ऊपरनीचे दोनों की गृहस्थी अपने ढर्रे पर आगे बढ़ रही थी. उस दिन खापी कर वे सोए थे. अचानक शिवनाथजी के सीने में तेज दर्द उठा. वे जोरजोर से चीखे और मदन को आवाज दे कर बेहोश हो गए. मालिक की चीख सुन कर मदन दौड़ कर आया. रात के डेढ़ बजे थे. चारों ओर जाड़े की रात का सन्नाटा. अंदर की सीढि़यों का दरवाजा खोल कर मदन ने छत पर जा कर अमितआरती को जगाया. वे दोनों नीचे दौड़े आए. अमित घबरा गया. ‘‘दादाजी, जल्दी जा कर डाक्टर को बुला लाओ. इन्हें दिल का दौरा पड़ा लगता है. हम इन के पास हैं.’’
मदन डाक्टर के पास गया. आधे घंटे में रोता हुआ लौटा, कोई नहीं आया.
‘‘इन को फौरन उपचार की जरूरत है,’’ आरती बोली, ‘‘दद्दू, पास में कौन सा अस्पताल है?’’
‘‘भारत अस्पताल. वह भी यहां से एक मील दूर होगा.’’
‘‘मैं जाता हूं और ऐंबुलैंस ले कर आऊंगा, तब तक तुम दोनों इन का ध्यान रखना,’’ अमित बोला.
‘‘पर बेटा, इतना कोहरा और ठंड है.’’
‘‘कोई बात नहीं दद्दू,’’ अमित बोला. और 20 मिनट में ही ऐंबुलैंस ले कर लौट आया.
‘‘आरती, ऊपर ताला लगा आओ. मुझे आज ही वेतन मिला है वह पैकेट और घर में जो पैसे रखे हैं सब ले आओ. बाबूजी को अभी ले जाना है.’’
आई.सी.यू. के बाहर अमित और आरती चुपचाप बैठे थे. 11 बजे मदन आया और पूछा, ‘‘मालिक कैसे हैं?’’
‘‘अभी होश नहीं आया है.’’
‘‘मैं ने उन के भतीजों को फोन किया था पर उन के पास समय नहीं है. समय मिला तो देखने आएंगे. बहूरानी, यह लो 2 हजार रुपए रखो. कब क्या जरूरत पड़ जाए. मैं जा कर घर देख कर आता हूं.’’ मौत और जीवन के खेल में शिवनाथजी के जीवन ने मौत को हरा दिया. इस के बाद भी डाक्टरों ने उन्हें 3 दिन तक और रोक कर रखा. वे घर आए तो 15 दिन तक आरती और अमित ने दौड़धूप, सेवा और देखभाल की. कोेई अपना सगा बेटा भी क्या सेवा करेगा, जो उन्होंने की. पता नहीं कितने पैसे खर्च किए उन्होंने. पर शिवनाथजी पर किसी बात का कोई असर नहीं था. स्वस्थ होते ही वे फिर अपने असली रूप में आ गए. अमित जब किराया देने आया तो उस के सारे किएधरे को भूल कर उन्होंने आराम से किराया ले कर रख लिया. मदन तक से एक बार भी नहीं पूछा कि तू ने कितना खर्च किया है.
उस दिन मदन टमाटर व प्याज खरीद कर लाया तो वे बिगड़ पड़े, ‘‘आजकल टमाटर व प्याज सब से महंगे हैं. टैलीविजन पर रोज दिखा रहे हैं और तू यही ले आया. गलती से 100 का नोट क्या दे दिया कि तू ने तो शाही दावत का जुगाड़ कर लिया.’’
‘‘अब आप पैसा जोड़ते रहिए,’’ मदन बोला, ‘‘बड़ा घमंड है न आप को अपने पैसे पर. क्या कहते हैं आप पैसे को…बुढ़ापे की लाठी. तो कौन काम आई वह लाठी, जब मौत आप के सिरहाने आ कर खड़ी हुई थी. घना कोहरा, हाड़ गलाने वाली ठंड में एक दरवाजे से दूसरे दरवाजे तक मैं गिड़गिड़ाता रहा, आप के डाक्टर साहब ने भी आने से मना कर दिया. ऊपर के किराएदार ही अपने सारे पैसे ले कर आप की जान बचाने को दौड़धूप करते रहे. रात 2 बजे अमित पैदल अस्पताल गया गाड़ी लाने, तब आप की लाठी ने कौन सा करतब दिखा दिया…’’
तभी आरती सूप ले कर आई. उस ने समझाबुझा कर मदन को शांत किया…
‘‘बाबूजी, मदन दादाजी की भी ढलती उम्र है. सुबह से दौड़धूप कर रहे हैं. आप इन को डांटिए नहीं. थोड़ा समझौता दोनों के ही लिए अच्छा है.’ शिवनाथजी चुप हो गए. सूप पीने लगे. मानो अमृत का स्वाद हो. लड़की जो भी बनाती है उसी में स्वाद आ जाता है. इस के बाद शिवनाथजी ने बंद मुट्ठी को थोड़ा खोला तो मदन के दिन वापस आ गए. अब शिवनाथजी थोड़ाथोड़ा बाहर भी जाने लगे. कभी रिकशे में तो कभी आटो में अकेले ही जाते. मदन को भी पता नहीं कि वे कहां जाते हैं. रविवार के दिन अमित को आरती सुबह उठाने का प्रयास कर रही थी कि मदन घबराया सा आया, ‘‘बिटिया, जरा भैया को नीचे भेज दो, मालिक उठ नहीं रहे.’’
अमित एकदम उठ बैठा, ‘‘क्या मतलब?’’
‘‘भैया, आज इतना दिन चढ़ आया,’’ मदन बोला, ‘‘मैं कई बार मालिक को जगा चुका हूं…’’
अमित समझ गया कि पिछली बार सब से दौड़धूप करवाई पर इस बार शांति से चुपचाप चले गए. उस ने चादर से शव को सिर तक ढक दिया. ‘‘मैं डाक्टर को फोन करता हूं. इन का डैथ सर्टिफिकेट चाहिए.’’
मदन दहाड़ मार कर रो उठा. काम निबटातेनिबटाते रात हो गई. उन का भतीजा व भानजा शिवनाथजी के मरने की खबर सुन कर दौड़े आए और क्रियाकर्म तक जम कर बैठे रहे. वे मौका मिलते ही मदन से तरहतरह के सवाल पूछ लेते. मदन जानता ही क्या था जो उन्हें बताता. पहले ही दिन मदन ने एक चालाकी का काम किया था, शिवनाथजी के खानदानी वकील को उन की तिजोरी की चाबी यह कहते थमा दी थी, ‘‘वकील साहब, मालिक तिजोरी की चाबियां अपने तकिए के नीचे रखते थे. तिजोरी में क्या है मुझे भी नहीं पता. मालिक तो बस खर्चे के पैसे और मेरी पगार देते थे. उन के 3 अपने रिश्तेदार हैं जो यहां आए हैं, मुझे उन पर भरोसा नहीं. यह चाबी आप ले जाओ.’’ इस के बाद तीनों ने बारीबारी से मदन से तिजोरी की चाबी मांगी, लेकिन उस ने तीनों को एक ही उत्तर दिया कि चाबी तो वकील साहब के पास है. उन से मांग लो. श्राद्ध के दिन वकील ने कहा, ‘‘शिवनाथजी ने अभी 2 हफ्ते पहले अपनी पुरानी वसीयत बदल कर नई वसीयत की थी जो मेरे पास है. डाक्टर साहब, जज साहब और ब्रिगेडियर साहब उस के गवाह हैं. परसों 11 बजे आप तीनों जो उन के सगे हैं, मदन व किराएदार अमित अपनी पत्नी आरती के साथ मेरे घर पर आ जाएं. वसीयत के हिसाब से चलअचल संपत्ति का कब्जा भी दिया जाएगा.’’
भतीजे ने आपत्ति जताई, ‘‘हमारे घर की वसीयत में बाहर के किराएदार क्यों?’’
‘‘यह शिवनाथजी की इच्छा है. गवाह भी तो बाहर के लोग हैं. इन का आना जरूरी है.’’ जाने की इच्छा एकदम नहीं थी. फिर भी अमित मरने वाले की अंतिम इच्छा को महत्त्व देते हुए पत्नी आरती व मदन को ले कर वकील के घर ठीक समय पर गया. थोड़ी उत्सुकता मन में यह थी कि देखें इन सगों में किस की तकदीर जागी है. तीनों ही परेशान से दिखाई दे रहे थे. उन में से एक ने अमित से पूछा, ‘‘क्यों भाई, क्या लगता है, वसीयत किस के नाम हो सकती है?’’
‘‘मुझे क्या पता? किराएदार हूं, वह भी मात्र 8 महीने पहले ही आया हूं. परिचय भी ठीक से नहीं था.’’
‘‘हम 3 ही हैं,’’ एक ने कहा, ‘‘हम तीनों को ही बराबर बांट गए होंगे. क्या कहते हैं आप?’’
‘‘पर मदन ने अपना पूरा जीवन उन की सेवा में बिताया. वह इस बुढ़ापे में कहां भटकेगा.’’
‘‘अरे, नौकर की जात, एक नौकरी गई तो दूसरी पकड़ लेगा. आप भी ले बैठे नौकर की चिंता.’’
वकील ने लिफाफे से वसीयत निकाली. ‘‘यह शिवनाथजी की हाल ही में की गई नई वसीयत है. इस की 2 कापी और हैं. एक जज साहब के पास, दूसरी ब्रिगेडियर साहब के पास. उन का निर्देश है कि वसीयत के अनुसार घरसंपत्ति का कब्जा मैं असली हकदार को दिलवाऊं. मैं वसीयत पढ़ता हूं,’’ यह कह कर उस ने वसीयत पढ़ी : ‘चल व अचल मिला कर तकरीबन डेढ़ करोड़ की संपत्ति है. इस संपत्ति को छोड़ कर लाखों के आभूषण तिजोरी में मौजूद हैं. घर की कीमत भी आज की तारीख में 1 करोड़ रुपए है. यह सारी चलअचल संपत्ति किराएदार दंपती अमित और आरती के नाम है. मदन के नाम 3 लाख रुपए मासिक ब्याज के खाते में जमा हैं, जहां से उसे प्रतिमाह 3 हजार रुपए ब्याज मिलेगा और जब तक वह जीवित है तब तक इसी घर के निचले हिस्से में रहेगा. उस के बाद यह पूरा घर अमितआरती का होगा.’
‘‘ठीक, एकदम ठीक,’’ बुजुर्गों ने समर्थन किया, ‘‘अपना वह जो समय पर काम आए.’’
भतीजा चीखा, ‘‘मैं इस वसीयत को नहीं मानता हूं. मैं उन का सगा हूं.’’ ‘‘सगे होने का एहसास उन के मरने के बाद हुआ,’’ जज साहब बोले, ‘‘बीमारी में तो झांके तक नहीं.’’ ‘‘मैं यह वसीयत नहीं मानता.’’ ‘‘तो कोर्ट में जा कर चुनौती दो. अब उस घर से अपना सामान उठा कर चलते बनो. मुझे इन को कब्जा दिलाना है.
‘‘अब आप लोग घर खाली कर दें नहीं तो कानून के गुनाहगार होंगे और मदन की सहायता कानून करेगा.
‘‘अब वह नौकर नहीं घर का मालिक है.’’ कोने में बैठा मदन रोए जा रहा था.
आरती उठ कर पास आई, बोली, ‘‘दद्दू, उठो, घर चलो. अब तो साथ ही रहेंगे हम.’’
उस ने सिर उठाया, ‘‘बहूरानी, मालिक…’’
‘‘हां, दद्दू, उन्होंने हम सब को हरा दिया और खुद जीत गए. पक्के खिलाड़ी जो ठहरे.’’