जानें क्या है ऑक्युलर हायपरटेंशन और इससे बचाव

आज के समय में चाहे बच्चे हो या बड़े हर कोई आँखों की समस्या से परेशान है कारण है ज्यादा देर तक मोबाइल, टीवी या कंप्यूटर का इस्तेमाल करना व हमारी डाइट में पौष्टिक खानपान की कमी होना. ऐसे में आँखों के मरीजों की समस्या लगातार बढ़ रही है.

ऑक्युलर हायपरटेंशन आंखों से जुडी एक दुर्लभ बीमारी है. जब हमारी आंख के फ्रंट एरिया में
मौजूद फ्लूएड पूरी तरह से नहीं सुख पाता है तो हमें यह परे शानी हो सकती है.

तो चलिए जानते है ऑक्युलर हाइपरटेंशन की समस्या है क्या व इससे कैसे हम अपनी आँखों को बचा सकते हैं.

समस्या को जाने

इस बीमारी को आंख का हाई ब्लड प्रेशर भी कहा जाता है.  आंख की पुतली के पीछे मौजूद एक
संरचना से जलीय पदार्थ निकलता है.  यह लिक्विड जब आंख से बाहर नहीं निकलता है तब आंख के सामने के एरिया में मौजूद फ्लूइड पूरी तरह से सूख नहीं पाता है जिस वजह से आंख के भीतर मौजूद प्रेशर जिसे इंट्राकुलर प्रेशर कहते है वह नार्मल से ज्यादा हो जाता है.  नार्मल िस्थति में यह प्रेशर 11 से 21 (mmHg) होता है .  इसके बढ़ने से ग्लूकोमा जैसी बीमारी भी हो सकती है या इसकी वजह से एक या दोनों आंखे प्रभावित हो सकती हैं। आंख में चोट लगना ,अनुवांशिक बीमारी का होना या स्टेरॉयड दवाओं , अस्थमा और अन्य गंभीर बीमारियों के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवाओं का सेवन भी इस बीमारी का कारण हो सकती हैं.

लक्षण व बचाव

शुरुवात में इस बीमारी के लक्षण पता नहीं चल पाते लेकिन यह समस्या गंभीर होने पर मरीजों में आंख में दर्द और लालिमा जैसी समस्याएं दिखाई देती हैं.  वैसे तो यह समस्या किसी भी उम्र में हो सकती है. लेकिन 40 साल के बाद इसका खतरा बढ़ सकता है.  जरूरी है कि नियमित रूप से आंखों की जांच कराएं व डॉक्टर की सलाह से ही दवाइयों का प्रयोग करें.

जानें पैदल चलने का सही तरीका क्या है

लेखिका- दीप्ति गुप्ता

वॉक करना यानि पैदल चलना एक शानदार एरोबिक एक्सरसाइज है और आपके मेटाबॉलिज्म को शुरू करने के लिए एक अच्छा तरीका है. बावजूद इसके कई लोग आजकल पैदल चलने से बचते हैं. थोड़ी दूरी तक भी जाना हो, तो समय बचाने के लिए टू या फोर व्हीलर का इस्तेमाल कर लेते हैं. जो गलत है. जर्नल मेडिसिन इन साइंस एंड स्पोट्र्स एंड एक्सरसाइज के अनुसार, पैदल चलने से पुरानी से पुरानी बीमारी को दूर करने में मदद मिलती है. अगर आप भी अक्सर एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए लिफ्ट या फिर व्हीकल का इस्तेमाल करते हैं, तो जरा पैदल चलने के फायदों के बारे में जान लीजिए. इसके तमाम फायदों के बारे में जानने के बाद आप पैदल चलने की कोशिश जरूर करेंगे.

पैदल चलने का सही तरीका क्या है-

पैदल तो हर कोई चल सकता है, लेकिन इसका भी एक विशेष तरीका होता है, जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं. अगर आप बहुत ज्यादा फिजिकली एक्टिव नहीं रहते , तो आपको पैदल चलने की शुरूआत 10 मिनट से करनी चाहिए. हर दिन अपनी वॉकिंग एक-एक मिनट बढ़ाते जाएं. इस तरह का अभ्यास आपको तब तक करना है, जब तक आपके पैदल चलने का समय 120 मिनट न हो जाए. जब 110 दिन बाद आपकी वॉकिंग कैपेसिटी 120 मिनट की हो चुकी हो, उस वक्त आप एक घंटा मॉर्निंग वॉक कर रहे होंगे और एक घंटा ईवनिंग वॉक कर रहे होंगे. यहां 120 मिनट का मतलब है, कि एक व्यक्ति को स्वस्थ रहने के लिए कम से कम इतने मिनट तो पैदल चलना ही चाहिए. इंटरनेशनल स्टैंडर्ड के अनुसार, एक व्यक्ति को 10 हजार कदम रोजाना पैदल चलना चाहिए.

पैदल चलने के फायदे –

वजन घटाए- पैदल चलना कैलोरी जलाने और वजन कम करने का एक प्रभावी तरीका है. रोजाना 30 मिनट तक पैदल चलने से वजन घटाने में बहुत मदद मिलती है, साथ ही आपका स्वास्थ्य भी ठीक बना रहता है.

दिल को रखे दुरूस्त- 

पैदल चलने से दिल के स्वास्थ्य में सुधार होता है. कई अध्ययनों से यह भी पता चला है कि पैदल चलने से हदय संबंधी घटनाओं का जोखिम 31 प्रतिशत तक कम हो सकता है. अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन के अनुसार हर वयस्क को सप्ताह में पांच दिन कम से कम 30 मिनट तक तेज चलना चाहिए.

ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करे- 

बेशक आपको पैदल चलने में आलस आता हो, लेकिन अपने बीपी को रेगुलेट करने के लिए आपको हर दिन वॉक करनी ही चाहिए. यह वॉक आप मार्केट जाते समय कर सकते हैं या ऑफिस में भी कर सकते हैं. हर दिन 10 हजार कदम चलने से रक्तचाप में गिरावट आती है और स्टेमिना भी बढ़ता है.

जोड़ों को मजबूत बनाए-

नियमित रूप से पैदल चलने या वॉक करने से जोड़ों के बीच चिकनाई में सुधार होता है साथ ही यह मांसपेशियों को मजबूत करने का काम करती  है. जिन लोगों को अक्सर घुटनों में दर्द रहता है, उनके लिए पैदल चलना बहुत फायदेमंद है. इससे पुरानी से पुरानी ऑस्टियोआर्थराइटिस की समस्या बहुत जल्दी खत्म हो जाती है.

फेफड़ों की क्षमता बढ़ाए-

रोजाना किसी न किसी रूप में पैदल चलने से आपके फेफड़ों की क्षमता बढ़ सकती है. दरअसल, जब आप चलते हैं, तो आप अधिक मात्रा में ऑक्सीजन ग्रहण करते हैं. अधिक मात्रा में ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड का यह आदान प्रदान आपके फेफड़ों के लिए बेहद फायदेमंद साबित होता है.

स्ट्रेस दूर करे- 

आप मानें या ना मानें, लेकिन हर दिन वॉक करने से आपका खराब मूड भी अच्छा हो जाता है. कई अध्ययनों में यह साबित हुआ है कि फिजिकल एक्टिविटी अवसाद को रोकने में मदद कर सकती है. इतना ही नहीं पैदल चलने से परिसंचरण में सुधार होता है, जिससे तनाव को कम करने में मदद मिलती है.

पैदल चलने के लिए टिप्स-

– यदि आप अभी-अभी पैदल चलना शुरू कर रहे हैं, तो शुरूआत में आप बहुत ज्यादा लंबी दूरी तक न चलें.

– हर दिन 10 मिनट तक चलने की कोशिश करें. धीरे-धीरे इस अवधि को बढ़ाकर 30 मिनट प्रतिदिन करें. फिर आप सुबह 30 मिनट और शाम को भी 30 मिनट पैदल चल सकते हैं.

पैदल चलना एक अच्छा शारीरिक व्यायाम है, तो बेहतरीन स्वास्थ्य लाभ प्रदान करता है. लेकिन, पैदल चलने से पहले और बाद में वॉर्म अप और कूल डाउन एक्सरसाइज जरूर करें.

जानें क्या है सीजनल इफेक्टिव डिसओर्डर  

क्या आप सैड यानि सीजनल इफेक्टिव डिसओर्डर के बारे में जानते हैं. जिसे मूड डिसओर्डर के रूप में भी जाना जाता है. जो हर साल एक विशिष्ट समय पर यानि आमतौर पर सर्दियों में ही होता है. जिसे विंटर ब्लूज भी कहते हैं. ये मौसम में आए बदलाव के कारण ही होता है. इसमें प्रभावित व्यक्ति डिप्रेशन, उदासी, नेगेटिव विचारों से घिरना , चिड़चिड़ापन, अत्यधिक थकान , शुगर क्रेविंग्स, रोजमर्रा के कार्यों में दिलचस्पी न लेना, लोगों से बेवजह खुद ब खुद दूरी बनाने लगता है. जिसके कारण वह अंदर ही अंदर इतना परेशान होने लगता है कि उसे समझ ही नहीं आता कि उसके साथ ऐसा क्यों हो रहा है. ऐसे में इस परेशानी की वजह को जानकर इससे समय रहते बाहर निकलना बहुत जरूरी होता है. ताकि व्यक्ति सामान्य जीवन जी सके. तो आइए जानते हैं कैसे-

कैसे पहचाने 

हर समय उदास रहना 

अकसर लोग मौसम में आए बदलाव के बाद जीवन में खुशी का अनुभव करने लगते हैं. सर्दी , गर्मी व मानसून सीजन आते ही वे खुशी से झूम उठते हैं. क्योंकि नई चीज , नया मौसम शरीर में हैप्पी होर्मोन को बढ़ावा देने का काम जो करता है. लेकिन खासकर सर्दियों में जब शरीर को सूर्य की रोशनी नहीं मिल पाती है तो उसे अपनी जिंदगी में अंधेरा , निराशा लगने लगती है. क्योंकि हमारी  किरकाडीएन rhythm का काफी हद तक कंट्रोल सूर्य की रोशनी से जुड़ा होता है. जो हममें खुशी व उदासी जैसे भावों के लिए जिम्मेदार माना जाता है. और इसकी कमी से व्यक्ति खुद को हमेशा उदास उदास  सा फील करने लगता है.

नेगेटिव सोचना 

शरीर में सारा खेल  हार्मोन्स का ही होता है. और जब इन होर्मोन्स में किसी वजह से गड़बड़ी होनी शुरू हो जाती है तो शरीर प्रोपर ढंग से कार्य करने में असमर्थ हो जाता है. ऐसे ही जब शरीर को सूर्य की रोशनी नहीं मिल पाती है तो शरीर में हैप्पी हार्मोन्स के स्तर  में कमी आने लगती है, जो न तो हमें खुश रहने देती है और फिर इसकी वजह से ही हम हर चीज को नेगेटिव नजरिए से देखना शुरू कर देते हैं , जो हमें परेशान करने का काम करती है.

हर काम से मन हटना 

जिस काम को अभी तक हम पूरे मन व लगन से करते थे, लेकिन धीरेधीरे उन चीजों से भी इंटरेस्ट हटना शुरू हो जाता है. ऐसा अकसर शरीर को पर्याप्त रोशनी नहीं मिलने की वजह से होता है. क्योंकि शरीर में विटामिन डी की कमी हमारी हड्डियों को कमजोर बनाने के साथ हमारे एनर्जी लेवल में भी कमी लाती है, जिसकी वजह से हमारा काम से मन हटने लगता है.

शुगर क्रेविंग जब शरीर को प्रोपर सनलाइट नहीं मिल पाती है , तो उससे मेलाटोनिन का लेवल बढ़ता है, जो हमें स्लीपी फील करवाने का काम करता है , तो वहीं सेरोटोनिन के लेवल में गिरावट आने से हमारे मूड पर प्रभाव पड़ने के साथ ये हमारी भूख को बढ़ाने का काम करता है. और ऐसे समय में हम हाई कार्ब्स फूड को ही खाने की इच्छा रखते हैं. जो हमारे वजन व हमारी हैल्थ को भी बिगाड़ने का काम करता है.

लोगों से दूरी बना लेना 

जब शरीर में हैप्पी हार्मोन्स के स्तर में कमी आती है और जिसकी वजह से हम खुद को उदास व नेगेटिव विचारों से घिरा हुआ पाते हैं तो हमें अपने आसपास लोग अच्छे नहीं लगते हैं. हम खुद ही लोगों से दूरी बनाने लग जाते हैं. हम उनकी हर बात को नेगेटिव नजरिए से देखते हैं , जो हमें खुद को लोगों से दूर रखने का काम करता है.

क्या हैं कारण 

किरकाडीएन rhythm – पर्याप्त मात्रा में सूर्य की रोशनी नहीं मिलने से व्यक्ति उदास जैसा फील करने लगता है. ऐसा अकसर  किरकाडीएन rhythm के कारण होता है, जो शरीर में नेचुरल व आतंरिक प्रक्रिया होती है, जो हमारे सोने व उठने के साइकिल को रेगुलेट करने का काम करती है. ये प्रक्रिया लगभग हर 24 घंटे में रिपीट होती है. और जब शरीर को पर्याप्त मात्रा में  सूर्य की रोशनी नहीं मिल पाती है , तो हमारी नींद प्रभावित होने के साथ हमारे मूड पर भी उसका सीधा असर पड़ता है, जो उदासी का एक बड़ा कारण बनता है.

सेरोटोनिन लेवल सन एक्सपोज़र शरीर में सेरोटोनिन के लेवल को रेगुलेट करने में मदद करता है, जिसे खुशी देने वाले होर्मोन के नाम से भी जानते हैं. साथ ही सन एक्सपोज़र की कमी से शरीर में विटामिन डी की भी कमी होने लगती है, जो सीधे तौर पर हमारे में उदासी व हमारे मूड को प्रभावित करने का काम करती है. इससे व्यक्ति ज्यादा नेगेटिव सोचना शुरू कर देता है, जो उसे डिप्रेशन की ओर धकेलने का काम करता है.

मेलाटोनिन लेवल मौसम में आए बदलाव के कारण  शरीर में मेलाटोनिन का लेवल प्रभावित होने के कारण हमारी नींद, मूड और हमारी ओवरआल परफोर्मन्स प्रभावित होती है. क्योंकि मेलाटोनिन होर्मोन हमारी नींद को सुचारू बनाने के लिए जिम्मेदार माना जाता है. लेकिन जब सर्दियों में सूर्य की पर्याप्त रोशनी नहीं मिलने के कारण यानि अकसर पूरे दिन बादल छाए रहने के कारण शरीर में मेलाटोनिन का उत्पादन काफी ज्यादा होने लगता है, तो पूरे दिन नींद आने के साथ हम कार्यों के प्रति इनएक्टिव होने लगते हैं , जो हमारी प्रोडक्टिविटी पर प्रभाव डालने का काम करती है.

क्या है समाधान 

नेचुरल लाइट  सैड यानि सीजनल इफेक्टिव डिसओर्डर से निबटने के लिए जितना संभव हो सके नेचुरल लाइट के संपर्क में रहें. इसके लिए सर्दियों में आप घर को धूप के समय खोलकर रखें, ताकि जितनी भी नेचुरल लाइट घर में आ सके आ पाएं. साथ ही कोशिश करें कि आप नेचुरल लाइट यानि सन एक्सपोज़र के लिए थोड़ी देर धूप में जरूर जाएं , ताकि आप सीजनल   इफेक्टिव  डिसओर्डर से खुद को दूर करने में कामयाब हो सकें.

अवोइड कार्ब्स अनेक रिसर्च के अनुसार, जो भी लोग  सीजनल  इफेक्टिव  डिसओर्डर की समस्या को फेस कर रहे होते हैं , उन लोगों में शुगर व कार्ब रिच फूड खाने की क्रेविंग ज्यादा बढ़ती हैं. इसलिए जरूरी है हैल्दी डाइट से खुद को अधिक ऊर्जावान बनाने के लिए.  विटामिन डी सप्लीमेंट भी इस तरह के डिप्रेशन से लड़ने में सहायक साबित होता है. इसलिए अच्छा खाकर आप खुद को हैल्दी रखें.

एक्टिव रहें   सीजनल इफेक्टिव डिसओर्डर के लिए हमारे आलस व थकान को भी जिम्मेदार माना जाता है. इसलिए अपने एनर्जी लेवल को बूस्ट करने व मूड को ठीक करने के लिए फिजिकल एक्टिविटी को रेगुलर अपने रूटीन में शामिल करना जरूरी है.  विंटर्स में घर में ही न रहें बल्कि कवर करके बाहर भी निकलें और मौसम का मजा लेते हुए खुद को अच्छा फील करवाएं. इससे आप काफी हद तक खुद को  सीजनल  इफेक्टिव  डिसओर्डर से दूर रख सकते हैं.

शरीर में हो रहे इन बदलावों को भूलकर भी न करें इग्नोर, हो सकते हैं हार्ट अटैक के ये संकेत

हार्ट अटैक एक बहुत ही गंभीर समस्या है. इस स्थिति में धमनियां ब्लॉक हो जाती हैं और ह्दय की मांसपेशियों में ब्लड फ्लो ठीक से नहीं हो पाता, ऐसे में क्लॉटिंग होना शुरू हो जाती  है. इस क्लॉटिंग की वजह से खून को ह्दय तक पहुंचने में कठिनाई होती है और इसे ऑक्सीजन नहीं मिल पाती.  वैसे हार्ट अटैक के एक लक्षण से हम सभी लगभग वाकिफ हैं.

अचानक और तेजी से सीने में दर्द होना और दर्द हाथ से नीचे तक फैल जाना. लेकिन हार्ट अटैक की स्थिति के लिए केवल इस एक संकेत को ही समझना काफी नहीं है बल्कि और भी कई ऐसे चेतावनी संकेत हैं, जो हार्ट अटैक के लिए जिम्मेदार हैं. नेशनल हार्ट, लंग एंड ब्लड इंस्टीट्यूट के अनुसार, यूएस में लगभग 5.7 मिलियन लोगों को हार्ट फेलियर की समस्या है. वर्तमान में इसका कोई खास इलाज नहीं है, लेकिन जीवनशैली में बदलाव और दवाओं जैसे उपचार जीवन की गुणवत्ता के मामले में बदलाव ला सकते हैं. कई स्थितियों के लिए आप इसके संकेतों को जितनी जल्दी समझ लेंगे, उतनी ही जल्दी इसे नियंत्रित किया जा सकेगा. यहां ऐसे 6 संकेत दिए गए हैं, जो बताएंगे कि आपका दिल अब पहले की तरह काम नहीं कर रहा और यह स्थिति हार्ट अटैक की संभावना को बढ़ा रहे है. तो आइए जानते हैं हार्ट अटैक के 6 मुख्य संकेतों के बारे में.

1. सांस न ले पाना-

जब कार्यक्षमता की बात आती है, तो दिल और फेफड़ों का बहुत अहम रोल होता है. दिल का दाहिना भाग ऑक्सीजन की कमी वाले ब्लड को लेता है और उसे फेफड़ों में पंप करता है, ताकि उसे ऑक्सीजन की ताजगी मिल सके. डॉक्टर कहते हैं कि सांस की परेशानी हार्ट अटैक का मुख्य संकेत है. इसका मतलब है कि आप कितनी भी गहरी सांस लें, आपको ऐसा नहीं लगता कि आपको पर्याप्त ऑक्सीजन मिल रही है.

2. पैरों में सूजन आ जाना-

जब आपका दिल ठीक से काम नहीं करता, तो यह लंग्स में कम ब्लड पंप करता है . इसका असर सबसे पहले आपके शरीर के निचले हिस्से में दिखाई देता है, जिसे एडिमा भी कहते हैं. यह आपके पैरों को प्रभावित करता है. यदि आप सूजी हुई उंगली को दबाते हैं और इसका असर कई सैकंड तक रहता है, तो यह एडिमा का संकेत है.

3. अचानक वजन बढ़ जाना-

अगर आपका वजन तेजी से बढ़ रहा है, तो इसे फैट समझने की गलती मत कीजिए. हो सकता है कि आपके पेट में किसी तरह के तरल पदार्थ का निर्माण हो रहा हो. विशेषज्ञ कहते हैं कि ऐसा अचानक हो सकता है कि कुछ ही दिनों में आपका वजन पांच किलो तक बढ़ जए.

4. हर समय थकावट महसूस करना-

हार्ट फेलियर के दौरान शरीर जिस तरह से कंपेन्सेट करता है, ब्लड को मास्तिष्क और मांसपेशियों में पहुंचने में दिक्कत होती है. इससे कमजोरी और थकान महसूस हो सकती है.

5. भ्रमित महसूस करना-

हार्ट फेल की समस्या सकुर्लेशन के कारण होती है. जब आपके मास्तिष्क में ठीक से ब्लड नहीं पहुंच पाता, तो आपको हल्के चक्कर , एकाग्रता में कमी और भ्रमित होने का अनुभव कर सकते हैं. गंभीर मामलों में आपको बेहोशी जैसी महसूस हो सकती है.

6. हमेशा हाथ और पैरों का ठंडा रहना-

लोगों के हाथ और पैर ठंडे होना आम बात है. लेकिन अगर अचानक से आपके हाथ और पैर ठंडे हो गए हैं और मौजे पहनने के बाद भी यह गर्म नहीं हो रहे, तो यह हार्ट फेलियर का संकेत हो सकता है. डॉक्टर्स का कहना है कि इस तरह के लक्षणों से बचने के लिए रात में अपना सिर ऊपर उठाकर सोएं, ज्यादा से ज्यादा पानी पीएं और धूम्रपान से परहेज करें.

यदि हार्ट अटैक के लक्षण मामूली हैं, तो आपको जितनी जल्दी हो सके दिल की जांच करानी चाहिए. इससे आप दिल के दौरे से काफी हद तक बच सकते हैं.

Women Health Tips: महिलाओं को ओवरी के बारे में पता होनी चाहिए ये बातें

आम तौर पर देखा जाता है कि महिलाएं सेक्स या सेक्शुअल हेल्थ पर बात करने से कतराती हैं. जबकि उन्हें कई बातों के बारे में उन्हें जानने की जरूरत है. जानकारी के अभाव में उन्हें कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है. इस खबर में हम आपको महिलाओं के ओवरी (अंडाशय) के बारे में कुछ जरूरी बातें बताएंगे. ओवरी से जुड़ी ये कुछ ज़रूरी बातें हैं जो आपको पता होनी चाहिए.

1. ओवरी के साइज में बदलाव होत रहता है

शरीर के अन्य अंग भले ही एक साइज पर आकर रुक जाते हों, पर ओवरी की साइज बदलती रहती है. ये बदलाव उम्र के साथ और पीरियड्स के दौरान होता है. आपको बता दें कि जब ये अंडा बना रही होती है तो ये आकार में बढ़ जाती है. इसमे करीब 5 सेंटीमीटर तक का बदलाव होता है.

2. ओवरी को होता है स्ट्रेस

जिस समय आपकी ओवरीज अंडे बना रही होती हैं, उस वक्त को ओव्यूलेशन कहते हैं. और स्ट्रेस का इस पर बहुत असर पड़ता है. उस दौरान अगर आप वाकई बहुत ज़्यादा स्ट्रेस में हैं, तो आपकी ओवरीज़ अंडे बनाना बंद कर देगी.

3. बर्थ कंट्रोल पिल से ओवरीज होती हैं प्रभावित

जानकारों की माने तो बर्थ कंट्रोल पिल्स ओवरीज़ पर सकारात्मक असर करती हैं. सुनने में ये भले ही अजीब लग रहा हो, पर ये सच है. हम बात कर रहे हैं गर्भनिरोधक गोलियों की. उनको लेने से ओवेरियन कैंसर होने का रिस्क काफी कम रहता है.

4. ओवेरियन सिस्ट अकसर अपने आप ठीक हो जाते हैं

बहुत सी औरतों के ओवरी में सिस्ट हो जाता है. ये कैविटी जैसी एक चीज है जिसमें पस भर जाता है. इसे ठीक करने के लिए कई तरह की दवाइयां और सर्जरी हैं. ओवरी के सिस्ट से घबराएं नहीं. ये तीन चार महीनों में अपने आप ठीक हो जाते हैं.

Winter Special: 15 मिनट लें सुबह की धूप, जीवनभर बने रहेंगे Healthy और Energetic

लेखिका- दीप्ति गुप्ता

सुबह की धूप हमारे लिए बहुत फायदेमंद होती है. लेकिन बढ़ते फ्लैट कल्चर के चलते लोग धूप लेने से वंचित रह जाते हैं, जिसकी वजह से कई मानसिक और शारीरिक बीमारियों का सामना आगे करना पड़ता है. मगर दोस्तों, विशेषज्ञों कहते हैं कि सुबह केवल 10-15 मिनट धूप में टहलने या बैठने से आप सेहत से जुड़ी सभी परेशानियों से खुद को बचा सकते हैं. यहां तक की प्राकृतिक चिकित्सा में भी सूर्य चिकित्सा का अहम रोल है. एक स्टडी के अनुसार, अगर आपको सुबह की धूप नहीं मिलती , तो इससे हाई ब्लड प्रेशर की संभावना बढ़ जाती है. तो चलिए आज के इस आर्टिकल में हम बात करते हैं उन सभी बड़े फायदों के बारे में जो हमें सुबह की धूप लेने से मिल सकते हैं.

सुबह की धूप कैसे है फायदेमंद

डिप्रेशन दूर करे- अगर आप रोज सुबह 10-15 मिनट तक सुबह धूप में टहलते या बैठते हैं, तो इससे डिप्रेशन की समस्या से छुटकारा मिलेगा. डॉक्टर्स भी डिप्रेशन दूर करने के लिए सुबह की धूप लेने की सलाह देते हैं, क्योंकि ऐसा करने से शरीर में एंडोर्फिन रिलीज होता है. यह एक नेचुरल एंटी डिप्रेजेंट है.

ब्लड सकुर्लेशन बढ़ाए- सुबह की धूप में कुछ देर टहलना या बैठना आपकी हड्डियों के लिए काफी फायदेमंद है. इससे मिलने वाला विटामिन डी आपके ब्लड सकुर्लेशन को बढ़ाने का काम करता है. इतना ही नहीं, ये आपके ब्लड प्रेशर को भी रेगुलेट करने में मदद करती है.

वजन घटाए- अगर आप बढ़ते वजन से परेशान हैं, तो सुबह की धूप में टहलना शुरू कर दें. ऐसा करने से आपका वजन बहुत जल्दी कम हो जाएगा. कई शोधों में पाया गया है कि जिन लोगों को सुबह की धूप नहीं मिलती, उनका वजन बहुत तेजी से बढ़ता है, उनके भीतर चर्बी ज्यादा जमा हो जाती है, उनके मुकाबले जो सुबह की धूप लेते हैं.

खुश रखे- व्यस्त भरी दिनचर्या में व्यक्ति को खुश होने का अवसर बहुत कम मिलता है, लेकिन सुबह की धूप में टहलने से आपको ये खुशी मिल सकती है. जी हां, धूप में सिर्फ दस मिनट तक टहलने से आपके अंदर सेराटॉनिन का लेवल बढ़ जाता है. बता दें, कि यह एक हैप्पी हार्मोन है, जिसकी वजह से आप थके होने के बाद भी आप हैप्पी और एनर्जेटिक फील करते हैं.

सुबह की धूप लेने का तरीका-

अब हम आपको बताते हैं कि सुबह की धूप लेने का सही तरीका क्या है. आपको बता दें कि सर्दियों में सुबह आठ से दस बजे तक की धूप आपके लिए बहुत असरदार होती है. वहीं गर्मियों में सुबह 7 से 9 बजे तक आप धूप में टहल सकते हैं. अब जानिए 15 मिनट में सुबह की धूप कैसे ले सकते हैं.

– आपको जहां भी धूप अच्छे से मिलती है, वहां आप टहलना शुरू कर दें या फिर कुछ देर के लिए वहां बैठ जाएं. बैठने के बाद आंखें बंद कर लें. अब नाक से गहरी सांस लें. सांस आपकी नाभि के नीचे तक पहुंचनी चाहिए. ध्यान रखें, कि नाक से ही सांस लेनी है और नाक से ही सांस छोड़नी  है. पहले पांच मिनट में आपको यह अभ्यास करना है.

– अगले पांच मिनट में अंदर ली गई सांस और बाहर छोड़ी गई सांस पर ध्यान दें. याद रखें, इस वक्त मन में कोई और विचार न लाएं. बस रिलेक्स होकर आपकी सांस पर ध्यान देना है. लगभग 5 मिनट तक आपको ये प्रयास करना है.

– अब बाद के पांच मिनट अपने आप में महत्वपूर्ण हैं. इस वक्त आप केवल महसूस करेंगे कि सूर्य की किरणें आपके सिर के ऊपर से होते हुए आपके भीतर प्रवेश कर रही हैं और धीरे-धीरे पूरे शरीर में फैल रही हैं. ये किरणें आपकी बॉडी में मौजूद हर बीमारी से आपको सुरक्षा प्रदान करती हैं.

अगर आप भी खुद को स्वस्थ और ऊर्जावान बनाना चाहते हैं, तो कुछ देर के लिए ही सही, लेकिन सुबह की धूप लेना शुरू कर दें. इससे न केवल आपके भीतर की बीमारियां दूर होंगी, बल्कि आपके अंदर पॉजिटिविटी का लेवल भी बढ़ेगा.

Winter Special: जानें क्या है गले में खराश के कारण

गले में खराश की वजह से दर्द, खुजली, आवाज बैठना और कुछ निगलने में परेशानी जैसी समस्याएं हो सकती हैं. ऐसा कभीकभी या फिर बारबार हो सकता है और हो सकता है कि यह लंबे समय तक रहे. लंबे समय तक गले में खराश इन्फैक्शन सहित कई कारणों से हो सकती है, इसलिए जरूरी है कि इस के कारणों का पता लगाया जाए.

लंबे समय तक गले में खराश के कारण

एलर्जी: अगर आप को ऐलर्जी हो तो आप का इम्यून सिस्टम कई चीजों के लिए ज्यादा प्रतिक्रिया करता है, ये पदार्थ ऐलर्जन कहलाते हैं.

आमतौर पर कई खा-पदार्थ, कुछ पौधे, पालतू जानवरों के रोएं, धूल और परागकण ऐलर्जन हो सकते हैं. अगर आप को परागकणों,

धूल, सिंथैटिक खुशबू, मोल्ड आदि से ऐलर्जी हो तो गले में खराश की समस्या लंबे समय तक बनी रह सकती है.

हवा से होने वाली ऐलर्जी के लक्षणों में शामिल हैं

– नाक बहना

– खांसी

– छींकें

– आंखों से पानी बहना.

ऐलर्जी की वजह से पोस्टनेसल ड्रिप और साइनस में सूजन गले में ऐलर्जी के कारण हो सकते हैं.

पोस्टनेसल ड्रिप: इस से ब्यूकस साइनस से आप के गले में चला जाता है. इस से गले में लगातार खराश होती रहती है.

ऐसा मौसम में बदलाव, कुछ दवाओं, मसालेदार भोजन, बलगम, ऐलर्जी, हवा में सूखापन आदि की वजह से हो सकता है.

गले में खराश के अलावा पोस्टनेसल ड्रिप के कुछ लक्षण ये हैं:

– सांस में बदबू

– निगलने में परेशानी

– खांसी जो रात में बढ़ जाए

– मतली आना.

मुंह से सांस लेना: जब आप मुंह से सांस लेते हैं, खासतौर पर नींद में, तो इस के कारण गले में खराश हो सकती है. ऐसे में जब आप सुबह सो कर उठते हैं, तो आप को ज्यादा परेशानी होती है, कुछ पीने के बाद आप बेहतर महसूस करते हैं. रात में मुंह से सांस लेने के लक्षण हैं:

– मुंह सूखना

– गले में सूखापन या खुजली महसूस होना

– आवाज बैठना

– सुबह उठने पर थकान और चिड़चिड़ापन

– सांस में बदबू

– आंखों के चारों ओर काले घेरे

– ब्रेन फोंग.

अकसर नाक में किसी तरह की रुकावट के कारण व्यक्ति मुंह से सांस लेता है, जैसे नाक में कंजैक्शन, स्पीप  एप्रिया, ऐडिनौएड्स या टौंसिल्स का बढ़ना.

ऐसिड रिफलक्स: इसे सीने में जलन भी कहा जाता है. ऐसा तब होता है जब लोअर इसोफेगियल स्फिंक्टर कमजोर हो जाए और ठीक से बंद न हो पाए. इस से पेट की सामग्री फिर से लौट कर इसोफेगस में आ जाती है, कभी भी इस तरह का ऐसिड रिफलक्स गले में खराश का कारण बन जाता है. अगर आप को रोजाना ऐसे लक्षण हों तो परेशानी बढ़ सकती है.

समय की साथ, ऐसिड इ??सोफेगस और गले की लाइनिंग को नुकसान पहुंचने लगता है. इस रिफलक्स के कुछ लक्षण हैं:

– गले में खराश

– सीने में जलन

– मुंह में खटास

– सीने में जलन और पेट में असहज महसूस करना

– निगलने में परेशानी.

टौंसिलाइटिस: अगर आप को लंबे समय तक खराश रहती है और आराम नहीं मिलता तो हो सकता है कि आप को टौंसिलाइटिस हो. अकसर टौंसिलाइटिस बच्चों में पाया जाता है, लेकिन बड़ी उम्र के लोग भी इस का शिकार हो सकते हैं. टौंसिलाइटिस बैक्टीरिया या वायरस के संक्रमण से हो सकता है.

टौंसिलाइटिस साल में कई बार हो सकता है, कई बार इस के इलाज के लिए ऐंटीबायोटिक दवाओं की जरूरत होती है. टौंसिलाइटिस कई प्रकार का हो सकता है. इस के लक्षणों में शामिल हैं:

– निगलने में परेशानी और दर्द

– आवाज बैठना

– गले में खराश

– गले में अकड़न

– लिंफ नोड्स में सूजन के कारण जबड़े और गले में परेशानी

– टौंसिल्स पर सफेद या पीले धब्बे

– सांस में बदबू

– बुखार

– ठंड लगना

– सिर में दर्द.

मोनो: गले में खराश और टौंसिलाइटिस का एक और कारण है मोनोन्युक्लियोसिस, जो एपस्टीन बार वायरस के कारण होता है. मोनो 2 महीने तक चल सकता है. ज्यादातर मामलों में इस के लक्षण हलके होते हैं, थोड़े से इलाज से इसे ठीक किया जा सकता है. मोनो के लक्षण फ्लू जैसे दिखाई देते हैं. इस के लक्षण हैं:

– गले में खराश

– टौंसिल्स में सूजन

– बुखार

– बगल और गरदन की ग्रंथियों में सूजन

– सिर में दर्द

– थकान

– मांसपेशियों में कमजोरी

– रात में पसीना आना.

मोनो से पीडि़त व्यक्ति संक्रमण के दौरान गले में खराश महसूस कर सकता है.

गोनोरिया: यह यौनसंचारी रोग है, जो बैक्टीरिया नीसेरिया गोनोरिया के कारण होता है. हो सकता है कि आप सोचें यौनसंचारी रोगों का असर सिर्फ आप के यौनांगों पर ही पड़ता है, किंतु असुरक्षित ओरल सैक्स के कारण गले में गोनोरिया इन्फैक्शन हो सकता है. ऐसे मामलों में गले में खराश और लालगी हो सकती है.

टौंसिल ऐब्सैस: पेरिटौंसिलर एब्सैस, टौंसिल्स में होने वाला गंभीर बैक्टीरियल इन्फैक्शन है, जो गले में खराश का कारण बन सकता है. अगर टौंसिलाइटिस का ठीक से इलाज न किया जाए तो ऐसा हो सकता है. टौंसिल्स के आसपास इन्फैक्शन होने से कई बार मवाद बन जाता है और इन्फैक्शन आसपास के टिशूज में भी फैल जाता है.

आप गले के पिछले हिस्से में एब्सैस देख सकते हैं. लेकिन हो सकता है कि यह आप के टौंसिल्स के पीछे छिपा हो. इस के लक्षण आमतौर पर टौंसिलाइटिस जैसे होते हैं, लेकिन ज्यादा गंभीर हो सकते हैं. इन में शामिल हैं:

– गले में खराश, आमतौर पर एक साइड में ज्यादा

– गले और जबड़े में ग्रंथियों में सूजन

– खराश वाली साइड पर कान में दर्द

– 1 या दोनों टौंसिल्स में इन्फैक्शन

– मुंह को पूरा खोलने में परेशानी

– निगलने में परेशानी

– लार निगलने में परेशानी

– चेहरे या गरदन में सूजन

– सिर घुमाने या ऊपरनीचे करने में परेशानी

– सिर में दर्द

– आवाज में घरघराहट

– बुखार आना और ठंड लगना

– सांस में बदबू.

धूम्रपान: धूम्रपान या सैकंडहैंड स्मोक गले में खराश का कारण बन सकता है. यह अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, ऐंफाइसेमा को गंभीर बना सकता है. हलके मामलों में सिगरेट के धुएं के संपर्क में रहने से गले में खराश हो सकती है. धूम्रपान कैंसर और गले में दर्द का कारण भी बन सकता है.

-डा. सुधा कंसल

रैसपिरेटरी स्पैश्यलिस्ट, इंद्रप्रस्थ अपोलो हौस्पिटल, दिल्ली.    

Winter Special: सर्दियों में बीमारियों से बचाव के लिए लाइफस्टाइल में करें ये बदलाव

खुशगवार सर्दी का मौसम अपने साथ हैल्थ से संबंधित समस्याएं भी लाता है. इस का सब से बड़ा कारण बदलते मौसम की अनदेखी करना है. बदलते मौसम की वजह से वायरल, गले का इन्फैक्शन, जोड़ों में दर्द, डेंगू, मलेरिया, निमोनिया, अस्थमा, आर्थ्राइटिस, दिल व त्वचा से संबंधित समस्याएं अधिक बढ़ जाती हैं. अगर इस मौसम का लुत्फ उठाना है, तो अपनी दिनचर्या को मौसम के अनुरूप ढालना बेहद जरूरी है.

सर्दियों में किसी भी तरह के बुखार को अनदेखा न करें. छाती का संक्रमण हो या टाइफाइड अथवा वायरल, इस की जांच जरूर कराएं. मलेरिया का शक हो तो पीएच टैस्ट करवाएं. ये सभी जांचें बेहद सामान्य हैं तथा किसी भी अस्पताल में आसानी से हो जाती हैं.

सर्दी के शुरू होते ही आर्थ्राइटिस यानी जोड़ों के दर्द की समस्या काफी बढ़ जाती है. इस के मरीज कुनकुने पानी से नहाना शुरू कर दें. हाथपैरों को ठंड से बचा कर रखें. सुबह के समय धूप में बैठें. इस से शरीर को विटामिन डी मिलता है. प्रोटीन और कैल्सियमयुक्त डाइट लें और ठंडी चीजों का सेवन न करें.

गरमी के बाद एकदम सर्दी आने पर हड्डियों, साइनस और दिल से संबंधित बीमारियां तेजी से बढ़ जाती हैं. हाई ब्लडप्रैशर और दिल के रोगियों के लिए यह मौसम अनुकूल नहीं होता. ऐसे में बेहद जरूरी है कि बाहर के बदलते तापमान के अनुसार शरीर के तापमान को नियंत्रित रखा जाए. जरूरत से ज्यादा खाने से भी बचें, क्योंकि सर्दियों में फिजिकल वर्क कम हो जाता है, जो वजन बढ़ाने के लिए जिम्मेदार होता है. सादा और संतुलित भोजन लें और नमक का कम प्रयोग करें. तनाव व डिप्रैशन से दूर रहने के लिए खुद को अन्य कामों में व्यस्त रखें. छाती में किसी भी कारण दर्द महसूस हो या जलन बनी रहे तो इसे हलके में न लें. डाक्टर को जरूर दिखाएं.

सांस से संबंधित बीमारियां भी इस मौसम में अपना असर दिखाने लगती हैं. एहतियात के तौर पर सांस की बीमारियों के मरीजों को बंद कमरे में हीटर आदि नहीं चलाना चाहिए, इस से हवा में औक्सीजन कम हो जाती है और सांस लेने में तकलीफ होती है. तेज स्प्रे, कीटनाशक, धुआं या कोई गंध जिस से सांस में तकलीफ हो, उस से भी दूर रहें. परेशानी ज्यादा बढ़ने पर डाक्टर की सलाह लें.

त्वचा और केशों से जुड़ी समस्याएं भी सर्दियों से अछूती नहीं हैं. हथेलियों और एडि़यों में दरारें पड़ना, नाखूनों का कमजोर पड़ना, होंठों के फटने और सूखने की समस्या, सिर में खुश्की और रूखापन तथा केशों के झड़ने की समस्या सर्दियों में हो सकती है.

बीमारियों से बचाव के टिप्स

बच्चों के कपड़ों आदि का पूरा ध्यान रखें. उन के हाथपैरों और सिर को ढक कर रखें. उन्हें गीले कपड़ों में न रहने दें. ठंडी चीजें न खिलाएं और ठंडी हवा में बाहर न जाने दें. बच्चों के लिए थोड़ी सी भी सर्दी हानिकारक हो सकती है.

अस्थमा से पीडि़त और बुजुर्ग धुंध छंटने के बाद ही बाहर निकलें. दवाएं और इनहेलर वक्त पर लेते रहें.

हाथपैरों को फटने और नाखूनों को टूटने से बचाने के लिए उन्हें रात को हलके गरम पानी में नमक डाल कर धोएं, फिर अच्छी तरह सुखा कर कोई कोल्ड क्रीम लगाएं. होंठों पर ग्लिसरीन लगाएं.

ऐलर्जी से पीडि़त लोग साबुन, डिटर्जैंट और ऊनी कपड़ों के सीधे संपर्क से बचें.

कभी खाली पेट घर से बाहर न निकलें, क्योंकि खाली पेट शरीर को कमजोर करता है. ऐसे में वायरल इन्फैक्शन का डर ज्यादा रहता है.

मौसमी फलसब्जियां जरूर खाएं. बासी खाना या पहले से कटी हुई फलसब्जियां न खाएं.

अगर मौर्निंग वाक की आदत है तो हलकी धूप निकलने के बाद ही बाहर टहलने निकलें.

जिन्हें ऐंजाइना या स्ट्रोक हो चुका हो, उन्हें इस मौसम में नियमित रूप से दवा लेनी चाहिए और सर्दियां शुरू होते ही एक बार चैकअप करा लेना चाहिए. डाक्टर की सलाह से जरूरी दवा साथ रखें.

ठंडे, खट्टे, तले व प्रिजर्वेटिव खाने के सेवन से इस मौसम में संक्रमण की आशंका कहीं अधिक बढ़ जाती है. इम्यून सिस्टम को मजबूत रखने के लिए विटामिन सी से भरपूर फलों एवं ताजा दही का सेवन करें. हरी पत्तेदार सब्जियों के साथसाथ फाइबरयुक्त भोजन को भी अहमियत दें.

इस मौसम में त्वचा पर भी काफी प्रभाव पड़ता है. त्वचा में रूखापन बढ़ जाता है. इसलिए अधिक मसालेदार और तलाभुना खाना न खाएं, क्योंकि यह त्वचा को खुश्क बनाता है.

सब से महत्त्वपूर्ण बात यह है कि पानी पीना कम न करें. इस मौसम में आमतौर पर लोग पानी कम पीते हैं, जो सही नहीं है. इस से शरीर में पानी की कमी हो जाती है, जिस कारण कई दिक्कतें आती हैं.

केसर से लेकर तेजपत्ता तक, इन 12 मसालों से बनाएं अपनी सेहत

भारतीय भोजन में मसालों का इस्तेमाल हजारों सालों से हो रहा है. इन के इस्तेमाल का मकसद सिर्फ भोजन के स्वाद को बढ़ाना ही नहीं होता, ये भोजन के विकारों को कम कर के उन के गुणों को भी बढ़ाते हैं. साथ ही सेहत से जुड़ी छोटे स्तर पर होने वाली समस्याओं का निदान भी इन मसालों में होता हैं.

हालांकि आज के युग में मिर्चमसाले, घीतेल का प्रयोग दिनबदिन कम होता जा रहा है. कैलोरी की मात्रा तथा आहार की पौष्टिकता ही भोजन की परख है. पर निरंतर हो रहे कई शोधों से पता चलता है कि यदि किसी मसाले का उपयुक्त मात्रा में भोजन में समावेश किया जाए तो वह सेहत के लिए अच्छा रहता है.

आइए जानें कुछ प्रचलित मसालों के बारे में और यह कि उन का कैसे इस्तेमाल कर स्वाद के साथ सेहत का भी ध्यान रखा जा सकता है.

1. दालचीनी

दालचीनी एक ऐसा मसाला है जो गरम तासीर वाला तथा गरम मसाले का अंश है. अगर पुलाव बना रही हों तो उस के साथ खाए जाने वाले रायते में इस का चुटकी भर पाउडर डालें, स्वाद बढ़ जाएगा. ब्रैड पर मक्खन के ऊपर इस का थोड़ा सा पाउडर बुरकें, कौफी के ऊपर चुटकी भर डालें और चौप बनाते समय भी इस को थोड़ा सा डालें स्वाद बढ़ जाएगा. सेब की खीर या मिल्कशेक बनाते समय भी इस के पाउडर को प्रयोग में लाएं.

2. कालीमिर्च

कालीमिर्च गरममसाले का अंश तो है ही, साथ ही इस का प्रयोग सब्जी में साबूत मसाले डालते समय और पाश्चात्य व्यंजनों व सलाद आदि में पिसी कालीमिर्च पाउडर के रूप में होता है. कालीमिर्च 2 प्रकार की होती है. एक तो वह जिस में इस के अधपके दानों को सुखा कर रखा जाता है तो वे काले हो जाते हैं और दूसरी वह जब इस के दाने पूरी तरह पक जाते हैं, तो उस की ऊपरी सतह यानी काला छिलका आसानी से उतर जाता है. पक जाने पर कालीमिर्च की अपेक्षा सफेदमिर्च में ज्यादा गुण पाए जाते हैं.

पकौड़े बनाते समय सफेदमिर्च व कालीमिर्च पाउडर डालें. दाल में तड़का लगाते समय मोटी कुटी कालीमिर्च के 4-5 दाने डालें. स्वाद बढ़ जाएगा. सूप में फ्रैश पिसी कालीमिर्च और मठरी बनाते समय भी कालीमिर्च पाउडर डाल सकते हैं. इस से स्वाद अच्छा आएगा. लड्डू बनाते समय सफेद व कालीमिर्च का पाउडर डालें.

3. अर्जुन की छाल

यह एक प्रकार का पेड़ है, जो हिमालय की तलहटी, उत्तर प्रदेश, बंगाल, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, बिहार आदि में बहुतायत में पाया जाता है. इस पेड़ की छाल खूब प्रयोग में लाई जाती है. इस पर हुए शोधों से पता चला है कि यह विटामिन ई के बराबर ऐंटीऔक्सिडैंट का काम करती है, इसलिए इस का पाउडर बना कर प्रयोग में लाया जाता है.

1 लिटर पानी में 1 से 2 चम्मच छाल पाउडर डाल कर पानी आधा रहने तक उबालें और दिन में 2 बार पिएं. इस के अलावा इसे टोमैटो जूस व दूध में डाल कर भी पिया जा सकता है और चाय में भी इस का प्रयोग किया जा सकता है.

4. कलौंजी

कलौंजी के दाने सरसों के बीज की तरह होते हैं. उन में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट अच्छी मात्रा में पाया जाता है. इस के अलावा कैल्सियम, पोटैशियम, मैग्नीशियम आदि भी उन में होते हैं. कलौंजी का स्वाद प्याज, कालीमिर्च और ओरिगैनो का मिलाजुला होता है. वैसे कई अचारों में इस का प्रयोग होता है, लेकिन इस के बिना आम का अचार अधूरा लगता है. इस के अलावा नान, पूरी बनाते समय इस के थोडे़ दाने डालने से उन का स्वाद अच्छा रहता है. इस के थोड़े से दाने डाल कर चाय बना कर पीने से मानसिक तनाव में कमी आती है. कलौंजी का तेल भी कई तरह से प्रयोग में लाया जाता है. अगर कुछ नया करना चाहें तो पंचमेल दाल में इस का तड़का लगाएं. अच्छा स्वाद आएगा.

5. जायफल व जावित्री

जायफल व जावित्री गरम मसाले का एक हिस्सा होते हैं. इन का प्रयोग विशेष डिशेज में ही होता है, लेकिन औषधि के रूप में इन का प्रयोग खूब किया जाता है. जायफल सुगंधित होता है और भारी जायफल ही अच्छा माना जाता है. जायफल के फल की छाल ही जावित्री कहलाती है.

बच्चे को जुकाम हो तो थोड़ा सा जायफल पत्थर पर घिस कर 1 बड़े चम्मच दूध में मिला कर पिलाने से उसे राहत मिलती है. नींद न आने की स्थिति में दूध में जायफल पाउडर, केसर और छोटी इलायची पाउडर डाल कर उबालें और सोते समय पी लें. साबूत मसालों का सब्जी में तड़का लगाते समय जावित्री का छोटा सा टुकड़ा डालें, तो अच्छा स्वाद आएगा.

6. जीरा

किचन में इस्तेमाल होने वाले मसालों में जीरा एक महत्त्वपूर्ण चीज है. यह तीखा और मीठी सुगंध वाला होता है. भारतीय भोजन के अलावा मैक्सिकन भोजन में भी जीरे का बहुत प्रयोग किया जाता है. जीरे में भरपूर आयरन पाया जाता है और यह पाचन में भी सहायक होता है.

जीरे का प्रयोग कई तरह से किया जाता है. एक तो दाल, सब्जी व चावल में तड़का लगाने के लिए, उस के अलावा कच्चा मसाला भूनते समय जीरा पाउडर के रूप में. छाछ, रायता, दहीभल्ला आदि में भुना हींगजीरा, पाउडर के रूप में इस्तेमाल होता है. जीरा किसी भी रूप में इस्तेमाल करें, यह सेहत के लिए अच्छा होता है. यह डायबिटीज के रोगियों व कब्ज की शिकायत वालों के लिए भी लाभकारी है. सर्दियों में इस का नियमित सेवन अच्छा रहता है.

7. राई

यह दालसब्जी में तड़का लगाने के लिए तथा अचारों में मसाले के साथ प्रयोग किया जाने वाला महत्त्वपूर्ण मसाला है. इस के उपयोग से आमाशय व आंतों पर उत्तेजक प्रभाव पड़ता है. फलस्वरूप भूख खुल जाती है. राई मुख्यतया 2 प्रकार की होती है. एक काली और दूसरी पीली. काली राई आमतौर पर तड़के के काम आती है. दक्षिण भारतीय व्यंजनों में उस का इस्तेमाल खूब किया जाता है. जबकि पीली राई, जिसे सरसों के दाने भी कहते हैं, का इस्तेमाल अचार, कुछ दही के रायतों, चटनी, कांजी आदि में पाउडर बना कर किया जाता है. समुद्री भोजन के साथ जब सरसों के दानों को पकाया जाता है, तो मछली आदि में ओमेगा-3 की मात्रा बढ़ जाती है.

सांभर, दाल, उपमा आदि में काली राई का तड़का अच्छा रहता है. पीली राई का तड़का ढोकला, खांडवी आदि में किया जाता है. इस के अलावा इंस्टैंट मिर्च के अचार, लौकी के रायते में इस का पाउडर डालने से उन का स्वाद और बढ़ जाता है.

8. अजवाइन

यह पाचक, रुचिकर, गरम और तीखी होती है. इस के सेवन से गैस, गले की खराश आदि में काफी लाभ मिलता है. अजवाइन में कालीमिर्च तथा राई की उष्णता, चिरायते जैसी कड़वाहट (चिरायता एक पौधा है) और हींग की खूबियां, ये तीनों गुण होते हैं. अजवाइन का बघार देने से सब्जी का स्वाद व सुगंध बढ़ती है. यह सभी मसालों में श्रेष्ठ है, क्योंकि गरिष्ठ भोजन में इस का प्रयोग करने से उसे पचाने में आसानी होती है.

अरवी, केले की सब्जी, ग्वार की फली, जिमीकंद वगैरह में जब इस का छौंक लगाया जाता है तो उन का स्वाद तो बढ़ जाता ही है उन्हें पचाने में भी आसानी रहती है. तैयार राजमा में अजवाइन और कसूरी मेथी का तड़का स्वाद को बढ़ा देता है. इसी तरह काबुली चनों के मसाले में इस का पाउडर डालें या परांठों में इस को डालें, स्वाद और सेहत दोनों के लिए अच्छा रहेगा.

9. फ्लैक्स सीड्स (अलसी के बीज)

फ्लैक्स सीड्स (अलसी के बीज) का महत्त्व अब प्रकाश में आया है. पहले तो इन्हें जानवरों को खाने के लिए दिया जाता था, हाल के वर्षों में हुए शोधों से पता चला है कि इन में ओमेगा-3 फैटी एसिड प्रचुर मात्रा में पाए जाता है, जो सामान्यतया मछली में मिलता है. शाकाहारी लोगों के लिए अलसी के बीज सेहत के लिए बहुत फायदेमंद हैं.

इन बीजों को हलकी गैस पर रोस्ट कर के उन का पाउडर बनाएं. फिर उस को सलाद में डाल लें अथवा सब्जी के शोरबे में मिलाएं. रायते पर बुरकें अथवा आटे में मिलाएं. सेहत के लिए अच्छा रहेगा. जिन महिलाओं के जोड़ों में दर्द रहता है, उन के लिए तो यह बहुत फायदेमंद है. लेकिन इस का सेवन 1 दिन में 2 बड़े चम्मच से ज्यादा नहीं करना चाहिए.

10. केसर

सब से महंगे मसालों में एक है केसर. सर्दियों में जुकामखांसी में, तो गरमियों में ठंडाई में इस का सेवन बखूबी होता है. खजूर, मुनक्के और बादाम के साथ पके दूध में इस के चंद रेशे डालें क्योंकि यह एक बेहतरीन टौनिक होता है. इस की खूबी यह है कि जब ठंडी खीर या दूध में यह डाला जाता है तो यह ठंडक पहुंचाता है और सर्दी के मौसम में यदि यह गरम दूध में डाला जाए तो चमत्कारी गरमी पहुंचाता है. इस को शाही सब्जी, जाफरानी और पुलाव में भी प्रयोग करते हैं. इस के चंद धागों को गुलाबजल या कुनकुने दूध में भिगो कर 10 मिनट रखें फिर उसी में घोट कर डाल दें. स्वाद व खुशबू दोनों बढ़ जाएंगे.

11. सौंफ

सौंफ भी हमारे मसालों में खूब प्रयोग में आती है. मुखशुद्धि के अलावा सूखी सौंफ पाचनतंत्र पर प्रभावशाली असर डालती है. हमारी कई पारंपरिक सब्जियों में इस का प्रयोग पाउडर के रूप में होता है. साथ ही कई अचारों में भी इस को डालते हैं. मुख्यतया यह 2 प्रकार की होती है. एक मोटी सौंफ, जो भोजन के काम आती है और दूसरी बारीक सौंफ जिस को मुखशुद्धि के लिए प्रयोग में लाते हैं. इस के सेवन से कब्ज, पेटदर्द, गले की खराश, पित्त ज्वर, हाथपांव में जलन आदि में राहत मिलती है.

इस को करेले, गोभी व अचारी सब्जी आदि में प्रयोग किया जाता है. पंचफोड़न में भी सौंफ होती है. कुल मिला कर इस का प्रयोग सेहत और भोजन की स्वादिष्ठता को बढ़ाने के लिए होता है.

12. तेजपत्ता

इस का उपयोग भी लौंग, दालचीनी या बड़ी इलायची की भांति सुगंध व स्वाद बढ़ाने के लिए किया जाता है. विशेष रूप से इस का सेवन कफ प्रधान रोगों, अपचता, उदर रोग व पाचनतंत्र संबंधी रोगों के लिए फायदेमंद रहता है. लेकिन इस के ज्यादा पुराने पत्तों से खुशबू निकल जाती है.

सब्जी में खड़े गरम मसाले के साथ व पुलाव में इस का प्रयोग खूब होता है. पिसा मसाला भूनने से पहले कड़ाही में तेल में इस के 2-3 पत्ते डालें फिर मसाला भून कर सब्जी डालें. स्वाद बढ़ जाएगा.

उपरोक्त मसालों के अलावा और भी बहुत से मसाले ऐसे हैं. जिन का प्रयोग सब्जी बनाते समय होता है. जैसे मेथीदाना, खसखस, हरड़, हींग, मिर्च, बड़ी और छोटी इलायची, हलदी पाउडर, धनिया पाउडर आदि. ये सभी स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद हैं. बस जरूरत इस बात की होती है कि इन सब का प्रयोग सीमित मात्रा में सही तरीके से किया जाए. इस के अलावा मसालों को सही तरीके से रखें ताकि उन की खुशबू बरकरार रहे.

6 Type की होती हैं Bread, जानिए क्या हैं इनके फायदे

लेखिका- दीप्ति गुप्ता

बदलती जीवनशैली में हमारे खान-पान की आदतें भी विकसित हो रही हैं. अब नाश्ते में लोग ब्रेड का सेवन ज्यादा करते हैं, क्योंकि ये सेहत के लिए बेस्ट ब्रेकफास्ट है. सैंडविच के रूप में या जैम, मक्खन के साथ खाने के अलावा इससे कई तरह के स्नैक्स भी बनाए जाने लगे हैं. आमतौर पर इन सभी के लिए हम व्हाइट ब्रेड का ही इस्तेमाल करते हैं, लेकिन अब बाजार में ब्रेड की कई किस्में मौजूद हैं, जिनके बारे में अब भी बहुत से लोग नहीं जानते. ये ब्रेड न केवल खाने में स्वादिष्ट होती हैं, बल्कि स्वास्थ से जुड़े इनके फायदे बहुत हैं. तो चलिए आज के इस आर्टिकल में हम आपको बताते हैं ब्रेड के प्रकार और इनसे मिलने वाले स्वास्थ्य लाभ के बारे में.

ब्राउन ब्रेड (Brown Bread)

ब्राउन गेहूं के आटे से बनी होती है. इसे बनाने के दौरान चोकर और गेहूं के कीटाणु को नहीं हटाया जाता है. परिणामस्वरूप ब्रेड में पोषण तत्व बरकरार रहते हैं. एक ब्राउन ब्रेड में लगभग 3.9 ग्राम प्रोटीन, 21.6 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 2.8 ग्राम फाइबर, 15.2मिग्रा कैल्शियम, 1.4 मिग्रा आयरन, 37.3 मिग्रा मैग्रीशियम, पोटेशियम, सोडियम और जिंक जैसे पोषक तत्व मौजूद होते हैं. ब्राउन ब्रेड में मौजूद फाइबर बवासीर, हदय रोग, टाइप टू डायबिटीज और कब्ज के जोखिम को कम करने में मदद करता है.

हनी और ओट्स ब्रेड (Honey and Oats Bread):

शहद और जई से बनी ये ब्रेड कार्बोहाइड्रेट से भरपूर होती है. इसमें 49 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 5 ग्राम फाइबर और 260 कैलोरी होने के साथ विटामिन बी पर्याप्त मात्रा में मौजूद होता है. सभी पौष्टिक तत्व होने के कारण यह कोलेस्ट्रॉल को कम कर वजन घटाने में सहायता करती है. इस ब्रेड का सेवन करने से पाचन तंत्र भी ठीक रहता है. अध्ययनों के अनुसार, हनी और ओट्स ब्रेड के सेवन से महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर नहीं होता.

राई ब्रेड (Rye Bread)

राई की ब्रेड राई और गेहूं के मिश्रण से तैयार की जाती है. राई की ब्रेड में एक सेक्लाइनिन नाम का प्रोटीन पाया जाता है, जो आपकी बढ़ी हुई भूख को कंट्रोल करने का काम करता है और आपको लंबे समय तक भरा हुआ महसूस कराता है, जिससे वजन कम करने में तो आसानी होती ही है, साथ ही डायबिटीज में इसे खाया जाए, तो ये बहुत फायदेमंद होती है.

फ्रूट ब्रेड (Fruit Bread): 

फ्रूट ब्रेड बहुत स्वादिष्ट होती है. इसमें किशमिश, संतरे के छिलके, खुबानी, खजूर जैसे ड्राई फ्रूट्स और शुगर मिलाई जाती है. इसके स्वाद को बढ़ाने के लिए इसमें अंडे, दालचीनी, जायफल भी डाले जाते हैं. फ्रूट ब्रेड प्रोटीन और फाइबर के साथ-साथ पोषक तत्वों से भरपूर होती है. एक तरफ जहां ड्राई फ्रूट्स ओरल हेल्थ को बढ़ावा देते हैं और मसूड़ों की बीमारियों से बचाते हैं, वहीं सोडियम की मात्रा कम होने की वजह से उच्च रक्त चाप का खतरा कम हो जाता है.

बैगूएट ब्रेड (Baguette Bread):

पौष्टिकता की बात आए, तो बगुएट ब्रेड अच्छा ऑप्शन है. ये ब्रेड एक लंबे पाव की तरह होती है, जो अक्सर बड़े रेस्टोरेंट्स या बेकरी पर देखने को मिलती है. यह आमतौर पर लीन आटे का उपयोग करके बनाई जाती है. इसमें विटामिन बी, जिंक, आयरन जैसे पोषक तत्व होते हैं. अन्य ब्रेडों की तुलना में इसमें फाइबर की मात्रा न के बराबर होती है, लेकिन ब्लड शुगर लेवल को कंट्रोल में रखने के लिए प्रभावी है.

वॉलनट ब्रेड( Walnut Bread ) :

वॉलनट ब्रेड दिल के मरीजों के लिए बहुत अच्छी मानी जाती है. दरअसल, इसमें ओमेगा-3 फैटी एसिड होता है, जिससे आप अपनी प्रतिरक्षा को बढ़ा सकते हैं. बता दें, कि अखरोट को ब्रेन बूस्टिंग फूड भी माना जाता है, इसलिए दिमाग को तेज करने के लिए वॉलनट ब्रेड या अखरोट की ब्रेड का सेवन आपको एक बार जरूर करना चाहिए.

तो अगली बार आप जब भी ब्रेड खरीदने की सोचें, तो सुनिश्चित करें, कि इन हेल्दी ब्रेड का ऑप्शन चुनें. इस लेख में बताए गई 6 प्रकार की ब्रेड न केवल पोषण से भरपूर हैं, बल्कि इनका स्वाद भी आम ब्रेड से बहुत अलग है.

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