बिना कपड़े पहने सोना पसंद है?

बेशक पढ़ने या सुनने में आप को यह अजीब लगे लेकिन सच में न्यूड सोना यानी कि बिना कोई वस्त्र पहने सोना फायदेमंद है. बड़ेबड़े वैज्ञानिक चिकित्सकों ने यह दावा किया है कि वस्त्र पहन कर सोने की तुलना में बिना कोई कपड़े पहने सोने से अधिक लाभ होता है.

जी हां ,जब आप बिना कोई कपड़े पहन कर सोते हैं तो इस से आप को अनगिनत फायदे होते हैं, लेकिन लोगों को ऐसी आदत नहीं होती बल्कि पूरे कपड़े उतार कर सोना उन्हें अजीब लगेगा.

स्वास्थ्य विशेषज्ञों की मानें तो कपड़ों की वजह से शरीर की गरमी बाहर नहीं निकल पाती. इस वजह से सोने में परेशानी का अनुभव होता है. लेकिन, जब आप बिना कपड़ों के सोते हैं तो शरीर का तापमान कम हो जाता है, इस से एक नहीं बल्कि कई फायदे होते हैं जैसे तनाव कम होना, वजन घटना, त्वचा स्वस्थ होना, फंगल संक्रमण से बचाव आदि. आइए, इन फायदों के बारे में विस्तार से जानें:

हार्मोन वृद्धि को संतुलित करे:

बिना कपड़ों के सोने का फायदा हमारी बौडी में मौजूद हार्मोन्स और मेलाटोनिन को मिलता है. बौडी का न्यूनतम तापमान उस में मौजूद हार्मोन्स के विकास के लिए लाभप्रद साबित होता है. यह शरीर में मौजूद अतिरिक्त वसा को जलाने और फ्री रेडिकल्स से शरीर की रक्षा करने में मदद करते हैं. यह फ्री रेडिकल्स उम्र बढ़ने संबंधी लक्षणों से संबंधित होते हैं. यानी कि यदि आप कपड़ों के साथ सोते हैं तो समय से पहले बुढ़ापे के शिकार हो सकते हैं. इसलिए लंबे समय तक जवान बने रहने के लिए बिना कपड़ों के सोने के लाभ प्राप्त किए जा सकते हैं.

पतिपत्नी के लिए अधिक फायदेमंद:

बिना कपड़ों के अपने साथी के साथ बिस्तर में जाना आप के यौन जीवन में सकारात्मक प्रभाव डालता है. न्यूड रात भर बिस्तर पर सोते समय उन दोनों के शरीर एक दूसरे के कांटेक्ट में आते हैं जिस से दोनों की त्वचा को एकदूसरे का स्पर्श मिलता है. चिकित्सकों के अनुसार, ऐसा करने से बौडी औक्सीटौसिन नामक हार्मौन को रिलीज करती है जिस से अच्छा महसूस होता है और आप की नाइट लाइफ रोमांस और रोमांच भरी हो जाती है.
स्वीडिश रिसर्च का कहना है कि जब आप अपने पार्टनर के साथ निर्वस्त्र सोते हैं तो आप
के शरीर से निकलने वाले हार्मोन ऑक्सीटॉसिन आप के ब्रेन में पहुंचता है .इससे दिमागी स्ट्रेस दूर होता है. आप अच्छा महसूस करते हैं.

बेहतर नींद आती है:

यदि आप को रात में अच्छी नींद लेने में दिक्कत होती है तो बिना कपड़ों के सोने की कोशिश करें. निश्चित ही यह आप की अच्छी नींद में मदद कर सकता है. मेन हेल्थ स्लीप एडवाइजर डब्लू क्रिस्टोफर विंटर कहती हैं कि निर्वस्त्र होकर सोने से बेहतर नींद आती है सुबह उठकर तरोताजा महसूस करते हैं.
क्योंकि सोते समय शरीर के तापमान का ठंडा होना एक सुखद नींद की निशानी माना गया है, इसीलिए बिना कपड़े पहने कमरे की ठंडक को अपनी त्वचा तक पहुंचा कर एक अच्छी नींद पा सकते हैं.

प्राइवेट पार्ट्स के लिए:

आमतौर पर हम दिन भर अंडरगारमेंट्स पहने ही रहते हैं, इस से प्राइवेट पार्ट्स का टेंपरेचर शरीर के बाकी हिस्सों की तुलना में ज्यादा होता है. साथ ही, यहां नमी की भी आशंका बनी रहती है, जिस से कई बीमारियों के होने का खतरा बढ़ जाता है. बिना कपड़ों के शरीर को खुली हवा मिलती है जो बैक्टीरिया को और पसीने को आने से रोकती है. अटलांटिका सिटी के यूरोलॉजिस्ट ब्रायन स्टिक्स नर कहते हैं कि अगर यूरोलॉजी संबंधी इंफेक्शन से बचना है तो बिना अंडरवियर के सोना बेहद फायदेमंद है इससे जनन अंग में इंफेक्शन होने के चांस कम हो जाते हैंमहिलाएं खुजली और अन्य फंगल संक्रमण से बच सकती हैं. न्यूड सोना पुरुषों के शुक्राणुओं को स्वस्थ रखने में मदद करता है क्योंकि न्यूड होने से उन के शरीर में पर्याप्त ठंडक बनी रहती है. ब्रायन स्टिकसनर का कहना है की निर्वस्त्र सोने से स्पर्म भी बढ़ता है.

हेल्दी स्किन:

बिना कपड़े पहने सोना हमारी स्किन के लिए फायदेमंद होता है. यह स्किन को राहत देता है जिस से वह सांस ले पाती है और इस से ब्लड सर्कुलेशन भी बेहतर होता है. इस के अलावा, कम तापमान में सोना हमारी कोशिकाओं की रक्षा करता है और यह एंटी एजिंग का भी काम करता है जिस से हमारी स्किन बेदाग, निखरी और चमकदार नजर आती है.

बालों को सुंदर रखने में मदद:

पसीना बालों को नुकसान पहुंचा सकता है. पसीने से निकला नमक स्कैल्प को नुकसान पहुंचा सकता है और बालों को कमजोर बना देता है. अगर आप कपड़े उतार कर एकदम फ्री हो कर ठंडे तापमान में सोते हैं तो आप को कम पसीना आएगा, जिस से बाल सुंदर और मजबूत होंगे.

वजन कम कर सकते हैं:

आप को यह सुन कर आश्चर्य हो सकता है कि बिना कपड़ों के सोने से वजन कम किया जा सकता है, लेकिन यह सच है. यदि बिना कपड़ों के सोते हैं तो शरीर आसपास के तापमान के अनुसार आवश्यक गरमी उत्पन्न करता है. यहां तक कि सर्दियों के मौसम में भी. बिना कपड़ों के सोने का मतलब ठंडक प्राप्त करना नहीं है बल्कि आप का शरीर प्राकृतिक गरमी उत्पन्न करता है. इस से हमारी चयापचय कैलोरी का उपभोग होता है. इस तरह से अतिरिक्त जमा कैलोरी का उपयोग किए जाने पर हमारे शरीर का वजन कम हो सकता है. इस के अलावा, कम तापमान पर सोने से शरीर की वसा को कम करने में मदद मिलती है क्योंकि शरीर का प्राकृतिक रूप से ताप बढ़ने पर यह वसा जलती है. इस तरह से आप अपने वजन को कम करने के लिए बिना कपड़ों के बिस्तर में जा सकते हैं.

बीमारियों से बचाए:

यकीन नहीं होता? लेकिन यह सच है कि बिना कपड़ों के सोने से बहुत सी बीमारियों से बचा जा सकता है. अध्ययनों से यह साबित हो चुका है कि न्यूड सोने से कोर्टिसोल के स्तर को नियंत्रित किया जा सकता है जिस से उच्च रक्तचाप और कौलेस्ट्रोल लामिया की समस्याओं को रोकने में मदद मिल सकती है. रात के समय शरीर के तापमान में कमी से रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित किया जा सकता है जो कि एक अध्ययन से साबित भी हो चुका है कि बिना कपड़ों के सोना मधुमेह को रोकने में सहायक होता है. साल 2014 में जनरल डायबिटीज में छपे शोध के अनुसार निर्वस्त्र सोने से मेटाबॉलिज्म का स्तर ठीक रहता है .बिना कपड़ों के सोने से ब्लड फ्लो भी बेहतर होता है और इस से दिल की सेहत अच्छी रहती है.
अब आप समझ गए होंगे की कपड़े उतार कर सोना आपके शरीर के लिए कितना फायदेमंद हो सकता है लेकिन हमारे देश में कई लोग कपड़े उतार कर सोने में खुद को कंफर्ट फील नहीं करते यदि आप भी ऐसे लोगों में से हैं तो हल्के कपड़े पहने.

Winter Special: कालेज के बाद भी रहें तरोताजा

कालेज लाइफ में युवतियों में एकदूसरे से आगे निकलने की होड़ रहती है. बात चाहे पढ़ाई की हो, सुंदरता की हो या फिर हौट दिखने की, खुद को सब से बेहतर साबित करने के लिए युवतियां हरसंभव प्रयास करती हैं.

खुद को फिट रखने के लिए जहां जिम जौइन करती हैं, पार्कों में अकसर सुबह फिटनैस के तमाम उपाय अपनाती दिखती हैं, वहीं सुंदर लुक के लिए डिजाइनर कपड़े पहनती हैं. मौडर्न ड्रैसेज, मिड्डी, शौर्ट्स, जैगिंग्स का उन का सलैक्शन लाजवाब होता है. उन्हें लगता है कि बस वे सब पर छा जाएं. इस से उन के दोस्त बनेंगे जिस से वे अपने ग्रुप के साथसाथ अपने कालेज में भी चर्चित होंगी.

युवतियां अपने बाहरी रंगरूप को संवारने में ही आगे नहीं रहतीं, बल्कि अपनी जानकारी व इंटैलिजैंसी का लोहा मनवाने के लिए भी एकैडमिक रिजल्ट को सही रखने के साथसाथ तमाम कालेज ऐक्टिविटीज में बढ़चढ़ कर भाग लेती हैं.

स्मार्ट दिखने, आगे रहने, ऐक्टिविटीज में भाग लेने व खुद को ऐनर्जैटिक रखने के ये तमाम प्रयत्न कालेज लाइफ खत्म होते ही डंप हो जाते हैं और उन की दिनचर्या में ढीलापन व सुस्ती हावी हो जाती है.

आखिर ऐसा क्यों होता है कि कालेज खत्म होते ही युवतियों के स्वभाव में चेंज आने लगता है. ये ढीलापन ड्रैस सैंस में, फिटनैस में, नौलेज में, बात करने के तरीके में भी स्पष्ट झलकने लगता है. कारण बताते हुए आकांक्षा कहती है कि कालेज लाइफ के बाद भी ऐसा लगने लगता है कि हम ने न तो ड्रैस फ्रैंड्स को दिखानी है और न ही अपना लुक. सिर्फ घर में ही तो रहना है इसलिए अब तो नाइट सूट में ही पूरे दिन मजे से रहो. जब चाहे सो कर उठो, जो मरजी खाओ, जितना चाहे टीवी देखो, पढ़ो या नहीं पढ़ो, सब अपनी मरजी के अनुसार होता है.

  1. मनमरजी को कहें बाय

कहने को तो मरजी कालेज में भी चलती है, लेकिन तब वह कुछ हद तक हमारी पर्सनैलिटी में निखार लाती है. घर बैठ कर मनमरजी चलाना खुद के लिए फायदेमंद साबित नहीं होता.

पेरैंट्स जब इस सुस्ती व ढीलेपन पर बारबार टोकते हैं तो उन्हें भी वे नजरअंदाज करती हैं. सुस्ती व ढीलापन शरीर के साथसाथ मानसिक तनाव भी देता है, जिस से निकलना आसान नहीं होता.

अनुपमा सिन्हा कहती है, ‘‘कालेज के बाद आप रैस्ट मूड में हैं, आप का कमरा, ड्रैसेज, किचेन सब अस्तव्यस्त है, परंतु घर के बाकी सदस्य हमारे इस बदले लाइफस्टाइल से कितने डिस्टर्ब हो रहे हैं, यह समझने के मैनर्स तो हम में होने चाहिए,’’ लेकिन अनुपमा की बात काटते हुए शशांक बोला, ‘‘यार, हर समय, हर जगह तो हम खुद को नियमों में नहीं बांध सकते. आफ्टर औल, रिलैक्सेशन भी तो कोई चीज है, क्या हम इसे भी फुलफिल ऐंजौय नहीं कर सकते.’’

इन दोनों के मत को इस प्रतिनिधि ने कुछ यंगस्टर्स के सामने रखा तो अधिकतर गर्ल्स का यही कहना था कि ऐंजौय करने की भी एक सीमा होनी चाहिए. इसलिए मनमरजी को कहें बाय और अपनी पर्सनैलिटी को कहें हाय.

2. फिटनैस का फंडा

कुछ भी खानेपीने से परहेज करें

कालेज टाइम में आप ने अपना खाने का जैसा रूटीन बना रखा था उसी का पालन करें. ऐसा न हो कि जो मिला, जितनी बार मिला, खा लिया. अपने पेट को फैलता हुआ कुआं न बनाएं. फास्ट फूड से परहेज रखें, क्योंकि इस में कैलोरी की मात्रा बहुत अधिक होती है, जिस से मोटापा बढ़ता है. मोटापा बढ़ने से कौन्फिडैंस लैवल भी घटेगा.

पोषक तत्त्वों से भरपूर डाइट लें. फल व सब्जियों में रस व फाइबर होने से ये जहां आप को ऊर्जा प्रदान करेंगे, वहीं इन से आप को लंबे समय तक भूख भी नहीं लगेगी. जब आप पौष्टिक खाद्य पदार्थों का सेवन करेंगी तो इस से आप फिट तो रहेंगी ही साथ ही आत्मविश्वास भी बरकरार रहेगा.

दिल्ली विश्वविद्यालय के राजधानी कालेज से पासआउट स्नेहा ने बताया कि जब मैं कालेज में पढ़ती थी तो अपनेआप को फिट रखती थी, लेकिन जैसे ही कालेज की पढ़ाई खत्म हुई मैं ने खुद पर ध्यान देना ही छोड़ दिया, जिस का नतीजा यह हुआ कि कालेज में जो दोस्त मेरी फिटनैस और अपटुडेट रहने की तारीफ करते नहीं थकते थे आज वही मुझे बेवकूफ व झल्ली कहने से नहीं हिचकते. इसलिए मैं कालेज पासआउट युवतियां, जो घर में रहती हैं, से कहना चाहूंगी कि कालेज छूटने के बाद भी अपनी दिनचर्या पर विशेष ध्यान दें.

3. ऐक्सरसाइज जरूर करें

भले ही कालेज टाइम में आप बहुत ज्यादा ऐक्सरसाइज यह सोच कर न करती हों कि कालेज आनेजाने में ही काफी ऐक्सरसाइज हो जाती है, लेकिन ऐसी सोच कालेज के बाद सही नहीं है, क्योंकि घर पर रहने से शारीरिक व्यायाम कम ही हो पाता है जिस से मोटापा व अन्य बीमारियां बढ़ने की आशंका बनी रहती है, इसलिए ऐक्सरसाइज का रूटीन जरूर बनाएं.

रोजाना सुबह जल्दी उठ कर पार्क जाएं. पार्क जाने से जहां आप का ऐक्सरसाइज का रूटीन बनेगा वहीं आप का प्रकृति से लगाव भी बढ़ेगा. हो सकता है कि आप पार्क में जा कर ऐक्सरसाइज करने के मूड में न हों, ऐसे में आप जिम भी जौइन कर सकती हैं. लेकिन एक बात का ध्यान जरूर रखें कि ऐक्सरसाइज कभी न छोड़ें.

अंजू वर्मा का कहना है कि मैं कालेज टाइम में बहुत पतली थी. मुझे लगता था कि मैं हमेशा ऐसी ही रहूंगी, इसलिए मैं ने कालेज के बाद ऐक्सरसाइज करना छोड़ दिया, जिस का रिजल्ट यह हुआ कि मैं मोटी हो गई. आज मुझे इस बात का बहुत पछतावा है. काश, मैं उसी समय संभल जाती तो आज मेरी ऐसी हालत न होती.

दिल्ली विश्वविद्यालय के गार्गी कालेज से ग्रैजुएट दीक्षा का कहना है कि मैं ने अपना वही रूटीन रखा जो मेरा कालेज टाइम में था. ऐसा मैं इसलिए भी कर पाई, क्योंकि हमारे परिवार में सभी का सुबह जल्दी उठ कर ऐक्सरसाइज करने का रूटीन है. इस से मैं अब भी वैसी की वैसी ही हूं.

4. वजन पर नियंत्रण रखें

हफ्ते में एक बार वजन जरूर कराना चाहिए ताकि अगर आप का वजन बढ़ रहा है तो उसे शुरुआती दौर में ही नियंत्रित किया जा सके.

अगर आप ने जिम जौइन कर रखा है तो वहां रोजरोज वजन तौल कर खुद को परेशान न करें, क्योंकि यदि वजन बढ़ता है तो तनाव भी बढ़ता है. यदि आप को लग रहा है कि आप वजन पर नियंत्रण नहीं रख पा रही हैं तो अपने जिम के डाइटीशियन से डाइट चार्ट बनवा लें. फिर भी अगर वजन कम न हो तो चिकित्सक की राय लें. इस प्रकार आप खुद को फिट रख पाएंगी. इस विषय पर खासतौर से ध्यान दें कि अनेक कंपनियों के आज सप्लिमैंट्स फूड्स के नाम से कुछ पेय पदार्थ मार्केट में हैं, जिन्हें सुबह और रात को लेने से नाश्ता व रात का खाना नहीं खाना होता है लेकिन कहीं ये पेय पदार्थ आप की सेहत से तो खिलवाड़ नहीं कर रहे हैं, इसलिए इन से सजग रहें.

5. स्मार्टनैस बरकरार रखें

खुद को समय के अनुसार ढालें. ऐसा न सोचें कि अब मुझे देखने वाला कौन है जो मैं कपड़ों पर या किसी अन्य चीज पर इतने पैसे खर्च करूं. स्मार्टनैस खुद के लिए भी बहुत महत्त्व रखती है. इस से आप कौन्फिडैंट भी फील करेंगी.

यहां स्मार्टनैस का मतलब सिर्फ कपड़ों से ही नहीं है बल्कि आप के बात करने के ढंग, भाषाशैली आदि से भी है. आप यह बात अच्छी तरह जानती हैं कि आज के युवक उन्हीं लड़कियों को पसंद करते हैं जो हर चीज में स्मार्ट हों इसलिए समय की मांग और खुद के लिए स्मार्टनैस को बरकरार रखें.

इस बारे में स्नेहा का कहना है कि मैं कालेज टाइम से ही अपनी स्मार्टनैस के लिए जानी जाती हूं. मेरे दोस्त मुझे स्मार्टी कह कर बुलाते थे. जब मैं ने कालेज छोड़ा तभी निश्चय कर लिया था कि मैं अपनी इस स्मार्टनैस को हमेशा बरकरार रखूंगी और मैं ने रखा भी. इसलिए हर किसी को हमेशा अपनी स्मार्टनैस का ध्यान रखना चाहिए.

6. रुचि वाले सब्जैक्ट की ट्यूशन पढ़ाएं

आप कालेज की पढ़ाई के बाद अपने ज्ञान को लौक न करें. आप ट्यूशन पढ़ा कर अपनी नौलेज को बरकरार रख सकती हैं. अगर आप में सीनियर क्लास के बच्चों को पढ़ाने का कौन्फिडैंस नहीं है तो प्राइमरी क्लास के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाएं. इस से आप का ज्ञान तो बढ़ेगा ही साथ ही घर बैठे आप की पौकेटमनी भी बन जाएगी. इस से आप आत्मनिर्भर भी बनेंगी. इस फैसले से आप के पेरैंट्स आप पर बहुत गर्व करेंगे.

इस संबंध में नेहा का कहना है कि कालेज के बाद जब मैं काफी समय तक खाली बैठी तो काफी बोरियत होने लगी साथ ही नकारात्मक विचार भी मन में आने लगे. तभी मेरे दोस्त ने मुझे ट्यूशन पढ़ाने की सलाह दी. उस की इस सलाह ने मेरी जिंदगी बना दी. आज मेरा अपना ट्यूशन सैंटर है और मैं महीने के 50 हजार रुपए कमा लेती हूं.

रेखा का इस संबंध में कहना है कि मेरी इंगलिश सब्जैक्ट  में खास रुचि है, लेकिन उस के बावजूद मैं ने अपनी इस क्षमता का फायदा नहीं उठाया, जिस का मुझे आज तक पछतावा है. मेरे दोस्त आज काफी आगे निकल गए हैं लेकिन मैं वहीं की वहीं हूं, सिर्फ सही निर्णय न लेने के कारण.

7. नौलेज अपडेट करती रहें

अगर आप पूरे दिन में 6 घंटे टीवी देख रही हैं तो उस में से 2 घंटे न्यूज, डिस्कवरी, नौलेज वाले चैनल्स जरूर देखें. इस से आप वर्ल्ड में घटित घटनाएं जान सकती हैं, साथ ही अगर आप किसी ऐग्जाम वगैरा की तैयारी कर रही हैं तो उस में भी आप को इस का काफी लाभ मिलेगा.

नौलेज अपडेट रखने का सब से बड़ा फायदा यह होता है कि आप समूह में बात करने से पीछे नहीं रहेंगी. जब आप को विषय की संपूर्ण जानकारी होगी तो आप अपना पक्ष भी रख सकेंगी. इस का सामने वाले पर भी अच्छा प्रभाव पड़ेगा. हो सकता है कि इस से आप को कहीं अच्छी नौकरी का अवसर भी मिल जाए.

इस संबंध में स्वीटी का कहना है कि मैं अपने कालेज की टौपर रही हूं, लेकिन कालेज के बाद मैं ने नौलेज अपडेट करने की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जिस का मेरी पर्सनैलिटी पर तो प्रभाव पड़ा ही, साथ ही मुझे कही नौकरी भी नहीं मिली.

8. बुक्स पढ़ती रहें

कालेज के बिजी शैड्यूल की वजह से अकसर ऐसा होता होगा कि आप कोर्स के अलावा अन्य लेखकों की किताबें नहीं पढ़ पाई होंगी. तो अब तो गोल्डन टाइम है, जितनी बुक्स पढ़ सकें, पढ़ें. बुक्स में जो तथ्य आप को रोचक लगते हैं उन्हें एक डायरी में नोट करती रहें. आप अपनी यह रोचक जानकारी फेसबुक व व्हाट्सऐप पर सब के साथ शेयर कर सकती हैं, अगर किसी लेखक की जीवनदर्शन संबंधी कोई बात आप के दिल को छू जाए तो उसे भी शेयर करना न भूलें, क्योंकि आपाधापी, भागदौड़, फुल टैंशन लाइफ में ऐसे थौट्स मन को सुकून देते हैं. बुक्स अपने फ्रैंड्स के साथ भी शेयर कर सकती हैं. जिस बुक को पढ़ रही हैं उस के औथर का इंटरनैट से जीवनवृत्तांत भी खंगाल डालिए, उन का लाइफस्टाइल भी आप की लाइफ को स्टाइल देगा.

9. हौबी क्लासेज जौइन करें

आप की जो हौबी हो उसे बढ़ाएं. जैसे खाना बनाना, सिंगिंग, डांसिंग आदि जो अच्छा लगता हो उस की क्लासेज जौइन करें. इस से आप बोर भी नहीं होंगी और कुछ नया भी सीखेंगी. भविष्य में यह आप के काम आएगा. खाली समय का सदुपयोग करने वालों की ही जीत होती है.

Winter Special: स्पर्म काउंट पर भारी पड़ती स्क्रीन टाइमिंग

बहुत से लोग हर वक्त मोबाइल पे चिपके रहते हैं. उन की यह लत उन्हें बहुत भारी पड़ सकती है क्योंकि हाल ही में अमेरिकन जरनल में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार हफ्ते में 20 घंटे से ज्यादा टीवी या मोबाइल फोन देखने से पुरुषों के स्पर्म प्रोडक्शन में 35% तक की कमी आ सकती है. रिपोर्ट के मुताबिक 1 दिन में 5 घंटे से ज्यादा टीवी देखने वाले लोगों के शरीर में स्पर्म काउंट में भारी कमी आती देखी गई.इस के ठीक उलट कंप्यूटर पर रोजमर्रा का औफिस का दिनभर काम करते रहने वालों के शरीर में ऐसी कोई कमी नहीं देखी गई.

ऐसे लोगों के न तो स्पर्म काउंट में कोई कमी देखी गई और न ही उन के शरीर में टेस्टोस्टेरौन के स्तर में कोई कमी आई. इस का एक कारण यह भी हो सकता है कि ऐसे लोग, जो बहुत ज्यादा टीवी देखते हैं, ज्यादा ऐक्सरसाइज नहीं करते हों और न ही हैल्दी खाना खाते हों, तो ये आदतें सीधे तौर पर फर्टिलिटी पर प्रभाव डालती हैं.इनफर्टिलिटी का बड़ा कारणटीवी या मोबाइल पर फिल्में देखने वालों का दिमाग एक तरह से काम करना बंद कर देता है.

जंक फूड के अत्यधिक सेवन और आलस भरे लाइफस्टाइल के चलते आजकल काफी लोग मोटापे का शिकार हो रहे हैं और यह इनफर्टिलिटी का एक बड़ा कारण बनता जा रहा है. मोटापे की वजह से पुरुषों और महिलाओं दोनों की कामेच्छा कम होती जाती है. मोटापा न केवल यौन संबंध बनाने की इच्छा में कमी लाता है, बल्कि इस के चलते सैक्स के दौरान जल्दी स्खलन होने की समस्या भी पेश आती है. इस के चलते सैक्सुअल परफौर्मैंस प्रभावित होती है क्योंकि लिंग में पर्याप्त उत्तेजना नहीं आ पाती, साथ ही अगर महिला मोटापे से पीडि़त है, तो उस स्थिति में सही तरीके से समागम भी नहीं हो पाता है.

कैन, पैकेट बंद फूड और हाई फैट युक्त चीजें बहुत तेजी से और बड़ी मात्रा में ऐसिडिटी पैदा करती हैं, जिस से शरीर के पीएच स्तर में बदलाव आता है. आलस भरे लाइफस्टाइल के साथ कैमिकल ऐडिटिव्स और ऐसिडिक नेचर वाला खानपान या तो स्पर्म सैल्स के आकार और उन की गतिशीलता को नुकसान पहुंचाता है या फिर इस की वजह से स्पर्म डैड हो जाते हैं.

शारीरिक अक्षमता‘ब्रिटिश जनरल औफ स्पोर्ट्स मैडिसन’ में प्रकाशित रिपोर्ट के तहत लैब ऐनालिसिस के लिए 18 से 22 साल की उम्र के 200 स्टूडैंट्स के स्पर्म सैंपल कलैक्ट किए गए. उन के विश्लेषण से यह पता चला कि सुस्त लाइफस्टाइल और स्पर्म काउंट में कमी का एकदूसरे से सीधा संबंध है. ज्यादा टीवी देखने वालों का औसत स्पर्म काउंट 37 एमएन माइक्रोन प्रति एमएल था, जबकि उन स्टूडैंट्स का स्पर्म काउंट 52 एमएन माइक्रोन प्रति एमएल था, जो बहुत कम टीवी देखते हैं.सुस्त लाइफस्टाइल और टीवी देखने के आदी लोगों के स्पर्म काउंट में सामान्य के मुकाबले 38% तक कमी पाई गई.

इस रिपोर्ट से यह भी साबित हुआ है कि अत्यधिक टीवी देखने वालों के हृदय में अत्यधिक आवेग के चलते फेफड़ों में खून का जानलेवा थक्का जमने और उस के चलते हार्ट अटैक से मौत होने की संभावना भी 45% तक बढ़ जाती है और टीवी या मोबाइल स्क्रीन के सामने हर 1 घंटा और बिताने के साथसाथ यह संभावना और भी बढ़ती जाती है.

हर चीज की एक सीमा हो कुछ रिपोर्ट्स में बताया गया है कि हर हफ्ते औसतन 18 घंटे की ऐक्सरसाइज करने से स्पर्म क्वालिटी बढ़ाई जा सकती है, लेकिन अत्यधिक ऐक्सरसाइज करने से भी स्पर्म क्वालिटी पर असर पड़ता है. देखने में आया है कि शारीरिक रूप से सक्रिय रहने वाले ऐसे लोग जो हफ्ते में 15 घंटे मौडरेट ऐक्सरसाइज करते हैं या कोई खेल खेलते हैं उन का स्पर्म काउंट शारीरिक रूप से कम सक्रिय रहने वाले लोगों की तुलना में 3-4 गुना तक ज्यादा रहता है.

टीवी या मोबाइल के सामने घंटों एकटक निगाहें रखने का सीधा संबंध शरीर में गरमी बढ़ाने से होता है. स्पर्म सैल्स ठंडे वातारण में ज्यादा अच्छी तरह पनपते हैं, जबकि शरीर के ज्यादा गरम रहने से वे ज्यादा अच्छी तरह नहीं पनप पाते हैं.जरूरत से ज्यादा ऐक्सरसाइज करना और लगातार टीवी देखना, दोनों ही शरीर में फ्रीरैडिकल्स के उत्पादन और उत्सर्जन को बढ़ावा देते हैं, जिस के चलते स्पर्म सैल्स मर जाते हैं, जिस का प्रजनन क्षमता पर सीधा असर पड़ता है.

Winter Special: आधुनिक इलाज से दांत होगें और भी मजबूत

चिकित्सा जगत में अब दांतों के आधुनिक उपचार में क्रांति आई है. दांतों के आधुनिक उपचार की मांग तो बढ़ी है, लेकिन जानकारी न होने के कारण कई मरीजों को इस का खमियाजा भुगतना पड़ता है. एक ही सेशन के दौरान होने वाली कई प्रक्रियाओं जैसे दांतों को सफेद करना, ब्लीचिंग, लैमिनेट, वेनीर, मसूढ़ों की सर्जरी इनेमेलोप्लास्टी आदि से लोगों को न सिर्फ संतुष्टि मिलती है, बल्कि बिना कारण के भी औसतन से अधिक हंसने लगते हैं. लेकिन इन प्रक्रियाओं के दुष्प्रभावों को जानने के बाद आप के लिए यह निर्णय करना आसान हो जाएगा कि आप बिना कारण कुछ दिन तक हंसना चाहते हैं या फिर हमेशा के लिए अपनी हंसी को अपने पास संजो कर रखना चाहते हैं.दांतों को सफेद कराना या ब्लीचिंग कराने की प्रक्रिया को एक सेशन मेें ही किया जा सकता है. लेकिन क्या आप इस के लिए उपयुक्त उम्मीदवार हैं?

सब के लिए यह जानना आवश्यक है कि दांतों पर ब्लीचिंग का असर सिर्फ कुछ हफ्तों तक ही रहता है इसलिए इसे बारबार और जल्दीजल्दी कराना पड़ता है. फिर हर बार उतनी चमक नहीं आती जितनी कि शुरुआत में आती है. इस का सब से बड़ा दुष्प्रभाव तो यह होता है कि बारबार ब्लीचिंग कराने से दांत कमजोर हो जाते हैं और आगे चल कर इन के जल्दी ही गिरने की आशंका रहती है. दांत जल्दी सड़ जाते हैं, खुरदुरे हो जाते हैं और दांतों के बीच फ्रेक्चर लाइन बन जाती है. तो क्या ये सब जानने के बाद आप मुसकराना चाहेंगे

अब कई आधुनिक तकनीकों केक आने से ब्लीचिंग के लिए सही सदस्यों का चयन कर पाना आसान हो गया है. एडवांस्ड पावर जूम भी एक ऐसी ही तकनीक है. इस के

दौरान प्रोफेशनल तरीके से दांतों को चमकाया जाता है. इस के शतप्रतिशत परिणामस्वरूप जादू जैसा असर देखने को मिलता है. शेड गाइड पर तुलना करने से पता चलता है कि यह दांतों को 6-8 शेड अधिक चमकदार बनाता है. इस का असर कम से कम दो सालों तक रहता है अन्यथा ब्लीचिंग या अन्य उत्पादों का इस्तेमाल करने से केवल एक या दो शेड ही चमक मिलती है व इस का प्रभाव केवल कुछ समय तक ही रहता है

  1.  लैमिनेट

लैमिनेट धातु से बने पतले कवर की तरह होते हैं जिन्हें पीले, भूरे दांतों की गंदगी, फ्लोराइड दाग आदि को छिपाने के लिए लगाया जाता है. यह पुरानी मगर विशष्ट प्रक्रिया है. लेकिन यहां भी वही सवाल उठता है कि क्या आप इस के लिए उपयुक्त उम्मीदवार हैं?

लैमिनेट कैप या क्राउन का बेहतर विकल्प माना जाता है. कैप के मुकाबले इस में दांतों को 75 % काटना पड़ता है. तकनीकी तौर पर इस प्रक्रिया के दौरान सामने से दांतों के आकार को केवल 0.5 मि.मी. से अधिक  हीं काटना पड़ता है. जबकि कैप लगाने के लिए दांतों के चारों तरफ से उसे 1.5 मि.मी. काटना पड़ता है. इस के अलावा कैप लगवाने वाले दांतों में पहले रूट कैनाल ट्रीटमेंट आरसीटी कराना पड़ता है. इस से दांत निष्क्रिय हो जाते हैं, उन तक कोई पौष्टिक आहार आदि नहीं पहुंचता और दांत जल्द ही कमजोर हो जाते हैं.

हालांकि कैप और लैमिनेट दोनों का खर्चा लगभग बराबर ही होता है लेकिन कैप के साथ आरसीटी कराने का खर्चा अलग से करना पड़ता है यानी कैप अधिक महंगा पड़ता है.

2. मसूढ़ों की सर्जरी या एनेमेलोप्लास्टी

हर कोई इन प्रक्रियाओं के लिए उपयुक्त नहीं हो सकता. इस से दांतों को नुकसान हो सकता है.

3. दांतों पर लगने वाले ब्रेसिस

चलिए किसी अवस्था के बारे में सोचते हैं. कोई लड़की जिस के दांत टेढ़ेमेढ़े हैं और 2-3 महीने में उस की शादी होने वाली है. वह अपने दांतों के लिए कोई उपचार ढूंढ़ रही है. लेकिन उसे लगभग हर दंत रोग विशेषज्ञ यही कहेगा कि ब्रेसिस लगाने की उस की उम्र समाप्त हो चुकी है. और अगर ब्रेसिस लगाए भी गए तो उन्हेें अपना परिणाम देने में लगभग 1 वर्ष का समय लगेगा. लेकिन यह एक मिथ्य है कि किशोर ब्रेसिस नहीं लगवा सकते या फिर हर केस में परिणाम आने में 1 वर्ष का समय लगेगा. यह उपचार किसी भी उम्र में किया जा सकता है. इस का परिणाम भी 3-4 महीनों में आ जाता है. लेकिन यह मरीज के ऊपर निर्भर करता है कि वह उम्र भर के लिए आरसीटी करा के नकली कैप लगा कर हरना है कि फिर उम्र भर के लिए प्राकृतिक मुसकराहट चाहिए. इस का निर्णय मरीज को सोचसम?ा कर करना चाहिए. अगर हम खर्चे की बात करें तो किसी को यह नहीं भूलना चाहिए कि ब्रेसिस का खर्चा लैमिनेट की तुलना में 50 से 70 % तक कम होता है.

4. मुसकराहट की बनावट

किसी भी दंत उपचार के लिए विज्ञान की बहुत बड़ी भूमिका होती है. लैमिनेट का आकार हर व्यक्ति व हर दांत के लिए अलग होता है. यह आप के चेहरे के आकार पर भी निर्भर करता है. अगर आप का चेहरा गोल, अंडाकार, लंबा, छोटा है और आप के दांत छोटेबड़े, चौड़े, पतले, टेढ़े या ?ाके हुए हैं या फिर ऊपरनीचे के दांत कम दिखते हैं या कई केसों में आगे के नीचे वाले दांत ऊपरी दांतों को बारबार रगड़ देते हैं जिस से ऊपरी दांत घिसने लगते हैं तो ऐसे में आसानी से ब्रेसिस लगाए जा रहे हैं.

दांतों की सुरक्षा या खूबसूरती की एक दंत रोग विशेषज्ञ जिसे स्माइल आर्किटेक्ट भी कहा जाता है, आज के लिए बहुत जरूरी है और कोई भी सौंदर्य उपचार इस के बिना पूरा नहीं है. दांतों के उपचार में अवेजेनेटिक का भी रोल रहेगा. आप के शरीर के जीन के कोड के अनुसार टूटे या सड़े दांतों को ठीक करना सर्जनों के लिए आम हो जाएगा. डा. थिमि और मितसैदीस, जो यूनीवर्सिटी औफ ज्यूरिक में हैं. अब दांतों के एनेमल और आप के शरीर के जीन पर काम कर रहे हैं.

– डा. राकेश वर्मा निदेशक, ब्रेसिस मल्टीस्पेश्यलिटी डेंटल क्लीनिक, गृहशोभा, नई दिल्ली

Winter Special: पत्नी का पेट पति की आफत बन जाएं तो क्या करें?

एक पत्रिका में एक समस्या छपी थी, ‘‘मेरी शादी को 3 साल हो गए हैं. मेरे मोटे पेट के कारण मेरे पति मेरी तरफ देखते भी नहीं. कृपया बताएं कि मैं क्या करूं, जो पति मेरे पेट को भूल कर मेरे करीब आ जाएं और मैं फिर से वैवाहिक सुख का आनंद ले पाऊं?’’

इसी तरह एक और समस्या थी. एक लड़की की 1 महीने बाद शादी होने वाली थी और वह अपना वजन घटाना चाहती थी. शादी के दिन वह अपने मोटापे को ले कर हंसी का पात्र नहीं बनना चाहती थी. इस के लिए उस ने टीवी में कैलोग्स स्लिम फैट का ऐड देख कर उसे नाश्ते में लेना शुरू कर दिया, जिस से वह बीमार पड़ गई. तब डाक्टर ने दुलहन बनने जा रही उस मुहतरमा को सही सलाह दी.

क्या आप भी दुलहन बनने जा रहीं और छरहरा बनना चाहती हैं? क्या यह सिर्फ विवाह तक के लिए करना चाह रही हैं? विवाह के बाद का क्या? उस के बाद जब भी आप खुद को आईने में देखेंगी तो आप को अपने थुलथुल बदन पर क्या शर्म महसूस नहीं होगी?

ऐसी कई लड़कियां होंगी, जो लड़का देखने आने तक से शादी तक स्लिम होना चाहती हैं. शादी के 1-2 साल बाद या कहें मां बन जाने के बाद इन सारे फौर्मूलों को बायबाय कह देती हैं.

  1. आफतें कैसीकैसी

रील लाइफ: शरत कटारिया द्वारा निर्देशित फिल्म ‘दम लगा कर हईशा’ में फिल्म की बेमेल जोड़ी की चर्चा है. ऐक्टर आयुष्मान खुराना उर्फ प्रेम निखट्टू की बीवी विशाल शरीर वाली इंटैलीजैंट दिखाई गई है. पति 10वीं फेल है पर पत्नी के मोटापे को ले कर बेहद शर्मिंदा रहता है. उसे फिक्र रहती है कि उस के दोस्त व बाकी लोग उस की मोटी बीवी के बारे में पता नहीं क्या सोचते होंगे. खैर, फिल्म के बीच में विवाद होने के बाद हैप्पी ऐंडिंग हो जाती है.

रीयल लाइफ: रोहन एक मल्टीनैशनल कंपनी में कार्यरत था. आए दिन कंपनी की गैटटूगैदर पार्टियां होती रहती थीं. ऐसे में जब रोहन औफिस की गैटटूगैदर में अपनी पत्नी मालिनी को ले जाता तो सामने व पीठ पीछे उस पर लोग मंदमंद मुसकराते. कारण था, बीवी का प्रैगनैंसी के बाद मोटा हो जाना. ‘जिस की बीवी मोटी उस का भी बड़ा नाम है.’ रोहन को इस तरह के न जाने कितने जुमले सुनने को मिलते. रोहन को पहले इन बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता था, पर बाद में उसे भी मालिनी के साथ पार्टी में जाने पर शर्मिंदगी महसूस होने लगी. फिर उस ने अकेले पार्टियों में जाने का फैसला लिया.

सैक्स और वजन: मोटे पेट वाली महिलाएं और पुरुष दोनों ही घर से बाहर भी और भीतर भी शर्मिंदगी का कारण बनते हैं. एक अध्ययन से पता चला है कि बाहर निकले पेट का संकोच सिर्फ बैडरूम में ही नहीं, बल्कि बाहर भी रहता है. प्यार की बात पर शरीर का जो पहला हिस्सा झिझक व अनफिट दिखता है, वह है बड़ा पेट. यह बड़ा पेट आप के प्यार के पलों का मजा कम कर देता है. ऐसे में आप जल्दी थक जाते हैं या आप की सांसें फूलने लगती हैं, प्यार करने की इच्छा नहीं होती और बाहर मन डोलने लगता है. इतना ही नहीं साथी को खुश न कर पाना तनाव को भी जन्म देता है.

मनचाही ड्रैस न दे पाना: शादी के बाद या फिर बच्चा हो जाने के बाद यह तो नहीं कि रोमांस खत्म हो जाए पर अगर बीवी मोटी हो तो पति की कई इच्छाएं मर जाती हैं जैसे अगर वह आप को कोई मनचाही ड्रैस देना भी चाहे तो या तो आप का साइज नहीं मिलेगा या फिर आप पर वह फबेगी नहीं. इस चक्कर में पति चाह कर भी पत्नी को अपनी मनचाही ड्रैस का सरप्राइज नहीं दे पाता.

कौंप्लैक्स का भाव: अगर आप की फिगर 36-24-36 से डबल हो जाए तो आप उम्र से भी बड़ी दिखने लगेंगी. ऐसे में आप के पति की उम्र भले ही आप से ज्यादा हो पर वह जवां दिखेगा. तब आप को कौंप्लैक्स फील होगा कि आप अपनी उम्र से बड़ी दिख रही हैं. इसलिए वेट लौस कर बन जाएं स्लिम ऐंड ट्रिम, पति की तरह एकदम फिट. ऐसा नहीं है कि औरत को मोटा होना अच्छा लगता है पर शादी हो जाने के बाद वह मान लेती है कि मोटी हो भी जाए तो क्या पति का प्यार कम थोड़े होगा. यह सोच गलत है.

2. लाइफस्टाइल है पेट पर भारी

यूनानी चिकित्सक हिप्पोक्रैट्स के अनुसार, सारी बीमारियां पेट से ही शुरू होती हैं. 2 दशक पहले हुए शोध के अनुसार पूरी तरह से फिट व हैल्दी रहने के लिए आंतों का स्वस्थ रहना बहुत जरूरी है. हमारे लाइफस्टाइल की वजह से हमारी आंतें प्रभावित होती हैं, क्योंकि हम हाई कैलोरी फूड और जंक फूड का सेवन बहुत ज्यादा करने लगे हैं. ऐसे में आंतों को स्वस्थ बनाए रखना बहुत आवश्यक है. मोटापा, लिवर में फैट जमना, सूजन होना, इरिटेबल बौवेल सिंड्रोम, अल्सर जैसी बीमारियां लाइफस्टाइल से जुड़ी होती हैं.

3. क्यों बढ़ता है मोटापा

नोवा स्पैश्यलिटी हौस्पिटल बैंगलुरु की डाइट ऐंड न्यूट्रीशियन कंसलटैंट डा. शीला कृष्णनन स्वामी ने बताया कि तनाव के कारण हमारी बौडी में एड्रीनेलिन और कार्टिसोल हारमोंस का स्तर बढ़ जाता है. इस से शरीर की कार्यप्रणाली प्रभावित होती है और पाचनतंत्र बिगड़ जाता है. प्रैगनैंसी के दौरान, हारमोंस असंतुलन आदि के कारण भी डिप्रैशन, नींद न आना या गर्भनिरोधक गोलियों के सेवन और मेनोपौज के कारण महिलाओं में हारमोंस के स्तर में तेजी से बदलाव आता है, जिस कारण पेट के आसपास चरबी बढ़ जाती है. इस के अलावा आजकल महिलाएं गर्भनिरोधक गोलियों का सेवन करती हैं, स्टेराइड हारमोन, डायबिटीज, अवसाद और ब्लडप्रैशर को कंट्रोल करने वाली दवाओं के कारण भी वजन बढ़ जाता है. नींद की कमी भी मोटापे का कारण हो सकती है. आजकल गैजेट्स का ज्यादा इस्तेमाल, शारीरिक सक्रियता में कमी, लिफ्ट का इस्तेमाल, बाहर खेलने के बजाय लैपटौप या टीवी से चिपके रहने से भी मोटापे का शिकार हो सकते हैं. आनुवंशिकता भी मोटापे की एक बड़ी वजह है.

4. मोटापे से होने वाली बीमारियां

यूनिवर्सिटी औफ मौंट्रियल के शोधकर्ताओं के अनुसार मोटे लोगों को वायु प्रदूषण से होने वाली बीमारियों का ज्यादा खतरा रहता है, क्योंकि ऐसे लोगों को सांस लेने के लिए ज्यादा हवा की जरूरत होती है. जिन लोगों का बीएमआई यानी बौडी मास इंडैक्स 18.5 से 25 तक हो उन्हें रोजाना 16.4 क्यूबिक मीटर हवा की जरूरत पड़ती है जबकि 35 से 40 बीएमआई वालों को 24.6 क्यूबिक मीटर हवा की. ऐसे में ज्यादा बीएमआई वालों को वायु प्रदूषण का ज्यादा प्रभाव पड़ता है. यह अध्ययन 2000 लोगों पर किया गया था. इस के अलावा मोटापे से शरीर पर वसा की ज्यादा परतें जम जाती हैं. आज दुनिया की 20 फीसदी आबादी मोटापे से ग्रस्त है. मोटापे से होने वाली बीमारियों में डायबिटीज, जोड़ों में दर्द, बांझपन, हार्ट फेल्योर, अस्थमा, कोलैस्ट्रौल, ज्यादा पसीना आना, हाइपरटैंशन आदि का खतरा बढ़ जाता है. खानपान की गलत आदतें या फिर लाइफस्टाइल में आए बदलाव और शारीरिक सक्रियता में कमी के चलते भी यह परेशानी हो रही है.

5. मोटापे के फायदे

  • हम कुछ मोटापे के फायदे बता रहे हैं. लेकिन हम यहां बिलकुल भी फबतियां नहीं कस रहे हैं: 
  • पति हमेशा पत्नी के बौडीगार्ड का काम करता है पर आप की मोटी बीवी तो खुद आप की बौडीगार्ड होगी.
  • मोटी बीवी कपड़ों को ले कर न ज्यादा वक्त लगाती है और न सिलैक्टिव होती है. ऐसे में न आप का टाइम ज्यादा वेस्ट होगा न डिजाइनर कपड़ों को ले कर आप को ज्यादा खर्च करने पड़ेंगे.
  • अगर पति खाने का शौकीन है तो मोटी बीवी उसे ज्याद टोकेगी नहीं, बल्कि उलटा फौरन साथ देने लगेगी.
  • पत्नी मोटी हो तो उसे जल्दी सीट मिल जाती है पर स्लिम पत्नी के लिए उस के पति को ही किसी से सीट मांगनी होगी.
  • कुछ लोगों को मोटी या कहें हृष्टपुष्ट बदन वाली लड़की ही पसंद होती है.
  • छरहरी बदन वाली पत्नी जहां ज्यादातर अपनी काया की देखरेख में लगी रहेगी वहीं मोटी बीवी पति का पूरापूरा ध्यान रखेगी.

6. कैसे घटाएं वजन

  • भूखे रह कर नहीं खा कर घटाएं वजन.
  • भोजन में फाइबर की मात्रा ज्यादा लें.
  • रोजाना व्यायाम करें.
  • स्टार्च का सेवन कम कर दें. हो सके तो इस का इस्तेमाल ही न करें.
  • ग्रीन टी का सेवन करें. चाय और कौफी बंद कर दें.
  • खाली पेट कतई न रहें. बीचबीच में यानी 3 घंटे के अंतराल पर कुछ पौष्टिक खा लें. ओट्स, बाजरा, गेहूं आदि का सेवन ज्यादा करें.
  • हरी सब्जियां ज्यादा से ज्यादा खाएं जैसे पालक, मेथी, सरसों आदि.

7. सर्जरी

पुष्पांजलि क्रासले हौस्पिटल दिल्ली, के सर्जन डा. दीपक कुमार के अनुसार बेहद मोटे यानी जिन्हें अपना वजन कम से कम 35 से 40 किलोग्राम तक घटाना है तो वे बैरिएट्रिक सर्जरी करा सकते हैं. लेकिन जिन्हें मधुमेह या फिर ब्लडप्रैशर हो उन्हें 32.5 या उस से ज्यादा बीएमआई होने पर सर्जरी की सलाह दी जाती है. अगर कोई बीमारी नहीं है तो 37.5 या उस से ऊपर के बीएमआई वालों की सर्जरी की जा सकती है. बैरिएट्रिक सर्जरी के 2 प्रकार हैं- पहली गैस्टिक स्लीव, इस में पेट के साइज को स्टैप्पल कर के कम दिखाया जाता है. इस सर्जरी से 80 फीसदी मोटापा कम कर दिया जाता है. इस सर्जरी के कराने के बाद पेट भराभरा सा लगेगा. यह परमानैंट सर्जरी है. दूसरा प्रकार है गैस्टिक बाईपास. इस में पेट के छोटेछोटे पाउच बना कर उन्हें सीधे इंटेस्टाइन से जोड़ा जाता है. यह सर्जरी कराने पर कम खाने से पेट भर जाता है. पेट का इस में कोई पार्ट रिमूव नहीं होता. चाहें तो बाद में पाउच की हटवा भी सकते हैं. एक अच्छी बात यह भी है कि इस सर्जरी को कराने के बाद मधुमेह के रोगियों को मधुमेह से छुटकारा पाने के चांसेज बढ़ जाते हैं.

Winter Special: फैमिली डाक्टर का साथ यानी बेहतर इलाज

आज की व्यस्त जिंदगी में हर व्यक्ति चाहता है कि वह और उस का परिवार हमेशा सुखी और स्वस्थ रहे. लेकिन आजकल गलत खानपान व अनियमित दिनचर्या के कारण लोगों में बहुत सी बीमारियां जन्म ले रही हैं और ये बीमारियां कभी भी किसी को भी हो सकती हैं. फैमिली डाक्टर क्यों जरूरी: इंडिया हैबिटैट सैंटर के कंसल्टैंट फिजिशियन डाक्टर अशोक रामपाल का कहना है कि कोई भी बीमारी दरवाजा खटखटा कर नहीं आती. इसलिए खुद को और अपने परिवार को बीमारियों से दूर रखने व स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए एक फैमिली डाक्टर का होना बहुत जरूरी होता है, जो समय पर सही इलाज कर सके या अच्छे डाक्टर के पास आप को रैफर कर सके. आप का फैमिली डाक्टर आप की और आप की फैमिली के लोगों की उम्र, समस्याएं वगैरह धीरेधीरे जान जाता है, इसलिए वह सभी का सही इलाज तो करता ही है, कोई गंभीर समस्या जैसे हार्ट की, लंग्स की या हड्डी की होने पर वह हार्ट सर्जन, कार्डियोलौजिस्ट या और्थोपैडिक सर्जन के पास रैफर कर देता है.

1.एक फिटनैस फ्रैंड: फैमिली डाक्टर को अगर फिटनैस फ्रैंड का नाम दें तो गलत नहीं होगा क्योंकि उसे आप के स्वास्थ्य के और बीमारी के बारे में पूरी जानकारी होती है. उस आप की पर्सनल हिस्ट्री पता होती है, इसलिए कौन सी दवा आप को सूट करेगी और किस से आप को साइडइफैक्ट होगा उसे शुरू से पता होता है. आप की समस्या के अनुसार ही वह आप का और आप के पूरे परिवार का इलाज करता है. इलाज बिना समय गंवाए: आप अपने फैमिली डाक्टर से कभी भी किसी समय अपना इलाज करा सकते हैं और बिना समय गंवाए आप नी पेन से ले कर हार्ट सर्जरी तक इलाज करवा कर स्वास्थ्य को बेहतर बना सकते हैं. किसी गंभीर बीमारी के होने पर यह डाक्टर तुरंत प्राथमिक उपचार कर आप को दूसरे डाक्टर के पास रैफर कर सकता है. इस से आप का इलाज समय रहते हो जाता है.

2.स्वास्थ्य भी और सलाह भी: एक फैमिली डाक्टर ही आप को सही सलाह दे सकता है कि किस तरह से इलाज कराएं क्योंकि कभीकभी एक छोटी सी बीमारी भी आप के अनदेखा करने पर बड़ी बीमारी बन जाती है इसलिए अपने फैमिली डाक्टर से बिना कुछ छिपाए उन्हें सही जानकारी दे कर खुद को स्वस्थ रखें. संपर्क कभी भी कहीं भी मुमकिन: आप अपने फैमिली डाक्टर से इतने फ्रैंडली होते हैं कि आप बिना झिझक उन से किसी भी समय फोन कर के या मिल कर अपनी समस्या बता सकते हैं. अगर आप कहीं बाहर हैं तो फोन द्वारा भी वे आप की बीमारी का इलाज बेहतर तरीके से कर सकते हैं. न पैसे की बरबादी न सेहत का नुकसान: फैमिली डाक्टर को आप के स्वास्थ्य के अलावा आप की फैमिली की आर्थिक स्थिति के बारे में भी पूरी जानकारी होती है, इसलिए वह इलाज उसी के अनुसार करता है. अगर किसी बड़ी बीमारी के लिए उसे कहीं रैफर भी करना पड़े, तो वह आप की आर्थिक स्थिति को देख कर ही यह करता है. इस से आप के पैसे की बरबादी नहीं होती और इलाज भी बेहतर हो जाता है.

3.फैमिली डाक्टर एक काउंसलर भी: आप का फैमिली डाक्टर एक काउंसलर के रूप में भी कार्य करता है, क्योंकि उसे आप की हिस्ट्री के बारे में पूरी जानकारी होती है. इसीलिए वह आप को कौन सी बीमारी है और उस की सही पहचान व सही इलाज के लिए जिस विशेषज्ञ की आप को जरूरत है, उसी के पास रैफर करता है. अगर आप को इस की जानकारी न हो तो आप को विशेषज्ञ मिलना मुश्किल हो सकता है. एक फैमिली डाक्टर आप को उचित सलाह दे कर आप को तनावमुक्त भी रखता है.

Winter Special: जाने मेनोपॉज के दौरान कैसे अपनी त्वचा का बचाव कर सकते हैं आप?

मेनोपॉज बढ़ती उम्र में जीवन का एक हिस्सा है. यह महिलाओं के शारीरिक, जातीय और सामाजिक पहलुओं को जोड़ता है. दुनिया में हर जगह जब महिलाओं की उम्र आधी हो जाती है तो वे अनियमित पीरियड्स या मेनोपॉज का अनुभव करती हैं. इन सब चीजों में डॉक्टरी मदद से कुछ राहत मिल जाती है. ईस बारे में बता रहे हैं-एलाइव वेलनेस क्लीनिक के मुख्य त्वचा रोग विशेषज्ञ और डायरेक्टर डॉ चिरंजीव छाबरा.

मेनोपॉज प्राकृतिक रूप से होने वाली एक ‘बायोलॉजिकल’ प्रक्रिया है. मेनोपॉज तब होता है जब ओवरीज (अंडाशय) हार्मोन का उत्पादन ज्यादा मात्रा में करना बंद कर देती हैं. ओवरीज टेस्टोस्टेरोन के अलावा वे फीमेल हार्मोन एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन का उत्पादन करते हैं. जब पीरियड्स आते हैं तो एस्ट्रोजेन और प्रोजेस्टेरोन उसमे मुख्य भूमिका निभाते हैं. जिस तरह से आपका शरीर कैल्शियम का इस्तेमाल करता है या ब्लड कोलेस्ट्राल लेवल को संतुलित करता है उसी के हिसाब से एस्ट्रोजन का उत्पादन भी प्रभावित होता है.

जब मेनोपॉज होता है तो ओवरी से फेलोपियन ट्यूब में अंडे रिलीज होना बंद हो जाते हैं और महिला तब अपने आखिरी मासिक चक्र में होती है.

मेनोपॉज के दौरान महिलाओं को होने वाली समस्याएं

मेनोपॉज के दौरान अनियमित रूप से पीरियड्स आते हैं, उम्र से सम्बंधित त्वचा पर लक्षण दिखते हैं, धूप से त्वचा के डैमेज हो जाती है, स्किन ड्राई हो जाती है, चेहरे के बाल नज़र आते हैं, बालों का झड़ना, झुर्रियाँ, फुंसियाँ, हार्ट तेज होना, सिरदर्द, मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द, और दर्द, सेक्स न करने की भावना होना, एकाग्रता में और याददाश्त सम्बन्धी परेशानी, वजन बढ़ना और कई तरह के मुँहासे होते हैं.

समस्याएं–

– गर्माहट का झोंका लगना (गर्मी का अचानक अहसास जो पूरे शरीर में हो).

– रात में पसीना आना और/या ठंड लगना.

– सर्विक्स में सूखापन; सेक्स के दौरान बेचैनी होना

– पेशाब करने की बार-बार जरूरत महसूस होना

– नींद न आने की समस्या (अनिद्रा).

– भावनात्मक बदलाव (चिड़चिड़ापन, मिजाज, हल्का डिप्रेशन).

– मुंह, आँख और स्किन का ड्राई होना

मेनोपॉज आने पर स्किन से सम्बंधित सावधानी–

विटामिन  D और कैल्शियम से भरपूर चीजें खाएं

मेनोपॉज संबंधी हार्मोनल बदलाव हड्डियों को कमजोर बना देते हैं. जिससे ऑस्टियोपोरोसिस होने का खतरा बढ़ सकता है क्योंकि कैल्शियम और विटामिन D की कमी हो जाती है. इसलिए अपनी डाइट में उन चीजों को शामिल करें जिसमे कैल्शियम और विटामिन डी प्रचुर मात्रा में हो.

 

ट्रिगर खाद्य पदार्थ खाने से बचें–

कुछ खाद्य पदार्थों से गर्म झोंके आने, रात को पसीना आने और मूड स्विंग से जोड़ कर देखा जाता है. जब रात में इसका सेवन किया जाता है, तो उनके ट्रिगर होने की संभावना और भी ज्यादा हो सकती है. कैफीन, शराब और मसालेदार भोजन से बचें.

 

हयालूरोनिक एसिड–

जब उम्र बढ़ती है तो शरीर में हयालूरोनिक एसिड कम हो जाता है, जिस वजह यह एसिड त्वचा और ऊतकों की सुरक्षा नहीं कर पाता है. इसलिए हयालूरोनिक जैल और सीरम लगाने की जरूरत होती है. प्रोफिलो  भी ऐसा ही एक इंजेक्टेबल स्किन रीमॉडेलिंग ट्रीटमेंट है. इस इलाज को तब अमल में लाया जाता है जब त्वचा को हाइड्रेटेड, जवान और स्वस्थ रखने के लिए हयालूरोनिक एसिड को सीधे त्वचा की परतों में इंजेक्ट किया जाता है. यह थेरेपी कई रूपों में आती है. इन थेरेपी में बायो रीमॉडेलर, स्किन बूस्टर, फ्रैक्शनल मेसोथेरेपी और लिप फिलर्स शामिल हैं.

 

फल और सब्जियों का भरपूर सेवन करें–

फलों और सब्जियों से भरपूर डाइट का सेवन  करने से मेनोपॉज के कई लक्षणों को रोकने में मदद मिल सकती है.  फल और सब्जियों में कम कैलोरी होती हैं. इनसे आप अपने वजन को भी संतुलित रख सकते हैं.

 

रिफाइन शुगर और प्रोसेस्स्ड फ़ूड का सेवन कम करें–

रिफाइंड कार्बोहाइड्रेट और शुगर से ब्लड शुगर के स्पाइक्स और ड्रॉप्स बन सकते हैं. इससे व्यक्ति थका हुआ और चिड़चिड़ा महसूस कर सकता है. यह मेनोपॉज के शारीरिक और मानसिक लक्षणों को बढ़ा सकता है. हाई-रिफाइंड कार्बोहाइड्रेट डाइट पोस्टमेनोपॉज़ल महिलाओं में डिप्रेशन के ख़तरे को बढ़ा सकते हैं.

अन्य तरीके–

महिलाएं इलाज के रूप में प्रोफिलो के माध्यम से हाइलूरोनिक एसिड का भी उपयोग कर सकती हैं. प्रोफिलो एक ऐसा तरीका है जिससे उम्र बढ़ने से सम्बंधित संकेतो और लक्षणों को मिटाया जा सकता है. कई महिलाएं जीवन के इस फेज में काफी खुश होती है क्योंकि उन्हें बच्चे पैदा होने की चिंता नहीं रह जाती है. इससे वे नई चीजें अपनाने में लग जाती हैं.

कुछ समय से मेरे घुटनों में दर्द हो रहा है, कहीं यह गठिया का लक्षण तो नहीं है?

सवाल-

मैं 40 वर्षीय कामकाजी महिला हूं. कुछ समय से मेरे घुटनों में दर्द हो रहा है. किसी-किसी दिन तो तकलीफ इतनी बढ़ जाती है कि रोजाना के कामकाज यहां तक कि चलनेफिरने में भी परेशानी महसूस होने लगती है. मन ही मन बहुत चिंतित हूं कि इतनी कम उम्र में ही घुटने बिगड़ गए तो आगे जीवन कैसे चलेगा, कहीं यह गठिया का लक्षण तो नहीं है? समस्या आगे न बढ़े, उस के लिए मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब-

क्या मुझे किसी डाक्टर के पास जाना चाहिए? 40 की उम्र में शुरू हुए घुटनों के दर्द के पीछे कई प्रकार के गठिया और घुटनों के तंतु व स्नायु पेशियों का चोटिल होना जिम्मेदार हो सकता है. रह्यूमेटाइड आर्थ्राइटिस, औस्टियोआर्थ्राइटिस, दूसरे कई तरह के आर्थ्राइटिस तो दोषी हो ही सकते हैं, कहीं उठतेबैठते, चलतेफिरते, दौड़तेभागते तंतु और स्नायु पेशियों को पहुंची ऐसी भी बड़ी समस्या बन जाती है. आप योग्य और्थोपैडिक सर्जन रह्यूमेटाइड से संपर्क करें. दोष का पता कर उपचार कराएं.

दिल्ली-एनसीआर में आर्थराइटिस की एक बड़ी वजह अंडरग्राउंड वौटर या बोरवेल के पानी का इस्तेमाल भी है. डाक्टरों का कहना है कि अंडरग्राउंड वौटर में फ्लोराइड की अधिक मात्रा से लोगों की हड्डियों के जौइंट खराब हो रहे हैं. उन्हें आर्थराइटिस और ओस्टियो आर्थराइटिस जैसी बीमारी हो रही है. देश के जिन इलाकों में अंडरग्राउंड वौटर में फ्लोराइड की मात्रा अधिक है, उनमें दिल्ली भी शामिल है.

इंडियन कार्टिलेज सोसायटी और आर्थराइटिस केयर फाउंडेशन के अध्यक्ष डा. राजू वैश्य ने बताया कि दिल्ली के वेस्ट, नौर्थ-वेस्ट, ईस्ट, नौर्थ ईस्ट और साउथ वेस्ट जोन में इस बीमारी के मरीज ज्यादा हैं. आए दिन लोग इलाज के लिए पहुंचते हैं. उन्होंने बताया कि फ्लोराइड युक्त पानी लगातार पीने से हड्डियां कमजोर हो जाती हैं. जोड़ों में कड़ापन आ जाता है. इसके बाद आर्थराइटिस और ओस्टियो आर्थराइटिस जैसी समस्याएं हो जाती हैं. गंभीर स्थिति में हाथ-पैर की हड्डियां टेड़ी हो जाती हैं. जब कोई ज्यादा फ्लोराइड वाला पानी लगातार पीता है तो उसे फ्लोरोसिस होने का खतरा भी होता है. जिन एरिया में पाइपलाइन की सप्लाई नहीं है, वहां बोरवेल का पानी खूब इस्तेमाल हो रहा है.

Winter Special: इस ठंड बचें जानलेवा बीमारियों से

दिसंबर का महीना आते ही पूरे उत्तर भारत में ठंड का प्रकोप बढ़ना शुरू हो गया है. इसके साथ ही आ गई हैं कई तरह की बीमारियां भी. सर्दियां आते ही जुकाम, खांसी और बुखार के अलावा अस्थमा, हाई ब्लड प्रेशर और ब्रेन स्ट्रोक के मरीजों की तादाद भी बढ़ने लगी हैं. खासकर दिल के मरीजों की संख्या में तो करीब 25 फीसदी तक इजाफा हुआ है.

डॉक्टर्स का कहना है कि सर्दी के मौसम में विशेष सावधानी की जरूरत है. डॉक्टर्स की मानें तो सर्दी में स्वस्थ बने रहने के लिए विशेष सावधानी बरतनी चाहिए, क्योंकि सर्दी में होने वाली बीमारियों के लगातार बढ़ने और पनपने का खतरा बना रहता है. ऐसे में जरूरी है सही समय पर सही इलाज. सर्दी के मौसम में शरीर को जितना बचकर चलेंगी, उतना ही आप बिमारियों से दूर रहेंगी.

सर्दियों में होने वाली बीमारियां

इस मौसम में लकवे की बीमारी का खतरा बढ़ जाता है, क्योंकि सर्दी में खून की नलियां सिकुड़ जाती हैं, जिससे खून का प्रवाह अवरुद्ध हो जाता है. इससे हाई ब्लड प्रेशर के मरीजों में लकवे का खतरा बढ़ जाता है.

ऐसे रखें अपना ध्यान

हृदय रोग विशेषज्ञ सर्जन डॉ. राकेश वर्मा ने बताया दिल और ब्लड प्रेशर के मरीज सुबह एकदम से ठंड में बाहर न जाएं. बिस्तर से उठने से पहले गर्म कपड़े पहनें और थोड़ा एक्सरसाइज करते हुए उठें. सर्दी के मौसम में सिर, हाथ पैर को पूरी तरह से ढंक कर चलें, ताकि सर्द हवाएं आपके शरीर के भीतर न जा सकें.

इससे बचने के लिए समय-समय पर ब्लड प्रेशर की जांच कराते रहना जरूरी है. अस्थमा के मरीजों को भी विशेष सावधानी बरतने की जरूरत है. ठंड के चलते अस्थमा के मरीजों में दौरे पड़ने की संभावना बढ़ जाती है. ऐसे मरीज अपनी दवाएं और इन्हेलर हमेशा अपने साथ रखें. ठंड के चलते धमनियां के सिकुड़ने से हार्ट अटैक का भी खतरा बना रहता है.

इन छोटे-छोटे उपायों को अपनाकर आप दिल की बीमारियों, अस्थमा और हाई ब्लड प्रेशर से होने वाली परेशानियों से बच सकते हैं.

एकल परिवार में जब एक हो जाए बीमार, तो क्या करें?

आधुनिकीकरण ने परिवार नामक इकाई का ढांचा बदल दिया है. अब पहले की तरह संयुक्त परिवार नहीं होते. लोगों ने वैस्टर्न कल्चर के तहत एकल परिवार में रहना शुरू कर दिया है. लेकिन परिवार के इस ढांचे के कुछ फायदे हैं, तो कुछ नुकसान भी. खासतौर पर जब ऐसे परिवार में कोई गंभीर बीमारी से पीडि़त हो जाए.

इस बाबत एशियन इंस्टिट्यूट औफ मैडिकल साइंस के नेफरोलौजिस्ट डाक्टर जितेंद्र कहते हैं कि न्यूक्लियर फैमिली का ट्रैंड तो भारत में आ गया, लेकिन इस टै्रंड को अपनाने वालों को यह नहीं पता कि वैस्टर्न कंट्रीज में न्यूक्लियर फैमिली में रहने वाले वृद्ध और बच्चों की जिम्मेदारी वहां की सरकार की होती है. वही उन्हें हर तरह की सुरक्षा और सुविधा मुहैया कराती है. यहां तक कि वहां पर ऐसे संसाधन हैं कि वृद्ध हो, युवा या फिर बच्चा किसी को भी विपरीत परिस्थितियों से निबटने में ज्यादा परेशानी नहीं होती.

डा. जितेंद्र आगे कहते हैं कि उन देशें में जब भी कोई बीमार पड़ता है और अगर उसे तत्काल चिकित्सा की जरूरत पड़ जाती है तब उसे ऐंबुलैंस के आने का इंतजार नहीं करना पड़ता, बल्कि ऐसे समय के लिए विशेष वाहन होते हैं जो बिना रुकावट सड़कों पर सरपट दौड़ सकते हैं और इन से मरीज को अस्पताल तक आसानी से पहुंचाया जा सकता है. लेकिन भारत में ट्रैफिक की हालत इतनी खराब है कि ऐंबुलैंस को ही मरीज तक पहुंचने में वक्त लग जाता है.

एकल परिवार में हर किसी को बीमारी से उबरने और उस से जुड़े सभी जरूरी काम स्वयं करने की आदत डालनी चाहिए. बीमारी के समय भी इस तरह आत्मनिर्भरता को कायम रखा जा सकता है: बीमारी के लक्षण को गंभीरता से लें: रोज की अपेक्षा कमजोरी महसूस कर रहे हों या फिर हलका सा भी बुखार हो तो उस के प्रति लापरवाही अच्छी नहीं. हो सकता है जिसे आप मामूली बुखार या कमजोरी समझ रहे हों वह किसी बड़ी बीमारी का संकेत हो. अपने फैमिली डाक्टर से इस बारे में चर्चा जरूर करें. फैमिली डाक्टर के पास जाने में अधिक समय न लगाएं. इस बात का इंतजार न करें कि घर का कोई दूसरा सदस्य आप को डाक्टर के पास ले जाएगा.

डाक्टर से बात करने में न हिचकें: अपने डाक्टर से खुल कर बात करें. आप क्या महसूस कर रहे हैं और आप को क्या तकलीफ है, इस के बारे में अपने डाक्टर को जरूर बताएं. फिर डाक्टर जो भी पूछे उस का सोचसमझ कर जवाब दें. बढ़ाचढ़ा कर भी कुछ न बताएं क्योंकि डाक्टर इस से भ्रमित हो जाता है. मरीज इस बात का ध्यान रखे कि वह अब आधुनिक समय में जी रहा है, जहां हर बीमारी का इलाज है. फिर चाहे वह कैंसर हो, टयूबरक्लोसिस हो या फिर जौंडिस. बीमारी पर खुल कर बात करने में डरने की क्या जरूरत?

प्रैस्क्रिप्शन को सहेज कर रखें: डाक्टर जो प्रैस्क्रिप्शन लिख कर दें उसे हमेशा संभाल कर रखें. हो सकता है कोई शारीरिक समस्या आप को बारबार रिपीट हो रही हो. इस परिस्थिति में आप डाक्टर को पुराना प्रैस्क्रिप्शन दिखा कर याद दिला सकते हैं कि पिछली बार भी आप को यही समस्या हुई थी. बारबार होने वाली बीमारी गंभीर रूप भी ले सकती है. यदि आप के डाक्टर को यह पता चल जाएगा तो वह इस की रोकथाम के लिए पहले ही आप को सतर्क कर देगा. सही डाक्टर चुनें: अकसर देखा गया है कि लोगों को तकलीफ शरीर के किसी भी हिस्से में क्यों न हो, लेकिन वे जाते जनरल फिजिशियन के पास ही हैं. जबकि जनरल फिजिशियन आप को सिर्फ राय दे सकता है. यदि आप को दांतों की तकलीफ है तो डैंटिस्ट के पास जाएं. हो सकता है कि आप को दांतों से जुड़ी कोई गंभीर बीमारी हो.

बीमारी टालें नहीं: अकसर लोग बीमारी के सिमटम्स नजरअंदाज कर देते हैं. मसलन, शरीर के किसी अंग में गांठ होना, बलगम में खून आना या फिर कहीं पस पड़ जाना. ये सभी बड़ी बीमारियों के संकेत होते हैं. लेकिन लोग इन्हें महीनों नजरअंदाज करते हैं. वे सोचते हैं कि कुछ समय बाद उन की तकलीफ खुदबखुद खत्म हो जाएगी. लेकिन तकलीफ जब बढ़ती है तब उन्हें डाक्टर की याद आती है. तब तक देर हो चुकी होती है. जिस बीमारी पर पहले लगाम कसी जा सकती थी वह बेलगाम हो जाती है इसलिए तकलीफ छोटी हो या बड़ी डाक्टर से एक बार सलाह जरूर लें. मैडिकल कार्ड अपने साथ रखें: यदि आप को कोई गंभीर बीमारी है, तो आप अपना मैडिकल कार्ड और डायरी अपने पास रखें. डाक्टर जितेंद्र कहते हैं कि किसी को सड़क पर चलतेचलते अचानक चक्कर आ जाए या दौरा पड़ जाए तो राहगीर सब से पहले मरीज की जेब की तलाशी लेते हैं ताकि मरीज से जुड़ी कोई परिचय सामग्री मिल जाए. यदि मैडिकल कार्ड रखा जाए तो किसी को भी पता चल जाएगा कि आप को क्या बीमारी है और बेहोश होने की स्थिति में आप को क्या ट्रीटमैंट दिया जाना चाहिए. यदि इस मैडिकल कार्ड में आप का पता और आप के परिचितों का नंबर होगा तो राहगीरों को उन से संपर्क करने में भी आसानी होगी. इस तरह समय रहते आप का इलाज हो सकेगा और परिचित लोग आप के पास हो सकेंगे.

मैडिकल डायरी भी है जरूरी: गंभीर बीमारी होने पर मरीज को अपने पास एक मैडिकल डायरी भी रखनी चाहिए. इस डायरी में मरीज को अपने सभी जरूरी टैस्ट, दवाएं और खानेपीने का रूटीन लिख लेना चाहिए. डाक्टर जितेंद्र इस डायरी का महत्त्व बताते हुए कहते हैं कि मैडिकल डायरी में मरीज अपने होने वाले टैस्टों की तारीख, दवाओं के खाने का समय और उन के खत्म होने और लाने की तारीख लिख सकता है. कई बार बीमारी की वजह से उसे सब कुछ याद नहीं रहता. इसलिए रोजाना इस डायरी को एक बार पढ़ लेने पर उसे ज्ञात हो जाएगा कि कब उसे क्या करना है.

आधुनिक तकनीकों का हो ज्ञान: वैसे तो आधुनिक युग में प्रचलित तकनीकों का ज्ञान सभी को होना चाहिए. लेकिन यदि किसी, का कोई गंभीर रोग है तो उस के लिए तकनीकों को जानना अनिवार्य हो जाता है. जैसे आजकल स्मार्टफोन का जमाना है, तो स्मार्टफोन मरीज के पास होना चाहिए और उस का इस्तेमाल भी मरीज को आना चाहिए. आजकल स्मार्टफोन में बहुत से एप्स हैं जो काफी मददगार हैं. मसलन, कैब बुकिंग एप्स, डायट अलर्ट एप्स, चैटिंग एप्स और विभिन्न प्रकार के ऐसे एप्स जो मरीज को सुविधा और उसे नई जानकारियां देने में काफी मददगार हैं.

डाक्टर जितेंद्र की मानें तो चैटिंग एप्स ऐसे हैं जो मरीज और डाक्टर के बीच इंटरैक्शन को बाधित नहीं होने देते. यदि मरीज को कोई छोटीमोटी जानकारी लेनी है तो वह डाक्टर से इस के जरीए बात कर सकता है. कई बार मरीज अपने डाक्टर से काफी दूर पर होता है, तो उस के लिए डाक्टर से प्रत्यक्ष रूप से मिल पाना मुमकिन नहीं होता. तब वीडियो कौन्फ्रैंसिंग के द्वारा मरीज अपने डाक्टर से परामर्श ले सकता है.नकद पैसा जरूर रखें: मरीज को घर में हमेशा कुछ नकद पैसा जरूर रखना चाहिए. यदि नकद पैसा रखने में असुरक्षा का एहसास हो तो मरीज अपने नाम से क्रेडिट या डेबिट कार्ड भी रख सकता है.

परिवार वालों का सहयोग भी जरूरी

एकल परिवार हो या संयुक्त परिवार, यदि परिवार में किसी को भी गंभीर बीमारी हो जाए तो मरीज को घर के सदस्यों का मानसिक और शारीरिक दोनों प्रकार का सहयोग चाहिए होता है. खासतौर पर एकल परिवार में मरीज खुद को ज्यादा अकेला महसूस करता है. एशियन इंस्टिट्यूट औफ मैडिकल साइंस में साइकोलौजिस्ट डाक्टर मीनाक्षी मानचंदा कहती हैं कि एकल परिवार में चुनिंदा लोग होते हैं, इसलिए सब की जिम्मेदारियां और काम बंटे होते हैं. घर में किसी के बीमार पड़ने से उन के लिए अतिरिक्त काम बढ़ जाता है. ऐसे में मरीज यदि अपनी छोटीमोटी चीजों का खुद ध्यान रख ले तब भी उस के परिवार के सदस्यों को ही करना होता है.

मरीज को बीमारी से लड़ने के लिए मानसिक तौर पर कैसे मजबूत बनाया जा सकता है, आइए जानते हैं:

बीमारी कितनी भी गंभीर हो मरीज को इस बात का भरोसा दिलाएं कि उस का अच्छे से अच्छा इलाज कराया जाएगा और वह पूरी तरह ठीक हो जाएगा.

मरीज को ऐसा न बनाएं कि वह आप पर निर्भर रहे. यदि वह डाक्टर के पास खुद जाना चाहे तो उसे अकेले ही जाने दें.

काम में कितने भी व्यस्त हों, लेकिन मरीज का दिन में 2 से 3 बार हालचाल जरूर पूछें. इस से मरीज को लगता है कि उस के अपने भी उस की चिंता कर रहे हैं.

यदि मरीज बीमारी से पूर्व औफिस जाता था तो उस का औफिस जाना बंद न कराएं. डाक्टर से सलाह लें कि मरीज औफिस जा सकता है या नहीं? मरीज को किसी भी छोटेमोटे काम में उलझा कर रखें, जिस से उसे मानसिक तनाव भी न  महसूस करे.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें