कहा.

‘‘वह घर में नहीं है,’’ सीमा ने झूठ बोल कर फोन काट दिया.

‘‘आर्यन परेशान हो उठा. जरा सी बात का इतना बड़ा बखेड़ा हो जाएगा, उस ने कभी सोचा भी न था. और नेहा को क्या हो गया, जो उस से बात भी नहीं कर रही. जाने किस के बहकावे में आ कर इतना बड़ा कदम उठा लिया. जरूर मम्मी के इशारे पर चल रही है, जो बददिमाग हैं. आर्यन शुरू से जानता था उन्हें. तभी तो नरेश अंकल हमेशा उन के सामने चुप रहते थे. किंतु यह नहीं पता था कि पूरी बात जाने बिना ही अपनी बेटी का घर उजाड़ने को तैयार हो जाएंगी.’’

‘‘क्या हुआ आर्यन, बहुत परेशान हो?’’ उस के सहयोगी व मित्र निशांत ने पूछा.

‘‘कुछ नहीं यार,’’ आर्यन ने कहा.

‘‘कुछ तो जरूर है, पर मुझे नहीं बताना चाहते हो तो मत बताओ. बता देते तो हो सकता है मैं तुम्हारी कुछ मदद कर पाता,’’ निशांत ने कहा तो आर्यन ने चुपचाप पेपर्स उसे थमा दिए.

‘‘अरे यार, यह तो सरासर अन्याय है तुम्हारे प्रति. बिना कुछ किए इतना बड़ा इलजाम लगाया गया है तुम पर. लेकिन एक बात बताओ यह अर्पिता का चक्कर क्या है… वह तो केवल तुम्हारी दोस्त है न?’’ निशांत बोला.

‘‘है कहां, थी. उस से तो उसी दिन से मुलाकात या फोन पर बात नहीं हुई जिस दिन से नेहा मायके गई है,’’ आर्यन ने बताया.

‘‘खैर, तुम परेशान मत हो कोई न कोई रास्ता निकल ही आएगा,’’ निशांत ने उसे आश्वासन दिया.

शाम को आर्यन औफिस से जल्दी निकल आया. सोचा किसी अच्छे वकील से मिल कर इस समस्या का समाधान निकाला जाए. वह मानसिक रूप से बहुत परेशान था, उसे तो उस गुनाह की सजा मिल रही थी, जो उस ने किया ही नहीं था. विचारों का ज्वारभाटा उठ रहा था. मन में इतनी उथलपुथल मची थी कि सामने से आती कार भी न दिखाई दी और उस की बाइक उस से टकरा गई.

लंचटाइम में अर्पिता सहयोगियों के साथ बैठी लंच कर रही थी. तभी उस के फोन की घंटी बजी. स्क्रीन पर नंबर देखा तो आर्यन का फोन था.

इतने दिनों बाद आर्यन उसे क्यों फोन कर रहा है? अब उन के बीच कोई संबंध नहीं रहा. फिर उसे फोन करने का मतलब?

अर्पिता ने फोन रिसीव न किया, पर जब लगातार घंटी बजती रही तो अटैंड कर ही लिया.

‘‘हैलो?’’ वह धीरे से बोली.

‘‘अर्पिता, मैं यहां नवजीवन हौस्पिटल में हूं. औफिस से लौटते वक्त मेरा ऐक्सीडैंट हो गया. यदि तुम आ सको तो आ जाओ,’’ आर्यन ने कहा.

‘‘ठीक है, मैं आती हूं,’’ अर्पिता बोली व फोन बंद कर दिया. ऐक्सीडैंट की खबर सुन कर वह स्तब्ध रह गई. भले ही आर्यन से उस ने संबंध खत्म कर लिया था, किंतु इस दुर्घटना की सूचना ने उसे असहज कर दिया. बौस को बता वह तुरंत औफिस से निकल अस्पताल पहुंच गई. आर्यन बैड पर लेटा था. उस के पैर में फ्रैक्चर हो गया था. हाथों व सिर में भी चोटें आई थीं.

‘‘नेहा कहां है आर्यन?’’ अर्पिता ने आर्यन के आसपास किसी को न देख कर पूछा तो आर्यन ने उसे सब कुछ सचसच बता दिया.

अर्पिता सारी बातें जान आश्चर्यचकित रह गई. आर्यन और नेहा के बीच आज तलाक की बातें शुरू हो गईं और वे भी उस की वजह से और तब जब ऐसा कुछ है भी नहीं. फिलहाल उस ने आर्यन की देखभाल शुरू कर दी.

‘‘अर्पिता, अगर मैं जानता कि नेहा इतने संकीर्ण विचारों की है तो मैं उसे तुम्हारे बारे में बताता ही नहीं,’’ आर्यन ने कहा.

आर्यन दवा ले कर सो गया तो अर्पिता बाहर निकल आई. उस ने कुछ सोचा फिर आर्यन के फोन से नेहा का नंबर ले कर उसे फोन किया व आर्यन के दुर्घटना की सूचना दी. कुछ भी हो नेहा पत्नी थी आर्यन की. अत: घटना की सूचना ने उसे भी दुखी कर दिया. मम्मी किसी रिश्तेदार के घर थीं. अत: वह तनु को ले कर तुरंत दिल्ली रवाना हो गई.

सुबह 9 बजे वह अस्पताल पहुंच गई. अर्पिता को देख उस के तनबदन में आग लग गई. पर फिर आर्यन की स्थिति देख कर परेशान हो उठी.

नेहा के आ जाने पर अर्पिता चली गई. 2 दिन अस्पताल में रहने व सो न पाने के कारण वह बुरी तरह थक गई थी. अत: बिस्तर पर पड़ते ही नींद के आगोश में समा गई. उस दिन संडे था. अर्पिता घर में ही थी कि मोबाइल की घंटी बजी.

‘‘अर्पिता, मैं नेहा, क्या आज घर आ सकती हो?’’ उधर से आवाज आई तो अर्पिता हैरान रह गई कि नेहा ने उसे क्यों बुलाया? शायद आर्यन और उसे ले कर कोई बातचीत करना चाहती हो? कहीं बेवजह लड़ाईझगड़ा तो नहीं करने वाली… कई विचार मस्तिष्क में आनेजाने लगे. फिर भी संयत स्वर में पूछा, ‘‘नेहाजी, क्या मुझ से कोई काम है आप को?’’

‘‘हां, मैं शाम को तुम्हारा इंतजार करूंगी,’’ नेहा ने कहा व फोन काट दिया.

शाम को अर्पिता आर्यन के घर पहुंची.

‘‘अर्पिता, आर्यन अंदर हैं, तुम वहीं चलो मैं आती हूं,’’ नेहा ने कहा.

‘‘कैसे हैं आप?’’ अर्पिता ने अंदर आ कर आर्यन से पूछा.

‘‘अब ठीक हूं,’’ आर्यन ने मुसकरा कर कहा.

‘‘अर्पिता, तुम सोच रही होगी कि मैं ने तुम्हें यहां क्यों बुलाया है?’’ नेहा नाश्ते की ट्रे ले कर अंदर आते हुए बोली.

अर्पिता ने पहले आर्यन, फिर नेहा की तरफ प्रश्नवाचक निगाहों से देखा. उस की कुछ समझ में नहीं आ रहा था.

‘‘अर्पिता, मैं ने तुम्हें व आर्यन को गलत समझा था, तुम्हें उन लड़कियों की तरह समझा था, जो अपने स्वार्थ व मौजमस्ती के लिए युवकों को अपने जाल में फंसाती हैं. फिर वे युवक चाहे शादीशुदा ही क्यों न हों, पर बुरे वक्त में तुम ने इतनी मदद की अस्पताल में आर्यन की देखभाल की, मैं उस से जान गई हूं कि तुम वैसी नहीं हो. तुम तो आर्यन की सच्ची दोस्त हो क्योंकि वे स्वार्थी लड़कियां तुम्हारी तरह बिना स्वार्थ किसी की मदद कर ही नहीं सकतीं.

‘‘मैं ने तुम्हारी डायरी भी पढ़ ली है, जो तुम अस्पताल में भूल आई थीं. उस में लिखी बातें पढ़ कर मैं जान गई हूं कि तुम्हारे और आर्यन के बीच सिर्फ दोस्ती का रिश्ता था और कुछ नहीं और वह भी तुम ने इस वजह से खत्म कर लिया ताकि मुझे बुरा न लगे और मैं बेवकूफ गलतफहमी में तलाक ले कर अपना बसाबसाया घर उजाड़ने की तैयारी कर बैठी थी,’’ कहतेकहते फफक पड़ी नेहा.

‘‘नेहाजी, आप की जगह कोई भी होता तो शायद यही करता,’’ अर्पिता बोली.

‘‘अर्पिता, यदि तुम्हारी डायरी न पढ़ी होती तो जाने क्या होता…’’ नेहा ने सुबकते हुए कहा.

‘‘वक्त रहते सब ठीक हो गया नेहाजी अब तो आप को खुश होना चाहिए.’’

‘‘ठीक कहती हो अर्पिता तुम. आज इतने दिनों बाद मन का बोझ खत्म हुआ है,’’ नेहा ने अर्पिता का हाथ पकड़ते हुए कहा.

‘‘आर्यन की आंखों में खुशी के भाव साफ नजर आ रहे थे. पत्नी के मन से गलतफहमी जो दूर हो गई थी. महीनों से सूने पड़े घर में नन्ही तनु की चहचहाहट फिर से गूंजने लगी थी. उस का टूटने के कगार पर पहुंच चुका वैवाहिक जीवन बच गया था. साथ ही फिर मिल गई थी उसे अपनी दोस्त अर्पिता.’’

 

Serial Story: गलतफहमी (भाग-2)

आर्यन से नेहा की ये बातें बरदाश्त न हुईं तो उस ने गुस्से में आ कर एक चांटा नेहा के गाल पर जड़ दिया.

‘‘कब से समझाने की कोशिश कर रहा हूं, पर तुम हो कि मानने को तैयार ही नहीं हो,’’ उस ने कहा.

‘‘देखा, एक सड़कछाप आवारा लड़की के लिए अपनी पत्नी को मारने में भी शर्म नहीं आई,’’ नेहा रोते हुए चीखी.

‘‘नेहा, तुम ने बदतमीजी की हद कर दी.’’

‘‘हद मैं ने नहीं तुम ने की है,’’ नेहा बोली और फिर बैग उठा कर तनु को खींचते हुए बाहर निकल गई.

आर्यन जानता था कि इस वक्त नेहा उस की कोई बात नहीं मानेगी, इसलिए फिर कुछ न बोला. सोचा 1-2 दिन में गुस्सा ठंडा हो जाएगा तो खुद ही लौट आएगी.

लेकिन 1 हफ्ता गुजर गया, मगर नेहा न तो लौट कर आई और न ही उस ने फोन किया.

इधर अर्पिता ने आर्यन से फोन पर बात करना भी बंद कर दिया था. बसस्टौप पर बस की प्रतीक्षा करते समय भीड़ के पीछे कोने में जा कर खड़ी हो जाती थी ताकि आर्यन उसे देख न सके. जब से आर्यन से उस की फ्रैंडशिप हुई थी तब से अर्पिता उस से सारी बातें शेयर करती थी. कोई प्रौब्लम होती तो वह उस का हल भी सुझा देता. पर अब वह फिर से अकेली हो गई थी, इसलिए फिर से डायरी को अपना दोस्त बना लिया था.

धीरेधीरे नेहा को गए हुए 15 बीत गए तो आर्यन को फिक्र होने लगी. वह सोचता था कि नेहा स्वयं गुस्सा हो कर गई है, उसे स्वयं आना चाहिए. पर अब अपनी ही बातें उसे बेतुकी लगने लगी थीं. नेहा की जगह स्वयं को रख कर देखा तो सोचा शायद वह भी वही करता जो नेहा ने किया. नेहा उसे सचमुच बहुत प्यार करती है. तभी तो अर्पिता की दोस्ती सहन न हुई. खैर, जो हो गया वह हो गया. वह स्वयं नेहा को फोन करेगा और जा कर उसे ले आएगा. मन ही मन निश्चय कर आर्यन उठा और अपने फोन से नेहा का नंबर डायल करने लगा.

नेहा के फोन की रिंग जाती रही, पर फोन रिसीव न हुआ. फिर आर्यन ने नेहा के घर का लैंडलाइन नंबर मिलाया.

टैलीफोन की घंटी बजी तो फोन नेहा की मम्मी सीमा ने उठाया बोलीं, ‘‘हैलो.’’

‘‘हैलो, मम्मीजी नमस्ते. नेहा से बात करनी है… कहां है वह?’’ आर्यन ने बेहद आदर से कहा.

‘‘नेहा को तुम से कोई बात नहीं करनी है और बेहतर होगा कि तुम दोबारा फोन न करो,’’ सीमा ने कहा.

‘‘मम्मीजी, पर क्यों? मेरी बात तो सुनिए पहले प्लीज…’’ आर्यन की बात पूरी नहीं हुई थी कि सीमा ने रिसीवर रख दिया.

‘‘किस का फोन था सीमा?’’ नेहा के पापा नरेश ने पूछा.

‘‘आर्यन का. नेहा से बात करना चाहता था,’’ सीमा ने बताया.

‘‘तो फिर फोन काट क्यों दिया तुम ने?’’ नरेश ने पूछा.

‘‘मैं ने मना कर दिया,’’ सीमा ने गर्व से कहा.

‘‘मना कर दिया पर क्यों? नेहा को आए 15 दिन हो गए हैं… अब उसे जाना चाहिए,’’ नरेश ने कहा.

‘‘नेहा के रहते हुए आर्यन ने दूसरी लड़की से संबंध बना रखा है. फिर नेहा वहां क्यों जाए?’’ सीमा ने रोष में भर कर कहा.

‘‘देखो आर्यन को मैं अच्छी तरह जानता हूं. मेरे बचपन के दोस्त का बेटा है. वह ऐसी हरकत कभी नहीं कर सकता. जरूर नेहा को कोई गलतफहमी हुई है,’’ नरेश ने कहा.

‘‘वह लड़की नेहा के रहते हुए घर आती है,’’ सीमा ने कहा.

‘‘देखो, इस संबंध में हमें आर्यन से बात करनी चाहिए. यदि वह सचमुच गलत होगा तो हम उसे समझाएंगे,’’ नरेश ने कहा.

‘‘आर्यन कोई छोटा बच्चा नहीं है, जो उसे समझाया जाए. उस के पास अपना दिमाग नहीं है क्या?’’

‘‘सीमा, ऐसे तो मामला और बिगड़ जाएगा. तुम सोचो दोनों के बीच की दूरी इस तरह तो और बढ़ जाएगी. कहीं आर्यन तलाक के बारे में न सोचने लगे,’’ नरेश ने आशंका व्यक्त की.

‘‘बात बिगड़ती है तो बिगड़ने दो. नेहा अनाथ नहीं है. हम सब उस के साथ हैं. वह कहीं नहीं जाएगी. उसे और उस की बेटी को जिंदगी भर रख सकती हूं मैं,’’ सीमा ने कहा.

‘‘बात को समझने की कोशिश करो. इस सब से क्या फायदा? क्यों अपनी जिद के कारण नेहा का घर उजाड़ने पर तुली हो? तुम्हें तो उसे समझाबुझा कर पति के घर भेजना चाहिए,’’ नरेश ने कहा.

‘‘मैं उन मांओं में से नहीं हूं, जो बेटियों को बोझ समझती हैं. मैं ने नेहा को बहुत नाजों से पाला है. उस के ही घर में उस की सौतन आए यह मुझ से कभी बरदाश्त नहीं होगा.’

‘‘तुम हर बात में जिद क्यों करती हो? नेहा से भी तो पूछ लो वह क्या चाहती है?’’ नरेश ने कहा.

‘‘नेहा इतनी समझदार होती तो उसे ये दिन न देखने पड़ते. वह तो आंख मूंद कर पति पर भरोसा किए बैठी रही. उस के सीधेपन का फायदा उठा कर ही तो आर्यन मटरगश्ती करने लगा.’’

‘‘जैसी तुम्हारी मरजी,’’ पत्नी के सामने हमेशा की तरह चुप हो जाने वाले नरेश ने कहा. वे जानते थे कि सीमा से बातों में कोई नहीं जीत सकता. दूसरों की बातों को कुतर्कों से काट कर अपनी बात ही सही साबित करना उन की आदत है.

बात न बढ़े, लड़ाईझगड़ा न हो, घर में अशांति न फैले इसलिए वे हमेशा चुप हो जाते थे, किंतु बेटी का बसाबसाया घर सीमा की जिद व नेहा की बेवकूफी से उजड़ जाने की आशंका से डर कर बोल उठे थे. किंतु इस बार भी पत्नी के कुतर्कों ने उन्हें परास्त कर दिया.

नेहा कमरे में बैठी मम्मीपापा की बातें सुन रही थी. उसे लगा मम्मी सही कह रही हैं. न आर्यन को फोन करेगी न खुद जाएगी. तब उसे पता चलेगा. उस की इस अकड़बाजी से उस का विवाहित जीवन टूट भी सकता है, इस की उसे कोई चिंता न थी.

धीरेधीरे 7 महीने गुजर गए. आर्यन ने भी अब फोन करना छोड़ दिया था. महल्ले से ले कर परिचितों, रिश्तेदारों में यह खबर फैल गई कि पता नहीं क्यों नेहा मायके में पड़ी है. पति के पास नहीं जा रही है. लोग मिलने पर उस से सवाल भी पूछने लगे थे कि क्यों वह मायके में रह रही है? अत: धीरेधीरे नेहा लोगों से कतराने लगी थी. उस ने कहीं निकलना व परिचितों, रिश्तेदारों से मिलना छोड़ दिया था.

अब नेहा को आर्यन की याद सताने लगी थी. उसे लगता कि उसे आर्यन को इस तरह छोड़ कर नहीं आना चाहिए था. कम से कम उसे एक बार अपनी गलती सुधारने का मौका तो देना चाहिए था.

नेहा, आर्यन व अर्पिता के संबंधों के बारे में सोचती. अब तो वह घर पर नहीं है. उन दोनों को तो और छूट मिल गई… दोनों को ही रोकनेटोकने वाला कोई नहीं. कहीं ऐसा न हो कि सचमुच आर्यन उस से तलाक ले कर अर्पिता से शादी कर ले. आखिर इतने दिनों से न उस ने फोन किया न लेने आया. जरूर अर्पिता से उस की घनिष्ठता और बढ़ गई होगी. तभी तो अब फोन तक नहीं करता.

यह सब सोच मन ही मन कुढ़ती रहती नेहा. पर स्वयं अपनी तरफ से ईगो के कारण आर्यन को फोन नहीं करती. गलती आर्यन ने की और झुके वह. इस में उसे अपना अपमान लगता. उस का अभिमान जिसे वह अपना स्वाभिमान समझ रही थी वही उस का सब से बड़ा दुश्मन बन बैठा था.

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Serial Story: गलतफहमी (भाग-1)

घंटी बजी तो आर्यन ने उठ कर दरवाजा खोला.

‘‘अरे अर्पिता तुम?’’ उस ने हैरानी से पूछा.

‘‘आर्यन, मैं तुम्हें सरप्राइज देना चाहती थी. इसीलिए बिना बताए चली आई.’’

‘‘अच्छा किया जो आ गईं. आओ अंदर आओ,’’ आर्यन ने कहा और फिर अर्पिता को ड्राइंगरूम में बैठा कर पत्नी नेहा को बुलाने अंदर चला गया.

अर्पिता दिल्ली में अकेली रहती थी. करीब 3 महीने पहले उस की औफिस जाते समय बस में आर्यन से मुलाकात हुई थी. फिर एक दिन शाम को इत्तफाक से उन की मुलाकात बसस्टौप पर हो गई. अर्पिता काफी देर से बस की प्रतीक्षा कर रही थी. आर्यन उधर से अपनी बाइक से गुजर रहा था. उसे देख कर रुक गया. आर्यन के आग्रह पर वह उस के साथ चलने को तैयार हो गई.

‘‘अर्पिता, तुम्हारा यहां कोई रिश्तेदार या परिचित तो होगा न?’’ आर्यन ने यों ही बातोंबातों में पूछ लिया.

‘‘नहीं, मेरा यहां कोई रिश्तेदार या परिचित नहीं है.’’

‘‘कोई बात नहीं, तुम मुझे अपना दोस्त समझ कोई भी जरूरत पड़ने पर बेहिचक कह सकती हो.’’

‘‘हां, जरूर,’’ अर्पिता बोली.

फिर आर्यन ने उसे अपनी फैमिली के बारे में बता दिया.

रात को वह बिस्तर पर लेटी तो आर्यन के बारे में देर तक सोचती रही. उस के साथ उसे मेलजोल बढ़ाना चाहिए या नहीं? हालांकि उसे आर्यन की स्पष्टवादिता पसंद आई थी. ऐसे तमाम पुरुष होते हैं, जो शादीशुदा होते हुए भी लड़कियों से यह कह कर दोस्ती करते हैं कि वे अनमैरिड हैं या फिर ऐसे लोग लड़कियों से दोस्ती करने को उत्सुक रहते हैं जिन की बीवी से अनबन होती है. पर आर्यन के साथ ऐसा कुछ नहीं है. फिर उस के लिए तो अच्छा ही होगा कि यहां कोई परिचित तो रहेगा. फिर दोनों अच्छे दोस्त बन गए थे. कभीकभार फोन पर बात कर लेते या कभी साथ बैठ कर चायकौफी पी लेते.

आर्यन थोड़ी देर में लौटा. साथ में नेहा भी थी, बोला, ‘‘अर्पिता, ये है मेरी पत्नी नेहा और नेहा ये है अर्पिता मेरी दोस्त.’’

‘‘हाय नेहा,’’ अर्पिता ने मुसकरा कर कहा.

‘‘हैलो,’’ नेहा ने सामने सोफे पर बैठते हुए कहा.

आर्यन भी उस की बगल में बैठ गया. ‘‘ऐक्सक्यूज मी, जरा तनु को देख लूं. कल उस का टैस्ट है,’’ 5 मिनट बाद ही उठते हुए नेहा बोली.

आर्यन अर्पिता से इधरउधर की बातें करने लगा. फिर वह नेहा से चायनाश्ता लाने के लिए बोलने अंदर आया, ‘‘नेहा, ये क्या मैनर्स हैं, तनु को पढ़ाने के बहाने तुम अंदर चली आईं और यहां आ कर मैगजीन पढ़ रही हो. खैर, अब कम से कम चायनाश्ता तो बना ही सकती हो,’’ आर्यन धीरे बोल रहा था, पर अर्पिता तक आवाज स्पष्ट जा रही थी.

‘‘आर्यन, तुम ने पहले तो मुझे नहीं बताया था कि कोई लड़की तुम्हारी दोस्त है?’’ नेहा कह रही थी.

‘‘नेहा, मैं ने तुम्हें अर्पिता के बारे में बताया तो था.’’

‘‘आर्यन, मैं नहीं जानती थी कि तुम दोनों के बीच इतना गहरा रिश्ता है कि वह घर तक आ जाएगी और वह भी मेरे रहते हुए,’’ नेहा ने गुस्से से कहा.

‘‘नेहा, मैं तो तुम्हें समझदार समझता था, पर तुम तो मुझ पर शक कर रही हो,’’ आर्यन ने कहा.

‘‘अब कोई लड़की तुम से घर पर मिलने आए तो मैं क्या सोचूं?’’

‘‘अर्पिता सिर्फ मेरी अच्छी दोस्त है.’’

‘‘दोस्त… हुंह, कोई भी रिश्ता बनाने के लिए यह नाम काफी अच्छा होता है,’’ नेहा ने कहा.

‘‘शटअप, शर्म नहीं आती तुम्हें ऐसी बकवास करते हुए? तुम इतने संकीर्ण विचारों की हो मैं सोच भी नहीं सकता था,’’ आर्यन ने कहा.

‘‘तुम्हें भी तो शर्म नहीं आई पत्नी और बेटी के होते हुए दूसरी लड़की से संबंध…’’ नेहा गुस्से से बोली.

‘‘नेहा बंद करो यह बकवास… जाओ चाय बना दो,’’ आर्यन उस की बात काटते हुए बोला.

‘‘मैं, तुम्हारी प्रेमिका के लिए चाय बनाऊं. कभी नहीं,’’ नेहा ने साफ मना कर दिया.

नेहा को इस वक्त समझाना या उस से रिक्वैस्ट करना बेकार समझ आर्यन स्वयं किचन में चला गया. थोड़ी ही देर में चाय की ट्रे ले कर वह ड्राइंगरूम में आया.

‘‘आर्यन, तुम क्यों परेशान हुए?’’ अर्पिता बोली. आर्यन व नेहा की बातें सुन उस का मन कसैला हो उठा था, पर अपने हावभाव से वह प्रकट नहीं होने देना चाहती थी कि उस ने उन की बातें सुन ली हैं. वह आर्यन को अपने सामने शर्मिंदा नहीं होने देना चाहती थी.

‘‘अर्पिता, तनु को 1-2 लैसन समझ में नहीं आ रहे थे. नेहा उसे उन्हें समझा रही है. कल उस का टैस्ट है इसलिए मैं ने ही चाय बना ली,’’ आर्यन ने होंठों पर मुसकान लाते हुए कहा.

‘‘चलो, आज तुम्हारे हाथ की चाय पी जाए,’’ अर्पिता कप उठाते हुए बोली.

चाय पी कर वह जरूरी काम याद आ जाने का बहाना कर लौट आई. अर्पिता रास्ते भर नेहा के बारे में सोचती रही. आर्यन कहता था कि बहुत समझदार है नेहा. लगता है अभी तक उसे नहीं समझ पाया… आज नेहा ने जैसा व्यवहार किया उस से तो यही लगता है कि कितने संकीर्ण विचारों की है वह… खैर, चाहे जैसी भी हो आर्यन की पत्नी है. यदि उसे पसंद नहीं तो आर्यन से कोई संबंध नहीं रखेगी वह. उस की वजह से उन के रिश्ते में कोई दरार पड़े यह ठीक नहीं.

अर्पिता को गेट तक छोड़ आर्यन अंदर आया तो अंदर का दृश्य देख कर दंग रह गया. नेहा, जल्दीजल्दी वार्डरोब से अपने कपड़े निकाल कर बैग में रखती जा रही थी. उस का चेहरा गुस्से से लाल हो रहा था.

‘‘नेहा, यह क्या कर रही हो तुम?’’ उस ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘मैं अब आप के साथ नहीं रह सकती. अच्छा होगा हम अपने रास्ते अलग कर लें.’’

‘‘नेहा, यह क्या बेवकूफी भरी हरकत कर रही हो?’’ आर्यन ने कहा.

‘‘बेवकूफी मैं नहीं कर रही आप ने की है, जो पत्नी के रहते हुए दूसरी लड़की से संबंध बनाया.’’

‘‘चुप रहो जो मन में आ रहा है बोलती जा रही हो,’’ आर्यन चिढ़ कर बोला.

‘‘सचाई कड़वी ही लगती है. मैं बहुत शरीफ समझती थी आप को, पर आप की असलियत क्या है, अब जान गई हूं,’’ नेहा भी तेज स्वर में बोली.

‘‘नेहा, क्यों बेवजह बात का बतंगड़ बना रही हो?’’ आर्यन ने उसे समझाना चाहा.

‘‘मैं बात का बतंगड़ नहीं बना रही हूं सच कह रही हूं.’’

‘‘नेहा, मेरी बात समझने की कोशिश करो. अर्पिता केवल…’’ आर्यन ने बात पूरी भी नहीं की थी कि नेहा बीच में ही बोल उठी, ‘‘मुझे सफाई देने की कोशिश मत करो प्लीज.’’ फिर नेहा बैग की जिप बंद करते हुए बोली, ‘‘चलो तनु,’’ और उस ने तनु की कलाई पकड़ ली.

‘‘नेहा, तुम्हें जाना है तो जाओ. तनु को मत ले जाओ. वैसे भी उस के टैस्ट चल रहे हैं,’’ आर्यन ने कहा.

‘‘अच्छा मैं यहां अपनी बेटी को आप दोनों की रंगरलियां देखने के लिए छोड़ दूं,’’ नेहा आंखें तरेर कर बोली.

आगे पढ़ें- आर्यन से नेहा की ये बातें बरदाश्त न हुईं तो उस ने…

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