सूखा पत्ता: संगीता की कौनसी गलती बनी सजा

6 महीने पहले ही रवि की शादी पड़ोस के एक गांव में रहने वाले रघुवर की बेटी संगीता से हुई थी. उस के पिता मास्टर दयाराम ने खुशी के इस मौके पर पूरे गांव को भोज दिया था. अब से पहले गांव में इतनी धूमधाम से किसी की शादी नहीं हुई थी. मास्टर दयाराम दहेज के लोभी नहीं थे, तभी तो उन्होंने रघुवर जैसे रोज कमानेखाने वाले की बेटी से अपने एकलौते बेटे की शादी की थी. उन्हें तो लड़की से मतलब था और संगीता में वे सारे गुण थे, जो मास्टरजी चाहते थे. ढ़ाई के बाद जब रवि की कहीं नौकरी नहीं लगी, तो मास्टर दयाराम ने उस के लिए शहर में मोबाइल फोन की दुकान खुलवा दी. शहर गांव से ज्यादा दूर नहीं था. रवि मोटरसाइकिल से शहर आनाजाना करता था.

शादी से पहले संगीता का अपने गांव के एक लड़के मनोज के साथ जिस्मानी रिश्ता था. गांव वालों ने उन दोनों को एक बार रात के समय रामदयाल के खलिहान में सैक्स संबंध बनाते हुए रंगे हाथों पकड़ा था. गांव में बैठक हुई थी. दोनों को आइंदा ऐसी गलती न करने की सलाह दे कर छोड़ दिया गया था. संगीता के मांबाप गरीब थे. 2 बड़ी लड़कियों की शादी कर के उन की कमर पहले ही टूट हुई थी. उन की जिंदगी की गाड़ी किसी तरह चल रही थी. ऐसे में जब मास्टर दयाराम के बेटे रवि का संगीता के लिए रिश्ता आया, तो उन्हें अपनी बेटी की किस्मत पर यकीन ही नहीं हुआ था. उन्हें डर था कि कहीं गांव वाले मनोज वाली बात मास्टर दयाराम को न बता दें, पर ऐसा कुछ नहीं हुआ था.

वही बहू अब मनोज के साथ घर से भाग गई थी. रवि को फोन कर के बुलाया गया. उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उस की बीवी किसी गैर मर्द के साथ भाग सकती है, उस की नाक कटवा सकती है.

‘‘थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई जाए,’’ बिरादरी के मुखिया ने सलाह दी.

‘‘नहीं मुखियाजी…’’ मास्टर दयाराम ने कहा, ‘‘मैं रिपोर्ट दर्ज कराने के हक में नहीं हूं. रिपोर्ट दर्ज कराने से क्या होगा? अगर पुलिस उसे ढूंढ़ कर ले भी आई, तो मैं उसे स्वीकार कैसे कर पाऊंगा.

‘‘गलती शायद हमारी भी रही होगी. मेरे घर में उसे किसी चीज की कमी रही होगी, तभी तो वह सबकुछ ठुकरा कर चली गई. वह जिस के साथ भागी है, उसी के साथ रहे. मुझे अब उस से कोई मतलब नहीं है.’’

‘‘रवि से एक बार पूछ लो.’’

‘‘नहीं मुखियाजी, मेरा फैसला ही रवि का फैसला है.’’

शहर आ कर संगीता और मनोज किराए का मकान ले कर पतिपत्नी की तरह रहने लगे. संगीता पैसे और गहने ले कर भागी थी, इसलिए उन्हें खर्चे की चिंता न थी. वे खूब घूमते, खूब खाते और रातभर खूब मस्ती करते. सुबह के तकरीबन 9 बज रहे थे. मनोज खाट पर लेटा हुआ था… तभी संगीता नहा कर लौटी. उस के बाल खुले हुए थे. उस ने छाती तक लहंगा बांध रखा था. मनोज उसे ध्यान से देख रहा था. साड़ी पहनने के लिए संगीता ने जैसे ही नाड़ा खोला, लहंगा हाथ से फिसल कर नीचे गिर गया. संगीता का बदन मनोज को बेचैन कर गया. उस ने तुरंत संगीता को अपनी बांहों में भर लिया और चुंबनों की बौछार कर दी. वह उसे खाट पर ले आया. ‘‘अरे… छोड़ो न. क्या करते हो? रातभर मस्ती की है, फिर भी मन नहीं भरा तुम्हारा,’’ संगीता कसमसाई.

‘‘तुम चीज ही ऐसी हो जानेमन कि जितना प्यार करो, उतना ही कम लगता है,’’ मनोज ने लाड़ में कहा.

संगीता समझ गई कि विरोध करना बेकार है, खुद को सौंपने में ही समझदारी है. वह बोली, ‘‘अरे, दरवाजा तो बंद कर लो. कोई आ जाएगा.’’ ‘‘इस वक्त कोई नहीं आएगा जानेमन. मकान मालकिन लक्ष्मी सेठजी के घर बरतन मांजने गई है. रही बात उस के पति कुंदन की, तो वह 10 बजे से पहले कभी घर आता नहीं. बैठा होगा किसी पान के ठेले पर. अब बेकार में वक्त बरबाद मत कर,’’ कह कर मनोज ने फिर एक सैकंड की देर नहीं की. वे प्रेमलीला में इतने मगन थे कि उन्हें पता ही नहीं चला कि बाहर आंगन से कुंदन की प्यासी निगाहें उन्हें देख रही थीं. दूसरे दिन कुंदन समय से पहले ही घर आ गया. जब से उस ने संगीता को मनोज के साथ बिस्तर पर मस्ती करते देखा था, तभी से उस की लार टपक रही थी. उस की बीवी लक्ष्मी मोटी और बदसूरत औरत थी. ‘‘मनोज नहीं है क्या भाभीजी?’’ मौका देख कर कुंदन संगीता के पास आ कर बोला.

‘‘नहीं, वह काम ढूंढ़ने गया है.’’

‘‘एक बात बोलूं भाभीजी… तुम बड़ी खूबसूरत हो.’’

संगीता कुछ नहीं बोली.

‘‘तुम जितनी खूबसूरत हो, तुम्हारी प्यार करने की अदा भी उतनी ही खूबसूरत है. कल मैं ने तुम्हें देखा, जब तुम खुल कर मनोज भैया को प्यार दे रही थीं…’’ कह कर उस ने संगीता का हाथ पकड़ लिया, ‘‘मुझे भी एक बार खुश कर दो. कसम तुम्हारी जवानी की, किराए का एक पैसा नहीं लूंगा.’’

‘‘पागल हो गए हो क्या?’’ संगीता ने अपना हाथ छुड़ाया, पर पूरी तरह नहीं.

‘‘पागल तो नहीं हुआ हूं, लेकिन अगर तुम ने खुश नहीं किया तो पागल जरूर हो जाऊंगा,’’ कह कर उस ने संगीता को अपनी बांहों में भर लिया.

‘‘छोड़ो मुझे, नहीं तो शोर मचा दूंगी,’’ संगीता ने नकली विरोध किया.

‘‘शोर मचाओगी, तो तुम्हारा ही नुकसान होगा. शादीशुदा हो कर पराए मर्द के साथ भागी हो. पुलिस तुम्हें ढूंढ़ रही है. बस, खबर देने की देर है.’’ संगीता तैयार होने वाली ही थी कि अचानक किसी के आने की आहट हुई. शायद मनोज था. कुंदन बौखला कर चला गया. मनोज को शक हुआ, पर कुंदन को कुछ कहने के बजाय उस ने उस का मकान ही खाली कर दिया. उन के पैसे खत्म हो रहे थे. महंगा मकान लेना अब उन के बस में नहीं था. इस बार उन्हें छोटी सी खोली मिली. वह गंगाबाई की खोली थी. गंगाबाई चावल की मिल में काम करने जाती थी. उस का पति एक नंबर का शराबी था. उस के कोई बच्चा नहीं था.

मनोज और संगीता जवानी के खूब मजे तो ले रहे थे, पर इस बीच मनोज ने यह खयाल जरूर रखा कि संगीता पेट से न होने पाए. पैसे खत्म हो गए थे. अब गहने बेचने की जरूरत थी. सुनार ने औनेपौने भाव में उस के गहने खरीद लिए. मनोज को कपड़े की दुकान में काम मिला था, पर किसी बात को ले कर सेठजी के साथ उस का झगड़ा हो गया और उन्होंने उसे दुकान से निकाल दिया. उस के बाद तो जैसे उस ने काम पर न जाने की कसम ही खा ली थी. संगीता काम करने को कहती, तो वह भड़क जाता था. संगीता गंगाबाई के कहने पर उस के साथ चावल की मिल में जाने लगी. सेठजी संगीता से खूब काम लेते, पर गंगाबाई को आराम ही आराम था. वजह पूछने पर गंगाबाई ने बताया कि उस का सेठ एक नंबर का औरतखोर है. जो भी नई औरत काम पर आती है, वह उसे परेशान करता है. अगर तुम्हें भी आराम चाहिए, तो तुम भी सेठजी को खुश कर दो.

‘‘इस का मतलब गंगाबाई तुम भी…’’ संगीता ने हैरानी से कहा.

‘‘पैसों के लिए इनसान को समझौता करना पड़ता है. वैसे भी मेरा पति ठहरा एक नंबर का शराबी. उसे तो खुद का होश नहीं रहता, मेरा क्या खयाल करेगा. उस से न सही, सेठ से सही…’’

संगीता को गंगाबाई की बात में दम नजर आया. वह पराए मर्द के प्यार के चक्कर में भागी थी, तो किसी के भी साथ सोने में क्या हर्ज? अब सेठ किसी भी बहाने से संगीता को अपने कमरे में बुलाता और अपनी बांहों में भर कर उस के गालों को चूम लेता. संगीता को यह सब अच्छा न लगता. उस के दिलोदिमाग पर मनोज का नशा छाया हुआ था. वह सोचती कि काश, सेठ की जगह मनोज होता. पर अब तो वह लाचार थी. उस ने समझौता कर लिया था. कई बार वह और गंगाबाई दोनों सेठ को मिल कर खुश करती थीं. फिर भी उन्हें पैसे थोड़े ही मिलते. सेठ ऐयाश था, पर कंजूस भी. एक दिन मनोज बिना बताए कहीं चला गया. संगीता उस का इंतजार करती रही, पर वह नहीं आया. जिस के लिए उस ने ऐशोआराम की दुनिया ठुकराई, जिस के लिए उस ने बदनामी झेली, वही मनोज उसे छोड़ कर चला गया था.

संगीता पुरानी यादों में खो गई. मनोज संगीता के भैया नोहर का जिगरी दोस्त था. उस का ज्यादातर समय नोहर के घर पर ही बीतता था. वे दोनों राजमिस्त्री का काम करते थे. छुट्टी के दिन जीभर कर शराब पीते और संगीता के घर मुरगे की दावत चलती. मनोज की बातबात में खिलखिला कर हंसने की आदत थी. उस की इसी हंसी ने संगीता पर जादू कर दिया था. दोनों के दिल में कब प्यार पनपा, पता ही नहीं चला. संगीता 12वीं जमात तक पढ़ चुकी थी. उस के मांबाप तो उस की पढ़ाई 8वीं जमात के बाद छुड़ाना चाहते थे, पर संगीता के मामा ने जोर दे कर कहा था कि भांजी बड़ी खूबसूरत है. 12वीं जमात तक पढ़ लेगी, तो किसी अच्छे घर से रिश्ता आ जाएगा. पढ़ाई के बाद संगीता दिनभर घर में रहती थी. उस का काम घर का खाना बनाना, साफसफाई करना और बरतन मांजना था. मांबाप और भैया काम पर चले जाते थे. नोहर से बड़ी 2 और बहनें थीं, जो ब्याह कर ससुराल चली गई थीं.

एक दिन मनोज नशे की हालत में नोहर के घर पहुंच गया. दोपहर का समय था. संगीता घर पर अकेली थी. मनोज को इस तरह घर में आया देख संगीता के दिल की धड़कन तेज हो गई. उन्होंने इस मौके को गंवाना ठीक नहीं समझा और एकदूसरे के हो गए. इस के बाद उन्हें जब भी समय मिलता, एक हो जाते. एक दिन नोहर ने उन दोनों को रंगे हाथों पकड़ लिया. घर में खूब हंगामा हुआ, लेकिन इज्जत जाने के डर से संगीता के मांबाप ने चुप रहने में ही भलाई समझी, पर मनोज और नोहर की दोस्ती टूट गई  संगीता और मनोज मिलने के बहाने ढूंढ़ने लगे, पर मिलना इतना आसान नहीं था. एक दिन उन्हें मौका मिल ही गया और वे दोनों रामदयाल के खलिहान में पहुंच गए. वे दोनों अभी दीनदुनिया से बेखबर हो कर एकदूसरे में समाए हुए थे कि गांव के कुछ लड़कों ने उन्हें पकड़ लिया.

समय गुजरा और एक दिन मास्टर दयाराम ने अपने बेटे रवि के लिए संगीता का हाथ मांग लिया. दोनों की शादी बड़ी धूमधाम से हो गई. संगीता ससुराल आ गई, पर उस का मन अभी भी मनोज के लिए बेचैन था. पति के घर की सुखसुविधाएं उसे रास नहीं आती थीं. दोनों के बीच मोबाइल फोन से बातचीत होने लगी. संगीता की सास जब अपने गांव गईं, तो उस ने मनोज को फोन कर के बुला लिया और वे दोनों चुपके से निकल भागे. अब संगीता पछतावे की आग में झुलस रही थी. उसे अपनी करनी पर गुस्सा आ रहा था. गरमी का मौसम था. रात के तकरीबन 10 बज रहे थे. उसे ससुराल की याद आ गई. ससुराल में होती, तो वह कूलर की हवा में चैन की नींद सो रही होती. पर उस ने तो अपने लिए गड्ढा खोद लिया था.

उसे रवि की याद आ गई. कितना अच्छा था उस का पति. किसी चीज की कमी नहीं होने दी उसे. पर बदले में क्या दिया… दुखदर्द, बेवफाई. संगीता सोचने लगी कि क्या रवि उसे माफ कर देगा? हांहां, जरूर माफ कर देगा. उस का दिल बहुत बड़ा है. वह पैर पकड़ कर माफी मांग लेगी. बहुत दयालु है वह. संगीता ने अपनी पुरानी दुनिया में लौटने का मन बना लिया. ‘‘गंगाबाई, मैं अपने घर वापस जा रही हूं. किराए का कितना पैसा हुआ है, बता दो?’’ संगीता ने कहा.

‘‘संगीता, मैं ने तुम्हें हमेशा छोटी बहन की तरह माना है. मैं तेरी परेशानी जानती हूं. ऐसे में मैं तुम से पैसे कैसे ले सकती हूं. मैं भी चाहती हूं कि तू अपनी पुरानी दुनिया में लौट जा. मेरा आशीर्वाद है कि तू हमेशा सुखी रहे.’’ मन में विश्वास और दिल के एक कोने में डर ले कर जब संगीता बस से उतरी, तो उस का दिल जोर से धड़क रहा था. वह नहीं चाहती थी कि कोई उसे पहचाने, इसलिए उस ने साड़ी के पल्लू से अपना सिर ढक लिया था. जैसे ही वह घर के पास पहुंची, उस के पांव ठिठक गए. रवि ने उसे अपनाने से इनकार कर दिया तो… उस ने उस दोमंजिला पक्के मकान पर एक नजर डाली. लगा जैसे अभीअभी रंगरोगन किया गया हो. जरूर कोई मांगलिक कार्यक्रम वगैरह हुआ होगा.

‘‘बहू…’’ तभी संगीता के कान में किसी औरत की आवाज गूंजी. वह आवाज उस की सास की थी. उस का दिल उछला. सासू मां ने उसे घूंघट में भी पहचान लिया था. वह दौड़ कर सासू मां के पैरों में गिरने को हुई, लेकिन इस से पहले ही उस की सारी खुशियां पलभर में गम में बदल गईं.

‘‘बहू, रवि को ठीक से पकड़ कर बैठो, नहीं तो गिर जाओगी.’’

संगीता ने देखा, रवि मोटरसाइकिल पर सवार था और पीछे एक औरत बैठी हुई थी. संगीता को यह देख कर धक्का लगा. इस का मतलब रवि ने दूसरी शादी कर ली. उस का इंतजार भी नहीं किया. इस से पहले कि वह कुछ सोच पाती, मोटरसाइकिल फर्राटे से उस के बगल से हो कर निकल गई. संगीता ने उन्हें देखा. वे दोनों बहुत खुश नजर आ रहे थे. तभी वहां एक साइकिल सवार गुजरा. संगीता ने उसे रोका, ‘‘चाचा, अभी रवि के साथ मोटरसाइकिल पर बैठ कर गई वह औरत कौन है?’’

‘‘अरे, उसे नहीं जानती बेटी? लगता है कि इस गांव में पहली बार आई हो. वह तो रवि बाबू की नईनवेली दुलहन है.’’

‘‘नईनवेली दुलहन?’’

‘‘हां बेटी, वह रवि बाबू की दूसरी पत्नी है. पहली पत्नी बड़ी चरित्रहीन निकली. अपने पुराने प्रेमी के साथ भाग गई. वह बड़ी बेहया थी. इतने अच्छे परिवार को ठोकर मार कर भागी है. कभी सुखी नहीं रह पाएगी,’’ इतना कह कर वह साइकिल सवार आगे बढ़ गया. संगीता को लगा, उस के पैर तले की जमीन खिसक रही है और वह उस में धंसती चली जा रही है. अब उस से एक पल भी वहां रहा नहीं गया. जिस दुनिया में लौटी थी, वहां का रास्ता हमेशा के लिए बंद हो चुका था. उसे चारों तरफ अंधेरा नजर आने लगा था. तभी संगीता को अंधेरे में उम्मीद की किरण नजर आने लगी… अपना मायका. सारी दुनिया भले ही उसे ठुकरा दे, पर मायका कभी नहीं ठुकरा सकता. भारी मन लिए वह मायके के लिए निकल पड़ी. किवाड़ बंद था. संगीता ने दस्तक दी. मां ने किवाड़ खोला.

‘‘मां…’’ वह जैसे ही दौड़ कर मां से लिपटने को हुई, पर मां के इन शब्दों ने उसे रोक दिया, ‘‘अब यहां क्या लेने आई है?’’

‘‘मां, मैं यहां हमेशा के लिए रहने आई हूं.’’

‘‘हमारी नाक कटा कर भी तुझे चैन नहीं मिला, जो बची इज्जत भी नीलाम करने आई है. यह दरवाजा अब तेरे लिए हमेशा के लिए बंद हो चुका है.’’

‘‘नहीं मां….’’ वह रोने लगी, ‘‘ऐसा मत कहो.’’

‘‘तू हम सब के लिए मर चुकी है. अच्छा यह है कि तू कहीं और चली जा,’’ कह कर मां ने तुरंत किवाड़ बंद कर दिया.

संगीता किवाड़ पीटने लगी और बोली, ‘‘दरवाजा खोलो मां… दरवाजा खोलो मां…’’ पर मां ने दरवाजा नहीं खोला. भीतर मां रो रही थी और बाहर बेटी. संगीता को लगा, जैसे उस का वजूद ही खत्म हो चुका है. उस की हालत पेड़ से गिरे सूखे पत्ते जैसी हो गई है, जिसे बरबादी की तेज हवा उड़ा ले जा रही है. दूर, बहुत दूर. इस सब के लिए वह खुद ही जिम्मेदार थी. उस से अब और आगे बढ़ा नहीं गया. वह दरवाजे के सामने सिर पकड़ कर बैठ गई और सिसकने लगी. अब गंगाबाई के पास लौटने और सेठ को खुश रखने के अलावा कोई चारा नहीं था… पर कब तक?

इस हाथ ले, उस हाथ दे: क्या अपनी गलती समझ पाया वरुण

वरुण और अनुज के पिता ने जीवन भर की भागदौड़ के बाद एक बड़ा कारखाना लगाया था. उन की रेडीमेड कपड़ों की फैक्टरी तिरुपुर में थी, जहां मुंबई से रेल में जाने पर काफी समय लगता था. हवाई जहाज से जाने पर पहले कोयंबटूर जाना पड़ता था. उन दिनों मुंबई से कोयंबटूर के लिए हफ्ते में केवल एक उड़ान थी, अत: वरुण प्राय: वहां महीने में एक बार जाता था. वरुण  को कपड़ों के एक्सपोर्ट के सिलसिले में आस्टे्रलिया व अमेरिका भी साल में 2-3 बार जाना पड़ता. पिता मुंबई आफिस व ऊपर का सारा काम देखते, वरुण फैक्टरी व भागदौड़ का काम देखता था. अनुज अपने बड़े भाई वरुण से करीब 10 साल छोटा था और अब कालिज में दाखिल हो चुका था.

वरुण का विवाह काफी साल पहले साधना से हो चुका था. उस के 1 लड़का व 2 लड़कियां यानी कुल 3 बच्चे थे. तीसरे बच्चे के होने तक साधना पूजापाठ, व्रतउपवास व तीर्थयात्रा आदि में अधिक समय बिताने लगी, धार्मिक मनोवृत्ति उस की शुरू से ही थी. पतिपत्नी की रुचियों में भारी अंतर होने के चलते ही दोनों में काफी तनातनी रहने लगी.

वरुण का धंधा एक्सपोर्ट का था और चेंबर औफ कौमर्स की सभाओंपार्टियों में उसे हफ्ते में एक बार तो जाना ही पड़ता था. ऐसी पार्टियों में शराब व डांस आदि का सिलसिला जोर से चलता था. इस वातावरण में धार्मिक प्रवृत्ति की साधना का दम घुटता था. यह देख कर कि कोई मर्द दूसरी औरत को छाती से चिपका कर नाचता. चूंकि यह सब आम दस्तूर की बातें थीं, जो उसे कतई रास न आतीं.

शुरुआत में तो साधना अकेली टेबल पर बैठी रहती और वरुण दूसरी औरतों के साथ नाचता रहता. साधना न तो इतनी देर रात की कायल थी, न ही वह ससुर व बच्चों को अकेले छोड़ना चाहती थी. अब तो उस ने ऐसी पार्टियों में जाना ही बंद कर दिया तो वरुण पहले से और भी अधिक खुल गया और 1-2 महिलाओं से उस का संबंध भी हो गया, जिस के लिए उसे छोटे होटलों में जाना पड़ता. धंधे के नाम पर सब ढका रहता.

अनुज अब एम.बी.ए. कर चुका था. शादी के बाद वह घर के धंधे में ही हाथ बटाना चाहता था. वरुण ने शुरूशुरू में तो उसे ऊपर का काम बताया, पर बाद में उसे फैक्टरी को संभालने के काम से तिरुपुर भेजने लगा. अनुज का विवाह चंदा से हुआ, जो ग्वालियर के एक व्यापारी की लड़की थी.

चंदा साधना से ठीक उलटे स्वभाव की निकली. उसे आएदिन पार्टियों में जाने, नए फैशन व गहनों का बेहद शौक था. उस की उलझन सामने आने लगी क्योंकि अनुज अब ज्यादातर कंपनी के काम से बाहर रहने लगा. एकाध बार बेहद आवश्यक पार्टी में वरुण साधना के न जाने पर चंदा को ले गया. साथ में 1-2 बार दोनों ने डांस भी किया जिस से चंदा की झिझक जाती रही.

शेर जब खून चख लेता है तो फिर उस के पीछे पड़ जाता है. पिता के साथ दोनों भाई एक ही मकान में रहते थे. दोनों भाइयों के रहने के हिस्से अलगअलग थे, पर सभी कमरे ड्राइंगरूम में खुलते थे. वरुण ऊपर से तो शालीन नजर आता, पर एकांत में चंदा से थोड़ाबहुत मजाक कर बैठता. चंदा को इस प्रकार की छेड़खानी अच्छी लगती थी, उस से आगे दोनों ने ही कुछ सोचाविचारा न था.

एक दिन शाम को क्लब में दोनों ही एकाएक स्वीमिंग पूल में साथ हो लिए. वरुण वैसे तो अकसर सुबह क्लब जाता था और चंदा कभीकभी शाम को. साधना यथावत शाम को कहीं न कहीं भजनकीर्तन में जाती थी और भोजन के वक्त आ जाती. उसे इस मामले में कुछ भी सुराग न था, वह अपने नित्यकर्म में मस्त रहती.

स्वीमिंग देर शाम को हो रही थी, अत: पानी के नीचे क्या हो रहा है, दिखाई नहीं देता. पहले तो दोनों साधारण गपशप करते रहे, फिर खेलखेल में तैरने व दोनों के बीच अठखेलियां होने लगीं. वरुण ने पानी में ही उस के वक्ष पर इस तरह हाथ लगाया, जैसे अनजाने में लगा हो. इस पर चंदा मुसकरा कर और तेजी से तैरने लगी. इस प्रकार दोनों तैर कर बगल में बने हुए गरम पानी के जकूजी में गए, जहां तैरने के  बाद नहाने से पहले जा कर तैरने वाले रिलैक्स होते थे.

वरुण चंदा के पांव धीरेधीरे सहलाने लगा, मानो उस की थकावट मिटा रहा हो. बाद में वह चंदा का हाथ ले कर अपने शरीर पर फिरवाने लगा. उत्तेजना में दोनों काफी देर तक एकदूसरे के साथ अंगीकरण के बाद जब शांत हुए तो चुपचाप अपनाअपना टावल ले कर चल दिए. दोनों अलगअलग गाडि़यों में जैसे वहां आए थे, वैसे ही आगेपीछे घर पहुंचे. अब तो दोनों का हौसला बढ़ गया. देर रात को सब के सोने के बाद वरुण अपना डे्रसिंग गाउन पहन कर इस तरह कमरे से निकलता मानो ड्राइंगरूम में जा रहा हो. घंटे आधघंटे मस्ती व आलिंगन के बाद वह वापस आ कर सो जाता.

साधना को पहले तो काफी अरसे तक कुछ पता नहीं चला. इन दिनों वरुण का ब्लड प्रेशर भी हाई रहने लगा था और उस की शराब व जिंदगी के तौरतरीके से डाक्टर ने वार्षिक टेस्ट होने पर उसे चेतावनी दी कि उसे अब उत्तेजनात्मक व भागदौड़ की टेंशन से बचना होगा. दवा लेने के बावजूद वरुण का ब्लड प्रेशर 180/120 पर रहने लगा, पर जीवन को नियंत्रित करना कोई सहज खेल नहीं है. यू टर्न के लिए बहुत धीमी गति व काफी फासले की जरूरत रहती है, पर इस के लिए मन में आभास होने पर दृढ़ निश्चय करना होता है जोकि उस के बस की बात नहीं थी.

एक रात को सहसा पलंग सूना देख साधना देखने गई कि कहीं वरुण की तबीयत तो नहीं खराब हो गई. थोड़ी देर में वह चंदा के कमरे से निकला तो साधना को मानो सांप ही सूंघ गया. वह गश खा कर बेहोश हो गिर गई. ललाट फटने से खून बह निकला. बड़ी मुश्किल से अस्पताल में टांके व मरहमपट्टी करवा कर वरुण उसे खिसियाए मुंह घर ले आया. उस ने साधना से वादा भी किया कि यह भूल अब कभी नहीं होगी, वह तो केवल 5 मिनट के लिए चंदा के कमरे से कुछ आवाज आने पर उसे देखने गया था. और वह कहता भी क्या?

साधना गंभीर व समझदार तो थी ही, बात को बढ़ाने में उस ने कोई लाभ नहीं समझा. वरुण अब चंदा से कतरा कर आफिस की एक लड़की के साथ किसी होटल में जाता. एक बार उसे इसी क्रिया में जबरदस्त हार्टअटैक आया और बेहोशी की हालत में लड़की ने उसे अस्पताल में भरती करा कर घर वालों को फोन किया कि दफ्तर में वरुण का जी घबराने से वह उसे डाक्टर के पास ले जा रही थी कि रास्ते में ही हालत खराब हो गई.

वरुण को हार्टअटैक बहुत जोर का पड़ा था, साथ ही ब्लड प्रेशर की मार से दाएं अंग में लकवा आ गया. 52 साल की उम्र में ही उस के जीवन में उल्कापात हुआ, करीब 6 महीने की साधना व फिजियोथेरैपी से वह बच तो गया, पर चलनेफिरने व यात्रा करने से मजबूर हो गया. अब वह घर पर ही पड़ा रहता और साधना उस की मन से सेवा करती. रात के लिए एक नर्स अलग से रखी गई थी, ताकि 24 घंटे वरुण की देखभाल हो सके.

पिता ने अनुज को कंपनी का चार्ज दे दिया. साधना ने एक दिन भी पति को खरीखोटी नहीं सुनाई, बल्कि धीरज व धैर्य से उसे रहने की हिदायत देती रहती और मदद करती रहती. वरुण अब देखने में 65-70 साल का दिखने लगा है. वापस पुरानी ऊर्जा व स्फूर्ति अब उसे कभी नहीं मिलेगी, ऐसा सभी डाक्टरों ने कह दिया.

बिदाई- भाग 1: क्यों मिला था रूहानी को प्यार में धोखा

‘‘मां मैं ने ठान लिया है कि मैं अभिनेत्री ही बनूंगी. अच्छा होगा आप और पापा भी मेरे इस निर्णय में मेरा साथ दो. वैसे भी जब मैं ने निर्णय ले ही लिया है तो करूंगी तो मैं वही,’’ रूहानी का सुर सख्त था. वह शुरू से अडि़यल रही थी. बड़ा होने के साथ, जल्द से जल्द पैसा और शोहरत पाने की धुन ने उसे और भी कठोर बना दिया था. मातापिता का उस के निर्णय में साथ देने या न देने से उसे कोई फर्क नहीं पड़ता था. जब से उस की एक सहेली ने उसे एक एजेंट से मिलवाया था और उस एजेंट ने रूहानी को टैलीविजन पर उच्च कोटि की अभिनेत्री बनवाने के सुनहरे ख्वाब दिखाए थे, तब से रूहानी लगातार वही सपना देख रही थी. वह एजेंट भी लगभग रोज ही उसे फोन करता और जल्दी नोएडा पहुंचने को कहता. रूहानी भी उसी समय अपने मातापिता से जिद करने लगती.

‘‘मैं कहती हूं जी, यदि हम रूहानी को अपने साथ, अपने पास रखना चाहते हैं, तो हमें उस का साथ देना चाहिए वरना 18 वर्ष की तो वह हो ही गई है… घर छोड़ कर चली गई तो हम क्या कर पाएंगे?’’ उस की जिद के आगे मां ने हार मान ली थी. अब वे अपनी बेटी को खोना नहीं चाहती थीं, इसलिए उस के पिता को समझाबुझा रही थीं.

‘‘क्या तुम जानती नहीं हो कि वह कैसी दुनिया है… जितनी चकाचौंध है, उतना ही तनाव भी… जितना पैसा है, उतनी ही प्रतिस्पर्धा भी. जितनी जल्दी शोहरत मिलती है, उतना ही कठिन उस शोहरत को अपने पास बनाए रखना होता है. तुम्हें लगता है कि रूहानी इतनी कठिन जिंदगी जी पाएगी? और नोएडा यहां रखा है क्या? कितनी दूर है हमारे शहर से. वहां अकेली कैसे रहेगी वह?’’ पिता अब भी राजी न थे. लेकिन वयस्क बेटी की जिद के आगे कब तक टिक पाते?

रूहानी ने अपना बोरियाबिस्तर बांधा और निकल पड़ी घर से. पटरियों पर तेजी से दौड़ती ट्रेन से खिड़की से बाहर झांकते हुए, भागते हुए पेड़ों के साथ उस के मानसपटल पर अतीत के क्षण भी दौड़ने लगे…

कैसे उस एजेंट ने रूहानी को देखते ही 2-3 टीवी धारावाहिकों की बात कह डाली थी, ‘‘अरे रूहानी, तुम एक बार नोएडा आओ तो सही, औडिशन में तुम्हारा नंबर लगाना मेरा काम है… मैं दावे से कह सकता हूं कि तुम्हारा चयन हो जाएगा. फिर तुम्हें एक मैनेजर की आवश्यकता पड़ेगी… चलो, उस का इंतजाम भी कर दूंगा. अब बस, रातोंरात स्टार बनने की तैयारी कर लो, डार्लिंग.’’

ट्रेन में अकेले नोएडा जाते हुए वह सोचती जा रही थी, ‘आज मैं इस भीड़ का हिस्सा हूं. मुझे कोई नहीं जानता. मैं भी इन लोगों में, इन्हीं की तरह खो गई हूं, लेकिन वह दिन दूर नहीं जब मैं इसी भीड़ की रोल मौडल होऊंगी,’ मन ही मन मुसकराती रूहानी पर किसी का ध्यान नहीं था.

आज वाकई वह इस भीड़ का हिस्सा थी. लेकिन भविष्य किस ने देखा है? शायद इसीलिए भविष्य के सपने सजानादिखाना आसान है. बहुत सी दुकानें इसी स्वप्निल भविष्य को बेच रही हैं… बहुत से लोग दूसरों के भविष्य को दिखा कर अपना वर्तमान सुधार रहे हैं.

नोएडा पहुंचते ही रूहानी ने उस एजेंट से संपर्क साधा. फिर उसी ने रूहानी को नोएडा से सटे एक सस्ते से गांव में पीजी में एक कमरा दिलवा दिया. रूहानी के साथ वहां 3 लड़कियां और रहती थीं.

कमरे की हालत देख रूहानी के सपने थोड़े चटकने लगे. बोली, ‘‘आप ने तो कहा था कि आप मुझे रातोंरात स्टार बना दोगे, पर यहां तो…’’

‘‘डोंट बी सिली रूहानी, स्टार बनने में मेहनत लगती है… पहले पेड़ उगाओ, फिर आम खाना. खैर, छोड़ो ये फुजूल की बातें, मैं ने कल तुम्हारे लिए एक औडिशन में नंबर लगाया है. ठीक 10 बजे पहुंच जाना इस पते पर,’’ वह उसे पता लिखा कागज पकड़ा गया.

सुबहसुबह तैयार हो रूहानी निश्चित समय पर निर्धारित स्थान पहुंच गई. नई जगह, नई संस्कृति. रूहानी थोड़ा असहज अनुभव कर रही थी. वहां लंबी कतार लगी थी. रूहानी का नंबर आतेआते तीसरा पहर आ गया.

भूखीप्यासी रूहानी थकान से बेहाल थी. अपना नाम पुकारे जाने पर चेहरा थोड़ा संवार कर वह अंदर पहुंची. जो लाइनें उसे दी गई थीं, उन्हें उस ने याद कर लिया था, किंतु पहली बार कैमरे के सामने बोलने के कारण उस के चेहरे पर कोई हावभाव न आ पाए. एक रोबोट की भांति उस ने लाइनें बोल दीं. जाहिर है वह उस औडिशन में नहीं चुनी गई. एक तो अनुत्तीर्ण होने का दुख, ऊपर से एजेंट से अच्छीखासी डांट सुननी पड़ी, वह अलग. एजेंट उसे अलगअलग जगह औडीशन पर भेजता, किंतु कैमरे के सामने आते ही पता नहीं रूहानी को क्या हो जाता. इसी भागदौड़ में 3 माह गुजर गए. घर से जो पैसे लाई थी, वे खत्म होने लगे थे. साथ रह रही अन्य लड़कियों का भी यही हाल था. सभी इस रुपहली दुनिया का हिस्सा बनने आई थीं, किंतु कामयाबी किसी के भी हाथ नहीं लग रही थी.

रूहानी के चेहरे का फायदा उठाने और कैमरे के प्रति उस की झिझक मिटाने हेतु एजेंट ने पहले उस से मौडलिंग करवाने की सोची. नियत समय पर रूहानी मालवीय नगर की गलियों में स्थित मौडलिंग एजेंसी पहुंच गई. वहां भी लड़कियों की लंबी कतार. वहां का एजेंट बेशर्मी से लड़कियों के बदन को छू रहा था. हर लड़की के बदन के हर हिस्से का नाप ले रहा था और जोरजोर से उसे दूसरे लड़के को बताता जा रहा था, जो उसे एक कागज पर लड़कियों के नाम के आगे लिखता जा रहा था.

हद तो तब हुई जब उस ने रूहानी के आगे खड़ी लड़की के नितंब दबा कर पूछा, ‘‘असली हैं?’’

रूहानी के लिए यह सब अप्रत्याशित था. लेकिन कहते हैं न भट्टी में तप कर ही सोना कंचन बनता है. धीरेधीरे रूहानी भी ऐसे कल्चर की आदी हो गई. उस की झिझक खुलने लगी. उस के हावभाव, उस की भावभंगिमा में खुलापन आ गया. छोटेमोटे विज्ञापन कर कुछ पैसा भी आने लगा था. इस शहर में रहना अब रूहानी के लिए संभव होता जा रहा था.

शायद रूहानी के एजेंट ने अपना लक्ष्य पाने को सही मार्ग अपनाया था. कुछ था उस की आंखों में, उस के चेहरे में जो उस एजेंट ने भांप लिया था. रूहानी को उस ने फिर एक टीवी धारावाहिक के औडिशन हेतु भेजा.

इस बार रूहानी के सपने सिर्फ हवाई नहीं थे. रूहानी को एक छोटा रोल मिल गया, लीड ऐक्ट्रैस की ननद की भूमिका निभाने का.

शुरू में रूहानी को यह काम भी और कामों जैसा ही प्रतीत हुआ जैसे दफ्तर जा रही हो. उतनी ही मेहनत, वैसी ही समयसारिणी, बल्कि छुट्टियां उस से कहीं कम. न कोई शनिवार, न कोई इतवार…चाहे बुखार ही क्यों न आ जाए. दवा फांको और चलो काम पर. किंतु जैसेजैसे उस धारावाहिक की टीआरपी बढ़ने लगी, लोग उस के किरदार को पहचानने लगे. रूहानी का मकानमालिक अब उस से तमीज से पेश आता. कभीकभार उस के बच्चे, अपने मित्रों सहित रूहानी के साथ सैल्फी लेने चले आते.

उसे अच्छा लगता जब उस का एजेंट उसे किसी भी वेशभूषा में बाजार जाने से मना करता, ‘‘अब तुम एक सैलिब्रिटी हो, डार्लिंग, यों उठ कर अब तुम मार्केट नहीं जा सकती हो… अपना सामान औनलाइन और्डर कर दिया करो.’’

धारावाहिक करतेकरते रूहानी को 1 साल होने को आ रहा था. इस बीच अपने मातापिता से उस का संपर्क बहुत ही कम रह गया था. क्या करती समय ही नहीं था उस के पास. जब कभी मिलना होता तब उस के मातापिता ही चले आते उस के पास. लेकिन तब भी वह उन के साथ बहुत ही कम समय व्यतीत कर पाती.

तेजाब- भाग 2: प्यार करना क्या चाहत है या सनक?

‘‘प्यार नहीं तो साथ रहने की क्या तुक? आज मु झे अपने पिता की रत्तीभर याद नहीं आती. उम्र के इस पड़ाव पर मैं सोचती हूं मेरी जिंदगी है, चाहे जैसे जिऊं. उन्होंने भी अपने समय में यही सोचा होगा? पर तुम इतना सीरियस क्यों हो?’’

‘‘क्रिस्टोफर, मैं तुम से शादी करना चाहता हूं. ताउम्र तुम्हारा साथ चाहिए मु झे,’’ मैं भावुक हो गया. क्रिस्टोफर हंसने लगी.

‘‘मैं भाग कहां रही हूं? इंडिया आतीजाती रहूंगी. अभी तो मेरा प्रोजैक्ट अधूरा है.’’

‘‘यह मेरे सवाल का जवाब नहीं है. तुम्हारे बगैर जी नहीं सकूंगा.’’

‘‘तुम इंडियन शादी के लिए बहुत उतावले होते हो. शादी का मतलब भी जानते हो?’’ क्रिस्टोफर का यह सवाल मु झे बचकाना लगा. अब वह मु झे शादी का मतलब सम झाएगी? मेरा मुंह बन गया. मेरा चेहरा देख कर क्रिस्टोफर मुसकरा दी. मैं और चिढ़ गया.

‘‘क्यों अपना मूड खराब करते हो. यहां हम लोग एंजौय करने आए हैं. शादी कर के बंधने से क्या मिलने वाला है?’’

‘‘तुम नहीं सम झोगी. शादी जिंदगी को व्यवस्थित करती है.’’

‘‘ऐसा तुम सोचते हो, मगर मैं नहीं. मेरी तरफ से तुम स्वतंत्र हो.’’

‘‘तुम अच्छी तरह सम झती हो कि मैं सिर्फ तुम से शादी करना चाहता हूं.’’

‘‘तब तो तुम को इंतजार करना होगा. जब मु झे लगेगा कि तुम मेरे लिए अच्छे जीवनसाथी साबित होगे, तो मैं तुम से शादी कर लूंगी. मैं किसी दबाव में आने वाली नहीं.’’

‘‘मैं तुम पर दबाव नहीं डाल रहा.’’

‘‘फिर इतनी जल्दबाजी की वजह?’’

‘‘मैं तुम्हें खोना नहीं चाहता. क्या तुम मु झ से प्रेम नहीं करतीं?’’

‘‘प्रेम और शादी एक ही चीज है?’’

‘‘प्रेम की परिणति क्या है?’’

‘‘शादी?’’ वह हंस पड़ी. जब रुकी तो बोली, ‘‘मैं तुम्हें एक अच्छा दोस्त मानती हूं. एक बेहतर इंडियन दोस्त.’’

‘‘और कुछ नहीं?’’

‘‘और क्या?’’

‘‘हमारे बीच जो शारीरिक संबंध बने उसे किस रूप में लेती हो?’’

‘‘वे हमारी शारीरिक जरूरतें थीं. इस को ले कर मैं गंभीर नहीं हूं. यह एक सामान्य घटना है मेरे लिए.’’

क्रिस्टोफर के कथन से मेरे मन में निराशा के भाव पैदा हो गए. इस के बावजूद मेरे दिल में उस के प्रति प्रेम रत्तीमात्र कम नहीं हुआ. वह भले ही मु झे पेरिस न ले जाए, मैं ने कभी भी इस लोभ में पड़ कर उस से प्रेम नहीं किया. मैं ने सिर्फ क्रिस्टोफर की मासूमियत और निश्च्छलता से प्रेम किया था. आज के समय में वह मेरे लिए सबकुछ थी. मैं ने उस के लिए सब को भुला दिया. मेरे चित्त में हर वक्त उसी का चेहरा घूमता था. एक क्षण वह आंखों से ओ झल होती तो मैं भाग कर उसे खोजता.

‘‘यहां हूं बारामदे में,’’ क्रिस्टोफर बोली तो मैं तेजी से चल कर उस के पास आया और उसे बांहों में भर लिया.

‘‘बिस्तर पर नहीं पाया, इसलिए घबरा गया था,’’ मैं बोला.

‘‘चिंता मत करो. मैं पेरिस में नहीं, तुम्हारे साथ नैनीताल के एक होटल में हूं. तुम्हारे बिना लौटना क्या आसान होगा?’’ वह हंसी.

‘‘आसान होता तो क्या अकेली चली जाती?’’ मेरा चेहरा बन गया. क्रिस्टोफर ने मेरे चेहरे को पढ़ लिया.

‘‘उदास मत हो. वर्तमान में रहना सीखो. अभी तो मैं तुम्हारे सामने हूं, डार्लिंग.’’ क्रिस्टोफर ने मु झे आलिंगनबद्ध कर लिया. मेरे भीतर का भय थोड़ा कम हुआ. एक हफ्ते बाद हम दोनों बनारस आए. 2 दिनों बाद क्रिस्टोफर ने बताया कि उसे पेरिस जाना होगा. 10 दिनों बाद लौटेगी. सुन कर मेरा दिल बैठ गया. उस के बगैर एक क्षण रहना मुश्किल था मेरे लिए. 10 दिन तो बहुत थे. क्रिस्टोफर अपना सामान बांध रही थी. इधर मैं उस की जुदाई में डूबा जा रहा था. क्या पता क्रिस्टोफर न लौटे? सोचसोच कर मैं परेशान हुआ जा रहा था. जब नहीं रहा गया तो पूछ बैठा, ‘‘लौट कर आओगी न,’’ कहतेकहते मेरा गला भर आया.

‘‘आऊंगी, जरूर आऊंगी,’’ उस ने आऊंगी पर जोर दे कर कहा.

वह चली गई. मैं घंटों उस की याद में आंसू बहाता रहा. 10 दिन 10 साल की तरह लगे. न खाने का जी करता न ही सोने का. नींद तो जैसे मु झ से रूठ ही गई थी. ऐसे में स्कैचिंग का प्रश्न ही नहीं उठता. मेरी दुर्दशा मेरे मम्मीपापा से देखी नहीं गई. उन्होंने मु झे सम झाने का प्रयास किया. उसे भूलने को कहा. क्या यह संभव था? मैं ने अपनेआप को एक कमरे में बंद कर लिया था. क्रिस्टोफर की फोटो अपने सीने से लगाए उस के साथ बिताए पलों को याद कर अपना जी हलका करने की कोशिश करने लगा.

पूरे एक महीने बाद एक सुबह अचानक क्रिस्टोफर ने मेरे घर पर दस्तक दी. उसे सामने पा कर मैं बेकाबू हो गया. उसे बांहों में भर कर चूमने लगा. क्रिस्टोफर को मेरा यह व्यवहार अमर्यादित लगा.

‘‘यह क्या बदतमीजी है?’’ क्रिस्टोफर ने खुद को मु झ से अलग करने की कोशिश की.

‘‘क्रिस्टोफर, अब मु झे छोड़ कर कहीं नहीं जाओगी,’’ मेरा कंठ भर आया. आंखें नम हो गईं.

‘‘क्या हालत बना रखी है. बेतरतीब बाल, बढ़ी दाढ़ी. जिस्म से आती बू.’’ क्रिस्टोफर मु झ से छिटक कर अलग हो गई. यह मेरे लिए अनापेक्षित था. होना तो यह चाहिए था कि वह भी मेरे प्रति ऐसा ही व्यवहार करती.

‘‘तुम पहले अपना हुलिया ठीक करो.’’ मैं भला क्रिस्टोफर का आदेश कैसे टाल सकता था. थोड़ी देर बाद जब मैं उस के पास आया तो वह खुश हो गई.

‘‘आई लव यू,’’ कह कर उस ने मु झे चूम लिया. उस शाम हम दोनों खूब घूमे. घूमतेघूमते हम दोनों अस्सी घाट पर आए. वहां बैठे शाम का नजारा ले रहे थे कि उस का फोन बजा. क्रिस्टोफर उठ कर एकांत में चली गई. थोड़ी देर बाद आई.

‘‘किस का फोन था?’’ मैं ने पूछा.

‘‘पेरिस के मेरे एक दोस्त का था. मेरे पहुंचने की खबर ले रहा था.’’ क्रिस्टोफर के कथन ने एक बार फिर से मु झे सशंकित कर दिया. मैं भी दोस्त वह भी दोस्त. वह भी इतना अजीज कि उस का हाल पूछ रहा था. क्या वह मु झ से भी ज्यादा करीबी था जो क्रिस्टोफर ने एकांत का सहारा लिया. बहरहाल, मैं इस वक्त को पूरी तरह से जी लेना चाहता था. रात 10 बजने को हुए तो क्रिस्टोफर ने घर चलने के लिए कहा. घर आ कर उस ने मु झे गुडनाइट कहा. उस के बाद हम दोनों अपनेअपने कमरे में चले गए.

तेजाब- भाग 3: प्यार करना क्या चाहत है या सनक?

सुबह की पहली किरण पड़ते ही क्रिस्टोफर की एक झलक के लिए मैं ऊपर उस के कमरे में आया. संयोग से दरवाजा खुला था. क्रिस्टोफर बाथरूम में थी. एकाएक मेरी नजर उस के लैपटौप पर गई. वह किसी से चैटिंग कर रही थी. मैं पढ़ने लगा.

‘एक इंडियन मेरे पीछे पड़ा था. उस से कुछ काम निकलवाने हैं.’ क्रिस्टोफर.

‘काम जल्दीजल्दी खत्म कर के आ जाओ,’ फिलिप.

यानी उस दोस्त का नाम फिलिप है? मैं ने मन ही मन सोचा.

‘एक हफ्ते और इंतजार करो. आते ही हम दोनों शादी कर लेंगे,’ क्रिस्टोफर.

पढ़ कर ऐसा लगा जैसे मेरे पैरोंतले जमीन खिसक गई हो. मैं ने किसी तरह अपनेआप को संभाला. इस के पहले कि वह बाथरूम से निकले, मैं वहां से खिसक गया.

क्रिस्टोफर ने मेरे साथ इतना बड़ा धोखा किया. यह सोच कर लगा मेरा सिर फट जाएगा. मु झे सपने में भी भान नहीं था कि क्रिस्टोफर मेरा इस्तेमाल कर रही है. मेरा मन उस के प्रति घृणा से भर गया. जी किया अभी जा कर क्रिस्टोफर का गला घोंट दूं. मगर नहीं, मैं उसे ऐसा दंड देना चाहता था कि वह ताउम्र अभिशापित जीवन जिए.

इस निश्चय के साथ मैं उठा. एक सुनार के पास गया. मनमानी कीमत दे कर एक छोटे से जार में तेजाब खरीदा. उसे सभी की नजरों से छिपा कर अपने कमरे की अलमारी में रख दिया. अब मु झे मौके की तलाश थी. आज क्रिस्टोफर अकेले शोधकार्य के लिए बाहर निकली. मु झे साथ नहीं लिया. जाहिर है मेरे रहने से उस की निजता बाधित होती. इस बार एक महीने पेरिस में रह कर आई है, तो वह काफी बदलीबदली सी लगी. फिलिप से प्रेम का असर साफ उस के तौरतरीकों में दिख रहा था. मु झ से आई लव यू बोलना महज एक पाखंड था ताकि मु झे आभास न हो उस के मन में क्या चल रहा है.

दिनभर घूमने के बाद रात क्रिस्टोफर अपने कमरे में आ कर लेट गई. मेरा मन उस के रवैए से दुखी था. इसलिए उस के पास हालचाल लेने नहीं गया. ऐसा पहली बार हुआ जब क्रिस्टोफर ने मेरी उपेक्षा की. तभी क्रिस्टोफर का फोन आया.

‘‘कहां हो तुम?’’ न चाहते हुए मु झे उस के सवाल का जवाब देना पड़ा, ‘‘नीचे कमरे में.’’

‘‘नाराज हो?’’ अब मैं क्या कहूं. नाराज तो था.

‘‘मेरे पास नहीं आओगे?’’

इस तरीके से उस ने मनुहार किया कि मैं अपनेआप पर नियंत्रण न रख सका. तेज कदमों से चल कर उस के पास आया. उस की सूरत देखते ही मेरा सारा गुस्सा ठंडा पड़ गया. उस ने प्यार से मेरे बालों को सहलाया. ‘‘मु झे माफ कर दो, आज तुम्हें अपने साथ नहीं ले गई.’’

मैं एकटक उस के चेहरे को देख रहा था. नीली आंखें, सुर्ख अधर, गुलाबी कपोल, निश्च्छल मुसकराहट जिस से वशीभूत हो कर मैं खुद से बेखबर हो गया. आने वाले दिनों में उस पर किसी और का अधिकार होेगा, सोच कर मेरा दिल भर आया. मन मानने के लिए तैयार ही नहीं था कि क्रिस्टोफर मेरे साथ छल कर सकती है. लाख  झुठलाने की कोशिश करता मगर हर बार लैपटौप की चैटिंग मेरी आंखों के सामने तैर जाती. जख्म फिर से हरे हो जाते.

तभी क्रिस्टोफर ने सहजभाव से कहा, ‘‘मैं परसों पेरिस जा रही हूं. तुम्हारा दिल से शुक्रिया अदा करती हूं. तुम न होते तो मेरा यह काम अधूरा ही रहता. मैं तुम्हें एक अच्छे दोस्त की तरह हमेशा याद रखूंगी.’’ मैं निशब्द था. क्या जवाब दूं? मेरी तो दुनिया ही उजड़ गई थी. मु झे चारों तरफ अंधेरा ही अंधेरा नजर आने लगा. क्रिस्टोफर के बगैर जिंदगी का क्या अर्थ रह जाएगा मेरे लिए. वह मेरी जिंदगी का हिस्सा बन चुकी थी. सोचने लगा, वह न आती तो अच्छा था. आई तो यों जा रही है मानो जिस्म से कोई दिल निकाल कर ले जा रहा हो. असहनीय पीड़ा महसूस हो रही थी मु झे. मैं घोर निराशा में डूब गया. जब कुछ नहीं सू झा तो क्रिस्टोफर के गले लग कर फफकफफक कर रो पड़ा. ‘‘मु झे छोड़ कर मत जाओ क्रिस्टोफर.’’

‘‘मैं मजबूर हूं.’’

‘‘तुम्हारे बगैर मैं जी नहीं पाऊंगा. मु झ पर रहम करो.’’

एकाएक क्रिस्टोफर मु झे अपने से अलग करते हुए किंचित नाराज स्वर में बोली, ‘‘क्या पागलपन है?’’ उस की बेरुखी मेरे सीने में नश्तर की तरह चुभी. मु झ में प्रतिशोध की भावना दोगुनी हो गई.

रात में ट्रांसफार्मर जल गया. गरमी के चलते क्रिस्टोफर छत पर सो रही थी. सुबह के 4 बज रहे थे. वह गहरी नींद में थी. मौका अच्छा था. मैं ने कमरे से तेजाब का जार उठाया, उड़ेल दिया क्रिस्टोफर के चेहरे पर. उस वक्त मेरे दिमाग में सिवा उस का चेहरा बदरंग करने के कुछ नहीं सू झ रहा था. वह चेहरा जिस से वशीभूत हो कर मैं ने क्रिस्टोफर को दिल दिया. हमेशा के लिए विकृत हो जाएगा. यही उचित दंड था उसे देने के लिए.

एकाएक नींद से उठ कर वह जोरजोर से चिल्लाने लगी. वह दर्द से छटपटा रही थी. मेरी कुछ सम झ में नहीं आया कि ऐसी स्थिति में क्या करूं. घबरा कर अपने कमरे के एक कोने में छिप गया. भोर होतेहोते सारा नजारा बदल चुका था.

वह अस्पताल में थी और मैं जेल में. एक क्षण में सबकुछ खत्म हो गया. जब मेरा क्रोध शांत हुआ तो मैं गहरे संताप में डूब गया. उस समय तो और ज्यादा जब मेरी मां ने बताया कि क्रिस्टोफर की एक आंख की रोशनी चली गई. उफ, यह मैं ने क्या कर दिया. मांबाप, पासपड़ोस, रिश्तेदार सभी के लिए मैं घृणा का पात्र बन गया. पापा तो मेरी सूरत तक नहीं देखना चाहते थे.

मैं बिलकुल अकेला पड़ गया. जेल की कोठरी में सिवा पश्चात्ताप के मेरे लिए कुछ नहीं था. मां से रुंधे कंठ से बोला, ‘‘क्रिस्टोफर को मेरी आंख दे दो.’’ मां तो मां, उन्हें मु झ से हमदर्दी थी. मगर वे भी मेरे कुकृत्य से आहत थीं. कहने लगीं, ‘‘उस ने जो किया वह उस के संस्कार थे. मगर मेरे संस्कारों ने तु झे क्या सिखाया? तुम ने अपनी मां की कोख को कलंकित किया है.’’ उन की आंखें भर आईं. इस से पहले क्रिस्टोफर तक मेरी इच्छा पहुंचती, वह अपने मांबाप के साथ सात समंदर पार हमेशा के लिए अपने देश चली गई, एक दुखद एहसास के साथ.

तेजाब- भाग 1: प्यार करना क्या चाहत है या सनक?

पेरिस की क्रिस्टोफर से मेरी मुलाकात बनारस के अस्सी घाट पर हुई. उम्र यही कोई 25 वर्ष के आसपास  की होगी. वह बनारस में एक शोधकार्य के सिलसिले में बीचबीच में आती रहती थी. मैं अकसर शाम को स्कैचिंग के लिए जाता था. खुले विचारों की क्रिस्टोफर ने एक दिन मु झे स्कैचिंग करते देख लिया. दरअसल, मैं उसी की स्कैचिंग कर रहा था. वह घाट पर बैठे गंगा की लहरों को निहार रही थी. उस के चेहरे की निश्च्छलता और सादगी में एक ऐसी कशिश थी जिस से मैं खुद को स्कैचिंग करने से रोक नहीं पाया. इस दरम्यान बारबार मेरी नजर उस पर जाती. उस ने देख लिया. उठ कर मेरे पास आई. स्कैचिंग करते देख कर मुसकराई. उस समय तो वह कुछ ज्यादा ही खुश हो गई जब उसे पता चला कि यह उसी की तसवीर है. ‘‘वाओ, यू आर ए गुड आर्टिस्ट,’’ तसवीर देख कर वह बहुत प्रसन्न थी.

‘‘आप को पसंद आई?’’

‘‘हां, बहुत सुंदर है.’’

यह जान कर मु झे खुशी हुई कि उसे थोड़ीबहुत हिंदी भी आती थी. भेंटस्वरूप मैं ने उसे वह स्कैच दे दिया. यहीं से हमारे बीच मिलनेजुलने का सिलसिला चला, जो बाद में प्रगाढ़ प्रेम में तबदील हो गया. वह एक लौज में रहती थी. घरवालों के विरोध के बावजूद मैं ने उसे अपने घर में रहने के लिए जगह दी. जिस के लिए वह सहर्ष तैयार हो गई. अब उस से क्या किराया लिया जाए. जिस से प्रेम हो उस से किराया लेना क्या उचित होगा. मैं तो उस पर इस कदर आसक्त था कि उस से शादी तक का मन बना लिया था.

क्रिस्टोफर को इस शहर की सांस्कृतिक विरासत की बहुत ज्यादा जानकारी नहीं थी, जो उस के शोधकार्य का हिस्सा थी. मैं ने उस की मदद की. अपनी क्लास छोड़ कर उस के साथ मैं मंदिरों, घाटों, गलियों तथा ऐतिहासिक स्थलों पर जाता. कई नामचीन संगीत कलाकारों से मिलवाया मैं ने उसे.

रात 8 बजे से पहले हम घर नहीं आते. उस के बाद मैं उस के कमरे में रात 11 बजे तक इधरउधर की बातें करता. उसे छोड़ने का नाम ही नहीं लेता. जी करता क्रिस्टोफर को हर वक्त निहारता रहूं. बेमन से अपने कमरे में आता. फिर अपने प्रेम के मीठे एहसास के साथ सो जाता.

एक रात मु झे नींद नहीं आ रही थी. क्रिस्टोफर को ले कर मन बेचैन था. घड़ी देखी रात के 1 बज रहे थे. मैं आहिस्ता से उठा. दबेपांव ऊपर क्रिस्टोफर के कमरे में आया. खिड़की से  झांका. वह कुछ लिख रही थी. इतनी रात तक वह जाग रही थी. यह देख कर मु झे आश्चर्य हुआ. मेरे आने की उसे आहट नहीं हुई. मैं ने धीरे से कहा, ‘‘क्रिस्टोफर.’’ उस ने नजर मेरी तरफ उठाई. उस समय वह गाउन पहने हुई थी. उस का गुलाबी बदन पूर्णिमा की चांद की तरह खिला हुआ था. जैसे ही उस ने दरवाजे की चिटकनी हटाई, मैं तेजी से चल कर कमरे में घुसा. दरवाजा अंदर से बंद कर उसे अपनी बांहों में भर लिया. वह थोड़ी सी असहज हुई, फिर सामान्य हो गई. उस रात हमारे बीच कुछ भी वर्जित नहीं रहा. खुले विचारों की क्रिस्टोफर के लिए संबंध कोई माने नहीं रखते. ऐसा मेरा अनुमान था. मगर मेरे लिए थे. जाहिर है वह मेरे लिए पत्नी का दर्जा रखने लगी थी. सिर्फ सात फेरों की जरूरत थी या फिर अदालती मुहर. मैं उस पर इस कदर फिदा था कि उस के बगैर जीने की कल्पना भी नहीं कर सकता था.

एक दिन क्रिस्टोफर ने मु झ से नैनीताल चलने के लिए कहा. भला मु झे क्या एतराज हो सकता था. घरवाले मेरे तौरतरीकों को ले कर आपत्ति जता रहे थे, मगर मैं उन्हें यह सम झाने में सफल हो गया कि पेरिस के कलाकारों की बड़ी कद्र है. उस की मदद से मैं एक ख्यातिप्राप्त चित्रकार के रूप में स्थापित हो सकता हूं. उन्होंने हमारे रिश्ते को बेमन से मंजूरी दे दी.

2 दिन नैनीताल में रहने के बाद हम दोनों कौसानी घूमने आए. गांधी आश्रम के चबूतरे पर बैठे. हम दोनों पहाड़ों की खूबसूरत वादियों को निहार रहे थे. क्रिस्टोफर को अपनी बांहों में भर कर मैं रोमांचित था. उन्मुक्त वातावरण पा कर मानो मेरे प्रेम को पर लग गए. कब शाम ढल गई, पता ही नहीं चला. वापस होटल पर आया. कौफी की चुस्कियों के बीच क्रिस्टोफर का मोबाइल बजा. वह बाहर मोबाइल ले जा कर बातें करने लगी. तब तक कौफी ठंडी हो चुकी थी. मैं ने वेटर से दूसरी कौफी लाने को कहा. ‘‘किस का फोन था?’’ मैं ने पूछा.

‘‘मौम का.’’

‘‘क्रिस्टोफर, मैं ने आज तक तुम्हारे परिवार के बारे में कुछ नहीं पूछा. क्या तुम बताओगी कि तुम्हारे मांबाप क्या करते हैं?’’

‘‘फादर मोटर मैकेनिक हैं. मौम एक अस्पताल में नर्स हैं. 5 साल की थी जब मेरे फादर से मेरी मां का तलाक हो गया. ये मेरे सौतले फादर हैं. मैं अपने फादर को बहुत चाहती थी,’’ कह कर वह उदास हो गई.

‘‘तलाक की वजह?’’

‘‘हमारे यहां जब तक प्यार की कशिश रहती है तभी तक रिश्ते निभाए जाते हैं. तुम लोगों की तरह नहीं कि हर हाल में साथ रहना ही है. मेरे फादर मेरी मौम से बोर हो गए, उन का लगाव दूसरी औरत की तरफ हो गया. वहीं मौम, फादर के ही एक दोस्त से शादी कर के अलग हो गईं.’’

‘‘इसे तुम किस रूप में देखती हो? क्या तुम ने चाहा कि तुम्हारे मांबाप तुम से अलग हों?’’

कुछ सोच कर क्रिस्टोफर बोली, ‘‘शायद नहीं.’’

‘‘शायद क्यों?’’ मैं ने पूछा.

‘‘शायद इसलिए कि एक बेटी के रूप में मैं कभी नहीं चाहूंगी कि मु झे मेरे फादर के प्यार से वंचित रहना पड़े. मगर…’’ कह कर वह चुप हो गई.

‘‘बोलो, तुम चुप क्यों हो गईं,’’ मैं अधीर हो गया.

बिदाई- भाग 2: क्यों मिला था रूहानी को प्यार में धोखा

‘‘बेटा, इन अखबारों में तेरे और उस ऐक्टर के बारे में न जाने क्याक्या ऊटपटांग छपता रहता है,’’ इस बार मां ने बात छेड़ी थी, ‘‘अभी तेरी उम्र ही क्या है… और इन बदतमीजों को देखो कुछ भी छापते रहते हैं.’’

रूहानी चुप रही थी. भले ही उस की उम्र अभी केवल 19 वर्ष थी, किंतु सफलता और शोहरत का फल वह चखने लगी थी. फिर ऐसे में परिपक्वता जल्दी आ जाना क्या बड़ी बात है? सहकलाकार विनोद उसे बहुत पसंद था. हो सकता है उस की आंखों के भाव किसी पत्रकार ने पकड़ लिए हों. उड़ती चिडि़या के पंख गिनना कला जो होती है इन की. इन्हीं रिपोर्टों के चलते विनोद को रूहानी के मन की बात ज्ञात हो गई थी.

एक दिन मौका देख उस ने रूहानी को कौफी डेट पर बुलाया. दोनों को एकदूसरे का साथ पसंद आया. फिर तो अकसर वे शूटिंग के बाद मिलने लगे. कभी कौफी तो कभी डिनर, कभी पब तो कभी डिस्को. 35 की उम्र पार कर चुके विनोद के साथ एक कमसिन सुंदरी लग गई थी.

एक रात पांचसितारा होटल के डिस्को की भीड़ में नाचतेनाचते विनोद ने अचानक रूहानी के अधरों पर अपने होंठ अंकित कर दिए. इस अप्रत्याशित घटना से रूहानी कुछ कांप उठी. लेकिन विनोद ने उस की कमर पर अपनी बांहों के घेरे को और कस दिया. फिर लगातार एक…दो…तीन… चुंबनों के बाद रूहानी भी उसी लौ में बह गई. उसी होटल में पहले से बुक कमरे में विनोद ने रूहानी को अपना बना लिया.

फिर रूहानी को विनोद का भरी भीड़ में हाथ पकड़ने या हंस कर उस के कंधे पर झूल जाने में कोई आपत्ति न रहने लगी. धीरेधीरे मीडिया में इन दोनों के प्रसंग इन की तसवीरों के साथ उछलने लगे. एजेंट के ऐतराज करने पर भी रूहानी ने एक न सुनी. लेकिन मीडिया के पूछने पर दोनों यही कहते कि वे सिर्फ अच्छे दोस्त हैं. दोनों की नजदीकियों के किस्से लोग मजे लेले कर पढ़़तेसुनते. यूनिट के अन्य कलाकार भी उन की वैनिटी वैन के अंदर खिल रही उन की दास्तां ए मुहब्बत की कहानियां सुनाते.

इस विषय में मां का फोन आने पर रूहानी उन्हें भी झिड़क देती, ‘‘क्या मां, तुम भी इन प्रैस वालों की बातों में आ जाती हो. अच्छा अब रखती हूं… मेरी शूटिंग चल रही है.’’

‘‘सोनी चैनल पर चल रहे ‘तुम्हारे बिना जिया जाए न’ धारावाहिक की लीड अभिनेत्री मां बनने वाली है. अब ज्यादा दिन तक यह रोल नहीं निभा पाएगी. तुम कहो तो उस के डाइरैक्टर से इस विषय में तुम्हारी बात चलाऊं?’’ रूहानी के एजेंट ने उसे अंदर की खबर दी, तो रूहानी ने हामी भर दी. अपने कैरियर में आगे बढ़ने से वह खुश थी.

‘‘आज का अखबार पढ़ा तुम ने, रूहानी?’’ अचानक अपनी सहअभिनेत्री मिथिला का फोन आने पर रूहानी को आश्चर्य हुआ. आखिर मिथिला की उस से सिर्फ नाम की बनती थी, मीडिया के सामने या पार्टियों में एकदूसरे के गाल पर चुंबन अंकित करने के सिवा शायद ही इन में कोई बातचीत होती हो.

‘‘अभी नहीं, टाइम नहीं मिला. वह दरअसल मुझे सोनी चैनल पर चल रहे ‘तुम्हारे बिना जिया जाए न’ धारावाहिक की लीड अभिनेत्री का रोल औफर हुआ है न. उसी की तैयारी में व्यस्त थी. क्यों ऐसा क्या आया है अखबार में?’’

‘‘वह रोल तुम्हें औफर हुआ है?’’ मिथिला की हंसी की आवाज से रूहानी और भी हैरान हुई. यहां इस इंडस्ट्री में तो रोल छीनने की होड़ लगी रहती है. इस खबर से मिथिला को रोना चाहिए था, लेकिन मुझे लीड ऐक्ट्रैस का रोल मिलने पर वह हंस रही है…

‘‘शायद ‘तुम्हारे बिना जिया जाए न’ धारावाहिक में ‘तुम्हारे’ का किरदार विनोद की प्रेमिका के नाम ही आना लिखा है. वह दरअसल इस धारावाहिक की असली अभिनेत्री विनोद के बच्चे की मां बनने वाली है और दोनों शादी कर रहे हैं. मैं ने सोचा विनोद तुम्हारा इतना अच्छा दोस्त है, तो तुम्हें तो यह खुशखबरी पता ही होगी,’’ मिथिला ने आग में घी डाला.

रूहानी का मन धुड़क उठा कि उस के साथ इतना बड़ा धोखा, विश्वासघात. उस ने तेजी से फोन जमीन पर पटक मारा. उस का मन शोक, घृणा, संताप से भर उठा. वह वहीं जमीन पर पसर गई. न जाने कितने घंटे वहीं पड़ी रही.

देर शाम उस का एजेंट उस के घर के अंदर प्रविष्ट होते हुए बड़बड़ाया, ‘‘कहां हो यार रूहानी, कब से तुम्हारा फोन ट्राई कर रहा हूं,’’ फिर उस की दशा देख वह समझ गया कि खबर रूहानी तक पहुंच चुकी है. उसी ने रूहानी को वहां से उठाया, पानी पिलाया और फिर बिस्तर पर लिटाया.

अगली सुबह भी एजेंट वहीं था. गुड मौर्निंग कहते हुए उस ने रूहानी को चाय का कप थमाया, ‘‘क्या हुआ डार्लिंग… ऐसा तो होता रहता है. यू डोंट नीड टु गैट सो अप्सैट.’’

‘‘रियली? तुम्हें वाकई लगता है कि मुझे अप्सैट नहीं होना चाहिए? उस कुत्ते ने मेरे साथ…’’ रूहानी फुंफकार रही थी.

‘‘देखो रूहानी, बीत गई सो बात गई. यहां काम करना है, तो चमड़ी मोटी करनी पड़ेगी. टीवी की दुनिया लाजवाब है. रातोंरात प्रसिद्धि, रातोंरात कामयाबी… कल तक तुम एक छोटे शहर की अनजान जिंदगी जीने वाली लड़की थीं, लेकिन आज तुम घरघर में जानीमानी हस्ती बन चुकी हो. तुम्हारे पास पैसा है, शोहरत है, लोग तुम्हारे आगेपीछे दौड़ते हैं… उस पर तुम्हारी उम्र ही क्या है? अभी तुम्हें सालोंसाल काम करना है. इसलिए तुम्हें अपनेआप को बहुत ज्यादा तवज्जो देनी होगी. जितना तुम आगे बढ़ती जाओगी, उतना ही लोग तुम्हें कम समझ पाएंगे और यही तुम्हारे लिए अच्छा है. तुम्हारे निर्णय केवल तुम्हारे अपने हित में होने चाहिए… न कोई पारिवारिक निर्णय और न कोई भावनात्मक फैसला. पूरी दुनिया की नजर है तुम पर. ऐसे में कमजोर नहीं पड़ सकतीं तुम. इस का समय नहीं, तुम्हारे पास,’’ एजेंट ने रूहानी को खूब समझाया.

लेकिन हर इनसान अलग मिट्टी का बना है. सब का व्यक्तित्व अलग होता है. रूहानी को ऐसे फरेब की कतई उम्मीद नहीं थी. जनवरी की सर्द हवाओं के साथ बाहर फैला घना कुहरा उस के अंदर भी जमने लगा था. बाहर का उदास, रंगहीन मौसम उस के अंदर भी पसरने लगा था. रूहानी न ढंग से खाती, न किसी बातचीत में उस का मन लगता, न मुसकराती… कई दिन लग गए उसे सामान्य होने में. किंतु समय अपना चक्र घुमाते हुए सब को अपनी धुरी पर ले ही आता है.

लेकिन इस बीच उस के हाथ से वह लीड ऐक्ट्रैस का रोल जाता रहा. अब उस के पास कोई काम नहीं था. फिर भी वह थी तो एक टीवी अभिनेत्री ही. अपना रहनसहन उसे उसी हिसाब से बरकरार रखना था. पैसे भी खत्म होते जा रहे थे. इसी बीच उस ने जो हाथ आया, वही काम करने का निश्चय किया. एजेंट की मदद से उस ने एक रिऐलिटी शो में भाग लिया. शो देश के बाहर था. रूहानी प्रसन्न थी कि इस बहाने वह विदेश घूम आएगी और कुछ पैसे भी कमा लेगी.

शो में उस की मुलाकात रंजन से हुई जो उस का टीममेट था. रंजन भी एक छोटे शहर का लड़का था, जो इस रंगीली दुनिया में अपने को आजमाने आया था. अभी तक उसे सिर्फ धक्के ही मिले थे. यह उस का पहला शो था. रूहानी और रंजन की अच्छी पटने लगी. टूटे दिल को एक आसरा मिलने लगा था. रंजन और रूहानी का अच्छा तालमेल उन्हें जीत की ओर अग्रसर करता गया. आखिर उन दोनों की टीम जीत गई. अच्छाखासा पैसा मिला.

अपने देश लौटते समय हवाईजहाज में रंजन ने रूहानी का हाथ अपने हाथ में ले कर कहा, ‘‘अपनी टीम जारी रखोगी? क्या तुम मेरा प्यार स्वीकार करोगी, रूहानी?’’ रंजन ने रूहानी को प्रपोज कर दिया.

रूहानी बेहद खुश थी. एक तो जीत, उस पर पैसा और अब प्यार भी… और क्या चाहिए किसी 21 वर्षीया को.

रंजन अब तक पीजी में रहता था और रूहानी किराए के घर में रहती थी. दोनों मिलते, संगसाथ समय व्यतीत करते, फिर अपनेअपने घर लौट जाते.

‘‘रूहानी, ऐसे तो जो पैसा हम दोनों ने जीता है, वह खत्म होता चला जाएगा. इस से अच्छा है हम उसे अपने भविष्य के लिए कहीं निवेश कर दें.’’

रंजन की बात में तर्क था. अत: दोनों ने आपसी सहमति से एक घर बुक करा लिया.

‘‘तुम लोन की चिंता मत करना, तुम्हें इस झंझट में पड़ने की कोई आवश्यकता नहीं है. कुछ राशि हमारे पास है ही और कुछ मैं पर्सनल लोन ले लूंगा. ईएमआई मैं भरता रहूंगा. बस, कागजी काररवाई करवा लेते हैं.’’

लोन लेने की आवश्यकता के कारण घर रंजन के नाम बुक हुआ.

बिदाई- भाग 3: क्यों मिला था रूहानी को प्यार में धोखा

‘‘तुम बस हमारे घर को सजाने की चिंता करो… यह तुम्हारा डिपार्टमैंट है,’’ रंजन की इन बातों से रूहानी चहक उठी थी.

रूहानी ने अपने एजेंट के द्वारा रंजन को काफी काम दिलवाया और खुद घर सजानेबसाने में व्यस्त रहने लगी. कभीकभार 1-2 भूमिका निभा लेती. लेकिन काम का बोझ और दबाव उसे अब रास न आता. अब उस का मन प्यार, घरगृहस्थी में रमने लगा था. रंजन और वह रहते भी एक ही घर में थे. आजकल का प्यार न तो सीमाएं जानता है और न ही मानता है. उन दोनों ने अभी शादी नहीं की थी, लेकिन पतिपत्नी के रिश्ते की डोर थाम चुके थे. रंजन नईनवेली दुलहन की तरह रूहानी को उठा कर कमरे में ले जाता और दोनों प्रेमरस में भीग कर आनंदित हो उठते. यों ही साथ रहते हुए, प्यार के सागर में हिचकोले खाते दोनों रिश्ते के अगले पड़ाव पर पहुंच गए. माना कि दोनों ने सोचसमझ कर यह कदम नहीं उठाया था किंतु प्यार के बीज को पनपने से कोई रोक पाया है भला? जब रूहानी को पता चला कि वह गर्भवती है, तो उस ने रंजन को बताने की सोची. थोड़ा डर भी था मन में कि पता नहीं रंजन की प्रतिक्रिया कैसी होगी.

रात को सोते समय उस ने रंजन का हाथ हौले से अपने पेट पर रख दिया. बस इतना इशारा काफी था. रंजन समझ गया. इस खुशी के मौके पर उस ने रूहानी के गाल पर अपने प्यार का चुंबन अंकित कर दिया.

रूहानी प्रसन्न भी थी और संतुष्ट भी. अब वह रंजन से जल्दी से जल्दी शादी करना चाहती थी.

जीवन की नाव सुखसागर में गोते लगा रही थी कि अचानक एक दिन रंजन की गैरमौजूदगी में रूहानी ने उस का फोन उठा लिया. दूसरी तरफ से एक लड़की बोल रही थी, ‘‘हैलो, कौन बोल रहा है?’’

‘‘आप को रंजन से बात करनी है न? वह इस समय घर पर नहीं है… मार्केट गया है… गलती से फोन घर भूल गया है. आप मुझे बता दीजिए क्या काम है आप को?’’ रूहानी ने कहा.

‘‘तुम्हें बता दूं तुम हो कौन रंजन की?’’

‘‘मैं उस की गर्लफ्रैंड हूं… जल्द ही हम शादी करने वाले हैं.’’

‘‘गर्लफ्रैंड?’’ कुछ पलों की खामोशी के बाद वह बोली, ‘‘मुझे अपना पता देना प्लीज, मैं उस की पुरानी फ्रैंड हूं. उसे सरप्राइज देना चाहती हूं.’’

रूहानी ने उसे अपना पता लिखवा दिया.

बस, उसी शाम उन के प्रेम नीड़ में तूफान आ गया. अचानक वह लड़की उन के घर आ धमकी.

दरवाजा खोलते ही उस ने रंजन को एक तमाचा जड़ा और जोरजोर से लड़ने लगी, ‘‘रंजन, तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझे धोखा देने की? शायद तुम भूल गए कि तुम्हारे पिता मेरे डैड के मातहत हैं. इस चुड़ैल के साथ मिल कर तुम मेरे साथ चीटिंग कर रहे हो… मैं कपड़े की गुडि़या नहीं हूं. मैं रोती नहीं, रूलाती हूं, समझे?’’ लगभग चीखती हुई वह रूहानी की ओर मुड़ी. फिर उसे धक्का दे कर जमीन पर गिरा दिया. रूहानी इस तरह के बरताव के लिए तैयार न थी. वह लड़की रूहानी पर टूट पड़ी. उसे पीटने लगी.

शोर सुन कर कुछ पड़ोसी इकट्ठा हो गए. उन्होंने बड़ी मुश्किल से उस लड़की को रूहानी से अलग किया. इस घटना से रूहानी की जिंदगी में उथलपुथल मच गई. अचानक उस का जीवन ऐसे मोड़ पर आ गया था कि आगे उसे सिर्फ अंधेरा ही अंधेरा दिख रहा था.

दरअसल, रंजन का उस की हालत पर ध्यान न देना उसे बहुत आहत कर गया था. यह वह ठेस थी जिस ने रूहानी के सभी मौसम बदल कर ठंडे, निर्जीव और बेरंग कर दिए थे. रूहानी हर वक्त उदास रहने लगी थी. एक तो गर्भावस्था में डोलती मनोस्थिति, उस पर साथी से मिला दुर्व्यवहार. आजकल रंजन को उस की खुशी, उस के मूड से कोई फर्क नहीं पड़ता था, बल्कि आजकल वह रूहानी पर अकसर नाराज होने लगा था. रंजन के सिवा रूहानी का अपना कहने का कोई नहीं था.

अकेली रूहानी सारा दिन उदासीन पड़ी रहती. रात को जब रंजन घर लौटता तो दोनों में घमासान होता. रंजन रूहानी पर हाथ भी उठाने लगा था.

अवसाद से घिरी रूहानी को आगे की राह दिखाई नहीं दे रही थी कि क्या करे कि रंजन से उस का रिश्ता फिर मजबूत हो जाए. सोचसोच कर वह और भी अवसादग्रस्त होती जा रही थी.

ऐसी ही एक शाम जब रूहानी छत पर टकटकी बांधे अकेली बिस्तर पर पड़ी थी, अचानक फोन घनघना उठा. दूसरी तरफ उसी लड़की की आवाज थी.

उस ने रूहानी के फोन उठाते ही खरीखरी सुनानी शुरू कर दी, ‘‘तुम क्या सोचती हो रंजन को मुझ से छीन लोगी? रंजन मेरा है, सिर्फ मेरा. तुम्हारी जैसी कितनी आईं और गईं. लेकिन रंजन को मुझ से कोई नहीं छीन पाई. कुछ दिन इधरउधर मुंह मारने से उस का मेरे प्रति प्यार कम नहीं हो जाता, समझी? अब अपना बोरियाबिस्तर बांध और निकल जा रंजन की जिंदगी से.’’

उस लड़की की बातें सुन कर रूहानी और भी परेशान हो उठी कि क्या रंजन ने उसे धोखा दिया है? उस का उद्विग्न मन शांत नहीं हो पा रहा था. रंजन भी तो उस के किसी सवाल का जवाब नहीं देता. आखिर किस से पूछे? वह सारे घर में कलपती सी घूमने लगी.

स्वयं को उपेक्षित महसूस करती रूहानी छटपटाने लगी कि क्या करे, कैसे मुक्ति पाए इस अवसाद से? क्या फायदा इस सौंदर्य का, इस शोहरत का, जब कोई उसे प्यार ही न करे? क्या इस जीवन में उस के लिए प्यार पाना संभव नहीं? इसी उधेड़बुन में रूहानी उठी और…

अगली सुबह एक ही खबर सारे टीवी चैनलों पर बारबार दिखाई जा रही थी कि प्रसिद्ध अभिनेत्री रूहानी ने अपने घर में पंखे से लटक कर आत्महत्या कर ली.

बस, फिर सब तरफ वही शो, उसी की चर्चा. टीवी इंडस्ट्री में रूहानी के सहकर्मी, उस के तथाकथित मित्रगण अलगअलग कहानियां बयान करने लगे. न्यूज चैनलों को एक बढि़या मुद्दा मिल गया अपनी टीआरपी बढ़ाने का. एक चैनल ने रूहानी के इस कदम का दोष रंजन के जीवन में दूसरी लड़की के प्रवेश को दिया. आधार था पड़ोसियों से की गई बातचीत, तो दूसरा चैनल कहने लगा कि रूहानी गर्भवती थी और वह रंजन पर शादी का दबाव डाल रही थी, पर वह मान नहीं रहा था, इसलिए रूहानी ने आत्महत्या कर ली.

तीसरा चैनल रूहानी के कुछ दोस्तों के बयानों के आधार पर कहने लगा कि रूहानी ने आत्महत्या नहीं की, बल्कि रंजन ने उस दूसरी लड़की के साथ मिल कर उस का खून किया है यानी जितने मुंह उतनी बातें.

अंतिम संस्कार के समय काफी भीड़ इकट्ठा हो गई थी. सहकलाकार, आम जनता और इन सब के बीच छिपे, रोतेबिलखते रूहानी के मातापिता. इतनी भीड़ देख कर कौन कह सकता था कि यहां उस का अपना कहने को, उस के मन की टोह लेने वाला कोई न था. रूहानी चली गई… शायद संवेदनशीलता का यहां कोई काम नहीं. अपने घर में जिस धन व प्रसिद्धि की खोज में रूहानी निकल पड़ी थी, वह उसे मिल तो गई, लेकिन इनसान की खोज कब रुकी है भला. धनप्रसिद्धि के पश्चात प्यार पाने की खोज, प्यार के पश्चात अपना घर बसाने की आकांक्षा… यह सूची कभी खत्म नहीं होती.

रज्जो: क्यों रोने लगा रामदीन

रज्जो रसोईघर का काम निबटा कर निकली, तो रात के 10 बज रहे थे. वह अपने कमरे में जाने से पहले सुरेंद्र के कमरे में पहुंची. वह उस समय बिस्तर पर आंखें बंद किए लेटा था.

‘‘साहबजी, मैं कमरे पर सोने जा रही हूं. कुछ लाना है तो बताइए?’’ रज्जो ने सुरेंद्र की ओर देखते हुए पूछा.

सुरेंद्र ने आंखें खोलीं और अपने माथे पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘रज्जो, आज सिर में बहुत दर्द हो रहा है.’’

‘‘मैं आप के माथे पर बाम लगा कर दबा देती हूं,’’ रज्जो ने कहा और अलमारी में रखी बाम की शीशी ले आई. वह सुरेंद्र के माथे पर बाम लगा कर सिर दबाने लगी.

कुछ देर बाद रज्जो ने पूछा, ‘‘अब कुछ आराम पड़ा?’’

‘‘बहुत आराम हुआ है रज्जो, तेरे हाथों में तो जादू है,’’ कहते हुए सुरेंद्र ने अपना सिर रज्जो की गोद में रख दिया.

रज्जो सिर दबाने लगी. वह महसूस कर रही थी कि एक हाथ उस की कमर पर रेंग रहा है. उस ने सुरेंद्र की ओर देखा.

सुरेंद्र बोला, ‘‘रज्जो, यहां रहते हुए तू किसी बात की चिंता मत करना. तुझे किसी चीज की कमी नहीं रहेगी. जब कभी जितने रुपए की जरूरत पड़े, तो बता देना.’’

‘‘जी साहब.’’

‘‘आज तेरी मैडम लखनऊ गई हैं. वहां जरूरी मीटिंग है. 4 दिन बाद वापस आएंगी,’’ कह कर सुरेंद्र ने उसे अपनी ओर खींच लिया.

रज्जो समझ गई कि सुरेंद्र की क्या इच्छा है. वह बोली, ‘‘नहीं साहबजी, ऐसा न करो. मुझे तो मांकाका ने आप की सेवा करने के लिए भेजा है.’’

‘‘रज्जो, यह भी तो सेवा ही है. पता नहीं, आज क्यों मैं अपनेआप पर काबू नहीं रख पा रहा हूं?’’ सुरेंद्र ने रज्जो की ओर देखते हुए कहा.

‘‘साहबजी, अगर मैडम को पता चल गया तो?’’ रज्जो घबरा कर बोली.

‘‘उस की चिंता मत करो. वह कुछ नहीं कहेगी.’’

रज्जो मना नहीं कर सकी और न चाहते हुए भी सुरेंद्र की बांहों समा गई.

कुछ देर बाद जब रज्जो अपने कमरे में आ कर बिस्तर पर लेटी, तो उस की आंखों से नींद भाग चुकी थी. उस की आंखों के सामने मांकाका, 2 छोटी बहनों व भाई के चेहरे नाचने लगे.

यहां से 3 सौ किलोमीटर दूर रज्जो का गांव चमनपुर है. काका राजमिस्त्री का काम करता है. महीने में 10-15 दिन मजदूरी पर जाता है, क्योंकि रोजाना काम नहीं मिलता.

रज्जो तो 5 साल पहले 10वीं जमात पास कर के स्कूल छोड़ चुकी थी. उस की 2 छोटी बहनें व भाई पढ़ रहे थे. मां ने उस का नाम रजनी रखा था, पर पता नहीं, कब वह रजनी से रज्जो बन गई.

एक दिन गांव की प्रधान गोमती देवी ने मां को बुला कर कहा था, ‘मुझे पता चला है कि तेरी बेटी रज्जो तेरी तरह बहुत बढि़या खाना बनाती है. तू उसे सुबह से शाम तक के लिए मेरे घर भेज दे.’

‘ठीक है प्रधानजी, मैं रज्जो को भेज दूंगी,’ मां ने कहा था.

2 दिन बाद रज्जो ने गोमती प्रधान के घर की रसोई संभाल ली थी.

एक दिन एक बड़ी सी कार गोमती प्रधान के घर के सामने रुकी. कार से सुरेंद्र व उस की पत्नी माधवी मैडम उतरे. कार पर लाल बत्ती लगी थी. गोमती प्रधान की दूर की रिश्तेदारी में माधवी मैडम बहन लगती थीं.

दोपहर का खाना खा कर सुरेंद्र व माधवी ने रज्जो को बुला कर कहा, ‘तुम बहुत अच्छा खाना बनाती हो. हमें तुम जैसी लड़की की जरूरत है. क्या तुम हमारे साथ चलोगी? जैसे तुम यहां खाना बनाती हो, वैसा ही तुम्हें वहां भी रसोई में काम करना है.’

रज्जो चुप रही.

गोमती प्रधान बोल उठी थीं. ‘यह क्या कहेगी? इस के मांकाका को कहना पड़ेगा.’

कुछ देर बाद ही रज्जो के मांकाका वहां आ गए थे.

गोमती प्रधान बोलीं, ‘रामदीन, यह मेरी बहन है. सरकार में एक मंत्री की तरह हैं. इस को रज्जो के हाथ का बना खाना बहुत पसंद आया, तो ये लोग इसे अपने घर ले जाना चाहते हैं रसोई के काम के लिए.’

‘रामदीन, बेटी रज्जो को भेज कर बिलकुल चिंता न करना. हम इसे पूरा लाड़प्यार देंगे. रुपएपैसे हर महीने या जब तुम चाहोगे भेज देंगे,’ माधवी मैडम ने कहा था.

‘साहबजी, आप जैसे बड़े आदमी के यहां पहुंच कर तो इस की किस्मत ही खुल जाएगी. यह आप की सेवा खूब मन लगा कर करेगी. यह कभी शिकायत का मौका नहीं देगी,’ काका ने कहा था.

सुरेंद्र ने जेब से कुछ नोट निकाले और काका को देते हुए कहा, ‘लो, फिलहाल ये पैसे रख लो. हम लोग हर तरह  से तुम्हारी मदद करेंगे. यहां से लखनऊ तक कोई भी सरकारी या गैरसरकारी काम हो, पूरा करा देंगे. अपनी सरकार है, तो फिर चिंता किस बात की.’

रज्जो उसी दिन सुरेंद्र व माधवी के साथ इस कसबे में आ गई थी.

सुरेंद्र की बहुत बड़ी कोठी थी, जिस में कई कमरे थे. एक कमरा उसे भी दे दिया गया था. माधवी मैडम ने उस को कई सूट खरीद कर दिए थे. उसे एक मोबाइल फोन भी दिया था, ताकि वह अपने घरपरिवार से बात कर सके.

रज्जो को पता चला था कि सुरेंद्र की काफी जमीनजायदाद है. एक ही बेटा है, जो बेंगलुरु में पढ़ाई कर रहा है.

माधवी मैडम बहुत बिजी रहती हैं. कभी पार्टी मीटिंग में, तो कभी इधरउधर दूसरे शहरों में और कभी लखनऊ में.

इन्हीं विचारों में डूबतेतैरते रज्जो को नींद आ गई थी. अगले दिन सुरेंद्र ने रज्जो को कमरे में बुला कर कुछ गोलियां देते हुए कहा, ‘‘रज्जो, ये गोलियां तुझे खानी हैं. रात जो हुआ है, उस से तेरी सेहत को नुकसान नहीं होगा.’’

‘‘जी…’’ रज्जो ने वे गोलियां देखीं. वह जान गई कि ये तो पेट गिराने वाली गोलियां हैं.

‘‘और हां रज्जो, कल अपने घर ये रुपए मनीऔर्डर से भेज देना,’’ कहते हुए सुरेंद्र ने 5 हजार रुपए रज्जो को दिए.

‘‘इतने रुपए साहबजी…?’’ रज्जो ने रुपए लेते हुए कहा.

‘‘अरे रज्जो, ये रुपए तो कुछ भी नहीं हैं. तू हम लोगों की सेवा कर रही है न, इसलिए मैं तेरी मदद करना चाहता हूं.’’

रज्जो सिर झुका कर चुप रही.

सुरेंद्र ने रज्जो का चेहरा हाथ से ऊपर उठाते हुए कहा, ‘‘तुझे कभी अपने गांव जाना हो, तो बता देना. ड्राइवर और गाड़ी भेज दूंगा.’’

सुन कर रज्जो बहुत खुश हुई.

‘‘रज्जो, तू मुझे इतनी अच्छी लगती है कि अगर मैडम की जगह मैं मंत्री होता, तो तुझे अपना पीए बना लेता,’’ सुरेंद्र ने कहा.

‘‘रहने दो साहबजी, मुझे ऐेसे सपने न दिखाओ, जो मैं रोटी बनाना ही भूल जाऊं.’’

‘‘रज्जो, तू नहीं जानती कि मैं तेरे लिए क्या करना चाहता हूं,’’ सुरेंद्र ने कहा.

खुशी के चलते रज्जो की आंखों की चमक बढ़ गई.

4 दिन बाद माधवी मैडम घर लौटीं. इस बीच हर रात को सुरेंद्र रज्जो को अपने कमरे में बुला लेता और रज्जो भी पहुंच जाती, उसे खुश करने के लिए.

अगले दिन रज्जो एक कमरे के बराबर से निकल रही थी, तो सुरेंद्र व माधवी की बातचीत की आवाज आ रही थी. वह रुक कर सुनने लगी.

‘‘कैसी लगी रज्जो?’’ माधवी ने पूछा.

‘‘ठीक है, बढि़या खाना बनाती है,’’ सुरेंद्र का जवाब था.

‘‘मैं रसोई की नहीं, बैडरूम की बात कर रही हूं. मैं जानती हूं कि रज्जो ने इन रातों में कोई नाराजगी का मौका नहीं दिया होगा.’’

‘‘तुम्हें क्या रज्जो ने कुछ बताया है?’’

‘‘उस ने कुछ नहीं बताया. मैं उस के चेहरे व आंखों से सच जान चुकी हूं.

‘‘खैर, मुझे तुम से कोई शिकायत नहीं. तुम कहा करते थे कि मैं बाहर चली जाती हूं, तो अकेले रात नहीं कटती, इसलिए ही तो रज्जो को इतनी दूर से यहां लाई हूं, ताकि जल्दी से वापस घर न जा सके.’’

‘‘तुम बहुत समझदार हो माधवी…’’ सुरेंद्र ने कहा, ‘‘लखनऊ में तुम्हारे नेताजी के क्या हाल हैं? वह तो बस तुम्हारा पक्का आशिक है, इसलिए ही तो उस ने तुम्हें लाल बत्ती दिला दी है.’’

‘‘इस लाल बत्ती के चलते हम लोगों का कितना रोब है. पुलिस या प्रशासन में भला किस अफसर की इतनी हिम्मत है, जो हमारे किसी भी ठीक या गलत काम को मना कर दे.’’

‘‘नेताजी का बस चले तो वह तुम्हें लखनऊ में ही हमेशा के लिए बुला लें.’’

‘‘अगले हफ्ते नेताजी जनपद में आ रहे हैं. रात को हमारे यहां खाना होगा. मैं ने सोचा है कि नेताजी की सेवा में रात को रज्जो को उन के पास भेज दूंगी.

‘‘जब नेताजी हमारा इतना खयाल रखते हैं, तो हमारा भी तो फर्ज बनता है कि नेताजी को खुश रखें. अगले महीने रज्जो को लखनऊ ले जाऊंगी, वहां

2-3 दूसरे नेता हैं, उन को भी खुश करना है,’’ माधवी ने कहा.

सुनते ही रज्जो के दिल की धड़कनें बढ़ने लगीं. वह चुपचाप रसोई में जा पहुंची. उस ने तो साहब को ही खुश करना चाहा था, पर ये लोग तो उसे नेताओं के पास भेजने की सोच बैठे हैं. वह ऐसा नहीं करेगी. 1-2 दिन बाद ही वह अपने गांव चली जाएगी.

तभी मोबाइल फोन की घंटी बज उठी. वह बोली, ‘‘हैलो…’’

‘‘हां रज्जो बेटी, कैसी है तू?’’ उधर से काका की आवाज सुनाई दी.

काका की आवाज सुन कर रज्जो का दिल भर आया. उस के मुंह से आवाज नहीं निकली और वह सुबकने लगी.

‘‘क्या हुआ बेटी? बता न? लगता है कि तू वहां बहुत दुखी है. पहले तो तू साहब व मैडम की बहुत तारीफ किया करती थी. फिर क्या हो गया, जो तू रो रही है?’’

‘‘काका, मैं गांव आना चाहती हूं.’’

‘‘ठीक है रज्जो, मेरा 2 दिन का काम और है. उस के बाद मैं तुझे लेने आ जाऊंगा. मैं जानता हूं कि मैडम व साहब बहुत अच्छे लोग हैं. तुझे भेजने को मना नहीं करेंगे. तू हमारी चिंता न करना. यहां सब ठीक है. तेरी मां, भाईबहनें सब मजे में हैं,’’ काका ने कहा.

रज्जो चुप रही.

अगले दिन सुरेंद्र व माधवी ने रज्जो को कमरे में बुलाया.

सुरेंद्र ने कहा, ‘‘रज्जो, 4-5 दिन बाद लखनऊ से बहुत बड़े नेताजी आ रहे हैं. यह हमारा सौभाग्य है कि वे हमारे यहां खाना खाएंगे और रात को आराम भी यहीं करेंगे.’’

‘‘जी…’’ रज्जो के मुंह से निकला.

‘‘रात को तुम्हें नेताजी की सेवा करनी है. उन को खुश करना है. देखना रज्जो, अगर नेताजी खुश हो गए तो…’’ माधवी की बात बीच में ही अधूरी रह गई.

रज्जो एकदम बोल उठी, ‘‘नहीं मैडमजी, यह मुझ से नहीं होगा. यह गलत काम मैं नहीं करूंगी.’’

‘‘और मेरे पीठ पीछे साहबजी के साथ रात को जो करती रही, क्या वह गलत काम नहीं था?’’

रज्जो सिर झुकाए बैठी रही, उस से कोई जवाब नहीं बन पा रहा था.

‘‘रज्जो, तू हमारी बात मान जा. तू मना मत कर,’’ सुरेंद्र बोला.

‘‘साहबजी, ये नेताजी आएंगे, इन को खुश करना है. फिर कुछ नेताओं को खुश करने के लिए मुझे मैडमजी लखनऊ ले कर जाएंगी. मैं ने आप लोगों की बातें सुन ली हैं. मैं अब यह गलत काम नहीं करूंगी. मैं अपने घर जाना चाहती हूं. 2 दिन बाद मेरे काका आ रहे हैं,’ रज्जो ने नाराजगी भरे शब्दों में कहा.

‘‘अगर हम तुझे गांव न जाने दें तो…?’’ माधवी ने कहा.

‘‘तो मैं थाने जा कर पुलिस को और अखबार के दफ्तर में जा कर बता दूंगी कि आप लोग मुझ से जबरदस्ती गलत काम कराना चाहते हैं,’’ रज्जो ने कड़े शब्दों में कहा.

रज्जो के बदले तेवर देख कर सुरेंद्र ने कहा, ‘‘ठीक है रज्जो, हम तुझ से कोई काम जबरदस्ती नहीं कराएंगे. तू अपने काका के साथ गांव जा सकती है,’’ यह कह कर सुरेंद्र ने माधवी की ओर देखा.

उसी रात सुरेंद्र ने रज्जो की गला दबा कर हत्या कर दी और ड्राइवर से कह कर रज्जो की लाश को नदी में फिंकवा दिया. दिन निकलने पर इंस्पैक्टर को फोन कर के कोठी पर बुला लिया.

‘‘कहिए हुजूर, कैसे याद किया?’’ इंस्पैक्टर ने आते ही कहा.

‘‘हमारी नौकरानी रजनी उर्फ रज्जो घर से एक लाख रुपए व कुछ जेवरात चुरा कर भाग गई है.’’

‘‘सरकार, भाग कर जाएगी कहां वह? हम जल्द ही उसे पकड़ लेंगे,’’ इंस्पैक्टर ने कहा और कुछ देर बाद चला गया.

दोपहर बाद रज्जो का काका रामदीन आया. सुरेंद्र ने उसे देखते ही कहा, ‘‘अरे ओ रामदीन, तेरी रज्जो तो बहुत गलत लड़की निकली. उस ने हम लोगों से धोखा किया है. वह हमारे एक लाख रुपए व जेवरात ले कर कल रात कहीं भाग गई है.’’

‘‘नहीं हुजूर, ऐसा नहीं हो सकता. मेरी रज्जो ऐसा नहीं कर सकती,’’ घबरा कर रामदीन बोला.

‘‘ऐसा ही हुआ है. वह यहां से चोरी कर के भाग गई है. जब वह गांव में अपने घर पहुंचे तो बता देना. थाने में रिपोर्ट लिखा दी है. पुलिस तेरे घर भी पहुंचेगी.

‘‘अगर तू ने रज्जो के बारे में न बताया, तो पुलिस तुम सब को उठा कर जेल भेज देगी.

‘‘और सुन, तू चुपचाप यहां से भाग जा. अगर पुलिस को पता चल गया कि तू यहां आया है, तो पकड़ लिया जाएगा.’’

यह सुन कर रामदीन की आंखों में आंसू आ गए. रज्जो के लिए उस के दिल में नफरत बढ़ने लगी. वह रोता हुआ बोला, ‘‘रज्जो, यह तू ने अच्छा नहीं  किया. हम ने तो तुझे यहां सेवा करने के लिए भेजा था और तू चोर बन गई.’’

रामदीन रोतेरोते थके कदमों से कोठी से बाहर निकल गया.

उलटी धारा: नासिरा बी क्यों परेशान थी

यह बात आग की तरह पूरी बस्ती में फैल चुकी थी. सारा महल्ला गुस्से में था और हामिद शाह को खरीखोटी सुना रहा था.  बाय यह थी कि हामिद शाह अपनी बेटी कुलसुम को संभाल नहीं सके और कैसे उस ने एक हिंदू लड़के के साथ शादी कर ली. मौलवीमुल्ला सभी इकट्ठा हो कर एकसाथ मिल कर उन पर हमला बोल रहे थे. एक हिंदू लड़के से शादी कर के मजहब को बदनाम किया.

हामिद शाह का पूरा परिवार आंगन में खड़ा हो कर सब की जलीकटी बातें सुन रहा था. उन के खिलाफ जबान से एक शब्द भी नहीं निकल पा रहा था. मगर बस्ती के कुछ मुसलिम समझदार भी थे, जो इसे गलत नहीं बता रहे थे, मगर ऐसे लोगों की तादाद न के बराबर थी.

भीड़ बड़ी गुस्से में थी खासकर नौजवान. वे कुलसुम को वापस लाने की योजना बनाने लगे. मगर हामिद शाह इस की इजाजत नहीं दे रहे थे, इसीलिए उन से सारी भीड़ नाराज थी. वे किसी तरह की कोई प्रतिक्रिया नहीं दे पा रहे थे.

धीरेधीरे सारी भीड़ अपने घरों में चली गई. हामिद शाह भी अपनी बैठक में आ गए. साथ में उन की बेगम नासिरा बी, दोनों बेटेबहुएं बैठे हुए थे.

नासिरा बी सन्नाटे को तोड़ते हुए बोलीं, ‘‘करमजली कुलसुम मर क्यों न गई. इस कलमुंही की वजह से ये दिन देखने पड़े. यह सब आप की वजह से हुआ. न उसे इतनी छूट देते, न वह एक हिंदू लड़के से शादी करती. नाक कटा दी उस ने जातबिरादरी में. देखो, पूरा महल्ला बिफर पड़ा. कैसीकैसी बातें कह रहे थे और आप कानों में तेल डाल कर चुपचाप गूंगे बन कर सुनते रहे.

‘‘अरे, अब भी जबान तालू में क्यों चिपक गई,’’ मगर हामिद शाह ने कोई जवाब नहीं दिया. उन की आंखें बता रही थीं कि उन्हें भी अफसोस है.

‘‘अब्बा, अगर आप कहें तो उस कुलसुम को उस से छुड़ा कर लाता हूं. आग लगा दूंगा उस घर में,’’ छोटा बेटा उस्मान अली गुस्सा हो कर बोला.

‘‘नहीं उस्मान, ऐसी भूल कभी मत करना,’’ आखिर हामिद शाह अपनी जबान खोलते हुए बोले. पलभर रुक कर वे आगे बोले, ‘‘इस में मेरी भी रजामंदी थी. कुलसुम को मैं ने बहुत समझाया था. मगर वह जिद पर अड़ी रही, इसलिए मैं ने फिर इजाजत दे दी थी.’’

‘‘यह आप ने क्या किया अब्बा?’’ नाराज हो कर उस्मान अली बोला.

‘‘उस्मान, अगर मैं इजाजत नहीं देता, तो कुलसुम खुदकुशी कर लेती. यह सारा राज मैं ने छिपा कर रखा था.’’

‘‘आप ने मुझे नहीं बताया,’’ नासिरा बी चिल्ला कर बोलीं, ‘‘सारा राज छिपा कर रखा. अरे, बस्ती के लड़कों को ले जाते उस के घर में और आग लगा देते. कैसे अब्बा हो आप, जो अपनी बेगम को भी नहीं बताया.’’

‘‘कैसी बात करती हो बेगम, ऐसा कर के शहर में दंगा करवाना चाहती थी क्या?’’ हामिद शाह बोले.

‘‘अरे, इतनी बड़ी बात तुम ने छिपा कर रखी. मुझे हवा भी नहीं लगने दी. अगर मुझ से कह देते न तो उस की टांग तोड़ कर रख देती. यह सब ज्यादा पढ़ाने का नतीजा है. मैं ने पहले ही कहा था, बेटी को इतना मत पढ़ाओ. मगर तुम ने मेरी कहां चलने दी. चलो, पढ़ाने तक तो ठीक था. नौकरी भी लग गई,’’ गुस्से से उफन पड़ीं नासिरा बी, ‘‘आखिर ऐसा क्यों किया आप ने? क्यों छूट दी उस को?’’

‘‘देखो बेगम, तुम चुप हो तो मैं तुम्हें सारा किस्सा सुनाऊं,’’ कह कर पलभर को हामिद शाह रुके, फिर बोले, ‘‘तुम तो आग की तरह सुलगती जा रही हो.’’

‘‘हां कहो, अब नहीं सुलगूंगी,’’ कह कर नासिरा बी खामोश हो गईं. तब हामिद शाह ने सिलसिलेवार कहानी सुनानी शुरू की, लेकिन उस से पहले उन के घर के हालात से आप को रूबरू करा दें.

हामिद शाह एक सरकारी मुलाजिम थे. वे 10 साल पहले ही रिटायर हुए थे. कुलसुम से बड़े 2 भाई थे. दोनों की साइकिल की दुकान थी. सब से बड़े का नाम मोहम्मद अली था, जिस के 5 बच्चे थे. छोटे भाई का नाम उस्मान अली था, जिस के 3 बच्चे थे.

कुलसुम से बड़ी 3 बहनें थीं, जिन की शादी दूसरे शहरों में हो चुकी थी. कुलसुम सब से छोटी थी और सरकारी टीचर थी.

कुलसुम जब नौकरी पर लग गई थी, तब उस के लिए जातबिरादरी में लड़के देखना शुरू किया था. शाकिर मियां के लड़के अब्दुल रहमान से बात तकरीबन तय हो चुकी थी. लड़का भी कुलसुम को आ कर देख गया था और उसे पसंद भी कर गया था. मगर कुलसुम ने न ‘हां’ में और न ‘न’ में जवाब दिया था.

एक दिन घर में कोई नहीं था, तब हामिद शाह ने कुलसुम से पूछा, ‘‘कुलसुम, तुम ने जवाब नहीं दिया कि तुम्हें अब्दुल रहमान पसंद है कि नहीं. अगर तुम्हें पसंद है तो यह रिश्ता पक्का कर दूं?’’

मगर 25 साल की कुलसुम अपने अब्बा के सामने चुपचाप खड़ी रही. उस के मन के भीतर तो न जाने कैसी खिचड़ी पक रही थी. उसे चुप देख हामिद शाह फिर बोले थे, ‘‘बेटी, तुम ने जवाब नहीं दिया?

‘‘अब्बा, मुझे अब्दुल रहमान पसंद नहीं है,’’ इनकार करते हुए कुलसुम बोली थी.

‘‘क्यों मंजूर नहीं है, क्या ऐब है उस में, जो तू इनकार कर रही है?’’

‘‘क्योंकि, मैं किसी और को चाहती हूं,’’ आखिर कुलसुम मन कड़ा करते हुए बोली थी.

‘‘किसी और का मतलब…?’’ नाराज हो कर हामिद शाह बोले थे, ‘‘कौन है वह, जिस से तू निकाह करना चाहती है?’’

‘‘निकाह नहीं, मैं उस से शादी करूंगी.’’

‘‘पर, किस से?’’

‘‘मेरे स्कूल में सुरेश है. मैं उस से शादी कर रही हूं. अब्बा, आप अब्दुल रहमान क्या किसी भी खान को ले आएं, मैं सुरेश के अलावा किसी से शादी नहीं करूंगी,’’ कह कर कुलसुम ने हामिद शाह के भीतर हलचल मचा दी थी.

हामिद शाह गुस्से से बोले थे, ‘‘क्या कहा, तू एक हिंदू से शादी करेगी? शर्म नहीं आती तुझे. पढ़ालिखा कर तुझे नौकरी पर लगाया, इस का यही सिला दिया कि मेरी जातबिरादरी में नाक कटवाना चाहती है.’’

‘‘अब्बा, आप मुझे कितना ही समझा लें, चिल्ला लें, मगर मैं जरा भी टस से मस नहीं होऊंगी.’’

‘‘देख कुलसुम, तेरी शादी उस हिंदू लड़के के साथ कभी नहीं होने दूंगा,’’ हामिद शाह फिर गुस्से से बोले, ‘‘जानती नहीं कि हमारा और उस का मजहब अलगअलग है. फिर हमारा मजहब किसी हिंदू लड़के से शादी करने की इजाजत नहीं देता है.

‘‘कब तक मजहब के नाम पर आप जैसे सुधारवादी लोग भी कठमुल्लाओं के हाथ का खिलौना बनते रहेंगे? कब तक हिंदुओं को अपने से अलग मानते रहेंगे,’’ इस समय कुलसुम को भी न जाने कहां से जोश आ गया. उस ने अपनी रोबीली आवाज में कहा, ‘‘अरे अब्बा, 5-6 पीढ़ी पीछे जाओ. इस देश के मुसलमान भी हिंदू ही थे. फिर हिंदू मुसलमान को 2 खानों में क्यों बांट रहे हैं. मुसलमानों को इन कठमुल्लाओं ने अपने कब्जे में कर लिया है.’’

‘‘अरे, चंद किताबें क्या पढ़ गई, मुझे पाठ पढ़ा रही है. कान खोल कर सुन ले, तेरी शादी वहीं होगी, जहां मैं चाहूंगा,’’ हामिद शाह उसी गुस्से से बोले थे.

‘‘अब्बा, मैं भी शादी करूंगी तो सुरेश से ही, सुरेश के अलावा किसी से नहीं,’’ उसी तरह कुलसुम भी जवाब देते हुए बोली थी.

इतना सुनते ही हामिद शाह आगबबूला हो उठे, मगर जवाब नहीं दे पाए थे. अपनी जवान लड़की का फैसला सुन कर वे भीतर ही भीतर तिलमिला उठे थे. फिर ठंडे पड़ कर वे समझाते हुए बोले थे, ‘‘देखो बेटी, तुम पढ़ीलिखी हो, समझदार हो. जो फैसला तुम ने लिया है, वह भावुकता में लिया है. फिर निकाह जातबिरादरी में होता है. तुम तो जातबिरादरी छोड़ कर दूसरी कौम में शादी कर रही हो.

‘‘बेटी, मेरा कहना मानो, तुम अपना फैसला बदल लो और बदनामी से बचा लो. तुम्हारी मां, तुम्हारे भाई और तुम्हारी बहनों को जातबिरादरी का पता चलेगा तो कितना हंगामा होगा, इस बात को समझो बेटी, मैं कहीं भी मुंह देखाने लायक नहीं रहूंगा.’’

‘‘देखिए अब्बा, आप की कोई भी बात मुझे नहीं पिघला सकती,’’ थोड़ी नरम पड़ते हुए कुलसुम बोली, ‘‘सुरेश और मैं ने शादी करने का फैसला कर लिया है. अगर आप मुझ पर दबाव डालेंगे, तब मैं अपने प्यार की खातिर खुदकुशी कर लूंगी.’’

कुलसुम ने जब यह बात कही, तब हामिद शाह ऊपर से नीचे तक कांप उठे, फिर वे बोले थे, ‘‘नहीं बेटी, खुदकुशी मत करना.’’

‘‘तब आप मुझे मजबूर नहीं करेंगे, बल्कि इस शादी में आप मेरा साथ देंगे,’’ कुलसुम ने जब यह बात कही, तब हामिद शाह सोच में पड़ गए. एक तरफ कुआं दूसरी तरफ खाई. कुलसुम का साथ दें, तो समाज नाराज. अगर जबरदस्ती कुलसुम की शादी बिरादरी में कर भी दी, तब कुलसुम सुखी नहीं रहेगी, बल्कि खुदकुशी कर लेगी.

अपने अब्बा को चुप देख कुलसुम बोली, ‘‘अब्बा, अब सोचो मत. इजाजत दीजिए.’’

‘‘मैं ने कहा न कि बेटी घर में बहुत बड़ा हंगामा होगा. सचमुच में तुम सुरेश से ही शादी करना चाहती हो?’’

‘‘हां अब्बा,’’ कुलसुम हां में गरदन हिला कर बोली.

‘‘बीच में धोखा तो नहीं देगा वह?’’

‘‘नहीं अब्बा, वे लोग तो बहुत

अच्छे हैं.’’

‘‘तुम एक मुसलमान हो, तो क्या वे तुम्हें अपना लेंगे?’’

‘‘हां अब्बा, वे मुझे अपनाने के लिए तैयार हैं.’’

‘‘देख बेटी, हमारा कट्टर समाज इस शादी की इजाजत तो नहीं देगा, मगर मैं इस की इजाजत देता हूं.’’

‘‘सच अब्बा,’’ खुशी से झूम कर कुलसुम बोली.

‘‘हां बेटी, तुझे एक काम करना होगा, सुरेश से तुम गुपचुप शादी कर लो. किसी को कानोंकान हवा न लगे. इस से सांप भी मर जाएगा और लाठी भी नहीं टूटेगी…’’ सलाह देते हुए अब्बा हामिद शाह बोले, ‘‘जब तुम दोनों शादी कर लोगे, तब फिर कुछ नहीं होगा. थोड़े दिन चिल्ला कर लोग चुप हो जाएंगे.’’

इस घटना को 8 दिन भी नहीं गुजरे थे कि कुलसुम ने सुरेश के साथ कोर्ट में शादी कर ली. इस घटना की खबर आग की तरह पूरे शहर में फैल गई.

‘‘देखिएजी, इस शादी को मैं शादी नहीं मानती,’’ नासिरा बी झल्लाते हुए बोलीं, ‘‘मुझे कुलसुम चाहिए. कैसे भी कर के उस को उस हिंदू लड़के से छुड़ा कर लाओ.’’

‘‘बेगम, जिसे तुम हिंदू कह रही हो, वही तुम्हारा दामाद बन चुका है. कोर्ट में मैं खुद मौजूद था गवाह के तौर पर और तभी जज ने शादी बिना रोकटोक के होने दी थी.’’

‘‘मैं नहीं मानती उसे दामाद,’’ उसी तरह नासिरा बी गुस्से से बोलीं, ‘‘पुलिस को ले जाओ और उसे छुड़ा कर लाओ.’’

‘‘पुलिस भी कानून से बंधी हुई है बेगम. दोनों बालिग हैं और कुलसुम बयान देगी कि उस ने अपनी मरजी से शादी की है और बाप की गवाही है, तब पुलिस भी कुछ नहीं कर पाएगी. उसे अपना दामाद मान कर भूल जाओ,’’ समझाते हुए हामिद शाह बोले.

‘‘तुम बाप हो न, इसलिए तुम्हारे दिल में पीड़ा नहीं है. एक मां की पीड़ा को तुम क्या जानो?’’ गुस्से से नासिरा बी बोलीं, ‘‘मैं सब समझती हूं तुम बापबेटी की यह चाल है. खानदान में मेरी नाक कटा दी,’’ कह कर नासिरा बी गुस्से से बड़बड़ाती हुई चली गईं.

हामिद शाह मुसकराते हुए रह गए. नासिरा बी अब भी अंदर से बड़बड़ा रही थीं. इधर दोनों बेटे भी दुकान पर चले गए.

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