Serial Story: पिघलते पल (भाग-1)

अभिमन्यु को वापस छोड़ कर मानव मुड़ा तो अभिमन्यु ने हाथ पकड़ लिया, ‘‘मत जाइए न पापा… यहीं रह जाइए… रुक जाइए न पापा… आप के बिना अच्छा नहीं लगता…’’

‘‘अगले रविवार को आऊंगा न अभि… हमेशा तो आता हूं,’’ मानव उस का गाल सहलाते हुए बोला.

‘‘नहीं, आप बहुतबहुत दिनों बाद आते हैं… मुझे आप की बहुत याद आती है… मेरे दोस्त भी आप के बारे में पूछते हैं… मेरे स्कूल भी आप कभी नहीं आते. मेरे दोस्तों के पापा आते हैं… क्यों पापा?’’

8 साल के नन्हे अभि के अनगिनत सवाल थे. मानव हैरान सा खड़ा रह गया. उस के पास कोई जवाब नहीं था. कुछ ऐसे सवाल थे जिन के जवाब देने से वह खुद से कतराता था. उसे नहीं पता कि यह सिलसिला कब तक यों ही चलता रहेगा.

‘‘मैं आऊंगा अभि. तुम तो मेरे समझदार बेटे हो. जिद्द नहीं करते बेटा… अब तुम ऊपर जाओ… मैं कुछ दिनों की छुट्टी ले कर तुम्हें अपने साथ ले जाऊंगा. फिर हम दोनों साथ रहेंगे.’’

‘‘नहीं, फिर वहां मम्मी नहीं होंगी.’’

‘‘अभि, अब तुम ऊपर जाओ बेटा. हम फिर बात करेंगे. मुझे भी देर हो रही है,’’ कह कर मानव ने उसे लिफ्ट के अंदर किया और खुद बिल्डिंग के बाहर आ कर अपनी कार स्टार्ट की और घर की तरफ चल दिया. मुंबई जैसी जगह में दोनों घरों की दूरी बहुत थी. फिर भी हर रविवार की उस की यही दिनचर्या थी.

मानव एक कंपनी में अच्छे पद पर था. बड़ा पद था तो जिम्मेदारियां भी बड़ी थीं. बहुत व्यस्त रहता था. टूअरिंग जौब थी उस की. 10 साल पहले मिताली से उस का प्रेम विवाह हुआ था. दोनों ने एमबीए साथ किया था. पहली ही नजर में शोख, चुलबुली, फैशनेबल मिताली उसे भा गई थी. एमबीए पूरा होतेहोते कैंपस प्लेसमैंट में दोनों को बढि़या जौब मिल गई. फिर दोनों ने अपनेअपने मातापिता को एकदूसरे के बारे में बताया. दोनों के मातापिता खुशीखुशी इस रिश्ते के लिए तैयार हो गए. दोनों को ही पहली पोस्टिंग बैंगलुरु में मिली. विवाह के बाद दोनों बैंगलुरु चले गए.

नईनई नौकरी की व्यस्तता और नईनई शादी, व्यस्त दिनचर्या के बावजूद दिन पंख लगा कर उड़ने लगे. दोनों बहुत खुश थे. विवाह का पहला साल खुशीखुशी में बीत गया. दूसरे साल में बच्चे के आने की आहट दस्तक दे गई. दोनों अभी बच्चे के लिए तैयार नहीं थे पर दोनों परिवारों के दबाव की वजह से बच्चे को जन्म देने के लिए तैयार हो गए.

मिताली को अपनी नौकरी छोड़नी पड़ी. नौकरी छोड़ने का मिताली को बहुत दुख हुआ पर मानव ने उसे समझाया कि बच्चे के थोड़ा बड़ा होने पर वह फिर नौकरी कर सकती है. लेकिन वह समय फिर कभी नहीं आया और जब आया तब तक सब कुछ बिखर चुका था. जैसेजैसे बच्चा बड़ा होता गया मिताली की घरगृहस्थी की जिम्मेदारियां बढ़ती चली गईं. इधर मिताली की घरगृहस्थी की जिम्मेदारियां बढ़ीं उधर मानव नौकरी में और एक के बाद बड़े पद पर पहुंचता चला गया. इसीलिए उस की नौकरी की जिम्मेदारियां भी बढ़ती गईं.

नौकरी छोड़ने के कारण एक रोष तो मिताली के स्वभाव में पहले ही घुल गया था. उस पर मानव की अत्यधिक व्यस्तता ने आग में घी का काम कर दिया. वह चिड़चिड़ी हो गई. थोड़ाबहुत गुस्सैल स्वभाव तो उस का पहले ही था. अब तो वह बातबात पर गुस्सा करने लगी. मानव के घर आने का कोई वक्त नहीं होता था. उस पर टूअरिंग जौब. मिताली जबतब भन्ना जाती थी.

‘‘ऐसे कब तक चलेगा मानव? घरगृहस्थी, बीवी के प्रति भी तुम्हारी कोई जिम्मेदारी है या नहीं?’’

‘‘क्या जिम्मेदारी नहीं निभा रहा हूं मैं?’’ थकामांदा मानव भी भन्ना जाता, ‘‘अब क्या नौकरी छोड़ दूं?’’

‘‘ऐसी भी क्या नौकरी हो गई… अभि को तुम से ठीक से मिले हुए भी कितने दिन हो जाते हैं… रात को जब तुम आते हो वह सो जाता है… सुबह वह स्कूल चला जाता है, तब तक तुम सो रहे होते हो… एक टूअर से आ कर तुम दूसरे पर चले जाते हो. यह कैसी जिंदगी बना दी है तुम ने हमारी?’’

‘‘मिताली प्राइवेट कंपनी में जौब कर चुकी हो तुम,’’ मानव किसी तरह स्वर संयत कर कहता, ‘‘प्राइवेट कंपनी की व्यस्तता को समझती हो, फिर भी नासमझों वाली बात करती हो… इतने बड़े पद पर ऐसे ही तो नहीं पहुंचा हूं… काम और मेहनत से ही पहुंचा हूं… ऐशोआराम के सारे साधन हैं तुम्हारे पास… ये सब मेरी मेहनत से ही आए न…’’

‘‘नहीं चाहिए हमें ऐसे ऐशोआराम के साधन जिन से जिंदगी इतनी नीरस हो गई. हमें तुम्हारी जरूरत है मानव, तुम्हारी,’’ मिताली का चिड़चिड़ा स्वर भर्रा जाता, ‘‘घर आ कर भी फोन कौल्स तुम्हारा पीछा नहीं छोड़तीं… फोन पर ही लगे रहते हो.’’

‘‘औफिस के काम के ही फोन आते हैं… अटैंड नहीं करूं क्या?’’ मानव का स्वर भी ऊंचा होने लगता.

‘‘कितने दिन हो जाते हैं हमें दोस्तों के घर गए हुए, दोस्तों को घर बुलाए हुए, कहीं बाहर गए… छुट्टी के दिन तुम थके हुए होते हो.’’

‘‘मैं तुम्हें मना करता हूं क्या? तुम अपना सामाजिक दायरा क्यों नहीं बढ़ातीं? व्यस्त रहोगी तो फालतू की बातों पर ध्यान नहीं जाएगा,’’ कह कर मानव पैर पटक कर सोने चला जाता और आंखों में आंसू भरे मिताली खड़ी रह जाती.

अब अकसर यही होने लगा. मानव ज्यादातर टूअर पर रहता या औफिस के काम में व्यस्त. जो थोड़ाबहुत वक्त मिलता वह दोनों के झगड़ों की भेंट चढ़ जाता. मानव टूअर पर रहता तो मिताली की अनुपस्थिति में परिस्थिति को नए नजरिए से सोचता. सोचता कि आखिर मिताली की शिकायत एकदम गलत भी तो नहीं है. अब वह कोशिश करेगा उसे और अभि को थोड़ा वक्त देने की.

मानव की अनुपस्थिति में मिताली के सोचने का नजरिया भी बदल जाता कि आखिर मानव भी क्या करे. कंपनी के इतने बड़े पद पर है तो उस की जिम्मेदारियां भी बड़ी हैं. वह थक भी जाता है और वह उस की व्यस्तता समझने के बजाय उस से झगड़ा करने लगती है… जो थोड़ाबहुत वक्त उन्हें मिलता है उस का भी सदुपयोग नहीं कर पाते हैं.

मगर जब वे एकदूसरे के सामने होते तो ये विचार तिरोहित हो जाते. मानव की व्यस्तता ने पतिपत्नी के शारीरिक संबंधों को भी प्रभावित किया था. एक तो समय ही नहीं उस पर भी झगड़ा और नाराजगी. महीनों बीत जाते उन्हें संबंध बनाए हुए. दोनों मानसिक, शारीरिक स्तर पर अधूरापन महसूस कर रहे थे.

यह समस्या एकमात्र मानव और मिताली की ही नहीं थी. आज के समय में युवावर्ग इतना व्यस्त हो गया है कि अधिकतर की दिनचर्या कुछ ऐसी ही हो गई है. जहां दोनों नौकरी कर रहे हैं वहां तो घर जैसे रैन बसेरा हो गया है. एक तो नौकरी की व्यस्तता दूसरे महानगरों में घर से औफिस आनेजाने में काफी समय लग जाता है. एक छुट्टी का दिन थकान उतारने और दूसरे जरूरी कार्य करने में ही बीत जाता है.

युवावर्ग आज विवाह के नाम से ही घबरा रहा है. लड़का हो या लड़की विवाह की जिम्मेदारियां उठाना ही नहीं चाहते और विवाह कर लें तो बच्चे को जन्म देने से कतरा रहे हैं विशेषकर लड़कियां, क्योंकि विवाह और बच्चे के बाद सब से पहले उन्हीं की स्वतंत्रता और नौकरी दांव पर लगती है.

आगे पढ़ें- मानव और मिताली के झगड़े दिनोंदिन…

हां, अनि: सुनिल की जिंदगी में क्यों लौटी बेदर्द सीमा?

हां, अनि: भाग-2

पिछला भाग पढ़ने के लिए- हां, अनि: भाग-1

सहसा तभी होटल मैनेजर ने स्टेज पर ताली बजाते हुए लोगों का ध्यान खींचा और माइक में बोला, ‘लेडीज एंड जेंटल मैन, जैसा कि आप सब जानते हैं, आज हम इस प्रिंस होटल की सिल्वर जुबली मनाने जा रहे हैं. पिछले अनेक सालों से निरंतर हमें आप का जो अपार स्नेह व भरपूर सहयोग मिलता रहा है, उस के लिए यह होटल आप सब का आभारी है, और आशा नहीं, पूर्ण विश्वास है कि भविष्य में भी हमें आप सब का इसी तरह सहयोग मिलता रहेगा.

‘आज के स्पेशल डांस प्रोग्राम में सर्वप्रथम आप बाल रूम डांस का लुत्फ उठाएंगे, फिर टैब डांस का और अंत में आर्केस्ट्रा की धुन में तेजी आ जाएगी, जो हर पल बढ़ती ही रहेगी. आखिर तक इस तीव्र धुन पर नाचने वाला जोड़ा, आज के डांस प्रोग्राम का विनर प्राइज हासिल करेगा.’

हाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा.

नृत्य आरंभ हो गया. आर्केस्ट्रा की धीमी व मीठी धुन हाल में रस घोलने लगी. चारों तरफ एक अजीब सा उन्माद छा गया. जवान क्या, बूढे़ भी एकदूसरे की कमर में बांहें डाल थिरकते हुए डांसिंग फ्लोर पर आ गए, धीमी गति के नृत्य का मधुर समां देखते ही बनता था.

रात के उस दौर में शराब और शबाब का अनूठा मेल पा कर मेरा सूफी मन भी उस में डूब जाने को मचल उठा. उस ‘गुलाबी प्रिया’ को यथावत बैठी देख मैं प्रसन्नता से झूमता चला गया.

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‘आई एम सुनील कुमार,’ नाम बताते हुए उस से बोला, ‘क्या आप मेरे साथ डांस करेंगी?’

‘श्योर,’ वह मुसकरा दी, ‘मुझे रोजी कहते हैं.’

‘वेरी गुड,’ मैं चहका, ‘आप के पेरेंट्स ने बहुत सोचसमझ कर यह नाम रखा होगा?’

‘नहीं, ऐसा नहीं है,’ रोजी पुन: मुसकराने लगी और उठ कर अपना खूबसूरत एवं नाजुक हाथ बढ़ाते हुए बोली, ‘आइए, डांस करें.’

कहीं फिर न चूक जाऊं, इसलिए प्यार से उस का हाथ पकड़ते हुए मैं ने ‘थैंक्यू’ कहा. नृत्य में वह इस कदर खुल कर पेश आई मानो हम पहले से एकदूसरे को जानते हों. खैर, उस रात विशेष डांस प्रोग्राम में रोजी के साथ मुझे ही ‘ताजमहल’ मिला, लेकिन विदा होते समय जब उसे प्राइज सौंपा तो वह उदास लगी, मानो उस की उम्मीदों पर मैं खरा नहीं उतरा.

इस के बाद रोजी कई बार क्लब, होटल, सिनेमा, समंदर के किनारे आदि जगहों पर मिली लेकिन वह हमेशा जल्दी में होती जबकि मैं निरंतर महसूस करता कि वह जानबूझ कर ऐसा करती है. उस की चेष्टा कतरा जाने में रहती है. अचानक ही सामने आ जाने से उस के चेहरे पर नागवारी के जो भाव उभरते उन्हें आसानी से मैं पढ़ लेता. उसे मानो मेरा मिलना अखरता हो.

वह मेरे होशोहवास पर इस तरह छा गई कि मैं एकांत में छटपटा उठता और तब मुझे ऐसा लगता कि उस के बगैर वजूद अधूरा है. प्राय: मैं सोचता, ज्यों ही वह मिलेगी तो फौरन उस के आगे पे्रम का इजहार कर दूंगा, लेकिन रोजी की व्यस्तता और जल्दबाजी…कुछ कहने का मौका न देती.

एक दिन सोचा कि बात ऐसे नहीं बनेगी, अत: रोजी के वास्ते मैं ने एक पत्र लिखा, जिस में प्रेम के साथसाथ उस से विवाह रचाने की इच्छा भी प्रकट की और अब वह पत्र सदा जेब में रहता, ताकि मिलते ही उसे थमा दूं.

सहसा एक दिन शाम को वह सड़क पर भीड़ में जाती दिखाई दी. मैं ने जोर से नाम ले कर उसे पुकारा. उस ने चौंक कर पीछे देखा. मैं ने झट से गाड़ी फुटपाथ के साथ ले जा कर रोक दी तो उसे नजदीक आना ही पड़ा.

‘हाय, रोजी.’

‘हाय…’ मुसकराने के बावजूद उस के चेहरे पर बेरुखी उभर आई. सफेद पैंट और टौप पर खुली केश राशि में वह बिजलियां गिराती नजर आई.

मैं कह उठा, ‘आओ, जुहू पर टहलें.’

‘सौरी, आज फिर बिजी हूं,’ खेद भरे स्वर में वह बोली.

‘आओ तो सही, जहां कहोगी वहां उतार दूंगा.’

दिल की बात कहने के लिए इतना सफर ही बहुत होगा.

‘बेकार आप को परेशान…’

‘मैं फुरसत में हूं,’ उतावलेपन से मैं उस की बात बीच में काटते हुए बोला तो उस से इनकार करते न बन पड़ा.

कार का अगला गेट खोलते हुए वह चुपचाप मेरी बाजू में आ कर बैठ गई. उस के बदन का मधुर स्पर्श पाते ही बात कहां से शुरू करूं समझ में न आया और कुछेक क्षण यों ही निकल गए.

‘मुझे यहीं उतरना है,’ रोजी ने कहा.

‘ठहरो रोजी.’

जातेजाते वह पलटी. मैं ने पत्र निकाल कर उसे देते हुए भारी स्वर में कहा, ‘एकांत में इसे जरूर पढ़ लेना.’

रोजी उसे ले कर भीड़ में समा गई. मैं ने देखा, वह क्लब के सामने उतरी है.

अगली मर्तबा मिलते ही रोजी खिलखिला कर हंस पड़ी.

मैं अवाक् सा मोतियों की भांति चमकते उस के दांत देखता रह गया. हंसतेहंसते उस की आंखें नम हो गईं. थोड़ी देर बाद अपनी हंसी पर काबू पाते हुए वह बोली, ‘बस, इतनी सी बात के लिए कागज रंग डाला. कितनी बार तो मिली हूं? कभी भी कह दिया होता.’

‘तुम्हारी व्यस्तता और जल्दबाजी ने मौका ही कब दिया?’

एकाएक रोजी गंभीर हो गई. माथा सिलवटों से भर गया. मानो किसी उलझन में फंस गई हो…हां…कहेगी या ना? सोचते हुए मैं ने उसे टोका, ‘जवाब दो, रोजी.’

उस की चंचलता पुन: लौट आई और वह अपने आंसू इतनी सफाई से पी गई कि मैं देख कर दंग रह गया. ‘बेकार शादी के लफड़े में क्यों पड़े हो?’ जबरन हंसते हुए उस ने कहा, ‘मैं तो यों ही तुम्हारी बन जाने को तैयार हूं, चलो, कहां ले जाना चाहते हो मुझे?’

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रोजी, अश्लीलता की सारी हदें पार कर गई थी. निर्लज्जता से भरा यह निमंत्रण पा कर मन में आया कि एक जोरदार थप्पड़ उस के गाल पर जड़ दूं, लेकिन कुछ सोचते हुए दुख, आश्चर्य व क्रोध से कसमसा कर रह गया.

‘मुझे तुम से यह उम्मीद नहीं थी, रोजी.’

‘गलती की, जो एक सेक्स वर्कर से आप कोई दूसरी उम्मीद कर बैठे.’

आगे पढ़ें- रोजी ने मानो पिघला हुआ शीशा…

हां, अनि: भाग-1

कहानी- कृष्ण कुमार भगत

सीमा के संदर्भ में मैं ने एक कविता संग्रह ‘आओ, इस जर्जर घड़ी को बदल डालें’ शीर्षक से लिखा था, जिस की याद अब मुझे आ रही है और अनिता अक्षरश: उसे सुनाने लगी. मेरे अपने ही शब्द आज मुझे कितने भोथरे महसूस हो रहे हैं.

‘‘जितनी जल्दी हो सके…आओ इस जर्जर घड़ी को बदल डालें. वरना हरगिज माफ नहीं करेंगी हमें…आने वाली हमारी नस्लें…’’

सीमा, यानी अनिता की पुरानी सहेली, इतनी जल्दी वह घर आ धमकेगी, वह भी मेरी गैरमौजूदगी में, यह तो बिलकुल न सोचा था. कल शाम को बाजार में शौपिंग करते हुए अचानक वह मिल गई तो मैं चौंक उठा, जबकि उस के चेहरे पर ऐसा कोई भाव न उभरा था.

‘‘सुनील, यह सीमा है,’’ अनिता ने परिचय दिया, ‘‘मेरी प्रिय सखी.’’

‘‘बड़ी खुशी हुई आप से मिल कर,’’ औपचारिकता के नाते कहना पड़ा. कड़वा सच एकदम से उगला भी तो नहीं जाता.

‘‘किसी हसीन लड़की से साली का रिश्ता जुड़ जाने पर भला कौन खुश नहीं होगा,’’ निसंकोच सीमा ने कहा और हंस पड़ी. वही 3 साल पुराना चेहरा, वही रूपरंग, कातिल अदा, मोतियों से चमकते दांत, कुदरती गुलाबी होंठ और उसी तरह गालों को चूमती 2 आवारा लटें, कुछ भी तो न बदली थी वह. हां, उस का यह नाम जरूर पहली बार सुना और अपनी बात पर स्वयं ही खिलखिला उठना कतई न सुहाया. मन में दबी नफरत की चिंगारी भड़क उठी और ‘साली का संबोधन’ अंगारे की तरह अंदर जलाता चला गया.

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‘‘अच्छा, मैं चलूं, अनिता,’’ सहसा वह बोली.

मैं उस से पूछना चाहता था कि इतना कह देने भर से ही क्या तुम छूट जाओगी और मेरी यादों के कैनवास पर से तुम्हारे चरित्र के दाग मिट जाएंगे?

‘‘ऐसी भी क्या जल्दी है,’’ अनिता ने कहा, ‘‘इतने बरसों बाद तो मिली हो, घर चलो, आराम से बैठ कर बातें करेंगे.’’

‘‘फिर कभी आऊंगी, अभी जल्दी में हूं, अपना पता दे दो.’’

अनिता ने उसे अपना विजिटिंग कार्ड थमा दिया था.

रात भर मैं यही सोचता रहा कि उस ने अनिता के सामने ऐसा क्यों जताया कि हम पहली बार मिले हैं. क्या वह मुझे उस पत्र से ब्लैकमेल करना चाहती है, जिस में प्रेम के साथसाथ मैं ने उस से विवाह करने की इच्छा भी जाहिर की थी? ऐसी लड़कियों का भरोसा ही क्या? आज सारा दिन आफिस में भी दिमाग अशांत रहा. शाम को थकाहारा घर लौटा तो अनिता ने ठंडे पानी के साथ गरमागरम खबर दी, ‘‘दोपहर में सीमा आई थी.’’

सुनते ही मैं सोफे पर से उछल पड़ा, कई सवाल दिमाग में कौंधे…क्यों वह मेरे शांत व सुखी घरेलू जीवन में तूफान लाने पर तुली है अनिता, अब तक मां नहीं बन सकी तो क्या हुआ, दोनों में अच्छा तालमेल तो है.

‘‘रहने की तलाश में है बेचारी,’’ अनिता ने बताया, ‘‘अपने पड़ोस में खाली पड़ा मकान तय करवा दिया है और कह रही थी, प्लीज जीजाजी से सिफारिश कर के कहीं काम पर रखवा देना.’’

मैं बोला, ‘‘देखूंगा.’’

‘‘देखूंगा नहीं,’’ अनिता ने जोर दिया, ‘‘उसे सर्विस दिलानी है, वह आप की बहुत प्रशंसा कर रही थी.’’

‘‘क्या कह रही थी?’’

‘‘ऐसा नेक पति भाग्य से मिलता है,’’ पत्नी के होंठों पर मंदमंद मुसकान देख…मेरा चोर मन बोला कि निश्चय ही यह सबकुछ जान कर…अब मजा ले रही है.

‘‘शोख और चंचल है ना, इसलिए मजाक भी कर रही थी.’’

‘‘क्या?’’

‘‘जानेमन, शादी से पहले अगर जनाब को देख लेती तो तुम्हारी जगह आज मैं होती,’’ शुक्र है, लेकिन तभी अनिता ने यह कह कर मुझे फिर झटका दिया, ‘‘मैं देख रही हूं…कल शाम से आप कुछ अपसेट हैं?’’

‘‘नहीं, मैं ठीक हूं,’’ स्वयं को संभालते हुए मैं ने कहा, ‘‘एक बात कहूं अनि, मानोगी?’’

‘‘कहो.’’

‘‘सीमा से अब तुम्हारा मेलजोल बढ़ाना ठीक नहीं.’’

‘‘क्यों?’’ वह सकपका गई, ‘‘क्या दोष है उस में?’’

दोष, यह पूछो, क्या दोष नहीं है उस में? पर इतना कह न पाते हुए मैं बोला, ‘‘हमारा स्तर उस से…’’

‘‘यह तो कोई बात न हुई,’’ अनिता ने एकदम से कहा, ‘‘आखिरकार वह मेरी पुरानी दोस्त है.’’

इस विषय को बदलने के लिए मैं कपड़े बदल कर हाथ में रिमोट ले कर टीवी खोलता हूं, पर यह क्या? हर चैनल पर सीमा मौजूद है. झल्ला कर रिमोट, मेज पर रखते हुए अपनी एक पत्रिका उठा लेता हूं, उस के पन्नों पर भी वही चेहरा दिखता है तो हार कर पत्रिका मेज पर पटक देता हूं और अपने दोनों पैर मेज पर फैला कर व सिर सोफे पर टिकाते हुए पलकें मूंद लेता हूं, तो सीमा, नहींनहीं, रोजी का चेहरा सजीव होने लगता है.

मुंबई के ‘प्रिंस’ होटल की रजत जयंती का मौका था. उस रात होटल में नृत्य का एक विशेष कार्यक्रम आयोजित हुआ था. कार्यक्रम शुरू होने में अभी कुछ देर थी. मैं डिनर ले कर अपनी मेज पर अकेला ही काफी पीने लगा. सहसा 2 नारी स्वरों ने चौंका दिया. कनखियों से उधर देखा तो बस, देखता ही रह गया. वहां 2 नव- युवतियां एक मेज पर बैठी नजर आईं, उन में एक सांवली सी गदराए बदन की बिल्लौरी आंखों वाली सामान्य लड़की थी, जिस ने कत्थई रंग की मैक्सी पहन रखी थी.

दूसरी, पहली बार में ही असामान्य लगी. गुलाबी साड़ीब्लाउज में सजासंवरा उस का मदमस्त यौवन लोगों के दिलों पर कहर ढा रहा था. कुछेक क्षणों के लिए तो मेरा दिल भी थम सा गया. यों लगा मानो वह नृत्य प्रोग्राम के बजाय, किसी सौंदर्य प्रतियोगिता में भाग लेने आई हो.

बीयर के जाम पर नाचती हुई उस की उंगलियां देख कर किसी नाजुक टहनी पर अधखिली कलियों के मंदमंद हवा में हिलने का भ्रम हुआ. उस ‘गुलाबी सुंदरी’ को अपनी सखी के साथ इस तरह अकेले बीयर पीते देख मैं ने उसे किसी बड़े घराने की माडर्न लड़की ही समझा. वह जितनी सुंदर उतनी ही चंचल लगी. मेरा ध्यान  अब तक उधर क्यों नहीं गया? इस का अफसोस तो हुआ ही, साथ में यह ताज्जुब भी कि वे दोनों डांस में मुझे अपना पार्टनर बनाने को आतुर हैं.

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प्रोग्राम शुरू होने जा रहा है, जिन के पास निजी पार्टनर नहीं हैं, वे हाल में बैठे लोगों में से  अपना मनपसंद पार्टनर ढूंढ़ने लगे. कत्थई मैक्सी वाली को एक मनचले युवक ने आमंत्रित कर लिया, ‘गुलाबी रूपसी’ को उस का आफर ठुकराते देख मुझे एक अनजानी खुशी महसूस हुई.

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हां, अनि: भाग-3

पिछला भाग पढ़ने के लिए- एक ही भूल: भाग-3

रोजी ने मानो पिघला हुआ शीशा कानों में उड़ेल दिया हो. सहज ही उस के शब्दों पर विश्वास न हुआ और मैं पागलों की भांति उसे देखता रह गया. यह खूबसूरत लड़की…बाजारू माल कैसे हो सकती है? नहीं…नहीं…पर जो पहले से था, उस पर यकीन करना ही पड़ा. उस के मुख से यह कड़वा सच सुन प्यार के साथसाथ अब उस के प्रति सहानुभूति भी उमड़ आई. जीवन में इस अंधेरी राह पर जाने के पीछे अवश्य कोई मजबूरी रही होगी. उसे जानने की इच्छा से ही मैं कातर स्वर में बोला, ‘इतनी सुंदर, पढ़ीलिखी और समझदार हो कर भी तुम ने यह लाइन क्यों पकड़ी, रोजी?’

‘अरे, तुम तो भावुक हो गए,’ वह उपहास उड़ाते हुए खिलखिला उठी, जबकि मैं उसे अपनी आंतरिक वेदना पर हंसी का लबादा ओढ़ते हुए साफसाफ देख रहा था.

‘मजाक नहीं रोजी, मैं अब भी तुम्हें अपना जीवनसाथी बनाना चाहता हूं,’ सचमुच भावुकता के वेग में मैं बहता ही चला गया, ‘तुम्हारे अतीत से मुझे कोई सरोकार नहीं…और न ही भविष्य में कभी कुछ पूछूंगा, मैं तो सिर्फ…तुम्हें इस अंधेरे से उजाले में ले जा कर एक नए जीवन की शुरुआत करना चाहता हूं, जहां हम दोनों और हमारी खुशियां होंगी.’

‘तुम्हारे विचार और भावनाओं की मैं कद्र करती हूं, सुनील,’ वह यथार्थ के कठोर धरातल से चिपकी रह कर ही बोली, ‘मगर अफसोस, तुम्हारा औफर ठुकराने पर मजबूर हूं, मेरे हालात ऐसे हैं कि लाख चाहने पर भी मैं उन के खिलाफ कोई फैसला नहीं ले सकती.’

‘मुझ पर भरोसा करो, रोजी,’ मैं ने तहे दिल से कहा, ‘हम हर मुश्किल आसान कर लेंगे, प्लीज, बताओ तो सही.’

‘यह नामुमकिन है, सुनील,’ कह कर उस ने एक गहरी सांस ली और फिर अपनी कलाई पर बंधी घड़ी देख कर बोली, ‘अच्छा, मैं अब चलूं.’

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लेकिन जातेजाते ठहर गई. उसी कातिल अदा से पलट कर देखा और हंस कर बोली, ‘यों रास्ते में अचानक ही घेर कर मेरा धंधा खराब मत किया करो. पहले दिन भी तुम्हें अपना ग्राहक समझा था मैं ने और मेरी वह रात बेकार गई. खैर, कोई बात नहीं, तुम से मुझे न जाने क्यों अजीब सा लगाव हो गया है और उसे मैं कोई नाम नहीं देना चाहती. हां, अगर तुम चाहो तो हफ्ते में एक नाइट तुम्हारे साथ मुफ्त गुजार दिया करूंगी.’

‘‘रोजी…’’

‘‘क्या हुआ?’’ अनिता किचन से बाहर आ गई, ‘‘क्यों चिल्ला रहे हो? तबीयत ठीक तो है?’’

‘‘हां, मैं ठीक हूं,’’ कह कर माथे से पसीना पोंछते हुए बोला, ‘‘आज चाय नहीं दोगी?’’

‘‘एक मिनट, अभी लाई,’’ और वह लौट गई.

मैं फिर रोजी के बारे में सोचने लगा.

रोजाना आफिस आतेजाते सड़कों पर या जहांजहां उस के मिलने की संभावना थी वे सारे ठिकाने देख डाले पर रोजी नहीं मिली. फिर अचानक एक दिन भीड़ में वह नजर आ गई. फौरन कार फुटपाथ के एक ओर रोक कर मैं पैदल ही उस के पीछे हो लिया.

‘रोजी…’ हांफते हुए मैं ने पुकारा. पर वह अनजान सी आगे बढ़ती रही. मुझ से रहा न गया तो दौड़ कर उसे पकड़ लिया और फुटपाथ पर खींच लिया.

‘आखिर तुम चाहते क्या हो?’ पलटते ही वह एकदम गुर्राई, ‘क्यों हाथ धो कर मेरे पीछे पड़े हो?’

‘आई लव यू, रोजी.’

उस ने सहम कर इधरउधर देखा, फिर बोली, ‘देखो, मैं चिल्ला उठी तो यहां लोग जमा हो जाएंगे और वे सब तुम्हें इश्क का मतलब समझा देंगे, पुकारूं?’

मैं यह सोच कर सिर से पांव तक सिहर गया कि वह मेरे साथ ऐसा भी कर सकती है. उस की बांह पर कसा मेरा हाथ दूसरे ही क्षण ढीला पड़ता चला गया.

‘आइंदा यह हरकत मत करना, वरना…’ चेतावनी देते हुए उस ने हाथ छुड़ाया और भीड़ में खो गई, मैं पागलों की तरह खड़ा रह गया.

उस के बाद रोजी कभी नहीं मिली और न ही मन में कभी उस से मिलने का खयाल आया. जब कभी उसे ले कर मन घृणा से भरता तो मैं कविता के सहारे उसे हलका कर लेता.

काशीपुर में दीदी की ससुराल है. वह अकसर फोन करती रहतीं कि तेरे लिए एक लड़की देखी है, कभी आ कर हां, ना बता जा. मातापिता के बरसों पहले गुजर जाने के बाद इस जहान में वही तो हैं, उन की यह बात न रखी तो वह भी मुंह मोड़ लेंगी. सो, मैं एक माह की छुट्टियां ले कर काशीपुर आ गया.

कांता दीदी ने मेरी पसंद को ध्यान में रखा था. लड़की देखते ही रिश्ता पक्का हो गया. जीजाजी तो मानो पहले से ही पूरी तैयारियां किए बैठे थे. अनिता के साथ चट मंगनी, पट ब्याह होते ही मैं अनिता को ले कर हनीमून मनाने के लिए नैनीताल जा पहुंचा. ऊंचीऊंची पर्वत श्रेणियों से घिरा नैनीताल का सुंदर इलाका, सुंदरतम झील और हरीभरी वादियों में पता ही न चला कि छुट्टियां कब गुजर गईं. हम दोनों एक दूसरे के इतने करीब आ गए, जैसे बचपन से साथ रहे हों. नैनीताल से काशीपुर, 2 दिन दीदी के यहां रह कर हम मुंबई आ गए.

उन्हीं दिनों की बात है, जब गुप्ता इंटरप्राइजेज ने पुणे में भी अपनी शाखा खोली. चूंकि कंपनी के मालिक मेरी कार्यकुशलता व ईमानदारी से पूरी तरह संतुष्ट थे. इसलिए यहां की जिम्मेदारी भी मुझे ही सौंपी गई. यहां मुंबई के मुकाबले मुझे ज्यादा सुविधाएं मिलीं.

अनिता के साथ पिता न बन पाने के बावजूद चैन से हूं. उस की बच्चेदानी में इंफैक्शन है. डाक्टर का कहना है, शीघ्र ही उसे आपरेशन द्वारा निकाला नहीं गया तो अनिता की जान को खतरा हो सकता है.

कल शाम से सीमा ने हमारे दांपत्य जीवन में हलचल मचा दी. समझ में नहीं आ रहा कि आखिर वह चाहती क्या है? ऐसी बाजारू लड़कियों का भरोसा ही क्या? अपनी इज्जत तो नीलाम करती ही हैं, दूसरे की भी मिट्टी में मिला देती हैं. सीमा अगर अनि से कह दे कि 3 साल पहले मैं ने उसे न केवल पत्नी बनाना चाहा था, बल्कि उस के द्वारा विवाह का प्रस्ताव ठुकरा देने पर बुरी तरह अपमानित भी हुआ था, तो क्या मैं उस की निगाह में ठहर पाऊंगा? अगर सीमा ने कहीं अनिता को वह पत्र दिखा दिया तो क्या जवाब दूंगा? अगर उस ने यह भेद छिपाने की कीमत मांग ली तो कैसे अदा करूंगा? उफ.

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‘‘बेशर्म, कमीनी,’’ क्रोध में मैं बड़बड़ा उठा.

‘‘किसे विभूषित किया जा रहा है, महोदय?’’ चायनाश्ता टे्र में लाते हुए अनिता ने पूछा तो मैं हड़बड़ा गया, मानो रंगेहाथों चोर पकड़ा गया हो.

‘‘क्षमा करें, बंदी से भूल हो गई,’’ अपने खास लहजे में उस ने चोट की.

‘‘सौरी.’’

‘‘भविष्य में ध्यान रहे,’’ वह महारानियों की तरह मुसकराई.

चाय से पहले, मुंह में चिप्स डाला तो मन में यह खयाल आया कि क्यों न अनिता को अपने अतीत के बारे में बता दूं और अपराधबोध से मुक्त हो जाऊं? यह तो मुझे अच्छी तरह समझती है. मेरी कविताओं की सहृदय पाठक ही नहीं, बल्कि समालोचक भी है. हां, इसी के सहयोग व प्रेरणा से तो ‘कायर नहीं हैं हम’ और ‘आओ, इस जर्जर घड़ी को बदल डालें’ कविता संग्रहों का प्रकाशन हुआ है.

‘‘सीमा को तुम कब से जानती हो, अनि?’’ रहस्योद्घाटन से पहले टोह लेना चाहा.

‘‘बचपन से,’’ उस ने बताया, ‘‘बाजपुर में उस का परिवार हमारे पड़ोस में ही रहता था, 9वीं में वह अपने मम्मीपापा के साथ वाराणसी चली गई थी. कुछ समय तक हमारे बीच फोन पर बातचीत होती रही, फिर वे लोग, भैया की शादी में नहीं आए, तो फोन आना बंद हो गया. उस के बाद वह कल शाम ही मिली, क्यों?’’

‘‘उसे नौकरी पर लगवाने के लिए पूछ रहा हूं. उस की योग्यता क्या है?’’

‘‘अंगरेजी से बी.ए. फाइनल नहीं कर सकी थी.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘हीरोइन बनने की गरज से अपने प्रेमी के साथ मुंबई भाग आई थी, फिर स्टूडियो के चक्कर लगातेलगाते हताश हो कर उस ने घर लौट जाने का फैसला कर लिया था. उस का वह प्रेमी उस के गहने व रुपए ले कर चंपत हो गया और जातेजाते उसे लड़कियों से जबरन धंधा कराने वाले एक गिरोह के एजेंट को बेच गया जिस के बौस के पास कई पुरुषों के साथ बेहोशी में शूट की गई उस की ब्लू फिल्म थीं.’’

‘‘कंप्यूटर तो जानती होगी?’’

‘‘हां, प्लीज…कोई जगह खाली हो तो उसे रख लो,’’ अनिता ने आग्रह किया.

‘‘मैं हंसा,’’ वह भी फ्री में…

‘‘उस के पास देने को है भी क्या?’’

‘‘है, जो हमारे पास नहीं है.’’

‘‘मतलब?’’ अनिता चौंकी थी.

‘‘कोख.’’

वह भी हंसी, ‘‘तो पापा बनने को व्याकुल हो. मैं जानती हूं.’’

‘‘अनि…क्या तुम उसे स्वीकार कर सकोगी. कहीं वह मुझ पर अधिकार न जता ले?’’

‘‘‘सीमा के संदर्भ में’ आओ, इस जर्जर घड़ी को बदल डालें, संग्रह की शीर्षक कविता याद आ रही है मुझे,’’ और वह अक्षरश: उसे सुनाने लगी.

दीवार घड़ी में थरथर कांप कर, आगे बढ़ती हुई सुइयों को निहारते हुए चुपचाप मैं सुनता रहा…उस की आवाज…और अंत में बोला, ‘‘स्पष्ट करो.’’

‘‘सीमा एक सेक्स वर्कर है, यह जान कर भी आप उसे अपनाने को तैयार हो गए थे, तो…’’

मैं दंग रह गया, ‘‘यानी…’’ मुख से बमुश्किल निकला.

‘‘हां, आज दोपहर सीमा…सबकुछ बता गई.’’

अपराधबोध से मैं दब गया.

‘‘लेकिन उस ने आप को ठुकरा  दिया क्यों? कभी सोचा आप ने.’’

‘‘हां, कई बार सोचा था,’’ पर किसी नतीजे पर न पहुंच सका.

‘‘दरअसल, वह आप से बेहद प्रभावित हुई थी,’’ अनिता बोली, ‘‘उसे एक अजीब सा लगाव हो गया था आप से, जिसे वह कोई नाम नहीं देना चाहती थी. एक और बात थी कि आप की भलाई भी उस के पांव की जंजीर बन गई.’’

अनिता ने एक नया रहस्य खोला तो मैं बोला, ‘‘उसे और स्पष्ट करो.’’

‘‘लड़कियों की नजरबंदी के लिए तैनात सुरक्षा गार्ड, अगर आप को सीमा के इर्दगिर्द ज्यादा समय तक देख लेते तो आप की जान चली जाती और इसीलिए जानबूझ कर सीमा ने आप के मन में अपने प्रति नफरत भर दी ताकि आप उस से दूर हो जाएं.’’

मैं आश्चर्य से भर कर पत्नी को देखने लगा तो वह आगे बोली.

‘‘यह तो समूचा विपक्ष एक हो जाने पर पिछले दिनों सरकार को उन दरिंदों के खिलाफ काररवाई करने के लिए पुलिस को सख्त आदेश देने पड़े. तब कहीं वह मुक्त हो पाई और घर जा सकी.

‘‘अंकल, सीमा के भाग जाने का आघात बरदाश्त न कर पाते हुए पहले ही चल बसे थे. उस पर बदनामी का दंश…बेचारी कब तक झेलती रहती? छोटे भाईबहन और बीमार मां के साथ तंग आ कर आखिर में वह वाराणसी से पूना चली आई.’’

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‘‘पगली, इतना बड़ा त्याग कर डाला, सिर्फ मेरे लिए? क्या लगता हूं मैं उस का? मैं तो आज तक उस से घृणा करता रहा…उसे गलत समझता रहा… छि…छि…छि…’’

‘‘अब तो यही हो सकता है कि हम कुछ करें, सीमा जैसी लड़कियों के लिए,’’ अनिता ने मानो अंदर झांक लिया हो.

‘‘हां, अनि,’’ ये दो शब्द अनंत गहराइयों से निकले पर मुझे नहीं मालूम था कि यह फैसला सही है या गलत. अगर बच्चा हो गया तो क्या उसे अनिता स्वीकार करेगी. और क्या सीमा वास्तव में बच्चे को और मुझे छोड़ कर जाएगी. मैं ने गहरी सांस ली और सब कुछ अनिता पर छोड़ दिया.

खुदखुशी: सोनी का क्या दोष था कि उसने अपनी जिंदगी दांव पर लगा दी

Serial Story: खुदकुशी (भाग-3)

कितना दर्दनाक रहा होगा वह पल जब एकएक कर लड़के सोनी को सैक्स की गहराई समझाते रहे वह भी वहशियों की तरह. पहले तो सोनी के मुंह को जबरन बंद कर दिया गया. उस के बाद सोनी के जिस्म से एकएक कर कपड़े उतार दिए गए और उसे जमीन पर लिटा कर वीरेंद्र के 2 रंगरूटों ने उस के हाथों और पांवों को पकड़ लिया. अब सोनी बोल नहीं पा रही थी, बोल रही थी सिर्फ उस की आंखें, जो आंसुओं से डबडबाई हुई थीं, पहले वीरेंद्र ने उसे सैक्स की गहराई को समझाया. फिर उस ने सोनी के पैरों को दबोच कर रखा. दूसरे ने भी वही किया और तीसरे ने.

सोनी की आंखें भी बंद हो चुकी थीं, खून से लथपथ जांघों के बीच सोनी ने असहनीय दर्द महसूस किया था और बेहोश हो गई थी, लड़के उस के मुंह की पट्टी खोल कर उसे अकेला छोड़ चले गए थे. लड़के बताए गए रेस्तरां पहुंच गए, जहां पूजा और सीमा उन का इंतजार कर रही थीं. पूजा ने पूछा था कि क्यों इतनी देर हो गई उन लोगों को तो वीरेंद्र ने घमंड से पूजा और सीमा को कहा कि अब सोनी कभी भी उन बातों को नहीं दोहराएगी, उसे सबक सिखा चुके हैं हम.

सोनी को जब होश आया तो वह खुद को क्षतविक्षत महसूस कर रही थी. नंगा शरीर, जांघों के बीच से रिसता खून, उसे समझ नहीं आ रहा था कि पूजा और सीमा ने इतनी बड़ी साजिश क्यों की, उस के साथ. क्यों उस के शरीर को लड़कों से नुचवा दिया. सिर घूम रहा था सोनी का, ये सब सोच कर. किसी तरह उस ने पास रखे कपड़े पहने और बहुत आहिस्ताआहिस्ता चलने की कोशिश करने लगी.

रात होतेहोते जब वह किसी तरह घर पहुंची तो उस की मां बहुत चिंतित नजर आ रही थीं. सोनी के पापा अभी तक औफिस से लौटे नहीं थे. सोनी की मां ने जब सोनी को देखा तो वह डर गईं. सोचने लगीं कि उस की मासूम सी बच्ची के साथ न जाने कौन सा हादसा हो गया. सोनी को वे उस के कमरे में ले गईं, उसे पानी पीने को दिया, फिर उस के सिर को सहलाते हुए पूछा कि क्या बात है, क्या हुआ, सबकुछ सचसच बताओ बेटी.

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सोनी समझ नहीं पा रही थी कि उस के साथ जो हुआ वह क्या था. ऐसा उस ने कभी कल्पना में भी नहीं सोचा था कि उस के साथ जो हुआ वह सब उसे अपनी मां और पापा को बताना पड़ेगा. हालांकि दर्द से वह लगभग कराह रही थी. उस ने अपनी मां को बाथरूम में जा कर दिखाया, देखते ही उस की मां बेहोश हो गईं. सोनी ने हिम्मत कर अपनी मां के सिर पर पानी के छींटें दिए, सिर सहलाया, तब जा कर कहीं उस की मां होश में आई और होश में आते ही रोने लगीं, पूरा वृत्तांत सुनने के बाद सोनी की मां तो लगभग अर्द्धमूर्छित अवस्था में पहुंच चुकी थीं.

किसी तरह सोनी को फर्स्टऐड दे कर, उसे आराम करने को कह, दूसरे कमरे में निढाल सी पड़ गई थीं सोनी की मां. डाक्टर को दिखाने की खबर सोनी के भविष्य को बदनुमा न बना दे, यही सोच रही थीं सोनी की मां. अगर इस बात की जरा भी भनक किसी को लगी तो कौन करेगा सोनी से ब्याह? इसी तरह के खयाल सोनी की मां के मन में चल रहे थे कि कौल बेल बजी. सोनी की मां की तंद्रा टूटी. सोनी की मां ने जा कर दरवाजा खोला, सोनी के पापा आ गए थे, आते ही सोनी के बारे में पूछा, सोनी की मां ने कहा कि वह अपने कमरे में सो गई है. सोनी की मां ने सोनी के साथ हुए हादसे को छिपा लिया था. बेटी के साथ हुए गैंगरेप को शायद बरदाश्त नहीं कर पाएंगे सोनी के पिता.

रात को अपनी मां से हुई बातचीत से सोनी इतना तो समझ चुकी थी कि उस ने पूजा और सीमा के साथ मिल कर अनजाने में ही सही ऐसा गलत कदम उठाया है कि जिस की भरपाई इस जन्म में तो संभव नहीं. सोनी सोच रही थी कि उस के साथ जो कुछ हुआ और उस की मां ने जो कुछ बताया, इस से तो यही नतीजा निकलता है कि मैं बहुत बुरी लड़की हूं, मेरी सभी सहेलियां बुरी हैं, उन लोगों से मुझे दूरी बना कर रखनी चाहिए थी, पर ऐसा करने पर मेरी पढ़ाई, कहीं जाना, ऐग्जाम देना सब बंद हो जाता. पागल की तरह सोचे जा रही थी सोनी.

दूसरे दिन घर पर सन्नाटा छाया रहा, न जाने सोनी की मां ने सोनी के पिता को क्या कह दिया था इस संबंध में कि वे सिर्फ सोनी के कमरे के बाहर ही एक मिनट रुक कर औफिस चले गए.

सोनी घर से दोपहर के वक्त चुपचाप, बिना कुछ बोले निकल कर चल दी और पास ही के थाने में जा कर थानेदार को पूरा वृत्तांत सुना दिया. हालांकि सोनी की कहानी उस की जबानी सुनते हुए थानेदार के साथसाथ अन्य पुलिसकर्मी भी मजा ले रहे थे.

पूरी बात सुनने के बाद थानेदार ने पूछा कि जब घटना हुई उस वक्त तुम ने थाने में आ कर रिपोर्ट क्यों नहीं लिखवाई. जवाब में सोनी कुछ न बोल सकी सिर्फ इतना ही कहा कि मैं आने की हालत में नहीं थी. थानेदार ने उसे जाने को कहा और कार्यवाही करने की बात कही.

सोनी घर चली गई. पूजा और सीमा ने उसे इन दोचार दिनों में कभी कौंटैक्ट करने की कोशिश नहीं की. वीरेंद्र और उस के साथियों ने हालांकि एक बार सोनी को थाने से निकलते देखा था.

वीरेंद्र एक अमीरजादा था, ऐयाशी के साथसाथ वह शराब और शबाब का भी आदी था. अपनी पहुंच लगा कर वह साफ बच निकला. लिहाजा, मुकदमा क्षेत्राधिकार के बिंदु पर दर्ज नहीं किया गया और सोनी को थानेदार ने बतलाया कि घटना जहां हुई थी उसी इलाके के थाने में मुकदमा दर्ज हो सकता है और इतने विलंब से तो उस इलाके के भी थाने में मुकदमा अब दर्ज नहीं होगा. सोनी बिना घर में बताए इस थाने से उस थाने के चक्कर लगाती रही परंतु जैसा पुलिस का हाल है कि रसूख वालों की ही वह सुनती है औरों की नहीं इसलिए सोनी कोई मुकदमा दर्ज नहीं करवा पाई बल्कि थानेदार ने उसे ही भलाबुरा कहा और यह साबित करने की कोशिश करते रहे कि वह एक मनगढ़ंत घटना बयान कर रही है जैसा उस ने बताया वैसा कुछ हुआ ही नहीं.

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जबकि सोनी की मां चाहती थीं कि वह फिर से सामान्य जिंदगी के लिए खुद को तैयार करे और इस के लिए वे अपनी बेटी को समझाती रहती थीं कि वह घर से निकले. कहीं अगर जाना भी हो तो उसे साथ ले ले. परंतु सोनी पर इस का कोई असर नहीं पड़ रहा था, वह सजा दिलवाना चाहती थी वीरेंद्र और उस के साथियों को और साथ में पूजा और सीमा को भी. न्याय न पाने का सदमा उसे अपने साथ हुए हादसे से भी ज्यादा लगा. उस ने उस रात एक कागज पर लिखा, ‘मैं बहुत बुरी लड़की हूं. वीरेंद्र और उस के साथी हर सीमा को लांघ चुके थे. मेरे मां और पापा मुझ से बहुत प्यार करते हैं. मैं नहीं जानती थी कि मेरे लिए क्या बुरा और क्या अच्छा है.

मुझे पूजा और सीमा ने कई गलत रास्ते दिखाए लेकिन मैं ने उन्हें नहीं अपनाया पर न जाने उस दिन पूजा और सीमा ने ऐसा क्या कह दिया वीरेंद्र और उस के साथियों को कि मैं उस दिन के हादसे के बाद वैसी नहीं हूं जैसी मैं थी अगर उन लोगों को पुलिस सजा देती तो शायद मुझे जीने की कोई वजह मिल जाती. तब मैं यह साबित कर सकती कि मैं निर्दोष हूं पर ऐसा नहीं हुआ. अब जीने की कोई वजह मेरे पास नहीं है, मैं अपने मांपापा को समाज में शर्मिंदा होते नहीं देख सकती. इसलिए मैं हमेशा के लिए जा रही हूं… सोनी.’

सोनी की लाश उस के कमरे के पंखे से झूल रही थी. पहले तो पुलिस ने खोजबीन में सक्रिय होने की तत्परता दिखाई पर सुसाइड नोट पढ़ने के बाद सोनी के मातापिता ने कोई उत्सुकता नहीं दिखाई हत्यारों को पकड़वाने में. हत्यारे तो अभी भी खुले घूम रहे थे. सोनी के मातापिता अपनी इज्जत को सरेआम नीलाम होते नहीं देखना चाहते थे. पत्थर रख लिया था दोनों ने अपने सीने पर और खून का घूंट पी कर भी चुप थे. पुलिस अपने कर्तव्य के प्रति सचेत नहीं थी कि अनुसंधान करे कि सोनी ने क्यों खुदखुशी की और सोनी को खुदखुशी करने के लिए मजबूर करने वाले हत्यारों को खोज निकाले और सजा दे.

शायद सोनी के मातापिता परिवार की इज्जतप्रतिष्ठा को दावं पर नहीं लगाना चाहते थे इसलिए वे भी खामोश थे अपनी बेटी की तरह, जो खामोश हो चुकी थी हमेशा के लिए.

Serial Story: खुदकुशी (भाग-2)

खेलने का शौक पूजा को कुछ ज्यादा ही था, वह फुटबौल और बौलीबौल की कालेज टीम की कप्तान थी और कालेज की तरफ से खेल प्रतियोगिताओं में भाग लेने, दूसरे शहरों में आयाजाया करती थी. शारीरिक खेल की लत भी उसे इन खेल प्रतियोगिताओं में भाग लेने के दौरान ही लगी. सीमा पूजा की तरह कप्तान तो नहीं थी पर खेल में वह भी रुचि रखती थी और पूजा के साथ दोस्ती गांठ कर कई फायदे उठाती थी. सीमा पूजा की अच्छी प्रशंसक थी और पूजा का अनुकरण भी करती थी. शौर्ट्स और टीशर्ट्स पहन कर खेलने वाली लड़कियों को तो मेल टीचर्स तक खा जाने वाली निगाहों से देखा करते हैं तो उन हमउम्र लड़कों का क्या जो कालेज की खेल प्रतियोगिताओं में भाग लेने सिर्फ इसलिए जाते हैं कि उन्हें लड़कियों का संसर्ग

प्राप्त हो सके. नतीजतन, छोटे शहरों की परंपरानुसार विवाह के पहले शारीरिक संबंध बनाने वाली लड़कियों का जो होता है वही हुआ. पूजा धीरेधीरे बदनाम होने लगी और यही बदनामी की बात सोनी को समझ में नहीं आती थी. पूछने पर उसे कुछ बताया भी नहीं जाता था. लिहाजा, वह चुप रहती थी.

सोनी की समस्या तब शुरू हुई जब वह इंतजार करना छोड़ कर एक दिन अचानक उस कमरे में घुस गई जहां पूजा अपने प्रेमी के साथ हमबिस्तर थी. उस दिन सीमा के एक दूर के रिश्तेदार के खाली पड़े घर में 3 लड़के थे, जिन में वीरेंद्र भी एक था जो एकएक कर अपना काम निबटाने में लगे थे. सोनी भी वहीं थी, एक आता, दूसरा जाता, यद्यपि सोनी अनजान थी परंतु जिज्ञासा उसे हो ही रही थी कि आखिर एकएक कर लड़के अंदर जाते हैं जहां पूजा है और थोड़ी देर बाद बाहर आ जाते हैं. सीमा का उस दिन देह सुख का प्रोगाम नहीं था इसलिए वह घर के बगीचे में चली गई थी और पेड़ों के साए में आहिस्ताआहिस्ता चहलकदमी कर रही थी. सोनी से रहा नहीं गया, तीसरा लड़का जब कमरे में दाखिल हुआ तो सोनी ने सोचा कि इस बार वह जा कर उन लोगों की बातें सुनेगी. लौट कर आए 2 लड़के उतनी मुस्तैदी से उस की निगरानी कर भी नहीं रहे थे और ऐसा करना स्वाभाविक भी था, क्योंकि वे लोग निबट चुके थे. बस, फिर क्या था सोनी निढाल पड़े दोनों लड़कों

की आंख बचा कर कमरे में अचानक घुस गई और जो देखा उस के लिए बिलकुल अचंभित करने वाला था. इस से पहले न सोनी ने ऐसा कुछ देखा था और न ही ऐसा कुछ सोच सकी थी लेकिन निर्वस्त्र तो वह खुद को भी नहीं देख सकती थी, तो फिर अपनी सहेली पूजा को. वह बाहर भागी लेकिन उस की आंखों में एक खौफ था, नंगेपन का खौफ, बाहर कमरे में लड़के उसे दबोच चुके थे और इस से पहले कि वह कुछ कहती या करती, पूजा कपड़े पहन कर आ गई थी और बिना कुछ कहे उस का हाथ पकड़ कर बाहर की ओर चल दी थी.

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पूजा थकी हुई जरूर लग रही थी लेकिन लंबे, कसरती, खिलाड़ी बदन से अभी भी एकदो लड़कों से वह बिस्तर पर निबट सकती थी. लंबे समय के अभ्यास से उस ने अच्छा स्टैमिना प्राप्त कर लिया था. रास्ते में सोनी कुछ बोल नहीं रही थी और न ही पूजा से आंखें मिला पा रही थी. गलती पूजा ने की थी, शर्म सोनी को आ रही थी. न जाने सोनी में कैसे यह एहसास जाग गया था कि वह कुछ ऐसा देख चुकी है जो उसे नहीं देखना चाहिए था. नहीं जानते हुए भी वह उतने बेबाक ढंग से अपनी सहेली पूजा की ओर नहीं देख पा रही थी. जैसी उस की आदत थी लेकिन पूजा के पास वक्त कम था, थोड़ी ही देर में सोनी का घर आ जाता और न जाने सोनी अपने पापामम्मी के सामने अपनी कैसी प्रतिक्रिया व्यक्त करती इसलिए उसे रास्ते में ही समझा देना जरूरी था.

बात की शुरुआत करते हुए पूजा ने कहा, ‘‘तुम ने जो भी देखा वह किसी को बताना, नहीं क्योंकि कोई इस बात को सही ढंग से समझेगा नहीं और हम लोगों का होस्टल से निकलना बंद हो जाएगा. जो लड़के मेरे साथ थे उन में से कोई भी कुछ नहीं पूछेगा लेकिन अगर तुम ने मुंह खोला, तो प्रश्नों की बौछार लगा दी जाएगी. चरित्र पर प्रश्न उठेगा, समाज की मर्यादा का प्रश्न उठेगा, घरपरिवार की इज्जत का प्रश्न उठेगा. इन सभी प्रश्नों के उत्तर सिर्फ हम लोगों को ही देने हैं, वीरेंद्र, गोपी व राजू को नहीं. उन से कोई कुछ नहीं पूछेगा,’’ सोनी सिर्फ सुने जा रही थी, कुछ बोल नहीं रही थी.

सोनी घर पर भी चुप ही रही परंतु पूरे वाकये में कुछ न कुछ गलत होते उस ने देखा था, ऐसा उसे लग रहा था. दिन बीतने के साथसाथ अब पूजा के लिए एक नई मुसीबत शुरू हो गई थी कि सोनी उस किस्से के बारे में बारबार पूछती रहती थी और नहीं बताने की सूरत में उसे एक दबी हुई धमकी दे डालती थी कि वह अपने मातापिता से कह कर इसे समझने की कोशिश करेगी. एक दिन पूजा ने झल्ला कर पूछ डाला, ‘‘क्या समझने की कोशिश करेगी अपने मांबाप से,’’ पूजा ने थप्पड़ उठाया था मारने को पर रुक गई.

सोनी सहम गई थी परंतु उस ने कहा, ‘‘पूछूंगी कि तुम्हारे ऊपर वह लड़का क्यों सोया हुआ था और एक भी कपड़ा नहीं था तुम दोनों के बदन पर.’’

पूजा कांप गई थी यह सोच कर कि सोनी अपने मातापिता से अगर ऐसी बातें पूछेगी तो वे लोग फिर हमारे मातापिता से इस संबंध में बात करेंगे. फिर सीमा के मातापिता तक भी बात पहुंचेगी. इतना सब सोच कर पूजा का गुस्सा ठंडा हो गया. उस ने सोनी को समझाया और रेस्तरां ले गई.

सोनी को इतना तो समझ में आ गया कि इस तरह के सवाल पूजा से पूछने पर वह उसे होटल या रेस्तरां जरूर ले जाएगी. सोनी के लिए यह वाकेआ एक खेल बनता जा रहा था पर वह नहीं समझ रही थी कि यह खेल कितना खतरनाक हो सकता है. अब सोनी के दिमाग में यह बात आने लगी कि जब पूजा नहीं चाहती कि उस ने जो देखा है, किसी से कहे, तो सीमा और वे लड़के जो उस दिन कमरे में थे, भी नहीं चाहेंगे कि उस ने जो देखा है वह किसी से कहे. इस बात को आजमाने के लिए सोनी कभी सीमा से और कभी उन लड़कों से यही कहती और बदले में रेस्तरां या होटल जाती, बाइक पर घूमती. अनजाने में सोनी ब्लैकमेलिंग का खतरनाक खेल खेलने लगी थी.

पूजा और सीमा अब सोनी की धमकियों से तंग आ चुकी थीं. इस बीच उस दृश्य से भी ज्यादा रोमांचक दृश्यों को अंजाम दे चुकी थीं पूजा और सीमा अनेक कमरों में. फिर उसी एक खास दृश्य का उन लोगों के लिए क्या अर्थ रह जाता था, लेकिन सोनी ने तो सिर्फ एक ही दृश्य देखा था इसलिए वह उसी से चिपकी थी. पूजा से ज्यादा नजदीक थी सोनी, सीमा के साथ बातचीत हुआ करती थी सोनी की पर सीमा पूजा की सहेली थी. पूजा सोचती थी, कोई अन्य इस तरह उसे ब्लैकमेल कर रहा होता तो उसे समझाती पर अपनी सहेली सोनी का वह क्या करे. अपने तथाकथित प्रेमियों से भी इस का जिक्र उस ने किया था और एक दिन वह हादसा हुआ जो उस ने सपने में भी नहीं सोचा था.

पूजा ने अपने तथाकथित प्रेमियों से कहा कि वे लोग सोनी को किसी भी तरह से मनवा लें कि वह अब कभी भी इस बात का जिक्र नहीं करेगी परंतु सोनी इस बात को उतनी गंभीरता से नहीं ले रही थी. पूजा को इस बात के लीक होने से डर था कि उसे मिली हुई आजादी छिन जाएगी जो उसे कतई मंजूर नही था. वह स्वच्छंद रहना चाहती थी, साधारण लड़की की तरह जिंदगी जीना उसे पसंद नहीं था. सोनी को पूजा इसलिए एक असाधारण लड़की में तबदील कर देना चाहती थी. बस क्या था पूजा के प्रेमियों ने मतलब यही निकाला कि सोनी को सबक सिखाना है किसी भी कीमत पर.

एक दिन शाम को वह लड़के सोनी को चौकलेटस्नैक्स वगैरा दे कर समझाने की कोशिश करते रहे परंतु सोनी न समझी. उसे समझ में नहीं आया कि जिन लड़कों के साथ वह बाइक पर घूमती है, वे उस को किसी भी तरह से नुकसान पहुंचा सकते हैं. पूजा के प्रेमियों को किसी नासमझ लड़की को सैक्स संबंधों के बारे में समझाने, समाज पर उस का असर, मांबाप पर उस का प्रभाव, को तफसील से समझाने की सलाह तो थी नहीं, उजड्ड गंवार की तरह उन का व्यवहार था.

सोनी बारबार यह जानना चाहती थी कि पूजा और सीमा के साथ उन्होंने होटल के बंद कमरे में ऐसा क्या किया कि आज उसे यहां सुनसान जगह पर बुला कर इतना समझायाबुझाया जा रहा है. बहुत मुमकिन था कि अगर पूजा और सीमा उन लड़कों के साथ जो जिस्मानी रिश्ता कायम करती थीं, उसे सोनी को खुल कर समझा दिया जाता तो शायद सोनी को बहुत कुछ खुदबखुद समझ आ जाता और वह इतनी भी नासमझ नहीं थी, आखिर सयानी हो चुकी थी. एक मनोवैज्ञानिक तरीका होना चाहिए सैक्स से अनभिज्ञ ऐसी लड़कियों को समझाने का और खासकर ऐसी स्थिति में तो बहुत ही सावधानी की जरूरत होती है परंतु वे मूढ़मगज लड़के क्या जानें, बस, एक ही भाषा वे जानते थे, शक्ति प्रदर्शन और डराने की भाषा.

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इधर सोनी जो उन लोगों से हिलीमिली हुई थी उन लोगों की बात को गंभीरता से नहीं ले रही थी और साथ ही साथ सोनी जैसे यह नहीं समझ पाई थी कि 2 नंगे जिस्म एकदूसरे से लिपटे हुए क्यों थे, उसी तरह यह भी नहीं समझ पाई थी कि उसे भी नंगा किया जा सकता है और पूजा और सीमा के साथ जो वे लड़के करते आ रहे हैं वह उस के साथ भी हो सकता है. इसी तरह वह यह भी नहीं समझ पा रही थी कि सैक्स अगर गहराई तक उतर जाए तो फर्क पड़ता है, लड़के और लड़की दोनों को. लड़कों को बहुत ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी सोनी से, वह तो चूंकि पूजा ने कहा था कि सोनी को सबक सिखा दें इसलिए इतनी मशक्कत की जा रही थी.

आगे पढें- कितना दर्दनाक रहा होगा वह पल जब…

Serial Story: खुदकुशी (भाग-1)

आज के समाज में लड़की समय के बीतने से जवान नहीं होती बल्कि उसे घूरघूर कर जवान कर दिया जाता है. सोनी, पूजा, सीमा इन्हीं लड़कियों में से हैं जिन्हें लोगों ने समय से पहले जवान कर दिया था. अभी ये तीनों टीनएजर्स हैं और छोटे शहर के तथाकथित आधुनिक समाज की आधुनिक लड़कियां हैं जो बौयफ्रैंड बनाना अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझती हैं.

सोनी नहीं समझ सकी थी कि उस के जानेपहचाने लड़के जिन्हें वह अपना बौयफ्रैंड समझती थी, उसे इतना तंग और अपमानित कर देंगे कि एक दिन उसे दुनिया छोड़नी पड़ेगी. वह जिन्हें अपने आसपास हर वक्त देखती थी, जिन के साथ प्राय: घूमने, ट्यूशन पढ़ने व कालेज जाती थी वही उसे अपनी जान देने को मजबूर कर देंगे. वह सोच रही थी कि आखिर ये सभी लड़के पूजा के साथ भी तो इधरउधर घूमते नजर आते थे. पूजा ही तो उसे भेजा करती थी उन लड़कों में से कभी एक के पास और कभी दूसरे के पास. उस वक्त तो वे लड़के उस के साथ बड़े रहमदिल की तरह पेश आते थे, उस की किताबें ले लेते थे, उसे बाइक पर कहीं दूर लंबे सफर पर भी ले जाते थे.

ये लोग उस का कुछ नहीं बिगाड़ सकते, मजाक कर रहे हैं, फिर छोड़ देंगे, वह समझती थी. लेकिन उन लड़कों के उस के साथ शारीरिक रोमांस को वह समझ नहीं पाई थी. वह खुश होती थी. जब दोएक सहेलियों के साथ वह होटल या रेस्तरां में जाती थी तो कभी बिलविल के चक्कर में वह नहीं पड़ी. बस चाट खाई, आइसक्रीम खाई, चाइनीज फूड लिया, इतने से ही उसे मतलब रहता था. यह तो वह जानती थी कि उस की सहेली पूजा होटल के अंदर किसी कमरे में अपने किसी बौयफ्रैंड से मिलने गई है, बातें करती होगी ऐसा सोचती थी वह. वह यह नहीं सोचती थी कि बातों के अलावा भी कोई और संबंध एक जवान होती लड़की एक लड़के से बना सकती है.

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दीनदुनिया से बेखबर सोनी ऐसे परिवार में पलीबढ़ी थी जहां सिर्फ प्यार ही था. मातापिता का प्यार, भाई का प्यार, चाचाचाची का प्यार, दादादादी का प्यार. कला की छात्रा रही सोनी सैक्स के बारे में सिर्फ इतना ही जानती थी जितना एक सभ्य युवती जानती है. शादी के पहले सैक्स की कोई जरूरत ही नहीं होती ऐसी युवतियों को. सोनी वैसी लड़कियों में से थी जो शादी के बाद अपनी सुहागरात में सैक्स के टिप्स अपनी भाभियों, बड़ी बहनों या फिर कामसूत्र की पुस्तकों से लिया करती हैं. गहराई तक जाने वाला सैक्स जो हमारे समाज में शादी के बाद ही जाना जाता है या यों कहिए जानना चाहिए, सोनी नहीं जानती थी. अगर सोनी गलत संगत में नहीं पड़ी होती तो शायद जिंदगी का भरपूर आनंद उठा रही होती. सोनी को यह नहीं मालूम था कि लड़के तो लड़के, मर्द किसी भी उम्र की लड़कियों के वक्ष और नितंबों को किस कारण से घूरते हैं. सोनी को यह भी नहीं मालूम था कि उस के साथ रहने वाले लड़के उसे अपनी तीसरी आंख से पूर्ण नंगा कर कई बार देख चुके हैं.

सोनी कभीकभी अपनी सहेलियों से पूछती थी कि वे क्यों उसे मना करती हैं होटल और रेस्तरां में घटने वाली तमाम बातों को मम्मीपापा को न बताने को, जिस पर उस की सहेलियां उत्तर देने के बजाय उसे धमकी देती थीं कि वे कभी उसे कहीं भी नहीं ले जाएंगी. बाइक पर घूमने का मौका फिर कभी नहीं मिलेगा. सोनी चुप हो जाया करती थी और घर पर भी कुछ नहीं कहती या पूछती थी. फिर भी सयानी होती लड़की थी, कालेज में, महल्ले में अपनी सहेलियों और उन के बौयफ्रैंड्स के बारे में कई उलटीसीधी बातें सुनती थी तो उस का जिक्र वह अपनी सहेली पूजा से अवश्य करती, लेकिन वह उसे टाल जाती.

पूजा और सीमा होस्टल में अपने घर से दूर रह कर पढ़ाई कर रही थीं. खुले व विद्रोही विचारों वाली पूजा और सीमा में खूब पटती थी, वे लड़कों से मजा लेने की हिमायती थीं और लड़कों से खूब खर्च भी करवाती थीं और उन के साथ हमबिस्तर भी होती थीं. पूजा और सीमा का मानना था कि जब उन के बौयफ्रैंड्स वीरेंद्र, गोपी और राजू को उन के साथ शारीरिक संबंध बनाने में कोई रोकटोक नहीं है तो उन लोगों को भी समाज या आसपास के लोग कैसे रोक सकते हैं. पूजा को फुरसत ही नहीं थी कि वह अपने बौयफ्रैंड के साथ हुए शारीरिक संबंधों के बारे में सोचे कि उस की इन हरकतों से उस के सामाजिक जीवन पर क्या प्रभाव पड़ रहा है या उस के परिवार को इस का क्या खमियाजा भुगतना पड़ सकता है.

समाज उस के प्रति क्या धारणा बना रहा है, उस के अनैतिक संबंध के प्रति, तो फिर वह सोनी के दिलोदिमाग में क्या चल रहा है, इस की चिंता क्यों करती. देह सुख की लत लग गई थी पूजा और सीमा को. यही देह सुख सोनी को भी प्रदान करना चाहती थीं पूजा और सीमा इसलिए धीरेधीरे सोनी को भी देह सुख हासिल करने की प्रक्रिया में डाल रही थीं. पूजा और सीमा के लिए देह सुख दुनिया का सब से बड़ा सुख था उसे वे किसी भी कीमत पर हासिल करने की चाहत रखती थीं. पूजा और सीमा कहा करती थीं कि देह सुख निया का सब से बड़ा सुख है. तख्त ओ ताज पलट गए इसी देह सुख प्राप्ति में.

देशविदेश के कई नामीगिरामी साहित्यकार, कवि, वैज्ञानिक जिन के लिए हमारे मन में बड़ी इज्जत हो सकती है जैसे फ्रांस के चर्चित लेखक वाल्जाक ने अपनी उम्र से बड़ी महिला डी बर्नी के साथ वर्षों यौनाचार किया, टैलीफोन के आविष्कारक अलैक्जेंडर ग्राहम बेल अपनी छात्रा मैविल हार्वर्ड के साथसाथ उस की मदद से कई अन्य छात्राओं के साथ भी लगातार यौनाचार करते रहे.

अंगरेज कवि लौर्ड वायरन जिन की कविताएं हम अंगरेजी साहित्य में पढ़ते हैं अपने मित्र कैरो की सास के साथ यौनाचार करते रहे, प्रसिद्ध वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टाइन ने अपनी पत्नी को धोखा दे कर नर्स एल्सा लोवेंथल से जीवनभर यौनाचार किया, साम्यवाद के जनक कार्ल मार्क्स ने अपनी नौकरानी के साथ न सिर्फ यौनाचार किया बल्कि उसे गर्भवती भी बना दिया था. यौनाचार से पूरा इतिहास भरा पड़ा है अगर लिखने बैठ जाऊं तो इन साहित्यकारों, कवियों, वैज्ञानिकों के यौनाचार पर पुस्तक लिख सकती हूं, पूजा ने अपनी जानकारी पर गर्व करते हुए कहा था, सीमा ने भी हामी भर दी थी.

पूजा और सीमा जब भी कालेज जातीं तो उन की निगाहें वीरेंद्र, गोपी या राजू को ढूंढ़ती रहतीं और जैसे ही क्लास खत्म होती दोनों अपनेअपने साझा बौयफ्रैंड्स को ले कर किसी गुप्त ठिकाने पर पहुंच जातीं. विवाह के बाद भी कोई इतने नियमित यौन संबंध नहीं बनाता जितने ये लड़कियां बिन ब्याहे बनाने की आदी हो गई थीं. हर दिन जैसे खाना, पीना, पढ़ना होता था उसी तरह पूजा और सीमा के लिए शारीरिक संबंध बनाना था. पर उन की समस्या तब शुरू होती थी जब कालेज में छुट्टियां रहती थीं और तब वे अपनी सहेली सोनी के सहारे अपने अनैतिक यौन संबंधों को अंजाम देती थीं.

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पूजा और सीमा बहुत कुछ करने की महत्त्वाकांक्षी थीं. अपने कमरे में सनी लियोन, मर्लिन मुनरो, पूनम पांडे की लेटैस्ट नैट पर पोस्ट हुई तसवीरों का प्रिंटआउट लेतीं और दीवारों पर चिपकाती थीं. यौन संबंध बनाने के बाद से पूजा और सीमा ने दीवारों पर नंगधड़ंग मर्दों के भी पोस्टर लगा छोड़े थे. सोनी जब भी उन के होस्टल के कमरे में जाती थी तो उस का सिर घूम जाता था, वह पूछती भी थी कि ऐसी तसवीरें क्यों लगा रखी हैं, तो पूजा और सीमा कहतीं कि ये कमरा तो प्रयोगशाला है यहां भावना को परखनली में डाल कर सैक्सी बनाया जाता है और परिणाम होटल के कमरे में वीरेंद्र के साथ प्राप्त किया जाता है. सोनी की समझ से बाहर थीं ये सब बातें, वह सुन कर भी कुछ समझ नहीं पाती इसलिए बहुत गंभीरता से इन बातों को लेती भी नहीं थी.

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