सुबह का भूला: भाग-3

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इस बार उस के पिता ने उस की पीठ पर 2 धौल जमाए और उसे खूब डांटा. पर इस बात के लिए उस पिता की इतनी निंदा हुई कि पूछो ही मत.’’

‘‘पर बेटेजी, यह तो सरासर गलत है. आखिर मांबाप, घर के बड़ेबुजुर्ग और टीचर बच्चों का भला चाहते हुए ही उन्हें डांटते हैं. बच्चे तो आखिर बच्चे ही हैं न. बड़ों जैसी समझ उन में कहां से आएगी? शिक्षा और अनुभव मिलेंगे, तभी न बच्चे समझदार बनेंगे,’’ बीजी का मत था.

‘‘आप की बात सही है, बीजी. बल्कि अब यहां भी कुछ ऐसे लोग हैं, कुछ ऐसे शोधकर्ता हैं जो आप की जैसी बातें करते हैं, पर यहां का कानून…’’ सतविंदर की बात अभी पूरी नहीं हुई थी कि अनीटा कमरे में आ गई, ‘‘ओह, कम औन डैड, आप किसे, क्या समझाने की कोशिश कर रहे हो? यहां केवल पीढ़ी का अंतर नहीं, बल्कि संस्कृति की खाई भी है.’’

जब से अनीटा ने बीजी और केट की बातें सुनी थीं तब से वह उन से खार खाने लगी थी. उस ने उन से बात करनी बिलकुल बंद कर दी. जब उन की ओर देखती तभी उस के नेत्रों में एक शिकायत होती. उन की कही हर बात की खिल्ली उड़ाती और फिर मुंह बिचकाती हुई कमरे में चली जाती.

‘‘सैट, सुनीयल को अपने आगे की शिक्षा हेतु वजीफा मिला है. उस ने आज ही मुझे बताया कि उस के कालेज में आयोजित एक दाखिले की प्रतियोगिता में उस ने वजीफा जीता है. इस कोर्स को ले कर वह बहुत उत्साहित है,’’ केट, सतविंदर यानी सैट को बता रही थी, ‘‘2 साल का कोर्स है और पढ़ने हेतु वह पाकिस्तान जाएगा.’’

‘‘पाकिस्तान? पाकिस्तान क्यों?’’ दारजी का चौंकना स्वाभाविक था.

‘‘दारजी, वह कालेज पाकिस्तान में है और सुनीयल ने वहीं कोर्स करने का मन बना लिया है. वैसे भी, यहां सब देशी मिलजुल कर रहते हैं. भारतीय, पाकिस्तानी, श्रीलंकन, बंगलादेशी, यहां सब बराबर हैं.’’

लेकिन जब बच्चों ने मन बना लिया हो और उन के मातापिता भी उन का साथ देने को तैयार हों तो क्या किया जा सकता है. दारजी बस टोक कर चुप रह गए. उन के गले से यह बात नहीं उतर रही थी कि लंदन में पलाबढ़ा बच्चा आखिर पाकिस्तान जा कर आगे की शिक्षा क्यों हासिल करना चाहता है? ऐसा ही है तो भारत आ जाए, आखिर अपना देश है. इन सब घटनाओं ने बीजी व दारजी को कुछ उदास कर दिया था.

‘‘चलो जी, अस्सी घर चलें. अब तो हम ने अपने बेटे का घर देख लिया, उस की गृहस्थी में

3 महीने भी बिता लिए,’’ एक शाम बीजी, दारजी से बोलीं. अब उन्हें अपने घर की याद आने लगी थी. वह घर जहां पड़ोसी भी उन्हें मान देते नहीं थकते थे, उन से मशविरा ले कर अपने निर्णय लिया करते थे. दारजी सारे अनुभवों से अवगत थे. वे मान गए. अपने बेटे सतविंदर से भारत लौटने के टिकट बनवाने की बात करने के लिए वे उस के कक्ष की ओर जा रहे थे कि उन के कानों में सुनीयल के सुर पड़े, ‘‘जी, मैं खालिद हसन बोल रहा हूं.’’

‘सुनीयल, खालिद हसन?’ दारजी फौरन किवाड़ की ओट में हो लिए और आगे की बात सुनने लगे.

‘‘जी, मैं ने सुना है ओमर शरीफ के बारे में. उन्होंने यहीं लंदन में किंग्स कालेज से पढ़ाई की, और 3 ब्रितानियों तथा एक अमेरिकी को अगवा करने के जुर्म में भारत में पकड़े गए. फिर हाईजैक एयर इंडिया के हवाईजहाज और उस की सवारियों के एवज में रिहा हुए. ओमर ने कोलकाता में अमेरिकी सांस्कृतिक केंद्र को बम से उड़ाया तथा वाल स्ट्रीट पत्रकार दानियल पर्ल को अगवा करने तथा खत्म करने का बीड़ा उठाया. हालांकि ये बातें आज से 14 वर्ष पहले की हैं, हम आज भी ओमर शरीफ को गर्व से याद करते हैं. जी, मैं जानता हूं कि सीरिया में हजारों ब्रितानी जा कर जिहाद के लिए लड़ रहे हैं. मुझे गर्व है.’’

फिर कुछ क्षण चुप रह कर सुनीयल ने दूसरी ओर से आ रहा संदेश सुना. आगे बोला, ‘‘आप इस की चिंता न करें. मैं ने देखा है सोशल नैटवर्किंग साइट पर कि वहां हमारा पूरा इंतजाम किया जाएगा, यहां तक कि वहां न्यूट्रीला भी मिलता है ब्रैड के साथ खाने के लिए. जब आप लोग हमारी सुविधाओं का पूरा ध्यान रखेंगे तो हम भी पीछे नहीं रहेंगे. जिस लक्ष्य के लिए जा रहे हैं, वह पूरा करेंगे.

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‘‘मैं खालिद हसन, कसम खाता हूं कि अपनी आखिरी सांस तक जिहाद के लिए लड़ूंगा, जो इस में रुकावट पैदा करने का प्रयास करेगा, उसे मौत के घाट उतार दूंगा, ऐसी मौत दूंगा कि दुनिया याद रखेगी.’’

दारजी को काटो तो खून नहीं. यह क्या सुन लिया उन के कानों ने? उन के मनमस्तिष्क में हलचल होने लगी. उन का सिर फटने लगा. धीमे पैरों को घसीटते हुए वे कमरे में लौटे और निढाल हो बिस्तर पर पड़ गए. उन की सारी इंद्रियां मानो सुन्न पड़ चुकी थीं.

दारजी बस शून्य में ताकते बिस्तर पर पड़े रहे. करीब 15 मिनट बाद दारजी कुछ संभले और उठ कर बैठ गए. उन्होंने जो सुना था उस का विश्लेषण करने में वे अब भी स्वयं को असमर्थ पा रहे थे. क्या कुछ कह रहा था सुनीयल? क्या वह किसी आतंकवादी गिरोह का सदस्य बन गया है? क्या उस ने धर्मपरिवर्तन कर लिया है? क्या इसीलिए वह बहाने से पाकिस्तान जाना चाहता है? यह क्या हो गया उन के परिवार के साथ? अब क्या होगा? सोचसोच वे थक चुके थे. निस्तेज चेहरा, निशब्द वेदना, शोक में दिल कसमसा उठा था. क्या वादप्रतिवाद से लाभ होगा, क्या सुनीयल को प्यार, लौजिक से समझाने का कोई असर होगा. यही सब सोच कर दारजी का सिर फटा जा रहा था.

अखबारों में पढ़ते हैं कि जिहाद का काला झंडा खुलेआम लंदन की सड़कों पर लहराया गया या फिर औक्सफोर्ड स्ट्रीट और अन्य जगहों पर भी आईएस के आतंकवादियों के पक्षधर देखे गए. लेकिन इन सब खबरों को पढ़ते समय कोई यह कब सोच पाता है कि आतंकवाद घर के अंदर भी जड़ें फैला रहा है. कौन विचार कर सकता है कि शिक्षित, संस्कृति व संपन्न परिवारों के बच्चे अपना सुनहरा भविष्य ताक पर रख, अपना जीवन बरबाद करने में गर्वांवित अनुभव करेंगे.

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सुबह का भूला: भाग-4

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लेकिन दारजी हार मानने वाले इंसान नहीं थे. उन्हें झटका अवश्य लगा था, वे कुछ समय के लिए निढाल जरूर हो गए थे किंतु वे इस व्यथा के आगे घुटने नहीं टेकेंगे. उन्होंने आगे बात संभालने के बारे में विचारना आरंभ कर दिया.

सुबह केट को बदहवासी की हालत में देख बीजी ने पूछा, ‘‘क्या हो गया,

पुत्तरजी?’’ केट ने उन्हें जो बताया तो उन के पांव तले की जमीन हिल गई. अनीटा गर्भवती थी. और उस का बौयफ्रैंड, वह काला लड़का कालेज में दाखिला ले, दूसरे शहर जा चुका था. अब घबरा कर अनीटा ने यह बात अपनी मां को बतलाई थी. बीजी के जी में तो आया कि अनीटा के गाल लाल कर दें किंतु दूसरे ही पल अपनी पोती के प्रति प्रेम और ममता उमड़ पड़ी. केट के साथ वे भी गईं डिस्पैंसरी जहां से उन्हें अस्पताल भेजा गया गर्भपात करवाने. सारे समय बीजी, अनीटा का हाथ थामे रहीं.

अब यदि बीजी उसे ‘अनीटा’ की जगह आदतानुसार ‘अनीता’ पुकारतीं तो वह नाकभौं न सिकोड़ती थी. केट ने भी उस में यह बदलाव अनुभव किया था जिस से वह काफी खुश भी थी. बीजी उसे अपने देश अपने गांव की कहानियां सुनातीं. इसी बहाने वे उसे भारत की संस्कृति से अवगत करातीं. दादीनानी की कहानियां यों ही केवल मनोरंजक मूल्य  के कारण लोकप्रिय नहीं हैं, उन में बच्चों में अच्छी बातें, अच्छी आदतें, अच्छे संस्कार रोपने की शक्ति भी है. अनीटा भी, खुद ही सही, राह चुनने में सक्षम बनती जा रही थी. उस में बड़ों के प्रति आदरभाव जाग रहा था.

अनीटा की ओर से बीजी व दारजी अब निश्ंिचत थे. परंतु दारजी के गले की फांस तो जस की तस बरकरार थी. जितना समय बीत जाता, उतना ही नुकसान होने की आशंका में वृद्धि होना जायज था. उन्हें जल्द से जल्द इस का हल खोजना था. अनुभवी दिमाग चहुं दिशा दौड़ कर कोई समाधान ढूंढ़ने लगा.

शाम को दफ्तर से लौट कर केट ने सब को सूप दिया. बीजी और अनीटा बालकनी में बैठे सूप स्टिक्स का आनंद उठा रहे थे. सतविंदर अभी लौटा नहीं था. सुनीयल ने कक्ष में प्रवेश किया कि दारजी बोलने लगे, ‘‘बेटा सुनीयल, फ्रांस के नीस शहर में हुए हमले की खबर सुनी? इन आतंकवादियों को कोई खुशी नसीब नहीं होगी, ऊंह, बात करते हैं अमनशांति की. बेगुनाहों को अपने गरज के लिए मरवाने वाले इन खुदगरजों को इंसानियत कभी भी नहीं बख्शेगी.’’

दारजी का तीर निशाने पर लगा. सुनीयल फौरन आतंकवादियों का पक्ष लेने लगा, ‘‘आप को क्या पता कौन होते हैं ये, क्या इन का उद्देश्य है और क्या इन की विचारधारा? बस, जिसे देखो, अपना मत रखने पर उतारू है. सब आतंकवादी कहते हैं तो आप ने भी कह डाला, ये आतंकवादी नहीं, जिहादी हैं. जिहाद का नाम सुना भी है

आप ने?’’

‘‘शायद तू भूल गया कि मैं भारत में रहता हूं जहां आतंकवाद कितने सालों से पैर फैला रहा है. और तू जिस जिहाद की बात कर रहा है न, मैं भी उसी सोच पर प्रहार कर रहा हूं. यदि जिहाद से जन्नत का रास्ता खुलता है तो क्यों इन सरगनाओं के बच्चे दूर विदेशों में उच्चशिक्षा प्राप्त कर सलीकेदार जिंदगी व्यतीत कर रहे हैं, क्यों नहीं वे बंदूक उठा कर आगे बढ़ते? और ये सरगना खुद क्यों नहीं आगे आते? स्वयं फोन व सोशल मीडिया के पीछे छिप कर दूसरों को निर्देश देते हैं और मरने के लिए, दूसरों के घरों के बेटों को मूर्ख बनाते हैं.

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‘‘तुम्हारी पीढ़ी तो इंटरनैट में पारंगत है. साइट्स पर कभी पता करो कि जिन घरों के जवान बेटे आतंकवादी बन मारे जाते हैं उन का क्या होता है. जो बेचारे गरीब हैं, उन्हें ये आतंकवादी पैसों का लालच देते हैं, और जो संपन्न घरों के बच्चे हैं उन का ये ब्रेनवौश करते हैं. जब ये जवान लड़के मारे जाते हैं तो इन की आने वाली पीढ़ी को भी आतंकवादी बनने का प्रशिक्षण देने की प्राथमिकता दी जाती है. अर्थात खुद का जीवन तो क्या, पूरी पीढ़ी ही बरबाद. लानत है इन सरगनाओं पर जो अपने घर के चिरागों को बचा कर रखते हैं और दूसरे घरों के दीपक को बुझाने की पुरजोर कोशिश में लगे रहते हैं.’’

दारजी ने कुछ भी सीधे नहीं कहा, जो

कहा आज के आम माहौल पर कहा. फिर भी वे अपनी बातों से सुनीयल के भटकते विचारों में व्याघात पहुंचाने में सफल रहे. कुछ सोचता सुनीयल लंदन के सर्द मौसम में भी माथे पर आई पसीने की बूंदें पोंछने लगा. बुरी तरह मोहभंग होने के कारण सुनीयल शक्ल से ही व्यथित दिखाई देने लगा. मानो दारजी के शब्दों की तीखी ऊष्मा की चिलकियां उस की नंगी पीठ पर चुभने लगी थीं.

अगले 3 दिनों तक सुनीयल अपने कमरे से बाहर नहीं आया. उस के कमरे की

रोशनी आती रही, फोन पर बातों के स्वर सुनाई देते रहे. परिवार वाले नेपथ्य से अनजान थे. सो, चिंतामुक्त थे. दारजी के कदम सुनीयल के कक्ष के बाहर टहलते रहते किंतु खटखटाना उन्हें ठीक नहीं लगा. उन्हें अपने खून और अपनी दिखाई राह पर विश्वास था. आखिर तीसरे दिन जब दरवाजा खुला तब सुनीयल ने दारजी को अपने समक्ष खड़ा पाया. उन की विस्फारित आंखों में प्रश्न ही प्रश्न उमड़ रहे थे. सुनीयल ने बस एक हलकी सी मुसकान के साथ उन के कंधे पर हाथ रखते हुए केट से कहा, ‘‘मौम, मैं पाकिस्तान नहीं जा रहा हूं. इतना खास कोर्स नहीं है वह, मैं ने पता कर लिया है.’’ दारजी ने झट सुनीयल को सीने से चिपका लिया.

सप्ताहांत पर सतविंदर जब बीजी व दारजी के भारत लौटने की टिकट बुक करने इंटरनैट पर बैठा तो यात्रा की तारीख पूछने की बात अनीटा ने सुन ली.

‘‘बीजी, क्या मैं आप के साथ भारत चल सकती हूं?’’ रोती हुई अनीटा को बीजी ने गले से लगा लिया.

‘‘तेरा अपना घर है पुत्तर, चल और जब तक दिल करे, रहना हमारे पास.’’

‘‘मुझे यहीं छोड़ जाओगे क्या दारजी,’’ सुनीयल भी सुबक रहा था.

हवाईजहाज की खिड़की से जब बीजी और दारजी आकाश में तैर रहे बादल के टुकड़ों को ताक रहे थे, तब केट और सतविंदर के साथ कभी सुनीयल तो कभी अनीटा फैमिली सैल्फी लेने में मग्न थे.

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दूसरा विवाह: विशाल के मन में क्या चल रहा था सोनाक्षी की भाभी के लिए?

Serial Story: दूसरा विवाह (भाग-3)

सूरज के मांपापा भी बहू को बंधन में बांध कर नहीं रखना चाहते थे और अब जब बेटा ही नहीं रहा उन का, फिर बहू को वे किस अधिकार से अपने पास रख सकते थे? लेकिन लीना दूसरे विवाह को हरगिज तैयार न थी क्योंकि सूरज अब भी उस का प्यार था, उस का पति था. लीना वह स्थान किसी और को नहीं देना चाहती थी. उस के लिए तो अब यही घर उस का अपना घर था और सूरज के मांपापा उस की ज़िम्मेदारी.

याद है उसे, जब भी सूरज का खत या फोन आता, एक बात तो वह जरूरत कहता था, ‘लीना, मेरे मांपापा अब तुम्हारी ज़िम्मेदारी हैं, उन का ध्यान रखना’ और लीना कहती, ‘हां, वह इस ज़िम्मेदारी को अच्छे से निभाएगी, चिंता न करें.’ ऐसे में कैसे वह अपने वचन से पलट सकती थी? इसलिए उस ने कभी फिर दूसरा विवाह न करने का फैसला ले लिया.

सूरज के जाने के बाद वह बखूबी अपनी ज़िम्मेदारी निभा रही है. लेकिन सूरज की कमी उसे खलती रहती है. इसलिए तो उस ने अपनेआप को किताबों में झोंक दिया था. वैसे, सूरज के मांपापा भी यही चाहते थे कि लीना दूसरा विवाह कर ले अब. कई बार कहा भी उन्होंने. कई रिश्ते भी आए. पर लीना का एक ही जवाब था कि वह दूसरा विवाह नहीं करेगी.

उस दिन सोनाक्षी को अच्छे से तैयार होते देख लीना कहने लगी, “कब तक यों ही सजसंवर कर विशाल को रिझाती रहोगी ननद रानी? क्यों नहीं कह देतीं उस से अपने मन की बात? एकदूसरे को अच्छी तरह समझने लगे हो तुम दोनों, तो अब क्या सोचविचार करना? कहीं ऐसा न हो, मांपापा तुम्हारी शादी कहीं और तय कर दें और फिर तुम कुछ न कर पाओ.”

भाभी की बात सोनाक्षी को भी सही लगी कि अगर विशाल आगे नहीं बढ़ रहा है, तो क्यों नहीं वही आगे बढ़ कर अपने प्यार का इजहार कर देती है. लेकिन कैसे वह अपने प्यार का इजहार करे, समझ नहीं आ रहा था.

“अब इस में सोचनासमझना क्या है सोनू? देखो, अगले हफ्ते ही विशाल का जन्मदिन है, तो इस से अच्छा मौका और क्या होगा.” लीना की यह बात सोनाक्षी को जंच गई और मन ही मन उस ने इजहारे प्यार का फैसला कर लिया. सोचा लिया उस ने कि कैसे वह विशाल के सामने अपने प्यार कर इजहार करेगी.

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सोनाक्षी ने तो पहली ही नजर में विशाल को अपना दिल दे दिया था. लेकिन विशाल ने आज तक नहीं जताया उसे कि वह उस से प्यार करता है. लेकिन उस की बातों, हावभाव और सोनाक्षी को ले कर उस की बेचैनी को देख, उसे यही लगता है कि वह भी उस से प्यार करता है. वैसे भी, जरूरी तो नहीं की हर बात कह कर ही जताई जाए. मेरे लिए तो इतना ही काफी है कि मुझ से मिले बिना वह एक दिन भी नहीं रह पाता है. तभी तो कोई न कोई बहाना बना कर सीधे मेरे घर आ पहुंचता है. अपने मन में यह सोच सोनाक्षी मुसकरा पड़ी थी.

सोनाक्षी को यह नहीं पता कि विशाल उस से नहीं, बल्कि उस की विधवा भाभी लीना से प्यार करता है और उस की खातिर ही वह उस के घर बहाने बना कर जाता रहता है. यह कब, कैसे और कहां हुआ. नहीं पता उसे. लेकिन जैसेजैसे उस ने लीना को जाना, उस के प्रति वह आकर्षित होता चला गया. इसलिए सोनाक्षी से मिलने के बहाने ही वह उस के घर चला आता था. भले ही वह सोनाक्षी से बातें करता था पर उस का दिल और दिमाग तो लीना के पास ही होता था.

लीना को एक दिन भी न देखना उसे बेचैन कर देता था. रातदिन, बस, उसी का चेहरा उस की आंखों के सामने नाचता रहता. जब वह अपनी आंखें बंद करता तब भी लीना दिखाई देती उसे और जब आंखें खोलता तब भी उस का ही चेहरा नजर आता था उसे. लेकिन वह यह बात किसी से भी बता नहीं पा रहा था. अपने परिवार वालों से भी नहीं क्योंकि जानता था एक विधवा से शादी समाज सहन नहीं कर पाएगा.

पूछना चाहता है वह समाज से और समाज में रह रहे लोगों से कि जब एक विधुर दूसरा विवाह कर सकता है, तो विधवा क्यों नहीं? क्यों एक पति के न रहने पर औरत अपने मन का खापी और पहनओढ़ नहीं सकती? हंसबोल नहीं सकती? आखिर इतना जुल्म क्यों होता है औरत पर? लेकिन दुख तो उसे इस बात का होता है कि औरत अपने ऊपर हो रहे जुल्म को बरदाश्त करती रहती है. ऐसा नहीं है कि औरत में हिम्मत नहीं होती या उस के पास बोलने को शब्द नहीं होते. वह अपनी हिम्मत और शब्द का इस्तेमाल करती नहीं. इधर, विशाल ने संकल्प ले लिया कि वह लीना के चेहरे से उदासी का बादल हटा कर रहेगा. उसे अपना बना कर रहेगा. आदमी की संकल्पशक्ति दृढ़ होनी चाहिए.

उस दिन अचानक विशाल को अपने घर आए देख लीना चौंक पड़ी क्योंकि कभी वह सोनाक्षी के न होने पर घर नहीं आया और सब से बड़ी बात यह कि वह जानता था सोनाक्षी अपने मांपापा के साथ बीमार बूआजी को देखने गई है.

“वि…विशाल जी आप, इस वक़्त? सोनू, मतलब सोनाक्षी तो घर पर नहीं है. मांपापा के साथ बूआजी को देखने गई…“

“हां, पता है मुझे,” बीच में ही विशाल बोल पड़ा, “वैसे, मैं यहां सोनाक्षी से नहीं, बल्कि आप से मिलने आया हूं लीना जी.” विशाल बोलने में भले घबरा रहा था मगर आज वह अपने दिल की बात लीना तक पहुंचा कर रहेगा, सोच कर आया था.

“आ…आप बैठिए, मैं आप के लिए चाय ले कर आती हूं,” कह कर लीना मुड़ी ही थी कि विशाल ने उस का हाथ पकड़ लिया. विशाल को इस रूप में देख कर वह चौंक उठी क्योंकि उस की आंखें आज कुछ और ही भाषा बोल रही थीं जो लीना को साफसाफ दिखाई दे रहा था. “वि…विशाल जी, आप आप यह क्या कर रहे हैं? छोड़िए मेरा हाथ” अपने हाथों को उस की पकड़ से छुड़ाते हुए लीना बोली.

“मैं ने यह हाथ छोड़ने के लिए नहीं पकड़ा है लीना जी. मैं आप से प्यार करता हूं. शादी करना चाहता हूं आप से,” एक सांस में ही विशाल ने अपना फैसला लीना को सुना दिया.

“पर, आप तो सोनाक्षी से…” अचकचा कर लीना पूछ बैठी.

“नहीं, मैं ने कभी भी सोनाक्षी को उस नजर से नहीं देखा. मैं तो आप से प्यार करता हूं लीना जी,” उस के करीब जाते हुए विशाल बोला. लेकिन लीना उस से दूर छिटक गई.

“पागल हो गए हैं आप? ये कैसी बातें कर रहे हैं मुझ से ?” गुस्से से लीना की आंखें लाल हो गईं. उसे तो यही लगता था कि विशाल सोनाक्षी से प्यार करता है, इसलिए वह बहाने बना कर उस से मिलने को घर आ जाता है. लेकिन यह तो… “प्लीज,” अपने दोनों हाथ जोड़ कर लीना कहने लगी, “ऐसी बातें मत कीजिए मुझ से. जाइए यहां से, वरना किसी ने देख लिया, तो अनर्थ हो जाएगा. जानते नहीं क्या आप, मैं एक विधवा हूं?” यह कह कर वह जाने लगी कि विशाल ने उसे रोक लिया और उस के आसपास अपनी बलिष्ठ भुजाओं का घेरा बना दिया जिस से वह निकल नहीं पाई.

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आज वह सोच कर आया था कि जरूरत पड़ी तो वह लीना के सासससुर से भी बात कर लेगा. कहेगा कि वह लीना से प्यार करता है और उस से शादी करना चाहता है. नहीं मानता वह समाज के इन ढकोसलों को. लेकिन उसे नहीं पता था की पीछे खड़ी सोनाक्षी सब देख ही नहीं रही है, बल्कि उस ने सब सुन भी लिया है.

विशाल से वह कुछ पूछती, मगर वह वहां से बिना कुछ बोले ही निकल गया और लीना ने अपने कमरे में जा कर दरवाजा लगा लिया. सोनाक्षी ने कई बार विशाल को फोन लगाया, पर उस ने उस का फोन नहीं उठाया और न लीना कुछ बता रही थी.

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Serial Story: दूसरा विवाह (भाग-1)

सोनाक्षी ‘बाय’ बोल कर औफिस जाने लगी, तभी उस की भाभी लीना ने उसे रोका और खाने का डब्बा थमा दिया, जिसे वह आज भी भूल कर जा रही थी. मगर वह कहने लगी कि रहने दो, आज वह औफिस की कैंटीन में खा लेगी.

“कोई जरूरत नहीं, ले कर जाओ. रोजरोज बाहर का खाना सेहत के लिए ठीक नहीं होता, झूठमूठ का गुस्सा दिखाती हुई लीना बोली, “मां को बताऊं क्या?”

“अच्छाअच्छा, ठीक है, लाओ, पर मां को कुछ मत बताना, वरना उन का भाषण शुरू हो जाएगा.” उस की बात पर लीना मुसकरा पड़ी और खाने का डब्बा उसे थमा दिया.

सोनाक्षी और लीना थीं तो ननद-भाभी लेकिन दोनों सखियां जैसी थीं जिन्हें हर बात बेझिझक बताई जा सकती है. “प्लीज भाभी, मां को मत बताना की कभीकभार मैं कैंटीन में खा लेती हूं, वरना वह गुस्सा करेगी,” सोनाक्षी बोल ही रही थी कि विशाल उस के पीछे आ कर खड़ा हो गया.

लीना जानती थी वह कुछ न कुछ बोलेगी ही विशाल के बारे में और फिर दोनों के बीच बहसबाजी शुरू हो जाएगी. और वही हुआ भी. सोनाक्षी कहने लगी, “अब मैं निकलती हूं, वरना वह राक्षस, विशाल, गला फाड़ कर सोनाक्षीसोनाक्षी चिल्लाने लगेगा. अजीब इंसान है, कितनी बार कहा है नीचे से आवाज मत लगाया करो, सब सुनते हैं, पर नहीं, अक्ल से दिवालिया जो ठहरा, समझता ही नहीं है.“

“अच्छा, तो अक्ल से दिवालिया इंसान हूं मैं, और तुम ज्ञान की देवी, ओहो ओहो… पीछे से विशाल की आवाज सुन सोनाक्षी ने दांतों तले अपनी जीभ दबा ली कि यह क्या बोल गई वह. अब तो यह विशाल का बच्चा छोड़ेगा नहीं उसे. “बोलो, चुप क्यों हो गई? वैसे, मुझे लगता है दिमागी इलाज की तुम्हें जरूरत है क्योंकि आज औफिस बंद है. पता नहीं, शायद, आज ईद है?” बोल कर विशाल हंसा, तो लीना को भी हंसी आ गई.

दोनों को खुद पर हंसते देख सोनाक्षी को पहले तो बहुत गुस्सा आया, लेकिन फिर दांत निपोरती हुई बोली, “हां भई, पता है मुझे, वह तो मैं तुम्हारा टैस्ट ले रही थी.“

“टेस्ट… ले रही थी या अपने दिमाग का टैस्ट दे रही थी?” ज़ोर का ठहाका लागते विशाल बोला, तो लीना हंसी रोक न पाई.

“वैसे, एक बात बताओ, क्या सच में तुम्हें पता नहीं था कि आज औफिस बंद है या मुझ से मिलने की बेताबी थी?” उस की आंखों में झांकते हुए विशाल बोला, तो शरमा कर सोनाक्षी ने अपनी नजरें नीची कर लीं.

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सच बात तो यही है कि उसे सच में पता नहीं था कि आज औफिस की छुट्टी है. वह तो विशाल से मिलने को इतना आतुर रहती है कि औफिस जाने के लिए रोज वक़्त से पहले ही तैयार हो कर उस की राह देखने लगती है और आज भी उस ने वही किया. जरा भी भान नहीं रहा उसे की आज औफिस की छुट्टी है. वह तैयार हो कर विशाल की राह देखने लगी. विशाल के साथ बातें करना, उस के साथ वक़्त गुजारना सोनाक्षी को बहुत अच्छा लगता है. दरअसल, मन ही मन वह उस से प्यार करने लगी है और यह बात लीना भी जानती है कि सोनाक्षी विशाल को पसंद करती है. लेकिन घर में सब को यही लगता है कि दोनों सिर्फ अच्छे दोस्त हैं और कुछ नहीं. विशाल और सोनाक्षी एक ही औफिस में काम करते हैं और दोनों एकदूसरे को 2 सालों से जानते हैं. चूंकि दोनों एक ही औफिस में काम करते हैं इसलिए सोनाक्षी विशाल के साथ उस की ही गाड़ी में औफिस जातीआती है.

दोनों बातों में लगे थे. तब तक लीना सब के लिए चाय बना लाई. वह अपनी चाय ले कर सोफ़े पर बैठ गई और उन की बातों में शामिल हो गई. लीना के हाथों की बनी चाय पी कर विशाल कहने से खुद को रोक नहीं पाया कि लीना के हाथों में तो जादू है. उस के हाथों की बनी चाय पी कर मूड फ्रेश हो जाता है.

सच में, लीना चाय बहुत अच्छा बनाती है, यह सब कहते हैं और सिर्फ चाय ही नहीं, बल्कि उस का हर काम फरफैक्ट होता है और यही बात विशाल को बहुत पसंद है. उसे गैर जिम्मेदार और कामों के प्रति लापरवाह इंसान जरा भी पसंद नहीं है. वह खुद भी अपनी ज़िम्मेदारी बखूबी निभाता है. लड़का है तो क्या हुआ? अपने घर के सारे काम वह खुद करता है और यह बात लीना को बहुत अच्छी लगती है.

लीना की बड़ाई सुन कर मुंह बनाती हुई सोनाक्षी कहने लगी कि चाय वह भी अच्छा बना लेती है. तो चुटकी लेते हुए विशाल बोला, “हां, पी है तुम्हारे हाथों की बनी चाय भी, बिलकुल गटर के पानी जैसी.” उस की बात पर सब हंस पड़े और सोनाक्षी मुंह बनाते हुए विशाल पर मुक्का बरसाने लगी कि वह उस का मज़ाक क्यों बनाता है हमेशा?

कुछ देर और बैठ कर विशाल वहां से जाने को उठा ही कि लीना ने उसे रोक लिया यह बोल कर कि वह खाना खा कर ही जाए. लीना के इतने प्यार से आग्रह पर विशाल ‘न’ नहीं कह पाया. वैसे, विशाल यहां यह बताने आया था कि आज बुकफेयर का अंतिम दिन है, इसलिए वहां चलना चाहिए, लेकिन सोनाक्षी मूवी देखने के मूड में थी.

“मूवी? नहींनहीं, बेकार में 3 घंटे पकने से अच्छा है बुकफेयर चलना चाहिए,” सोनाक्षी की बात को काटते हुए विशाल बोला. कब से विशाल बुकफेयर जाने की सोच रह था पर औफिस के कारण जा नहीं पा रहा था. आज छुट्टी है, तो सोचा वहां चला जाए.

सोनाक्षी का तो बिलकुल वहां जाने का मन नहीं था पर लीना बुकफेयर का नाम सुनकर ही चहक उठी. उसे किताबें पढ़ना बहुत अच्छा लगता है. कोई कहे कि पूरे दिन बैठ कर किताबें पढ़ती रहो, तो उकताएगी नहीं वह, इतना उसे किताब पढ़ना अच्छा लगता है. तभी तो वह जब भी मार्केट जाती है, बुकस्टॉल से अपने लिए दोचार अच्छीअच्छी किताबें खरीद लाती है.

अकसर औरतों को कपड़ेगहनों का शौक होता है. अलमारी अटी पड़ी होती है कपड़ों से उन की, लेकिन लीना की अलमारी किताबों से अटी पड़ी है. एक भूख है उसे पढ़ने की. एक दिन भी न पढे, तो खालीखाली सा लगता है उसे और विशाल के साथ भी ऐसा ही है. कितना भी बिजी क्यों न हो अपनी लाइफ में, रोज थोड़ाबहुत पढ़ना नहीं भूलता वह. रहा ही नहीं जाता बिना पढ़े उसे. ज़िंदगी सार्थक लगती है उसे पढ़ने से, वरना तो इंसान के जीवन में भागमभाग लगा ही रहता है.

लेकिन लीना दोनों के बीच कबाब में हड्डी नहीं बनना चाहती थी. इसलिए ‘घर में बहुत काम है,’ का बहाना कर जाने से मना कर दिया. लेकिन विशाल तो जिद पर अड़ गया कि उसे भी उन के साथ बुकफेयर चलना ही पड़ेगा. हार कर लीना को उन के साथ जाना पड़ा.

बुकफेयर में जहां लीना और विशाल किताबें देखने में व्यस्त थे, वहीं सोनाक्षी बस आतेजाते लोगों को निहारने और मोबाइल में व्यस्त दिख रही थी. उस के चेहरे से लग रहा था उसे यहां आ कर जरा भी अच्छा नहीं लगा. वह तो कहीं घूमने या फिल्म देखने की सोच रही थी, मगर विशाल उसे यहां खींच लाया. इशारों से कहा भी उस ने कि चलो अब यहां से, बोर हो रही हूं, तो विशाल ने भी इशारों से कहा कि ‘अभी रुकेगा वह यहां, चाहे तो वह जा सकती है घर.

क्या करती वह, एक तरफ बैठ गई और अपना मोबाइल चलाने लगी. गुस्सा भी आ रहा था उसे कि यहां आई ही क्यों? घर में ही रहती इस से अच्छा. भले ही सोनाक्षी और विशाल एकदूसरे को 2 सालों से जानते थे, पर उन की एक भी आदत ऐसी नहीं थी जो आपस में मेल खाती हो. इसलिए अकसर दोनों में अपनेअपने मत को ले कर टकराव होता. और फिर हारने को दोनों में से कोई तैयार नहीं होता.

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वहीँ, विशाल को लीना का साथ इसलिए भी अच्छा लगता था क्योंकि दोनों की बहुत सी आदतें मिलतीजुलती थीं. बातविचारों में भी वह बहुत शालीन थी. उस से बातें कर विशाल को मानसिक स्फूर्ति मिलती थी. जिस तरह से वह बोलती थी न, लगता जैसे उस की बातों से शहद टपक रहा हो. उस के रूप, रस और गंध में विशाल ऐसे खो जाता कि उसे कुछ होश ही नहीं रहता था. जब सोनाक्षी टोकती, उसे तब होश आता कि कहां है वह और किसी सोच मे डूबा था.

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Serial Story: दूसरा विवाह (भाग-4)

2 दिनों बाद विशाल फिर आया, लेकिन लीना से मिलने नहीं, बल्कि उस के सासससुर से उस का हाथ मांगने. अब अंधे को क्या चाहिए, दो आंखें ही न? बहू को बेटी बना कर विदा करना सपना था उन का, लेकिन लीना ही दूसरा विवाह करने को तैयार नहीं हो थी. लेकिन आज जब सामने से आ कर विशाल ने उस का हाथ मांगा तो उन्होंने तुरंत हां कर दी. इस उम्र में अपने सासससुर को और दुख नहीं देना चाहती थी, इसलिए लीना ने भी मौन सहमति दे दी. पर, वह विशाल से शादी नहीं करना चाहती थी, क्योंकि जानती है विशाल सोनाक्षी का प्यार है.

उधर लीना के मातापिता भी बेटी की गृहस्थी फिर से बसते देख खुशी से झूम उठे थे. मगर विशाल के मातापिता इस रिश्ते के लिए तैयार नहीं थे. वे एक विधवा को अपनी बहू नहीं स्वीकारना चाहते थे. लेकिन विश्वास था विशाल को कि वे इस रिश्ते के लिए मानेंगे जरूर एक दिन, और न भी मानें, तो उस का फैसला अटल है.

सूरज के मांपापा ने जब लीना और विशाल की शादी की बाद सोनाक्षी को बताई और कहा कि अब वे चैन से मर सकते हैं, तो सोनाक्षी, विशाल और लीना की शादी से खुश होने का दिखावा जरूर कर रही थी, मगर अंदर से वह आग की तरह धधक रही थी. विशाल के मुंह से यह बात सुन कर ही कि, वह लीना से प्यार करता है और उस से शादी करना चाहता है, कैसे उस का गुलाबी चेहरा झुलस कर राख़ हो आया था. सहन नहीं कर पा रही थी कि विशाल उसे ठुकरा कर उस की भाभी का हो गया. अपने कमरे में जा कर तड़ातड़ अपने ही गालों पर थप्पड़ बरसाने लगी थी वह और फिर घुटनों में सिर दे कर बुक्का फाड़ कर रोई थी.

उसे लग रहा था कि जिस भाभी को उस ने अपना दोस्त माना, उस ने ही उस की पीठ पर खंजर भोंक दिया. भले ही वह सब के सामने अखंड शांति का दिखावा कर रही थी, जता रही थी कि उन की शादी से वह प्रसन्न है, पर अपने अभिमान पर हुए आघात से वह धूधू कर जल रही थी.

एक बार तो उस के मन में आया था कि आत्महत्या कर ले. जिस अतुल रूप यौवन पर उसे बहुत गुमान था, उसे अपने हाथों से नोच डाले, टुकड़ेटुकड़े कर तोड़ दे उसे. पर तभी ध्यान आया कि इस से क्या होगा? उन का कुछ बिगड़ेगा? नहीं, बल्कि और उन का रास्ता साफ हो जाएगा. इसलिए वह उन्हें सिखाएगी.

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उस के मन में लीना को ले कर बहुत गुस्सा भरा हुआ था और जब तक वह उसे सबक नहीं सिखा देती, बदला नहीं ले लेती उन से, तब तक उस के मन को शांति नहीं मिलेगी. लीना सोनाक्षी का दुख समझ रही थी, पर क्या करे वह भी. लेकिन एक रास्ता सूझा उसे और उस ने विशाल से मिलने का मन बना लिया.

फोन पर लीना को विशाल से बातें करते देख सोनाक्षी का खून खौल उठा. मन तो किया उस के हाथ से फोन छीन कर फेंक दें और कहे, ‘लज्जा नहीं आई तुम्हें मेरे प्यार को छीनते हुए? अरे, दोबारा विवाह ही करना था, तो क्या लड़कों की कमी थी दुनिया में? मेरा प्यार क्यों छीन लिया तुम ने?’ फिर मन हुआ टेबल पर रखी गरम चाय उस के मुंह पर दे मारे, ताकि उस का यह सुंदर चेहरा बिगड़ जाए. आखिर इस के इसी सुंदर चेहरे पर विशाल को प्यार हो गया न? और इस के इसी सुंदर चेहरे की वजह से ही विशाल ने उसे ठुकरा दिया न? लेकिन उस ने अपने उबलते गुस्से को कंट्रोल कर लिया और उस की बातें सुनने लगी.

लीना विशाल से पास के ही कौफीहाउस में मिलने की बात कह रही थी. लीना के जाने के कुछ देर बाद वह भी घर से निकल पड़ी. अपने चेहरे को दुपट्टे से आधा ढक कर उस ने गौगल्स चढ़ा लिया था ताकि कोई उसे पहचान न पाए. और जा कर ठीक उन के पीछे वाली टेबल पर बैठ गई ताकि उन की बातें ठीक तरह से सुन पाए. फिर वह सोचेगी कि उसे क्या करना है. पता नहीं वह क्या प्लान बना रही थी दोनों को ले कर, यह तो वही जाने.

विशाल ने 2 कप कौफी और्डर किया और गौर से लीना को देखने लगा, जो अब भी सिर झुकाए उसी तरह बैठी थी. “कुछ परेशान लग रही हो,” लीना के चेहरे को पढ़ते हुए विशाल बोला.

“हां, हूं मैं परेशान. और इस की वजह आप हैं. क्यों कर रहे हैं आप ऐसा? मांपापा के सामने मैं कुछ बोल नहीं पाई और न ही फोन पर आप को समझा सकती थी. लेकिन आज मैं आप को यहां यह समझाने आई हूं कि जिद छोड़ दीजिए. आप का प्यार मैं नहीं, बल्कि सोनाक्षी है. अच्छा किया क्या आप ने उस का दिल तोड़ कर? नहीं चाहिए मुझे आप की दया. आप खुद इस शादी से इनकार कर दीजिए, प्लीज,” हाथ जोड़ कर लीना कहने लगी, “और अपना लीजिए मेरी सोनू को. प्यार करती है वह आप से बहुत.”

लीना की बातें सुन कर पहले तो कुछ देर विशाल उसे देखता रहा, फिर बोला, “एक बात बताओ, क्या कभी कहा तुम से सोनाक्षी ने कि मैं ने उसे आई लव यू कहा? क्या एक लड़का और एक लड़की की दोस्ती का मतलब प्यार हो जाता है? नहीं न, फिर कैसे लगा तुम्हें या किसी को भी कि मैं उस से प्यार करता हूं. मैं ने अपनी ज़िंदगी में सिर्फ एक लड़की को चाहा और वह तुम हो लीना तुम और मैं तुम पर कोई दया नहीं कर रहा, बल्कि सच्चे दिल से तुम्हें प्यार करता हूं.”

उस बातों पर लीना का चेहरा झुक गया, क्योंकि विशाल की आंखों में उस के लिए प्यार साफसाफ दिख रहा था. “और जब मैं उस से प्यार ही नहीं करता, फिर शादी का क्या मतलब? बेईमानी नहीं होगा, यह हम दोनों के साथ? क्या खुश रह पाएंगे हम एकदूसरे के साथ, बोलो? मैं तुम से प्यार करता हूं लीना और तुम्हारे साथ ही खुश रह पाऊंगा. जानता हूं कि, मैं भी तुम्हें अच्छा लगता हूं. मेरे साथ रहते हुए तुम कितनी खुश रहती हो, देखा है मैं ने. लेकिन तुम जकड़ी हुई हो समाज की सोच के साथ कि लोग क्या कहेंगे? एक विधवा का जो ठप्पा लगा है न तुम पर, उस से तुम भी नहीं निकलना चाहती हो. बताओ न, क्यों नहीं निकलना चाहतीं? तुम ने ही एक रोज बताया था मुझे कि जब तुम्हारी चाची की जौंडिस से मौत हो गई थी, तब उन के मरने के कुछ महीने बाद ही तुम्हारे चाचा ने दूसरा विवाह कर लिया था. तो उन्हें समाज कुछ क्यों नहीं बोलता? सिर्फ औरतें ही क्यों समाज की बनाई चक्की में पिसती रहें, बोलो न?”

“वह सब मुझे नहीं पता, लेकिन यह जानती हूं कि एक विधवा के लिए दूसरा विवाह करना पाप है. हो सके तो आप सोनाक्षी से शादी कर लीजिए, वह आप से बहुत प्यार करती है,” कह कर नम आंखों से लीना वहां से उठ कर चली गई और विशाल वहीं बैठा जाने क्या सोचने लगा. कुछ देर बाद वह भी वहां से चला आया. काफी अपसेट लग रहा था वह. उसे समझ नहीं आ रहा था क्या करे?

विशाल के जाने के बाद सोनाक्षी भी वहां से निकल गई. आज लीना की बातें सुन कर उस का मन रो पड़ा. सोचने लगी, वह कितनी स्वार्थी हो गई है? जब उस के भाई सूरज की मौत हुई थी तब लीना को देख कर उस का भी कलेजा फटा था. वह भी चाहती थी लीना की गृहस्थी फिर से बस जाए. कोई उस का हाथ थाम कर फिर से उस की ज़िंदगी में बहार ले आए.

लेकिन आज जब कोई उसे दिल से प्यार करने वाला मिला है, उस से शादी करना चाहता है, तो उसे बुरा लग रहा है? सही तो कहा विशाल ने, कब उस ने मुझ से प्यार का इजहार किया? बल्कि मुझे ही यह गलतफहमी हो गई थी कि वह मुझे चाहता है.

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मैं तो यह सोच कर वहां गई थी कि सब के सामने उन्हें जलील करूंगी. बताऊंगी लोगों को कि कैसे उस की अपनी भाभी, जिसे वह अपना सबकुछ समझती थी, ने उस का प्यार छीन लिया. लेकिन वह तो यहां आ कर स्तब्ध रह गई. उस की भाभी तो आज व अब भी पहले उस के बारे में ही सोचती है, चाहती है विशाल उस से शादी करने से मना कर सोनाक्षी को अपना ले. यह सब सोचतेसोचते सोनाक्षी घर पहुंच गई.

आज उस के मन में विशाल और लीना को ले कर कोई गुस्सा या द्वेष नहीं था. बल्कि, वह खुश थी कि उस की भाभी का दूसरा विवाह होने जा रहा है और वह अपने हाथों से उसे सजाएगी, उसे लाल जोड़ा पहनाएगी. खूब नाचेगीगाएगी. और वह गुनगुनाने लगी, ‘मेरी प्यारी बहनिया बनेगी दुलहिया, सज के आएंगे दूल्हे राजा…’

Serial Story: दूसरा विवाह (भाग-2)

लीना को भी विशाल से बातें करना अच्छा लगता था. पता नहीं क्यों, पर उसे देखते ही लीना के चेहरे पर मुसकान तैर जाती. उन की दोस्ती तो किताबों से शुरू हुई थी. अकसर दोनों एकदूसरे को अपनीअपनी किताबें लेतेदेते रहते थे. पढ़ना दोनों को बहुत अच्छा लगता था. लेकिन वहीं सोनाक्षी किताबों से कोसों दूर भागती. कहता जब विशाल कि किताबें पढ़ कर देखो कभी, ज्ञान का खजाना छिपा है उस में. तब मुंह बनाती सोनाक्षी कहती कि नहीं, उसे इन किताबोंउताबों में कोई दिलचस्पी नहीं है. उसे तो, बस, विशाल में दिलचस्पी है. और उस की बात पर विशाल मुसकरा पड़ता था.

सोनाक्षी का किताबों से दूरदूर तक कोई नातारिश्ता नहीं था. आश्चर्य होता उसे कि कैसे कोई इतनी मोटीमोटी किताबें हफ्तेदस दिन में खत्म कर सकता है? वह तो सालों तक भी एक किताब खत्म नहीं कर पाएगी.

उसे तो फिल्में देखना, घूमना, होटलों में भोजन करना पसंद है. ज़िंदगी में मौजमस्ती होती रहे, बस, और कुछ नहीं चाहिए उसे. इसलिए तो कभीकभी विशाल के साथ भी वह बोर होने लगती थी क्योंकि उस के साथ होते हुए भी वह किताबों में खोया रहता था. गुस्से में कह भी देती, ‘किताबों से ही क्यों नहीं बातें करते? उसे ही अपना दोस्त बना लो न.’ तो हंसते हुए विशाल कहता कि वह तो अभी कुछ साल पहले उस की दोस्त बनी है. लेकिन ये किताबें तो बचपन से उस की साथी हैं, जो आजीवन उस का दोस्त रहेंगी.

लेकिन, अब एक और दोस्त मिल गई है उसे लीना के रूप में. बिलकुल उस की तरह ही सोच रखने वाली. जब भी दोनों बातें करने लगते, सोनाक्षी तुनक कर वहां से उठ कर चल देती और कहती कि उन की बातों का मुद्दा सिर्फ किताबें और पढ़ाई ही क्यों होती है, कुछ और क्यों नहीं होता? और उस की बात पर दोनों हंस पड़ते.

‘हंसो मत यार, सही कह रही हूं. और कोई बात नहीं सूझती क्या तुम दोनों को? जब देखो किताबें, देशदुनिया और राजनीति पर बातें करते रहते हो. अरे भई, कुछ इंट्रेस्टिंग बातें भी कर लिया करो कभी. मैं तो स्कूलकालेज की ही किताबें पढ़पढ़ इतनी ऊब चुकी थी कि सोचती कब पीछा छूटे इन से और मैं चैन की सांस लूं,’ हंसती हुई सोनाक्षी अपने बचपन की बातें याद कर कहती, ‘तुम्हें पता है विशाल, बचपन में मेरा स्कूल से भागने का रिकौर्ड था.

‘घर से मेरा स्कूल कुछ दूरी पर ही था. पापा मुझे स्कूल छोड़ कर जैसे ही जाते, मैं पीछेपीछे घर पहुंच जाती. यह रोज का किस्सा बन गया था. परेशान थे मांपापा मुझे ले कर. डर लगता उन्हें की कहीं रास्ते में कोई गाड़ी ठोकर न मार दे मुझे या कोई उठा कर ही ले भागा, तो फिर क्या करेंगे वे. और स्कूल से भागना क्या अच्छी बात है? इसलिए एक बार पापा ने टीचर को ही डांट पिला दी कि बच्चा उन के स्कूल से भाग जाता है, क्या उन्हें पता नहीं चलता? अगर बच्चे को कुछ हो गया तो कौन जिम्मेदार होगा फिर?

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‘फिर क्या था, टीचर ने उस रोज मुझे रस्सी से बांध दिया ताकि मैं स्कूल से भाग न सकूं. लेकिन मैं ने रोनाचिल्लाना इतना मचाया कि उन्हें मुझे खोलना ही पड़ा. लेकिन प्रिंसिपल ने भी कह दिया कि स्कूल में अब मेरे लिए कोई जगह नहीं है. ऐसे बच्चे को वह अपने स्कूल में नहीं पढ़ा सकते. बहुत खुश थी मैं कि स्कूल और किताबों से मेरा पाला छूटा. लेकिन पापा ने जो मार मारी न उस रोज, आह, आज भी कांप उठती हूं याद कर के.

‘उस दिन के बाद से मैं स्कूल से कभी नहीं भागी, लेकिन किताबों के प्रति मेरी नफरत बरकरार रही. वह तो पापा के डर के कारण इंजीनियरिंग की पढ़ाई करनी पड़ी, वरना तो पढ़ाई मुझे सजा से कोई कम नहीं लगती है आज भी,’ सोनाक्षी बोली.

‘कैसी बातें कहती हो तुम सोनाक्षी? पढ़ना क्या सजा होता है? अरे, किताबों में तो ज्ञान का भंडार छिपा है. मैं तो किताब पढ़ने के अलावा और कुछ सोच ही नहीं सकता. सोने से पहले रोज जब तक थोड़ा पढ़ न लूं, नींद नहीं आती’ विशाल की बात पर लीना ने भी सहमति जताई और कहा कि उसे भी बिना पढे नींद नहीं आती. काम से फुरसत मिलते ही वह किताब ले कर बैठ जाती है. मजा आता है उसे पढ़ने में.

एक सुर में दोनों को बोलते देख सोनाक्षी हंस पड़ी और एक लंबी सांस छोड़ती हुई बोली, ‘हूं, मुझे लगता है तुम दोनों की जोड़ी खूब जमेगी, क्योंकि एकजैसे जो हो तुम दोनों.’

उस की बातों पर दोनों एकदूसरे को देखने लगे और आंखों ही आंखों में जो बातें हुईं, ये तो उन्हें ही पता था. कहते हैं, आंखें दिल के झरोखे सी होती हैं. झरोखे बंद भी हो सकते हैं, पर होंठों की कोर एक ऐसा सूचक है जो कभी चुकता नहीं.

विशाल अपलक अब भी लीना को वैसे ही निहार रहा था. कुछ क्षणों की वह तंद्रा लीना को मानो उस कमरे से दूर अलग कहीं ले गई थी जहां होंठों के कोरों का कसाव, बिना तनिक कांपें भी, जैसे अनजाने कुछ नरम पड़ गया था. मुंह के आसपास की असंख्य शिराओं का अदृश्य तनाव कुछ ढीला हो गया था और जीवन का अदम्य लचीलापन जैसे फिर उभर कर एक स्निग्ध लहर बन गया था. ऐसा पहले भी कई बार हुआ जब किताबें लेतेदेते दोनों के हाथ आपस में स्पर्श कर जाता तो उन की आंखें बातें करने लगती थीं.

सोनाक्षी ने उसे झंकझोरा तो पाया कि वह कहीं खो गया था. लेकिन लक्ष्य किया उस ने कि उस के चेहरे के हावभाव को कोई पढ़ नहीं पाया. नास्तिकों की भीड़ में जैसे कोई भक्त अनदेखे क्षणभर आंख बंद कर अपने आराध्य का ध्यान कर लेता है, वैसे ही विशाल कहीं पर भी हो या किसी के साथ हो, अपनी लीना को मन की आंखों से देख ही लेता था.

लेकिन फिर भी लीना विशाल को सिर्फ एक अच्छा दोस्त समझती थी. उस के दिल में कुछ भी नहीं था उसे ले कर. वह तो आज भी अपने दिल में सूरज को बसाए हुए थी, जो अब इस दुनिया में नहीं है. 4 वर्षों पहले लीना और सूरज विवाह बंधन में बंधे थे. हंसतेमुसकराते शादी के 2 साल कैसे गुजर गए, उन्हें पता ही नहीं चला. लेकिन एक दिन सूरज की मौत की खबर ने लीना को तोड़ कर रख दिया. एक तसल्ली थी की उस का सूरज देश के लिए शहीद हुआ है. गर्व था उसे अपने पति पर.

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सूरज फौज में था. अपनी बेटी को विधवा के रूप में देख कर लीना की मां ने तो खटिया ही पकड़ ली और उस के पापा गुमसुम से हो गए. लेकिन वे चाहते थे कि उन के जीतेजी बेटी का घर फिर से बस जाए क्योंकि ज़िंदगी इतनी छोटी भी नहीं होती कि बगैर किसी सहारे के जिया जा सके और वे कब तक बेटी के साथ रह पाएंगे. आज न कल, वे भी अपनी आंखें मूंद ही लेंगे, फिर क्या होगा लीना का?

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बेवफाई: प्रेमलता ने किस वजह से की आशा की हत्या?

Serial Story: बेवफाई (भाग-1)

‘‘वैसे तो बाग और घर दोनों ही ठीक हैं, फिर भी अपने सामने धनीराम से पौधों की कटाईछंटाई करवा दूंगी. कारपेट और सोफे वगैरा भी वैक्यूम क्लीनर से साफ करवा देती हूं, पार्टी…’’

दया और नहीं सुन सकी और भागी हुई बगीचे में पानी देते अपने पति धनीराम के पास पहुंच कर बोली, ‘‘आज रविवार वाला धारावाहिक और फिल्म दोनों गए. मैडम के बाग की कटाईछंटाई, फिर वैक्यूम से घर की सफाई और फिर पार्टी का प्रोग्राम है…’’

‘‘तुझे कैसे पता? मैडम तो अभी बाहर आई ही नहीं,’’ धनीराम बोला.

‘‘फोन पर किसी को आज का प्रोग्राम बता रही थीं. तुम कमरे में जा कर जल्दी से नाश्ता कर आओ. एक बार मैडम ने काम शुरू करवा दिया तो पूरा होने के बाद ही सांस लेंगी और लेने देंगी.’’

तभी बंगले के सामने एक गाड़ी आ कर रुकी.

‘‘ले मिल गई पूरे दिन की छुट्टी. मैडम तो अब सब कुछ भूल कर सारा दिन कमरा बंद कर के प्रेमलता मैडम के साथ ही बतियाएंगी,’’ धनीराम चहकते हुए प्रेमलता के लिए गेट खोलने को लपका.

‘‘आशा कहां है?’’ प्रेमलता ने तेजी से अंदर आते हुए पूछा.

‘‘दया गई है बुलाने. आप बरामदे में बैठेंगी या लौन में?’’

प्रेमलता बगैर कुछ बोले तेजी से बरामदे की सीढि़यां चढ़ने लगी और सामने कमरे से निकलती आशा पर नजर पड़ते ही हाथ में पकड़े रिवौल्वर से आशा के सीने में 5-6 गोलियां दाग दीं और फिर उतनी ही तेजी से अपनी गाड़ी की ओर बढ़ते हुए बोली, ‘‘ड्राइवर, पुलिस स्टेशन चलो.’’

‘‘पुलिस यहीं आ रही है मैडम, मैं ने आप के हाथ में रिवौल्वर देखते ही 100 नंबर पर फोन कर दिया है. आप कहीं नहीं जा सकतीं,’’ हाथ में मोबाइल पकड़े दया का कालेज में पढ़ने वाला बेटा यश प्रेमलता का रास्ता रोक कर खड़ा हो गया.

‘‘ठीक है, पुलिस स्टेशन जाने और शायद फिर वहां से यहां आने से तो यहीं रुकना बेहतर है,’’ कह कर प्रेमलता ने आशा पर झुकी बदहवास सी दया से कहा, ‘‘वह मर चुकी है, उसे मत छूना दया. तुम्हारे हाथ या कपड़ों पर लगा खून देख कर पुलिस तुम्हें भी हिरासत में ले सकती है.’’

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‘‘लेकिन मैडम आप ने अपनी बहन सरीखी सहेली को गोली क्यों मार दी?’’ दया ने रुंधे स्वर में पूछा.

‘‘क्योंकि वह बेवफाई पर उतर आई थी,’’ प्रेमलता ने आवेश में कहा और फिर अपनी जीभ काट ली जैसे न बोलने वाली बात कह गई हो.

तभी पुलिस की जीप आ गई. महापौर प्रेमलता को देखते ही जीप से कूद कर उतरे एएसआई ने उसे सलाम किया.

‘‘संडे सैनसेशन की संपादिका आशालता को मैं ने अपने इसी रिवौल्वर से गोली मारी है. ये सब लोग इस के चश्मदीद गवाह हैं. आप मुझे गिरफ्तार कर लीजिए,’’ प्रेमलता ने रिवौल्वर लिए हाथ आगे बढ़ाए.

‘‘आप जैसी हस्ती को गिरफ्तार करने की मेरी औकात नहीं है, मैडम. मैं अपने सीनियर को फोन कर रहा हूं तब तक आप बैठिए,’’ कह एएसआई धनीराम की ओर मुड़ा, ‘‘कुरसी लाओ मैडम के लिए.’’

‘‘अपने सीनियर के बजाय सीधे एसएसपी अशोक का नंबर मिला कर मुझे दीजिए, मैं स्वयं उन से बात करती हूं,’’ प्रेमलता बोली.

एएसआई ने तुरंत नंबर मिला कर मोबाइल उसे पकड़ा दिया.

‘‘चौंकिए मत अशोक साहब. आप ने ठीक सुना है कि मैं ने आशालता का खून कर दिया है और मैं आत्मसमर्पण कर रही हूं… वजह बताने को मैं बाध्य नहीं हूं… व्यक्तिगत तो है ही… जानती हूं नगर निगम की महापौर ने जानीमानी संपादिका की हत्या की है, हंगामा तो होगा ही. खैर, आप अपने लोगों को कार्यवाही तेज करने को कहिए.’’

इस बीच यश ने आशा की सहायिका स्नेहा को फोन कर दिया था. शीघ्र ही लौन स्नेहा और

उस के सहयोगियों से भरने लगा. चूंकि दया, धनीराम और यश स्नेहा से पूर्वपरिचित थे उन्होंने फोन पर कही आशा की बात, प्रेमलता का आना, गोली मारना और कहना कि वह बेवफाई पर उतर आई थी सभी बातें स्नेहा को बताईं. सिवा उन्हें लाश के पास न जाने देने के एएसआई और कुछ नहीं कर सका. स्नेहा को एक सहयोगी से यह कहते सुन कर कि बेवफाई तो यही हो सकती है कि आशा मैडम प्रेमलता का कोई राज सार्वजनिक करने पर तुली हुई हों, एएसआई ने तुरंत यह बात अपने सीनियर को बताई और उस ने अपने सीनियर को.

प्रेमलता सब से अलग लौन में बैठी थी. उस के सपाट चेहरे पर अगर कोई भाव था तो झुंझलाहट का, क्षोभ या शोक का तो कतई नहीं.

‘‘मैं ने पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया है और अब मैं किसी बात का कोई जवाब नहीं दूंगी स्नेहा, मेरे साथ समय बरबाद करने के बजाय तुम आशा के परिजनों को सूचित कर दो. अगर दिलीप का दुबई का नंबर तुम्हारे पास नहीं है तो मैं बता देती हूं,’’ प्रेमलता ने कहा.

‘‘बोलिए,’’ स्नेहा ने अपना मोबाइल चालू किया.

स्नेहा अभी फोन पर बात कर ही रही थी कि कुछ पुलिस अधिकारी आ गए. इंस्पैक्टर को अपने सहायक को यह कहते सुन कर कि उस नंबर का पता लगाओ जिस पर मरने से कुछ देर पहले आशा बात कर रही थी…

स्नेहा बीच में बोल पड़ी, ‘‘आशाजी दुबई में अपने पति दिलीप से बात कर रही थीं. ऐसा दिलीप सर ने मुझे बताया है और कहा है कि वह जैसे भी होगा शाम से पहले पहुंच जाएंगे.’’

‘‘और शाम को कौन सी पार्टी है?’’

‘‘मुझे तो नहीं पता, लेकिन प्रेमलता मैडम को जरूर मालूम होगा,’’ दया बोली.

प्रेमलता ने इनकार में सिर हिलाया.

‘‘मुझे तो न्योता नहीं मिला और अब जब पार्टी होगी ही नहीं तो क्यों थी या किस के लिए थी इस से अब क्या फर्क पड़ता है?’’

‘‘बहुत फर्क पड़ता है,’’ एसएसपी अशोक की आवाज पर प्रेमलता चौंक पड़ी.

‘‘चलिए, मान भी लिया कि आप ने ‘वह बेवफाई पर उतर आई थी’ जैसा कुछ नहीं कहा था, केवल किसी व्यक्तिगत कारण से हत्या की है कहने से भी काम नहीं चलेगा. हमें तो उस व्यक्तिगत कारण का पता लगा कर सरकार और जनता को सच बताना पड़ेगा. वैसे भी ऐसे हाई प्रोफाइल केस की जांच सीआईडी ही करती है. इसलिए मैं ने सीआईडी कमिश्नर को फोन कर दिया है, क्योंकि आप से कुछ कुबूल करवाने की काबिलीयत मुझ में नहीं है.’’

‘‘लेकिन सीआईडी के हाथों जलील करवाने की तो है ही,’’ प्रेमलता मुसकराई.

‘‘खैर, परवाह नहीं. अब जब नाम वाले हैं तो बदनाम भी जोरशोर से ही होंगे.’’

‘‘अगर अपनी इस बदनामी की वजह मुझे बता देतीं तो मेरा भी नाम हो जाता,’’ अशोक ने उसांस ले कर कहा.

प्रेमलता विद्रूप हंसी हंसी, ‘‘ब्रेफिक्र रहो अशोक, अगर तुम्हें नहीं तो तुम्हारे सीआईडी वालों को भी शोहरत नहीं दिलवाऊंगी.’’

तभी सीआईडी के कमिश्नर की गाड़ी आ गई. स्नेहा ने सभी मीडिया कर्मियों को उन्हें घेरने से रोका. दोनों उच्चाधिकारी आपस में बात कर रहे थे कि इंस्पैक्टर देव अपने सहायक वासुदेव के साथ आ गया. अशोक उसे देख कर चौंके.

‘‘ऐसे पेचीदा केस देव ही सुलझा सकता है अशोक. सो मैं ने तुरंत इसे बुलाना बेहतर समझा,’’ स्नेहा बोली.

‘‘राई का पहाड़ बनाने का शौक है आप लोगों को. 3 चश्मदीद गवाह हैं, रिवौल्वर और मेरा आत्मसमर्पण मिल तो गया है मुझ पर मुकदमा चलाने को… अब इस में पेचीदगी ढूंढ़ने के लिए अपने खास जासूस को लगाने की क्या जरूरत है?’’ प्रेमलता ने पूछा फिर आगे बोली, ‘‘वैसे एक बात बता दूं इंस्पैक्टर देव, मुझे जो कहना था कह दिया. इस से ज्यादा मुझ से तुम कुछ नहीं उगलवा पाओगे.’’

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‘‘इंस्पैक्टर देव अपराधी से पूछताछ के बजाय उस से जुड़ी अन्य चीजों की सीढ़ी बना कर सफलता के शिखर पर पहुंचने के लिए जाने जाते हैं,’’ स्नेहा ने कहा.

इंस्पैक्टर देव ने चौंक कर उस की ओर देखा. लंबी, पतली, सांवलीसलोनी खोजी पत्रकार स्नेहा. हमेशा सीआईडी पर कटाक्ष करने वाली स्नेहा आज उस के पक्ष में बोल रही थी.

‘‘दिलीप की अनुपस्थिति में आशा की सब से करीबी तुम ही हो स्नेहा तो तुम्हीं से पूछताछ करनी पड़ेगी,’’ अशोक ने कहा, ‘‘आशा मेरी बीवी की फ्रैंड थी. सो उस के करीबी लोगों के बारे में मैं अच्छी तरह जानता हूं.’’

‘‘तब तो आप से भी पूछताछ करनी पड़ेगी सर,’’ देव बोला.

‘‘जरूर देव, कभी कहीं भी.’’

‘‘यह सब कर के तुम अपने दोस्त दिलीप को और भी दुखी करोगे अशोक,’’ प्रेमलता ने चुनौती भरे स्वर में कहा.

‘‘उस की जिंदगी का सब से बड़ा दुख तो तुम उसे दे ही चुकी हो. अब हमारे छोटेमोटे झटकों से क्या फर्क पड़ेगा उसे,’’ अशोक देव की ओर मुड़े, ‘‘तो अब तुम संभालो देव, हम चलते हैं. अपनी सहायिका स्नेहा की आशा बहुत तारीफ किया करती थी. निजी तौर पर स्नेहा उस के कितने करीब थी, मैं नहीं जानता पर आशा की इस अप्रत्याशित मृत्यु का रहस्य खोजने में स्नेहा से तुम्हें बहुत सहयोग मिलेगा. दया और धनीराम भी आशा के पास कई सालों से हैं, उन से भी मदद मिल सकती है. बैस्ट औफ लक देव.’’

‘‘थैंक यू सर,’’ देव ने सैल्यूट मारा.

सब के जाने के बाद देव स्नेहा की ओर मुड़ा. वह कुछ लोगों को निर्देश दे रही थी.

‘‘यह हमारे औफिस का स्टाफ है औफिसर, इन सब को औफिस जाने दूं या आप इन से कुछ पूछना चाहेंगे,’’ स्नेहा ने पूछा, ‘‘वैसे तो आज छुट्टी है, लेकिन कुछ लोग आज भी काम पर हैं.’’

‘‘आप की इस टिप्पणी के बाद कि आशा प्रेमलता का कोई राज फाश करने जा रही थीं, हमें आशाजी के औफिस के सभी कागजात चैक करने होंगे और सब से पूछताछ भी…’’

‘‘इस सब के लिए तो मैडम का लैपटौप और आई पैड चैक करना ही काफी होगा,’’ स्नेहा ने बात काटी, ‘‘ये दोनों तो घर पर ही मिल जाएंगे. इस मामले में जब सहायक संपादिका यानी मुझे ही कुछ मालूम नहीं है तो स्टाफ के जानने का सवाल ही नहीं उठता.’’

‘‘ठीक है, अभी इन लोगों को औफिस जाने दीजिए. जो पूछना होगा हम वहीं आ कर पूछेंगे. आप आशाजी का लैपटौप और आई पैड कहां रखा होगा जानती हैं?’’

‘‘मैं जानता हूं,’’ यश ने आगे आ कर कहा, ‘‘मैडम की स्टडी यानी औफिसरूम में. आप वहीं चलिए सर, आप को वहां बैठ कर अपना काम यानी हम सब से पूछताछ वगैरा करने में आसानी होगी.’’

‘‘यहां हमें क्या करना चाहिए यह दूसरों को हम से ज्यादा मालूम है,’’ देव ने वासुदेव ने कहा. अपने स्टाफ को भेज कर स्नेहा भी उन के पीछे स्टडीरूम में आ गई.

‘‘मुझे मैडम के पासवर्ड मालूम हैं, क्योंकि कई बार किसी अन्य कार्य में व्यस्त होने पर वे मुझे अपने लैपटौप या आई पैड से कोई फाइल देखने को कहती थीं.’’

‘‘ठीक है, आप देखिए इस विषय में कुछ मिलता है,’’ देव ने कहा, ‘‘तब तक मैं दया के परिवार से पूछताछ करता हूं.’’

‘‘मैडम के भाईबहन वगैरा को हम ने फोन कर दिया है,’’ दया ने बगैर पूछे कहा, ‘‘ससुराल वालों के नंबर हमें मालूम नहीं हैं.’’

‘‘मैडम के मांबाप नहीं हैं?’’

‘‘नहीं, न ही सासससुर यहां हैं. ससुर हैं. वे अपने दूसरे बेटे के पास रहते हैं. उन का नंबर हमें मालूम नहीं है.’’

‘‘और क्या जानती हो मैडम के बारे में?’’

‘‘यही कि अखबार में काम करती थीं. साहब दुबई में काम करते हैं, महीने 2 महीने में आते थे… कभी मैडम भी चली जाती थीं. बड़े अच्छे…’’

‘‘प्रेमलता के बारे में जो भी जानती हो विस्तार से बताओ?’’

दया के चेहरे पर क्रोध और घृणा के भाव उभरे. बोली, ‘‘बस इतना ही जानते हैं

कि वे मैडम की बचपन की सहेली थीं. बावरी सी हो जाती थीं मैडम इन्हें देखते ही. जिस छुट्टी के रोज प्रेमलता अचानक दिन में आ जाती थीं, तब चाहे कितना भी काम पड़ा हो उन के आते ही मैडम हमें अपने कमरे में जाने को कह देती थीं यह कह कर कि जब तक न पुकारें आना मत.’’

‘‘प्रेमलता अकसर आती थीं?’’

‘‘हां, रात को भी यहीं रुकती थीं. मैडम भी जाती थीं उन के घर. औफिस से फोन कर के कह देती थीं कि आज प्रेम के घर जा रही हूं. सुबह आऊंगी. दोनों ही नौकरी करती थीं. सो दिन में तो फुरसत होती नहीं थी.’’

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‘‘साहब की दोस्ती भी थी प्रेमलता से?’’

‘‘पता नहीं. उन के आने पर तो जब कोई दावत होती थी तभी आती थीं वह और दावत में तो साहब सब से ही हंस कर बात करते हैं.’’

‘‘साहब और मैडम में कभी झगड़ा हुआ प्रेमलता का नाम ले कर?’’

‘‘हमारे साहब व मैडम में कभी झगड़ा नहीं होता था साहब.’’

‘‘माफ करिएगा इंस्पैक्टर, आशा मैडम और दिलीप सर जैसे संभ्रांत दंपती नौकरों के सामने नहीं झगड़ते,’’ स्नेहा बोली, ‘‘और फिर उन के झगड़े का प्रेमलता की हत्या करने से क्या संबंध?’’

‘‘मेरे हर सवाल का संबंध हत्या के कारण से है. आप कहिए. आप को मिला कुछ?’’ देव ने पूछा.

‘‘प्रेमलता के बारे में कुछ नहीं, न ही ऐसा कुछ जिस के बारे में मुझे न मालूम हो.’’

‘‘इस में मैडम की व्यक्तिगत फाइलें भी तो हो सकती हैं?’’

‘‘अगर मैं कहूंगी कि लगता तो नहीं, तब भी आप अपनी शिनाख्त तो करेंगे ही सो कर लीजिए,’’ स्नेहा मुसकराई, ‘‘वैसे मैडम के लैपटौप से ज्यादा प्रेमलता का लैपटौप और ड्राइवर वगैरा इस तहकीकात में मदद कर सकते हैं आप की.’’

देव मुसकराया, ‘‘यहां आने से पहले ही मैं ने अपने सहायक वसंत को प्रेमलता के बंगले पर भेज दिया था और कमिश्नर साहब प्रेमलता के स्टाफ को बुलवा कर उस का औफिस खुलवाने की व्यवस्था करवा रहे हैं. आप ने भी सुना होगा, प्रेमलता ने जातेजाते अपने ड्राइवर को यहां रुकने और पुलिस से सहयोग करने को कहा था. अभी लेंगे उस का सहयोग.’’

तभी स्नेहा का मोबाइल बजा, ‘‘ओके सर… बौडी तो पोस्टमार्टम के लिए ले गए… पुलिस पूछताछ कर रही है. प्रेमलता फिलहाल तो सहयोग नहीं कर रही,’’ मोबाइल बंद कर के स्नेहा ने देव की ओर देखा, ‘‘दिलीप सर का फोन था. वे प्लेन में बैठ चुके हैं और 2 बजे तक पहुंच जाएंगे. मैं एअरपोर्ट जाऊंगी उन्हें लाने.’’

‘‘मेरा विभाग पासपोर्ट, कस्टम और सामान लाने की औपचारिकताएं संभाल लेगा. दिलीप को हम प्लेन से निकलते ही अपने साथ ले आएंगे,’’ देव ने कहा, ‘‘बेहतर होगा आप हमारे साथ चलें.’’

स्नेहा ने सीधे उस की आंखों में देखा, ‘‘आप को दिलीप सर पर शक है?’’

‘‘फिलहाल तो नहीं,’’ देव ने बगैर पलकें झुकाए कहा, ‘‘वैसे शक आप कर रही हैं मेरी सहृदयता पर… एक शोकाकुल व्यक्ति की सहायता कर रहा हूं मानवता के नाते.’’

‘‘ओह सो नाइस औफ यू… रास्ते में पूछताछ नहीं करेंगे?’’ स्वर में व्यंग्य था या जिज्ञासा, देव समझ नहीं सका.

‘‘पहले आप दोनों को बात करने दूंगा. फिर मौका देख कर सवाल करूंगा, क्योंकि बगैर सवाल किए तो इस हत्या की वजह पता चलने से रही और जिस के पास इस सवाल का जवाब है वह जवाब देने से रही. सो यहांवहां सवाल कर के ही अटकल लगानी होगी, मुझे भी और आप को भी,’’ देव ने कहा और फिर स्नेहा को भृकुटियां चढ़ाते देख कर जल्दी से बोला, ‘‘वजह की तलाश तो मेरे से ज्यादा आप को है, क्योंकि आशाजी आप की…’’

‘‘आशाजी मेरी बौस ही नहीं, मेरी बड़ी बहन की तरह भी थीं,’’ स्नेहा ने रुंधे स्वर में बात काटी, ‘‘बड़े प्यार से या यह कहिए बड़े मनोयोग से संवार रही थीं मेरा कैरियर. उन जैसी सहृदया, शालीन महिला की हत्या क्यों हुई और वह भी उन की प्रिय सखी के हाथों, यह जानने को मैं वाकई में बेचैन हूं.’’

‘‘मैं समझ सकता हूं. अच्छा, यह बताइए प्रेमलता आप के औफिस में भी आया करती थीं?’’

‘‘कभीकभार. या फिर उस सार्वजनिक छुट्टी को जब उन की तो छुट्टी रहती थी, लेकिन हमारा औफिस खुला रहता था. तब वे दोपहर को मैडम को लेने आती थीं. स्विमिंग या किसी रिजोर्ट वगैरा में ले जाने को, बिलकुल किसी स्नेहिल बहन या अभिन्न सहेली की तरह और आज उसी सहेली ने बेबात उन का खून कर दिया,’’ स्नेहा का स्वर फिर रुंध गया.

देव ने कुछ देर उसे संयत होने का समय दिया. फिर बोला, ‘‘वही बात तो हमें तलाश करनी है. प्रेमलता कोई कमसिन किशोरी तो है नहीं जो किसी बात पर चिढ़ कर भावावेश में आ कर किसी का खून कर दे.’’

‘‘खून तो भावावेश में आ कर नहीं सोचसमझ कर किया है इंस्पैक्टर. तभी तो वह रिवौल्वर ले कर आई थी. आप के सहायक ने मैडम के कौल रिकौर्ड चैक कर के बताया तो है कि कल रात मैडम ने देर तक प्रेमलता से बात की थी. आप ने भी गौर किया होगा प्रेमलता की आंखें चढ़ी हुई थीं जैसे रात भर जागी हो. ऐसा क्या कहा होगा मैडम ने जिस के कारण न प्रेमलता रात भर सो सकी और न आशा मैडम को आज का दिन देखने दिया,’’ स्नेहा सिसक पड़ी.

‘‘वही तो हमें पता लगाना है स्नेहाजी. अगर आप ऐसे विह्वल होंगी तो कैसे चलेगा,’’ वासुदेव ने कहा और फिर स्नेहा का ध्यान बंटाने को जोड़ा, ‘‘वैसे अच्छा है कि आप ने खोजी पत्रकार बनना पसंद किया हमारे विभाग में आना नहीं, वरना हम जैसों की तो खटिया ही खड़ी कर देनी थी आप ने.’’

देव हंसा, ‘‘बखिया तो हमारे विभाग की अभी भी उधेड़ती रहती हैं. लेकिन इस बार प्रेमलता की असलियत उधेड़ने में मुझे वाकई में आप की मदद चाहिए. चलिए, आशाजी के बैडरूम को देखते हैं, शायद कुछ मिल जाए.’’

‘‘जब आप खुद ही शायद कह रहे हैं तो फिर दिलीप सर के आने तक रुक जाइए. ऐसे मैडम के बैडरूम में जाना और वह भी उन के न रहने के बाद अच्छा नहीं लग रहा. आप चाहें तो बैडरूम सील कर दें,’’ स्नेहा हिचकिचाई, ‘‘मैं प्रेमलता का घर देखना चाहूंगी.’’

‘‘चलिए. वासुदेव, तुम खयाल रखना कोई किसी चीज से छेड़छाड़ न करे. अगर कोई खास फोन हो तो मुझे बता देना,’’ कह देव उठ खड़ा हुआ, ‘‘बजाय इस के कि आप पुलिस की गाड़ी में चलें, मैं आप के साथ आप की गाड़ी में चलता हूं. फिर उसी में एअरपोर्ट चले जाएंगे.’’

प्रेमलता के सरकारी बंगले पर वसंत एक औफिसनुमा कमरे में बैठा कंप्यूटर चैक कर रहा था.

‘‘कुछ मिला क्या?’’ देव ने पूछा.

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वसंत ने मायूसी से सिर हिलाया, ‘‘रूटीन औफिस फाइलें सर. ऐसा कुछ नहीं जिस पर उंगली उठाई जा सके. लेकिन आई पैड में कविताएं भरी पड़ी हैं, शायद रोज ही एक कविता लिखती थीं महापौर…’’

‘‘कहीं उन्हीं कविताओं को छपवाने को ले कर तो झगड़ा नहीं हुआ था दोनों में स्नेहाजी?’’ देव ने वसंत की बात काटी.

‘‘संडे सैनसेशन में कहानियां और कविताएं न छापना मैनेजमैंट की पौलिसी है, जिस में मैडम कोई बदलाव नहीं कर सकती थीं,’’ स्नेहा ने वसंत के कंधे पर झुक कर आई पैड स्क्रीन को देखा, ‘‘और फिर ये कविताएं तो हिंदी में हैं. संडे सैनसेशन में छापने का सवाल ही नहीं उठता? मैं इन्हें पढ़ सकती हूं?’’

‘‘जरूर,’’ वसंत ने आई पैड पकड़ाते हुए कहा, ‘‘प्राय: सभी कविताएं ‘मेरी उम्मीद’ या ‘मेरी उम्मीद की किरण’ को संबोधित हैं. बहुत अच्छी कवयित्री बन सकतीं थीं महापौर अगर उन्होंने उम्मीद को छोड़ कर कोई और विषय भी चुना होता.’’

‘‘लय और छंद का तालमेल बहुत बढि़या है, मेरी जिंदगी है उम्मीद मेरी बंदगी है उम्मीद…’’

‘‘हम यहां कविता पाठ करने नहीं, तहकीकात करने आए हैं,’’ देव ने टोका, ‘‘लगता है वसंत, तुम ने भी अभी तक कविताओं का रसास्वादन ही किया है?’’

‘‘आप ने ही आई पैड चैक करने को कहा था, तो उस में तो कविताएं ही हैं. टेबल टौप में पुरानी रूटीन फाइलें हैं और लैपटौप पर भी औफिस की कोई गोपनीय सूचना नहीं है. प्रेमलता का बैडरूम लौक्ड है. दूसरे कमरों में कुछ भी आपत्तिजनक नहीं है.’’

‘‘मास्टर की से बैडरूम खोल लो,’’ देव ने कहा, ‘‘स्नेहाजी, चलिए पहले बैडरूम देखते हैं.’’

बैडरूम में घुसते ही सब चौंक पड़े.

  • क्रमश:

Serial Story: बेवफाई (भाग-3)

आशा की बौडी लेने जब दिलीप अंदर गया तो देव ने स्नेहा से कहा, ‘‘इस ने तो मामला और भी उलझा दिया है.’’

‘‘आप को नहीं लगता कि प्रेमलता ने आशा के अपने पति के पास जाने के फैसले को खुद से बेवफाई समझा था?’’

देव चौंक पड़ा, ‘‘यह तो तभी हो सकता है जब हमारा शक उन दोनों के रिश्तों के बारे में सही हो और दिलीप की यह बात सुन कर कि आशा अब बच्चा चाहती थी हमारा शक तो बेबुनियाद लगता है.’’

‘‘हो सकता है आशा हैट्रो सैक्सुअल हो. हालां मेरा दिलीप सर के साथ रहना जरूरी है, लेकिन उस से भी जरूरी है रूपम से मिलना और वह भी उस के पति के औफिस से लौटने से पहले, क्योंकि उस के सामने रूपम ये सब बातें शायद न करे.’’

देव कुछ बोलता उस से पहले ही दिलीप आ गया, ‘‘मैं तो आशा के साथ ऐंबुलैंस में आऊंगा, आप लोग जाइए. स्नेहा, तुम सुबह से अपने घर से निकली हो सो अब घर जा फ्रैश हो आओ. मेरे घर पर आशा के बहनभाई पहुंच गए हैं और मेरे परिवार वाले भी पहुंचने वाले हैं. मैं ने यश को फोन किया था. उसी ने बताया सब.’’

‘‘ठीक है सर, मैं कुछ देर बाद आती हूं. टेक केयर,’’ स्नेहा का स्वर रुंध गया.

‘‘आप चलिए, मैं दिलीप के साथ रुकता हूं,’’ देव ने कहा, ‘‘मेरा नंबर ले लीजिए, अगर रूपम से कुछ सुराग मिले तो फोन करिएगा.’’

‘‘जरूर.’’

घर जा कर फ्रैश होने के बाद स्नेहा रूपम से मिलने गई. गैस्ट हाउस में रिसैप्शनिस्ट से मैसेज मिलते ही रूपम ने उसे अपने कमरे में बुला लिया.

‘‘मैं ने टीवी पर न्यूज सुनते ही आप के औफिस में फोन किया था पर आप मिली नहीं…’’

‘‘जी हां, मैं भी सीआईडी इंस्पैक्टर के साथ तफतीश में लगी हुई हूं. प्रेमलताजी ने यह कह कर कि आशा बेवफाई पर उतर आई थी, अटकलों का पिटारा तो खोल दिया और फिर यह कह कर कि यह व्यक्तिगत बात है चुप्पी साध ली. अब इतनी बड़ी शख्सीयत का मुंह खुलवाने का रास्ता पुलिस के आला अधिकारियों की समझ में नहीं आ रहा सो मामला आननफानन में सीआईडी के सुपुर्द कर दिया है,’’ स्नेहा सांस लेने को रुकी, ‘‘फिलहाल प्रेमलता के घर पर जो देखा उस से सीआईडी का सब से माहिर इंस्पैक्टर देव भी चकरा गया है और मैं इसी सिलसिले में आप की मदद लेने आई हूं.’’

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‘‘मेरी मदद?’’ रूपम ने भौंहें चढ़ा कर पूछा, ‘‘मैं भला क्या मदद कर सकती हूं? कई वर्षों बाद मैं पिछले सप्ताह आशा से मिली थी. प्रेम से तो अभी मुलाकात ही नहीं हुई. सो उस के घर में आप ने जो देखा उस के बारे में मुझे क्या पता होगा?’’

‘‘मैं बताती हूं, प्रेमलता के बैडरूम में आशा का लाइफसाइज पोट्रैट लगा था…’’

‘‘ओह नो,’’ और रूपम हंसी से लोटपोट हो गई. फिर अपने को संयत करते हुए बोली, ‘‘क्षमा करिएगा, मैं खुद पर काबू नहीं रख सकी.’’

‘‘यानी इस रिश्ते के बारे में आप को मालूम था?’’

‘‘मुझे ही नहीं प्रेम और आशा के साथ होस्टल में रहने वाली सभी लड़कियों को मालूम था. दोनों का कहना था कि हम दोनों का नाम लता है और लता का काम ही लिपटना होता है. सो हम दोनों एकदूसरे से लिपट कर अपने नाम को सार्थक करती हैं. उन के घर वालों को मालूम था या नहीं मैं नहीं जानती,’’ रूपम बगैर कुछ पूछे कहती गई, ‘‘लेकिन इन दोनों ने यह समझ लिया था कि एकदूसरे के साथ रहने के लिए पढ़ाई से बढ़ कर और कोई बहाना नहीं हो सकता.

सो दोनों एकदूसरे से लिपट कर पढ़ती रहती थीं और अव्वल आया करती थीं. सो घर वाले भी आगे पढ़ने में सहयोग दे रहे थे. एमए तक तो दोनों होस्टल में रहती थीं. फिर मेरी शादी हो गई. एक अन्य सहेली से सुना था कि दोनों लताएं विभिन्न व्यवसायिक कोर्स कर रही हैं और होस्टल के बजाय फ्लैट में ऐज ए कपल रह रही हैं.’’

‘‘फिर आशा मैडम ने शादी कैसे कर ली?’’

‘‘यह तो प्रेम ही बता सकती है.’’

स्नेहा ने मायूसी से सिर हिलाया, ‘‘जिस दृढ़ता से सुबह उस ने पुलिस अधिकारियों से कहा था कि इकबाले जुर्म के अलावा वह और कुछ नहीं कहेगी मुझे नहीं लगता कि वह कुछ बताएगी.’’ ‘‘आशा के अपने पति के साथ कैसे संबंध थे?’’

‘‘दिलीप सर जिस तरह से व्यक्ति हैं, उस से तो लगता है दोनों में बहुत प्यार था. वैसे तो मैडम व्यक्तिगत बात नहीं करती थीं, लेकिन जब भी दिलीप सर आने वाले होते थे तो उन के चेहरे और व्यवहार में भी उमंग, उत्साह और आकुलता होती थी और उन के जाने के बाद मायूसी किसी भी सामान्य दंपती की तरह.’’

‘‘मनोविज्ञान की ज्ञाता हो?’’

‘‘ज्ञाता तो खैर नहीं हूं, लेकिन एमए मनोविज्ञान में ही किया है.’’

‘‘तो फिर अपने इस ज्ञान का फायदा उठा कर प्रेम को इमोशनल ब्लैकमेल क्यों नहीं करतीं? उस से जा कर जेल में मिलो और बताओ कि

उस के घर की तलाशी लेने पर तुम्हें और इंस्पैक्टर को उस के और आशा के रिश्ते का पता चल गया है. अभी तक तो तुम ने इंस्पैक्टर को यह बात दिलीप को बताने से रोक लिया है, क्योंकि तुम नहीं चाहतीं कि आशा मरने के बाद पति की नजरों से गिरे. अगर प्रेम को वाकई में आशा से प्यार था तो वह भी अपनी प्यारी आशा की रुसवाई नहीं चाहेगी.’’

‘‘ठीक है इंस्पैक्टर देव से कहती हूं कि मुझे प्रेमलता से मिलने दें,’’ स्नेहा उठ खड़ी हुई, ‘‘आप के सुझाव के लिए बहुतबहुत धन्यवाद.’’

‘‘मैं भी आशा की रुसवाई नहीं चाहूंगी स्नेहा और उसे रोकने का एक ही तरीका है प्रेम का इमोशनल ब्लैकमेल. आशा की रुसवाई रोकने के लिए वह जरूर कुछ बोलेगी.’’

रूपम के कमरे से निकल कर स्नेहा ने देव को फोन कर रूपम के सुझाव के बारे में बताया.

‘‘सुझाव तो अच्छा है, लेकिन प्रेमलता तुम्हें देखते ही सतर्क हो जाएगी और फिर उस को इमोशनल ब्लैकमेल करना मुश्किल होगा. बेहतर होगा कि यह काम रूपम ही करे. तुम उन से आग्रह करो.’’

‘‘ठीक है इंस्पैक्टर, मैं अभी बात करती हूं.’’

थोड़ी हीलहुज्जत के बाद रूपम इस शर्त पर यानी कि वह प्रेमलता से मिलने जेल में नहीं जाएगी और न ही उस की और प्रेमलता की मुलाकात की खबर मीडिया में आएगी, क्योंकि हत्या की अभियुक्ता से उस की दोस्ती उस के पति की पदप्रतिष्ठा के अनुकूल नहीं होगी.

‘‘मैं आप की बात से सहमत हूं. इंस्पैक्टर से कहती हूं कि जेल से बाहर आप की मुलाकात करवाए.’’

बात देव की समझ में भी आई. अत: उस ने कमिश्नर साहब से बात की.

‘‘मैं आईजी प्रिजन से बात कर के प्रेमलता को मैडिकल चैकअप के बहाने जेल से बाहर भिजवाने की कोशिश करता हूं. ऐसी जगह जहां रूपम उस से बात कर सके और तुम चुपचाप उस बातचीत को रिकौर्ड कर लेना, लेकिन इस में समय लगेगा.’’

‘‘कोई बात नहीं सर, मीडिया को कह देंगे कि सिवा महापौर के इकबाले जुर्म के पुलिस और कोई सुराग जुटाने में अभी तक असफल है.’’

अगले रोज जब मीडिया आशा के अंतिम संस्कार की कवरेज में व्यस्त था, देव और स्नेहा रूपम को एक अस्पताल के वीआईपी ब्लौक में ले गए. एक वातानुकूलित कमरे में सोफे पर बैठी प्रेमलता अखबार पढ़ रही थी. उस के चेहरे पर थकान जरूर थी, पर उदासी या परेशानी नहीं.

रूपम को देख कर वह चौंक पड़ी. बोली, ‘‘अरे रूपम तू… आशी ने बताया तो था कि तू शहर में है, लेकिन यहां अस्पताल में कैसे? सब खैरियत तो है न?’’

‘‘खैरियत तूने छोड़ी ही कहां है?’’ रूपम के स्वर में विद्रूप था, ‘‘टीवी चैनलों और अखबारों की खबरों पर मुझे विश्वास नहीं हुआ कि तू आशा यानी अपनी जान की जान ले सकती है और अगर ले भी ली थी तो तुरंत अपनी जान भी क्यों नहीं दे दी? आत्मसमर्पण का ड्रामा कर के अपनी और आशा की दोस्ती को रुसवा क्यों किया?’’

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प्रेमलता के चेहरे पर ‘यह तो मैं ने सोचा ही नहीं था’ जैसे भाव उभरे लेकिन अगले ही पल संयत हो कर बोली, ‘‘तुझे यहां कैसे और किस ने आने दिया?’’

‘‘ससुराल की तरफ से रिश्तेदारी है एक आला पुलिस अफसर से. सो उन्होंने मेहरबानी कर दी.’’

‘‘मेहरवेहरबानी कुछ नहीं, यह जान कर कि तू मेरी सहपाठिन है मुझ से कुछ उगलवाने को भेजा है.’’

‘‘तेरे से अब कुछ उगलवाने की जरूरत किसे है? तेरे बैडरूम की तलाशी और दिलीप से मिली इस जानकारी ने कि आशा यहां की नौकरी छोड़ कर दुबई में बसने जा रही थी, तेरे इस बयान का कि यह बेवफाई पर उतर आई थी का रहस्य भी खोल दिया है, लेकिन बेचारी आशा की इज्जत की तो बुरी तरह धज्जियां उड़ा दीं और जांनिसार पति की नजरों में भी गिरा दिया. अच्छा सिला दिया आशा की दोस्ती का…’’

‘‘बगैर पूरी बात सुने अपना फैसला सुनाने की तेरी कालेज की आदत अभी तक गई नहीं,’’ प्रेम ने बात काटी.

‘‘आदतें कभी नहीं जातीं प्रेम,’’ रूपम व्यंग्य से हंसी, ‘‘तुझे और आशा को जो एकदूसरे की आदत पड़ चुकी थी वह आशा की शादी के बाद गई क्या?’’

‘‘सवाल ही नहीं उठता था. घर वालों के तकाजे से तंग आ कर आशी जब खाड़ी में बसे एक सैल्स ऐग्जीक्यूटिव से शादी कर रही थी तो मैं ने बहुत समझाया था कि ऐसी गलती मत कर, मेरे वाली चाल चल कर घर वालों को बहलाती रह.’’

‘‘तेरी कौन सी चाल थी?’’ रूपम ने दिलचस्पी से पूछा.

‘‘यही कि जब भावी वर से अकेले में मुलाकात हो तो उसे या तो हकीकत बता दो या कुछ ऐसा कहो कि वह स्वयं ही शादी से मना कर दे. मैं ने तो कई लोगों के साथ यही किया और फिर घर वालों से विनती की कि मेरी शैक्षिक योग्यता और नौकरी को देख कर हीनभावना से भर कर जब सभी मुझे नकार देते हैं, तो बारबार रिश्ते की बात चला कर मेरा तमाशा बनाना बंद कर दें. शादी जब होनी होगी हो जाएगी. बात उन की समझ में आ गई.

‘‘लेकिन आशी ने अपनी बीमार मां की खुशी के लिए दिलीप से शादी करनी मान ली कि दुबई में टूअरिंग जौब करने वाला, उसे न तो वहां ले कर जाएगा और न ही जल्दीजल्दी यहां आया करेगा. इसी बात पर वह तलाक ले कर उस से छुटकारा पा लेगी. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. दिलीप कुछ सप्ताह के अंतराल में आता था. तब आशी मुझ से कोई संपर्क नहीं रखती थी. चंद दिनों की बात होती थी. सो मैं बरदाश्त कर लेती थी. लेकिन अब तो दिलीप ने दुबई में अपने लिए ही नहीं आशी के लिए भी नौकरी ढूंढ़ ली थी, आशी इस से बेहद खुश थी. तू ही बता मेरे साथ मरनेजीने के वादे करने वाली आशी का मुझे इस तरह मझधार में अकेले छोड़ कर जाना मैं क्यों और कैसे बरदाश्त करती?’’

प्रेम थोड़ी देर रुक कर फिर बोली, ‘‘इस से पहले कि तू पूछे कि मैं ने यह बात आशी से क्यों नहीं पूछी, तो बता दूं कि पूछी थी और वह इतरा कर बोली कि मैं तो अब रुकने से रही क्योंकि मुझे समझ आ गया है कि जिंदगी की असल कमाई पति के संग गुजारा समय है और तेरे संग गुजारे क्षण जिंदगी का बोनस. बहुत लूट लिया बोनस का मजा अब कुछ कमाई करना चाहती हूं और तुझे भी सलाह देती हूं कि मुझे भूल कर तू भी असली कमाई कर, क्योंकि सिर्फ बोनस के सहारे तो जिया नहीं जा सकता. जीने के लिए तो सभी कमाते हैं सो तू भी कमा और शादी कर के मेरी तरह जिंदगी और घरगृहस्थी का पूरा मजा लूट.’’

‘‘किस से शादी करूं?’’ मेरे यह पूछने पर आशी कुछ देर तो सोचती रही, फिर बोली कि तू ने बताया था कि 5 सितारा होटलों की शृंखला का मालिक अमन तेरे पीछे करोडों रुपए ले कर घूम रहा है कि तू उस के यहां बन रहे होटल में कुछ बोरवैल वगैरा खुदवाने की अनुमति दे दे, उस से क्यों नहीं शादी कर लेती? या कहे तो दुबई में कोई अरब शेख ढूंढ़ूं तेरे लिए.

‘‘बता नहीं सकती रूपम कि कितना गुस्सा आया आशी की इस बेवफाई या बेहयाई पर. देखने में मैं आशी से 21 ही हूं, कितने लड़के मरते थे कालेज में मुझ पर तुझे मालूम ही है और बाद में भी एक से बढ़ कर एक रिश्ते आते रहे मेरे लिए जिन्हें मैं ने आशी के नाम पर कुरबान कर दिया और आज वही आशी मुझे बदचलन अमन या किसी अनजान अरब शेख से शादी करने को कह रही थी. पूरी रात उबलती रही गुस्से में, किसी तरह सुबह का इंतजार किया और बस…’’

‘‘मैं तेरी मनोस्थिति समझ सकती हूं प्रेम. जो हो गया उस के लिए तुझे दोष नहीं दूंगी, लेकिन तेरी और आशा की अच्छी दोस्ती होने के नाते इतनी विनती जरूर करूंगी कि अब चुप रह कर अपने और आशा के रिश्ते की मीडिया और समाज में छीछालेदर मत करवा. आशा को रुसवाई से बचाने के लिए अपनी इस ख्याति को कि तू एक निहायत ईमानदार और कर्त्तव्यपरायण महापौर है लगा दे दांव पर और सिद्ध कर दे कि आशा भी एक कर्त्तव्यनिष्ट पत्रकार थी,’’ रूपम ने चुनौती के स्वर में कहा.

‘‘कैसे?’’ प्रेम ने भृकुटियां चढ़ा कर पूछा.

‘‘तू ने अभी बताया था न कि कोई अमन तुझे लाखों की रिश्वत दे रहा था और भी कई लोग आते होंगे ऐसे प्रस्ताव ले कर?’’ रूपम ने पूछा.

‘‘हां रोज ही.’’

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‘‘तो बस भुना किसी ऐसे प्रस्ताव को. कुबूल कर ले कि आशा ने तुझे किसी के ऐसे प्रस्ताव को स्वीकार करते सुन लिया था और वह इस सनसनीखेज खबर को अपने अखबार में छापने पर अड़ी हुई थी,’’ रूपम ने उकसाने के स्वर में कहा, ‘‘तेरे इस बयान के बाद पुलिस तेरे और आशा के रिश्ते को नजरअंदाज कर तेरी रिश्वतखोरी को उजागर कर देगी.’’

‘‘तू ठीक कहती है रूपम. हत्यारिन के रूप में तो बदनाम हो ही चुकी हूं अब क्यों न भ्रष्ट बन कर आशी को ही नाम और सम्मान दिला दूं,’’ प्रेम ने उसांस ले कर कहा.

‘‘शाबाश, जमी रहना इस फैसले पर,’’ कह कर रूपम बाहर आ गई. बराबर के कमरे से इंस्पैक्टर देव और स्नेहा भी बाहर आ गए.

‘‘वाह रूपमजी, किस चुतराई से आप ने कत्ल की वजह उगलवाई और फिर उस से भी ज्यादा होशियारी से अपनी दिवंगत सहेली की बदनामी को रोका. आप की जितनी भी तारीफ की जाए कम है,’’ दोनों ने एकसाथ कहा.

‘‘2 भ्रमित सहेलियों के लिए इतना करना तो बनता ही था,’’ रूपम मुसकराई.

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